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AVYAKT MURLI

23 / 10 / 99

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23-10-99   ओम शान्ति   अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

समय की पुकार- दाता बनो

आज सर्व श्रेष्ठ भाग्य विधाता, सर्व शक्तियों के दाता बापदादा चारों ओर के सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। चाहे मधुबन में सम्मुख में हैं, चाहे देश विदेश में याद में सुन रहे हैं, देख रहे हैं, जहाँ भी बैठे हैं लेकिन दिल से सम्मुख हैं। उन सब बच्चों को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। आप सभी भी हर्षित हो रहे हो ना! बच्चे भी हर्षित और बापदादा भी हर्षित। और यही दिल का सदा का सच्चा हर्ष सारी दुनिया के दु:खों को दूर करने वाला है। यह दिल का हर्ष आत्माओं को बाप का अनुभव कराने वाला है क्योंकि बाप भी सदा सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी है और आप सब बच्चे बाप के साथ सेवा-साथी हैं। साथी हैं ना! बाप के साथी और विश्व के दु:खों को परिवर्तन कर सदा खुश रहने का साधन देने की सेवा में सदा उपस्थित रहते हो। सदा सेवाधारी हो। सेवा सिर्फ चार घण्टा, छ: घण्टा करने वाले नहीं हो। हर सेकण्ड सेवा की स्टेज पर पार्ट बजाने वाले परमात्म-साथी हो। याद निरन्तर है, ऐसे ही सेवा भी निरन्तर है। अपने को निरन्तर सेवाधारी अनुभव करते हो? या 8-10 घण्टे के सेवाधारी हैं? यह ब्राह्मण जन्म ही याद और सेवा के लिए है। और कुछ करना है क्या? यही है ना! हर श्वांस, हर सेकण्ड याद और सेवा साथ-साथ है या सेवा के घण्टे अलग हैं और याद के घण्टे अलग हैं? नहीं है ना! अच्छा, बैलेन्स है? अगर 100 परसेन्ट सेवा है तो 100 परसेन्ट ही याद है? दोनों का बैलेन्स है? अन्तर पड़ जाता है ना? कर्म योगी का अर्थ ही है - कर्म और याद, सेवा और याद - दोनों का बैलेन्स समान, समान होना चाहिए। ऐसे नहीं कोई समय याद ज्यादा है और सेवा कम, या सेवा ज्यादा है याद कम। जैसे आत्मा और शरीर जब तक स्टेज पर है तो साथ-साथ है ना। अलग हो सकते हैं? ऐसे याद और सेवा साथ-साथ रहे। याद अर्थात् बाप समान, स्व के स्वमान की भी याद। जब बाप की याद रहती है तो स्वत: ही स्वमान की भी याद रहती है। अगर स्वमान में नहीं रहते तो याद भी पावरफुल नहीं रहती।

स्वमान अर्थात् बाप समान। सम्पूर्ण स्वमान है ही बाप-समान। और ऐसे याद में रहने वाले बच्चे सदा ही दाता होंगे, लेवता नहीं। देवता माना देने वाला। तो आज बापदादा सभी बच्चों के दातापन की स्टेज चेक कर रहे थे कि कहाँ तक दाता के बच्चे दाता बने हैं? जैसे बाप कभी भी लेने का संकल्प नहीं कर सकता, देने का करता है। अगर कहते भी हैं, सब कुछ पुराना दे दो तो भी पुराने के बदले नया देता है। लेना माना बाप का देना। तो वर्तमान समय बापदादा को बच्चों की एक टॉपिक बहुत अच्छी लगी। कौन सी टॉपिक? विदेश की टॉपिक है। कौन सी? (काल आफ टाइम।)

