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AVYAKT MURLI

04 / 12 / 91

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04-12-91   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सफल तपस्वी अर्थात् प्योरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी वाले

आज चारों ओर के तपस्वी बच्चों की याद बापदादा के पास पहुँच रही है। कोई साकार में सम्मुख याद का रिटर्न मिलन मना रहे हैं कोई बच्चे आकारी रूप में याद और मिलन का अनुभव कर रहे हैं। बापदादा दोनों ही रूप के बच्चों को देख रहे हैं। आज अमृतवेले बापदादा बच्चों की तपस्या का प्रत्यक्ष स्वरूप देख रहे थे। हर एक बच्चा अपने पुरूषार्थ प्रमाण तपस्या कर रहे हैं। लक्ष्य भी है और उमंग भी है। तपस्वी सभी हैं क्योंकि ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही तपस्या है। तपस्या अर्थात् एक के लगन में मग्न रहना। सफल तपस्वी बहुत थोड़े हैं। पुरुषार्थी तपस्वी बहुत हैं। सफल तपस्वी की निशानी उनके सूरत और सीरत में प्योरिटी की पर्सनैलिटी और प्योरिटी की रॉयल्टी सदा स्पष्ट अनुभव होगी। तपस्या का अर्थ ही है मन-वचन-कर्म और सम्बन्ध-सम्पर्क में अपवित्रता का अंश मात्र भी विनाश होना। नाम- निशान समाप्त होना। जब अपवित्रता समाप्त हो जाती है तो इस समाप्ति को ही सम्पन्न स्थिति कहा जाता है। सफल तपस्वी अर्थात् सदा, स्वत: पवित्रता की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी, हर बोल और कर्म से, दृष्टि और वृत्ति से अनुभव हो। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् संकल्प में भी कोई भी विकार टच न हो। जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता मानते हो, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण व टचिंग, इसको भी अपवित्रता कहा जायेगा। पवित्रता की पर्सनैलिटी वाले, रॉयल्टी वाले मन-बुद्धि से भी इस बुराई को टच नहीं करते। क्योंकि सफल तपस्वी अर्थात् सम्पूर्ण वैष्णव। वैष्णव कभी बुरी चीज को टच नहीं करते हैं। तो उन्हों का है स्थूल, आप ब्राह्मण वैष्णव आत्माओं का है सूक्ष्म। बुराई को टच न करना यही तपस्या है। धारण करना अर्थात् ग्रहण करना। ये तो बहुत मोटी बात है। लेकिन संकल्प में भी टच नहीं करना। इसको ही कहा जाता है सच्चे वैष्णव।

सिर्फ याद के समय याद में रहना इसको तपस्या नहीं कहा जाता। तपस्या अर्थात् प्योरिटी के पर्सनैलिटी और रॉयल्टी का स्वयं भी अनुभव करना और औरों को भी अनुभव कराना। सफल तपस्वी का अर्थ ही है विशेष महान आत्मा बनना। विशेष आत्माओं वा महान आत्माओं को देश की वा विश्व की पर्सनैलिटीज़ कहते हैं। पवित्रता की पर्सनैलिटी अर्थात हर कर्म में महानता और विशेषता। पर्सनैलिटी अर्थात सदा स्वयं की और औरों की सेवा में सदा बिज़ी रहना अर्थात् अपनी इनर्जी, समय, संकल्प वेस्ट नहीं गँवाना, सफल करना। इसको कहेंगे पर्सनैलिटी वाले। पर्सनैलिटी वाले कभी भी छोटी-छोटी बातों में अपने मन-बुद्धि को बिज़ी नहीं रखते हैं। तो अपवित्रता की बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के आगे छोटी हैं या बड़ी हैं? इसलिए तपस्वी अर्थात् ऐसी बातों को सुनते हुए नहीं सुनें, देखते हुए नहीं देखें। ऐसा अभ्यास किया है? ऐसी तपस्या की है? वा यही सोचते हो चाहते तो नहीं हैं, लेकिन दिखाई दे देता है, सुनाई दे देता है? जैसे कोई चीज़ से आपका कनेक्शन ही नहीं हैं, उन चीजों को देखते हुए नहीं देखते हो ना। जैसे रास्ते पर जाते हो, कहीं कुछ दिखाई देता है परन्तु आपके मतलब की कोई बात नहीं है, तो देखते हुए नहीं देखेंगे ना। साइड सीन समझ कर पार कर लेंगे ना? ऐसे जो बातें सुनते हो, देखते हो, आपके काम की नहीं हैं, तो सुनते हुए नहीं सुनो, देखते हुए न देखो। अगर मन-बुद्धि में धारण किया, कि ये ऐसे हैं, ये वैसे हैं... इसको कहा जायेगा व्यर्थ बुराई को टच किया अर्थात् सच्चा वैष्णवपन सम्पूर्ण रूप से नहीं है। प्योरिटी के पर्सनैलिटी में परसेन्टेज कम अर्थात् तपस्या की परसेन्टेज कम। तो समझा तपस्या क्या है?

