26-06-1965     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणो को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज शनिचरवार जून की 26 तारीख है, प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
तकदीर जगाकर आई हूँ.........
ओम शाति!
दो अक्षर सुने, बच्चे समझ गए कि हम यहाँ नई दुनिया के लिए तकदीर बनाकर आई हूँ । अक्षर तो अच्छी तरह से सुना ना । कैसे, किनसे? तकदीर बनाने के लिए तदबीर चाहिए । तदबीर कहा जाता है मत । बच्चे जानते हैं कि यहाँ श्रीमत मिलती है और एक महान मंत्र मिलता है । इसको मंत्र भी कहा जाता है । कौन-सा मंत्र मिलता है? मनमनाभव। ये कोई संस्कृत अक्षर है, परन्तु ये कौन देते हैं? परमपिता परमात्मा । वो ऊँचे ते ऊँचा और मत देने का भी सागर है । क्या मत देते है? देखो, एक ही बार मत मिलती है, फिर तो नहीं मिलेगी । ड्रामा में एक दफा जो कुछ भी हो चुकता है.. .कौन देते हैं? पतित-पावन । पतित-पावन कौन हैं? परमपिता परमात्मा, क्योंकि सर्व का पतित-पावन । पतित से पावन बन! कहाँ ले जाते हैं? पावन दुनिया में । उसको ही सद्गति कहा जाता है अर्थात् पतित-पावन कहो या सर्व का सद्गति दाता कहो, बात एक ही है और उनके सामने बैठे हो ठीक और पक्का जानते हो कि किसके सामने बैठे हैं । ये हमारा सब कुछ है । हमारा ऊँच ते ऊँच तकदीर बनाने वाला है । यह अभी निश्चय है । तो ये महान मंत्र मिलता है । किस द्वारा मिलता है? बेहद के बाप, निराकार बाप द्वारा, क्योंकि निराकार ही सबका बेहद का बाप है, क्योंकि बाप दो हो जाते हैं ना- साकार और निराकार । बरोबर साकार बाप निराकार को याद करते हैं । बच्चे भी याद करते हैं तो बाप भी याद करते हैं । अभी ये बच्चे जान गए कि बस, एक ही मंत्र से हमारा बेड़ा पार होने का है । वो मंत्र कोई मुख से नहीं जपना है । यह समझने की बात है, कोई जपने की बात नहीं है । समझ मिलती है, क्योंकि बेसमझों को समझ देने वाला सिर्फ एक है । वो कहते हैं कि तुम बच्चों को ये माया रूपी पाँच विकारों ने महान मूर्ख बना दिया है । कहते फिर किसको हैं? अपने बच्चों को, जिन बच्चों को कल्प-कल्प ये महावाक्य कहते आते हैं कि बच्चे देखो, तुम कल्प-कल्प कितने मूर्ख बन जाते हो, कितने घोर अंधियारे में चले जाते हो, कितने पाई-पैसे के वर्थ बन जाते हो, फिर एक मंत्र से... । गुरू लोग ये मंत्र वंत्र तो बहुत देते हैं ना, अनेक प्रकार के मत्र देते हैं । बोलते हैं मंत्र एक है । सर्व की सद्गति के लिए मंत्र एक और एक देने वाला, इसलिए उसको कहा ही जाता है- सत्गुरू, सत मंत्र देने वाला, जो प्रैक्टिकल में फल दिखलाते हैं । तो यह प्रैक्टिकल मे फल है ना । भई, यहाँ क्यों आए हो? यहाँ आए हैं अपने सुखधाम के लिए तकदीर बनाने के लिए । सुखधाम किसको कहा जाता है? सुखधाम सतयुग को ही कहा जाएगा । यह तो बाप ने बहुत समझाया है कि यह दुःखधाम है, वो सुखधाम है और आत्मा का निवास स्थान शांतिधाम है । ठीक । इसमें बच्चों को कोई मूंझ तो नहीं होती है । बिल्कुल यथार्थ रीति से समझते हैं । सो भी कौन समझते हैं? जो यहाँ आते हैं समझने वाले । वो ब्राह्मण ही होते हैं, और कोई नहीं होते हैं । ब्राह्मण बन करके ब्रह्मा के मुख द्वारा शिवबाबा बैठ करके मंत्र देते हैं, नहीं तो मंत्र कैसे देवें? बाप पूंछते हैं- यह मंत्र कैसे देवें जो कल्प-कल्प देता आता हूँ कि मामेकम् सर्व देह के धर्म त्याग... । देह के धर्म तो बहुत हैं ना । देह और देह के धर्म हैं । कौन-से धर्म हैं? मैं शरीर हूँ- समझ लेते हैं, फिर शरीर के काका मामा चाचा गुरू गोसाई धंधा-धोरी वगैरह सब कुछ आ जाते हैं । यह बोलते हैं- आप मुए पीछे मर गई दुनिया । मैं मंत्र ही ऐसा देता हूँ- अपन को आत्मा समझ और मर जाओ । आत्मा समझ और बाप को याद करो । बाकी शरीर का इतना जो तुम्हारा भान है... क्योंकि बाप ने समझाया था कि यहाँ देह अभिमानी और सतयुग में आत्म अभिमानी । संगम पर तुम आत्म अभिमानी भी बनते हो, फिर परमात्मा को जानने वाले भी बन सकते हो, आस्तिक भी बन सकते हो । आस्तिक उनको कहा जाता है जो परमपिता परमात्मा और उनकी रचना को जाने । आस्तिक न कलहयुग में होते हैं, न सतयुग में होते हैं, संगमयुग में होते हैं, जो सतयुग-त्रेता के लिए आस्तिक बन बाप से यह वर्सा पाय फिर सतयुग में राज्य करते हैं । वहाँ आस्तिक और नास्तिक की बात नहीं चलती है । यहाँ आस्तिक और नास्तिक की बात चलती है । आस्तिक ब्राह्मण आकर बनते हैं जो नास्तिक थे । बाकी सभी दुनिया नास्तिक है, क्योंकि कोई भी बाप को, रचना को नही जानते हैं, क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापी कह देते हैं । समझाए कौन! तुम बच्चे जानते हो, बैठे हो । तुम बच्चों का बाप से काम है, और कोई से भी काम नहीं है, क्योंकि बेहद के बाप से काम है । उनके जो भी डायरेक्शन्स मिलते हैं, श्रीमत मिलती है, जो तदबीर कराते हैं, यही कहते