01-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार जून की पहली तारिख है प्रात क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।
रिकॉर्ड :-
ये वक्त जा रहा है....................
ओम शाति ।
बच्चों ने गीत सुना कि बहुत गई, अब थोड़ी रही । श्रीमत जो कहती है, क्या कहती है? मुझे निरंतर याद करने का पुरुषार्थ करो । ऐसे कहती है ना । किसने कहा? शिवबाबा ने कहा । बच्चों को समझाया गया है कि मनुष्य की आत्माएँ जब शरीर लेती हैं तो उनका शरीर का नाम पड़ता है । पीछे क्या होता है? शरीर छोड़ा, दूसरा शरीर लिया तो दूसरे शरीर का नाम पड़ा, फिर तीसरा शरीर लिया तो तीसरे का नाम पड़ा । ऐसे भिन्न-भिन्न नाम हर एक जन्म में मिलते है । आत्मा का नाम नहीं बदलता है, शरीर का नाम बदलता है । ये तो बच्चों को समझाया गया है । परमपिता परमात्मा शिव घड़ी घडी शरीर नहीं बदलते है ना । वो तो एक ही बार आते हैं, जिसको ही पतित-पावन कहा जाता है । जरूर पतित-पावन का कोई नाम तो होगा ना कि ऐसे ही सिर्फ पतित-पावन!..... तो देखो, क्या कह देते हैं- पतित-पावन, फिर कहते है सीता-राम । अभी सीता-राम का भी अर्थ समझना चाहिए- सीताओं का राम । सीताएँ कहा जाता है भक्ति को । उनका साजन है भगवान, जिसको फिर राम कह देते है । तुम बच्चे अच्छी तरह से जानते हो कि इन सब भक्तों का.... । इसमें बच्चियाँ भी आ जाती हैं, बच्चा भी आ जाता है, छोटे भी आ जाते है, बुडढे भी आ जाते हैं । सभी भगत किसको याद करते है? भगवान को । अगर सभी भगत भगवान है तो फिर याद किसको करेंगे? इसलिए सभी भगत एक भगवान को याद करते है । फिर बंदगी कहो, साधना कहो, प्रार्थना कहो, करेंगे तो एक को ना, क्योंकि सबका बाप तो एक है । सबका सद्‌गति दाता एक है । बच्चों को समझाया गया है कि अंग्रेजी में भी कहते है- सबका लिबरेटर एक है, सबका गाइड भी एक है । अंग्रेजी में भी उसको कहा जाता है ना लिबरेटर और गाइड । बरोबर सभी पतितों को पावन करने वाला भी एक है, पावन करके पीछे गाइड बन करके आत्माओं को ले जाने वाला भी एक है, सभी सजनियो का साजन भी एक है । बाबा ने समझाया है ना कि भक्तों को, चाहे मेल हों, चाहे फिमेल हों, भक्त ही कह देते है । सभी भगवान को याद करते है । ये भी कहते है- गॉड फादर, परमपिता परमात्मा, परन्तु उनको पहचानते नहीं है कि वो कैसे हैं, हम पतितों को पावन करने कब आते है । सो तो जरूर जब सारी दुनिया पतित, जड़जडीभूत तमोप्रधान अवस्था में होगी तभी तो बाप आएँगे ना और बाप आ करके ही कहते हैं । जब यह मनुष्य-सृष्टि का सारा झाड़ जडजड़ीभूत हो जाता है, तमोप्रधान हो जाता है, भ्रष्टाचारी हो जाता है, सभी पाप आत्माएँ बन जाते है... । सभी के लिए कहते हैं ना, क्योंकि सबका सद्‌गति... । सब माना सभी बच्चों का, क्योंकि वो तो समझा दिया है कि रावण ने आ करके हमारे बच्चों को जला दिया है । सुना है? एक कथा में लिखा हुआ है कि सागर के सभी बच्चे भस्मीभूत हो गए थे, पीछे उनके ऊपर आ करके वर्षा की तो जाग उठे । तो ये है ना बरोबर कि इस समय में सभी भस्मीभूत है । किसने भस्मीभूत किया है? काम शत्रु ने । सबको जला दिया है, क्योंकि काम से ही पैदा होते है । यह शरीर सबको विख से ही मिलता है । यह तो बाप बैठ करके बच्चों को समझाते है । बेसमझ बच्चे है तब तो बाप आते हैं और वो कहते भी हैं कि तुम कितने बेसमझ बन गए हो! मुझ अपने बाप को, जो तुमको जीवनमुक्ति देने वाला है, उनको तुम सर्वव्यापी कह देते हो । इतनी गालियां देते हो- कुत्ते में है, बिल्ले में है, मच्छ अवतार, कच्छ अवतार, वाराह अवतार, हनुमान अवतार, फलाना अवतार । एक तरफ तो कहते हो कि नाम-रूप से न्यारा जन्म-मरण से रहित, फिर पतित-पावन भी उन्हीं को कहते हो और फिर उन्हीं को ही कह देते हो कि सर्वव्यापी, मच्छ में, कच्छ में, फलाने में । आत्माएँ तो जनावरों में भी अपनी है, मनुष्यों में भी अपनी हैं । ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि ये सभी रूप उसने धरे है । यह तो कभी हो ही नहीं सकता है । रूप धरे है तो सभी भगवान हो जाते हैं और ये भगवान दुर्गति को थोड़े ही पाते हैं! नहीं, आत्मा ही दुर्गति को पाती है । आत्मा ही पतित बनती है, आत्मा ही पावन बनती है । आत्मा जब पावन बनती है तो उनको चोला भी पावन मिलता है । देखो, अभी जब यह सब शरीर और ये सारी मनुष्य-सृष्टि खत्म हो जाएगी तो फिर जो आएँगे उनकी सतोप्रधान बुद्धि होगी । पीछे रजो में आएँगे, फिर तमो में आएँगे । सब ऐसे ही तो होता है ना । हर एक बात ऐसे होती है । मकान है, नया बना है । इनको सतोप्रधान कहेंगे, फिर इनकी एजेज होती है । जब आधा होगा तो पीछे उनके बाद कहेंगे पुराना मकान । ऐसे तो सब चीज होती है ना । शरीर है, पहले बालक होता है तो कितना प्यारा लगता है । उनको फिर कहते है सतोप्रधान अवस्था, क्योंकि समझाया गया है कि साधु-महात्मा लोग और जो छोटे बच्चे होते है, समान है, क्योंकि वो भी पाँच विकार में नहीं जाते है और बच्चों को भी तो पता भी नहीं है । इसलिए बालक की भेंट करते हैं । बालक जब बिल्कुल छोटा है जब तो सतोप्रधान है, पीछे सतो बनता है, पीछे रजो बनता है, पिछाड़ी में आ करके तमो बन जाते हैं । तो हरेक वस्तु ऐसे जरूर बनती है । यह भी जो सारी दुनिया है, इसको कहा ही जाता है- न्यू वर्ल्ड फिर ओल्ड वर्ल्ड । ऐसे तो कहेंगे ना । सतयुग को कहेंगे न्यू वर्ल्ड यानी नई दुनिया, फिर कलहयुग को कहेंगे पुरानी दुनिया । अच्छा, अभी यह तो भारतवासी अच्छी तरह से जानते हैं, बल्कि और भी नेशन वाले जानते है कि जब भारत नया था तब बरोबर ये आदि सनातन देवी-देवता धर्म, जिसको ही स्वर्ग, बहिश्त, हैविन पैराडाइज,...... । ये सभी नाम भारत के ऊपर रखे हुए हैं । अब यह भारत वो तो नहीं है । अभी इसको कोई स्वर्ग, पैराडाइज कहेंगे? यहाँ दुःख ही दुःख है । तो यह समझ में आता है कि जब भारत पैराडाइज है तब एक ही धर्म है । अच्छा, और सभी आत्माएँ कहाँ हैं? वो मुक्तिधाम में हैं वा निर्वाणधाम में हैं या वानप्रस्थ में हैं, जहाँ वाणी का नाम नहीं, क्योंकि उसको कहा ही जाता है साइलेंस वर्ल्ड, शांत । आत्माएँ शांत रहती है, अपने स्वधर्म में रहती है । उसको कहा जाता है आत्माएं स्वधर्म में रहती हैं, क्योंकि आत्मा का स्वधर्म है ही शांत । आत्मा को जब अपने स्वधर्म का पता पड़े तो शांति के लिए कहा धक्का नहीं खावे । वो समझ जावे कि हमारा स्वधर्म शांत है और हमको इन ऑरगन्स से कहना है, बात करना है, खाना है, पीना है । अगर हमको शांत में रहना है तो हम अपने को अलग कर देते है । आत्म शांति, ऐसे कहते हैं ना । ओम माना आई एम आत्मा, मेरा स्वधर्म है शांत । तो शांत में बैठ सकते हैं, परन्तु कर्म बिगर तो कोई रह नहीं सकते है । इसलिए आत्मा कब तक शांत रहेगी? जरूर यहाँ कर्म करने के लिए आए है । यह कोई मूलवतन तो नहीं है ना । शांतिधाम तो नहीं है जहाँ शरीर होते शांत में रहेंगे । यह तो हो नहीं सकता है । शांतिधाम कहा ही जाता है जहाँ आत्माएँ निवास करती है निर्वाणधाम में । अभी बाप आए है । बोलते हैं कि अपने स्वधर्म में टिको यानी अपन को अशरीरी समझो । देह-अभिमान के बदली में देही-अभिमानी भव । बाप ऐसे कहेंगे ना- हे बच्चों माना हे आत्माओं । अपन को आत्मा निश्चय कर, अब मुझ अपने बाप को याद करो । तो उसका नतीजा क्या होगा, इस योगाग्नि से...... । देखो, भारत का प्राचीन योग बडा नामी-ग्रामी है, परन्तु था । जब फिर वो बाप आवे तब आकर सिखलावे ना । मनुष्य तो मनुष्य को नहीं सिखला सकेंगे । मनुष्य, मनुष्य को कभी भी सद्‌गति नहीं दे सकते है, जबकि ये है ही पाप आत्माओं की दुनिया, भ्रष्टाचारियों की दुनिया, विषियस दुनिया । इनको कहा ही जाता है वैश्यालय । भेंट में है ना । हाँ बरोबर, सतयुग है शिवालय । बच्चों को अच्छी तरह से समझाया जाता है ना । तो बाप आ करके अभी इस समय में बच्चों को धीरज देते है । बोलते है- बच्चे, अभी तुम्हारे सुख के दिन तो आए है ना । अभी जितना हो सके इतना तुम अपने बाप को याद करो, क्योंकि अंत मते सो गति । यह गाया जाता है ना अंत काल जो स्त्री सिमरे ऐसे चिंतन में जो मरे, वल-वल जून अवतरे । फिर भी पुनर्जन्म मिलेगा । अभी बोलता है कि यह मृत्युलोक है, इसमें तुमको पुनर्जन्म नहीं मिलने का है, क्योंकि अमरलोक सतयुग को कहा जाता है, इसको मृत्युलोक कहा जाता है । अमरलोक में तुम अमर रहते हो । वहाँ तुमको अकाले मृत्यु नहीं खाती है । बाप ने समझाया है ना कि वहाँ जैसे सर्प अपनी पुरानी खल को छोड़ नई ले लेते है । मिसाल तो देते है ना । देखो, उसमें भी तो अक्ल है ना । कितना अच्छा अक्ल है! जब नई खल मिल जाती है तो पुरानी छोड़ देते है । यह मिसाल किसके लिए है? यह सतयुग में देवी-देवताओं के लिए है, क्योंकि जब उनका शरीर बुड्‌ढा होता है तब वो जानते हैं कि हम आत्मा को.... । अभी वहाँ आत्मा का ज्ञान है । यहाँ आत्मा का भी ज्ञान नहीं है । इसलिए बाप आत्मा का भी ज्ञान देते है कि तुम आत्माएँ हो और तुम्हारा बाप एक है और तुम्हारा यह जो शरीर है, जिसको ऑरगन्स (या) कर्मेन्द्रियाँ कहा जाता है, इनसे तुम कर्म करते हो । यह कर्मक्षेत्र है । इसमें सबको कर्म करना ही है । शांत नहीं रहना है । शांति का स्थान यह नहीं है, यह कर्म का स्थान है । कर्म बिगर कोई रह नहीं सकते है । कर्म का सन्यास कोई कर नहीं सकते है । समझा ना । कर्म का सन्यास कैसे करेंगे? कर्म का सन्यास तो मूलवतन में होता है, क्योंकि वहां अकेली आत्मा है । यहाँ किसका कर्म का सन्यास थोड़े ही होता है । यह भी झूठ बात है जो समझते है कर्म सन्यासी । कर्म का सन्यास हो ही नहीं सकता है । तुम शांत में अपने स्वधर्म में बैठ सकते हो, उसको कहा जाता है रियल शांत । यह नाक मुंह करके प्राणायाम करना, वो तो आर्टीफिशल हो गई । उसको झूठी कहा जाता है । जो प्राणायाम या खडढे में घुस जाते हैं, ये तो अभ्यास है । ये सब तो नहीं कर सकते है ना । उसमें माताएं तो कर भी न सकें ।.. .उनमें डिफीकल्टीज है । कोई-कोई प्राणायाम चढ़ाते-चढाते बुद्धि खराब हो जाती है, माथा खराब हो जाता है । यह तो बिल्कुल ही सहज समझने की बात है कि हे मेरे लाडले बच्चे! तुम आत्माओं का स्वधर्म है ही शांत, परन्तु जब तुम्हारे स्वधर्म शांत में हो तो घर में रहते हो । वहाँ शांत रहते हो । उसको कहा ही जाता है शांतिधाम । पीछे सतयुग को कहा जाता है सुखधाम । यानी बाप आ करके फिर नई दुनिया को स्थापन करते हैं । देखो, अभी नई दुनिया स्थापन हो रही है ना, पुरानी का तो खलास सामने खडा हुआ है । गाया भी जाता है कि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापना । अभी सुक्ष्मवतन में जो ब्रह्मा रहते है, उन द्वारा तो मनुष्य-सृष्टि की स्थापना नहीं हो सकती है । तो वो है अव्यक्त ब्रह्मा, तो फिर ये है व्यक्त ब्रह्मा । यानी ये है पतित तो वो है पावन । जब पतित योग और ज्ञान से पावन बन जाते हैं तब फिर वो बन जाते है । वैसे तुम भी ऐसे ही हो । समझा । प्रजापिता ब्रह्मा जब यहाँ है तो तुम सुक्ष्मवतन में भी उनके साथ रह जाती हो । तुम जाते हो तो वहां... । उसको कहा ही जाता है फरिश्तों की दुनिया । सूक्ष्मवतन में फरिश्तों की दुनिया । वहां हड्‌डी-मांस नहीं होता है । वहाँ सूक्ष्म सफेद शरीर होते हैं । तुम लोगों ने घोस्ट नहीं देखा है ना । घोस्ट जिसको भूत कहते है । जिसको शरीर फट से नहीं मिलता है, वो भटकते है । तो छाया रूपी उनका शरीर होता है । वो देखने में आता है, जैसे मनुष्य जाता है, पर छाया रूपी । उनको पकड़ो तो पकड़ने नहीं देते हैं । यहाँ तक भी आ जाते है । उसको दूसरे अक्षर में घोस्ट भी कहते हैं कि आत्मा को जब तलक शरीर मिले तब तलक ऐसे भटकती है । वो तो हुई दूसरी दुनिया, उनसे कोई तालुक तो है नहीं । इस ज्ञानमार्ग में यह समझाया जाता है कि तुम को अपने बाप को याद करने से क्या होगा? तुम्हारे ऊपर जो विकर्म है वो जल जाएँगे । अभी टाइम तो बहुत थोड़ा हुआ है । तब गाया जाता है कि बहुत गई, थोड़ी रही, अब थोड़ी की भी थोड़ी समय रही है । इसलिए जितना हो सके इतना अपने बाप को याद करो । तो क्या होगा? अंत मते सो गत । तो देखो, वहाँ है भी ना, गीता में एक दो राइट अक्षर लिखते तो है । बाबा ने कहा है ना कि शास्त्रों में जैसे आटे में लून कोई सच्चे अक्षर है, बाकी सब झूठ । अभी उसमें कहते है । कौन कहते है? भगवानुवाच । अभी पहले तो भगवान कौन है उसका मालूम पड़ना चाहिए कि भगवान निराकार है । कैसे उवाच करते है? बोलता है मैं साधारण ब्रह्मा के तन में, जिसका नाम हम खुद प्रजापिता ब्रह्मा रखते हैं, उसके तन में प्रवेश कर और फिर मैं क्या कहता हूँ ज्ञान देते, योग सिखलाते यानी आत्माओं से बात करते है । बच्चे, अभी निरंतर मुझे याद करो । अभी यह दुनिया विनाश को पाने वाली है । मैं आता ही