02-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार जून की दो तारिख है प्रात क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
माता ओ माता जीवन की दाता...............
ओम शाति ।

ये दो अक्षर जगदम्बा की महिमा के सुने । बच्चों को अब ये अच्छी तरह से मालूम है, ज्ञान पूरा मिला हुआ है । जो प्रेजेन्ट होता है, वो पास्ट होता है । जो पास्ट होता है फिर उसको प्रेजेन्ट होना है । अभी है प्रेजेन्ट । ये है पास्ट की महिमा । थी, है- ऐसे कहेंगे ना! जगदम्बा थी, जिसकी महिमा गाई जाती है । अब जिनमें ज्ञान नहीं है वो तो कहेंगे कि जगदम्बा की महिमा परम्परा से चली आती है । कब से चली आती है, ये उनको मालूम नहीं है । तुम बच्चों को मालूम है कि बरोबर 5000 वर्ष पहले ये जगदम्बा ने कर्तव्य किया था । कौन-सा? सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण की थी । इनको वास्तव में कपिला, कामधेनु कहा जाता था । अभी वो कोई जनावर की तो बात नहीं है । उनमें बहुत ही कथाएँ लिखी हुई है कि बरोबर कपिला, कामधेनु को चुराय ले गए थे, फिर वो गुस्सा लगा, फलाना लगा । ऐसी बहुत ही कथाएँ है ।.. .ये पास्ट की कथाएँ चली आती हैं । अब वो पास्ट प्रेजेन्ट जरूर होना है । वर्ल्ड की हिस्ट्री एण्ड जॉग्राफी रिपीट होती है । तो बरोबर अभी बच्चे जानते हैं कि जिस मम्मा की पास्ट की महिमा अभी तलक गाते हैं, वो अभी प्रेजेन्ट हैं । मम्मा क्यों गाई जाती है, दुनिया को कुछ भी पता नहीं है । अभी मम्मा को बच्चे जानते हैं, दुनिया नहीं जानती है । जो-जो आ करके बच्चे बनते हैं वो जानते हैं कि अभी जगतअम्बा वा जगत्‌पिता हमारी सभी मनोकामनाएँ श्रीमत द्वारा पूर्ण करते हैं, इसलिए उनको कामधेनु कहा जाता था । लक्ष्मी को कोई कामधेनु नहीं कहा जाता है । सभी कामनाएँ पूर्ण करने वाली । किसके लिए? कहाँ के लिए? भविष्य 21 जन्म के लिए । तो बरोबर भविष्य 21 जन्म के लिए तुम्हारी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं । कोई भी कामना के लिए न कोई देवी-देवताओं के मंदिर वगैरह, न कोई इच्छा ही करते हैं, क्योंकि यहाँ तुम जानते हो कि तुम्हारी सब कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं यानी स्वर्ग के मालिक बन जाते हो । बस, और तो फिर कोई चीज की दरकार नहीं है । आधाकल्प जो पास्ट हो गया वो तो तुम्हारी सभी मनोकामनाऐ पूर्ण कीं पूरे 21 जन्म की । फिर रावण राज्य चला । फिर वो भी कामनाएँ पूर्ण हो गई । पीछे आया कर्मयोग कि जैसा-जैसा कर्म करेंगे वैसा- फल पाएँगे । वहां यह कहने में नहीं आता है कि जैसा जैसा कर्म करेंगे ऐसा तुम फल पाएँगे । वहां नहीं हो सकता है । यह बुद्धि से काम लेना है कि बरोबर यह ठीक है ना । तो कभी जगदम्बा से, पिता से... .अच्छा, उनको भी देने वाला तो भोला भण्डारी शिव ही है । उन्हीं द्वारा ये मनोकामनाएँ पूर्ण करती है । फिर वहाँ कोई पूजा-प्रतिष्ठा कोई की भी रहती नहीं है । भक्तिमार्ग का अंश भी नहीं रहता । अभी यह सब हिस्ट्री बच्चों को मालूम है, और बिचारे कोई जानते ही नहीं हैं । अभी तुम जानते हो कि जगदम्बा शिवबाबा द्वारा भविष्य 21 जन्म के लिए तुम्हारी सभी कामनाएँ फिर से पूर्ण कर रही है । जगदम्बा कर रही है किसके मत पर? उनका भी तो कोई होगा ना । बरोबर जगदम्बा श्रीमत पर चल मनोकामनाएँ पूर्ण कर रही हैं । बाबा ने समझा दिया है ना कि इस समय में जैसे मैं इनमें प्रवेश करता हूँ और बच्चों को बैठ करके ज्ञान सुनाता हूँ डायरेक्सन्स देता हूँ वैसे मैं अम्बा के भी शरीर में जा करके, इनके भी शरीर में जाकर के मुरली भी चलाता हूँ । बाबा ने बहुत दफा समझाया, पर उनको पता नहीं पड़ता है । कोई-कोई को पता पड़ता है और