16-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, यह सोलह मई की प्रातः क्लास है, बापदादा की मुरली सुनते हैं।

अभी आत्माओं को अच्छा निश्चय है कि बाबा आया हुआ है, बाबा पढ़ा रहे हैं, भगवान पढा रहे हैं । अरे, भगवान तो निराकार को ही कहा जाता है । बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए । सम्मुख आने से आत्मा कहती है, समझती है कि बाबा आया हुआ है । क्या करने? सबकी सद्‌गति करने । गाते तो हैं बरोबर- सर्व का सद्‌गति दाता और सर्व का जीवनमुक्ति दाता । अभी है जीवनबंध । बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं और निश्चय है । भले घड़ी घड़ी भूल जाते हैं, माया भुलाय देती है, परन्तु अभी यह तो समझते हैं ना इंतजार में सम्मुख बैठे हैं कि निराकार बाबा इस रथ पर सवार हो आए हुए हैं । जैसे मुसलमानों का होता है, मोहम्मद का पटका घोड़े के ऊपर रख देते हैं । फिर क्या कहेंगे? इस घोड़े पर मोहम्मद की सवारी की निशानी पटका रख देते हैं-टरबन । अभी घोड़े की भी बात नहीं रही, टरबन की भी बात नहीं रही, क्योंकि टरबन तो कुछ है नहीं, यहाँ तो है निराकार बाबा की प्रवेशता । बच्चों को बहुत-बहुत खुशी होनी चाहिए कि स्वर्ग का मालिक बनाने वाला, सतयुग का मालिक बनाने वाला या विश्व का मालिक बनाने वाला बाबा आ गया है । ऐसे नहीं है कि सिर्फ सन्मुख है । उसी समय में जब बताते हैं, अभी तुम सब बच्चों को बताते रहते हैं । बड़ी खुशी आएगी कि विश्व का मालिक बाबा, गीता का सच्वा-सच्चा भगवान है । ऐसे कहेंगे, क्योकि वो झूठा हो जाता है । यह हमारा सच्वा-सच्चा बाबा, जो इस झूठ खण्ड को सचखण्ड बनाते हैं । तो आत्मा की बुद्धि बाबा के साथ चली जाएगी । यह है आत्मा का परमात्मा के साथ लव । सो जब बाप मिले तब लव बाँधे ना । एक ही दफा यह लव की कनेक्शन होती है जब आत्माएँ और परमात्मा मिलते हैं । किसको मिलते हैं? यह खुशी किसको चढती है? जो बहुत काल से अलग हैं । आत्माएँ समझती हैं कि बरोबर हम बहुत काल से अलग हैं । बाबा खुद भी कहते हैं कि मैंने शुरुआत में तुमको सुख के संबंध में भेजा था । अभी आ करके तुमको दुःख के बंधन में देखता हूँ और फिर तुमको सुख के संबंध में बाँधता हूँ । देखो, बच्चों को कहते हैं कि तुम्ही थे, तुम अपने जन्मों को भूल गए हो कि बरोबर हम ही 84 जन्म लेते हैं । अभी तुम बच्चों को सर्टेण्टी होती है । सबको नहीं, सब 84 जन्म नहीं लेते हैं । यहाँ तो ऐसे ही बोल देते हैं कि मनुष्य का 84 जन्म या 84 का चक्कर या 84 लाख का चक्कर चलता है , पर 84 लाख का चक्कर तो किसकी बुद्धि मे बैठेगा भी नहीं और समझा भी नहीं सकेंगे । यह तो बच्चे समझते हैं कि बरोबर 84 का हिसाब बाबा ने बिल्कुल ठीक बताया है कि हम बाबा के बच्चे 84 जन्म लेते हैं और लेते ही रहते हैं । अभी सामने, सम्मुख बैठे हो और कौन सुनती है? जानते हो कि हम आत्माएँ इन ऑरगन्स द्वारा या कानों द्वारा सुनती हैं और बाबा इसके मुख द्वारा सुना रहे हैं । खुद कहते हैं कि मुझे आधार तो लेना पड़े ना । मुझे आधार भी