25-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


यह पच्चीस जून की प्रात: सभा है, अहा...! आज कैसा भेश है की आज मनहरणी माँ हम बच्चों बीच न रही। सभी मधुबन निवासी अपनी माँ के आवाहन में सारी रात अखंड नेष्टा की ज्योत जगाए बैठे..........

रिकॉर्ड :-
माता माता माता! तू सबकी भाग्यविधाता......... .
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बच्चे बैठे हैं, ये तो जरूर है कि बच्चों को फरमान है कि बेहद के बाप को याद करते रहो । जरूर जो भी नाम-रूप वाले बच्चे हैं, जो भी बाप की सर्विस में हैं, उनसे ये योग और ज्ञान सुनना है । वो भी क्या सुनाएँगे? कि बाप को याद करो, क्योंकि वर्सा उनसे मिलता है । अच्छा, मम्मा भी तो वही सुनाती है, बच्चे भी वही सुनाते हैं कि शिवबाबा को याद करो । तुम बच्चे भी जो यहाँ बैठे हुए हो, ये बैठे हुए हो शिवबाबा की याद में । भल अब तक भी याद में बैठे हैं कि कोई वण्डरफुल बात हो जावे । क्या भी हो सकता है, वो तो साक्षी होकर देखना है । कोई फिकर नहीं करना है, क्योंकि तुम बच्चे... फखुर में हो । किस फखुर में हो? कि हम सब बेहद के बाप से, जो भी साकार मम्मा-बाबा हैं, वो वर्सा ले रहे हैं । अच्छा, इनमे कोई भी समझो जाते हैं तो फिर अपन कह देंगे कि यह तो भावी है । कल्प पहले भी ये हुआ था । देखो ड्रामा के ऊपर भी तो चलना पड़े न जिससे कोई फिक्र न रहे, फिर भी फखुर में रहें कि हमको तो बाप से वर्सा लेना है और हम कहीं भी हो, हमको तो बाप को ही याद करना है । मुरली सुननी है सो तो बाप सुनाते ही रहते हैं । आज एक मम्मा गई, कल दूसरा कोई चले जाएँगे । यानी बाप को मुरली जरूर सुनानी है । इसका रथ तो कायम है, जिससे बाबा तुम बच्चों को नई- नई पॉइंट्स और गुह्य अर्थ समझाते रहते हैं और यही सबको कहते रहते हैं कि बच्चे बाप को याद करो, कोई भी नाम-रूप में फँसो मत, कोई भी हो, क्योंकि समझो कोई मम्मा की याद में शरीर छोड़ देते हैं तो उनकी सद्गति तो हो ही नहीं सकती है फिर भी, क्योंकि नाम-रूप में फँस पड़े । यह ज्ञान तो है सब बच्चों के लिए कि कोई भी किस्म का इनको फिकर न रहे, बल्कि फखुर में रहे और जो-जो भी देखते हो समझो यह कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था । भले समझाते रहते थे कि यह जगदम्बा.... गाड़ी की और साथ ही चलने वाली है, परन्तु नही, यह देखा गया है कि यह मम्मा भी चल पड़ी है । जब तलक अभी है शमशान तक । कभी में कहते हूँ कोई मिरेकल(चमत्कार) हो जाए । ड्रामा है ना! जो कुछ भी ड्रामा में नूँधा हुआ होगा वो पिछाड़ी तक हो जाएगा । अगर कुछ भी नहीं होता है तो समझेंगे कि कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था- सेकेण्ड बाए सेकेण्ड कैसी भी बातें होती रहें, क्योंकि आगे चल करके बहुत कुछ ही वण्डरफुल बातें देखने की हैं, बहुत दुःख की बातें आने की होती हैं, क्योंकि इस समय में तो हैं ही दुःख की बातें, परन्तु हम उन दुख को कुछ फिकर में नहीं रहते हैं । देखो, बाबा तो कोई फिकर में नहीं है । फिकर में हैं? नहीं, क्योंकि वो जानते हैं कि हमको तो बाबा को याद करना है । हमको तो बाबा को वर्सा है । उनको भी बाबा को(से) वर्सा लेना है, क्योंकि बाबा ने समझाया है क्रियेशन से कोई वर्सा नहीं मिलता है । क्रियेशन को क्रियेटर से वर्सा मिलना है । इसलिए जो भी क्रियेशन हैं बच्चे और बच्चियों, नई क्रियेशन हैं ना, उनको बाप को याद करना है बाप को, कुछ भी हो जावे । समझो, कोई भी ऐसा विघ्न पड़ता है, कोई को संशय होता है । तो इसमें संशय की कोई बात होती नहीं है, क्योंकि याद शिवबाबा को करना है । उनमें संशय की तो कोई बात उठ ही नही सकती है । संशय करके क्या करेगा? अच्छा, रूठ जाएगा, समझेगा- पता नहीं यहाँ क्या है! ऐसे-ऐसे क्यों बात होती है! नहीं, यह संकल्प हम उठा ही नहीं, कह ही नहीं सकते हैं । बस, जो होता है, देखते हैं सृष्टि पर सेकेण्ड बाए सेकेण्ड वो कल्प पहले मुआफिक होता ही रहता है । बच्चों का कल्याण किसमें है? बाप को याद करना, औरों को रास्ता बताते जाना । यह है बाप की सर्विस में तुम बच्चों का काम । सर्विस में रहते-रहते, अच्छी सर्विस करते-करते कोई चला जाता है तो फिर यही समझना चाहिए कि इनको भी कहीं जा करके कोई पार्ट बजाना है । भावी है । कोई न कोई कल्याण के कारण ये सब कुछ होता है, क्योंकि बाप कल्याणकारी है और यह ब्राह्मणों का संगमयुग है ही कल्याणकारी । हर एक बात में कल्याण समझ फखुर में ही रहना है, क्योंकि हम ईश्वरीय संतान हैं । ईश्वर से वर्सा लेते हैं । वर्सा लेते लेते कोई चले जाते हैं तो जरूर कहीं उनका भी कोई पार्ट होगा और कुछ काम करने का । कोई-से भी काम हो सकते हैं, ऐसे मत समझो कि नहीं हो सकते हैं । हम कहेंगे कि अच्छा, मम्मा को इससे भी जास्ती कोई कार्य करना है, गई है । इसलिए बच्चों को कोई भी फिकर में नहीं रहना चाहिए, फखुर में ही रहना चाहिए की अहो सौभाग्य! जो हमारा ही पार्ट है कल्प पहले मुआफिक बाप का मददगार बनने का । मददगार बनते बनते कोई जनरल भी मर पडते हैं तो बडे भी । देखो, जैसे काँग्रेस है, जिसको अपन कौरव सम्प्रदाय कहते हैं । देखो, बैठे बैठे, प्रेसिडेन्ट चले जाते हैं । बैठे बैठे, नेहरु चले जाते हैं । ये तो है तुम्हारा सब गुप्त काम । सारे भारत का, चला गया तो क्या करेंगे! कुछ हो तो नहीं... । अपन समझते हैं कि ड्रामा अनुसार यह सब कुछ होता है । गया तो क्या हुआ! कोई भी ऐसे नहीं कुछ करना है । कोई नाम आदि तो कुछ करने का नहीं है । हमारा सब कुछ गुप्त । यह सारा ज्ञान गुप्त ही है । वास्तव में अवस्था उनकी अच्छी है जो कभी भी ऐसे न समझें कि मम्मा का शरीर छूट गया, आंसू आ जाएंगे । नहीं, आसू आएंगे तो नापास हो जाएंगे, क्योंकि बाप बैठे हैं ना जो सबको वर्सा दे रहे हैं । बस, बाप को ही याद करना है, नहीं तो नापास हो जाएंगे अगर आसू आ जाएंगे तो । आसू आ जाएंगे तो समझेंगे कि कोई नाम-रूप में हैं, फिर माँ हो या बाप हो । समझा ना । बाप अमर है, शिवबाबा तो अमर ही है । उसके लिए बिल्कुल ही कभी कोई आंसू आने की दरकार भी नहीं है, क्योंकि हम तो खुशी से शरीर छोड़ने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं । ऐसे है ना! चलो ऐसे ही समझना चाहिए- अच्छा, मम्मा का भी इस समय में ही जाने का था कोई कार्य अर्थ । यह तो ड्रामा है, उनमें जरूर सबका पार्ट है । इस समय में जो भी बच्चों का पार्ट है, भले कोई भी शरीर छोड़े, अपनी-अपनी अवस्था अनुसार तो उनका कल्याण ही है । बहुत अच्छे घर में जन्म लेकर वहाँ भी कुछ अपनी खुशबुएँ देंगे । अरे, छोटे-छोटे बच्चे भी खुशबुएँ देते हैं । बहुत महिमा करते हैं कि भई यह फलाना था, छोटेपन में सर्प आया था तो उनको लपेटा और उनको कुछ भी नहीं होता था । ऐसे कहते हैं ना । महिमा दिखलाते हैं । तो फिर उनकी यह महिमा क्यों होती है? कि हाँ, कोई नया सतोप्रधान सोल है, उनको कोई क्या कर सकेगा, क्योंकि उनको समय पास करना है । तो ऐसे-ऐसे कोई वण्डरफुल विचित्र चरित्र होते रहते हैं । ये भी एक चरित्र चलता है ना । बच्चों को तो सारा मदार ड्रामा के ऊपर और बाप के ऊपर है । ड्रामा का क्या? कि जो कुछ भी सेकेण्ड बाए सेकेण्ड होता है वो ड्रामा की नूंध है । ऐसे समझ करके अपना खुशी मे ही रहना चाहिए, हर्षित ही रहना चाहिए, क्योंकि अपनी है गुप्त । तुम कहीं भी जाएँगे तो भी शांति, कोई आवाज नहीं, कुछ भी नहीं । अभी भी तुम लोग जाएँगे तो सारी पलटन जरूर जाएगी । हाँ, जो थोडा चल सकते हैं । बुड्ढियॉ- बुड्ढियॉ न चल सकें तो न जाना है । बाकी तुमको बिल्कुल शांति से जाना है । तुम जहाँ से जाओ, जैसे कि शांति फैली हुई रहती है, कोई आवाज नहीं । वो सब वण्डर खावे ।.. .बाप की ही याद में । हम लोगों को कोई भी नाम-रूप में फँसना नहीं है । यह तो शरीर है । उसको तो जाना ही है । पार्ट बजाना है । हर एक को पार्ट नूँधा हुआ है । अभी नूंध में हम रोएँगे तो वो नूंध का पार्ट बदल थोड़े ही सकता है । इसलिए बच्चों को तो बिल्कुल ही अशरीरी, शांत और फिर हर्षितमुख । ऐसे भी नहीं कोई के आसू.... देखो, नापास हो जाएँगे अगर आंसू आया, कोई को किस प्रकार का दुःख हुआ तो समझेंगे शायद यह नाम-रूप में, यह शिवबाबा को याद नहीं करते हैं । दुःख होता है माना कि मम्मा को याद करते हैं, शिवबाबा को नही याद करते हैं, क्योंकि कमाई है ही शिवबाबा की याद में । एवर हेल्दी बनना है शिवबाबा की कमाई में । उसमें जरा भी, कोई भी गफलत नहीं चाहिए । इसमें बडी मेहनत है, मजबूती है । देखो, हनुमान बनना है ना! यह माया का कोई भी लोंदा नहीं आवे, कुछ भी न आए, क्योंकि अब जबकि अटल-अखण्ड राज्य लेना है तो अवस्था भी अटल चाहिए । कोई भी इत्तफाक हो जावे, चलो कोई छत गिर पड़ती है, 10- 20- 25 मर पड़ते हैं, ये ड्रामा की भावी, अफसोस की तो कोई बात नहीं । कल्प पहले भी ऐसे ही हुआ था । इत्तफाक तो होने के हैं । चलते- चलते अर्थक्वेक्स भी हो जाते हैं । ऐसे नहीं है कि तुम्हारे में से कोई मरने के नहीं हैं, कोई भी मर सकते हैं, कोई भी इत्तफाक में हो सकता है । इसलिए बाबा बताते हैं, समझाते हैं कि बच्चे, हमेशा अपने फखुर में कि हम बाप के बच्चे हैं, ड्रामा है । इसमें जिसको जो-जो पार्ट मिला हुआ है वो बजाता है, उसमें हमको क्या करना है! तभी बाबा आगे भी कहते थे कि हमारा ज्ञान ही ऐसा है- अम्मा मरे तब भी हलुआ खाना यानी ज्ञान रतन लेना, अब्बा मरे तब भी खुश रहना, क्योंकि याद फिर भी दे देते हैं । समझो बाबा कहते हैं कि बाबा भी चला जाए तो तुम बच्चों को फिर भी नॉलेज तो मिली हुई है ना कि हमको शिवबाबा से वर्सा लेना है । कोई इनसे तो लेने का नहीं था ना । नहीं, बाप से । बाप