समझते हैं कि यह वाणी समझाने की तो मेरे में ताकत न थी, यह जरूर बाबा ने प्रवेश कर इतनी मुरली चलाई है । जो सच्चे बच्चे होते हैं, जिनको देहअभिमान नहीं है, वो झट बता देते है- ऐसे देखने में आता है कि आज जो मुरली चली तो वाह-वाह । बच्चे भी समझ जाते हैं कि आज तो यह ब्रह्माकुमारी ने मुरली कमाल कर दी, परन्तु वो ब्रह्माकुमारी की कमाल नहीं है । उस समय में बाप कहते हैं मैं प्रवेश कर देता हूँ क्योंकि बच्चों का शो मुझे करना है, नाम बाला करना है वा कोई बहुत ही तीखा है होने वाला बच्चा, अभी उनको इतना तो दृष्टि नहीं दे सकती है, तो मैं जा करके मदद करता हूँ, परन्तु कोई बताते है, कोई को अपना देहअभिमान होता है, जो खुद कहते नहीं है कि आज तो बाबा ने ही मुरली चलाई । मेरी ताकत नहीं थी । मेरे में इतना ज्ञान नहीं था । वो सच नहीं बताती है, क्योंकि देहअभिमान है । यह तो देखते हो कि बाबा हमेशा कहते रहते हैं कि बच्चे, तुम समझ सकते हो कि बाबा की मुरली, बाबा के महावाक्य और इनके महावाक्य में फर्क निकलता है. .क्योंकि दिव्य दृष्टि दाता तो बाप ही है । उनको ही टाइटिल है । परमपिता परमात्मा को कहा जाता है, क्योंकि ज्ञान का सागर तो है ही है । तो ज्ञान दाता, दिव्य चक्षुविधाता । कभी भी कोई मनुष्य को साक्षात्कार करा नहीं सकते हैं, क्योंकि वो चाबी बाप के पास रहती है । देखो, बाप साफ कहते है ना । बोलते हैं, मैं निष्काम सेवा करता हूँ । मेरे जैसा निष्काम सेवा करने वाला कोई मनुष्य हो नहीं सकता है । वो फिर बताते हैं कि देखो बच्चे, तुमको राजयोग सिखलाने आता हूँ । पतित दुनिया में मुझे आना पड़ता है, क्योंकि पतित सभी बुलाते हैं- हे पतित-पावन आओ! बुलाते तो हैं ना । अब इसमें सर्वव्यापी की तो बात ही नहीं उठती है । सभी अपन को पतित जरूर कहते हैं, क्योंकि यह है ही तमोप्रधान दुनिया । इसको कहा जाता है राक्षसों की दुनिया, रावण की दुनिया । इसका नाम भी ऐसे ही है- रावण राज्य, फिर रामराज्य । देखो, दोनों चीजें आती हैं ना । तो राम राज्य, रावणराज्य यानी एक है ईश्वरीय राज्य स्थापन करने का, दूसरा है फिर रावण का, जिसमें मनुष्य भ्रष्टाचारी बन जाते है । बाप आ करके सब बातों को समझाते हैं कि देखो बच्चे, मैं तो तुमको साधारण तन में आ करके राजयोग सिखलाता हूँ । और कोई राजयोग तो सिखला न सके । कोई भी हठयोग सन्यासी राजयोग तो नहीं सिखला सकेंगे ना, क्योंकि वो है निवृत्तिमार्ग । राजयोग है प्रवृत्तिमार्ग । इसमें राजा-रानी चाहिए । बरोबर इस भारत में सतयुग के आदि से आदि सनातन देवी-देवता धर्म था और बरोबर श्री लक्ष्मी और श्री नारायण का राज्य था । यह कोई नई बात नहीं है । यह तो कॉमन बात है । सब कोई जानते हैं । श्री लक्ष्मी-नारायण के मंदिर हैं और वो सतयुग के आदि में राज्य करते थे । अभी यह कलहयुग का अंत है, क्योंकि महामारी लड़ाई भी सामने खड़ी है । तो ये समझना चाहिए ना कि कलहयुग के अंत में तो बिल्कुल ही इनसॉलवेन्ट गवर्मेन्ट पतित । खुद कहते रहते हैं- भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट भ्रष्टाचारी राज्य, रावण राज्य । सभी कहते हैं- हे पतित-पावन, आओ । सभी पतित, क्योंकि सिवाय एक के तो कोई सद्‌गति कर नहीं सकता है । तो देखो, वो सद्‌गति देकर, गति दे करके, तुमको राजयोग सिखला करके, फिर बोलते है- बच्चे, मैं तुम्हारा बाप निष्काम सेवा करने वाला हूँ । फिर तुम राज्य करते हो । तो अभी कलहयुग का अंत हो गया और परमपिता परमात्मा हम और तुम बच्चों को राजयोग सिखला रहे हैं । अब ये राजयोग तो कोई निवृत्तिमार्ग वाले या सन्यासी तो सिखला नहीं सकेंगे ना, क्योंकि वो तो घरबार छोड़ते हैं । उसको कहा जाता है निवृत्तिमार्ग । यह है प्रवृत्तिमार्ग । सतयुग में प्रवृत्तिमार्ग निर्विकारी था । इसको कहा ही जाता था निर्विकारी दुनिया, वाइसलेस वर्ल्ड । तो ये भारत जब नया था नई दुनिया थी तो भारत ही नया था और ये लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे । उसको कहा जाता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म । कोई आर्य धर्म या फलाना-फलाना नहीं कहा जाता है ।.... .