15-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग आज पंद्रह मई का प्रात क्लास है

दुनिया में देखते जरूर हो, परंतु जो कुछ भी पढ़ा है, शास्त्र पढ़े हैं, जप किए हैं, तप किए हैं, ये सभी भूल जाओ, क्योंकि जब मर चुके और बाप के बन चुके तो देह तो रही नहीं, बाकी बन गए देही । तो मर जाने से क्या होगा? जो कुछ भी पढा हुआ है, वो सब भूल जाएगा क्योंकि जो कुछ भी पढ़े हुए हो, सब राँग पढ़े हुए हो । अगर कोई पढ़े हुए मे से प्रश्न पूंछते हैं तो गोया जैसे कि भूले नहीं है, फिर भी उनको वही याद आता है कि रामायण में यह लिखा हुआ है, वेदों में यह लिखा हुआ है । अरे, तुम तो मर गए ना । तुम अशरीरी बन गए, तुमको वापस जाना है, फिर पुरानी दुनिया को क्यों याद करते हो? भक्तिमार्ग की बातों को क्यों याद करते हो? इसको कहा जाता है देहअभिमान । बाबा घड़ी घड़ी कहते है देही अभिमानी भव । तुमने जो कुछ भी पढा है वो सभी भूलना है, क्योंकि वापस जाना है । तो भक्तिमार्ग में जो कुछ भी पढ़े हैं इस भक्ति को भूल जाओ, क्योकि अभी तुमको ज्ञान मिल रहा है कि बाप को याद करो । बाप को याद करो और डेस्टिनेशन यानी जहाँ जाना है, जहाँ के रहवासी हो, शांतिधाम को याद करो । बाकी जो कुछ भी पढ़े हो उसे भूल जाओ, क्योंकि सतयुग में तो कुछ पढ़ने का है नहीं । तो अभी जो कुछ भी पढ़ा हुआ है, भक्तिमार्ग पूरा हो जाता है । अगर कोई प्रश्न पूछते हैं कि गीता में यह लिखा है तो बाबा बोलते है- देखो, फिर जी पड़े । फिर वो देहअभिमान आ गया और वो पुरानी बातें याद करने लगे । वो पुरानी बातें छोड़ दो । बीती सो बीती देखो, फिर गाया जाता है कि दुनिया न जीती देखो । तो जो कुछ भी है दुनिया, भक्तिमार्ग की दुनिया है । ये बहुत ही कुछ करते रहते हैं । तुम बच्चों ने भी बहुत ही किया । इन सब बातों को भूल जाओ । सब पढ़े हो, कोई इस जन्म में नहीं पढ़े हो, ये शास्त्रों आदि की कथाएं जन्म-जन्मांतर पढ़ते आए हो । अभी इनको भूल जाओ, क्योंकि जबकि ज्ञान सागर सब कुछ समझा रहा है, तो फिर तुम्हारे पास प्रश्न क्यों उठते है, जबकि तुम्हारा बुद्धियोग है ही अपने घर वापस जाने का । याद तो है तुमको ज्ञान की बातें । तो जिस समय में नाटक पूरा होता है, बाकी कोई थोड़ा समय रहता है तो उनको घर याद पड़ता है । वो तो ठीक है कि उनकी बुद्धि में सारा नाटक रहता है । कोई भी नाटक हो, माया मछन्दर का नाटक है, जब पूरा होता है तो घर याद पड़ता है । फिर बोलते हैं पीछे वो रिपीट करेंगे । तो वो तो हैं हद की रिपीटेशन । अब तो बाप बोलते हैं कि तुमको फिर नई दुनिया में सतयुग की राजधानी की रिपीटेशन करनी है । इसलिए यह सब भक्तिमार्ग छोड़ दो, क्योंकि इनमें तुम्हारी दुर्गति हुई है । दुर्गति को फिर याद नहीं करो । शास्त्रों को याद किया यानी दुर्गति को याद किया । अच्छा, याद ही क्यों करे जबकि उनसे दुर्गति हुई है । तो दुर्गति की चीज को याद नहीं करना है । वेदों में, शास्त्रों में क्या है, यह दुर्गति की चीज है । ये तो पढ़ते आएं है, पढ़ते आएं है, दुर्गति मिली है । यह बाप आकर समझाते हैं, क्योंकि दुनिया को तो इन सब बातों का कुछ पता ही नहीं है । वो तो समझते हैं कि भक्ति तो अभी 40 हजार वर्ष तक चलेगी । पता नहीं कितने तमोप्रधान बनेंगे, फिर क्या क्या करेंगे, परन्तु अभी मार्जिन ही नहीं है । भक्तिमार्ग में जितना हुआ, हो गया, हम तो विनाश के सामने खड़े है । अब 40 हजार वर्ष भक्ति कैसे चलेगी या कलहयुग कैसे चलेगा । बाप कहते हैं ये सभी बातें जो भी बीती है वो भूल जाओ । अभी तो अपने शांतिधाम और सुखधाम को याद करो, क्योंकि कोई भी चीज याद करते हो तो बाबा बोलते है कि फिर दुर्गति को क्यों याद करते हो? क्योंकि उन चीज से दुर्गति है । तो ये ज्ञान कड़ा है ना । ये हुआ नया ज्ञान । मनुष्यों की बुद्धि मे बैठना जरा मुश्किल होता है । बैठेगा फिर भी उनकी बुद्धि में जो हमारे ब्राह्मण या दैवी कुल के होंगे । दूसरे कोई की बुद्धि मे बिल्कुल बैठेगा ही नहीं । अगर बैठेगा भी तो कोई मे थोड़ा बैठेगा, क्योंकि उनको प्रजा में आना है । प्रजा भी कोई कम थोड़े ही बननी है । प्रजा बहुत बननी है । इसलिए बाबा कहते हैं । कौन-सा बाबा कहते हैं? जब बाबा कहते हैं तो शिवबाबा को याद करो, क्योंकि कहते, सिखलाते तो हैं ना । वही तो कहते हैं ना कि तुम देह सहित सभी छोड़ करके आत्मा समझो । अभी तुम्हारी .