हूँ एक धर्म की स्थापना करने जो प्राय:लोप है और फिर बाकी धर्मो का विनाश । बरोबर अभी तो बहुत धर्म हैं, अथाह धर्म है । इस समय में लाखों धर्म है । लाखों तो क्या करोड़ों धर्म होंगे । तो अनेक हो गए ना । सतयुग में भारत में आज से 5000 वर्ष पहले एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, और तो कोई था ही नहीं । समझाते हैं ना कि बच्चे, बरोबर जो भी आत्माएँ हैं वो अपना हिसाब-किताब चुक्तू करके... । इसको कहा ही जाता है कयामत का समय, सेग्रिगेशन(अलगाव) का समय, हिसाब चुक्तू होने का समय । सबका दुःख का हिसाब सब चुक्तू हो करके यानी पापों का.... । दुःख मिलता है पाप के कारण । ये पापों का हिसाब चुक्त हो और फिर पुण्य का हिसाब शुरू होता है । तो जो मनुष्य पहले वहाँ से आते है.... पाप आत्माएँ तो नहीं जा सकेंगी ना । उनको जरूर पुण्य आत्मा... । तो देखो, आग में लग पड़ती है । हर एक चीज को शुद्ध करने के लिए आग जगाई जाती है । जब यज्ञ भी रचते है तो देखो आग जगाते हैं । उसमें काठी वगैरह देकर हवन आदि करते है, परन्तु बाबा बोलता है ये कोई मटेरियल यज्ञ तो नहीं है ना, हवन तो नहीं है । यह तो है रुद्र ज्ञान यज्ञ । इसको गाया ही ऐसा गया है कि 'रुद्र ज्ञान यज्ञ । ऐसे कहते ही नहीं है कि कृष्ण ज्ञान यज्ञ । ऐसे है नहीं । कृष्ण ने कोई यज्ञ नहीं रचा है । कृष्ण तो सतयुग में प्रिन्स है, वहां काहे का यज्ञ! यज्ञ रचा जाता है जब ये आफतें होती है । तो देखो, इस समय में आफतें हैं ना । बहुत मनुष्य रुद्र यज्ञ भी रचते है, पर रुद्र ज्ञान यज्ञ नहीं रच सकते है । रुद्र ज्ञान यज्ञ तो रुद्र आकर रचेगा अर्थात् परमपिता परमात्मा आ करके रचते है ना । फिर कहते है कि यह जो रुद्र ज्ञान यज्ञ रचा हुआ है, इसमें जो भी यज्ञ है वो सभी आहुति हो जाएगी, जो भी मनुष्य है सब आहुति हो जाएगी, क्योंकि बहुत बडा यज्ञ है । .. .बाबा आया हुआ है, यह यज्ञ रचा हुआ है । कितना बरस हो गया? इतना यज्ञ कोई थोडे ही रच सकते है । यह यज्ञ रचता है जब तलक कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म की बादशाही स्थापन हो जावे और वो पावन बन जाए । पावन कोई पाठ से तो नहीं बनते हैं । ये तो योग से बनना है । तो योग लगाते रहो-लगाते रहो, अंत तक लगाते रहो । ये है योग की रेस । कैसी रेस? कि हम रुद्र को यानी बाप को याद करते है । जो जितना जास्ती याद करेंगे, वो जैसे कि दौड़ी जास्ती पहनते है । दौडी जास्ती पहनते हैं तो जा करके उसके गले का हार बनेंगे । उसको कहा जाता है रूद्रमाला । फिर गले का हार बन करके आ करके विष्णु की माला बनते हैं । इसलिए दो मालाएँ मशहूर हैं । विष्णु के गले में फूल की माला, क्योंकि तुन काँटे से फूल बनते हो । रावण पुरी से विष्णुपुरी जाते हो तो विष्णु की माला बन जाते हो । पहले रुद्र की माला । पहले बाप के पास घर जरूर जाना है । बाप ले जाते है ना । पीछे जो-जो पुरुषार्थ करेंगे वो नर से नारायण बन और नारी से लक्ष्मी बन, पीछे जा करके राज्य करते है । विष्णु के दो रूप हो गए । तो गोया यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म का स्वराज्य स्थापन हो रहा है । सतयुग में तो नहीं होगा । स्थापना तो यहाँ होगी ना । पतित तो यहाँ पावन बनेंगे । लायक यहाँ बनेंगे । तो देखो, तुमको राजयोग सिखलाय रहे है । कैसे? जैसे 5000 वर्ष पहले सिखलाया था । यह योग मैं हर 5000 वर्ष बाद, हर कल्प के बाद तुमको सिखलाते आता हूँ और तुमको यह पूरा निश्चय भी है कि बरोबर बाप आते है जब भारत बिल्कुल ही जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है, बिल्कुल ही कंगाल हो जाता है तो बाप आकर... है ना शिवरात्रि । आता तो है ना । फिर शिवजयन्ती भी कहते हैं, शिवरात्रि भी कहते है । कौन-सी रात्रि? रात्रि वो नहीं है जिस रात्रि में श्रीकृष्ण जन्म लेते हैं । वो वहाँ घड़ी देखते हैं, कलाएँ वगैरह देखते हैं । इसका कोई पता ही नहीं है, परन्तु रात किसको कहा जाता है कलहयुग का अंत और सतयुग की आदि । यानी पुरानी दुनिया का अंत और नई दुनिया की आदि । बरोबर सतयुग-त्रेता है दिन, फिर द्वापर-कलहयुग है रात । इसको कहा जाता है ब्रह्मा का बेहद का दिन, फिर ब्रह्मा की बेहद की रात । दिन और रात भी तो