अब वो आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है । कोई भी पवित्र जोड़ा तो है नहीं । न राजा-रानी पवित्र है, न प्रजा पवित्र है । बरोबर राजा-रानी पवित्र थे और प्रजा भी पवित्र थी, इसलिए उसको स्वर्ग या निर्विकारी दुनिया कहा जाता था । यानी भारत था ना, दूसरा कोई धर्म तो था ही नहीं । अब अनेक धर्म भी हैं । भारत का आदि सनातन देवी-देवता के सिर्फ चित्र रह गए हैं । न धर्म है, न पवित्रता का वो कर्म है । तो अभी धर्म भ्रष्ट और कर्म भ्रष्ट । देखो, दुःखी हैं ना बरोबर । भारत कंगाल हो गया है ना । यह तो कहेंगे ना- भारत बिल्कुल ही मालामाल था । भारत सबसे बड़ा तीर्थ है, क्योंकि पतित-पावन का जो जन्म गाया जाता है कि शिवजयन्ती वा शिवरात्रि । तो जरूर इसको अवतार कहा जाता है । अभी कहेंगे शिवबाबा का अवतार । कैसे? वो बोलते हैं मैं एक साधारण तन में प्रवेश करता हूँ । नहीं तो मैं कोई छोटे बच्चे के तन में तो नहीं रह करके ज्ञान सिखला रहा हूँ ।.. .देखो, कृष्ण कितना छोटा दिखलाते हैं । अभी इसके शरीर में आकर या भृकुटी में बैठकर तो नहीं मैं ज्ञान सिखलाऊँगा । ये कोई अनुभवी तो है नहीं । छोटा बच्चा है । अब यह तो कोई नहीं कह सकेंगे कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच । देखो, जो शुरुआत में लिखा है, क्योंकि दिन-प्रतिदिन दुनिया तमोप्रधान होती है । उसने पहले लिखा है भगवानुवाच और वो है रुद्र ज्ञान यज्ञ । कृष्ण ज्ञान यज्ञ नहीं है । यह जो कहते हैं ना श्रीकृष्ण भगवानुवाच राजयोग और ज्ञान सिखलाते है । अभी कृष्ण कैसे सिखलाएगा? कृष्ण का भी चित्र सतयुग में ही होता है । तो कौन था जो कहते हैं कि भगवानुवाच? भगवान तो एक होता है ना । पतित-पावन को हम याद तो करते हैं ना । बरोबर सभी पतित भी हैं । देखो, जाते हैं गंगा में स्नान करने । क्यों? पाप धोने ।.. .वहां गाते भी हैं कि पतित-पावन आओ । तो जरूर कोई एक है ना । इसमें सर्वव्यापी की तो बात ही नहीं उठती है । एक जरूर है और वो बिलवेड मोस्ट । भक्तिमार्ग में सभी भगत उस एक को याद करते हैं, परन्तु एक का पता न होने कारण फिर ये भक्तिमार्ग में कोई यज्ञ, तप, दान, पुण्य, तीर्थ, शास्त्र वगैरह पढ़ते है । अच्छा, बाप समझाते है बच्चे भक्तिमार्ग में पढ़ते आए हैं, पढ़ते आए हैं, तहाँ कि अब आ करके कलहयुग का अंत बना है । सभी कहते हैं- हे पतित-पावन आओ । सब कहते हैं कि सब भ्रष्टाचारी गवर्मेन्ट हैं । देखो, भ्रष्टाचार है ना । मार झूठ कपट सब बात में झूठ ही झूठ है ।. .झूठी काया, झूठा सब संसार । अभी यह किसको कहेंगे? क्या सतयुग यानी नई दुनिया को कहेंगे? स्वर्ग को झूठा संसार कहेंगे? क्यों गाया जाता है कि झूठी माया यानी रावण का राज्य, आसुरी राज्य, आसुरी सम्प्रदाय? बोलते है झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । अब बाप आकर सिद्ध करके बताते हैं कि झूठा संसार कैसे है ।...... .मेरे लिए पहले नंबर की झूठ कि सर्वव्यापी है । कुत्ते में, बिल्ले में, फलाने में । देखो, ये झूठ है ना । नंबरवन झूठ । अभी भगवानुवाच, तो सर्वव्यापी है नहीं कभी भी । कभी कह ही नहीं सकेंगे एकदम, क्योंकि वो तो आया है पतित को पावन बनाने और राजयोग सिखलाने । अभी सबमें व्यापक... .