22-02-1965     दिल्ली दरबार    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम ब्राह्मणों की दिल्ली दरबार से नमस्ते, आज सोमवार फेब्रुअरी की बाईस तारिख है। आज बापदादा दिल्ली दरबार से विदाई ले मधुबन पधार रहे हैं।

रिकॉर्ड :-

नैनहीन को राह दिखाओ प्रभु........
ओम शांति!
मीठे-मीठे, अति प्यारे, सिकीलधे, क्योंकि बच्चे अर्थ तो समझते है की यूं तो बाप को सारी सृष्टि के सभी बच्चे प्यारे जरूर हैं, क्योंकि बच्चे जानते हैं कि हम परमपिता की औलाद हैं। वो दुनिया न जानती हो, परन्तु बच्चे जानते हैं कि जो भी मनुष्य मात्र हैं वो परमपिता, जिसको गॉड फादर या भगवान कहा जाता है, उनकी हम संतान हैं। एक ईश्वरीय फैमिली है । फैमिली में सबसे ज्यादा प्यार होता ही है बाप से, जिन्होंने बच्चों को रचा है । तो देखो, यह बेहद का बाप ऐसे कहेंगे ना कि प्यारे प्यारे, मीठे-मीठे, सिकीलधे अर्थात् 5000 वर्ष के बाद फिर से मिले । कब मिले? इस संगमयुग पर, जबकि बाप आ करके सभी दुःखी बच्चों को, आपस में लड़ते-झगडते अशांत, देखो, अशांति के लिए ये रिलीजियस लोग या बड़े बड़े लोग कितनी कांफ्रेंस करते हैं । सभी मिनिस्टर्स, वजीरे, बादशाह, प्रेसिडेंटस आपस में मिलते है, क्योंकि इस सृष्टि में ये मारा-मारी आदि बंद हो । ये सभी आपस में मिलकर शांत हो करके कैसे रहें । बहुत कांफ्रेंस करते आते हैं । अभी कहाँ भी कॉन्क्रेन्स होने वाली है । युक्ति रचते हैं कि कैसे शांत हो, यह मारा-मारी कैसे बंद हो । अगर बंद न होगी तो ये सब आपस में लड़ करके विनाश कर देंगे । बहुत विनाश कर देंगे । विनाश से डरते हैं । ये भूल गए हैं कि बाप आ करके क्या करते हैं । बरोबर सुखधाम की स्थापना कर, कलहयुग है ना तो सतयुग की स्थापना कर अर्थात् आदि सनातन देवी-देवता धर्म की फिर से स्थापना कर, फिर जब वो स्थापना हो जाती है, जो हो रही है, क्योंकि तुम बच्चे सब बैठे हुए हो । क्या करने? बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेने । यह जानते है कि परमपिता परमात्मा आय शंकर द्वारा विनाश कराते है । अब यह तो बहुत सहज बात है । अब कराते है तो विनाश तो जरूर होगा ना, होना चाहिए ना, क्योंकि ये सभी दुःखी हैं । यह बाप का फर्ज ठहरा, कल्प- कल्प आ करके सभी जो भी बच्चे दुःखी है उनको क्या करना? सुखी बनाना । बच्चे जो दुःखी हैं, वो किसको सुखी कैसे करेंगे? बच्चे जो सभी पतित हैं, वो पतित किसको पावन कैसे करेंगे? सो भी कोई एक या ,दो का सवाल थोड़े ही है । नहीं, सारी दुनिया के मनुष्य मात्र के लिए । गाते भी हैं कि बरोबर एक ही सद्‌गति दाता है । हे परमपिता! सद्‌गति दाता! आ करके हम पतितों को पावन बनाओ । सब गाते रहते हैं; क्योंकि सब दुःखी होना ही है ना । यह तो पुरानी दुनिया हो गई । भारतवासी भी जानते हैं और सभी धर्म वाले भी, जो सेन्सीबुल है, जानते हैं कि प्राचीन भारत में यही गॉड एण्ड गॉडेज का राज्य था । बाहर वाले जानते हैं कि उस समय में हम लोग नहीं थे । जो भी धर्म वाले हैं वो जानते हैं कि हम लोग नहीं थे । भारत की बहुत महिमा है, क्योंकि पहला प्राचीन भारत है ना । पहली-पहली भगवान की फैमिली । भगवान ने पहले सृष्टि क्या रची? पहले भगवान ने स्वर्ग रचा, पैराडाइज रचा, हैविन रचा । उसका मालिक कौन था? भारत । उफ! सोने-हीरे-जवाहरों के महल थे , बात मत पूछो । इतना साहूकार था । अभी कलहयुग का अंत है । अनेकानेक धर्माधर्म हैं । वो सभी हैं, सिर्फ एक देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है । यहाँ देवी-देवता धर्म, जिसमें क्षीर की नदियाँ बहती थीं । बड़ी महिमा करते हैं । वो अभी कंगाल, महान दुखी है । अभी इस भारत खास और दुनिया आम इन सबको सुखी कौन करे? यह तो बाप का फर्ज है ना । तो बाप ही आ करके कहते हैं कि हे बच्चे! जब-जब....किसने कहा? यह ब्रह्मा नहीं कहते हैं या दादा, जिसको जवाहरी कहते है, वो नहीं कहते हैं । बाप कहते हैं । किस द्वारा? शरीर द्वारा । यहाँ ब्रह्मा द्वारा अभी बाप कहते हैं कि यह ब्रह्मा अपने जन्मों को नहीं जानते हैं अर्थात् तुम ब्रह्माकुमारियॉ और कुमार भी अपने जन्मों को नहीं जानते थे । मैं बैठ करके समझाता हूँ कि यह जो इनका रथ लिया हुआ है, जिसको बच्चे नंदीगण कहते हैं या कभी भागीरथ कह देते हैं, मैं उनमें प्रवेश करता हूँ । कोई भी दूसरे शरीर में आत्मा का प्रवेश यह तो यहाँ भारत में एक रस्म है; क्योंकि जब अपने कोई मर जाते हैं तो उनको ब्राह्मणों में बुला करके पितृ खिलाते हैं । ब्राह्मणों को बुलाते हैं कि हम अपने बाप को बुलाते हैं, आहवान करते हैं । उनके लिए बहुत रखते हैं.... .वो आएगा । ब्राह्मण के लिए दीवा लगाते हैं । वो इस ब्राह्मण के तन में आ करके भोजन पहनेगा । आगे बहुत रस्म थी और वो आत्माएँ आ करके बात सुनाते थे । पूछते थे कि सुखी हो? कहाँ हो? फिर वो बताते थे । तो क्या होता था? जरूर वो आत्मा उसमें प्रवेश करती होगी । भले यह सवाल पीछे है कि वो मर जाते है क्या? नहीं, पर होता था । फिर क्या था? यह रस्म-रिवाज ड्रामा में आगे थी । होता था । कैसे होता था, सवाल नहीं उठता है । नहीं! होता था यानी दूसरी आत्मा आती थी और बोलती थी जरूर । वो कहाँ बैठती थी? जरूर वो जो आएगी तो जैसे ब्राह्मण की आत्मा के बाजू में आकर बैठेगी । तो अभी भी बाप क्या करते हैं? बाप खुद कहते हैं मेरे को अपना शरीर नहीं है । मैं जरूर आ करके दूसरे शरीर में प्रवेश करता हूँ । नहीं तो मैं कैसे सुनाऊँ? मुझे गाते तो है ज्ञान का सागर है । देखो, याद करो, ये समझने की बहुत अच्छी और बहुत ऊँची बातें हैं । देखो, आते कैसे है! वो बोलते हैं साधारण बूढे तन में आता हूँ । अब यह साधारण तन कौन है? तो बूढ़े तन के लिए बताते हैं कि भल बैठता हूँ फिर उन द्वारा बैठकर... । अभी देखते हो बरोबर कि बूढ़ा तन है और वो बोलते हैं कि यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं । वहाँ तो... .