बुद्धि उस यात्रा पर है । तुम्हारा मोह ऊपर में जाने का है । पिछाड़ी की बातों को याद मत करो, इसलिए बाबा ने समझाया है कि मनुष्य जब मरते हैं तो पहले सिर इस तरफ में होता है, पीछे जब शमशान का दरवाजा आता है तो फिराय देते हैं । यह दस्तूर तुम लोगों में भी होगा । तुम अभी इस बेहद की दुनिया से ऊपर जाते हो । तुमको तो ऊपर ही जाना है, याद करना है । तुम्हारे पर हैं पिछाडी में । वहाँ भी ऐसे ही करते है, पैर पीछे शहर की तरफ में कर देते हैं और शमशान की तरफ में मुँह कर देते हैं । यह तो बहुत कॉमन बात है ना । इस समय तुम जानते हो कि हमारा सिर ऊपर में है । देखो, कृष्ण का ऊपर मे है ना, पिछाड़ी में उनको लात मारी हुई है । हूबहू देखो एक्यूरेट बात है ना । तो तुम भी हर वक्त याद रखो कि जैसे हम वहाँ जा रहे हैं और इस तरफ में हमारी लात है । यह बिल्कुल छी-छी और डर्टी दुनिया है । यह कौन कहता है कि डर्टी दुनिया? आत्मा कहती है । वो बोलते है कि हम अभी जा रहे हैं साजन के पास या बाबा के पास कहो । वो आया है लेने के लिए और यह युक्ति बताते हैं । यह युक्ति और कोई भी मनुष्य बता नहीं सकते हैं । कोई भी सन्यासी वगैरह इतना जन्म-जन्मांतर क्या क्या सब समझाते हैं । ये सभी अपनी-अपनी बातें समझाते है । अहम् ब्रह्मास्मि यानी हम ब्रह्मा हैं, ईश्वर है इस रचना के । ऐसे नहीं कहेंगे माया के । माया के कहा तो मुआ भला । माया के थोड़े ही कोई मालिक होते है । पाँच विकार के मालिक थोडे ही कोई होते है । बाबा ने समझा दिया है कि कभी भी माया को धन नहीं समझना । माया को सम्पत्ति कहा जाता है क्या? धन को सम्पत्ति कहा जाता है । माया को तो अक्षर ही दूसरे है । कहते हैं ना इसके पास माया बहुत है, माया नहीं कहना चाहिए, कहना चाहिए इसके पास सम्पत्ति बहुत है । अगर कोई कहे कि इसके पास माया है तो समझा जाता है कि इनके पास पाँच विकार शायद बहुत हैं । ये सम्पत्ति और माया का भी कोई को पता नहीं पड़ता है । बाप बैठ करके समझाते है कि बच्चे, जितना हो सके, जितना यह जो कुछ भी पढ़ा हुआ है सब भूल जाओ । समझ तो सब गए कि सतयुग से ले करके हमने यहाँ तक किया, अभी हमको वापस जाना है । पुरानी बातों को याद नहीं करना है, नहीं तो फिर मूंझ पडेंगे । गाया जाता है ना कि जो कुछ भी पढ़े हुए हो ये सब भूलो क्योंकि जो कुछ पढ़े हुए हो, इनके बारे में वेद शास्त्र ग्रंथ तप जप जो कुछ भी किया है इसको रात्रि कहा जाता है, क्योंकि तुम जानते हो, दुनिया में और कोई भी नहीं जानते है । बाबा बोलते है कि तुम्हारे में भी कोई नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते है । तो इस पुरानी दुनिया से वैराग्य चाहिए ना, शरीर से भी वैराग्य । सारी दुनिया से वैराग्य । वो सन्यासी कोई शरीर से वैराग्य नहीं करते है, वो तो घर से वैराग्य करते हैं । वो खुद मुख से कहते हैं, हमने हर्थ एण्ड होम त्याग किया है । हर्थ एण्ड होम माना धन-दौलत और घर, बाल-बच्चे । इसमें धन भी आ गया ना । अभी फिर क्यों आ करके धनी बने है? इसको फिर कहा जाता है लोभ का भूत । देखो, भाग कर आए हैं और बहुत धनवान बन गए हैं । बाप कहते है कि इस समय मे सभी तमोप्रधान हैं, जड़जड़ीभूत अवस्था को पाए हुए है । वो दूसरी दुनिया नहीं जानती है, तुम जानते हो, क्योंकि वो तो समझेंगे कि अभी 40 हजार वर्ष पड़े है ।. भगवान के महावाक्य है ना कि अभी जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई है, तमोप्रधान हो गई है । तो इसको कोई तमोप्रधान नहीं कहते है । इस कलहयुग को तो सतोप्रधान कहते हैं । बच्चे जो गीसरी पहनते हैं उन बच्चों को सतोप्रधान कहा जाता है, जब एकदम बुडढे होते हैं तब उनको तमोप्रधान कहा जाता है । कलहयुग को ये कहते है कि कलहयुग बच्चा है यानि सतोप्रधान है । 40 हजार वर्ष के बाद तमोप्रधान होगा । तो देखो, घोर अंधियारे में डाल दिया है ना । अभी तुम किसको बताते हो तो बोलते है- वाह! ये सभी विद्वान पण्डित आचार्य, ये शास्त्र सब झूठे हैं और तुम सच्चे हो? तो उनको कह देना, तुम खुद कहते हो ना- झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । तो जरूर सभी झूठ बोलते होंगे ।..