24-02-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार फेब्रुअरी की चौबीस तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।
रिकॉर्ड :-

जो पिया के साथ है उसके लिए बरसात है..........
ओम शांति!
जो बापदादा के साथ है, क्योंकि अगर सिर्फ कहेंगे जो पिया बाबा, तो बाबा तो है निराकार । अब निराकार के साथ तो हम मूलवतन में रह सकते हैं वा निराकार के साथ जब वापस जाने का है तब साथ होंगे, क्योंकि वो सुप्रीम आत्मा गाइड है । गाइड जरूर कोई को किया जाता है । तो फिर देखो, इतने सब बच्चे आत्माएँ नंबरवार हैं । यह तो बच्चों को समझना है कि हम आत्माओं को परमपिता परमात्मा के साथ जाना है । शरीर तो यहाँ ही छोड़कर जाना है, क्योंकि बाप के साथ जाना है तो शरीर तो नहीं ले जाना है । जब नॉलेज बैठकर सुनते हो, बाप शांतिधाम और सुखधाम का रास्ता बैठ करके बताते हैं और फिर वहाँ जाने के लिए पवित्र बना रहे हैं और फिर ज्ञानवान भी बना रहे हैं, तो जरूर साथ में रहेंगे । साथ में रहने के लिए बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि ब्रह्मा दादा कहो या बाबा कहो, के तन में पढ़ाने के लिए आय उपस्थित हुए हैं । तो जरूर जब बहुत बच्चे सन्मुख हैं तो जहाँ बच्चे होते हैं वहाँ बरसात तो होती ही है । दूसरे देरी से सुनते हैं, तुम जल्दी से सुनते हो, इसलिए गाया जाता है- जो पिया के साथ हैं उनके लिए डायरेक्ट बरसात है । देखो, कल परसों बहुत थे । पांच सातसो के आगे ज्ञान की बरसात बरसती थी, आज 10-20 के आगे । तुम सम्मुख सुन रही हो । अभी तुम सन्मुख जल्दी सुन रही हो और दूसरे देरी से सुनेंगे । अभी जो इस समय में देरी से सुनते हैं उनको जल्दी सुनने का होना चाहिए, क्योंकि वो सर्विसेबुल हैं । उनके लिए बहुत जरूरी है सम्मुख सुनना, क्योंकि वो प्रदर्शनी पर हैं, सर्विस पर हैं । अच्छी तरह से समझाय सकते हैं । उनको डायरेक्शन दे भी आएं हैं कि इस प्रदर्शनी में मूल मूल बात यह समझाना कि यह जो भी पीस कॉन्क्रेन्स हो रही है, यह तो सारी दुनिया में अशांति है, इसलिए सारी दुनिया को शांत करना यह तो सारी दुनिया के मालिक का काम है, जिसको बाप कहा जाता है । तो उनको ऐसे समझाना है कि तुम जो इतने बरस पे बरस या तुम एक नहीं, पर बहुत ढेर के ढेर विलायत में जहाँ-तहाँ रिलीजियस हेडस की पीस कॉन्क्रेन्स कर रहे हैं और करते हैं । वो समझते हैं कि वो हैं गुरू, पाथ या रास्ता दिखलाने वाले, इसलिए सबका मदार रहता है जो गुरू लोग हैं सभी धर्मो के हेडस उन पर । वो समझते हैं कि ये गुरू लोग हैं, ये रास्ता जानते होंगे, तब तो गुरू करते हैं ना । अगर ये रास्ता न जानते हों तो गुरू करने की दरकार ही क्या है, परन्तु वो नहीं जानते हैं कि ये जो गुरू लोग हैं ये कोई रास्ता दिखलाने वाले नहीं हैं । ये तो और ही रास्ता भुलाने वाले हैं अर्थात् परमपिता परमात्मा से बेमुख करते हैं । तो उनके पास पहुँच ही न सकें । इसलिए ये गुरू कोई रास्ता बताने वाले न ठहरे, बल्कि ये तो और ही रास्ता भुलाने वाले हैं । रास्ता भुलाने वाले और डुबाने वाले । वो है पार करने वाला और रास्ता बताने