लगा दिया है कि मनुष्य 84 लाख जन्म लेते हैं । वो तो मैं वर्णन न कर सकूँ । है! 84 जन्म का हिसाब है सो बैठ करके समझाता हूँ । आता भी भारत में हूँ । तो बच्चों को पहले यह समझना चाहिए । बाबा ने बार बार समझाया है कि एक यह बनी-बनाई बन रही, अब कुछ बननी नाय । यह जो कुछ भी है एक बहुत बड़ा बेहद का ड्रामा है । एक नाटक है, ड्रामा है । ड्रामा कैसे टिक टिक टिक होता है। तो जो कुछ भी पास्ट होता है, वो फिर से रिपीट करना है । तो यह है बेहद का ड्रामा । बेहद का बाप समझा सकते हैं । हद के कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं समझाते हैं, क्योंकि बाप आकर कहते हैं कि हे बच्चे, तुम जो कुछ भी ये वेद शास्त्र ग्रंथ जप तप सब करते हैं, ये सभी भक्ति का मार्ग है, क्योंकि इनसे तुम कुछ भी प्राप्त नहीं करते हो । इनमें कोई सार नहीं है । भक्तिमार्ग में कोई सार नहीं है । क्या होता है? अल्पकाल क्षणभंगुर । समझो, कोई ने बैठकर कृष्ण की नवधा भक्ति की कि बस, मुझे दर्शन दो या माता को, काली को, कोई को भी । बहुत ही चित्र बनाय दिया है । बाप ने समझाया है । पहले तो ये समझो कि मनुष्य हो, जनावर तो नहीं समझेंगे ना । तो ये इतने चित्र वगैरह ये सब भक्तिमार्ग की ढेर के ढेर सामग्री है । उसको कहा जाता है गुडिडयों की पूजा । यह पत्थर का चित्र बनाया, फलाना बनाया, ये बनाया, उनको खिलाया-पिलाया, डुबोया । सो भी सबको बनाय फिर.. .तो यह बेसमझी हुई ना । ऊँचे ते ऊँचा भगवत शिव का लिंग बनाया । यज्ञ रचते हैं । मिट्‌टी का बनाया, फिर सालिग्रामों का बनाया और पूजा करते हैं । किसकी पूजा? वो कुछ भी नहीं जानते । यह बाप और उनके बच्चों ने कोई सर्विस की है, इसलिए इनकी पूजा करते हैं । तो क्या करते हैं? पूजा कैसे करते हैं? शिवबाबा का लिंग बनाया और फिर तुम बच्चों का भी लिंग बनाया; क्योंकि तुम बच्चे बड़े बाबा के बच्चे बन सर्विस कर रहे हो । क्या करते हो? बरोबर भारत को फिर पवित्र बनाने में मदद करते हो; क्योंकि तुम हो खुदाई खिदमतगार । वो मुसलमान भी कहते हैं; क्योंकि तुम्हारी बाप से प्रीत है बाप की मत पर, श्रीमत पर । भई, श्रीमत तो गीता का शास्त्र है- श्रीमत भगवत गीता । अभी भगवान तो शास्त्र नहीं पढ़ेंगे, बनाएँगे । नहीं, कुछ भी नहीं; क्योंकि शास्त्र कोई नहीं उठाएँगे । जो धर्म स्थापन करने वाले होंगे वो शास्त्र नहीं उठाएँगे । वो आते ही हैं धर्म स्थापन करने और उनके पास धर्म स्थापना की जो नॉलेज है वो बैठ करके सुनाएँगे । ऐसे नहीं कि क्राइस्ट आया तो बाईबल उठा करके पढा । वो आए ही हैं धर्म स्थापन करने । वो कहते हैं कि बरोबर बाबा ने उनको भेजा है कि जाकर धर्म स्थापन करो । अभी वहाँ कहना का नहीं होता है; क्योंकि वो तो साइलेन्स वर्ल्ड है; परन्तु लिख दिया । यह भी लिखा तो उसमें है- श्रीमत भगवत गीता । श्रीमत यानी श्रेष्ठ मत । तो बरोबर ऊँचे ते ऊँची श्रीमत है ही भगवान की । ऊँचे ते ऊँचा भगवत् तो श्रीमत भी भगवान की है ना । तो अभी जानते हो कि हम श्रीमत पर चल.... नटशेल में एक पाई-पैसे की बात कहते हैं कि बच्चे, अब मुझे याद करो । देखो, अक्षर ही दो हैं । एक तो विस्तार बताते हैं, दूसरा दो अक्षर कहते हैं और बड़े प्यार से । बच्चे जानते हैं कि अभी हमको, जो सबका निराकार बाबा है, वो हमको बताते है । यह किसी मनुष्य की बुद्धि में नहीं है कि ईश्वर ने हमको पैदा किया, खुदा ने हमको पैदा किया, सबको पैदा किया । तो बाप है ना । तो जैसे हम ईश्वरीय फैमिली के मेम्बर हो गए । कभी कोई की बुद्धि में होगा? इनको भी कभी नहीं था । यह भी तो बहुत भक्ति करते थे । गीता पढ़ना, फलाना करना, शास्त्र पढ़ना, सुनाना, ये सब कुछ करना, गुरू करना, ये करते थे । अभी बाप आ करके इस द्वारा कहते हैं । यह तो नहीं कह सके ना । बच्चे जानते हैं कि बाप आ करके कहते हैं कि ये जो अबलाएँ हैं, कुब्जाएँ है, गणिकाएँ हैं, भिलनियाँ हैं, अजामिल हैं, साधु लोग हैं, फलाना हैं इन सब आत्माओं को मुझे पावन बनाए और मुझे वापस साथ में ले जाना है । बाबा आया है तुमको इस दुःखधाम से छुड़ाने । बाबा कहते हैं मैं प्रीऑरडेंट वर्ल्ड ड्रामा अनुसार फिर से आया हूँ तुम सब आत्माओं को वापस ले जाने । आत्माओं को कहते हैं ना । आत्माओं से बात करते हैं । यह परमात्मा इस आत्मा को... । यह आत्मा मुझे सुनती है कि बरोबर बाबा हमको नॉलेज दे रहे है और यह सुनते रहते हैं । कोई से तो सुनाएँगे ना । उनको अपना शरीर तो है नहीं ना । कहते भी है साधारण तन द्वारा । कृष्ण का कोई साधारण स्वरूप है? अरे वाह! कृष्ण एकदम नंबरवन जो भारत का पहला स्वर्ग का शहजादा है उनको कोई साधारण थोड़े ही कहेंगे, परन्तु फिर कह देते है श्रीकृष्ण भगवानुवाच । अभी श्रीकृष्ण भगवानुवाच तो हो भी नहीं सकता है । देखो, कितना फर्क! ये जो विद्वान हैं वो कहते हैं श्रीमत भगवत गीता, फिर श्रीकृष्ण भगवानुवाच । अब श्रीमत तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत हुई ना । संगमयुग पर श्रीकृष्ण तो हो ही नहीं सकते हैं ना । श्रीकृष्ण का चित्र देखा है ना । आर्टीफिशल श्रीकृष्ण तो बहुत बन जाते हैं, डास करते हैं... .