05-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


 हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शनीचरवार जून की पांच तारिख है प्रात क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड:-
धीरज धर मनुआ………..………
ओम शाति!
बच्चों ने क्या सुना ? बाप ही कह सकते हैं ना, कोई सन्यासी-उदासी या कोई भी लौकिक बाप नहीं कह सकते हैं । यह परलौकिक बाप बच्चों को कहते हैं, क्योंकि आत्मा में ही मन-बुद्धि तो कहते हैं, हे आत्माएँ, अभी धीर धरो । अभी बच्चे जानते हैं, कि यह बेहद का बाप कह रहे हैं, और सारी दुनिया को कहते हैं कि बच्चे, धीर धरो । अभी फिर तुम्हारे शांति और सुख के दिन आ रहे हैं । अभी सुनते हैं सो ही तो समझेंगे ना । यह आवाज कोई बाहर में तो नहीं जाएगी । हाँ, एक दिन यह हो सकता है कि कोई टेलिविजन आदि निकलेंगे, जो यहाँ बैठ करके सुनाएँगे और कोई सुनेंगे । तो भी ऐसे कहेंगे ना- हे बच्चों! धीर धरो । अभी यह दुःखधाम है । दुःखधाम के पीछे सुखधाम तो जरूर आता ही है । सुखधाम की स्थापना सो तो बाप ही करेंगे और बाप ही बच्चों को यह तसल्ली देते हैं, धीर देते हैं कि बच्चे, धीर धरो । पहले निश्चय चाहिए ना । निश्चय होता है फिर ब्राह्मणों को, जो ब्रह्मा मुखवंशावली बनते हैं । नहीं तो इस समय में ब्राह्मण कहाँ से आए? इतने ब्रह्माकुमार और कुमारियां कहाँ से आए? कुमार-कुमारियाँ का अर्थ ही है बच्चे और बच्चियाँ, परन्तु जो पत्थर बुद्धि मनुष्य हैं वो यह समझ नहीं सकते हैं । भला पूंछते भी नहीं हैं । तुम इतने सभी जो कहते हो ब्रह्माकुमार और कुमारियां, तो उन शास्त्र पढ़ने वालों को बुद्धि में लगना चाहिए कि जरूर प्रजापिता ब्रह्मा होगा, जो इतने सब कहते हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ और एक के लिए ही सब.. । इनका एक ही मात-पिता है। एक मात-पिता के ही तो ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ नहीं होते है ना । सबके अलग-अलग होते हैं। वो हैं कुख की वंशावली और यहाँ ये सभी हैं नए ब्राह्मण, जो ब्राह्मण थे ही नहीं । तुम लोग कोई ब्राह्मण के मुख के नहीं थे, जैसे वो ब्राह्मण हैं । उन ब्राह्मणों की ईजात है । वो है कुखवंशावली की ईजात. .और तुम हो मुखवंशावली । तो बाप बैठ करके समझाते हैं । अभी यह निश्चय की बात है ना । हर एक बात में निश्चय बुद्धि चाहिए कि कौन हमको यह कहते हैं । बरोबर कल्प पहले की भगवान ने ही कहा । अभी भी भगवान ही कहते है, समझाते हैं कि बरोबर अभी यह कलहयुग का अंत है । लड़ाई सामने खडी है । वही महाभारी महाभारत की लडाई है । वही यादव कौरव पाण्डव भाई-भाई । यादव यूरोपवासी, जिन्होंने ये बोम्बस वगैरह की इन्वेंशन की । वो भी तो गाया हुआ है, जरूर कि इनके बुद्धि रूपी पेट से ये मूसल निकलेंगे, जो अपने कुल का विनाश करेंगे । देखो, लिखा भी हुआ है और बरोबर जानते हो कि वो कुल का विनाश करेंगे जरूर । देखने में आता ही है । कहते भी हैं । हैं तो एक कुल के । वो उनको कहते हैं कि एक बॉम्ब से तुम्हारा विनाश करेंगे और वो उनको कहते हैं देख लेना हम विनाश करेंगे । हर एक बात में कम्पीटिशन हो रही है । बरोबर यह भी लिखी हुई है । यह लाखों वर्ष की पुरानी बात तो नहीं है ना । बाप अभी बैठ करके अच्छी तरह से समझाते भी हैं कि बच्चे, अभी जानते हो ना, धीर धरना है ना कि बरोबर यह पुरानी दुनिया खतम हो जाने वाली है । खतम हुई होगी तब तो भारत ऐसा बना था ना । सतयुग तभी बनेगा जब कलहयुग खलास होगा । जब अनेक आसुरी सम्प्रदाय, अनेक राजधानियां खलास होंगी, तो जरूर उसके पहले ही एक की स्थापना होनी चाहिए । यह तो गाया ही जाता है कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना, फिर शंकर द्वारा विनाश । पहले विनाश भी नहीं कहना चाहिए, पहले स्थापना । जब स्थापना पूरी हो जाती है.. । देखो, स्थापना हो रही है ना । है तो डिफीकल्ट मार्ग, एकदम नया मार्ग । कोई भी कुछ भी नहीं समझ सकते हैं । सब कोई समझते हैं कि पता नहीं यह क्या है, क्या बोलते हैं । कभी न कोई ने कान से सुना, न कोई ने किया । इन्होंने कहाँ से ये बातें लाई हैं! वो समझते हैं जैसे और मठ पंथ धर्म स्थापन होते हैं वैसे यह भी कोई ब्रह्माकुमारियों का नया धर्म है या क्या है । बरोबर है । उनका दोष है ही नहीं, क्योंकि यह कल्प पहले भी ऐसे ही था । विघ्न डालते ही रहते थे, क्योंकि पता नहीं था । अभी है भी बरोबर कि यह रुद्र ज्ञान यज्ञ है । रुद्र