15-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग, यह पंद्रह मई का रात्री क्लास है

जरूर कोई एक वा आधा या दो समझने वाले होंगे, दूसरे न समझने वाले होंगे । विवेक कहता है कि हर एक अलग-अलग होवे तो बेहतर होता है, क्योंकि हर एक की मत अपनी होती है । भले बाप के तीन बच्चे होंगे तो तीन की मत अलग होगी । अमुल कायदा करांची मे ये था कि एक-एक को अलग-अलग करते थे. क्योंकि एक बैठा होगा उनको तुम योग में बिताएंगी और दूसरा योग में या याद में न रहेगा तो उस समय में वो वायुमण्डल को खराब करेंगे, परन्तु यहाँ इतनी जगह तो है नहीं, यहाँ तो झुण्ड आते हैं, क्योंकि यात्रा का स्थान है । बाकी अगर दो हों और उनसे जब फार्म भराया जाता है, कुछ फर्क होता है तो समझाने के लिए अलग कर देना चाहिए, नहीं तो एक की बुद्धि कहा दौडती रहेगी । जैसे यह कभी-कभी आते हैं, नए को अलाउ करते हैं, तो जिनका योग बाप के साथ ठीक नहीं होगा उनकी क्या हालत होगी कि बाबा बोलते रहेंगे और वो ऐसे-ऐसे करते रहेंगे । नयों की सम्भाल की जाती है । जो नए आएं हैं, उनमें दो या तीन हों, तो कौन का अटेंशन जाता है और कौन का अटेंशन नहीं जाता है, कौन लायक है और कौन नालायक है ये अविनाशी ज्ञान खजाना लेने का । तो लायक और नालायक । नालायक को कहो कि तुम न लायक हो इस चीज के- यह कहना अच्छा है और अगर उनको नालायक कह दो तो वो बिगड़ पड़ेगा । बात एक ही होती है- न लायक या नालायक । जो लायक होगा तो अटेंशन से सुनता रहेगा, क्योंकि बाप देखते रहते हैं कि किसका अटेंशन जाता है और किसका नहीं जाता है । जिसका न जाता होगा तो उनकी मुँह, शक्ल की चलन ऐसी होगी कि यहाँ देखता रहेगा, यहाँ देखता रहेगा, अटेंशन नहीं रहेगा । नहीं तो बच्चों का अटेंशन तो बाप की तरफ रहेगा कि डायरेक्ट क्या बोलते हैं । सुनने वाला न होगा तो उनकी बुद्धि यहां-वहाँ फिरती रहेगी । कांध भी फिरता रहेगा । ऑखे भी फिरती रहेंगी । इतना समझा जा सकता है कि यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना लेने का लायक है या नहीं, क्योंकि यह बड़ी उत्तम वस्तु, खजाना है । इस खजाने का शौक कोटों में कोऊ फिर कोटन में कोऊ को होता है । इतनी अच्छी तरह से धारणा करना चाहिए जो बस सुना और इनको फिर जाकर रिवाइज करके लिख दिया । फिर उनको 5,7 दफा अच्छी तरह से जाँचा । उनमें जो भी तत हो वो धारण कर देना (लेना) चाहिए । जो पूरा पुरुषार्थी होगा वो इतनी मेहनत करेंगे तब सर्विस लायक बन सकते हैं । हाँ, कई कई बहुत अच्छे बुद्धिवान होते हैं जिनकी बुद्धि में झट बैठ जाता है । फिर समझा जाता है कि यह ब्राह्मण कुलभूषण कोई नजदीक का है । या तो ब्राह्मण कुलभूषण नजदीक का हुआ या देवताओं में नजदीक का हुआ । ऐसे होते हैं । जो समझाने वाले होते हैं वो परख सकते हैं कि यह अच्छा समझते हैं, इनकी बुद्धि में कुछ बैठा ही नहीं । तुम अवधूत के साथ बैठे थे? (किसी बहन ने कहा- कल थोडा टाइम बैठे थे) आज तो शायद नहीं आया है । (बहन ने कहा- वो फिर दूसरा सन्यासी लेकर आया था, उनसे थोड़ा टाइम बैठी थी, जो कहता था मुझे सन्यास किये 10 वर्ष हुआ, मैट्रिक पढा था । मेरा छोटेपन से ही संस्कार) । सन्यासियों का भी संस्कार होता है ना । जब जन्म लेंगे और थोडा ही बड़े होंगे तो उनका संस्कार ऐसे ही निकलेगा कहीं भागने का । दिल नहीं लगेगी । पढाई पर भी बहुतों की दिल नहीं लगती है । आत्मा का कहेगा ना, बाप तो कहेगा बच्चों का, घड़ी-घड़ी बच्चे कहते रहेंगे । दुनिया में बच्चे तो सब कहते हैं चाहे बाप हो या काका या चाचा । यह तो बच्चे समझते हैं कि शिवबाबा हम बच्चों को कहते हैं । तुमको टेव पड़ जानी चाहिए कि हम आत्माओं को परमपिता परमात्मा ये सब समझाते रहते हैं । हमारी आत्मा की बुद्धि में धारण होती है । यह भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । हम आत्मा हैं और आत्मा ही इन शरीर से कर्तव्य कराती है, यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं । इस प्रैक्टिस में पास होना बड़ा कठिन है, क्योंकि जो बात आधा कल्प में कभी ध्यान में ही नहीं आई है कि मैं आत्मा हूँ और इस शरीर से सब कार्य कर रहा हूँ पार्ट बजा रहा हूँ । यह किसकी बुद्धि में पूरा आधा कल्प नही ठहरती है । बाप ने समझाया है कि सतयुग में उन लोगों की बुद्धि में है कि मैं आत्मा हूँ इस शरीर द्वारा पार्ट बजाता हूँ । जब बुड्ढे होंगे, हमको फिर शरीर छोडना होगा, फिर नया शरीर लेना होगा । बाकी पार्ट का फिर भी कोई पता नहीं है । पार्ट के लिए तो यहाँ भी बहुत कहते हैं कि हम यहाँ पार्टधारी हैं । हर एक अपना अपना पार्ट बजाने कर्मक्षेत्र पर आए हैं । कौन-सा पार्ट बजाने? यह भी कहते हैं कि सुख-दुःख के खेल का, परन्तु कैसे? कोई भी नहीं जानते हैं । जैसे कोई बहरे होते हैं तो ऐसे करके सुनते हैं । आत्मा वास्तव में इन कानों से अटेंशन से सुनती है । आत्मा हाँथ रखेगी कि हम इन कानों से क्या सुन रही हैं । अभी तुमको ख्याल है कि हम आत्माएँ इन कानों से परमपिता परमात्मा से क्या सुन रही हैं । ऐसे तो कोई भी पाठशाला, स्कूल या सतसंग नहीं है जिसमें सुनने वाले बच्चे ऐसे समझें और सुनाने वाला भी ऐसे ही कहे कि मैं इस शरीर द्वारा, ऑरगन्स द्वारा तुम आत्माओं को समझा रहा हूँ, क्योंकि इसको ही कहा जाता है आत्माओं और परमात्मा का सम्मुख मेला, क्योकि भगवान राजयोग पढाएंगे तो भी सम्मुख पढाएंगे ना और बहुत ही टाइम पढाएँगे । गाया जाता है- जहाँ जीय तहाँ पढो । तुम्हारा भी ऐसे है । जहाँ तुमको जीना है, तहाँ पढ़ना है । देखो, कितने बुड्‌ढे भी हैं! कोई पूछे क्या बुडढे पढ़ते हैं? कहना चाहिए- हाँ, बुडढे पढ़ते हैं । जब वानप्रस्थ अवस्था में जाते हैं तब सन्यासियों के पास जाकर शास्त्र पढ़ते हैं, सुनते हैं । वो भी तो पाठशाला हुई ना । वो है शास्त्रों की पाठशाला, क्योंकि अभी मरने का है, वानप्रस्थ अवस्था है, इसलिए सत का संग चाहिए । साधु-संत का सत्संग क्यों चाहिए? क्योंकि वो रास्ता बताएँगे । कहाँ का रास्ता बताएँगे? भगवान से मिलने का रास्ता, परन्तु वहाँ मिलने जाना तो नहीं है ना, क्योंकि पुनर्जन्म तो जरूर यहाँ लेना है । इस समय मे तुम बच्चों को समझाया जाता है कि इस मृत्युलोक में तुमको पुनर्जन्म नहीं लेना है । साधु संत महात्मा कोई ऐसे कह नहीं सकेंगे कि अभी तुमको इस मृत्युलोक में पुनर्जन्म नही लेना है । ऐसा कोई जानते ही नही हैं । बच्चों को