वो ठगी तो बहुत करते हैं । क्यों? यह समझना चाहिए कि यह जो श्रीकृष्ण का वेश धारण किया हुआ है, यह तो नाटक है ना । यह भक्तिमार्ग में नाटक है, क्योंकि उनको प्यार करते है । वो कोई कृष्ण थोड़े ही है । कृष्ण तो सतयुग में होंगे । फिर कोई कृष्ण के नाम से कृष्ण थोड़े ही हो जाएँगे । श्रीकृष्ण तो बहुतों ने नाम रख दिया है । भई, यह है श्रीकृष्णचंद यह है श्रीराधेकृष्ण चंद, यह है श्री सीताराम । आजकल नाम ही रख देते हैं । किसका नाम सीताराम है तो लिखेंगे श्री सीताराम । ऐसे लिख देते हैं, क्योंकि आजकल जैसे बंदर लोगों के ऊपर श्री का टाइटल, ताज रख दिया है । इसको यहाँ बंदर सम्प्रदाय कहा जाता है; क्योंकि वो विकार में भी बिल्कुल कड़े हैं एकदम । उसको गाली दे देते हैं । लिखा भारत में द्रौपदी को पाँच पति थे । अरे, तुमने शास्त्रों में यह क्या लिखा है! भारत की माता, जो पति को गुरू ईश्वर ये सब समझे, उन माताओं के लिए लिख दिया है कि द्रौपदी को पाँच पति । अभी द्रौपदी कौन ठहरी? द्रौपदी नंबर वन हो गई । द्रौपदियाँ तो तुम सभी हो । उसमें नम्बर वन फिर मम्मा भी है, माताजी । तो ऐसे थोडे ही होता है कि द्रौपदियो को पाँच पति हों । तुम द्रौपदियाँ हो ना! तुम सब बच्चियाँ जो द्रौपदियॉ हो, अभी इस समय में पुकारती हो । कल्प पहले भी इस समय में पुकारा था- हे बाबा! हमको यह पति नंगन करते हैं । अब दुशासन नाम तो नहीं है ना, पति ही कहेंगे । आप कहते हो कि नंगन नहीं हो, पवित्र बनो । यह अंतिम जन्म पवित्र बनो तो फिर मदद करेंगी पवित्र दुनिया स्थापन करने के लिए और पवित्रता तो सबसे अच्छी ही है । तो ये सब बहुत मार खाती हैं नंगन होने के लिए, अबलाओं के ऊपर अत्याचार होते है । वो एक नाटक में दिखलाते हैं कि उनको साड़ी दी । एक उतारी तो दूसरी, एक उतारी तो दूसरी, 21 दिखलाते हैं । अब वो तो हो गई आखानी । कहाँ बाप कहते हैं कि 21 पीढ़ी तुम बच्चे कभी भी नंगन नहीं होंगे । वहां यह नंगन होने का कायदा नहीं है । लॉ नहीं है, क्योंकि वहाँ विष तो होती नहीं । वहाँ रावण राज्य तो है नहीं । राम राज्य है । रावणराज्य में अशुद्ध अहंकार है । काम क्रोध लोभ मोह अशुद्ध अहंकार है ना । अशुद्ध अहंकार देह अभिमान । देह बीमार हुई, देह मरती है तो बस डर जाते हैं । उसको कहा जाता है देह अभिमान । वहाँ आत्माभिमान है । हम शरीर छोडेंगे, यह पुरानी खल हो गई, अभी बच्चा बनने का है । चलो, छोड़ो इसको सर्प के खल मुआफिक, हम फिर दूसरा लेते हैं । उसको कहा जाता है आत्म अभिमानी । यहाँ फिर देह अभिमानी । तो बाप अभी बैठ करके आत्मअभिमानी फर्स्ट बनाते हैं और फिर कहते हैं कि अभी बच्चे बैठे हो ना । सभी आत्माएँ हो जरूर । एक शरीर छोड्‌कर दूसरा लेते हो । अभी बाबा कहते हैं- बच्चे, और अभी तुम्हारा बचने का कोई उपाय नहीं है । थोड़ी बात है । वो तो. नटसेल में बैठ करके समझाते हैं । अभी बाप को याद करो, शिवबाबा को याद करो, क्योंकि तुमको जाना है । यह आत्मा की यात्रा होने वाली है । सब आत्माओं की सच्ची सच्ची रूहानी यात्रा होनी है । सब बाबा के पास जाने है । सुप्रीम बाबा के पास जाना है । यह कहाँ की भक्तिमार्ग की स्थूल यात्रा नहीं है । अभी तुमको यात्रा करनी है, बाप के पास जाना है । तो यात्रा पर जाओ । जब भी तीर्थ यात्रा पर जाते हैं तो रास्ते में राम-राम ऐसे-ऐसे कहते जाते हैं । बाबा कहेंगे राम राम मत कहो । तुम क्या करो? तुम बाप को याद करो; क्योंकि अभी वापस घर जाना है । जहाँ हमारा निवास स्थान है, जहाँ से यहाँ कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाने आए है, अभी वापस जाना है । बाप आया हुआ है ले जाने के लिए; परन्तु तुम्हारी आत्मा पतित है । सब दुनिया तो बैठ करके नॉलेज नहीं लेगी, सब दुनिया तो बैठ करके राजयोग नहीं सीखेगी, क्योंकि राजयोग सीखने वाले, जिन्होंने कल्प पहले सीखा है वो ही आएँगे । इसको कहा जाता है कलम लगता है । फिर इस सारे पुराने झाड़ से, जो देवी-देवता झाड़ मीठा था, वो प्राय:लोप हो गया है । बाकी तीन मुख्य टाँग खडी हुई हैं और मल्टीप्लीकेशन । जैसे जो बड़ का झाड़ होता है ना, जिसको बनियन ट्री कहते है । पीपल नहीं, बड़ का, वो बहुत बड़ा होता है । माइलों में भी वही झाड़ होता है, सेना भी बैठ जावे । बाप कहते हैं यह मिसाल देता हूँ कि जैसे वो झाड़ है ना, यह भी झाड़ ऐसा है । वो सीधा है, ये उल्टा है । अभी देखो, उल्टा झाड़ जिसमें पहले- देवी-देवताओं का धर्म है, पीछे इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन । अभी देवी-देवताओं के झाड़ का यह थुर एकदम सड़ गया है । एकदम निकल गया है । सिर्फ बाकी इतनी सारी जाकर रही है । थुर बाकी था, अब नहीं है, सड़ गया है । तो बरोबर देवी-देवताओं का धर्म अभी सड़ गया है, सिर्फ चित्र रहे हैं । लक्ष्मी-नारायण का चित्र, सीता-राम का चित्र, बस वो पूजते हैं । ये कौन हैं, यह कोई को पता नहीं है । न अपने धर्म का पता, न वो श्रेष्ठपने का पता । तो वो धर्मभ्रष्ट और कर्मभ्रष्ट बन गए हैं । इसलिए कोई अपन को देवी-देवता नहीं..... । अब आर्य बन गए हैं । आर्य नाम रख दिया है, परन्तु आर्य नाम नहीं है । नाम तो बहुत ही रख देते हैं । बाप समझाते है....... तुम्हारा यह भारत, उफ! बात मत पूछो, सोमनाथ का मंदिर कितना ऐसा था, अभी तो कुछ भी नहीं है । अभी तो एकदम.. .है । 