15-03-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


गुड मोर्निंग, हम मधुबन से बोल रहीं हैं। आज शुक्रवार है, सन 1965 मार्च की पंद्रह तारीख है. प्रात क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।
रिकॉर्ड :-
तू प्यार का सागर है…………….
ओम शांति।
पहले ज्ञान का सागर है पीछे प्यार का सागर है। आकर के बच्चों को समझाते हैं। किन बच्चों को समझाते हैं? जो विखय सागर में गोता खाते रहते हैं। और इस विखय सागर को वास्तव में कलहयुगी काली धरनी कहते हैं देखो यह भागवत में है न ये यह बातें, तो भगवत तो इस समय का शास्त्र है यह, चालू समय, प्रजेंट समय का। काली दह तो कलयुग को कहेंगे ना बच्चे। सभी काली दह में,...और काली दह में कौन रहते थे? तक्षत सर्प, तो एक सर्प थोड़ी रहते होंगे, नहीं सर्प और सर्पणी उनका तो गांव होंगा एक बड़ा, तो देखो सर्प और सर्पणी तो सन्यासी भी कहते हैं। तो बरोबर खुद को सर्प समझते हैं और स्त्री को सर्पणी समझते हैं। तो काली दह में कौन रहते हैं, कलयुगी काली दह में सर्प और सर्पणियाँ। एक की तो बात ही नहीं है अभी तो बेहद की बात ही है अलग। विखय सागर भी कहें तो बरोबर यह है ही विखय सागर, जिससे बोलते हैं हमको पार जाना है। विखय सागर को ही फिर पतित सागर भी कहेंगे, क्योंकि नाम है ना बहुत। तो यह सब बातें समझते हैं कि अपन तो अभी कलयुग में नहीं है, अपन है अभी संगम युग पर। कलयुग से काली दह से हम किनारे में ले आए हैं। अभी हम ना है कलयुग में ना है सतयुग में, हम हैं ही संगम युग में। कलयुग या काली दह का किनारा हमने छोड़ा हुआ है हम जा रहे हैं। हां इतना जरूर है जिनकी दिल है काली दह से, किनकी दिल काली दह से उठ गई है, वह जैसे कि अपने स्वर्ग को ही याद करते हैं। ज्ञान सागर को ही याद करना है क्योंकि यहां से हमको पहले पहले ज्ञान सागर के पास ही जाना है, पहले निर्वाण धाम में जाना है, ज्ञान सागर वहां रहते हैं ना अपना जो आयकर करके काली दह से निकालते हैं सबको। फिर कलयुग के पीछे तो सतयुग है ना बच्चे। विखय सागर के बाद है अमृत का सागर। तो बच्चे जानते हैं बरोबर यहां इस,... इसको विष्टा सागर भी कहा जाता है विख का सागर भी कहा जाता है। तो इनको विष्टा के कीड़े भी कहा जाता है अच्छा, तो दृष्टान्त भी तो देते हैं की बरोबर ब्राह्मणी, इसको भ्रमरी कहते हैं, देखो दृष्टांत देते हैं ना सन्यासी भी, की बरोबर यह जो विस्टा का कीड़ा है उनको जो ब्राह्मणी है क्योंकि अभी जनावारों की तो बात है नहीं, यह तो है मनुष्यों की बात। देखो भूं भूं तुम जो करती हो ना वो तो प्रैक्टिकल में देखते रहते हो कि बहुत कीड़े को तुम ले आती हो, उनको बैठ कर के ज्ञान की भूं भूं करती हो। पीछे कोई तो सड़ जाते हैं, कोई तो पीछे कुछ उठता है पीछे ही सड़ जाते हैं, कोई के तो पर आ जाते हैं और उड़ने भी लग पड़ती हैं तो जो छोटे हैं सड़ जाते हैं उनकी तो बात ही छोड़ दो बाकी जो छोटियां हैं उनको कन्या कहा जाता है जिनको पर निकल जाते हैं उड़ने के, वह तो झट एक जगह के