हैं कि बच्चे, देह सहित किसका भी... । देखो, बोलते हैं ना । यह भी देह है ना । इसको भी नहीं याद करो । आत्मा समझ करके परमपिता परमात्मा को याद करो । इसको महान मंत्र कहा जाता है, जिसे जपने से तुम्हारी तकदीर कौन-सी बनती है? तुमको स्वराज्य-तिलक मिलता है, सो भी स्वर्ग का राज्य, 21 जन्म का राज्य । वहाँ राज्य पाया, बस वो प्रालब्ध है । वहाँ मंत्र-जंत्र कुछ भी दरकार नहीं है, न वहाँ कोई भक्तिमार्ग है । भक्ति-इधर, तुमने भक्ति करके पूरी की । अभी तुम्हारी पूरी हुई । तुम जानते हो कि भक्ति पूरी होती है, क्योंकि विनाश तो हुआ था ना । तो क्या हुआ था? राजयोग सीखते थे । गीता तो है ही नर से नारायण बनने के लिए ना । तो बरोबर जब नर से नारायण बनने का उद्देश्य, मनुष्य से देवता बनने की बात थी तो जरूर फिर यह दुनिया बदलनी चाहिए । तुम अभी जानते हो ना बरोबर यह दुनिया बदल रही है । नई दुनिया के लिए हम तकदीर बनाने आए हैं । यह सभी अच्छी तरह से जानते हो ना । कोई यहाँ के लिए तकदीर बनाने के लिए नही आए हो । यह तो मृत्युलोक है । मृत्युलोक में मनुष्य की तकदीर देखो कैसी है! मारते, पीटते, एक दो को खून करते, यह करते, वो करते, दुःख देते हैं । तो इसका नाम ही है दुःखधाम । यह पक्का याद कर लो । अभी बुडिढयों को भी यह याद करने मे कोई तकलीफ तो नहीं होती है! यह है हमारा दुःखधाम । किसने कहा? आत्मा ने कहा । अभी आत्माभिमानी बनें । ये आत्माभिमानी कहते हैं यह है दुःखधाम । हमारा शांतिधाम है परमधाम, जहाँ बाबा रहते हैं, जिसको हम भक्तिमार्ग में याद करते हैं और इस समय मे बाबा आया हुआ है और यह बैठ करके ज्ञान सुनाते हैं और तकदीर बनाते हैं । देखो, तदबीर दिखलाते हैं । क्या? बोला ना- बस, एक ही महान मंत्र इनसे कि मुझे याद करो । कोई भी देहधारी से सुनो, पर याद विदेही को करो, बाप को याद करो, क्योंकि सुनाना तो देह से पड़ेगा ना । ये बच्चियाँ ब्रह्माकुमारियाँ भी तो मुख से सुनाएंगी ना । किसको भी मंत्र सुनाना होगा तो जरूर पतित को सुनाना होगा कि पतित-पावन को याद करो और वो खुद कहते हैं कि मुझे याद करो । तो तुम सब पतित कर्मों से, जो तुम्हारे ऊपर विकर्मों का बोझा है वो भस्म होता जाएगा । और कोई भी उपाय नहीं है । अभी क्या करना चाहिए? एवर निरोगी बनने के लिए कोई बड़ी दवाई है? कोई इंजेक्शन है? कुछ भी नहीं । कह देते हैं इनको इंजेक्शन , पर कोई इंजेक्शन तो नहीं है ना । बच्चों को यह एक ही बात समझाते हैं । अरे, सन्मुख बैठे हो, सुनते हो कि बरोबर बाबा ही हमारी तकदीर बनाते हैं । आए है यहाँ तकदीर बनाने के लिए और बहुत सहज रास्ता बताते हैं कि याद करो । बाबा, याद भूल जाते हैं । तुमको शर्म नहीं आती है! वहाँ लौकिक बाप याद आते थे जो तुमको पाई-पैसे का काम-कटारी से कतल कराते थे । वो लौकिक बाप तुमको पतित बनाते थे । सब एक , दो को पतित बनाते हैं । जो भी उनके बाल-बच्चे होते हैं, सबको पतित... । जो भी उनकी क्रियेशन है वो पतित बनाते है और ये क्रियेशन पावन बन रही है । पतित से पावन बना रहे हैं । तो जो बाप कहते हैं कि मामेकम याद करो और फिर तुम्हारा सब विकर्म भस्म हो जाएगा । फिर भी कहते हो कि बाबा, भूल जाते हैं । बाबा, हम गटर में गिर जाते हैं । बाबा, ये माया हम पर जीत पहनती है । तो बाप कहते हैं- उस्ताद के बच्चे होकर तुम्हारे ऊपर जीत पहनती है, नैलत है तुमको! बाप नैलत डालेंगे ना । वो बोलता है- बाबा, हम गटर में गिर गया । नैलत है तुम्हारे को! तुम सुनते हो कि गटर में गिरते गिरते काला मुँह हो गया । शास्त्रों में तुम्हारा नाम ही बंदर रखा गया हुआ है । ये बंदर सेना है । अभी लडाई करने के लिए कोई बंदरो की सेना तो नहीं होती है ना । बंदर बन गए हो । तो बाबा आकर बोलते हैं- देखो, अभी आया हूँ तुमको मंदिर लायक बनाने के लिए । तुम जानते हो कि बरोबर हम शिवालय मे राज्य भी करते थे और फिर हमको मंदिर मे पूजते भी थे । अब पूजते आते हैं । अब हम सो देवता थे, यह हम भूल गए हैं । हम सो देवता लक्ष्मी-नारायण थे । देखो, तुम्हारे मम्मा-बाबा को अभी मालूम पड़ा कि हम सो देवी-देवता थे । फिर क्या बन गए! तो ये खेल देखा ना । हम पूज्य देवी-देवता थे, हम पुजारी असुर बन गए । अभी ये नॉलेज कुछ भूलने की बात तो नहीं है ना । उसमें भी और डिटेल्स भूल जाते हैं । जैसे बाप कहते हैं- देखो, यह झाड है ना बरोबर । अच्छा, ये पल्ले-वल्ले तो सारी प्रजा हैं । बाकी मुख्य-मुख्य तो इनमें दिखलाया गया है । पहले-पहले फाउण्डर कौन हैं? हाँ, बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म था । अब वो नहीं है । कब था? 