20-02-1965     दिल्ली दरबार    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम ब्राह्मणों की दिल्ली दरबार से नमस्ते, आज शनिचरवार फेब्रुअरी की बीस तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-

छोड़ भी दे आकाश सिंघासन..........
बच्चो ने ही गीत सुना। बच्चो ने ही बनाया हुआ है, बच्चो ने ही सुना। याद करते हैं अपने परमप्रिय परमपिता को। याद करते हैं, के फिर से ये माया की परछाई पड़ गई है, प्रवेश कर गई है। अथवा ये रावण का राज हो पड़ा है। सभी दुखी दुखी दुखी है। कहते हैं अपन को, हम भ्रष्टाचारी हैं, पतित हैं, सब कहते हैं। जरूर इस समय 5000 वर्ष पहले क्योंकि कल्प कल्प बोलते हैं, कल्प कल्प कल्प के संगम युगे आता हूँ। अभी फिर भी कहते है की देखो बच्चे, फिर भी कल्प के संगम युगे आया हुआ हूँ। बाप कहते हैं बच्चे बच्चे बच्चे बच्चे बाप आकर कर के अभी आथत देते हैं। अभी बेफिक्र रहो बच्चे। ये तो मेरा ही पार्ट है दुनिया में जो बुलाते हैं बाबा आओ, आकर के फिर से राजयोग सिखलाओ और आए कर कर के इस पतित दुनिया को पावन बनाओ व बाबा आए कर कर के इस नाटक, ऑर्फ़न लाइफ, निधनके, ऑर्फ़न कहा जाते है, जिनका माँ बाप न हो,. तो उनका क्या हाल होते हैं, आपस में घर में लड़ते झगड़ते रहते है। ये तो है बड़ा घर, बेहद का घर। इसमें, इस समय में बड़े दुखी, देखो ये सभी जो अपन को गुरु कहलाने वाले हैं ये धर्म के बड़े बड़े, ये आपस में राय कर रहे हैं की इस भारत में, ये जो अशांति हो गई है, लड़ाई मारामार, सिर्फ भारत में नहीं है बच्चे.. ना! सारी दुनिया में... तो फिर जरुर बच्चो को सुख देने के लिए, इस दुःख से पार करने के लिए व दुःख मिटाने व इस रावण के राज्य से... ये परछाई, ये रावण राज्य इसको कहा जाता है माया का राज, इससे छुड़ाने के लिए बोलते हैं ये तो मेरा फर्ज है। देखो गाते हो न की फिर से आए करके हमको... अभी किसको कहा फिर से, ये तो सभी ने बैठ करके बाप को कहा। हम सभी का बाप, वर्ल्ड का फादर वो तो बाप है न बच्ची। सभी आत्माओं का एक ही बाप। तो सभी कहते हैं, हे बेहद के बाबा, अभी ऊपर से अपना तख़्त छोड़ ब्रह्म महतत्व, वहां रहते हैं न बच्ची। ये सभी आत्माएं ब्रह्म महतत्व में रहते हैं। जैसे ये आकाश में रहते हैं न तत्व में, ये नाटक होते हैं, फिर यहाँ तो जीव आत्माएं हैं, वो स्थान है आत्माओं का। ये भारत इस समय में नर्क है। नर्क भी कौन सा बच्चे रोरव नर्क। वो एक यहाँ शास्त्र हैं न बच्चे, गरुण पुराण। उनमें ये कथाएं हैं। परन्तु रौरव नर्क कोई नदी वदी नहीं है। देखो ये विषय सागर, यानी विषय में गोता खाते हैं सभी। और इस समय में, जो भी मनुष्य मात्र इस विषय सागर में, ना!... दुनिया है, कोई नदी वदी नहीं है, सभी एक दो को काटते मारते दुखी करते ही रहते हैं। बच्चे बाप को, पति स्त्री को, स्त्री पति को, भाई भाई को, देखो कितने हैं दुखी यहाँ। तो क्या होता है बाप आ करके समझाते हैं की बच्चे ये ड्रामा हुआ है न, बना हुआ है सुख और दुःख का। ऐसे नहीं कहा, अभी अभी स्वर्ग है सुख है, अभी अभी नर्क है स्वर्ग है या जिसके पास बहुत धन है वो स्वर्ग में है जिसके पास नहीं सो नहीं। नहीं, सभी धनवान भी दुखी है। क्योंकि दुःख जरुर उठाते हैं, बीमारी है सिमारी है कोई मरा, कोई रोया, कोई पीटा, कोई ने गोली मारी। देखो तो ये सारा क्वेश्चन है की सारी ये जो दुनिया है दुखी है। क्यों दुखी है बाप आकर के कहते है तुम नास्तक बन गये हो। तुम्हारा जो धनी मात पिता जिसके लिए गाते भी हो, तुम मात पिता हम बालक तेरे तुम्हारी कृपा ते ..... क्योंकि जब फादर है तो मदर भी है न बच्चे। तुम्हारी कृपा ते सुख घनेरे... बस गायन मिसल, बाकि मालूम नहीं है इनको की मात पिता कौन हैं। किसको याद करें। किसको भी पता भी नही है शिवलिंग के ऊपर जाएंगा, त्वमेव मातास्च पिता..., लक्ष्मी नारायण के पास जाएंगा त्वमेव मातास्च पिता, छोटे बच्चे राधे कृष्ण के पास जाएंगा तभी भी कहेंगे त्वमेव मातास्च पिता, पीछे पिछाड़ी में बैठ करके त्वमेव मातास्च पिता बंधुस्च सखा। तो बरोबर बाप बैठ करके समझाते हैं बच्चे ये जो भी तुम्हारे