उन्हीं का लेना पड़े जिसको मुझे ब्रह्मा का नाम देना पड़े क्योंकि सूक्ष्मवतन में भी ब्रह्मा, सो भी प्रजापिता ब्रह्मा । अभी प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर मनुष्य चाहिए ना । सूक्ष्मवतन में थोड़े ही कोई कह सकेंगे । नहीं । स्थूलवतन में आ करके फिर खुद कहते हैं कि मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश करता हूँ । तुम्हारे मे प्रवेश नहीं करता हूँ । ब्रह्मा के तन में प्रवेश हूँ । उसका आधार लेकर तुमको एडॉप्ट यानी गोद में लेता हूँ । इसके तन में बैठ करके तुमको गोद में लेता हूँ । तुम जानते हो कि अब हम आत्माएं ईश्वर की गोद मे जाती हैं, क्योंकि शरीर है। नही तो शरीर बिगर तो गोद हो नहीं सकती है । जैसे कोई कन्या की आत्मा है और कोई बच्चे की आत्मा है । तो आत्मा कहती है कि मैं शरीर द्वारा इनकी बनती हूँ: परन्तु आत्मा का ज्ञान न होने के कारण कुछ समझते नहीं हैं । बस, देह-अभिमान होने के कारण कहती हैं मैं इनकी बनती हूँ मैं इनकी बनती हूँ, परन्तु वास्तव में तो ऐसा कहें ना कि मैं आत्मा इस शरीर द्वारा इसकी बनती हूँ । सो हो गया जीवआत्मा । मैं जीव-आत्मा शरीर सहित इनकी बनती हूँ । यहाँ भी तो बाप आकर अभी जीवआत्मा बना है । जैसे बैठकर लोन लिया है । जीव इनका नहीं है । इनकी आत्मा का जीव छोटा नहीं होता है, गर्भ में नहीं होता है । यह आकर बोलते हैं कि मैं इनमें प्रवेश करता हूँ । जैसे आत्माएँ तुम्हारे में भी प्रवेश हैं ना । फिर एक, दो मे प्रवेश हो करके एक दो में शरीर को प्यार करते हैं । इस समय में बाबा बोलते हैं कि मैं भी इस आत्मा में हूँ और मैं तो जादूगर हूँ । मैं बच्चा भी बन जाता हूँ । मैं मम्मा भी बन जाता हूँ । इसलिए मुझे जादूगर कहते है । मम्मा की दृष्टि उनको दे करके, मम्मा बनाय करके फिर मम्मा खुद बन जाता से । बोलते हैं इनमे तो हूँ ना । मैं इनमें मम्मा बन जाता हूँ । इसको मम्मा देखते हैं । बहुत बच्चे जब गोद में आते है तो मम्मा देख करके देखते हैं । साक्षात्कार हुआ ना । उस समय साक्षात्कारों में जाते थे कि यह मम्मा है । फिर यहाँ बैठ करके वो पकड़ते हैं, बच्चे समझ करके इनको पकडते हैं, पीते हैं बहुत । क्यों? ये सभी तो आत्माएँ सो परमात्मा आत्मा का रूप धारण करके बरोबर यह मम्मा की भासना देते हैं, नहीं तो मम्मा की भासना कैसे आवे! अब यह जादूगरी तो बहुत है, परन्तु क्या करें वो जादूगरी जास्ती नहीं दिखलाते हैं । पहले दिखलाते थे, परन्तु देखा कि ये जादूगर कहते हैं, पता नहीं क्या है, ये तो बिचारे ग्लानि करने लगते हैं । तो बाबा ने यह चतुराई दिखलाई कि मैं तुम्हारी मम्मा बन जाता हूँ तुम्हारा साजन बन जाता हूँ । झट रूप बदलते हैं, कोई देरी नहीं करते हैं । सजनी बन जाते हैं । इनको सजनी देखते हैं, खुद को साजन देखते हैं और कोशिश करते हैं कि हम इनसे खेलें । वो सारा समय साक्षात्कार की बात है । उस समय मे वो कोई अपनी देह में नहीं है, वो दिव्यदृष्टि में है, परन्तु वो खेल-पाल अभी बंद कर दिया है, क्योंकि इस खेलपाल को