राजयोग कैसे सिखलाएगा? वो तो समझते हैं ना कि सभी बच्चे पतित बन.... । कहा जाता है ज्ञान सागर के बच्चे काम चिता पर बैठ जलकर भस्म हो पड़े हैं, फिर मैं आ करके उनको ज्ञान चिता पर बैठाकर के..... । यह किसको पता ही नहीं पड़ता है । अरे, कलहयुग का अंत आ गया है, सामने लडाई खड़ी हुई है, मौत सामने । वो सब समझाते हैं कि कलहयुग तो अभी बच्चा है, अभी तो कलहयुग को 40 हजार वर्ष तो है और यहाँ सामने आकर... । तभी कहते हैं कि देखो, जब भंभोर को आग लगती है तो कुम्भकरण की नींद में सोए हुए फिर उस समय में जागते हैं । तो कहते हैं टू लेट । इतना उनको जगाते-जगाते न जागे हैं तो फिर जब आग लगती है उस समय में जागते है । अभी क्या करेंगे? क्या शिक्षा लेंगे? योग में रहेंगे? योग यानी याद में बहुत रहना पड़ता है । योग के लिए कोई आसन नहीं लगाना होता है । ये योग अक्षर ही ठीक नहीं है... । बाप क्या कहते हैं? हे मेरे लाडले बच्चों! तो देखो, बाप परमपिता परमात्मा आत्मा से बात करते हैं ना । यूँ भी बोलते हैं- आत्मा ऑरगन्स से बात करती है अपने भाई से । कोई भी बात करते हैं तो आत्मा बात करती है अपनी कर्मेन्द्रियों से दूसरों से । आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार रहते है । आत्मा कोई निर्लेप तो नहीं हो सकती है । यह भी तो झूठ बात है । बाबा ने कहा है- झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । कहते है कि आत्मा निर्लेप है । अरे भाई, आत्मा निर्लेप कैसे हो सकती है? आत्मा खुद कहती है मैं अच्छे-बुरे संस्कार अनुसार दूसरा शरीर लेता हूँ । तो बाप बैठ करके समझाते रहते हैं और हर बात अच्छी तरह से समझाते है कि जैसे देखो, जगदम्बा का अभी निकला । अभी जगदम्बा पर मेला तो बहुत ही लगता है । देखो, कितना मेला लगता है । पर क्यों लगता है? यह जगदम्बा पास्ट हो गई है । क्या करके गई है? जगदम्बा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण की है, इसलिए उनको कहा गया था- कामधेनु ।... -सभी कामनाएँ पूर्ण करने वाली भला कोई गइया होती है क्या? नहीं, ये तो मनुष्य होंगे । तो देखो, जगदम्बा का कितना है । अभी हो गया पास्ट । पास्ट सो फिर प्रेजेन्ट होती है । प्रेजेन्ट सो पास्ट । अभी देखो, शिवबाबा को पूजते रहते है, क्योंकि ये जो सृष्टि है, उनको आ करके शिवालय बनाते हैं । शिवबाबा है ना । तो शिवबाबा इस सृष्टि को, ये भारत को खास, शिवालय बनाते हैं । पीछे आधाकल्प के बाद रावण का राज्य शुरू होता है । वैश्यालय बन जाता है । तो अब ये वैश्यालय है ना । कहते हैं ना हम सभी पतित हैं, तो गोया ये वैश्यालय है । वैश्यालय किसने बनाया? रावण ने बनाया । शिवालय किसने बनाया? बाप ने बनाया.. । ये खेल है ना! बरोबर बुद्धि भी कहती है कि शिवालय में सुख ही सुख था । एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म था और ये भारत था, क्योंकि भारत जैसा ऊँच खण्ड और कोई है नहीं । बाबा कहते हैं कि अगर ये गीता में कृष्ण का नाम न डालते और निराकार परमपिता परमात्मा का नाम डालते । ज्ञानसागर भी तो वहां है, तो ये सबसे बड़ा तीर्थ, सब धर्म वाले इस तीर्थ को मानते, आ करके शिव के ऊपर फूल चढ़ाते । अभी तो जो बड़े आदमी मरते हैं उनके ऊपर फूल चढ़ाने आते हैं । नहीं तो भारत है सबसे बड़ा खण्ड, ऊँचा खण्ड, सबका तीर्थ, क्योंकि बाबा यही आते हैं तब सबकी सद्‌गति करते हैं । तो ये भारत खण्ड अविनाशी खण्ड है । भारत ही स्वर्ग था, जिसको पैराडाइज भी कहते हैं, हैविन भी कहते हैं । फिर वो हैविन सो हेल बना है, क्योंकि यह जो कथा बनी हुई है- हैविन टू हेल हेल टू हैविन । अभी दूसरा कोई भी खण्ड हैविन बनता नहीं है । यह भारत खण्ड ही हैविन बनता है, इसलिए भारत की बड़ी