यहाँ कहते हैं कि अभी इस मृत्युलोक में जन्म नहीं लेने का है । अभी अमरलोक चलना है अर्थात् स्वर्ग चलना है वा श्रीकृष्णपुरी चलना है । जबकि श्रीकृष्णपुरी चलना है तो ऐसे गुण धारण करने हैं, क्योंकि वहाँ यथा राजा-रानी तथा प्रजा । भले यह तो प्रिन्स है तो यथा प्रिन्स और प्रिन्सेज तथा बच्चों को यहाँ बनना है, ऐसे भी कह सकते हो । तुम बच्चे तो देखते हो कि बरोबर जो प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज बनने वाले हैं, शिवबाबा द्वारा हम भी तो प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज बनने वाले हैं । जो जितना पुरुषार्थ करेगा वो इतना प्रिन्स वा प्रिन्सेज बनेगा । तो बुद्धि में यह रहना पड़े कि अभी यहाँ पढ़ते हैं प्रिन्स वा प्रिन्सेज बनने के लिए । बाबा कभी पूछते हैं कि महारानी बनेंगे या महाराजा बनेंगे? तो कोई कह देते हैं महारानी बनेगे, कोई कह देते हैं महाराजा बनेंगे । पुरुष होंगे तो अक्सर करके कहेंगे कि हम महाराजा बनेंगे और फिमेल होगी तो अक्सर कहेंगी कि हम महारानी बनेंगे । तो बच्चों को बुद्धि में रहना है कि हम क्या पढ़ते हैं । हम गॉड फादर द्वारा पढ़ते हैं गॉड और गॉडेज बनने के लिए । जैसे बैरिस्टर के सामने पढते हैं तो बैरिस्टर और बैरिस्ट्रेस बनेंगे । तो यह भी एक इम्तहान है । भगवानुवाच! तुम सो राजाओं का राजा यानी नर से नारायण बनेंगे । तो उनको गॉड ही कहते हैं, परन्तु गॉड एण्ड गॉडेज कहना कुछ रोंग है, क्योंकि यहाँ भारत खण्ड में गॉड एण्ड गॉडेज तो नहीं हैं । जबकि सूक्ष्मवतन में देवी और देवता हैं, तो फिर स्थूलवतन में गॉड एण्ड गॉडेज कैसे हो सकते हैं? गॉड तो देवताओं और मनुष्यों से ऊँचा रहा । इसलिए यहाँ गॉड एण्ड गॉडेज किसको नही कहा जा सकता है । जबकि इनसे ऊँचे तबक्के पर देवी-देवता हैं । उनको देवता कहते हैं । उनके ऊपर में फिर गॉड है । वहां जब हम रहते हैं तो उस समय सब बच्चे ही बच्चे हैं । वहाँ गॉडेज यानी फिमेल तो हैं नहीं, सभी बच्चे ही बच्चे हैं । सभी आत्माएँ ही हैं और परमात्मा है । तुम्हारी केयर, सम्भाल अभी कौन करते हैं? शिवबाबा । किससे सम्भाल करते हैं? अरे, बात मत पूछो । यह बडा दुश्मन है । अब इस दुश्मन से बचाने के लिए केयर टेकर हुआ ना । तो पूछते रहते हैं कि बच्चे, ये दुश्मन कहा तुमको तंग तो नही करते हैं? किस बात में तंग करते हैं मुझे बताओ तो फिर मैं युक्ति बताऊँ । तो देखो, कितने बच्चे का केयर टेकर कहते हैं । सभी बुलाते हैं- हे पतित-पावन, आओ! आ करके इस रावण से हमारी थोडी केयर करो, रक्षा करो । बहुत गाते हैं- रक्षा करो, रक्षा करो । अभी तुम बच्चों की किससे रक्षा करने वाला? पाँच भूतों से । ये बड़े कड़े भूत हैं । किसके शरीर में घोस्ट आते हैं, वो इतना दुःख नहीं देते हैं जितना ये माया रूपी घोस्ट दुःख देते हैं । यह बहुत खराब है । अगर किसके घर मे कोई एक भी क्रोधी होगा तो कहा जाता है घर का मटका भी सुखा देंगे । अगर एक में भी होता है तो सारे घर को धमचक्कर बना देंगे । क्रोध भी घर को बड़ा हैरान करता है । काम में प्राइवेसी है । क्रोध तो सामने .