100 परसेंट इररिलिजियस । नहीं तो धर्म को कहा जाता है रिलिजन इज माइट । उसमें ताकत है । अभी तो भारत में रिलिजन है नहीं । नो ताकत, पाई की भी ताकत नहीं है । एकदम जरा भी ताकत नहीं है और कितनी ताकत थी । अभी वो ताकत का धर्म फिर कैसे स्थापन होवे? तो बाप है सर्वशक्तिवान । गाया जाता है । अभी वर्सा तो उनसे मिलेगा ना । सब वर्सा उन्हीं से मिलेगा । ताकत भी उन्हीं से मिलेगी । पवित्रता भी उन्हीं से मिलेगी । किससे मिलेगी? बाबा! मनुष्य सृष्टि का बीज रूप हो गया बाबा । हम बरोबर उनकी फैमिली हो गई । बाबा मनुष्य सृष्टि का बीज रूप । फिर कहते भी हैं सत् है, चैतन्य है, फिर कह देते हैं ज्ञान का सागर है । कौन? वो अशरीरी, जिसको शरीर नहीं है, उस आत्मा में । तो सब कुछ आत्मा में है ना । तो तुम भी... । आत्मा पढ़ती है ना । आत्मा सुनती है ना । आत्मा में ही बुरे खराब संस्कार होते हैं ना । तो इस समय में सबकी आत्मा एकदम पुरानी, तमोप्रधान हो गई है । सबसे जास्ती तमोप्रधान बुद्धि किस आत्मा की हुई है? भारत की; क्योंकि सबसे जास्ती श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ आत्माएँ भारत की थीं, क्योंकि पहले आती हैं ना । तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ और पैराडाइज या हैविन की मालिक थीं । तो नाटक बना हुआ है ना । सबको पार्ट मिला हुआ है । देखो, जो बडे अच्छे एक्टर्स होते हैं, वो बडा अच्छा फर्स्टक्लास गाना, बड़ा फर्स्टक्लास ताल बजाते हैं । तो देखो, उनको कितना मान है । नाटक में जो अच्छे एक्टर्स होते हैं उनका मान होता है ना । तो इसमें भी सबको बहुत ही एक्ट मिला हुआ है । यह वण्डर है कि आत्मा को.., .यह साइन्स घमण्डी तो अपनी बड़ी साइन्स निकालते है; पर यह बाप की साइन्स तो देखो! बाप आकर कहते हैं कि तुम्हारी आत्मा और साढ़े पांच सो करोड़ आत्माएं सब एक जैसी हैं । कोई फर्क नहीं है । बाप की भी फर्क नहीं है । ऐसे नहीं है कि हम छोटे हैं, वो बडे हैं । ना, आत्मा छोटी-बड़ी नहीं होती है । आत्मा कटती नहीं है, टुकड़ा नहीं होती है, विनाश नहीं होती है, जलती नहीं है, यह तो सभी जानते हैं ।... .यह साइन्स घमण्डी की बुद्धि में न बैठे । इतनी छोटी आत्मा, 84 जन्म का पार्ट बजाती है । फिर से रिपीटेशन होती है, कभी एण्ड नहीं होती है । देखो, कितनी ऊँची बात है! बाप बैठकर समझाते हैं कि एक आत्मा और 84 जन्म लेती है । एक आत्मा कितनी सर्विस करती होगी और उसमें वो अविनाशी पार्ट भरा है । वो अविनाशी पार्ट कभी मिटने वाला नहीं है । इम्पेरिशेबल पार्ट है । कितनी ऊँची बात है! अब क्या ये पण्डित लोग जानते हैं? विद्वान लोग जानते हैं? श्री श्री 108 कहलाने वाले जानते हैं? अब शास्त्रों की अथॉरिटी वाले जानते हैं... नहीं । जो बहुत पढ़े रहते हैं, बोलते हैं कि ये पण्डित तो शास्त्र की अथॉरिटी है । ये भगवान बैठ करके वेद उच्चारण करते हैं । क्या उनमें ये ज्ञान है? कुछ भी नहीं, बिल्कुल जरा भी नहीं । तो वण्डर है एक बहुत । कोई भी नहीं समझ सकते हैं । बुद्धि ही काम नहीं करती कि क्या हो सकता है । इतनी जरी-सी। मनुष्यों को पार्ट मिलता है 2-4 घण्टे का । अरे, ये आत्माएँ इतनी सभी और परमपिता परमात्मा वो भी ड्रामा के वश में है, क्योंकि पार्ट बजाने के लिए ड्रामा में बंधा हुआ है । कहाँ संगमयुग पर एकदम पूरे एक्युरेट टाइम पर आएँगे; क्योंकि उनको भी पार्ट बजाना है । सब बच्चों को सुखी बनाना है । जब भारत थे तब सब सुखी थे और अभी जानते हो कि इतनी जो आत्माएँ हैं वो कहाँ होंगी? वो परमधाम में यानी घर में होंगी; क्योंकि उनका पार्ट ही नहीं है, तो वहाँ ही होंगी ना । जब पार्ट बजाने का होता है तब वो ऑटोमैटिकली आती-जाती हैं । पहले तो ये खयाल करो कि आत्मा..... बाबा की जो आत्मा है वो इतनी जरा सी है । परमपिता परमात्मा यानी परमधाम में रहने वाली । वो भी आत्मा है । ऐसे नहीं कि वो कोई बड़ी है । यह जो लिंग बनाते हैं, वो इतनी बड़ी, उनकी पूजा कर सकेंगे? उनके ऊपर पानी चढ़ाएँगे? भक्तिमार्ग के लिए इन्होंने, यह ड्रामा में नूँध है कि बड़ी चीज बनाते हैं, जिसकी पूजा भी हो सके । कहते भी हैं कि यह है परमपिता परमात्मा... शिव, नाम है ना बरोबर । पीछे भले नाम रख दिया है रुद्र वगैरह । यह भी तो शास्त्रों में लिख दिया है रुद्र ज्ञान यज्ञ, बाकी नाम एक ही है- शिव । व्यापारी लोग होते हैं ना, तो 1,2,3,4..., पिछाड़ी आएगी तो लिख देंगे शिव, माना मूरी । शिव को दूब अथवा नॉट कहते हैं । तो नॉट लाइक यह आत्मा है । नॉट समझते हो? बिन्दी । यहाँ बहुत बिन्दी देते हैं । यहाँ तिलक देते हैं ना । तो देखो, ये समझने की बात है ना और तो कोई समझा नहीं सकेंगे; क्योंकि ये तो नहीं कहते इसको कोई ने सिखलाया है? नहीं ! हमारा कोई गुरू ऐसा है नहीं जिन्होंने मुझे कुछ सिखलाया था । कुछ भी मैं नहीं जानता था । मैं बताता हूँ ना । मैं गीता पढ़ता था, सुनाता था भागवत, रामायण । रोज गीता का पाठ । गीता के पाठ बिगर कभी भोजन नहीं खाएँगे । हमको यह ज्ञान तो था ही नहीं । ये भी कहते थे श्रीकृष्ण भगवानुवाच । मैं यह क्या जानता था, कौन जाने, कौन बतावे! तो देखो, बाप है ना । यह कोई भी नहीं बताएगा । तो यह कहाँ से सीखा होगा, जो कहते है कि यह इनका ज्ञान है? यह इनका ज्ञान नहीं है । यह बाप बैठ करके समझाते हैं । यह एकदम महीन बात है । एक आत्मा इतनी छोटी उनमें अविनाशी पार्ट भरा है । कभी मिटने वाला नहीं है एकदम । इम्पेरिशेबल कभी नहीं मिटेगा । यह चलता ही रहता है, चलता ही आया है । देयर इज नो एण्ड । देखो तो, चीज कितनी है! ऐसे बाप बैठकर समझाकर कहते हैं कि हे बच्चों! जरूर ऑरगन्स चाहिए ना । देखो, ऑरगन्स कितने बड़े हैं! तो आत्म अविनाशी है, कितनी छोटी है! उनसे कितना यह पार्ट बजता है । तो बाप बैठ करके कहते हैं- मीठे- मीठे