04-06-1965     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग, ये चार जून का रात्रि क्लास है

बोट किनारे पर खड़ी रहती है ना, पीछे उसका लंगर उठाकर चलने पड़ जाती है ।.. वास्तव में तुम बच्चे जैसे कि इस दुनिया से बहुत दूर चले गए हो । बाकी थोड़ा-सा समय रहा । इतना समय फिर रहा है, जब तलक कि यह शरीर है । बच्चे समझते हैं ना कि हम अभी इस दुनिया में हैं नहीं यानी कलहयुग में तो हैं नहीं, संगमयुग पर हैं । संगमयुग में हम आत्माएँ ट्रेवल कर रही हैं । जो-जो जितना ट्रेवल करते हैं उनके लिए ही बाबा कहते हैं कि अपने पास चार्ट रखो कि हम कितना जल्दी-जल्दी जा रहे हैं । वो जल्दी जाकर रूद्र्माला में पिरोएंगे । तो यह तुम ब्राह्मण आत्माओं की रेस है, और कोई की रेस नहीं है । तुम रूहानी रेस के अश्व हो । तुम बच्चों को अश्व, यज्ञ के घोड़े भी कहा जाता है । अश्वमेध ज्ञान यज्ञ यह ऐसे है ना । राजस्व यानी स्वराज्य के लिए ये जो भी शरीर है, सब मर जाते हैं । छोड़ा जाता है ना । बाप कहते हैं ना- अभी शरीर तो नहीं दौडी पहनेंगे । शरीर तो जिस्मानी यात्रा में दौड़ी पहनते हैं । यहाँ आत्मा दौड़ी पहनने की हैं । पूरा होने का है । दुनिया नहीं जानती है । दुनिया इन बातों को कुछ नहीं जानती है । ड्रामा-व्रामा का कुछ नाम उनको पता भी नहीं है । सिर्फ तुम ब्राह्मण जानते हो और यह भी जानते हो कि कल्प पहले भी बाप ने ऐसे ही कहा कि हे अश्व, आत्मा! दौडी पहनो, क्योंकि यह भी तो घोड़ा इन पर विराजमान है ना । जैसे हुसैन का घोड़ा निकालते है । मालूम है जब आक्रमण .होते हैं, वो बडे-बड़े ताबूत निकालते हैं तो घोड़े के ऊपर उनका पटका रख देते हैं । यह तुम्हारा अश्व है । इसमें आत्मा का विराजमान है । उनको अभी बाप मिला है । जैसे बाप बच्चे का हाथ पकड़कर ले जाते हैं ना, वैसे ही जैसे कि बाप आए हैं सब बच्चों को वापस ले जाने के लिए । तो सभी को फिर पावन कर जगाए और ले रहे हैं । तुम बच्चे जानते हो, ये दुनिया वाले नहीं जानते हैं । तुम बिल्कुल गुप्त रहते हो । तुम्हारी नजर में ये जो कोई भी मनुष्य हैं, जिनको यह पता भी नहीं है, वो बेगाने हैं । बेगाने कहा जाता है ऑरफन को । उनको कुछ भी पता नहीं है, क्योंकि बाप को जानना और सृष्टि के चक्र को जानना- यह तो मनुष्यों का काम है । एक्टर्स हो ना । एक्टर्स को अगर अपने ड्रामा के आदि मध्य अंत का और क्रियेटर डायरेक्टर मुख्य प्रिसीपल एक्टर्स के ऑक्युपेशन या पार्ट का पता न हो तो उनको क्या कहेंगे! देखो, अभी यह सारा भारत बंदर बुद्धि है, और नहीं तो मंदिर लायक । देखो शिवालय, यह बड़ा भारी चैतन्य मंदिर था, जिसमें देवी-देवताएँ रहते थे, निवास करते थे । चैतन्य शिवालय था, शिव का स्थापन किया हुआ, जिसे स्वर्ग कहो । अभी बच्चे बहुत खुशी में हैं । जिनको निश्चय पूरा है, उनको ही पूरी खुशी होगी । जिनको अभी-अभी निश्चय, अभी-अभी संशय, अभी-अभी निश्चय यानी ऐसे नहीं कहा जा सकता है कि अरे भई, यह तुम्हारा क्या लगता है? मेरा बाप लगता है । कितना परसेन्ट तुमको निश्चय है कि तुम्हारा बाप लगता है? कहेंगे क्या कि हमको 30 परसेन्ट निश्चय है, 75 परसेन्ट निश्चय है, 90 परसेन्ट निश्चय है? कभी सुनी है ऐसी बात? हमारे पास बहुत आते हैं । बोलते हैं- बाबा, हमको अभी 50 परसेन्ट निश्चय है कि आप हमारे परलौकिक बाप है । अरे, पर बाप का निश्चय कोई ऐसे थोडे ही होता है । निश्चय माना निश्चय । तो बाप की बात सिर्फ....की बरोबर हमारा बाप है ।.. .जानते हो कि बेहद बाप का है और बरोबर हैविन नई दुनिया का स्थापन करने वाला है तो जरूर हमको बाप से वर्सा मिलेगा ना । अभी कितने ढेर के ढेर है जो मात-पिता-मात पिता, गाते भी रहते है- तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे । अभी बरोबर निश्चय है कि बाबा है । बाबा में निश्चय है तो वर्से का भी निश्चय है । इस बाबा में अगर निश्चय नहीं है तो फिर वर्से में भी निश्चय नहीं है । बाबा में निश्चय कभी कोई 50-60 परसेन्ट का होता ही नहीं है । बाबा मीन्स बाबा । वो गाया ही इसलिए है- सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, सेकेण्ड में दैवी स्वराज्य । फिर उनमें कोई परसेन्टेज का हिसाब नहीं रहता है, परन्तु जो कहते भी हैं कि 75 परसेन्ट तो उनमें कुछ भी नहीं है । ऐसे होता नहीं है । माता में कोई 75 परसेन्ट निश्चय थोड़े ही रहता है । माता माना माता । बरोबर जानते है कि ये सभी बच्चे स्वर्ग की राजाई प्राप्त करने के लिए पढ़ते हैं । सो मात-पिता बिगर तो दे नहीं सकते हैं । तो बच्चों में खुशी बहुत होनी चाहिए । अभी खुशी क्यों नहीं रहती है? संशय क्यों हो जाता है? क्योंकि माया बुद्धि का योग तोड़ देती है । तो घबरा जाते हैं जैसे, बेहोश हो जाते है । लड़ाई है ना । वो राम के साथ लव-कुश वगैरह की लड़ाई थी ना, जो गाई जाती है । अभी यह बात तो कभी हो नहीं सकती है कि श्री रामचन्द्र के साथ और बच्चे । बच्चे कहाँ से आए? लब कुश कहाँ से । अरे, ऐसे कोई बच्चे थोड़े ही होते है । (किसी बहन ने कहा- और वो भी अश्वों को पकड़ लिया) । यानी बहुत दंत कथाएँ है और समझाते हैं तो समझते नहीं है । बोलते है कि भगवान ने जो ये लिखा है, यह रॉग थोड़े ही लिख सकते हैं । परमप्रिय, परमपिता, परलौकिक फादर । परलौकिक फादर तो आत्माओं का ही हुआ और वही बैठ करके सबको समझाते हैं । कभी कोई नहीं कहेगा कि तुम्हारा 84 जन्म अभी पूरा हुआ । उनका हिसाब दो अपना । अभी तुमको ये शरीर सब छोड़ना है । जैसे कि इनका जीते जी मरना है । किसकी गोद में मरना है? शिवबाबा की गोद में मरना है । कहते हैं कि तुमको नंगा भेजा था और तुमने फिर सूर्यवंशी राजधानी में राज्य किया । पीछे ऐसे 84 जन्म चक्कर लगाकर, अब तुमको वापस नंगा चलना है बाबा के साथ, बाप के साथ । इसलिए तुम्हारे ऊपर पाप हैं । बाबा गारंटी करते हैं कि मुझे याद करते इस योगाग्नि से तुम्हारे पाप भस्म हो जाएँगे । पाप भस्म होने का और कोई उपाय है नहीं । गंगा में स्नान करना, फलाना करना वो भक्तिमार्ग है । नदियाँ तो सभी सागर से ही.... जहाँ देखो, सारी दुनिया में नदियाँ-नदियाँ हैं । ये भारत की कहाँ से आई? भारत में ही ज्ञान का सागर आते हैं और ये ज्ञान गंगाएँ निकलती हैं । अभी नदियों के ऊपर ज्ञान गंगाओं का भी चित्र तो दिखलाते हैं ना, परन्तु वो उनको देवियों का चित्र बना देते हैं कि ज्ञान से इनको सद्गति मिली है यानी मनुष्य से यह देवता बना है, परन्तु उनका अर्थ तो कोई जानते नहीं हैं ना । तो बाप बैठकर यह समझाते हैं कि देवताओं को ज्ञान गंगाएँ नहीं कहेंगे । जिसका देवताई वेश होता है वो लोग चतुर्भुज... । अभी उनको हम ज्ञान गंगा नहीं कहेंगे । देवताओं को ज्ञान गंगा नहीं कहेंगे । नहीं, उनमें ज्ञान नहीं है । अगर होता तो परम्परा चला आता । इसमें कोई संशय नहीं है, परन्तु नहीं, यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है, क्योंकि यहाँ तो बाप आ करके पढाते हैं । सो पढाएंगे तो संगमयुग पर आ करके और बच्चों को राजाई देने के लिए । तो बच्चों को बहुत अच्छी खुशी होनी चाहिए, परन्तु हाँ इतना जरूर है कि माया मुरझा देती है । इसलिए जैसे बस याद करो तो खड़ा हो जाए । एक छुईमुई बूटी होती है ना- हाथ लगाओ तो मुरझा जाती है, फिर आपे ही खड़ी हो जाती है । तो यहाँ बताते हैं कि बच्चों को माया बेहोश करती है, फिर संजीवनी बूटी... । जो बच्चे महावीर है, एक दो को सावधान करने वाले पहलवान हैं वो फिर उनको समझाते हैं तो खडे हो जाते हैं । बाकी कोई बूटी थोड़े ही सुंघाई । भारत में अथाह दंत कथाएँ हैं, अथाह मंदिर हैं, जिनका कोई भी ऑक्यूपेशन नहीं जानते हैं । एक मंदिर का भी कोई ऑक्यूपेशन नहीं जानते हैं बिल्कुल, क्योंकि एक को ही नहीं जानते हैं ना । एक को जानने से आधा कल्प के लिए विश्व के मालिक बन जाते हैं, फिर भूल जाने से कंगाल बन जाते हैं । गाया भी जाता है- पावन दुनिया, पतित दुनिया । बरोबर भारत स्वर्ग, भारत नर्क । भारत स्वर्गवासी, भारत नर्कवासी । इसलिए माताएँ.... नहीं तो ये क्या जानें वेदों फलानो में क्या रखा है! तो इन जंजीरों से भी छुडा देते हैं । ये भी जंजीरे हैं । शास्त्र भी एक जंजीर है, बहुत कड़ी जंजीरे हैं, क्योंकि बडे कड़े गपोड़े लगे हुए हैं । तो बाप आ करके उनका सार समझाते हैं और कहते हैं कि अभी भक्तिमार्ग भी पूरा होता है, तो इस भक्तिमार्ग की सामग्री भी यहाँ यज्ञ में स्वाहा होनी हैं । तो इनको भूल जाओ और बाप को याद करो । कोई से पूछते हैं कि बाप को याद क्यों नहीं करते? अरे! कोई ऐसा थोड़े ही होगा जो बाप को याद नहीं करता होगा! सिर्फ ये परलौकिक बाप की यादगिरी नहीं है, इसलिए बच्चे घड़ी घड़ी भूल जाते हैं । नहीं तो बाप बाबा को, सो भी जो स्वर्ग का वारिस बनावे, उनको भूल जाते हैं! और जो... । सारा मदार है याद के ऊपर । अच्छा, सब बच्चे मौज में बैठे हैं!.. . रूप