02-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग ये दो जून का रात्रि क्लास है
जैसे लौकिक माँ-बाप को बच्चे प्यारे लगते हैं तैसे बेहद मात-पिता... क्योंकि रचना तो हैं ना । तो जरूर मात-पिता ही होंगे । सिर्फ बाप तो नहीं होंगे । बेहद के माँ-बाप को भी बच्चे बहुत प्यारे लगते हैं, सभी बच्चे प्यारे लगते हैं, क्योंकि सर्व का सद्‌गति दाता है । सब बच्चों को वो जानते हैं । इस ड्रामा के आदि, मध्य, अंत को जानते हैं । मनुष्य नहीं जान सकते हैं । मनुष्य इन शास्त्रों को बहुत जानते हैं । भक्तिमार्ग के शास्त्रों... .बड़ा नशा चढ़ता है । बच्चों को कहते हैं कि तुमको भी शास्त्रों का और गुरुओं का नशा चढ़ा हुआ है । फिर भी ऐसे ही बोलते हैं कि ये तो भक्तिमार्ग की वस्तु हैं ना । भक्तिमार्ग को तो कहा ही जाता है रात, क्योंकि उतरती कला है । एक होती है चढती कला, दूसरी होती है उतरती कला ।.. .जैसे 16 कला सम्पूर्ण चंद्रमा, पीछे चंद्रमा की क्या जाकर रहती है? एकदम नन्हीं-सी एक लीक है । ये भी ऐसे ही है । ये सारी सृष्टि शुरुआत में सम्पूर्ण चंद्रमा, 16 कला । पीछे उतरती जाती है, उतरती जाती है । यह बेहद की बात है । वो सब हद की बातें हैं । बाप को याद भी सभी बच्चे करते हैं, क्योंकि भक्तिमार्ग माना सभी भगत हैं । साधु हैं, बंदगी करने वाले हैं, साधना करने वाले हैं, सभी भगत हैं । भक्तों का भगवान एक है, परन्तु उन एक को न जानने के कारण कई प्रकार की बातें लिखी है । वो बाप बैठकर समझाते हैं- बच्चे, पहले अव्यभिचारी भक्ति, फिर उनको सतोप्रधान भक्ति कहेंगे । जैसे ज्ञान में भी है- सतोप्रधान फिर सतो फिर रजो फिर तमो । ऐसे भक्ति भी है । सतोप्रधान अव्यभिचारी भक्ति सिर्फ एक है । उनको सभी याद करते हैं, मंदिर बनाते हैं, पूजते हैं, सब कुछ करते हैं । पीछे.. सतोप्रधान से सतो में, फिर देवताओं... .जो स्वर्ग के या आदि सनातन धर्म के, विश्व के मालिक थे । पीछे और नीचे गिरते हैं । पीछे उसको कहा ही जाता है 'भूत भक्ति' । ये मनुष्यों को, साधु संत महात्मा को पूजते हैं, फिर मिट्‌टी आदि को । गिरते-गिरते चींटियों को, मछलियों को, बंदरों को, हनुमानों को, सब.... । तो इस समय में यह हो जाती है व्यभिचारी और तमोप्रधान भक्ति । इस समय को वास्तव में गरूड़ पुराण में कहते हैं- यह तो रौरव नरक है । यानी बस, पिछाड़ी आ गई । मनुष्य बड़े दुःखी हैं । सब दुःखी-दुःखी । अगर सुख भी है तो अल्पकाल क्षणभंगुर । बाप ही समझाते हैं कि देखो, भारत क्या था, अब क्या है! अब बच्चों को समझाना यह तो बाप का काम है ना । तो बस बाप ही आते हैं, आकर के प्रैक्टिकल बच्चे-बच्चे करके पुकारते हैं, क्योंकि आत्मा में ही सभी संस्कार हैं । चलो, बैरिस्टरी करी पढी । तो भी किसने पढ़ी? आत्मा ने उन ऑर्गन्स रूपी शरीर द्वारा पढ़ी- मैं बैरिस्टर हूँ । तो ' 'मैं-मैं-मैं' ' कौन कहता है? मैं आत्मा कहता हूँ और अपने शरीर से कहता हूँ कि अभी बैरिस्टर बन गया हूँ क्योंकि ड्रामा का पार्ट आत्मा में भरा हुआ है । यह बहुत वण्डर है! यह कोई की बुद्धि में बड़ा मुश्किल बैठता है कि आत्मा इतनी छोटी-सी स्टार के मुआफिक और 84 जन्म । अगर कोई 84 लाख जन्म कहे तो इम्पॉसिबुल कह देवे । एक इतनी स्टार में अगर कोई कहे 84 लाख जन्म है, ये तो इम्पॉसिबुल बात है । हाँ, 84 जन्म हो सकते हैं जो बाप आकर समझाते हैं.... । बच्चों को कहते हैं कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो । मैं तुमको समझाता हूँ कि तुम 84 जन्म का चक्कर कैसे पास करते हो, फिर कैसे रिपीट करते हो । तो अभी समझ की बात हुई ना । यह कोई साधु संत महात्मा नहीं समझा सके । बाप बच्चों को समझाते हैं, क्योंकि आत्मा ही इन ऑर्गन्स द्वारा सब कुछ समझती है । आत्मा में ही संस्कार रहते हैं । शरीर छोड़ा, फिर आत्मा संस्कार अनुसार दूसरा लेती है । अभी पहले यह विचार नया होता है ।....... .कोई ने कितने भी शास्त्र पढ़े हुए हों, परन्तु उनको यह तो समझ में नहीं आता है ना कि आत्मा बिल्कुल ही एक बिन्दी जैसी है, स्टार के मुआफिक । उसमें 84 जन्म का इम्पेरिशेबल पार्ट बजा हुआ है। इसको कहा जाता है प्रीऑरडेण्ड इम्पेरिशेबल वर्ल्ड ड्रामा । यह वण्डर है ना! इसको वंडर कहा जाता है । एक छोटी-सी आत्मा में 84 जन्म का पार्ट, सो पार्ट भी फिर इम्पेरिशेबल जो उनको फिर रिपीट करना है । इन सब बातों को ग्रहण करने की बुद्धि चाहिए ना । कौन समझाते हैं? बाप बिगर बच्चों को कोई नहीं समझा सकते । तो निश्चय होना चाहिए ना कि इनकॉरपोरियल निराकार बाप समझाते हैं । ये बातें किसको मनुष्य नहीं समझा सकते हैं । नॉलेजफुल बाप को कहा जाता है ।........ .तब कहेंगे मास्टर नॉलेजफुल । जब वो है नहीं तो कोई नॉलेजफुल कैसे बन सकते हैं? तो ये नॉलेज क्या है? ये भक्ति की, शास्त्रों वगैरह की.... । उनके लिए ये बाप आकर समझाते हैं कि बच्चे, तुमने ये जो तीर्थ, यज्ञ, तप, दान वगैरह सब किए हैं, उनसे कोई मैं थोडे ही किसको मिल सकता हूँ, क्योंकि ये भक्तिमार्ग है । मैं जब आता हूँ तो तुम बच्चों को इस सृष्टि के आदि मध्य अंत का राज समझाता हूँ जो कोई नहीं समझा सके । मैं ज्ञान का सागर हूँ ना । फिर कह देते हैं कि जो कुछ भी तुम पढ़े हो, जो भी पास्ट तुमने देखा है, समझा है, वो सभी देह सहित, देह के जो भी तुम्हारे धर्म हैं, सब छोड अपन को अभी सिर्फ आत्मा समझो । जीते जी मर जाओ । तो सब तुम्हारा वो भूल जाए, क्योंकि अभी तुमको वापस जाना है, तुम्हारा पार्ट फिर से रिपीट करना है । इसलिए जो कुछ भी पढ़े हो, शास्त्र पढ़े हो, वेद पढ़े हो, जो कुछ भी तुमने जन्म-जन्मांतर किया है, इन सब बातों को भूल जाओ यानी अशरीरी बन और मुझे याद करो । तो अशरीरी बनने से तुम्हें सब भूल जाना चाहिए ना, क्योंकि उनसे कोई फायदा तो हुआ नहीं । शास्त्रों के ऊपर, मंदिरों आदि के ऊपर बहुत लाखों रुपया खर्चा करते- करते ये क्या हो गया? साधु संत महात्माओं के पिछाड़ी खर्चा करते करते फिर उनसे फायदा क्या हुआ? अगर फायदा भी हुआ तो भी अल्पकाल क्षणभंगुर । बेहद का फायदा तो नहीं हुआ ना । फिर भी कला तो उतरनी ही है ना । सतोप्रधान नई दुनिया सो पुरानी होनी है । देखो, यह मकान अभी सतोप्रधान है, नया बना है, पीछे वो पुराना लगा हुआ है ना । उसको कहा ही जाता है तमोप्रधान । अभी नया बन गया तो वो टूटेगा । यह भी बेहद की दुनिया है । यह पुरानी तमोप्रधान हो गई । सब एक्टर्स ने अपना पार्ट पूरा बजाया है । अब फिर से नए सिर पार्ट बजाना है । तो पहले पार्ट बजाने कौन आएँगे? आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले, जो धर्म प्राय:लोप हो गया है । ऐसे जैसे बनियन ट्री है, जिसको वट का झाड कहते हैं । बहुत बड़ा बड़ा होता है । एक बड़ा कलकत्ते में है । उनका फाउण्डेशन सड़ गया है, बाकी सब खड़े हैं । यह देवी-देवता धर्म का फाउण्डेशन भी सड़ गया है, बिल्कुल नहीं बचा है । कोई भी अपन को देवी-देवता नहीं कह सकते हैं । बाकी सब खड़े हैं । अब जब..... .तो फिर होना चाहिए । तो फिर उसकी स्थापना हो रही है । जब ये स्थापना पूरी हो जाएगी तब वो सभी धर्म खलास हो गए । यह सिद्ध होता है कि जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म अभी सड़ गया है, प्रायःलोप हो गया है, वो सतयुग में होगा, फिर दूसरे नहीं होंगे । जब न हों तब तो फिर से रिपीट हो ना । अब ये तो बहुत सहज समझने की बातें हैं, कोई मुश्किल तो हैं नही । मैं नहीं समझता हूँ कि इसमें कोई भी संशय नहीं उठ सकता.... भला भगवान कैसे आएँगे, भगवान तो कभी आते नहीं हैं । फिर शास्त्रों में जो लिखा हुआ है, जिसको गपोड़े कहा जाता है, क्योंकि इसको गपोड़े तो कहेंगे ना । ये तो बाबा ने बहुत समझाया है और समझाते हैं । ड्रामा में बनी-बनाई नूंध है । फिर भी ऐसे ही होगा । अभी जज करो । मैं समझाता हूँ । मैं जानता हूँ कि तुमने भक्तिमार्ग के ये सभी शास्त्र बहुत पढ़े हैं और मूंझ गए हो । देखो, पढूते-पढ़ते कोई फायदा तो नहीं हुआ है । एकदम भ्रष्टाचारी बन गए हो । भ्रष्टाचारी किसको कहा जाता है? एक, जो विख से पैदा होते हैं । दूसरा, भ्रष्टाचारी क्यों कहा जाता है? पापात्मा क्यों कहा जाता है? अरे, तुम कितना अपकार करते हो । माया के मत पर अपने बाप की कितनी बदनामी करते हो, फिर देवताओं की बदनामी, सबकी बदनामी ही लिखी हुई है । बाबा ने समझाया था कि ये जो क्रिश्चियन लोग हैं, पादरी लोग जब आ करके लेक्चर्स करते हैं तो वो सब बताते हैं कि तुम्हारा राम ऐसा, कृष्ण की न 16108 रानियाँ थीं, कितना विषयी था । तो ये बातें कहाँ से आई? ये सभी शास्त्रों में हैं । अरे, ऐसी बाते! फिर कहते हैं कि भगवान ने भागवत, रामायण आदि ये सब बनाया । अब भगवान कहाँ से बैठकर बनाएगा! बाप आ करके सब समझाते हैं कि ये सभी भक्तिमार्ग की है, जिससे फिर उतरती कला होती है । फिर जब भक्ति पूरी होती है तो मुझे आना होता है, फिर भक्ति से छुड़ाता हूँ । फिर सतयुग-त्रेता में एक ही धर्म होता है । वहाँ भक्ति तो होती नहीं है । भगत दुःखी होते हैं तब भगवान को याद करते हैं । सतयुग में कोई याद नहीं करते हैं । तो कितनी सहज समझने की बातें हैं, फिर भी कई-कई क्यों नहीं समझते हैं? न है उनका पार्ट और न उनको ऊँच पद प्राप्त करना है । जास्ती नहीं समझते हैं तो फिर साधारण प्रजा में आ जाएँगे, क्योंकि यहाँ राजधानी स्थापन हो रही है ना । नहीं तो सतयुग में ये देवी-देवता कहाँ से आए! तो इस संगमयुग को ही कॉनफलुएन्स कहा जाता है । यह जो कुम्भ कहा जाता है, तो वो नदियों और सागर या नदियों, नदियों का कुम्भ नहीं है । तुम बच्चियाँ ज्ञान की नदियाँ हो ना, तो आपस में भी मिलती