बच्चे, किसको कहते हैं? आत्मा को कहते हैं ना । कितनी छोटी है, यह कितना सुनती है । तकलीफ नहीं करो, मैं बहुत सहज उपाय बताता हू । श्रीमत भगवानुवाच! मैं बहुत सहज उपाय सबको कहता हैं? क्योंकि अभी विनाश होने का है । अभी तुमको मेरे पास वापस आना है । तुम पतित हो । तुम्हारी आत्मा पतित है तो शरीर भी पतित है । ऐसे नहीं कि तुम्हारी आत्मा कोई पावन है । नहीं, उनमें अज्ञान की खाद पड़ती है; इसलिए तुम्हारा नाम ही कहा जाता है सतोप्रधान सतो रजो तमो । अभी कोई की नहीं सुनो । बहुत सुनते हो ना तो व्यभिचारी बन गए हो । अभी अव्यभिचारी सुनो, एक से सुनो और वो क्या कहते हैं? बस, मेरे को याद करते रहो, रहो खाओ, पिओ । बरोबर सुनते हो ना! हमको कौन सुनाते हैं? बाबा सुनाते हैं । उठते बैठते सुनते कोशिश करो- ' 'बाबा' ', बाबा, तुम कमाल करते हो! कैसा ज्ञान आकर सुनाता है! कोई की ताकत नहीं है, जो यह ज्ञान सुनाय सके और यह नॉलेज दे सके । यह कोई भी शास्त्र में बिल्कुल है नहीं । भक्तिमार्ग के लिए कोई ने बैठ करके बनाया है श्रीकृष्ण भगवानुवाच । चलो, वो खतम हो गया। न श्रीकृष्ण की गीता, न उनका भागवत, क्योंकि कनेक्शन रखता है ना । न भागवत, न महाभारत, न रामायण । यह रामायण वगैरह कुछ भी नहीं है । यह सब बनाया हुआ है । ड्रामा अनुसार पहले से ही जैसे कि बना पड़ा है । यह रामायण वगैरह- वगैरह फिर होंगे । तो ये धर्म की ग्लानि किससे बने? तो ग्लानि के शास्त्र हैं । वो बहुत प्रेम से गीता पढ़ते हैं । अच्छा, गीता पढ़ी, पढ़ते आए हैं-पढ़ते आए हैं और कला कम होती गई है । अभी तुम्हारी चढ़ती कला है । बाप बैठ करके फिर ये सहज राजयोग सिखलाते हैं, जिसको गीता नाम कहा है । बाप सुनाते है, चढ़ती कला होती है और सब जो सुनाते है तो उतरती कला होती जाती है, गिरते जाते हैं, होती है ना! अभी चढ़ती कला हुई ना । तो तुम्हारी सबसे जास्ती चढ़ती कला अब होती है । बाप आकर पढ़ाते है । बेहद का बाप, भगवान! भगवान पढ़ाएगा तो भगवती और भगवान बनाएगा ना । तो बरोबर लक्ष्मी और नारायण को भगवती और भगवान कहते हैं । उनको यह मर्तबा कहाँ से दिया? कलहयुग के अत में कहाँ हैं? सभी भ्रष्टाचारी साधु-सत वगैरह इनका भी उद्धार करने आता हूँ । यह यहाँ क्या सुनाएँगे! तो बाप बैठकर सब बच्चों समझाते हैं कि बच्चे, अभी समझते हो कि राइट बात है बरोबर ज्ञान और भक्ति । ज्ञान ब्रह्मा का दिन । तो सिर्फ ब्रह्मा थोड़े ही हुआ । प्रजापिता ब्रह्मा मुखवंशावली तो जरूर बच्चों का भी तो होगा ना । तो बरोबर इस समय में तुम जानते हो कि रात है और बाप आ करके दिन का रास्ता बताते है यानी सतयुग का रास्ता बताते हैं । किसको? अंधों को । है ना! क्या लिखा... नैनहीन को राह बताओ प्रभु, यह यहाँ थोड़े ही बनाया है । यह तो जनरल गवर्मेन्ट के रेडिओ में आता है और सारी गवर्मेन्ट माना सभी प्रजा, सारा राज्य कहता है- हम नैनहीन हैं, हमको राह बताओ प्रभु । कहाँ की? अपने घर की, तो मैं आपके पास चला आऊँ । यहाँ तो बहुत दुःख है । हमको राह बताओ, प्रभु! बाबा! अभी प्रमु का अर्थ कोई समझते नहीं हैं । हैं नैनहीन । गाते हैं हम नैनहीन की, अधों की लाठी- हे प्रमु बाबा! अब प्रभु का अर्थ नहीं समझते । ऐसे नहीं कि ओ बाबा! तो 'बाबा अक्षर होने से वर्सा याद आएगा । प्रभु कहने से, भगवान कहने से, ईश्वर कहने से और बाबा न कहने से वर्से का वो लव नहीं आता है । भगवान में लव है, पर भगवान को कुछ इतना जानते नहीं है ना । अभी तुम बच्चों को पता है प्रभु किसको कहा जाता है? बाप को । तो लव जाता है बाप को । अभी जो हम बच्चे हैं, बाप जिसको भगवान बाप कहते हैं, क्रियेटर कहते हैं, उनमें भी लव जाता है । बाबा बुद्धि का योग बाप से जुटाते हैं और कहते है ये तुम्हारा त्वमेव माता; पिताश्च बंधुश्च सखा क्यों कहते हैं? बोलते है कि जो भी हमारे चाचा, काका, मामा, गुरू व् गोसाई थे उनसे दुःख ही दुःख मिला है । दुःख का ही रास्ता मिलता है । यह जो भक्तिमार्ग में सुनाते हैं कि वेद पढने से रास्ता मिलता है भगवान से मिलने का, मुक्ति मिलने का। बाबा कहते हैं- नहीं, वेद पढ़ने से मुक्ति का रास्ता नहीं मिलता है बल्कि वहीं मत्था ठकराता है माना माथा फूटता है । और तो कुछ भी नहीं होता है । बोलते है- पढ़ते आए हो ना । पीछे तुम्हारी चढ़ती कला हुई या उतरती कला होती गई? बाबा बोलते हैं कब से वेद पढ़ते हो? अनादि । क्या सतयुग से शुरू से वेद पढते हो? अभी पता तो कुछ भी नहीं, कह देते हैं अनादि । गीता? अनादि । अरे, अनादि का कोई अर्थ भी तो होगा सतयुग से ले करके? नहीं, यह तो भक्तिमार्ग है ना । तो कुछ भी नहीं जानते हैं । बाबा कहते है इसलिए नहीं जानते हैं; क्योंकि तुम उतरती कला में आते हो, बिल्कुल ही पतित हो गए हो । अभी मैं आ करके तुमको सब वेदो ग्रंथो शास्त्रों का सार समझाता हूँ । किस द्वारा? ब्रह्मा द्वारा । तो ब्रह्मा बच्चा हुआ ना या विष्णु के बच्चे बने? उनकी नाभि से निकले? ब्रह्मा तो शिवबाबा का बच्चा हुआ ना । क्या कोई कहेंगे कि ब्रह्मा विष्णु का बच्चा है? यह तो कोई कह ही नहीं सकते हैं । तीन बच्चे ब्रह्मा विष्णु शकर, ऊपर में शिव, उनके बच्चे हुए या विष्णु की नाभि से निकले? माता की नाभि से कोई निकलता है या विष्णु की नाभि से निकल गया? वो जो दिखलाया है विष्णु की नाभि से, तो बाबा ने उस दिन समझाया ना कि गाँधी जी ने रामराज्य स्थापन करने के लिए पुरुषार्थ किया, फिर वो नहीं हो सका । फिर नाभि से नेहरू जी निकला । अच्छा, फिर भला क्या हुआ? रामराज्य स्थापन हुआ? नहीं, वो भी बेचारा चला