भी है और बसन्त भी हैं । उनका रूप है ना । तो जो मेरा रूप है जिसको ये लिंग कहते हैं और बरोबर फिर ज्ञान का सागर है, तो जरूर बसन्त भी है । तो तुम हर एक रूप-बसन्त हो । आत्मा का रूप भी हो, परन्तु बड़े सूक्ष्म एकदम बिन्दी और उनमें कितना ज्ञान भरा जाता है । परमपिता को ज्ञान सागर कहते तो हैं ना । तो ज्ञान सागर को थोड़े ही कहेंगे कि बरसात बरसाते हैं । नहीं, ज्ञान सुनाते हैं । कौन-सा ज्ञान सुनाते हैं? यह सृष्टि के आदि मध्य अंत का राज, जो बच्चों को जरूर जानना चाहिए और बहुत ही, मोस्ट इजी है । शास्त्र वेद ग्रंथ पता नहीं क्या-क्या कितने अम्बार हैं! यहाँ बोलते हैं- बच्चे, ये सभी तकलीफें की बातें हैं, भक्तिमार्ग की बातें हैं, इन सबको छोड़ दो । सिर्फ बाप को याद करो और वर्से को याद करो । कितना इजी है! नाम भी रखा है इजी, सहज राजयोग और सहज ज्ञान सृष्टि के चक्र का । याद और सृष्टि का चक्कर । अच्छा, सृष्टि के चक्कर तो जरूर याद आएँगे । बिल्कुल सिम्पल बात है और जानते भी हो कि हम फिर अभी राजयोग सीखकर राजा बनते हैं., हैं .नंबरवार वो ऐसे ही आ करके निश्चय बुद्धि होते हैं । चलो बच्ची, बाजा बजाओ । मालूम है अभी ट्रेन में होंगी । तो जितना हो सके रात में भी बैठ करके, क्योंकि ट्रेवलिंग में तकलीफ होती है । जैसे कहते हैं ना कि हम इनके लिए दुआ, भीख मांगते हैं । क्या कहते हैं? (किसी ने कहा- दुआ मांगते हैं). तो ऐसे हम फिर बाबा को... । अभी बाबा को याद करना तो हमको पहले फायदा होता है । ठीक बोलते हैं ना । जैसे देखो, गीता में भी लिखा हुआ है ना । गीता का पाठ पढ करके फिर जो उनका फल है वो दे देते हैं- अपनी मां, तुम्हें अर्पण भये । उनका उद्धार हो जाएगा । ऐसे कुछ कहावत है ना । तो यहाँ बाप भी ऐसे ही कहते हैं कि बच्चे, अब बाप को भी याद करो और मम्मा के लिए कि तंदुरूस्ती, सुख से आकर पहुँचे । स्टेशन पर सी ऑफ करते हैं- विश यू हैप्पी जरनी वा सेफ वीवेज ऐसे कहते हैं ना । याद करने से पहले तुम्हारा भला । याद करके अपन को और फिर तुम दादा को करते हो और मम्मा को करते हो । कोई दूसरे किसको नहीं याद करते हो । शाम को भी तो सुबह को भी, तो उनकी ट्रैवलिंग सुखाली हो जाए ।.. .देखो, हम इस भारत को भी दान देते हैं- बाबा, अभी इस भारत को पावन बनाओ, श्रेष्ठाचारी देवता बनाओ । बाबा, सबका बुद्धि का ताला खोलो तो सुखधाम के मालिक बनें या शांतिधाम के मालिक बनें । तो शुभचिंतक हुए ना । गुप्त सेलवेज कर रहो हो और गुप्त तुमको उनका फल मिलता है । दुनिया इन बातों को नहीं जानती है । जो नए-नए आएँगे वो जानते जाएँगे । तुम रियल रूहानी सेलवेशन आर्मी हो, जो भारत का बड़ा पार करते हो । बेड़ा किसने बोडा है? रावण ने बोडा है । फिर कौन सेलवेज करते हैं? राम । अभी राम वो नहीं । न वो राम, न बंदर की बात है । मीठे-मीठे, सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता का यादप्यार और गुडनाइट ।