तुम सभी लोग कहते हो ना कि पतित-पावन, आओ! सब पतित है । अभी पतितों में क्या .होता होगा । पतित तो पतित ही रहते हैं यानी भ्रष्टाचारी होते हैं । उनमे क्या अक्ल होगा! क्योंकि अगर अक्ल होता होगा तो श्रेष्ठाचारियों में होता होगा । भ्रष्टाचारियों में अक्ल कहाँ से आए? भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट में अक्ल कहाँ है! देखो भला, यह भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट है, वर्थ नॉट ए पैनी है, इनसॉलवेन्ट है । यह भारत श्रेष्ठाचारी था तो देखो कितना धन था । धनवान को समझते हैं कि यह बड़ा सयाना है । देखो, कितना धन इकट्‌ठा किया, परन्तु और जो मनुष्य धन इकट्‌ठा करते है यह कमाई करके या धंधा करके । तुम्हारा तो देखो धंधा कैसा है! बस, ये अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान तुमको मिलता है तो तुम धनवान बनते हो । कोई नौकरी नहीं करते हो, न कोई धंधा करते हो । तुम तो बाप से बैठ करके अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरते हो । फिर वो झोली भर करके औरों की झोली जरूर भरना है । अगर और की झोली नहीं भरते हो तो तुम्हारी झोली भरी हुई नहीं है, क्योकि जिसके पास धन होता है, अगर किसको न दान करते है तो उनको मनहूस कहा जाता है, और भी बहुत ही नाम होते होंगे गुजराती में, इंगलिश में । इंगलिश में माइजर कहा जाता है, जो दान नहीं करते है । ऐसे बहुत होते हैं जो धन इकट्‌ठा करते रहते हैं और कभी किसको पैसा नहीं देंगे एकदम । ऐसे ढेर होते हैं । बाप अभी बोलते हैं कि तुम जानते हो कि बाबा को प्रिय भी वही लगते हैं जो धन ले करके, बुद्धि रूपी गोल्डन तिजोरी भरकर फिर औरों को समझाते हैं । कभी भी कोई सन्यासी भी आवे तो उनको बोलो, बाबा हमको कहते हैं । बाबा सबका है, क्योंकि बाबा तो सभी कहेंगे जरूर । उनको भी कहना है परमपिता परमात्मा । तो बाबा ही हुआ ना । हम बाप को सर्वव्यापी थोडे ही कहेगे । अच्छा भला, सर्वव्यापी कहेगे या पुरुषार्थ करके बाप से वर्सा लेना है या उनकी श्रीमत पर चलना है? क्योंकि बाप की श्रीमत पर बच्चों को चलना है तभी तो श्रेष्ठ बनेंगे ना । यानी सर्वव्यापी से तो कुछ श्रीमत लेते नहीं है । अगर मत ली है, पीछे सर्वव्यापी है, तो बेड़ा ही गर्क हो गया है । बाप को तो बाप ही मानना पड़ता है ना । देखो, तुम बच्चों के सन्मुख स्वीट बाबा बैठे हुए हैं । बाबा कहते है यू आर माई स्वीट चिल्ड्रेन । मेरे जो कुख वंशावली थे वो स्वीट नहीं हैं । उनको तो भगा दिया । जो तुम स्वीट मुख वंशावली हो वो तो एकदम बहुत स्वीट हो । इसने भी तो भगा दिया ना । साकार ने भी अपने साकार बच्चों को भगा दिया ना । वो विकारी हैं । श्रीमत पर, शिवबाबा की मत पर भी नहीं चलते हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा की मत पर भी नहीं चलते है । प्रजापिता ब्रह्मा की मत सो श्रीमत, ऐसे कहेंगे ना । तो वो नहीं चलते हैं, पवित्र नहीं बनते हैं तो एकदम वर्थ नॉट ए पैनी हैं । बाबा तो बहुत कड़े- कड़े शब्द कहते है । अरे, गुरू नानक भी कहते है कि भार खाते है । मूत पलीती कपड़ धोये असंख चोर हरामखोर । महात्माओं को ऐसा थोडे ही कहना चाहिए । यह तो सिक्खों का गुरू है, वो कह देते हैं कि असंख चोर हरामखोर, असंख पापी पाप कर जाय, असंख निंदक सिर धरे भार । यानी निंदक किसको कहते हैं? सर्वव्यापी को । वो महिमा करते हैं ना । वो ऐसे तो नहीं कहते है कि सर्वव्यापी है । भारत में जो भी अगर धर्म है तो सिक्ख धर्म है । और नहीं तो बतावे कोई? यूँ तो बहुत ही बताते है, शिवाजी को भी मानते हैं, फलाने को भी मानते हैं, झाँसी की रानी को भी पूजते हैं, उनका भी मनाते हैं । देखो, शिवबाबा को कोई जानते नहीं है । अभी तुम बच्चे समझते हो ना । अभी क्या करेंगे? शिवबाबा की इतनी महिमा तो इस समय में हो ही नहीं सकेगी, जो आ करके शिवबाबा को, क्योंकि कोई ने भी किसको भी सुख नहीं दिया है सिवाय शिवबाबा के, क्योंकि वो लिबरेटर है ना । तुम इंगलिश में भी समझाय सकते हो कि लिबरेटर को कहा ही जाता है दुःख हर्ता क्योंकि लिबरेट किससे करते है? दुःखों से, रावण की जंजीरों से । गाया भी जाता है कि वो दुःख हर्ता सुख कर्ता है । सिर्फ कह देंगे सर्वव्यापी है तो मुनष्य क्या समझेगा? एक तरफ में एक बात कहते हैं, दूसरी तरफ में दूसरी बात कहते हैं । एक बात कहते है पतित-पावन आओ, फिर कह देते हैं सर्वव्यापी माना खुद ही पतित है । है कितनी सहज बात समझने की, इसलिए इनको कहा जाता है बिल्कुल ही पत्थर बुद्धि । तो पत्थर बुद्धि कोई अपने को पत्थर बुद्धि समझते थोडे ही है । बैठ करके देखो तुम बच्चों द्वारा ऐसे को अभी आग लगवाते हैं, कोई लंका को तो नहीं ना, कहते हैं इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से, किसका यज्ञ है? इन शक्तियों का, जो बाबा ने स्थापन किया है । इनसे यह जो विकारी बंदरों की दुनिया है सबका विनाश कराय देते है । देखो, कितनी है दुनिया, कितने बंदर हैं! 500 करोड़ बंदर है, उसमें भी खास भारत । आखानी यानी यह स्टोरी भारत के ऊपर है । जब भी तुम भारत की स्टोरी बताओ- भारत सुखधाम, भारत दुःखधाम और हम रहने वाले है शातिधाम के । इतना भी तुम याद करते रहो और सबको यही बताते रहो कि यह तो भूल गए हो कि भारत सुखधाम था । अभी तुम जानते हो कि भारत दुःखधाम है । हम आत्माएँ तो शांतिधाम के रहने वाले है । तो अहम् आत्माएँ सुखधाम में थे । इस शरीर के साथ सुख भोगते थे । अहम् आत्माएँ जब रावण का राज्य आता है तो फिर हम दुःख भोगते हैं । फिर बाबा आते हैं तो हमको दुःख से छुडाय फिर शांतिधाम में ले जाते हैं । अभी ये तो बिल्कुल सहज है । बस, दूसरी बाते सभी भूल जाओ । शास्त्रो मे क्या लिखा है, यह क्या है, यह तो बहुत ही लिखा हुआ है, शास्त्रों में ढेर है । जितने गुरू होंगे। गुरु कितने होंगे? करोडो गुरू होंगे । वास्तव में भारत के तो सभी पुरुष गुरू है, क्योंकि स्त्री का पति गुरू है, ईश्वर है, फलाना है । देखो, गुरू ही गुरू है । वो बिचारी किसकी गुरू नहीं है । जब भी शादी के समय हथियाला या एग्रीमेट करते हैं तो बोलते हैं कि यह तुम्हारा गुरू है, टीचर है, तुम्हारा सब कुछ यही है । अब तो उनका अपना अस्तित्व खलास कर दिया । भारत में कितने गुरू हुए? सभी गुरू हो गए ना । अभी बाबा बोलते हैं कि नहीं, ये माताएँ सबकी गुरू है । मैं इनको गुरू पद पर ले जाता हूँ । इन माताओं द्वारा ज्ञान देता हूँ । कलश माताओ के ऊपर रखता हूँ । गाया भी जाता है ना । कलश माताओ के ऊपर रखता हूँ फिर असुर आते हैं । कोई तो असुर आ करके अच्छी तरह से नॉलेज ले करके, फिर कोई वक्त में जब उनको माया पकड़ती है तो असुर बन जाते हैं, भस्मासुर बन जाते है ।. नाम तो हैं ना भस्मासुर यानी बाप का बन करके फिर असुर बनते हैं । अपन को फिर भस्मीभूत कर देते हैं । कैसे? फिर काम चिता पर बैठकर जल मरते हैं । होता है ना बरोबर! सभी देखते हो कि यहाँ अंजाम करते हैं- बाबा, अभी काम चिता पर नहीं बैठेंगे । अभी भस्मासुर असुर भस्म बना, असुर बना । क्यों? काम चिता पर बैठा । भस्मासुर किसका नाम है? जो काम चिता पर बैठते है उनके तो अनेक नाम है । भस्मासुर अकासुर बकासुर कस जरासिंधी ढेर के ढेर नाम है । है तो इस समय के ना । गीता के समय के हैं । भागवत में है । बाप बैठ करके अच्छी तरह से समझाते हैं कि बच्चे, अभी गृहस्थ व्यवहार में रहो, देखते हुए कि बरोबर पति ब्राह्मण नहीं बना है, ये शूद्र ही है, तो भी तुमको तोड़ निभाना पड़े, नहीं तो झगड़ा बने । सिर्फ पुरुषार्थ करना है कि विकार में मत जाओ । सो तो बाबा बहुत ही युक्तियाँ बता देते हैं, परन्तु अपनी दिल साफ चाहिए ना । कोई विकार के लिए मारे तो प्राइम-मिनिस्टर को या किसको भी एक चिट्‌ठी लिख देना । अरे, कभी-कभी कोई दुःखी होते हैं तो प्राइम मिनिस्टर को चिट्‌ठियाँ भी लिखते हैं । आगे लिखते थे । अभी भी तुम मजिस्ट्रेट को चिट्‌ठी लिख दो या कोई अच्छा हो, चलो लाल बहादुर शास्त्री को ही लिख दो या कोई को भी कि यह हमको मारते हैं । मजिस्ट्रेट को लिखना सबसे अच्छा है । इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस को लिखना सबसे अच्छा है । हम पवित्र रहती है भारत को पवित्र बनाने के लिए, क्योंकि पतित है । तो अब बाप कहते है कि काम शत्रु है, उनको जीतो । तो हम पवित्र बनती है भारत को पवित्र बनाने । अभी यह हमको मारता है । इसके लिए आपके पास क्या जजमेन्ट है? हमको कैसे छुडाएंगे? अब यह लिखने के लिए ताकत चाहिए ना, नष्टोमोहा चाहिए । ऐसे नहीं कि लिखना और फिर छोड़ करके तड़फना, क्योंकि माया पीछे बहुत तड़फाएगा । वो पति भी बहुत याद आएँगे जो मारते हैं, क्योंकि पति के ऊपर स्त्री का बहुत मोह होता है । अथाह मोह है, क्योंकि यह बाबा अनुभव बोलते है । कोई पति बैठ करके स्त्री को खूब मारते है, कोई ने आकर उनको छुडाया, दो थप्पड लगाया, बुजुर्ग भी होते है ना । पीछे वो स्त्री जिनको मारा वो मुट्‌ठी गाली आदि देती है- अरे, हमारे पति को मारा । यह बाबा का अनुभव है, क्योंकि उनमें बहुत मोह है ना । तो तुम क्यों इसको छोड़ा? बाबा सब अनुभव की बात सुनाते हैं । कोई के बच्चे माँ को मारते हैं, जाकर उनको दो थप्पड़ लगाओ, तो भी फिटती है मुआ ने आ करके मेरे बच्चे को थप्पड लगाया । अरे मुट्‌ठी, तुमको मारता था, छुड़ाते थे, फिर तुमको यह क्यों लगता है! देखो, हर बात मे यह बाबा अनुभवी है । पति स्त्री को मारते है फिर उनको छुडाने के लिए जाओ, उनको लगाओ दो थप्पड़ । बुजुर्ग होगा सो तो जरूर छुड़ाएगा ना । लगाओ थप्पड तो पीछे फिटती रहेगी । देखो, मोह है ना । यहाँ भी स्त्री को पति के ऊपर और बच्चों के ऊपर मोह बहुत होता है । वो जैसे बंदरी होती है । बंदर को इतना मोह नहीं होता है जितना बंदरियों को होता है । तुमने बंदरियों को देखा है! बच्चा मरेगा तो एकदम कभी नहीं छोड़ेगी । वो मरा पड़ा होगा यानी मुर्दा होगा तो उसको उठाकर फिरती रहेगी, क्योंकि बहुत बच्चियों ने तो देखा नहीं है ना । बाकी बाबा समझाते हैं । जिन्होंने देखा होगा उनको मालूम है । मर जाएगा बास आदि हो जाएगी, फिर भी उसको लटकाती फिरती रहेगी । तो मोह हुआ ना । इसलिए कहा जाता है बंदरी में मोह बहुत होता है । इन सब पुरानी चीजों में मोह नहीं रखना है! अभी तो गाते आते है, कहते आते हैं कि मेरे तो एक, फिर दूसरा न कोई । मैं उस एक के ऊपर बलिहार जाऊँगी, वारी जाऊँगी । भूल तो नहीं गए हो? देखो, बाप कहते है मैं सुनता आया हूँ । तुम लोग ऐसे भक्तिमार्ग में जन्म बाई जन्म कहते आए हो, याद करते आए हो कि आपके ऊपर बलिहार जाऊँगी और आपके बिगर मेरा दूसरा कोई नहीं । मेरा तो गिरधर गोपाल । गीता में भगवान कृष्ण को डाल दिया है । मेरा तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई, ऐसे कहते है, क्योंकि आया था कोई वक्त में और बरोबर उनको ऐसा बनाया था जैसे अभी तुम बना रहे हो । तो इस समय का भक्तिमार्ग में गायन होता है । वो गाती रहती है, परंतु वो गिरधर गोपाल तो है नहीं और शिवबाबा तुम्हारे सामने बैठे हुए है । अभी जब अंजाम करते हो तो बाबा रिमाइण्ड कराते हैं कि भक्तिमार्ग में तुम ऐसे-ऐसे कहते आए हो । अब मैं जब आया हूँ तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाने के लिए, फिर तुम मेरी मत पर नहीं चलते हो । फिर ये बाबा कहते हैं अभी सबसे तुमको वैराग्य है । तेरे पर बलिहार जाऊँगी, दूसरा न कोई । अच्छा, अभी बाबा कहते हैं मेरे को याद करो और उनसे नष्टोमोहा होती जाओ । जब तलक रहना है कहाँ रहेगी? जंगल मे तो जाकर नहीं रहेंगी । बाबा के पास तो इतनी जगह नहीं है जो सबको यहाँ रख सकें । देखो, अभी कितने बच्चे है, कहाँ रहेंगे? रह सकते है? बहुत ही इम्पॉसिबुल है, क्योंकि रहना भी है गृहस्थ व्यवहार में, अपने घर में रहना है । बाबा ऐसे तो नहीं कहते हैं कि यहाँ आकर रहो । हाँ, यहाँ रिफ्रेश होने के लिए भले आओ । सेन्टर्स में रिफ्रेश होती रहती हो, फिर भी मधुबन में बाप से डायरेक्ट रिफ्रेश होने में बहुत मजा आता है । जैसे कि हम बाबा के पास, दादा के पास, मम्मा के पास बैठे है । अभी मम्मा है नहीं, फिर भी फोटो रख दिया है । नहीं तो फोटो मुर्दे का रखते है । जब मर जाते हैं तो उनका फोटो रखते हैं । मम्मा तो जी रही हैं ना । तुमको याद भी है । तो देखो, फोटो रख देते हैं । अभी जानते हो कि शिवबाबा है, ब्रह्मा भी तो है, मात-पिता भी तो है, मम्मा भी है और तुम मीठे बच्चे नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार हो । बच्चे कितने है, देखो! यह बुद्धि की बात है ना कि जरूर प्रजापिता ब्रह्मा तो ब्राह्मण बहुत होंगे । अब ये ब्राह्मण कब होंगे? गाया जाता है ब्राह्मण देवी-देवताय नम: । यह ब्राह्मण खुद गाते हैं, पर यह क्या है, बस, बडो से सुना हुआ है और कहते आते है । अभी तुम ब्राह्मण सर्विस करते हो, रूहानी सेवा करते हो और फिर देवता बनेंगे । तो दोनो को नमस्ते । उसमें भी जास्ती नमस्ते किनको करते हैं? ब्राह्मणों को । देवताओं को भी नहीं करते है, ब्राह्मणों को करते है । क्यों? ये सेवा कर रहे है ना । ये हमको काँटे से फूल बनाते है । देवताऐ थोड़े ही किसको काँटे से ..., देवताएँ काँटे से फूल बने हुए हैं अभी । तो फिर महिमा किसकी है? शिवबाबा की, जो काँटे से फूल बनाते है । तो बलिहारी शिवबाबा की हुई ना । शिवबाबा भल नहीं आवे तो क्या हम-तुम यहाँ होते? नहीं होते । तो बलिहारी शिवबाबा की । बाबा कहते हैं सबसे मुख्य है जयन्ती शिवबाबा की, क्योंकि सबको आ करके जीयदान देते है । सभी मुर्दे हुए पड़े हैं ना । माया रावण ने इनको बिल्कुल ही बेहोश कर दिया है एकदम । तो देखो, बाबा आ करके होश मे लाते हैं । तुम कितने होश मे आए हो? बाबा खुद कहते है कि देखो, मैं कितने होश में आया हुआ हूँ । कितना नशा था अपने उस पाई-पैसे के जवाहरात के धंधे का । अभी एकदम बोलते हैं- अरे, यह व्यापार करना तो ठीकरियों का काम था । ...अभी तो बाप से मालामाल हो रहे हैं । नशा चढ़ता है ना कि हम बाबा से भविष्य 21 जन्म के लिए मालामाल हो रहे हैं । इस दुनिया के लिए नहीं । यह भी तो जानते हो कि यह मृत्युलोक है । इसमें तो एकदम कुछ भी नहीं है । यह तो खतम हो जाना है । मृत्युलोक क्या है, अमरलोक क्या है, कोई जानते नहीं है । अमरलोक जाने के लिए मृत्युलोक में अमरनाथ को आना तो पड़े ना । तो देखो, मृत्युलोक में अमरनाथ आया हुआ है ना । शिवबाबा उसको कहेंगे ना । तो आया हुआ है तुम बच्चियों को, पार्वतियों को यहाँ अमरकथा सुना रहे हैं । तुम सब पार्वतियॉ हो, एक पार्वती थोडे ही है । फिर तुम वहाँ अमरलोक में अमर बनती हो यानी वहाँ मरने का नाम होता ही नहीं है । यहाँ तो मरने का नाम सुनकर मनुष्य एकदम डरते हैं । वॉरियर्स मरने से डरते नहीं हैं, वो मरे पड़े हैं । देखो, अभी लड़ाई में जाएंगे तो वो डरते है? नहीं । वो समझते हैं हम मरे पड़े है । जाएँगे तो मरेंगे । मारेंगे या मरेंगे । वहाँ और कोई धंधा करेंगे ? तुम्हारे में भी नंबरवार है । नहीं तो बुद्धि में तो बिल्कुल सीधा बैठा हुआ है ना । देखो, बुद्धि जाती है ऊँचे ते ऊँचा बरोबर हम आत्माओं का निवास स्थान, जहाँ बाबा भी रहते हैं । अच्छा, पीछे आओ नीचे, ब्रह्मा विष्णु शकर की रचना । अभी यहाँ आओ, प्रजापिता ब्रह्मा, जगतअम्बा जगत की अम्बा । कोई पूछे किसके बच्चे है? कहेंगे शिवबाबा के । इनको वर्सा कहाँ से मिलता है? शिवबाबा से । तुम जानते हो मम्मा-बाबा और चिल्ड्रन बरोबर हम वर्सा ले रहे हैं शिवबाबा से केअर ब्रह्मा । बाबा कहते हैं, मैं ब्रह्मा द्वारा , मैंने आगे भी कहा है ना कि मैं साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ जबकि उनकी वानप्रस्थ अवस्था है । बहुत जन्म के अंत के जन्म के भी अंत में प्रवेश करता हूँ । नहीं तो यहाँ भारत में वानप्रस्थ अवस्था इतनी क्यों गाई जाती है! और बरोबर बाबा की वानप्रस्थ अवस्था में आया हुआ भी है, जो छुडाया है । वास्तव मे वानप्रस्थ अवस्था मे धंधे-धोरी छोड़ देते है । तो ऑटोमैटिकली बाबा ने छुड़ाया । नहीं तो बुद्धि में थोड़े ही था कि हम कोई छोड़ेंगे । हम तो वहाँ कहते थे कि हम तो यहाँ अभी मकान बनाएँगे, फलाना करेंगे । यह तो सबको रहती है ना । जितनी कमाई उतनी कुछ न कुछ गंवाया । देख लिया कि नहीं, अभी तो बाबा आया है, अभी तो हम मालिक बन रहे हैं । वाह! हम वैकुण्ठ के मालिक बनते हैं! कोई को ऐसे बादशाही मिले तो पगला हो जावे । जब बड़ी रेस होती है ना, फिर उनमें न्। 