कहा ही जाता है शिव को और इसको ही कहा जाता है प्राचीन सहज राजयोग । अभी प्राचीन का भी तो अर्थ नहीं समझते है ना । कोई सतयुग में तो नहीं आकर के स्थापन किया । यह है संगमयुग । बाप कहते भी हैं कि बच्चे, भला समझ तो धरो- पतित और पावन, तो संगम हुआ ना । पतित कहा जाता है कलहयुग के अंत को, पावन कहा जाता है सतयुग के आदि को । अच्छा, सतयुग आदि में है दैवी धर्म और यहाँ हैं अनेक आसुरी धर्म । आसुरी धर्म किसको कहा जाता है? यह रावण राज्य है, राक्षस राज्य है । देखो, यह कहते भी हैं । आगे चलकर और कहेंगे खुद भी कि यह राक्षस राज्य है । इनके एमपी. वगैरह भी कह देते हैं कि राक्षस राज्य है । बरोबर दिखलाया भी है असुरों और देवताओं की युद्ध । तो बाप आकर समझाते हैं कौरव और पाण्डव । वो आसुरी सम्प्रदाय, तुम दैवी सम्प्रदाय । इनकी आपस में कोई युद्ध थोडे ही लगी है । यह भी भूल है । बाप कहते है तुम्हारी युद्ध देखते हो ना । अब उसमें ऐसा तो नहीं लिखा है कि यादव और कौरवों की या काँग्रेस की । ये हैं मुसलमान और उनकी लड़ाई आपस में । तुम भाई-भाई आपस में कैसे लडेंगे? यह तो हो ही नहीं सकता है । कहते भी हैं एक है धृतराष्ट्र की औलाद और एक है युधिष्ठिर की औलाद । दो भाई । एक कहानी बैठ करके बनाई है । सो बाप बैठ करके समझाते है । कहा भी है ना कि ब्रह्मा द्वारा सभी वेदो,ग्रंथ,शास्त्रों वगैरह का सार बैठ करके समझाते हैं । यह समझाते हैं कि सभी वेद शास्त्र ग्रंथ इनको उन में से, धर्मशास्त्र किसको कहना चाहिए? तो समझा दिया कि मुख्य धर्म तो चार हैं । उसमें पहले में पहला कौन-सा? आदि सनातन देवी-देवता धर्म । उनका शास्त्र कौन-सा? सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि यानी जो पीछे हुए हैं उन सबसे यह पहले नंबर में ऊँची है, शिरोमणि है । अरे भई, वो किस धर्म का शास्त्र है? भारत का शास्त्र है । अभी भारत का शास्त्र किसका? उस धर्म से क्या हुआ? उस धर्म से आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई । यानी सतयुग के आदि सनातन सूर्यवंशी-चद्रवंशी धर्मो की स्थापना हुई । तो देखो, संगमयुग पर हुई होगी । ऐसे तो नहीं कहेंगे कि सतयुग में हुई । नहीं, कोन्फ्लूएन्स में यानी संगम पर । इसको फिर कुम्भ भी कहा जाता है । अभी तुम जानते हो, यह कुम्भ का मेला है । कौन-सा कुम्भ? यह पानी और सागर का नहीं, ज्ञान सागर और ज्ञान सागर की संतान आत्माओं का । आत्माएँ और परमात्मा का मेला । उसे कहा जाता है संगम, सुहावना संगम, कल्याणकारी संगम । बरोबर कलहयुग से सतयुग यह तो जरूर होना ही है । तो उसको कल्याणकारी युग, सो भी संगमयुग कहेंगे । और कोई भी युग को कल्याणकारी नहीं कहेंगे, क्योंकि सतयुग से त्रेता आता है तो 2 कला गिरना पड़ता है । वो कोई कल्याणकारी थोड़े ही हुआ । अकल्याणकारी हुआ । फिर 14 कला से चलो नीचे, यह भी तो अकल्याणकारी हुआ । फिर चलते जाओ, सभी अकल्याणकारी । अकल्याण होता ही जाता है । अच्छा, फिर कल्याण चाहिए, क्योंकि जब पूरा अकल्याण हो जाता है तब बाप आते हैं फिर सबका कल्याण करने । बाप ही बैठकर बच्चों को समझाते हैं कि अभी तुम्हारा कल्याण हो रहा है । इसको कहा ही जाता है सुहावना, कल्याणकारी, ऑस्पिशस । अंग्रेजी नाम भी दिया हुआ है ना । यह कल्याणकारी युग । बुद्धि से काम लो कि बरोबर बाप आएगा भी कल्याण करने सो आएँगे भी तो इस संगमयुग पर, युगे-युगे थोडे ही आएँगे । सर्व का सद्गति दाता । सर्व माना इस समय में सर्व हो जाएँगे । सर्व कोई द्वापर में तो नहीं कहेंगे । सर्व कोई त्रेता में तो नहीं कहेंगे । सर्व कोई सतयुग में भी नहीं कहेंगे । सर्व माना आएगा ही अंत में जबकि सभी आत्माएँ आती हैं । पिछाड़ी में आ ही जाएँगी जो कुछ भी रही-कुही हैं । आप सुनते हो कि बाबा हमको धीर देते हैं । हम भी जानते हैं । हम जानते हैं और कहते हैं- बाबा भला जल्दी आवे ना! यहाँ बडी खिटपिट है, बडा दुःख है उनमें । नहीं बच्चे, यह ड्रामा है ना । यह ड्रामा तो अपने टाइम पर, जब तुम सभी बच्चे ज्ञान ले करके, पढ़ करके और यह पूरी फूलों की बादशाही.... । तुम कांटों से फूल बन रहे हो ना । अभी फट से तो कोई काँटे से फूल नहीं बनेगा ना । जो भ्रष्टाचारी हैं वो फट से कोई श्रेष्ठाचारी थोड़े ही बनेंगे । हाँ, निश्चय बुद्धि हो करके फिर पुरुषार्थ करना है । फट से कोई नहीं बन सकते हैं । फट से जो कहा जाता है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । हाँ, यह तो ठीक