30-06-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते आज बुधवार जून की 30 तारीख है प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड-
माता ओ माता तू सबकी भाग्य विधाता...........

ओम शांति
यह मां की और मां के बच्चियों की महिमा सुनी। गाई हुई है की माताओं को ही वर्सा मिलता है गुरुपने का। यह माताओं बिगर, अभी एक माता तो नहीं है ना बच्चे, माताओं बिगर किसका उद्धार होना मुश्किल है। माता गुरु का श्रृंखला जारी हुआ तो एक माता तो नहीं सर्विस करती है ना। यह सभी माताएँ, अभी यह हो गई जैसे माँ नॉलेजफुल या मास्टर नॉलेजफुल कहें, रास्ता बताने वाली। तो गुरु करे जाते थे भाई यह गुरु करना है सद्गति के लिए। अभी बाप ने आ कर के बच्चों को समझाया कि कोई भी वेद, गुरु किसकी भी सद्गति नहीं कर सकते है। न गति कर सकते हैं ना सद्गति कर सकते हैं। माताएं मशहूर है- शक्ति, शिव शक्ति, जगदंबा। अब यह तो बच्चों ने समझा है की बरोबर माँ जिसकी महिमा आज निकली है वह प्रिंसिपल थी, मुख्य थी और उन द्वारा फिर आप बच्चे भी सीखे हो, यह सीखने की बात हुई न। तो बहुत ही नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार कल्याण करने अर्थ व रास्ता बताने अर्थ निमित्त बनी हुई है। व ऐसा भी कहें कि पतितों को पावन बनाने ये माताएं निमित्त बनी हुई है, क्योंकी गुरु कहा ही जाता है उनको जो सद्गति देवें। अभी यह तो बच्चे जान चुके की ये सभी गपोड़े मारते थे, वो फलाना निर्वाणधाम में गया, ज्योतिज्योत समाया या कोई कैसे-कैसे गपोड़े की बैकुंठवासी हुआ। अभी तुम जान गए हो अभी की ना कोई वैकुंठवासी होते रहते है ना कोई ज्योति ज्योत में समाते हैं, ना कोई निर्वाणधाम में जाते हैं, यह तो तुम बच्चों को मालूम हुआ अच्छी तरह से। यह सभी गपोड़े मारते थे। अब जबकि बाप आए हुए हैं जिसको ही कहा जाता है सर्व की सद्गति दाता। फिर यह माताओं द्वारा, गाया भी हुआ है बरोबर क्योंकि जो बातें उनमे जो अच्छी तरह से समझदार है जिन्होंने अर्थ सहित समझाई हैं इसलिए माताओं की महिमा बहुत भारी है, गाई जाती है। तो अभी इस समय ही गाई गई है जो फिर भक्ति मार्ग में गाई जा रही है। मम्मा की तो महिमा बहुत है कोई एक की तो नहीं। भिन्न भिन्न प्रकार के नामों के देवियों के मंदिर हैं। अनेक नाम है समझा न। तुम अगर कोई निकालेंगे तो भिन्न-भिन्न देश में देखो यहां नाम नहीं लेते हैं सिर्फ कह देते हैं अधर कुमारी, कुमारी। नाम तो कुछ देते ही नहीं हैं, देते हैं कुछ बच्चे? क्योंकि यहां तो बहुत हैं ढेर हैं। तो वहां भक्ति मार्ग में यह देवियों का भी चित्र निकलते हैं। ऑक्यूपेशन किसी का भी पता नहीं था। यह देवियां, यह देवियाँ ऐसे कौन थी, कैसे बनी, कब बनी, ये कोई को पता नहीं पड़ता है पर तुम बच्चे जान चुके हो अभी बिल्कुल अच्छी तरह से। जो भी यह देवी देवताओं के मंदिर हैं यह लक्ष्मी नारायण के मंदिर, यह भी देवी देवता हुए या और भी जो श्रीसीता श्रीरामचंद्र व और ही देवियों के मंदिर, यह देवी और देवताओं के ही तो मंदिर है ना। तो अभी तुम बच्चे सब जान चुके हो, जो जो अच्छे-अच्छे सेंसिबल बच्चे हैं जो उठा सकते हैं कि बरोबर यह जो भी देवी देवताओं के मंदिर हैं यह बरोबर पहले ब्रह्माकुमार कुमारियां थी और इसके पहले शुद्र थे, पतित थे, पीछे ब्राह्मण बने। ब्राह्मण धर्म में आएकर करके और फिर शिक्षा पाई देवता बने देखो यह कितनी बड़ी रोशनी समझ की बात है। अभी तुम जानते हो कि हम देवता बन जाएंगे तो ये भक्ति मार्ग के चित्र वगैरह ये शाश्त्र वगैरह सुनेंगे ही नहीं, इसलिए ऐसे नहीं हो सकता है कि परंपरा से कोई यह चित्र आते रहते हैं या परंपरा से कोई शास्त्र हैं या परंपरा से कोई ये त्यौहार मनाते आते हैं। शिवजयंती, भाई शिवजयंती कोई त्यौहार तुमको बनाने की दरकार नहीं रहेंगी वहां। न कृष्ण जयंती न हनुमान जयंती फलाना फलाना फलाना जयंती कोई भी चीज बनाई नहीं जाएगी ठीक है ना बच्चे। अभी मम्मा की महिमा, देखो बहुत महिमा मम्मा की, अभी यह तो समझते हो कि बरोबर सबसे तीखी थी। ऐसे कहेंगे ना, तीखी थी। अभी ठीक ही थी, कहां है अभी उसकी आत्मा? प्रश्न उठाते हैं ना कि भाई यह कहां जाकर के जन्म लिया? अभी बच्चे जो कोई अच्छा सा कोई जाते हैं वो जैसे गांधीजी गया या फलाना गया हां बाबा से पूंछते हैं कि आत्मा कहां गई। तो वैसे ही अभी यह मम्मा की आत्मा कहां गई, यह भी तो बाप से पूंछना होता है ना बच्चे। तो बाप बैठ कर के फिर समझाते हैं की बच्चे देखा तो सही ड्रामा में की इनको शरीर को छोड़ना हुआ। जो भी इनके कर्म थे वह भोगना भी पड़ा और बाप भी यह कहते रहते हैं बच्चे योग में अच्छे रहो, याद में अच्छे रहो, विकर्म तो बहुत हैं, पीछे फिर भोगना पड़े और फिर सजा भी खानी पड़े। अभी इस मम्मा को तो सजा खाने का है ही नहीं। जाकर के सजा खाए या बैठे इनके लिए ट्रिब्यूनल...ऐसे तो हो भी नहीं सकती है समझा न। अच्छा अभी पूंछा तो जाते हैं न अभी बाप से पूंछना पड़े सबकुछ। अभी जो कुछ है बाप से पूंछते हैं बाबा अभी आफत आती है क्या करें, अभी ये होते हैं क्या करें? ये विघ्न पड़ते हैं क्या करें? पूंछते तो रहते हैं ना बरोबर तो हर बात पूछी तो जाती है क्योंकि जो जो भी समझदार हैं अच्छे अच्छे बच्चे हैं वह तो पूंछ भी सकते हैं। मम्मा के लिए भी बाबा से पूंछा जाएगा कि मम्मा से कोई बातचीत कर सकते हैं, बुलाए सकते हैं? भला क्यों नहीं। वो तो अभी कोई जन्म तो लिया नहीं है। अभी तुमको बाबा ने कल भी समझाया तो बाबा कहते हैं जैसे मैं सेवा कर रहा हूं, कर रहा हूं ना, कोई भी पाप आत्मा में प्रवेश कर लेता हूं। है तो सभी पापा आत्मा न। देखो यह भी तो बाबा कहते हैं ना यह भी पाप आत्मा था परंतु अभी पुण्यात्मा बनते रहते हैं, पवित्र बनते रहते हैं वह तो समझाया न। भाई कर्मातीत अवस्था तो ये तो ज़रूर समझेंगे फिर भाई मम्मा अभी कर्मातीत अवस्था में चली गई। अभी बाप से पूंछा जाता है अभी मम्मा का निकला है यह गीत, तो समझाया जाता है