12-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणो को हम हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार मई की बारह तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-
आखिर वह दिन आया आज................
ओम शाति!
बाप कहते है- हे बच्चे, तत् त्वम्… अर्थात् तुम आत्माएँ भी शांत स्वरूप हो । तुम आत्माओं का स्वधर्म है ही शांत और शांति धाम से आते हो, फिर यहाँ आ करके टॉकी बनते हो । यहाँ तुम बच्चों को ऑरगन्स मिलते हैं यानी अपना पार्ट बजाने के लिए कर्म इन्द्रियाँ मिलती हैं । जब आत्माएँ हो तो आत्माएँ कोई बड़ी-छोटी नहीं होती है । शरीर बड़ा-छोटा होता है । तुम्हारा शरीर बड़ा-छोटा होता है, क्योंकि तुम शरीरधारी हो । बाप फिर कहते है मैं शरीरधारी नहीं हूँ । हाँ यह जरूर है कि मुझे बच्चों से मिलने सन्मुख आना पड़ता है । जैसे कोई बाप है उसको बच्चे पैदा होते है, अभी उनको वो ज्ञान तो नहीं है । जब बच्चा बड़ा होता है तो ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं परमधाम से जन्म ले करके मात-पिता से मिलने आया हूँ । ऐसे कह सकेंगे? जब नए बच्चे आते है, नई आत्माएँ आती है या किसके भी शरीर में पुरानी आत्माएँ भी प्रवेश करती हैं तो आत्मा ऐसे नहीं कहेगी कि मैं मात-पिता से मिलने आया हूँ । नहीं, वो ऐसे नहीं कहेंगे । यहाँ ऑटोमैटिकली मात-पिता मिल जाते है । यह है नई बात । बाप कहते है मैं परमधाम से तुम बच्चों के सम्मुख हुआ हूँ और बैठ करके बच्चों को फिर से नॉलेज देता हूँ क्योंकि मेरा नाम ही है नॉलेजफुल यानी ज्ञान का सागर । तो बाबा का धंधा क्या है? बोलते हैं मैं आता हूँ पतितों को पावन बनाने। यह तो जानते हो कि आत्मा अविनाशी है । आत्माएँ कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है । शरीर छोटा-बड़ा भले होता है । किसकी भी आत्मा छोटी-बड़ी नहीं होती है । बाप.. .बच्चों को समझाते है कि देखो, तुम जानते हो कि मैं आता हूँ तुम बच्चों को पढाने और समझाते है कि मुझे ऑरगन्स जरूर चाहिए, प्रकृति जरूर चाहिए । मुझे, प्रकृति का आधार जरूर लेना पड़ता है, नहीं तो मैं कैसे बैठ करके ज्ञान सुनाऊ, जो कहते है ज्ञान का सागर, पतित-पावन और राजयोग सिखलाने वाला? भगवानुवाच- हे बच्चों! मैं तुझे राजयोग सिखलाने आया हुआ हूँ । कृष्ण की आत्मा को यह ईश्वरीय पार्ट नहीं है । हर एक का पार्ट अपना-अपना है । ईश्वर का पार्ट अपना है । ईश्वर भी कहते है, बाप भी कहते है । देखो, मैं भी इस ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ । मैं ये विकारी कर्मबंधन में नहीं बांधा हुआ हूँ । कर्म मुझे भी करना है । देखो, मेरा भी पार्ट है कर्म करना । वहाँ भी बैठे हुए कर्म करता हूँ क्योंकि भक्तों की अल्पकाल क्षणभंगुर सुख की मनोकामनाएँ वही से ही पूर्ण करता हूँ । यह भी ड्रामा में नूंध है । यह समझाने के लिए कहता हूँ । ये जो भगवान को याद करते है, बाप को याद करते है या भक्ति करते है, यह तो बच्चे अभी जान गए कि वो तो जड़ चित्र है । उनसे तो कोई को कुछ मिल नहीं सकता है । कोई हनुमान की पूजा करे या शंकर की पूजा करे या किसकी भी पूजा करे, भले बैठ करके शिव की भी पूजा करे, तो भी शिव क्या कुछ देगा? नहीं । जब मैं बच्चों के सम्मुख आता हूँ तब फिर मैं आ करके बच्चों को सब कुछ देता हूँ । सभी बच्चों की मनोकामनाएँ पूर्ण करता हूँ । तो देखो, सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है, इसलिए सब बच्चे मुझे याद करते है । मनोकामनाएँ कौन-सी पूर्ण होती हैं? मुक्ति और जीवनमुक्ति अर्थात् इस माया के बंधन से लिबरेट होना । अभी माया के बंधन से लिबरेट होना यह तो बड़ा मुश्किल है । माया तो बडी दुस्तर है, बहुत प्रबल है, आधा कल्प माया का, पांच विकारों का राज्य है । अभी इनसे लिबरेट तो सर्वशक्तिवान बिगर कोई थोडे ही हो सकता है । इसलिए लिबरेटर सद्‌गति दाता या गति दाता जिसको कहा जाता है वो मनुष्य नहीं हो सकते है । गुरू का नाम ही है गति करने वाला । गति का अर्थ तो कोई समझते भी नहीं है । गुरू लोग भी नहीं समझते है, क्योंकि