29-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो गुड इवनिंग यह 29 जून शाम का नेष्टा क्लास है।
......बच्चे सुन रहे हैं, इनका कुछ ना कुछ, कोई बनाए तो नहीं है । ना कोई शास्त्र है या कोई बात है। फिर तो जो खेल करते हैं नाटकों में, यह उनके हैं बरोबर । तो यह भी अर्थ तो वह लोग तो नहीं समझते हैं । इसमें से तो यह अर्थ बच्चों के लिए निकलता है , वह ऐसे रख कर के अर्थ समझाए जाते हैं । नहीं तो वास्तव में इन गीतों का कोई जरूरत नहीं है । ना गीतों की जरूरत है , ना शास्त्रों की जरुरत है , ना कुछ यहां वहां जाने की है । यहाँ तो बच्चों को बैठकर के बाप को पढ़ाना है । इसका नाम ही है पाठशाला । पाठशाला में कोई गीत नहीं बजाए जाते हैं नहीं , पाठशाला में बैठकर के पढ़ाया जाता है । अभी यह तो अपना काम कर रही है , भाई भोग लगवाना , तो यह तो कॉमन बात कही जाती है समझा ना । सिर्फ यह की यह लोग साक्षात्कार से सब कुछ काम करते हैं और दूसरा कोई और नहीं साक्षात्कार करते हैं । कोई करते भी होंगे , अभी उसका कोई पढ़ाई से या बाप से कोई वर्सा लेने का तो बात ही नहीं है कुछ । यहां तो तुम बच्चे जानते हो कि बाप आकर करके बेहद का बाप , जो ज्ञान का सागर है वो बैठकर के बच्चों को सृष्टि चक्र का राज समझाते हैं , ठीक है ना बच्चे। जिसको ही गाया हुआ है भारत का सहज राजयोग का ज्ञान , सहज याद का ज्ञान । यह भी तो बाबा ने समझाया उस दिन । तो बरोबर किसी को परिचय देना यह भी तो ज्ञान है ना । यह बाप तो सर्व का सद्गति दाता है । बाप तो सबका बेहद का प्यारा बाप है । सभी बच्चे दुनिया में उस बाप को याद करते हैं । सिर्फ बाप वर्सा कैसे देते हैं, वो उनसे मुक्ति जीवन मुक्ति कैसे मिलती है , क्योंकि मुक्ति और जीवनमुक्ति का समय पास तो हो गया है न । बरोबर यह दुनिया भारत खास , वो मुक्तिधाम में तो थे ना । जब मुक्तिधाम में थे , भारत जीवन मुक्तिधाम में थे यह तो बुद्धि में बैठता है ना सब बच्चों को । दुनिया नहीं जानती है यह डिटेल है बुद्धि में रोशनी , की बरोबर एक भी बात कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते हैं विद्वान, आचार्य नहीं जानते हैं । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में तो यह रहा ना बरोबर यह ऊंचे ते ऊंचा बाबा है और बाबा यह सब कह देंगे ना बेहद का बाबा है । फिर बरोबर वह बाबा ब्रह्मा द्वारा ही रचना रचते हैं , वह ब्राम्हण बनते हैं , है ना बरोबर तुम ब्राम्हण तो कोई नए नहीं बनाते हैं, नहीं। मनुष्य को देवता बनाने के लिए पहले ब्राह्मण,...क्योंकि वर्ण चाहिए । यह तो ज्ञान की बातें हो गई ना समझने की बातें जो तुम्हारे काम की है । तुम्हारा सारा मदार ही है बेहद के बाप जो ज्ञान का सागर है उनसे वर्सा पाना । यह उनकी शिक्षा से , श्रीमत । तो तुम बच्चे बैठे हो , जानते हो कि हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ , जिसको कहा ही जाता है श्री भगवान की मत , भगवान की श्रीमत , श्रेष्ठ मत । अभी निश्चय तो बच्चों को है ना सभी को कि हमको इसमें नहीं जाना चाहिए कुछ भी हो जावे । चलते चलते देखते चलना है , क्या क्या यह ड्रामा में इमर्ज होता जाता है हम देखते रहते हैं । तो बाप बैठ करके समझाते हैं कोई भी बात में घबराने की कोई दरकार नहीं है बिलकुल भी । तुम आते ही हो स्कूल में पढ़ने के लिए । कहां से ? भाई जो सुप्रीम बाबा है , है ना इनको ही , यह कोई फिलोसोफी नहीं है इसमें इसका नाम ही है स्पिरिचुअल नॉलेज यानी रूहानी नॉलेज और सुप्रीम रूह , जो बाप है जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है वही होते हैं ये सभी । यूं तो फिलोसोफेर बहुत है शास्त्र पढ़ने वाले उनको तो बड़े बड़े टाइटल दे दिया गया है। उसको कोई स्पिरिचुअल नॉलेज जिसको कहा जाता है यानि बाप जो सबका रूहानी बाप है, उनकी तो नॉलेज किसी को मिलती नहीं है । यह तो सिर्फ तुम को मिलती है और यह निश्चय है कि बरोबर हम बाबा के हैं , जानते हो कि पतित पावन भी है और बराबर वह हमको फिर से , अभी फिर से जैसे कल्प पहले पढ़े हो तैसे फिर से तुमको पढ़ना है । अब कोई भी बातों में नहीं जाना चाहिए ये सभी प्रिलिमिनरी बात है जैसे कोई रसम रिवाज पीछे होती है । इस ज्ञान की रस्में रिवाज ही बिल्कुल ही न्यारी । देखो तुम बच्चों को.....