कहते हैं फिर बच्चों को कि बच्चे, तुमको वर्सा मेरे से लेना है । ये सब बच्चे मेरे से ले करके दूसरे को रास्ता बताते हैं । तुम हो रास्ता बताने वाले, बाप से रास्ता पा करके । तुम्हारा धंधा ही यह है, सो भी गुप्त, बहुत युक्ति से और बिल्कुल शांति से । कोई भी झगड़ा, खिटपिट कुछ भी नहीं । बाप का परिचय, क्योंकि यह बात फिर भी तो चलेगी ना कि परमपिता परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है । वो तो बाप है । वो कल्प-कल्प पतित भारत को पावन बनाते हैं, कौड़ी जैसे को हीरा, बाप बनाते हैं । उसके लिए सर्वव्यापी कहना यह तो बडी ग्लानि है । तुम बच्चों को तो अंधों की लाठी बनना है रास्ता बताने की । बाप का परिचय देना है । बस, फर्ज है बाप को याद करना, हर एक के ऊपर मेहर करना- यह बेचारा अंधा है, यह बुद्धिहीन है । जो भी विद्वान हैं, आचार्य हैं, पण्डित हैं, उनको सिर्फ एक बात कि परमपिता परमात्मा जो रचता है उससे आपका क्या सबंध है? देखो, नाम ही ऐसा होता है- परम पिता, क्योंकि क्रियेटर तो कहा जाता है ना । तो जरूर पिता कहेंगे ना । बस, पिता ही तो पतित-पावन है ना । पिता ही तो एक है । पिता ही तो पतित को पावन करने के लिए यह सहज राजयोग सिखलाया है । कृष्ण ने तो नहीं सिखलाया । कृष्ण तो प्रिस था । यह समझाना होता है ना । बस, वो सिद्ध करके फिर गीता का भगवान कौन, तो फिर सिद्ध हो जाएगा निराकार, साकार और ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ प्रजापिता ब्रह्मा तो हैं ही उनके कुमार और कुमारियाँ । वो रास्ता बताने के लिए अपना पार्ट बजाती हैं । बच्चों को बहुत् रहमदिल रखना है और यही पुरुषार्थ कि ये बिचारे दुःखी हैं, इनको सुख का रास्ता कहाँ से बताओ । इस दुनिया मे सिवाय एक और कोई भी सुख का रास्ता बताने वाला है ही नहीं । लिबरेटर दुःख हर्ता सुख कर्ता वो एक ही है और सर्व का एक । ये तो कोई हैं नहीं । यहाँ तो बहुत ही सर्व-सर्व, लीडर-फीडर-सीडर करते रहते हैं । सर्व का लीडर कोई हो सकता है? यह तो रॉग है ना । सर्व का सुखदाता । तुम सबको उनको ही याद करना है । बाबा कहते हैं कि तुम इन बाबा तरफ देखते हो । तुम जानते हो कि बाबा इन द्वारा... इसलिए तुमको इस तरफ में नजर करनी पड़ती है । तुम देखते इनको हो, तुम्हारी बुद्धि ऊपर में चली गई है । बाबा आ करके हमको इनसे ज्ञान सुनाते हैं । पीछे कभी बाबा आकर सुनाते हैं, कभी ये भी सुनाते हैं । जैसे देखो मम्मा भी सुनाती है, बच्चे भी सुनाते हैं । तो सुनाते रहते हैं ना । वो घड़ी- घड़ी ऐसे तो नहीं कहेंगी कि बाप सुनाते हैं । नहीं, वो तो बाप ने समझाया है । हाँ, हो सकता है कि बाप कोई के शरीर मे प्रवेश कर कोई का कल्याण करने के लिए कर सकते हैं । सब कुछ करता तो बाप है ना । सब कुछ बाप ही करता है उस फखुर में रहना चाहिए । यहाँ दुःख की कोई भी बात नही होनी चाहिए, कुछ भी हो जावे । भले हम जानते हैं कि मम्मा बहुत सर्विसेबुल, सबसे नंबर वन गाई जाती है । इनके हाथ में सितार दिखलाते हैं । अभी सितार तो नहीं है, पर तुम बच्चे जान गए कि बरोबर जगदम्बा यानी मातेश्वरी बहुत अच्छा समझाती थी । तो जिनको समझाएगा उनको लव रहता है । फिर भी समझते तो हैं कि यह बाबा की समझानी दी हुई है । इसलिए वो भी ऐसे कहती थी कि शिवबाबा को... । सब कहते हैं शिवबाबा को याद करो । मुझे नही याद करना, याद शिव को करना है । बरोबर कान से ज्ञान सुनना है, पर याद करना है उनको । तुम बच्चों को भी उठते बैठते चलते और कोई को भी लक्ष्य बताते... तुमको लक्ष्य ही बाप का बताना है । मन्मनाभव-मद्याजीभव- ये दो अक्षर ही मशहूर हैं । बाकी तो डिटेल्स हैं । देखो, डिटेल तो लग ही रही है । समझाना पड़ता है कि बाबा को याद करो और वर्से को याद करो । वर्सा मिला था, कब मिला था, सो इसके ऊपर समझानी है । फिर हम लोगों ने कैसे गंवाया सो फिर झाड़ के ऊपर और इस ड्रामा के ऊपर समझानी देनी पड़ती है । फिर भी अंत में तो यही है बुद्धि से भी कि भगवान बाबा है । बाबा से तो वर्सा जरूर मिलना चाहिए । बाबा से तो स्वर्ग का ही वर्सा मिलेगा । बरोबर भारत को स्वर्ग का वर्सा था । अभी फिर रावण का राज्य है और हार है । देखो, हार होने कारण इनसॉलवेन्ट है, पतित है, भ्रष्टाचारी है, कुछ भी नहीं है, परन्तु ऐसे थोड़े ही है कि यह भारत भ्रष्टाचारी ही था । भ्रष्टाचारी नहीं, भारत तो श्रेष्ठाचारी था । श्रेष्ठाचारी थे तो देवी-देवताएँ थे । फिर जरूर जन्म-मरण में तो आना ही है ना । इसलिए वो वर्ण गाए हुए हैं । देखो, ब्राह्मण बैठे हुए हैं, बाप से यह सहज राजयोग सीख रहे हैं, जिसके पीछे वो गीता नाम रख दिया है । हमको तो सीखना ही है । अगर कोई सीखना छोड़ देते हैं तो फिर क्या सीखेंगे! वर्सा तो ले नहीं सकेंगे । कोई भी हालत में कोई भी संशय किसको पड़े तो बाप तो कहते हैं कि अगर