04-07-1965     मधुबन आबू     रात्रि मुरली     साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग, यह चार जुलाई का रात्रि क्लास है
(किसी ने कहा- बाबा, सेमीनार में गए, उनको पाइंट सुनाई) पहली-पहली क्या पाइंट सुनाई? (सर्वव्यापी) बहुत युक्ति से पूछता हूँ । सिर्फ निधनकों से पूछता हूँ- तुम किसकी संतान हो? अभी तुम बताओ? (किसी ने कहा- शिवबाबा के) शिवबाबा के । अच्छा, रूक्मणी तुम बताओ? (बहन ने बोला- शिवबाबा के ब्रह्मा द्वारा) मैं एक बात पूछता हूँ तुम दो, इसमें है क्या, तुम शिवबाबा का पहले कह नहीं सकती हो, क्योंकि तुम्हारा नाम ही पड़ा हुआ है ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ । एकदम फट से शिव का कह देती हो ना तो तुमको बोलेंगे कि इस तरफ में कहते हो हम ब्रह्माकुमारियाँ हैं, फिर तुम कह देते हो हम शिव के संतान हैं । ये कैसे हो सकता है! (बच्चों ने कहा- यह परमात्मा और आत्माओं की सभा है) स्वदर्शन चक्रधारी । ब्रह्माकुमारी कहते हो तो फिर तुमको शिवबाबा का, ठीक है, घूमते रहते हैं । तो ब्रद्दमकुमारी फिर पूछेंगे ब्रह्मा किसका बच्चा तो फिर कह सकते हो शिव का । तो तुम जैसे शिवबाबा के पौत्र हो गए । वो तो आपे ही बताएँगे कि ब्रह्मा किसका बच्चा है! वो सब समझ जाएँगे कि ये सब पौत्रियों हैं और ब्रह्मा की संतान हैं । अभी बच्चों को ये तो निश्चय है कि हम ब्रह्माकुमारी हैं और शिवबाबा के पौत्र और पौत्रियों हैं । यूँ बच्चे भी हैं, परन्तु जब है ही शिवबाबा की प्रॉपर्टी तो बात एक ही हो जाती है, क्योंकि वर्सा ही है दादे का । ब्रह्मा का कोई वर्सा है नहीं, क्योंकि ब्रह्मा जिसका बच्चा है वही है स्वर्ग का रचता । तो इससे सिद्ध होता है कि बरोबर तुम वारिस हो दादे का । मार्फत लेते हो ब्रह्मा द्वारा । जैसे भी होते हैं बच्चे, दादे की प्रॉपर्टी है तो मार्फत तो बाबा के लेंगे । सिर्फ बाबा-दादा-बाबा कहते हैं । कई दादा उनको कहते हैं, कई बाबा उनको कहते हैं । तो बाबा बोलते हैं ये तो बच्चों को निश्चय है ना कि यहाँ जब आते हो तब तुम बच्चों को और तो मित्र-संबंधी सब भूल जाते हैं ना । यहाँ तुम हो ही ब्रह्माकुमारियाँ और शिवबाबा के आगे तो वो जो बाहर वाला संबंध है वो यहाँ जैसे टूटा हुआ होता है । भले बैठे हो, स्त्री-पुरुष भी कोई हो आपस में, क्या भी संबंध है । यहाँ तो तुम जानते हो कि बरोबर हम ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ हैं और शिवबाबा के पौत्रे-पौत्रियाँ हैं और वर्सा लेने के लिए आए हुए हैं । वो संबंध यहाँ कुछ ध्यान में ही नहीं आता है । जब वहाँ रहते हैं, मित्र-संबंधी देखते हैं, तब कुछ लाड चला जाता है । बाकी यह तो मधुबन है ना । इसलिए मधुबन का देखो कितना नाम है! मधुबन में मुरलिया बाजे कृष्ण की, ऐसे कहते हैं ना । मधुबन तो मशहूर है ना । तो वहाँ जैसे हेडऑफिस है । तो ये है हेडऑफिस । उनमें और तो कोई पता ही नहीं है कि कोई ब्रांचेज थीं या स्कूल थे या फलाने थे । वो हैं नहीं । बस वो मधुबन ही मधुबन है । उनका नाम ही एक मधुबन है । तो मधुबन में मुरलिया बाजे । अभी वहाँ ब्राह्मण की तो बात नहीं है, पर मधुबन इसलिए है कि वहाँ मुरली... । सो भी गीता की कहेंगे... । यहाँ आते हो तो आ करके सन्मुख होते हो तो वहाँ का वो जो संबंध है, यहाँ आने से, सामने बैठने से, जब तलक सामने बैठे हो, टूट जाते हैं । फिर भले तुम अपने कमरे में भी जाते हो तो कोई को माँ-बाप या बहन या फलाना, यहाँ भी बच्चे-बच्चियाँ आते हैं तो कुछ संबंध में चले जाते हो । यहाँ जब सामने बैठे हो तो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का... यह स्कूल है ही ब्रह्माकुमार-कुमारियों का ।...नाम भी पड़ा हुआ है- ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ और राय भी देते हैं कि आकर अपने बेहद का... । अभी प्रजापिता ब्रह्मा भी तो बेहद का हुआ ना । शिवबाबा भी बेहद का है । वहाँ पर लिखा भी हुआ है कि बेहद के बाप से । दोनों बेहद के हो गए ना । ये भी बेहद बच्चों का बाप, वो भी बेहद बच्चों का बाप । मानते सब हैं । प्रजापिता ब्रह्मा को भिन्न- भिन्न नाम से मानते जरूर हैं । जैसे ये प्रजापिता भी बेहद का वैसे वो भी बेहद का । बेहद के फिर बेहद बच्चे । तो सभी बच्चे हो गए । निराकार में भी सभी बच्चे हो गए । तो गोया अभी तुम बेहद बाप के आगे बैठे हुए हो । उसमें दोनों बाप आ जाते हैं- बाप-दादा । बेहद बाप दादा के । यह भूलना तो नहीं चाहिए कि हम बेहद के बापदादा से बेहद का वर्सा लेने आए हैं । यह है बेहद का वर्सा लेने का स्कूल । बेहद का वर्सा माना ही बेहद सुख की बादशाही, बेहद विश्व की बेहद की बादशाही । अभी उन सबको है हद की । भारत में बेहद की बादशाही थी, बेहद दुनिया का मालिक और कोई भी दूसरा न था । अभी तो जहाँ-तहाँ हद पड़ गई है ना... । तो जब ये बच्चे याद करते हैं, यहाँ से वहाँ जाते हैं तो जब मधुबन में याद में बैठते हैं तो फिर उनको सब भूल जाएगा । मधुबन की याद में न होंगे तो फिर वो मित्र-संबंधी वगैरह याद आएँगे । वो जानते हैं कि मधुबन में तो बापदादा रहते हैं जिनसे हम वर्सा लेते हैं और ये भी है कि जहाँ भी जाते हो वहाँ जानते हो कि मधुबन में मात-पिता हैं, जिनसे हमको वर्सा पाना है और जिनकी ब्रांच यहाँ है । ऐसे ब्रांचेज तो बहुतों का है ना, अरविन्द घोष के हैं, फलाने के हैं, सबके गाँव में हैं । ये तो वण्डरफुल हैं । बच्चों को बहुत खुशी होनी है कि हम शिवबाबा द्वारा... । चित्र भी सब अच्छी तरह से दिखलाते हैं । सिर्फ याद करने से... बाबा कहते हैं ना ये तो जरूर याद करेगा ना कि भगवान पढ़ाते हैं । हम स्वर्ग के भगवती और भगवान बन रहे हैं । ये समझेंगे तो जरूर कि जो जैसा है वो ऐसे ही पढ़ाते हैं । बैरिस्टर है तो बैरिस्टर बनाते हैं, सर्जन, सर्जन... । भगवान फिर भगवती और भगवान बनाते हैं । फिर वहाँ सबको तो भगवती-भगवान नहीं कहेंगे ना । वो तो फिर देवी-देवताओ का घराना है । नहीं तो है वास्तव में ईश्वर का स्थापन किया हुआ घराना । घराने में हमेशा पद होते हैं । यूँ तो वास्तव में गुप्त रीति में आत्माओं में भी पद तो हैं ना । अभी तुम जान गए ना जो भी आत्माएँ ऊपर में रहती हैं उन सबको हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है और नंबरवार पार्ट है । वहाँ भी ऊँच पार्ट वाले हैं जो कोई राजा-रानी बनेंगे, सूर्यवंशी में आएँगे । आत्माएँ जिस-जिस पद को भी पाएँगे विजयमाला में वो उसी जगह पर जाकर रहेंगे । ये तुम बच्चे तो जानते हो ना कि बरोबर यहाँ से जब जाएँगे, हर एक अपनी-अपनी जगह पर जाकर रहेंगे, जहाँ से पीछे नंबरवार आएँगे । तुम बच्चों को भी रोज-रोज यही समझाया जाता है कि बच्चे जितना याद करेंगे उतना ऊँच पद पाएंगे । प्राचीन भारत का याद, योग नहीं । इसलिए ये जो योग-योग लगा रहता है ना, तो योग का नाम बहुत बाला है, परन्तु तुम बच्चों को योग का अक्षर नहीं देते हैं, क्योंकि बहुत कॉमन है । बहुत ढेर योगाश्रम हैं । तुमको कहा जाता है बाप को याद करो । योग का अक्षर वास्तव में तुम्हारे से निकल जाता है । भले अब योग की किताब बनाते हैं, क्योंकि योग न लिखें, याद लिखें, तो बाहर से ही पढ़कर बोलेगा ये क्या चीज है । योग अक्षर मशहूर है ना । बरोबर योग भी ये मशहूर है- राजयोग' यानी सजाई के लिए सजाई देने वाले से योग । तो बैरिस्टर से, बैरिस्टरी देने वाले से योग । तो ये तुम बच्चियां जानते हो कि हम आत्माओं का योग है बाप से, क्योंकि उनसे हम फिर विश्व के मालिक बनते हैं । ऐसे नहीं कहा जाएगा कि भगवान और भगवती विश्व के मालिक हैं, क्योंकि भगवान तो विश्व का मालिक ही नहीं है ना । तो यह भगवती कहाँ से आई? तो ये पढ़ाई से जो ऊँच पद पाते हैं तो इसलिए उनको भगवती... परन्तु उनका ऐसे भगवती नाम है ही नहीं । उनका नाम ही है महाराजा-महारानी श्री लक्ष्मी । ऐसे भगवती वा भगवान कहा ही नहीं जाता है । महारानी-महाराजा, क्योंकि दो हो जाते हैं ना । राजा और राजपद भी है । भगवान को तो कोई शरीर ही नहीं है, न कोई सजा हुआ है । सजे हुए हैं देवी और देवता । तुम मीठी-मीठी बच्चियों जितना-जितना जो धारण करते हैं और धारण कराते हैं, वो उतना-उतना खुद भी वर्सा लेते हैं, औरों को भी वर्सा देते हैं । ज्ञान जिसको.. .कहा जाता है । ज्ञान और भक्ति । ज्ञान ये । वो शास्त्र का ज्ञान भक्ति में चला जाता है । ज्ञान अलग, भक्ति अलग । तो भक्ति में ज्ञान हो नहीं सकता है । ज्ञान है ही अलग बात, भक्ति है ही अलग बात ।. .शास्त्र वगैरह को ज्ञान नहीं कहा जाएगा । ऐसे ज्ञान तो सब चीज को कहा जाए । ये बैरिस्टर बनाने का भी ज्ञान है, ये भी बनाने का ज्ञान है, परन्तु नहीं, ये ज्ञान और भक्ति । भक्ति दुर्गति, ज्ञान सद्‌गति । सद्‌गति आधाकल्प दुर्गति आधाकल्प । सुखधाम आधाकल्प दुःखधाम आधाकल्प । फिर ऐसे तो नहीं कहेंगे शांति कोई आधाकल्प । शांति में तो घर है, फिर जहाँ से हम नंबरवार आते हैं यह कपड़ा पहन करके । वहाँ जो भी आत्माएँ हैं सभी को नंबरवार पार्ट मिला हुआ है । जो पिछाड़ी वाले आते हैं उनका भी थोड़ा पार्ट है । इसलिए झाड़ दिखलाया गया है- डार-टाल-टालिया फिर छोटी- छोटी । अभी झाड़ की आयु पूरी होती है । तुमको समझाया गया है कि अभी नाटक पूरा होता है और ये वस्त्र पुराना है । एवरीथिंग ओल्ड है । इसको कहा भी जाएगा ओल्ड वर्ल्ड । इसे कोई भी न्यू वर्ल्ड नहीं कहेंगे । भले वो लोग न्यू दिल्ली और ओल्ड दिल्ली कहते हैं, परन्तु नहीं, क्वेश्चन ही वर्ल्ड का है । बरोबर कलहयुग पुरानी वर्ल्ड और सतयुग नई वर्ल्ड । तो जरूर पुरानी से नई बनेगी ना । नई कौन बनाएगा? ऊँचे ते ऊँचा भगवत शिव.. । फिर बरोबर ये जानते हो. ब्रह्माकुमारियाँ सो तो जरूर पक्का शिव के पौत्र ठहरे । फिर ब्रह्मा का वालिद है शिव । तो मूंझना नहीं है, क्योंकि अगर प्रजापिता न भी कहो तो भी देखो ढेर हैं ना । समझ होनी चाहिए ना इतने ब्रह्मा के बच्चे सो प्रजापिता ठहरा ना । यह सारी प्रजा है ना । इन मेल को भी जिनको 5-7 बच्चे हैं, उनको भी हद का प्रजा रचने वाला कहा जाता है । तो रचते हैं, पालन करते हैं । विनाश तो नहीं करेंगे ना । विनाश बहुतों का होना है । सृष्टि का विनाश । सृष्टि में बहुत मनुष्य हैं उनका इकट्‌ठा विनाश । यूँ तो लड़ाइयों वगैरह में मनुष्यों का विनाश होता रहता है । यहाँ बाप खुद आए हुए हैं सभी आत्माओं को ले जाने के लिए । ये कुछ भी नहीं है । तो मीठी बच्चियाँ, देखो बुडढी हैं, कितनी भी हैं, भले वो मुख से कुछ भी न बोले । बहुत बच्चे बोलते हैं- बाबा, मुख क्यों नहीं खुलते हैं? मेल भी कहते हैं मुख क्यों नहीं खुलते हैं? क्या दो अक्षर कहने का मुख नहीं खुलता है! जबकि भगवान के बच्चे हो तो भगवान नई सृष्टि रचते हैं, तुम तो भगवान के बच्चे सृष्टि के मालिक होने चाहिए ना । तो थे भला होने चाहिए और थे । अब नहीं हैं, फिर होने चाहिए । बाप के तो बच्चे हैं ना । बाप का जन्म भी तो भारत में होता है । तो जब-जब भारत में भगवान का जन्म है तो जरूर बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता ही होगा, ये पक्का है । देखो, शिवजयन्ती का कितना अच्छा अर्थ है- शिवबाबा की पधरामणी । जबकि शिवबाबा भगवान आया हुआ है भारत में, जिसका गायन है, मंदिर वगैरह, तो जरूर आया होगा तो आ करके भारत को राजधानी दी होगी ना । सो दी है ना । अभी फिर गुमाई है । अभी फिर समझाते हैं तो देंगे । है तो बहुत सहज कि भारत को थी जब शिवबाबा आया था । जरूर स्वर्ग रचने ही आया होगा, क्योंकि शिवजयन्ती मनाते तो हैं ना । नाम ही शिवजयन्ती है, फिर उस समय में रुद्र नहीं कहते हैं, शिवजयंती । तो भाई, जरूर आया है । आया है जरूर, ये बादशाही दी होगी । ऊँचे ते ऊँचा भगवत तो ऊँचे ते ऊँचा स्वर्ग का रचता । दी होगी । हाँ, बरोबर दी थी । ये देखो, चित्र रखे हुए हैं । अब ये देवी-देवता नहीं हैं । कलहयुग है और सभी पुकारते हैं- हे पतित-पावन, आओ । तो गोया फिर से आओ, क्योंकि ये भारत पावन था, अभी पतित है । तो जरूर कहेंगे ना फिर से आओ । तभी बाप कहते हैं- मैं फिर फिर यानी कल्प-कल्प मैं आता हूँ जरूर । जब बच्चों को ऐसे निश्चय है तो हमको वापस जाना है भला ये तो समझ सकते हैं ना, ये चोला छोड़ना है, ये दुनिया को भी छोडना है । ये हमारा बेहद सन्यास है । उनका हद का सन्यास है । वो कुछ भी देंगे तो हद का देंगे । ये देंगे तो बेहद का देंगे । सब कोई एक - दो को हद का देते हैं । जनावर भी जरूर एक- दो को देते हैं । ये है एक ही बार बेहद से । तो देखो, कितने बच्चे गफलत भी होते हैं, जो समझते हुए ये बरोबर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ वल्द शिव के पौत्र और ये परमपिता परमात्मा से 21 जन्म का वर्सा पाते हैं । सुनते भी रहते हैं ।... बरोबर हैं भी ढेर के ढेर ब्रह्माकुमारियॉ । तो वो जरूर वर्सा लेते हैं । फिर भी पुरुषार्थ करने के लिए दिल नहीं होती है कि हम भी पुरुषार्थ करके बाप से जैसे ये लेती है, हम भी बच्चा बनकर बाप से वर्सा तो ले लेवे । बहुतों को ये बुद्धि में नहीं बैठता है, जबकि तुम पब्लिक भाषण करती हो । पब्लिक भाषण में भी ऐसे-ऐसे. समझाना चाहिए कि देखो, ब्रह्माकुमार-कुमारी तो बहुत हैं तो वर्सा ले रहे हैं । तुम क्यों... मरते हो! तुम भी वर्सा ले लो । बहुत तकलीफ नहीं देते हैं । गृहस्थ-व्यवहार में रह करके कमल फूल के समान पवित्र रहो और बाप को याद करो, वर्से को याद करो । बस, कोई जास्ती तकलीफ तो है नहीं । कोई भी तकलीफ नहीं है, क्योंकि पीछे पाप तो नहीं करना है ना, पावन बनना है । पतित तो हैं ही फिर उनमें एडीशन थोड़े ही करना चाहिए । एडीशन करेंगे तो सौगुणी एडीशन हो जाती है, जबकि बाप के बने हो, क्योंकि बाप का नाम बदनाम करते हो । तो बड़ा दण्ड पड़ जाता है । अच्छा, टाइम पूरा हुआ । अभी किससे मिलना है क्या?... वो जो कलकत्ते में सागर का और ब्रह्मपुत्रा का लगता है । बड़ी ते बड़ी नदी भी है और सागर भी है । उनका नाम भी गाया है, अंग्रेजी में लिखा हुआ है- डायमण्ड हार्बर यानी हीरे का बंदरगाह, क्योंकि है सच्चा-सच्चा, जिसको कुम्भ का मेला कहा जाता है- ये नदियों और सागर का, उसमें ब्रह्मपुत्रा और वो सागर । यहाँ भी ऐसे है ना- ब्रह्मा और सागर । तो ब्रह्मा सागर का पुत्र हुआ ना । यह मेला सबसे अच्छा । बाकी जो मेला है सो तो नदियों का बहुत लगता ही रहता है आपस में । लगता है ना । इसका है बड़ा मेला, जो यहाँ अभी आई हो । किसके पास आई हो? सब नदियाँ सागर के पास आई हैं । नदियाँ कहो, बड़े-बड़े केनाल कहो.. .भारत में बहुत लगते हैं । लाखों मनुष्य जाकर इकट्‌ठे होते हैं और वो है कथा पटकाने का, गिरने का । ये चढ़ती कला का मेला है ।.. .बस, यह एक ही मेला हुआ ना । पीछे ऐसे कोई भी मेला नहीं लगेगा । न ये सच्चा, न वो झूठा । तो इस मेले में जितना सागर से मिलेंगे इतना फायदा ही है । महीने-महीने मिलो तो भी फायदा, हपते मिलो तो भी फायदा, 6 महीने मिलो तो भी फायदा, है फायदा ही फायदा, क्योंकि वर्सा मिलता है । महीने में दो- तीन कोई न कोई मेले लगते ही हैं । ये जो बाप और बच्चों का मेला है, ये कल्याणकारी है । और सब मेले अकल्याणकारी हैं । तो जो कल्याणकारी मेला हो वहाँ तो जल्दी आना चाहिए, क्योंकि रिफ्रेश होना है, फिर जाकर बरसना है । आना है, फिर जाकर वर्षा बरसानी है । इस ख्याल से आ करके, पाइंट ले करके, बाप से रिफ्रेश हो करके, फिर जाकर बहुतों को रिफ्रेश करना है । बाबा ऐसे को मना नहीं करेंगे और बाबा को मालूम भी पड़ेगा कि ये बादल बड़ा अच्छा है, बरस कर फिर आते हैं पाइंट लेने के लिए, अपना मुखड़ा दिखलाने, फिर जाते हैं वर्षा बरसाने के लिए । मीठे-मीठे बादल बाबा को बहुत अच्छे लगते हैं । मीठे-मीठे, अति मीठे, सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति, सो भी कौन-से ज्ञान सितारे? लकी ज्ञान सितारे, क्योंकि बाप से भी ऊँचा वर्सा पाते हैं । ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।