इसी विधि से अपने आपको चेक करो- तपस्या वर्ष में तपस्या का प्रत्यक्ष स्वरूप प्योरिटी की पर्सनैलिटी अनुभव करते हो? पर्सनैलिटी कभी छिप नहीं सकती। प्रत्यक्ष दिखाई जरूर देती है। जैसे साकार ब्रह्मा बाप को देखा- प्योरिटी की पर्सनैलिटी कितनी स्पष्ट अनुभव करते थे। ये तपस्या के अनुभव की निशानी अब आप द्वारा औरों को अनुभव हो। सूरत और सीरत दोनों द्वारा अनुभव करा सकते हो। अभी भी कई लोग अनुभव करते भी हैं। लेकिन इस अनुभव को और स्वयं द्वारा औरों में फैलाओ। आज पर्सनैलिटी का सुनाया। फिर रॉयल्टी का सुनायेंगे।

सभी मिलन मनाने आये हैं। तो बापदादा भी मिलन मनाने के लिए आप जैसे व्यक्त शरीर में आते हैं। समान बनना पड़ता है ना। आप साकार में हो तो बाप को भी साकार तन का आधार लेना पड़ता है। वैसे आपको व्यक्त से अव्यक्त बनना है या अव्यक्त को व्यक्त बनना है? कायदा क्या कहता है? अव्यक्त बनना है ना? तो फिर अव्यक्त को व्यक्त में क्यों लाते हो? जब आपको भी अव्यक्त ही बनना है तो अव्यक्त को तो अव्यक्त ही रहने दो ना। अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाते चलो। अव्यक्त भी ड्रामा अनुसार व्यक्त में आने के लिए बंधे हुए हैं लेकिन समय प्रमाण सरकमस्टांस प्रमाण अव्यक्त मिलन का अनुभव बहुत काम में आने वाला है। इसलिए इस अनुभव को इतना स्पष्ट और सहज करते जाओ, जो समय पर यह अव्यक्त मिलन साकार समान ही अनुभव हो। समझा - उस समय ऐसे नहीं कहना कि हमको तो अव्यक्त से व्यक्त में मिलने की आदत है। जैसा समय वैसे मिलन मना सकते हो। समझा!

जो भी जहाँ से भी आये हो इस समय सभी मधुबन निवासी हो। या अपने को महाराष्ट्र निवासी, उड़ीसा निवासी... समझते हो? ओरिजनल तो मधुबन निवासी हो। यह सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थान पर गये हो, ब्राह्मण अर्थात् मधुबन निवासी। सेवा स्थान पर गये हो इसीलिए सेवा स्थान को मेरा यही स्थान है - यह कभी भी नहीं समझना। कई बच्चे ऐसे कहते हैं, इसको चेंज करो तो कहते हैं नहीं, हमको पंजाब में वा उड़ीसा में ही भेजो। तो ओरिजनल पंजाब, उड़ीसा के हो वा मधुबन के हो । फिर क्यों कहते हो हम पंजाब के हैं तो पंजाब में ही भेजो, गुजरात के हैं तो गुजरात में ही भेजो? चेंज होने में तैयार हो? टीचर्स सभी तैयार हो? किसी को कहाँ भी चेंज करें, तैयार हैं? देखो, दादी सभी को सर्टिफिकेट ना का दे रही है। अच्छा यह भी अप्रैल में करेंगे। जो चेंज होने के लिए तैयार हों वही मिलने आवें। सेन्टर पर जाकर सोचेंगे यदि नहीं रहेंगे कि इसका क्या होगा, मेरा क्या होगा..? थोड़ा बहुत कुछ किनारा भी करेंगी। बापदादा से तपस्या की प्राइज़ लेने चाहते हो और बापदादा को तपस्या की प्राइज़ देने भी चाहते हो, या सिर्फ लेने चाहते हो? सभी सेन्टर से सरेन्डर होकर आना। नये मकान में आसक्ति है क्या? मेहनत करके बनाया है ना, जहाँ मेरापन है वहाँ तपस्या किसको कहा जायेगा? तपस्या अर्थात् तेरा और तपस्या भंग होना माना मेरा। समझा - ये तो सब छोटी-छोटी टीचर्स हैं कहेंगी हर्जा नहीं यहाँ से वहाँ हो जायेंगी। बड़ों को थोड़ा सोचना पड़ता। अच्छा - जो सेन्टर पर आने वाले हैं वो भी सोचते होंगे हमारी टीचर चली जायेगी, आप सभी भी एवररेडी हो? कोई भी कहाँ भी चली जाये। वा कहेंगे हमको तो यही टीचर चाहिए? जो समझते हैं कि कोई भी टीचर मिले उसमें राज़ी हैं वह हाथ उठावें। कोई भी टीचर मिले बापदादा जिम्मेवार है, दादी दीदी जिम्मेवार है, वह हाथ उठायें। अभी ये टी.वी. में तो निकाला है ना। सभी के फोटो टी.वी. में निकाल लो फिर देखेंगे। अन्तिम पेपर का क्वेश्चन ही यह आना है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। तो अन्तिम पेपर के लिए तो सभी तैयार होना ही है। रिहर्सल करेंगे ना, ज़ोन हेड को भी चेंज करेंगे। पाण्डवों को भी चेंज करेंगे। आपका है ही क्या? बापदादा ने दिया और बापदादा ने लिया। अच्छा- सभी एवररेडी हैं इसलिए अभी सिर्फ हाथ उठाने की मुबारक हो।

