31-05-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन\


स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार मई की 31 तारिख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो..............

ओमशाति ।
तुम्हें ओम का अर्थ तो समझा ही दिया है । ओम का अर्थ कोई ईश्वर या भगवान नहीं है । ओम माना अहम्, आई, मैं । मैं कौन? मैं आत्मा और मेरा शरीर तो अलग हो जाता है। अब यह तो बहुत सिम्पल बात है, जो बच्चों को समझाई गई है । नहीं तो ओम का अर्थ मनुष्य भगवान रख देते हैं । उनका अर्थ बडा लम्बा-चौड़ा करते हैं । नहीं! हर एक बात सहज है, सिम्पल है । बाप भी कहते हैं 'ओम', मैं भी आत्मा हूँ परंतु परमधाम में रहने कारण मुझे परमात्मा कहते हैं । बस, यह फर्क है । यूं तो तुम बच्चे भी परमधाम में रहने वाले हो, परंतु फिर भी सभी आत्माओं का बाप तो जरूर है ना । जैसे सभी मनुष्यों का लौकिक बाप जरूर है वैसे ही सभी आत्माओं का बाप जरूर है और उसको ही कहा जाता है- परलौकिक बाप । आत्मा जानती है, कहती है- हे परमपिता परमात्मा । उनको पहचान है । भक्तिमार्ग में बस यहाँ तक जानते हैं कि बाप परमधाम में रहते है इसलिए उनको ऐसे ही पुकारते हैं- हे प्रभु हे परमपिता, हे गॉड फादर । लौकिक बाप को तो ऐसे नहीं कहेंगे ना! हर एक (चाहे जो) कोई भी हैं- ओ अल्लाह!' ऐसे कहते है ना । जब आश्रुरे होते है तब मोमिन लोग फेरी पढ़ते हैं- उठो अल्लाह हू याद करो । यह किसने कहा? आत्मा ने अपने भाइयों को कहा- उठो अल्लाह हू याद करो । सुबह को उठाने के लिए वो फेरी फेरते है, यह वेला सोने की नहीं है । वास्तव में है यह समय । बाप बच्चों को कहते है- बच्चे उठ, बाप को याद करो । तुम मुझ अपने बाप को याद करो तो तुम्हारा विकर्म दग्ध हो जाएगा । बस, यह एक ही योगाग्नि है । कौन-सी योगाग्नि? आत्माओं को बाप को याद करने से......, क्योंकि सर्वशक्तिवान है । पतित-पावन तो कहते ही हैं । वो पतित-पावन कैसे है? पतित को तो कहते हैं कि अगर तुम बच्चे मुझे याद करेंगे तो पावन होते जाएँगे, क्योंकि मेरा नाम ही पतित-पावन है । तो पावन कैसे होंगे? कितनी सहज बात सुनाते हैं कि बरोबर मैं आता भी तब हूँ जबकि पतित दुनिया को बदलाय करके पावन दुनिया बनाता हूँ । बच्चों को युक्ति बताता हूँ जो आय बच्चे बनते है । सुनेंगे तो वही ना । कोई बाहर वाले तो नहीं सुनेंगे । तो बच्चों को कहा जाता है । कौन कहते हैं? शिवबाबा कहते हैं । फिर भगवान कहो । शिव को भगवान ही कहते हैं, प्रभु कहते हैं, ईश्वर कहते हैं, गॉड कहते हैं । सब नाम हैं अनेक भाषाओं में । बाप तो एक है ना । तो जो बच्चे बनते हैं उनको बाप कहते है- बच्चे, अब मुझे याद करो । इस याद अग्नि वा योगाग्नि, जो बहुत ही नामी-ग्रामी है 'भारत का प्राचीन योग, जिससे भारत स्वर्ग बना, जिससे भारतवासियों ने बाप से बेहद सुख का वर्सा लिया, इसलिए इसको पुराना कहा जाता है । प्राचीन योग किसने सिखलाया? वो समझते हैं कि कृष्ण ने सिखलाया, क्योंकि गीता सबसे प्राचीन है । सर्व शास्त्रमई शिरोमणि श्रीमत भगवत गीता- यह है प्राचीन, सबसे पुराना, नम्बर वन । उसको कहा ही जाता है- माई-बाप । गीता माता कहा जाता है ना । कोई भी शास्त्रों को ऐसे माता नहीं कहा जाता है । भारत की प्राचीन समय की ये महिमा गाई जाती है कि प्राचीन में गीता के भगवान ने यह राजयोग सिखलाया, उसने ही कहा । बच्चों को समझाया गया है कि भगवान सबका एक है । कृष्ण को भगवान फिर कह नहीं सकते है । ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को कह नहीं सकते हैं । मनुष्य मात्र को वा सूक्ष्म देवता को भगवान नहीं कहा जाता । ऊँचे-ते-ऊँचा भगवत, क्योंकि ये जो तीन लोक हैं, उनको निर्वाणधाम और शांतिधाम भी कहा जाता है, फिर बीच में है सुक्ष्मधाम जिसमें ब्रह्मा, विष्णु रहते है । तबके हैं ना । फिर यहाँ तो हैं ही मनुष्य । सतयुग से लेकर भी मनुष्य हैं । सतयुग में मनुष्य हैं दैवीय गुण वाले, कलहयुग में हैं आसुरी गुण वाले । कलहयुग में कोई भी दैवी गुण वाला हो नहीं सकता है । क्यों? सतयुग में ही देवी-देवताएँ रहते हैं, जिनको कहा जाता है सतयुग में आदि सनातन देवी देवता धर्म था और राज्य था, डिनायस्टी थी । किसकी डिनायस्टी थी? घराना था? देवी-देवताओं का । सूर्यवंशियों का घराना था । उस घराने को अर्थात् भारत की उस राजधानी को स्वर्ग कहा जाता है । अभी वही स्वर्ग भारत की राजधानी ये नर्क बनी हुई है । इस नाटक के हम सब एक्टर्स है, परंतु कोई भी एक्टर इस नाटक के रचता और रचना को नहीं जानते हैं, क्योंकि गाया जाता है कि जो भी आगे वाले ऋषि-मुनि थे वो कहते थे हम इस रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत को नहीं जानते हैं -नेति-नेति अर्थात् कोई भी त्रिकालदर्शी नहीं होते है । अगर ऋषि-मुनि त्रिकालदर्शी होते तो फिर उनके आगे जो रहने वाले हैं वो भी होते, उसके आगे रहने वाले देवताएँ भी त्रिकालदर्शी होते । श्री लक्ष्मी-नारायण भी त्रिकालदर्शी होते, उनको भी रचता और रचना का ज्ञान होता, परन्तु बाप समझाते हैं कि जो एकदम पहले श्री लक्ष्मी नारायण हैं उनको भी ज्ञान नहीं है । तो जो कहा जाय कि परम्परा से यह ज्ञान चला आता है वो हो नहीं सकता है, क्योंकि यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है । इस ज्ञान की पीछे जरूरत नहीं रहती है, क्योंकि ज्ञान ही है मनुष्य को देवता बनाना । सतयुग में सभी हैं ही देवताएँ फिर बाकी क्या बनना है! इसलिए ज्ञान बिल्कुल होता ही नहीं है । बाप आ करके बच्चों को बहुत अच्छी तरह से समझाते हैं कि बुद्धि से काम लो कि देवी-देवताओं में ज्ञान की दरकार नहीं है । वहां कोई पतित नहीं है जिसको कोई पावन बनावे या पतित को पावन बनाने के लिए यह सहज राजयोग सिखलाया जाए । ये जो सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी बादशाही है, किंगडम है, इसको धर्म भी कहा जाता है । ये धर्म यहाँ स्थापन होते है । देखो, ब्राहमण धर्म । तुम शूद्र से ब्राहमण बन रहे हो । उसको क्षुद्र बुद्धि कहा जाता है । तुम अभी श्रीमत पर देवता बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो और तुम हो भी ब्राहमण । ब्राहमण तो जरूर ब्रहमा के मुखवंशावली हो सकते हैं ना । नहीं तो इतने ब्राहमण कहाँ से आयें? तो देखो, कितने ब्राहमण है! हिसाब करें तो हरेक मनुष्य शिव की संतान तो जरूर है और फिर जबकि प्रजापिता कहा जाता है तो जरूर प्रजापिता की भी संतान हुआ अर्थात् वो दादा हुआ, वो बाबा हुआ । तुम कहेंगे कि हम ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं । अच्छा, फिर ब्रहमा किसका बच्चा है? शिवबाबा का बच्चा है और अकेला बच्चा है । ऐसे कभी नहीं समझना कि त्रिमूर्ति है इसलिए शिवबाबा को तीन सूक्ष्मवतनवासी बच्चे ठहरे । प्रजापिता ब्रहमा बस यही बच्चा है, क्योंकि यही ब्रहमा सो फिर विष्णु बनते हैं । यह विष्णु माना लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । फिर वही विष्णु 84 जन्म ले करके ब्रहमा-सरस्वती बनते हैं । तो यह अच्छी कहानी हुई ना । इसको कथा कहते हैं । इसको सत्यनारायण की कथा भी कहा जाता है । मनुष्यों ने बैठ करके कथाएँ तो बहुत ही बनाई हैं । वो सभी है दन्त कथाएँ । बुद्धि से बैठ करके कुछ कथाएँ बनाई हैं । यह तो बाप है ना । श्रीकृष्ण कथा बिल्कुल नहीं जानते हैं । वो तो राजकुमार है । उनको इस सृष्टि के चक्र का ज्ञान नहीं है । ऐसे हो नहीं सकता है यानी पहली-पहली जो एकदम कड़े-ते-कड़ी भूल है कि गीता को श्रीकृष्ण भगवानुवाच.... । बस, इस एक ही भूल ने भारत को कंगाल बनाया है, बल्कि सबको पतित बनाया है । जो भी मनुष्य यहाँ है, सभी पतित तो हैं ना । ऐसा कोई भी साधु संत महात्मा हो