पढे तो सब है , बुद्धि में याद है , ड्रामा है फलाना है तीरा है यह सभी वेद है , ग्रंथ है सभी पढ़े हुए हैं ऊपर से नीचे तक । भाई यह सभी पढ़े हुए हैं , हम जानते हैं अच्छी तरह से । अब उस बाप ने आकर समझाया ये सभी बच्चे भक्ति मार्ग में थे , ठीक है न । अभी यह बाप कहते हैं ना यह सभी की भक्ति मार्ग है । यह पढ़ते पढ़ते पढ़ते तुमको क्या फायदा हुए बताओ । तो बाबा ने समझाया है ना देखो तुम्हारा वेस्ट ऑफ मनी इनके पिछाड़ी, वेस्ट ऑफ एनर्जी , वेस्ट ऑफ टाइम यानी काम करना चाहिए कोई जिसमें फायदा हो । अभी तुम यह सब जो यज्ञ दान तप करते आए हो , फायदा क्या हो गया ? तुमको फायदा तो कुछ मिला ही नहीं । अगर मिला भी , तो भी अल्पकाल क्षणभंगुर, सो तो मिला ही , बाप से भी तो वर्सा मिलता है अल्पकाल का क्षणभंगुर, गुरु से भी वर्सा मिलता है अल्पकाल के लिए, जिससे भी बोलो, बाप टीचर गुरु जो भी होवे मित्र सम्बन्धी हद का, अल्पकाल क्षणभंगुर । यह तो जरूर गाया हुआ है की बरोबर 21 पीढी का भी मत मिलती है सुख की । तो तुम तो यहां जानते हो कि बरोबर बाबा द्वारा अपन को, बच्चों को 21 जन्म के लिए उनकी मत श्रीमत से हम को चलना है , सो बाप बैठ कर के समझाते है की ग्रहस्थ और व्यवहार में रह कर करके,...और कैसे बुद्धियोग लगाओ अच्छी तरह से, बाप को याद करो और ये जो नॉलेज देते हैं मोस्ट सिम्पल जिसको कहा जाता है , ये झाड़ और ड्रामा को बुद्धि में रखना ये है मोस्ट सिंपल । तो तुम्हारी बुद्धि में बरोबर है झाड़ वैरायटी मनुष्य सृष्टि का...कैसे स्थापना होती है , कैसे फिर वृद्धि को पाता है , कैसे मल्टीप्लिकेशन होती है धर्मों की और मनुष्यों की , भाषाओं की वगैरह वगैरह...। नहीं तो पहले एक धर्म, एक भाषा ठीक है ना , कोई दो भाषा नहीं होती है सतयुग में एक भाषा, क्योंकि एक ही धर्म है , अभी तो तुम बच्चों की बुद्धि में रहता है अभी कि बरोबर सतयुग में एक धर्म है और वह देवी देवताओं का धर्म है जो प्राय: लोप हो जाता है अभी अनेक धर्म है , बाबा फिर स्थापना कर रहें हैं । बाप कहते हैं कि मैं कल्प कल्प.....देखो कहते हैं न, बाप कह सकते हैं न? बच्चो प्रित की कल्प कल्प संगम पर मैं आता हूँ क्योंकि सृष्टि के चक्कर को फिरना है, फिर सतयुग आना है, फिर आदि सनातन देवी देवता धर्म आना है । अब ये तो बिलकुल सहज समझना है, ओरों को समझाना है । भाई चार युग फिरते हैं भाई सत था भारत बड़ा सुखी था एक धर्म था, अभी तुम देखते हो बहुत ही धर्म हो गए हैं भारत देखो भारत का धर्म प्राय: लोप हो गए हैं । तो अभी लोप हो गए हैं , दुखधाम हो गए हैं । बाबा ने बच्चों को बहुत समझाया है जो कोई आवे उनको यह तो भला सच तो बताओ की देखो भारत कितना सुखधाम था सुखी था । ये जैसा था न, देवी देवता राज्य करते थे, उसका नाम ही सुखधाम तो हैं न, बस यही चीज तीन भी तुम समझाओ किसको न, भाई शांति धाम जहां हम रहते हैं, भाई सुखधाम जिसमे भारत सुखी था, आज 5000 वर्ष पहले की बात है यह राज करते हैं , वह भी बता दो भाई 3000 वर्ष क्राइस्ट के आगे देवी देवता धर्म था बरोबर । अच्छा अभी देखो सुखधाम था अभी दुखधाम है , क्योंकि कलयुग है, फिर सुखधाम को आना है जरूर। पहले शांतिधाम में जाना पड़ेगा । सिर्फ ये भी तुम बच्चे समझाते रहो क्योंकि ये भी तो कोई जानता तो नहीं है न । भाई ये बात कौन समझा रहा है तुम बच्चो को, हमको बेहद का बाबा, जिसको ज्ञान है, जो त्रिकालदर्शी है, ये तीन काल हुए न शांतिधाम, सुखधाम ये दुखधाम, ये काल तीन तो हुए न । तो बस तुम बच्चों को देखो बाबा कितना सहज रीति समझाते हैं और सब बातें छोड़ जो जो कुछ भी सुनो , करो , कुछ भी हो जावे, तुम्हारा फर्ज ही यह है, बहुत सहज , बाप को याद करना है जितना हो सके , जितना याद करेगा इतना नजदीक जाएगा , परंतु याद कोई करे भी न अच्छी तरह से.. । कर्म करना है कर्म के लिए टाइम देते हैं कि बच्चे भले । आराम भी करो और कर्म भी करो , 8 घंटा , तीन हिस्सा तो जरूर करेंगे न । 