वाला । देखो, फर्क है ना! यह एक ड्रामा का पार्ट बना हुआ है । यह समझाना भी ऐसे लोगों को बहुत ही कठिन है, क्योंकि ये घमण्डी हैं ना । वो समझते हैं कि हम रास्ता जानते हैं, हम पढ़े-लिखे हैं, यज्ञ तप दान पुण्य तीर्थ शास्त्र वेद हम पढे हुए हैं और हम जानते हैं कि हम निर्वाण धाम में या मुक्तिधाम में या जीवनमुक्तिधाम में या ज्योति ज्योत में समाने, ये बहुत ही बातें बनाय रखी हैं मत देने के लिए, परंतु नहीं, फिर भी सभी गाते हैं कि हे पतित-पावन, हे लिबरेटर, हे गाइड, क्योंकि लिबरेटर, लिबरेट करके कहाँ तो ले जाएगा ना । दुनिया तो जानती नहीं है उस डेस्टीनेशन(मंजिल) को या मुक्तिधाम या जीवनमुक्ति धाम को या जहाँ के लिए मनुष्य चाहते हैं कि हम भगवान के पास जाए । अभी भगवान के पास जाएँ, यह रास्ता सिवाय भगवान के तो कोई बता ही नहीं सकते हैं । फिर उनको यह तो मालूम नहीं है कि उनको साथ में चलना है । यानी सुप्रीम आत्मा जिसको कहा जाता है।.. परमात्मा उसको कहते हैं ना । पतित-पावन परमात्मा वही तो साथ में ले जाएँगे ना । वो तो है ही निराकार और वही आकर कहेंगे और उनको ही पतित-पावन मानते हैं । श्रीकृष्ण तो पतित-पावन नहीं गाया हुआ है ना । न श्रीकृष्ण, जब सतयुग में प्रिन्स है या प्रिन्सेस है या जो स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण हैं उनको भी तो कोई रास्ते का मालूम नहीं है ना कि हम कहाँ से आए हैं, हमको कहाँ जाना है, कब जाना है, इस कर्मक्षेत्र पर कितना समय रहना है । वो तो बिल्कुल जानते ही नहीं हैं । वो तो पुनर्जन्म लेते आए हुए हैं, इसलिए गीता में जो लिखा हुआ है श्रीमतभगवत् गीता । श्रीमत भगवत कौन? तो कह देते हैं श्रीकृष्ण भगवानुवाच, परन्तु श्रीकृष्ण को तो मत देनी नहीं है । दुनिया तो जानती नहीं है कि श्रीकृष्ण पास्ट जन्म में कोई के मत से इतना सद्‌गति पाया है । इस समय में जानते हो कि सद्‌गति दाता तो परमपिता परमात्मा है । सतयुग में तो ऐसे कोई कहते भी नहीं हैं कि सद्‌गति कोई दूसरा देने वाला है । वो बातें तो वहाँ होती ही नहीं हैं । तो यह समझाना पडता है । देखो, बाबा ने कहा था ना, वहाँ भी एक मेम थी, ये आए थे । बोलती थी कि बस, गॉड के पास ही जाना है, उनको ही याद करना है, परन्तु उनके पास जाना कैसे है, अकेले तो सब नहीं जा सकेंगी । नहीं, उनको गाइड चाहिए । तो जरूर गाइड यहाँ चाहिए जो बैठ करके रास्ता बताए, फिर उस शरीर को छोड़ करके और फिर साथ दे देवे । यह कोई जिस्मानी यात्रा तो है नहीं । यह तो है रूहानी यात्रा । इसमें सुप्रीम रूह पण्डा जरूर चाहिए । तो देखो, यह उनको बहुत अच्छी तरह से समझाना पड़े । प्रार्थना बहुत अच्छी करते हैं-- ओ गॉड! बस, हम तुमको ही याद करेंगे । तुम ही लिबरेटर हो, तुम ही गाइड हो । ऐसे भी कहते हैं । अंग्रेजी अक्षर है ना । तो वो भी यह जानते हैं ओ गॉड, ओ गॉड, परन्तु वो गॉड साथ चलना है, वो यहाँ कहाँ है, वो तो बिचारे नहीं जानते हैं ना । उनको कितना भी समझाओ कि गॉड यही है, इस शरीर द्वारा तुमको डायरेक्शन दे रहा है, तो भी वण्डर खाते हैं कि यह कैसे होगा! यह गाइड है! अगर मेम यह