वो जानते ही नहीं है कि गति किसको कहा जाता है और सद्‌गति किसको कहा जाता है या मुक्ति किसको कहा जाता और जीवनमुक्ति किसको कहा जाता है । वो बिचारे कुछ भी नहीं जानते है, क्योंकि इस समय में जबकि हर एक मनुष्य की तमोप्रधान बुद्धि हो जाती है और जड़जड़ीभूत अवस्था को पाते है, जब ऐसी हालत होती है मनुष्यों की, तो फिर बाप आते है । देखो, बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, प्रेसिडेंट, राजाएँ, महाराजाएँ वगैरह क्या है, बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि है, क्योंकि मनुष्य होकर अगर इस बेहद के ड्रामा के आदि, मध्य, अंत, क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य प्रिंसिपल को न जानें तो उस मनुष्य को क्या कहना चाहिए! मनुष्यों को ही तो यह समझना है ना- यह ड्रामा कब बना, कैसे बना, ये क्या होता है, यह शिव कौन है, ये कब आते हैं, इतना स्वर्ग था, नर्क क्यों बन गया है, सुखधाम था, दुःखधाम क्यों बन गया है, कोई भी नहीं जानते हैं बिल्कुल ही । जरा भी नहीं जानते है । तब बाप आ करके कहते है कि देखो, यह माया तुमको बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि बना देती है । इसको पत्थर बुद्धि कहा जाता है । पत्थर बुद्धि से तुम बच्चे पारस बुद्धि बन रहे हो । यानी पारसपुरी स्वर्ग को कहा जाता है । तो तुम स्वर्ग का मालिक बन रहे हो । तुमको स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं । श्रीमत पर चाहे ना चले, मत पर तो चलना ही पड़ता है ना । पहले पहले है मात-पिता की मत, पीछे टीचर की मत, फिर पिछाडी में है गुरू की मत या कोई कोई धंधे-धोरी में बच्चों को मित्र-संबंधियों की भी मत काम में आती है । मत तो लेनी ही पड़ती है । मुख्य होती है मात-पिता की, टीचर की और निर्वाण यानी जब वानप्रस्थ अवस्था आती है तब गुरू की मत । अभी वो तो सभी हैं, जिसको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय, क्योंकि सबमें पांच विकार का प्रवेश है, भूत का प्रवेश है । देखो, जब कोई क्रोध करते है तो उनको कहते हैं कि इनमें क्रोध का भूत आया है । कोई में काम विकार होता है तो उनको कहते है कामी पुरुष । कहते है इनको काम का भूत लगा हुआ है । मोह का भूत लगा हुआ है । तो गोया माया वश हो पड़ते है । इसको कहा जाता है तुम बच्चों के लिए कि तुम हो श्रीमत पर । अगर उल्टा काम करते हो तो उसको कहा जाता है परमत । तो परमत या माया की मत इस समय में बड़ी तीखी है । बाप अपनी मत देते है और माया आ करके इटरफेयर करके उल्टी मत दे देती है । यह है अभी श्रीमत पर चलना और बुद्धि से जानना कि वट इज राइट यानी राइट क्या है और राँग क्या है? यह समझने की बुद्धि बच्चों को अभी मिलती है कि बाबा जो कुछ बताते है बिल्कुल राइट बताते है । ये बच्चे बेहतर समझते हैं कि ही बरोबर, हमको बच्चे कहने वाला बाप आया हुआ है । भले कोई साजन, सजनी कहे, नाम तो बहुत रख दिए हैं, पर प्रिंसिपल तो बाप है ना । तो बाप आए है श्रीमत भगवानुवाच । देखो, इसमें कोई मात-पिता वगैरह की बात आती है? ना । श्रीमत भगवानुवाच । अभी भगवान कहने से जब कोई गीता सुनते है तो बुद्धि का योग कृष्ण की तरफ चला जाता है । होकर गए है ना, तो समझते हैं कि गीता कृष्ण ने सुनाई । अभी वो भगवान तो हो नहीं सकता है । पिता तो हुआ ही नहीं, क्योंकि वो भी है बच्चा । देखो, सभी बच्चे बाप से वर्सा लेते है । बच्चे, बच्चे को वर्सा नहीं देते है । बाप आ करके बच्चों को समझाते हैं भगवानुवाच, मनुष्योवाच कोई नहीं, क्योंकि बाप एक है ना । बाप ने समझाया है कि वर्सा यानी इनहेरीटेन्स मिलता ही है बाप से । जैसे लौकिक बाप वर्सा देते है लौकिक बच्चों को । तो बाप ने समझाया है कि देखो, तुम कितने जन्म लौकिक बाप का वर्सा लेते आए हुए हो । अभी यह बच्चों को मालूम नहीं है कि सतयुग और त्रेता में बाप से वर्सा मिलता है जरूर । गद्‌दी पर बैठेंगे, परन्तु वो कमाई इस समय की है । इस समय में ऐसी कमाई करते हो जो फिर तुमको स्वर्ग में अपनी बादशाही का वर्सा मिलना ही है । वो जो प्रजा होगी, उनको भी लौकिक बाप से जो वर्सा मिलता है, सब इस समय के पुरुषार्थ की कमाई है । देखो, यहाँ कितना समझाना होता है । गीता में कुछ है थोड़े ही । गीता तो है भक्तिमार्ग का शास्त्र । होना चाहिए जरूर । तो ड्रामा में यह गीता का भी शास्त्र है और गीता की महिमा बड़ी भारी है। भारी है, परन्तु जानते तो कोई भी कुछ भी नहीं है । समझ में तो आया ना, क्योंकि बाप बैठकर राजयोग सिखलाते है, शास्त्र थोड़े ही सिखलाते है । कोई स्कूल में जाएगा, बैरिस्टर वगैरह बनेगा तो कोई शास्त्र थोडे ही सिखलाते है या किताब थोडे ही सिखलाते है । टीचर बैठकर सिखलाते हैं । अगर टीचर न हो और बैठ करके कोई किताब पढ़े तो कुछ सीख न सके । टीचर जरूर चाहिए । तो देखो, यह भी है, बाप है टीचर, शिक्षक यानी भगवानुवाच! मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ । ऐसे कहेंगे ना- बैरिस्टरी योग सिखलाता हूँ इंजीनियरी योग सिखलाता हूँ यानी इंजीनियर बनाता हूँ । अगर इंजीनियर से योग होगा तो इंजीनियर इंजीनियरी सिखलाऐगे अगर बैरिस्टर से योग होगा तो बैरिस्टर,.. .लायक बैरिस्टर बनाएँगे । सन्यासी से योग होगा तो क्या बनाएँगे? बस, सन्यासी ही बनाएँगे, और कुछ भी नहीं, क्योंकि देखते हो कि चोला अच्छा है । ये बाप तुमको बोलते है कि मैं तुझे भविष्य 21 जन्म के लिए प्रिन्स व प्रिन्सेज राजा-रानी वा प्रजा बनाता हूँ । अभी ऐसे कोई किसको थोडे ही कहेगा । तुम्हारी इस समय के पुरुषार्थ की वो प्रालब्ध बन जाती है । चाहे प्रजा हो, चाहे राजा हो, प्रालब्ध यहाँ से बनती है । कैसे प्रालब्ध बनती है सो तो बच्चों को विस्तार से समझाया जाता है । इसलिए ये बाप लवली हुआ ना ।.. .दुनिया में कोई भी मनुष्य मात्र का बुद्धियोग बाप के साथ नहीं है, क्योंकि बाप जब यहाँ आते है तभी कहते हैं कि बच्चे, अब मेरे साथ बुद्धियोग लगाओ । ये जो गपोड़ा मारते है कि ज्योति ज्योत में समाया या सागर में समाया ।. अगर अपन को परमात्मा भी कहें तो परमात्मा को भी विनाश कर देते है, मॉर्टल बनाय देते हैं । अगर बच्चों को कोई कहते है कि हम आत्माएँ परमात्मा में मिल जाएँगी, तो क्या इतनी सभी परमात्माऐ एक परमात्मा में मिल जाएगी? ऐसे भी तो नहीं हो सकता है । मिलने की तो बात ही नहीं रहती है । यह तो तुम जानते हो कि हम आत्माएँ इमॉर्टल हैं । हमारा घर स्वीट होम है, जहाँ से हम सभी नंबरवार आते है और हर एक आत्मा को इमॉर्टल पार्ट मिला हुआ है । अगर वो कही विनाश होवे तो पार्ट ही विनाश हो जावे । तो मनुष्यों को मनुष्य जो कुछ भी बैठ करके समझाते हैं, वो जैसे कि धोखा देते आए हुए हैं । उसमें भी जो ज्ञान की बातें है ये तो गुरू लोग या विद्वान लोग सुनाते ही है । देखो, विद्वान लोग भी जो कुछ सुनाते हैं, अभी बच्चे समझ जाते हैं कि वो तो कुछ भी नहीं, वो तो शास्त्र बैठकर पढ़ते हैं । वहाँ तो कोई बात ही नहीं है । ये तो बाप आते है, आ करके बच्चों को बड़े नाज़ और प्यार से संभालते हैं । देखो, बाप को कितने बच्चों की सम्भाल करनी होती है । प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा बैठ करके बच्चों को यह सिखलाते है । तुम अभी यहाँ शिवबाबा की दरबार में बैठे हुए हो, जैसे चैतन्य दरबार में । शिवबाबा की दरबार फिर है वहाँ मूलवतन में । यह तुम समझ गए कि हम असल शिवबाबा के दरबार के रहने वाले है यानी परमधाम में, उस निराकार दुनिया में अथवा उस शातिलोक में या निर्वाणधाम में या वानप्रस्थ, वाणी से परे स्थान पर रहने वाले है । वहीँ के रहने वाले हैं अभी यह तुम बच्चों को सिद्ध हुआ और बुद्धि का योग जुटा हुआ है कि हम असल वहाँ के रहवासी है । बाबा हमको आ करके इस सारे ड्रामा के आदि मध्य अंत का सब राज समझा रहे है । तो जो समझा रहे है, जो पढाते रहते है तो गॉडली स्टूडेण्ट या ईश्वरीय शागिर्द को ईश्वर को याद करना पड़े ना । आत्मा और परम आत्मा यानी परमात्मा । रूप तो एक होना चाहिए ना । ये बच्चे हैं जो छोटे-बडे होते है । आत्मा तो न बाप की, न उनकी छोटी-बड़ी होती है । तो देखो, आत्मा बाप की भी इतनी है जितनी तुम्हारी है । बाप भी कहते हैं इतना ही है । जैसे आत्मा भृकुटी के बीच में बैठती है वैसे मैं भी आ करके मृकुटी के बीच में सर्विस करता हूँ । मैं भी इतना ही छोटा एक स्टार हूँ । ड्रामा में भक्तिमार्ग और ज्ञानमार्ग में जो मुझे पार्ट बजाना होता है, मेरे में भी वो सारी क्यू है और वो अविनाशी यानी इमॉर्टल नूंध है । आत्मा भी इमॉर्टल तो उसमें जो भी यह पार्ट है वो भी इमॉर्टल है । देखो, यह वण्डर है ना! यह कोई साइंस वाले समझ न सके कि हर एक आत्मा इमॉर्टल है, उन हर एक में 84 जन्म का पार्ट भरा हुआ है, वो भी इमॉर्टल है । पार्ट बजा करके फिर रिपीट करते है । जैसे कि ड्रामा चलता रहता है और फिर से नए सिरे से शूट होता जाता है । तो ये गुह्य बातें है ना । बच्चों को बैठकर समझाते है और जो समझदार बच्चे है वो समझते है । नम्बरवार बेसमझ बच्चे भी तो होते है ना । बहुत बेसमझ भी होते हैं तो बहुत समझदार भी होते है, क्योंकि सतोप्रधान बच्चे भी है, सतो भी बच्चे है, रजो भी बच्चे हैं, तो तमो भी बच्चे है । स्कूल में भी ऐसे ही होते है । स्कूल में कोई सतोप्रधान बच्चे भी है, कोई सतो भी है, कोई रजो भी हैं । तो यह भी ऐसे ही स्कूल है । क्योंकि बरोबर यह तो बादशाही स्थापन हो रही है । उनमें नंबरवार चाहिए । कभी भी 100 मार्क्स कोई भी एक बच्चे को नहीं मिलती है । प्लेस में आ जाते हैं । तो देखो, मात-पिता जरूर प्लेस में आ गए हैं, क्योंकि अभी बच्चों की रेस है ना । तो यह देखो बेहद का स्कूल कितना बड़ा है! इसकी कितनी ब्रांचेज है! पढाई एक है । और सभी जो स्कूल होते है उनमें कितने कितने स्टेण्डर्स हैं । यहाँ सब स्कूल में पढ़ाई एक, पढाने वाला एक है । फिर पढ़ाने वाले इतने सभी टीचर्स हैं । तो बड़ा प्रिन्सीपल वो हो गया ना । फिर देखो यह है वाइस प्रिन्सीपल । फिर मम्मा उनसे वाइस । वाइस कहते हैं सेकेण्ड नंबर में । फिर जो बड़ी बड़ी समझाने वाली होती है ये टीचर्स बन जाती है और तुम बच्चों का फिर काम है उनको भी टीचर बनाना । टीचर बनाने से वो सर्विस में लग जाएगा जैसे कि प्रजा बनाएगा, फिर प्रजा में अपना वारिस बनाएगा । तो इतनी सभी मेहनत करनी चाहिए और गृहस्थ व्यवहार में रहकर हो सकती है । ऐसे नहीं कि नहीं हो सकती है । बच्चों को दिन में तो छूट है, 8 घटा शरीर निर्वाह के लिए भले जो कुछ चाहिए सो करो । अच्छा, 4-5-7 घण्टा नींद भी करो । कोई मना तो नहीं रहती है । बाकी अपना टाइम पुरुषार्थ में दो । बच्चों को 8 घण्टा हाईएस्ट गवर्मेन्ट की सर्विस करनी है । तो चार्ट रखो । जितना याद करेंगे तुम्हारी कमाई होगी । जितना चाहिए, 8 घण्टा 10 घण्टा 12 घण्टा करो । फिर तो कहते हैं हे नींद के जीतने वाले! जिसको शौक होता है रात को उनकी नींद भी फिट जाती है । ऐसे मत समझो कि नींद फिटने से कोई माथा खराब होगा । नहीं, यह कमाई है ना । कमाई में माथा खराब नहीं होगा, माथा दर्द नहीं करेगा । यह पुरुषार्थ के लिए बेहद का पुरुषार्थ बाप बताते है कि हे नींद के जीतने वाले! 2 बजे उठो । समय बड़ा अच्छा है । तुमको बड़ा मजा आएगा, क्योंकि अपने लिए करते हो । याद करने से तुम जानते हो कि हमारी आयु बड़ी हो करके हमको निरोगी काया मिलेगी । देखो, एवर हेल्थी रहेंगे और बड़ी आयु होगी । एवर हेल्थी भी अंत तक रहेंगे, क्योंकि बीमारियों बिल्कुल होती ही नहीं है । बहुत तकलीफ तो नहीं देते है ना । बात ही बड़ी सीधी और सहज बताते है कि बच्चे, चार्ट रखो । यहाँ तो बहुत है कि कोई 5 मिनट भी सर्विस नहीं करते हैं । यहाँ तो 8 घटा बाबा कहते हैं, फिर ऐसे भी बच्चे हैं जो 5 मिनट भी कोई सर्विस नहीं करते है, परन्तु जिन बच्चों को इतना ऊँचा बनना है इसके लिए तो पुरुषार्थ जरूर करना है । बाबा सहज तो बहुत बता देते हैं कि मीठे-मीठे लाडले बच्चे, तुम जानते हो कि बड़ी कमाई है । कौन नहीं चाहेगा कि हम भविष्य 21 जन्म में एवर हेल्थी रहें । तो क्यों नहीं हम कोशिश करके, भले शरीर निर्वाह भी करें, फिर बाकी जो समय रहे तो याद भी करें और औरों को भी कहें कि एवर हेल्थी बनने का है । बाबा कभी-कभी कहते है ना कि बोर्ड पर लिख दो । अगर एवर हेल्दी बनना चाहते हो तो