21-02-1965     दिल्ली दरबार    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम ब्राह्मणों की दिल्ली दरबार से नमस्ते, आज रविवार फेब्रुअरी की इक्कीस तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-

इक मात सहायक स्वामी सखा.......
ओम शांति।
बच्चों ने किसकी महिमा सुनी? कहेंगे सब बच्चे कि ऊँचे ते ऊँचा भगवत्, भगवान । भाई नाम क्या है उनका? भाई नाम है शिव। शिवाये नमः । देखो, गाते हैं ना शिवाय नमः । है तो बहुत सहज । शिवाय नम: और शिव का चित्र लिंग, यह तो सभी भारतवासी जानते ही हैं, फिर शिव की जयन्ती, इनको भी जानते हैं । महिमा भी तो बहुत करते हैं त्वमेव माताश्च पिता, परन्तु सिर्फ इतने तक ही कि शिवाय नम:, तुम मात-पिता…… । मात-पिता कैसे? पीछे मात-पिता हो करके वर्सा कैसे देते हैं, दुनिया में तो कोई नहीं जानते हैं। यह तो एक वण्डरफुल हस्ती है। शिवबाबा वो तो निराकार है । जबकि शिवबाबा को शरीर न मिले तभी शिवबाबा क्या करेंगे, वो तो निराकार है । निराकार की महिमा गाते है । एनटिटी(हस्ती) तो बड़ी ऊँचे ते ऊँची । वो ऊँचे ते ऊँचा रहने वाला, ऊँचे ते ऊँचा उनका ठाँव । क्योंकि यह भी तो समझना चाहिए ना कि ऊँचे ते ऊँचा उनका ठाँव कौन-सा ठाँव ? फिर जो दूसरे हैं देवताएँ ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं उनका कौन-सा ठाँव है? फिर देखो जगदम्बा , देखो जगदम्बा का भी ठाँव कहाँ है? जगदम्बा का ठाँव है यह स्थूल वतन, सृष्टि । अच्छा, ये भी तो सब समझते हैं, जानते है कि जगतअम्बा तो यहाँ की रहने वाली होगी, क्योंकि जगत माना मनुष्य सृष्टि । अच्छा , वो भी नाम तो बहुत अच्छा है; पर जगतअम्बा कौन है, कब आती है और कहाँ से आती है- कोई को कुछ पता ही नहीं है । इन सबकी जान-पहचान मिले कैसे, कहाँ से मिले, जरूर कोई हस्ती से मिलनी चाहिए । हस्ती कहा जाता है मनुष्य हस्ती को, न कि कोई जनावर हस्ती को । न कोई हनुमान बंदर हस्ती या कोई गणेश सूंड वाले की हस्ती । नहीं । कोई हस्ती जरूर चाहिए यानी मनुष्य हस्ती, जिसमें वो परमपिता परमात्मा, जो निराकार है (प्रवेश कर आए); क्योंकि तुम बच्चे आत्माएँ वो भी तो हस्ती में आते हो ना बच्चे । हो निराकार, फिर मनुष्य हस्ती में आते हैं । भले आत्माएँ जनावरों में भी हैं ये भी है, पर उनका तो कोई गायन नहीं होता है ना । गायन किस हस्ती का होता है, मनुष्य हस्ती का गायन । अब यह गायन तो बच्चों ने सुना शिवबाबा का, निराकार का । वो शिवबाबा क्या कर सकते है, जब तलक हस्ती में न आए तो कुछ काम का नहीं । ऐसे कहेंगे कि जब तलक कोई आत्मा को हस्ती न मिले, पार्ट नहीं बजाएँगे । आत्मा की हस्ती नहीं गाई जाती है । आत्मा जब हस्ती में आती है तभी गायन होता है । शिवबाबा वो भी क्या करेगा? बाप कहते हैं, मैं निराकार हूँ मैं क्या कर सकता हैं? मेरी महिमा तो बहुत करते हैं- मात-पिता फलाना । तो कोई हस्ती में आऊँ ना । तो देखो, उनको हस्ती जरूर चाहिए । अब उनको कौन-सी हस्ती मिलती है, मनुष्य मात्र तो जानते नहीं हैं । महिमा तो कर दी कि तुम ही पतित-पावन । पतित को पावन बनाने के लिए भी यहाँ आएँगे, फिर भी हस्ती चाहिए ना बच्चे यानी मनुष्य तन, शरीर जरूर चाहिए । तो देखो, तुम बच्चे जानते हो कि उनको हस्ती चाहिए ना । तो वो जिसमें प्रवेश करे वो हस्ती सबसे बड़ी है । हस्ती चाहिए ना, हस्ती बिगर कुछ नहीं कर सकते है । तो देखो बाप आ करके हस्ती (यानी) शरीर लेते हैं । अब गर्भ में तो नहीं आएगा ना । मनुष्य जानते नहीं है कि शिव जयन्ती गाई जाती है । शिव निराकार है, गाया जाता है । किस हस्ती में जयन्ती लिया, भारतवासी कोई जानते ही नहीं हैं बिल्कुल ही । यहाँ शिव जयन्ती मानी जाती है, जिसको