29-06-1965     मधुबन आबू    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, सुदर्शन चक्र धारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते आज मंगलवार जून की 29 तारीख है प्रातः क्लास में बाप दादा की मुरली सुनते हैं।

यह जो रसम-रिवाज ड्रामा में नूंध है, वही एक्ट होता है । अभी तुम बच्चे क्या कर रहे हो? तुम बच्चों को क्या बैठकर करना है? कमाई । यह तो साक्षी होकर इन आखों से देखते हो । तुम बच्चों की बुद्धि कहाँ है? तुम्हारी बुद्धि अपना स्वदर्शनचक्र फिराय रही है । अपने नॉलेज में हो । बाप को याद कर रहे हो और ये सृष्टि के चक्र को याद कर रहे हो, जिससे तुम्हारी कमाई बड़ी अच्छी हो रही है क्योंकि अभी तुम्हारा तो धंधा ये रहा ना । वास्तव में अभी तुम कमाई कर रहे हो । अगर कोई अपने उसमें है उनकी कमाई बंद है । अभी समझा कि कुछ भी नहीं सुने? यह तो सुक्ष्मवतन में जाकर भोग लगाती है । इसको न याद कहेंगे, न स्वदर्शन चक्र फिराती है । बाबा ने कहा है कि ध्यान से ज्ञान श्रेष्ठ है । तुम बच्चे जो यहाँ बैठे हुए हो इनको कश लग रही है । इसको कश लग रही है । तुमको फायदा है जो अपने चक्र को फिराते रहते हैं । यह सुनती नहीं है, डायरेक्शन लेती है और काम में बिजी है । चलो, वहाँ भोग इमर्ज होगा, वो बैठ करके उनको खिलाएगी । यह वहाँ हमको फूल चढाएंगी । वो न कोई योग है, न ज्ञान है । तो कौन फायदे में हैं? जो यहाँ स्वदर्शन चक्र फिरा रहे हैं, बाबा की याद में हैं और चक्र को याद कर रहें हैं उनकी कमाई चल रही है । तो कितनी सहज कमाई इसको कहा जाता है । तुम अपनी हैल्थ एण्ड वैल्थ का वरदान, वर्सा बाप से ले रहे हो । इस समय में यह नहीं ले रही है । यह स्टॉप है । यह अपने और धंधे में लगी हुई है, जो इनको दिया हुआ है । अभी बाहर वाले मनुष्य तो नहीं समझेंगे यह ध्यान में गई है । वहाँ यह मम्मा का दीदार करेंगी, बाबा का दीदार करेंगी, उनको भोग लगाएंगी, फलाना करेंगी और यहाँ बच्चे बैठे हुए हैं, अपना स्वदर्शन चक्र फिरा रहे हैं, क्योंकि यह तो बच्चो को बता दिया है । अभी तुमको और तो कोई धंधा है नहीं । कोई खाना-पीना तो नहीं पकाना है या बच्चों की पालना तो नहीं करनी है । यहाँ तुम बैठे हो मनमनाभव मद्याजीभव । बाप ये समझाते रहते हैं ना । तो तुम यहाँ जितना देरी बैठे हो, अपने याद में रहो । तुम्हारा धंधा ही यह है कमाई । अभी यहाँ बिल्कुल अच्छी तरह से बैठे हो, कोई भी बाहर का वो धंधा नहीं है । हाँ, यह जरूर है कि किसकी बुद्धि कहाँ बाहर धंधे-धोरी में जाती हो तो दूसरी बात है । बाकी तुमको डायरेक्शन क्या है? बच्चे, मुझ अपने बाप को याद करो और चक्र को याद करो । उसका क्या होगा? जितना समय तुम उसमें बैठे वो टाइम तुम्हारा रजिस्टर में नूँधा जा रहा है, एडीशन होता जाता है-एडीशन होता जाता है, विकर्म का खाता चुक्यू होता जाता है, तुम नजदीक में