गाया हुआ है ना । किसका? ब्रह्मा का । कृष्ण का नहीं गाएँगे क्योंकि कृष्ण को ज्ञान नहीं है । यहाँ ब्रह्मा को ज्ञान मिलता है । प्रजापिता ब्रह्मा को बाप से ज्ञान मिलता है और तुम बच्चों को फिर ब्रह्मा से मिलता है । गोया शिवबाबा तुमको ब्रह्मा द्वारा ज्ञान दे रहे है । कौन-सा? यह सारे सृष्टि के चक्र का । तुमको त्रिकालदर्शी बनाते है । मनुष्य-सृष्टि में कोई एक भी त्रिकालदर्शी हो नहीं सकते हैं, इम्पॉसिबुल है । अगर होवे तो यह नॉलेज देवे ना कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है । कोई सतसंग में कभी भी कोई नॉलेज दे नहीं सकता है । यह बाप जब आते है तो मनुष्य तो जानते हैं कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच । अभी भगवान तो सबका एक । कभी भी मुसलमान, पारसी वगैरह कोई श्रीकृष्ण को भगवान थोडे ही मानेंगे । नहीं, वो ये जानते है कि बरोबर यह राजकुमार है । क्या कोई राजकुमार भगवान होता है? भगवान राजाई लेने तो फिर राजाई गुमावे भी ।... .वो तो बाप कहते हैं कि तुमको राजधानी विश्व का मालिक बनाय मैं फिर निर्वाणधाम में ही रहता हूँ यानी परमधाम में ही रहता हूँ । फिर सतयुग और त्रेता में कोई तकलीफ तो होती नहीं है, न कोई मुझे पुकारते है, इसलिए मैं निर्वाण में रहता हूँ । समझा ना । बस, मनुष्यों को कोई भी दुःख नहीं है । फिर जब दुःख होना शुरू करते है तो मेरा पार्ट भी शुरू हो जाता है । मैं सुना ही करता हूँ । मुझे बहुत पुकारते हैं, याद करते हैं- हे भगवान, हे रहमदिल! ऐसे शुरू कर देते है, क्योंकि माया का राज्य शुरू हो जाता है और दुःख थोड़ा थोडा शुरू हो जाता है । तो बाप ने अच्छी तरह से समझाया है । तब भक्ति कैसे शुरू होती है? पहले पहले जो पूज्य थे, जो पुजारी होते हैं, वो पहले अव्यभिचारी पूजा करते है यानी शिव की पूजा करते हैं । उसको कहा जाता है अव्यभिचारी पूजा । उसको ही कहा जाता है सतोप्रधान पूजा, भक्ति ।... सतोप्रधान के पीछे सतो पीछे शिव की पूजा छोड़ करके देवताओं की पूजा शुरू करते हैं । जानते नहीं हैं, क्योंकि पुजारी जान कैसे सकें । कोई को भी नहीं जानते हैं, कोई भी नहीं जानते हैं । बस, पूजा शुरू हो जाती है । फिर शिव की पूजा, फिर दिन-प्रतिदिन वो शिव का बैठ करके नाम डालते है । नहीं तो एकदम पहले पहले नाम शिव का होता है, क्योंकि शिव कहो या सोमनाथ कहो, बात एक ही है । शिवबाबा तो निराकार ठहरा । अच्छा, सोमनाथ नाम क्यों पड़ा? क्योंकि बच्चों को आ करके सोमरस पिलाया, ज्ञानामृत पिलाया, इसलिए नाम पड़ गया 'सोमनाथ । पीछे तो बहुत ही नाम पड़ गए है । शिवबाबा के ऊपर ढेर के ढेर नाम पड़े है । बॉम्बे में बबूलनाथ यानी बबूल जो काँटे थे, उनको फूल बनाने वाला । उसका अर्थ तो कोई समझते ही नहीं है । ऐसे बहुत ही नाम डालते है । सबमें अर्थ हैं कि क्यों इसका नाम ऐसे है, एक का नाम क्यों रखा है ।.... सर्व का सद्‌गति दाता एक है । उनके लिए अगर कह देते है कि सर्वव्यापी है, कुत्ते में, बिल्ली में । यह तो ग्लानि हुई ना । बाप कहते है जब संगम का समय आता है, मैं सिर्फ एक बार ही आता हूँ । मैं कोई इतने अवतार लेता ही नहीं हूँ- परशुराम अवतार, फलाना अवतार । ये सभी भक्ति के बनाए हुए हैं । ये सब जो भी है भक्ति के कर्मकाण्ड के किताब हैं या पुस्तक है या शास्त्र हैं । बाकी मुझे कोई भी नहीं जानते । न कि ऐसा है कि भक्ति करने से मुझे मिलते हैं । ऐसे भी नहीं है । जब सब भक्ति का समय पूरा होता है, रावण राज्य पूरा होता है । रावण राज्य शुरू होता है और भक्ति शुरू होती है । जब यह आधाकल्प पूरा होता है तब फिर मैं आता हूँ । यह ड्रामा में एक नियम है । ऐसे नहीं है कि कभी मुझे कोई बहुत याद करे । अरे! यहाँ बहुत ही लड़ाइयाँ लगी हुई है । अंग्रेजों की लडाई, मुसलमानों की लड़ाई, पुकारा तो बहुत । मैं कभी आया हुआ हूँ क्या?? नहीं, मैं कभी नहीं आता हूँ । मैं आता हूँ एक बार । बाप एक तो अवतार भी एक । आता भी एक दफा हूँ बस । कहते है ना- पतितों को पावन करने वाले लिए आओ । अच्छा, फिर हमको भला कब बुलाएँगे, जो मैं आऊँ, क्या द्वापर में आऊंगा? नहीं, द्वापर के पीछे तो कलहयुग है । मुझे जरूर कलहयुग के अंत और सतयुग के आदि में आना पड़ता है । मेरा एक ही बार आना होता है और आ करके फिर सबको पूरा योगी बनाता हूँ । सो भी कौन-से योगी? राजयोगी । तुम हो राजयोगी और वो जो सन्यास है वो है हठयोग । तो हठयोगी राजयोग नहीं सिखला सकते, है । बाबा राजयोग... .