क्योंकि बच्चे बहुत मूंझते हैं कि क्या हुआ? तो बाप बोलते हैं, नहीं तुम्हारा दर्जा दिन प्रतिदिन ऊंचा है, ये बहुत ऊंचा है जैसे तुम कहते हैं ना बाबा के लिए बहुत ऊंचा है तो जगदंबा की नेक्स्ट ये ऊंचा है। यदि बच्चे जानते हैं ब्रह्मा का भी इतना ऊंचा नहीं है, अभी इनको ऊंचपना कैसे दिखलाया जाए तो बाप से पूंछना पड़े। सभी माताओं का, जगदंबा का तो देखो कितने मेले लगते हैं, कितनी उनकी महिमा है तो जरूर कुछ ऊंची सर्विस की होंगी। ऐसे थोड़ी है, बहुत है ना बहुत कुछ मदद की होंगी, बहुत पतितों का कल्याण किया होंगा। यह भारत की, बहुत सर्विस की होंगी जरूर । तो अभी क्या बाबा, अभी कैसी सर्विस करती होंगी? क्या हुआ कहाँ कोई गर्भ में चली गई क्या हुआ ? तो बाप से पूंछा जाता है बाप कहते हैं नहीं बच्चे, इनसे तो अभी जैसे मैं कर्म करता हूं ना क्योंकि यह तो यहां से तो खत्म हुई। अच्छा कलयुग में तो जा नहीं सकती ना, मूत पलीती तो बन नहीं सकती न, यह भी लौ के विरुद्ध है बिल्कुल। अभी उनसे हमको ड्रामा अनुसार, इनसे जैसे मैं सेवा करता हूं, प्रवेश हो करके इसमें भी कोई में भी आ सकते हैं और मुरली चलाते हैं, महसूसता होती है की हाँ आ गये, बच्चे मुरली बच्चे भी महसूस करते हैं तो बाबा कहते हैं यह भी ऐसे ही हैं नेक्स्ट में। इनसे भी इनको मर्तबा जास्ती देते हैं बाप की इनसे मैं जैसे सर्विस करता हूं वैसे यह भी सर्विस कर सकते हैं। मैं जैसे अपने निर्वाण धाम में जाता हूं ना वैसे यह भी मेरे साथ जा सकती है। इतना तक इनका मैं..इनका ऊंचा मर्तबा.. गाया जो है सो तो कोई तो बात होगी तो जरूर ना। तो बार-बार मेरे से पूंछते रहो, मैं समझाते रहूंगा। मूंझने की कोई दरकार नहीं है, क्योंकि पूंछना भी तो होते हैं बरोबर कोई संदेशी द्वारा। तो यह तो बात पूंछते रहते हैं बाबा से अच्छा अभी इनके लिए कौन सा संदेशी मुकर्रर करते हो, नहीं? बोलते हैं हां..एक मुकर्रर कर देना होता है पीछे यह जैसे इनका मुकर्रर है यह, इनका भी मुकरर होंगा एक परंतु यह भी कोई के शरीर में जाकर के सर्विस कर सकती है। कोई के भी बड़े बड़े बड़े बड़े के तन में जाकर करके और प्रभावित कर सकते हैं हम मुरली बजाए सकती हैं। तो यह आस्ते आस्ते करके पार्ट तो इनका चलना ही है परंतु बोलते हैं जैसे मेरा पार्ट है ना सूक्ष्म वतन में भी रहना है और जा कर के मेरे साथ और अपने मूल वतन में भी जा सकती है फिर आ सकती हैं जैसे फिर बाबा से पूंछा जाता है ना सब कुछ मुकर्रर देखो आत्मा कोई कभी भटकती है, ठीक है ना जिसको फिर घोस्ट भी कहते हैं। कोई दुख देने वाला होते हैं, कोई सुख देने वाला होते हैं, कोई कैसा होते हैं। तो बरोबर ऐसा है ना तो तुम्हारी आत्मा तो भटकने वाली तो है नहीं। भटकने वाली है अगर ज्ञान नहीं है तो। अगर ऐसी प्योरिटी में ना आई है। अभी यह तो प्योरिटी में आ गई है। तो यह इसको भटकना नहीं कहेंगे यह फिर सर्विस के लिए, आत्माएं तो प्रवेश करती है ना बच्चे, तो यह प्रवेश कर कर कर के वही कार्य करती रहेंगी हूबहू जैसे मैं और मेरे नेक्स्ट में है ये, तो ऊंचा मर्तबा दे दिया न। इनसे भी पहले इनको ऊंचा मर्तबा दिया। है भी इनसे पहले उनका ऊंचा मर्तबा। पहले जगदंबा पीछे फिर उनका ऊंचा मर्तबा है और बच्चे देखते भी हैं कि जगदंबा का मर्तबा। यहां भी बहुत बड़ा है बहुत इन के मेले लगते हैं। तुमने कभी भी नहीं सुना होगा कि ब्रह्मा का कोई मेला लगता है, लगते हैं? यह क्योंकि बाबा बताते हैं की इन का मर्तबा ऊंचा है, इनकी सर्विस ऊंची है। माताओं की महिमा यह बहुत बड़ी होती है। जैसे आजकल माताओं को पहले देते हैं ना मर्तबे, देखो कोई वक्त में प्रेसिडेंट भी बना देंगे, प्राइम मिनिस्टर भी बनाएं देंगे। तो इसी समय माताओं का मर्तबा जैसे बापा आ करके रखते हैं ऐसे देखो जिस्मानी में भी ऐसे हो गया जहां जहां देखो। आगे कमी नहीं छोड़ेंगे अभी इतनी राजाइयां या बादशाहियां हो गई हैं कभी भी कोई प्राइम मिनिस्टर फीमेल नहीं बनी है। हाँ राजा रानी बनी है, वजीर, वजीर कभी माता नहीं बनती। वजीर फिर भी पुरुष बनते हैं। यहां तो देखो आजकल सब जगह मैं यह माताओं को उठाते रहते हैं, प्राइम मिनिस्टर, प्रेसिडेंट फलाना और वह लड़ाई के ऊपर में भी रख देते हैं उन लोग को क्योंकि इस समय में जब आप आ कर के मर्तबा उठाते हैं तो उन लोग का भी मर्तबा ऊंचा होता जाता है। तो जैसे की माताओं की जो इतना दर्शना कर के रखते आए हुए हैं बस घर में कामकाज को करो, यह धंधा करो और वह अपना मालिक बनते हैं और बच्चों को मालिक बनाते हैं। दिन प्रतिदिन मात-पिता की इज्जत कमती होती गई है। माताओं को गुरु करना पड़ता है, देखो करते हो ना माताएं गुरु, बहुत माताएं कितनी माताओं की गुरुओं द्वारा दुर्गति होती है, बहुत दुर्गति होती है ना सिर्फ बाप से बुद्धि योग तोड़कर कर कर के अपने में जोड़ते हैं परंतु बहुत उनसे सेवा लेते हैं। छोड़ कर के घर बार फिर सेवा लेते हैं उनसे। बहुत सेवा भी लेते हैं स्थूल और गंदी सेवा भी लेते हैं तो माताओं का तो मर्तबा ऊंचा करना है ना। और इन्हीं माताओं से उनका उद्धार होना है। यह भी तुम जानते हो कि बरोबर भीष्म पितामह द्रोणाचार्य वगैरह-वगैरह इनको भी तो इनका उद्धार भी माताओं द्वारा ही गाया हुआ है ठीक है ना बच्चे। तो बाबा समझाते रहते हैं कि इन सब बातों में बच्चों को मूंझना घबराना यह कुछ करने का नहीं है क्योंकि बाप बैठे हैं उनसे हम लोग को मत मिलनी है श्रीमत। जो कुछ भी होते हैं वह बाप से ही मत मिलेंगी अभी क्या करना है। तो बाप बोलते हैं वह तो है। वो जैसे कहते हैं ना अभी इस समय में हाजरा हजूर, है नहीं बाबा हाजरा हजूर? वो हाजरा हजूर अभी कहेंगे न, हां हम हाजरा हजूर हैं। हां हम देख सकते हैं, हम सुन सकते हैं, तो तैसे बाबा कहते हैं यह भी हाजरा हजूर हो गई क्योंकि इनको तुम मिल सकते हो बुद्धि से जान सकते हो कि बरोबर आज यह मम्मा आई है यह है मम्मा से प्रश्न पूंछ सकते हैं जो भी अनन्य हो। समझा ना क्योंकि कायदे अनुसार तो प्रश्न उत्तर कर सकते हैं बाअदब। तो देखो बाबा जैसे बाबा को मंगाते हैं पूंछते हैं बाअदब तो बाअदब पूछेंगे न अच्छी तरह से। फिर भी तो सुप्रीम है न ऊंचे ते ऊंचा, तो मम्मा भी अब हो गई ऊंचे ते ऊंची। जो होता है वह कहां भी कहाँ भी कोई भी बड़ी सभा हो तो उसमें प्रवेश कर वह अच्छी तरह से समझा सकती है क्योंकि अभी कोई भी मुकर्रर किया जाएगा। भाई है उसे ही करना होता है ना तो भाई सरस्वती का नाम डालते हैं अभी सरस्वती तो है नहीं, तो कोई को मुकर्रर करना होगा। कि सर जगदंबा, जगदंबा सरस्वती वह तो अभी है नहीं न तो फॉर भी कर सकते हैं, नहीं तो फालतू तो कोई भी करते नहीं हैं न जब चले गए तो फॉर्मेलिटी नहीं है तो बाप कहते हैं तुम यहां पर भी कर सकते हो क्योंकि वह तो यहां हाजिर है न अभी हाजरा हजूर है सर्विस कर रही है। बाप भी हाजिरा हजूर है सर्विस कर रहे हैं, नहीं तो जो कहते थे हाजरा हजूर है, हम क्या कहते हैं कोर्ट में जाकर के हाजिर नाजिर, अभी नाजिर तो कोई होता ही नहीं है कोई चीज है नहीं। अभी तो बाप अभी हाजिर है नाजिर है तैसे फिर मम्मा भी हाजिर है नाजिर है अभी इस समय में, वह तो थे गपोड़े तो अभी की जो हाज़िर नाजिर पड़ा है ना वह देखो फिर गाया जाता है भक्ति मार्ग में भाई ईश्वर हाजिर नाजिर है, है तो नहीं ना, तो जरूर प्रैक्टिकल में थे हाजिर नाजिर। तो देखो मम्मा भी फिर हाजिर नाजिर रही ना, ऐसे कोई थोड़ी कहेंगे चली गई, नहीं वह तो सर्विस कर रही है ना तो सर्विस भी तो आत्माएं करती है ना। हां यह शरीर छोड़कर करके फिर वह तो ऊंचा पद हो गया उनका जैसे कि। तो वह भी हाजिर है नाजीर, देखो यह सब पूंछा जाता है ना बाप से, बाप भी आकर के समझाते रहते हैं। अभी वह हाजिर भी हैं, नाजिर भी हैं और उनको सर्विस अपनी करनी है उनको जैसे मैं करता हूं तेसे वह करती रहती हैं। जैसे मैं प्रवेश कर करता हूं बहुत-बहुत बच्चों में, बिल्कुल ही थर्ड ग्रेड बच्ची होती है ना कोई, उनको उसके सामने आ गया है ऐसा कोई समझने वाला जिससे कोई काम कराना होता है ना, तो बाप प्रवेश करके। तो बाबा बोलता है अभी यह भी प्रवेश करके हूबहू मेरा कार्य जैसे करती हैं, इसमें तुम बच्चों को तो और ही खुशी होना चाहिए। वह ज्यादा सर्विस पर गई है। तुम्हारा है ही सर्विस का अभी, कल्याण करना, अंधों की लाठी बनना । तुम्हारा अभी धंधा ही हो गया पतित पावनी माता हो गई। वो फिर गंगा जमुना यह भी नाम तुम्हारा है न अभी, देखो पतित पावनी अभी गुलजार, पतित पावनी ये गंगा, पतित पावनी ये शांता, अभी यह गंगा। यह पतित पावनी यह शांता यह पतित पावनी है ना तो यहाँ ह्यूमन की ही बात है ना, वह पानी की तो कोई बात नहीं है ना। अभी यह तो बात है तुम बच्चे जानते हो, दुनिया तो और कुछ भी नहीं जानती। वह तो अनेक प्रकार के संशय वगैरह करते ही रहेंगे, क्योंकि नई बातें हैं सभी। अभी तुम नई बात सुनी ना ऐसे कुछ सुनाया था बाबा ने? कभी कुछ ख्याल में था ऐसी बातें? समझ में आती है बच्चों को बरोबर, की बरोबर बाबा ने मम्माँ का ऊँच पद हो गया है और उनको सर्विस करनी है बहुत। तो वह भी जैसे मैं सर्विस करता हूं ऐसे ही मम्मा के बाद कोई और भी जाएगा, कोई अच्छा अनन्य जा सकते हैं। तो जाएंगे तो तुम सर्विस के लिए ना, कहां भी जाएंगे तो तुमको सर्विस करनी है। इस समय में सर्विस करनी है जब यह पूरा होगा तब ये कहा जाता है जहां जीत तहां फिर ये जाएंगी। समझा न। तो अभी तो नहीं जाएंगे ना, अभी तो कोई बात नहीं है जीत की अभी तो लड़ाईयां चल रही है। तो बाबा कहते हैं कि यह एक का मिसाल नहीं है यह तो होता रहेगा तुमको तो फिर भी सर्विस ही करनी है। तो यह जो संशय वंशय की बात है बच्चों को या वह मां को याद करते हैं परंतु फिर उस समय में कहते हैं वह ज्ञान से याद करो मां हमारी अब शरीर छोड़ और बाबा द्वारा बहुत कुछ सर्विस कर रही है। अभी तो है ही आत्माओं की बात ना। अभी तो तुम आत्म अभिमानी बने तो आत्मा ही अभी सर्विस करती है, देह अभिमान तो तुम्हारा टूटा । वह तो कहेंगे कि भाई यह पंडित संस्था ले करके दूसरा शरीर धारण कर फिर देखो वह कथा सुनाएंगे बैठ कर के, फिर वो देखो अजब खाएंगे, वंडर खाएंगे। अभी ये तो सभी है गुप्त बातें, यह तो जिस्मानी बातें तो है नहीं। यह तुम्हारी सारी है देखो कोई जानते है तुम क्या करते हो। तुम ही जानते हो कि हमारे से बाप कैसे सर्विस कराए रहे हैं। कैसे हमको ज्ञान दे रहे हैं। तो यहाँ भी तो वो गाया जाता है न ईश्वर की मत गत न्यारी। तो देखो है न बरोबर। बाप भी बैठ कर के ये सब कुछ समझाते रहते हैं। अभी मनुष्य तो इन बातों को नहीं जानते हैं। हमारे बच्चे भी कई हैं जो बिचारे प्रश्न पूंछते रहते है उलटे सुलटे। क्या हुआ, फलाना हुआ, या हू मचाते रहते हैं, है न। खुद भी अपने लिए आफत मचाते है तो ओरों के लिए भी मचाते रहते है ये क्या है वह क्या है, फिर आपस में म्याऊं म्याऊं म्याऊं म्याऊं करते रहते हैं। कभी बाबा को भी लिखते रहते हैं, बाबा यह क्या हुआ मम्मा क्यों गई, आप तो कहते थे मम्मा तो अंत तक रहेंगे, बाबा कहां रहते हैं अंत तक रहेंगे यहां तो फिर शरीर की तो बात ही नहीं है, यहाँ आत्मा तो रहती है अंत तक। आत्मा का ज्ञान जिसको देह अभिमान होता है ना वह फिर बातें करते हैं जो आत्म आभिमानी है उनको तो फिर नहीं न, जब नई बात होती है तो बाप कहते हैं मैं आ करके तुमको समझाता हूं, मूंझते क्यों हो, तुम को मूंझने की तो दरकार ही नहीं जबकि समझाने वाला नॉलेज फुल, यह सब नॉलेज देते हैं ना, अभी देखो यह नॉलेज दे रहे हैं है ना, समझा रहे हैं ना, देखो क्या करते हैं वह आएंगी, तुम बुलाए सकते हो उनको, भले भोग लगाते हो तुम उनको बुलाए सकते हो। हां इतना जरूर है की वह इतना कोई वो तुम्हारे मुआफिक बैठकर के खाएंगी करेंगी नहीं। वह नहीं करेंगे, शगुन करेंगी, बड़े आदमी होते हैं ना बहुत तो उनकी थाली रखी होंगी ना, ऐसे होते हैं ना बच्चे तो यह भी तो है तो सही ना बड़े ते बड़े के लिए बाबा को भी आते हैं तो