संशय पड़ा- यह हुआ, यह हुआ, तो बिचारा अपना नुकसान कर देंगे । मेरे द्वारा पढेंगे नहीं या मुझे याद न करेगे, क्योंकि ये जो चित्र वगैरह हैं, ये समझाने के लिए रखे हुए हैं । नहीं तो समझाने की बात सिर्फ दो हैं, बिल्कुल सिम्पल । तुम बच्चो को तो बिल्कुल सिम्पल लगती है जो तीखे हैं । अरे भाई, भगवान तुम्हारा क्या लगता है? बाप लगता है ना । भगवान को जानते हो? हाँ, सर्वव्यापी है । यानी परमपिता परमात्मा से क्या संबंध है? पिता-पिता कहो, परमपिता कहो, भगवान, ईश्वर और परमेश्वर इनमें सब मूंझ जाते हैं । तुम्हारा तो बरोबर है ही बाप से योग और बाप ही इन द्वारा बैठकर पढ़ाते हैं कि बच्चे, कोई भी हालत में, हर हालत में तुम बच्चों को कोई भी दुःख की महसूसता नहीं आनी चाहिए । भले बीमारी हो, कुछ भी हो । यह तो कर्मभोग है । बाबा से पूँछते रहते हैं कि यह क्या है? ये कड़ा कर्मभोग है । पूँछते हैं तो भी कहते हैं कि कोई वण्डर हो सकता है । बस, बताते नहीं हैं । कुछ भी पूँछते हैं तो बोलते हैं यह तो बताने की बात नहीं है । ड्रामा में बताने का है नहीं तो मैं कैसे बताऊँ? अभी बाबा को क्या करे? बाबा कहेंगे ड्रामा में कुछ बताने की नूंध नहीं है, इसलिए मैं कुछ बताता ही नहीं हूँ । साक्षी हो करके देखते चलो । इसलिए बच्चों को भी साक्षी हो करके बाप की याद में यही फखुर कि हम ईश्वर की संतान, ईश्वर के पौत्र और पौत्रियां ईश्वर से वर्सा लेते हैं, ले रहे हैं । बरोबर हम जानते हैं कि ये भी ईश्वर का वर्सा लेते लेते शरीर छोड़ देंगे । कोई भी छोड़ सकते हैं 10-20 इकट्ठे भी... आगे चलकर आफते तो बहुत ही हैं । हर एक को बस बाप को ही याद करना है, वर्से को याद करना है । डिटेल में समझा सकें । पूँछते हैं ना । बोलो, पहली बात तो यह है कि बाप से वर्सा तो जरूर चाहिए, तो भारत को मिला था ना । अभी वर्सा मिला था, जरूर था । अब यह भारत पुराना कैसे बना सो तो समझ की बात है ना । सतयुग नया, कलहयुग पुराना । सो तो जरूर फिरा ना । उसमें वर्ण भी फिरे 84 जन्म भी फिरे । हर एक जन्म में दूसरा शरीर, दूसरा फीचर्स, एक न मिले दूसरे से । श्रीकृष्ण का भी तो प्रिन्स राज्य था ना । पुनर्जन्म लिया होगा तो नाम-रूप तो फिरा होगा ना । वही तो नहीं होगा । फिर कभी भी वो कृष्ण... । हाँ, भक्तिमार्ग में साक्षात्कार हो सकता है, इसमें कोई संशय नही और यहाँ भी साक्षात्कार हो सकता है, क्योकि बाप भी ब्रह्मा द्वारा क्या देते हैं? प्रिन्स का वर्सा देते हैं । बच्चियाँ जो भी दीदार करती हैं घर बैठे भी, तो भी ऐसे ही ब्रह्मा का और फिर प्रिन्स का । बच्चे तो सभी ताज वाले ही दिखलाएँगे क्योंकि सभी ताज वाले हैं । पिछाड़ी तक, त्रेतायुग तक भी ताज वाले ही देखेगे । यह साक्षात्कार होता है । अभी कौन-सा प्रिन्स बनेंगे? यह तो सारा पुरुषार्थ के ऊपर है । जितना पुरुषार्थ करेंगे इतना ऊँचा सूर्यवंशी प्रिन्स बनेंगे । तो सारा मदार पुरुषार्थ के ऊपर हुआ ना । ये बच्चे भी महसूस कर सकते हैं कि हम जितना पढेंगे इतना ऊँचा पद पाएंगे, ऊँचा प्रिन्स बनेंगे । प्रिंस होते हैं ना । वो भी प्रिन्स सूर्यवंशी भी प्रिन्स चंद्रवंशी भी प्रिन्स एण्ड प्रिन्सेज । इसलिए बच्चों को तो पढ़ाई पढ़नी ही है । कुछ भी हो जाए, पढना जरूर है । ऐसे थोड़े ही है कि कोई का बाप मरते हैं तो बच्चा पढ़ाई छोड़ देंगे, भूख मरेंगे । किसकी माँ मरेगी तो फिर पढ़ाई थोडे ही छोड़ेंगे । नहीं, पढ़ाई जरूर पढ़ेंगे । तुमको तो कोई भी,... पढ़ाई रोज ही पढ़नी है तुम्हारे लिए । ऐसे भी नहीं कोई पढ़ाई एक दिन भी छोड़नी है या एक दिन भी कोई तुमको सर्विस न करनी है । अभी भी तुमको हर हालत में सर्विस... सर्विस तुम्हारी गुप्त । ऐसे भी जाएंगे ना, जैसे बिल्कुल शात अशरीरी हो करके जाएंगे । कोई पूछेंगे कि भई, माता जी का शरीर.. .? रास्ते में पूछेंगे तो जरूर । माता जी का शरीर छूटा है । देखेंगे, माता जी कहाँ? इनकी मातेश्वरी कहाँ? और ये बडी शांति में जाते हैं । कोई बात है! याद रख लेना रास्ते में एक , दो से बात भी नहीं करनी होती है । एकदम शांत में और फखुर से । नहीं तो मनुष्य होते हैं तो रास्ते में रोते भी जाते हैं, शमशान में जाकर रोते हैं । तुम लोगों को कभी भी आंसू नहीं बहाना है, जिसका योग शिवबाबा से है । अगर ऑसू बहाया तो फेल हुआ कि इनका मम्मा में मोह था । मम्मा-वम्मा मे कोई के मोह नहीं रखना होता है, न कोई शरीर में भी मोह रखना है, चाहे ये हो, चाहे ये हो । बाबा समझाते रहते हैं कि तुम बैठे हुए हो, बरोबर देखते यहाँ हो, परन्तु तुम्हारी बुद्धि में वो बाबा है । हर वक्त बुद्धि में वही बाबा है कि वही बाबा हमारा बाबा है । हमको उसको ही याद करना है, वही पढ़ा रहे हैं, उनसे ही हमको वर्सा लेना है और उसने ही यह सब कुछ हमारी बुद्धि का ताला खोल दिया है, जो सारे ब्रह्माण्ड, सुक्ष्मवतन] और फिर यह सृष्टि के आदि मध्य अंत का ज्ञान हमारी बुद्धि में है । इसी ज्ञान से हम चक्रवर्ती बनते हैं । बस, अपने उसी नशे में, मौज में और सबको सुनाना भी ऐसे ही है, क्योंकि तुम बच्चों को, जो पक्के सच्चे ब्राह्मण बने हो, जबकि लौकिक माँ का फिकर होता है, तो परलौकिक का तो बहुत होना चाहिए, परन्तु नहीं, फिकर की बात, मुरझानेपन की बात कोई होनी नहीं चाहिए । अवस्था अच्छी चाहिए । जैसे देखो, अभी बॉम्बे से दो तीन आते हैं, बोलते हैं कि हम माँ का मुँह देखें । बाबा फिर भी समझते हैं कि यह भी राग है । मुँह क्या देखेंगे, तुमको शिवबाबा को याद करना है । अभी मुँह देखकर क्या करेंगे! मुँह तो देखा हुआ है, दिल में समाया हुआ है । यह अज्ञानी लोग करते हैं जो लाश को रख देते हैं, सब आवे, आ करके उनका मुँह देखें । तो उनकी रसम-रिवाज है, हमारी तो नहीं है । यह तो बाबा के डायरेक्संस के ऊपर है । अभी कोई भी वक्त में डायरेक्शन आवे कि अभी ले जाओ, तो हम ले जाने के लिए एकदम... । हम किसके लिए ठहरते नही हैं । पूंछते रहते हैं कि बाबा, अभी क्या करें । हाँ, 2 बजे तुम लोगों को तैयारी करके जाना है । आगे 5 कहा था, अभी 2 कहते हैं । पता नहीं बैठे बैठे,... तो हमको सब तैयार रखना है । हुक्म मिला और यह तैयारी हुई । हम बाप के हुक्म के बंदे हैं । कोई कुछ कहे, कोई कह सकते हैं कि नहीं, यह बाबा का हुक्म तो रॉग है । नहीं, यह भूल है । बाबा का हर एक कल्याणकारी है । मरने में भी कल्याण है । हर एक बात में कल्याण है । हम जानते हैं कि इसमें ही कल्याण है, क्योंकि तुम समझते हो कि बरोबर अंत में तो विजय होनी है । ढेर के ढेर अपना वर्सा लेने के लिए जरूर आएँगे । कुछ भी होगा तो तुम्हारी सर्विस की वृद्धि होती ही रहेगी, सिर्फ तुम्हारी एक्टीविटी दैवी चाहिए । उसमें कोई भी आसुरी गुण नहीं चाहिए । किससे लड़ना, किससे झगड़ना, किससे कड़वा बोलना या अदर में कुछ भी लालच, लोभ हो, क्रोध वगैरह, अगर ब्रह्माकुमारी में होगा तो उनको बहुत कड़ी सजा मिलती है, क्योंकि निमित्त बनी हुई हो । अंग्रेजी में कहते हैं ना- वर्ड एण्ड डीड कोई को भी दुःख न देना है । क्या करना है? उनको सदा सुख का रास्ता बताना है । तुम बच्चों से कोई को भी दुःख नहीं मिलना है । घर में भी कोई से एक दो को दुःख नहीं देना है । बहुत पूंछते हैं- बच्चे ऐसे हैं, ऐसे हैं । नहीं, जितना हो सके उतना उनको प्यार से शिक्षा देनी है । जितना योग में रहकर काम करेंगे इतना ही अच्छा रहता है । चमाट मारने से क्या होता है! नहीं । इसलिए बताते हैं कि श्रीकृष्ण चंचल था । ऐसी कुछ बात है नहीं, पर समझो चचल बच्चे को प्यार से चलाना ही पड़ता है । देखो, विलायत मे बच्चे हैं, कोई इतने चंचल नहीं रहते हैं जैसे यहाँ के हैं, क्योंकि ये बच्चे बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं । यहाँ वालों को ही बिच्छू-टिण्डन और बलाएँ कहते हैं । तुम्हारा नर्क, जिसको कुम्भीपाक नर्क कहा जाता है, सो यहाँ दिखलाते हैं, वहाँ थोड़े ही दिखलाते हैं, क्योंकि तुम बहुत सुख भी देखते हो, बहुत् दुःख भी देखते हो । तो ये कुम्भीपाक नर्क, रौरव नर्क वगैरह-वगैरह दिखलाते हैं । ये सब यहाँ के हैं । तुम बाहर के बच्चे देखो, कितनी फजीलत में पलते हैं! कितना अच्छे रहते हैं! यहाँ ऐसे अच्छे मुश्किल रहते हैं । इसलिए ड्रामा की भावी समझकर घर में भी बड़ा युक्ति से चलना है, जिससे कोई ऐसा न समझे कि अरे ये क्या! ये बच्चे को मारते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं । अभी ये तो तुम जानते हो कि सभी ज्ञान में भरपूर तो हैं नहीं । कोई तो यहाँ बहुत अच्छी तरह से समझते हैं, घर में जाकर फिर इनको माया हैरान करती है तो कोई-कोई. अवज्ञा कर देती हैं । यह भी बाप समझाते हैं कि अभी परिपूर्ण तो कोई बना ही नहीं है । दिन-प्रतिदिन तूफान जोर से आते रहेंगे । तूफान और विघ्न ये तुम्हारे ऊपर पड़ते रहेंगे और तुम सबको स्थिरियम होते रहना है । विघ्न तो आते ही रहेंगे । वो तो बाप कहते हैं कि हमारे इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में अथाह विघ्न पड़ेंगे । तुम्हारी नॉलेज सारी दुनिया से विरुद्ध है, बिल्कुल ही नई है । एक तरफ में सब विद्वान आचार्य, पण्डित वगैरह, क्योंकि अभी नॉलेज की बात है ना । मुक्ति और जीवनमुक्ति की बात हो गई है । उन लोगों का तो रास्ता ही बिल्कुल उल्टा है । तुम्हारा सुलटा है उनमें भी देखो कोई समझा न सके । उल्टा समझायें तो बोलेंगे कि क्या ब्रह्माकुमारियों के यहाँ... । दोष एकदम ऊपर में चला आता है । इसलिए फिर बच्चो को भी समझाया जाता है कि पहले-पहले सिर्फ इतना ही यह परिचय दो, यह पक्का सीख लो । पीछे कोई प्रश्न भी पूंछे तो बोलो जास्ती प्रश्न पूँछने की क्या... .पहले यह प्रश्न तुमको पसन्द आता है कि हमारा बाप है? बस । बाप ने आगे 5000 वर्ष पहले कहा था कि मनमनाभव यानी मुझे याद करो । तो कब, कौन-सा टाइम था? बरोबर वही टाइम था कि महाभारत की लड़ाई थी, ऐटमिक बॉख्स थे, यादव, कौरव और पाण्डव थे । पाण्डव कौन थे? जो ये बातें सुनाते थे कि मनमनाभव बाप को याद करो और वर्से को याद करो । क्या तुम भूल गए हो? बस उनको इतना ही समझाना है । दूसरी बात, तुम शास्त्र को मानते हो? हाँ, हम मानते हैं, भक्तिमार्ग के शास्त्र तो हैं, वेद ग्रंथ शास्त्र हैं । मानने का तो कोई दूसरा नही है । हैं सो तो हम भी समझते हैं, देखते हैं । अच्छा, नहीं पढ़ा, हम सुनते हैं कि बहुत शास्त्र हैं, बहुत वेद हैं, ग्रंथ हैं, परन्तु सो क्या! वो तो भक्तिमार्ग है ना । ये तो ज्ञान मार्ग है । यह ज्ञानेश्वर तो बाप है, एक बाबा । हमको बाबा कहते हैं कि बस, मुझे याद करो । हम भी तुमको कहते हैं कि बाप को याद करो । करो न करो, तुम्हारी मर्जी । हम कहते हैं कि बाप को याद करो और वर्से को याद करो । बाप ने भारत को वर्सा दिया था । स्वर्ग था । अभी नर्क है, राक्षस राज्य है, रावण राज्य है । जरूर फिर बाप ही आ करके सो भी तो बाप ही कहते हैं कि फिर भी मुझे याद करो और स्वर्ग को याद करो । मुझे याद करो और अपने सुखधाम को याद करो । बस, हमारा तो यही है । जास्ती पूँछने से भी बोलो कि हमने कहा ना! वो जास्ती समझानी न जान सके तो बोलो कहा ना कि बाबा कहते हैं कि मुझे याद करो । मुझ अपने निराकार बाप को याद करो । किसको कहते हैं? आत्मा को । बोलता है कि हमको याद करो । मेरे को याद करने से ही तुम पावन बनेंगे । तुम गंगा में स्नान तो जन्म-जन्मांतर करते आए हो और दुनिया पतित बनती आई है । अब बाप कहते हैं, बस 'बाबा-बाबा' करती ही रहो । 'बाबा-बाबा' करती रहेंगी तो याद भी अच्छी आएगी । दूसरी बातें सभी भूल जाते हैं ना । हमारा बुद्धियोग ही बाबा और राज्य, बाबा और राज्य । बाकी अनेक ही मरते रहेंगे । यह तो आजकल क्या बात सुनो, दुनिया में क्या होता रहता है । यहाँ भी पता नहीं क्या होगा । आपस में सिविल वॉर भी लग सकती है । आपस में भी लड़ने लग पड़े । फिर भी तुम क्या कहेंगे? हाँ, कल्प पहले ऐसे ही हुआ था । बस, यही और बाप को याद रखना है । याद भी रखना है, औरों को रास्ता बताना है । बस, एक अलफ समझाती रहो । इसको परिचय कहते हैं । यह भी तो कहते हैं- गॉड का परिचय है? जी, सर्वव्यापी है । बस, बात भी हो गई ना । वो कहते हैं सर्वव्यापी है, हम कहते हैं- नहीं । बाबा कहते है बाप से तो वर्सा लेना है । हमको बाबा कहते हैं कि मुझे याद करो और फिर बाकी तो समझाने के लिए हर एक की बुद्धि में सब कुछ है ही । बच्चे भी होवे, कोई भी कुमारियाँ आईं हैं, इनको भी घर में सिर्फ यही समझाते रहें- तुम बाप को याद करते हो? परमपिता परमात्मा को याद करते हो? अरे, उनको याद करने से तो बेहद का वर्सा मिलता है । लौकिक बाप को याद करने से हद का वर्सा मिलना है । इनको भी तो समझाना चाहिए ना जो थोडी बड़ी है । फिर भी जो यहाँ की होंगी वो अच्छी तरह से समझ जाएँगी । यहाँ की न होंगी तो जाकर शादी-वादी करेंगी । उनका संस्कार ही दूसरा देखने में आएगा । इसलिए तुम दुनिया में सबसे सयाने हो । तुम्हारे जैसे सयाने, बुद्धिवान और इसको बेहद के बुद्धिवान कहा जाता है । और सब है हद के बुद्धिवान तुम बेहद के बुद्धिवान । देखो, कितना रात-दिन का फर्क है । तो उस नशे में रहना चाहिए । बाकी गम की कोई भी बात नहीं । यह हम जान गए कि ड्रामा चल रहा है, इनका कोई पार्ट है, दूसरा बजाने जाती है । बाकी कोई ऐसे थोड़े ही है कि बस उनको याद करना है । जैसे स्त्री मरती है या पुरुष मरते है तो उनको याद करते रहते है या बच्चा मरते है तो दिवाने हो जाते हैं । यहाँ दिवाने बनने की कोई बात ही नहीं । कोई दुःख में हार्टफेल हो जावे, कहेंगे यह बिल्कुल ही अज्ञानी था । वाह! मम्मा गई है, उनका पार्ट था, वो एक्टर है, गई है दूसरा कुछ एक्ट बजाने । उसमें मुरझाने की भी दरकार नहीं है, रोने की भी दरकार नहीं है तो दुःख की भी दरकार नहीं है । हर्षित । वहाँ जाती है और कोई ऊँची सर्विस करने के लिए । तुम दिन-प्रतिदिन ऊँचे बनते जाते हो, ऊँची सर्विस... । शरीर छोड़ेगा तो भी तो ऊँची सर्विस जाकर करेगा ना । इसलिए बच्चों को कोई भी दुःख की नहीं रहनी चाहिए । अफसोस नहीं, आंसू वांसू नहीं मुँह पीला भी नहीं होना चाहिए, नहीं तो शकल से मालूम पड़ जाता है कि मुरझाया हुआ है । मम्मा-मम्मा क्या, सभी जाएँगे, खलास होने के है । हमको तो बाबा के पास जाना है ना । हमारा काम है बाबा से । सबका काम है बाबा से । मम्मा का भी काम था बाबा से । अभी उनसे वो नॉलेज पाकर, सर्विस करके, जाती है कोई दूसरी सर्विस के लिए, दूसरा पार्ट बजाने । हम साक्षी हो करके देखते है । कोई भी नहीं रोने चाहिए । ऐसे नहीं कि अरे, अम्मा चली गई, फलाना चली गई, यह चली गई क्या! शरीर गया, वो आत्मा गई सर्विस के लिए । शरीर तो सब यहाँ खाक में ही मिलना है, इसलिए कभी भी बच्चों को कोई प्रकार का फिकर नहीं । हाँ, यह सत्य है कि बाबा का जो स्टूडेंट था, यह बडा अच्छा था, अच्छा समझाता था, गाया जाता है । तुम सभी स्टूडेंट्स में वो अच्छा स्टूडेण्ट ऐसे तो कहेंगे ना । अच्छा, गया है फिर किस प्रकार से कोई और का कल्याण करने और स्टडी तो बाप ही कराते रहते हैं । वर्सा तो बाप से लेना है ना । बस, बाप से पढ़ना जरूर है । कोई भी हालत में कोई रूठ गया तो बाप से वर्सा ही नहीं मिल सकता है । कोई भी प्रकार के संशय में आया, यह खतम हुआ । पद से भ्रष्ट हो जाएगा । इसलिए बाबा बच्चों को समझाते रहते है कि बच्चों, कोई प्रकार का फिकर नहीं करो । जो डायरेक्शन मिलते रहें अमल में लाते रहो और ऐसे मत समझो कि ये बाबा ने रॉंग दिए और ये क्या हो गया । बाबा ने कहा, नहीं । अच्छा, तुम बैठ करके तपस्या करो । हो सकता है कि कोई वापस आ भी सकता है । अच्छा, नहीं आया, चलो भावी । हमको तो बाबा से काम है ना । हमको और कोई से तो काम नहीं है ना । उनका भी उनसे ही तो काम था । अभी कही सर्विस करने के लिए गई है । हमको फिकर क्यों करना चाहिए! बाबा कहते है ना कि फिकर की कोई भी बच्चों को...यानी फिकर उनको होगा जो बाप को भूलेंगे और नॉलेज को भूलेंगे । 2-5 मिनट साइलेन्स में बैठ करके, फिर भले कोई आवे-जावे । थोड़े यहाँ रहें । 8, 10, 12, 15 जितने को चाहिए वो आ करके यहाँ बैठ करके... । यहाँ तो कमाई करनी है ना । यहाँ बैठ करके बाबा को याद करो और फिर भी कहते रहो- बाप को याद करो । वो तो हुई तुम्हारी कमाई । बाकी कहते रहो- बाबा, क्या आ सकते है? कोई विचित्र बात हो सकती है! बस, ऐसे ही जैसे कि दिल में करते रहो- याद बाबा को करते रहो और अपना चक्र फिराते रहो । नॉलेजफुल तो हो ही गए ना । नहीं तो बाबा पूंछे- तुम सभी बच्चे मास्टर नॉलेजफुल हुए हो ना । जो नहीं हुए है, हाथ उठाओ । देखो, सभी नॉलेजफुल है । तो नॉलेजफुल हो गया, सो तो नॉलेज से ये अपना ऊँचे ते ऊँचा पद ही पा लेंगे । नॉलेज मिलती रहती है । कितना भी कोई चला जावे, हाँ, नॉलेज अच्छी तरह से मिलती रहती है । हाँ, ये होता है कि क्या वण्डर है ये ड्रामा में! यह भी कोई पार्ट है क्या अच्छा! क्योंकि है पार्ट, उसको हम कर ही क्या सकते है! बस, और जास्ती कुछ नहीं । किसको कोई भी प्रश्न पूंछना हो तो बाबा से पूँछ सकते है । किसको कोई संशय आवे तो बाबा से लिख करके भी पूँछ सकते हैं । यहाँ किसको संशय है तो पूँछ सकते है । बाबा उनको सिर्फ कहेंगे, तुम्हारा क्या जाता है । तुमको बाप का फरमान मिला है कि मुझे याद करो और वर्से को याद करो । बाकी तुम्हारी बुद्धि यहाँ-वहाँ भटकती क्यों है? बस, ऐसे लिख देंगे । क्या संशय है? बाप में तो संशय... । बस उनको याद करो और अपनी पढ़ाई पढो । बाकी कोई भी जाते हैं, उसमें तुम्हारा क्या जाता है? होगा, कोई की अवस्था गिर पड़ेगी, कोई में संशय आ जाएगा । संशय काहे का? सशयबुद्धि विनश्यन्ति, क्योंकि बाप से वर्सा लेना है । बाप को याद करना है, वर्से को याद करना है, और कुछ भी नहीं । बाबा अभी से ही समझा देते है कि जब जाना है, भले शांत से जाओ, वो जरा अच्छा ही है । प्रभाव निकलेगा कि ये कितने प्रभाव से कितना शांत में जाते हैं । कोई बात नहीं, कोई आवाज नहीं, कोई बाजा नहीं, कोई गाजा नहीं, शांत में । कोई रास्ते में पूंछे भी कि भई, क्या पूँछते हो? तुम्हारा कोई बड़ा बेहद का बाप है? अरे, तुम उस बाप को याद करो, उनसे वर्सा लेने का गुप्त से प्रबंध रचो युक्ति रचो । नहीं तो आ करके समझो कि हम बाप से वर्सा ले रहे है । यह भारत को हम स्वर्ग बना रहे हैं । हमारा यह मिशन है कि हम तन मन धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा कर रहे हैं, जो बापू जी चाहते थे । हाँ, थोड़े में ही बता दिया या कहना- देखो, क्या पूँछते हो? बाप को याद करो और स्वर्ग का वर्सा लो । तुम सब भूले हो, भटकते रहते हो । बाप का कहना है कि मुझे याद करो और वर्सा लो । हम भी तुमको कहते जाते हैं । ये अक्षर तुमको पिछाडी तक याद पडेंगे । हमको यह मंत्र दिया है । यह मंत्र देते है कि बाप को याद करो और उनसे स्वर्ग का वर्सा लो । यह महामंत्र है । वो है ना- तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर । तो यह रघुवीर कहते हैं । पतित-पावन सीता राम, रघुपति राघव राजा राम । तो रघुवीर का नाम लेते है । बोलो- नहीं, यह बाप है, यह अभी भारत को स्वराज्य का तिलक दे रहे हैं । जो बाप को याद करेंगे वो स्वराज्य पाएंगे । बस, हम लोगों की बात यही है । और कोई भी पतित... । पोथियाँ-वोथियाँ बहुत पढ़ी, अभी वो नहीं पढ़नी है । अभी यह पूरी हुई । अभी बाप का सुन । अच्छा, 5-10 मिनट साइलेन्स में बैठ करके फिर जाओ । दूध-वूध पीना है तो पिओ । बच्चों की सम्भाल करो, खिलाओ-पिलाओ । हर एक पार्टी के जो भी प्रोग्राम है, ब्राह्मणी को बोलने से, पूँछ करके दे देवे । किसको कुछ भी भूख लगे, हठयोग की कोई बात नहीं है । फल-फूल खा लो, दूध पी लो । कुछ खाना चाहते हो तो भी ब्राह्मणी को बोल दो, वो बनाकर दे देंगी। नहीं तो यह व्रत रखने में सबसे तीखी माताएँ हैं । पुरुष तो इतना सात-सात रोज का व्रत कभी रखते भी नहीं है । तो वो भी अभी ये सीखेंगे, क्योंकि ये भी अभी माताएँ है । ये सजनियॉ है । सभी भक्ति हैं ना । बस, वो तो रसम-रिवाज थी । चलो, अभी तुम भी सीताएं हो, क्योंकि तुम भी तो राम के फंदे से फँसते हो । अगर आज न खा सको तो हर्जा नहीं है । बच्चों को खिलाओ, नहीं तो फिर शाम को भोजन बनेगा । अभी 2 बजे का टाइम रखा हुआ है और अगर बाबा का इशारा थोडा भी जास्ती आएगा, तो थोड़ा जल्दी कर देंगे । बाकी कोई के लिए ठहर नहीं सकते है । हम चाहें तो अभी ले जाएँ । वो बोले- वाह! हम आए ही है मम्मा का मुँह देखने । हम बोल देंगे, तुम तो नाम-रूप में फँसने वाले हो । क्या तुमको शिवबाबा भूल गया, जो आए हो नाम-रूप में? तुमको किसने कहा? तुम्हारी दिल थी आवे तो तुमको मना नहीं है । बाकी कोई वो बातें नहीं है कि हम किसके लिए ठहर जावे और वो आ करके मम्मा का मुँह देखें । नहीं, मम्मा का मुँह देखने से यह तो नाम-रूप में फँस मरे । हमको बाबा को याद करना है । मुँह देखने की कोई बात ही नहीं । तुम मुँह देखते हो क्या? इन आखों से देखते हो । तुमको तीसरी आंख मिली हुई है उनको देखने की । तो वो अच्छी आँख या यह आँख, अच्छा! फिर भी जैसे बाबा ने कहा है ना, तो जब तलक है तब तलक फिर कहते रहो । यात्री को तो कमाई हो गई । अच्छा! यह तो जानते हो कि बाप से वर्सा मिलना है । वो भी जानते हो । बाकी कहते रहो हमारी मम्मा की आत्मा को भेज दो । बस यह अभी तलक कहते रहो । पीछे ये भी थोड़े ही कहेंगे । अभी बच्चों को देखते तो है ना । इस बाबा का बुद्धियोग वहाँ है । हाँ, बाबा आते है, वो भी आ करके बच्चों को देखते हैं, खुश होते हैं कि देखो, यह बगीचा बन रहा है । अभी ये ब्राह्मण है, जो पीछे देवताओं का बगीचा बनना है । ये सब बड़े पुरुषार्थी हैं, अच्छा फूल बनने की कोशिश कर रहे है । काँटों को फूल बना करके शो करेंगे । उसी धुन में लगे रहो तुम बैठे हुए हो तो सुन रहे हो और स्थेरियम अचल बन बैठे हो, जो बाहर वाले होंगे, उनमें बहुत ही फेल होगे । माँ का सुन करके धक्का आ जाएगा, रोने लग पडेंगे, फलाना करेंगे । एक दो के रोने को देख करके 10 रो लेंगे । 10 रोएँगे तो 50 रो लेंगे । सारी क्लास में रडियॉ मार देंगे । समझा । हाँ, यह बाबा जानते है, परंतु बाबा कहते हैं कि वो सब फेलियर होंगे । जब ये वाणी सुनेंगे तो वो अपने ऊपर समझेंगे कि हम बहुत कच्चे हैं । बाबा बैठे हैं, इनको कितना पक्का करते है । बाकी नहीं तो कुछ भी नहीं, अफसोस करने की भी दरकार नहीं है । हाँ ये जरुर है की मम्मा होशियार थी । यह फलाना होशियार था ना । बाबा कहते हैं ना कोई कोई अच्छी बच्ची जाती है, अच्छी होशियार थी, परन्तु इन्हो को कोई कार्य करना है तो चली गई, जाओ । यह समझ लो कि यह सुन करके कोई भी रोने लग जावे, तो नापास, अचल नहीं है, स्थिरियम नहीं है, ज्ञान पूरा नहीं है, बाबा को अच्छी तरह से याद नहीं करते है, क्योंकि फरमान ही है सिर्फ मुझे याद करो । उसकी तीसरी ऑख ही बंद हो गई है, अभी जो दूसरी, ऑख है वही देखती रहती हैं । जो रोया उसकी ज्ञान की आंखें जैसे बंद हो गई हैं । यूं कहेंगे- जिन रोया, तिन खोया रे । पर समझते है कि बाबा का .. था । ...कोई हर्जा नहीं है । भावी । देख रहा हूँ कोई मुरझाया हुआ फूल तो नहीं है । महावीर है । देखो, मैं देखता रहता हूँ । ये माया के विघ्न है, तूफान है । सोच में रहते है ऐसे-एसे विघ्न होते है क्या! इसको सोंच कहा जाता है- क्या ऐसे-ऐसे विघ्न भी आने के हैं! अच्छा, ड्रामा है, भावी । सर्विस करनी होती है ना- यह करना है, यह करना है, यह करना है । उसमें सोच चाहिए । आज बच्चों को टोली नहीं खिलाते हैं और जो जरूरी टोली है वो तो खिलाते ही रहते हैं । वो तो तुम्हारा बाप का वर्सा है । सबसे जास्ती उसमें भी ऊँचे में ऊँचा रतन क्या है? मन्मनाभव मद्याजीभव । उस दो में भी ऊँचा रत्न क्या है? मन्मनाभव क्योंकि मद्याजीभव आपे ही याद आ जाएगा । यह बाबा है नंबर वन ऊँचे ते ऊँचा, जो आठ रतन में बीच में डालते हैं । जिन आठ रतन में ऐसे अच्छी तरह से महावीर बने हैं, माला में पहले नंबर में आ गए हैं । बच्चों को पुरुषार्थ करना है । रुद्रमाला में नजदीक आय, फिर राजाई में विष्णु माला में नजदीक आ जाओ । तुम्हारा हर बात का पुरुषार्थ ही यह है, और कोई बात नहीं । अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग ।