25-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


गुड इवनिंग यह पच्चीस जून का रात्रि क्लास है ।

पढ़े-लिखे बच्चे हो तो तुम । तुम्हारे जैसा एज्यूकेटेड इस दुनिया में दूसरा कोई हो नहीं सकता है । जरूर ऊँचे ते ऊँचा एज्यूकेशन है तो ऊँचे ते ऊँचा पद भी होगा । तुम बच्चों को यही निश्चय है कि हम बेहद के बाप द्वारा वर्सा पा रहे हैं । पीछे बेहद का बाप अकेला तो नहीं होगा ना । जरूर बच्चे होंगे । उनको फिर मददगार बनना है, पढाना है । तो क्या करना है? बस, पढ़ना है और पढाना है । अपन को मनुष्य से देवता बनना है और बनाना है, और कोई भी तात नहीं, क्योंकि आत्माओं का कनेमान ही है परमात्मा के साथ । कोई का भी देह के साथ कनेमान नहीं है । दुनिया में ऐसा कोई भी बच्चा या मनुष्य मात्र नहीं है, जिनका बेहद के बाप से बुद्धियोग जुटा हुआ हो, क्योंकि बेहद के बाप को मिले भी तुम हो । इसलिए तुम बच्चों को हमेशा बाप का और बाप के वर्से का फखुर रहना चाहिए, और सब बातों के ऊपर ध्यान नहीं देना पडता है । बिल्कुल सहज ते सहज, क्योंकि कनेक्शन ही है रूह से । जिस्म से तुम्हारा है नहीं । अगर जिस्म से रखते हो तो फिर कहेंगे कि देहअभिमानी है यानी बाप से बेमुख है । तुम्हारा रात और दिन उठते-बैठते यही खुशी कि हम बाबा के थे, बाबा द्वारा वर्सा लिया था, फिर हमने वर्सा गुमाया । अभी फिर वर्सा ले रहे हैं और अभी फिर सुखधाम की बादशाही हम खुद अपने लिए स्थापन कर रहे हैं । कोई और के लिए नहीं, तुम अपने लिए.. । तुम्हारी जैसे कि रूहानी सेना है । रूहानी सेना सभी जिस्मानी सेनाओं के ऊपर विजय पहनती है, क्योंकि सब आपस में लड मर झगड खतम हो जाएँगे और फिर तुम्हीं रहेंगे । अभी यह भी कोई नई बात तो नहीं है ना । बस, खास इसी पढ़ाई में है । वास्तव में तुम्हारा शरीरों के साथ कोई संबंध है नहीं । बाप ने समझाया है ना कि इस द्वारा भी मैं तुमको पढ़ाता हू । मैं इसमें न होता तो यह कोई काम का नहीं है, कुछ भी नहीं है । वो खुद भी कहते हैं- वर्थ नॉट ए पैनी । तो जो सबको वर्थ पाउण्ड बनाने वाला है, हीरे जैसा बनाने वाला है, बस उन्हीं की ही याद... और फिर ड्रामा को जानते हो कि बरोबर जिसका जिस समय में जो पार्ट है वो उनको जरूर बजाना है । शरीर छोडते हैं तो उनको कुछ न कुछ पार्ट बजाना है । तुम बच्चे जो शरीर छोड़ते हो, संस्कार ले जाते हो तो तुम्हारा ऊचा पद वहाँ भी मिलता है, जहाँ भी जाएँगे, क्योंकि ईश्वर की पढ़ाई बच्चे के बुद्धि में रहती है, संस्कार रहते हैं । तो तुम ये जानते हो कि इन संस्कारों से, जो संस्कार बाप में हैं, वो बाप तुम्हारे में संस्कार भर रहे हैं । वो जानते हो कि बरोबर हम बाप के सामने बैठे हुए हैं और दादा द्वारा हमको बाबा आप समान बना रहे हैं । बल्कि तुम बच्चों को आप से भी दो रत्ती जास्ती नशा रहना चाहिए कि हमारे बाप जैसा बाप तो कोई हो नहीं सकता है, जो हमको बादशाही देते हैं, खुद नहीं भोगते हैं । यह तो निश्चय है ना । तो इन बातों में रमण करना चाहिए । बाकी ज्ञान में कोई बहन का बहन में प्यार है, भाई का भाई में प्यार है तो वो बातें तो कोई काम में नहीं आती हैं । तुम बच्चों को काम में आना ही है पढाई और सच्ची पढ़ाई, सच्ची कमाई । वो झूठी पढ़ाई, झूठी कमाई अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए । अभी सच्ची पढाई सचखण्ड के लिए । तुमको बहुत खुशी होगी जब देखेंगे कि विनाश कैसे होता है । आया कि आया । मनुष्य दुःखी कैसे होते है और तुम बाबा की खुशी में, वर्से की खुशी में बडी खुशी में रहेंगे । तभी गाया हुआ है कि अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपीवल्लभ के गोप और गोपियों से पूछो । पूछते हैं ना । भले है अंत की बात, परन्तु यह तो जानते हो कि अभी भी पूछे- अरे, किसकी संतान हो? तुमको कौन पढाते हैं? अरे, हमारा शिवबाबा पढाते हैं स्वर्ग का वर्सा देने के लिए । अरे, ऐसे स्टूडेण्टस तो कही गाया हुआ ही नहीं है । वो भी जो आगे पढ़ाई की बनाई हुई है, उसमें अगड़म-बगड़म डाल दिया है । कुछ भी समझ में नहीं आता । अब यह तो बच्चों में मगरूरी चाहिए कि हमको पढ़ाने वाला नॉलेजफुल गॉड फादर । देखो तो, और क्या चाहिए बताओ । तो जबकि ऐसे है कि हमको गॉड फादर पढाते हैं और जो पढ़ाते हैं उनको बरोबर गॉड एण्ड गॉडेज बनना है । बनाने के लिए पढ़ाते हैं । यह तुम्हारी एम-ऑब्जेक्ट बिल्कुल ही क्लीयर । तो ये बरोबर .. नॉलेज है, बाप तो विश्व का मालिक नहीं बनते हैं ना । नहीं, लक्ष्मी-नारायण बनते हैं । तुम कभी कहेंगे कि शिव बनते हैं? ना । शिव भी शिव है ना... । भले कहते है- मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते फिर भी स्वर्ग के सुख घनेरे । यह तो समझते हो, क्योंकि माँ चाहिए जिससे एडॉप्ट करे । तो देखो, यह माँ भी तो हो गई ना । बाबा ने इस बात में अच्छी तरह से समझाया ना कि मेल है, इसलिए भले माँ है, परन्तु नहीं, फिर दिया जाता है कि जो कोई इनको सम्भालने वाला हो । तो वो भी पढ़ने वाली, ये भी पढ़ने वाला । जो भी हो, सब पढ़ने वाले । अभी जितना जो अच्छी तरह से पढेगा । कोई शरीर छोड़ देते हैं (तो हम जानते हैं कि यह जा करके कोई का कल्याण ही करेंगे । मनुष्य जो शरीर छोड़ते हैं, जा करके कोई का अकल्याण ही करेंगे । देखते हो ना, मनुष्य जन्म लेते जाते हैं, अकल्याण करते जाते हैं, तहाँ कि सबका अकल्याण हो गया है । चाहे दान करते हैं, पुण्य करते हैं, कुछ भी करते हैं, हर एक बात में अपना अकल्याण ही करते आते हैं, क्योंकि गिरना ही होता है । कुछ न कुछ गिरना ही पड़ता है, क्योंकि दान-पुण्य वगैरह जो करते हैं, किसको करते हैं? भ्रष्टाचारी को करते हैं यानी भ्रष्टाचार से पैदा हुआ । सो तो कोई दान नहीं हुआ ना । तुम अभी भ्रष्टाचार से तो पैदा नहीं हुए । तुम बच्चे तो एडॉप्टेड हुए हो । तो देखो, यह है एडॉपशन । वो है योगबल और वो है विकार बल । अभी विकार को बल क्या कहेंगे! विकार बल थोडे ही है । उनमें तो गिरते हैं । तो ये बातें बड़ी अच्छी तरह से समझाई जाती हैं, कोई भी बात हो जाए- ड्रामा । कल्प पहले भी ऐसा हुआ था, कल्प-कल्प ऐसे ही रहेंगे । उस बात को हटा करके फिर भी पढ़ाई को लग जाना चाहिए । पढाई है तुम्हारी मुख्य । कितनी गाई हुई है । राजयोग की पढ़ाई भगवानुवाच । सो भी जानते हो कि फिर से हम अपना बाप से पढ़ाई से वर्सा लेते हैं । तो इसमें सब बात आ जाती हैं । बाप भी आ गया, शिक्षा देने वाला भी हो गया और साथ में भी ले जाने वाला हो गया और गारंटी कि बरोबर हम जाएँगे.. .और बरोबर यह भी गारंटी है कि पुरानी दुनिया में तो तुमको आना ही नहीं है । तो खुशी होनी चाहिए कि बरोबर मोस्ट बिलवेड बाबा हमारे लिए ये नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं और आजकल गाया भी जाता है कि दुनिया बदल रही है । दुनिया कब बदलती है? दुनिया बदलती है नई से पुरानी । ऐसे नहीं है कि सतयुग से त्रेता कोई दुनिया बदलती है । यह सतयुग से त्रेता दुनिया थोडी पुरानी होती है, फिर थोडी पुरानी होती है । यह पुरानी होकर जब तमोप्रधान.. तभी कहा जाता है. .पुरानी दुनिया बदलती है नई में । सो तुम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हो । नई दुनिया स्थापन करने वाला तुमको पढ़ा रहे हैं । तो जिनके भाग्य में पूरी पढाई है सो पढाई पढ़ते हैं । जिनके भाग्य में इतनी नहीं है सो कम पढ़ते हैं । देखते हो कम पढते है । कोई बिल्कुल थोड़ा पढते हैं, पाई-पैसा पढते हैं । तो जो अभी पढ़ते हैं, देखो राजाई भी तो बड़ी है ना । बुद्धि समझती है ना । बरोबर सूर्यवंशी राजाई में राजाऐ भी होंगे तो प्रजा भी होगी साहूकार गरीब नौकर-चाकर वगैरह । सारी बादशाही स्थापन हो रही है । यह भी जानते हो कि और कोई भी धर्म स्थापक कोई बादशाही स्थापन करते ही नहीं है । सो भी बादशाही किसके लिए है? परूर के लिए । तुम जानते हो कि परूर तो सतयुग है । सतयुग होगा तो कलहयुग पास्ट हो जाएगा । सतयुग के बाद त्रेता तो सतयुग पास्ट हो जाएगा । तो ये सभी बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं । तुमको पढ़ाई से काम, और कोई बात से काम नहीं । तुम बच्चे बने ही हो बाप से पढ़ने के लिए । तो सभी पढते हैं । देखो, बाबा कहते हैं यह भी पढ़ते हैं । हम स्टूडेण्टस हैं । देखो, यह बाबा क्या कहेगा?.. ये कहेंगे, की वी आर ऑल स्टूडेण्टस ऑफ वन गॉड फादर, टीचर, नॉलेजफुल । बरोबर ऐसे है ना । इसमें जो अच्छी तरह से पढ़े सो ऊँचा पद पाए ।. .वो जो इनकॉरपोरियल फादर है, उनको तो यूँ ही याद करो तो उनके पास जाएँगे, परन्तु एक्टीविटी में, पढाई में फादर को फॉलो करो । देखो, कैसे पढते हैं और फिर पढ़ाते कैसे हैं! ये तो बहुत खुशी का... । तुम स्कूल में बैठे हो, भले राजकुमार कॉलेज हो या कोई भी हो । तुम तो बैठे हो, जानते हो कि हम भविष्य राजकुमार व कुमारी बनेंगे स्वर्ग के । अगर तुम बच्चों को यह निश्चय नहीं है तो यही बैठे हो जैसे कि कोई इलिट्रेट(अनपढ) आकर ऐसे ही घुस करके बैठा हुआ है । नहीं तो तुम पढ़ाई वालों को तो पढ़ाई का नशा चढ़ता है ना । यहाँ है ही नर से नारायण बनने का नशा । जरूर तुम बच्चे अभी ये जान गए । जो लखपति-करोडपति लक्ष्मी-नारायण का मदिर बनाते हैं, उनको थोडे ही मालूम है कि इनको यह बादशाही कैसे मिली, कब मिली ।