है- पहचाना और वर्से का अधिकारी बना । वर्सा तो ठीक है । तुम सभी पावन दुनिया में चलने वाले हो, जो-जो भी फिर आएँगे, परन्तु वहाँ भी तो पद है ना । स्टेटस है ना । तो उनके लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा । पढाई में पुरुषार्थ होता है ना । तो पढ़ाई पढ़ना है । ऐसे तो नहीं होगा कि झट से तुम कर्मातीत अवस्था... अगर कर्मातीत अवस्था फट से हो जाए तो तुमको शरीर छोड़ना पड़े, फिर रह नहीं सको, परन्तु नहीं, ऐसा लॉ नहीं कहता है कि इतना फट से तुम कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करो । नहीं, माया से बिल्कुल ही अच्छी तरह से युद्ध करनी है, और बड़ी युद्ध । क्या युद्ध में कोई एक सेकेण्ड में हार-जीत हो जाती है? उनकी आठ-आठ वर्ष, दस-दस वर्ष युद्ध चलती है । कभी कभी कोई की दस-दस पन्द्रह-पंद्रह बरस भी युद्ध चलती रहती है । यह तो तुम्हारी युद्ध है माया से । वो टेक्स टाइम । जब तलक बाप है तब तलक तुम्हारी युद्ध चलती ही रहती है । पिछाडी में आ करके रिजल्ट निकलेगी कि किसने माया को कितना जीता, कितना कर्मातीत अवस्था को पहुँचे । बाबा कहते रहते हैं ना- बच्चे, अभी अपने बाप को, अपने घर को याद करो । घर को ही कहा जाता है मुक्तिधाम, निर्वाणधाम । वो घर है ना! उनको शांतिधाम कहा जाता है । तुम ऐसे मत समझो कि सतयुग को शांतिधाम कहा जाता है । ना ना, शांति माना ही निर्वाण यानी शरीर भी नहीं हो, आत्मा हो और आत्मा तो शरीर बिगर बोल भी नहीं सकती है । सच्चा शांतिधाम तो उसको कहा जाता है । शांतिधाम, निर्वाणधाम, वानप्रस्थ यानी वाणी से परे स्थान । वो तो हमारा घर है । अभी तुम बच्चों को यह मालूम पड़ा । खुशी है तुम्हारी बुद्धि में जिनको निश्चय है । बरोबर हम तो रहने वाले हैं और बरोबर यह ड्रामा है । अभी ड्रामा तुम्हारी बुद्धि में रहा, शुरू से ले करके, ऊपर से ले करके । ऊँचे ते ऊँचा से हुआ । ऊँचे ते ऊँचा भगवत और सेकेण्ड नंबर में हैं, तीन लोक- साइलेंस मूवी टॉकी । उसको मूलवतन सूक्ष्मवतन स्थूलवतन कहा जाता है । अभी यह तो कॉमन बात है ना । सो भी कोई दूसरे की बुद्धि में नहीं है । यह बुद्धि में भी तुम बच्चों के है । भले कितने भी कोई शास्त्र पढ़े हुए हों । बाबा तो बहुत ही शास्त्र पढ़ा हुआ था । बाबा की बुद्धि में ये सब बातें थोड़े ही थीं । कुछ भी नहीं बिल्कुल ही । जैसे तोते-ढेंढरो के मुआफिक पढ़ते हैं, यह करते हैं । देखो, गीता पढ़ते थे । लिख दिया है किसको महात्म्य का फल देना तो उनका उद्धार हो जाएगा । चलो पितराय नम: फलाने नम: करके उनको दे दिया । यह तो करते आए थे । यह तो सभी करते ही रहते हैं । बहुत ही कुछ करते हैं । डब्बे में ठीकरी कोई यह थोड़े ही रहता है कि बरोबर बुद्धि में आया- हाँ, हम दूर देश में रहने वाले हैं, परमधाम में रहने वाले हैं । यह थोडे ही कोई बुद्धि... । पीछे वो तो बाबा वहाँ रहते हैं । अभी यह मालूम पड़ा । नहीं तो बाबा कहना ही किसको नहीं आता है । कोई भी ऐसे नहीं समझते है कि हमारा सबका बाबा, जिसको हम पतित-पावन कहते हैं, वो परमधाम में रहते हैं, वो बाबा कब आएँगे, ऐसे कभी तो किसी को मालूम होगा । अभी तुम कहते हो कि बाबा आया हुआ है, जिसको ये मनुष्य ढूँढ़ते रहते हैं- पतित-पावन आओ- पतित-पावन आओ । उनको पता भी नहीं है और न ही कोई वापस जा सकते हैं । इसलिए उसकी निशानियां हैं । देखो, जैसे बारादरी लखनऊ में है । अच्छा, आगे जब एग्जिबिशन्स करते थे तो मेज बनाते थे । जिसमें वो बनाते थे, पीछे जाते थे, बीच में एक रहता था और जाते थे । अच्छा, यहाँ से हम जाएँगे तो दरवाजा सामने आ जाता था, फिर लौटते थे, फिर दूसरी जगह से जाओ, दरवाजा आ जाता है । तो ऐसे करते थक जाते थे एकदम, फिर बैठ जाते थे । पीछे उनको रडियॉ करते थे- अरे, है कोई! हमको रस्ता बतावे । देखो, यहाँ है ना बरोबर! कहाँ भी जाओ, शास्त्र पढ़ो मत्था फटा, वेद पढ़ो मत्था फटा । जहाँ भी जाओ, तीर्थो पर जाओ मत्था फटा । संगम पर जाओ मत्था फटा । कोई भी रास्ता मालूम ही नहीं है तो जाएँगे कहाँ! तो बाप बैठकर समझाते हैं ये गपोड़े मारते हैं कि ज्योति ज्योत में समाया, बुदबुदा था सो सागर में लीन हो गया, ब्रह्म महतत्व में जाकर लीन हो गया । ये सब गपोड़े मारते रहते हैं । बाप आकर समझाते हैं- बच्चे, कोई भी नहीं जा सकते हैं । नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स क्रियेटर डायरेक्टर स्टेज पर आ जाते हैं । तुम लोग जीता-जागता नाटक