5000 वर्ष पहले था । क्या था? सतयुग था । अभी क्या है? कलहयुग है । कलहयुग के बाद सतयुग जरूर आना है । फिर श्रीमत देने वाले को आना है जरूर । जब आना है तब समझना चाहिए कि दुनिया बदलने की है । पतित-पावन आते ही हैं पावन बनाने के लिए । सो तुम जानते हो और ढिंढोरा पिटवाते रहते हो, परन्तु झाड़ ऐसे जल्दी तो नहीं होता है ना । विघ्न पड़ने का है । नया झाड़... । देखो, बच्चों में विघ्न पड़ते हैं ना । अभी कौन का पड़ता है? माया का । घड़ी घड़ी नाम-रूप में फंस मरते हैं । बाप के नाम-रूप में फँसना, रहो गृहस्थ-व्यवहार में, परन्तु बाप को याद करो और पवित्र रहो । और कोई तकलीफ तो नहीं देते हैं । बड़ी ते बड़ी मुसीबत है ये पवित्रता की । अभी वो तो कहते हैं ना- भगवानुवाच! काम शत्रु है । यह तो कोई भूलते नहीं हैं । भले कृष्ण के नाम पर कह देते हैं । और कोई का भी नाम नहीं है कि भगवानुवाच । सो तो बाप हुआ ना । जानते हो कि बाबा हमारा बाप है । वो अभी भी फिर से कहते हैं कि.. .गीता का भगवान कहकर गए थे- काम शत्रु है, तो जरूर काम पर जीत पहनाई होगी । तुम बच्चे अभी जान गए कि रावण का राज्य... जैसे दूसरे राज्य शुरू होते हैं । देखो, सिर्फ भारत का राज्य था, फिर दूसरे राज्य हुए । रामराज्य हुआ, फिर देखो कितनी राजाई हो गई । यहाँ फिर यह भी भूल जाते हैं कि एक है रामराज्य, दूसरा है रावण राज्य । यह तो जरूर है कि रामराज्य सतयुग में होगा । कब से कब तक? अरे, हाफ एण्ड हाफ । यानी रामराज्य दिन, रावण राज्य रात । रात क्यों? भक्ति हो जाती है । पीछे बाप आकर कहते हैं बच्चे, अभी यह दुनिया खतम होने वाली है जरूर । उसके लिए तैयारियाँ सब हैं, नैचुरल कैलेमिटीज भी हैं और तुम जानते हो, तुम्हारे लिए जरूर नई दुनिया चाहिए और फट से चाहिए, क्योंकि इम्तहान तो पूरा होगा ना । बाप पढ़ाते पढ़ाते जाएँगे और तुमको राजाई चाहिए । इस पृथ्वी पर थोड़े ही राज्य करेंगे । देखो, इस पृथ्वी पर लक्ष्मी को बुलाते हैं पैसे के लिए ।.. .बाबा का पैर है जो यहाँ रखें?.. शिवबाबा के तो पैर नहीं हैं ना । शिवबाबा का तो कोई पैर थोडे ही धरा जाता है । वैसे कहते हैं देवताओ के भी इसमे पैर नही रह सकते हैं । तुम साक्षात्कार कर सकते हो और जानते हो कि बरोबर अभी हम पढ़ रहे हैं, देवता बन रहे हैं । यहाँ आएँगे, यहीं भारत में आएँगे, परन्तु फिर ये सृष्टि बदल जाएगी, कलहयुग से सतयुग बन जाएगा । सतयुग में तो रहते ही हैं श्रेष्ठाचारी । श्रेष्ठाचारी तुम बन रहे हो । फिर जब कहते हैं श्रेष्ठाचारी बनो तो भ्रष्टाचारी न बनो । बहुत बच्चे हैं, झट लिख देते हैं- बाबा, बडा जोर से नशा आता है । बस, पीछे रूक नहीं सकते हैं और गटर में गिर पड़ते हैं । बाप बोलते हैं, क्यों गिरते हो? देखो, तुम बाप को याद न करते हो । वहाँ तुमको कोई पकड़ने वाला तो नहीं हो सकता है ना । सिर्फ बाप को याद न करते हो और गटर में गिर जाते हो और क्या होता है, जो तदबीर बाबा कराते हैं, मत देते हैं, उसकी मत के बरखिलाफ चलते हो । तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ की मत के बरखिलाफ चलेंगे तो फिर क्या होंगे? भ्रष्ट होंगे, और क्या करेंगे! तो बाबा कहते हैं भ्रष्ट मत बनो । तुमको पढ़ाने वाला एक है । मनमनाभव का अर्थ एक है कि माम एकम् को याद करो, और कोई को भी नहीं याद करो । जिस द्वारा... उसके रथ को भी याद न करो । वो तो तुम जान गए कि यह रथ है । गीता वाला कोई अर्जुन और कृष्ण बरोबर दो बैठाया है ना- रथी और रथवान । अभी तुमने सुना कि बरोबर ये रथवान, ये रथ । बाप तो आ करके ज्ञान सुनाएँगे ना कि घोड़ेगाड़ी हांक लेंगे? घोड़ेगाड़ी हाँकने की तो बात नहीं है । घोड़ेगाड़ी में बैठकर ज्ञान दिया जाता है क्या? देखो, कितनी नॉनसेन्स है । सो भी सतयुग में कृष्ण के लिए घोड़ेगाड़ी कहाँ से आई । कृष्ण के लिए तो वही... । बडे आदमी कभी देखा है? क्वीन एलिजाबेथ घोड़ेगाड़ी पर बैठेंगी? वो तो अगर बैठती भी है या उनकी सवारी होती है तो 8 घोड़े हैं और बात मत पूछो । तो भी उनकी स्टेट सेरीमनी होती है, उसमें वो चढ़ते हैं । बाकी नहीं तो आजकल एरोप्लेन के बिगर तो कोई बात ही नहीं देखो, अभी बच्चे आए, एरोप्लेन में झटपट चढ़ जाते हैं, झटपट पहुंचते हैं । ये भी बच्चे जानते हैं कि बरोबर साइंस तो बड़ी जोर है । इसको कहा ही जाता है- साइंस भी एक माया है । यह माया का बड़ा पोम्प है इस समय में, परन्तु यह जो एकदम इतनी बड़ी पाम्प है । देखो, कितने बड़े- बड़े..... .अरे, आ जाओ, उनकी बडी आउजिया होती हैं । हाँ, भई फलानी जगह का प्रेसिडेंट आया, फलानी जगह का प्राइम मिनिस्टर आया और 15 रोज के बाद उनको शूट कर देते हैं, गद्दी से उतार देते हैं । क्या इज्जत रही! कितनी इज्जत मिली और एक सेकेण्ड में चट हो गई । यह सुख है? कुछ भी नहीं । बादशाहों के ऊपर भी मुसीबत है । उनको भी डर लगता है, पता नहीं मिलेट्री वाले कोई वक्त में हमको भी गले से उतार दें । सब डरते रहते हैं । बड़े-बड़े डरते रहते हैं । देखो, तुमको क्या ज्ञान मिलता है, कितना सहज मिलता है । कितना गरीब हो । एकदम गरीब बन जाते हो । तुम्हारी कौडी भी नहीं है, क्योंकि जो बलि चढ़ते हैं उनकी कौड़ी ठहरी? वो तो ट्रस्टी बनाते हैं । ट्रस्टी बोलते हैं कि जैसे मैं तुमको चलाऊँ वैसे चलो बाप को अभी ट्रस्टी बनाओ कि बाबा, सब कुछ आपका ही है । बरोबर आप ही ट्रस्टी हैं । बाप कहते हैं- अच्छा, यह तो जीते जी की बात है ना । तुम भी ट्रस्टी हो करके रहो । अगर अपना समझेंगे तो सच्चाई तुम्हारी नहीं रही । तुमको बाप ने जैसे अपनी मिल्कियत का ट्रस्टी बनाया है । श्रीमत से चलो । तो जो ट्रस्टी बने उनको ही तो श्रीमत मिलेगी ना । जो ट्रस्टी न बनेंगे... ।, बच्चे भी यहाँ आते हैं, वो राय पूंछते हैं । हम बोलते हैं, पहले तुम मेरे ट्रस्टी बने? हम तुमको फर्स्टक्लास राय देते हैं । बच्चों की बडी खबरदारी करो । तुम क्रियेटर हो, तुमको उनकी पालना करनी है । अच्छा, इस समय तुमको अच्छी तरह से ज्ञान मिल रहा है कि तुम्हारा भविष्य सुधरे । क्रियेशन को देते हैं ना कि अभी तुमको हम ऐसी मत देते हैं जो तुम राजाओं का राजा बनो । अच्छा, फिर बाप का भी तो धर्म है कि अपने बच्चों को भी यह मत देना कि बाप को याद करो । उनके ऊपर भी तो तरस खाना चाहिए ना । जिनको गटर में डाला वा डालने का बुद्धि में रहता है, उनको अभी इस गटर में पड़ने से बचाना है । अगर कोई भी बच्चा या स्त्री.... स्त्री, स्त्री नहीं रहती है । बच्चा, बच्चा नहीं रहता है । बड़ी युक्ति से चलना पड़ता है । समझा ना । कोई-कोई कल्याण करते हैं, परन्तु नहीं, तुमने सुना है कि बरोबर कोई पूतना, कोई सूपर्णखा ये स्त्रियों के नाम रखे हुए हैं । नाम तो बहुत ही हैं, परन्तु बहुत नाम थोड़े ही होते हैं । फिर वो देखो, दुशासन जरासंध अजामिल दुर्योधन ये अभी के हैं ना । अभी की सीन फिर से कब होगी? वही सीन फिर कल्प बाद होगी । बीच में तो कोई बिल्कुल जानता भी नहीं है । नॉलेज सम्मुख वही आकर देते हैं । देखो, सम्मुख ही आ करके मंत्र देंगे ना । जब फिर भी होगा तो सम्मुख देंगे, देंगे भी उन्हीं को । तो तुम्हीं को ही..., तुम यह समझ गए कि ही बरोबर 5000 वर्ष पहले भी यह जो महाभारत की लड़ाई या यह गीता और भागवत गाई जाती है, वो इनसे तालुक रखता है, पर उसमें देखा गया है कि ये सभी झूठ ही झूठ है । बाप बिल्कुल बैठकर अच्छी तरह से सम्मुख समझाते हैं और बरोबर समझाय मनुष्य को देवता पद प्राप्त कराते हैं । तो देखो, तुम बच्चे यहाँ आए हो । किसलिए? बाप से वर्सा लेने के लिए । तुम ब्रह्मा से वर्सा नहीं लेने आई हो, जगदम्बा से वर्सा नहीं लेने आती हो, इन सभी ब्रह्माकुमारियों से वर्सा लेने नहीं आई हो । ये भी तो बाप से वर्सा लेती हैं । जैसे लेती हैं वैसे औरों को समझाते हैं । तो तुम भी समझो । तुम भी जगतपिता के पुत्र हो, बच्चे हो । हम बरोबर जगतपिता-जगतमाता के बच्चे हैं । बच्ची हैं या बच्चे हैं? उनके सब बच्चे हैं । वर्सा उनसे लेते हो । जिसका बच्ची और बच्चा है, वो ब्रह्मा भी तो उनसे वर्सा लेते हैं और फिर तुम भी उनसे लेते हो । वो भी तुम सबको अलग-अलग कहते हैं कि हे बच्चे, मुझे याद करो । मैं किस द्वारा कहता हूँ? इन द्वारा या इन द्वारा ये भी सुनती है । ये भी तुमको ऐसे ही कहते हैं कि बाबा कहते हैं । यही सम्मुख बाप बैठ करके कहते हैं- लाडले बच्चे! मामेकम याद करो । वो फिर क्या कहेंगी? हे भाई और बहनों! बाबा कहते हैं । देखो, समझाने में फर्क हो जाता है ना । यह डायरेक्ट तीर लगता है । वो है वाया, दूसरे के तरफ । यहाँ मशहूर तो है ना मधुबन । मधुबन में डायरेक्ट तीर लगता है । सब बातें सब भूल जाते हैं । जो भी देह के भान में रहते हैं, कोई दुःखी, कोई सुखी, कोई फलाना, वो नही चाहिए । बाप कहते हैं देह, देह के धर्मों को भूल मामेकम याद करो । वर्सा मेरे से लेना है ना । कुछ भी हो जावे, तुम्हारा कोई भी मित्र-सम्बंधी मर जाए, वर्सा तो तुमको यहाँ बाप से लेना है और बहुत खुशी से, अरे! मैं तकदीर बनाने आई हूँ । पहले तो वो खुशी कि बरोबर हमारा बेहद का बाप स्वर्ग का मालिक है । सिर्फ हमारा मैनर्स बदलता है । हमारे मैनर्स बंदर जैसे हो गए हैं, उनको देवता जैसी बनाते हैं । बरोबर देखते हो कि मैनर्स में बहुत फर्क पड़ जाता है । पहली-पहली मैनर विकार, जो विषय सागर में डूबते थे, पहले इनसे बच जाते हैं । हम निर्विकारी बन रहे हैं, पावन बन रहे हैं । पीछे पावन बनकर... । बाबा क्या कहते हैं? बच्चे, यह चक्कर को याद करो, ड्रामा को और झाड़ के. । ड्रामा को तो एक सेकेण्ड में समझ जाते हैं- सत त्रेता द्वापर.. । झाड़ को भी ऐसे ही, पहले देवताओं का फाउण्डेशन, फिर यह ऐसे-ऐसे हुआ । कोई तकलीफ तो नहीं है ना । इसको बिल्कुल सिम्पुल ते सिम्पुल कहा जाता है । फिर भी कहते हैं बाबा, भूल हो गई, बाबा, क्रोध आ गया, बाबा, यह भूत हमारे मे आ गया । मैं बोलता हूँ- भूत निकालो ना । घर से भूतों को निकाल दो । अपने दिल रूपी दर्पण में देखो कि हम अभी नर से नारायण बनने के और राज्य पद लेने के लायक बने हैं? दिल से पूँछों कि बरोबर ये जो भी मम्मा-बाबा हैं, यह जो समझाते