देखो कभी बुलाते हैं उनको खाता भी नहीं है। वह लेता नहीं है बच्चे हां यह ले सकती हैं। क्योंकि मैं तो कभी भी,.. मैं तो हूं ही अभोक्ता, मम्मा तुम्हारी अभोक्ता तो नहीं है ना। तो वह तो खा सकती है ना, मैं नहीं खा सकता हूं तुम मम्मा को कुछ भी,.. हाँ परंतु खाएंगी थोड़ी जैसे राजनीति से जो खाते हैं न । थोड़ी सी खाएंगे। तुम मां से बात भी कर सकते हो परंतु रॉयल्टी से ज्ञानवान कोई उलटे सुलटे प्रश्न नहीं पूँछ सकते, नहीं बच्चे जैसे कोई सभा में नए आते है ना, जो आता है सो प्रश्न पूंछ लेते हैं क्योंकि उनको ज्ञान का तो कुछ भी पता है नहीं। तो बाप समझाते रहते हैं बच्चों को कि तुम... तुम्हारी मम्मा कहीं गई थोड़ी है, नहीं, तुम तो अमर बनते हो न बच्चे। तुम जानते हो कि हम अमर बनते हैं, हम फिर दूसरे शरीर धारण कर अभी .... करने वाले हैं तो तुम अमर बन गए ना, तुम अभी तो अमर बन गई ना। तुम बच्चों को तो और भी खुशी होनी चाहिए, बाप कहते हैं बच्चे, हम बच्चों से बहुत कार्य कराने वाला हूं, मैं आया ही हूं बच्चों से सृष्टि का कल्याण कराने। बच्चे मुझे बहुत प्यारे हैं, उनकी मैं महिमा बहुत जोर से लगाउंगा कराऊंगा जिस समय में बैठ कर के कोई बैठ कर के कोई में प्रवेश करके समझेंगी तो वो तुम समझ जाएंगे झट की यह माँ की तो आवाज तो फिर जाते हैं बच्चे शरीर तो दूसरा हो गया न, उनका ऑर्गन तो अभी नहीं है न, तो जरूर जैसे बाबा यहां प्रवेश करते हैं तो उनका तो जरूर तो आवाज तो जिसमे प्रवेश करेगा उनका आवाज निकलेगा ना क्योंकि वो ऑर्गन तो उनका चला गया न जो बजते थे तो जरूर दूसरे से बजाएंगे। फिर जैसे पितृ खिलाते थे तो वो जो आते थे तो फिर उनका आवाज तो वो तो नहीं रहेंगा न ओर्गंस तो छूट गई। यह भी ड्रामा में पार्ट है ना कि आते हैं वहां से आकर के बोलते हैं बरोबर। अभी तो कम बोलते हैं अभी तो विघ्न भी पड़ते हैं अभी तो माया का भी प्रवेश हो जाता है उनमें नहीं तो आगे तो बहुत अच्छी तरह से आकर के समझदार सुनाते थे, सब कुछ करते थे। अभी तो दिन प्रतिदिन यह भाई प्रवेश था झूठ मिक्सचर होती जाती है। अभी तुम्हारे मैं तो कोई झूठ की तो है नहीं, यूं तो तुम्हारे पास भी यहाँ बहुत बच्चियां जो ध्यान में जाती हैं उनमें भी माया की प्रवेशता आ जाती है, समझे ना। तो समझा जाता है अभी यहां तो ज्ञान की ही बातें हैं। वह आएगी तो एक्यूरेट ही करेगी जो कुछ भी करेंगी, एक्यूरेट उनकी बाबा खातिरी देते हैं की वो तो एक्यूरेट हो गई, समझा न, अभी यहीं हैं बाबा से पूछो तो कहेंगे निर्वाण धाम में भी आ सकती हैं मेरे साथ, और हो सकता है तुम्हारे से भी आ जाए, सूक्ष्म वतन में जाए निर्वाण धाम में जाए, सूक्ष्म वतन में रहे, पीछे पीछे जाएँगे न जिसका कर्मातीत अवस्था बनी हुई होंगी, वो ही तो निर्वाण धाम में जा सकेंगे न। तो बाबा देखते हैं बोलते हैं निर्वाणधाम में भी जा सकते हैं नहीं तो कोई भी नहीं जा सकते हैं जब तक कर्मातीत अवस्था में ना पहुंचे, इसीलिए तुम मम्मा के लिए...इस ड्रामा में पार्ट ही एसा है मैं समझाता रहता हूँ मेरे से पूछो संकल्प विकल्प में नहीं घुटका नहीं खाओ, मेरे से पूंछते रहो और आगे चल कर के देखते रहो तो आते हैं न बरोबर, मम्मा को मैं,.. अरे जब आगे शुरुआत में किसको बुलाते थे नारायण को बुलाते थे लक्ष्मी को बुलाते थे और शहजादे को बुलाते थे, बुलाते थे ना। वह आते थे भोजन करते थे समझे ना। तो वह तो बाप संपूर्ण को मंगाते थे, देवताओं को मंगाते थे। अभी तो मम्मा देवता तो नहीं बनी, लक्ष्मी तो नहीं बनी है ना समझा ना। है लक्ष्मी, उनका पार्ट चला है बरोबर तुम जानते हो कि बरोबर वो आती थी। अभी उनका पार्ट है सर्विस का, सर्विस के पार्ट के बाद तुम जानते हो कि लक्ष्मी बनेगी जिस को तुम बुलाते थे शुरुआत में। तो बाबा इनको बुलाओ हम निमंत्रण देते हैं। तो देखो जबकी देवताओं को निमंत्रण दे सकते हैं, संकल्प द्वारा सुक्ष्मवतन वासी जिसको कहते हैं, उनको भी तो निमंत्रण दे सकते हैं, वह तो बाबा कहता है कि वह घूमती है, मेरे साथ जाती है। मैं जाता हूं भक्तों के पास जाता हूँ, उनको दीदार कराता हूं इनके द्वारा। आगे चलकर तुम बहुत ही वंडरफुल बातें सुनेंगे। तुम्हारी महिमा तो निकालनी है न। अभी बड़े बड़े देखो एक दिन उसने कहा कि यह देवी से आवाज आते है की मैं ब्रम्हाकुमारी हूं, वह आग निकलती है, फलाना होते हैं तो यह भी तो.. निकलते तो है ना, चरित्र इसको कह देवें, वंडरफुल। तो आगे तो बहुत कुछ होने का है। वेट अभी पेशेंश रखो एंड सी चलते चलो अटेंशन अपनी पढ़ाई में रखो, क्योंकि बहुत ही पढ़ना तुमको है, बहुत ही ढीली ढीली अवस्था है बच्चों की देखो मुझे याद ही नहीं कर सकते हैं जो इंतजार भी करते रहते हैं आधा कल्प इंतजार किया जब आया हुआ जब कहता हूँ की मुझे याद करो भूल जाते है तो उनको यह तो समझना चाहिए। कहते हो कि जब आप आएंगे, मेरे तो एक दूसरा ना कोई। यह तो पार्ट बजेगा ना। कहते आए हैं सब प्रैक्टिकल में बजेंगे, सतयुग में तो नहीं कहते हैं कुर्बान जाऊंगी। वो तो भक्ति मार्ग में कहते हैं ना वारी जाऊंगी, तुम्हारे पर बलिहारी जाउंगी, तेरे सिवाय मेरा और कोई भी नहीं होएंगा। तेरे सिवा मेरा और कोई दुनिया में नहीं रहेगा तो देखो अवस्था चाहिए ना। अभी यह तो जानते हो न कि मम्मा की ऐसी अवस्था थी बरोबर। बच्चे शिव बाबा के सिवाय और कोई भी नहीं था। हां कुछ समय लगना होता है ना तो अभी तो कोई कर्मातीत अवस्था किसकी तो फाइनल नहीं हुई है । परन्तु नहीं उनकी तो फिर भोगना भोग कर के भी क्योंकि सजाएं नहीं खानी है। बाबा ने कह दिया है इतनी मेहनत करनी है, इतनी मेहनत करनी है जो तुम्हारे लिए ट्रिब्यूनल ना बैठे, सदा के लिए। अभी यह तो मम्मा के लिए तो नहीं बैठ सकती है ना इसीलिए देखो मम्मा को बाबा ने, यह ड्रामा में पार्ट नून्धा हुआ है। कल्प कल्प इनको यही होंगा। ये भी तुम बातें सुनेंगी फिर, समझने के लिए। आगे चलकर के तो जो ड्रामा है वो खुलता जाएंगा फिर ऐसे थोड़ी मालूम रहता