तो बापदादा देख रहे थे कि बच्चों के लिए समय की क्या पुकार है! आप देखते हो विश्व के लिए, सेवा के लिए, बापदादा सेवा के साथी तो हैं ही। लेकिन बापदादा देखते हैं कि बच्चों के लिए अभी समय की क्या पुकार है? आप भी समझते हो ना कि समय की क्या पुकार है? अपने लिए सोचो। सेवा प्रति तो भाषण किये, कर रहे हैं ना! लेकिन अपने लिए, अपने से ही पूछो कि हमारे लिए समय की क्या पुकार है? वर्तमान समय की क्या पुकार है? तो बापदादा देख रहे थे कि अभी के समय अनुसार हर समय, हर बच्चे को `दातापन' की स्मृति और बढ़ानी है। चाहे स्व-उन्नति के प्रति दाता-पन का भाव, चाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे। कोई कैसा भी हो, क्या भी हो, मुझे देना है। तो दाता सदा ही बेहद की वृत्ति वाला होगा, हद नहीं और दाता सदा सम्पन्न, भरपूर होगा। दाता सदा ही क्षमा का मास्टर सागर होगा। इस कारण जो हद के अपने संस्कार या दूसरों के संस्कार वह इमर्ज नहीं होंगे, मर्ज होंगे। मुझे देना है। कोई दे, नहीं दे लेकिन मुझे दाता बनना है। किसी भी संस्कार के वश परवश आत्मा हो, उस आत्मा को मुझे सहयोग देना है। तो किसी का भी हद का संस्कार आपको प्रभावित नहीं करेगा। कोई मान दे, कोई नहीं दे, वह नहीं दे लेकिन मुझे देना है। ऐसे दातापन अभी इमर्ज चाहिए। मन में भावना तो है लेकिन..... लेकिन नहीं आवे। मुझे करना ही है। कोई ऐसी चलन वा बोल जो आपके काम का नहीं है, अच्छा नहीं लगता है, उसे लो ही नहीं। बुरी चीज़ ली जाती है क्या? मन में धारण करना अर्थात् लेना। दिमाग तक भी नहीं। दिमाग में भी बात आ गई ना, वह भी नहीं। जब है ही बुरी चीज़, अच्छी है नहीं तो दिमाग और दिल में लो नहीं यानी धारण नहीं करो। और ही लेने के बजाए शुभ भावना, शुभ कामना, दाता बन दो। लो नहीं; क्योंकि अभी समय के अनुसार अगर दिल और दिमाग खाली नहीं होगा तो निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। दिल या दिमाग जब किसी भी बातों में बिजी हो गया तो सेवा क्या करेंगे? फिर जैसे लौकिक में कोई 8 घण्टा, कोई 10 घण्टा वर्क करते हैं, ऐसे यहाँ भी हो जायेगा। 8 घण्टे के सेवाधारी, 6 घण्टे के सेवाधारी। निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। चाहे मन्सा सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म अर्थात् सम्बन्ध, सम्पर्क से। हर सेकण्ड दाता अर्थात् सेवाधारी। दिमाग को खाली रखने से बाप की सेवा के साथी बन सकेंगे। दिल को सदा साफ रखने से निरन्तर बाप की सेवा के साथी बन सकते हैं। आप सबका वायदा क्या है? साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। वायदा है ना? या आप आगे रहो हम पीछे-पीछे आयेंगे? नहीं ना? साथ का वायदा है ना? तो बाप सेवा के बिना रहता है? याद के बिना भी नहीं रहता। जितना बाप याद में रहता उतना आप मेहनत से रहते हैं। रहते हैं लेकिन मेहनत से, अटेन्शन से। और बाप के लिए है ही क्या? परम आत्मा के लिए हैं ही आत्मायें। नम्बरवार आत्मायें तो हैं ही। सिवाए बच्चों की याद के बाप रह ही नहीं सकता। बाप बच्चों की याद के बिना रह सकता है? आप रह सकते हो? कभी-कभी नटखट हो जाते हैं।

तो क्या सुना? समय की पुकार है - दाता बनो। आवश्यकता है बहुत। सारे विश्व के आत्माओं की पुकार है - हे हमारे इष्ट......इष्ट तो हो ना! किसी न किसी रूप में सर्व आत्माओं के लिए इष्ट हो। तो अभी सभी आत्माओं की पुकार है - हे इष्ट देव-देवियाँ परिवर्तन करो। यह पुकार सुनने में आती है? पाण्डवों को यह पुकार सुनने में आती है? सुनकर फिर क्या करते हो? सुनने में आती है तो सैलवेशन देते हो या सोचते हो, हाँ करेंगे? पुकार सुनने में आती है? तो समय की पुकार सुनाते हो और आत्माओं की पुकार सिर्फ सुनते हो? तो इष्ट देव-देवियों अभी अपने दाता-पन का रूप इमर्ज करो। देना है। कोई भी आत्मा वंचित नहीं रह जाए। नहीं तो उल्हनों की मालायें पड़ेंगी। उल्हनें तो देंगे ना! तो उल्हनों की माला पहनने वाले इष्ट हो या फूलों की माला पहनने वाले इष्ट हो? कौन से इष्ट हो? पूज्य हो ना! ऐसे नहीं समझना कि हम तो पीछे आने वाले हैं। जो बड़े-बड़े हैं वही दाता बनेंगे, हम कहाँ बनेंगे। लेकिन नहीं, सबको दाता बनना है। जो फर्स्ट टाइम मधुबन में आने वाले हैं वह हाथ उठाओ।

जो फर्स्ट टाइम आये हैं वह दाता बन सकते हैं या दूसरे तीसरे साल में दाता बनेंगे? एक साल वाले दाता बन सकते हैं? (हाँ जी) बहुत अच्छे होशियार हैं। बापदादा हिम्मत के ऊपर सदा खुश होते हैं। चाहे एक मास वाला भी है, यह तो एक साल या 6 मास हुआ होगा लेकिन बापदादा जानते हैं कि एक साल वाले हों या एक मास वाले हों, एक मास में भी अपने को ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं ना! तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के वर्से के अधिकारी बन गये। ब्रह्मा को बाप माना तब तो कुमार-कुमारी बने ना? तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी, बाप ब्रह्मा, शिव बाप के वर्से के अधिकारी बने ना! या एक मास वालों को वर्सा नहीं मिलेगा? एक मास वालों को वर्सा मिलता है? जब वर्सा मिल गया तो देने के लिए दाता तो होंगे ना! जो चीज़ मिलती है वह देना तो शुरू करना ही चाहिए ना।

अगर बाप समझकर कनेक्शन जोड़ा तो एक दिन में भी वर्सा ले सकता है। ऐसे नहीं कि हाँ अच्छा है, कोई शक्ति है, समझ में तो आता है...यह नहीं। वर्से के अधिकारी बच्चे होते हैं। समझने वाले, देखने वाले नहीं। अगर एक दिन में भी दिल से बाप माना तो वर्से का अधिकारी बन सकता है। आप लोग तो सभी अधिकारी हैं ना? आप लोग तो ब्रहमाकुमार-कुमारियाँ हैं ना या बन रहे हैं? बन गये हैं या बनने आये हैं? कोई आपको बदल नहीं सकता? ब्रह्माकुमार-कुमारी के बजाए सिर्फ कुमार-कुमारी बन जाओ, नहीं हो सकता? ब्रह्माकुमार और कुमारी बनने में फायदे कितने हैं? एक जन्म के भी फायदे नहीं, अनेक जन्मों के फायदे। पुरूषार्थ आधा जन्म, चौथाई जन्म का और प्रालब्ध है अनेक जन्मों की। फायदा ही फायदा है ना!

बापदादा समय के अनुसार वर्तमान समय विशेष एक बात अटेन्शन में दिलाते हैं क्योंकि बापदादा बच्चों की रिज़ल्ट तो देखते रहते हैं ना! तो रिजल्ट में देखा गया, हिम्मत बहुत अच्छी है। लक्ष्य भी बहुत अच्छा है। लक्ष्य अनुसार अभी तक लक्ष्य और लक्षण उसमें अन्तर है। लक्ष्य सबका नम्बरवन है, कोई से भी बापदादा पूछेंगे आपका लक्ष्य 21 जन्म का राज्य भाग्य लेना है, सूर्यवंशी बनने का है वा चन्द्रवंशी? तो सब किसमें हाथ उठायेंगे? सूर्यवंशी में ना! कोई है जो चन्द्रवंशी बनना चाहता है? कोई राम बनने वाला है? कोई नहीं। एक तो बन जाओ। कोई तो राम बनना ही है ना। (एक ने हाथ उठाया) अच्छा है, नहीं तो राम की सीट खाली रह जायेगी। तो लक्ष्य सभी का बहुत अच्छा है, लक्ष्य और लक्षण की समानता - उस पर अटेन्शन देना जरूरी है। उसका कारण क्या है? जो आज सुनाया कभी कभी लेवता बन जाते हैं। यह हो, यह करे, यह मदद दे, यह बदले तो मैं बदलूं। यह बात ठीक हो तो मैं ठीक हूँ। यह लेवता बनना है। दातापन नहीं है। कोई दे या न दे, बाप ने तो सब कुछ दे दिया है। क्या बाप ने किसको थोड़ा दिया है किसको ज्यादा दिया है? एक ही कोर्स है ना! चाहे 60 साल वाले हो, चाहे एक मास वाले हो, कोर्स तो एक ही है या 60 साल वाले का कोर्स अलग है एक मास वालों का अलग है? उन्हों ने भी वही कोर्स किया और अभी भी वही कोर्स है। वही ज्ञान है, वही प्यार है, वही सर्व शक्तियां हैं। सब एक जैसा है। उसको 16 शक्तियां, उसको 8 शक्तियाँ नहीं है। सबको एक जैसा वर्सा है। तो जब बाप ने सभी को भरपूर कर दिया तो फिर भरपूर आत्मा दाता बनती है, लेने वाली नहीं। मुझे देना है। कोई दे न दे, लेने के इच्छुक नहीं, देने के इच्छुक। और जितना देंगे, दाता बनेंगे उतना खज़ाना बढ़ता जायेगा। मानों किसको आपने स्वमान दिया, तो दूसरे को देना अर्थात् अपना स्वमान बढ़ाना। देना नहीं होता है लेकिन देना अर्थात् लेना। लो नहीं, दो तो लेना हो ही जायेगा। तो समझा - समय की पुकार क्या है? दाता बनो। एक अक्षर याद रखना। कोई भी बात हो जाए ``दाता'' शब्द सदा याद रखना। इच्छा-मात्रम्-अविद्या। न सूक्ष्म लेने की इच्छा, न स्थूल लेने की इच्छा। दाता का अर्थ ही है इच्छा-मात्रम्- अविद्या। सम्पन्न। कोई अप्राप्ति अनुभव नहीं होगी जिसको लेने की इच्छा हो। सर्व प्राप्ति सम्पन्न। तो लक्ष्य क्या है? सम्पन्न बनने का है ना? या जितना मिले उतना अच्छा? सम्पन्न बनना ही सम्पूर्ण बनना है। आज विदेशियों को खास चांस मिला है। अच्छा है। पहला चांस विदेशियों ने लिया है, लाडले हो गये ना। सभी को मना किया है और विदेशियों को निमन्त्रण दिया है। बापदादा को भी याद तो सभी बच्चे हैं फिर भी डबल विदेशियों को देख, उन्हों की हिम्मत देख बहुत खुशी होती है। अभी वर्तमान समय इतनी हलचल में नहीं आते हैं। अभी फर्क आ गया है। शुरू-शुरू के क्वेश्चन जो होते थे ना - इन्डियन क्लचर है, फारेन कल्चर है.... अभी समझ में आ गया। अभी ब्राह्मण क्लचर में आ गये। न इन्डियन क्लचर, न फारेन कल्चर, ब्राह्मण कल्चर में आ गये। इन्डियन कल्चर थोड़ा खिटखिट करता है लेकिन ब्राह्मण कल्चर सहज है ना! ब्राह्मण कल्चर है ही स्वमान में रहो और स्व-राज्य अधिकारी बनो। यही ब्राह्मण कल्चर है। यह तो पसन्द है ना? अभी क्वेश्चन तो नहीं है ना, इन्डियन कल्चर कैसे आये, मुश्किल है? सहज हो गया ना? देखना फिर वहाँ जाकर कहो थोड़ा यह मुश्किल है! वहाँ जाकर ऐसे नहीं लिखना। सहज कह तो दिया लेकिन यह थोड़ा मुश्किल है! सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? ज़रा भी मुश्किल नहीं है। बहुत सहज है। अभी सारे खेल पूरे हो गये हैं इसलिए हंसी आती है। अभी पक्के हो गये हैं। बचपन के खेल अभी समाप्त हो गये हैं। अभी अनुभवी बन गये हैं और बापदादा देखते हैं कि जितने पुराने पक्के होते जाते हैं ना तो जो नये-नये आते हैं वह भी पक्के हो जाते हैं। अच्छा है, एक-दो को अच्छा आगे बढ़ाते रहते हैं। मेहनत अच्छी करते हैं। अभी दादियों के पास किस्से तो नहीं ले जाते  हैं ना। किस्से-कहानियां दादियों के पास ले जाते हैं? कम हो गये हैं! फर्क है ना? (दादी जानकी से) तो आप अभी बीमार नहीं होना? किस्से-कहानियों में बीमार होते, वह तो खत्म हो गये। अच्छे हैं, सबमें अच्छे ते अच्छा विशेष गुण है - दिल की सफाई अच्छी है। अन्दर नहीं रखते, बाहर निकाल लेंगे। जो बात होगी सच्ची बोल देंगे। ऐसा नहीं, वैसा। ऐसा वैसा नहीं करते, जो बात है वह बोल देते, यह विशेषता अच्छी है। इसीलिए बाप कहते हैं सच्ची और साफ दिल पर बाप राज़ी होता है। हाँ तो हाँ, ना तो ना। ऐसे नहीं - देखेंगे...! मज़बूरी से नहीं चलते। चलते हैं तो पूरा, ना तो ना। अच्छा।

बापदादा ने फारेन या इन्डिया, देश-विदेश दोनों की मीटिंग देखी। बहुत मीटिंग की है ना! बापदादा खुश होते हैं कि समय निकाल कर सभी ने जो प्लैन बनाये, मेहनत अच्छी की है, और संगठन भी अच्छा किया है। संगठन से जो भी कार्य होता है वह सहज सफल होता है। तो डबल फारेनर्स ने मीटिंग में संगठन की शक्ति का बहुत अच्छा प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाया। जो भी प्लैन्स बनाये हैं, सबके हिम्मत और मेहनत पर बापदादा खुश है। आर.सी.ओ. ग्रुप, जो विशेष सेवा के लिए आये हैं, तो सभी जो भी आर.सी.ओ. वाले हैं, (पाँचों खण्डों की सेवा के निमित्त मुख्य भाई-बहनें) सभी को बापदादा मुबारक देते हैं। अच्छे-अच्छे प्लैन बनाये हैं। जहाँ जैसे चल सकता है, जितना चल सकता है उतना चलाओ, बड़े शहर और छोटे शहर में फर्क तो होता ही है। तो जितनी भी हिम्मत हो, उतना जो समय दिया है मेहनत की है, उन सबको प्रैक्टिकल में लाना। सिर्फ एक बात याद रखना कि सेवा और स्व-उन्नति के बैलेन्स में अन्तर नहीं आवे। प्लैन प्रैक्टिकल करने के बाद यह नहीं कहना कि सर्विस में बिजी हो गये ना इसलिए स्व-उन्नति में अन्तर आ गया - यह नहीं कहना। दोनों का बैलेन्स सदा रखना। क्यों? दूसरों की सेवा करो और स्व की सेवा नहीं तो यह अच्छा नहीं। दोनों का बैलेन्स रखना ही सफलता है। समझा। अच्छा।

जो आर.सी.ओ. के आये हैं वह हाथ उठाओ। इण्टरनेशनल सर्विस ग्रुप भी हाथ उठाओ। अच्छा। मुबारक हो। समय निकालकर भट्ठी में भी बैठे, यह अच्छा है। मधुबन में चांस भी अच्छा है। सब मिल भी जाते हैं एक-दो को। सब तरफ का समाचार भी सभी को मिल जाता है। तो बापदादा मुबारक दे रहे हैं। बहुत अच्छा किया। अच्छा, और सभी जो भी जहाँ से आये हैं, उन सभी को भी बापदादा स्नेह भरी मुबारक दे रहे हैं। और समाचार भी मिला कि सभी ने, पत्र याद-प्यार बहुत भेजे हैं। तो बापदादा तो पत्र पहुँचने के पहले ही यादप्यार दे रहे हैं। जब आप बच्चे लिखते हैं ना, संकल्प करते हैं तो जैसे यहाँ साइंस के साधन हैं ना, उसमें जल्दी से पहुँच जाता है, पत्र पीछे पहुँचता है, सबसे फास्ट ई-मेल पहुँचता है। तो ई-मेल देना शुरू करते हो ना, उससे पहले बाप के पास पहुँच जाता है। यह सब साधन आप बच्चों की सेवा के सहयोग के लिए निकले हैं। ब्रह्मा बाप जब समाचार सुनते हैं - यह ई-मेल है, ये यह है, तो खुश होते हैं कि वाह बच्चे, वाह! इतना सहज साधन ब्रह्मा बाप को भी साकार में नहीं मिला लेकिन बच्चों के पास हैं। खुश होते हैं। सिर्फ सेवा का साधन समझकर यूज़ करना। सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व-कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। साधनों के वश नहीं होना। लेकिन साधन को सेवा में यूज़ करना। यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अन्त में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं। सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। साधन के पीछे साधना कम नहीं हो। बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन भी देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिज़ी रहते हैं ना! अच्छी तरह से ऑफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज़ करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो। अभी साधन पर हाथ है और अभी अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो। जैसे साधनों में जितनी प्रैक्टिस करते हो तो ऑटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बीच में क्या 5-6 सेकण्ड नहीं निकाल सकते? ऐसा कोई बिज़ी है जो 5 मिनट भी नहीं निकाल सके, 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके। ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं तो निकालो।

बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिज़ी हैं, बहुत बिज़ी कह करके शक्ल भी बिज़ी कर देते हैं। बापदादा मानते नहीं हैं। जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। जैसे वह अटेन्शन रखते हो ना - 10 मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिज़ी होते हो ना - टाइम के कारण। ऐसे ही सोचो 10 मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइम-टेबल बनाते हो ना। इसमें एक दो मिनट पहले से ही एड कर दो। 8 मिनट लगना है, 6 मिनट नहीं, 8 मिनट लगना है तो 2 मिनट साधना में लगाओ। यह हो सकता है?

(अमेरिका की गायत्री से पूछते हैं) तो अभी कभी नहीं कहना, बहुत बिजी, बहुत बिजी। बापदादा उस समय चेहरा भी देखते हैं, फोटो निकालने वाला होता है। कितना भी बिजी हो, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। होता क्या है - सेवा तो बहुत अच्छी करते हो, समय भी लगाते हो, उसकी तो मुबारक है। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पड़ता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ पांव भी थकता है और बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना, वह दूर हो जाए। खुशी होती है ना। खुशी में कभी थकावट नहीं होती है। काम में लग जाते हो, बापदादा तो कहते हैं कि काफी समय एक्शन-कान्सेस रहते हो। ऐसे होता है ना? एक्शन-कान्सेस की मार्क्स तो मिलती हैं, वेस्ट तो नहीं जाता है लेकिन सोल-कान्सेस की मार्क और एक्शन कान्सेस की मार्क में अन्तर तो होगा ना। फर्क होता है ना? तो अभी बैलेन्स रखो। लिंक को तोड़ो नहीं, जोड़ते रहो क्योंकि मैजारिटी डबल विदेशी काम करने में भी डबल बिज़ी रहते हैं। बापदादा जानते हैं कि मेहनत बहुत करते हैं लेकिन बैलेन्स रखो। जितना समय निकाल सको, सेकण्ड निकालो, मिनट निकालो, निकालो जरूर। हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? और जो ऑफिस में काम करते हैं, उनका हो सकता है? हाँ, तो बहुत अच्छा करते हैं। अच्छा।

भारत वालों ने भी जो प्लैन्स बनाये हैं वह भी अच्छे प्लैन्स बनाये हैं। दोनों के अपने-अपने वायुमण्डल अनुसार प्लैन अच्छे हैं।

जिन बच्चों ने यादप्यार भेजी है, बापदादा उन सभी बच्चों को, जिन्होंने पत्र द्वारा या किसी भी द्वारा याद प्यार भेजा बापदादा को स्वीकार हुआ। और बापदादा रिटर्न में सभी बच्चों को `दातापन का वरदान' दे रहे हैं। अच्छा - एक सेकण्ड में उड़ सकते हो? पंख पावरफुल है ना? बस, बाबा कहा और उड़ा। (ड्रिल)

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ बाप समान दातापन की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को, निरन्तर याद और सेवा में तत्पर रहने वाले, परमात्म-सेवा के साथी बच्चों को, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, सदा बाप के स्नेही और समान, समीप बनने वाले, बापदादा के नयनों के तारे, सदा विश्व-कल्याण की भावना में रहने वाले रहमदिल, मास्टर क्षमा के सागर बच्चों को दूर बैठने वाले, मधुबन में नीचे बैठने वाले और बापदादा के सामने बैठे हुए सर्व बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

इण्टरनेशनल मीटिंग ग्रुप से मुलाकात

एक-एक रत्न बहुत-बहुत वैल्युबुल है। बापदादा सदा एक-एक रत्न के विशेषताओं की माला जपते हैं। विशेषतायें हैं तब विशेष आत्मायें गाई हुई हैं। सिर्फ उस विशेषताओं को सदा कार्य में लगाते रहो। बापदादा हर एक के विशेषताओं की माला दोहराते रहते हैं और यही गीत गाते - वाह मेरे विशेष रत्न वाह! इसीलिए कहा ना कि बापदादा सदा बच्चों की याद में रहते हैं। बच्चे, महान हैं और अपनी महानता से विश्व को महान बनाने वाले हैं। कितनी महिमा है? जैसे बच्चे बाप की महिमा करते हैं वैसे बाप भी हर बच्चे की महिमा करते हैं। रूहानी नशा रहता है ना? सदा अपने को निमित्त, विश्व की स्टेज पर हीरो पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर समझकर चलो। सभी हीरो हैं? बापदादा तो हर एक बच्चे से सारे दिन में अनेक बार मिलता रहता है। मिलता है ना! हर एक का एक्ट देख खुश होते रहते हैं। अच्छा पार्ट बजाने वाले हैं ना! तो बापदादा भी सदा बहुत अच्छा, बहुत अच्छा - यही गीत गाते रहते हैं। बहुत अच्छे हैं ना। अच्छे हैं और सदा अच्छे रहेंगे। गैरन्टी हैं ना, अच्छे रहने वाले ही हैं। रहेंगे, यह पूछने का नहीं है। क्वेश्चन है क्या? अच्छे रहेंगे, पूछें? नहीं। रहना है, रहेंगे। अच्छा - बहुत अच्छा संगठन है।

अच्छा - ओमशान्ति।

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- कर्मयोगी का अर्थ क्या है ?

 

 प्रश्न 2 :- समय की पुकार क्या है?

 

 प्रश्न 3 :- इच्छा-मात्रम-अविद्या का अर्थ क्या है ?

 

 प्रश्न 4 :- बाबा ने साधनों का प्रयोग किस तरह करने की श्रीमत दी ?

 

 प्रश्न 5 :- थकावट आने के कारण क्या है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

(समझना, माल, इष्ट, फूलों, रूप, आत्माओं, पीछे, हिम्मत, खुश, सदा, क्षमा, सागर)

 

 1 दाता ______ ही ______ का मास्टर ______ होगा।

 

 2  बापदादा ______ हिम्मत के ऊपर सदा ______ खुश होते हैं।

 

 3 ऐसे नहीं ______ समझना कि हम तो पीछे______ आने वाले हैं।

 

 4 उल्हनों की माला ______ पहनने वाले ______ इष्ट हो या ______ फूलों की माला पहनने वाले इष्ट हो

 

 5  किसी न किसी ______ रूप में सर्व ______ आत्माओं के लिए इष्ट हो।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-】【

 

 1 :- कोई भी आत्मा भरपूर नही हो जाए।

 

 2  :- सिवाए बच्चों की याद के बाप रह ही नहीं सकता।

 

 3  :- यह लौकिक जन्म याद और सेवा के लिये है।

 

 4  :- याद कभी-कभी है, ऐसे ही सेवा भी कभी-कभी है।

 

 5   :- आप सब बच्चे बाप के साथ सेवा साथी है।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- व्यर्थ की तरफ आकर्षित होने का कारण क्या है ?

   उत्तर 1 :-व्यर्थ की तरफ आकर्षित होने का कारण है :-

          .. क्योंकि अमृतवेले से सारे दिन की दिनचर्या में अपने मन और बुद्धि को समर्थ स्थिति में स्थित करने का प्रोग्राम सेट नहीं करते। इसलिए अपसेट हो जाते हैं।

         .. जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करेंगे तो स्वत: ही कभी अपसेट नहीं होंगे।

          .. जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा।

         .. आजकल की दुनिया में बड़ी पोजीशन वाले, जिन्हों को आई. पी. या वी.आई.पी. कहते हैं, वह सदा अपने कार्य की दिनचर्या को समय प्रमाण सेट करते हैं। तो आप कौन हो?वह भले वी.आई.पी. हैं लेकिन सारे विश्व में ईश्वरीय सन्तान के नाते, ब्राह्मण-जीवन के नाते आप कितनी भी वी. आगे लगा दो तो भी कम है।

          .. क्योंकि आपके आधार पर विश्वपरिवर्तन होता है। आप विश्व के नव-निर्माण के आधारमूर्त हो। बेहद के ड्रामा अंदर हीरो एक्टर हो और हीरे तुल्य जीवन वाले हो। तो कितने बड़े हुए! यह शुद्ध नशा समर्थ बनाता है और देह-अभिमान का नशा नीचे ले आता है।

          .. आपका आत्मिक रूहानी नशा है इसलिए नीचे नहीं ले आता, सदा ऊँची उड़ती कला की ओर ले जाता है। तो व्यर्थ तरफ आकर्षित होने का कारण है - अपने मन-बुद्धि की दिनचर्या सेट नहीं करते हो। मन को बिजी रखने की कला सम्पूर्ण रीति से सदा यूज नहीं करते हो।

 

 प्रश्न 2 :- आज्ञाकारी की क्या परिभाषा है ?

   उत्तर 2 :-आज्ञाकारी अर्थात् बाप के सम्बन्ध से बाप के फुट स्टैप लेने वाले अर्थात् कदम के ऊपर कदम रखने वाले। और दूसरा नाता है सजनियों का। तो सजनी भी क्या करती है? उनको क्या शिक्षा मिलती है? साजन के कदम ऊपर कदम चलो। तो आज्ञाकारी अर्थात् बापदादा के आज्ञा रूपी कदम पर कदम रखना। यह सहज है वा मुश्किल है? कहाँ कदम रखें - ठीक है वा नहीं, यह सोचने की भी जरूरत नहीं।

 

 प्रश्न 3 :- आज्ञाकारी होने से क्या प्राप्ति होती है ?

   उत्तर 3 :-आज्ञाकारी होने से प्राप्ति इसप्रकार से होती है :-

           .. आज्ञाकारी को सर्व सम्बन्धों से परमात्म-दुआयें मिलती हैं। यह नियम है। साधारण रीति भी कोई किसी मनुष्य आत्मा के डायरेक्शन प्रमाण ‘‘हाँ जी'' कहकर के कार्य करते हैं तो जिसका कार्य करते, उसके द्वारा उसके मन से उनको दुआयें जरूर मिलती हैं। यह तो परमात्म-दुआयें हैं!

           .. परमात्म-दुआओं के कारण आज्ञाकारी आत्मा सदा डबल लाइट उड़ती कला वाली होती है।

           .. साथ-साथ आज्ञाकारी आत्मा को आज्ञा पालन करने के रिटर्न में बाप द्वारा विल पावर विशेष वरदान के रूप में, वर्से के रूप में मिलती है। बाप सब पावर्स विल में बच्चे को देते हैं, इसलिए सर्व पावर्स सहज प्राप्त हो जाती हैं।

          .. तो ऐसे विल पावर प्राप्त करने वाली आज्ञाकारी आत्मा - वर्सा, वरदान और दुआयें, यह सब प्राप्तियां कर लेती हैं जिस कारण सदा खुशी में नाचते, ‘‘वाह-वाह'' के गीत गाते उड़ते रहते हैं। क्योंकि उनका हर कर्म, उनको प्रत्यक्षफल प्राप्त कराता है।

 

 प्रश्न 4 :- बापदादा ने कौन सी अवज्ञाओं के बारे में बताया है ?

   उत्तर 4 :-.बापदादा ने इन अवज्ञाओं के बारे में बताया है :-

          .. जैसे मुख्य पहली आज्ञा है - पवित्र बनो, कामजीत बनो। इस आज्ञा को पालन करने में मैजारिटी पास हो जाते हैं। भोली-भोली मातायें भी इसमें पास हो जाती हैं। जो बात दुनिया असम्भव समझती उसमें पास हो जाते। लेकिन उनका दूसरा भाई क्रोध - उसमें कभी-कभी आधा फेल हो जाते हैं। फिर होशियार भी बहुत हैं। कई बच्चे कहते हैं - क्रोध नहीं किया लेकिन थोड़ा रोब तो दिखाना ही पड़ता है, क्रोध नहीं आता, थोड़ा रोब रखता हूँ। जब असम्भव को सम्भव कर लिया, यह तो उसका छोटा भाई है। तो इसको आज्ञा कहेंगे वा अवज्ञा?

          .. इससे भी छोटी अवज्ञा अमृतवेले का नियम आधा पालन करते हो। उठ करके बैठ तो जाते हो लेकिन जैसे बाप की आज्ञा है, उस विधि से सिद्धि को प्राप्त करते हो? शक्तिशाली स्थिति होती है? स्वीट साइलेन्स के साथ-साथ निद्रा की साइलेन्स भी मिक्स हो जाती है। बापदादा अगर हर एक को अपने सप्ताह की टी.वी. दिखाये तो बहुत मजा देखने में आयेगा! तो आधी आज्ञा मानते हो - नेमीनाथ बनते हो लेकिन सिद्धिस्वरूप नहीं बनते हो। इसको क्या कहेंगे? ऐसी छोटी-छोटी आज्ञायें हैं।

          .. जैसे आज्ञा है - किसी भी आत्मा को न दु:ख दो, न दु:ख लो। इसमें भी दु:ख देते नहीं हो लेकिन ले तो लेते हो ना। व्यर्थ संकल्प चलने का कारण ही यह है - व्यर्थ दु:ख लिया। सुन लिया तो दु:खी हुए। सुनी हुई बात न चाहते भी मन में चलती है - यह क्यों कहा, यह ठीक नहीं कहा, यह नहीं होना चाहिए....। व्यर्थ सुनने, देखने की आदत मन को 63 जन्मों से है, इसलिए अभी भी उस तरफ आकर्षित हो जाते हो।

          ..❹ छोटी-छोटी अवज्ञायें मन को भारी बना देती हैं और भारी होने के कारण ऊँची स्थिति की तरफ उड़ नहीं सकते। यह बहुत गुह्य गति है।

          .. जैसे पिछले जन्मों के पाप-कर्म बोझ के कारण आत्मा को उड़ने नहीं देते। ऐसे इस जन्म की छोटी-छोटी अवज्ञाओं का बोझ, जैसी स्थिति चाहते हो - वह अनुभव करने नहीं देती।

 

 प्रश्न 5 :- 'सफलता की विधि है - बालक सो मालिक' इसका क्या अर्थ है ?

   उत्तर 5 :- बाबा ने कहा कि :-

          .. जब बालक बनना है उस समय मालिक नहीं बनो और जब मालिक बनना है उस समय बालक नहीं बनो। जब कोई राय देनी है, प्लैन सोचना है, कुछ कार्य करना है तो मालिक होकर करो लेकिन जब मैजारिटी द्वारा या निमित्त बनी आत्माओं द्वारा कोई भी बात फाइनल हो जाती है तो उस समय बालक बन जाओ, उस समय मालिक नहीं बनो।

          .. मेरा ही विचार ठीक है, मेरा ही प्लैन ठीक है - नहीं। उस समय मालिक नहीं बनो। किस समय राय बहादुर बनना है और किस समय राय मानने वाला बनना है- जिसको यह तरीका आ जाता है वह कभी नीचे-ऊपर नहीं होता। वह पुरूषार्थ और सेवा में सफल रहता है।

          .. अपने को मोल्ड कर सकता है, अपने को झुका सकता है। झुकने वाले को सदैव ही सेवा का फल मिलता है और अपने अभिमान में रहने वाले को सेवा का फल नहीं मिलता है। तो सफलता की विधि है - बालक सो मालिक, समय पर बालक बनना, समय पर मालिक बनना। यह विधि आती है?

          .. अगर छोटी-सी बात को बालक के समय मालिक बन कर सिद्ध करेंगे तो मेहनत ज्यादा और फल कम मिलेगा। और जो विधि को जानते हैं, समय प्रमाण उसको मेहनत कम और फल ज्यादा मिलता है। वह सदा मुस्कराता रहेगा। स्वयं भी खुश रहेगा और दूसरों को देखकर के भी खुश होगा। सिर्फ मैं बड़ा खुश रहता हूँ, यह नहीं। लेकिन खुश करना भी है तो खुश रहना भी है, तब राजा बनेंगे। अपने को मोल्ड करेंगे तो गोल्डन एज का अधिकार जरूर मिलेगा।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

(कर्म, फंसने, समर्थ, फरियाद, याद, व्यर्थ, सोचो, देखो, मालिक, बापदादा, शरीर, समय, मिट्टी, भारी)

 

 1   बापदादा देख रहे थे कि कई बच्चों की अब तक भी बाप के आगे ____ है कि कभी-कभी _____ संकल्प ____ को फरियाद में बदल देते हैं, चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाते हैं।

   फरियाद / व्यर्थ / याद

 

 2  जैसे फल की शक्ति से ____ शक्तिशाली रहता है, ऐसे ____ के प्रत्यक्षफल की प्राप्ति कारण आत्मा सदा ____ रहती है।

      शरीर / कर्म / समर्थ

 

 3   तो आज यही स्लोगन याद रखना - ‘न व्यर्थ ____, न व्यर्थ ____, न व्यर्थ सुनो, न व्यर्थ बोलो, न व्यर्थ कर्म में ____ गँवाओ।'

      सोचो / देखो / समय

 

 4  बालक सो _____ होता है, इसलिए _____ बच्चों को ‘‘मालेकम् सलाम'' कहते हैं।

      मालिक / बापदादा

 

 5  देह ____ है, मिट्टी सदा ____ होती है। कोई भी चीज़ मिट्टी की होगी तो भारी होगी ना। यह देह तो पुरानी मिट्टी है, इसमें _____से क्या मिलेगा!

      मिट्टी / भारी / फंसने

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-】【

 

 1  :-  तो सदा समर्थ रहने का दूसरा आधार है - सदा और स्वत: ढीला बनना।

 तो सदा समर्थ रहने का दूसरा आधार है - सदा और स्वत: आज्ञाकारी बनना।

 

 2  :- तो बड़े-ते-बड़े चित्रकार वही हैं जो हर कदम में बडे व्यक्ति का चित्र बनाते रहते हैं।

 तो बड़े-ते-बड़े चित्रकार वही हैं जो हर कदम में चरित्र का चित्र बनाते रहते हैं।

 

 3  :- वास्तव में आप सबके पत्रों का उत्तर बापदादा रोज की मुरली में देता ही है।               

 

 4  :- त्रिकालदर्शी अर्थात् पास्ट, प्रेजेंट और फ्यूचर - तीनों कालों को जानने वाले।

 

 5   :- फरिश्ते' का अर्थ ही है बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर न हो। न देह में, न देह के सम्बन्ध में, न देह के पुराने पदार्थो में।