शिवरात्रि कहा जाता है । न यह जानते हैं कि किस हस्ती में आते हैं और न यह जानते हैं कि कब आते हैं । कह देते हैं रात्रि में आते हैं । अच्छा, रात्रि में निराकार आया । वो तो किसको देखने में भी नहीं आया । किसमें आया? जरूर कोई हस्ती होगी । यही गाते हैं भागीरथ यानी एक भाग्यशाली रथ । रथ किसका? कोई जनावर का? नहीं, जरूर आएँगे मनुष्य रथ में । तो देखो, विचार तो करो । यह जो हस्ती, जिसमें परमपिता परमात्मा प्रवेश करते हैं, कितनी ऊँची हस्ती है! कोई भी मनुष्य सिवाय हस्ती, कुछ कर न सके । तुम बच्चे जानते हो कि शिवबाबा सिवाय ब्रह्मा की हस्ती, जिसको ये लोग नंदीगण कहते हैं । कोई को जानते तो नहीं हैं ना । यह कहीं लिखा हुआ भी है कि परमपिता परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं । यह गाते भी है, जानते भी है; क्योंकि चाहिए तो सही ना । कब? जब-जब भारत में बहुत ही दुःख होता है, सब मनुष्य मात्र बहुत ही भ्रष्टाचारी हो जाते हैं । भ्रष्टाचारी असुल कहा किसको जाता है, ये कौन आ करके समझाते हैं? ये परमपिता परमात्मा इस हस्ती से । तुम सभी बच्चे जानते हो । हाँ, कोई नए-नए होंगे ये नहीं जानते होंगे । अब देखो, कितनी बड़ी हस्ती! परमपिता परमात्मा ब्रह्मा बिगर वा नंदीगण बिगर या भागीरथ बिगर कुछ कर ही नहीं सकते हैं; क्योंकि कोई तो चाहिए ना । तो बच्ची ख्याल करो, जानना चाहिए ना कि यह हस्ती शिवबाबा की है । यह हस्ती न हो तो हम शिवबाबा से कोई भी वर्सा नहीं ले सकते । सिवाय हस्ती वो वर्सा कैसे देवे? तो देखो, यह कितनी बड़ी हस्ती है । गाई भी जाती है प्रजापिता ब्रह्मा । त्रिमूर्ति भी है यहाँ । तो भी ब्रह्मा विष्णु शंकर । देव-देव-महादेव ऐसे कहते हैं । ये तीनों में फिर ब्रह्मा का नाम ऊँचा क्यों? गाते हैं ना त्रिमूर्ति, फिर ब्रह्मा कह देते हैं । अच्छा, ब्रह्मा तो यही ही हुआ, जिसके रथ में यहाँ आते हैं । वो विष्णु तो फिर भी सूक्ष्मवतन में , वो तो बड़ा अच्छी तरह से सजा .हुआ है, उनको देवता कहते हैं । शंकर को भी देवता कहते हैं । अच्छा, अभी जो ब्रह्मा है उनको देवता कहना चाहिए? क्योंकि वो तो प्रजापिता है, वो तो मनुष्य चाहिए ना बच्चे। वो तो देवता है, श्री लक्ष्मी और नारायण का दो रूप विष्णु हो गया । शंकर भी तो सुक्ष्मवतन में है । अभी रथ चाहिए ना । वो गाया हुआ है कि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा सृष्टि रचते है । कौन-सी रचेंगे? जरूर ब्राह्मण ही रचेंगे, क्योंकि ब्रह्मा के मुख कमल द्वारा ब्राह्मण निकले । अभी तुम सभी बच्चे ब्राह्मण हो ना । तो देखो, किसकी हस्ती ऊँची है? शिवबाबा तो एनटिटी (हस्ती) निराकार है । वो हस्ती बिगर तो कुछ कर नहीं सकते हैं बिल्कुल । तो देखो, कितनी बड़े ते बड़ी हस्ती बैठी हुई है और कितनी साधारण । यह हस्ती कौन-सी है? सारी मनुष्य सृष्टि को, भारत खास, इन सबको सद्‌गति देते हैं । यानी मनुष्य मात्र को दुःख से छुडाय शांतिधाम और सुखधाम ले जाने वाला और देखो, इतनी बड़े ते बड़ी हस्ती, उनकी रहनी-करनी-चलनी देखो क्या ! गाया भी जाता है वो कितना निराकार और फिर कितना निरहंकार है । उसको कहा जाता है निराकार फिर निरहंकार । अभी देखो, तुम्हारी सेवा में उपस्थित है । कितनी बड़ी बड़ी हस्ती है और देखो, कैसे बैठते है और कैसे पढ़ाते हैं! इसमें बैठे हैं । तुम लोग क्या पढते हो? हम राजयोग की पढ़ाई पढ़ते है । पढ़ाई पढ़ते हो ना, सभी स्टूडेण्ट हो ना । कहाँ बैठे हो और कौन पढाते हैं? गृहस्थ व्यवहार में रह करके और फिर यह कोर्स उठाओ । किसका कोर्स, कौन पढाने वाले हैं? तो वहाँ भी रहो, फिर कोर्स उठाओ । टीचर से पढ़ो। तो कोर्स उठाना पड़े ना । तो कोर्स उठाते हैं । कोर्स बड़ा सहज है । बोलते हैं रहो भी अपने घर में, क्या करो? सिर्फ मुझे याद करो और रचना के आदि मध्य अंत को याद करो । उसके लिए कहते हैं सात रोज एकांत में बैठ करके अच्छी तरह से समझो । तो सात रोज भी समझने वाले वा पाँच रोज, तीन रोज, चार रोज वो तुमको परीक्षा लेनी होती है कि इनको कह (कर) तो देखें । ऐसे नहीं कि सात रोज समझने बिगर तुमको हम बाबा से नहीं मिलाएँगे या तुमको यह कोर्स.