आओ, यहाँ आ करके समझो, फॉर 21 जनरेशन । तो गोया जैसे बड़ी ते बड़ी एक हॉस्पिटल हो । वो किस्म-किस्म की हॉस्पिटलें होती हैं ना । तो लिख दो एवर हेल्थी बनना है तो आओ, युक्ति बतावें । युक्ति बड़ी सिम्पल, कोई भी दवा वगैरह की बात नही है, सिर्फ बिलवेड मोस्ट को याद करना है और वही फिर सिखलाते हैं कि बच्चे, मेरे को याद करने से तुम एवर हेल्थी बनेंगे । एवर हेल्थी कहाँ बनेंगे? फिर स्वर्ग में। वहाँ तो बनेंगे ही, पर स्वर्ग में भी एवर हेल्थी बनेंगे । निराकार दुनिया में बीमार तो कोई नहीं होते हैं ना । शरीर होते हैं तब बीमारी होती है । यह शरीर है तो बीमार हैं, फिर सतयुग में शरीर का भान नहीं तो बीमारी नहीं, क्योंकि एक तो माया नहीं, दूसरा, सतोप्रधान प्रकृति होती है । इस समय में है तमोप्रधान प्रकृति । तो जैसे आत्मा तमोप्रधान हो गई है तो प्रकृति भी तमोप्रधान । सच्चा सोना आ करके बिल्कुल झूठा बना है तो जेवर भी झूठे बने हुए हैं । तो रात-दिन का फर्क है । भगवती और भगवान जो थे वो फिर आ करके देखो ये झूठे जेवर बने हैं । 84 जन्म उनमे मिक्सचर होती आई है । सिल्वर मिक्सचर हुई, फिर कॉपर मिक्सचर हुई, पीछे लोहा मिक्सचर हुआ, पीतल मिक्सचर हुआ । तो देखो झूठे जेवर हो गए हैं ना । झूठे जेवर को कहा जाता है पतित और सच्चे जेवर को कहा जाता है पावन । तो आत्मा भी प्योर सोने को भी ऐसा ही कहेंगे, प्योर कहेंगे, नहीं तो कहेंगे 22 कैरेट, 18 कैरेट, 14 कैरेट, 9 कैरेट । तुम बच्चों को शायद यह मालूम नहीं है झूठे मुलमे के भी बनते हैं और आजकल जो जेवर मुलमे के बनते हैं वो सच्चे से भी तीखे हो जाते हैं । आजकल जो मुलमे के जेवर बनते हैं उनमे जो ये झूठे पत्थर पड़ते हैं वो सच्चे से भी अच्छे दिखलाई पड़ते हैं । तो दुनिया ही ऐसी है, इसलिए सच यहाँ झूठे में छिप गया है, क्योंकि कोई अपने को लक्ष्मी-नारायण कह देते हैं, कोई कृष्ण कह देते हैं, कोई श्री-श्री 108 कह देते हैं और कोई तो शिवोहम । अच्छा, श्री-श्री 108 तो वो कहते हैं, पर मनुष्यों से पूछो तो कहते हैं हम परमात्मा हैं । सब श्री-श्री 8 हो गए । इसको फिर कहा जाता है अंधेरी नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा । इसलिए यह ड्रामा ऐसे बना हुआ है । अब बच्चों को ड्रामा के आदि मध्य अंत क्रियेटर डायरैक्टर करन-करावनहार का भी पता पड़ा और फिर सतयुग की कैसे स्थापना होती है, कौन राज्य करते हैं, सबका मालूम पड़ा है । तुम किसको भी कह सकते हो कि श्री लक्ष्मी और नारायण की जीवन कहानी बताऊँ? एक जन्म की नहीं, सतयुग के 21 जन्म की नहीं, मैं 84 जन्म की कहानी सुना सकता हूँ । ऐसे कोई थोडे ही बैठे हुए हैं जो कहे कि हम अपने 84 जन्म की कहानी सुनाऊँ । कहानी सुनाना पड़े ना । सुनाना क्या! इनमें लिखा हुआ है । इसमें अभी खाली जन्म लिख देना है तो 84 पूरा हो जावे । देखो, यह आर्टिस्ट हैं ना । बाबा यह बड़ा चक्र बना रहे हैं । बड़े अक्षर होते हैं ना तो मनुष्य अच्छी तरह से पढ़ सकते हैं । बाबा बच्चों को डायरेक्संस भी देते हैं कि यह बोर्ड बनाओ, उनमें 84 जन्म पूरा करके दिखाओ । उसमें 8 जन्म, 12 जन्म, फिर दोनों मिला करके 63 जन्म अलग भी कर सकते हैं । ऐसे चक्कर फिरता है, पिछाड़ी में यह आ करके होता है । तो बाहर में बोर्ड लगा हुआ हो, कोई आवे और तो समझावे । अभी देखो पिछाड़ी है । काँटा यहाँ खड़ा है । अभी फिर स्वर्ग की स्थापना हो रही है । स्वर्ग की स्थापना तो बाप करेंगे । तो बाप कौन है? उसका नाम क्या है? बाप का कुछ नहीं जानते हैं । परमपिता परमात्मा का नाम कोई नहीं जानते हैं और शिव जयन्ती वा शिवरात्रि मनाते रहते हैं । अभी शिव कौन हैं? क्यों उनको मनाते हैं? पूजा बड़ी होती है । जब शिव का मनाते हैं ना तो सागर और ब्रह्मपुत्री नदी का मेला भी लगता है । मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है कि यह क्या है । तो बाप बैठ करके समझाते हैं कि यह कोई वो मेला नहीं है, यह है आत्माओं और परमात्मा का मेला । अभी देखो, तुम्हारा मेला हुआ है परमात्मा से । किसलिए? बाप से अपना 21 जन्म का वर्सा लेने के लिए । स्नान पानी की तो यहाँ कोई बात ही नहीं है । ज्ञान स्नान भी नहीं कहा जाए, बहुत नाम रख दिए हैं, नहीं तो यह है नॉलेज । इसको कहा ही जाता है गॉड फादरली यूनिवर्सिटी । गॉड भी है और फादर भी है और फिर यह तो जरूर है गॉड साथ में वही ले जाएगा । तो बच्चों को बहुत अच्छी तरह से धारण भी करना है और बहुत ही हर्षित रहना है । टोली ले आना । अरे, जो ईश्वर के संतान बने तो और क्या चाहिए! देखो, जब कोई बच्चा गुम हो जाता है और मिलता है तो माँ-बाप रो पड़ते हैं, प्यार से मिलते हैं कि हमको सिकीलधा बच्चा मिला । तो प्रेम में रोते हैं । उसको कहा जाता है प्रेम का रोना । यह भी देखो आधा कल्प बाद फिर से आ करके बाबा मिला है । उफ! यह तो सबसे प्यारी चीज है । अति प्यारे ते प्यारी चीज है, क्योंकि यह तो हमको अभी हीरे जैसा बना रहे हैं । तो शिवबाबा में लव चाहिए ना ।.अभी सब कहेंगे कि हम शिवबाबा की गोद में जावे । ऐसे कहेंगे ना! बाबा ने कह दिया है कि खबरदार! कभी भी गोद में आया और शिवबाबा को याद न किया तो पापात्मा बना । पाप का हिसाब चढा । यह भी मुश्किलात है । बहुत बच्चे हैं जो उस समय में गोद में आते हैं तो जो डायरेक्शन मिलता है कि शिवबाबा को याद करके फिर गोद में आओ, वो भूल जाते हैं । इसलिए बाबा कहते हैं कि फिर भी उनके ऊपर पाप न चढ़े । इसलिए हम इतनो को फटफट हाथ बढा करके गोद मे लेते हैं, वो याद करते हैं या नहीं करते हैं, मुझे एक-एक से बोलना पड़ता है, पूछना पड़ता है । माया ऐसी है, वो भी बोलते हुए भी भूल जाते हैं, शिव बाबा बोलेंगे गोद में आओ, तो जब गोद में आएँगे तब बहुत शिवबाबा को भूल जाते हैं । तो उनके ऊपर भी पाप चढ़ जाता है । इसलिए बाबा इस बात में भी खबरदार रहते है कि बच्चों को कुछ भी उल्टा असर न हो । बाबा एक है और अभी कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो और यहाँ गोद की कोई बात नही होती, ये तो ठीक है । यहाँ तो समझना है कि हम अभी मात-पिता के बच्चे बने हैं । समझा ना । बस, अभी योग में ही रहना है और सुनना है । मूल बात है पढ़ना है । अब कितने बच्चों को कितना गोद में बिठा सकेंगे यह तो बताओ और बच्चे भी वैराइटी हैं । ये भी समझना चाहिए । आज बच्चे बैठे हैं और कल माया एक ही घूँसा लगाती है और एकदम खलास होते है । तो जरूर बाबा समझेंगे कि ऐसे ऐसे छी छि बच्चे को गोद में क्यों लेते! अरे, लौकिक बाप होगा तो अगर कोई भी बच्चा छी छि गंदा काम करते होंगे या किसको मारते रहेंगे तो उनकी दिल नहीं होगी कि मैं इनको प्यार करूँ और भाकी पहनूँ । अभी बाबा क्या करे, इतने वैराइटी बच्चे हैं! बच्चे कहते हैं हमको गोद की भासना दो । अरे, गोद की भासना नहीं चाहिए, तुमको चाहिए योग और ज्ञान की भासना । यह तो बरोबर ठीक है कि वो चकमक है ना, कशिश कर लेते हैं, बच्चों को खैंच लेते हैं, परन्तु यह ब्रहमा थोड़े ही है । देखो, नाम भी तो बदनाम होता है ना । दुश्मन बहुत हो पड़ते हैं । बाप कहते हैं मेरे जैसा गाली खाने वाला कोई दूसरा है नहीं । मेरे को प्यार भी करने वाले दूसरा कोई नहीं हैं । भगवान को भक्त याद करते रहते हैं । फिर मुझे जो कह देते हैं- कुत्ते में, बिल्ले में, पत्थर में, ठिक्कर में । तो मेरे जैसी ग्लानि कोई की करते नही हैं । मेरे को याद भी बहुत करते हैं और मेरी ग्लानि भी बहुत करते हैं । देखो, यह बात वण्डरफुल है ना । या तो कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है या तो कहते हैं पत्थर में, ठिक्कर में, भित्तर में.. .वाह! मेरे को 84 लाख तो क्या, पता नहीं कितने दे देते हैं । पत्थर-पत्थर में, पत्ते पत्ते में, भिल्लर-भित्तर में ठोंक देते हैं । बाबा ने समझाया था ना कि एक आर्य समाजी था । हम कहते हैं कि टट्टी में भी है? तो बोला- हां, भगवान सर्वव्यापी है तो टट्‌टी में भी है । ऐसे गंदे हैं! तो बाप कहते हैं देखो, मुझे कितना गाली देते हैं और प्यार भी बहुत करते हैं । भगत भगवान को याद करेंगे ना कि ओ गॉड फादर! तुम टट्टी में भी आते हो या तो कह देते हैं कि नाम-रूप से न्यारा है । इसको कहा जाता है बच्चों की बुद्धि का घोर अंधियारा । सो भी किसका? जो भी हैं, बड़े ते बड़े प्रेसिडेंट देखो, प्राइम-मिनिस्टर देखो, बड़े ते बड़े विद्वान देखो । ये विद्वानों की बात है । सर्वव्यापी का नाम ये विद्वानों ने निकाला है । तो देखो, कितने होते हैं! तभी बाप कहते हैं इन बिचारों का भी ड्रामा मे पार्ट है । यानी ये ड्रामावश हैं ना । ये ड्रामा के वश हैं, फिर इस समय आ करके ये रावण के भी वश हो पड़ते हैं । उनकी क्या हालत होगी! तभी कहते हैं कि मैं इन साधुओं का भी उद्धार करने आता हूँ । अभी ये साधु लोग तो अपने को श्री-श्री 108 कह देते हैं है क्लास की भाई यह सब तो बाप का टाइटिल है । तुम जो अभी इस समय में तमोप्रधान-पतित हो, तुम अपने ऊपर तो टाइटिल नहीं लगाओ । तुम जानती हो? महारानी बनना रानी नहीं, महारानी या महाराजा बनना । गोद की तो खैंच रहती हैं जब जवान-जवान बच्ची बनती है । बाकी तो सभी आसुरी गोद है, यह है दैवीय गोद । अगर यह भी अच्छा नहीं होवे, गोद देवे और आदत पड़ जावे तो फिर गोद-गोद गोद करे और कोई ना कोई की भी जाकर गोद पकड लेवे । यह भी नुकसान हो जाता है । बाबा, ये याद करती है.,बाबा के पास कितने गोद में बैठे होंगे, बाबा के पास निपणे हैं और आज किसकी गोद में हैं? आसुरी! न 10-10 वर्ष, 5-5 वर्ष भी गोद में आकर और जब तलक बाप है तब तलक यह सिलसिला चलता है । आश्चर्यवत् ऐसे बाप को भूल करके फिर जाकर आसुरी गोद में पड़ते हैं । ईश्वर की गोद के बाद होना है दैवी गोद । यहाँ ईश्वर की गोद में ही बैठे बैठे, फिर आसुरी गोद में लौट जाते हैं । जिसके लिए कहा ही जाता है आश्चर्यवत् सुनन्ति कथन्ति बाबा का बनन्ति ईश्वर का बनन्ति और छोडकर आसुरी के बनन्ति । क्या करें, यह भी ड्रामा है ना, तो होना है, परन्तु बाबा सावधान करते रहते हैं । तुमने सुना है यहाँ! तुम देखते हो यहाँ बैठे-- ईश्वरीय गोद छोड़ फिर जाकर आसुरी गोद में बैठ जाते हैं । देर थोड़े ही लगती है । माया एक ही थप्पड़ लगाती है । कोई गुस्सा होते हैं तो कहते हैं एक चमाट मारूंगा, तुम्हारा मुँह फेर दूंगा ।.. .तो माया भी बोलती है, खबरदार रहना! एक चमाट मारूँगी, मुँह फेर दूँगी । तुम देखते हो बरोबर कि यहाँ तो बैठे बैठे कैसे माया थप्पड़ मार मुँह फेरती है । देखते हो, यहाँ बाबा के होते हुए भी और तुम बच्चों के होते हुए भी कैसे थप्पड मारती है । एक थप्पड मारती है और मुँह हो जाता है रावण की तरफ । इसलिए वो चित्र बने हुए हैं ना । तुमने कभी यह चित्र देखा है? इनका नाम क्या है? करन । अभी नाम भी याद करना पड़ेगा । तुमने यह चित्र देखा है? बनारस में मिलते हैं । दिखलाते ही हैं कि राम सामने बैठा है और फिर रावण एक चमाट मारती है और मुँह फेर देती है । वो चित्र यहाँ बने हुए हैं । बाप देता है दादा द्वारा । ये तो समझ गए ना । बाप वर्सा ही देते हैं मात-पिता द्वारा । अब यह माता भी है, तो दादा भी है और वो फिर है छोटी माता, उसको कहा जाता है बड़ी माता, क्योंकि मम्मा की कोई मम्मी चाहिए ना । तो फिर यह बाबा की मम्मी । मम्मा की भी यह मम्मी है । इनको यह राज समझाया कहा गई रानी? समझा है ये राज ? बच्चों का हक है, परन्तु पास हो सर्विस में लग जाए फिर गोद में आवे । सो भी तो लेते हैं । आने से ही बाबा सबको गोद में लेते हैं । फिर जाने से फिर भी गोद देते हैं । तो मन्मनाभव मद्याजीभव । आदि में भी देते हैं, अंत में भी देते हैं । गीता मे भी आदि में लिखा है मनमनाभव मद्याजीभव और अंत में भी लिखा है । फिर जिसको जास्ती गोद चाहिए वो बहुत पण्डा बन करके आवे, हम उनको घड़ी घड़ी गोद लेंगे । सर्विस तो करे ना! अभी सर्विस के लिए बच्चियाँ तैयार नहीं हुई हैं । उन्हें कहो कि सर्विस पर जाओ तो कहेंगी हाँ बाबा, अभी हमको एबल बनने के लिए थोडा समय चाहिए । फिर क्या करेंगे! बाबा यादप्यार देते हैं ना कि मेरा यादप्यार सर्विसेबुल बच्चों को देना । क्लीयर लिखते हैं ना । क्यों? बाप कहते हैं सर्विसेबुल ही मुझे बहुत प्रिय लगते हैं, क्योंकि मेरे बहुत अच्छे मददगार हैं । पतित को पावन करने में मदद बहुत करती हैं । या नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाने में मदद करते हैं यहाँ तो DOG को GOD बनाने में मदद करती हैं । है तो ऐसे ना । बच्चे बने हैं और एक दो को कहते भी हैं । कभी गुस्से वाले बाप होते हैं तो उनको कह देते हैं ना ऐ गधे का बच्चा, ऐ कुत्ते का बच्चा, ऐ सुअर का बच्चा, भाई गाली देते हैं ना । बच्चा अगर चालाक होता है तो बोलता बाबा, क्या आप सुअर हो जो हमको सुअर का बच्चा कहते हो । जैसे बाबा ने दृष्टान्त दिया था ना कि एक मजिस्ट्रेट ने उनको कहा ऐ गधे का बच्चा, तो उसने बोला- साहब, हम गधे का बच्चा तो आप भी गधे का बच्चा । अगर हम गधा तो आप भी गधे । अखबारों मे कभी-कभी ये पडते हैं कोई-कोई. । तुम हाथ में देती हो, बाबा हमेशा मुख में देते हैं । दादा, मीठी मम्मा का मीठे-मीठे, याद कर लेना कि मीठे-मीठे कौन होते हैं । समझते हो? जो नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाने में तत्पर रहते हैं । शरीर निर्वाह अर्थ गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पवित्र रहते हैं । बाप कहते हैं देखो, हैं तो ये भी बाबा के बच्चे ना । तो प्रजापिता ब्रह्मा तो बड़ा गृहस्थी हुआ । हुआ ना! अरे, कितने बच्चे हैं, इनकी पालना करनी होती है । बाबा कहते हैं इन सबकी भी सम्भाल करते, पढाते-करते ये हैं और कितना बाप को याद करते हैं । विकार में तो कोई को भी जाना नहीं है, क्योंकि ये भी गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए, विकार में तो न इनको जाना है न इनको । इनको 2-4 बच्चे हैं, इनको सैकड़ों, हजारों बच्चे हैं, पता नहीं कितने होगे । तो भी बच्चों की पढाई वगैरह की सम्भाल करते फिर भी ये अपने बाप को याद करते रहते हैं । बाप तो है ही बाप । उनको तो कोई पुरुषार्थ नहीं करना होता है ना । इनको तो पुरुषार्थ करना होता है ना । तो इतने बच्चों को प्रजापिता ब्रह्मा को भी पुरुषार्थ करना पड़ता है । जगदम्बा को भी पुरुषार्थ करना है । इतने बच्चे होते हुए भी, उनको सम्भालते, पढ़ाते, उनकी पालना करते, शिक्षा देते, फिर भी योग में तो रहना है ना । तो तत् त्वम् । तुम बच्चों को भी योग मे रहना है । बाप शिवबाबा को तो योग में नहीं रहना है । वो तो सिखलाने वाला है ना । तो कोई तकलीफ थोड़े ही है । बच्चों को सम्भालना और योग में रहना कोई बड़ी बात नही है । भक्ति में रहना और ये बच्चों को सम्भाल कर फिर याद तो करना पड़े ना । कृष्ण या कोई भी गुरू आदि को याद तो करना पड़े ना । बाप को याद करना बहुत सिम्पल है, क्योंकि प्राप्ति बहुत है । प्राप्ति के लिए तो मनुष्य रात-दिन मेहनत करते हैं । तो बाबा कहते हैं तुम्हारी सबसे अच्छी मेहनत होगी 2 बजे, 3 बजे, 4 बजे । वहाँ से जब पक्के होते जाएँगे फिर वो असर दिन में भी रहता रहेगा । इसलिए सवेरे अमृतवेला नाम क्यों रखा है इतना बड़ा भारी? देखो, अमृतसर से आई है । उस तालाब का कितना मान है । राजे भी आकर मिट्‌टी निकालते हैं । ये वो बातें तो नहीं हैं, वो तो भक्तिमार्ग की बातें हो गईं । बाकी बच्चों को याद । मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति फिर सिकीलधे मात-पिता का यादप्यार और विदाई या गुडमॉर्निग या नमस्ते भी करते हैं । बाप का हक है बच्चों को भी नमस्ते करने, क्योंकि सेवक है, सर्वेन्ट है। सर्वेन्ट तो हमेशा नमस्ते करते हैं । ऐसे समझाते हैं कि इतना निरहंकारी रहना चाहिए । अहंकार देह का मिट जावे । नुकसान करता है ना । देह का अहंकार आया और कुछ न कुछ विकर्म हुआ । हडखड है । तो टाइम लगता है, देही-अभिमानी बनने में टाइम लगता है । घर जाते हो ना, फिर जो जाते हैं उनको तो गोद देनी है ना । अगर दिल नहीं रहती है तो मुझे देने में हर्जा नहीं है, परन्तु वो तो कुछ भी नहीं है । तुम यहाँ किसलिए आए हो? बाबा क्या लिखते हैं? तुम बच्चे बादल बन करके आओ और भर करके जाओ । यह है ना बाबा का डायरेक्शन्स । पीछे गोद-गोद क्यों कहते हो? क्यो कहते हो कि गोद की भासना नहीं आती है? बादल बनकर आते नहीं । जाओ और जाकर वर्सा करो तो कहते हैं अभी हमको समय चाहिए और खाली गोद के लिए आ जाते हैं वाह!