महिमा है । देखो, कितने मंदिर वगैरह भारत में है! तो हो गए हैं । शिवबाबा भी हो गए हैं । इसलिए शिव की पूजा.. । इतना शिवालय बनाते हैं या सोमनाथ का मंदिर बनाया । अच्छा, फिर देखो यहीं भारत में ब्रह्मा विष्णु शंकर के कितने मंदिर हैं, क्योंकि भारत में जितने मंदिर होते हैं इतने और कोई जगह में नहीं होते हैं । क्यों? ये शिवालय था ना । ये राज्य करते थे ना । ये लक्ष्मी नारायण भी पूज्य... श्री लक्ष्मी और नारायण राज्य करते थे । बरोबर वो पूज्य श्री लक्ष्मी और नारायण, उनको फिर पुजारी बनना है । यह भगवान को नहीं कहा जाता है- आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । ये जो हम देवताएं पूज्य थे, सो फिर पुजारी बनते हैं, क्योंकि 84 जन्म तो लेना पड़ता है ना । 21 जन्म पूज्य, पीछे जब वाममार्ग में जाते हैं तो फिर पुजारी बन जाते हैं । तुम बच्चे अभी कहेंगे हम अभी सो ब्राह्मण हैं । हम पहले सो शूद्र वर्ण के थे । अभी ब्रह्मावंशी होने कारण हम ब्राह्मण वर्ण में आ गए । ब्रह्मा की मुखवंशावली । प्रजापिता ब्रह्मा की मुखवंशावली तो सभी होते है ना । जब नई सृष्टि रची जाती है तो प्रजापिता ब्रह्मा की मुखवंशावली. । तो मुखवंशावली कितनी होनी चाहिए! यह कौन एडॉप्ट कर रहे हैं? परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा द्वारा । बाप ने बताया कि बरोबर ब्रह्मा ही एक बच्चा है जिस द्वारा इतनी प्रजा होती है, एडॉप्ट करते जाते हैं । तो तुम कहलाते हो... । अभी वास्तव में सभी प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हैं जरूर, क्योंकि वो बड़ा सिजरा है ना । ये ब्रह्मा को कहते हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर ।.. .ब्रहमा को कहेंगे प्रजापिता..। सरस्वती को ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड मदर कहेंगे, क्योंकि सिजरे की ऊँच थी । वास्तव में..पहले-पहले बिरादरी ब्राह्मणों की, पीछे बिरादरी देवताओं की, पीछे क्षत्रियों की, चंद्रवंश की, पीछे वैश्यों की और पीछे शूद्रों की । नहीं तो पहले-पहले है इन सबका जिस्मानी ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर प्रजापिता ब्रह्मा । रूहानी तो शिवबाबा है ही है, इसको शिव ही कहते है । शिव का नाम नहीं बदलता है । देखो, यहाँ भी शिव का नाम बदलता नहीं है । वो बोलते हैं कि यह कोई मेरा शरीर थोडे ही है । बाकी जो भी आत्माएँ है, पुनर्जन्म लेती है शरीर का नाम बदलता जाता है । आत्मा का नाम तो नहीं बदलता है ना । आत्मा खुद कहती है कि एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ । तो फिर खुद आ करके समझाते हैं- बच्चे, मैं सर्वव्यापी कैसे हो सकता हूँ! मेरे को कहते हैं- हे पतित-पावन । सो बरोबर विवेक कहता है कि पतित-पावन कलहयुग के अंत में आते है और पावन दुनिया सतयुग स्थापन करते हैं । तो जरूर नई दुनिया वो स्थापन करेंगे ना । गाया भी जाता है त्रिमूर्ति ब्रह्मा । त्रिमूर्ति ब्रह्मा का अर्थ तो कोई निकलता नहीं है । वो फिर समझते है कि ब्रह्मा को तीन मुख हैं । अरे, तीन मुख वाला कोई मनुष्य होता है क्या? नाम ही अलग रखते है- ब्रह्मा, विष्णु और शंकर और तुम कहते हो ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शकर द्वारा विनाश, फिर विष्णु द्वारा पालना । तो बरोबर जिनको राजयोग सिखलाते हैं वो लक्ष्मी और नारायण फिर जाकर पालना करते हैं । दोनों को मिला करके सूक्ष्मवतन में विष्णु को दिखलाते हैं । ब्रह्मा द्वारा स्थापना । तो जिस ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण और ब्राह्मणियों की स्थापना उनको ज्ञान देने वाला शिवबाबा । तो देखो, वो फिर राजयोग है ना । तो