10-20 लाख आते थे । कोई गरीब होता है, किसको टिकट आ जाती तो जल्दी नहीं देते थे । उनको बिल्कुल अच्छी तरह से धीरे धीरे, उसको मार भी देते थे, फलाना भी करते थे, जिसमें वो चरिया न हो जावे । अचानक किसको जास्ती पैसा आ जावे तो चरिया हो जावे, पगला हो जावे । यह तो देखो, एकदम बादशाही है । तो इसमें कितना गम्भीर, कितनी समझ होनी चाहिए । तो देखो, बादशाही मिलती है, अब इनको क्या करेंगे! अभी तो बाबा से बादशाही लेनी है और तुम बच्चों को बुद्धि में है कि बरोबर बादशाही ली थी । हम कल्प-कल्प बाबा से बादशाही लेते है, फिर हम रावण से हारते हैं । अब ये तो मालूम हो गया ना । कोई बडी लम्बी-चौडी बात तो नहीं है ना । सारी स्टोरी, जो कोई भी नहीं जानते हैं, तुमने जानी । यह हो गई वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्रॉफी की स्टोरी । स्टोरी किसको कहा जाता है? नाटक को । नाटक है ना, बुद्धि मे बैठा । बुद्धि में बिल्कुल एक्युरेट बैठता है । बाबा तुम्हारी बुद्धि मे अभी बैठा रहे है । बरोबर मूलवतन से आते है, सुक्ष्मवतन में रहते है, फिर यहाँ आए है । देखो, अभी फिर बाबा से बादशाही ले रहे हैं । फिर हम कैसे गुमाएँगे! अभी ब्राह्मण हैं, पीछे देवता बनेंगे, फिर क्षत्रिय बनेंगे, फिर वैश्य बनेंगे, फिर शूद्र बनेंगे । एकदम बाजोली उठाती है । अब इस बाजोली का चित्र हम कैसे बनावे जो मनुष्य को समझावे । देखो, यह गोला है । गोला में ऐसे ऊपर में चोटी है, पीछे सिर है, पीछे पेट । अभी टाँगे तो बहुत लम्बी-चौड़ी हैं, उसको हम इस गोल चक्कर में ऐसे लम्बा कैसे बनावें? इसलिए कहते हैं कि विराट स्वरूप बनाओ । विराट स्वरूप में दिखलाते हैं- देवता क्षत्रिय वैश्य शूद्र । चोटी नहीं दिखलाते है । ब्राह्मण का नाम ही नहीं है । ब्राह्मण का नाम नहीं है तो ब्रह्मा का नाम नहीं, ब्रह्मा का नाम नहीं है तो फिर शिवबाबा का नाम नहीं है, बाप का भी नाम नहीं है । देखो, ब्राह्मणों की चोटी नहीं है, सिर्फ कहते है- ये देवताएँ ये क्षत्रिय, ये वैश्य, ये शूद्र । विराट में ऐसे दिखलाते हैं ना, और तो कुछ दिखलाते नहीं हैं । चोटी है नहीं । शोभती नहीं । फिर चोटी के ऊपर शिवबाबा वो चित्र ही नहीं शोभता है । इसलिए फिर माला ठीक है- युगल, प्रवृत्तिमार्ग शिवबाबा और ये बैठ करके विजयमाला बनाते हैं । अभी विजयमाला बन रही है ना । बुद्धि में है ना कि हम शिवबाबा को याद करके विजय माला में आएँगे । यह तो कॉमन दौड़ी है । जैसे स्कूल में पढ़ते हैं । वहाँ एक किला ठोंक दिया, जो इस थम्मले पर पहले जाएँगे और यहाँ आकर पहले पहुँचेंगे, ऐसे नहीं कि थम्मले पर पहले पहुँचेंगे और फिर यहाँ नहीं आऐ । थम्मले को पहुँच करके फिर वापस आ जाएँगे । जो पहले आवे । यह भी ऐसे ही है । पहले हम दौड़ी पड़ते है, रुद्र बाबा को हाथ लगा करके फिर पहले आकर गद्‌दी पर बैठ जाएँगे । विन तभी होगी । समझते हो ना । बरोबर यह स्कूल भी तो है ना, पाठशाला भी तो है, परन्तु इसमें हैं गुह्य बातें, गुप्त बातें । अच्छा, अभी टाइम पूरा हो गया । बाबा इतना ही टाइम देते हैं । बाबा का कहना भी है कि थोड़ा कम बोलो, नहीं तो फिर खुशी में तुम्हारा गला खराब हो जाता है । बाबा बच्चों को भी कहते हैं कि आओ, कोई भी सर्विस लेनी है, दिल मे कोई बात हो तो आ करके टाइम ले करके पूंछ सकते हो । ऐसे न हो कि कोई कहे- हम बाबा से मिले नहीं, हमको बाबा से बात करनी थी । भले वास्तव में बात तो कोई करने की होती नहीं है, क्योंकि बाबा कहते हैं- मन्मना भव, बाबा को याद करो । मंत्र तो मेरे को अच्छा मिल गया । बाकी अच्छा, हम गृहस्थ व्यवहार में रहते है, बहुत कुछ में मूंझते है, अटक करते है कि यह करें या न करें तो ये भले पूंछो । इनमें तुम्हारा कल्याण है, नहीं तो कोई विकर्म कर देंगे । जो बलि चढ़े है उनके लिए । बलि चढ़े है, उनके ऊपर जाप्ता रहता है कि ये कैसे बलि चढे हैं । ऐसे नहीं कि ट्रस्टीपना उनका है, कोई पाप के खाते मे पैसा दे देवें, बिचारे के ऊपर पाप चढ़ जाएगा और फिर ट्रस्टी हो करके पैसा भी उन से बिगर पूछे नहीं उठाना है । तो पहले से ही बता देते है कि गृहस्थ व्यवहार में सो तो भले करो, परन्तु कुछ करना है, कोई ऐसी बात हो तो पूंछना । ऐसे न हो किसको दे दो तो उससे पाप हो जावे, क्योंकि बाप समझाते है- जब से यह माया शुरू होती है, जो कुछ भी लेन-देन होता है उनमें पाप ही होता है । गुरू को दो तो भी पाप, फकीर को दो तो भी पाप, फलाने को दो तो भी पाप । कायदा होता है कि जब भी दान किया जाता है तो पात्र को दिया जाना चाहिए । कुपात्र को दिया तो वो कुपात्र कुपूत जो पाप करेंगे, तुम्हारे सिर पर बैठेगा । वो है हद की बात, यह है बेहद की बात । इसलिए वार्निंग देते हैं । बाकी करो, बाबा ऐसे नहीं कहेगे कि मुझे दो । शिवबाबा ऐसे कहेंगे! क्योकि दाता है ना । वो तो बोलेंगे कि खबरदार होकर रहो, कही तुम्हारे से फिर विकर्म न हो, नहीं तो नुकसान तुमको ही पहुँच जाएगा । समझा ना! सब पैसा अपने पास ही रखो । तुमको दान करना है तो मेरे से डायरेक्शन लो । जाओ मीठे बच्चे, जा करके तीन पैर पृथ्वी पर, चाहे चार पैर पृथ्वी पर, पाँच पैर पृथ्वी पर एक हॉस्पिटल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी निकालो । बस, उसमे लिख दो- सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, सेकेण्ड में विश्व की बादशाही । बहनो और भाइयो! आ करके सेकेण्ड में विश्व की बादशाही का रास्ता लो, हम बताएँगे । कोई भी आवे तो बोलो- अरे! तुमने सुना नहीं है! देखो, बाप का बच्चा जन्म लिया और हद का बादशाह बन गया । अभी तुम बाबा को जन्म लो, हम उसको जन्म लिए है, क्योंकि हम जानते हैं कि बाबा कहते हैं- मुझे याद करो, विश्व का मालिक बनो । देखो, सेकेण्ड की बादशाही है ना और फिर उनकी मत पर चलो । विकार में नहीं जाना पड़ेगा, यह नहीं करना पड़ेगा, बात तो ठीक है । सेकेण्ड भी गशा थोडे ही कोई ने लगाया है । सन्यासियों को बहुत कहते है- गृहस्थ व्यवहार में रहकर हमको जीवनमुक्ति चाहिए जैसे जनक को मिली । यह मिसाल बहुत देते है कि हमको ऐसे चाहिए । अब वो मूर्ख ऐसे तो समझते नहीं है कि सन्यासी कैसे देगे जिन्होंने घर-बार छोड़ा है । वो तो देने वाला एक है, दूसरा न कोई, जो तुम बच्चों को दे रहे है । सहज बात है ना । टोली ले आओ । तुम्हारी बुद्धि में शुरू से ले करके पिछाड़ी तक जरूर होना चाहिए कि ड्रामा कैसा चलता है । सारा दिन होना चाहिए । एक्टर्स हो ना । एक्टर को सारे नाटक का बुद्धि में जरूर होगा । भले उनका पार्ट कौन-सा भी है, बिल्कुल हल्के में हल्का पार्ट है तो भी बुद्धि में वो ड्रामा जरूर होगा । तैसे तुमको भी बुद्धि में सारा ड्रामा रखना पड़ता है ।.. जो जास्ती रखता है, जास्ती स्वदर्शन-चक्र फिराता है, वो समझा भी सकता है । ''मीठे-मीठे, लाडले''- देखो, कौन कहता है, यह पक्का याद रखो कि शिवबाबा कहते हैं बच्चों को । कौन-से बच्चे? आत्माएँ, जो अपने ऑरगन्स से सुनते है । बाबा भी आ करके लोन ले करके ऑरगन्स से । आजकल जो बैल बनाते है, उनको ज्योतिर्लिन्गम यहाँ देते है । तुम लोगों ने कभी देखा है? यही ज्योतिर्लिन्गम है । शिव के मंदिर में बैल रखते हैं तो वो समझते है- शिव की सवारी । अभी शिव नहीं कहते हैं, शंकर की । शिव की तो सवारी हो नहीं सकती है । मनुष्य कोई बैल के ऊपर बैठ सकेंगे । तो देखो, ये कुछ समझते तो है नहीं । तो आजकल शिव को भी यहाँ दे देते है कि बैल पर सवारी थी । अब बैल पर थी या मनुष्य पर थी? नंदीगण पर थी या भागीरथ पर थी? दो अक्षर है- एक नंदीगण फिर भागीरथ । अब भागीरथ अर्थात भाग्यशाली रथ तो यह ठहरा । यानी मकान शिवबाबा को लोन लेना ये क्या समझते हो? यह भागीरथ ठहरा ना । अभी बैल या यह? देखो, इतनी समझ नहीं आती है । शिव के मंदिर के सामने बैल खड़ा कर देते है, सो भी जनावर, क्योंकि समझ में कोई को आता नहीं है । अभी देखते हो, भाग्यशाली रथ है ना और बरोबर यहाँ ही भृकुटी के बीच मे निवास करता है । अभी इतना बड़ा तो नहीं है । तो ये भी समझने की और समझाने की सूक्ष्म बातें हैं । बहुत नशा चाहिए । शिवबाबा ज्ञान सागर के बच्चे हो । सारा बुद्धि में बैठना है जो एकदम फिरता रहे । सारा ड्रामा, मुख्य एक्टर्स । छोटे एक्टर्स तो नहीं बताए जाएँगे ना । छोटा नाटक होगा तो सबको एक्टर्स का नाम भी मालूम रहता । कितने होगे? 50-60-70 एक्टर्स होंगे । जो चैतन्य नाटक होते है उनमें कोई जास्ती एक्टर्स नहीं होते है । यहाँ तो देखो कितने एक्टर्स है! अभी सबकी बायोग्राफी थोड़े ही समझेंगे । मुख्य प्रिंसीपल वो जान गए बरोबर बाबा, ब्रह्मा विष्णु, शंकर, जगदम्बा और फिर वही लक्ष्मी-नारायण सूर्यवंशी-चंद्रवंशी, और कोई चित्र ही नहीं है । नहीं तो चित्र तो देखो अथाह हैं- गधे की सीसी, सुअर की सीसी, हनुमान की सीसी, फलाने की सीसी, बहुत हैं । एक जगदम्बा नहीं है, पर हजारो जगदम्बा कर दिया है । है तो एक ना । जगत् अम्बा एक होनी चाहिए ना । जगतअम्बा 2-3-4 तो नहीं होगी ना । अगर 2-3-4 कहें तो जगतपिता को 2,4,5 बीबी बन जावे । वो भी तो नहीं बनता है । अच्छा! मीठे-मीठे बच्चों प्रति दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग ।