16-01-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 



सुदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते। आज शनिचरवार जनवरी की 16 तारीख है प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
आने वाले कल की तुम तस्वीर हो..........
ओम शांति ।
गीत बच्चों ने सुना। बच्चे समझते हैं की हमारे सामने बाबा, जिसको पतित पावन कहा जाता है, जरूर बाबा ही कहेंगे, परमपिता परमात्मा, वही पतित पावन है, जरूर उनको ही कहेंगे पतित पावन, ब्रह्मा और शंकर को तो नहीं कहेंगे ना बच्चे, न….! क्योंकि ज्ञान का सागर है। यह तो बच्चे जानते हैं कि हम आत्माएं परमपिता परमात्मा से ज्ञान सुनते हैं क्योंकि अभी तुम आत्म अभिमानी बने हो। दुनिया में सब देह अभिमानी है, समझा ना, तो जो आत्म अभिमानी होते हैं, वह शिष्टाचारी बनते हैं क्योंकि उनको परमात्मा ही बैठ करके देही अभिमानी या आत्मभिमानी… और उनको समझाते हैं, की देखो बच्चे पाप, आत्मा बनती है पुण्य, आत्मा बनती है, तुम ऐसे नहीं कहेंगे पाप जीव बनते हैं या पुण्य जीव बनते हैं, नहीं…! तुम कहते हो पाप आत्मा बनती है शरीर नहीं, क्योंकि संस्कार आत्मा में रहते हैं, शरीर तो घड़ी-घड़ी विनाश हो जाते हैं, तो गोया तुम जानते हो बच्चे, की बाप को, शिव बाबा को, परमपिता परमात्मा को, अविनाशी सर्जन भी कहते हैं। अविनाशी सर्जन का अर्थ क्या है? आत्मा भी अविनाशी तो आत्मा का बाप भी अविनाशी। क्योंकि कोई मरता है, विनाश होते हैं शरीर, आत्मा तो विनाश नहीं होती है। हां इतना जरूर है कि आत्मा के ऊपर शैतानी की कट जाती है, समझे ना। कौन सी कट जाती है? यह नंबर वन कट चढ़ती है बिल्कुल गंदी से गंदी, विकार की, पीछे सेकंड नंबर पर क्रोध की कट, यह कट है। जंक जिसको कहा जाता है, यह बैठ कर के आत्माओं को समझाते हैं। कौन? परमपिता परमात्मा। तो यह निश्चय होना चाहिए ना कि अभी परमपिता परमात्मा इस साधारण ब्रह्मा के रथ में प्रवेश कर... यह हुआ रथी, समझा ना.. यह रथ का रथी… परंतु बाप आकर के समझाते हैं, तुम जानते हो कि परमपिता परमात्मा अपने बच्चों से बात करते हैं, उनको कहते हैं, हे आत्माएं, तुम्हारे ऊपर ये पांच विकार की कट चढ़ गई है, उसको कहा जाता है… शैतानी कट। समझा ना। पांच विकार को रावण कहा जाता है ना, तो इसको रावण की कट चढ़ गई है, इसीलिए तुम दुख में पड़े हो। बहुत दुख में पड़े हो सब, तो बाप कहते हैं देखो मैं कैसे तुम्हारी कट उतारता हूं, देखो सीधा सीधा बताते हैं कल्प पहले भी कल्प कल्प तुम्हारी कट मैं उतारता हूं। कैसे उतारता हूं, क्योंकि सर्जन तो मैं ही हूं ना बच्चे, दूसरा तो कोई सर्जन हो नहीं सकता है। मनुष्य मात्र कोई भी हो, शिव शिव 108 कहने वाले हो, मंडलेश्वर कहने वाले हो, परंतु नहीं वह तो मनुष्य ठहरे ना। मनुष्य आत्मा की कट उतार नहीं सकते हैं। आत्मा की कट को, जंक उतारने के लिए परमात्मा चाहिए, सर्वशक्तिमान चाहिए, जो ही आकर कहते हैं कि हे जीव की आत्माएं या हे मेरे बच्चे, सिर्फ एक मुझे याद करने से, जितना याद करेंगे उतना कट उतरेगी। नहीं याद करेंगे तो कट नहीं उतरेगी। फिर कट नहीं उतरेगी तो धारणा भी अच्छी नहीं होगी, पद भी नहीं पाएंगे इसलिए कट उतारने के लिए... क्योंकि जिसके ऊपर कट चढ़ी है, उसको पतित कहा जाता है तो पतित आत्मा बनती है तो इसीलिए पतित आत्मा को शरीर भी ऐसे ही पतित मिलता है, जैसे सतोप्रधान आत्मा है तो सतोप्रधान, गोरा शरीर मिलता है फिर जब सतो आत्मा बनती है तो शरीर भी ऐसे ही सतो मिलते हैं जिसको फिर सिल्वर एज भी कहा जाता है, क्योंकि खाद… कट जाती है। उसको फिर कहेंगे, कट जाती है। जब पीछे जब द्वापर आता है तो.., तो फिर बहुत बड़ी कट चढ़नी शुरू हो जाती है। विकार की कट, उसको कहा जाता है विकार की कट। उसमें इतनी विकार की कट नहीं होती है, परंतु यह तो समझते हो कि कलाएं कोई एकदम नहीं बदलती है। 16 कला से 14 कला आने में साढ़े बारह सौ वर्ष लग जाते हैं। कमती कमती कमती कमती... तो ये कौन बैठकर के समझाते हैं बच्चों को? बाप...। तो बच्चों को…, समझो हमारा बाप इस रथ द्वारा ब्रह्मा के रथ द्वारा, हम उनके बच्चे, ब्रह्मा कुमार कुमारिया यह हो गए बच्चे, अब इसको कहा जाता है, ये हुए हैं राम के बच्चे, वो हैं रावण के बच्चे तो यह सीधा-सीधा समझाते हैं ना बच्चे, तो सभी रावण के ही बच्चे हैं क्यों? क्योंकि विख से पैदा होते हैं समझा ना बच्चे। इसलिए, ये भ्रष्टाचारी इसको कहा जाता है। बस विख ही मूल है। भले घर छोड़ करके विख ना पीवे, पवित्र हो जावे परंतु उसका जो शरीर बना हुआ है, वह विख का बना हुआ है और यह जो विख है….. पॉइजन यह सतयुग में होते नहीं हैं। ये मूत जिसको कहा जाता है मूत पलीति , तो मूत पलीति तो सब मूत से पैदा होते हैं ना, जो भी यहां हैं जो भी मनुष्य मात्र हैं तो मूत पलीति तो है ना बच्चे, तो इसीलिए उनको कहा जाता है शैतानी बच्चे। तो बाप आ करके यह जो उच्चारते रहते हैं पतित पावन आओ, सो तो सभी कहते हैं ना बच्चे, सभी उनको याद करते, भले कोई कितने भी कोई किसको आशीर्वाद देने वाला हो, परंतु उनके ऊपर कोई और की आशीर्वाद चाहिए, जिसको याद कहते हैं, जैसे देखो पोपाया, जाके देखते, वह कहते थे कि आशीर्वाद देते हैं, ब्लेसिंग्स देते है परंतु वह भी तो मूत पलीति है ना। उनके ऊपर भी कोई की ब्लेसिंग तो चाहिए ना तो उनसे ऊंचा भी तो कोई है ना तो देखो उनकी ब्लेसिंग चाहिए। वहां तो उनकी ब्लेसिंग लेना है या तो खत्म होना है। ब्लेसिंग लेंगे उनकी, जैसे तुम ब्लेसिंग उनकी ले रहे हो, ब्लेसिंग तब तुमको मिलती हैं तब जबकि तुम श्रीमत पर चलते हो। नहीं तो श्रीमत पर ना चलने वाले के ऊपर, जो आज्ञाकारी ना होगा, उनके ऊपर आशीर्वाद कैसे आएगी, यह भी तो क्वेश्चन है जो कहे कि विकार में ना जाओ, जो कहे की देही अभिमानी बनो, अगर देही अभिमानी ना बनते, देह का अभिमान है तो इतना वह फरमान नहीं मानते हैं तो फिर इतना पद भ्रष्ट हो जाता है पूरा। जबकि बाप आए हुए हैं, बोलते है बच्चे, देखो तुम जानते हो कि तुमको तीन पैर पृथ्वी नहीं मिलती है, ठीक है ना बच्चे, सर्विस के लिए, यानी इस भारत को भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाने के लिए 5000 वर्ष पहले मुआफिक् तीन पैर पृथ्वी तुमको नहीं मिलती है। बरोबर….., बच्चे हो… छोटे बच्चे हो जैसे कि…… तो देखो फिर बाबा कहते हैं तुम्हारे लिए नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार मैं क्या करता हूं, देखो…. सारी जो सृष्टि है ना…. यह सारी मैं रिक्वाजिशन कर लेता हूं तुम्हारे लिए। गवर्मेंट रिक्वाजिशन करती है ना। आजकल कोई की भी सृष्टि देखो, मुसलमान चले गए तो रिक्वाजिशन कर लिया। अच्छा तो अभी तुमको भी ऐसे ही करना चाहिए। तुमको जो यहां के अभी फाइनेंस मिनिस्टर है ना, उनको जाकर के……. प्रदर्शनी तो होती है, देखो बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए इन सब बातों में, यह लंगड़े, लूले बुद्धि वाले यह काम नहीं कर सकते हैं बच्चे। इसमें बड़ी बुद्धि चाहिए विशाल, क्योंकि डायरेक्शन तो देते हैं, तुम बोलते हो जगह तो मिलती नहीं हैं, प्रदर्शनी भी निकालते हो, कोशिश करते हो कोई मिनिस्टर, कोई फलाने से। नहीं….. तुम… तुम पकड़ो फाइनेंस मिनिस्टर को… समझे ना और कोई मिनिस्टर तुम्हारा काम नहीं करेंगे। फाइनेंस मिनिस्टर को पकड़ो। बोलो देखो, हम श्रीमत पर, यह जो भारत है उनको फिर श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं, आकर के समझो। भले देखो, प्रदर्शनी में तो समझाना होता है कि आकर के पतित से पावन, यह भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी, इस भारत को हम श्रीमत पर बनाते हैं, सो हम इसी सर्विस पर हैं इसलिए हमको जमीन चाहिए, क्योंकि गवर्मेंट के हाथ में है रिक्विजिशन करके दे। हम लोन दे सकते हैं, हम किराया दे सकते हैं। लोन(किराया) दे सकते हैं बच्चे, अगर कोई सेंसिबल बच्चे हो ना तो उनको दिखला करके प्रदर्शनी, पीछे…. आज नहीं… कल, परसों… पुरुषार्थ के लिए कहते हैं, कि देखो उनको समझाओ अच्छी तरह से, के भाई हम इस भारत को श्रेष्ठाचारी श्रीमत पर बना रहे हैं, समझा ना। श्री..मत..! तो कभी भी यह बात श्री बगैर तो कभी…. श्री मत भगवान कृष्ण नहीं…. श्रीमत जो सदैव एकरस पवित्र है, वह अभोक्ता है, असोंचता है, वह ज्ञान का सागर है, तो उनके श्रीमत पर जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं, वही जो भगवान है, गीता का जिसको कहते हैं, उनके श्रीमत पर चल हम इस भारत को फिर श्रेष्टाचारी स्वर्ग बनाते हैं। उसमें गाए हुए है बरोबर की भाई ऐसे को तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे, हम अभी भी कहते हैं कि तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते हैं, देखो इसलिए तुम क्या करो रिक्विजिशन करो। कोई भी… उनके पास बहुत रहती है जगह, जिनको नीलाम करना है, ये करना है, जो पढ़ाई कि जगह होती है मुसलमानों की और उनकी…. क्योंकि सेंस चाहिए, कुछ बुद्धि चाहिए, तो बुद्धि अच्छी रहेगी तब जबकि योग में रहेंगे, वह कट उतरती जाएगी। देह अभिमान की, नहीं तो बड़ा मुश्किल है कट उतरना। बाप तो राय देते रहते हैं अच्छी तरह से, की ऐसे को पकड़ो, की भाई हम यह कार्य कर रहे हैं श्रीमत पर, आ कर के समझो। तुम भी देखो, यह सब श्रीमत पर है और श्रेष्ठ बनने के लिए प्रतिज्ञा है ये। देखो एसे तो और कोई कर नहीं सकते हैं.. सन्यासी ऐसे नहीं की सन्यासी कोई वो रखते हैं कि देखो इनको हमने आप समान पवित्र बनाया है, देखो इनके चित्र है हमारे पास। हमारे पास तो चित्र भी रहते हैं उनके ऊपर भी बड़ा ध्यान चाहिए। इतना कोई ध्यान सर्विस का देते नहीं है। ना…. बच्चे वह कैसे रखना चाहिए, कितना ब्लॉक होना चाहिए बड़ा, इसमें भी बहुत….. एक तो सेंटर भी होना चाहिए, एक हेड ऑफिस भी होना चाहिए, एक फिर जो मुख्य सेंटर दिल्ली है, जहां काम चलता है, ऐसे होना चाहिए। अच्छा सर्विस करने वाले भी इतने है नहीं बाबा के पास। देखो पहले सर्विस करने वाले मिलना मुश्किल है क्योंकि बुद्धि चाहिए सर्विस की। तो खोखली बुद्धि नहीं काम कर सकती है ना। विशाल बुद्धि चाहिए बहुत, है कुछ भी नहीं। यह भाग्य…सबसे देखो सर्विस कितनी बहुत है अच्छी। सो भी उनकी जो पवित्रता के लिए व्रत लें फिर उनमें लिखा जावे, हां ऐसा हो सकता है कि माया कोई ना कोई को जीत लेती है, आश्चर्यवत परमपिता परमात्मा का बनन्ती, उनसे विश्व का राज लेवंती, देखो बाप कहते हैं, ना देखो बच्ची, मैं यह सारी सृष्टि रिक्विजिशन कर लेता हूं तुम्हारे लिए। रिक्विजिशन करके इनको बिल्कुल ही फर्स्ट क्लास बनाए देंगे, यानी है तो ड्रामा अनुसार। ड्रामे में ही है और फिर तुम उनके ऊपर राज करना। देखो यह भी तो रिक्विजिशन करते हैं ना। सबका विनाश बताया देखो मैं स्थापना करता हूँ स्वर्ग की, बाकी जो भी धर्म है ना उनको विनाश कर देंगे तो एक तो बच्चों को देही अभिमानी बहुत रहना पड़े, क्योंकि देह अभिमान है ना, बड़ा जबरदस्त है चलते फिरते फंसा देते हैं किसी को भी, समझा ना….बड़ी मुश्किल होती है, बड़ी रिपोर्ट आती हैं तो बाबा… यह नंगन करने बिगर, यह , हम द्रोपदियों को, नंगन किये बगैर यह दु:शासन रहते नहीं, बड़ा मारते हैं। तो गवर्नमेंट को भी यह बताना चाहिए कि भाई ये भ्रष्टाचारियों को हम श्रेष्ठाचारी बनाते हैं अभी, हर एक को हक है समझ ना, कि हम पवित्र देवता है, तो कभी तो बनते हैं ना, क्योंकि पतित जो है उनको पावन करने वाला जो बाप है वह आकर के पावन बनाते हैं समझा ना। और वहां तो सभी निर्विकारी कहलाते हैं। वाइसलेस। कोई विकार नहीं, उसमें विकार का पहला अक्षर ही आता है काम। तो बरोबर देवताएं वाइसलेस हैं। क्रोध के तो अक्षर ही नहीं निकलते हैं ना। हैं ही विशियस या वाइसलेस। तो बरोबर यह भारत वाइसलेस था, बराबर सोने की जैसी थी जिन्होंने इस भारत को.. किन्होंने बनाया? जरूर बाप ने बनाया होगा और कौन बनाएगा। तो आत्मा के लिए...यह आत्मा ही अपवित्र बनी है ना बच्चे, आत्मा ही विकारी बनी है, आत्मा के ऊपर ही कट जाती है, अभी आत्मा का सर्जन तो परमात्मा ही चाहिए। आत्मा का सर्जन मनुष्य तो हो ही नहीं सकता है। कदापि नहीं। तो बाप कहते हैं ना…. देखो मैं आता ही हूं, क्योंकि यह तो मैं जानता हूं ना कि मैं ही पतित पावन हूं, समझा ना, मैं खुद हूं, यह मेरे को बोलते हैं मनुष्य बहुत। तो मैं हूं तो जरूर ना। मैं पतित पावन हूं और सारी भक्ति मार्ग में, मुझ पतित पावन को सभी साधु संत महात्मा जो भी है, याद करते ही आए हैं। जन्म दर जन्म याद जरूर करते हैं… हे पतित पावन आओ या भगवान को याद करते हैं किसलिए? मुझे क्यों याद करते हैं? भक्ति मार्ग में जरूर भगत तो एक भगवान को याद करेंगे ना। ऐसे तो नहीं कि भगत ही कोई भगवान है। न….! भगत दुखी होते हैं इसीलिए मुझे याद करते हैं। अभी… भगवान कौन है वह तो बेचारे जानते नहीं है अभी मैंने कहा भी है कल्प पहले भी भगवान यानी मैं ही बैठ करके समझाता हूं, राजयोग से सीखलाता हूं और मैं समझाया कि मैं ब्रह्मा के तन में आता हूं अर्थात उसी के तन में आता हूं जो पूज्य था और पुजारी बने हैं जो पवित्र था अब पतित बने हैं जो पावन राजा था जो पतित रंक बने हैं, मैं उनके ही शरीर में आया हुआ हूं। वह भी तो जानते हो कि बरोबर यह सभी यह निश्चय करते हैं कि हम प्रजापिता ब्रह्मा के कुमार कुमारिया हैं सो तो जरूर थे, जब प्रजापिता का नाम है तो जरूर था और उन्होंने परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा ही ब्राम्हण रचे। ब्राह्मणों को ही दान दिया जाता है तो मैं दान भी ब्रह्मणों को देता हूं। किस का दान देता हूं? यह सारे विश्व का दान देता हूं क्योंकि मेरी सर्विस करते हैं विश्व को पावन बनाने के लिए, ब्राह्मण बनकर के शूद्र से। तो देखो सन्मुख बैठकर के समझाते हैं ना कि बच्चे कभी भी तुम्हारी दृष्टि ऐसी गंदी नहीं होनी चाहिए कोई भी, क्योंकि काम या क्रोध… यह हल्का काम नहीं है तो कभी भी कोई भी दृष्टि……हल्के भी….. प्यार करें, फलाना करें, यह गंदी दृष्टि नहीं होनी चाहिए, कुछ भी… क्योंकि तुम्हारा काम ही है बाप को याद करना, तुम्हारी सर्विस ही है बाप को याद करना औरों को याद दिलाना और समझाना सबको, तो बाप का परिचय…. पतित पावन यह तो बाप है ना तुम्हारा, तुम याद भी उनको करते हो ना कोई गंगा को तो नहीं। ये तो हैँ ज्ञान सागर से निकली हुई गंगाएँ तो शक्ति ही कहा जाता है उन्हें शिव शक्ति। तो शिव शक्ति तो जरूर... शिव द्वारा शक्ति कैसे मिले? तो जरूर मनुष्य को नहीं ये शक्ति माता को कहा जाता है तो उनको यह शिव से शक्ति कैसे मिलती है तो देखो यह सब शिव बाबा से योग लगाकर के और जो उनके ऊपर पांच विकार का कट चढ़ा हुआ है वह कट निकालते हैं समझाना। यह चकमक होते हैं ना बच्चे तो मिसाल देते हैं सुई चकमक को खींचती है तब जबकि सुई प्योर हो जाती हैं, कट निकल जाती है तो बच्चे यह तो तुम बच्चों को बाप ने समझाया है कि तुम्हारे ऊपर तमोप्रधान पूरी कट चढ़ी हुई है…. समझे ना..इसलिए तुम मेरे साथ योग लगाने से, तुम्हारी ये कट उतरेंगी और कोई भी उपाय नहीं है। कट कहा जाता है पाप को, तो उनको यह मालूम नहीं है कि सचमुच भारत को पावन बनाने वाला तो पतित पावन है सो बरोबर माताओं द्वारा ही बनाते है। माताएँ पुकारती हैं दु:शासन नंगन करते हैं इसलिए हमको बचाओ तो देखो जो बचती हैं तो वही तो गवर्मेंट को चाहिए ना कहना भाई मदद करो कि बाप कहते हैं कि माताओं को कलश का दान करता हूं पावन बनानें पुरुषों उनको नहीं देते हैं तो ऑर्डिनेंस निकालो जो अगर कोई चाहे… तो मैं पावन रहूं… तो पावन रहे…, पुरुष उनको तंग ना करें, समझा ना और स्त्रियां भी ऐसी चाहिए… मस्त.. जो रह सके. ऐसे नहीं कि जो पति को छोड़ कर आ जावे तो पति की याद में प्राण त्यागे, पति को याद करें, पिछाड़ी में या मित्र संबंधियों को याद करें। उन्हें नंगन से बचाने वाला आता है बाप, अभी उनको भूल कर के कोई मामा को, कोई चाचा, कोई फैलाने को याद करेगा तो भी तो अधोगति करेंगे ना। यानी वह जो पद मिलने वाला है ना वह गिर जाएंगे एकदम। तो बाप सब बातें अच्छी तरह से समझाते रहते हैं कि कैसे युक्ति रचो। सुख के दिन तो आने वाले हैं बच्चे, देखो कहते हैं तुम्हारे सुख के दिन आएंगे तो कहते हैं तुमको तीन गज पृथ्वी के नहीं मिलते हैं… अरे बच्चे हम तो तुमको सारी सृष्टि रिक्विजिशन करके दे देता हूं और फिर वह सृष्टि भी एकदम गोल्डन एज। तुमको ऐसे ये छी छी सृष्टि पर नहीं रहना है, फिर आएंगे तो रहने दे लूंगा? नहीं! यह सृष्टि को बिल्कुल ही प्योर कर दूंगा एकदम, जिसको फिर स्वर्ग कहते हैं, गोल्डन सृष्टि कहा जाता है। यह तो पत्थर की सृष्टि है ना। नहीं तुमको गोल्डन…, गोल्डन घर बनाना…. समझाना… जमीन तो चाहिए ना, सारे विश्व की जमीन तुमको रिक्विजिशन करके देता हूं फिर तुम उस पर महल बनाना खूब अच्छी तरह से सोने के परंतु, अगर जो मेरी श्रीमत पर चलेंगे। श्रीमत क्या कहती है पहले पहले कि जो आत्माएं हैं, पतित आत्माएं हैं उनको पहले योग में लगाओ तो कट उतर जाए नहीं तो कट ना उतरेगी तो इतना पद नहीं पाएंगे। धारणा नहीं होंगी समझे ना जैसे जरी करी थी वैसे जरी करी होकर रहेंगे इसलिए बाबा कहते हैं कोई भी विकर्म नहीं करना चाहिए, श्रीमत पर अच्छी तरह से चलना चाहिए, तो श्रीमत पर तो बहुत सारे नहीं चलते हैं, बहुत अच्छे अच्छे जो फर्स्ट क्लास - फर्स्ट क्लास भी नहीं चलते हैं क्योंकि माया है ना, वह बुद्धि का योग तोड़ देती है। यह हमारा बाप है यह ब्रह्मा नहीं कहते हैं हमको। नहीं…! नहीं ब्रह्मा भी तो बाप को याद करते हैं, समझे ना…. क्योंकि याद कौन करवाते हैं ब्रह्मा को भी वो परमपिता परमात्मा… ब्रह्मा के तन में बैठकर के उनके आत्मा को कहते हैं… ब्रह्मा की आत्मा… अरे फलाने की आत्मा…. है राधे की आत्मा….. मुझे याद करना है, तो हे ब्रह्मा की आत्मा ,है… मुझे याद करना है फलाने की आत्मा, मुझे याद करना है…. तो उनको भी तो ऐसे ही कहते हैं ना कि मुझे याद करो तो तुम फिर यह जो तुम्हारे ऊपर कट चढ़ी हुई है वो निकल जाएंगी। तो मूल तो बात हुई याद की। तो याद करे तब जब अपन को आत्मा समझे, पक्के पक्के पक्के बहुत पुरुषार्थ करें। समझे ना और श्रीमत पर पूरा चलते रहे, क्योंकि वह माया तो है ना, काम का भी आवेश आ जाएगा, क्रोध का भी आ जाएगा, लोभ का भी। लोभ भी कोई कम मत समझना बच्चे, बात मत पूछो…. अरे…! स्वाद से लेकर करके यज्ञ में जो भी बच्चे बिगड़ते हैं ना, लोभ…. ये मीठी चीज देखा, ये खा लिया, यह खा लिया, ये मिलना चाहिए, मुझे ये मिलना चाहिए, मुझे यह मिलना चाहिए, ये क्यों नहीं मिलता है, हमारा फलाना, यह है, यह है, सब कुछ करते रहते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चों में भी तो होंगे ना…. जो भी किस को देखेंगे.. उनको कुछ चीज मिली मुझे क्यों नहीं मिलनी चाहिए, समझे ना ऐसे ऐसे भी करते हैं तो बाप बैठ समझाते हैं यह जो है माया, यह चूहे मिसल है फूंक देती है, काटती है तो लोभ में भी फूंक देती है, पता नहीं पड़ता है कि….। लोभ की निशानी है कि कुछ ना कुछ खाते रहेंगे, यह करते रहेंगे। देखो इसके लिए मिसाल भी देते हैं छिपा छिपाकर के.., जैसे वह मिसाल देते हैं वह कृष्ण को छोड़ कर के गए वो चक्कर में, तो देखो…. तुम चक्कर से बाहर नहीं निकलना तुमको नहीं बताया…. लिखा हुआ शास्त्रों में… अरे हां बुद्धू।… तो भाई तुम बाहर नहीं निकलना ऐसे.. तो देखो चने वाला एक आया तो बोला… अभी कोई देखता थोड़ी है चलो अब चना लेते हैं… किसी का कसम भी खाया बोला की चलो अब उधार देंगे.. फिर किसका कसम, ये जो बनाया ये कोई बात है नहीं, क्योंकि सारा ही जो शास्त्र बनाया हुआ वो सभी ये कल्पित है बनाया हुआ है, झूठे। समझा ना…. कोई तो तुमको समझा कर कहेंगे यह भी तो तुम्हारा झूठा बना हुआ है, समझा ना ऐसे भी कई निकलते हैं, यह कल्पित है यह कुछ है थोड़ी, दुनिया है ही नहीं, दुनिया बनी ही नहीं है, यह जो कुछ भी है कल्पना है कि मैं माता हूं, मैं पिता हूं, मैं फलाना हूं, ये भी सब कल्पना है, ऐसे भी बहुत प्रकार के निकलते हैं साधु लोग। तो बाप तुम तो समझाते रहते हैँ बच्चे ऐसे मत समझो कि बाप नहीं देखते हैं, चुल करते हो, फलाना करते, उठा के खाते हो, ये करते हो या विकार में जाते हो नहीं। यह हल्का नशा नहीं है समझा ना। बाबा ने कल बताया था ना, कि कैसे-कैसे मनुष्य वो दिल पूरी करने के लिए ये करता है, वो करता है। गंद बहुत करते है समझा ना, तो पुरुष बहुत गंद करते हैं जास्ती तो समझाते भी रहते हैं, परंतु बनना ही है, भावी ही ऐसी बनी हुई है। ड्रामा…। तो उसको कर ही क्या सकते है जरूर बनेंगे नही तो कहां से आएंगे सभी। प्रजा भी जरूर बनेंगे राजा भी जरूर बनेंगे साहूकार भी जरूर बनेंगे, गरीब भी जरूर बनेंगे, उनकी भी दास दासियाँ जरूर बनेंगे, यहीं सारी बादशाही स्थापन हो रही है तो ये तो कोई बड़ी बात तो नहीं है परंतु बाबा कहते हैं जब प्रदर्शनी होती है तो पकड़ो ऐसे ऐसे को। देखो….. हम भ्रष्टाचारी से शिष्टाचार ही बना रहे है, हमको लोन भी दे सकते हो, दे सकते हो, भले 10 बरस तुमको दूसरे 6 परसेंट देते हैं हम तुमको 9% देते हैं चीज भी तुम्हारी ही रहेगी। समझा ना। मकान जो देंगे, वह भी तुम्हारी गवर्मेंट के ही रहेंगे। समझाना। हम कुछ भी रहे हमको रहने के लिए जगह चाहिए कि भाई हमको 10 बरस तुमको रहने देते हैं रहने देते हैं इतना ब्याज तुमको देना पड़ेगा भाई। फाइनेंस मिनिस्टर से कोई सेंसिबल हो बच्चे, अभी तलक कोई इतना बना नहीं है, बनाने के लिए बाबा कहते रहते हैं, आगे चलकर करके कुछ ना कुछ देखो…. कोई ना कोई जमीन का टुकड़ा भी दिलाई देते हैं, भले बिक रहा है, यह भी अच्छा तो गवर्मेंट को पकड़ना पड़े कि बाप आया हुआ है ये भारत को… सारा रिक्विजिशन करते हैं किससे रिक्विजिशन करते हैं… रावण राज्य से। वह नापाक राजधानी है और बाबा पाक राजधानी स्थापन करते हैं। वह पाकिस्तानी नहीं, नहीं वह तो यमुना रोड का यह बना था क्योंकि वह लोग हमेशा ऐसे कहां भी छोड़ते हैं ना वहां देखो कहां भी जाओ देखो साउथ, नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ को जाओ, नार्थ को जाओ देखो इसको भी ऐसे ही कर दिया भारत को। नहीं। तो यहां कोई पार्टीशन थोड़ी था आगे तो पार्टीशन डाल देते हैं तो फिर बाबा फिर क्या करते हैं, इन दोनों में पार्टीशन डाल देते हैं जिससे देखो भारत को फिर मक्खन मिलता है। उसमें साकारी बड़ी मेहनत चाहिए। उसमें पहले पहले तो श्रीमत चाहिए। श्रीमत जो कहा है उनको पता चले तो बाप तो बैठकर बहुत डायरेक्शन देते हैं। इसको पकड़ो, इसको पकड़ो, इसको समझाओ। ऐसे तो समझाने वाला सयाना चाहिए। समझा ना जो अच्छी तरह से बाप के ऊपर लव है, देखो यह भी तो लव है ना, एक भाई….. हम शिव बाबा के रथ के लिए यह हम एक स्वेटर बनाकर भेज देते हैं, अभी वह कौन हैं? वह हमारा बाबा है…. बेहद का बाबा है…. प्राण का दान देने वाला, प्राणों को बचाने वाला… ये हमको स्वर्ग का मालिक…. तो किस को याद किया? शिव बाबा को अब ये रथ…. तो स्वेटर भेज दिया, कपड़ा भेज दिया, परंतु क्यों भेज दिया? शिवबाबा का रथ है, शिव बाबा इस रथ द्वारा हम को ये कह्ते हैं। हम शिव बाबा के रथ को टोली भेजूं। श्रंगारूं। जैसे हुसैन के घोड़े को श्रींगारते हैं ना बच्चे। तुम लोग इतना अनुभवी नहीं हो। ना बच्चे। यह तो, ये तो सब देखा गया हुआ है ना बहुत। घोड़े को कितना श्रंगारते हैं । तो देखो ये सच्चा पक्का, पक्का घोड़ा जो क्या करते हैं पतित दुनिया को पावन बनाने बाला तो देखो उनका रथ है। तो वह श्रृंगार तो बाहर का है। नहीं। यह श्रृंगार तो अपना कर रहे हैं। कैसे श्रृंगार कर रहे हैं, याद कर रहे हैं, बाबा को याद कर रहे हैं और जो ऑब्जेक्ट है वह अपने पद को भी याद कर रहे हैं और फिर बच्चे भी जानते हैं की कल्प कल्प यह दोनों बड़े पक्के है क्योंकि इनका तो निशानी है बिल्कुल। यह मम्मा और बाबा ज्ञान ज्ञानेश्वरी सो राजराजेश्वरी बनती है, ठीक है ना बच्चे। अच्छा फिर ज्ञान ज्ञानेश्वरी श्री जगदंबा के बच्चे, वह भी तो राजराजेश्वरी बनना चाहिए ना तो बराबर राज के मालिक बनते हैं परंतु नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार। है तो एक ही बात ना अगर हम मम्मा को कहते हैं ज्ञान ज्ञानेश्वरी तो तुम भी ज्ञान ज्ञानेश्वरी। ज्ञान किस लिए लेते हो राजयोग से राजराजेश्वरी बनते हो जितना जो सर्विस करते हैं उतना वो बनेंगे। तो पांडवों ने कौरवों से सारी सृष्टि रिक्विजिशन कर ली थी और बरोबर वह सृष्टि स्वर्ग बन गई थी। भाई ठीक है ऊंचे से ऊंचा भगवान। तुम मुझको याद करो मैं तुमको वर्सा दे देता हूं। कितना अच्छा समझाते हैं। कहते हैं गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने तो देखो जो गोथरी है ना उस गुड़ की, तो देखो उसको कहा जाता है, नॉलेज फुल, भाई गुड, फिर यह गोथरी गुड़ की, और यह जाने कुछ ना कुछ कि मेरे गोथरी में गुड आया है या नहीं यह तो यह गोथरी जाने। तुम भी जान सकते हो जो सेंसिबल जो हैं, समझू हैं, सयाने बाकी जो सर्विसेबल ही नहीं है वह क्या जानेंगे। बुद्धू। मीठे-मीठे सेर्विसेबल आज्ञाकारी बच्चों प्रति माता-पिता बापदादा का यादप्यार और गुड मॉर्निंग।