आदि लौकिक में भिन्न भिन्न के मात-पिता भाई वगैरह वगैरह गुरु गोसाई, यह सब है निधनके, ऑर्फन लाइफ जो बाप को नहीं जानते हैं और कहते भी आते थे, शिव बाबा हम नहीं जानते, रचता को अर्थात बाप को उसकी इस रचना को यानि ये मार काट, ये सृष्टि का चक्र, माया का चक्र नहीं, माया कहा जाता है रावण को, पांच विकारों रूपी रावण को माया कहा जाता है, धन को संपत्ति कहा जाता। ऐसे नहीं कहना है की इसके पास बहुत माया है यह तो उनको और ही उल्टा कर दिया नहीं, उनके पास बहुत संपत्ति है। माया है ही रावण, पांच विकारों को माया कहा जाता है और धन को संपत्ति। संपत्तिवान भव, आयुष्मान भव ऐसे कहते हैं न पुत्रवान भव, चिरंजीवी भव। तो देखो यह कौन दे सकते हैं आशीर्वाद? यह तो बाप को देना है और सबको देना है न। कोई गुरु थोड़ी है जो खाली फ़ोलोवर्स को देंगा.. नहीं। ऐसा कोई गुरु नहीं है क्योंकि ये जो गुरु है ना वह है भक्ति मार्ग वाले गुरु। ज्ञान सागर तो एक ही है ना बच्चे, जिसके लिए देखो गीत कितना अच्छा है सभी गाते रहते हैं देखो जब भी गीता सुनाते हैं न तभी बस गीता सुनाके कह देते हैं कृष्ण भगवानुवाच्य। श्री कृष्ण को भगवान.... भगवान को ऊपर वाले को बुलाते हो की रूप बदल कर के आओ, रूप तो हम और तुम, ये दादा हैं, ये सभी ये तो बदलते हैं न, निराकार से यहां पर आकर साकार बनते हैं, फिर जो निराकार से साकार बनते हैं वो ही कहेगे न, आप भेष बदल कर के आओ। मनुष्य तन में आएँगे न, वो बैल के ऊपर तो नहीं सवारी होंगा, जैसा चित्र लगा दिया है बैल के ऊपर सवारी... नहीं। बोलता है तुम कहते हो बाबा, आप भी हमारे मुआफिक रूप बदल कर मनुष्य तन में तो आओ न, तो बाप आकर के फिर समझाते हैं बच्चे, मैं कोई बैल में नहीं आता हूँ, न कोई मच्छ कच्छ ये जन्म में आता हूँ बहुत ही ग्लानी की है हमारी। नहीं मैं आता ही हूँ....., न कोई मैं मच्छ कच्छ में.... बहुत ही ग्लानी की है हमारी, नहीं मैं आता ही हूँ मनुष्य तन में, वो मनुष्य कौन है, उनकी बैठ कर के परिचय देते हैं, के बच्चे मैं आता ही हूँ..... क्यों की पहले पहले तो मनुष्य सृष्टि रची जाती है प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा। प्रजापिता ब्रह्मा को ही प्रजा पिता कहेंगे, विष्णु को प्रजापिता नहीं कहेंगे, शंकर को प्रजापिता नहीं कहेंगे। तो दो बाप हुआ एक शिव परमपिता परमात्मा निराकार, निराकार आत्माओं का जो कहते रहते हैं है बाबा, है परमपिता परमात्मा, है अनाथों को सनाथ करने वाले आओ, क्योंकि पता नहीं है बच्चो को तभी तो पुकारते रहते हैं, कब आएंगा कोई पता नहीं है व् क्योंकि शास्त्रों में लगाए दिया है बहुत बातें एकदम सतयुग की आयु इतनी है, कलयुग की इतनी है, फलाना... लम्बा चौड़ा.., तो बेचारा कब समझे की कब आएँगे। तो क्या हुआ फिर, शास्त्रों के कारण ये जो बैठकर के इनमे डाले हैं अयथार्थ बातें, उनके कारण... देखो भारत तो घोर आन्धियारें में हैं, तो फिर गाते है ज्ञान सूर्य प्रगटा.. अभी ये तो सूर्य नहीं हैं न बच्चे, ये कोई देवता भी नहीं है, ये इनको भी गाते हैं सूर्य देवताएं नमः, चन्द्र देवताएं नमः, सितारे देवताएं नमः। अब ये देवताएं थोड़ी हैं देवताएं देवताएं हैं वो तो फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर को देवताएं कहते हैं, अरे ये मनुष्य हैं और वो बाप है जो सबसे ऊंचा.... उनकों ही सबसे ऊंचे ते ऊँचा भगवन... तो जरूर सबको, ये जो ड्रामा है न बच्ची ये खेल इसको कहा जाता है, ये भी तो समझना चाहिए न, कई ये खेल समझते हैं परन्तु हर एक युग को बहुत वर्ष दे दिया है, लाखो,.. अरे लाखो वर्ष अगर युग का हैं तो ख्याल तो करो की इस समय में कितने मनुष्य होते। द्वापर के इतने लाख फिर उसमे मनुष्य आएँगे न, त्रेता में इतने लाख, द्वापर में इतने,.. ये जो चालीस हजार बरस की पता नही कोई लाख कहते हैं। अरे तो मनुष्य थोड़ी..., जगह नहीं है अभी रहने का, खाने क लिए नहीं है, भीख मांग रहें हैं, भीख मांगेंगे नहीं? जो ओर्फंस जिनका धनी धोरी न होंगा, वो क्या करेंगे, तो ये खेल बना हुआ है बच्चे, भारत के ऊपर... भारत अनाथ, भारत पावन, भारत पतित भारत साल्वेंट, देवी देवता पवित्र, फिर भारत अपवित्र, भारत में राजाओं के राजा कोई और खंड में नहीं होते हैं, जो पतित राजाएं पावन राजाओं के चित्रों को बैठ करके नमस्ते या मंदिर बनावें, नहीं ये भारत, भारत में ही है। तभी बाबा कहते हैं मैं तुम्हे अभी राजाओ का राजा, न पतित राजा, पतित नहीं, पतितों का भी जो राजा हैं जिनको सभी नमन करते हैं वो मैं तुमको देवता बनाता हूँ। देवता बना करके...