गया । अभी नाभि से फिर निकला शास्त्री जी । अभी देखो, फिर क्या होता है । देखो, कैसी दंतकथाएँ हैं! इसको कहा जाता है दंत कथाएँ । बाप बैठ करके समझाते हैं- बच्चे, अभी मुझे याद करो । सबका मौत आने वाला है । ऐसे नहीं कि राम-राम कहो । मरते हैं तो उनको ऐसे कहते हैं श्रीकृष्ण कहो, राम कहो, हनुमान कहो, महावीर कहो, जिसको जो आता है सो उनको याद करते हैं । महावीर को कोई हनुमान भी समझ लेते हैं; क्योंकि रामायण की कथा में हनुमान को महावीर कहा है । बंदर की सेना ली । कितनी मत देखो! पहले रावण की मत थी, आसुरी मत । इसको भी समझते हैं कि यह भी सत् । बरोबर सीता ने बहुत दुःख सहा था, अरे! रावण ले गया, बस बात मत पूछो । नाटक में बैठ करके रोते भी हैं । अच्छा, तो यह सभी है भक्तिमार्ग । बाप समझाते हैं यह सारा भक्तिमार्ग का अभी अंत आता है । अभी ज्ञान की आदि है । तो बाप बैठ करके सब राज समझाते हैं । कोई भी अगर कोई बात न समझे तो पूछें । अभी सब बाबा से तो नहीं पूछेंगे ना । बाप फिर कहते है मैं अपने से बच्चों को होशियार समझाऊँ, तभी तो मैने सच्ची सेवा की ना कि बच्चों को सिर पर चढाऊँ । ये मालिक बनते हैं । बाप बच्चे की इतनी सेवा करे जो इतना ऊँचा बने । कोई बाप है, उनको चार बच्चे हैं, कोई बैरिस्टर, कोई कुछ । सभी बोलें वाह-वाह और खुद 10,50,100 रुपये की नौकरी करते रहेंगे और बच्चे को देखो तो एकदम बैरिस्टर, एमएलए बन जाते हैं । ऐसे बहुत है, ढेर है । भले उन्होंने मेहनत की है, परन्तु कहलाएँगे कि ये फलाने के बच्चे हैं, बैरिस्टर हैं, ये हैं । अभी तुमको यह बाप मिला है, तुम सब बच्चे बने हो । बाप बैठ करके बच्चों को पढाते हैं । वो कहते है कि बच्चों को मैं इतना पढाऊँ जो विश्व का मालिक बनें; क्योंकि विश्व का रचता है । तो तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ । बाबा कहते हैं यह भी पढ़ता है । तुमको कहता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाएँगे; क्योंकि तुम विश्व के मालिक थे । फिर माया ने तुमको जीत लिया है । तो हार और जीत । जब जीत है तो बादशाह और यह भारत मालामाल है, फिर जब रावण का राज्य और हारा है तो माया ते हारे । माया माना पाँच विकार, रावण । तो इस समय में जैसे कि रावण और राम की लड़ाई है । यह रावण सम्प्रदाय है । बाप आ करके माया के ऊपर जीत पहनाते हैं । तो माया जीते जगतजीत, जगत का जीत यानी विश्व का मालिक बनते हो ना । देखो, वो कितना निष्कामी है! बाबा कहते हैं कितना निष्कामी मेरा पार्ट है । मैं तुम बच्चों को कल्प-कल्प पढ़ाय कर करके , कोई नई बात थोडे ही है । तुम अनगिनत समय ऐसे मिले हो और बाप से ये सुना है । तो जो-जो भी दिन पास्ट हो, तब भी ऐसे ही कहेंगे कल्प पहले ऐसे ही मिले थे । फिर एक घण्टा के पीछे बैठ करके खाना खाते हैं, कल्प पहले हम ऐसे ही खाना भी साथ में खाए थे. क्योंकि ड्रामा है । इन बातों को और तो कोई समझते भी नहीं हैं । बाप बैठ करके समझाते हैं । जैसे कल्प पहले समझाया था हूबहू, ऐसे ही इनका पार्ट अभी बज रहा है जब तलक यह विनाश भी हो । जब ज्ञान पूरा हो जाता है, बादशाही स्थापन हो जाती है तब वो चला जाएगा, लड़ाई शुरू हो जाएगी । फिर चलो घर । तो तुम ताली बजाते जाएँगे । तुमको ज्ञान है कि हम घर जाती हूँ । घर भी तुमको ऐसे जाना है बस पिछाड़ी में जब होता है ना उस समय ऑटोमैटिकली तुम बैठ जाएँगे कि अभी यह खलास होता है, चलो, हम जाते हैं । बाबा, हम आते हैं, इस शरीर को छोड़ देते हैं । ऐसे कहते बाबा को याद करने की आदत पड़ेगी तो देह अभिमान टूटता रहेगा । तो पिछाड़ी में ऐसी अवस्था हो जाएगी जो देह अभिमान बिल्कुल टूट जाता है, जो पुरुषार्थ करते हैं, पीछे बैठे-बैठे। ऐसे कोई कोई सन्यासी भी होते है जो ऐसे बैठे बैठे शरीर छोड़ देते हैं; परन्तु उनका ज्ञान अलग । वापस जाते तो कोई भी नहीं है । एक भी मनुष्य मात्र कोई भी वापस गया ही नहीं है । ये जो कहते है बुद्ध निर्वाण में गया, फलाना ज्योति ज्योत में समाया, ये सब गपोडे । सारा नाटक पूरा होने के बाद बाप आएँगे फिर सभी आत्माओं एक्टर्स को साथ में ले जाएँगे । यह सब गपोडे हैं फलाना ज्योति ज्योत में समाया, फलाना वैकुण्ठ में गया, फलाना निर्वाण में गया, बुद्ध पार निर्वाणा गया । एक भी नहीं । जिसको स्थापना करनी है उनको पालना करनी है । सबको पुनर्जन्म लेना ही है । पहले-पहले वाले श्री लक्ष्मी और नारायण फर्स्ट मनुष्य प्योरिटी में, ऐसे कहेंगे ना । उनको पहले 84 जन्म लेना है । तो दूसरे भला कौन हैं जो जन्म-मरण में नहीं आएँगे या वापस चले जाएँगे? एक भी नहीं जाता है । अभी बाबा आया हुआ है ना । बाप जाएगा, साजन बाबा, वो रास्ता जानते हैं । बाकी जो भी कुछ करते रहते हैं, थक मत्था पलटा(फटा) । वही भूलभुलैया । भक्तिमार्ग से कभी भी कोई भी जा नहीं सकते हैं । भक्तिमार्ग से गिरना ही पड़ता है । वेद यज्ञ तप दान पुण्य तीर्थ देखो कितना करते हैं! इसको ही कहा जाता है बाप से मिलने के लिए धक्का खाना; परन्तु मिलता कहाँ भी नहीं है । क्या वहाँ अमरनाथ में बाप बैठे हैं? अरे, वो तो जमीन है । वहाँ शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई और कोई पैरट ने बैठ करके सुनी । अरे, यह तो कोई दंत कथा थी । सूक्ष्मवतन में रहने वाला कहाँ पहाड़ पर कैसे! यह तो बात ही नहीं है । कथा ही काहे की! क्या बात है कुछ! सूक्ष्मवतन कहाँ, शंकर का रहना कहाँ, ये भी नहीं समझते । तो यह जो-जो भी ऊँची कथाएँ बनाई हैं, भक्तिमार्ग के लिए सब डिफीकल्टी है । भक्तिमार्ग डिफीकल्टी है । अच्छा, टाइम भी होता है और दूसरी बात, अभी बाबा बन्द करते है । फिर भी कहते हैं- बच्चे, बाप को याद करो । भले रहो गृहस्थ व्यवहार में, याद करते रहो । जैसे देखो, बैठकर पूजा करेंगे तो बुद्धि धंधे में चली जाएगी । अभी जो कुछ भी करो तुम्हारी बुद्धि जानी चाहिए वहाँ जहॉ जाना है । करो सब कुछ, बाबा मना नहीं करते हैं; रहते तो इस पुराने शरीर में हो ना । यह दिल में समझो कि यह तो अभी पुराना शरीर है, अभी नाटक पूरा होता है, अभी तो इसको छोड़ना है । यह एकदम पुराना है । यह भारत अभी कब्रिस्तान होने का है । यह असुल परिस्तान था । पीछे गिरते गिरते अभी बहुत ही पुराना झूड (जीर्ण) हो गया है । बिल्कुल दुख है इसमें । यह खलास होने का है । इनसे क्या हम ममत्व रखें! वाह! नया स्वर्ग, नई दुनिया, हम उनमें जाने वाले हैं । तो यह ज्ञान हुआ बुद्धि से । यह जो कुछ भी हम देखते हैं ये सभी जड़जड़ीभूतत सब खतम होने वाले हैं । हमारी ये बेचारी माताएँ भी अभी खतम हो जाएगी । एक शरीर छोड करके पार्ट बजाएंगी या तो ये सभी सजाएँ खा करके वापस जाएँगी । यह ज्ञान बुद्धि में है । हमको तो जाना है ना । बाबा ने हुकुम फरमाया है कि बच्चे, अब सिर्फ मुझे याद करो, और कोई न याद करो । मेरे पास आएँगे मुक्तिधाम । बहुत सहज है । न कोई खिटपिट, यह भक्तिमार्ग में बहुत कोशिश किया, मैं सहज ते सहज बताता हूँ सिर्फ मुझे याद करो । कोशिश करो, ऐसे याद करो जो पिछाडी में कोई भी दूसरा याद न पड़े । नहीं तो गीत है अंत काल जो-जो जैसे जैसे सिमरे ऐसी योनि में वल-वल उतरे । फिर यह अभी बाबा कहते हैं कि मुझे याद करो । तीसरा नेत्र देने वाला इनको कहा जाता है । जो-जो ऐसी मेरी मत पर चलेंगे याद करने में सो मुक्ति पाएँगे, जीवनमुक्ति पाएँगे; क्योंकि है जीवनमुक्त । मुक्त भी जीवनमुक्त है; क्योंकि मुक्ति पाय करके फिर पहले-पहले जीवनमुक्त होंगे । पहले-पहले सुख भोगेंगे पीछे दुख भोगेंगे । गोया सबको जीवनमुक्ति दाता या सद्‌गति दाता । बरोबर सतयुग में कोई भी जीवनबंध नहीं था, सब सुख ही सुख था । क्यों? माया का राज्य ही नहीं होता है । काम, अशुद्ध अहंकार नहीं होता । बाबा ने कहा ना, उसमें आत्मा का शुद्ध अहंकार रहता है । यह शरीर बुड्‌ढा होगा और फिर सर्प की खल मिसल हम छोड़ करके दूसरा ले लेंगे । खुशी की बात, तो मौत भी हुआ, जन्म भी हुआ । बरोबर यह सभी जानते है कि यह मौत नहीं हुआ, जन्म हुआ । अरे, बुड्‌ढा शरीर छोड करके बच्चा बना; पर वो ज्ञान नहीं तो रोने लग पडते हैं । समझा ना । क्योंकि बच्चे को प्यार बहुत करना होता है । बुडढे और बीमारों को तो प्यार करे कोई? तो अच्छा है ना बुड्‌ढा मरेगा, बच्चा बनेगा, प्यार के लायक बनेगा । तो यह सभी ज्ञान विस्तार है । विस्तार को छोडकर बोलते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । बस, बाबा बोलते हैं बाबा के बने तो बाबा का फरमान है कि याद करो । बस, और कोई तकलीफ नहीं । यह जो कहा जाता है ना कि गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए जनक को एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । कहते हैं कि हमको तो ज्ञान ऐसा चाहिए । सन्यासी थोडे ही रह सकेंगे, वो तो निवृत्तिमार्ग वाले हैं ना । प्रवृत्तिमार्ग होता है ना । यह निशानी है ब्रह्मा-सरस्वती, शंकर- पार्वती, परन्तु अर्थ कोई नहीं जानते है । अच्छा, टाइम तो हो गया है, कितना बजा है बच्चे? (किसी ने कहा- साढ़े सात बजे हैं) अच्छा, अभी यह तो समझा, बाबा तो फिर भी आएगा । बाबा कहते हैं कि एक तो कोई भी स्टेशन पर कोई भी माता न आवे, समझा ना । तुम शक्ति सेना! ये कहाँ बीड़ी की, फलाने की बू, गंद बास, बड़ा गंद रहता है । याद रखो तुम बडे रॉयल हो, सारे पतितों को पावन करने वाली ईश्वरीय डायरेक्ट संतान हो, कोटन में कोऊ, कोऊ में कोऊ जो मैं हूँ जैसा हैं विरले कोई मुझे पहचानते है । यहाँ बहुत बैठे रहते हैं ना, सब थोड़े ही एकरस पहचानते है । ना-ना, कोऊ विरला; क्योंकि कोऊ विरला ही पहचानेंगे ना, वर्सा लेंगे । सारी दुनिया तो नहीं लेगी ना । कौन आएँगे, सैपलिग? जो देवी-देवता धर्म की थी, जिनके 84 जन्म पूरे हुए हैं वो यहाँ-वहाँ से, कोई क्रिश्चियन से, मुसलमान से, सिक्स से फलाने से से निकलते आएँगे, निकलते आएँगे । आहिस्ते- आहिस्ते झाड़ बढेगा । झाड़ बढ़ता जाता है । चलो, यह काँटे से मुखडी बनी, चलते-चलते लगा तूफान तो यह मुखडी गिर गई । झाड़ होता है ना, गिर जाती है तो यह झाड़ धीरे-धीरे बढेगा । बहुत कहते हैं कि यह इतना इम्तहान बहुत.... क्यों नहीं है? औरों के तो बहुत हैं ना । अरे पर, यह तो बडी मेहनत है । औरों का तो बस गया, राधास्वामी सुना । चलो मैं तुमको गुरू किया । मैं इनको गुरू किया, ये सन्यासी का फॉलोअर बना । घूर भी फॉलोअर नहीं बना, छाई भी फॉलोअर नहीं बना । वो सन्यासी शिवानंद फलानानंद पवित्र और वो गृहस्थी कहते हैं हम आपको गुरू करते हैं । बरोबर हम आपके फॉलोअर हैं । तुम सन्यासी बनो तो फॉलोअर बनो ना, तुम गृहस्थी टटटू और कहते हो फॉलोअर हो! तो उनको समझाते है कि नहीं बच्चे, तुम फॉलोअर कैसे? मेरे को फॉलो तो करते नहीं हो । अब बाप कहते हैं मैं तुम्हारा सदगुरू हूँ तुम सबको मेरे को फॉलो करना है । मेरे पिछाड़ी सबको चलना है । मैं ले जाने आया हूँ तुम सब बच्चों को मच्छरों के मुआफिक वापस ले जाऊँगा । कोई सन्यासी कहेगा कि मैं तुमको ले जाऊँगा? मर जाते हैं फिर उनके पिछाड़ी जो गद्‌दी पर बैठते हैं तो उनको गुरू कर देते हैं । वो कहते नहीं हैं कि तुम फॉलो करो । सन्यासी बनो तब फॉलोअर कहलाओ, सब झूठ, ठगी । तो बाप बैठ करके ये सभी छुड़ाते हैं । अरे भई, टोली दिया झटपट? याद कर लेना बाबा डायरेक्शन देते हैं कि कोई भी स्टेशन पर नहीं आओ । .बहुत गंद लगा पड़ा रहता है । अरे, तुम समझते हो कि तुम कौन हो! बाबा जब भी आते हैं तो देखते हैं कि वेटिंग रूम में जगह नहीं है तो मैं अपनी कार में बैठ जाता हूँ । तुम्हारी बुद्धि कितनी.,.परन्तु ज्ञान से, कि क्या है देखो, ये मनुष्य क्या करते हैं, यह तो जैसे आसुरी सम्प्रदाय है, रावण की सम्प्रदाय है । हम राम की सम्प्रदाय हैं । बाबा ऐसे कहते है ना । यह सब हैं रावण सम्प्रदाय, आसुरी सम्प्रदाय । तुम हो दैवी सम्प्रदाय बनने के लिए । तुम अभी ईश्वरीय कुटुम्ब के हो, पीछे दैवी कुटुम्ब के बनेंगे । समझा ना! सूर्यवंशी दैवी कुटुम्ब के बनेंगे, फिर चंद्रवशी श्री रामचद्र के कुटुम्ब के बनेंगे । यथा राजा-रानी तथा प्रजा और पीछे तो कुटुम्ब की बात ही नहीं है । पीछे तो आसुरी कुटुम्ब बन जाते हैं । यह बुद्धि में रहता है ना । तो तुम बड़े रॉयल हो । स्टेशन पर कोई नहीं आवे, बच्चे भी नहीं । मैं आया हूँ दो-चार जो है, माथुर जी भी तो जाते हैं । अच्छा, यहाँ रह रहा हूँ तो जरूर मम्मी चलेंगी, वो चलेगी, इंद्र चलेगा, यह चलेगा । बस, पाँच-दस इनकागनिटो । बिचारे उनको क्या मालूम ये कौन हैं । दादा है, यह कलकत्ते का जवाहरी था । सो तो था, बाबा थोडे ही कहते हैं कि नहीं था । बाबा बोलते है वो बाप कहते हैं ना मैं इनके बहुत जन्म के अंत के जन्म में इनमें प्रवेश करता हूँ । जवाहरी था । जवाहर का धंधा करता था । बड़ा डिफीकल्ट । ये भी जवाहर हैं, ये भी रत्न है । ये ज्ञान रत्न जितना जो धारण करेंगे वो इतना बहुत साहूकार बनते हैं । इनको कहा जाता है अविनाशी ज्ञान रत्न, नॉलेज । इसके लिए कहा जाता है एक-एक रत्न पद्‌मों के हैं । इनका कोई मूल्य नहीं कहते है । इसके ऊपर रूप और बसन्त की आखानी है । ये दो थे, उनमें जो मुख से रत्न निकलते थे, ले गए कोई जवहारी के पास, वो कथन न कर सके । अब यह है कहानी । बच्चे, तुम हर एक आत्मा रूप-बसन्त हो । रूप तो है ही अविनाशी और अभी तुम मुख से यह ज्ञान वर्शन्स, रतन निकालते हो । इन अविनाशी ज्ञान रत्नों से तुम देखो क्या बनते हो । कोई शास्त्रों का थोड़े ही है । वो तो पढते- पढते, पढते पतित बन गए हैं, और ही ज्ञान रत्नों के साहूकार नहीं, बिल्कुल ही गरीब बन गए हैं । गीता भागवत रामायण पाठ फलाना बैठ करके वो पण्डित लोग उनको पर रख करके परिक्रमा दिलाते हैं शास्त्रों की । कभी देखी है ऐसी परिक्रमा? पीछे सबको परिक्रमा दिलाते हैं । देवताओं को भी परिक्रमा । जगन्नाथ की मूर्ति निकाली । उस गाडी के बैल बने जिसमें वो बैठे, फिर बैठ करके परिक्रमा देते है, महिमा करते हैं । नॉलेज कुछ नहीं । जगन्नाथ कौन है? बस, कितनी मूर्ति जगन्नाथ की! सबकी काली मूर्ति । जगन्नाथ की, जगत के नाथ की शिकल काली, मंदिर बनाय दिए हैं । जिनकी वो महिमा होती है वो भले जावे । हम लोग गुप्त । बाबा गुप्त, ज्ञान गुप्त, पढ़ाई गुप्त, वर्सा गुप्त, कौन जानते हैं ये क्या कर रही है । जैसे बापू जी की मदद करते थे तन मन धन से, तैसे तुम शिवबाबा को । अभी शिवबाबा तो दाता है ना । तुम तन मन धन से भारत की सच्ची सेवा कर रहे हो ।.. मेरे पास कल एक मेम आई थी । कौन थी? उसने गीत गाया जब बाबा ने समझाया... । गीत क्या गाया? (किसी ने कहा- नाउ दिस इज नॉट अवर होम, वी हेव टू रिटर्न टू अवर होम).. .यही तुम्हारा गीत वर्थ पाउण्ड है । बाकी जो भी गीत और कविताएँ आदि गाते हैं ऑल वर्थ पैनी । यह जो तुम्हारा गीत है यही वर्थ पाउण्ड है । (किसी ने कहा- फिर बाबा ने भी गाया) (किसी ने कहा- बाबा ने क्या गाया, गाना सुनाना) ये उनके साथ मिल गए ।.. .मैंने भी गा दिया । बस यही एक चीज है कि हम बच्चों को अभी बाप के पास जाना है । (किसी ने कहा- बाबा, हमको भी सुना दो)....! की आर ऑल गोइंग टू स्वीट होम, ओ गॉड फादर । इंग्लिश में समझाता था ऐसे एक्जेक्ट नहीं है, थोड़ा-बहुत जानता हूँ । (किसी ने कहा- एक बार इंगलिश में समझाओ). .बाबा की भी मुसाफिरी कहाँ एकदम ठीक टाइम पर पूरी हुई है । होस्ट भी जाता है, घोस्ट भी जाता है । मैं भी जाता हैं । (किसी ने कहा- हम भी जाते है) ऐसे कहावत है, अर्थ बाबा को भी मालूम नहीं है ।.. जिसको तुम गाते आते हो ना- मात-पिता, हम बालक तेरे । तो बरोबर जानते हो ये कोई साधु संत महात्मा गोसाई, मेरे को इन महात्मा का दर्शन ।..मुझे गाली दे दी । महात्मा कोई है नहीं । यह महात्मा है? ना । ये महात्मा कहते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है ।.ईश्वर को सर्वव्यापी बताने वाला दर्शन । वो तो ईश्वर को गाली देने वालों का दर्शन हुआ । टोली मिली? (किसी ने कहा- सब बैठ जाओ... सिकीलधे बच्चों प्रति 5000 वर्ष बाद फिर से आय मिले हुए बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमॉर्निग । हम कोई जुदा नहीं होते हैं । हम बाबा बच्चे हैं । एक साथ दो को चिट्‌ठीलिखते रहते हैं । बरोबर बाप जाते हैं तो बच्चों का चिट्‌ठी लिखना । खुश खैराफत और चिट्‌ठी जब भी लिखते हो तो भी शिवबाबा केअर ब्रह्मा । यह है पोस्ट ऑफिस । बाबा उनको कहते हैं लॉन्ग बूट । बॉम्बे में कोई गया होगा तो एक बगीचे में एक बड़ा बूट बना हुआ है । तो यह लांग बूट है यहाँ से यहाँ तक । इसमें बाबा प्रवेश करते हैं । देखो, बाबा कहते हैं मुझे पुरानी जूती में जाना पड़ता है । पतित-पावन आता हूँ तो यहाँ पावन तो कोई होता ही नहीं है । तो देखो, इसमें आता हूँ । अभी समझ गए ना ।