ठिकाने पर नहीं रहते हैं, यह उड़ी, उड़ी और जाकर के कीड़े को विष्टा से निकाल कर के आप सामान बनाने के लिए भूं भूं करने लग पड़ेंगे, उनका धंधा ही ब्राह्मणी का,.... देखो ब्राह्मणी। अभी ब्राह्मण तो नाम बिल्कुल सहज है क्योंकि तुम अमृतसर में जाएंगे तो वहां गुरु पोते और गुरु पोतियाँ बहुत कहते हैं। गुरु पोते, सतगुरु पोते। अभी यह तो तुम जानते हो प्रैक्टिकल में सतगुरु पोते और पोतियाँ तो तुम हो क्योंकि यह भारत में तो समझाया गया था बाबा ने कि हां दादे का हक वह ग्रैंडचिल्ड्रन को बहुत मिलता है तो बरोबर क्यों? क्योंकि दादे की मिल्कियत है बाबा की तो मिल्कियत है नहीं। देखो ज्ञान का सागर यह महिमा किसकी हैं? यह तो कालीदह में पड़ा हुआ था, वह कृष्ण कालीदह में जाकर पड़ा था न बच्ची। तो यह देखो कालीदह कितना समय चलती है यह तो... वह तो लगा दिया है काली दह में गया और सर्प ने डंसा, यह तो तुम देखते हो अभी वो कृष्ण काली दह में पड़ा हुआ है, ऐसा है ना बच्चे। कृष्ण की आत्मा काली दह में,....अभी भले काली दह से निकल रहे हैं, तो सिर्फ एक कृष्ण तो नहीं होगा ना बच्चे, यह जानते हो कि बाबा ने बहुत अच्छी तरह से समझाया है जो काली दह में पड़े हुए हैं, जो काले हो गए हैं, सांवरे हो गए हैं, वह है ही देवी देवताएं। तो देखो देवी देवताओं को ही पहले बैठ कर करके, जो काली दह में पड़े हुए हैं उन कीड़ों को बैठकर के बाप आकर करके निकालते है और देखो तुम जानते हो हम कितने सनाथ थे। पहले गोल्डन एज में थे ना और अब कैसे अनाथ है। है बरोबर भारत, कितना सनाथ था तो सनाथ था तो उनमें भी सनाथ कौन थे, राज कौन करते थे। तो बस जो राज करते थे, वो भी अनाथ हैं, तीन पैर पृथ्वी का उनको नहीं मिलते हैं तो अनाथ हुआ ना। सबसे अनाथ जैसे क्योंकि सब कुछ जिन्होंने त्याग कर दिया है, शिव बाबा के ऊपर बलि चढ़ गए हैं उसको अनाथ कहेंगे ना बच्चे। फिर उस अनाथ को,... ये अनाथ किसके ऊपर बलि चढ़े हैं? सनाथ के ऊपर, जो हम अनाथों को बैठकर करके सनाथ बनाते हैं। अभी ऐस तो नहीं है किसी के पास 10-20 लाख है तो वह सनाथ है, नहीं जिसके पास करोड़ है, पदम है वह सभी अनाथ है, सब अनाथ ही अनाथ है बिल्कुल ही। क्योंकि वह नाथ जो है ना,.... नाथ कहा जाता है बच्चे परमपिता परमात्मा को। अपने नाथ को नहीं जानते हैं देखो वह कहा जाता है ना आकर के काली दह में नाग को नथन किया, क्या कहते हैं... बरोबर। तो बरोबर वह अनाथो को बैठकर के ये ज्ञान अमृत पिलाय करके देखो सनाथ यानी वह नथन करते हैं ना, वह निकालते हैं उनसे बैठ कर के देखो अमृत पिलाए कर करके यह सर्पों को और फिर देखो देवता बनाए रहे हैं। तो इस समय में यह सारी दुनिया देखो काली दह में पड़ी हुई है, उसमें भी नाम रखते हैं पहले पहले कृष्ण का, काली दह में। तो जरूर जो ऊंचे से ऊंचा है उनका ही नाम देंगे जब वह है काली दह मैं है तो उनके पिछाड़ी वाले सभी हैं। अगर कृष्ण है तो जरूर कृष्ण के जो सभी कुल हैं, उसको कहेंगे ना, देखो तुम कृष्ण के कुल थे ना असुल। अभी तुम तुम जानते हो