अब करना ही पड़ेंगा। सबके लिए कोई एक रोज, कोई दो रोज, कोई चार रोज (निकाल पाते है) । उन सबके लिए ही कह देना कि सात रोज तो जरूर बैठ करके समझना होगा, इनको फिर कहा जाता है अज्ञान । ऐसे अज्ञानी बच्चे फिर ऐसे भी काम करते हैं जो उन बिचारों को थोडा भी सुनने का चान्स नहीं मिलता है । नहीं तो ऐसे कई आते हैं जो तुम एक दफा आओ और वो लिख करके देंगे । उनसे मालूम पड़ेगा यह समझता है, बाबा दूसरे दिन कहेंगे कि इनको सुबह को क्लास में आने दो, सात रोज की दरकार नहीं है । ये जो लिख करके आए हैं, जो समझते हैं बडा अच्छा इसका वातावरण है, वो समझने वाले भी महारथी है ना । कोई घोडे सवार और प्यादे तो नहीं समझ सकेंगे ना । तो जो न समझने वाले हैं वो अच्छे अच्छे आते हैं, वो भी बिचारे ऐसे ही चले जाते हैं । माया एकदम वालोरा देती रहती है । कोई गफलत किया होगा तो उनसे कर्तव्य भी नहीं कराते हैं । बोलते हैं यह बुद्धू है, इनको कर्तव्य कराकर ऊँचा पद देना भी नहीं है । तो गाते हैं ना कि बाप चाहे तो ऊँचा ले जावे, चाहे तो नहीं। बाप की युक्तियाँ बहुत हैं । चाहे तो बड़े आदमी को बड़ा दे चाहे तो नहीं। हम नहीं चाहते हैं कि तुम वहाँ ऊँचा बनो, हम तुम्हारा धन ही नहीं लेते है जो तुमको इतना धन मिले । तुम नालायक हो, तुम बहुत पतित हो, दरकार नहीं है, कर सकते हैं । सो भी अगर ड्रामा में होगा और होगा भी, क्योंकि पीछे धन तो कोई से लेंगे ही नहीं । बोलेंगे यू आर टू लेट । अभी तुम्हारा धन क्या करेंगे? इसलिए तुम्हारा धन कोई काम में नहीं आएगा, इसलिए तुम इतने साहूकार भी नहीं बन सकेंगे, प्रजा में भी साहूकार नहीं बन सकेंगे । यह इतना तुम्हारा धन है ना, ये सभी मिट्‌टी में मिल जाएगा । शरीर भी जैसे मिट्‌टी में मिल जाता है और क्या होता है । तो ये बाप बैठ करके समझाते हैं । बहुत बच्चे यहाँ आते हैं, जाते हैं । बैठकर कितना भी उनको समझाते हैं; परन्तु तकदीर में भला फिर जिसके न होगा, उसको फिर बाबा तदबीर क्या करावे! तदबीर तो सबको कराते हैं । देखो, सबको कराते हैं ना । तकदीर में नहीं है तो एक कान में जरा भी नहीं बैठता है । बाप आ करके कहते हैं- देखो, याद रखो कि यह हस्ती कौन-सी है । ऊँचे ते ऊँची हस्ती और बिल्कुल ही साधारण, हद । खुद आकर कहते हैं कि मैं जो रथ लेता हूँ न बिल्कुल ही साधारण है । देखो, साधारण रथ है ना बच्चे नहीं तो यहाँ तो बिलकुल असाधारण. शंकराचार्य, प्रेजिडेंट, बड़े बड़े मनुष्य होते हैं । तुम बच्चों को तो नशा रहना चाहिए कि हम यहाँ परमपिता परमात्मा से राजयोग पढ रहे है । जरूर तन से तो सुनाएगा ना, पढ़ाएगा ना । बैरिस्टरी योग नहीं है, कोई इंजीनियरिंग योग नहीं है । हम शिवबाबा से और प्रजापिता ब्रह्मा के तन से पढ़ रहे हैं । प्रजापिता कोई दूसरे को तो नहीं कहेंगे ना । ऐसे नहीं कहेंगे शिवबाबा प्रजापिता न ब्रहमा विष्णु प्रजापिता, नहीं शंकर प्रजापिता, नहीं । ब्रह्मा प्रजापिता । तो देखो, सारे सृष्टि के बहनों और भाइयों का बाप और फिर आत्माएँ, जो आत्माए और शरीर, उनका वो बाप । अभी वो अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाप । यह भी समझना चाहिए ना कि आत्मा अविनाशी है । तुम आत्मा अविनाशी का बाप कौन है, कोई भी नहीं जानते हैं । कोई से पूछो