फिर हठयोग थोडे ही सिखलाएंगे । उनका सिखलाना किसको है? पुरुषों को । फिमेल को थोडे ही जंगल में जाना है । वो भी जैसे भारत का एक धर्म है, भारत को थमाने के लिए, क्योंकि भारत में पवित्रता चाहिए ना । भारत जैसा पवित्र और कोई बनता ही नहीं है, ना, वही 100 परसेन्ट पवित्र और फिर 100 परसेन्ट पतित । गाते भी यहाँ हैं ना- पतित-पावन आओ! पावन कैसे बनाओ? ये देवताओं के जैसा बनाओ । देवता बनाओ । ऐसे ही कहेंगे, और तो कोई नहीं कहेंगे ना । सन्यासी कहेंगे कि हे पतित-पावन आओ, हमको पावन दुनिया......? वो है पावन आत्माओं की दुनिया और सतयुग है पावन जीव आत्माओं की दुनिया । वो तो उनको पुकारते हैं कि बाबा, हम पतित को, गृहस्थ धर्म है ना, हमको पावन गृहस्थ धर्म बनाओ, क्योंकि भारत में पावन गृहस्थ धर्म था । अभी गृहस्थ धर्म पतित है । पतित गृहस्थ धर्म को पावन गृहस्थ धर्म कोई गृहस्थ का सन्यास करने वाले थोडे ही बना सकेंगे । उनका फिर क्या है? बाप बताते हैं कि वो पवित्र रहते है, इसलिए भारत थमा रहता है और सच भी बोलते थे कि नेती-नेती, हम न रचता को जानते है, न रचना को जानते है । वो तो बेअंत है । अभी जब तमोप्रधान बने है तो कह देते है शिवोहम, सभी ईश्वर के रूप हैं । समझा ना । पहले ऐसे नहीं था: क्योंकि उस समय में सतोप्रधान अवस्था में थे, फिर सतो में, रजो में, अभी सारी दुनिया बिल्कुल ही तमोप्रधान अवस्था मंत है । तब बाप कहते है मैं आता हूँ 100 परसेन्ट तमोप्रधान वालों को 100 परसेन्ट सतोप्रधान बनाता हूँ । पीछे सबको तो सतयुग में नहीं ले आता हूँ ना , क्योंकि सब तो सतयुग में होते ही नहीं है । सतयुग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म होता है... .पीछे आते हैं सभी । सभी तो स्वर्ग में नहीं जाएंगे । बाकी जो आते हैं उनको मुक्ति । मुक्ति और जीवनमुक्ति दाता ही एक, और न कोई । मनुष्य, मनुष्य को कभी भी मुक्ति जीवनमुक्ति नहीं दे सकते है, इसलिए गुरू कहलाने के हकदार नहीं है । तो ये गुरू किसके हैं? ये है भक्तिमार्ग के गुरू । ये है ज्ञानमार्ग के गुरू, वो हैं भक्तिमार्ग के गुरू । जिस्मानी यात्राओं के ऊपर भी गृहस्थ धर्म वालों का धंधा है । भक्ति करना कोई सन्यासी का कर्म नहीं है । वो भक्ति छोड़ देते हैं, गृहस्थ धर्म को ही छोड़ देते है । भक्ति है ही गृहस्थ आश्रम वालों के लिए, न कि सन्यासियों के लिए, परन्तु पहले जंगल में रहते थे, फिर जब तमोप्रधान या रजो बनते हैं तो अंदर घुस आते है । पीछे ये जिस्मानी जैसे पण्डित तैसे ये पंडित भी बन जाते हैं । ये यात्रु भी बन जाते हैं । यात्रुओ की जगह. फिर उनके गुरु भी बन जाते हैं । फिर जैसे अंदर घुस जाते है । मुख से कहते है कि हम घरबार छोड़ने वाले है, सब कुछ छोड़ते है । उनको एक पैसा भी नहीं ले जाते है । कायदा ऐसा है- सन्यासी एक पैसा नहीं ले जावे, चले जावे गुरू के पास । अभी देखो, तमोप्रधान बनने के कारण आजकल कितने लखपति-करोडपति सन्यासी आजकल ज्ञानमार्ग के, जो ज्ञान सागर बाबा है, उनके बच्चे । तुम रूहानी यात्रा कराएँगे और वो जो साधु संत सन्यासी हैं, वो सभी जिस्मानी यात्रा... । देखो, जाते है ना । नहीं तो जिस्मानी है! सन्यासी करोड़पति है, उनके पास दस-दस, बीस- बीस करोड़ है । जब कहते है हमने हर्थ एण्ड होम यानी घरबार छोडा तो पीछे उनको पैसे की क्या दरकार है! तमोप्रधान बन जाने से पीछे ये घुस जाते है, पीछे लखपति-करोडपति हो जाते है । गृहस्थियों से भी ये साहूकार हो जाते है, जो फिर मुख से कहते है कि हमने घरबार छोड़ा हुआ है । तो ये एडल्ट्रेशन करप्शन हुई ना । धोखा हुआ ना । करप्शन को धोखा..... । अभी सर्वव्यापी कहना, यह भी तो धोखा हुआ ना । तब बाप आकर कहते है बच्ची, ये जो गुरू लोग है इन सबको छोड़ो । गीता में तो लिख दिया है कि इनको मारो । मारने की तो कोई बात है नहीं, क्योंकि तुम नॉन वायोलेन्स हो । तुम अहिंसक हो, हिंसक नहीं हो । न कोई से लड़ते हो, न कोई के ऊपर काम-कटारी चलाते हो । तो देखो, इस काम पर जीत