8 घंटा तो फिलहाल कोशिश करके , आधे घंटे से शुरू करो ताकि पिछाड़ी में आ करके तुम्हारा जिसका भी 8 घंटा , जिसका भी 8 घंटा पूरा होंगा याद में , ऊपर में रिकॉर्ड होता जाता है तो बस याद ही करना है तुमको कोई तकलीफ तो देते ही नहीं है कुछ भी । कोई प्रकार की कोई कपड़ों बदलने का , घरबार छोड़ने का , या सफेद कपड़े पहनने का भी यह तो था ही स्कूल के, दूसरा कोई था ही नहीं तो तुम्हारी ड्रेस यह कर दी । बाबा तो कहते हैं ना सबको कि बाबा बहुत खुश होते हैं जब यह भाई-बहन पहन कर के आते हैं। तो मना तो कोई भी नहीं करते हैं । तो इसमें कोई भी तकलीफ वगैरह तो कुछ देखने में ही नहीं आती है मूंझने की दरकार ही नहीं है। बच्चे अच्छा मम्मा शरीर छोड़ा इसमें दुख तो कोई होता ही नहीं है कोई किस्म का । क्यों? मम्मा को ज्ञान देने वाला बाप हमारा है ही मम्मा का भी , बाबा का भी , बच्चों का काम ही है मम्मा से । अभी बाप करते हैं मम्मा से , मैं गया मम्मा तो जैसे मैं हूं । समझे न मैं आता हूं ना इसमें प्रवेश करता हूं ना । मैं तो कर सकता हूं ना, मम्मा को जन्म नहीं देता हूं, यह तो चल के आगे चलकर बताएंगे , बुद्धि अपनी ही कहती है और तो अपना हिसाब किताब भले थी करी भी थी कर्म भले वो भोग के गई , अच्छा क्या यह नहीं हो सकता है क्या कि जैसे बाप आते हैं, आकर के मुरली चलाते हैं, क्या मम्मा को भी नहीं भेज सकते हैं क्या, कि जाओ तुम फलानी जगह जाओ, जरूरत है वहां जाकर के उस में बैठकर के मुरली सुनाओ। तो क्या नहीं कर सकते हैं । कई पूंछते हैं क्या भला क्या वो गर्भ में जाएंगी ,ये सब पूंछने की दरकार ही क्यों पड़ी रहती हैं , यह तो बाबा के हाथ में है। बुद्धि कहती है, जबकि वह पवित्र हो गई , यह भी निश्चय है कि लक्ष्मी का पार्ट भी उनका है जरूर , क्योंकि तुम जानते हो कि सबसे तीखी थी और बाबा और ही उनसे सर्विस कराने के लिए, हो सकता है उनको गर्भ में ना जाना पड़े और बैठ कर के,... यह तुम्हारे पास आएँगे समाचार बाबा तुमको बताएंगा तो बाप बैठकर के समझाते हैं बच्चों को, कि बाबा उनको कोई भी शरीर में प्रवेश कराए करके मुरली चलाए सकता है। वह समझेंगे कि बरोबर जो मम्मा कहेंगी, वह वाणी ऐसी चलाएंगे जिससे बच्चे समझेंगे कि यह तो मम्मा ने प्रवेश करके वो वाणी चलाए रही है । क्या नहीं हो सकते हैं । तुम समझेंगे मम्मा तो हमारी कोई गई तो नहीं है। अभी पुराना शरीर छोड़ दिया। अच्छा अभी देखो आते हैं जैसे बाबा प्रवेश कर करके शरीर का नॉलेज देते हैं वो नॉलेज देने लग पड़ें । तो ऐसे तो भेद नहीं.. और ही तीखी होंगी बहुत क्योंकि बाप को तो बच्चों का वो बाला करना है भाग्य और शो करना है उनका नाम बाला करना है। बाप ही तो तुम्हारा नाम बाला कर रहे हैं न, तुम बाप का नाम बाला कर रहे हो, बच्चे बाप का नाम बाला कर रहे हैं । मददगार हो बाप के। कौन पढ़ाते हैं हमको ? ये बाबा पढ़ाते हैं यह बाबा से हम 21 जन्म के लिए वर्सा ले रहे हैं तो बाप की महिमा करते हैं । बाप तुमको ही पढ़ाते हैं। बाबा ने सुबह को भी समझाया बच्चे यह तुम ब्रह्मणी हो , आगे चलकर करके कोई शायद आवाज भी निकलते रहें कि हम पहले ब्रम्हाकुमारी थी , और हम देवता बनी अब हम ब्रह्मकुमारियां हैं , समझे ना । हमने यह देवताओं से 84 जन्म के बाद , यह देखो हम आकर की ब्रह्माकुमारीयां बनी है फिर से , तो फिर से तो तुम बनते हो ना। तो यह आगे चलते चलते मनुष्य की बुद्धि में आवाज सुनते सुनते, अरे बच्चे तुम्हारा नाम बड़ा वाला होगा। समझे ना । घबराने की तो कोई बात ही बिल्कुल नहीं है एकदम , क्योंकि घबराएंगे तो हाय देंगे । थोड़ा भी मूर्छित हुआ कोई बात मरीं तो जैसे तुम लोगो ने हार खाई माया से । तो हार तो तुमको खाना ही नहीं है बिल्कुल भी, सदैव हर्षित । जितना हर्षित तुम रहते रहेंगे और हर्षित किस में रहते हो, अरे कोई भले श्री लक्ष्मी और नारायण उनका जो बच्चे होंगे , वह इतना हर्षित नहीं हो सकते हैं जितना तुम हर्षित हो । वह फिर भी तो कोई राजा के बच्चे हैं , समझे ना । देवता का बच्चे हैं , मनुष्य का बच्चे हैं , मनुष्य है ना दैवीय गुणवाला और तुम तो देखो, तुम तो कहते हो हम ईश्वर के बच्चे हैं तो कौन बड़े हुए देवताओ के बच्चे बड़े हुए या ईश्वर के बच्चे बड़े हुए कोई हिसाब तो करो, तो तुम्हारा तो बड़ा नशा है समझा न, जातियों के ऊपर भी तो हैं न, कहते हैं भाई हम तो शादी करेंगे तो भाई ऊंचे कुल में, और तुम तो देखो अभी कितने ऊँच कुल के हो। कितना भाग्यशाली हो, ईश्वरीय कुल के हो । तो तुम बच्चों को तो नशा रहना चाहिए न। बाबा को जानते हो अच्छी तरह से कोई ना तो नहीं जानते हो न बच्चे और प्रजापिता ब्रह्मा को भी जानते हो हम इनके मुख वंशावली हैं । वह तो कहा जाता है कि भाई यह माता भी हैं क्योंकि इनके मुख से इनके द्वारा यह बच्चे एडॉप्टर करते हैं , तो समझा है ना इसीलिए इनको ही त्वमेव माताश्च पिता कहते हैं । अच्छा पीछे वह मम्मा का नाम गाया हुआ है सरस्वती ब्रम्हाकुमारी । ऐसा सुनाते हैं। ब्रह्मा मुखवंशावली, दुनिया नहीं जानती हैं की जगदम्बा कौन है क्या लगती है ब्रह्मा की, है गाया हुआ ब्रह्मा की बेटी । तो वो भी तो बच्ची है बाकि तुम भी तो बच्चियां है, फिर इनमे कोई होशियार होती है । कोई कोई तो ब्रह्माकुमारी कहाँ कहाँ भाषण करती है न, तो ऐसे मत समझो... नहीं नहीं कोई वक्त में ऐसे बैठ कर के भाषण करेंगे कि जैसे कि मम्मा से भी तीखी जाती हैं । तुम लोग का नाम पड़ गया है की मम्मा सबसे तीखी है, परन्तु नहीं यहाँ बहुत कम थोड़ी है, अरे जगदीश है न, ये बड़ा तीखा है क्योंकि पढ़ा हुआ है बहुत ही अच्छी तरह से, वो भी पढ़ती है न । वो पढ़ा हुआ है वो जब बैठ के समझाते हैं , बहुत को समझाते हैं। बाबा खुद भी कहते हैं मेरे से अच्छा समझाते हैं । दृष्टांत वगैरह वह सभी शास्त्रों में से कुछ ना कुछ सार निकाल कर के बहुत तीखा जाते हैं सीलिंग आती है। यह जैसा समझाते हैं और तो कोई भी नहीं समझा सकते हैं सिवाय बाप के। नाम भी तो है ना संजय का नाम ही तो है ना। भले नाम रख दिया है हम लोग भी वही नाम रख दिया है, परंतु तुम जानते हो कि क्या यह बैठकर के मैगजीन लिख सकेगा? बिल्कुल नहीं, क्योंकि उनकी बुद्धि ही ऐसी है जो धारणा करते हैं अब यह तो नहीं लिख सकते हैं। तो फिर होशियार हुआ ना, बाबा लिख सकेंगे? मैगजीन लिखेंगे या यह जो तुम गीता वगैरह.. वह लिखेंगे? तो फिर कौन होशियार हुआ? बुद्धि से काम लेना होता है ना सब। इसलिए जो जो भी अच्छी तरह से धारणा करते हैं कराते हैं, वह अपना ऊंचा पद पाएंगे। पढ़ना तो है ही जरूर, पढ़ाई को तो छोड़ना नहीं है ना। कोई भी संशय कोई भी आए, कुछ भी हो , कोई भी आवे, भाई अच्छा ब्राह्मणी से नहीं बनती है,.. बहुत ही चिट्ठी आती है यह फलानी ब्राह्मणी से इनका कुछ मतभेद हो गया है इसीलिए पढ़ाई छोड़ दी है। अरे पढ़ाई अगर छोड़ दी, पढ़ाई तो पढ़ना है बाप से। अच्छा वह नहीं तो बाबा को लिख देवे, बाबा इनसे हमारी मतभेद होती है हमको तो मुरली अलग भेज दियो तो हम पढ़ते रहेंगे। अच्छा बच्चे अलग लेओ। उसमें क्या है, मतभेद हैं, पढाई तो पढो। पढ़ाई तो करते रहो ना, पढ़ाई मत छोड़ो। पढ़ाई अगर छोड़ दी तो क्या पढेंगे तो कोई भी बच्चे बस याद कर लेना यह पढ़ाई छुड़वाना, करना यह यह सभी फिर रावण मत, आसुरी मत। वो खींच लेती है बुद्धि को। तो याद रखें ये बच्चे सब कि तुमको बाप से पढ़ना है अगर निश्चय है तो कोई भी संशय इसमें लाना नहीं है कोई भी प्रकार का। पढ़ना जरूर है, बेहद के बाप से वर्सा पाने के लिए फिर वह आए तो ब्रह्मा द्वारा पढाएंगे ना। नहीं तो कैसे पढ़ाएंगे । पढ़ाएंगे भी तो जरूर ब्रह्मणों को पढ़ाएंगे ना। तो पढ़ते रहना है घर में पढ़ो, जहां चाहिए विलायत में जाओ पढ़ो पढ़ना है। अच्छा न पढ़ते हो, भला बाप को तो याद करेंगे ना। अच्छा भले रूठो कोई से भी, सबसे रूठो, बाप से तो नहीं रुकना है ना। उनसे तो वर्सा ही लेना है। बच्चे घर में ही बैठ जाओ कोई से नहीं पसंद आता पढ़ना, अच्छा हिम्मत है तो घर में ही बैठ जाओ, बाबा को याद करो और औरों को भी याद दिलाओ। बच्चा, भाई, बहन बाप को याद करो, वह तो बाप है ना, भगवान है ना, तो भगवान के हम बच्चे ठहरे ना। तो भगवान तो सृष्टि रचना है ना सुखधाम। तो हमको वर्सा क्यों नहीं होना चाहिए सुखधाम का। हां था, था न बरोबर, हम भारत में, यह भारत तो स्वर्ग था, तो वर्सा था अब नहीं है। अभी फिर बाप को याद करो। बाप ने ही कहा है, सुनना है यहाँ सुनकर के जाते हैं न तो कहते हैं मेरे को याद करना है निरंतर। फिर मेरे को याद करो वर्सा को याद करो। यह बच्चों को जितना अच्छा हो बस गीता सुनाते रहो। सीखते हो ना बच्चे सभी यह गीता है ना। सिर्फ बाप ने जो सुनाई भी होंगी किसको गीता, ज्ञान तो फिर और ने औरों को भी तो सुनाया होगा ना, नहीं तो फिर इतनी बादशाही कैसे स्थापन हो सकती है, तो जरूर एक दो को तो देखो यहां है ही पढ़ना है पढ़ाना है और यह काम भी अभी पूरा होना है यह भी जानते हो ज्ञान पढ़ना ही है भविष्य 21 जन्म के लिए। जिन्हें पढ़ना ही है फिर भविष्य की जन्म के लिए वर्सा पाने के लिए पढ़ना ही है। कोई भी बात आवे तो उनमें तुम्हारा क्या जाता है तुम क्यों उसमें मूंझते हो की यह ना हुआ, यह हुआ, यह ना हुआ, यह हुआ,.. यह तो बहुत बातें हैं आगे चलकर के पता नहीं क्या होंगा। गांव मैं जैसे कोई बगल में तुम्हारा कोई सर्विस सेंटर कोई बंद करा देगा, उठा ही देगा, पीछे तुम क्या करेंगे? हां तो भी क्या कोई तुम जाएंगे क्या? नहीं। क्योंकि यहां तो हमारा वर्सा है बाप से लेना वह तो तुम धंधा करते ही रहेंगे कुछ नहीं होगा। यहाँ तो कोई प्रॉपर्टी व्रोपर्टी नहीं है जिसको कोई हड़प कर लेंगे। तो अनेक विघ्न पड़ेंगे किस्म किस्म के तो हनुमान तो सबको बनना है ना महावीर तो सबको बनना है ना। क्यों और सभी का नाम नहीं है सिर्फ हनुमान है सुग्रीव कहां गया फिर? वह बाली कहां गया उनका नाम क्यों नहीं तो मिसाल जो दिया है कि ऐसे मजबूत रहना चाहिए निश्चय में जो कितना भी तूफान आए कितना भी विघ्न आए तो\ भी हटना नहीं है बाबा की याद से और अपने वर्षे की याद से इसीलिए बाबा बार-बार कहते हैं। कई आते हैं जब आते हैं अच्छा मम्मा चली गई... अरे! पर मम्मा चली गई यह तो अज्ञान काल में वह बच्चे कहते हैं मम्मा चली गई, तुम्हारी मम्मा कहां चली गई, वह तो सर्विस पर गई है ना। तुम जानते हो वह सर्विस पर गई है। बच्चों को जानते हैं ना बाबा कहते हैं सर्विस पर गई तो बाबा फिर उनसे पूछेंगे तुम क्यों इन को याद करके क्यों रोती हो, तुमको तो रोना ही नहीं है। तुम रोती हो तब जबकि शिव बाबा को नहीं याद करती हो तब तुमको रोना आता है, तुमको कोई साकार को कोई के देहधारी को थोड़ी याद करना है। तुमने प्रण किया है, वचन दिया है कि हम एक को ही याद करेंगे बस दूसरा ना कोई, फिर तुम अपने प्राण से क्यों डिगती हो, तो उसको तो याद ही नहीं करना है तुम्हारा काम ही है बच्चे, तुम्हें बाप को याद करना है क्योंकि तुमको बाप के पास जाना है ना पहले मुक्तिधाम। पहले मुक्तिधाम में जाना है ना मम्मा क्या,.. कहां जाएंगे मम्मा के पास? मम्मा तो जब महारानी बनेंगी तब वहां जाएंगे ना। मम्मा के इस शरीर को तुम याद कैसे कर सकते हैं। तो बाबा जब आते हैं बच्चे उसकी शक्ल पहले से ही दूर से ही देखता हूं तो रोता हुआ चेहरा अरे क्या तुम बाबा को परेशान करने आई हो? ऐसा चेहरा जब कोई किसी का मरता है तो वह आते हैं, अरे! पर तुम.. तुम्हारा क्या मरा है? तुम्हारा कौन मरा है? तुम्हारा तो है कुछ... देह्शारियों को तो तुमको याद ही नहीं करना है। कहते हैं तुम्हारा आंसू बहता ही तब है जब देह अभिमानी बन करके देह याद करते हैं नहीं तो बच्चे तुम्हारा आंसू कभी भी बहना ही नहीं चाहिए, परंतु वह अवस्था चाहिए अच्छी, नहीं तो ऐसे बहुत है जिनके मित्र संबंधी मरते हैं रोते हैं रोते ही रहते हैं यहाँ तो रोना ही,...रोने प्रूफ बनना है, जबकि वहां तुम बच्चों को कोई को भी रोने का है ही नहीं बिल्कुल, तो प्रेक्टिस तो यहां चलनी है ना बच्चे। यहां कि तुम्हारी सारी प्रैक्टिस वहाँ अविनाशी बन जाती है। तो प्रैक्टिस तुम्हारी तो ठीक होनी चाहिए ना। हर्षित हो कर करके बोलो हमको तो अपने बाप से काम है। हर एक का अपने बाप से काम है। बाबा का भी बाप से काम है और उसमें सदेव हर्षित रहो तभी समझा जाएगा कि कितनी स्थेरियम है बोलो हमारा तो काम ही है शिव बाबा से और दूसरे से कोई भी काम नहीं है, तो क्या करेंगे। तो इसीलिए बाबा देखता है ना आजकल जो आते हैं आते ही पता नहीं क्यों, मम्मा का फोटो तो देखने का ही नहीं है, अच्छा मम्मा तो चली गई, फिर क्या आने का हाँ? बाबा हम आते हैं फिर से जैसे बादल आते हैं, आपसे भरने के लिए तो बाबा कहते हैं तो ठीक हैं, बाकि कोई आ करके यहां आंसू बहाते हैं तो बाबा कहते है यह बादल आए हो, यह भरने के लिए आए हो या अपनी पथ गंवाने के लिए आए हो? आए हुए हैं यहां तो बाबा तुमको भरते करते रहते हैं। सागर पर आए हो तो कहते हैं जो पॉइंट से समझावे वह समझ के धारण कर कर के भर कर के फिर जाकर के औरों को समझाओ। तुम्हारा धंधा ही यही है, यहां आते ही क्यों है मधुबन में बाबा के पास, क्योंकि वह है गंगा और जमुनाओं का मेला समझा न और यहां तो तुम्हारा मेला होते ही है सागर से, सागर तुमको रिफ्रेश कर रहे हैं नदियों को। तो तुम्हारा यहां आना ही है सागर से रीफ्रेश होना और कोई बात नहीं और फिर जाकर के बरसा बरसाना। धंधा ही तुम्हारा यही है। वो ज्ञान का सागर तुम है बादल। तुमको भरना है। यहां बाबा चिट्ठियों में लिखते हैं बादलों को ले आओ बाकी ऐसे नहीं ले आओ बिचारों को जो कुछ समझ भी नहीं सकते हैं। उनको तुम वहीं कहेंगे शिव बाबा को याद करो शिव बाबा को याद करो। वह शिव बाबा को भी नहीं याद कर सकते हैं बोलते बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। अभी भूल जाते हैं जो घड़ी-घड़ी उसकी धारणा क्या होंगी। यह भी बाबा ने छुट्टी दिया है बच्चों को कि बच्चों को ले आओ क्यों ? बोलती है बाबा बच्चे के कारण हम रिफ्रेश नहीं हो के आ सकते हैं। फिर बाबा हम कैसे आवे, हमारी दिल तो होती है सागर पर जाने परन्तु यह जो बंधन है उनको क्या करें। तो बाबा कहें जिनका कोई हल्का होवे कोई तो एक बच्चा लाचारी हालत में उन बच्चों को सहूलियत हो छुट्टी मिले क्योंकि छुट्टी देते नहीं है, तो भले आ करके बिचारी रिफ्रेश होकर के जावे । तो यहां जगह ही है बच्चे यहां आने की और आयकर के बादल भरकर के कल्याण करने की, क्योंकि तुम बच्चे ही ही कल्याणकारी के बच्चे कल्याणकारी। यह सभी शक्ति दल है ना बच्चे, इनकी शेर पर सवारी तो उनकी हाथी पर सवारी है। ऐसे दिखलाया है मंदिर में जाओ तो देखो है ना। हाथी पर सवारी है महारथियों की, शेर पर सवारी है शक्तियों की। फिर उनके नए नामाचार, तुम जाओ दिलवाड़ा मंदिर के अंदर तो हांथियों पर भी सवारी है और शक्तियों का कहते ये शेर पर सवारी। दोनों ही महारथी और गाते भी हैं देखो भाई गज को ग्राह ने खाया, हाथी महारथियों को भी बरोबर यह जो माया रूपी ग्रह खा जाती है गाया देखो कितना हुआ है और बरोबर ऐसे होते हैं। खा जाते हैं छोड़ देते हैं तो खा जाते हैं। तो इसलिए बाबा कहते हैं तुमको तो बहुत हर्षित रहना चाहिए, बहुत-बहुत हर्षित रहना चाहिए। भूलना यह निर्वाह कर देते हैं। गाते हो बरोबर हम बरोबर शिव बाबा के पोत्रे पोत्री, हमारा हक लगता है दादे के वर्से का, लक्ष्मी नारायण बनने का, या स्वर्ग में आने का, या स्वर्ग का मालिक बनने का तो स्वर्ग के मालिक तो सब बनते हो, उसमें तो कोई शक नहीं है। बहुत-बहुत ढेर जो थोड़ा भी सुनते हैं ना सो भी आ जाते हैं। बाप ने समझाया है ना अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता है, सिर्फ बस बा..बा, बाबा कहा ना, तो बस कुछ ना कुछ बन गया। इतना बाबा का वो इतना.... बा..बा एक दफा मुख से निकला बरोबर यह हमारा बाबा है, उनसे हमको बरसा मिलना जरूर, कौन सा? स्वर्ग का। तो तुमको कितनी खुशी चाहिए, इस दुनिया में खुशी किसको..और ख़ुशी भी ऐसी चाहिए कितनी भी आफतें आवे, कितने भी हो... तुमको तो खुशी भी...क्योंकि जानते हो कि विनाश तो होना ही जरूर है। यदि उसके लिए रचा हुआ है तुम पढ़ते ही इसके लिए हो। तो सब मर जाएंगे हम राज करेंगे। मर कर करके तुम, मरेंगे तो तुम भी पर हम आकर राज करेंगे, वो ही जो अच्छी तरह से पढेंगे, बच्ची यह तो बड़ी वंडरफुल ऊंचे ते ऊंची पढ़ाई है। इस पढ़ाई के ऊपर बहुत अटेंशन देना चाहिए बच्चों को अगर अपना कल्याण करना चाहते हैं तो। बस पढ़ाई पढ़ाई और पढ़ाई। फिर तुम्हारा कभी भी बच्चे आंसू नहीं आ सकता है। क्योंकि शांत देखो बैठे हैं और भाई किसकी याद में बैठे हो? अरे मनमनाभव मद्याजी भव। ये तो था न 5000 वर्ष पहले भी बाबा का महावाक्य है। इसका अर्थ भी निकालते हैं, मुझे अपने बाप को याद करो अपने वर्से को याद करो। चतुर्भुज तो तुम्हारा वर्सा है ना तो बरोबर पढ़ती हो, बरोबर जानती हो की बरोबर बाबा पढ़ाते हैं और हम बाबा के पास जा कर के अपने घर जाकर... अरे यह सिर्फ याद रखो न, कि अभी नाटक पूरा होता है, 84 जन्म पूरा। अभी बाबा आए हैं हमको घर ले जाने के लिए परंतु सिंगारना जरूर है हमको। अपने सिंगार का तो पता है ना बराबर यह हमारा सिंगार। अभी सिंगार है वह। याद बल से सिंगार से तुम यह बन रहे हो। तो यह रखते हो घर में रोज सुबह को उठकर के देखो। समझे न। मैं नहीं समझता हूं की तुमको कोई भी वह झुठका आएगा कभी भी। सिर्फ सुबह को उठकर करके इनको सामने रख देओ बस। यहां तो तुमको है ही बरोबर ये बाबा बड़ा बाबा, इन द्वारा यह वर्सा समझे ना। यह वर्सा है ना। चतुर्भुज बनना ही है ना। बस यह तो राइट है ना। बस तुम और कुछ नहीं, वह तो थक कर के भी घर जाओ ना तो घर में यह चित्र रख दो बड़ा और इनसे भी बड़ा, जैसे वह बड़ा है ना आ करके तुम देखेंगे और समझाओ जो भी घर में आए यह बाबा यह ब्रह्मा द्वारा यह वर्सा ये इन द्वारा फिर विनाश कलयुग का। बस ये टिक मचाते रहो एकदम। एक यह टिक भी तुम्हारी जो भी आवे घर में बच्चे मानो ना मानो हम यह सीखते हैं बाबा बाबा द्वारा राजयोग सीखलाते हैं पवित्र बनने के लिए। जब भी वह सिखलाई पूरी हो जाएंगे दुनिया विनाश होंगे तो तीसरी आंख खोलते हैं फिर खत्म हो जाते हैं। पढ़ना है तुमको बस तुमको और कुछ नहीं करना है इनको याद करना है और यह वर्से को याद करना है। अरे यह बिल्कुल ही सहज बात है, जो आवे बस यही लगाई दे एकदम। ये चित्र ये तो बनाय सकते हैं कोई भी। यह कोई ज्यादा थोड़ी न आते हैं। 100 रूपए का चित्र खरीद लो । यह तुम्हारी पढ़ाई है राजनीति की। उसमे तो खर्चा लगता है ना। कितना खर्चा लगता है बच्चों को पढ़ाई का, एक एक का । इनमे कोई भी नहीं है, चित्र थोड़ा बड़ा होते हैं तो मजा आता है। छोटा है थोड़ा नहीं। वह साइज बिल्कुल ठीक है । हर एक बच्चा अपने घर में रख देवे। पहले पहले यह धंधा करें, पीछे वो दो पैसा जो देते हैं ना कोई को वह पीछे बोले पहले सब ये रखे अपने पास। तो वो बहुत सहज होंगा बच्चों को । जितने भी आएंगे तुम्हारे कोई भी आएँगे बाबा कहते हैं बिल्कुल खुश हो जाएगा तुम्हारे से, तुम दूसरी कोई की बात न सुनो बाबा से रहो फिर बाबा का रूप फिर समझाना जब यह समझ जाए, पीछे उनको डिटेल में समझाओ। नहीं तो ये सब बिल्कुल ठीक है ना देखो यह किसने बनवाया, बाप ने देख कर के बनाया देखो, देखो ये कृष्ण को और इनको अलग कर दिया एकदम। इनको सतयुग में भेज दिया तो इनको द्वापर में भेज दिया। तो ये चित्र बाबा कहता है एक तो हमेशा कहता है ग्रामोफ़ोन रखो जो अच्छे अच्छे चले। नहीं उससे भी बड़ा ये अच्छा है तुमको कुछ भी पीछे रखने की दरकार नहीं है बस इनके उपर समझाओ। तो यह और भी आ जाएंगा न जो आकर पढेंगे बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा फिर यहीं होंगे उन द्वारा पढ़ाते हैं बरोबर ये नई दुनिया के मालिक बनाने के लिए । क्यों भला नहीं रख सकते हो। बुद्धि में बैठता है बच्चो की, की यह भी नहीं बैठता है भूल जाते हैं तो तुम घर में होगा न बच्ची घर में रखा होगा, बच्चे आएंगे दुकान से या धंधे से बस यह देखेंगे अरे खुश हो जाएंगे बिल्कुल ही। जो आए अपने घर बच्चे बच्चे को भी यही कहो की देखो यह है बाबा सबका और ब्रह्मा, प्रजापिता ब्रह्मा ये भी तो सबका हो गया इन द्वारा ये पद प्राप्त कराते हैं सिर्फ तुम याद करो। उनको याद करो और इस वर्से को याद करो। मनमनाभव मध्याजीभव गीता का तो अर्थ यह है न सिर्फ कृष्ण नहीं, भगवान् अक्षर तो वही हैं न दो तो सिर्फ तो कहते भगवान हैं न की वो तो उनका बायोग्राफी.. फर्क है। यह भी करो तो तुम बहुत खुश हो जाएंगे। पहले पहले ये खर्चा ये करो। बाबा बरोबर वो बनवाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं देखो अभी भी कहता हूँ वो मुंबई वालों को निर्वेर है फलाना है, वो बताओ अभी और कुछ काम बिल्कुल नहीं करते हो तुम्हारा वो जो प्रदर्शनी इतनी लंबी चौड़ी है न, छोड़ दो। यह चित्र मैं सब आ जाते हैं। ये एक बना करके बड़ा और जो आवे उन को समझाते रहो। ये सबसे अच्छी ते अच्छी चीज है एकदम। वह तो बात बाबा कहते हैं घर के लिए वह फिर झाड़ वाड में भी थोड़ा जास्ती समझाना होता है और यह तो बिल्कुल ही सहज है। तुम्हें ऑर्डर देता हूं जाओ बच्चों को रमेश है कहते हैं इसके ऊपर बनाने से सस्ता बनेगा। मैं बच्चे और दे देता हूं चलो इसके ऊपर हजार हम को बना कर दे और बनाने में सस्ता पड़ेगा, फिर जिसको चाहिए बाबा से मंगा ले। देखो इतने चित्र बनाते हैं तो खर्चा करते हैं ना। ये भी तो खर्चा तो खाते हैं न सब जब छपाई होती है। तो बाप कहते हैं ऐसे गरीब हों तो बाबा से फ्री ले लेवे। जो अफोर्ड कर सके भले बनावे। अच्छा चलो बनावे दूसरे दूसरे जो आएंगा मै उनको सौगात दे देंगे। शिव बाबा का भंडारा है ना तो कोई भी हर्जा नही है पर यह कोई घर में भी रखो तब भी तुम लोग बड़े खुश हो पाएंगे बहुत खुश होंगे। यह बहुत अच्छे चित्र है बिल्कुल ही, पूरी समझानी। वह कृष्ण को अलग फलाने को क्या कर दिया है एकदम। जैसे कि शास्त्र वगैरह पढ़कर करके एकदम एक भूसा भर गया बुद्धि में। तो बाप ने कहा है ना यह भूसा निकालो बुद्धि से, यह जो कुछ पढ़े हो यह सब भूल जाओ। हियर नो मोर इविल। जब मैं आया हूं.. नो मोर इविल सुनो । कुछ भी यह कथा है व्रत है फलाना है ढीकाना है। अब देखो सुनो... मेरे से दो अक्षर सुनो सिर्फ। हम थोड़ी बताते हैं। इतना टिक टिक, नहीं बिलकुल। बहुत पढ़े हो मैं तुमको बिल्कुल एक दो अक्षर में ही जिसके लिए तुम भक्ति की है। वर्सा पाने के लिए भगवान से जीवन मुक्ति मुक्ति, मैं तुमको दो अक्षर दे देता हूं इसीलिए तो 1 सेकंड कहा है ना। मन मनाभाव मद्याजी भव। भाई सुई रखो घडी की सामने तो देखो सेकंड में है ना। बाप को.. अच्छा बाप को याद करो उसमें भी वर्सा आ जाता है। क्यों गाया हुआ है सेकंड में? अच्छा देखो बाबा बैठ जाते हैं। ये तो आपस में चैट बहुत की 3 घंटे की इतने में तो कोई चला जाता आसमान में। बाबा कैसे लगा हमारा क्लास? जी....कैसा लगा हमारा क्लास ? अच्छा है, फर्स्ट क्लास। तुम तो बहुत अच्छा पुरुषार्थ करते हो ना। इसमें बाबा थोड़ी कुछ कहेंगे। यह बहुत है यह तो मैं युक्ति बताता हूं कि क्या करो अपने घर में रखो। अरे इनसे ही तुम्हारा बच्ची यह तुम घर में रखो तुम्हारे ही घर में जैसे कि यूनिवर्सिटी है और यह हॉस्पिटल भी बढ़िया है। तो बहुतों को समझाने से तुम एवर हेल्दी एवर वेल्थी बनाए सकते हैं। क्या खर्चा है इसमें और देखो ऐसे होता है ना। समझे ना, यह चित्र तुम्हारे पास छोटे झाड-वाड़ तो है सभी। कोई कोई कहे मुझे डिटेल में,... अच्छा चलो बैठकर समझाओ पहले तो टेंपटेशन तो उनको देना चाहिए ना। हक से बाप से वर्सा लेते हो अरे! चल के बाप से तो वर्सा लो। क्यों हम तो ले रहे हैं ना तो तुम को हम राय देते हैं, हम कहते हैं तुम ट्राई करो। हमारी सुनो न बोलो तुम ट्राई करो हमारे से। हम गारंटी करते हैं आधा कल्प कभी रोएंगे नहीं, कभी बीमार पड़ेंगे नहीं, कभी नहीं करेंगे गुड इवनिंग।