या जादूगरी को वो समझते नहीं हैं । फिर उनको क्या का क्या कर देते हैं, क्योंकि दुनिया में झूठ तो बहुत है । झूठी रिद्धियाँ-सिद्धियाँ बहुत हैं, ढेर के ढेर हैं । बहुत बच्चे रिद्धि-सिद्धि करके नाम लेते हैं । एकदम कृष्ण बन जाते हैं । जिनका कृष्ण में भाव होगा, उनको झट दिव्य दृष्टि मिल जाती है, सचमुच उनको कृष्ण देख लेते हैं । अभी वो तो हुआ, बरोबर यह कृष्ण है, मान लेते हैं और उनके फॉलोअर्स बन जाते हैं । ऐसे बहुत हैं । हरिद्वार में एक है जो कृष्ण मानकर निकले थे, फिर गवर्मेन्ट ने पकड़ लिया था या कुछ ऐसी बात हुई थी । हरिद्वार में थे । अब वो तो हुई मिस्मैरिज्म(सम्मोहित करना या आकर्षित करना) की बात, पर यहाँ तो सारी ज्ञान की बात है ना । यहाँ तो तुम अभी जानते हो कि बाबा आया हुआ है । बुद्धि है । यहाँ कोई साक्षात्कार की या देह-अभिमान की बात ही नहीं है । यहाँ बच्चे जानते हैं कि बाबा आया हुआ है । पहले-पहले यह निश्चय चाहिए, पक्का निश्चय चाहिए कि हम आत्माएँ हैं । बाबा खुद आकर कहते हैं कि मैं तुम्हारा बाप हूँ और तुम जो मेरी महिमा करते हो- ज्ञान का सागर है, शांति का सागर है, सुख का सागर है, फलाने का सागर है तो देखो, तुम बच्चो को आ करके इस सारे सृष्टि-चक्र का ज्ञान देता हूँ । तुमको त्रिकालदर्शी बनाता हूँ । अभी ऐसी नॉलेज कोई भी दे नहीं सकते हैं । यह तो बाप देते हैं ना ।.. .बाबा, जिसको भक्तिमार्ग में सब पुकारते हैं, याद करते हैं, परन्तु भक्तिमार्ग के अंत में ही आना है । ऐसे नहीं है कि कोई भी वक्त में कोई भगत को मिल जाएगा । भले शिव का साक्षात्कार भी होता हो । शिव का क्या साक्षात्कार होगा? किसी को लिंग का साक्षात्कार होगा । वो जो गाया जाता है कि अखण्ड ज्योतिस्वरूप है तो उनको अखण्ड ज्योति स्वरूप का साक्षात्कार होगा । जैसी जैसी जो भावना रखते हैं तो उनकी भावना अल्पकाल क्षणभंगुर सुख के लिए पूरी कर देते हैं । बहुतों को हनुमान का, गणेश का, सूंड वाले का साक्षात्कार होता है । जिस जिस की जो जो भावना रखते हैं बस उसकी भावना उसमें दृढ निश्चय रखने से पूरी हो जाती है । बाकी बाप फिर कह देते हैं कि दिव्य दृष्टि मैं देता हूँ, परन्तु वो सब जो भी साक्षात्कार करते हैं, कोई मेरे से नही मिलते हैं । मेरे को पहचानते भी नही हैं । भले मैं साक्षात्कार भी कराता हूँ । चलो, शिवलिंग का कराऊँगा । कोई स्टार का तो करा नहीं सकता हूँ क्योकि पूजा शिव की करते हैं । अभी तो ज्ञान का कितना फर्क हो गया कि हम भी स्टार्स हैं और बाबा भी ऐसे ही स्टार है । हमारी आत्माओं में भी तो ये नॉलेज है, बाबा की आत्मा में भी नॉलेज है । हैं तो दोनों छोटे । तो यह नई बात हो गई ना । यह कोई किसको मालूम नही है, न शास्त्रों मे है । किसमें भी कुछ नही है । आत्मा छोटी है, उनमें 84 जन्म का पार्ट भरा हुआ है- यह किसको भी बुद्धि में मालूम नहीं है । इतनी छोटी है । बाप भी कहते हैं मैं भी तो इतना ही छोटा होऊंगा कोई बड़ा थोड़े ही होउंगा । मुझे तुम कहते भी हो परम आत्मा यानी परमधाम में रहने वाली