पहनना.. मेहनत है ना । सन्यासी घर बैठे नहीं जीत सकते है, इसलिए भाग जाते है और तुमको तो घर में बैठ करके भी, रह करके भी विकार को जीतना है । युक्ति? युक्ति यहाँ होती है कि तुम ब्रह्माकुमार और कुमारी बन जाने से शिवबाबा से वर्सा लेते हो, इसलिए तुम भाई-बहन हो गए । यूँ वास्तव में हिसाब करें कि जब हम सभी भगवान के बच्चे है । निराकार पीछे साकार ब्रह्मा द्वारा, तो भाई-बहन ठहरे ना । वास्तव में तो सभी भाई-बहन ठहरे । पीछे ये बिरादरियां निकलती हैं, परन्तु वास्तव में हिसाब करें कि जब हम सब भगवान के बच्चे है तो जरूर हमको निर्विकारी बनना चाहिए । भाई भाई हुए । ब्रह्मा के द्वारा फिर भाई-बहन होते हैं । जब ब्रह्माकुमारी और कुमार बहन-भाई हों, तो विकार में जा नहीं सकते हो । अच्छा, विकार में न जाने से तुमको इसके लिए क्या मिलता है? अरे, विश्व की बादशाही मिलती है, सिर्फ एक अंतिम जन्म निर्विकार रहने से । इसको कहा जाता है बहुत जन्म के अंत के जन्म का भी अंत । इसमें अगर गृहस्थ धर्म में रहते हुए कमल फूल के समान तुम निर्विकार रहे, पवित्र रहे तो देखो कितना ऊँच पद मिलता है । तो स्टेटस हुई ना । एम-ऑब्जेक्ट है ना.. .यहाँ आए हुए हैं फिर देवी-देवता बनने । यहाँ तो सभी भ्रष्टाचारी है । देवी-देवता कौन बनाएँगे? विश्व का मालिक कौन बनाएँगे? तो जो विश्व का रचता है, वो बनाएँगे ना ।.. .ये सभी समझ की बात है । अभी तुम सभी समझदार बनते हो । सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है यह सब तुम्हारे में ज्ञान है । इसलिए तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो गए । स्व आत्मा को दर्शन हुआ, नॉलेज मिली कि ये सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है । किससे नॉलेज मिली? परमपिता परमात्मा, जिसको ही नॉलेजफुल कहा जाता है, क्योंकि मनुष्य-सृष्टि का बीज-रूप है । तो जो बीज है वो चैतन्य है और उनको ही कह देते हैं- ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल । तो उनको जरूर आना पड़े ना । तो देखो, अभी आए है, नॉलेज देते है । समझाते है- मैं हूँ मनुष्य-सृष्टि का बीज-रूप । बाकी तो अनेक बीज है । यह भी तुम जानते हो कि बीज से झाड़ कैसे होता है । यह भी उल्टा वृक्ष है । इसको उल्टा वृक्ष कहा जाता है । बीज ऊपर और झाड नीचे । समझा ना! हम आत्माएँ तो ऊपर रहने वाली है ना और यहाँ झाड़ में आए हुए है । देखो, पहले पहले दैवी झाड़, पीछे इस्लामी झाड़, फिर बौद्धी झाड़, क्रिश्चियन झाड़, फिर उनमें मल्टीप्लीकेशन टाल-डाल-डालियॉ । अभी तुमको इस कल्प वृक्ष का अच्छी तरह से ज्ञान मिला है । यह दूसरा तो कोई दे नहीं सके, न कोई शास्त्र में है । शास्त्रों में क्यों नहीं है? तुम अभी जो सुनती हो, सो तो तुम्हारी बुद्धि में रहा, भले तुम कुछ लिखती भी हो, पर ये तो सब विनाश हो जाएगा ना । सतयुग में तो कोई शास्त्र वगैरह बिल्कुल होते ही नहीं है । मंदिर आदि तो होते ही नहीं है । कुछ भी नहीं होते है । ये सभी है भक्तिमार्ग की सामग्री । ये पीछे निकलती है । सतयुग में है नहीं । सतयुग में तो हीरे और जवाहरों के महल, वो राजभाग तुम जो इनहेरीटेन्स(वर्सा) पाती हो, वो तुम भोगती हो । तो भी कितनी अच्छी कहानी है । तुम कह सकते हो ना- लांग लॉन्ग एगो एक कहानी । 5000 वर्ष पहले यहाँ आदि सनातन देवी-देवता धर्म था । ये लक्ष्मी-नारायण का राज्य था । पीछे जब त्रेता आया तो श्री सीता और राम का राज्य चला । देखो, लांग-लॉन्ग एगो की आखानी ये तो समझ सकते हो ना । सूर्यवंशियों के बाद चंद्रवंशी, जब उन चंद्रवंशियों का भी आधाकल्प पूरा हुआ तब फिर माया की प्रवेशता हो गई । पीछे दूसरे धर्म आने लगे । मुख्य इस्लामी धर्म आया, पीछे बौद्धी फिर क्रिश्चियन और फिर वगैरह वगैरह... यानी झाड़ को छोटी-छोटी टाल-डाल-डालियाँ निकलीं, झाड़ पूरा हो गया । देखो, लांग-लॉन्ग ऐगो तुम अखानी सुनाती हो ना, बिल्कुल सहज है । अभी झाड़ तमोप्रधान हो गया । अब फिर से रिपीट करेगा । अब यह कितना सहज ज्ञान है । अच्छा, बाबा अभी विदाई लेते है । मंसा वाचा कर्मणा कोई को दुःख न देना है । उसको अंग्रेजी में कहते हैं-- थॉट वर्ड और डीड किसको भी दुःख नहीं देना है । अभी समझाना तो है ना । किसको कहना नहीं है कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं है, भगवान है । कृष्ण तो पुनर्जन्म लेते हैं, मनुष्य है । तो वो गुस्सा खाते हैं । अच्छा, देखते है कि उनको गुस्सा लगता है तो उनको नहीं बताना चाहिए, छोड़ देना चाहिए । अच्छा भई, तुमको गुस्सा लगता है ना । अभी अपने ही जिस मत पर हो, उस पर कायम रहो, फिर छोड देना । बस, ये एक ही बात पर है सब । तुम बहुत तिक-तिक करते हो ना, तभी मनुष्य मूंझ जाते है । तुम्हारी बात ही एक है, जिसने भारत को कंगाल बनाया है । ये एक बात है । बाप को कुत्ते में, बिल्ले में, गालियाँ पिछाडी गाली । बहुत डिफेमेशन किसकी हुई है? गॉडफादर की । वो आकर कहते है तब तुम मेरी और मेरे देवताओं की ग्लानि करते हो । कैसे ग्लानि करते हो? मेरे को सर्वव्यापी कुत्ते में, बिल्ले में, कच्छ में, मच्छ में लगा दिया । कहते हो कि पुनर्जन्म नहीं लेते है और दूसरी तरफ कहते हो कच्छ-मच्छ में, भित्तर में, ठिक्कर में, कण-कण में ।... .देखो समझाते है ना । बड़ी गाली दिया ना ।.... .पीछे सेकेण्ड नंबर में कह देते हो शंकर पार्वती के ऊपर पिछाड़ी.... क्योंकि पहले नंबर में है शिवबाबा पीछे नंबर में है.. .शंकर । शंकर के ऊपर भी तुमने... .वो धतूरा खाते है, भांग पीते हैं, वो पार्वती के ऊपर पिछाड़ी हुआ, पीछे बिच्छू और टिण्डन पैदा हो गए । ये बातें है या नॉनसेन्स है? सेकेण्ड नंबर में उनकी ग्लानि, फिर थर्ड नंबर में आओ, ब्रह्मा की । ब्रह्मा सरस्वती के ऊपर फिदा हुआ, फलाना हुआ.... । अच्छा, आओ विष्णु के ऊपर । विष्णु के दो रूप है लक्ष्मी-नारायण, छोटेपन में है कृष्ण । कृष्ण को भी तो तुमने गाली दे दी । कृष्ण को 108 रानियाँ थीं । 16000 रानियों थीं । देखो, उनको भी गाली दी.... । जज करो कि बरोबर ऐसे है? तो सबको हुआ । शिव को भी हुआ, जो रचता है, फिर उनके सेकेण्ड में आओ- शंकर । उनको भी शिव शंकर से मिला दिया, बैल के ऊपर बैठा दिया । अरे, सुक्ष्मवतन में बैल कहाँ से आया? तो मूर्खता हुई ना । अभी सभी मूर्ख । फिर उसकी भी बता दी कि ब्रहमा की भी करते है । फिदा हुए, फलाना । अच्छा, फिर आओ विष्णु के ऊपर । ऊँचे ते ऊँच ये तीन हैं ना । विष्णु के भी दो रूप लक्ष्मी और नारायण । यह भी उनको पता तो है नहीं, परन्तु नहीं, लक्ष्मी और नारायण तो उनसे पहले है कृष्ण और राधे । उसमें राधे को इतनी गाली नहीं दी, कृष्ण को ठोक करके गाली दी कि इसको सर्प ने डसा 108 रानी थी । अब 108 रानी थी और भगाते थे और सर्प ने डसा वो ज्ञान कैसे देंगे? उसको पतित-पावन कैसे कहेंगे? जिसको 108 स्त्री, उसको पतित-पावन कैसे कहेंगे? तो देखो, कितनी भूल है! अब जब बताते है तो मनुष्यों को मिर्ची लगती है । सच बताओ तो मुट्ठों को लाल मिर्ची लगती है । अभी क्या करे भगवन! अच्छा बच्ची, टोली ले आओ । मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति । मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हारी कृपा ते सुख घनेरे- गाया तो जाता है ना । लौकिक माँ-बाप की तो ये महिमा नहीं है । जरूर परलौकिक मां-बाप की है । मात-पिता भी जरूर होने चाहिए, क्योंकि भगवान रचता है, माता भी जरूर होगी । तो देखो कहते हैं ना- तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे मिलते हैं । अभी कब मिलते हैं, बिचारे गाते आते हैं, उन लोगों को पता नहीं है । शास्त्रों में तो कल्प की आयु लाखों वर्ष लगा दी । घोर अंधियारे में... । अभी तुम जानते हो कि बरोबर तुम मात-पिता, हम बालक तुम्हारे से राजयोग सीख करके स्वर्ग के सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं । समझा ना । सन्यासी सुख को कागविष्ठा समान समझते है । अभी जो कागविष्ठा समान सुख है उसमें से वो राज को कैसे जानेंगे, राज्य कैसे करेंगे? तो जो तुम राजा थे, सो फिर याद करते है- तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे फिर से मिलेंगे । वो भी समझते नहीं है, बाकी कहते रहते हैं- तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे । अब तुम जानते हो हमारी यह जो पुकार थी वो अभी पूरी हो रही है । बाप आ करके हमको फिर राजयोग सिखला रहे है । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार गुडमॉर्निग ।