हो । जैसे नदियाँ भी आपस में मिलती हैं ना । सब नदियों का छोर कहा जाता है सागर में । निकली भी सागर से, पड़ती भी सागर मे हैं । यह पानी सागर से निकले हैं ना! कहाँ से निकला है? नदियाँ सागर से ही निकलती हैं । तो अभी उस सागर से निकली हुई नदियों को कोई पतित-पावन थोड़े ही कहेंगे । पानी को पतित-पावन थोड़े ही कहा जाता है । देखो, कितना अज्ञान है कि कहते हैं- गंगा है पतित-पावनी । अब सागर से निकला पानी थोड़े ही पतित... .फिर दूसरी तरफ में कहते हैं- हे पतित-पावन । फिर याद करते हैं ऊपर । वास्तव में इसमें कोई मूँझने की बात नहीं है, मेहनत है, क्योंकि लड़ाई है । तुम बाप को याद करेंगे और माया वहाँ से योग तुड़ाएगी । जैसे इसका आखानी है कि परमात्मा ऐसे अपने तरफ खैचेंगे और माया अपने तरफ खैचेगी । तो इसको युद्ध का मैदान कहा जाता है । गाँधी आदि जो नॉन वायोलेन्स कहते रहते हैं, उन बिचारों को क्या मालूम कि नॉन वायोलेन्स का अर्थ क्या है । नॉन वायोलेन्स सिवाय बाप के और तो कोई सिखला ही नहीं सकते हैं । नॉन वायोलेन्स का पहला-पहला अर्थ है- यह जो हिंसा है, एक दो के ऊपर काम-कटारी चलाना, नबरवन दुश्मन है । तो गोया रावण रूपी माया पाँच विकार भारत के पुराने दुश्मन हैं । ये तो बाहुबल के दुश्मन हैं ना । भारत का पुराने ते पुराना दुश्मन यह रावण है, जिसकी एफीजी को जलाते आते हैं । मुट्ठा मरता-जलता ही नहीं है । दिन-प्रतिदिन उसको 2-7-5 इज लंबा करते जाते हैं, क्योंकि बरोबर यह रावण की आयु और ही बड़ी होती जाती है, तो और ही जास्ती तंग करता रहता है । अब ये सभी समझने की बातें हैं । किसको कोई भी संशय हो तो अच्छी तरह से उसमें भी संशय किसको कभी नहीं आएगा जब तलक वो समझेगा कि बरोबर हम सभी आत्माओं का बाप, बाप है, इसलिए हम सब ब्रदर्स हैं । कहते भी हैं कि दिस इज ऑल ब्रदरहुड यानी सभी आत्माएँ आपस में भाई हैं, परमात्मा बाप है । जो भी हैं सब हो गए ना । जब ब्रदरहुड हुआ तो बाप चाहिए ना । अगर कहेंगे- शिवोहम्, सर्वव्यापी है तो सभी बाप हो जाते हैं, फिर फादरहुड हो जाते हैं । इतना भी बुद्धि काम नहीं करती है । बाप बैठकर समझाते हैं कि सर्वव्यापी का अर्थ ही कुछ नहीं निकलता है । तो बाप को जब जानते हैं, वो कहते हैं कि मैंने आ करके तुमको राजयोग सिखलाया था । न कृष्ण भगवानुवाच, पर निराकार शिव भगवानुवाच ब्रह्मा द्वारा । यज्ञ के लिए कोई ब्राह्मण जरूर चाहिए । सतयुग में तो कोई ब्राह्मण हैं नहीं । सतयुग में तो देवता धर्म है । यह ब्राह्मण धर्म तो पीछे होता है । जब पूजा शुरू होती है तब ये कुखवंशावली ब्राह्मण होते हैं । तुम हो मुखवंशावली ब्राह्मण । ब्राह्मण खुद ही मानते हैं और गाते हैं- ब्राह्मण देवी-देवताय नम: यानी उन ब्राह्मणों को जो देवी-देवता बने उनको नमः । उनको ब्राह्मण और फिर देवी-देवता किसने बनाया, यह किसको भी पता नहीं है । ऐसे ही गाते रहते हैं- ब्राह्मण देवी-देवताय नमः । अरे, ब्राह्मण कहाँ से आया? वो तो ब्रह्मा की मुखवंशावली हुई । अभी तो कोई मुखवंशावली है नहीं । सब कुखवंशावली । मुखवंशावली हैं रूहानी पण्डे । वो हैं जिस्मानी पण्डे । यह परमपिता परमात्मा का बच्चा ब्रह्मा हुआ ना । बाबा ने बहुत समझाया था कि ऐसे नहीं कहेंगे कि उनका बच्चा विष्णु भी है । ये जो चित्र बनाए हैं, ये सभी भक्तिमार्ग के खिलौने हैं, गुड्‌डी पूजा । ये बाप आकर समझाते हैं । नहीं तो भगत थोड़े ही ऐसे समझते हैं । बाप आकर समझाते हैं कि सब क्या कर रहे हो! भला क्या करते हो! बरोबर गुड़ियाँ बनाते हो ना । जब दीपमाला आती है, देवियों की पूजा करते हैं । बंगाल में तो बहुत दस्तूर है, पर कहाँ नाक वाले गणेश को निकालते हैं पूजा करके तो कहीं पूँछ वाले हनुमान की पूजा करते हैं और क्या बातें लिखी हैं कि पूँछ को आग लगाई और लंका जल गई । अब यह सब किसने बैठ करके बनाया? व्यास भगवान ने । अरे, भगवान ऐसे काम थोड़े ही करते हैं । भगवान एक, फिर व्यास कहाँ से आया, जिसको भगवान कहते हो? जब कहते हो कि पतित-पावन एक है । बाप समझाते तो बहुत अच्छा है, फिर भी जिसकी तकदीर में इतना ऊँच पद नहीं है उनकी बुद्धि में नहीं बैठेगा । जिनकी तकदीर बनी होगी उनकी बुद्धि में बैठता जाता है । ऐसे ही जो नॉलेज भी होती है, कोई की बुद्धि में बैठती है तो अच्छा पास करते हैं 90-95 मार्क्स और किसकी बुद्धि में नहीं बैठती है तो कभी 10-15 मार्क्स चले जाते हैं । अच्छा, यह तो बाबा ने बच्चों से चिटचैट की । यह है जैसे ज्ञान की चिटचैट बच्चों के साथ । आत्माओं से पूछते हैं और बात करते हैं और कहते हैं कि हमेशा ऐसे ही समझो । देही-अभिमानी बनो और जो कुछ भी तुमने पढ़ा हुआ है, जो कुछ भी पार हुआ है, उन सबको अभी भूल जाओ । तो सभी भूलना पड़े ना । भक्तिमार्ग भूलना पड़े, क्योंकि ज्ञान, फिर भक्ति, पीछे कहते हैं वैराग्य । अभी वैराग्य भी है हद का और बेहद का । सन्यासियों का है हद का । हर्थ एण्ड होम छोड़ते हैं । फिर जब तमोप्रधान बनते हैं तो आकर हर्थ एण्ड होम घर बनाते हैं । पैसे बिगर तो काम न चले । तो पैसे के लिए जो कहते हैं कि मैंने छोड़ा, वो फिर आ करके इकट्‌ठा करते हैं । उसको कहा जाता है हद का सन्यास, हठयोग वगैरह । वो अनेक प्रकार का है । यह राजयोग एक प्रकार का है । हठयोग अनेक प्रकार का देखना हो तो जयपुर में म्युजियम है, उनमें बहुत दिखलाते हैं और अनेक हैं । ये साधु संत महात्मा जितने हैं, इतनी मत है । एक-एक की अलग-अलग अपनी मत है । यहाँ एक श्रीमत है । श्री माना श्री-श्री, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाले । तुम जानते हो कि हम यहाँ आते हैं सो श्रेष्ठ देवता बनने । भारतवासियों ने उल्टा ले लिया । सो हम यानी सो परमात्मा हम, हम सो परमात्मा । यह सारा उल्टा हो गया । हम सो का अर्थ तुम्हारे लिए बड़ा जबरदस्त है । ''हम सो'' दूसरा कोई के लिए यह मंत्र नहीं है, सिर्फ भारतवासियों के लिए है । जो भी पहले-पहले असल स्वर्गवासी थे, जो फिर नर्कवासी बने हैं, उनके लिए है । तो 84 जन्म कैसे भोगे? हम सो देवता इतना जन्म, इतना वर्ष, हम सो क्षत्रिय इतना जन्म, इतना वर्ष, हम सो वैश्य इतना जन्म, इतना वर्ष, हम सो शूद्र इतना... । यह ''हम सो'' का देखो कितना लम्बा है! अभी हम सो फिर ब्राह्मण, अभी सो फिर देवता बनेंगे । ''हम सो, सो हम'' का अर्थ कितना बड़ा होता है । म्युजिक बजा....मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।