हो । ये तो पीछे बाइस्कोप हुए हैं । वो जो मनुष्यों का नाटक होता था, उसमें कायदा था कि नाटक पूरा हुआ तो सब उसी ड्रेसों में आ करके खड़े रहते थे । बस खड़े रह करके, मुँह दिखला करके, अंदर जा करके कपडा उतारकर सब भागे अपने घर । नाटक पूरा हुआ । फिर से आ करके वही रिपीट करते थे । तो वो है हद का नाटक । बाप फिर बैठ करके समझाते हैं यह है बेहद का नाटक । अभी समझा कितना तुमने पार्ट... अरे फिर पार्ट किसने बताया है? वो तो मनुष्यों को देह अभिमान है- मैं राजा बनता हूँ मैं एक्टर बनता हूँ । ये तो कहते हैं मैं आत्मा एक्टर बनता हूँ । अभी यह आत्मिक अभिमान हो गया कि मैं आत्मा एक चोला छोड करके दूसरा, दूसरा छोडा... । ओ हो! 84 चोला हमने छोड़ा । 84 नाम हमारे ऊपर पड़े हुए हैं । अभी तुम बच्चों को यह तो हुआ कि हमने 84 नाम धारण किए हैं- एक छोड़ा, दूसरा छोडा । अच्छा, अभी नाटक पुराना हो गया । यह सब जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई । अभी विनाश होगा । फिर से रिपीट करेंगे । वर्ल्ड की हिस्ट्री एण्ड जॉग्राफी तो सुख की होगी ना इज गोइंग टू रिपीट । तो सुख की कहेंगे ना । तुम बच्चे जानते हो कि बरोबर अभी वर्ल्ड की सुख की हिस्ट्री एण्ड जॉग्राफी यानी सतयुग सो फिर से रिपीट होता है । सतयुग में तो सुख ही है । तुम्हारी बुद्धि में यह है, कि अभी कहाँ हमारा पार्ट पूरा होगा, कहाँ हम बैठकर अपने बाबा को याद करें । बाबा कहते हैं, फरमान किया ना । एक आर्डिनेन्स निकाला । कम थोडे ही है । वो पतित-पावन है । वो बैठ करके कहते हैं, कि मैं बहुत सहज उपाय समझाता हूँ । धक्का खाते-खाते थके हुए हो । इसलिए क्या करो? उठते बैठते चलते यह दिल में रखो, यह नाटक पूरा होता है, हम एक्टर हैं । हमने 84 पार्ट पूरा किया हुआ है । अभी बाबा आया हुआ है हमको गुलगुल बनाने के लिए, मनुष्य से देवता बनाने के लिए, पतित से पावन बनाने के लिए । अभी तुम बच्चों को मालूम है कि बरोबर पतित-पावन हम पतित को पावन बना रहे हैं, ऐसे ही कल्प पहले मुआफिक और हम ऐसे पतित से पावन इन्यूमरेबल टाइम्स बने हैं, इन्यूमरेबल टाइम्स बनेंगे । ठीक है ना । हिस्ट्री-जॉग्राफी फिरेगी तो पहले फिर देवी-देवता धर्म के आएँगे । दूसरा तो कोई आ नहीं सकता है । अभी तुम बच्चे जानते हो कि सैम्पलिंग लग रही है । वो तो जंगल की सैम्पलिंग लगाते रहते हैं । सैम्पलिंग की सेरीमनी करते हैं । अभी हम क्या सेरीमनी करें? गुप्त वेष में हैं जानते हैं । हमको नॉलेज है । सेरीमनी क्या, अंदर में खुशी होती है कि बरोबर हमारे देवी-देवता धर्म के झाड़ के जो पत्ते हैं जो प्राय: धर्म से भ्रष्ट हो गए हैं, कर्म से भ्रष्ट हो गए हैं, हम भी तो कर्म-धर्म से भ्रष्ट हो गए ना । अभी ऐसे तो कहेंगे ना कि भारतवासी, जो कर्म श्रेष्ठ, धर्म श्रेष्ठ थे । कभी भी कोई पाप नहीं करते थे । पुण्य आत्माओं की दुनिया थी । पाप वहाँ होता ही नहीं है, क्योंकि वहाँ रावण राज्य बिल्कुल है ही नहीं । तो पाप कैसे होंगे? तो क्या होता है? कर्म अकर्म हो जाते हैं, क्योंकि वर्सा मिल रहा है । फिर जब रावण राज्य होता है तो कर्म, विकर्म होना शुरू हो जाते हैं । फिर संशय नहीं उठते हैं, क्योंकि वहाँ कोई कर्म, विकर्म हो नहीं सकेंगे । वहाँ कोई पतित हो ही नहीं सकेंगे । वहाँ कोई भ्रष्टाचारी हो ही नहीं सकते हैं, क्योंकि तुम जानते हो कि योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो श्रीमत पर । अभी विश्व का मालिक तो कोई बाहुबल से कभी भी नहीं बन सकते हैं । नहीं तो यह तो बच्चे जानते हैं कि ये जो दोनों मूसलधार वाले है, ये जोड़ी अगर आपस में मिल जावे तो विश्व का मालिक बन सकते हैं, परन्तु नहीं, यह तो गायन गाया हुआ है कि दो बंदर लड़ते हैं, बिल्ला मक्खन खा जाता है । देखो, श्रीकृष्ण के मुख में दिखलाया है ना । अच्छा, यह भी दिखलाते हैं कि बरोबर माताओं को साक्षात्कार होते थे और वो अंदर देखते थे कि कृष्ण के मुख में मक्खन । ऐसे बहुतों को साक्षात्कार होता है, होता था, अब होगा भी । माना मक्खन रूपी यह सृष्टि का राज्य उनके हाँथ में मिलता है । बरोबर दिखलाया भी है कि ये दो लड़ेंगे । यह तो जानते हैं कि ये दो लड़ेंगे और भारत को अपना राजभाग मिल रहा है । भारत की लड़ाई विनाश पर है । एक लड़ाई है यवनों की और इनकी । सो तो अभी देखते हो कि हो रही है । तुम देखते हो अखबार में पड़ा कि फलानी जगह कम्यूनल क्लैश हुआ । अक्सर कम्यूनल होता ही इनका है । बस, इतना वो मरे, इतना वो मरे । यह पक्का समझो कि वहाँ क्लैश जरूर करेंगे । कोई न कोई दस बीस को मार डालेंगे, क्योंकि वहाँ बहुत हैं, यहाँ फिर थोड़े हैं । तो पीछे लड़ाई लगनी है । देखो हैं ना, नहीं तो ये मुसलमान थे क्या? यह तो भारत में एक ही धर्म था ना । फिर ये दूसरे धर्म का राज्य कहाँ से आया? देखते हो ना! अभी क्रिश्चियन धर्म में कोई ने इन्वेड किया क्या? उनका राज्य लिया क्या? उन्होंने इन्वेड किया, क्योंकि पावरफुल थे । यहाँ भी देखो मुसलमान की बादशाही थोड़े ही थी । इस भारत में उनका आना तो महमूद गजनवी से शुरू हुआ है । नहीं तो उनकी कोई बाउंडरी यहाँ थोड़े ही रखी है । उनकी बाउंडरी तो दूर तरफ है । गजनी से आए यानी अफगानिस्तान की तरफ से आए । तो अंदर आए ना, आ करके इन्वेड किया ना, क्योंकि यह कमजोर होता जाता है, कमजोर होता जाता है, तह कि सारी बादशाही चट कराय दी । सारी बादशाही उन एक के हाथ में आ गई । मुसलमानों के हाथ में सारी बादशाही नहीं आई । ये फॉरेनर्स जो पावरफुल क्रिश्चियन लोग हैं, उनके हाथ में सारी भारत की, भारत तो क्या बादशाही ले ली । चीन से अमेरिका का राज्य था ना । सब पकड़ लिया था । पीछे यह अपन को छुडाया है । नहीं तो इन्वेड तो कर दिया ना । अभी ये तो दुश्मन नहीं है । अब भारत को किसने इन्वेड किया है? रावण ने । अभी वो गुप्त बात हो गई कि किसने इन्वेड किया? हमारे स्वर्ग के ऊपर किसने चढाई की? नर्क बनाने के लिए यह रावण ने । अभी यह तुमको मालूम है । क्या कोई शास्त्र में लिखा हुआ है? क्या कोई पण्डित जानते हैं इन सब बातों को? बाप बैठ करके समझाते हैं कि ये रावण रूपी पांच विकार तुम्हारे आधे कल्प के दुश्मन हैं । तुम आदि मध्य अंत दुःख पाते आए हुए हो । इसलिए सन्यासी भी कहते हैं यहाँ कोई सुख थोड़े ही रहा है । यहाँ गृहस्थ में तो कागविष्ठा समान सुख है । ऐसे कहते हैं ना । तो सभी प्रवृत्तिमार्ग वाले गृहस्थी तो हैं ना । तो वो कहेंगे गृहस्थ में है ही कागविष्ठा समान सुख । अभी इनको थोडे ही मालूम है । स्वर्ग में सुख ही सुख है, दुःख का नाम-निशान नहीं है । कौन कहेगे कागविष्ठा समान! कागविष्ठा समान यहाँ दुःखधाम और सदा सुख सो तो है ही बरोबर सतयुग में । अभी यह मालूम तो है भारतवासियों को, स्वर्ग मालूम है । कोई मरते हैं, कहते हैं- अरे भई, कहाँ गया? स्वर्गधाम पधारा । वाह! स्वर्ग की देखो कितनी महिमा है! कहाँ गया? वैकुण्ठवासी हुआ । कहाँ गया? लेफ्ट फोर हेविनली अबोड । कहते हैं ना जरूर । तो जरूर यह हेल का अबोड है । अभी किसको कहो अरे भई, तुम हेल के निवासी हो, नर्क के निवासी हो तो एकदम बिगड़ पड़े, गालियाँ देना शुरू कर देवे । देखो, कितनी वण्डरफुल बात है! मुख से कहते हैं भई स्वर्गवासी हुआ । तो जरूर नर्क से गया ना । अच्छा, स्वर्गवासी हुआ, स्वर्ग में तो बात मत पूंछो, क्या माल मिलते होंगे वहाँ फर्स्टक्लास! फिर तुम बिचारे को यहाँ की नर्क की चीजें क्यों मँगाकर खिलाते हो? तो निश्चय नहीं है ना । तो देखो, उनको फिर नर्क की चीजें खिलाते हैं । स्वर्ग और नर्क में फर्क तो देखा है बच्चियों ने कि वहाँ क्या चीज होगी, क्या चीज होती है कितने बड़े- बड़े फूल हैं, क्या- क्या हैं एकदम । तो देखो, यह पाई-पैसे की बात भी समझ में नहीं आती । कोई भी मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ । अरे, स्वर्ग तो सतयुग को कहा जाता है । तो जरूर कहो बरोबर यह नर्कवासी था, तुम भी तो नर्कवासी हो ना । तुम भी जब शरीर छोडेंगे तब तुम्हारे लिए और कहेंगे कि स्वर्ग में गया । तो नर्क में हो, भला यह तो मानो । बरोबर नर्कवासी तो हो ना । सो भी कौन-सा नर्क? रौरव नर्क, यानी एकदम उसका बहुत बुरा नाम देते हैं । जैसे बिच्छू-टिण्डन रौरव नर्क, नदियाँ दिखलाते हैं, उनमें उसको वो काटते हैं, यह करते हैं, वो करते हैं । बरोबर है ही नर्क । यहाँ कोई नर्क की नदी थोड़े ही होती है । ये दुनिया ऐसी है ना । अब इसके ऊपर भारत में भारतवासी रेडिओ में गीत भी सुनाते हैं कि कैसे यह दुनिया एक को खून करती है, क्या करती है- क्या करती है। यह तुमने यहाँ सुना होगा । हाँ, आज के इंसान को क्या हुआ... । अभी एक तरफ में कहते हैं आज के इंसान को क्या हुआ और फिर कहते हैं भारत हमारा सब देश से अच्छा है । अरे, भारत तुम्हारा अच्छा था । अभी इस समय में सबसे बुरा है । अभी अच्छा नहीं है । प्राचीन भारत ऐसा अच्छा था । अभी तो एकदम कंगाल, बिल्कुल ही चट खाते में । समझ में आता है कि बरोबर हम भी असुर थे । ऐसे नहीं कहेंगे कि नहीं थे । हम भी आसुरी सम्प्रदाय थे । बाबा हमको दैवी सम्प्रदाय बनाने के लिए पुरुषार्थ कराय रहे हैं । कौन-सा बाबा? बाबा । यह नई बात नहीं है । कल्प-कल्प कल्प के संगम पर हम बाप से फिर से अपना वर्सा लेते हैं । समझा ना । वर लेते हैं और फिर आधाकल्प के बाद रावण से श्राप लेते हैं । तो बाप हुआ वर देने वाला, वर्सा देने वाला और वो माया फिर अपना श्राप का वर्सा देती है । हाफ एण्ड हाफ । देखो, कितनी समर्थ है! तब बाप भी कहते हैं- अहो माया! तुम कितनी समर्थ हो, दुस्तर हो, हमारे अच्छे-अच्छे बच्चों को, जो अपन को बिल्कुल महावीर कहलाते हैं, उनको भी गिराय देती हो । उनको भी तुम हराय देती हो । बडी हो । होते हैं ना । तुम देखते हो बरोबर अच्छे- अच्छे बच्चे, बहुत महावीर कहलाने वाले, हनुमान कहलाने वाले कि हम ऐसे हैं । आज कहते हैं, कल माया एक ही घूँसा मारती है । तुम लोगों ने बॉक्सिंग इंजीनियर, कभी बॉक्सिंग देखा है? शायद नही देखा है। अरे, अखबारों में पड़ा रहता है, बात मत पूछो । उनको तो लाइफ का नहीं रहता है । उनको तो लाख- लाख, दो-दो लाख एक-एक आपस में लड़ने का इनाम मिल जाता है । कोई कम नहीं मिलता है जो एकदम बड़े- बड़े, अच्छे- अच्छे हैं, वो फिर हार खाकर भी, बड़ी चोटें लगती हैं, फिर भी अच्छे हो करके फिर मैदान में आते हैं कि हम फिर लडेंगे, क्योंकि उनका है ही वो धंधा, जिसको प्रोफेशन कहा जाता है । हर एक का प्रोफेशन अलग होता है ना । यह जो भी खेल हैं फुटबॉल वगैरह यह प्रोफेशन है । सीखते हैं । उनको क्लब्स में बहुत भारी पगार मिलती है । अभी तुम्हारा प्रोफेशन क्या है? देखो तो, बाप आकर क्या सिखलाते हैं! अरे, माया को जीतने का है । तुम्हारा नाम ही है शिव शक्ति सेना । सब मेल भी तो फिमेल भी हैं । शिवबाबा से योग लगाय, शक्ति ले करके । अरे भई, यह सेना किसको जीत पहनती है? अरे, माया को जीत पहनती है । माया को जीत करके सारे इसको लिबरेट करते हैं । देखो, तुम्हारा काम कितना बड़ा भारी है! बाप लिबरेटर है किसके साथ? अपने बच्चों के साथ । जिनका ही नाम है शिव शक्ति सेना । देखो, माताओं को ऊँचा रखा है । प्रवृत्तिमार्ग है ना । बच्चे भी तो हैं ना । सेना वन्दे मातरम्, यह किसने आ करके कहा है? बाप ने आ करके कहा है । क्यों? तुम हमारे ऊपर बलि चढते हो, हम तुम्हारे ऊपर बलि चढ़ते हैं । तुम हमको वंदना कहते हो शिवाय नमः । हम कहते हैं शक्तियॉयें नमः । देखो, वंदना ऐसे कही जाती है ना । तो इनको बाला करते हैं । भले है तो ये भी साथ में । प्रवृत्तिमार्ग है । तो बाबा खुश होते हैं जब देखते हैं कि बडी अच्छी तरह से ये खड़े हैं । इनके पास भले कितने भी तूफान आते हैं ये हिलते नहीं हैं । तो मिसाल देते हैं कि राम का हनुमान था, जैसे तुम बच्चे हो । तो उनको कोई भी माया रूपी रावण हिलाय न सके । अभी यह हुई अंत की बात ।... .सीता चुराई गई, फलाना और उनको आग भी लगी वो पिछाड़ी की बात कहते हैं । यह ऐसे बना जो रावण पैर भी न हिलाय सका । अभी वो तो पीछे अवस्था आने वाली है ना । पिछाड़ी में आएगी ना । आग भी लगेगी, खतम भी होंगे । उस समय की तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए खुशी की एकदम बहार, क्योंकि तुम्हारे लिए इतना सारा विनाश होता है, क्योंकि जब तलक विनाश न हो, यह धरनी पवित्र न बने, इनको यह धान न मिले, इतना सब स्वाहा न हो जाए, तब तलक तुम देवताएँ इस पतित सृष्टि पर आते नहीं हो, क्योंकि पतित मनुष्य ये तत्व भी सभी पतित ही पतित हैं । लॉ नहीं कहता है । तुम अभी जानती हो कि बरोबर इस पुरानी सृष्टि पर हम नहीं आ सकते हैं । हम नई सृष्टि पर आएंगे । यह पुरानी खतम हो जाने वाली है । इस भम्भोर को आग लगनी है । होलिका बननी है एकदम । दिखलाते हैं ना कि होलिका मे धागा डालकर बनाते हैं कि देखो आत्मा अमर है, बाकी वो जल जाती है । तो बरोबर देखो, कितने शरीर जलेंगे, खतम होंगे । आत्माएँ शुद्ध हो करके, हिसाब-किताब चुक्तु करके सब वापस मच्छरों के मुआफिक... । ऐसी जब बड़ी लडाइयां लगती हैं, कितने मच्छर मरे होंगे । करोड़ों मरे थे उस बडी लडाई में । जब जर्मन और इनकी लगी थी । कोई पूरा अंदाज नहीं कह सकते हैं, परन्तु सबके एकदम करोड़ों मरे । देखो, जर्मन के सभी जो भी एक दो में मददगार थे, चीन-जापान फलाना जिन-जिन के थे, क्या भारत के नहीं मरे? भारत के भी बहुत मरे, वहां लड़ाई के मैदान मे गए थे, क्योंकि गवर्मेन्ट का राज्य था । वो भी यहाँ से ले गए मददगार... । करोडों मरे । अच्छा, पार्टीशन में भी करोड़ों मरे, याद रख लेना, परन्तु वो कुछ भी बताते नहीं हैं । अभी तो तुम जानते हो कि कितने करोड हैं! बताओ । ये सभी तो जाने के हैं ना । इसलिए गाया जाता है राम गयो रावण भी गयो । तो राम और रावण दोनों होंगे ना । तो देखो, यह राम का भी राज्य और यह रावण का । वो आसुरी सम्प्रदाय, यह दैवी सम्प्रदाय । वापस तो जाना है ना । फिर आएँगे तुम नई दुनिया पर । उस समय बहुत थोड़े होंगे, छोटा बगीचा होगा । ये सभी समझने की बातें हैं और यह तो निश्चय की बात है ना । निश्चयबुद्धि कि बरोबर बाबा ही यह नॉलेज दे सकते हैं, बाबा ही सर्व का सद्गति दाता है, बाबा ही वही है जो कहते हैं मैं कालों का काल हूँ मैं मच्छरों (मिसल) सबको वापस ले जाऊँगा । तो कालों का काल थोड़े ही हुआ । यह तो पतित-पावन हुआ । वो तो अच्छा ही करते हैं, पतित दुनिया से वापस ले जाते हैं । जो मनुष्य आधाकल्प में न कर सके । हमने भगवान से मिलने के लिए आधाकल्प भक्ति की है, कुछ भी न कर सके । अभी बाबा सेकेण्ड में ले जाते हैं । इसको कहा जाता है भक्ति का फल । भक्ति तो जरूर होनी है ना । भक्ति माना दुर्गति । तो दुर्गति में आए । अब भक्ति से दुर्गति मिली, दुर्गति से सद्गति का फल मिला । अभी कितनी अच्छी समझानी देते हैं और बच्चों को सिखलाते हैं कि तुम भी ऐसे बैठकर समझाओ जो समझने आवे, परन्तु यह याद रख लेना कोटो में कोऊ, कोऊ में कोऊ, कोऊ में कोऊ । तुम इतनी प्रदर्शनी में बोलते हो- बाबा, प्रदर्शनी में 20000 आए । अरे, उनमें से दो पांच भी निकल पड़े । प्रजा तो बहुत बनेगी, इसमे कोई शक नहीं । बाकी रेस करने वाले निश्चय बुद्धि एक , दो भी निकले तो समझो अहोभाग्य! निकलेगा तो नहीं । आधा भी नहीं निकलेगा । हाँ, कोई चलेगा । अच्छा, निकलेगा भी तो चलते-चलते जब युद्ध के मैदान मे आएगा, तब ऐसा उल्टा-सुल्टा घूँसा खाएगा, कहीं नाक पर चोट लगेगी, फाँ हो करके गिर जाते हैं । कितने बच्चे जाकर गिर जाते हैं । देखो, बाप बैठ करके सब कुछ समझाते तो बहुत अच्छी तरह से हैं । कोई भी नया आएगा तो कुछ नहीं समझेगा, क्योकि यह यूनिवर्सिटी है ना । अभी यूनिवर्सिटी मे कोई भी अनपढ़ बैठेंगे तो क्या समझ में आएगा? कोई भी देखेंगे, जो प्रिन्सीपल होगा, बोलेगा- अरे, यह कहाँ से आ करके बैठे, यह तो कुछ भी समझेगा ही नहीं । कभी भी अलाउ ही नही होता है । कोई भी कोई कॉलेज मे जाकर बैठ जावेगा, हाँ देखने जाते हैं । अच्छा, देखो, कमरा देखो, यह देखो, बस और क्या! बाकी रोज थोडे ही उस कॉलेज में आकर बैठेंगे । तुम कितना भी समझाते हो 7-8 रोज, 10 रोज या 20 रोज, आकर समझाते हैं फिर माया का थप्पड लगा, कॉलेज ही छोड़ देते हैं । वो समझते हैं गॉड फादरली कॉलेज है । गॉड फादरली कॉलेज के हम स्टूडेंट हैं ।.. .अरे, गॉड फादरली स्टूडेण्ट गॉड एण्ड गॉडेज बनने के लिए, क्योंकि गॉड एण्ड गॉडेज कहते हैं ना । फिर भी माया एक ही थप्पड से गॉड एण्ड गॉडेज पेट से निकाल देती है । अच्छा चलो बच्ची, छुट्टी लेते हैं । जो गारंटी करे कि हम कभी रोएँगे नहीं, वो आकर कभी कैसा, कभी कैसा । कभी भी आंसू नहीं बहाएँगे सदैव हर्षित रहेंगे, क्योंकि जिसको ऐसा बेहद का बाप मिला, जिनसे हमको विश्व का मालिकपना मिलता है । ऐसा बाप तो किसको नहीं मिलता होगा ना । वो तो सतयुग में मिलता है, उसमें कोई शक नहीं, क्योंकि अभी का वर्सा है । फिर तो नहीं होता है । जब ऐसा बाप मिला और हम विश्व का मालिक बन रहे हैं, उनको रोने की तो दरकार ही नहीं है । अच्छा, अगर सजनी है, साजन मिला । अरे वाह! हमको साजन भगवान मिला, हमको रोने की दरकार नहीं । बाबा कहते हैं अगर तुम रोएंगी तो हम समझेंगे कि तुम विधवा हो गई हो । विधवा बहुत रोती है ना । मालूम है तुमको विधवाएँ बहुत रोती हैं । बारह-बारह महिना या हुसैन, या हुसैन, या हुसैन करती रहती हैं । पति थोड़े ही या हुसैन करते हैं । तो देखो, हैं ना बहुत रोने वाली । तो उनको बहुत हँसाने के लिए बाबा खड़ा कर रहे हैं कि तुम कभी नहीं रोना । इसमें भी खास तुम बच्चों को कहते हैं । रोने की आदत भी इनमें बहुत है । अभी इनको नही रोने के लिए कहते हैं । भूल जाते हैं और भूल जाने से तो सब आपदाएं आ जाती हैं । बाबा समझ सकते हैं कि. .जरा मंजिल है, फिर भी पुष्टि देने के लिए कोई है जो गारंटी करे कि हम रोएँगे नहीं । अगर रोएँगी तो हम कहेंगे विधवा है । कोई भी आवे । दिल्ली में सब जगह में बोल देना कि कभी भी रोवे तो एक घूँसा भी लगाना और बाबा को भी बोल देना । जिसको आधा कल्प याद किया वो मिलता है और तुमको स्वराज्य देते हैं 21 जन्म का, फिर तुमको और क्या चाहिए! एक गीत है ना- जब वो मिला तो बाकी हमको क्या चाहिए! जानते हैं मुश्किल बात है, तो भी पुरुषार्थ कराने के लिए हिम्मत तो दिलाते रहते हैं ना । कभी कोई रो नहीं सकते हैं, रोते नहीं हैं । जाते हैं ना, पुरुष भी जाते हैं । कोई का मरते हैं तो उनको वो करने जाते हैं । क्या कहते हैं? (किसी ने कहा- सीआपा) नहीं, दो आंसू भी बहाते हैं, क्योंकि उनके लिए इनको भी बहुत प्यार था । आंसू भी बहाते हैं । छोटा था तो एक मांसी मर गई थी तो मेरे को बाप कहने लगा तुमको जाकर यह करना चाहिए । हाँ, ईश्वर की भावी ऐसी थी, वो बेचारा अच्छा था, ऐसा था और दो आंसू भी बहाना । मैं बोला आंसू नहीं आवे तो फिर हम क्या करेंगे? मैं खुशमिजाज, मुझे आंसू नहीं आवे तो मैं क्या करूंगा? बोला, बाहर से क्या करना थोड़ी तो वो देखे कि भई, आँखे भीगी हुई हैं । थोड़ा बाहर से पानी से ऐसा-ऐसा डाल कर जैसे कि रोना ही आता है । तो भी मैंने बहुत मत्था मारा और आया ही नहीं, फिर क्या करें । तो फिर हमने आकर बोला- बाबा, मेरे को तो आया ही नही और में ये लगाऊं मुझे अच्छा ही नहीं लगता । 'मीठे-मीठे', देखो कौन कहते हैं? बेहद का बाप । 'मीठे-मीठे' फिर सिकीलधे, 5000 वर्ष के बाद फिर से आ करके मिले । फिर से माना फिर से मिलेंगे, फिर से मिलेगे, फिर-फिर से मिलेंगे । यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट माना फिर-फिर से फिरती है । सत, त्रेता द्वापर, कलहयुग फिर सत त्रेता द्वापर कलहयुग संगमयुग । और तो कोई दुनिया है नहीं । गॉड इज वन । क्रियेशन इज वन । मनुष्य तो कहते हैं आकाश-पाताल-स्टार सभी दुनियाएँ हैं । अब ऐसी तो कोई बात है नहीं । दुनिया एक ही है । गॉड इज वन तो क्रियेशन भी है वन । हाँ, यह जरूर है कि अपनी सारी क्रियेशन को आकर शांति-सुख का वर्सा देते हैं । यह कल्प- कल्प उनका काम है और फिर जो दुःख देते हैं, वो रावण का राज्य है, जिसको भारत में ही जलाते हैं, और कोई जगह में थोड़े ही जलाते हैं । रावण को कोई दूसरी जगह में नहीं, क्योंकि यहाँ ही है । सुख और दुःख की आखानी यही है, इसके ऊपर । तो अभी सतयुग में जलाएँगे? रावण निकालेगे? राज्य ही खतम हो जाएगा पीछे काहे का.! पीछे तो रामराज्य हुआ ना । रावण कहाँ से आएगा? जब तलक रावण राज्य है इतनी बुद्धि नहीं है कि बरोबर अभी रावण राज्य जरूर है, क्योंकि रावण को हम बरस ब बरस... । तो जो चीज यहाँ होती है वो वहाँ बरस ब बरस मनाते रहते हैं । होली एक दफा होती है, भंभोर को आग लगती है, फिर बरस ब बरस... । शिवजयन्ती बरस ब बरस । कृष्ण जयन्ती बरस ब बरस । यानी जो भी यहाँ की बात है वो फिर भक्तिमार्ग में बरस ब बरस मनाते रहते हैं । यहाँ तो एक बार होती है ना । देखो, होलिका, भंभोर को आग एक ही बार लगेगी । तो हर एक चीज को वो बरस ब बरस मनाते रहते हैं । तुम अभी राखी बंधन करते हो ना कि 21 जन्म के लिए पवित्र बनाते हैं । वो हर बरस रखी बंधन मनाते रहते हैं, त्योहार मनाते रहते हैं । बहुत करके हैं सब इस समय का जो फिर भक्तिमार्ग में बरस ब बरस होता रहता है । अच्छा, ऐसे 5000 वर्ष के बाद फिर से मिले हुए सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, जिसको कहा ही जाता, सुख घनेरे तो तुम जानते हो कि अभी हमको उस परलौकिक मात-पिता से सुख-घनेरे मिल रहे हैं जिसके लिए हम गाते थे । अभी तो मिल रहे हैं । खलास । आधा कल्प चुप । फिर तुम बरस ब बरस मनाते रहेंगे । शिव जयन्ती, तो ये मात-पिता हैं ना, जिससे हमको वर्सा मिलता है और मनुष्यों को मालूम ही नहीं रहता है कि शिवजयन्ती क्या चीज है, क्यों मनाते हैं, क्या हुआ था । कुछ भी पता नही । तो ये फिर से ऐसे ही होगा । अभी देखा ना । भक्तिमार्ग मे जो कुछ भी हुआ सो रिपीट होगा । सतयुग-त्रेता में जो कुछ भी सुख की राजधानी थी सो फिर रिपीट कराई है । बना हुआ है ना । इसको अंग्रेजी में कहते हैं प्रीओर्ड़ेंट इम्पेरिशेबल वर्ल्ड ड्रामा यानी वन ड्रामा । ड्रामाज नहीं कहते हैं । वन ड्रामा । अभी इनका तुम बच्चों को मालूम है, दूसरा कोई भी नहीं जानते हैं । वो तो ड्रामा-ड्रामा पता नहीं क्या करते हैं । कोई ऐसे सतसंग में ये रिकॉर्ड नहीं बजाए जाते हैं । सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।