18-01-1965     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


गुड इवनिंग
यह 18 जनवरी का रात्रि क्लास है।
बाप बच्चों को, सालिग्रामों को या आत्माओं को या जीव आत्माओं को, फिर जीव आत्माओं का धर्म जरूर होता है कोई ना कोई। तो ये जीवात्माए हैं ब्राह्मण धर्म के ब्रह्माकुमार कुमारिया, तो यह ब्राह्मण धर्म के हैं। ऐसे ब्राह्मण धर्म वाले अपने को ऐसे नहीं सिर्फ कहते हैं ब्राह्मण कुमार फलाना ब्रह्मा कुमारी फलाना, ऐसे नहीं कहते हैं क्योंकि ब्रह्मा तो हो गया न, बहुत काल हो गया वो ब्राह्मण तो कह्ते ब्रह्मा हो गया था जब बाप ने ब्राम्हण कुल रचा, फिर उन ब्राह्मणों को देवता बनाया। है न। यों गाया जाता है ना मनुष्य को देवता बनाया। मनुष्य पहले किस धर्म के थे, तो यह फिर ये समझाया जाए कि पहले पहले मनुष्य शुद्र धर्म के थे फिर ब्रह्मा ने अपना बनाया तो ब्राह्मण धर्म के हो गए क्योंकि वर्ण है न ब्राह्मण तो वर्ण है, देवता वर्ण है और क्षत्रिय वर्ण है, वैश्य वर्ण है, शुद्र वर्ण है और ब्राह्मण वर्ण के बने हैं इसके पहले शुद्र वर्ण के थे। अभी ब्राह्मण वर्ण से देवता वर्ण में आते है। देवता वर्ण को कहा जाता है विष्णुपुरी। लक्ष्मी नारायण का राज। तो ब्राह्मणों को दान मिलता है। किस द्वारा? बाप द्वारा। बाप ब्रह्मा तो नहीं है ना, नहीं, बाप निराकार है। उनका कोई धर्म नहीं है। धर्म मनुष्यों के होते हैं। तो बाप बैठकर के समझाते हैं के तुम, हे बच्चे सो शुद्र धर्म के थे अब तुमको ब्राह्मण धर्म मिला है फिर इसके बाद में तुम देवताई गोद में जाकर देवता वर्ण में जाएंगे, फिर उतरेंगे, त्रेता में क्षत्रिय वर्ण के होंगे फिर वैश्य वर्ण के हो जाएंगे फिर शुद्र वर्ण के, फिर अभी ब्राह्मण वर्ण के बने हो। देवता वर्ण में जाना है। समझाना बच्चे। इस समय पवित्र रहना है क्योंकि देवता बनना है। हम सतयुग में पेड़ नहीं डाल सकते हैं यहां भारत में जब तलक हम देवता न बनें समझा न बच्चे। तो इस समय में हम ईश्वरीय औलाद हैं पीछे बनेंगे देवीय औलाद, दैवीय औलाद बनने के बाद फिर हम क्षत्रिय में, देवता धर्म के पहले ये ब्राह्मण में चोंटी, तो ये चोंटी। ये तो याद रह सकते हैं न बच्चे। अभी हम ब्राह्मण हैं, फिर देवता, फिर छत्रिय, फिर वैश्य, फिर शूद्र, यह तो याद रख सकते हैं ना बच्ची। इतना धर्म पूरा करके अभी हमने ये नाटक पूरा किया। अभी फिर ब्राह्मण बनें है, फिर देवता बनेंगे। कोई तकलीफ है समझने में। बिल्कुल समझने में तकलीफ नहीं है। तो अभी जब ब्राह्मण है तो फिर पवित्र रहना पड़े जरूर। क्योंकि जब तक कोई ब्राह्मण ना बने तब तक बहन भाई नहीं बन सकते हैं। तुम अगर ब्राह्मणी हो पती ब्राह्मण नहीं बनते हैं तो फिर तुम भाई बहन नहीं बन सकते हो, क्योंकि वह अभी शूद्र धर्म में है तुम ब्राह्मण धर्म में हो तो झगड़ा लगेगा समझा न। क्योंकि ब्राह्मण वर्ण वाले कच्चे होंगे, अभी पवित्र ना बने होंगे तो झगड़ा डालेंगे। पवित्र रहती हो, भले नहीं काम में जाते हैं, उनको कभी भी ईश्वर गोद नहीं लेता है। भाई पतित है ना। जब गारंटी करें कि हम पावन रहेंगे बाबा, है ईश्वर ,ईश्वर कहो या बाबा, बात एक ही है न। तभी बाप गोद में ले सकते हैं, नहीं तो नहीं ले सकते हैं। गारंटी जब करते हैं यहाँ। लिख कर के देते हैं प्रतिज्ञा, कि शिव बाबा हम पवित्र रहेंगे हम ब्राह्मण बनते हैं न तो शिव कुमार कुमारिया कभी भी विकार में नहीं जाती हैं। तुम मात-पिता की गोद में नहीं जाते तुम जो कहते हैं ना कि तुम मात पिता हम बालक तेरे तो अगर तुम अपवित्र रहती हो तो तुमको हम ऐसे नहीं कहेंगे कि तुम हमारी बच्ची हो बाबा मम्मा ऐसे नहीं कर सकते तो तुम ईश्वर की बच्ची नहीं ठहरी फिर ऐसे कहेंगे भले बाबा बाबा करती रहो परंतु ऐसे तो बाबा तो बहुतों को कह देते हैं बुजुर्गों को भी बाबा कह देते हैं तो तुम फिर बाप से वर्सा नहीं पा सकते हो तुम प्रजा में जा सकती हो समझे न। क्योंकि बाप को ना जानने से योग ना रखने से तुम्हारे विकर्म विनाश तो हो नहीं सकते हैं, विकर्म विनाश न होगा तो सजाए खाएंगे सजाए खाकर के फिर तुम चली जाएंगी प्रजा में। फिर जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना प्रजा में अच्छा पद मिलेगा। यह तो है तो राजयोग, राजाई लेने का योग है परंतु तुम पवित्र ना बनेंगी तो तुम राजाई न ले सकेंगी। क्यों?क्या सुना? जो भी यह मुरली बजती है, जो पवित्र रहेंगे उनके ही बुद्धि में यह मुरली बैठेगी, नहीं तो निकल जाएगी। कितना भी कोई सुने पवित्र ना रहेंगे तो निकल जाएगी। क्यों? फिर दूसरे को समझाना पड़े की भाई पांच विकारों को जीतो तो कोई कोई कहे नहीं सकेंगी की जीतो, क्योंकि जो खुद नहीं जीत सकीं हैं तो दूसरों को क्या कह सकेंगी कि जीतो। तो ये मूल बात यह है। कोई यहां से भी रथ निकाल करके प्रतिज्ञा करते हैं कि बाबा मैं अपवित्र कभी नहीं बनूंगा, श्रीमत पर चलूंगा। तो श्रेष्ठ बनेंगे तो जो पवित्र नहीं बन सकते या तो कहते हैं काम शत्रु है बच्चों जीतो वह गीता मे अर्थ है ना बच्चे जीतो। तो अगर नहीं जीतेंगे तो फिर राजयोग नहीं पाए सकेंगी। ज्ञान जितना सुन सकेंगी उतना ही तुम पा सकेंगी। बच्ची अगर पवित्र रहती रहेंगी, ब्रम्हाकुमारी तो है अगर पवित्र रहती रहेगी तो राज्य ले सकती है, अगर नहीं तो फिर तो प्रजा में चली जाएगी। तो यहां तो राजयोगी है न, प्रजा योगी तो नहीं हैं ना फेल होते हैं तो फिर प्रजा में चले जाते नापास होकर। कहते हैं ना बच्चे काम शत्रु हैं इनको जीतो तो बच्चों को भी ऐसे ही सबको कहना पड़े। तो ब्राह्मण कुटुंब हो जाए फिर और ब्राह्मण कुटुंब को बाप के बच्चों ने अच्छा नियुक्त किया है जैसे जो पवित्र बन जाए। समझ गए ना बच्चे। अबलाओ के ऊपर विश ना देने से अत्याचार होते हैं। तो लिखा हुआ है बरोबर के अबलाओ के ऊपर जरासंधि, शिशुपाल, कुंभकरण ये कंस है ये अबलाओं को तंग करते हैं विकार के लिए। तो बाबा को बहुत हैं जो लिखती हैं कि बाबा अब हमको इस कंस, जरासंधि शिशुपाल ये नाम हें ना इनकी जेल से, रंज से कब छुड़ाएंगे। हम विष नहीं देते हैं तो ये मारते हैं हमको। तो बाबा कहते हैं ये तुम्हारा ड्रामा में पार्ट है। अत्याचार सहन करना पड़ेगा। तो धीरे-धीरे आस्ते आस्ते अपन को छुड़ाते जाओ। समझा ना बच्चे। फिर बाबा समझाते हैं की नस्टोमोहा होना पड़ेगा। बच्चों में मोह नहीं जाएगा। और एक में बुद्धि का योग लगाएंगे, एक ही को याद करेंगी दूसरा न कोई और पवित्र रहेंगी, भले रहो कुटुंब व्यवहार में परंतु पवित्रता सहित। क्योंकि यह मंजिल थोड़ी ऐसी है और याद भी करना पड़े, बाप को। क्योंकि वर्सा मिलना है ना बच्ची। जबकि कुमारिया अच्छा लेती हैं ये तो सभी भट्टी में पडी थी ना तब ये उनसे बची हैं। थी बहुत परंतु जैसे ईट का वो होता हैं न भट्टी तो जब ईंट खोलते हैं तो सब उसमें एक जैसी नहीं होती है कोई टूट फुट जाती है कोई आधी पक्की होती है कोई बिल्कुल पक्की, नंबरवार् होती है सब एक जैसे नहीं होती है।तो ये भी देखो कितना पाकिस्तान में रही, बक्स में रहे तो भी बहुत थोड़े पके रहे, फिर कोई अच्छे पके रहे कोई थोड़ा उनसे कच्चे कोई उनसे कच्चे कोई तो एकदम कच्चे के भी कच्चे तो फिर कच्चे के कच्चे वो चली जाती हैं भाग जाती हैं। तो यह सारा राज समझने का है बुद्धि अगर पवित्र न रहेंगे तो फिर बुद्धि में ठहर नहीं सकेगा। फिर इतना राजाई पद नहीं पाए सके। तीव्र पुरूषार्थी तो राज इंद्र से यही कहेंगे कि हम तो राजाई पद पाएंगे। तुम्हारे में ये कौन है बॉम्बे में रहते या दिल्ली में रहते हैं। अभी देखो है स्कूल तो एक ही है ठीक है ना अभी वो रज़ाई पद पा लेंगे। अभी तुम भी अगर गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए अगर पवित्र रह के दिखलाओ, फिर बाप को याद करते रहो, और फिर सर्विस करते रहो, ऐसे बहुत है तुम्हारे जैसे घरो वालीं करते रहो तो फिर रज़ाई पद पाए जाएंगे। क्योंकि फिर बुद्धि में रहते हैं कि ये सब कब्रिस्तान हो जाएगा, ये, ये जो बाबा हमारे लिए भारत को स्वर्ग बनाया था, अब ये नर्क बन गया है, पुरानी अब तो दुनिया हो गई है। अभी बाबा स्वर्ग के लिए स्थापना कर रहे हैं, जब स्थापना पूरी हो जाएंगी न तब फिर ये सृष्टि ना रहेगी। इस सृष्टि का विनाश हो जाएगा फिर इसके बदले मैं नई सृष्टि निर्णय विश्व की राजधानी बनी। ज्ञान में आते हैं ना बच्चे पढ़ाई पड़ता है तो फिर भक्ति छूट जाती है। दुर्गति कहा जाता है भक्ति को सद्गति कहा जाता है ज्ञान मार्ग सर्व का सद्गति करने बाला अभी सद्गति माना इस समय में जो दुर्गति है उससे छुड़ाने वाला व रावण के राज्य से छुड़ाने वाला। अंग्रेजी में कहते ही हैं लिब्रेटर्स। किस से लिब्रेट करते हैं तो यह कहते हैं भाई आसुरी राज से, अंग्रेजी में कहा जाता है शैतान से, वह लोग शैतान कहते हैं।