तो अपनी आत्मा को ही कुछ नहीं समझते है । नहीं तो गाया जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा, महान आत्मा । महात्मा को महान आत्मा कहा जाता है । महान परमात्मा नहीं कहा जाता है फिर अपने को ऐसे क्यों कहते हैं कि हम महान परमात्मा हैं । देखो, कितनी ठगी! इसको कहा ही जाता है एडन्द्रेशन यानी मिक्चर । ये हैं महान आत्मा, फिर कहते हैं- नहीं, हम हैं महान परमात्मा । फिर कौन-सा महान परमात्मा? श्री श्री 108 जगत्‌गुरू । ऐसे श्री-श्री 108 जगत्‌गुरू कितने हैं, ढेर के ढेर, होना तो चाहिए ना । यानी जगत् का सद्‌गुरू दाता, सर्व का सद्‌गति दाता एक, फिर अनेक क्यों बन गए हैं? और नाम लगा दिया है शिवबाबा का, परमपिता परमात्मा का । कहलाते हैं सब कि हे पतित-पावन, आओ! देखो, सब कहते हैं, ऐसा कोई मनुष्य, साधु, संत, महात्मा नहीं है जो ऐसे न कहते होंगे । गाँधी जी को भी महात्मा कहते हैं ना । वो भी क्या कहते थे? पतित-पावन आओ, आ करके इस भारत को फिर नया बनाओ, उसमें यह नई दिल्ली; परन्तु नई दिल्ली में भी रामराज्य हो । देखो, ऐसे कहते थे ना! बरोबर कल की बात है, कोई पुरानी बात नहीं है ना । अभी कौन हैं मनुष्य या सभी साधु संत महात्मा? जाओ कुम्भ के मेले पर, तुमको कितने साधु मिलेंगे । जो भी बड़े बड़े हैं न साधु-सन्यासी ये नांगे वगैरह है, वही स्नान करने जाते है । तो सभी पतित ठहरे ना जो गंगा के पानी में स्नान करने आते है । ऐसे तो नहीं कहते कि पतित-पावनी गंगा आओ । पतित-पावनी गंगा किसकी बेटी है? गंगा सागर की बेटी है । ये गगाऐ बड़े-छोटे नाले, केनॉल्स वगैरह ये किसके बच्चे हैं? किसके पुत्र, पौत्र और पौत्रियों हैं?. .बाप, फिर उनमें से यह ब्रह्मपुत्रा बड़ी बच्ची है । बड़ा बच्चा केनॉल्स पुत्र-पौत्रे । देखो ये हैं ना, परन्तु उनसे तो कोई मनुष्य पावन नहीं हो सकता है । पतित-पावन कौन है? बाबा, परमपिता । ऐसे कहेंगे ना परमपिता पतित-पावन आओ । परमपिता आओ गाते तो हैं । कब आगे आए थे? कोई को मालूम नहीं है । सिर्फ गाते हैं । किसको मालूम नहीं कि वो आगे आए थे । आगे आए थे और यहाँ भारत में आ करके., अभी कहते है ना कि पीसलेसनेस है । तो मनुष्यों को मालूम नहीं है कि भारत में पीस थी । आज से 5000 वर्ष पहले, जिसको सतयुग कहते हैं, प्यूरिटी थी, पीस थी, प्रॉसपर्टी भी थी । सिर्फ यह नहीं जानते हैं कि कब थी, कौन राज्य करते थे, यह भी नहीं जानते हैं बिल्कुल ही । देखो, इतने शास्त्र वेद यज्ञ तप दान होते कुछ भी नहीं जानते हैं बिल्कुल ही । बाप आकर कहते हैं कि जब बिल्कुल ही तुम बेसमझ बन जाते हो, कुछ नहीं जानते हो, फिर मैं आ करके तुमको सब कुछ नॉलेज दे देता हूँ । देखो, ये अक्षर हैं ना । अभी जानते तो हो ना । बिल्कुल ही कुछ भी नहीं जानते थे । अभी तुम सब कुछ जानते हो । शिवबाबा की बायोग्राफी, परमपिता परमात्मा की बायोग्राफी । अरे, परमपिता परमात्मा की बायोग्राफी तुम कैसे जानते हो? मूर्ख हो, बाप की बायोग्राफी, बाप से सीखी जाती है ना । तो बाप कहते हैं मैं बच्चों को सिखलाता हूँ । बच्चे को सो भी फादर सिखलाते हैं । तो अभी बायोग्राफी जानते हो ना! जानते हैं बिल्कुल । कोई से भी पूछो शिवबाबा की बायोग्राफी? शिवबाबा की बायोग्राफी कैसे हो सकती है, वो तो निराकार है । अरे, निराकार तो सभी हैं ना । जरूर साकार में आएगा तब तो हरेक की बायोग्राफी होगी ना । वहाँ कोई आत्माओं की बायोग्राफी थोडे ही होती है । जब तलक शरीर में न आए तब फिर जीवात्मा की बायोग्राफी होती है। सिर्फ आत्मा की तो बायोग्राफी नहीं हो सकती है ना, जीवात्मा जब पुनर्जन्म में आए तब बायोग्राफी बने । पुनर्जन्म में कैसे आती है, यह तो जरूर जानना चाहिए ना कि बरोबर हम आत्माएँ पुनर्जन्म में आती हैं । गाते हैं कि 84 लाख पुनर्जन्म में आती है । बाप आ करके कहते हैं कि बच्चे 84 लाख पुनर्जन्म नहीं होते । तुम जानते हो कि एक शास्त्र है, जो कोई ने बनाया है, उनमें लिखा है कि हे बच्चे, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं तुमको सुनाता हूँ । तो कोई 84 लाख थोड़े ही हो सकते हैं । देखो, उनमें गपोडे हैं ना । उसको कहा जाता है भक्तिमार्ग के शास्त्रों के गपोडे । तब देखो, बाप खुद कहते हैं कि मैं ब्रह्मा तन में आता हूँ बरोबर। अच्छा मैं आ करके ब्रह्मा तन से तुम बच्चों को ये सारा वेद शास्त्र ग्रंथ वगैरह सबका सार समझाता हूँ और साथ साथ राजयोग भी सिखलाता हूँ । जैसे मैं नॉलेजफुल हूँ यानी सृष्टि के आदि मध्य अंत (को जानता हूँ । ऋषि-मुनि भी कहते गए हैं कि हम रचता और इस रचना के आदि मध्य अंत को नहीं जानते हैं ।......... .मैं अभी आता हू (तो) मैं अपना (यानी) रचता और रचना के आदि मध्य अंत को, (जो) यहाँ कोई भी नहीं जानते हैं, (उसका राज बैठ समझाता सै, क्योंकि गाते आए है कि न रचता और न रचना के आदि मध्य अंत को जानते हैं । तो जो ऋषि मुनि भी नहीं जानते थे, तो फिर ये जो उनकी औलाद है वो कैसे जान सकें? कहाँ से सुनें? तभी बाप कहते हैं कि जान तो गए ना कि यह कितनी बड़ी ते बडी हस्ती है, कितनी साधारण रूप में है, ऊँचे ते ऊँची, क्योंकि यह जो हीरा बनाने वाला ऊँच (बाप है) । उनको हीरा कहेंगे ना जो हीरा बनाते हैं, तो उनकी यह डबली है । डबली कहो, रथ कहो, पुरानी जूती कहो । देखो बच्चे, यह सबसे पुरानी जूती है । कैसे?. .यह जीवात्मा जब पहले पहले आया तो बिल्कुल ही नई थी, नम्बर वन । श्री लक्ष्मी और नारायण को ऐसे कहेंगे ना नंबर वन और श्री लक्ष्मी प्लेस में जैसे । वो जो लक्ष्मी-नारायण नंबरवन में थे उनको ही तो फिर...। पुनर्जन्म तो सबको लेना है । शुरू तो वहाँ से होगा ना और उनकी डिनायस्टी की स्थापना होती है) । तो देखो, पुनर्जन्म कैसे लिया? सूर्यवंशी में थे, फिर चंद्रवंशी में थे, जन्म लेते आए । 84 का भी कुछ हिसाब चाहिए ना । यहाँ कौन विद्वान या आचार्य है जो बैठकर 84 का हिसाब बताएगा?.... .बस, कह देते हैं 84 लाख । अब 84 लाख का (हिसाब) कोई बता थोड़े ही सकेंगे । इम्पॉसिबुल है । फिर 84 लाख जन्म के लिए कल्प की आयु भी लम्बी-चौड़ी (कर दी) । गपोडा तो देखो एकदम! कोई थोडा गपोडा हो तो भी अच्छा । 84 जन्म के लिए 84 लाख कह दिया । 5000 वर्ष का एकदम लाखों वर्ष । अभी लाखों वर्ष होते तो कितने मनुष्य होते! उसमें भी सबसे जास्ती भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के होते । भले चलो हिन्दु भी कहें तो भी बहुत होते; परन्तु हिन्दुओं की, भारत की सेन्सस और ही कम (है) । सबसे जास्ती क्रिश्चियन की है, क्योंकि पीछे धर्म मल्टीप्लीकेशन हो गए । तो देखो, यह भारत का जो देवी-देवता धर्म है प्राय:लोप हो गया । फिर क्या बन गए? और धर्म में कनवर्ट हो गए हैं । है जरूर परंतु वो देवी-देवताऐ किसी धर्म में कनवर्ट हो गए, जो अब कोई भी अपने को देवी-देवता नहीं कह सकते है । क्यों नहीं कहते हैं? क्योंकि वो तो सर्वगुण सम्पन्न थे, 16 कला सम्पूर्ण थे । वो तो कोई यहाँ हैं नहीं । क्यों नहीं हैं? रावण राज्य है । अभी रावण राज्य को भी कोई नहीं जानते हैं । न राम को और न राम की बायोग्राफी को जानते हैं तो न रावण को और न रावण की बायोग्राफी को जानते हैं । क्या पाइंट सुनाती थी? .बाबा उनके लिए समझाते है कि एक तो समझाओ कि शिवबाबा के ऊपर में एक ही चित्र- गॉड इज वन । ऐसे नहीं कि बहुत है । नहीं, एक । उनके मदिर भले बहुत बने हुए हैं, नाम बहुत रख दिए हैं, पर है तो एक न । यह तो बुद्धि में समझने की बहुत ही... । हम बाबा क्यों कहते है? किसने कहा ' 'बाबा '7 बाबा (कहने से) बुद्धियोग ऊपर में गया तो जरूर आत्मा ने कहा होगा ना; क्योंकि आत्माओं का बाबा है । तो जब बाबा कहेंगे तब बुद्धि ऊपर चली जाएगी । जब परमपिता परमात्मा को याद करेंगे तो बुद्धि ऊपर में जाएगी और जब सिर्फ बाबा कहेंगे तो लौकिक के ऊपर । तो भक्तिमार्ग में जरूर, अभी भक्तिमार्ग है ना । वो बाप भी है और दुःख में वो बाप याद पडते हैं । आत्मा को दुःख मिलता है । बाप होते हुए भी फिर दुःख मिलता है तो वो रडी मारते है । ज्ञान नहीं होता है तो यहाँ कह देते हैं- बाबा! लौकिक बाप याद आ जाता है; परन्तु जब सच सच दुःख होता है तो कहते है बाबा! तो दो बाबा तो हो गए ना । सबको दुःख जरूर मिलता है । सन्यासी को भी तो दुःख मिलता है ना । साधना करते हैं । दुःख तो जरूर मिलता है । देखो, रोगी होते हैं, बीमार होते हैं । ऐसे नहीं है कि कोई नहीं होते हैं। अब जिनको रोग होते हैं, जन्म-मरण में आते हैं, वो अपने को कह देवे कि हम श्रीश्री 108 जगतगुरू यानी शिवबाबा के ऊपर में रख दिया तो यह कितना पाप हुआ ना । यह हो गया सबको परमपिता परमात्मा से बेमुख करना । बाबा पहले- कहते हैं कि बच्चे, ये जो तुम्हारे गुरू हैं इन सबको छोड़ दो, क्योंकि इनसे तुम्हारा कुछ फायदा नहीं है तब तो कहते हैं ना । बाप यानी भगवान कहते हैं, सिर्फ भूल कर दी है कि कृष्ण का नाम रख दिया है । तो कहते हैं कि बच्चे, अब इन गुरूओं को भी छोड़ो । ये खुद ही पतित हैं, क्योंकि इस समय में सभी पतित दुनिया रावण का राज्य है । कोई भी पावन होता ही नहीं है । यह भी देखो कि गंगा में जा करके स्नान करते हैं, अभी उनसे तो कोई पावन नहीं हो सकते हैं ना; क्योंकि भारत में करते आए करते आए करते आए हैं और अभी उनसे तो कुछ भी नहीं है और अभी भी करते आए हैं । एक तरफ में करते आए हैं, दूसरी तरफ में रावण को जलाते आए हैं; क्योंकि रावण है अभी तलक भी । जब आग लगेगी तो किसको आग लगती है? यह आसुरी सृष्टि को । उसको कहा ही जाता है रावण की सृष्टि को आग लगे तब तो राम की सृष्टि कायम हो ना । तो राम की सृष्टि कायम हो तब तो रावण की सृष्टि को आग लगे । तो बरोबर इस भमोर को आग लगनी है ना । सारी खत्म हो जाने वाली है । जबकि यह भारत खास और सारी दुनिया आम, यह सभी कब्रिस्तान बननी है जरूर, तो कब्रिस्तान से तो दिल नहीं लगानी है । बाबा ने हद का और बेहद का सन्यास समझाया है ना ।.अभी मुझे याद करो, मेरे पास आना है । क्या तुमको यह कब्रिस्तान पसन्द आता है? क्योंकि जरूर भस्म होने का है और यह बिल्कुल ही छी-छि है । यह बिल्कुल पुरानी दुनिया है । तुम्हारे और सबके शरीर भी बिल्कुल जड़जड़ीभूत पुराने हैं; क्योंकि सबका सद्‌गति दाता एक है । तो देखो सबका सद्‌गति दाता बैठा कैसे है! यह हुई हाईएस्ट हस्ती, इसलिए गाया जाता है त्रिमूर्ति ब्रह्मा । क्यों? त्रिमूर्ति शंकर क्यों नहीं कहते हो? त्रिमूर्ति ब्रह्मा हस्ती यहाँ के लिए है । तो यह हस्ती है ना, जिसमें परमपिता परमात्मा का प्रवेश है । बस, इन जैसी ऊँच ते ऊँच हस्ती कोई होती ही नहीं है; क्योंकि उस हस्ती द्वारा बच्चों को नॉलेज भी देते हैं, वो भी बनाते हैं और फिर डायरेक्शन देते हैं शंकर को । यह शंकर का नाम क्यों रखा है? शंकर क्या करते हैं? वो तो सूक्ष्मवतन में रहते हैं । क्यों गाया जाता है शंकर द्वारा विनाश?. .विनाश कौन करेंगे? बाबा तो नहीं करेंगे अपने बच्चों का । बाप कोई अपने हाथ से थोड़े ही विनाश करते हैं । यह जानते हो कि बाप उत्पत्ति करते हैं, पालना करते है, ऐसे थोडे ही कहेंगे कि मैं विनाश करता हूँ । विनाश तो फिर काल के ऊपर नाम रखा हुआ है कि यह तो काल है, इनको खा गया । ऐसे नहीं कहेंगे कि परमात्मा ने इनको मारा, नहीं । ये भले जब कोई मरता है तो परमात्मा को बहुत गालियाँ देते हैं कि परमात्मा! आप हमको इतना दुःख देते हो, हमारे को जो दिया सो फिर छीन लिया । वो तो हमारी मर्जी, हमने दिया, हमने छीन लिया, उसमें तुम क्यों रडी मारते हो, रोते क्यों हो? फिर बहुत गालियाँ देते हैं । बाबा बोलते हैं कि नहीं, इस समय में यह ड्रामा है । जब तुम बच्चों को ज्ञान मिलता है तो पीछे कोई भी मरता है तो कहेंगे कि जा करके दूसरा पार्ट ले लिया । अम्मा मरे तब भी हलुआ खाना, बीबी मरे तब हलुआ खाना- ऐसे कहते हैं । यह कहीं की बात है? यह है सतयुग की । वहाँ मरने का नाम नहीं है । वहीं माँ मरे तो भी हलुआ खाते हैं, खुशी मनाते हैं । शरीर पुराना लेकर नया देते हैं । वहा बड़े शादमाने होते हैं, यहीं रोदन होता है, वहाँ शादमाने होते हैं, रोते नहीं हैं; क्योंकि वो सभी समझते है कि यह तो बुड्‌ढा हुआ, अभी नया शरीर लेना है । वो तो अच्छा ही है ना । तो वहाँ कोई रोते ही नहीं हैं । उसको कहा ही जाता है अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना, बीबी मरे तो भी हलुआ खाना । यहाँ अम्मा मरे तो भी रोना-पीटना.... । तो यह है या हुसैन की दुनिया और वो है हर्षित दुनिया; इसलिए उनका नाम ही बड़ा फर्स्टक्लास है- पैराडाइज, हैविन बहिश्त । यहाँ कहते हैं कि अरे भई, तुम्हारा बाप मर गया । कहीं गया? वैकुण्ठ में गया । रोते क्यों हो? नर्क से स्वर्गवासी गया वो तो अच्छा हुआ ना, फिर भला रोते क्यों हो, यह तो बताओ । नर्क से स्वर्ग गया, तुमको तो ताली बजानी चाहिए ना । तो अभी ज्ञान न होने के कारण (रोते हैं) । वहीं ताली बजाते हैं । फर्क है ना! यही भारत, कोई दूसरी चीज नहीं है । भारत वण्डरफुल है! भारत प्योरिटी में बहुत सुख, भारत इथ्योरिटी बहुत दुःख । बाप बैठकर समझाते हैं कि स्वर्ग क्या है, नर्क क्या है । जिसके पास धन है वो बोलता है स्वर्ग है । बाबा बोलते है कि अच्छा, यह स्वर्ग तुमको.... । मैं गरीब हूँ । अरे भई, तुम्हारे लिए तो नर्क है ना । बहुत गरीब हो ना । तो देखो, गरीब भारत और गरीब भारत में जो फिर गरीब हैं...... .मैं गरीब निवाज हूँ । साहूकार तो अपने नशे में है । धन बहुत है । बोलते हैं, हम तो स्वर्ग में हैं, मोटरें हैं, गाड़ी है । .मिट्‌टी में मिल जाने वाले हैं वा अगर आने वाले हैं तो भी बहुत कम पद । गरीब जो हैं, इनका बहुत ऊएचा पद । इसका नाम ही रखा है गरीब निवाज । अब यह जानते हो कि भारत सबसे गरीब है । तो देखो, भारत को ही साहूकार बनाते है; क्योंकि इस समय में बिल्कु गरीब है । जानते हो कि बहुत गरीब है इसलिए सबसे अनाथ गरीब तो अन्न दान किया जाते हैं न । मनुष्य को दान क्या करना चाहिए? जिसके पास पेट के लिए कुछ ना हो, उनको अन्न देना चाहिए तो उनको जीयदान मिल जावे, मर न पड़े । सबसे अच्छा दान यह है । विलायत वाले भी समझते हैं कि सबसे अच्छा दान है अन्न का । देखो, कितना अन्न देते हैं । अगर वो अन्न न देने,.... गरीबों को दिया जाता है ना । तो वो समझते हैं बहुत गरीब है, परन्तु जिस बात से बाबा समझा रहे हैं, उस नमूने से नहीं समझते है । समझते है कि यह बहुत साहूकार था, अब गरीब बना है । इसको दान देना चाहिए । वो दान न लेने तो अभी तुम लोग यहाँ हो ही नहीं । यह होने का है । थोड़ी लड़ाई लगेगी तो तुम लोगों को 100 रुपये मन भी अन्न नहीं मिलेगा । वो भी समय आएगा जो अन्न नहीं मिलेगा । किसके पास अन्न होगा तो खून कर-करके छीन लेगा । वो समय आ रहा है । तो इस हालत से पहले अपना मर्तबा तो बाप से ले लो । पीछे त्राहि त्राहि करना पड़ेगा । .समझ गए ना कि यह हस्ती कौन-सी है । अभी बच्चे जानते हैं, और तो कोई भी नहीं जानते हैं । बच्चों में भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । सब भी ऐसे नहीं जानते हैं, भूल जाते हैं । जानते हुए फिर मूल जाते हैं । अच्छा, टोली ले आओ बच्चे । सबको कहा करते हैं कि सबका मौत है, सबका वानप्रस्थ है, एक सद्‌गुरू बड़ा सहज मत्र देते हैं । इसका संस्कृत बनाया है, बोला इसमें ही है । बाप को याद करो, मन्मनाभव । उसका अर्थ रख दिया है कि बाप को याद करो । मन्मनाभव का अर्थ भी यही कहते है । वो संस्कृत अक्षर है, हिन्दी। वो खुद आकर जैसे दलाल के माफिक इस शरीर में रह करके कहते हैं कि हे बच्चे आत्माओ! अभी मैं आया हूँ लेने के लिए । मैं तुमको दुःख से छुड़ाता हूँ लिबरेट करता हूँ । फिर मैं गाइड भी हूँ तुमको साथ ले जाऊँगा । अब ऐसे कोई श्री श्री मंडलेश्वर, 108 जगतगुरू कहते हैं क्या? यह किसने कहा? यह श्री-श्री 8 जगत्‌गुरू रुद्र (ने), जिनकी ये सारी आत्माएँ माला हैं, जो नंबरवार पार्ट बजाने आती हैं । बाप बैठ करके समझाते हैं । यह रुद्र ज्ञान यज्ञ है । रुद्र यज्ञ रचते हैं; परन्तु सालिग्राम बना करके देखो क्या करते हैं । रुद्र भगवान को भी बनाते हैं, रुद्र के सभी बच्चों को भी बनाते हैं- लाख, दो लाख, पाँच लाख । बनाया, पूजा की, फिर उनको तोड़ डालते हैं । जैसे देवी-देवताओं की हस्ती का भी यह हाल करते हैं, तो जो हस्ती के अलग है शिवबाबा उनका भी ये हाल करते हैं । शिवबाबा का लिंग बना करके और छोटे बच्चों का भी बना करके मिट्‌टी से पूजा करके फिर मिट्‌टी में मिला देते हैं । उसी समय में भगवान की उत्पत्ति की, पालना की और भगवान और उनके बच्चों को खतम कर दिया । क्या होता है! बाप के पास वापस जाना है ना । बाप आया है लेने के लिए । किसको? बच्चों को । फिर साजन भी कहते हैं बच्चों को लेने आए हैं, पर बच्चे जानते हैं कि हम पतित हैं । सब बच्चे जानते हैं कि पतित हैं । बाप लेने आया है जरूर, क्योंकि भक्तिमार्ग में याद करते आए हो । तुम ब्राह्मणों ने, सभी ने नहीं । अभी जो ब्राह्मण बनते हैं बस उन्हीं के लिए ही है । बाप को याद करते आए हो । अभी बच्चों को मालूम है कि बाप आया हुआ है । क्यों आए हैं? हमको वापस ले जाने के लिए । कहाँ? शांतिधाम में जा करके और फिर सुखधाम में आ जाएँगे । यह तुम्हारे लिए है, ऐसे नहीं कि सारी दुनिया एक ही बार सुखधाम में आ जाएगी । नहीं, यह तो होता भी नहीं है । इसलिए बाप बच्चों को कहते हैं कि तुम्हारी यह आत्मा पतित है । ज्ञान सागर, सर्वशक्तिवान बाप को याद करने से तुम्हारे विकर्म भस्म होंगे । मनुष्य मात्र को कोई याद नहीं करना है । न बंदरों को, न हनुमानों को, न पानी को, न कोई देहधारी को । उसमें सब आ गया । (किसी ने गाया:- नींद को छोड़ दो, रास्ता मोड़ दो, स्वर्ग रचने पुन: आए भगवान हैं)... .जरूर ले जाना । सत्यनारायण की कथा सच्ची है ना और फिर यह अच्छा है घर का, बाबा के भण्डारे से । बच्चे का शिवबाबा का भण्डारा नहीं है । यही यह शिव भण्डारा है । भण्डारा फिर किसका है, किस बच्चे का है? जिसने शिवबाबा को सब कुछ अर्पण किया है अर्थात् वारिस बनाया है । तो शिवबाबा को वारिस बनाएँगे, वो प्रॉपर्टी तो कुछ भी नहीं लेंगे । शिवबाबा कोई की प्रॉपर्टी नहीं लेते हैं । शिवबाबा पैसा लेंगे? बिल्कुल नहीं । हो गया?... 1 मिनट, देरी होती है । एक तो बाप आशीर्वाद करते हैं ना । आशीर्वाद माँगते हैं ना, तो बाप बच्चों को कहते हैं कि श्रीमत पर चल अमर भव; परन्तु श्रीमत पर चलना है जरूर । श्रीमत कोई जास्ती तकलीफ नहीं देती है । मुझे याद करो और अपने वर्से को याद करो । मैं बाबा की बनूँगी, बाबा से विष्णुपुरी के मालिकपने का वर्सा लेंगी । बस, ये याद करते रहो ।