हैं देखो, कोई काम की तो बात ही नहीं, क्रोध की तो कोई बात ही नहीं । मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, मीठे-मीठे प्यारे बच्चे, मीठे-मीठे सौभाग्यशाली बच्चे । सौभाग्यशाली बच्चे क्यों कहते हैं? अरे, सौभाग्यशाली बनने लिए आए हो । अभी तो दुर्भाग्य है ना । इसको कहेंगे दुर्भाग्य । तो भारतवासियों का ये दुर्भाग्य है और सतयुग में भारतवासी सौभाग्यशाली थे । कितने साहूकार थे! भारत की बात है ना । तो जानते हो कि बरोबर दुनिया बदल रही है । फिर से भारत का एक देवी-देवता धर्म स्थापन हो रहा है । ये तुम जानते हो, तुम समझती हो, और कोई भी कुछ नहीं समझते हैं बिल्कुल ही । कौन समझेगा? जो भी देवी-देवता धर्म का हो, जिसने 84 जन्म भोगा वो सेम्पलिंग लगते आएँगे । देखो, तुम्हारे में बहुत हैं, कोई किसका गुरू, किसका चेला कोई नानक को जपने वाले, कोई हनुमान को, कोई कृष्ण को, पता नहीं किस-किस को... । नहीं, यह तो बोलते हैं सर्व के लिए । कहते हैं कि तुमको मेरे पास आना है ना, तो बस अंत मते सो गत । वो दृष्टान्त देते हैं कि अपन को ऐसे समझो कि..... .मैं भैंस हूँ भैंस हूँ भैंस हूँ फिर भैंस बन जाते हैं । यह दृष्टांत देते हैं । तुमको बाबा क्या कहते हैं, मैं आत्मा हूँ बाबा का बच्चा हूँ घर जाना है, नाटक पूरा होता है । बस यह नाटक पूरा होता है, अभी गए कि गए । सिर्फ लायक बनते हैं जाने के, जो पतित हैं । उसका उपाय बता देता हूँ कि मामेकम याद करो । गारंटी देता हूँ कि सब पापों से मुक्त हो जाएंगे और पुण्य आत्मा हो जाएँगे । ये तो है ही पापात्माओं की दुनिया । वो है ही पुण्य आत्माओं की दुनिया । भारत पुण्य आत्माओं की दुनिया थी तब सिर्फ एक ही भारत था । अभी तो जब पापआत्माएँ हैं तभी भारत भी है, तो अनेक दूसरे भी धर्म हैं । तो गाया जाता है ना एक धर्म की फिर से स्थापना, वही कल्प पहले वाली, जिसके लिए तुम बच्चे आ करके पुरुषार्थ करते हो और अच्छी तरह से जानते हो कि सभी धर्म खतम हो जाएँगे । होने ही हैं, क्योंकि नई दुनिया बदलती है । यह भी बुद्धि नहीं कहेगी कि बदलती है माना फिर नई दुनिया में भारत, और तो कोई भी नही था, इसलिए भारत को प्राचीन... । यह भारत ऐसे हेविन कैसे बना? कहते हैं- हैविनली गॉड फादर ने बनाया । हैविनली गॉड फादर कब आया? हैविन में तो नहीं आया? नहीं । हेल मे तो नहीं आया? नहीं । इसलिए इसको कांफ्लुएंस कहा जाता है । कल्याणकारी, ऑस्पिशस पवित्र, बाप के आने का समय । अभी तुम तो अच्छी तरह से समझते हो । तुम जानते हो । देखो तो, दुनिया में कोई नहीं जानते हैं । सिर्फ तुम थोड़े से, देखो कितने हैं! रावण की सम्प्रदाय कितनी बड़ी है और राम की सम्प्रदाय... । हाँ, वृद्धि को पाती रहेंगी । देखते भी हो कि वृद्धि को पाती रहती है । अभी बड़े-बड़े मकान चाहिए, क्योंकि बच्चे फिर से बाप से अपना वर्सा लेने आते रहेंगे, आते रहेंगे । ढेर के ढेर हो जाएँगे । फिर जब वृद्धि को पाएँगे तभी सब कोई समझेंगे इनको यह ज्ञान देने वाला बरोबर... । सो भी तो तुम समझाते हो, प्रदर्शनी बनाते हो और प्रोजेक्टर सहित तुम गाँवडो गाँवडो मे जाएंगे । जाना है, अभी बहुत काम करना है । तो जो काम करना है, सो जो बच्चे होंगे वो पुरुषार्थ करते रहते हैं । बाबा कहते हैं बरोबर मीठे लाडले बच्चे! मैं ड्रामा प्लैन अनुसार वो प्रबंध रच रहा हूँ । वो बना रहा हूँ । इस समय तक जो भी बीती वो पूरा एक्यूरेट ड्रामा । बाप कहते हैं कि मैं भी ड्रामा के ही बंधन में हूँ जो मुझे पतित दुनिया में आना पड़ता है । पुकारते हैं- आओ, मुझे पावन करने के लिए । देखो, मैं भी बंधन मे हो गया ना । परमधाम छोड़ करके देखो यहाँ किसमें आता हूँ! बच्चों के लिए आता हूँ । तो आएँगे ना, बीमारी में आएँगे ना । प्लेग होगी तो दूसरे तो भागेंगे, डॉक्टर तो नहीं भागेंगे । तो देखो, इनको तो आना ही पड़े ना और पुकारते भी पतित हैं- हे पतित-पावन! पावन करने वाले वा इस पांच विकार रूपी रावण से लिबरेट करने के लिए, हमको इस दुःखधाम से छुड़ाए सुखधाम ले चलने वाले । भले अर्थ नहीं जानते हैं, पर अक्षर तो ठीक बोलते हैं ना कि गॉड फादर इज लिबरेटर । कहाँ से लिबरेटर और फिर गाइड? सर्व का लिबरेटर के साथ सर्व का गाइड है । अंग्रेजी में अक्षर बड़े अच्छे हैं । लिबरेट करा करके फिर वापस ले जाते हैं । अभी सबको तो आ करके सतयुग में नहीं ले आएँगे ना । यह तो बच्चों को समझाया गया है कि धर्म नंबरवार आते हैं । जब भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म होता है तो उसमे दूसरे धर्म नहीं होते हैं । फिर ऐसे भी नहीं है कि कोई क्षत्रिय धर्म होता है या चंद्रवंशी होता है । नहीं । जब सूर्यवंशी है तो बस सूर्यवंशी है, फिर चद्रवंशी होता है यानी सूर्यवंशी पास हो गया । वो राजाएँ समझेंगे ना, उनके आगे लक्ष्मी-नारायण का राज्य था । बाकी पीछे क्या होगा, फिर वो नहीं जानते हैं । फिर जब द्वैत होता है, तुम जान लेना फिर पूजा लगनी शुरु हो जाती है । पता नहीं पड़ता है कि हम पुजारी कैसे बने वा विकारी कैसे बने, कब से बने । तो बच्चों को बैठकर बिल्कुल अच्छी तरह से सब समझाते हैं कि बच्चे, गाया हुआ है कि देवता वाममार्ग में चले जाते हैं । उसकी निशानी दिखलाते हैं । बाबा ने कहा- ये मंदिर थे गया में, जगन्नाथ में । वहाँ दिखलाते हैं कि देवताए जब वाममार्ग में गए । कौन गए? वो जो मंदिर में नीचे वाला कृष्ण । उनकी राजधानी थी । देवी-देवताएँ वाममार्ग में गए हैं तो फिर बात ही और क्या है! वो निशानी है । अच्छा है, कभी कहते हैं कि उड़ा दिया है उन्होंने, परन्तु बहुत जगह में हैं । कहाँ तक उड़ा कर कहाँ तक! नेपाल में भी हैं और बहुत जगह में हैं । बनारस में भी निशानियाँ हैं । अभी तो तुम प्रैक्टिकल में समझते हो बरोबर हम सो देवता बनते हैं । जानते हो हम फिर से सो.. .बनेंगे जरूर । हैविन बनेगा । अभी तुमको मालूम है । वहाँ तो नहीं याद पड़ेगा । अरे, कितनी सहज बातें समझने की हैं । यह तो बुद्धि में बिल्कुल ही अच्छी तरह से धारण होनी चाहिए । बाबा ने पहली-पहली बात फरमान किया है, क्योकि क्या होता है, बस इस विख के लिए अबलाओं के ऊपर मार पड़ती है । तो कमेधू क्रोधेशु दोनों शत्रु आते हैं जो बड़े ते बड़े शत्रु है । काम के कारण फिर क्रोध भी आता है, अबलाओं को मारते हैं । अबलाएँ पुकारती हैं- बाबा! हमको मार पड़ रही है विकार के लिए । अभी वो बेचारी यह तो नहीं कहती हैं पति मारते हैं । यह तो जानते हो कि ये सब दुर्योधन हैं । दुर्योधन कहो, जो भी कहो, बहुत नाम पड़े हुए हैं- अजामिल जरासिंधी अकासुर बकासुर फलाना । सो भी तुम बच्चों को अच्छी तरह से समझाया है पार्ट कैसे चल रहा है । अकासुर-बकासुर वो सभी गइयाँ चुरा कर जाते थे । तो बरोबर यहाँ से माया की मत वाले यहाँ की गइयाँ को चुराकर ले जाते हैं, भगाकर ले जाते हैं । अभी उनका नाम तो रखा हुआ है- अकासुर बकासुर दुर्योधन वगैरह । यहाँ फिर शास्त्रों में क्या कर दिया है कि श्रीकृष्ण भगाकर ले जाते थे । अरे भाई, तुम लोग जुल्म करते हो । कृष्ण बच्चा, उनके लिए कहते हो कि फलानी को भगाया, फलानी को भगाया.. । वो हो सकता है? अच्छा, वो तो हुआ श्रीकृष्ण के लिए ग्लानि । भला यहाँ क्या है? यहाँ कौन भगाते हैं? अभी देखो, ब्रह्माकुमारियां भगाती हैं, ब्रह्मा भगाते हैं । उनको यह मालूम ही नहीं है कि ये ब्राह्मण बच्चे किसके ठहरे । उनसे पूंछो- तुम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी, प्रजापिता ब्रहमा नाम सुना तो है बरोबर, परंतु वो ब्रह्मा तो सुक्ष्मवतन में है ना । अरे मुठ्ठे, प्रजापिता ब्रह्मा सुक्ष्मवतन में कैसे होगा? जरूर स्थूलवतन में होगा ना । ब्राह्मण भी गाते हैं ना- ब्राह्मण देवी-देवताय नम: । अक्षर भूल नहीं जाओ कि हम डायरेक्ट सम्मुख तकदीर बनाने आए हैं, क्योंकि वो दूसरे टीचर्स हैं । कोई अच्छा टीचर है, कोई कम टीचर है, कोई कम टीचर है । यहाँ तो खुद बाप ही बैठे है उनके साथ ही फिर वो भी तो अच्छा टीचर है । प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा भगवान ने वेद शास्त्र ग्रंथ का अर्थ समझाया होगा यानी ज्ञान समझाया होगा । पहले तो ब्रह्मा ने सुना होगा ना । कहाँ ? वो कुछ समझते हैं! तो देखो, विष्णु को भी सूक्ष्मवतन में दिया है, तो ब्रह्मा को भी सूक्ष्मवतन में दिया है । अभी विष्णु तो है ही सतयुग का मालिक, ब्रह्मा है संगम का और दे दिया है दोनों को सूक्ष्म में, कोई राज तो होगा ना । कोई किसकी बुद्धि में थोड़े ही आता है । प्रजापिता तो ब्राहमण पहले-पहले यहाँ चाहिए । पहले-पहले तो चोटी चाहिए । पहले ब्राह्मण चाहिए जो फिर देवता बनते हैं । ब्राह्मण क्यों? ज्ञान यज्ञ है । इसमें कोई वो यज्ञ नहीं है जिसमें कोई... वगैरह । संगम में सिर्फ यही यज्ञ । बाप समझाते हैं, बच्चे समझते हैं बरोबर ये आगे भी यज्ञ रचा हुआ था । इस यज्ञ में फिर सभी यज्ञ सिमट गए थे यानी उनमें स्वाहा हो गए थे । सारे यज्ञ तो क्या, जो भी पुरानी सृष्टि है सब आहुति हो गई । देखो, आहुति होती है ना । यही रुद्र ज्ञान यज्ञ जिससे.... .मौत से ये सब खल खलास हो जाएँगे । फिर सफाई वगैरह हो करके तुम बच्चे फिर देवता बन करके यहाँ आएँगे । तुम लायक सृष्टि पर आने के लायक बनेंगे । तो समझते हो कि नए भारत में नई दुनिया में आदि सनातन देवी-देवता धर्म का राज्य था, जिनके ये मालिक हैं । इसको डिनायस्टी-घराना कहा जाता है । सूर्यवंशी घराना माना ही वो फिर चलता है, उसमें बच्चे तख्त पर बैठते हैं । बच्चे जानते हैं कि अभी सतयुगी सूर्यवंशी... फिर सब होते हैं ना । पहले-पहले तो ब्राह्मण हैं । गाया भी जाता है कि जब ब्राह्मण धर्म स्थापन होता है, जिनके लिए किसको भी पता ही नहीं है । अच्छा, ब्राह्मण धर्म का कोई शास्त्र? अरे, यह ब्राह्मण धर्म का गीता शास्त्र है, जिससे वो देवता बनते हैं । यहाँ तो दिखला दिया है कि गीता द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं । सतयुग में तो नहीं सुनाएँगे ना । जरूर सतयुग के आगे सुनाएँगे । सतयुग के आगे तो कलहयुग है । कलहयुग में भी तो नहीं आएंगे, क्योंकि बदल रही है । कहते भी है- मैं कल्प-कल्प कल्प के संगमयुगे आता हूँ । कलहयुग अंत और सतयुग आदि के संगमयुगे आता हूँ । देखो, बरोबर बोलते हैं ना । ऐसे नहीं कि मैं युगे-युगे आता हूँ । मैं आता हूँ क्योंकि पतित तो पूरे ही पतित चाहिए । अगर द्वापर में आऊँ तो फिर पतित कलहयुग खड़ा है । फिर उनके लिए थोडे ही आना होता है । आऊँगा पतित, तो पावन दुनिया स्थापन करूँगा । तो बच्चे जानते है कि हमारा ताल्लुक ही उनसे हैं । जो कुछ भी घटनाएँ घटती हैं या विघ्न पड़ते हैं, ये कल्प पहले भी घटनाएँ घटी थीं या विघ्न पड़े थे । पास्ट इज पास्ट । आगे चलो साक्षी हो करके, स्थापना की क्या क्या, एक्ट चलती है, वो एक्ट में भी आते रहो और साक्षी हो करके देखते भी रहो । एक्टर्स हो ना । एक्टर में तो जरूर.. क्रियेटर है और डायरेक्टर है । क्रियेटर भी है, डायरेक्टर भी है, प्रिंसीपल एक्टर भी है, एक्टर भी है । अरे भई, निराकार एक्टर कैसा! एक्टर्स तो वही हैं, कर्मक्षेत्र पर । वो निराकार भला कैसे? तो कौन आएँगे? पतित-पावन । तो समझते हैं निराकार तो आ ही नहीं सकते हैं । अरे, पर जब सभी निराकार आत्माएँ साकार ले करके पार्ट बजाती हैं तो क्या निराकार नहीं आते हैं? हम निराकार आते ही वहाँ शांतिधाम से हैं । इनको पार्ट बजाना होता है तो वो भी आते हैं । उनकी तो बिल्कुल मशहूरी है । निराकार शिवबाबा का मंदिर है, और तो कोई तुम्हारी आत्माओं का तो मंदिर नहीं है । किसका भी महात्माओं का, आत्माओं का यहाँ कोई का मंदिर नहीं है, सिवाय एक के । वो भी बोलते हैं कि मैं भी आता हूँ परन्तु मैं कोई जन्म-मरण में नहीं आता हूँ । आता हूँ जरूर । क्यों? पतितों को पावन बनाने । मुझे पतित के. । अच्छा भई, कौन पतित है, उनको बताता हूँ । तुम पूरे 84 जन्म के पतित हो, लुक बता देते हैं । अभी तुमको फिर पावन बनाता हूँ । 21 जन्म तुम पावन बनते हो, पीछे 84 जन्म का आधा कल्प । उसमें आयु बड़ी होती है । इसमें तुम्हारी आयु भोगी बनने के कारण कमती होती जाती है । सो भी समझते हो, गाते हो बरोबर कि भारत का जब आदि सनातन धर्म था नया था तो बड़ी आयु थी, अकाले मृत्यु नहीं होती थी । यह तो अभी भी नाम सुनते हो ना कि अकाले मृत्यु नहीं होती थी और वो कह देते हैं कि वहाँ एवरेज आयु पूरी रहती थी । अब भोगी बन गए । तो भोगी के लिए बहुत जन्म हुआ ना । यह भी तो समझ सकते हो । तो और सब बात छोड़ करके... । बरोबर सन्मुख बैठते हो, कानों में अच्छी तरह से पड़ता है, परन्तु जब फिर गोरख धंधे में, पतित दुनिया में जाते हो... । यह तो तुम जैसे कि पावन होने वाली दुनिया में बैठे हो, पुरुषार्थियों की दुनिया में बैठे हो और श्रीमत.. .दे रहे हैं । वहाँ जाते हो, बहुतों से तुम्हारा वातावरण चलता है तो संग हो गया ना । तो देखो, संग तारे, कुसंग बोरे । ये अक्षर कहाँ से आए? किसका संग तारे? यहाँ तारे, तो सबको तारे ना । बरोबर तुम बैठे हो, तुम इस पाप की दुनिया से पुण्य की दुनिया में... । उसको कहा जाता है भाई, उस पार तर गया । चित्र दिखलाते हैं ना, क्षीर सागर में जा करके विष्णु । विष्णु तो क्षीर सागर में, तो यहाँ आकर राज्य करेंगे ना । ये विष्णु का घराना है ना । अभी विष्णु का घराना कहाँ है? अभी विषय नदी में गोता खा रहे है । विष्णु का घराना अभी यह बच्चे समझे, और तो नया कोई समझे भी नहीं । जो विष्णु का सूर्यवंशी घराना था उनको ही तो उतरना है ना । तो बस अभी विषय वैतरणी नदी में यह ऐसे दुःख उठाते हैं, आराम से तो नहीं सोते हैं ना । वहाँ तो देखो आराम से सोते हैं और यहाँ दुःख उठाते हैं । तो कितनी सहज बात । टाइम कितना थोड़ा है और 5000 वर्ष की कहानी है । कोई दूसरी तो नहीं है ना । तो यह कहानी है ना । कहानी जो पास्ट हो जाती है और फिर बैठ करके सुनाते हैं । उसको पास्ट की कहानी. । अभी पास्ट की यह कहानी कि भारत नया सतयुग कैसे बनता है, मनुष्य देवता कैसे बनते हैं । सो अभी तुम समझते हो । वो गाते हैं- मानुष ते देवता किये , करत न लागी वार । जरूर आए थे और बरोबर मनुष्य को देवता बनाया था । तो जब देवता बनाया था, तो अभी तुम देव बन रहे हो ना । आगे सुनते थे, गाते थे बरोबर कि मानुष ते देवता किये करत न लागी वार । यह किसने किया? एक ओंकार सत् नाम करता.. .निर्भय, निर्वैर, अकाल मूरत, अजोनि. .और निराकारी निरहंकार वगैरह-वगैरह बहुत ही कहते हैं । तो देखो, अकालमूर्त जिसका तख्त भी वहीं था जहाँ हम रहते थे, वो भी इस पृथ्वी के तख्त पर आ जाते हैं । यह अभी इस समय में धरती पर तो नहीं रहते । तो ये अकालतख्त । अकाल के बैठने का ये तख्त । हैं सभी अकाल के तख्त । है ना! आत्मा तो मृत्यु को नहीं पाती तो अकाल हुआ ना । सभी अकाल के तख्त हैं । साकार में है, उसको कहा जाता है जो अकाल... । तुम्हारी जो अकालमूर्त है वो मैली होती है, फिर श्वेत होती है, पावन होती है । हमारी तो एवर पावन है । बाप ऐसे कहेंगे- मैं जो इस तख्त पर आकर बैठा हूँ लोन लिया है, मैं तो एवर पावन हूँ ना । मेरे में तो ताकत है ना । कहते ही हैं- शक्तिवान । तो फिर तुमको ताकत देता हूँ ना कि माया को कैसे जीतना है । योगबल से कैसे तुम्हारी... । उसको बल कहा जाता है, ताकत कहा जाता है । याद का बल तुमको मिलता है जो उस याद के बल से तुम जीत पहनते हो । उसको कहा ही जाता है बाहुबल, इसको कहा जाता है योगबल । ये योगबल सिखलाने वाला कौन? जरूर शक्तिवान चाहिए । इस समय में तो सभी एकदम दुःखधाम में पड़े हुए हैं ना । शक्ति कहाँ से आएगी? कहाँ से शक्ति मिले? सर्वशक्तिवान एक को ही कहा जाता है । कभी ब्रह्मा विष्णु शंकर को कहेंगे क्या ? कोई को भी कह नहीं सकते हैं । अरे, वो तो शक्ति बाहुबल वालों.. .बहुत ही मैडल लगी रहती है लड़ाइयों के मैदान में । तुमको कोई मैडल की दरकार है? तुमको तो भविष्य के लिए वर्सा मिलने का है । योगबल से विश्व का मालिक । तो मीठे बच्चे, बीती बात कितनी खौफनाक हो, कितनी भी घटना हो, उनको उड़ा देना है । ये ड्रामा की भावी । यह कोई टालने के लिए कोशिश करे, टालने के लिए कोशिश की जाती है, पर टलती कहाँ है! देखो, वो भी कितना कहते हैं- हम बाबा को बोला देखो, हम इसको छुट्टी नहीं देंगे, लौटा दो, नहीं तो हम बिगडेंगे । तो बाबा कहते हैं- वाह!.. .हम जानते हैं कि इनको कोई जगह मे जाकर कल्याण करना है । तो मैं जानता हूँ तुम थोड़े ही जानते हो, क्योंकि तुम हो ही कल्याणकारी । यह तो बहुत कल्याणकारी है । बहुत कोई कल्याण करने वाली है । तो फिर उसमें तो खुश होना चाहिए ना । हम हैं ही सबका कल्याण चाहने वाले । जो भी यहाँ से जाते हैं, जा करके कल्याण ही करेंगे । इसलिए मुरझाने की कोई दरकार ही नहीं है, न कि शिकल ही मूर्छित हो जावे । बिल्कुल नहीं । यह तो भावी है, ड्रामा में चलती है । बाप कहते हैं- बच्चे, मैं कल्याणकारी हूँ । हर एक बात में कल्याण । जो भी जिसमें तुम समझते हो कि यह होता है, नहीं, उसमें भी कल्याण है । कल्याण ही कल्याण है । अखबारों में डालते हैं । अरे बच्ची, तुम्हारा बहुत कल्याण है । अखबारों में कोई कितना भी भौ-भौं करे तुम बिल्कुल वो नहीं करो । नहीं तो यह जानते हो कि कुत्ता आएगा, उनको थोडा ऐसे करो तो भौं-भौं, आगे चलते जाओ, पिछाडी हटता जाएगा, जास्ती भौं-भौं करता जाएगा । फिर किसको भी दरकार ही नहीं है, इनको भौंकने दो । ये जानते हो कि गाया हुआ है- कलकीधर के पिछाडी कुत्ते भौंकते हैं । वो फकीर कलकीधर होते हैं ना । अभी हैं तो ये ना । तुम कलकीधर बन रहे हो । जो पतित हैं वो तुम्हारे पिछाड़ी बहुत भौकेंगे क्योंकि एकदम नई बात है ना । वाह! ये क्या बोलती है- सर्वव्यापी नहीं है, भगवान एक है । कृष्ण ने नहीं सुनाई थी । ये रावण ने भगाई । यह एक भौंक है ना । तो तुम कलकीधर बनने वाले हो ना । तो तुम्हारे ऊपर ये मनुष्य भौंकेगे मनुष्यों के ऊपर । तो बरोबर dog से god बनते हो ना । कितना देर हुआ? अच्छा, शायद कोई को जाना है । फिर भी बाबा कहते हैं- बच्चे, बाप को याद करो और अपने वर्से को याद करो और सभी बातें कोई भी होती रहती हैं ना, उनमें इतना अटेंशन नहीं देना चाहिए । हम सब कुछ पूंछते हैं- बाबा, यह भला अच्छा था, सर्विस तो बड़ी अच्छी थी । बाबा फट कहते हैं- अरे पर, तुम क्यों पूंछते हो? उनको और कोई जगह में पार्ट बजाना होगा तो क्या तुम्हारे कहने से रोक दें? नहीं, उनको कोई का कल्याण करना है, इसलिए इन बातों में तुम क्यो इटरफेयर करते हो? तुमको हम कहता हूँ मुझे याद करो और बरोबर अपने बाप को याद करो और पवित्र रहो और मत पर चलो, जो रोज मिलती रहती है । हे आत्माओं! बाप को याद करो-हे आत्माओं! बाप को याद करो । कोई के भी शरीर के ऊपर फिदा नहीं हो । समझा ना । तुमको बोलते हैं, भले कितना भी तुमको अच्छा ज्ञान सुनाते हैं, तुमको उनके इस नाम-रूप में थोड़े ही फँस मरना है । वो भी तो मैं उनको सिखलाता हूँ ना, तो डायरेक्ट मुझे याद करो ना और मैं ही डायरेक्ट निराकार हूँ । यहाँ भी तुम्हारी दृष्टि साकार पर जाकर पड़ती है । मैं निराकार, तुम्हारा धाम भी वही निराकार है । वहाँ मुझे याद करो, वहीं जाना है । बाबा बोले ये खटमलों की दुनिया है । वो खुद कहते हैं कि मृत पलीती न बनो । तो देखो, वही जो कहते हैं सो ही मूत पलीती । ऐसे मत समझो विद्वान, आचार्य वगैरह मूत पलीती नहीं हैं । अरे, इनमें भी बहुत हैं । एक तो जन्म, दूसरा, वो बुरा-गंदा धंधा भी करते हैं । मीठे-मीठे सौभाग्यशाली बनने के पुरुषार्थी, ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का दिल व जान, सिक और प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग ।