06-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज रविवार जून की छह तारिख है प्रात क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड –
तू प्यार का सागर है………….
ओम शाति!
यह किसने गाया? बच्चों ने बाप के लिए गाया । यह तो जरूर है कि बाप को बच्चों के लिए प्यार रहता है । जब बाप को बच्चों के लिए प्यार रहता है, तो माँ का भी प्यार रहता है । बरोबर बच्चे कहते भी रहते हैं- तुम मात-पिता हम बालक तेरे । जरूर प्यार करते हैं ना । अभी किसको याद-प्यार किया? माँ मालिक को यानी क्रियेटर हुआ ना । बच्चों का रचता हुआ । तो बाप और माँ को बच्चे प्यार करते हैं, मां और बाप बच्चों को प्यार करते हैं । यह भी बच्चे ऐसे ही कहते हैं कि ज्ञान का सागर है, परन्तु एक बूँद अर्थात् एक सेकेण्ड... । बूँद क्या है, सागर की एक जरी-सी है । एक बूँद से हम जीवनमुक्ति पाते हैं यानी यह जो मृत्युलोक है उनसे चले जाते हैं अमरलोक वाया अपने स्वीट होम । यह तुम बच्चों को अच्छी तरह से समझाया गया है । अभी यह तो बच्चे जानते हैं कि अनेक मत-मतांतर हैं । कोई किसको पूजता है, कोई किसको पूजता है, कोई गुरू । अथाह हैं । वो अथाह मत-मतांतर क्या है? वो सभी झाड़ की बिल्कुल छोटी-छोटी टालियाँ हैं । तुम झाड़ को देखेंगे- फाउण्डेशन होता है, पीछे फाउण्टेन निकलते हैं । तीन फाउन निकलते हैं ना । इसको अंग्रेजी में फ्लावर वाश भी कहते हैं यानी गुलदस्ता । तीन हैं फाउण्टेन एक है फाउण्डर नीचे । तो देखो, है ना बरोबर यह फाउण्डेशन । बरोबर फाउण्डेशन है आदि सनातन सतयुगी देवी-देवता धर्म ह्यूमेनिटी । कौन-सी वैराइटी? यह आदि सनातन देवी-देवताओं की वैराइटी । यह वैराइटी धर्म का झाड़ है । वो जो किस्म-किस्म के झाड़ होते हैं एक-एक बीज का वो अपना-अपना फल देते है, ऐसा ही । यह है बरोबर झाड़, परन्तु इसको गाया ही जाता है वैराइटी यानी भिन्न भिन्न प्रकार के धर्मों का झाड़ । देखो, अथाह धर्म हैं, अनेकानेक । तो अनेकानेक मत भी हैं । अनेकानेक मत आपस में मिल नहीं सकती है । देखो, कहीं भी जाओ, तुम राज्य सभा देखो, लोक सभा देखो, जो कुछ भी इन्होंने बनाई है, एक मत कभी नहीं मिलेगी । एक न मिले दूसरे से । कोई न कोई मत के ऊपर इनका झगड़ा चल जाता है । इसलिए बाप आ करके सब झगड़ा मिटा देते हैं । बोलते हैं मैं यह मतभेद का सब झगड़ा मिटा देता हूँ । मतभेद को कहते हैं द्वैतमत और एक मत को कहाँ जाता है अद्वैत मत । अद्वैत को फिराएंगे तो देवता बन जाएँगे । द्वैत को फिराएंगे तो दैत्य हो जाएँगे । अनेक प्रकार की मत को फिर आसुरी मत कहाँ जाता है । यह मत इतना कौन फैलाते हैं? यह रावण राज्य । सतयुग में एक अद्वैत मत, कोई झगड़े की, कोई खिटपिट की बिल्कुल कोई भी बात नहीं । यह तो बच्चे अभी अच्छी तरह से समझ गए हैं । अभी बाप कौन है, कहाँ का मालिक है, यह बात भी मनुष्य नहीं समझते हैं । वो समझते हैं कि ये जो भी त्रिलोकी है उनका मालिक है । त्रिलोकी माना मूलवतन सूक्ष्मवतन स्थूलवतन । इसको त्रिलोकी कहाँ जाता है, तीन लोक । भई त्रिलोकीनाथ है, ऐसे कह देते हैं । बाप कहते हैं यह भी झूठ है । हम त्रिलोकीनाथ हैं ही नहीं । हम सिर्फ मूलवतन के नाथ हैं । ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ । बाकी सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा विष्णु शंकर रहते हैं । हम थोड़े ही वहाँ रहते हैं । वहाँ हमारा निवास है? अच्छा, यह जो मनुष्य लोक है इनमें हमारा निवास थोड़े ही है । यह मेरा लोक थोड़े ही है । यह तुम्हारा लोक है और वो ब्रह्मा विष्णु शंकर का लोक है । हमारा तो मूलवतन लोक है । हम कहाँ हैं त्रिलोकीनाथ! हैं हम? नहीं । तुम भी कोई अपन को त्रिलोकीनाथ नहीं कहेंगे । क्यों? सूक्ष्मवतन के नाथ तुम लोग कहाँ हो? सूक्ष्मवतन के नाथ तो ब्रह्मा विष्णु शंकर हैं । तुम लोग कहाँ हो? तुम लोग यह जो स्थूलवतन है उसके मालिक हो । मैं ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ और उनका ब्रह्मा विष्णु शंकर मालिक हैं । कौन कहते हैं परमपिता परमात्मा त्रिलोकीनाथ है? या तुम त्रिलोकीनाथ हो? हर एक अपनी-जगह जगह का नाथ है । समझा ना । तो ये सभी गुह्य बाते हैं जो बाप बैठ करके बच्चो को समझाते हैं । विचार करो, जज करो कि तुम कहाँ हो? अगर तुम सूक्ष्मवतन के मालिक होते तो तुम सूक्ष्मवतन में रहते, परन्तु नहीं, सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा विष्णु शंकर रहते हैं । तुम वहाँ के रहवासी थोड़े ही हो । तुम 84 पुनर्जन्म यहाँ लेने वाले हो । तो हर एक की एक्टीविटी या पार्ट अलग है । तुम 84 जन्म लेते हो । सूक्ष्मवतन में जो रहते हैं तुम उनके लिए नहीं कहेंगे कि 84 जन्म । जबकि यहाँ 84 जन्म मिलते हैं । तुम हो मूलवतन में, क्योंकि अभी सभी तीनों लोकों को जान तो गए ना । इसको कहाँ जाता है त्रिकालदर्शी बने । तो बरोबर मूलवतन मे बाप भी रहते हैं, तुम बच्चे भी रहते हो । हाँ, ऐसे कह सकते हो कि बरोबर हम वहाँ मूलवतन में बाबा के घर में तो रहने वाले हैं ही, क्योंकि बाबा भी इनकॉरपोरियल हम भी इनकीरपोरियल या बाबा भी निराकार... । यानी जबकि हम वहाँ रहते हैं तो कोई सूक्ष्म या स्थूल आकार नहीं है । बस, वहाँ हम आत्माएँ रहती हैं । सो भी हमारा आकार देखो कितना है, कोई भी नहीं जानते हैं ।.. .बाप आकर समझाते हैं- बच्चे, आत्मा का आकार क्या है जिसको निराकार कहाँ जाता है, देखो बिन्दी! अभी कोई जानते हैं क्या! भले गाते हैं, कहते हैं कि भृकुटी के बीच में चमकता है सितारा । बरोबर यह साक्षात्कार बहुतों को होते हैं । ऐसे नहीं कि नहीं होते हैं । समझ में कोई को कुछ भी नहीं आता है । जब समझ में आता है कि बरोबर इस शरीर मे आत्मा का निवास स्थान है तब हम बोल सकते हैं यानी आत्मा कहती है कि ही, मेरा निवास स्थान इस शरीर में है तब तो मैं इन ऑरगन्स से बोल सकती हूँ । पीछे जब हम अलग हो जाती हूँ तो बोल नहीं सकता हूँ । आत्मा निकल जाए तो शरीर बोलेगा? नही, बिल्कुल कोई काम का ही नहीं । जलाया जाता है । आत्मा को तो कोई जला नहीं सकता है ना, क्योंकि वो तो है ही अविनाशी । उनमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, क्योंकि इस ड्रामा को ही जबकि कहा जाता है इम्पेरिशेबल ड्रामा तो जरूर इम्पेरिशेबल आत्मा... क्योंकि सब बच्चों का आत्मा में ही पार्ट है ।.. .बच्चे समझ भी गए हैं कि ऊँचे ते ऊँचा भगवत् जिसको अनेक प्रकार के नाम देते हैं, मालिक भी कह देते हैं । जब मालिक ठहरा तो जरूर हम फिर बच्चे ठहरे । हमारा मालिक । मा मालिक । देखो, मुसलमान लोग कहते हैं ना- मा मालिक । अच्छा, बहुत हिन्दू लोग भी ऐसे ही कहते हैं । खास करके ये जो फर्रुखाबाद के तरफ वाले हैं वो कहते हैं मा मालिक । भई, मेरा मालिक । मालिक किसको कहाँ जाए? बाप ही कहेंगे उसको । फादर ही कहेंगे ना । मालिक ठहरा तो फादर ही ठहरा । तो जभी फादर का, मालिक का ऑक्युपेशन चाहिए, सिर्फ मालिक कह देना उससे तो कुछ फायदा ही नहीं है । मालिक मालिक, मालिक मालिक क्या! मालिक से क्या मिलने का है? भला मालिक को क्यों याद करते हैं? मालिक से कुछ मिलना चाहिए यानी बाप है उनसे मिलना चाहिए । क्या मिलना चाहिए? जरूर इनहेरिटेन्स मिलना चाहिए । ठीक है ना । इनहेरिटेन्स भी देंगे तो कहाँ का देगे वो भी मालूम होना चाहिए । भई, यहाँ मा मालिक कहाँ रहते हैं? भई, मालिक निर्वाणधाम में रहते हैं । चलो, हम भी तो जरूर निर्वाणधाम के वासी होंगे । वो भी निराकार तो अहम् आत्माएँ भी निराकार । अच्छा, तो फिर हम उस मालिक से चाहते हैं, मालिक को क्यों याद करते हैं? मालिक से मिलने के लिए । फिर बात होती है, कैसे मिलें और क्यों मिलें? फिर हमको क्या होगा? क्या मालिक के पास जाकर बैठ जाना है? नहीं, फिर भी तो हमको यहाँ आना है जरूर । ऐसे तो नहीं है कि नहीं आना है । ऐसा कोई भी मनुष्य है जिसको यहाँ न आना है? आना ही है । यह तो जानते हो कि बरोबर कोई पहले आने वाले हैं और कोई पीछे आने वाले हैं । जो पहले आने वाले हैं वो पीछे में रहते हैं । पीछे वाले फिर पहले मे रहते हैं । तो पहले में कौन रहते हैं- यह भी बच्चों को मालूम होना चाहिए । भई, पहले में सतयुग में तो स्वर्ग होता है । अभी यह तो नर्क है । तो पहले में भला कौन आते हैं? देखो, कितनी ऊड बातें हैं जो बाप बैठ करके समझाते हैं कि कुछ समझते हो? यह तो जैसे ही जो कुछ आया सो अपन को बोल दिया । यह तो बाप बैठ कर समझाते हैं । अभी फिर बच्चों को ख्याल होता है, क्योंकि झाड़ तो अच्छी तरह से समझा दिया । नहीं तो झाड़ वगैरह की कोई बात... । कहते हैं कल्पवृक्ष, पर वो कल्पवृक्ष में भी पहले पहले कौन आते हैं और किस धर्म के, क्योंकि बाप ने समझाया ये वैराइटी धर्म हैं, भिन्न भिन्न धर्म हैं । देखो हैं ना, पहले डीटी धर्म, पीछे इस्लामी धर्म, पीछे बौद्धी धर्म, पीछे क्रिश्चियन धर्म । अच्छा, क्रिश्चियन धर्म क्या सतयुग में जाएगा? नहीं जा सकते हैं, क्योंकि यह अविनाशी ड्रामा है, जो फिरता-गिरता है । इस झाड़ के लिए भी कहा है कि बरोबर यह पुराना झाड़ भी विनाश होता है, परन्तु विनाश होने के पहले-पहले जरूर स्थापना चाहिए । शास्त्रों में कोई ने लिख दिया कि प्रलय भी होती है, एक भी नहीं रहता है । पीछे क्या होता है? वो सागर में एक पीपल के पत्ते में एक बालक आता है । भला वो बालक कौन है? उस बालक को क्या कहेंगे? बालक ठहरा ना । तो बालक क्या आकर करते हैं? यह तो बिचारों को कुछ मालूम नहीं है । फिर कह देते हैं बालक वो तो श्रीकृष्ण है । अरे भई, श्रीकृष्ण पीपल के पत्ते पर सागर में कैसे आएँगे! कभी ऐसे बच्चा कोई पीपल के पत्ते पर सागर से.. । हाँ, यह भी सुनते हैं तो सत्य कह देते हैं । वो ख्याल नहीं करते हैं कि ऐसे हो कैसे सकता है । इतना बाप है, वो भी आकर कहते हैं कि बच्चे, मैं आ करके इस साधारण तन में प्रवेश कर और तुम बच्चों को नॉलेज सुनाता हूँ । जैसे बच्चे भी आ करके वो कहते हैं न छोटे-बच्चों के भृकुटी में, तो जरूर भृकुटी के बीच में आकर बैठता होगा । वो छोटे बच्चों में बैठ सकते हैं, क्या मैं बड़े बच्चे में नहीं बैठ सकता हूँ? और मैं आकर कहता हूँ कि मैं आऊँ भला, नहीं तो तुम राय निकालो कि मैं कैसे आऊँ? मुझे तो रथ चाहिए । वो दो-चार घोडे वाली गाड़ी, वो रथ की तो बात नहीं ठहरी । तो देखो, यह रथ उसमें रथी । वो तो खुद अपने रथ में है । फिर बाप कहते हैं मैं इसके रथ में ही आकर प्रवेश करू, नहीं तो मैं रथ कहीं से लाऊं? तुम लोग विचार करो, जज करो कि किसमें आऊँ? और फिर मुझे आना भी उसमें ही है, जिसने पूरे 84 जन्म भोगा है, जिसको फिर पहले नया बनना है । तो जरूर मुझे पहले इनमें बैठना पड़े, जो पहले से सुने । यह तुम जानते हो कि पहले से इनके कान सुनते होंगे । भले देरी नहीं लगती है, सेकेण्ड भी नहीं लगता है, परन्तु बाबा इनमें बैठ करके. तो बहुत नजदीक हुआ ना । तो ये पहले सुनते हैं, क्योंकि इनको पहले आना है और इनको पुरुषार्थ भी ऐसे ही करना है जो पहले... । पीछे प्लेस में होती है । रेस होती है ना, उसमें प्लेस होती है, क्योंकि इनमें हर प्रकार का बहुत ही अनुभव चाहिए ना, जो दृष्टान्त वगैरह देकर समझावे । तभी तो कहा गया है ना कि इसने तो न गुरू किए, बहुत गुरू किए, बहुत शास्त्र पढ़े हैं । हे बच्चे, अभी यह सब भूल जाओ । तुमने जो कुछ पढ़ा उनसे कोई फायदा थोडे ही हुआ । अच्छा, पढुते-पढ़ते अभी तुम्हारा यह हाल हो गया है । इनको कहते है ना । देखो, तुम समझते हो कि किसको कहते हैं? यह वही सोल है जो पहली थी, श्री नारायण की थी । पूज्य था फिर जरूर पुनर्जन्म लेकर पुजारी बनेंगे । तो आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी किसको कहें? जरूर जो हुआ है उनको ही कहेंगे । देवताएँ हुए हैं जरूर, फिर पूज्य से पुजारी बने । बाप को तो नहीं कहेंगे आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । मनुष्य तो ऐसे ही कहते हैं आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । बुद्धि एकदम चली जाती है फिर भी निराकार की तरफ । यह तो इनको मालूम ही नहीं है । बाप बैठ करके बच्चों को अच्छी तरह से समझाते हैं कि एक तो झाड़ का बुद्धि में रखो । बरोबर उल्टा झाड़ है । पहले-पहले नीचे से देवी-देवता धर्म ही है- सूर्यवंशी, फिर चंद्रवंशी । झाड़ निकाला है ना । बच्चों के लिए यह निकाला हुआ है । बिगर चित्र कोई बच्चे समझते है? बच्चे को अगर कहो हांथी देखा है? वो बेचारा चित्र ही नहीं देखा है, हांथी ही नहीं देखा है तो क्या कहेंगे! कहेंगे? घोड़ा देखा है? देखा है? तब छोटे बच्चों को उसमें दिखलाते हैं- यह घोड़ा है, यह हाथी है, यह फलाना है ।