चारों ओर के सफल तपस्वी आत्माओं को, सदा प्योरिटी के पर्सनैलिटी में रहने वाली, सदा प्योरिटी के रॉयल्टी में रहने वाली, सदा सच्चे सम्पूर्ण वैष्णव आत्मायें, सदा समय प्रमाण स्वयं को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक, ऐसे सदा योगी, सहज योगी, स्वत: योगी, महान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

1- सभी तपस्वी आत्माएं हैं - ऐसे अनुभव करते हो? तपस्या अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे है या दूसरा कोई है अभी भी कोई है? कोई व्यक्ति या कोई वैभव? एक के सिवाए और कोई नहीं या थोड़ा-थोड़ा लगाव है? निमित्त बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन लगाव जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ बुद्धि जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर। तो चेक करो कि सारे दिन में मन और बुद्धि कहाँ-कहाँ भागती है? सिवाए बाप और सेवा के और कहाँ तो मन-बुद्धि नहीं जाती? अगर जाती है तो लगाव है। अगर व्यवहार भी करते हो, जो भी करते हो, वो भी ट्रस्टी बनकर। मेरा नहीं, तेरा। मेरा काम है, मुझे ही देखना पड़ता है.. मेरी जिम्मेवारी है.. ऐसे कहते हो कभी? क्या करें, मेरी जिम्मेवारी है ना, निभाना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, कहते हो कभी? या तेरा तेरे अर्पण, मेरा कहाँ से आया? तो यह बोल भी नहीं बोल सकते हो? मुझे ही देखना पड़ता है, मुझे ही करना पड़ता है, मेरा ही है, निभाना ही पड़ेगा...। मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के। बोझ उठाने की आदत तो नहीं है? 63 जन्म बोझ उठाया ना। कइयों की आदत होती है बोझ उठाने की। बोझ उठाने बिना रह नहीं सकते। आदत से मजबूर हो जाते हैं। मेरा मानना माना बोझ उठाना। समझा। थोड़ा सा किनारा करके रखा है, समय पर काम में आयेगा?। पाण्डवों ने थोड़ा बैंक बैलेन्स, थोड़ा जेब खर्च रखा है? जरा भी मेरापन नहीं। मेरा माना मैला। जहाँ मेरापन होगा ना वहाँ विकारों का मैलापन जरूर होगा। तेरा है तो क्या होगा? तैरते रहेंगे, डूबेंगे नहीं। तैरने में तो मजा आता है ना! तो तपस्या अर्थात् तेरा, मेरा नहीं। अच्छा- ये इस्टर्न ज़ोन है। सूर्य उदय होता है ना। तो इस्टर्न ज़ोन वालों के पास बाप के साथ का यादगार सूर्य सदा ही चमकता है ना। सभी तपस्या में सफलता को प्राप्त कर रहे हो ना। तपस्या में सन्तुष्ट हो? अपने चार्ट से सन्तुष्ट हो? या अभी होना है? यह भी एक लिफ्ट की गिफ्ट है। गिफ्ट जो होती है उसमें खर्चा नहीं करना पड़ता, खरीदने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। एक तो है अपना पुरूषार्थ और दूसरा है विशेष बाप द्वारा गिफ्ट मिलना। तो तपस्या वर्ष एक गिफ्ट है, सहज अनुभूति की गिफ्ट। जितना जो करना चाहे कर सकता है। मेहनत कम, निमित्त मात्र और प्राप्ति ज्यादा कर सकते हैं। अभी भी समय है, वर्ष पूरा नहीं हुआ है। अभी भी जो लेने चाहो ले सकते हो। इसलिए सफलता का सूर्य इस्ट में जगाओ। सदा सभी खुश हैं या कभी-कभी कुछ बातें होती तो नाखुश भी होते हो? खुशी बढ़ती जाती है, कम तो नहीं होती है? मायाजीत हो या माया रंग दिखा देती है? वह कितना भी रंग दिखाये, मैं मायापति हूँ। माया रचना है, मैं मास्टर रचयिता हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले मनोरंजन समझकर देखो। देखते-देखते हार नहीं जाओ। साक्षी होकर के, न्यारे होकर के देखते चलो। सभी तपस्या में आगे बढ़ने वाले, गिफ्ट लेने वाले हो? सेवा अच्छी हो रही है? स्वयं के पुरूषार्थ में उड़ रहे हैं और सेवा में भी उड़ रहे हैं। सभी फर्स्ट हैं। सदा फर्स्ट रहना, सेकेण्ड में नहीं आना। फर्स्ट रहेंगे तो सूर्यवंशी बनेंगे, सेकेण्ड बने तो चन्द्रवंशी। फर्स्ट नम्बर मायाजीत होंगे। कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरूषार्थ। जिसका फास्ट पुरूषार्थ है वो पीछे नहीं हो सकता। सदा साक्षी और सदा बाप के साथी - यही याद रखना।

2- सदा अपने को सहजयोगी, सहज ज्ञानी समझते हो? सहज है या मेहनत है? जब माया बड़े रूप में आती है तो मुश्किल नहीं लगता? मधुबन में बैठे हो तो सहज है, वहाँ प्रवृत्ति में रहते जब माया आती है फिर मुश्किल लगता है? कभी-कभी क्यों लगता है, उसका कारण? मार्ग कभी मुश्किल, कभी सहज है - ऐसे नहीं कहेंगे। मार्ग सदा सहज है, लेकिन आप कमज़ोर हो जाते हो इसलिए सहज भी मुश्किल लगता है। कमज़ोर के लिए कोई छोटा सा भी कार्य भी मुश्किल लगता है। अपनी कमज़ोरी मुश्किल बना देती है, बाकी मुश्किल है नहीं। कमज़ोर क्यों होते हैं? क्योंकि कोई न कोई विकारों के संग दोष में आ जाते हैं। सत का संग किनारे हो जाता है और दूसरा संग दोष लग जाता है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं कि सदा सतसंग में रहो। सतसंग अर्थात् सत बाप के संग में रहना। तो आप सदा सतसंग में रहते हो या और संग में भी चक्कर लगाते हो? सतसंग की कितनी महिमा है! और आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है। क्योंकि समीप का सम्बन्ध है। सबसे समीप सम्बन्ध है बाप और बच्चे का। यह सम्बन्ध सहज भी है और साथ-साथ प्राप्ति कराने वाला भी है। तो आप सभी सदा सतसंग में रहने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी है। सदैव यह सोचो कि हम औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो दूसरों की मुश्किल को सहज करने वाला होता वह स्वयं मुश्किल में नहीं आ सकता। अच्छा सेवा में क्वालिटी है या क्वान्टिटी है? क्वालिटी वालों की निशानी क्या होती है?

क्वालिटी वाली आत्मा की निशानी है - वह आते ही अपनापन महसूस करेगी। उसको ये स्मृति स्पष्ट होगी कि मैं इसी परिवार का था और पहुँच गया हूँ। अपनेपन से निश्चय में या पुरूषार्थ में देरी नहीं लगेगी। वह अपने परिवार को परख लेगा, अपने बाप को पहचान लेगा। तो अपनेपन का अनुभव होना ये पुरूषार्थ में क्वालिटी की निशानी है। सिर्फ नाम या धन में क्वालिटी नहीं, उसको सिर्फ क्वालिटी नहीं कहा जाता है, लेकिन पुरूषार्थ की भी क्वालिटी उसमें हो और जिसका अटल निश्चय पक्का रहता है, उसका प्रभाव स्वत: ही औरों पर पड़ता है। अपनापन होने के कारण उसको सब सहज अनुभव होगा। इसलिए तीव्र अर्थात् फास्ट जायेगा। जहाँ अपनापन होता है वहाँ कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता है। तो ऐसी क्वालिटी वाली आत्मायें और ज्यादा से ज्यादा निकालो। समझा। आप सब तो क्वालिटी वाली आत्माएं हो ना। वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो और आगे भी करते रहेंगे। पहले स्व के पुरूषार्थ में वृद्धि, फिर सेवा में। तो देनों बातों में सदा ही वृद्धि को प्राप्त करते, उड़ते चलो। अच्छा। माताओं को बहुत खुशी है या कभी-कभी दु:ख की लहर भी आ जाती है? कुछ भी हो जाये, दु:ख की लहर तो नहीं आती है? संकल्प में भी दु:ख की महसूसता नहीं हो। सुखदाता के बच्चे हो ना। सुखदाता के बच्चों के पास दु:ख की लेशमात्र भी नहीं आ सकती। स्वप्न में भी नहीं आ सकती। ऐसे सुखदायी आत्मा हो? क्या भी हो जाये दु:ख नहीं हो सकता। सुख में रहने वाले और सुख देने वाले। दु:ख की दुनिया को छोड़ दिया।

3- डबल विदेशी बताओ - आपका इस आबू पर्वत पर कौन सा यादगार है? अच्छा भारतवासी सुनाओ आपका यादगार कौन सा है? अच्छा - भारतवासियों का यादगार अचलगढ़ है और डबल विदेशियों का यादगार दिलवाला है? या दोनों ही यादगार दोनों के हैं? अचलगढ़ कौन बन सकता है? जिसने दिलाराम को अपना बना लिया, वही अचल बन सकता है। इसलिए दोनों ही यादगार बहुत कायदे प्रमाण बने हुए हैं। अगर दिलवाला बाप को अपना नहीं बनाया तो अचल की बजाए हलचल होती है। कोई भी चीज में हलचल होती रहे तो वह टूट जायेगी और जो अचल होगी वो सदा कायम रहेगी। तो सदैव ये स्मृति में रखो कि हम दिलवाला बाप को दिल देने वाली अचल आत्मायें हैं। ये मेरा यादगार है - हरेक अनुभव करे। ऐसे नहीं - ये ब्रह्मा बाप का या महारथियों का है। नहीं, मेरा यादगार है। देखो ड्रामानुसार अपने यादगार स्थान पर ही पहुँच गये। नहीं तो पाकिस्तान से आबू में आना - यह तो स्वप्न में भी नहीं आ सकता था। लेकिन ड्रामा में यादगार यहीं था तो कैसे पहुँच गये हैं। अपने ही यादगार को देख हर्षित होते रहते हो। अचल रहना - कोई मुश्किल बात नहीं है। कोई भी चीज को हिलाते रहो तो मेहनत भी और मुश्किल भी। सीधा रख दो तो वह सहज है। ऐसे ही मन-बुद्धि द्वारा हलचल में आना कितना मुश्किल होता है और मन बुद्धि एकाग्र हो जाती है तो कितना सहज होता है। अभी हलचल में आना पसन्द ही नहीं करेंगे। अच्छा नहीं लगेगा। आधाकल्प हलचल में आते थक गये। तन की भी हलचल, मन की भी हलचल, धन की भी हलचल। तन से भी भटकते रहे। कभी किस मन्दिर में। कभी किस यात्रा पर, तो कभी किस यात्रा पर और मन परेशानियों में, हलचल में आते रहा और धन में तो देखो- कभी लखपति तो कभी कखपति। तो अनेक जन्मों की हलचल का अनुभव होने के कारण अभी अचल अवस्था अति प्रिय लगती है। इसीलिए दूसरों के ऊपर रहम आता है। शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि ये भी अचल हो जाये। अचल स्थिति वालों का विशेष गुण होगा - रहमदिल। सदा हर एक आत्मा के प्रति दातापन की भावना। ऐसे मास्टर दाता बने हो कि दूसरे को देखकर घृणा आती है? रहम आता है, दया भाव आता है, दातापन की स्मृति आती है? या क्यों क्या उत्पन्न है? आप सबका विशेष टाइटल है - विश्व कल्याणकारी। जो विश्व कल्याणकारी है उसको हर आत्मा के प्रति कल्याण की भावना होगी। उसके अन्दर स्वत: ही किसी आत्मा के प्रति भी घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानि का भाव कभी उत्पन्न नहीं होगा। इसको कहा जाता है विश्व कल्याणकारी आत्मा। तो ऐसे हो? या कभी-कभी दूसरे भाव भी आ जाते हैं? बस, सदा कल्याण का भाव हो।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- 'सफल तपस्वी अर्थात प्योरिटी की पर्सनालिटी' एवं 'संपूर्ण पवित्रता अर्थात संकल्प में भी कोई भी विकार टच ना हो'।  बाबा के महावाक्यों में विस्तार करें ।

 प्रश्न 2 :- अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाने प्रति बाबा की क्या समझानी है ?

 प्रश्न 3 :- सदा सहजयोगी सहजज्ञानी बच्चे कभी कमजोर नहीं हो सकते। इसके लिए बाबा ने क्या युक्तियाँ बताई हैं ?

 प्रश्न 4 :- क्वालिटी वाली आत्मा की निशानी क्या होती हैं ?

 प्रश्न 5 :- दिलवाड़ा और अचलगढ़ का ज़िक्र करते हुए बाबा हलचल से मुक्त रहने के लिए क्या समझानी दे रहे हैं ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(सफल, कल्याण, मनोरंजन, विश्व, पुरुषार्थी, सीरत, बुद्धि, ब्राह्मण, तपस्या, निमित्त, रचना, उत्पन्न, रचयिता, लगाव, सूरत)

 1   तपस्वी सभी हैं क्योंकि  _____  जीवन की विशेषता ही तपस्या है। तपस्या अर्थात् एक के लगन में मग्न रहना।  _____  तपस्वी बहुत थोड़े हैं।  _____  तपस्वी बहुत हैं।

 2  ये  _____  के अनुभव की निशानी अब आप द्वारा औरों को अनुभव हो।  _____  और  _____  दोनों द्वारा अनुभव करा सकते हो। 

 3  _____  बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन  _____  जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ  _____  जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर।

 4  माया  _____  है, मैं मास्टर  _____  हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले  _____  समझकर देखो।

 5  जो  _____  कल्याणकारी है उसको हर आत्मा के प्रति  _____  की भावना होगी। उसके अन्दर स्वत: ही किसी आत्मा के प्रति भी घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानि का भाव कभी  _____  नहीं होगा।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- यह सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थान पर गये हो, ब्राह्मण अर्थात् मधुबन निवासी। सेवा स्थान पर गये हो इसीलिए सेवा स्थान को मेरा यही स्थान है - यह कभी भी नहीं समझना।

 2  :- फर्स्ट पेपर का क्वेश्चन ही यह आना है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।

 3  :- तेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं जिम्मेवार हूँ तो हल्के।

 4  :- मेरा माना मैला। जहाँ मेरापन होगा ना वहाँ विकारों का मैलापन जरूर होगा। तेरा है तो क्या होगा? तैरते रहेंगे, डूबेंगे नहीं।

 5  :- कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् स्लो पुरूषार्थ।

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- 'सफल तपस्वी अर्थात प्योरिटी की पर्सनालिटी' एवं 'संपूर्ण पवित्रता अर्थात संकल्प में भी कोई भी विकार टच ना हो'।  बाबा के महावाक्यों में विस्तार करें ।

   उत्तर 1 :-सफल तपस्वी एवं 'संपूर्ण पवित्रता के संदर्भ में बाबा के निम्नलिखित महावाक्य हैं:

          .. तपस्या का अर्थ ही है मन-वचन-कर्म और सम्बन्ध-सम्पर्क में अपवित्रता का अंश मात्र भी विनाश होना। नाम- निशान समाप्त होना। जब अपवित्रता समाप्त हो जाती है तो इस समाप्ति को ही सम्पन्न स्थिति कहा जाता है।

          .. सफल तपस्वी अर्थात् सदा, स्वत: पवित्रता की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी, हर बोल और कर्म से, दृष्टि और वृत्ति से अनुभव हो।

          .. प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् संकल्प में भी कोई भी विकार टच न हो। जैसे ब्राह्मण जीवन में शारीरिक आकर्षण व शारीरिक टचिंग अपवित्रता मानते हो, ऐसे मन-बुद्धि में किसी विकार के संकल्प मात्र की आकर्षण व टचिंग, इसको भी अपवित्रता कहा जायेगा।

          .. पवित्रता की पर्सनैलिटी वाले, रॉयल्टी वाले मन-बुद्धि से भी इस बुराई को टच नहीं करते। क्योंकि सफल तपस्वी अर्थात् सम्पूर्ण वैष्णव। वैष्णव कभी बुरी चीज को टच नहीं करते हैं। तो उन्हों का है स्थूल, आप ब्राह्मण वैष्णव आत्माओं का है सूक्ष्म। बुराई को टच न करना यही तपस्या है।

          .. पर्सनैलिटी वाले कभी भी छोटी-छोटी बातों में अपने मन-बुद्धि को बिज़ी नहीं रखते हैं। तो अपवित्रता की बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के आगे छोटी हैं या बड़ी हैं? इसलिए तपस्वी अर्थात् ऐसी बातों को सुनते हुए नहीं सुनें, देखते हुए नहीं देखें।

          .. जैसे रास्ते पर जाते हो, कहीं कुछ दिखाई देता है परन्तु आपके मतलब की कोई बात नहीं है, तो देखते हुए नहीं देखेंगे ना। साइड सीन समझ कर पार कर लेंगे ना? ऐसे जो बातें सुनते हो, देखते हो, आपके काम की नहीं हैं, तो सुनते हुए नहीं सुनो, देखते हुए न देखो। अगर मन-बुद्धि में धारण किया, कि ये ऐसे हैं, ये वैसे हैं... इसको कहा जायेगा व्यर्थ बुराई को टच किया अर्थात् सच्चा वैष्णवपन सम्पूर्ण रूप से नहीं है।प्योरिटी के पर्सनैलिटी में परसेन्टेज कम अर्थात् तपस्या की परसेन्टेज कम।

 

 प्रश्न 2 :- अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाने प्रति बाबा की क्या समझानी है ?

उत्तर 2 :- अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाने प्रति बाबा की निम्नलिखित समझानी है:

          .. सभी मिलन मनाने आये हैं। तो बापदादा भी मिलन मनाने के लिए आप जैसे व्यक्त शरीर में आते हैं। समान बनना पड़ता है ना। आप साकार में हो तो बाप को भी साकार तन का आधार लेना पड़ता है।

          .. वैसे आपको व्यक्त से अव्यक्त बनना है या अव्यक्त को व्यक्त बनना है? कायदा क्या कहता है? अव्यक्त बनना है ना?

          .. तो फिर अव्यक्त को व्यक्त में क्यों लाते हो? जब आपको भी अव्यक्त ही बनना है तो अव्यक्त को तो अव्यक्त ही रहने दो ना।

          .. अव्यक्त मिलन के अनुभव को बढ़ाते चलो। अव्यक्त भी ड्रामा अनुसार व्यक्त में आने के लिए बंधे हुए हैं लेकिन समय प्रमाण सरकमस्टांस प्रमाण अव्यक्त मिलन का अनुभव बहुत काम में आने वाला है।

          .. इसलिए इस अनुभव को इतना स्पष्ट और सहज करते जाओ, जो समय पर यह अव्यक्त मिलन साकार समान ही अनुभव हो। समझा - उस समय ऐसे नहीं कहना कि हमको तो अव्यक्त से व्यक्त में मिलने की आदत है। जैसा समय वैसे मिलन मना सकते हो।

 

 प्रश्न 3 :- सदा सहजयोगी सहजज्ञानी बच्चे कभी कमजोर नहीं हो सकते। इसके लिए बाबा ने क्या युक्तियाँ बताई हैं ?

   उत्तर 3 :-सदा सहजयोगी सहजज्ञानी बच्चे कभी कमजोर न हो। इसके लिए बाबा ने निम्नलिखित युक्तियाँ बताई हैं:

          .. सदा अपने को सहजयोगी, सहज ज्ञानी समझते हो? सहज है या मेहनत है? जब माया बड़े रूप में आती है तो मुश्किल नहीं लगता? मधुबन में बैठे हो तो सहज है, वहाँ प्रवृत्ति में रहते जब माया आती है फिर मुश्किल लगता है? कभी-कभी क्यों लगता है, उसका कारण?

          .. मार्ग कभी मुश्किल, कभी सहज है - ऐसे नहीं कहेंगे। मार्ग सदा सहज है, लेकिन आप कमज़ोर हो जाते हो इसलिए सहज भी मुश्किल लगता है। कमज़ोर के लिए कोई छोटा सा भी कार्य भी मुश्किल लगता है। अपनी कमज़ोरी मुश्किल बना देती है, बाकी मुश्किल है नहीं।

          ..❸ कमज़ोर क्यों होते हैं? क्योंकि कोई न कोई विकारों के संग दोष में आ जाते हैं। सत का संग किनारे हो जाता है और दूसरा संग दोष लग जाता है। इसलिए भक्ति में भी कहते हैं कि सदा सतसंग में रहो।

          .. सतसंग अर्थात् सत बाप के संग में रहना। तो आप सदा सतसंग में रहते हो या और संग में भी चक्कर लगाते हो? सतसंग की कितनी महिमा है!

          .. और आप सबके लिए सत बाप का संग अति सहज है। क्योंकि समीप का सम्बन्ध है। सबसे समीप सम्बन्ध है बाप और बच्चे का। यह सम्बन्ध सहज भी है और साथ-साथ प्राप्ति कराने वाला भी है।

          .. तो आप सभी सदा सतसंग में रहने वाले सहज योगी, सहज ज्ञानी है। सदैव यह सोचो कि हम औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं। जो दूसरों की मुश्किल को सहज करने वाला होता वह स्वयं मुश्किल में नहीं आ सकता।

 

 प्रश्न 4 :- क्वालिटी वाली आत्मा की निशानी क्या होती हैं ?

   उत्तर 4 :- क्वालिटी वाली आत्मा की निम्नलिखित निशानी हैं:

          .. क्वालिटी वाली आत्मा की निशानी है - वह आते ही अपनापन महसूस करेगी। उसको ये स्मृति स्पष्ट होगी कि मैं इसी परिवार का था और पहुँच गया हूँ।

          .. अपनेपन से निश्चय में या पुरूषार्थ में देरी नहीं लगेगी। वह अपने परिवार को परख लेगा, अपने बाप को पहचान लेगा। तो अपनेपन का अनुभव होना ये पुरूषार्थ में क्वालिटी की निशानी है।

          .. सिर्फ नाम या धन में क्वालिटी नहीं, उसको सिर्फ क्वालिटी नहीं कहा जाता है, लेकिन पुरूषार्थ की भी क्वालिटी उसमें हो और जिसका अटल निश्चय पक्का रहता है, उसका प्रभाव स्वत: ही औरों पर पड़ता है।

          .. अपनापन होने के कारण उसको सब सहज अनुभव होगा। इसलिए तीव्र अर्थात् फास्ट जायेगा। जहाँ अपनापन होता है वहाँ कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता है। तो ऐसी क्वालिटी वाली आत्मायें और ज्यादा से ज्यादा निकालो। समझा।

          .. आप सब तो क्वालिटी वाली आत्माएं हो ना। वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो और आगे भी करते रहेंगे। पहले स्व के पुरूषार्थ में वृद्धि, फिर सेवा में।

 

 प्रश्न 5 :- दिलवाड़ा और अचलगढ़ का ज़िक्र करते हुए बाबा हलचल से मुक्त रहने के लिए क्या समझानी दे रहे हैं ?

   उत्तर 5 :- दिलवाड़ा और अचलगढ़ का ज़िक्र करते हुए बाबा हलचल से मुक्त रहने के लिए निम्नलिखित समझानी दे रहे हैं:

          .. अगर दिलवाला बाप को अपना नहीं बनाया तो अचल की बजाए हलचल होती है। कोई भी चीज में हलचल होती रहे तो वह टूट जायेगी और जो अचल होगी वो सदा कायम रहेगी। तो सदैव ये स्मृति में रखो कि हम दिलवाला बाप को दिल देने वाली अचल आत्मायें हैं।

          .. ये मेरा यादगार है - हरेक अनुभव करे। ऐसे नहीं - ये ब्रह्मा बाप का या महारथियों का है। नहीं, मेरा यादगार है। देखो ड्रामानुसार अपने यादगार स्थान पर ही पहुँच गये। नहीं तो पाकिस्तान से आबू में आना - यह तो स्वप्न में भी नहीं आ सकता था। लेकिन ड्रामा में यादगार यहीं था तो कैसे पहुँच गये हैं। अपने ही यादगार को देख हर्षित होते रहते हो।

          .. अचल रहना - कोई मुश्किल बात नहीं है। कोई भी चीज को हिलाते रहो तो मेहनत भी और मुश्किल भी। सीधा रख दो तो वह सहज है।

          .. ऐसे ही मन-बुद्धि द्वारा हलचल में आना कितना मुश्किल होता है और मन बुद्धि एकाग्र हो जाती है तो कितना सहज होता है। अभी हलचल में आना पसन्द ही नहीं करेंगे। अच्छा नहीं लगेगा।

          .. आधाकल्प हलचल में आते थक गये। तन की भी हलचल, मन की भी हलचल, धन की भी हलचल। तन से भी भटकते रहे। कभी किस मन्दिर में। कभी किस यात्रा पर, तो कभी किस यात्रा पर और मन परेशानियों में, हलचल में आते रहा और धन में तो देखो- कभी लखपति तो कभी कखपति।

          .. तो अनेक जन्मों की हलचल का अनुभव होने के कारण अभी अचल अवस्था अति प्रिय लगती है। इसीलिए दूसरों के ऊपर रहम आता है।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(सफल, कल्याण, मनोरंजन, विश्व, पुरुषार्थी, सीरत, बुद्धि, ब्राह्मण, तपस्या, निमित्त, रचना, उत्पन्न, रचयिता, लगाव, सूरत)

 1   तपस्वी सभी हैं क्योंकि  _____  जीवन की विशेषता ही तपस्या है। तपस्या अर्थात् एक के लगन में मग्न रहना।  _____  तपस्वी बहुत थोड़े हैं।  _____  तपस्वी बहुत हैं।

       ब्राह्मण / सफल / पुरुषार्थी

 

 2  ये  _____  के अनुभव की निशानी अब आप द्वारा औरों को अनुभव हो।  _____  और  _____  दोनों द्वारा अनुभव करा सकते हो। 

      तपस्या / सूरत / सीरत

 

 3  _____  बनकर सेवा करना वह और बात है लेकिन  _____  जहाँ भी होगा, चाहे व्यक्ति में, चाहे वैभव में, तो लगाव की निशानी है, वहाँ  _____  जरूर जायेगी। मन भागेगा जरूर।

       निमित्त / लगाव / बुद्धि

 

 4  माया  _____  है, मैं मास्टर  _____  हूँ। तो खेल देखो लेकिन खेल में हार नहीं खाओ। कितना भी माया अनेक प्रकार का खेल दिखाये, आप देखने वाले  _____  समझकर देखो।

      रचना / रचयिता / मनोरंजन

 

 5  जो  _____  कल्याणकारी है उसको हर आत्मा के प्रति  _____  की भावना होगी। उसके अन्दर स्वत: ही किसी आत्मा के प्रति भी घृणा भाव, द्वेष भाव, ईर्ष्या भाव या ग्लानि का भाव कभी  _____  नहीं होगा।

      विश्व / कल्याण / उत्पन्न

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- यह सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थान पर गये हो, ब्राह्मण अर्थात् मधुबन निवासी। सेवा स्थान पर गये हो इसीलिए सेवा स्थान को मेरा यही स्थान है - यह कभी भी नहीं समझना। 【✔】

 

 2  :-  फर्स्ट पेपर का क्वेश्चन ही यह आना है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। 【✖】

  अन्तिम पेपर का क्वेश्चन ही यह आना है - नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।

 3  :- तेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं जिम्मेवार हूँ तो हल्के।【✖】

  मेरा कहा और बोझ हुआ। बाप का है, बाप करेगा, मैं निमित्त हूँ तो हल्के।

 

 4  :- मेरा माना मैला। जहाँ मेरापन होगा ना वहाँ विकारों का मैलापन जरूर होगा। तेरा है तो क्या होगा? तैरते रहेंगे, डूबेंगे नहीं। 【✔】

 

 5   :- कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् स्लो पुरूषार्थ।【✖】

  कोई समस्या नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, कोई क्वेश्चन नहीं, कोई कमजोरी नहीं। फर्स्ट नम्बर अर्थात् फास्ट पुरूषार्थ।