समझ जाए कि बरोबर वो गाइड किसमें जरूर आएगा । वो एडम को भी समझते थे, बीबी को भी समझते थे । उनको जब समझाते थे कि वो इस एडम के शरीर में है, तो मूंझ जाते थे । तो ये मानते नहीं । अगर माने तो अच्छी तरह से पकड़ लेवे । उनको यह समझाया भी जाता है कि वो तो गाइड है । यह साथ में ले जाने वाला है । वो इस शरीर में आ करके यह नॉलेज देता है और नॉलेज देकर लायक बनाय करके, सबको पवित्र बनाय करके फिर यह शरीर छोड़ कर चले जाने वाला है, परन्तु यह उनकी बुद्धि में नहीं बैठे । बस यही है कि गॉड को याद करने से हम गॉड के पास चले जाएँगे.... पिछाड़ी जाएँगे, क्योंकि यह तो बारात होती है ना । शिव की बारात । उसमें पहले कौन-सी बारात जाएगी? पहले जरूर देवी-देवताओं की बारात जाएगी- सूर्यवंशी और क्षत्रियवंशी की, पीछे बारात इस्लाम की आत्माओं की जाएगी, क्योंकि वहां जा करके फिर उस झाड़ में लटकना है । ऐसे ही लटकना है जैसे रात को ये उल्लू चक्कर लगा करके जाकर उल्टा लटक जाते हैं । देखते हो ना, वहाँ भी ब्रह्म महतत्व में वो सेक्शन में जाकर लटक पड़ते हैं । झाड़ दिखलाया है ना । वहाँ भी तो इनकॉरपोरियल झाड़ लटका है । तो जबकि यहाँ से नंबरवार जाएँगी तो बताओ पहले कौन जाएँगे? नंबरवार जाएँगे ना, क्योंकि वहाँ से नंबरवार आते हैं, फिर नंबरवार फिर जाना है । तो जरूर पहले पहले ये देवी-देवताओं की आत्माएँ जाती हैं और उनको ही बैठकर नॉलेज देते हैं, क्योंकि पहले फिर सूर्यवंशी और चंद्रवंशी घराने में आने का है । भले वो ज्ञान लेवे भी, परन्तु वो पूरा नहीं लेंगे । कितना भी उनको समझाते हैं, तो यह नहीं समझते थे कि इनमें वो आत्मा है जो हम सबकी गाइड बनेगी । इतनी समझ होवे तो एकदम चरणों पर गिर पड़े, पता नहीं क्या कर देवे परन्तु नहीं, उनमें इतनी बुद्धि नहीं है कि यह साथ में जाने का है और यह नंबरवार जाने का है । ऐसे नहीं कि क्रिश्चियन पहले से निकल पड़ेंगे, नहीं । यह भी बड़ी समझ की बात है कि बाप के पिछाडी नंबरवार जाना है । जो पहले आते हैं वो तो पिछाड़ी में सबसे पहले जाएँगे, जो फिर पहले आ सकें । तो यह उनको समझाना पड़े कि सिवाय गाइड कोई वापस जा न सके । साथ में ले जाना है तो जरूर गाइड यहाँ आना ही है । सो आते ही हैं और कहते हैं कि मैं लिबरेट करता हूँ दुःखों से, इस रावण राज्य से । फिर जो मेरे द्वारा अच्छी तरह से यह नॉलेज लेते हैं वो पहले-पहले जाएँगे । पढ़ाते भी तो हैं ना सहज राजयोग और ज्ञान और इनमें भी जिसको पढ़ाता हूँ वो भी तो नंबरवार ही चलेंगे, क्योंकि जैसा-जैसा जिसका मर्तबा होगा वो पहले-पहले जाएँगे । देखो, माला बनती है ना । रुद्रमाला तो बहुत बड़ी है और वो एक्यूरेट है । ब्रह्मा की माला तो बन ही नहीं सकती है, इनएक्यूरेट है । कुछ भी पता नहीं पड़ता है कि कौन संवार में पहले जाएंगी । यह फाइनल पिछाड़ी में होगा । फिर जो राज्य करते हैं वो फिर आ करके विष्णु की माला बनेंगे । अब सब तो विष्णु की माला नहीं बनेंगे ना । यूँ भले आना है, फिर भी नंबरवार और-और धर्मो में, पर विष्णु की माला में सब तो नहीं पिरोएँगे ना । सब तो देवी-देवता बनने वाले नहीं हैं । तो यह बड़ी समझ की बात है और बुद्धि में रहना है कि इस बाबा के साथ जाना है । यह आगे होगा। वो तो कहते हैं कि मच्छरों के मुआफिक ले जाऊँगा । मच्छर क्यों कहते हैं? भला मक्कड़ क्यों नहीं कहते हैं? मक्कडों के झुण्ड होते हैं जो देखने में आते हैं । बस, इन जैसा झुण्ड और कोई झुण्ड नहीं होता है । एकदम बड़ा झुण्ड जाता है । मच्छरों का झुण्ड कभी इतना बड़ा देखने में नहीं आता है । और कोई चीज का इतना बड़ा झुण्ड देखने में नहीं आता है, जितना मक्कड़ों का झुण्ड देखने में आता है । बात मत पूछो, एकदम माइलों में, अनगिनत । यह भी तो जानते हैं कि जो आत्माएँ हैं, जो सबसे सूक्ष्म हैं, वो तो एकदम अनगिनत होंगी । तो आगे जरूर सुप्रीम शिवबाबा होगा, क्योंकि दूसरा कोई रास्ता जानते ही नहीं हैं । एक भी नहीं, न कोई गया । समझाते भी थे कि एक भी वापस गया हुआ नहीं है, परन्तु वो मानेंगे थोड़े ही । इन्होंने कहा कि क्राइस्ट भी वापस नहीं गए हैं । वो भी यही है, नहीं तो पालना कौन करेगा? पुनर्जन्म लेते लेते लेते आना है जरूर । जो पहले आते हैं तो वो यहाँ पीछे होते हैं, परन्तु जाते फिर भी पहले हैं । तो जरूर कोई में होगा, कोई हल्के पोजिशन में गाइड होगा । यह भी समझते हैं कि होगा । बस, कैसे होगा यह तो डिटेल बहुत भारी है समझने की । जबकि इसके लिए कहेंगे कि यह सबसे लास्ट में है, क्योंकि यह पहले में थे, आए हैं और अभी सबसे लास्ट में हैं । तो जरूर फिर बाबा के पिछाड़ी पहले में जाएगा । तो ये उनको वहाँ बहुत अच्छा समझाना है कि सिवाय परमपिता परमात्मा सुप्रीम सोल जो यहाँ आ करके सबको लिबरेट करे तो जरूर कोई द्वारा करते होंगे । चलो, ब्रह्मा द्वारा करते हैं, तो जरूर ब्रह्मा पुत्रों द्वारा करते होंगे । तो करके पीछे इन द्वारा सबको करते हैं । अगर नहीं भी होते हैं, क्योंकि सब तो तुम्हारे द्वारा नहीं होंगे ना । सब अपना हिसाब-किताब भोग समझना है । हिसाब-किताब भोगना बाबा ने समझाया है कि कोई बड़ी डिफीकल्ट बात नहीं है । हिसाब-किताब तो गर्भजेल में भी भोगते हैं । हिसाब-किताब तो जब शरीर छोड़ना होता है, उस समय भी छोड़ सकते हैं । जैसे काशी करवट का हिसाब दिया है ना कि उसी समय में जो वो छोड़ते हैं, काशी करवट खाया तो यह गया, खतम, पर आत्मा तो खतम नहीं होती है ना । आत्मा को ही तो सजाएं मिलनी हैं ना । तो उनको ही वो शरीर सहित साक्षात्कार कराते हैं और सजाएँ मिलती रहती हैं । सजाएं मिलती रहती है, वो तो आत्मा जाने, और तो कोई भी नहीं जानते हैं । वो आत्मा भोगते भोगते भोगते भोगते फिर भी जाकर जन्म लेती है । ये जो आत्माएँ अभी जाने वाली हैं उनको फट से तो जन्म नहीं लेना है । इन सबको तो वापस जाना है । फिर नंबरवार आना है जरूर । तो यह बच्चों को पक्का निश्चय होना चाहिए कि यह जो बाबा इसमें प्रवेश किया है यह जाएगा तब इनके पिछाड़ी सजनियों की पलटन जाएगी। सजनियो की फिर नहीं कहेंगे, क्योंकि सजनियो का शरीर तो छूट जाता है । बाकी आत्माओं को जाना होता है और जाना भी जरूर है, क्योंकि पार्ट को रिपीट करना है । तो यह सभी उन सन्यासियों को हेडस को कैसे समझाया जाय । इस तरह से समझाया जाय, क्योंकि 5-10 मिनट तो लगते हैं । 