जाते रहते हो । अभी कितनी सहज बातें समझाते रहते हैं । यह कमाई नहीं करते हैं । फिर इनके ख्यालात में... । जा करके भोग लगाती है । वो मनुष्य ऐसे ही बैठ जाते हैं । ये साक्षात्कार मे चले जाते हैं । अभी साक्षात्कार मे बैठी है । यह ज्ञान नहीं सुनती है । फिर आ करके तुम्हारे से सुनेगी या यहाँ टेप में सुन सकेंगी । समझ की बात है ना । अभी कौन समझ सकते हैं? जो अच्छे ज्ञानी हैं, जो बहुतों को समझा सकते हैं, वो अच्छी तरह से बैठे रहेगे । ऐसे कमाई देखो बिल्कुल सिम्पल । बाप कहते हैं कि बाप को याद करते रहो । बच्चे जो टाइम तुमको मिले, जहाँ भी हो, जहॉ कोई भी दूसरा कर्म, गृहस्थ व्यवहार का या धंधे का, कर्मेन्द्रियों द्वारा नहीं करने का है । अभी तो यहाँ तुमको बहुत फुर्सत है । सम्मुख बैठे हो, बड़े मौज मे बैठे हो कि हम शिवबाबा के पास बैठे हैं, याद कर रहे हैं और बरोबर हम अपना स्वदर्शन चक्र भी फिरा रहे हैं । हमको ज्ञान तो बहुत अच्छी तरह से बुद्धि में आ गया । बस, हम स्वदर्शनचक्रधारी हैं । हम अभी अपने घर शांतिधाम में जाते हैं, फिर हम सुखधाम में जाएँगे । इन दुःखधाम से हम अपना लंगर, बोट का लंगर होता है ना, किनारे से उठाते हैं । हमारा इस किनारे से लंगर उठ गया है, हम उस किनारे जा रहे हैं । ये ज्ञान तुम्हारी बुद्धि मे सदैव... क्योंकि बैठे हो ना, जाते हो ना । विलायत में स्टीमर में आते हैं तो घर याद तो पड़ेगा । वो लंगर छोड़, किनारा छोड़ा, इस किनारे... । तुम जानते हो कि बरोबर हमारा यह किनारा छूटा, हम जा रहे हैं । हमको जाना ही है वही । बस, याद करना ही है । याद करते-करते- करते समय आ जाएगा, फिर जिसका अच्छी तरह रजिस्टर में याद होगी और चक्र फिरता है, वो पहले जा करके वहाँ पहुँचेगा यानी लॉटरी विन कर देगा । पीछे नंबरवार होंगे । तो बस बाप कहते हैं कि याद करते रहो । स्वदर्शन चक्रधारी तो बने हो ना । अभी ऐसे तो नहीं है कि विष्णु स्वदर्शन चक्रधारी है । नहीं, तुम स्वदर्शन चक्रधारी से विष्णु बनते हो । निशानी तुमको तो शोभेगी नहीं, क्योंकि पूरे तो नहीं बने हो ना । अभी जब तुम पूरे बन जाओ तो फिर ये स्वदर्शन चक्र... । तुम तो शरीर छोड़ देगे ये निशानी किसको दें? तो देखो, निशानी दे दिया है उनको, जो बाप बैठकर समझाते हैं । अब यह ज्ञान का राज सिवाय बाप के कोई समझा सकेंगे क्या? तुम समझते हो ना कि फादर बाप कहते हैं- हियर मी, जज योर सेल्फ कि मैं ठीक बोलता हूँ ना, बरोबर राइट बोलता हूँ ना । कल्प पहले भी मैंने ऐसे ही तुमको कहा था । ऐसे ही बैठे हुए थे ना । यहाँ फिर प्रवचन कहे थे । अभी तुमको समझाया था कि बच्चे, तुम यहाँ बैठे हो, याद में बैठे हो, कहीं बुद्धि का योग भटकता तो नहीं है? अगर भटकता होगा तो वह रजिस्टर मे कुछ भी जमा नहीं होगा, क्योकि वहाँ सब आ जाता है । तो जिस समय जो टाइम मिले तुम्हारा यही धंधा है । बाकी जो कुछ भी