आत्मा, इसलिए उनको कहा जाता है परम आत्मा, परे ते परे आत्मा या सुप्रीम आत्मा, सो हो जाता है- परमात्मा । सुप्रीम सोल माना सुप्रीम आत्मा । सोल कहा जाता है आत्मा को । इंगलिश में और तो कोई नाम ही नहीं है । जब तुम सामने बैठते हो उस समय में तुम्हारा एकदम रोमांच खड़ा हो जाना चाहिए । उफ! दुनिया में कोई नहीं जानते हैं कि बेहद का बाबा, जो ज्ञान सागर है, वो शरीर में प्रवेश करके ज्ञान देते हैं । अभी कृष्ण की तो कोई बात ही नहीं है । इसमें गोप और गोपियाँ, कपड़ा हरण करना, फलाना कोई भी बात नहीं है । न यहाँ है, न फिर सतयुग में है । हर एक प्रिन्स व प्रिन्सेज अपने महल में रहते हैं । वह काहे का हरण? देखो तो कितनी झूठी बातें हैं! अभी मनुष्य कैसे समझे? इतना परम्परा से जो पढते आए हैं और उनको पक्का करा दिया है वो कैसे समझें? समझते वही हैं जो आ करके फिर वर्सा लेते हैं । अभी यहाँ बैठे हुए हैं । देखो, खुशी होनी चाहिए ना । अच्छा, भला वो खुशी कायम रहनी चाहिए । राजधानी में जो बच्चे होते हैं, तो मात-पिता महारानी-महाराजा जिसके बच्चे बनते हैं, याद तो रहते होंगे । अभी कहते भी हैं- तुम मात-पिता... । मात-पिता का अर्थ कोई समझते तो नही हैं । अच्छा, 'तुम पिता कहना तो ठीक है, फिर माता किसको कहा जाए? तो कितना गुह्य राज है । भले माता अभी उस जगदम्बा को कहा जाता है, पर वास्तव में तो उसको नहीं कहा जाता है ना । बडी माता तो यह बन जाती है, क्योंकि माता की माता जरूर चाहिए । इस माता की फिर माता कोई नहीं है । इस माता की कोई माता हो नहीं सकती है । यह राज, बहुत समझने की बातें हैं । किसके बुद्धि में अच्छी तरह से बैठे, बाप को याद करे और यह जानना है कि हमको बाबा कहते हैं कि बच्चे, तुम्हारे में कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए, क्योंकि तुम खुद बुलाते हो कि मैं निर्गुण हारे में को गुण नाहीं । निर्गुण बालकों की भी एक संस्था है । निर्गुण का अर्थ तो कोई समझते नहीं हैं । नहीं तो जब बच्चे जाकर कहते हैं कि मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं, आपे तरस परोई । अच्छा, अभी गुणवान बनना पड़े । कितना मीठा बनना पड़े अच्छी तरह से! गुण क्या? काम नहीं, कोई क्रोध नहीं, कोई लोभ नही, कोई मोह नही, न अभी इस समय मे देह का अहंकार चाहिए, क्योंकि इस समय में आत्माओं को पढाते हैं, फिर कभी परमात्मा आ करके आत्मा को नहीं पढ़ाते हैं । बस, इस समय में एक ही दफा पढ़ाते हैं । जबकि वो खुद आकर पढ़ाते हैं पढ़ने वाले को, अभी यह पार्ट शास्त्रो मे कैसे आ सकता है! आ ही नही सकता है । सारा ही बिल्कुल बदल जाता है । जब यहाँ बैठे हो, ये तो जानते हो, हो तो चुके हो ना । तो क्यों तुम बच्चों को मुरझावट आ जाती है? फलाना आ जाती है? यह क्यों होना चाहिए? परन्तु बाबा कहते है कि ड्रामा में यह याद रखना, निश्चय और उस खुशी में रहना जरा मुश्किल है । यह होगा, परन्तु अंत में । नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार अंत में यह फाइनैलिटी होगी । जो कहा गया है कि अतेन्द्रिय सुख की अवस्था पूछो तो गोप-गोपियों को जबकि यह फाइनल हो जाएगा । अभी नहीं, क्योंकि अभी हो नहीं सकता है, क्योंकि पढ़ते रहते हो, पढ़ते रहते हो । बाबा को कोई कह नहीं सकते हैं कि हम 75 परसेन्ट अतीन्द्रिय सुख में रहते हैं । अतीन्द्रिय सुख मे रहेगे तब जबकि फाइनैलिटी होगी । पीछे फाइनल बता सकेंगे । अभी फाइनल कोई नहीं बताएगा । यहां, सब पुरुषार्थी हैं । देखो, ये जो तुम्हारे साकार मम्मा-बाबा हैं, वो भी पुरुषार्थी हैं, क्योंकि बच्चों के ऊपर जन्म-जन्मातर का विकर्म का बोझा बड़ा भारी है । यह कोई समझते नहीं हैं, क्योंकि जो पाप किया वो कटा तो बिल्कुल नहीं । क्या गंगा स्नान में कटा? गुरू की कृपा से कटा? कोई भी नहीं, किसका भी नही कटा है । गुरू अपने ऊपर ही कृपा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि पिछाडी में गुरू भी आ करके नॉलेज लेते हैं । जैसे कहते हैं भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य फलाने को भी कन्या द्वारा ज्ञान बाण मारे है । ऐसे नहीं है कि वो मरे हैं, फिर उसने तीर मारा है तो गंगा निकल आई है । वहाँ भी इन बच्चियों का नाम निकालकर नीचे से गंगा निकाल देते हैं । समझते हो? जब वो बैठ करके ज्ञान दिया है तो उस समय मे वो जैसे गिरा है, क्योंकि बाण की बात निकालते हैं ना । तो फिर उस समय में पिछाड़ी में, जैसे यहाँ मनुष्य मरते हैं तो उनको गंगा जल मुख में डालते हैं । वो जो कथा बनाकर रखी है कि बाण मारा है और फिर कहते हैं वो जैसे कि मर गए हैं । पिछाडी मे मरते समय गीता का पानी चाहिए ना । तो अर्जुन ने वही बाण मारा है, पानी निकाला, उनके मुख में डाला है, जैसे आजकल करते हैं । यह अखानी बैठ करके बनाई है । अभी वो गंगाजल की बात तो कुछ है नहीं । यह तो तुम जानते हो कि बेहोश होते हो तो तुमको शिवबाबा की याद दिलाते हैं । अभी वो याद दिलानी नहीं चाहिए, अभी तुमको हिर जाना चाहिए । जबकि बाबा ही तुमको कह देते हैं कि मामेकम् याद करते रहो, तो फिर पिछाडी में तुमको कोई आकर कहेंगे भी कि शिव को याद करो तो इतना फायदा नहीं होगा, क्योंकि तुमको फिर पिछाड़ी में कोई कहने वाला नहीं चाहिए । इतना पुरुषार्थ करो जो पिछाड़ी में तुम शरीर छोड़ो तो आपे ही याद आवे । कोई कहने वाला हो, तो फिर वो तो ठीक नहीं रहा । मदद लेनी पड़े ना । बिगर मदद तुमको बाप को याद करना है । ऐसे नहीं कि तुमको उस समय में कोई मदद के, फिर तो वो कॉमन बात हो गई- राम कहो-राम कहो, शिव कहो- शिव कहो । उस समय में यह होना नहीं चाहिए और होना ही नहीं है, क्योंकि मारा-मारी हो जाती है । तुम पता नहीं कहाँ कहाँ भिन्न भिन्न जगह में रहते हो । हाँ, कोई यहाँ भी बहुत होंगे । यहाँ भी कोई तुमको उस समय में नहीं कहेंगे कि शिव कहो- शिव कहो । वो कॉमन बात हो जाती है, जैसे कि अभी कोई मरता है तो उनको कहेगे राम कहो राम कहो, फलाना कहो फलाना कहो ।.उस पिछाड़ी समय में वो नही होगा । वो तो अपनी पूरी याद चाहिए । बच्चों का इतना लव होना चाहिए । तब तुम अपने नंबरवार इतना ऊँचा पद पाएंगे । यह तो तुम भी समझते हो कि नंबर वन सद्‌गति यह है ऊपर में । हम जानते हैं कि इनकी डिनायस्टी भी है, जिसने सद्‌गति पाई है, जो इनके पीछे आएँगे । अभी तुम समझते हो, बाबा समझाते हैं कि पहले पहले नंबर में श्री लक्ष्मी-नारायण होंगे, प्रजा भी तो जरूर होगी, शहजादे भी होंगे । फिर भी पहले नंबर में राजाओं मे भी राजाऐ जो होंगे, समझो 8 हैं, तो भी नंबर वन तो यही गिने जाएँगे ना, क्योंकि इन्होंने अच्छी तरह से पुरूषार्थ किया है) । वो याद करते ही रहते हैं, क्योंकि दूसरों को याद दिलाकर, तुम बच्चों को कहते रहते हैं ना । अच्छा चलो, बाबा भी कहते हैं, ये भी कहते होंगे कि बाबा को याद करो । बाबा कहेंगे- हे बच्चे! मुझे याद करो । तो दोनों का फर्क होता है ना । अक्षर में कितना फर्क होता है । शिवबाबा कहते हैं- हे मेरे बच्चे आत्माएँ! मुझे याद करो । ये कहेंगे- हे मेरे भाई आत्माएँ! तुम बाबा को याद करो । कितना फर्क हो जाता है! तो बाप अभी कहते रहते हैं और ये कहेंगे भाई, परन्तु ये हिर ही बाबा गया है । इसको कोई भाई कहकर कहने का रहता ही नही है । ये बाबा ही आ करके घड़ी घड़ी बोलते हैं- बच्चे, अभी पहचानते हो ना कि मैं तुम्हारा बाप हूँ और बरोबर अभी तुमको लेने आया हुआ हूँ । याद करते हो, कल्प पहले भी आए थे, तुम बच्चों को गुलगुल बना करके, फूल बना करके ले गए थे । ऐसे तो नहीं कि वहाँ फूल बनेगे । कांटे से फूल बनने की यह है संगम की सीजन, क्योंकि यह बदलता है । इसको कहा ही जाता है बरोबर यह सारी दुनिया कांटों का जंगल है । जानते हैं कि बाप जरूर पैराडाइज स्थापन करते हैं, पर उस पैराडाइज मे कौन निवास करते हैं, यह उन बिचारों को पता नहीं है । भारतवासी जानते हैं कि यह भारत पैराडाइज था, स्वर्ग था । फिर भी शास्त्रों में जो कचड़पट्‌टी लिखी हुई है उनकी बातों से भूल जाते हैं । नाम बरोबर लेते हैं कि स्वर्ग था । श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य था । सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण थे । यथा राजा-रानी तथा प्रजा थी । फिर भी उनमें बता देते हैं कि कंस था, हिरण्यकश्यप-हिरणाकश(हिरण्याक्ष) था, फलाना था । बस । तो देखो, शास्त्रों में कितना गपोड़ा है । बाप बैठ करके यह समझाते हैं । अभी समझते हो कि शास्त्रों में क्या है! मैं सार समझाता हूँ ना । मीठे बच्चे, ये सभी भक्तिमार्ग की सामग्री है । यह भी जैसे एक सीढ़ी है । एकदम ऊपर चढ़ना है, पीछे एकदम नीचे आना है । बाप अभी क्या कहते हैं? जिन्न बनो । मैं तुमको काम देता हूँ कि मुझे याद करो, अल्प और बे को याद करते रहो । अगर याद करने से थक जाएंगे तो फिर माया खाएगी । ये आखानियॉ भी तो बनाते हैं ना । एक था, उसको जिन्न ने बोला कि हमको काम नहीं देंगे तो हम तुमको खा जाएँगे । ऐसी-ऐसी आखानियॉ बहुत बनाते हैं । बाबा कहते हैं कि वो तो हुई आखानियाँ । अगर तुम बाबा को याद न करेंगे तो यह माया रूपी जिन्न तुमको खा जाते हैं । देखो, याद करने से तुम यही बैठे हो । खुशी चढ़ती है ना कि