है कल क्या होगा। बाबा से पूंछते हैं बहुत बोलते हैं कि हम कल की बात हम तुमको कैसे बताएंगे जबकि ड्रामा में जब मेरा पार्ट होंगा जो कुछ होंगा वो मैं बोलूंगा ड्रामा अनुसार अब कल में क्या बोलूंगा ड्रामा में जो बोलना है वह तो बोलूंगा ना। मैं ऐसे कैसे बोल सकता हूं? हां हां मैं समझानी देता रहता हूं परन्तु मेरा भी तो पार्ट कुछ... तुम्हारा भी तो पार्ट है तो सेकंड बाए सेकंड तुम्हारी एक्टिविटी सब फिरते ही रहते हैं। यह जानते हो कि ड्रामा है, बाबा नहीं समझाते हैं देखो ऐसे ऐसे करते हैं अभी बात करते हैं तुम बच्चे से फिर भी कल्प पहले ऐसे ही बात करेंगे। बाबा भी तो कहते है जैसे कल्प पहले समझाया था तुम बच्चों को, शुरू से लेकर के अंत तक वैसे ही तो मेरा पार्ट चलेगा उसमें कोई फर्क थोड़ी पड़ेगा, इसीलिए जो कुछ भी पार्ट चलता है ड्रामा का तुमको तो साक्षी होकर देखना भी है और ऐसे भी कोई बच्चा मुश्किल होता है जो उनकी सारा दिन बुद्धि में रहता है यह पार्ट जूं के मिशल चल रहा है। जो कुछ भी सारे वर्ल्ड में होते हैं और जो कुछ भी सारे वर्ल्ड में चल गया है वो जूं के मिसल ड्रामा चलता ही रहता है। हमारा तो अभी जान गए हैं, बरोबर। ड्रामा पूरा होते हैं हमको फिर यह शरीर छोड़ना है यह सारी बातें तो तुम करते हो ना, दुनिया तो कोई करते नहीं है। दुनिया तो यह भी नहीं जानती है, वह तो सुनकर के वंडर खाती है क्योंकि यह बातें तो कोई शास्त्रों में है नहीं बिलकुल । बाप ने कह दिया है जो तुमको यह समझानी देता हूं वह तो कोई शास्त्रों में तो आ ही नहीं सकती है, आ सकती है? रोज-रोज की इतनी समझानी, कितने बरस हो गए तुम को समझाते हुए अभी कितने बरस लगेंगे, उनके शास्त्र फिर बन सकते हैं क्या? तभी तो गाया जाता है ना कि बरोबर यह तो ज्ञान का सागर है, भले जंगल के कलम लगाए देओ, सागर को स्याही बनाए देओ तो भी इनका यह ज्ञान,.. तो है ना बरोबर यानि यह तो कोई सागर की बात तो नहीं है, परंतु ज्ञान की महिमा कहते हैं इतनी है जो तुम सुनते आए हो, समझते आए हो, समझाते आए हो जो पार्ट बजाते आए हो वह तो प्रैक्टिकल में पार्ट है ना। तो यह तो तुम्हारी बुद्धि में है ना तब जबकि इस समय में प्रैक्टिकल में पार्ट बजा रहे हो। मनुष्य क्या शास्त्र से, गीता और भगवान से क्या? यहाँ भी गीता में क्या लगा पड़ा है, भागवत में क्या लगा पड़ा है, महाभारत में क्या लगा पड़ा है, तो ये फ़ालतू बातें है न। तो भी बाबा बोलता है भाई आटे में जैसे नून। जैसी यह चित्र रह गए हैं लक्ष्मी नारायण के चित्र, सो भी राइट है ऐसे चित्र बरोबर शिव के भी चित्र रह गए हैं। अभी देखो फिर त्रिमूर्ति ब्रह्मा विष्णु शंकर, बच्चे फिर है परन्तु पता तो किसको भी नहीं है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा इसका अर्थ क्या है भला भाई, इस ब्रह्मा को तीन मुख, सो फिर ब्रह्मा एक आदमी को तीन मुख कैसे हो सकते हैं? यह रावण को भी दिखलाते हैं दस मुख, पांच मुख वो और पांच मुख वो समझाते हैं। ब्रह्मा के तीन मुख् क्या, इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलते हैं बिल्कुल हीं। त्रिमूर्ति बेशक हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर। बाप को भूले हुए हैं ब्रह्मा नाम रखते हैं देखो ब्रह्मा का पार्ट बहुत अच्छा है, बड़ा है क्योंकि बाप ब्रह्मा में आकर के ये सभी राज बच्चे समझाते हैं उनके बदले में तुम उनको ब्रह्मा और शिव बाबा का नाम ही फिर गुम। तो बाप बैठकर समझाते हैं तुम समझते हो कि बरोबर बाबा हमको बिल्कुल ही राइट बातें समझा रहे हैं ट्रुथ समझा रहे हैं। बाकी जो कुछ भी चित्रों में फलाने में वो सब ही अंत है। जब अंत हो तब तो ट्रुथ आए न सच समझाने के लिए। जब झूंट हो तब तो सच समझाने के लिए आए न। तब तो इतना गायन तो इतना है ना की बरोबर परमपिता परमात्मा आय कर करके यह सहज राजयोग सिखलाते हैं। उनका नाम और शास्त्र रख दिया हुआ है। भाई शास्त्र में जो कुछ उन्होंने लिखा था बैठ कर करके.. अभी ज्ञात का अर्थ कहें ना ज्ञात कहते है ज्ञान सुनाने वाला, ज्ञान सुनाने वाले तो ज्ञात तो भगवान् भी भी कह सकेंगे ना। जैसे बाबा कहते हैं शंकराचार्य जरूर यह शिवाचार्य शब्द का अर्थ है ना सुख देने वाला है तो तुम सुखदेव, सुख देने वाले बच्चे हो गए जैसे की, राज तुमको सुनाते हैं, तुम को सुखी देवता बनाते हैं नाम पड़ गया सुखदेव। सुखी देवता बनते हो ना बरोबर। हम सुनते हैं तुमको ज्ञान कथा सुनाते हैं सुखदेव ये तो बहुत है बच्चे इनके जो सुखी होते रहते हैं सुनकर करके यह। सुख के लिए सुनते हो ना। व्यास मन जो वाणी सुनाते हैं उनको व्यास भी कहते हैं न तो मनुष्य में तो लिख दिया कुछ भी कुछ। बाबा कहते हैं यह जो कुछ भी चला मैं तुमको आकर के बच्चों को यथार्थ अर्थ समझाता हूं और बताता भी रहता हूं यह फलाना शास्त्र में क्या लिखा है, फलाने चित्र में क्या है फलांने में क्या है, फिर जज करो ये देखो रोंग है ना। क्या त्रिमूर्ति ब्रह्मा गाय सकते हैं? रॉन्ग हो गया ना, तो मैं बताता हूं ना। तो भाई ऊपर का बाप कहाँ गया ? अभो यहाँ कृष्ण का भी नाम नहीं है कोई। ऐसे तो नहीं तो चाँद की जैसे वजीर के नीचे वाईस होते हैं तो प्रेसिडेंट के नीचे वाईस तो भाई सेकंड को मिलना चाहिए न हक़ फिर। तो यहां भी तो अच्छा ब्रह्मा विष्णु शंकर शिव के पीछे तो उनको हक़ मिलना चाहिए न भगवानुवाच, कृष्ण को कैसे हक़ मिल गया? यह क्या हुआ? यह तो रोंग है। तो सभी बात बाप बैठकर के समझाते हैं की यह तो बड़े समझने की बातें हैं। अभी यह भी तुम बच्चे जानते हो की सभी बच्चों की इतनी विशाल बुद्धि नहीं है, जितना धारण कर, धारणा करके कोई को अच्छी तरह से युक्तियुक्त समझा सके। सो भी तो होना जरूरी है बाप समझाते हैं सब एक जैसे थोड़ी पढ़ सकेंगे यहाँ तो बड़ा मतभेद में फर्क रहता हैं, बहुत यहां बैठे हैं जो प्रजा में आने वाले भी हैं। यहाँ है थोड़े जो बरोबर अच्छी तरह से धारण करते हैं बिल्कुल भी जरा भी संशय जिसको नहीं होते हैं। बिल्कुल ही अच्छी तरह से धारण करते हैं धारणा कराते रहते हैं। उनको भी तो देखते हो बरोबर नंबरवार है एकदम कोई कोई बच्चों से, अच्छे अच्छे बच्चों से डिससर्विस हो जाती है कोई मैं काम का , कोई इर्ष्या का अभिमान आ जाते हैं। इर्ष्या कोई कम थोड़ी रहती है इर्ष्या देखो कितना नुक्सान कर देती है। तो अभी मम्मा में तो कुछ भी ऐसी बातें नहीं थी ना बच्चे। वह तो तुम जानते बरोबर की मम्मा सबसे तीखी थी। यूं तो आई भी पीछे हैं पहले तो और बच्चे थे वह पीछे आई है तुम जानती भी हो की मम्मा बहुतों के पीछे आई है और पीछे चली गई है तो वो भी मिसाल देते हैं कि बहुत आएंगे पीछे। जो बहुतों से पीछे चले जाएंगे। बहुत फिर पीछे जा रहे हैं तो यह तो बड़ी बड़ी बड़ी बड़ी ते बड़ी यूनिवर्सिटी है क्या समझते हो तुम? इसमें तो यूनिवर्स यानी ये यूनिवर्स है न। यूनिवर्सिटी यानी यूनिवर्स के लिए तो गॉड ही है जो पढ़ाते हैं देखो अभी यह गॉडफादरली यूनिवर्सिटी है। यानी गॉडफादर सब को पढ़ाते हैं। यहां बैठकर के पढ़ाते हैं। क्या कहते हैं कि हे बच्चों देह सहित तुम जो समझते हो की मैं अफ्रीकन हूँ, एसियन हूँ, इंग्लैंड हूँ, फलाना हूं, फलाना हूँ, तीरा हूं ये सब अभिमान अभी छोड़ दो। तो देखो कहते हैं ना आवाज आएंगे ना। बहुतों से अभी ये आवाज आएंगा। यह सब देह के धर्म मैं गुजराती हूँ, मैं फलाना हूँ। और इस्लामी हूँ, बुद्ध हूं, यह सब छोड़ दो, देह अभिमान छोड़ दो अरे पहले तो तुम आत्मा हो न, अभी देह का अभिमान सब छोड़ दयो। मामेकम को याद करो, तो तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाए। तो देखो सबके लिए कहते हैं ना और आता भी सबके लिए है ना। बरोबर बाप कहते हैं सबको यानी भगवानुवाच्य देह के सभी जो तुम्हारे धर्म है ना, तुम तो आत्मा हो ना, देह अभिमानी बन गए हो, सब देह अभिमानी बन गए हो। भले आत्मा अभिमानी भी नहीं हो बिल्कुल ही, देह अभिमानी बन गए हो आत्मा का राज ही नहीं जानते हो बिल्कुल भी। वह तो जानते हैं ना कि आत्मा हम बरोबर स्टार है देवता जानते हैं हम स्टार है यह शरीर है हमारा। तो फिर कहते भी हैं चमकता है अजब सितारा भृकुटी के बीच में, तो सितारा हुआ ना, लिंग तो नहीं हुआ ना ये अंगूठे मिसल। इतना बड़ा भी तो नहीं हुआ न। तो देखो यह सब समझाते रहते हैं ना की बरोबर सब में ही स्टार समान आत्मा है उसमें फिर कोई जानते नहीं की आत्मा क्या है पार्ट कैसा है, कोई भी बुद्धू हम भी नहीं समझते हैं। जबकि नंबर वन जो पहले था जो ज्ञान में नंबर वन जाते हैं वो ही कुछ भी नहीं समझ सकते थे। आत्मा कहते हैं वही है चमत्कार है भृकुटी के बीच में तो देखो वही स्टार है ना फिर आदि सनातन यह क्या है। देखो एक एक बात हां बिल्कुल ही नहीं... अनमोल इसको कहा जाता है जिसका कोई मोल, कथन ना कर सके ऐसी ऐसी बातें समझाते हैं, वह भी क्यों कहते हैं कि देखो एक एक यह जो बाबा पढ़ाई पढ़ाते हैं करोर पति पदमपति पता ही नहीं क्या है। कोई टीचर आई सी एस फलाना कोई पढावे, क्या ऐसे बन सकते है कोई मनुष्य। मनुष्य से एकदम फट देवता... तो ये तो समझने की सभी बातें तो समझने के लिए भी तो चलना चाहिए ना। अधीर तो नहीं होना चाहिए क्या हुआ हाय हाय ये क्या, ड्रामा का पार्ट ये बदल गया, इतना हमको गपोड़ा सुनाते रहते हैं क्या करते है ऐसे बहुत ही अच्छे हैं जिनकी बुद्धि में यह जा करके पड़ते हैं। कई कई बच्चे चिट्ठी में भी लिख देते हैं बाबा यह क्या हुआ, हम कैसे विश्वास करें कि यह ड्रामा ही बदल गया, यह हो गया, यह हो गया, हाय-हाय मचा देते हैं। तो बाबा उनको क्या करेंगे मच गई ना ये हाय, आ गये शॉक में एकदम जैसे। उनको भी धीर देना पड़ते हैं बच्चे थोड़ा धीरज धरो, बाप सब कुछ समझाये देंगे। अधीर मत बनो। अधीर बनने की कोई दरकार नहीं है। बाप जब है बाप के हो तो बाप के तो पार हो जाना है। बाप तो बिलकुल ही रास्ता ठीक बताते रहेंगे। तुम विश्वास करते रहते हैं ना, अगर विश्वास जाते हैं उनको बड़ा घोटाला पड़ जाता है दंड पड़ जाते है, निश्चय करने के बाद भाई संशय क्यों करते हो बाद में। बाप तो बैठा है ना तुमको सब कुछ समझाते रहेंगे। तुम्हारी तो दुनिया पार तो लगाने की है ना। जो जो बच्चे हैं जो जो सपूत बच्चे हैं नैया पार लगा के, और नैया भी पार लगाने के लिए भी पुरुसार्थ करना है पूरा अच्छी तरह से। ओरों की भी नैया को पार लगाना है। उनको भी रास्ता बताने हैं। तो यह सभी सर्विस भी तो करनी है ना बच्चों को, इसमें कोई मूंझने की तो दरकार बिल्कुल है नहीं जैसे बाबा अभी हाजरा हजूर है जैसे तुम्हारी मम्मा भी हाजरा हजूर है। बहुत ही तुम लोग देखेंगे आगे चलकर के यह बड़ी-बड़ी बातें सुनेंगे तुम आगे चल कर के, बड़े बड़े खेल पाल होंगे बड़े बड़े चमत्कार होंगे समझे ना। तुम्हारी बहुत ही खुशबू निकालनी है। गई जो गई हो मनुष्य से देवता बनते हैं तो सर्विस करके जाती हो न। तो जरूर जो पीछे गायन होता है तो सर्विस ही तो तुम्हारा काम है ना। ड्रामा में नूंध है तुम्हारी सर्विस। अभी तो टाइम भी तो पड़ा है ना, कोई ऐसे थोड़ी तो नहीं है की अभी कोई विनाश होते हैं। हां यह तो बाप ने बताया है कि देखते रहो क्या क्या होता रहता है क्या क्या मम्मा का भी तुम देख लेना आगे चलकर क्या के पार्ट बजता रहता है। अभी देवियाँ जो है न उनमें से भी बैठे बैठे क्या होता रहता है समझे न, वंडरफुल होंगे बात हाँ, यह जो है प्रतिमा है ना वह चैतन्य हो करके बात करने गुम हो जाएंगी, या उनमें से आवाज निकलते रहेंगी। आगे चल कर के देखना चाहिए ना सबकुछ क्योंकि ये वंडरफुल है बहुत। जबकि बाप आते हैं चेंज करने ये नरक को चेंज करने बड़ी बात है बच्चे। अरे वाह राजधानी बनती है, उनमें वो राजाएं, जो साहूकार प्रजा होती है न, उनको भी नोकार होते है वो कहां से आएंगी, तो उनकी चलन ऐसी ही होंगी, जो तुम बच्चे ...और बाबा ने समझा दिया है की तुम आगे चलकर के तुमको फट से मालूम पड़ेंगा की ये ये फलाने, वो आत्माएँ तुमको मालूम पड़ सकता है ये दासी बनने वाली है और बाबा तो प्रत्यक्ष नहीं बताते, वो फां हो जाएंगी बिलकुल अभी से ही एकदम। ऐसी बातें में यहाँ बताऊंगा तो। बस याद है तुम बच्चों को। अच्छा बाबा अब भी कहते हैं की पीछे तो अपसेट हो जाएंगी फां हो जाएंगी एकदम, बात ही नहीं रहेंगी क्योंकि यह तो फाइनल है चढ़ ही नहीं सकेंगी, तो तुम जानेगे की एकदम ये लक्ष्मी बनने वाली है, ये फलाना बनने वाली है, ये फलाना बनने वाली है बोलती रहेंगी। क्या करेंगी वो क्योंकि वो ही जो सदा से ही पढ़े हैं वो होंगा कया करेंगी टाइम तो हैं नहीं कुछ भी अभी फिर गैलप करने का समझा न । शुरुआत में बोलने से फां हो जाएंगी एकदम बिल्कुल ही, बीमार हो जाएंगी की मेरा यह पार्ट है, चिड़ी बन जाएंगे एकदम ही । पीछे तो बाबा ने समझाया की तुमको झठ मालूम पड़ जाएगा ये सब जितना आगे जाएंगे उतना बहुत मालूम होता जाएंगा अभी भी तो मालूम होता है ना बच्चों को कौन- कौन नए भी आते हैं कितना अच्छा चलते हैं पुरानियां तो ऐसे ही पड़ी रहती है एकदम। तो यह सभी बातें बच्चों को अच्छी तरह से बाप समझाते रहते हैं थोड़ा धीरज रखते रहो और बाप को याद करके सर्विस में भी लगते जाओ कोई कहते हैं बाबा मैं.. अरे पर सर्विस ये कोई ऐसे थोड़ी है की झट जाकर के,.. इनमें तो एक एक को समझाने के लिए मेहनत चाहिए क्योंकि जो कुछ भी समझे हुए हैं सभी रोंग है। तुम कह देते हो जो भी वेद ग्रंथ शास्त्र यह सभी जो कुछ भी है न, गीता, गीता मात पिता को रोंग देखो उनके बाल बच्चे क्रिएशन सब रोंग। ये सभी ये गीता के पत्ते हैं समझा न, ये भी गाया हुआ है ये वेद शास्त्र वगेरह ये भी क्रिएशन है। पत्ते क्रिएशन हैं न तो ये पत्ते तो ये अभी सिद्ध होते हैं की बरोबर ये सभी पढ़ते हुए आते हैं परन्तु जबकि कोई यहाँ वाला हो ब्राह्मण हो वो मानेगा दुसरा तो नहीं मानेगा बिलकुल ही। उनको तो देखो कितना अहंकार है। वेदों उपनिषदों को और इनको ये देवताओं के मूर्तियों को वो बड़े चक्कर लगातें हैं।, परिक्रमाएं देते हैं। वो मनुष्य बैठ करके वो गाड़ियां उठाते हैं। देवताओं को बिठाए करके देखो तो जड़ भगत की कथा सुनी है जड़ भगत की, जड़ भक्त हुए न यानी जो परिकर्मा देते हैं, तो परिक्रमा देते हैं वह गाड़ी पर रख कर कर के। जो मनुष्य है उसको बैठ कर कर के तो जड़ भगत हुए ना बरोबर देवताओं को देखो वह है तो वह भी मनुष्य परंतु वो राज्य करके गए हैं और परंतु वह जो है पतित तो देखो कितनी उनकी करते हैं सेवा, तो जड़ भक्तों की कथा तो है ना। तो बरोबर है तो प्रैक्टिकल में जड़ भकत, तो यह जड़ है ना जैसे कि इनमें कोई अर्थ तो नहीं है बिल्कुल भी, जनावर के मिसल है उसको क्या कहेंगे? तो देखो है फर्क मनुष्य देवताओं को वह बिठाकर के गाड़ियों में परिक्रमा देते हैं देखो। अभी तुम जान गए यह क्या है, बाप क्या भक्तिमार्ग क्या यह। कोई समझते नहीं देखो किसकी परिक्रमा किसको बिठाए रखके ले जाते हैं पता भी नहीं उन लोग को। बस भाई यह सुनाते हैं, यह फलाना है, यह गणेश है भाई लगाओ गणेश को सर पर बैठाओ, पालकी पर बिठाओ और चलो। अरे है कौन? तुम्हारा लगता ही क्या है गणेश, हनुमान, यह क्या तुम लगाए माथे पर उठाएं है, हैं कौन, तुम कौन, ये कौन है, तो है न जड़ भक्त। सब जड़ भक्त ही हैं यह सभी भगत। हम जड़ भक्ति कुछ भी अक्ल नहीं कुछ भी। तो बाप बैठकर के समझाते हैं कि यह जो बैठकर के बनाए हैं तो बाप बैठ कर के सब बात धीरे धीरे। अभी तो यह एक ही दिन में थोड़ी ज्ञान सुनाया जाता है। तो हां यह है जरूर की पथ पूरा मिलते हैं बाकि तो पुरुषार्थ करके चलना है पूरा क्योंकि माया का भी तुमको धोखा फिर मिलता ही रहता है। कितने बच्चे आ करके पूंछते हैं माया हमको यह होता है यह होता है अरे यह तो होगा ना। तूफान फिर इसको क्यों कहा जाता है बाप कहते हैं मनसा तुमको बहुत आएंगे तूफान बिल्कुल खराब आएंगे एकदम। परीक्षा तो आएंगे ना बच्चे। अरे तुम क्या समझते हो क्या बनते हो तुमको वंडर नहीं लगता है। हम कुछ भी नहीं हैं अभी बिल्कुल ही क्या है? समझे ना तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिल सकते हैं, तुमको बैठ कर के हम विश्व का मालिक बनते हैं, देखो खेल तो देखो कैसा है, कौड़ी से यह भारत.... क्या है यह भारत देखो क्या है सब लड़ते झगड़ते हैं देश देश के साथ लड़ते हैं, महाराष्ट्र में वो राजस्थान से लड़ते हैं महाराष्ट्र फिर फलाने से लड़ते हैं ये हमारी जमीन है यह हमारी जमीन है इनके ऊपर झगडा इनके ऊपर फसाद इनके ऊपर कोर्ट में केस समझा न, क्या है यह सभी भारत की दुर्गति कैसे हैं और भारत क्या था तो देखो ऐसे भारत को तुम बैठ करके क्या बनाते हो तुमको इतना नशा चाहिए। हम अभी भारत को भाई यह तो नशा चाहिए ना हम भारत को अभी फिर से स्वर्ग बना रहे हैं, हेवेन बना रहे हैं। किसके मत पर? श्रीमत पर? अरे भाई तो फिर हेल कैसे बनते हैं? अरे आसुरी मत पर या रावण मत पर। सब बहुत सहज सहज बातें समझने की, इस बुद्धि से धारणा नहीं होती है, अरे बाप को याद भी नहीं करते हैं ऐसे बाप को, लोकिक बाप को स्त्री को भी देखो कितना... अभी कहते हैं देखो सजनी है, पतियों का पति है यह पतियों का पति कहते हैं क्योंकि पति भी जो कहते हैं हम तुम्हारा ईश्वर, गुरु हैं वह तो फिर भी भगवान को याद करते हैं तो हुआ ना पतियों का पति। जब भी जानते हो कि यह पति हमको बड़ा अच्छा श्रृंगार रहे हैं, स्त्री कहो श्रृंगार रहे हैं या पति कहो हमको बहुत ऐसा सिंगार कराते हैं ज्ञान रतन से, वाह हम यह जाकर के बनेंगे तो फिर सिंगार करना चाहिए ना हां इसमें गफलत क्यों होती है परंतु नहीं ड्रामा अनुसार सब तो एक जैसा श्रृंगार नहीं कर सकेंगे, यह बाबा ने समझाया है यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। अरे भाई किंगडम किसकी स्थापन हो रही है? अरे आदि सनातन देवी देवताओं की किंगडम यहां संगम युग पर... इसलिए संगम का कितना है, कुंभ का मेला तो देखो कितना लगता है, हां कितने मनुष्य आते हैं। आते हैं ना बहुत, तो विचार करो इस कुंभ के मेले में कितने मनुष्य आएंगे.. आगे चलकर के क्योंकि वह तो नहीं है ना जो चलता आता है। अभी तो कुंभ का मेला नया लगा है ना। अभी कितना लगेगा जरा विचार करो। इस कुंभ के मेले में कितने आएंगे। कुंभ है अब तो नहीं लग सकेंगे, सामने बैठे सकेंगे ? नहीं बैठ सकेंगे न। तो देखो कुम्भ के मेले में मैदान ही मैदान लगा देते हैं जितना भले कितना भी मनुष्य आवे, यहां कहां आएंगे इस कुंभ के मेले में। बच्चे होकर के तो वो देखो न स्नान करेंगे। समझने की बहुत ही। बच्चे बहुत बहुत कुछ समझना है आगे चलकर के अभी कुछ थोड़ा ही समझे हो, बहुत समझना है इसलिए धैर्यवत अवस्था बहुत चाहिए और फिर बाप को याद भी करना चाहिए। सदैव हर्षित भी अवस्था चाहिए, क्योंकि अभी यह निश्चित है कि जिसको हम आधा कल्प याद किया उनके हम बन गए हैं। क्या करने है उनके बन गए हैं? तो यह उनसे वर्सा लेने। तो खुशी होनी चाहिए ना वह खुशी कहां है। हां होनी है वह गाया हुआ है की अतेंद्रिया सुख पूंछना हो तो गोपी वल्लभ बाप के गोप गोपियां.. अभी देखो गोपियां कहते हैं ना, यह फलानी गोपी यह बांधेली है गोपी नाम ही यहां चलता है ना वहां गोपी नाम कहां से आए सकेगा। वह तो राजाई है राजा है रानी है घर है सबका वहां गोप फलाना ये क्या है, कितनी मिक्सचर हो गई है बिलकुल ही। तो ये सब्ज बुद्धि चाहिए समझने की। तो बुद्धि तो सबकी अपनी अपनी है। स्कूल में बहुत ही बच्चे बैठे रहते हैं, अरे कहां भी जाओ सत्संग में जाओ ना तो वह बैठ कर के कथा सुनाएंगे वह वहां बैठ करके वह अपना कथा सुनेंगी, बच्चों को दूध पिलाएंगे, अपने घर को याद करेंगे हां हाँ बस, कहां गई थी? सत्संग में गई थी। क्या करके आई? कथा सुनकर आई। क्या कथा सुनकर आई? राम की सीता चुराई गई उनके पीछे तो वो रोते थे, यही तो है इन सब मे, इसमें क्या रखा है तुम सुनते आये हो जन्म जन्मान्तर सुनते आए हो ये गपोड़े। गपोड़े हुए न। अभी तो यहाँ भगवान बैठे हुए हैं यह तो बिल्कुल ही ऐसे कहेंगे ना बच्चे तो इसलिए लो नहीं कहते हैं क्योंकि यह ज्ञान इंद्र की सभा है इसमें कोई भी पतित पास में नहीं आ सकता है, समझेगा ही कुछ नहीं कहीं जाकर के बरसात करेंगे एकदम समझे ना तो वह भी गाया हुआ है बरोबर भाई असुर को अमृत नहीं पिलाना चाहिए वह इस ज्ञान से समझेगा नहीं बाहर मैं जाकर के और ही बकवास करेंगे एकदम। भस्मासुर तो बरोबर यहाँ भस्मासुर होते हैं ना बरोबर, समझते कुछ भी नहीं है अंदर आ करके बैठते हैं पीछे बाहर में जाकर के हल्ला मचाते हैं। यहां इंद्र की सभा में जाकर के जहा ज्ञान की वर्सा होती है, समझते कुछ भी नहीं है वह बाहर में जा करके घोटाला, बहन भाई यह फलाना है, फलाना है क्या कहते हैं अभी तो कभी सुना ही नहीं कोई शास्त्र में ऐसी बातें नहीं हैं । अरे शास्त्र में ये बातें कहां से आएंगी। तो नई बात है ना,तो बच्चों को कितना खबरदार रहना चाहिए, क्योंकि आए हैं जरूर जिन्होंने तकलीफ दी है भाष्मासुरों ने हंगामा मचाया है। अभी तो होता ही रहता है, तो बहुत ही बच्चों को समझने की बात है धेर्यवृत अवस्था बहुत चाहिए हर्षित अवस्था बहुत चाहिए। हाँ बहुत खुशी है ना हमको क्या मिल गया, देखें तो सही। जिसको कोई भी नहीं जानते इस दुनिया में, बिलकुल ही, अच्छा परमात्मा ये है चीज क्या, ये ज्ञान का सागर क्यों कहते हो, कहते भी हो सत्य है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है। परमपिता परमात्मा है जहां परमधाम में आत्माएं रहने वाली इसलिए उनको परमात्मा कहा जाता है। है तो आत्मा ना। ये उनमें क्या है, कितना है कुछ भी नहीं समझते हैं। अरे भाई भी नहीं समझते हैं एवरीथिंग बिल्कुल ही। हां यह जरूर है की मनुष्य से देवता बनते हैं तो देवता तो है मेन ऑब्जेक्ट सामने। अच्छा चलो अभी टोली खिलाओ बच्चों को। और कुछ आगे धीरे-धीरे और तो कुछ याद जो सुनते हो उनका धारणा देखो मम्मा भी होती थी अक्सर करके बहुत धारणा के ऊपर बहुत समझाती थी। की धारणा करो धारणा चाहिए तो जो सुनते हो उनकी धारणा करो। बाप जो सुनाते हैं उनकी धारणा करो। धारणा के लिए वाणी चलाते रहते हैं । मम्मा धारणा के लिए बहुत अच्छा समझाती थी। ठीक है ना बच्चे, और ये तो बाप आते हैं तो वो तो जैसे चुचियों का मुर्गा खेलाते रहेंगे कभी कहां से जाएंगे कहां से निकलेंगे, कहां से निकल जाएंगे हाँ। वह नहीं होते हैं वो लुधडे वो यहाँ से निकलेंगे वहां से जाके निकलेंगे। है न बच्ची नदियां तो ऐसे ही बहती रहती है, यह तो उछले मारते रहते हैं। नदियां तो ऐसे ही बहती रहती हैं यह तो उछले मारते हैं सभी। चलो बच्चे अनुभव करते रहे बादल समझो अपने को ऐसे बाबा समझेंगे , बांटना भी उनको चाहिए हाँ ये तो झट उठते हैं। सबसे पहले तो इन लोगों की भासना चाहिए ठीक है ना। यह है हमारा रमेश है यहाँ कौन है हाथ उठाओ जो युगल जो ब्रह्मचारी बने हैं..... है और पवित्र रहती हैं और जो भी पवित्र है... नई...और जो भी बनी हैं नई और पवित्र रहती हैं, वह तो बहुत निकलेंगी। हाँ अच्छा और भी कोई है... देखो और एक ही ये है... यह दो... अच्छा.. उषा कहां गई है? क्यों नहीं ऊषा मिला? ...यह करेंगे ना बच्चे, शो करने वाले तो यह हुई ना। वह पूंछते हैं, बहुतों से पूंछते हैं की ऐसे कैसे हो सकते हैं, कौन -कौन हैं, क्या सब किए फलाना, बहुतों से पूंछते हैं बैठ के बाबा के पास चिट्टियां बहुत आती हैं। तो वंडर है वह समझते हैं यह हो ही नहीं सकता है कभी। हम ही नहीं रह सके तो यह कौन है। उनको यह तो मालूम नहीं है ना कि इन को पढ़ाने वाला कौन है। ये अखबार में निकालो कि भगवान आकर के पढ़ाते हैं। एक जब सिद्ध करो भगवान तो सब कुछ उड़ जाए भगवानुवाच्य। हमसे ऐसा कहेंगे न और तुमसे कितने समझदार बने बात मत पूछो, कितनी रोशनी आ गई है नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार। कितना नशा चढ़ा हुआ है हम सारे मूल वतन, सूक्ष्म वतन, स्थूल वतन इनमें रहने वालों की और उनकी बायोग्राफी इनकी नॉलेज कितना जान गए हैं।