फिर जा करके लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । प्रवृत्तिमार्ग का जोड़ा दिखलाते है । अभी तुम फिर से..... कहते है वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट । तुम देवी-देवताएँ भारत में थे, फिर क्षत्रिय बने, फिर वैश्य बने, फिर शूद्र बने, अभी ब्राह्मण बने हो और फिर.. इस समय में अगर कोई हिसाब करे तो कहेंगे प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा सरस्वती हैं ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड । जैसे ऊपर मे होता है- फादर, ग्रैण्ड फादर, ग्रेट ग्रैण्ड फादर. ... । तो ये धर्म भी ऐसा ही है । पहले पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म । वो कैसे स्थापन हुआ? लक्ष्मी को ग्रैण्ड मदर नहीं कहेगे । नारायण को ग्रैण्ड मदर(फादर) नहीं कहेंगे । उनको तो स्वर्ग के फर्स्ट पूज्य महाराजा-महारानी कहेंगे । तुम अभी ऐसे कहेंगे हम सो पूज्य देवी-देवता थे । देखो, हम सो का अर्थ । वो तो कहते हैं हम आत्मा सो परमात्मा, सो परमात्मा हम आत्मा । यह उल्टा अर्थ निकाल दिया है । नहीं तो तुम क्या कहेंगे? हम इस समय में सो ब्राह्मण है, फिर इनके बाद सो देवता बनेगे, फिर सो देवता से हम सो क्षत्रिय बनेंगे यानी चंद्रवंशी में आएँगे, फिर हम सो चंद्रवंशी से सो वैश्यवश में आएँगे, क्योंकि 84 जन्म तो लेना पड़ता है ना । इसके लिए वर्ण गाए गए हैं । हम सो फिर वैश्य सो शूद्र बनेंगे । इतना जन्म लेंगे । हम सो शूद्र फिर अभी ब्राह्मण बने हैं । हम सो ब्राह्मण फिर सो देवता बनेंगे । 84 जन्मों का भी तो हिसाब चाहिए ना । सब तो 84 जन्म नहीं लेते है । दूसरे जो धर्म हैं. .पीछे-पीछे आते हैं उनका थोडा जन्म होगा । मैथेमेटिक्स का भी तो हिसाब है ना । बाप बैठ करके यह सारा चक्र कैसा फिरता है वो तुमको समझाते हैं, त्रिकालदर्शी बनाते हैं । और तो कोई जानते ही नहीं हैं । इस दुनिया में कोई भी मनुष्य मात्र.... .कि ये स्वदर्शन सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, पहले पहले, 84 जन्म कौन लेते हैं, क्योंकि कहते है ना आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल । अभी सर्वव्यापी का ज्ञान तो उठ गया । फिर कहते है कि आत्माएँ परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुन्दर मेला यानी यह ऑस्पिशस मिलन, महाकल्याणकारी मिलन । किसका? आत्माएँ और परमात्मा का । किनसे? कौन-सी? जीवआत्माएँ जो पहले पहले आती हैं, बहुत काल से.... । पहले-पहले तो भारत में देवी-देवताओं का ही धर्म होता है । वहां बिछड़ते हैं, तो जरूर पिछाड़ी में भी उनसे ही पहले मिलेंगे । जो भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की जीवात्मात्माएँ थीं, जो पुनर्जन्म ले करके अभी शूद्र बने है, फिर वहां आएगी. । तो जैसे सैपलिग लग रहा है, क्योंकि वो देवताएँ कनवर्ट हो गए । कोई हिन्दू कहलाने लगा, कोई बुद्ध धर्म में चले गए, कोई आर्य समाजी में, कोई किस धर्म में-, । सब चले गए । देवी-देवता कहने वाले एक भी नहीं बचा कि हम कोई देवी-देवता धर्म के हैं । आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं, कोई भी नहीं मानते हैं । अगर कहते भी हैं तो वो कहते हैं आदि सनातन हिन्दू धर्म के हैं । अभी हिन्दू तो हिन्दुस्तान का नाम है, कोई धर्म तो है नहीं । अभी देखो, बाप कितना अच्छी तरह से बैठ करके समझाते हैं । फिर कोई समझते हैं, कोई न भी समझते हैं। सो भी तो गाया हुआ है कि परमपिता परमात्मा...... देखो, बात बनाई है श्रीलक्ष्मी को ज्ञान अमृत का कलश मिला । वो असुरों को देवता बनाने के लिए पिलाती रही । फिर कोई असुर भी आ करके बैठे । ऐसे कहते हैं ना! कथा है । फिर उसने सुन करके जा करके औरों को उल्टा-सुल्टा बताया, क्योंकि उस धर्म का नहीं था । वो उल्टा-सुल्टा समझा । तो जाकर दूसरों को बताया, बहुत घमसान मचाया । ये भी आखानियाँ हैं बरोबर, क्योंकि तुम हो अभी दैवी सम्प्रदाय । वो है फिर रावण राज्य वाले आसुरी सम्प्रदाय । वो हो गए पतित, अभी तुम पावन बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो । तुम अपन को पावन नहीं कह सकती हो । तुम पावन बनने के लिए पुरुषार्थ करती रहो । पुरुषार्थ कौन कराते है? पतित-पावन । फिर तुम पावन बन जानी ही है जरूर, क्योंकि पावन दुनिया जरूर स्थापन होगी । अनेक धर्म विनाश होने का जरूर है, क्योंकि कलहयुग पूरा होता है, फिर सतयुग शुरू जरूर होगा । सतयुग का आदि सनातन देवी-देवता धर्म तो यही सगम पर है ना । तो तुम बच्चों के लिए यह संगम है । बाकी मनुष्यों के लिए कलहयुग है । जो फिर मनुष्य समझते है कि कलहयुग तो अभी 40 हजार वर्ष है तो गोया घोर अंधियारे मे हैं । यहाँ विनाश सामने है और वो कहते हैं कलहयुग तो अभी 40 हजार वर्ष है । अब ये शास्त्रों में गाया हुआ है । तो बाप आकर समझाते हैं कि बच्चे, ये जो भी वेद, शास्त्र, यज्ञ, तप, दान, पुण्य वगैरह है ये सब हैं भक्तिमार्ग की सामग्री । इनसे कोई भी मुझे प्राप्त हो नहीं सकता है, क्योंकि मुझे गाते ही है कि पतित-पावन आओ । तो जब दुनिया पूरी पतित हो जाती है, कलहयुग पूरा हो जाता है, तभी तो मैं आऊँगा ना । मैं युग युग में आकर क्या करूँगा? मैं आता ही हूँ जबकि इस पतित दुनिया को पावन बनाना है, पुरानी दुनिया को नया बनाना है । नहीं तो मैं क्या करूँ? सतयुग से त्रेता होना ही है जरूर । यानी कलाएँ कमती होनी है जरूर । पीछे त्रेता से कलाएँ कमती हो करके फिर द्वापर आना ही है । तो वो है उतरती कला । उतरती कला उतर-उतर के तमोप्रधान दुनिया आ गई । अभी फिर तुम्हारी है चढ़ती कला । किसकी चढती कला? सारे सृष्टि की, क्योंकि वो सृष्टि का मालिक है ना । सारे सृष्टि की चढ़ती कला अर्थात् सर्व का सद्‌गति दाता वो । बरोबर तुम जाती हो, अपना राजभाग लेती हो । बाकी जो भी हैं उनको मुक्ति मिल जाती है । चाहे अभ्यास करे या न करें तो भी जाना जरूर है, क्योंकि हिसाब-किताब चुक्तू करके.. .. । यह कयामत का समय है ना । इसको अंग्रेजी मे कहा ही जाता है- सेग्रिगेशन का टाइम यानी सबको हिसाब-किताब चुक्तु .करके फिर वापस जाना है ।.... फिर नए सिर सबको खेल करना है । फिर फिर से देवी-देवता धर्म अथवा सूर्यवंशी धर्म.... । फिर.. .दूसरे धर्म होंगे ही नहीं । पीछे द्वापर से फिर दूसरे धर्म आएँगे । यह जो आखानी स्टोरी या कथा कहा जाती है, सो बनी हुई है भारत के ऊपर । भारत स्वर्ग, भारत नर्क । भारत स्वर्ग से नर्क कैसे बनते है, फिर नर्क से स्वर्ग कैसे बनते है, ये है कथा । इसको कहा जाता है सत्यनारायण की कथा, जो बाप आ करके समझाते है । नर को नारायण बनाने की सच्ची कथा । अभी तुम सच्ची. .. । वो जो कथाएँ सुनते थे, झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार, झूठी कथाएँ । कितनी कथा है? सत्यनारायण की कथा, अमरकथा, तीजरी की कथा, फलानी कथा । अभी वो सभी झूठी और ये है सच-सच रियल, क्योंकि बाप तो सच है ना । एक को ही ट्रुथ कहते है । बाप को ट्रुथ सच कहते है । ये सच ही बोलेंगे । बाकी जो ये मनुष्य हैं..... क्योंकि तुमको ऐसा सच सिखलाते हैं, जो सतयुग-त्रेता में कोई झूठ होता ही नहीं है । इसलिए उनको स्वर्ग कहा जाता है । कोई भी झूठ नहीं बोलते हैं । फिर जब रावण का राज्य शुरू होता है तो पीछे झूठी माया, झूठी काया बनते रहते हैं. .बिल्कुल ही झूठ, सच की रत्ती भी नहीं । तो फिर सच को आना पड़ता है । फिर सतयुग में झूंठ की रत्ती भी नहीं । अभी अच्छी तरह से समझते हो ना । अच्छा, टाइम हो गया है ।.. आत्माएँ दूर देश से आती हैं । वो भी तो आत्माओं का देश है ना । उसको कहा जाता है निर्वाणधाम देश या इनकोरपोरियल वर्ल्ड यानी निराकार दुनिया । वो कोई ब्रह्म नहीं है । नहीं, ब्रह्म महतत्व में रहने वाली आत्माएँ, ऐसे कहेंगे । ऐसे नहीं है कि आत्मा को ब्रह्म कहा जाता है या परमपिता परमात्मा को ब्रह्म कहा जाता है या तत्व कहा जाता है । ये जो तत्व योगी होते हैं, वो ब्रह्म को परमात्मा मानते हैं । उनके साथ योग.. .हम ब्रह्म में लीन हो जाएँगे । उनका बुद्धि, विचार ये है । यानी ड्रामा अनुसार उनकी बुद्धि में यही ज्ञान है । बाप आकर समझाते है कि ब्रह्म महतत्व है । जैसे यह आकाश है, इसमें मनुष्य रहते हैं । आत्माएँ ब्रह्म महतत्व से आती हैं, .. .आकाश तत्व में आकर, शरीर धारण करके कर्म करती हैं । इसको कर्मक्षेत्र कहा जाता है । आत्माएँ कहाँ से आती हैं? परमधाम से । तो परमधाम से बाप को भी आना पड़े, क्योंकि पतितों को, जो काम चिता पर जल गए हैं, उनको फिर जगाए कौन? तो बाप बोलते है कि मैं भी दूर देश से आता हूँ जरूर पतितों को पावन करने । तो पतित शरीर मे, पतित दुनिया में मुझे आना पड़ता है, क्योंकि पावन शरीर एक भी नहीं होता है, परन्तु नहीं, बाप आ करके कहते है कि तुम्हारी आत्मा पतित बन जाती है । इसको मैं आ करके रूहानी इंजेक्शन लगाता हूँ । आत्मा को पवित्र बनना है । यह जो सच्चा सोना है, यह झूठा हो गया है । इसमें अलॉय पड़ गई है । इसको कहा जाता है गोल्डन एज्ड सिल्वर एज्ड कॉपर एज्ड, आयरन एज्ड । इस समय में सबकी आत्मा में ये अलॉय पड़ गई है, इसलिए आत्माएँ झूठी बन गई है । इसलिए इसको कहा ही जाता है तमोप्रधान आत्मा । तो आत्मा तमोप्रधान अलॉय है तो तमोप्रधान शरीर भी है । सच्चा सोना है तो सच्चा जेवर है । सोने में अलॉय है तो जेवर भी झूठा हो जाता है । सोने में अलॉय पड़ने से जेवर झूठा तो जरूर बनेगा ना, नहीं तो सच्चा.. .. । तो सतयुग में सभी आत्माएँ पवित्र है और प्रकृति भी पवित्र है । इस समय मे यह प्रकृति, जिससे शरीर बनता है, वो भी तो झूठी, ये तत्व भी झूठे, तमोप्रधान । देखो, आकाश में तूफ़ान लग जाता है, तूफान लग जाता है, बोल्ट हो जाता है । सतयुग में ऐसे तो नहीं होगा । वहां कोई भी दुःख की बात नहीं है । तुम्हारे ये जो तत्व है, वो भी तुम्हारे गुलाम बन जाते है । कभी भी दुःख नहीं दे सकते है । इसलिए तो उसको स्वर्ग कहा जाता है । तो स्वर्ग में ही जाने वाले या देवी-देवता बनने वाले ही ये ज्ञान उठा सकेंगे । दूसरा कभी कोई उठा ही नहीं सकेगा, भले कितना भी कोई सुने । पीछे छुट्‌टी देंगे। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे अर्थात् 5000 वर्ष बाद फिर से आ करके मिले हुए, बाप से वर्सा लेने वाले । अभी वर्सा गुमाया हुआ है ना । देखो, भारत कंगाल है । बाप आते हैं भारत में । शिव जयन्ती, शिव का मंदिर, सोमनाथ का मंदिर भी यहाँ बनते हैं । यहाँ क्यों आते है? भारत को स्वर्ग बनाने । फिर इस भारत को नर्क कौन बनाते हैं? यह रावण पाँच विकार, देहअभिमान फिर काम, क्रोध, लोभ, मोह । उसमें नंबरवन है देहअभिमान । पीछे है ये पाँच विकार । तो वहाँ रहते है देहीअभिमानी, यहाँ रहते हैं देहअभिमानी । तभी कहते हैं- हे बच्चे! देहीअभिमानी भव यानी यह जो स्व शरीर है, इनका भी त्याग करो । देह सहित जो भी तुम्हारे संबंध है गुरू-गोसाई चाचा काका मामा. जो कुछ भी हैं उनको भूल अपने एक बाप को याद करो । इस योगाग्नि से तुम्हारा जो विकर्म है, वो दग्ध हो जाएँगे, फिर पवित्र बन जाएँगे । अच्छा! ऐसे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।