नहीं सकता है, क्योंकि वो भी कहते हैं- पतित-पावन आओ । साधु लोग साधना करते हैं । क्या साधना करते हैं? कि हे पतित पावन आओ! तो आ करके कहते हैं कि मैं आता हूँ । जिसका नाम साधु लोग है उनका भी उद्धार करता हूँ परित्राणाम करता हूँ क्योंकि वो भी पतित हैं, क्योंकि है ही पतित दुनिया । उसमें पावन कहाँ से आया! पावन तो दोनों चाहिए । पहले आत्मा पावन चाहिए तब उनको प्रकृति पावन मिले । यह तो कलहयुग है । यह प्रकृति, जिसका शरीर बनता है, यही पतित है । भले साधु-सन्यासी लोग हैं, इसमें कोई संशय नहीं है, परन्तु ऐसे हो सकता है कि उनका जो शरीर बनता है, वो पतित प्रकृति से बनता है, मूत से बनता है । गाया भी तो जाता है ना- मूत पलीती कपड़ धोये । यह भी तो किसका गायन है ना! तो भ्रष्टाचारी कहा ही किसको जाता है? जो भ्रष्टाचार से पैदा हो । अभी बताओ, ऐसा कोई मनुष्य है जो जिसका भ्रष्टाचार बिगर यानी विकार, विष बिगर जन्म हुआ होगा? तो सबका यह जो चोला है, भले आत्मा कितना भी पवित्र रखें, परंतु पवित्र शरीर कहाँ मिलेगा? शरीर पवित्र न होने कारण, भले पवित्र भी हो, तो भी पुनर्जन्म कहाँ से लेवे? वापस तो कोई भी नहीं जाय सकते । ये तो बहुत गपोड़े हैं! वापस कोई नहीं जा सकता है जब तलक पुनर्जन्म लेते-लेते सभी पतित हो जाएं, सब अपना पुनर्जन्म लेकर पूरा कर देवें । सो तो होता ही है अंत में। बाप आ करके कहते हैं- अभी यह सारा झाड़ जड़जड़ीभूत पतित हो गया है और तुम खुद कहते हो कि पतित-पावन एक है । तो सभी पतित ठहरा ना । कलहयुग-अंत में सो तो सभी पतित हैं बिल्कुल ही और सतयुग में फिर पावन । उसको कहा ही जाता है वाइसलेस वर्ल्ड । इसको कहा जाता है विषियस वर्ल्ड । यानी ये कहा जाता है वैश्यालय में रहने वाले ये मनुष्य और वो शिवालय में रहने वाले यानी शिव की स्थापना स्वर्ग में रहने वाले हो गए पवित्र देवी-देवताएँ । वहाँ बिल्कुल कोई भी पतित होते ही नहीं हैं, क्योंकि नई प्रकृति हो गई ना । तो नई प्रकृति मिलती है । आत्मा भी यहाँ से पवित्र हो करके गई, तो आएँगे तो नई पवित्र प्रकृति मिलेगी ना । यह शरीर तो प्रकृति का बनता है, जिसको पाँच तत्व का कहा जाता है । उसमें मूत का बीज पड़ता है । देखो, पाँच तत्व से पुतला तैयार होता है । किससे? मूत से । स्वर्ग में मूत से पैदा नहीं होते हैं । अगर मूत से पैदा हुए होते तो उसको भी विषियस वर्ल्ड कहें, परन्तु यह बात तुम बच्चे समझते हो, दूसरा कोई भी समझ नहीं सकेंगे । वो समझते थे विख बिगर..... .अरे भई, इसको कहा ही जाता है वाइसलेस । विख माया का पहला नम्बर का भूत है । वहाँ माया तो है नहीं । उसको कहा जाता है रामराज्य, यह है रावण राज्य । रावण राज्य को ही पाँच विकार कहा जाता है । रामराज्य में भी पाँच.... तो सारी सृष्टि में ही कहें कि माया का राज्य है, फिर तो सभी पतित ही पतित तो नहीं, एक होता है रामराज्य, फिर कहा जाता है रावण राज्य । यह है रावण राज्य का अंत और रामराज्य की आदि । अब रावण राज्य का अंत और आदि यह तो बाप का काम है ना । यह कोई पतित मनुष्य का काम नहीं है, कोई भी हो । बरोबर पतित सिद्ध होते हैं तभी तो पावन होने के लिए गंगाओं में, जमुनाओं में, कुम्भ के मेले पर ये सभी बहुत.. .तुम जानते हो कि साधु-संत महात्मा सब आ करके उस त्रिवेणी के ऊपर यहाँ सागर और नदियों का मेला.... .अब उनसे पूछा जाए कि तुम यह क्यों करते हो? पतित हो तब तो पावन होने के लिए स्नान करते हो ना! यह तो बिल्कुल धूप? है, अभी तुम बच्चे, दे सकते हैं ना । अभी तुमको अथॉरिटी मिलती है । किससे? वर्ल्ड अथॉरिटी । बाप को ऐसे कहा जाता है ना- वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । जिनको पुकारा जाता है । साधु लोग उनको नहीं जानते यानी कोई जानते नहीं हैं । अगर कोई जानते हों तो पहुँच जरूर सके, परंतु जब जानते ही नहीं हैं तो पहुँच कैसे सकेंगे? जिसको कोई जानते ही नहीं हैं, फट से कह देते हैं नाम-रूप से न्यारा । नाम-रूप से न्यारी कोई चीज होती ही नहीं है । यह कहना भी तो रोंग है ना, कि परमपिता परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है । यह कोई हो सकता है कि पिता नाम-रूप से न्यारा है? तो क्या हम आत्माएँ भी नाम-रूप से न्यारी हैं? भले आत्मा तो कहते ही है । कहते भी हैं कि भृकुटी के बीच में चमकता है वही आत्मा और बहुत सूक्ष्म अति सूक्ष्म बिल्कुल सूक्ष्म जैसे एक बिन्दी । जैसे आत्मा बिन्दी तो उनका बाप क्या होगा? वो भी तो बिन्दी होगा । अब यह तो किसको भी मालूम नहीं है, क्योंकि यह आत्मा की बिन्दी वंडर की चीज है ना । जरूर यह आत्मा को ही तो यह शरीर से पार्ट बजाना है ना । तो देखो, उस आत्मा रूपी बिन्दी में 84 जन्म का पार्ट नूंध है, कोई शरीर में नूंध नहीं है । शरीर ले करके पार्ट बजाती है । अब यह तो कोई की बुद्धि में नहीं हो सकता है कि जो आत्मा की बिन्दी है उनमें हमारा 84 जन्म का पार्ट नूंधा हुआ है । फिर किसका 84, 80, 50..... । वो पार्ट इम्पेरिशेबल है, अविनाशी है । यह कभी भी पुराना होता ही नहीं है । बस, पार्ट पूरा हुआ फिर शुरू करेंगे एकदम । ग्रामाफोन के रिकॉर्ड तो पुराने हो जाते हैं । ये आत्मा में जो 84 जन्म के पार्ट का रिकॉर्ड है वो कभी पुराना होने का नहीं है । अब ये बातें तो कोई दूसरे जानते भी नहीं हैं, न इतनी जल्दी कोई की बुद्धि में बैठेगा । बच्चे पूछते हैं- बाबा, किसकी बुद्धि में बैठेगा? बाबा बोलते हैं- बच्चे, जिसने 84 जन्म पूरा किया हुआ है और कोई-न-कोई दूसरे धर्म में हैं, हिंदू धर्म.. .उसका ही सैपलिंग लगना है । सैम्पलिंग समझते हो? कलम । आजकल झाड़ों का कलम लगाते है । बाप आ करके देवी-देवताओं का कलम लगाते हैं, ये जंगली आदमी फिर भी जंगल का सैम्पलिग लगाते रहते हैं । ये फॉरेस्ट है ना । काँटों का जंगल है । एक तरफ में जगल का सैम्पलिंग जंगली लोग लगा रहे हैं, एक तरफ से बाप आ करके दैवीकुल का सैम्पलिंग लगा रहे है । देखो, कितना रात-दिन का फर्क है! उनको कुछ भी पता नहीं है । बस एकदम नास्तिक, ऑरफन्स, क्योंकि जो बाप को न जानते है उनको क्या कहेंगे? नास्तिक, ऑरफन । अभी वो उन बाप से इतना ऊँचा मुक्ति वा जीवनमुक्ति का वर्सा ले कैसे सकें जब तलक बाप न आए? तो बाप आते हैं बरोबर । सभी बच्चों के ऊपर इनका मोह होता है । शिवबाबा को मोह हुआ ना कि मैं जाऊँ इन बच्चों को. ... .क्योंकि ये मेरी ग्लानि करते करते एकदम चट हो गए है, एकदम जैसे असुर हो गए हैं । इसको कहते हैं आसुरी सम्प्रदाय यानी मेरी ग्लानि। मेरे लिए कहते है कि सर्वव्यापी, कुत्ते में, बिल्ले में, मच्छ में, कच्छ में । ये तो बड़ी कच्ची गाली देते है ना । मनुष्य में भी, फिर पत्थर में, ठिक्कर में, मित्तर में ईश्वर को सर्वव्यापी कहना । अभी मनुष्य में भी कोई परमात्मा थोडे ही विराजमान होते हैं । परमात्मा की महिमा देखो कितनी बड़ी है! मनुष्य-सृष्टि का बीज-रूप है । तुम बच्चों को बाबा की पूरी कम्पलीट....... बाबा ने शायद कल भी इशारा दिया था कि परमपिता परमात्मा की पूरी ऑक्युपेशन महिमा हरेक बैठ करके लिखो, कितनी लम्बी-चौडी है । ऐसी महिमा फिर कोई देवताओं की थोड़े ही है । देवताओं की तो कॉमन है, क्योंकि उनको तो जानते है बरोबर कि श्रीकृष्ण सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमो दैवीधर्म मर्यादा पुरुषोत्तम, यह उनकी महिमा है । अच्छा, अभी जरूर जो परमपिता परमात्मा है, उनकी तो महिमा बड़ी भारी है ना । उनकी तुम महिमा लिखो तो बिल्कुल न्यारी है- मनुष्य सृष्टि का बीज रूप है । पतित-पावन तो उनको सभी कहते ही है बरोबर । उनको ज्ञान का सागर.... । देखो, ज्ञान का सागर उनको कहेंगे, कभी भी इनको ज्ञान का सागर कोई कहेगा ही नहीं । कभी सुना? कभी भी नहीं सुनेंगे । सर्वगुण,.. कहेंगे, बाकी ज्ञान का सागर न लक्ष्मी को, न नारायण को, न कृष्ण को, न राधे को.. । ये बच्चे हैं, वो बड़े होते हैं । अरे, इतनी तो भ्रष्ट बुद्धि हुई है कि उनको यह मालूम नहीं है कि यह छोटी जोड़ी है राधे-कृष्ण की और फिर यही स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । यह भी पता नहीं है । इनका अलग कर दिया है द्वापर में, उनको वहीं कर दिया है । इनको गीता का भगवान बनाय दिया है । गीता का भगवान यह थोड़े ही है । यहाँ तो कहा जाता है भगवानुवाच । कौन-सा? बाबा कहते हैं- मैं मनुष्य सृष्टि का बीज रूप हूँ । अभी इनको कोई कहेंगे क्या बीज रूप है या गॉड फादर सभी धर्म वाले इनको कहेंगे? नहीं । सभी धर्म वाले उनको जरूर कहेंगे । याद करते है कि बरोबर वो लिबरेटर है । इनको कभी भी कोई लिबरेटर नहीं कहेंगे । लक्ष्मी-नारायण को भी लिबरेटर नहीं कहेंगे । लिबरेटर माना दुःख से छुड़ाने वाला, दुःख हर्ता सुख कर्ता । यह थोडे ही दुःख हर्ता सुख कर्ता है । जब यह नहीं है तो दूसरा भी कोई नहीं हो सकता है । कहाँ से ये हुनर सीखे? बाप आ करके समझाते है कि तुम खुद परमपिता परमात्मा की महिमा ही करते हो- सर्व का दुःख हर्ता सर्व को दुःख से लिबरेट कर दे । दुःख से फिर कहाँ ले जाएँगे? यह तो जानते हो ना कि कहाँ ले जाएँगे । शांतिधाम में, घर ले जाएँगे और फिर स्वर्ग में भेज देंगे । तो बुद्धि काम करती है कि बरोबर जब भारत में आदि सनातन देवी देवता धर्म था, उसको स्वर्ग कहा जाता था और मनुष्य थोडे । और धर्म वाले तो थे ही नहीं सिवाय सूर्यवंशी के । चन्द्रवंशी भी नहीं थे । घराना ही सूर्यवंशी था । एक ही धर्म था । फिर चन्द्रवंशी भी वही बनते हैं । अच्छा, तब और सभी आत्माएँ कहाँ थीं? इतनी जो ढेर आत्माएँ हैं, कितने धर्म हैं- सन्यास धर्म, इस्लामी-बौद्धी कितनी कितनी.... इनकी आत्माएँ कहाँ थीं? इनकी आत्माएँ मुक्तिधाम में थीं ।... .तो अब ऐसे सतयुग में, आदि सनातन देवी देवता धर्म जिसको सुखधाम कहा जाता है, जीवनमुक्त कहा जाता है, और बाकी मनुष्य कहाँ गए? मुक्तिधाम में । तो उसको कहा जाए या नहीं? एक ही परमपिता परमात्मा सर्व का सद्‌गति दाता, सर्व का जीवनमुक्ति दाता । जीवन को इस रावण के राज्य से मुक्त करते हैं, जहाँ झूठ ही झूठ है, सच की एक रत्ती भी नहीं । देखो, नम्बरवन झूठ फिर कौन-सी है? परमपिता परमात्मा को झूठ कहकर कि सर्वव्यापी है माना गाली देना । देखो, उसमें सब आ जाता है ना । कुत्ते में है यानी कुत्ते का बच्चा है यानी कुत्ते को बच्चा भी तो होते होंगे ना । फलाने में है, तो देखो, ग्लानि करते हैं ना । बाप आकर अब यह समझाते हैं कि माया रूपी रावण तुमको रसातल ले जाते हैं, अधोगति को ले जाते हैं । तो देखो, भारत अधोगति को है ना । नर्क कहते हैं, उसको अधोगति कहेंगे । ऐसे नहीं है कि सभी नर्क में हैं, है ही नर्क । स्वर्ग होता ही सतयुग को है । उसमें स्वर्गवासी रहते हैं । यह नर्क है तो सब नर्कवासी ही ठहरे ना । ड्रामा के अनुसार रावण राज्य में मनुष्य नर्कवासी कैसे बनते है? कितने सब झूठ बोलते रहते हैं । उसमें सबसे जास्ती बड़े-ते-बड़ी झूठ विद्वान निकालते हैं । कहाँ से निकाला? गीता से । जो गीता रचने वाले थे, उन्होंने जो कुछ भी आया सो बैठ करके गीता में डाल दिया । देखा तो कुछ भी नहीं, सुना भी कुछ नहीं । कहाँ से सुनें, कहाँ से देखें? उन्होंने बैठ करके गीता बनाई और कह देते हैं कि व्यास भगवान ने गीता बनाई । अरे! व्यास को और कुछ काम नहीं था, उसमें ये गपोड़े डाल दिए! पहला नम्बर वन गपोड़ा डाला- श्रीकृष्ण भगवानुवाच । बस, खेल खलास हो गया । सारे शास्त्रों को खण्डन कर दिया । ऐसे ही जैसे नेहरु की बायोग्राफी में अगर मोतीलाल की बायोग्राफी होवे तो मनुष्य क्या समझेंगे? या मोतीलाल की बायोग्राफी में नेहरु की बायोग्राफी दे दो, तो वो कितनी मूर्खता हो गई! बाप की बायोग्राफी में बच्चों की बायोग्राफी देकर बाप को ही गुम कर देने तो कितनी मूर्खता.. .क्या कर दिया है? श्रीकृष्ण जो बाप से वर्सा लिया और देवता बने, उनका गीता में नाम डाल दिया और बाप को बिल्कुल गुम कर दिया । बाप को गुम कर दिया तो कौन उनको ढूँढे? कहाँ ढूढे? जिस चीज का मालूम होता है कि यह फलानी चीज फलानी जगह में है, तो ऐसी कोई बात नहीं जो कोई उनको ढूँढ न ले । ये तो देखो, स्टार के भी ऊपर जाना चाहते हैं । कितना ऊँचा है बिल्कुल ही! तो बाप जो इतना मीठा है, उनको कोई मुझे तो क्यों नहीं ढूंढें! परंतु उनको कह ही दिया है कि नाम-रूप से न्यारा तो किसको ढूंढें? और फिर सर्वव्यापी.. .तो फिर किसको ढूंढें? ढूँढने की बात ही नहीं रही यानी भक्ति को गुम कर देते हैं । उनकी बुद्धि ही काम नहीं करती है । क्यों? माया ने एकदम जोर से गॉडरेज का ताला लगा दिया । गॉडरेज के ताले भी तो नम्बरवार होते हैं ना । तो सबसे जास्ती विद्वानों का बुद्धि का ताला बन्द कर दिया, जिन्होंने यह गीता पढ़ी और सब झूठ, बिल्कुल ही सफेद झूठ कहो, रामायण बना दिया । अरे! तुमने क्या कर दिया! श्री रामचन्द्र व श्री सीता की इतनी ग्लानि! ये जो क्रिश्चियन लोग आते है, वो वण्डर खाते हैं कि क्या इनका भगवान, रामचन्द्र को भगवान कहते हैं, भगवान की फिर जो भगवती सीता है, उनको कोई दैत्य चुराय ले गया और फिर भगवान को मनुष्य नहीं थे क्या, जो बन्दर की सेना ली? देखो, रामायण तो बहुत पढ़ते हैं, आजकल तो और ही जास्ती पढते हैं । जैसे फैशन हो गया है । जैसे कि कोई तोते पढ़ते हैं । ढेर ट्रा-ट्रा करते रहते हैं । बड़े प्रेम से पढ़ते है, अच्छी तरह से बडी... उच्चारते है और झूठ तो मिरई झूठ, सच की फिर उसमें एक रत्ती... । तुम जानते हो कि ब्रहमा द्वारा मैं तुम बच्चों को भक्तिमार्ग के सभी वेदों ग्रंथों शास्त्रों का राज बताता हूँ सार बताता हूँ । इनमें कुछ भी सार नहीं है । समझते हो ना! कहते हैं कि परम्परा से पढते-पढ़ते तुम तो बिल्कुल ही दुर्गति को पहुँच गए हो । इसको अधोगति कहा जाता है । इस समय में तुम सब साधु-संत महात्मा, ऋषि-मुनि जो रहते हो, अभी तुम नहीं रहते हो, क्योंकि तुम संगमयुग पर रहते हो । कलहयुग कुम्भी पाक नर्क । वहीं से तुम निकल संगमयुग पर आए हो, जहाँ तुमको बाप मिलते है । इसको ही कहा जाता है- ऑस्पिशस युग यानी कल्याणकारी युग में सिर्फ तुम आए हो । दूसरे जो मनुष्य हैं वो कोई संगमयुग पर नहीं हैं, वो घोर अंधियारे में हैं । वो समझते हैं कि संगमयुग(कलहयुग) को अभी 40 हजार आयु है । तो देखो, घोर अंधियारे में पड़े हुए हैं ना । किसने घोर अंधियारे में डाला? ये विद्वानों ने, जो अपन को ईश्वर कहते हैं, शिवो5हम् कहते हैं और पूजा कराते हैं । इनको कहा ही जाता है- हिरण्यकश्यप-हिरणाकश(हिरण्याक्ष) । जो अपनी पूजा कराते हैं, उनको ऐसे टाइटल मिले । इस समय में ये आसुरी टाइटिल तो सबको मिलते हैं । कंस जरासिंधी अकासुर, बकासुर, पूतना फलाना, यह एक ही समय की बात है । तो इस समय की वो बात है जो बाप बैठ करके समझाते हैं । इसलिए बाप ने पहले ही कहा है- बच्चे, ये कलहयुगी गुरु हैं । ये हैं डुबाने वाले और एक है सर्व की सद्‌गति करने वाले, उन गुरुओं की भी सद्‌गति करने वाला । वो साधु लोग जो गुरू बने हैं, उनका भी उद्धार करने मुझे आना पड़ता है । किस द्वारा उद्धार कराता हूँ? माताओं द्वारा । माता गुरु बिगर कभी किसका उद्धार हो नहीं सकता है । इसलिए माता ही गाई हुई है । कौन माता? जगदम्बा । ऐसे नहीं कहेंगे कि श्री लक्ष्मी । वही जगतअम्बा वही जगत की मालिक श्री लक्ष्मी । बाबा ने बहुत दफा समझाया कि लक्ष्मी से सिर्फ धन माँगेंगे क्योंकि उस समय में वो धनवान है । इस समय तो जगत माता है ना । तो जगत माता से इस समय में क्या मिलता है? सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं । कौन-सी कामना है? जीवनमुक्ति धाम की । मुक्ति और जीवनमुक्ति की । श्री लक्ष्मी से मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिलती है । जगत अम्बा से जीवनमुक्ति और मुक्ति मिलती है । उनको कौन देते हैं? बाबा देते हैं, जो मुक्ति और जीवनमुक्ति दाता है । कलश माताओं के ऊपर रखते है, यह भी तो गायन है ना । तो ये सभी यहाँ समझने की बात है । बाकी जो कुछ भी मनुष्य करते हैं वेद ग्रंथ जप-तप बिल्कुल ही बेसमझ बन गए हैं और बाबा डायरेक्ट आकर कहते हैं- देखो, तुम सभी भक्तिमार्ग में पूरी दुर्गति को पहुँचे हो, क्योंकि रावण राज्य है ना । कोई भी जो गपोड़े मारते है, बौद्ध निर्वाणधाम गया यानी वानप्रस्थ पधारा, फलाना । नहीं, श्री लक्ष्मी नारायण खुद यही हैं । कलहयुग में पतित थे, अभी संगमयुग में आ गए हैं । फिर ये ब्राहमण बनकर अपना राजभाग अपनी डिनायष्टी सहित ले रहे हैं । यहाँ देखो, यहाँ तुम सभी बच्चे ले रहे हैं । तो यह है जीवनमुक्तिधाम के लिए तुम्हारा पुरुषार्थ यानी स्वराज्य । अभी तो कोई राजाई नहीं है ना । इसको कहा ही जाता है- दैवी स्वराज्य । सो भी कौन-सा दैवी स्वराज्य? अहिंसा परमोधर्म । ये लोग कहते है कि नॉन वायलेन्स हो, पर नॉनवायलेन्स सिखलाने वाला कौन? सो तो सिवाय बाप के अहिंसा कोई सिखलाय नहीं सकते है । बाकी सब हिंसा ही सिखलाते हैं । देखो, रावण राज्य में यह काम कटारी की हिंसा । ये आकर कहते है काम महाशत्रु है । ये तुमको युक्तियां बताते हैं । जबकि तुम ब्रहमाकुमार और कुमारी हो तुम सबको समझाय सकते हो- अरे भई, शिवबाबा से परिचय है? वो तो बाबा है ना । प्रजापिता पिता भी तो बाबा है ना । तो वो डाडा है, वो बाबा है और ये ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं । किससे वर्सा लेती हैं? बाप से वर्सा लेती हैं । दुख में पुकारती भी हैं- ओ गॉड फादर ' । ऐसे तो नहीं कहते, ओ ब्रहमा । कभी कोई कहते हैं? बिल्कुल नहीं । सब कहते ओ गॉड फादर ओ परमपिता परमात्मा । तो फिर वो कहते हैं कि मैं प्रजापिता ब्रहमा द्वारा तुमको वर्सा देता हूँ । कोई ब्रहमा नहीं देते, ब्रहमा भी लेते हैं । तो कितनी सहज बातें हैं । समझने की बातें हुई ना, क्योंकि बेसमझ बन गए हैं । बरोबर बेसमझ दिवाला मारते है, समझदार तो एकदम साहुकार हो जाते है । तो देखो, इस समय में भारत दिवाला मारा हुआ है, बिल्कुल ही वर्थ नॉट ए पैनी, कंगाल, भिखारी और वही भारत देखो कितना मालामाल था! भारत को फिर स्वर्ग बनाना बाबा का... ये शक्ति की मैजॉरिटी बहुत है ना । हैं तो बच्चे भी, क्योंकि प्रवृत्तिमार्ग है । इसमें कोई घरबार नहीं छोडना है । जो घरबार छोड़ते हैं वो तो पहले ही पाप करते हैं । पहले तो स्त्री को विधवा बना देते हैं । जिन बच्चों को क्रियेट करते हैं उनकी पालना नहीं करते हैं । ये तो महापाप हुआ ना । बाप कहते हैं- बच्चे, गृहस्थ-व्यवहार में रहते हुए तुम यह नॉलेज पढ़ो । इसमें कोई तकलीफ नहीं है । एक घड़ी, आधी घडी, आधी की पुन: आध मेरे को अच्छी तरह से याद करते रहो । सीखो । जब पिछाड़ी होती है तो बोलते हैं- बहुत गई, थोड़ी रही, बाकी थोड़े की भी थोड़ी समय रही है विनाश में, इसलिए गैलप करो । जैसे कोई बहुत बड़ी लम्बी रेस होती है तो पहले ठण्डे होते हैं, फिर देखते हैं कि नजदीक है, बस एकदम फुल पावर में, फोर्स में मेहनत करते हैं कि हम पहले नम्बर में जाएँ । तो यह एक रेस है । जो शिवबाबा को याद करेंगे । वो पिलर लगा देते है कि पिल्लर को हाथ लगाकर वापिस आओ । तो शिवबाबा है जैसे पिल्लर और वो खुद कहते हैं कि जो मेरे को जल्दी आ करके हाथ लगाएँगे उनको मैं पहले भेज दूँगा यानी सूर्यवंशी का पहला... । तो देखो रेस हुई ना । अच्छा, अभी टाइम तो पूरा हुआ । बच्चों को जाना भी है । बच्चों को तो रोज-रोज नई-नई बातें सुनाते हैं । यहाँ कोई शास्त्रों की तो बातें हैं नहीं । वो तो समझाते हैं- वेद ग्रंथ शास्त्र वगैरह जो-जो भी हैं, जो ये मनुष्य समझते हैं इन सबसे भगवान को पहुँचने का रास्ता मिलता है, अरे! रास्ता घूर मिले! जब कहते हो है ही नाम-रूप से न्यारा और सर्वव्यापी, फिर न रस्ते की बात रही, न ढूँढने की बात रही । देखो, बुद्धि इतनी तमोप्रधान बन गई है । साधु साधना करते हैं । किसकी? वो बोलते हैं- सर्वव्यापी है, नाम-रूप से न्यारा है । अरे, तब साधना किसकी करते हो? बाबा आकर पूंछते हैं । इतनी तुम्हारी मूढ़मति हो गई है । तुम साधना करते किसकी हो? करते हो उनके पास जाने के लिए, जिसको मुक्तिधाम कहते हैं । मुक्तिधाम, मुक्ति देने वाले को बिल्कुल जानते नहीं है । मुक्तिधाम से तो तुम सभी आए हो । वहाँ ही बाप रहते हैं जिसको निर्वाणधाम कहते हैं । बाप रहते हैं नाम-रुप से न्यारा और तुम जो आत्माएँ हो, उसका नाम-रूप है और कहते हो कि हम आत्माएँ हैं और शरीर में है और बाप के लिए कह देते हो कि सर्वव्यापी है, नाम-रूप से न्यारा है । सब कितने मूर्ख हो गए हैं!. .बेहद का बाप कह सकते है ना । मनुष्य, मनुष्य को तो नहीं कह सके । अच्छा, टोली दो । आत्मा को ये इंजेक्शन लग रहा है । ये टोली है शरीर का इंजेक्शन । है ये भी आत्मा का इंजेक्शन परन्तु शरीर है तो फिर आत्मा को टेस्ट आती है ना । शरीर को तो टेस्ट नहीं आती है । आत्मा कहती है कि यह बड़ी अच्छी चीज है । आत्मा कहती है कि मैं ये शरीर छोड़ करके दूसरा लेती हूँ । आत्मा अभी पढ़ती है ना । भले कॉलेज में भी कोई पढ़ते हैं तो आत्मा पढ़ती है, फिर बोलती है कि मैंने कॉलेज में फलाना इम्तहान पास किया । तो अभी कहते हैं कि आत्मभिमानी भव । जो भी मनुष्य मात्र है वो सभी देह-अभिमानी है, इसलिए आत्मअभिमानी बनने की थोड़ी मेहनत है । अशरीरी भव और मामेकम याद कर । सर्वधर्मान परित्यज्य यानी देह के देह सहित सब भूल जाओ, अपन को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो । बस, तुम बच्चों को यही कड़े-ते-कड़ी मेहनत है । कुछ तो मेहनत चाहिए ना और फिर पवित्रता । पवित्रता में अबलाओं के ऊपर अत्याचार होते हैं, पाप का घड़ा भरता है । घड़ा भर भर करके जब बहुत भर जाता है तभी फिर वो फटता है यानी लडाइयाँ लग जाती हैं, उनका मौत आ जाता है । इसको पाठशाला कहा जाता है ना । गीता पाठशाला । यानी भगवानुवाच । देखो, किसको पढाते है! फिर कहते हैं- मैं किसको पढ़ाता हूँ? अबलाए कुब्जाऐ भीलनिआएँ अजामिल जैसे पापी । देखो, सब गरीबों का ही नाम लेते हैं, क्योंकि मैं गरीब निवाज हूँ । साहुकार नहीं पढ़ते हैं । लो क्या कहता है? साहुकार हैं, परन्तु बलि नहीं चढ सकेंगे । ये अबलाएँ हैं.. .इनके पास तो कुछ है नहीं । ये बलि चढ़ पड़ती हैं । ये भविष्य में साहुकार और गरीब फिर गरीब और साहुकार फिर गरीब । यह अथल-पाथल बहुत होती है, क्योंकि साहुकार यहाँ सुख बहुत देखते है ना । बोलते हैं हमको तो यहीं स्वर्ग है । नर्क उसके पास है जो गरीब है । तो बाबा कहते हैं- अच्छा, हम उनको साहुकार बना देते हैं, तुमको भविष्य में गरीब बना देंगे । तो साहुकार गरीब बनते हैं । आते हैं पिछाडी को, पर क्या कर सकते! यहाँ बादशाही स्थापन करने में कोई लाखों नहीं चाहिए । यह तो योगबल की बादशाही है । इनको ही साहुकार बनाना है । सो भी इन सबको अपना गृहस्थ-व्यवहार पहले सम्भालना है । पीछे वो जो बोलता है ना मुट्‌ठी चावल की... .पाना है ना । सिकीलधे........, बहुत हुआ ना देखो अभी तुम जानते हो कि आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल तुमको 5000 वर्ष हुआ अलग हुए । समझा ना । तो बोलते हैं सिकीलधे बच्चों प्रति, ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता का, जरूर वो भी तो ज्ञान के जानने वाले होंगे ना, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।