बाबा हमको अभी फिर विश्व का मालिक बनाते हैं । आधा घण्टा घण्टा सामने बैठा रहे । बस, इसी बात में बैठे, मैं कुछ भी न बोलूँ । तुमको यही बोलता रहूँ कि बच्चे, यह तो जानते हो ना- बाबा तुम्हारे सामने बैठे हैं और तुम बच्चे आत्माएँ सुनते हो । हे मीठे लाडले बच्चे, तुम जानते हो कि आया हूँ तुमको फिर मुक्तिधाम ले चलने के लिए, जिस मुक्तिधाम में या निर्वाणधाम में जाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, परंतु कोई भी जा नहीं सकते है । रास्ता कोई को भी पता नहीं है, क्योंकि सर्व में सर्व आ जाते हैं । बच्चे जानते भी हैं बरोबर कि अभी-अभी कलहयुग के पीछे सतयुग तो आएगा । रात के पीछे दिन तो जरूर आएगा । फिर देखो कितने थोड़े हैं! तुम थोड़े बच जाते हो । तुम जानते हो कि सतयुग में हम ही रहेंगे, क्योंकि हमको ही बाबा बैठकर अपना राज्य भाग्य फिर से दिलाते हैं । बरोबर आज हम यहाँ हैं, कल वहाँ होंगे, राज्य करेंगे । तो खुशी होनी चाहिए ना, परन्तु यह खुशी का पारा चढते-पढ़ते जब पिछाड़ी होगी तभी फाइनल रिजल्ट हो जाएगी । जो गाया हुआ है कि अतेन्द्रिय सुख पूछो तो इनसे, फाइनैलिटी में । अब स्कूल है एक । ऐसे नहीं है कि आज बीए. पढ़ी, फिर आगे चलकर दूसरी पढ़ो । यह एक स्कूल है, उसमें बच्चे से बुडढे तक सब पढने वाले हैं । बुड्‌ढे मेल-फिमेल, जिनकी एकदम आकर के वानप्रस्थ अवस्था हुई है । उनसे कोई पूंछे कहाँ जाते हो? कहेंगे हम कॉलेज में जाते हैं । दोनों हाथ-हाथ में लेकर इकट्‌ठे जाते हैं । वण्डर तो देखो! कॉलेज में इस अवस्था में? हाँ, इस अवस्था में ये कॉलेज में जाते हैं । भई, वहाँ क्या है? वहाँ पढाने वाला कौन है? वहाँ मनुष्य से देवता बनने का है और राजयोग सीखने का है । राजयोग की बात कभी सुनी है? भगवानुवाच! मैं तुझे राजाओं का राजा बनाता हूँ- यह अक्षर कभी सुना है? क्योंकि गीता के अक्षर बहुत प्रसिद्ध हैं । सिर्फ भगवानुवाच! यह भगवान कौन होवे? कह देते हैं कृष्ण । तुम कहेगे- नहीं, भगवान वो जो विश्व को रचने वाला है, जो स्वर्ग रचते हैं । कृष्ण स्वर्ग थोडे ही रचता है । कृष्ण स्वर्ग में जन्म लेते हैं । उनको रचता कोई नहीं कहेगा । रचता फिर भी बाप को कहेंगे, जो रचता है । नॉलेजफुल भी उनको कहा जाता है । कृष्ण को कभी कोई नॉलेजफुल नहीं कहेंगे । जानी-जाननहार जिसको ये लोग कह देते हैं, कृष्ण को नहीं कहेंगे । फिर भी अंतर्यामी यानी परमात्मा, फिर वो कह देते हैं अंदर में रहने वाला फलाना, पर उनके लिए कहेंगे, कृष्ण के लिए थोड़े ही कहेंगे । ज्ञान का सागर, शांति का सागर कुछ भी नहीं कहेंगे । अभी मनुष्यों को ये पता नहीं है कि कृष्ण नंबर वन बच्चा है, जिसके लिए ही कहा जाता है कि यह पीपल के पत्ते पर अगूँठा चूस करके आता है । यह पहला ही बच्चा है जो गर्म महल मे पहले आता है । पीछे सभी फॉलो करते हैं कि गर्भ महल में बिल्कुल आराम से बैठें । कोई जेल तो फिर है नहीं, सजाएँ तो हैं नहीं । इसलिए ये फिर प्रलय कर देते हैं, क्योंकि महाभारत की लडाई है । अभी एकदम प्रलय तो होती नही है ।