वो हैं पतित, वो हैं पावन। तो देखो जो भारत है जिसमे पावन डायनेस्टी सूर्यवंशी, चंद्रवंशी फिर पतित डायनेस्टी द्वापर वैश्यवंशी और शुद्रवंशी तो ये तो भारत के ऊपर हैं न, कोई उनके उपर ये बाते थोड़ी हैं बच्ची, नहीं वो तो बायप्लांट हैं.. वो पीछे आते हैं वो हर एक अपने धर्म को जानते हैं, हर एक अपने धर्म के धर्म स्थापक को जानते हैं। एक भारत ही है जो अपने धर्म और धर्म के स्थापकों को नहीं जानते। कौन सा धर्म स्थापन किया, उस धर्म की रस्म रिवाज क्या थी, कैसे श्रेष्ट से धर्म श्रेष्ठ यानी सबसे ऊंचा धर्म, पहला नंबर वन ये तो बिरादरियां हैं पीछे मल्टीप्लीकेशंश । तो कहा भी जाता है दैवीय धर्म श्रेष्ठ था, दैवीय कर्म श्रेष्ठ था। कोई भी भृष्ट कर्म नहीं था वहां भ्रष्टाचारी होते ही नहीं है, तो देखो वही धर्म श्रेष्ट, कर्म श्रेष्ट देवी देवताएं वो ही फिर आकर के देखो भारत में है न, ये धर्म भ्रष्ट। पता नहीं हमारा धर्म कौन सा है। हिंदू धर्म..... अरे हिंदू तो हिंदुस्तान का नाम है ना, वो कोई धर्म थोड़ी होते हैं। जैसे यूरोप में रहने वाले कहेंगे यूरोपियन धर्म या चिनाई धर्म तो धर्म तो धर्म स्थापन करने वाले होते हंह और हर एक धर्म का बच्चे एक ही शास्त्र, उसको कहा जाता है धर्म शास्त्र। तो बाप समझाते हैं की बच्चे पता है कौन से धर्म मुख्य हैं यहां? एक डीटिज्म है फिर इस्लामिज्म फिर बुद्धिज्म फिर क्रिश्चनिज्म और फिर यह डीटिज्म, बस चार मुख्य धर्म है और तो कोई धर्म वास्तव में निकलते हैं छोटे छोटे छोटे छोटे उसमें। सबसे पहले कौन सा... डीटिज्म सतयुग का तो जरूर सतयुग स्थापन करने का कर्तव्य तो बाप करेगा ना बच्चे, हेवनली गॉडफादर। तो बैठकर के समझाते हैं देखो तुम बच्चों को कल्प कल्प जब संगम युग आता है मैं युगे युगे नहीं आता हूं ना ना, कल्प के एक ही संगम युगे आता हूं। तुम बच्चों को देखो, तुम बच्चे हो रहे हो ना बराबर। बच्चे और बच्चियां जानते हो कि अभी हम सनाथ बन रहे हैं, हमारा अनाथों का नाथ सनाथ बनाने वाला बाबा, बेहद का बाबा कोई मनुष्य नहीं। नहीं, मनुष्य मनुष्य को बच्चे अल्पकाल क्षणभंगुर सुख दे सकते हैं। पीछे बाप टीचर गुरु जो भी हो अल्पकाल क्षणभंगुर। वो कहते हैं सन्यासी अल्पकाल क्षण भंगुर काग विष्टा समान, हे न, थोडा अभी बच्चे समझते हैं क्या सुख है, यहाँ दुःख ही दुःख है त्राह ही त्राह है तो इसको कहा जाता है अल्पकाल क्षण भंगुर। भारत में, भारत में तो सदा सुख। तो देखो बातें तो तीन याद करनी होती है, तो ये भारत यह बरोबर सुखधाम था। अभी दुख धाम है और आए थे शांति धाम में बाबा अभी क्या कहते हैं? कहते हैं बच्चे एक आंख में रखो अपना स्वीट होम शांति धाम, स्वीट होम कहा जाता है बाबा का घर, एक आंख में, लाइट हाउस बनों लाइट हाउस देखा है पोर्ट का। वो बताते हैं बत्ती फिरती है देखो, एरोप्लेन में बत्ती फिरती है ना तो क्या होता है ऐसे ऐसे तुम्हारे एक आँख में अभी होना चाहिए शांतिधाम और दूसरी आंख में सुखधाम और यह तो दुखधाम हैं उनको थोड़ी याद करना है तो हमेशा बुद्धि में यही रखो कि अभी हम जाते हैं शांति धाम में नाटक पूरा होते हैं 84 का खलास हुआ, पुराना चोला हो गया, पुराना भूल गया, सब पुराना ही पुराना। रहो भी ग्रहस्त व्यवहार में, समझा न। छोड़ कर कहां जा कर रहेंगे, वह तो निवृत्ति मार्ग वाले जंगल में जाकर रहते हैं। ये बेचारी मम्माएँ और बच्चियाँ, ये जंगल में थोड़ी जाकर रहेंगी.. भी बाबा कहते बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए कमल फूल समान पवित्र रहो। बस मूल बात है पवित्र रहकर करके मैं जो तुम्हारा बाप हूं, आया हूं फिर पवित्र हेवेन स्थापित