17-01-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


सुदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार जनवरी की 17 तारीख है। प्रातः क्लास में बाप दादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-

मैं एक नन्हा सा, मैं एक छोटा सा बच्चा.......

बाप आ करके बच्चों को समझाते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को, कोई छोटे-छोटे बच्चे हैं, कोई मीडियम है, कोई बड़े हैं। छोटे बड़े समझाए जाते हैं। जो अच्छी तरह से ज्ञान को समझते हैं और समझाते हैं उनको कहा जाता है बड़े बच्चे और जो ज्ञान को ना समझाए सकते हैं उनको कहा जाता है छोटे बच्चे। तो छोटे बच्चे माना छोटा पद। समझा सकते हैं माना बड़ा पद पाएंगे, ये तो समझने की बात है अच्छी तरह से। क्योंकि मनुष्य जो कुछ भी वेद, ग्रंथ, शास्त्र, भक्ति द्वारा समझा है वह सब ही उल्टा समझा है, समझा ना। सद्गति के बदले में ये दुर्गति को पाए हुए हैं। जैसे बाबा ने समझाया था कि भाई जो स्नान करते हैं पानी में, फिर कुंभ का मेला भी बनाते हैं। परन्तु कुंभ का मेला वास्तव में नाम किसका है, कुंभ माना कोनफ्लुएंस, संगम। अभी संगम का मेला है ही एक बड़ा, जिसको ये कहते हैं सागर और नदी का मेला। सो भी कौन सा? क्योंकि नदियां तो बहुत ही है पानी की। तो वह भी सागर में पड़ती है पर वहां इतना मेला नहीं बच्चे लगते हैं, क्योंकि ब्रह्मापुत्री जो ब्रह्मा नदी है वह जाकर के सागर में मिलती है कलकत्ते के तरफ में। अभी ऐसे तो सरस्वती, गंगा, जमुना ये सभी नदियां है, जा करके मिलती हैं सागर में जरूर, क्योंकि उनमे से जो नालेज निकलते हैं कैनाल वगैरह है, पानी के तालाब जैसे वो जो तालाब, जिसको कहा है न बच्चे वो भी नदी से निकला हुआ है उन्हें पाइप दिया हुआ है, जो नदी से पानी आते हैं तो तालाब ही बन जाते है ना। तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं। यह बच्चे ही जानते हैं कि बरोबर यह जो कुंभ का मेला कहा जाते हैं वह है ब्रह्मा ,ब्रह्मा पुत्री नदी, पानी है और वो सागर है वहां जाकर मिलते हैं तो स्नान जाके करते हैं तो उनको ही कुंभ कहा जाता है सच्चा सच्चा। क्योंकि बड़े ते बड़ी नदी ब्रह्मपुत्रा है। वैसे ही देखो ये भी और संगम है युगल हैं न, वहां युगल होते है देखो यहां भी ऐसे ही है यह ब्रह्मा अभी यह भी तो ज्ञान की नदी ठहरी, इसको सागर तो नहीं कहेंगे ना बच्चे। तो इसका और ज्ञान सागर का मेला है तो सबसे बड़े ते बड़ा मेला किसको कहेंगे? भाई बाप के पास आना, जहां ब्रह्मा भी है तो हुआ ना ये बड़ी नदी भी ठहरी, क्योंकि पहले पहले इनसे ये निकलती है। इनसे संगम है इनका, ऐसे कहेंगे ना, क्योंकि सारे नदी जा करके उनसे मिलती हैं जरूर पहले उनसे निकली हुई होंगी, तो देखो पहले पहले ब्रह्मपुत्री से मिली है और पहले पहले निकला भी ज्ञान सागर से यही है, जो सतयुग में पहले पहले नंबर में जाते हैं यह है ना बच्चे। अच्छा यह तो तुम समझते हो कि सरस्वती और ब्रह्मा को मेला नहीं कहेंगे, नहीं। क्योंकि ये संगम पर जहां ये आए दोनों, वहां ही जैसे के मेला है, किसका? ज्ञान सागर का और फिर उनसे पहले पहले निकली हुई यह ब्रह्मपुत्री, समझा ना। क्योंकि पहले निकलते तो सभी सागर से है ना, बरसात से। तो बाप बैठ कर के इसके ऊपर समझाया था बहुत, ये जो भी स्नान करते आते हैं मनुष्य यह कुंभ के मेले पर, भिन्न-भिन्न नदियों के मेले पर, अभी नदियां तो बहुत ही मिलती है आपस में। तीन मूर्ति के क्या, चार मूर्ति क्या, छह मूर्ति भी मिलती हैं आपस में तुम्हारे पास तो। जब बुलाए जाते हैं भाषण करने के लिए तो नदिया तो ज्ञान गंगाएँ ज्ञान नदिया तो आपस में बहुत ही मिलती हैं। तो बाप बैठ कर समझाते हैं तो बाबा ने समझाया है परंतु इनका कुछ भी सर्विस नहीं निकाली क्योंकि कुंभ के मेले तो होते रहते हैं, नदियों में मेले भी होते रहते हैं। स्नान भी करते रहते हैं पानी में, अब हमको इनसे बचावे कौन? और ही दुर्गति को पाने के लिए, से बचाने के लिए और फिर इनको सावधान कौन करें? देखो बाप कहते हैं ना एक-दो को सावधान करना है जरूर, तो क्या करना चाहिए जरूर पर्चे छपाना पड़े, भाई जन्म जन्मांतर है। यह जो खारा पानी का सागर है उनसे ये जो नदियां निकलती हैं बरसात होने के कारण, अभी यह तो कोई ज्ञान गंगाएँ तो है नहीं। इनमें तो सभी मच्छ कच्छ... पानी है वो सभी स्नान करते आते हैं और ये भी सब करते आते हैं। परंतु यह तो और ही दिन प्रतिदिन जितना जितना कुंभ का मेला या मलाखडा या वगैरह मनाते हैं, दुर्गति को और ही पाते रहते हैं। फिर यह दुर्गति में भी ले जाने वाले कौन? फिर वह कलयुगी भ्रष्टाचारी पतित गुरु। दूसरा तो कोई नहीं ना, उनकी ही मत मिलती है कि चलो यह मेला है, मलाखडा है स्नान करो, यह पावन होंगे, पतित पावन होंगे। तो यह किस की मत है? यह उन्हीं की फिर, जो भ्रष्टाचारी और पतित है उनकी मत है, क्योंकि खुद भी तो पावन बनने के लिए स्नान करते हैं, तो जो पतित होते हैं उनको फिर भ्रष्टाचारी भी कहते हैं। तो अभी यह युक्ति से लिख करके, क्योंकि सबको सावधान करना है ना, तो यह तो सदैव होते ही रहते हैं। तो ऐसा एक पत्र बनाए करके, यह तो एम एंड ऑब्जेक्ट तो सद्गति की दिखलाई है, देखो ये है लक्ष्मी नारायण की देखो ये हुई सद्गति व जीवन मुक्ति तो इनमें समझाना चाहिए कि भाई दुर्गति को पाते रहते हो अगर इस समय में अब ज्ञान सागर गीता ज्ञान दाता उनसे अगर स्नान किया जाए या उन से निकली हुई ज्ञानगंगाए ब्रह्मा कुमार कुमारिया द्वारा स्नान करने से, उनके तो बहुत ही बने हुए हैं सेंटर्स जैसे वह भी नदियां ढेर के ढेर हैं, तालाब ढेर के ढेर हैं इनके सेंटर्स भी दिन-प्रतिदिन..., यहां स्नान करने से तुम ऐसे सतयुगी, दैवीय, स्रेष्ठाचारी, पावन ये देवी देवता बन सकते हो। चित्र तो है ही है, अभी छपाए गए हैं। परंतु अक्षर भी थोड़ा अच्छा होना चाहिए अक्सर करके इनका भी अभी चित्र निकलते हैं या फिर लिटरेचर निकलते हैं या अभी पेम्प्लेट्स निकालते हैं तो झुंझाड़ अक्षर बहुत होते हैं, सब नहीं, जैसे बाबा कहते हैं सब नहीं हैं यह एक जैसे चलने वाले, ऐसे ही कोई ऐसा लिटरेचर छपाते हैं जो अक्षर पढ़ने में नहीं, और तुम्हारा है ही अक्षरों में अर्थ, चित्रों में अर्थ नहीं है इतना, जितना अक्षरों में अर्थ है। तो चित्रों में अक्षर झुंझाड़ नही होना चाहिए। बाबा बहुत बार समझाए हैं, परंतु अक्षर जो झुंझार होते है वो ............ढाल देते हैं बाबा जो डायरेक्शन देते हैं उन पर ना चलते हैं तो उनको झुंझाड अक्षर ही कहा जाता है है न, झुंझार कहो या बुद्धू कहो हो बात तो एक ही है। देखो जो बात समझाई जाती है वह अमल में लाने से बहुतों का कल्याण कर सकती। ऐसे नहीं कि बस कुंभ के मेले पर ही हमको कहना है नहीं बच्चे रोज ही स्नान करते हैं गंगा पर जाओ, यहां जाओ सब तो उनको बैठकर के समझाना है कि भाई कंगाल बन पड़े हो, क्योंकि खर्चा भी तो बहुत होता है ना तीर्थों पर जाने में, खर्चा भी तो बहुत होता है। तो खर्चा भी होता है और दुर्गति को भी पाते हैं और यहां तो खर्चा भी नहीं है इतना, क्योंकि ये तो जन्म जन्मांतर का खर्चा है ना। खर्चते खर्चते खर्चते खर्चते कंगाल बन गए हैं। फिर यह भक्ति मार्ग का खर्च किसमें होता है ये वेद, ग्रंथ, उपनिषद, शास्त्र, गायत्री इन सब में होते हैं। तो बाप तो बैठकर समझाते हैं न कि भाई इनसे कोई तुम्हारी सद्गति होती ही नहीं है। यह तो मैं जब आता हूं तब आ करके सर्व की सद्गति करता हूं। किससे? यह नॉलेज देता हूं। कौन सी नॉलेज देता हूं, मनमनाभव मध्याजी भव यह नॉलेज। देखो कितनी अच्छी नॉलेज देते हैं कहते हैं मुझे याद करो तो इस योगाअग्नि से तुम पावन बनेंगे समझे न, तो यह ज्ञान ठहरा ना बच्चे। ज्ञान बाप नॉलेज देते हैं क्या करो? मेरे साथ योग रखो तो इस योगाअग्नि से तुम पावन होंगे। योग से तुम पावन होंगे ना कि कोई यह स्नान है या पानी है या वगैरह है नहीं। इसको ज्ञान कहा जाता है भाई ज्ञान स्नान वो है पानी का स्नान वह पानी की नदी की यह ज्ञान की नदियाँ, परन्तु वास्तव में यह अक्षर भी जरूरत नहीं क्योंकि सिर्फ उनको याद करने से, इसको स्नान नहीं कहा जाए, परंतु बाप यह श्रीमत देते हैं। वह है आसुरी मत, यह है श्रीमत। आसुरी मत से यह सारी भक्ति होती है समझा ना, क्योंकि आसुरी राज्य है क्योंकि आसुरी राज्य में भक्ति ही होती है तो हो गई जैसे आसुरी मत से भक्ति। और ईश्वरीय मत से है फिर ज्ञान तो ईश्वरीय मत से फिर सद्गति हो जाती है 21 जन्म के लिए। पीछे सद्गति पाए कर के पीछे हम थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा दुर्गति की तरफ जाना होता है, नीचे तो उतरना है ना बाप ने समझाया है ना कि सतोप्रधान से सतो, सतो से रजो, रजो से तमो आना ही है। तो अभी यह बुद्धि में तुम्हारे में कोई-कोई में बैठे हुए हैं बुद्धि में भाई सब की बुद्धि में भी नहीं बैठते हैं भले 25 बरस भी हुए, 20 बरस भी हुए सुने हुए तो भी जिसकी बुद्धि में पुरा ना बैठेते हैं ना समझाए सकते हैं। न समझाए सकते हैं यह प्रूफ है कि नही समझते हैं। समझा न बच्चे उनको ही फिर पत्थर कहा जाता है क्योंकि वह काम नहीं कर सकते हैं क्योंकि समझते नहीं है ज्ञान। ज्ञान समझे तो ज्ञान समझाने बगैर रह नहीं सकें, समझा ना, तो ज्ञान तो कोई यहां नहीं समझाना होता है यहां तो मेला लगता है थोड़े दिन के लिए आते है चार पांच दिन रह कर के भी रिफ्रेश हो कर के चले जाते हैं। और आने भी उन्हों को दिया जाता है जो बच्चे हैं, औरों को तो कोई आने भी नहीं देते जो समझ ही ना सके इन बातों से, क्योंकि बाप भी कहते हैं ज्ञान सागर कि मैं तो बच्चों के आगे ही.... बाप भी यह कहेंगे कि बच्चों के आगे ही... समझा ना, तो माँ तो आ गई ना गुप्त। यह तो हो गई गुप्त माँ। फिर वह प्रत्यक्ष मां समझे न। यह गुप्त हो गई ना बच्चे दिल वालीं माँ। ब्रह्मा और सागर का मेला देखो गुप्त हो गई ना ।बच्चे। वो प्रत्यक्ष हो गई। अभी उनको भी तो जाकर के समझाना पड़े तो जावे भी वहा, अगर निमंत्रण पर भी जावे तो देखो बच्चों को निमंत्रण मिलते हैं तो जावे क्योंकि ऑक्यूपेशन भी जानते हैं। अगर समझो कोई अगर बैठ करके इनको समझाते हैं यह जो रिलीजियस कॉन्फ्रेंस बनाते हैं। उनको कहते हैं कि जगदंबा का परिचय दें करके बोलते हैं बुलाओ उनको । अब जब तलक वो पूरा न पहचाने और बच्चे बचपन न समझे तब तलक मम्मा जा न सके वहां भी। समझा ना, क्योंकि अंधश्रद्धा तो है ही। वो सुनकर के समझो के कोई निमंत्रण देते हैं मम्मा को, अच्छा यह कॉन्फ्रेंस हुई है और आपको भी निमंत्रण देते हैं, तो पहले तो माँ पूछेंगी, किस को निमंत्रण देते हो, ऑक्यूपेशन बताओ। जब तलक ऑक्यूपेशन ना पूरा बतावे तब तलक मां तो जा भी ना सकेगी समझा ना। क्योंकि ऑक्यूपेशन जब बतावे तभी तो उस रिकार्ड से मम्मा को बुलावे। नहीं तो ऐसे ही थोड़ी बच्चों को बुला लिया। देखो तुम भी उद्घाटन कराते हो तो ओक्युपेसन को जान करके अच्छी तरह से पीछे बोलते हैं, भले ज्ञान नहीं है फिर उनको समझा के कुछ न कुछ समझा कर बैठाना चाहिए नहीं तो अगड़म बगड़म बोल देंगे, समझा ना। क्योंकि यह तो लाचारी करनी पड़ती है क्योंकि उनको उठाने के लिए, समझाने के लिए वह बैठकर के कहे कि भाई यह संस्था तो बड़ी ऐसी है। यह तो मनुष्य को देवता बनाने वाली संस्था है। इतना कोई भाषण में कहते नहीं है, ना ही कोई इतना कोई समझाए जाते हैं। कितना बिचारे क्या समझ कर गए एक दो बारी में। बैठता नहीं है कोई की बुद्धि में, भले गवरनर्स है जिन्होंने उद्घाटन किया है, परंतु बेचारों ने कुछ समझा कुछ थोड़ी है, बिलकुल नहीं। जिन जिन से इन्होने उनको उद्घाटन कराया है उन् बेचारों ने कुछ समझा नहीं है। किसको भी, कोई भी बात को नहीं समझा है, बस बड़ाई तो चाहिए कुछ न कुछ। फिर थोडा बहुत उनको समझा करके कुछ न कुछ भाषण क्रर देते है बाकी वह जो भी आए हैं कोई निश्चय नहीं हुए हैं, बिलकुल एक भी नहीं। अरे जो वह जिन्होंने उद्घाटन किया उनको निश्चय नहीं है जो इतने सब आते हैं उनमें से भी सेमी निश्चय है जो फिर कुछ आते हैं, आकर के समझने की कोशिश करते हैं। तो देखो कितने हजार आए लिखते हैं कि भाई दस पंद्रह हजार बीस हजार भाई आए होंगे। उनमें से कितने आए, हाँ पांच सात आठ निकले हैं जो आते हैं। वो कहा जाता हैं न कोटन में कोऊ, कोटन में कोऊ। तो देखो कितने आये और फिर बॉम्बे वाले लिखते हैं कहां सात, आठ, दस आते हैं। देखो कितना हुआ हाँ तभी तो गाया जाता है न कोटन मैं कोऊ, कोऊ मैं कोऊ। तो अभी तो प्रैक्टिकल मैं चल रहा है न बच्ची। तो ये भी तो प्रदर्शनी इतनी की, तभी तो कोई आ जाते हैं झटपट। नहीं तो कभी कोई आते हैं, जाते हैं, कभी ठन्डे बैठे हुए हैं, कभी कोई आया तो समझाया, नहीं तो बैठे हैं, नहीं तो पुराने ही आते रहते हैं कुछ न कुछ, सो भी अधूरे निश्चय। 20 परसेंट निश्चय, 10 परसेंट निश्चय स्कूल में बैठते। नहीं तो स्कूल में,... पुरे निश्चय बगैर कभी भी कोई स्कूल में बैठ नहीं सकें, हाँ भाई मुझे तो बेरिस्टर बनना है, सो तो मुझे पास करना ही है तो निश्चय हो गया न बच्ची। ये फिर यहाँ है तो निश्चय भी नहीं संशय बुद्धि समझने बैठे आस्ते आस्ते निश्चय हो जाएंगा के हम मनुष्य से देवता बनते हैं। नहीं जो वो जो पहले होते हैं वो बैठने से पहले मनुष्य से बेरिस्टर बनते हैं तो निश्चय से बैठते हैं न यहाँ नहीं यहाँ निश्चय से नहीं बैठते हैं, इस कोलेज में निश्चय होने के लिए बैठते हैं, बस चलते चलते ख़तम हो जाते हैं फिर दो बरस भी पढ़ते हैं, तीन भी पढ़ते हैं, पांच भी पढ़ते हैं न ऐसा नहीं फिर भी शंशय हो जाते हैं निकल जाते हैं कोलेज से। समझे न, क्योंकि ये ठहर नहीं सकते हैं। पढाई है ऊँची और ये ऐसे पढ़ाई में विघ्न पड़ते हैं माया के, माया आती है तो माया के सच्चे सच्चे किसके रावन के। वो तो कोई को बीमारी हो जाती है, बीमार हो जाते हैं अथवा मर जाते हैं, ख़तम हो जाते हैं। यहाँ तो आकर करके समझना है और माया समझने फिर नहीं देती है, है न। ये पांच विकार, ऐसे कोई स्कूल के लिए नहीं कहा जाएंगा कोलेज के लिए की भाई इनको माया जा विघ्न पडा नहीं। यहाँ तो सच सच ये रावण विघ्न डालते हैं पढाई पर बच्चो की, क्योंकि वो समझते हैं मेरे ऊपर जीत पहन करके राज लेते हैं, तो फिर वो इनको सताते हैं बहुत। तो है तो वंडरफुल न बच्चे ये स्कूल। और देखो तुम्हारे स्कूल की अच्छी अच्छी महिमा गुजरात में जास्ती निकल सकती है क्योंकि दिलवाडा मंदिर भी तो यहाँ है न। तो दिलवाडा मंदिर में ये ऐसे कुछ ठीक से लिखा नहीं है बहुत.. कोई..। तो गुजरात में कभी ये होवे तो वहां समझाया जाए की भाई वो दिलवाड़ा मंदिर हैं न वो है जड़ मंदिर जो होकर गए हैं धर्म स्थापनाए अर्थ स्वर्ग स्थापनाए अर्थ, जगदम्बा जगत पिता वो उसका निशानी, यादगार जड़ बने हुए हैं भक्ति मार्ग के लिए, ये फिर चैतन्य वही आये हुए हैं, तो वहां ये जो गुजरात वाले हैं जगदम्बा और दिलवाडा मंदिर के तरफ है उनको अच्छी तरह से समझाने में बड़ा रहस्य आते हैं। क्योंकि यादगार एक तराफ़ से हैं और ये वो जड़, ये वो चैतन्य। जो चेतन्य होकर जाते हैं जैसे देखो गाँधीजी होके गया, नेहरु होके गया तो चैतन्य थे सर्विस अच्छी करते थे तो फिर चले गये अब उनका यादगार। अभी फिर तो नहीं आएँगे न, फिर कब आएँगे वो पांच हजार बरस बाद फिर चैतन्य में आएँगे जो सर्विस करेंगे जो फिर इनके चित्र निकलेंगे समझे न। अभी इनको चित्र तो निकलने का है नहीं कयोंकि पहले पहले उस चित्र जब यादगार के होंगे तब वो पहले तो ये तो सभी ख़तम हो जाएँगे। पहले पहले शुरू जब चित्र होंगे यादगार के तब पहले पहले तो शिवबाबा का होंगा। फिर उनको वो त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये वगैरह जो अभी तुम बैठे हो उनके चित्र निकलेंगे। इनके तो नहीं निकलेंगे न, क्योंकि ये होके कोई सर्विस नहीं की न। इन्होने तो और भी जो भी हैं करते वो डिससर्विस ही करते हैं क्योंकि तमोप्रधान बनते है तो हर एक बात में डिससर्विस ही करेंगे तमोप्रधन मनुष्य। क्योंकि दुनिया तो नहीं जानती हैं न इन बातों को ये जो तमोगुणी हैं इस समय में तभी तो अभी सभी को भ्रष्टाचारी कहते हैं न सबको। पतित तो कहते तो हैं न जरूर, परन्तु समझ नहीं है बुद्धि में, की हम सच सच पतित हैं कैसे हैं वो कोई नहीं जानते हैं। सब अपने को पतित थोड़े ही समझते हैं, कहते जरूर हैं पतित पावन आओ। परन्तु अपन को थोड़ी समझते हैं और बरोबर दिखलाते हैं हम पतित हैं, जाकर स्नान करते हैं कुम्भ के मेले पर वगेरह, परन्तु स्नान तो सच्चा सच्चा तो ये है न ज्ञान स्नान। संगम का तो ये है न जिससे सद्गति मिलती है। उनसे सद्गति तो मिल नहीं सकती है। ज्ञान स्नान से सद्गति होती है। वो तो गुरु द्वारा ज्ञान मिलेगा न। ये गुरु थोड़ी है गंगा परन्तु नहीं बहुत लोग गंगा को भी गुरु मानते हैं ऐसे ऐसे हैं बहुत। तो अंधश्रद्धा बहुत है न बच्ची। क्योंकि सिवाए ऑक्यूपेशन के जाने कोई क्या फायदा पाए सकते हैं, तो यहाँ तो बड़ी खबरदारी रहनी पड़ती है। जब तलक कोई ऑक्यूपेशन को न पूरा जाना है, ऐसे नहीं की मैं दर्शन करूँ, ये तो बिलकुल ही फालतू है। दर्शन वर्शन की तो यहाँ कोई बात ही नहीं है, समझा न। ये तो दर्शन सिर्फ मिलना सो तो जिससे काम होना पड़ता है हमारा या समझते हैं के अच्छा ये हैं कुछ कोई इन द्वारा कोई का कल्याण हो सकता है, बड़ा आदमी मनुष्य का आवाज निकले, परन्तु नहीं आवाज फिर भी गरीब का निकलता है जास्ती। साहूकार का निकल नहीं सकता है, देखा जाता है की साहूकार आवाज उतना कर नहीं सकते हैं। ज्ञान के साहूकार अगर हों तो वो अच्छा आवाज करते हैं। देखो जो ज्ञान का साक्षात्कार आवाज करने वाले हों तो पहले पहले ये पानी में जो स्नान करते है न उनके लिए बड़ी जरुरत पड़ती है की हमेशा गंगा जमुना फलाना स्नान तो वो करते ही रहते हैं तो उनके पास ये पेम्प्लेट्स छाप कर करके हिंदी में अच्छे अक्षरों में जाकर के देना भी है समझाना भी है। हा तो देखो भाई तुम बैठे हो गंगा पर, गंगा के स्नान से कोई सद्गति नहीं होती है। ये पतित पावन सद्गति दाता तो एक है न, वो आकर करके सर्व की सद्गति करते हैं समझा न। तो इसलिए वो सर्व की सद्गति वाला है तब तो ये चित्र छपाया है न। इसलिए तुम समझो तो मैं खुद तुमको समझाऊ, की बाबा क्या कहते हैं। बाबा कहते सद्गति चाहिए तो कोई बड़ी बात थोड़ी है एक सेकिंड में सद्गति देऊँ, सद्गति चाहो, जीवन्मुक्ति चाहो बात एक ही है। क्या करो, बाबा क्या कहते हैं, श्रीमत मुझे... समझाओ तो अंत मति मेरे पास चले आएँगे क्योंकि मेरे द्वारा तुम्हारे विकर्म विनाश हो सकते हैं। इसको योगाग्नि कहा जाता है। योगाग्नि को कोई ज्ञान नदी या ज्ञान सागर या ज्ञान नहीं कहा जाता है, क्योंकि इस अग्नि से ही पतित पावन हो सकते हैं और कोई उपाय ही नहीं है। इसीलिए बाप कहते हैं मेरे साथ योग रखो तो इस योग से तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएंगा, तुम एवर हेल्थी बन जाएँगे। और फिर कहते हैं जब तुम मेरे साथ योग रखेंगे, मैं हूँ ही स्वर्ग का स्थापन करने वाला। फिर तुम जब इस ज्ञान चक्कर को जान जाएंगे, की ये सृष्टि का चक्कर कैसे फिरता है तुम चक्रवर्ती राजा बन जाएंगा। वो तुम्हारा वर्सा बन जाएंगा। तुम बाप को याद करो और वर्से को याद करो भाई सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग पूरा हुआ अभी हमारी ये नाटक पूरा होता है अभी हमको वापस जाना है बाबा के पास। बस समझानी तो ऐसे बाबा समझाया है, कल्प कल्प एक ही बार आकर के सबकी सद्गति करते हैं, घडी घडी नहीं आते हैं। उनको गाया जाता है सद्गति दाता, सर्व का सद्गति दाता, सर्व में तुम सब आ जाते हो। तुम कोई किसी की सद्गति नहीं कर सकते हो, न तुम्हारी हो सकेंगी। भले गंगा के किनारे बैठो या शिव के मंदिर में बैठो क्योंकि है ही शिव से ये ज्ञान गंगाएं निकलती हैं बरोबर। वो समझते हैं की शिव, काशी, विश्वनाथ, गंगा यानी ये शिव की गंगा निकली है तो पानी की गंगा समझ जाते हैं, वो भागीरथी को भूल जाते हैं फिर मेन तो भूल जाते हैं नंदी गण। तो उनको भीसमझाना चाहिए की देखो बाबा ये बता देते हैं, अक्सर करके उनके पास कोई कोई होते हैं उनके पास माताएं नहीं जास्ती जाती हैं और कहाँ कहाँ जाती भी हैं। तो चित्र देने से, माताओं को देखने से तुम योग में होंगी, बुद्धू नहीं जाए सकते हैं न बच्ची जब तलक वो नश्टोमोहा वाली न होंगी न अच्छी शुद्ध अच्छी योगिन, तब तुम्हारी सर्विस होएंगी आगे चलकर, जो जो बिलकुल परिपक्व अवस्था में होते जाएँगे फिर पीछे बच्ची तुम्हारा तीर बहुत जल्दी लगेगा। तब तलक नामाचार भी हो जाएंगा प्रदर्शनी से। बाकि इन साधुओं का भी उद्धार तुमको ज़रूर करना हैं, समझा न। सिर्फ उनको जाकर समझाना है न की एक है सद्गति दाता। वो देखो कहते हैं न जब धर्म ग्लानी होती है तो अजामिल जैसे पापियों, साधुओं का भी उद्धार करते हैं तो आप लोग भी तो देखो किनारे बैठे हुए हैं ईश्वर के जगह पर बैठे हो, अभी शिव बाप तो वो है ज्ञान का सागर वही है। वो कहते हैं बाबा बच्चो को की मुझे याद करो तो मेरे पास चले आएँगे और मुक्ति में चले जाएँगे समझा न। तो तुमको मुक्ति चाहिए न, तो मुक्ति तो मिलती है सेकण्ड में मुक्ति जीवन्मुक्ति। मुक्ति के पास जीवन मुक्ति है ही है, समझा न। मुक्ति के पास जीवन्मुक्ति है जीवनमुक्ति के पहले मुक्ति जरूर है। ये अक्षार अच्छे से समझाना चाहिए। ये पॉइंट्स जो इतनी निकलती हैं न बच्चे, ऐसे मत कोई समझो की सबको कोई धारणा हो सकती है.. न। ये नम्बरवार पुरुसर्थ अनुसार धारणा होती है नहीं तो बहुत भूल जाते हैं बहुत, जो जो भी देह अभिमानी है न, ये तो ढेर भूल जाते हैं। ये तो पॉइंट्स तो बहुत अच्छी अच्छी हैं, पॉइंट्स याद हो तो नशा चढ़े नशा चढ़े और सर्विसे करें। ये पॉइंट्स याद हो तो धन बहुत है न। तो धन बहुत हो तो सर्विस करें बहुत। बाबा बहुत तरीके बहुत सहज से सहज। फिर कोई कोई ये बुद्धू... बाबा शक्ति दो, बाबा कृपा करो, बाबा कृपा क्या करेगा, बाबा पढ़ाते हैं ये तुम्हारा काम है पढना है पढ़ाना है बाकि तुमको कोई शक्ति, तो जब कोई ऐसे कहते हैं आशीर्वाद दो.. शक्ति दो.. तो समझते हैं ये भगत कोई बुद्धू है समझा न। देखो ये तो देखो मिसाल बहुत अच्छे देते हैं बाबा तो ऐसे बहुत से मिसाल दिए हुए हैं। ये कहना ओ गॉड फादर मर्सी ओन मी, अरे गॉड को जानते नहीं हैं मर्सी कैसे करेंगे? तो एक ही समान हुआ कुछ और तो हुआ ही नहीं बच्चे इसीलिए बाप खुद भी कहते हैं न बन्दर मिसल हैं, जनावरों मिसल हैं। देखो अपने को स्तम्भ के ऊपर भी जनावर दे दिया है शेर है फलाना है तीर है। नहीं तो है तो सत्यमेव जयंती। है तो सारा ज्ञान एक तीर में लगा हुआ है। वो शिव बाबा वो ब्रह्मा बाबा वो मर्तबा शिव बाबा से मिलने वाला और वो विनाश के लिए पतितों का विनाश के लिए। बिलकुल इस चित्र में सारा ज्ञान भरा हुआ है। समझाना भी बड़ा सहज होता है बिलकुल ही। त्रिमूर्ति तो बरोबर बहुत से निकालते हैं सिर्फ ऊपर में वो नहीं है शिव बाबा नहीं है। और चित्र तो बहुत ही दे देते हैं पर वो चित्र थोड़ी जानते हैं, यहाँ तो प्रैक्टिकल में ब्रह्मा कुमार कुमारियाँ मोजूद हैं समझा ना। ब्रह्मा के ब्रह्मा कुमार कुमारियाँ मोजूद हैं, तो जरूर वो कोई ऐसे नहीं वो जाकर कहे मै ब्रह्माकुमारी हूँ सो भी सत्य है। घरों में भी रहती है ब्रह्मा कुमारियाँ और फिर बरोबर निश्चय है स्त्री भी कहते हैं मैं ब्रह्मा कुमारी हूँ पुरुष भी कहते उनका पति की मैं ब्रह्मा कुमार हूँ। तो देखो दोनों बहन भाई हो गए, बहन भाई के नाते से क्रिमिनल असाल्ट नहीं होते हैं ये बड़ी समझानी। ये देखो ऐसे ही आल बग्स....इनमे सभी स्त्री पुरुष बहन भाई क्यों, तुम भी हो ऐसे ही परन्तु अभी हो नहीं, थे ऐसे कहेंगे। फिर नहीं हैं, अब हैं ऐसे तो कहते तो है प्रजा पिता ब्रह्मा द्वारा परम पिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि, कौन सी मनुष्य सृष्टि? जरूर पहले पहले धर्म तो होंगा ही ब्राह्मणों का। ब्रह्मा मुख वंशावली, सर नेम ही ठहरा प्रजापिता ब्रह्मा। तो सरनेम सबका है प्रजापिता ब्रह्मा। परन्तु बरोबर तब जब सृष्टि रची जाती है तब वो ब्रह्मा कुमार कुमारी बनती हैं। पीछे तो मल्टीप्लिकेशन हो करके अनेक धर्म निकल जाते हैं। इस समय में सिर्फ तुम एक ब्रह्मा कुमार कुमारियाँ इस एक जनम में, फिर तो तुम्हारे जनम बदलते जाएँगे, कभी ब्रह्मकुमार बनेंगे कभी विष्णु कुमार बनेंगे कभी शंकर कुमार बनेंगे कभी बसर कुमार बनेंगे कभी टोपीवाला कुमार बनेंगे ये क्या बहुत नामी हैं बहुत होते हैं, न सुतार कुमार बनेंगे. धोबी कुमाँर बनेंगे फिर। अभी हो ईश्वर कुमार, पीछे बनेंगे दैवीय कुमार। पीछे तो नाम ही ऐसे होते हैं के बस तुम.......सब चले आते हो उसमे, ऐसे नाम नहीं होते हैं कभी सतयुग में नहीं। अभी ईश्वरीय तुम्हारे नाम बड़े बड़े अच्छे हैं। तो बाप कहते हैं जो डाएरेक्संस मिलते हैं उनको फिर अमल में भीं लाना चाहिए। देखो वो बाप समझाया है की बच्ची अभी सौदागरी भी तुम्हारी अभी बेहद की होनी है। आगे तो थोड़ी थोड़ी सौदागरी करते थे थोडा थोडा तुमको मिलते थे, अभी तुम बड़ी सौदागरी करते हैं तो बड़े ऊँचे पद मिलते हैं। तो विचार सूक्षम में तुम करेंगे न तो बहुत करके ये अबलाएं, माताएं, गरीब ये वर्सा बहुत पाते हैं। अच्छा, समझने वाले की समझ है, नहीं समझते हैं, कारण है। कारण बाप जानते हैं अच्छी तरह से। अच्छा टोली लाओ। बाप जानते हैं अच्छी तरह से की अच्छा हीरे का मुल्य वो जिसमे भाई थोडा छांटा, किस्मे काला छांटा। मैं तुमको अभी भी हमारे पास हीरे हैं, ऐसे मत समझना नहीं हैं हमारे पास हीरे हैं अभी भी, जो मैं तुम बच्चो को दिखला सकता हु मेगनीफ़ाईन ग्लासेज से, देखो इसमें दाग कितना है इसमें देखो झुन्झाद कितना हैं जाला जिसको कहा जाता है ये देखो कैसे साफ़ प्योर है चमक भी ऐसे रहती है, ये देखो डल बुद्धू इनके देखो चमक ही नहीं है उनमे मैं सब तुमको बता सकता हूँ अभी भी मेरे पास हैं। नशा तो होंगा देखने का इनके। मीठे मीठे सर्विसेबल बच्चो प्रित मात पिता बापदादा का याद प्यार गुड मोर्निंग। गुड मोर्निंग।