होता है, कोई नई बात जो तुम देखते हो, वो बाप आ करके समझाते हैं । सुबह को गुरूवार है । मम्मा को भी तो निमंत्रण देना ही है । जैसे और बच्चों को भी देते हैं ना । कोई शरीर छोडकर जाते हैं तो हम देते हैं । तो यह तो अपनी मम्मा ही है । तो कल बुलाएँगे और उनको कहेंगे कि बच्चों को समाचार सुनाओ । जैसे बाबा इसमे बैठकर सुनाते हैं ना अभी वैसे ही बाबा ने कल भी समझाया कि यह जैसे उस बाबा का राइट हैण्ड बन गई है । इनका राइट हैण्ड छोड़ उनका बन गई है । बाबा भी सर्विस करते हैं तो वो भी सर्विस करती है । वो कैसे करती है, क्या करती है, बीमारी में क्या हुआ, वो मम्मा ही तो सुना सकेंगी ना । तो कल हम बाबा बैठकर उनसे पूछेंगे । देखें कि क्या बोलती है या न बोलती है । विवेक तो कहता है कि उनको समझाना चाहिए, क्योंकि आत्मा है, वो तो जानती है । ऐसे तो नही कि वो नही जानती है । वो अच्छी तरह से जानती है, सर्विस कर रही है । आत्मा ही संस्कार ले जाती है, आत्मा ही ज्ञान ले जाती है । अभी ऐसे तो नही कि वैकुण्ठ में जाएगी । वहाँ तो फिर ज्ञान खलास हो जाता है । जब कोई बच्चियां वैकुण्ठ में जाती हैं, बहुत डांस करती हैं, उनको ज्ञान कुछ भी नहीं रहता है । वैकुण्ठ में नाचती... मजा करती हैं, पीछे जब यहाँ आएँगी तब फिर ज्ञान.... तो कल मम्मा को ही निमत्रण देंगे । मम्मा को कहेंगे । कोई संदेशी जाएगी । पीछे क्या सुनाती है, क्योकि उनको तो सुनाना ही पडेगा, क्योंकि औरों को भी तो ज्ञान,.. बाबा भी तो ज्ञान सुनाते हैं ना । तो वो जैसे बाबा का राइट हैण्ड है । देखेंगे, जैसे बाबा सुनाते हैं सब कुछ तैसे यह भी सुनाती है या नहीं सुनाती है । हम रिक्वेस्ट करेंगे । सुनाएँगे तो कहेंगे ठीक है, नहीं तो फिर पूछेंगे- क्यों? जबकि सूक्ष्म में वाणी जाकर चला सकती है, आपका राइट हैण्ड हो गया । आप भी आकर समझाते थे, इनको भी आकर समझाना चाहिए । फिर आरग्यू करेंगे । बाबा कहेंगे- वेट एण्ड सी । क्या होता है, ड्रामा में क्या है आगे चल करके ।..... ये समझेगा कि जो कुछ भी सुनाएंगी, न सुनाएंगी, क्या भी होगा, वो होगा सब ड्रामा अनुसार । सुनाएंगी तब भी हम कहेंगे कि ड्रामा में था, देखो बैठकर सुनाया । न सुनाएंगी तो बाबा कहते हैं कि शायद ड्रामा में अभी सुनाने का नहीं है । शायद आगे चल करके फिर ट्राई करेंगे, क्या होता है । कुछ पता नहीं है ना । क्या होता है, कल देखा जाएगा, क्योंकि यह औरों के मुआफिक नहीं हैं जिन-जिन को बुलाता हूँ । उनका कर्म चुक्यू नहीं हुआ है । वो जाकर फिर कुछ नहीं बता सकते हैं । ये तो बता सकेंगी ना । ये तो कर्मातीत अवस्था है । वो तो बैठी है ना । हम दूसरे को बुलाते हैं । जाकर जन्म लेते हैं तभी सोल को बुलाते हैं । यानी वो कर्मातीत अवस्था वाले नहीं हैं । यह तो कर्मातीत एकदम फ्री है ना । वो है बुद्धि । देखो, ज्ञान है ना । यह समझने की बुद्धि रहती है ।