करने, प्योरिटी थी ना भारत में, अभी इंप्योरिटी है रावण राज्य, अभी रावण राज्य खलास होते हैं। क्योंकि आधा कल्प है रावण राज्य आधा कल्प है रामराज्य। जब वो आते हैं तो देखो पीछे दुःख शुरू होते हैं कलाएं कमती होती जाती हैं। पहले अभी इस समय में तुम ईश्वरीय गोद में हो। यह ईश्वर फैमिली है जैसे कुटम्ब बाबा अभी इस समय तो यह बात नहीं हो सकती है ना, नहीं। बाबा.. फिर बाबा क्या अर्थ कहते हो, अच्छा बाबा तो हो गया शिव बाबा, फिर प्रजापिता ब्रह्मा बाबा, अच्छा लौकिक भी बाबा बाबा ने समझाया है ना, इस समय में तुमको तीन बाप हैं, तुमको..., दूसरे को नहीं कोई को। दूसरे तो कोई जानते नहीं हैं तुमको तीन.. एक लौकिक, एक पारलौकिक निराकार, एक फिर प्रजापिता ब्रह्मा ये हो गये तीन बस। फिर और कोई तो गायन है नहीं। ऐसे और तो हैं किसको भी कह दो बापू, ये देखो ये म्युन्सीपाल्टी का ये है भाई ये फादर, जो मेयर होते हैं ना उनको भी फादर। ऐसे तो फादर बहुत होते हैं कोई भी बुड्ढे को कहेंगे पिताजी, हाँ.. ऐसे कह देंगे। नहीं, यह रियलिटी में सब बाप बैठकर के समझाते हैं। बाप जो सबको, मनुष्य मात्र को, यह मनुष्य है ना तो बाप जो इसमें प्रवेश किया है रूप बदल के किया है, मनुष्य के तन में आया हुआ है, वह बैठ करके समझाते हैं बच्चो को तुम, मेरे बच्चे, कहते भी.. सुनाते भी.. बात भी आत्माओं से करते है। इसको कहा जाता है रूहानी सर्जन, रूहों को इंजेक्शन देने वाला। वह कहते हैं आत्मा निर्लेप है, अरे..! आत्मा निर्लेप कैसे हो सकती हैं? कहा जाता है की संस्कारों अनुसार जन्म मिलते हैं, और पीछे फिर आत्मा निर्लेप कैसे रही? तो देखो ये भी ठीक नहीं। ये भी बेकायदे समझा देते हैं जनम वह बाप को भूल जाते हैं, भूलाते हैं बेमुख कर देते हैं। तभी बाबा कहते हैं, हे मेरे लाडले बच्चों, अभी देखो तुम जानते हो कि देखो तुमको परम पिता, परम शिक्षक.. देखो पतित पावन, परमपिता अभी जानते हो ना परमपिता भक्ति मार्ग में सभी याद करते हैं उनको। सब सब भगत साधु साधु क्या करते हैं साधना करते हैं। साधु क्या करते हैं, मंडलेश्वर क्या करते हैं, वो जाते हैं कुंभ के मेले में और नदियों के ऊपर स्नान करने, पाप धोने। पतित है ना फिर वह गुरु तो नहीं हो सकते हैं ना क्योंकि खुद ही पतित हैं, जाकर के स्नान करते हैं। सभी को ले जाते हैं मेले में, कुम्भ के मेले में। अभी कुंभ के लिए बाप ने समझाया था ना कि वह थोड़ी कुंभ का मेला है, वह सागर नदियों से जो पानी निकलता है, नहीं-नहीं कुंभ का मेला कौन है? आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुंदर मेला कर दिया जब सतगुरु मिले दलाल। तो यह है कल्याणकारी आत्माओं और परमात्मा का मेला। इसको कहा जाता है कुंभ या कॉनफ्लुएंस और वह देखो क्या करते हैं कितने लाखों जाकर के डूब के मरते हैं, क्या करते हैं बड़ी दुखी होते हैं। यहाँ देखो तुम कैसे बैठे हुए हो मौज से। इस पढ़ाई में कोई दरकार है तुम्हारे वेद की शास्त्र की ग्रंथ की?, यहाँ देखो पुस्तकें इतनी है, यहाँ वेद ग्रंथ के लिए कितनी पुस्तक हैं, बात बता नहीं सकते, यहां देखो कुछ भी नहीं, जो अनपढ़ हैं फिर जो पढ़ा है, फिर गया जाता है जो पढ़ा सब भूलो, बाकि जो तुम कभी पढ़ा ही नहीं न वो सुनो बाप से। हिअर.. जो भी सुनते आते हो, हिअर नो इविल.. सी नो इविल.. टोक नो इविल। तो भला क्या करें फिर... मैं जो तुमको समझाऊं वो समझो, फिर बाकि सब तुमको जो भी सुनाते हैं न, भूलों क्योंकि ये पतित पावन की बात है न बच्चे। जो भी कुछ सुनाते है न, बस कुछ काम के नहीं है। वो वेदों की कांफ्रेंस अभी देखो कांफ्रेंस हो रही है, अभी देखो बहुत करते हैं कांफ्रेंस। ट्रान ट्रान ट्रान ट्रान ट्रान ट्रान कोई फल ही नहीं निकलता है। बाप बैठ कर के समझाते हैं बच्चे, तुम सब मिलकर के कोशिश करो की पीस स्थापन हो। परंतु यह तो बाप के ऊपर है ना, सभी बच्चों को मुक्ति जीवनमुक्ति देना, सभी को। यह तो वर्ल्ड का क्वेश्चन है ना। वर्ल्ड में पीस चाहिए ना। तो वर्ल्ड के फादर का काम है या तुम लोग का काम है, जो इस समय में पतित हो फलाना हो ड्रामा अनुसार। ड्रामा है न बच्चे, ड्रामा को कहा जाता है री ओरडेंड वर्ल्ड ड्रामा व जैसे गीता के कायदे व कथन अनुसार अभी गीता का भगवान कौन, सो ही बिचारे नहीं जानते हैं। जो धर्म होता है, वो जानते हैं भाई हमारा धर्म किसने स्थापन किया, हमारा धर्म शास्त्र क्या है, अभी भारत को वो ही पता नहीं की हमारा धर्म संस्थापक कौन है। वंडर है, जो ऐसा कि बाप ने स्थापन किया और राजयोग बस उसका नाम डाल दिया, समझे ना, तो जब एक ही शास्त्र खंडन हो गया तो बाकी तो सभी खंडन हो गया। तो देखो, भागवत महाभारत अभी महांभारत क्या है? युद्ध फलाना और युद्ध के मैदान में घोड़े की गाड़ी और अर्जुन को बिठा दिया वहां और कृष्ण को बैठा दिया रथी। अरे पर रथ को रथी सो तो बाप आएंगा न। ये रथ इसको अश्व भी कहते हैं। इसमें बाप आएंगा सवार होंगा या भगवान बैठ करके गाडी में.. । पलटने लगी पड़ी हैं जैसे आजकल पलटने दिखलाते हैं न, बिठा के करके और ये अर्जुन को भगवान ने, अरे भाई अर्जुन ने भगवान को क्या राजयोग सिखलाया। बहुत होंगे न, ढेर होंगे, राजाई स्थापन होती है न, बस गाडी में बिठाए दिया, हांथी घोड़े की गाडी में, जैसे पहले वायसराए और ये सब यहाँ बैठते थे हांथी घोड़े की गाड़ी में हाँ, तो गाडी बनाए दी, तभी बच्चे बाप कहते हैं आकर के कि मैं ब्रह्मा द्वारा.. हैं विष्णु ब्रह्मा पीछे ब्रह्मा, मैं ब्रह्मा द्वारा जो भी ये वेद, ग्रंथ शास्त्र वगैरह हैं न, जिनमे कोई सार नहीं है। देखो तुम पढ़ते पढ़ते पढ़ते पढ़ते कितने भ्रष्टाचारी बन गये हो, अभी मैं बैठ करके तुमको इन सब का सार समझाता हूँ, गीता किसने गाई, फिर ये भागवत में क्या लिखा है, गाली ही गालियां है कृष्ण फलाना किया, गोपियों का हरण किया, ये किया, फिर गोपियों का हरण किया, इतनी शादी की, फलाना किया, सर्प ने डसा,... भ्रिष्टाचारी क्या बैठ कर के.. इसमें है कुछ सार बच्ची? पढ़ते आए हुए हो क्या हुआ तुमको, भ्रष्टाचारी बन गये। फिर भागवत.. अभी कृष्ण के तो चरित्र कैसे हो सकते हैं। तो देखो गाया जाता है परमपिता परमात्मा तुम पतित पावन हो, मनुष्य श्रृष्टि बीजरूप माने बाप हो सत हो यानी ट्रुथ कहेंगे, कहने वाले हो, सत्य बताने वाले हो, चेतन हो। देखो बीज हो वो कोई झाड़ का बीज नहीं बोलते हैं नहीं, चैतन्य हो ज्ञान का सागर हो तो आत्मा में है न सब कुछ सारा नोलेज आत्मा में। तुम्हारे में भी आत्मा में धारण होती है न बच्चे, जिस अनुसार संस्कार अनुसार तुम फिर जाकर के पढ़ाई पढ़ कर के राजा बनते हो। संस्कार उसमे होते हैं न तो बाबा में भी तो संस्कार हैं न ज्ञान का , कौन सा ज्ञान सृष्टि की आदि मध्य अंत का ज्ञान देते हैं, तुम बच्चो को त्रिकालदर्शी बनाते हैं, तीनों कालो का, तीनो लोकों का ज्ञान देते हैं इसीलिए तुमको त्रिकालदर्शी भी कहा जाए क्योंकि तीनों लोको का तीनों कालों का तुमको अभी पूरी नॉलेज है। भाई कहां से हम आते हैं, भाई मूल वतन से आते हैं उनको कहा ही जाता है इनकॉरपोरियल वर्ल्ड। अगर ब्रह्म सिर्फ कह दें, वो तो तत्व है न, तो तत्व थोड़ी कोई परमात्मा होते हैं ये तो सन्यासी लोग तो तत्व ज्ञानी, यानी जहां हम रहते आत्मा तत्व में उनका ही उनको ज्ञान है की वो परमात्मा है। अहम् ब्रह्म समझा न, । बाप बैठ करक समझाते हैं ये ड्रामा अनुसार ये भक्ति मार्ग के शास्त्रों का ये समझानी है गुरुओं की, जिनमे कोई सार नहीं क्योंकि पढ़ते आए हो, पढ़ते आए हो जन्म जन्मान्तर और गिरते आए हो तो असार ठहरा न। सार किस में है ? हाँ बाप आकर के जब ये नोलेज सुनाते हैं जिसका नाम रख दिया है गीता, कोई तो नाम रखेंगे न। तो आकर के हम बच्चों को सनाथ अर्थात 16 कला संपन्न, सर्वगुण संपन्न, संपूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमो धर्म यथा राजा रानी तथा प्रजा बनाते हैं। तो देखो यह क्या होता है राजधानी स्थापन होती है। और कोई भी धर्म स्थापन करने वाले कोई राजधानी बैठकर नहीं स्थापन करते हैं, नहीं राजधानी यहां स्थापन होती है पवित्र यहाँ बनना है बच्चों को अच्छी तरह से। ऐसे नहीं कि सतयुग में आकर के पवित्र बनेंगे, सतयुग में तो होते ही पवित्र हैं न। बोलते हैं संगम युग में आता हूं, वह भी कल्प के संगम युगे, युगे युगे नहीं, नहीं अच्छा युगे युगे तो भी चार दफा, चलो पांच दफा, तुम फिर कह देते हो कच्छ का, मच्छ का भित्तर का ठिक्कर का ये तो गाली देनी हुई। तब देखो गीत भी... गीत भी कहते हैं न बच्चे यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत.., किसने कहा... बाप।, जब ग्लानी हो जाती है मेरी, मेरी मेरे बच्चो की मेरे देवताओं की रामचंद्र को कितनी गाली सीता को कितनी गाली सब को गाली देते हैं। , परमात्मा को गाली दिया सर्वव्यापी कुत्ते बिल्ली में. सब में जास्ती और नीचें चलो शंकर पार्वती के पिछाड़ी फ़िदा हुआ, ब्रह्मा सरस्वती के ऊपर फ़िदा हुआ। देखो ये गालियाँ हैं न बाकि विष्णु के लिए कुछ कह ही नहीं सकते क्योंकि वो तो देवता है न। तो ब्रह्मा को गाली दिया गोया विष्णु को गाली दिया। क्योंकि ब्रह्मा सो विष्णु विष्णु सो ब्रह्मा गोया उनको ही गाली दे दिया, गाली ही देते रहते हैं, परंतु वह बोलता है यह ड्रामा है बच्चे, यह बना बनाया खेल है सो बाप आ करके समझाते हैं दूसरा तो कोई जानता ही नहीं है। वो कहते है ना, न रचता न रचना के आदि मध्य अंत को जानते हैं समझा न। तो न रचता न ना बाप को जाना तो नास्तिक, फिर नास्तिक माना ही ऑर्फन। तो इस समय में जो भी दुनिया है बाप समझाते हैं जो भी बच्चे हैं यह सभी हैं ऑर्फ़न, ऑर्फ़न लाइफ कहो क्यों, बच्चे जब मां बाप नहीं होते हैं तो देखो कितने लड़ते झगड़ते हैं। तभी कहा जाता है तुम्हारे कोई धनी धोरी है? समझा न, तो वो तो रही हद की बात, ये है बेहद की बात। तो बाप जानते हैं न बरोबर तो कोई भी नहीं जानते फिर, इसलिए देखो कितने लड़ते झगड़ते हैं। बाप जानते हैं ना इस नालेज को अभी आते है तुम बच्चो को नॉलेज देकर करके फिर से पवित्र बनाके फिर तुमको ढंग का बनाए देते हैं। फिर नो लड़ाई नो झगडा नो मारामारी । भारत के उपर ये सारी अक्शारी कहो ड्रामा कहो, ये ड्रामा तो अक्षर ही नहीं कोई जानते नहीं तो अंग्रेजी का अक्षर बहुत ही अच्छा है, रीओरडीनेंड इम्पेरिशेबल वर्ल्ड ड्रामा, फिनिश। कोई भी माने जो भी इस समय में हैं एक्टर्स, ये अभी आएँगे ये सभी आत्माएं इन सबको अविनाशी पार्ट मिला हुआ है बजाने का देखो कितनी बड़ी बात है। बाबा ने समझाया है अच्छी तरह ये जो इसको कहा जाता है लिंग ये लिंग नहीं है इसको कहा जाता है परामात्मा परमपिता परमात्मा सुप्रीम आत्मा, अजब आत्मा। क्यों अजब क्यों? वंडर है इतनी एक छोटी सी चीज में स्टार लाइट है बच्ची। साक्षात्कार होते हैं बहुत सन्यासियों वगैरह को भी आत्मा का साक्षात्कार होते हैं। है नहीं रामकृष्ण और उनका विवेकानंद, उनके भी उसमें लिखा हुआ है मुझे बाप से स्टार जैसे कि उसमें से निकल के मेरे में प्रवेश किया कुछ हो गया, क्या हुआ उसमें से कुछ भी नहीं हुआ, हुआ तो क्या हुआ तो है स्टार लाइट अरे बच्चे वंडर है ना उसमें यह पाठ इंपिरिशेबल पार्ट अभी देखो, अभी कोई भी लो कोई भी मनुष्य जो भी 84 जन्म लेते हैं उनके तो स्टार में बहुत भारी पार्ट, सबसे जास्ती बाप के भी पार्ट। बाप कहते हैं मेरे में भी, आत्मा में देखो.... भक्ति मार्ग में मैं कितनी तुम्हारी सर्विस करता हूं जिस जिस भावना से जो जो मेरी या देवताओं की या जो कुछ मैं उनकी शुद्ध कामना पूर्ण करता हूं देखो कितना पार्ट है उनका भी ऊपर होते हुए भी इस समय में तो वंडरफुल पार्ट है। कहते हैं हम सब को सुखी करके फिर छिपा देते हैं पार्ट। कल्प कल्प बस आते ही रहते हैं तुम बच्चों का पार्ट बजता ही रहते हैं। बाकी हां जिनका पार्ट देरी से आते हैं वह जास्ती वहां रहते हैं। तो जो देरी से आते हैं उनको सुख भी देरी से... वह आत्माएं भी नंबर.... क्योंकि एक्टिंग है ना बच्चे। जरूर बड़ा एक्टर भी होंगे तो छोटे भी होंगे उनसे छोटे होंगे उनसे छोटे होंगे सबसे छोटे। तो सुना दिया सबसे पहले से पहले बाबा का, पीछे है ब्रह्मा विष्णु, ब्रह्मा सो विष्णु बनता है विष्णु से ब्रह्मा बनता है। अभी कोई इसमें लिखा हुआ थोड़ी है। भाई शंकर का पार्ट बस बिल्कुल थोड़ा है एकदम इसलिए शिव शंकर लिख दिया है क्योंकि इस समय इन दोनों का एक होते हैं बहुत। बस बाबा तो जन्म ही नहीं लेता उनका शरीर नहीं उनको सुक्ष्म वतन एक बारी बस। तो बच्चे यह भी नहीं जानते हैं कि शिव अलग है अरे उनका चित्र ही अलग है स्टार है अरे वह सूक्ष्म वतन शरीर हैं नाग है, है नहीं कुछ सर्प वर्प ये सब सर्प वर्प वहां कहां से आया सूक्ष्म वतन में या बैल कहां से आया जो शंकर सवारी करेगा उसके ऊपर नहीं यह सब यह माया के यह रावण के गपोडे हैं। अभी इनको कहा जाता है गपोडे, तो गपोडे शास्त्र में लगाए लगाए करके घोर अँधियारा हो गया है। इसको कहा जाता है घोर अँधियारा तो बाप आकर के फिर घोर सोझरा.... देखो कितना ज्ञान मिला है बच्चों को, सब जानते हैं जो बाप में नॉलेज है वो बाबा तो जरुर बच्चों को देंगे न सृष्टि का चक्र जो फिरते हैं ये जो गपोड़ा मारते हैं चौरासी लाख जन्म सो भी गपोड़ा भी कोई सीधा होवे, सभी मनुष्य चौरासी लाख जन्म... पहले आवे चाहे पिछड़ी में आवे... सभी चौरासी लाख जन्म। अभी सभी चौरासी लाख जन्म कैसे ले सकेंगे। ये सभी कहते हैं बच्चे, ये सब कोई ज्ञान नहीं है। ये सब अज्ञान है भक्ति मार्ग है भक्ति मार्ग मना दुर्गति मार्ग। जब दुर्गति जब पूरे आ जाते हैं भक्ति करते गीता पढ़ते शास्त्र पढ़ते यह सब दुखी होकर करके तो दुर्गति हो गई ना। बाबा करके फिर सबकी सद्गति सबका सद्गति दाता एक फिर राम कह देते हैं। और बाबा कह देते हैं परमात्मा ही कहेंगे तो अभी सुना बच्चे अच्छी तरह से यह गीत का अर्थ कहते भी हैं बाप आते हैं जब माया की परछाई हो जाती हैं, मनुष्य दुखी होते हैं तो बाप आएंगे भी तब तो अभी तुम बच्चे कहते हैं पुरुषार्थ कर कर कर के अभी बादशाही स्थापन हो रही है ना बच्चे। सूर्यवंशी डायनेस्टी, चंद्रवंशी डायनेस्टी और प्रजा और दास दासिया कितना प्लान है। जो सीट चाहिए चाहे सूर्यवंशी सीट लो चाहे यह चंद्रवंशी चाहे यह दास दासिया उनके बगल में चाहे सारा राज तो है भी तो ड्रामा है ना बच्चे। जो चाहिए सो बाप से लो। जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना उस पर पाएंगे तो यह पुरुषार्थ की बात हुई। पुरुषार्थ करना है प्रालब्ध के लिए किस द्वारा, बेहद के बाप द्वारा बेहद के सुख के लिए। बेहद का सुख है ना भारत बेहद के सुख में थे ना बच्ची। सूर्यवंशी चंद्रवंशी घराने में और कोई धर्म ही नहीं था और बताते भी हैं वह 16 कला यह 14 कला। उसके पीछे फिर 10 अभी नो कला कोई भी बात में किस में भी कोई भी कला नहीं है अगर कहेंगे श्री श्री महादेव मंडलेश्वर फलाना कोई कोई भी कला नहीं है बच्चे ना। इस समय में सभी ही आयरन एजड़ है सभी तमो प्रधान सभी मूत की पैदाइश। इसको ही कहा जाता है भ्रष्टाचारी और सतयुग में रावण ही नहीं है तो पीछे मूत कहाँ से आएंगा। बहुत पूछते हैं ब्राह्मण बच्चा..(.कैसे, कहा से ) अरे बच्चा बाप को तो पहचानों पहले तुम, अभी बच्चा ही बच्चा ही बच्चे थोड़ी पैदा होते हैं बिच्छू पिन्दीन,...वो गाया हुआ हैं न शंकर पार्वती के पिछड़ी फ़िदा हुआ उनका बीज हुआ उनका टिन्डन बिच्छू हैं फलाना है। अभी शिव है कहाँ, शंकर हैं पारवती हैं। क्या गपोड़ा मारते हैं, नहीं, यही है बच्चे जो पैदा होती है। वह अभी बर्थ कंट्रोल करते हैं देखो वंडर तो देखो बर्थ कंट्रोल निकाल दिया यह शब्द ही। यह थोड़ी कोई कंट्रोल हो सकेंगे, ना कंट्रोल तो देखो बाबा करते हैं ना। अभी कितने आदमी हैं ...अच्छा अभी कल, यह सभी विनाश होगा ना कल,,,, कितने होंगे किसने कंट्रोल किया? यह भी नहीं समझते। सतयुग में कितने होंगे? इस समय में कितने हैं? यह कंट्रोल किसने किया? बर्थ का यह तो बाबा का काम है सबको खलास कर दिया और फिर जिसने मेहनत की बाबा से अपना वर्सा लेते हैं। सतयुग में थोड़े रहते हैं, अच्छा अभी बहुत ही सुनाया बच्चों को जाना भी होता है घर। हां जिनको जल्दी जाना हो टोली ले कर के... । यह सत्यनारायण की कथा समझा बच्चे सत्यनारायण की कथा सच्ची, बाकी झूठी तो सुनते आए हैं जन्म जन्मांतर। यह सच्ची सत्य नर से नारायण बनने की कथा। बाकी क्या-क्या करते हैं कांफ्लुएंस है तीर्थ है आदि आज कितने स्नान किया 1000000 में स्नान किया अरे पर यह तो करते आए हैं ना। जितना मनुष्य बढ़ते जाते हैं उतना जरूर जास्ती स्नान करेंगे ना। इस बार 500000, आगे तीन लाख। अरे..! पर मनुष्य की सृष्टि बढ़ती जाती है तो जरूर बढ़ते ही जाएंगे ना। नहीं ? अभी सभी खिटपिटों से, धक्कों से,... इसको कहा जाते हैं अंधियारे मार्ग। ये कहते हैं अँधियारा मार्ग ठोकर खाने का मार्ग। ये भी बना हुआ है दिन और रात ज्ञान भक्ति पीछे वैराग्य। तो देखो बाबा ने कहा न दो प्रकार का एक है हद का वैराग्य, घर बार छोड़ जाना एक है बेहद का वैराग्य, बच्चे जाते हैं छि छि दुनिया से, देह सहित ये जो भी कुछ देखते हो इन सबसे ममत्व मिटाना है क्योंकि पुरानी है सभी। फिर बाप को याद करो एकदम लाइट हाउस बनो। एक आंख में अपना स्वीट होम। दूसरी आंख में यह कहते है मनमना भव। एक तो मुझे याद करो स्वीट होम को इसको कहते हैं मन मना भव वही जो उसका अर्थ है दो अक्षर हैं अलफ और बे को जानना है। अलफ माना बाबा बे माना रचना बस इनके आदि मध्य अंत को जानना है और चक्रवर्ती राजा बनना है। हमेशा याद रहे एक आंख में स्वीट होम मुक्तिधाम दूसरी आंख में पढ़ते हो चक्रवर्ती राजा जीवन मुक्तिधाम में तो लाइट हाउस हुए ना बच्चे। तो सब को यह समझाते हो बोलते चलते चैतन्य लाइट हाउस। वह तो इसटीमर के लिए है ना, यह भी ऐसे ही है नैया मेरी पार लगा ऐसे कहते हैं ना खिवैया। खिवैया भी तो एक होते हैं ना बच्चे ये खिवैया थोड़ी है गुरु लोग नहीं। नहीं वो डुबैया है। हाँ सब इतने जो बहुत हैं न अरे कोई तो डुबबाएंगे न। एक तारेंगे तो डुबाने वाले तो गुरु की बात हुई न, तो ये डूबैया की देखो महिमा कितनी है। ये सब गुरु लोग आते हैं, कल कौन आये थे एक आये थे जैनियों का बहुत बड़ी भीड़, बड़ी भीड़.., बाप आकर कहते हैं बच्चे ये साधू लोग हैं इनको तो भूल जाओ। इन्होने तुमको डुबोया है। कैसे... मेरे से बेमुख किया है। अपन को श्री श्री श्री 108 अभी श्री श्री श्री 108 तो रूद्र माला है न। वो तो शिव बाबा की माला है या इन्हों की माला है अनेकों की ? ठगी, करप्शन, एडलट्रेशन पहले नंबर में फिर इनमे इनकी देखो पलटन निकलती है कुर्सी पे बैठे हैं, चांदी की कुर्सी पे बैठ करके हा। तो बाप बैठकर के समझाते हैं भाई ये भक्ति को मत देखो, बाहर में तो देखने का अच्छा है अंदर में झूट ही झूट भरी हुई है एक्नोलेज ये तो जानते हो तुम की माता बड़ी हुई न बच्ची। तो माता ही निमित्त माता के बच्चे तो सब हुए न जगदम्बा कहते हो न, पुरुष भी कहते हैं फीमेल भी कहते हैं और अभी प्रेसिडेंट में हैं तो माता ही निमित्त बनती है। जगदम्बा उसको कहा जाता है गॉडेज ऑफ़ नॉलेज। कहाँ से मिला? ब्रह्मा की बेटी कहाँ से मिला ये नोलेज? भाई ब्रह्मा से मिला। किसने दिया ब्रह्मा को भी? भाई शिव परमपिता परमात्मा ने दिया। ये जो लिखा है न ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा कुमार कुमरियों को ये नोलेज मिल रही है जो फिर ब्राह्मण इस यज्ञ के निमित्त बने हैं, ब्राह्मण होते हैं न बच्ची तुम रूहानी वो जिस्मानी। बाप आए हैं स्वर्ग का लायक बनाने। देखो मुशाफिर कितना अच्छा है एक मुसाफिर और बाकि देखो ये सब इतने सब हैं सभी को शृंगारने के लिए। जो अच्छी तरह से अपन को शृंगारेंगे वो तो अपना ताज तख्त पिछड़ी में बाबा के चलेंगे शृंगारने बाकि भी चलेंगे तो सभी बाकि बाकि बरात है जो प्रजा बनेंगी या मुक्ति धाम में जाकर के निवास करेंगी शृंगारने बड़ी बरात इस साजन की कौन है समझते हो न बच्चे शृंगारने साजन है न, आएं हैं सबको सिंगार करके सबको... चाहे कोई पढ़ते हैं परन्तु जाएँगे सब पिछड़ी में, मच्छरों के मुआफिक। आग लगेगी भंभोर को तो सब जाएँगे। इसलिए कहा जाता है न साजन और सजनियां बाप और बच्चे। बाप और बच्चे आत्माएं और साजन और सजनिया इस समय में कहते हैं जबकि इसमें आते है समझा न। मीठे मीठे सिकिलधे बच्चे अब कुम्भ पर आकर के मिले हुए ये सुहावना संगम युग है कोंफ्लुएंस कुम्भ कहते हैं ये लोग, तो फिर से आकर के, फिर से... कितने बार मिले होंगे... अनेक बार मिले होंगे, देयर इज नो एंड तो फिर फिरसे मिलने वाले बच्चों प्रित मात पिता बाप दादा का याद प्यार और गुड मोर्निंग।