5 मिनट भी कोई लेवे तो उनको यह समझाया जाता है कि सद्‌गति दाता वा सर्वशांति दाता तो एक है ना । तुम जो अशांत हो वो किसको या सर्व को शांति तो कभी नहीं दे सकेंगे ना । इसलिए सिवाय एक के कोई भी सर्व का शांति दाता वा सुखदाता वा दुःख हर्ता-सुख कर्ता हो नहीं सकता है । वो एक ही है और फिर वो सबको ले जाने वाला है । शरीर तो सबका छूटेगा । उसने भी जो शरीर लोन लिया है, वो भी छोड़ेगा । फिर वो सबको वापस ले जाएगा । ऐसी है श्रीमत, यानी परमपिता परमात्मा की यह मत है हम ब्राह्मणों प्रति । ब्राह्मण ही पढ़ेंगे ना । ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ पढ़ रहे हैं, जो तुमको सभी यह बता रहे हैं कि श्रीमत ऐसे कहती है । उसमें श्रीमत जो तुमने कहा है श्रीकृष्ण भगवानुवाच, यह नहीं है । श्रीमत कहा जाता है श्री शिवभगवानुवाच । पहले तो अपन को इसमें करेक्ट करो कि गीता को, जो सर्वशास्त्रमई शिरोमणि है, वो गीता का भगवान ही सद्‌गति दाता है । अभी गीता का भगवान सद्‌गति दाता साकार तो हो नहीं सकता है । जरूर निराकार चाहिए । पहले तो ये करेक्शन करो, जो बड़ी ते बड़ी भारी भूल है, क्योंकि वो मनुष्य तो एक्यूरेट 84 जन्म लेने वाला है और वो तो जन्म-मरण रहित है । आते हैं जरूर । बुलाते हो जरूर- हे पतित-पावन! आओ । वो आते हैं और कहते हैं कि मैं आता हूँ साधारण बुडढे तन में, जो अपने जन्मों को नहीं जानता है कि कितना जन्म उसने लिया है । सो भी अपने 84 जन्म को नहीं जानते हैं, ऐसे ही कहते हैं, क्योंकि कहते हैं कि 84 जन्म लेते हैं, कोई 84 लाख जन्म तो नहीं लेते हैं । तो यह पहला है जो 84 जन्म लेते हैं और इसी के तन में आता हूँ । यही तुम्हारे जिस्मानी जगतपिता और जगतमाता बनते हैं, क्योंकि इस जिस्म से ही मैं आकर नॉलेज सुनाता हूँ । तो देखो, जगतपिता-जगतदम्बा इस समय में उनको कहते हैं । सतयुग में जो लक्ष्मी-नारायण हैं उनको तो तुम जगतमाता-जगतपिता कह नहीं सकते हो । तो जरूर यहाँ कहेंगे । तो यह जो जगतमाता-जगतपिता हैं इनको ही तो ज्ञान दे रहा हूँ ना । ब्रह्मा द्वारा फिर उनको मिलता है, फिर जो भी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं उनको ज्ञान मिलता है । तो राजयोग का ज्ञान देता हूँ जिससे भविष्य में जाकर राज-राजेश्वरी बनेंगे । तुम जानते हो कि सतयुग में हैं ही राज-राजेश्वरी और राज-राजेश्वर । वहाँ उनको जगदम्बा नहीं कहा जाता है, न कोई वहाँ लक्ष्मी को गॉडेज ऑफ नॉलेज कहेंगे । गॉडेज ऑफ नॉलेज लक्ष्मी का जो आगे वाला जन्म है जिसमें जगदम्बा गाई जाती है, जो ब्रह्मा की बेटी है, नॉलेज उनको मिलती है । तो देखो, नॉलेज ले करके फिर उनको यह राजाई मिलती है । तो ये बातें अच्छी तरह समझने में, ऐसा अगर वहाँ बैठ करके विस्तार से समझाते हैं, दो-दो दफा कहते हैं, वो एक ही बार समझा देवे । एक तो वो है परमपिता परमात्मा सर्व का सद्‌गति दाता, सर्व का शांति दाता, सर्व का सुखदाता और दूसरा वही दुःख से लिबरेटर है और फिर वही गाइड है । वही फिर सभी आत्माओं को ले जाएँगे जबकि ये विनाश होने का होता है । फिर तो वो बाप कहते हैं मुझे याद करो तो जो विकर्म का बोझा तुम सबके ऊपर है वो उतर जाएगा । जिन्होंने मुझे बैठ करके गालियों भी दी हैं, सर्वव्यापी माना है, देवताओं की ग्लानि की है, तो वो पाप आत्मा बन गए हैं । अभी उनको तो योग में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी । अब इतने सन्यासी कभी नहीं मेहनत करेंगे उठाएंगे ही नहीं । उनको शिवोहम की और सर्वव्यापी की हेर पड़ी हुई है, तो उठाते नहीं हैं । जिनका पार्ट है वही उसको उठाते हैं और देखो तुम, जो-जो भी हैं, वो श्रीमत पर चल रहे हैं । बाप कहते रहते हैं कि देह सहित, देह के सभी जो भी तुम्हारे कर्मबंधन हैं, कर्मबधनीय हैं उन सबको भूलो, अपन को अशरीरी आत्मा समझो । शरीर होते हुए उनमें से ममत्व मिटा करके मुझे याद करते रहो, तो तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएगा और जो अच्छी तरह से ज्ञान को धारण करते हैं और कराते हैं, फिर कराना पड़े, सो ऊँच पद पाते हैं । नंबरवार जो अच्छी तरह से सर्विस करते हैं सो मेरे पिछाड़ी एकदम नंबरवार लौटना है, क्योंकि नंबरवार वहाँ सुक्ष्मवतन में भी प्रवेश करना है मेरी विजय माला में । तो वहाँ अंत में विजयमाला ठहरी और आदि में विष्णुमाला । पीछे वो माला चढ़ी देवी-देवताओं की, फिर इस्लामी की, फिर बौद्धी की, फिर क्रिश्चियन की । तो देखो, ऐसे-.ऐसे सभाओं को समझाने का कितना सहज है । तो वो लोग आपे ही नटशेल में समझ करके, जब उनको टाइम मिलेगा । टाइम लेना चाहिए, क्योंकि बाहर वाले भी तो बहुत आते हैं, भले हिन्दुस्तान वाले भी आते हैं । यह बात तो बिल्कुल सहज है ना कि उनके लिए गाते हैं हे भगवान, हे पतित-पावन, आओ और कहते भी हो वो लिबरेटर है, गाइड है सो जरूर दुःख से सुख की तरफ आपे ही ले जाएगा और फिर सुख में आपे ही भेज देगा । समझने की बिल्कुल सहज बातें हैं ।.जहॉ-जहां भी समझाते हैं, वहाँ यह समझानी तो बिल्कुल ही मूल, मुख्य है कि कैसे बाप आते हैं । समझाने वाली बड़ी तीखी चाहिए । भाषण की रूम भी एक अलग होनी चाहिए, जिसमें समझा सकें । तो जो मुख्य है दिल्ली, कलकत्ता, क्योंकि यह भी बुद्धि चाहिए कि हम तो सर्विस नहीं कर सकते हैं, जो सर्विस करने वाले हैं उनको मदद करनी चाहिए । मनुष्यों को समझाना पड़ता है । कैसे नटशेल में ऐसे अक्षर से समझावे जो हर एक को तीर लगे कि ये तो बिल्कुल राइट कहते हैं, वो निकलती रहेंगी । वो बड़ी सर्विस हो जाती है । इसलिए वहाँ दिल्ली में मुरली चली थी तो बाबा खुद समझते हैं कि बाबा की प्याइटस बहुत अच्छी अच्छी निकलती थीं और बहुत खुश होते थे । अभी तो फिर वो घमण्डियो की कांफ्रेंसेज हो रही हैं । तो उनका घमण्ड मिटाना चाहिए ना । बाबा तो सामने नहीं होगा जो घमण्ड मिटाएँगे । घमण्ड मिटाया ही है इन भीष्म पितामह द्रोणाचार्य जैसो का कन्याओं ने । यह गाया हुआ है ना, कन्याओं द्वारा इनको बाण मारे हैं । वहाँ भी मुकर्रर किया जाता है कि अच्छा, गुलजार को ले जाना । और तो वहाँ कोई जास्ती ऐसे कुछ तीखे नहीं हैं, क्योंकि उनका बोलना-चालना अच्छा है और संदेशी भी है । संदेशी होने के कारण बाबा भी उसमें प्रवेश करके मदद कर सकते हैं । समझा! क्योंकि कुमारियों द्वारा बाण मरवाये। इसलिए वास्तव में वहाँ जगदीश नहीं भाषण कर सकते हैं, क्योंकि इंगलिश जानते हैं ना, इसलिए उनसे मदद ली जाती है, परन्तु देखते हो कि यहाँ आहिस्ते- आहिस्ते हिन्दी होती जाती है । आगे चल करके फिर हिन्दी वृद्धि को पाएगी । अभी हंगामा हो जाता है ना, उसमें भी खास यह जो दिल्ली है उसमें हिन्दी का प्रचार कोशिश करके जास्ती करते हैं । तो फिर आगे चल करके हिन्दी में माताओं को सहज होगा । ऐसे नहीं कि अभी इनको तीर लगेगा । नहीं, तीर लगने में तो बहुत टाइम है । अभी तो ये बिल्कुल घमण्ड में हैं । जैसे बंदर घमण्डी होते हैं ना वैसे इनमें अपने शास्त्रों का बहुत घमण्ड है । जबकि भगवान कहते हैं इनमें कोई सार नहीं है । मैं आ करके तुमको इनका यथार्थ अर्थ समझाता हूँ । तो देखो, कितना रात-दिन का फर्क हो जाता है और बरोबर बहुत समझते हैं कि यह सब फालतू है । तो वो आते थे, मिलते थे । उनको कहते हैं कि वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी । इनमें क्या सार हुआ, जबकि गिरते-गिरते गिरते नीचे चले आए हो! कोई बैठे होंगे तो समझेंगे, कोई तो एकदम जैसे भुटटू । यहाँ कोई भी आते हैं तो कोई तो अटेंशन देते हैं, कोई तो ऐसे-ऐसे. करते रहेंगे । तो बाबा के पास भी बड़े आदमी मिलने के लिए आएँगे । बैठ करके समझाऊँगा तो एक तो अटेंशन से सुनेंगे और दूसरा जैसे एकदम बुद्धू बैठा है, पर समझ में आता है कि भले यह बडा मिनिस्टर है और वो छोटा है । वो छोटा समझते हैं और यह बड़ा बुद्धू है । एकदम कोई भेड़-बकरी है, झट मालूम पड़ जाता था । अच्छा, चलो बच्ची, खिलाया है टोली? मीठे-मीठे, सिकीलधे सर्विसेबुल बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग । क्योंकि सर्विसेबुल का अभी पता पड़ रहा है । देखते हो, प्रदर्शनी में! सुबह को उठ बाबा माला जपते हैं- किसको करूँ, किसको भेजें प्रदर्शनी बहुत हो गई है । दिल्ली में, कानपुर में, कलकत्ते में और बॉम्बे में । बॉम्बे में उस सानवारी को रीस लगी फटफट । तो वहाँ से मंगाएगा तो वो बोलेंगी बाबा यहाँ से सब मँगा लेते हैं फिर यहाँ कौन मदद करेगा! बिगर पूछे ही ठोक देते हैं, न टाइम, न बात, न कुछ । प्रदर्शनी में कम से कम 20-25, जितना जास्ती हो सके, पर चाहिए सभी सर्विसेबुल । तो देखो, ढूंढ कर रहा हूँ कि किसको भेजें किसको भेजें । तो बस वही याद पड़ते हैं, बाकी जो सर्विसेबुल नहीं हैं वो एकदम याद भी नहीं पड़ते हैं । वर्थ नॉट ए पैनी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । अच्छा! मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार । देखा, नंबरवार का अर्थ! अभी सब मालूम पड़ता है । निराकार धाम में वहाँ जरूर मिलेंगे । यह बच्चे समझते हैं कि हाँ, हम बाबा यानी फादर के बच्चे हैं,. .फादर के साथ रहते हैं और यहाँ आते हैं पार्ट बजाने । पिछाड़ी में बाबा भी आते हैं पार्ट बजाने । ठीक है ना! अच्छा! ऐसे मीठे-मीठे, सिकीलधे सिकीलधे भी उनको कहा जाता है जो आत्माएँ पहले-पहले पार्ट बजाने आई हैं और फिर से वो मिलती हैं ।