है । फट एकदम गालियाँ देना, धक्का-मुक्कल मचाना । मोह और लोभ ये जैसे थोड़े गुप्त हैं । इनको कहा ही जाता है- भूत । इनको लोभ का भूत है, इनको क्रोध का भूत है, इनको काम का भूत है । तो ये पुराने भूत हैं और फिर सबमें भूत हैं । घोस्ट कोई सबमें नहीं होते हैं । अशुद्ध सोल कोई में आकर प्रवेश करती है । ये तो आत्मा ही है खुद जिसे ये रावण अशुद्ध कर देते हैं । ये पाँचों भूत हैं, जिनको भगाने के लिए कितनी मेहनत लगती है । अच्छा ये हैं विचित्र की चतुराई की बातें । विचित्र सबसे जास्ती चतुर है । शिवबाबा मे चतुराई बहुत है ना । उसको कहा जाता है- चतुर साजन । इनमें चतुराई बहुत है । इस शरीर में रह करके कैसे प्यार से चतुराई से अपना बनाते हैं! पराये शरीर में रह करके अपना कैसे बनाते हैं, तो बहुत चतुराई हुई ना! नहीं तो अपना शरीर है नहीं, विचित्र है और पराये शरीर द्वारा कैसे कितनों को अपना बना दिया है । ढेर के ढेर हैं, क्योंकि यह नई बात हो गई ना । वो जो श्रीकृष्ण भगवानुवाच है, उनको तो अपना शरीर है । उनका तो बहुत जल्दी बन जावे । जैसे अम्बेडकर ने एक ही बात से 70 थाउजेंड को बौद्धी बना दिया । अगर कृष्ण हो और आ करके समझाए तो एक-एक घण्टे में लाखों आ जावें, करोड़ों आ जावे, क्योंकि कृष्ण का रूप ही मोहिनी है समझाने के लिए, बच्चा बनाने के लिए । समझ गए हैं कि याद में बैठना है । इसमें कोई आँखे वांखे बंद नहीं करनी है । बहुत मनुष्य ऑखे भी बंद करके बैठते हैं । साधु लोग ऑखे बंद करते हैं । खास करके ऐसे भी साधु लोग होते हैं जो माताओं के आगे आँखें नहीं खोलते हैं । ऐसे भी साधु हैं जो माताएं पिछाड़ी बैठती हैं और पुरुष आगे बैठते हैं कि माताओं को देखने न पावें । मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, समझ गए हैं कि बाप हम आत्माओं को कहते हैं- मीठे-मीठे बच्चे । तो तुम बच्चों को टेव पड़ जावे । मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, मात-पिता, बापदादा, मात-पिता, बापदादा का अर्थ समझती हो? माता तो वहाँ बॉम्बे में बैठी हैं । उनके एवज में कहता हूँ ।.. .मात-पिता, बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट । सबको दिया । रोज यादप्यार देते हैं और बच्चे सुनते-पढ़ते हैं । बच्चे तो रोज नहीं देते हैं । बच्चे याद करते हैं । अगर याद-प्यार भेजना होता है तो चिट्‌ठी में भेजते हैं । यह भी चिट्‌ठी में जाएगी ना । ये भी जांच करते हैं कि किनका अच्छा लव है, जो बाप को कम से कम हफ्ते, 10 रोज, 15 रोज में चिट्‌ठी लिखते हैं । लाचारी नहीं है, क्योंकि बाबा कहते हैं चिट्‌ठी लिखनी चाहिए और फिर काशी कलवट खाकर भी चिट्‌ठी लिखनी पड़े, नही । लव की लहर आनी चाहिए । जैसे स्त्री और पुरुष को बड़े प्यार की लहर आती है । सामने चित्र आकर खड़ा रहता है । उफ! यह मेरा प्राण प्यारा पति है, उनको हम चिट्‌ठी लिख रही हैं । जब बहुत प्यार होगा तो प्रेम के आंसू भी बहेंगे और वो चिट्‌ठी पर टपकेंगे और जो पुरुष हैं जिनका बहुत लव होता है वो भी ऐसे ही चिट्‌ठी लिखते हैं, परन्तु ऑसू बहुत मुश्किल गिरेंगे, क्योंकि स्त्री का प्रेम और प्यार जास्ती है, उनका इतना नहीं है । बहुत फर्क रहता है । सदा सुखी बनाते हैं । याद मे ही तुम्हारा खाता जमा होता जाता है ।