काली दह में पड़े हुए थे अभी बाबा ने आकर करके निकाला है अमृत का कलश दे कर के। अच्छा अमृत का कलश भी रखा है माताओं के ऊपर क्योंकि माताओं को ही सर्पणी कहा जाता है। तो अभी दिया ही है माताओं के ऊपर कलश। माताएं बैठ कर के यह कुंभी पाक नर्क से,... इसको नाम ही है बड़ा कुंभी पाक नर्क, फिर इनको ही काली दह भी कहते हैं। काली दह भी कहो या कुम्भी पाक नर्क भी कहो बात एक ही है और सब पड़े हुए हैं उनमें कीड़े, जैसे कीड़ा होता है ना बाहर निकालो तो कोई धरती पर थोड़ी बैठेगा, ऐसे ऐसे करके फिर वह बेचारा जंगल में चला जाएगा क्योंकि उनको तो गंद में ही जाना पड़े तो देखो यहाँ भी तुम बच्चे देखेंगे ना बहुत है उनको कितना भी निकालते हैं यह नर्क से, तो भी बहुत है ऐसे, तो भी कोई ना कोई या मेल या फीमेल वह फिर भी ऐसे ऐसे चल करके फिर जाकर के काली दह में कूदती है, अर्थात नर्क में कूदती है। और नर्क की कुंड उनको बड़ी याद पड़ती है। समझा ना यह याद पडते हैं, इसी को बाबा कहते हैं ना नर्क के दरवाजे को याद मत करो उसको बंद रखो। अभी सारी दुनिया है कलयुग ऐसे तो नहीं कहेंगे भारत है कलयुग। नही, सारी दुनिया है कलह कालीदह में पड़े हुए हैं, विखय में गोता खाते ही रहते हैं। तुम देखो कितना आस्ते आस्ते निकाल कर करके फिर देती भी हो उनको स्वर्ग का द्वार भी दिखलाती हो अच्छी तरह से,... जो नर्क का द्वार है वही स्वर्ग का द्वार दिखलाती है इसलिए माताओं को तो कलश रखा है। तो बहुत माताएं ही है ब्रम्हाकुमारीयां। अब ऐसे नहीं है कि कुमार नहीं है परंतु बहुत है ना, मेजॉरिटी है ना। तो मेजोरिटी को तो,.. । पहले पहले तो काली दह में बहुत-बहुत पड़ी हुई है ना कन्याएँ, यह वेश्याएं अभी उनका ख्याल रखना चाहिए। आना चाहिए ना माताओं को, पहले पहले कलश उनके पास आया हुआ है। एक कलश में माताएं अमृत पिलाए रही हैं देखो तुम्हारे कितने सेंटर हैं। सबको वह जो है नर्क का द्वार,.. से सबको बचाते रहते हो कि तुम नर्क के द्वार में ना जाओ। सभी है संगम युग की बातें, जबकि सृष्टि बदलने वाली होती है, जबकि यह वैश्यालय बच्ची शिवालय......शिवालय नाम है शिव बाबा का रखा हुआ है, सिर्फ मनुष्य भूल गए हैं। अच्छा अगर स्वर्ग भी कहें तो भी कोई तो स्थापन करने वाला भी.. तो क्रिएटर है न तो क्रिएटर तो कहा ही जाएगा शिव को। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को तो कोई क्रिएटर कभी नहीं कहेंगे। श्री कृष्ण को या मनुष्य को तो कोई क्रिएटर नहीं कहेंगे, मनुष्य को किसने पैदा किया, भगवान ने पैदा किया, तो भगवान तो एक ही है, ब्रह्मा विष्णु शंकर भी देवता हैं भगवान तो एक ही है। तो मीठी बच्चियां नर्क के द्वार की तरफ देखना भी नहीं होती है, समझा न, देखो कितना कायदा कितना सख्त रखा हुआ है यहां। बच्चे बात अभी की है सब हर एक बात, जो भागवत है सो भी तो यहाँ इसी समय के हैं। महाभारी महाभारत की लड़ाई तो सामने ही देख रहे हो, कुंभी पाक नर्क भी कलयुग को कहा जाता है, कालीदह भी इनको कहा जाता है, गोते भी सभी खाते रहते हैं, पैदा ही विख से होते हैं, स्वर्ग में विख तो होती ही नहीं है। तो इनको यह जो विख की याद आती है ना तो समझते हैं कि स्वर्ग में भी विख मिलती होंगी वह पूछते हैं कि भाई क्या स्वर्ग में भी विख मिलेंगी? नहीं, तुमने नहीं..वो...निमंत्रण दिया है.. भाई चलो वैकुंठ में, नहीं वहां विख नहीं मिलेंगी। वहां तो विख की बात ही नहीं है क्योंकि स्वर्ग माना ही स्वर्ग, विख को कहा जाए,... कहा जाता है रावण को, तो पांच विकार रुपी रावण, उनको तो कोई जानते ही नहीं है। तो भाई ये काली दह में यह नाग ऐसे हैं इनको नाग कहा जाता है, देखो नाटक में भी काली बनाते हैं ना, अशुद्ध अहंकार फिर काम क्रोध लोभ मोह अहंकार क्योंकि पहले पहले आते हैं अशुद्ध अहंकार, इस समय की बात है हां, संगम युग की अभी तुम बच्चों के लिए सभी ज्ञान है, बाहर वालों के लिए कोई ज्ञान नहीं है, अरे वह तो काली दह में पड़े हुए हैं नर्क के गोते खाते रहते हैं खूब अच्छी तरह से। अगर सन्यासी है बरोबर इसमें कोई शक नहीं है... परंतु पैदा तो फिर भी तो वहां से होते हैं ना, विख से पैदा होते हैं ना बच्चे तो पतित तो ठहरे ना जरूर। फिर पतित ठहरे तो फिर बेचारे जाते हैं उस समय समझते है की विख से पैदा हुआ है, जानते हैं ना बच्ची तो फिर जाते हैं उनको साफ करने के लिए, जब जब बड़े दिन होते हैं कुछ तो वो गंगा में जाते हैं और कहते हैं आत्मा तो निर्लेप है बाकी शरीर बरोबर विख से पैदा हुआ है। अरे पर वह विख से पैदा हुआ है तो गंगा स्नान से कोई शुद्ध थोड़ी होगे, ऐसी तो कोई बात हो नहीं सकती है, जबकि फिर भी प्रकृति तो तमोप्रधान है ना शरीर तो फिर भी तुमको वहां से ही मिलेंगे, वो ही विख का बनाया हुआ सो भी तमोप्रधान एकदम। तो बाप बैठकर के कितना समझाते हैं बच्चे की भल तुम यह सबको बोलो यह कलयुगी काली दह है, इसमें सब पड़े हुए हैं अभी छूटने नहीं, जो दिखलाते हैं न कुम्भी पाक नर्क, रौरवनर्क भी तो कोई चीज होंगी ना। कोई नंदी तो नहीं बैठते होंगे कि जाकर के वहां पड़ेंगे, है कोई ऐसी नदी? तुमने देखा है यहां? नहीं कुछ भी नहीं है। ये सब यहां की बात देखने की है तो यहां सब पानी ही पानी है, इनमें थोड़ी ही मनुष्य कोई जाकर के,... बैल और गधे और भाई देखा है कभी...? कोई नदियों में या रौरव नर्क,....रौरव नर्क कोई देखने में तो नहीं है न, ये बैठ करके...ये कलयुग ही रौरव नर्क है इसमें ही सब बेचारे दुखी है तड़पते रहते हैं, बहुत दुखी होते हैं बहुत दुखी होते हैं इसीलिए देखो वो जो हद के योगी हैं उनको सन्यासी करते हैं। तो बाबा बैठकर के समझाते हैं वह तो हट योग सन्यास है और यह राजयोग सन्यास। अभी हम तुमको आए हैं काली दह से निकालने के लिए। समझा ना, कृष्ण को भी तो निकलना पड़े न। तो मीठी बच्ची ये समझने की बात है बरोबर अनाथ और सनाथ देखो कल आई थी ना एक महिला अनाथ आश्रम कि संभालने वाली है। अभी देखो अनाथ आश्रम तो कहा नहीं जाता है जैसे गृहस्थ आश्रम नहीं कहा जाता है पवित्र नहीं है तो... अभी अनाथ है उनको आश्रम क्या कहेंगे। अनाथालय कहेंगे सनाथालय, ये अनाथालय ऐसे कहेंगे भाई अनाथ रहने वाले, सनाथ रहने वाले। तो अनाथ तो रहते हैं यहाँ, अभी भारत अनाथ है सतयुग में सनाथ है। तो यह सभी बातें बरोबर अच्छी तरह से बुद्धि में धारण करनी है और बरोबर समझना है कि इस दुनिया से हम निकले हुए हैं, हां बरोबर हम किनारे से निकले हुए हैं, जा रहे हैं, परंतु फिर भी पिछाड़ी में पीठ नहीं बढानी होती है। अभी बाप आ करके दोनों को ही सन्यास कराते हैं तो भाई ना तुम जाओ ना वो जावे और फिर रहना ही तो यही है, तुम थोड़ी भागोगी बाहर में, छोड़ करके पुरुषों को, पुरुष भी छोड़ कर जावे सो तो जंगल में जाकर के बैठेंगे, इस शहर में तो कोई बैठेगा ही नहीं, तब बोलते हैं की नहीं, तुम दोनों अगर पवित्र हो जाओ तो हम तुम्हारे लिए नया शहर बनाएंगा, कौन सा? जिसको फिर स्वर्ग कहा जाता है तो दोनों के लिए ही कहते हैं बच्चे दोनों पवित्र बनो। ये अपना जो,.... स्त्री ने बंधन डाल दिया तो पुरुष क्या कर सकते हैं तो दोनों सनाथ बनो, दरवाजा खोल दो, पुरुषों को भी जाते हैं तो कहो तुम विख के द्वार में नहीं जाओ, नर्क द्वार में नहीं जाओ। कितना देखो समझाते रहते हैं बाबा फिर भी लिख देते हैं बाबा हम भूल से नर्क मैं गिर गया, अरे नर्क में नहीं गिरो, नर्क में गिरेंगे तो जैसे यह उसने पड़ जाते हो कुम्भी पाक नर्क में या काली दह में देखो यह काली दह कलयुग है ना काली दह का नाम भी तो यहां ही रखेंगे ना। अभी ऐसे तो नहीं यहां कोई कृष्ण है बैठेगा उनमें या डूबेगा, वह तो अभी जान गए हैं कहां की बात कहां की,.... । तो वंडर खाते हैं इन सब बातों को,. । बाप इतना बैठकर के बच्चों को समझाते हैं, अभी बुद्धि में आकर यह सारी दुनिया के मनुष्य यह काली दह में बहुत दुखी है एकदम। तो देखो चाहते तो है ना सभी निकलने के लिए। तो देखो बाप आ करके इन सब को निकालते हैं, किनारे रख देते हैं काली दह के किनारे से निकाल कर कर के और अमृत, अमृत को कहा जाता है देखो अमृत सागर। वह नहीं कहते हैं वहां अमृत का सागर है कैलाश पर्वत पर, क्या कहते हैं उनको? मानसरोवर है? अमृत मंथन में मानसरोवर, तो मानसरोवर यानी मनुष्य को ज्ञान सरोवर कहा जाता है, मंथन करते हैं ज्ञान का, तो कहां का नाम कहां जा कर के वहां रखते हो ऊंचा। बरोबर तुम्हें शिव ने पार्वती को भी पर्वत में जाकर बिठाया है, शिव के भी मंदिर बहुत ऊंचे बनाते हैं। वास्तव में ये शंकर और पार्वती का शिव शंकर इकट्ठा कर देते हैं तो शिव का मंदिर तो सबसे ऊंचा बनाना चाहिए, बड़ी बड़ी पहाड़ी पर बनाना चाहिए क्योंकि वह है ऊंचे से ऊंचा, रहने वाला भी ऊंचे ते ऊंचा। तो शायद हो सकता है आगे मंदिर ये ऊंचे बनाते होंगे, परंतु सिर्फ कौन जावे वहां इतना ऊंचा इसीलिए आजकल देखो शहरों में बना दिए हैं मंदिर। नहीं तो है तो ऊँचे तो ऊंचा ना बच्चे। जब शिव का मंदिर नीचे में है या घर घर में है फिर भी पहाड़ों पर जाने की क्या दरकार। परंतु अंधबुद्धि सरकार है। यह सब राज तुम बच्चों को समझाए जाते हैं, सो भी किन को धारणा होती है, किन को तो धारणा होती ही नहीं है। क्यों धारणा नहीं होती है, तो कुछ ना कुछ जो खामियां हैं या तो कोई द्वारों को याद करते होंगे तो देखो मुख्य है दुश्मन ही है सबका। तो इसमें बहुत तो है हमारे पास बच्चे जो बेचारे उस दवार को याद नहीं करते है बिल्कुल ही। ना किसी को उस द्वार में ये घुटका धारण करके डालते हैं। ये भारत में बड़ी अच्छी अच्छी बातें हैं यहां। कन्याओं को, कभी भी जो पवित्र हैं क्योंकि गाई हुई है ना तुम तो द्वार नहीं खोलने वाली हो ना तो देखो कितनी गई हो अधर कन्याएं है कुंवारी कन्याए है क्यों? क्योंकि उनका फाटक बंद है, नर्क का द्वार बंद है। तो देखो है नहीं तुम लोगों का नर्क का द्वार बंद है ना। तो देखो फिर पूजन लायक बनती हो, तुम्हारे मंदिर बनेगे। अगर तुम्हारा दरवाजा खुल गया तो फिर तुम मंदिर में लायक नहीं बनेंगे, फिर तुम गोता खाएंगी, और साधारण चली जाएंगी। तो बाप बैठकर के समझाते तो बहुत हैं अच्छी तरह से और दिल भी होती है कभी-कभी, अच्छा यह डांस जा करके दिल्ली में और मुंबई में करें। क्योंकि हर डांस के , देखो बाबा को होते हैं बहुत क्योंकि यहाँ डांस के तो शौकीन कोई एकल दोकल है और वहां तो हजारों आ जाते हैं, बहुत आ जाते हैं ढेर के ढेर। उनमे बहुत ऐसे हैं, यहां तो है ही भाई मधुबन यहां तो कोई विकार विकार की तो भाई कोई बात ही नहीं है। भले मनसा बहुतों को आता होगा समझे ना, परंतु कर्मेंद्रियां भी तो नहीं जाना पड़े ना। जाना तो नहीं है ना कोई द्वार में, द्वार में गया है, तो देखो बातें कितनी कड़ी है अभी, बाबा सभा में सुनाएं सकते हैं, ऐसे मत समझो बाबा यही मुरली वहां बड़ी-बड़ी सभा में भी चला देते हैं। देखो जब मुरली चलाता हूं तो हमको दिल्ली से मुंबई याद पड़ते हैं। चलाऊँ तो बड़ी बड़ी सभा है, वहां पर बैठकर के ठोकुंगा अच्छी तरह से, समझा, अच्छी तरह। की भाई यह काली दह में मत कूदो, यह काली दह बड़ी कड़ी है, इसको कुंभी पाक नर्क कहा जाता है बिल्कुल बच्ची। और अनाथ... देखो तो क्या हो गया है भारत की दुर्दशा, कोई किसी को पता थोड़ी पड़ता है। कोई को विद्वान, आचार्य, पंडित इतने सन्यासी उनको यह थोड़ी मालूम पड़ता है कि भारत गिरा हुआ है हैं, चट खाते में। नहीं वह अपना गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं पैसा मिलता है महल बनाके बैठे हैं। श्री श्री 108 जगतगुरु का नाम... इनका कोई हिसाब किताब पूंछने वाला नहीं है। बच्चों को कितना दफा बाप बैठकर के डायरेक्शन देते हैं, परंतु समझते हैं बच्चे अभी सबीर है, छोटे हैं अभी, इतनी ताकत ज्ञान की नहीं है इसीलिए उछलते नहीं है। नहीं तो उनको तो भारत पर पड़ना चाहिए की ये जो टाइटल श्री श्री 108 जगतगुरु का...और वो बैठ कर करके ये हिरन्यकश्यप फलाना कश्यप आदि अपने सर पर रखा है ये कहां की बात है यह तो डीफेम है। भारत के पूज्य जो सब का बाप है उनका टाइटल ले, यह विख से पैदा होने वाले ये, काली दह में पड़े हुए, अरे पतित कहो तो भी काली दह कहो ना, पड़े हुए, अपने ऊपर आकर बैठे हैं। परन्तु अभी तलक बच्चे सबीर हैं, कोई भी बच्चा अभी बालक नहीं बना हुआ है । ऐसे मत कोई समझे, भले बाबा कानपुर में जाते हैं या मुंबई में जाते हैं, तो ऐसे मत समझो अभी.. वह तो अभी तो माताओं को यह कहने की ताकत....। ये तो बाप बैठ कर के, शिव बाबा बैठ कर के की माताओं को, माताओं में अभी ताकत नहीं है इतना बैठ कर के,.... यह ताकत चाहिए निर्भयता पर एकदम, निर्भयता की ताकत माताओं को तो और ही जास्ती..., पुरुष तो देखो निर्भय बन जाते हैं वो लड़ाई के मैदान में घुस जाते हैं यहां वहां जंगल में कहा भी जाते हैं, माताएं नहीं जावे क्योंकि उनका चोला ही ऐसे हैं तो वो इतनी निर्भय हो ललकार करे, यह भी समय चाहिए जब तलक बालक ना बने हैं इतनी ललकार कैसे कर सकती है बिचारीयां, बिचारियां कहेंगे ना अब तलक, जब तलक यह.. आवे समझे ना, अच्छा। और क्या समझावें बच्चों को कितना समझाते रहते हैं... कि बच्चे जाकर करके ये कीड़ों को निकालो बाहर फिर उनको भूं भूं करो। भूं भूं तो जरूर चाहिए न बच्चे, भ्रमरी भूं भूं नहीं करती होंगी, ज्ञान की भ्रामरी का भूं भूं...है न तो जब तलक भूं भूं ना करें, वर्थ नोट अ पेनी, ऐसे कहेंगे न बच्चे। हाँ भाई क्यों ? वर्थ पाउंड देखो मम्मा वर्थ पाउंड बनती है, और हम उनके हम्जींस जाकर वर्थ पैनी बनेंगा, कितनी वंडर की बात है, और मम्मा जानती भी है की बरोबर ये जाकर के वर्थ पेनी बनेंगी, यानी जो भ्रमरी है भूं भूं करती हैं, जो न भूं भूं करती हैं उनके आगे भरी ढोएंगी, कहते हैं बच्ची, क्या, सुनती हो मुठ्ठी? अच्छा बाप दादा का मीठी मम्मा का मीठे मीठे बच्चों को गुड मोर्निंग।
बहन गीत गाती है :-
ओम शांति
आज समय कितना सुंदर है, आज का दिवस महान....
शिव बाबा से मिलने निकली ब्रह्मा की संतान, ब्रह्मा की संतान, ब्रह्मा की संतान
आज समय कितना सुंदर है, आज का दिवस महान....
शिव बाबा से मिलने निकली, ब्रह्मा की संतान, ब्रह्मा की संतान,

हलके फुल्के पंछी बन, आकाश में उड़ते जाते हैं
हलके फुल्के पंछी बन, आकाश में उड़ते जाते हैं
सूरज चाँद सितारे पीछे, पीछे रहते जाते हैं
देव लोक की चमक से आई होंठो पर मुस्कान
शिव बाबा से मिलने निकली ब्रह्मा की संतान,
आज समय कितना सुंदर है, आज का दिवस महान....
शिव बाबा से मिलने निकली, ब्रह्मा की संतान,
ब्रह्मा की संतान,

एक ही रूप में दो अव्यक्ति बाबा सामने बैठे हैं
एक ही रूप में दो अव्यक्ति बाबा सामने बैठे हैं
नैन मुलाक़ात करते करते प्यार के झरने बहते हैं
गदगद होती दिल बच्चों की दोनों को पहचान
शिव बाबा से मिलने निकली, ब्रह्मा की संतान
आज समय कितना सुंदर है आज का दिवस महान....
शिव बाबा से मिलने निकली, ब्रह्मा की संतान,
ब्रह्मा की संतान,

उससे उपर शिव बाबा ने स्वर्ग की सीन दिखाई है
उससे उपर शिव बाबा ने स्वर्ग की सीन दिखाई है
विष्णु चत्रभुज की कैसी शोभा अनोखी सजाई है
चारों और नज़ारे देखे कैसी ये स्वर्ग की शान
शिव बाबा से मिलने निकली ब्रह्मा की संतान
आज समय कितना सुंदर है आज का.....

लाल प्रकाश में बैठा शंकर योगाग्नि जलाई है-2