14-07-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज बुधवार जुलाई की चौदह तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
माता ओ माता! तू सबकी भाग्यविधाता.........................
ओम शांति!
बच्चों ने महिमा का गीत सुना । अभी बच्चे जानते हैं कि भक्तिमार्ग में महिमा ही होती आती है, क्योंकि जो पास्ट में हो गया उसकी फिर महिमा होती है । फिर जगदम्बा ! तुम भारत की भाग्यविधाता हो । गाया जाता है । अब ये हुई भक्ति और महिमा । तुम कोई भी भक्ति और महिमा तो कर नहीं सकती हो, क्योंकि तुम जानती हो कि सबका भाग्य विधाता, सौभाग्य विधाता... । बाप समझाते हैं ना सौभाग्यशाली और भाग्यशाली । सौभाग्यशाली और भाग्यशाली सबका गाया जाता है एक, फिर दूसरा न कोई । अभी, इस समय में जबकि तुमको समझाया जाता है । भले ये हो गई महिमा । भगत करते हैं । जन्म-जन्मांतर ये भगत गीत गाते हैं । अभी हम भगत तो हैं नहीं । हम हो गए भगवान के बच्चे । वो कैसे सौभाग्यशाली, भाग्यशाली बनाते है या कैसे बच्चे अपन को भाग्यशाली या सौभाग्यशाली श्रीमत पर बनाते हैं, वो है पुरुषार्थ । तुम इस समय में बाप से वर्सा लेने के पुरुषार्थी हो । तुम सभी हो, क्योंकि मॉ-बाप के बच्चे हो । तो तुम्हारा भी कर्तव्य यही है कि जाकर हर एक मनुष्य को सौभाग्यशाली या भाग्यशाली बनाना । सौभाग्यशाली कहा जाता है कि हम स्वर्ग के मालिक बनें ।... 100 परसेन्ट भाग्यशाली वो हैं जो स्वर्ग के मालिक बनते हैं । सो तुम बच्चे तो सौभाग्यशाली हो, फिर उसमें भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार, क्योंकि तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो । अभी ये तो बच्चे जानते हैं, समझाया गया है कि मनुष्यों को कोई मालूम नहीं है कि स्वर्ग की आयु कितनी है, सतयुग की आयु कितनी है । फिर 2 कला कम, जिसको फिर स्वर्ग कहा नहीं जा सकता है । वो सौभाग्यशाली तो वो भाग्यशाली । भाग्य कम होता है ना! वो 16 कला भाग्यशाली तो वो 14 कला भाग्यशाली । तो उनको कहेंगे सौभाग्यशाली । सौ कहा जाता है हण्ड्रेड को । वो हण्ड्रेड परसेन्ट भाग्यशाली तो वो दो कला कम भाग्यशाली, 14 कला भाग्यशाली । अभी उनको सूर्यवंशी तो नहीं कहेंगे ना । तो बच्चे पुरुषार्थी हैं । बच्चे जानते हैं कि हमको तो 100 परसेन्ट भाग्यशाली बनना हैं? सौभाग्यशाली बनना है । सौभाग्यशाली भी फिर किसको कहा जाता है? जो आ करके हम सूर्यवंशी में प्रिन्स वा प्रिन्सेज बनें, क्योंकि ये ईश्वरीय कॉलेज है ना । ईश्वर है विश्व का रचता । तो ये है विश्व का मालिक बनने की ईश्वरीय कॉलेज, जिसमें ईश्वर पढ़ाते हैं और कहते है कि हे बच्चे! मैं तुझे पढ़ाता हूँ और तुमको महाराजाओं का महाराजा बनाता हूँ । अभी दूसरा तो कोई अर्थ न समझे कि भाग्यशाली से भी सौभाग्यशाली यानी त्रेता से भी ऊपर । द्वापर से तो ऊपर है ही । द्वापर से ऊपर त्रेता, त्रेता से ऊपर सतयुग । तो बोलते हैं कि मैं तो तुम्हें सौभाग्यशाली यानी सूर्यवंशी महाराजा-महारानी बनाने आया हुआ हूँ । अब ये तो है तुम बच्चों की पढ़ाई के ऊपर, अटेण्डेन्स के ऊपर, अटेंशन के ऊपर । तो जो जितना पढ़ने वाला स्कूडेण्ट होता है वो औरों को भी ऐसे ही पढ़ाने की कोशिश करेंगे । उनको ऐसे ही सौभाग्यशाली बनाएँगे । तुम सबका धंधा ही है । शिवबाबा सिखलाने वाला है । पीछे बाकी जो भी बच्चे हैं- ब्रह्मा-सरस्वती, सरस्वती-ब्रह्मा के फिर एडॉप्टेड चिल्ड्रन वो भी ब्राह्मण हैं, क्योंकि ब्रह्मा के मुखवशावली होने के कारण तुमको ब्राह्मण और ब्राह्मणी कहा जाता है । तो ब्राह्मण और ब्राह्मणियों का.. ये जानते हैं कि हम ब्राह्मण और ब्राह्मणियों से, ब्राह्मण धर्म से देवता धर्म के बनते हैं । देवता धर्म है मुख्य । धर्म गाए जाते हैं अच्छी तरह से । अभी तुम बच्चे जानते हो भारत का इस समय में कोई भी धर्म है नहीं । वो धर्म को मानते ही नहीं हैं । धर्म को न मानना तो गोया इररिलीजियस । गाया भी जाता है कि धर्म में बहुत ताकत होती है । ये तो अधर्मी हो गए । धर्म को न मानना माना अधर्मी हो जाना । अभी अधर्मी तो हैं ही सभी । जब सतयुग में देवी-देवता धर्म वाले थे तो बहुत सुख था । योग को ही फिर कहा जाता है कम्युनिकेशन यानी कम्यूनिकेशन । शॉर्ट फॉर्म में निकला है कम्युनिकेशन । इसको कम्यूनिकेशन कहा जाता है । सिर्फ तुम्हारा कम्यूनिकेशन है ही शिवबाबा से और दूसरे से तुम्हारा बुद्धि का कम्यूनिकेशन........ दूसरा कोई का भी बुद्धि का कम्यूनिकेशन बाप से, शिवबाबा से है ही नहीं । ये कम्यूनिकेशन हुआ ना यानी याद करना । बाबा कहते हैं रात को शिवबाबा से बैठकर बातचीत करो, कम्यूनिकेशन करो- बाबा, आप कितने मीठे हो! न मन न चित्त, अचानक शास्त्रों में पढ़ते थे तो अभी तो कहलयुग में इतना है । आपने तो आ करके कमाल करके दिखलाया कि हमको अभी स्वर्ग की बादशाही मिलती है । कोई भी हालत में बाप को याद करना...... तुम कहते भी हो... .बाबा, हमारी माँ को थोडा हयाती जास्ती देना । किसने तुम्हारी कम्यूनिकेशन किया? किसको कहते हो? याद भी करते हो, बोलते भी हो । वास्तव में उसके साथ सबका कम्यूनिकेशन है । जब भी कोई आफत पड़ती है तो सब कोई कहते हैं- हे भगवन! इनकी बड़ी आयु दो । यह क्या हुआ? कम्यूनिकेशन हुआ ना यानी तुम जैसे बैठकर बातचीत करते हो । हमारा-तुम्हारा कम्यूनिकेशन लेटर द्वारा होता है । फिर ये क्या होता है? आत्मा का परमात्मा के साथ अभी कम्युनिकेशन कहो, योग कहो या याद कहो, ये तो बहुत अक्षर हैं, परन्तु बाप कहते हैं कि मेरे साथ योग रखो, मेरे को याद करो, फिर याद करके जो कुछ चाहिए सो अर्जी करो । अर्जी तुम करो, मर्जी हमारी- ऐसे भी कहते हो । तो कम्यूनिकेशन हुआ ना बरोबर । अभी ये कम्यूनिकेशन याद सिर्फ एक दफा होती है, जो बाप आकर सिखलाते हैं । और तो सभी कम्यूनिकेशन मनुष्य, मनुष्य से सिखलाते हैं । जिज्ञासु फॉलोअर्स होते है उनका कम्यूनिकेशन मनुष्य गुरू से होता है । गुरू के पास जाएगा ये तकलीफ है, ये आफत है, आप कृपा करो, क्षमा करो । अभी यहाँ तो तुम जानते हो बाबा आया है । तुम याद कर-करके सामने बैठकर भी कह सकते हो- बाबा, यह आफत पड़ी हुई है, क्या करें?... तो बाबा फिर बैठ करके समझाते है कि देखो बच्चे, ये ड्रामा है । ड्रामा अनुसार ये तुमको दुःख है, सुख है, देवाला मारा है या फलाना है । वो बाप बैठ करके समझाते हैं ना । तुम्हारा अभी कम्युनिकेशन है ही बाप से । बाप से सुनते हो... ये बीमार हुआ, ये ड्रामा अनुसार । ये तो कर्म भोग है । ये कर्मभोग इनको जरूर भोगना है । मैं क्या करने आया हूँ? हम तुमको कर्मातीत अवस्था बनाने के लिए आया हुआ हूँ । तुम्हारा कर्म तो तुमको भोगना ही है । तुमने किया है ना । मैं तुझे ऐसे कर्म सिखलाता हूँ । देखो, सम्मुख बैठ करके ये कम्यूनिकेशन होती है ना । किसकी? आत्मा की और परमात्मा की । परमात्मा बैठ करके आत्मा से कम्यूनिकेशन करते है । और तो कभी भी कोई परमात्मा आत्मा से कम्युनिकेशन करे या आत्मा परमात्मा से कम्युनिकेशन करे ये हो ही नहीं सकता है, क्योंकि न आत्मा अपन को जानती है, न आत्मा परमात्मा को जानती है । कोई भी कुछ भी नहीं जानते हैं, भले गपोड़े कितना भी मारते रहते हैं । कोई को मालूम है? कभी कोई से सुना है कि वो स्टार है और उनमें ये अविनाशी ज्ञान भरा हुआ है और वो 84 जन्म लिए जो कुछ भी करते है, जो कुछ भी उस में या रिकॉर्ड में है वो अविनाशी है? कोई को कुछ मालूम है? ऐसे अक्षर कभी सुना है? उनका तो कोई भी कम्यूनिकेशन आत्मा का बाप से होता ही नहीं है । अगर कुछ कम्यूनिकेशन होता भी है तो बातचीत नहीं होती है । वो क्या करते हैं? ब्रह्म को याद करते हैं । अभी ब्रह्म से कोई बातचीत तो होती नहीं है । बातचीत होती है परमात्मा से या आत्मा से । आकाश से क्या कम्यूनिकेशन करेंगे! मनुष्य जो आकाश में रहते हैं ये आकाश से क्या बातचीत करेंगे! वैसे ही आत्माएँ जो ब्रह्म महतत्व में रहती हैं, जो यहाँ पार्ट बजाने आती है, जानती हैं कि बरोबर हम.. निर्वाणधाम में रहती हैं । अच्छा, निर्वाणधाम से क्या कम्यूनिकेशन होगी? निर्वाणधाम को क्या कहेंगे, वो तो तत्व है । भले तत्व योगी है । तत्व से कम्यूनिकेशन हो सकती है क्या? नहीं । हो ही नहीं सकती है । कम्यूनिकेशन तो होती है आत्मा की परमात्मा के साथ, आत्मा की आत्मा के साथ । तुम्हारी आत्मा का कम्यूनिकेशन तो होता ही है एक आत्मा के साथ । वो आत्मा इनको बोलती है, आत्मा सुनती है इन ऑरगन्स से । बाकी आत्मा न हो तो शरीर तो कुछ काम का ही नहीं है बिल्कुल । तो जो भी कम्यूनिकेशन होती है आत्मा की आत्मा से । हाँ, एक दफा आत्मा की परमात्मा से कम्यूनिकेशन होती है, जिसकी महिमा है । आत्माएँ-परमात्मा अलग रहे बहुकाल । कितना काल ?.... अभी एक बार तुम्हारे साथ कम्युनिकेशन होता है, फिर कभी होता ही नहीं है । क्या उन देवताओं की कम्यूनिकेशन होती है? वो बोलते हैं वो हमको याद भी नहीं करते है । देखो, कम्युनिकेशन कम्युनिकेशन सभी करते रहते हैं, परन्तु उन बिचारों को मालूम थोड़े ही है कि हमारा किसके साथ कनेक्शन है । कनेक्शन ही कहो । तो हम आत्माओं का, मनुष्यों का कनेक्शन है ही बाप के साथ । वो बाप को ही याद करते रहते हैं- हे पतित-पावन, आओ । यह कम्यूनिकेशन हुआ ना । किसको कहा, किसने कहा? आत्मा ने, जो इस शरीर में है और आत्मा ये जानती है कि बरोबर इस समय में ये दुःखधाम है । सब कहते है ना, यह बिल्कुल ही अशांत है । हे शांति का दाता, देने वाला, अभी हम फिर शांत में कैसे आयें? यानी शांतिधाम में कैसे आयें?,. फिर वो आते हैं, आकर कहते हैं कि मैं तुमको शांति, सुख और सम्पत्ति देने के लिए मुझे आना पड़ता है कल्प कल्प एक ही बार । अब ये सभी भूल जाते हैं ।.. .उन्होंने यह सब घोटाला लगा दिया है । तो जो घोटाला लगा दिया है वो दुर्गति के लिए । अभी है भी बरोबर, सभी कहते हैं- हे पतित-पावन, आओ और बरोबर समझा भी जाता है भारत जो सद्‌गति में था, वो अभी दुर्गति में है । कितना दुर्गति में है! समय बहुत नाजुक आता है । बहुत बहुत नाजुक आता है, क्योंकि जानते हो बरोबर कि फैमिन भी जरूर पड़ेगी । अरे, बाहर से इतना अन्न आता है, कितने से, सबसे, बहुतों से आता है । बर्मा से, केनाडा से, ऑस्ट्रेलिया से, फलाने से आता है । अगर विचार करो कि उनकी कोई लड़ाई लग जाए तो फिर आना ही बंद हो जाएगा । पीछे ये धंधा थोड़े ही होता है । पीछे क्या हाल होगा! पैसा भी नहीं आएगा । ये सब अपने ही लड़ाई की धामधूम में लग जाएँगे । आने का तो है ना । अच्छा, तुम लोग अखबार तो नहीं पढ़ते हो, परन्तु कोई भी समय में, क्योंकि लडाइयां तो जगह जगह लगती रहती हैं । आज कहीं बेचारा कोई प्राइम-मिनिस्टर है, मारो गोली । नापसन्द है, चलो दूसरा बिठाओ । यह तो चलता ही रहता है । एक बड़ी लड़ाई लग भी रही है, जिसमें भी शक है कि शायद सभी आपस में लड़ पड़े । डर तो रहता है ना- अभी सब लड़ पड़े तो क्या हाल होगा! ये सब चीजें खाने-पीने की हैं, उनके बहुत दाम हो जाते हैं । पीछे क्या होता है? मारामारी । गरीबों को धन तो चाहिए ना, अन्न तो चाहिए ना । पीछे लूटमार, बहुत हंगामा, हल्ला हो जाता है । अच्छा! कहाँ कोई मुसलमानों की लड़ाई लग गई तो बस, फिर तो देखा कि एक-दो को क्या करते हैं । तो देखो, तुम समय को भी देखते हो । बाप बैठ करके सब बच्चों को समझाते हैं । अभी क्या कहते हैं कि बच्चे, अभी मेरे पास आना है ना । तुम आत्माओं के ऊपर पापों का बहुत बोझा है, क्योंकि आत्मा को ही तो भोगना पड़ता है ना । शरीर धारण कर सज़ा कैसे मिलती है समझाया गया । शरीर धारण कराय सजा मिलती है, क्योंकि धारण न हो तो आत्मा को तो कुछ असर नहीं होता है ।........ .अरे देखो, मेरी आत्मा को तंग मत करो, दुःख न दो, क्योंकि फील आत्मा करती है ना । रोज तुम इसको चोट लगाते हो, मुझे बहुत दुःख होता है । दुःख तो आत्मा को होता है ना । दुःखी आत्मा-सुखी आत्मा, पुण्य आत्मा-पाप आत्मा । यह तो गाते ही हैं कि आत्मा के ऊपर ही सब कुछ कहते हैं, परन्तु मनुष्य को यह ज्ञान पूरा है नहीं कि मैं आत्मा हूँ और ये जो भी कम्यूनिकेशन है सबकी आत्माओं की आत्माओं से होती है । भिन्न भिन्न शरीर धारण कर ये आत्मा ही खेल करती रहती है । ये खेल बड़ा देखो- यह बच्चा इनको पैदा हुआ, फलाना हुआ, ये हुआ । वो आत्मा कहती है शरीर के साथ मुझे आठ बच्चे हैं । बाप आकर कहते हैं देखो, मैं तो इस शरीर में आया हुआ हूँ तो मुझे देखो कितने बच्चे हैं । यूं तो वो बच्चे हैं, परन्तु मैं कितना डाडा बनता हूँ क्योंकि...ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ मनुष्य है तो बरोबर... । अच्छा, ये भी हिसाब किया जाए कि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बरोबर मनुष्य सृष्टि रचती है । अभी ब्रह्मा किसका बच्चा? शिवबाबा का बच्चा । ये तो बुद्धि में अच्छा बैठता है कि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रची जाती है । बरोबर ब्रह्मा को कोई क्रियेटर नहीं कहते हैं । क्रियेटर कहते है निराकार परमात्मा को । वो आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा.... । ब्रह्मा नहीं एडॉप्ट करते हैं । परमपिता परमात्मा इन द्वारा एडॉप्ट करते है और देखो बच्चे बच्चे कहते रहते है । अब ये बातें तुम समझते हो सो भी कोई की बुद्धि में बैठती है, कोई सबकी बुद्धि में एकरस नहीं बैठती है । बहुत-बहुत नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं जो फिर ऐसी रीति से याद भी करें कि बरोबर बाबा हमारा.! देखो माया ने कितना हमको बिछुड़ा दे दिया । बाप से माया बिछुड़ा देती है ना, क्योंकि वो तो है प्रालब्ध इसलिए कम्यूनिकेशन होने की दरकार नहीं है । फिर जब माया .दुःख दे दिया, फिर हमको दुःख में याद पड़ता है, फिर हम कम्यूनिकेशन करते हैं । बरोबर कम्यूनिकेशन करते हैं । मनुष्य समझते हैं बाप सुनते हैं, नहीं तो भला किसको क्यों याद करें! जरूर कुछ सुनता होगा ना । ये तो जरूर है ना- हे भगवन! हमको दुःख से दूर करो । हे दुःख हर्ता सुख कर्ता । अभी मनुष्यों को यह मालूम ही नहीं है कि दुःख हर्ता सुख कर्ता कौन है । अभी दुःख हर्ता और सुख कर्ता वो तो सिवाय गुरू के कोई दूसरा होता ही नहीं है । बाप की ये महिमा नहीं है, गुरू की है महिमा कि गुरू, मुझे इस दुःख से सद्‌गति दो या मुक्त करो । बाप को कहेगा? कभी नहीं कहेगा । टीचर को कहेगा हमको इस दुःख से मुक्त करो? गुरू को कहेंगे कि हमको सद्‌गति दो या इस दुःख से मुक्त करो, परन्तु गुरू लोग तो मुक्त कर नहीं सकते है । वो अपन को ही नहीं कर सकते है । तो देखो, ये हो जाते हैं । बाप समझाते है ये जो भी गुरू लोग है ये सभी कलहयुगी हैं और ये भक्तिमार्ग के कर्मकाण्ड सिखलाने के गुरू है । वो तो अनेक प्रकार के हैं । देखो, गायत्री सीखना, ये हठयोग सीखना, हर एक गुरू की गत अपनी, मत अपनी । कोई को देखो भगवान बना कर बैठ जाते हैं । भई, ये कौन हैं? ये भगवान हैं । अभी भगवान मनुष्य तो हो भी नहीं सकते हैं । देखो, यहाँ भी तुम इसको नहीं कहेंगे यह भगवान है ।..... बच्चे, मेरे को, अपने बाबा को याद करो..... जिसको प्राचीन भारत का योग या याद कहा जाता है । उससे क्या होगा? कि हमारा विकर्म विनाश होगा । फिर जिसको याद करेंगे अंत मते सो गत हम वहाँ जाएँगे । तो क्या हो जाएगा? याद से हम निरोगी होकर जाएँगे, एवरहेल्थी । योग से आयु बड़ी हो जाएगी । अविनाशी आयु हो जाती है... । पुरुषार्थ तो यहाँ का है ना । वो है प्रालब्ध । पुरुषार्थ है यहाँ का । भारत में गाते हैं कि देवी-देवताओं की ये आयु बड़ी थी । तो बड़ी उनको कहाँ से मिली? जरूर प्रालब्ध मिलती है । अभी सतयुग में इनको प्रालब्ध मिली है, ये कोई भी नहीं जानते है । बस भगवान-भगवती करते रहते हैं । ये सतयुग के मालिक कैसे बने, किसने बनाया- कोई जानते हैं? नहीं । बस उनको जा करके त्वमेव माताश्च पिता, बंधुश्च सखा... । अच्युतम केशवम श्री राम नारायण, कृष्ण दामोदरम श्रीवासुदेवम- ये बना दी है अनेक प्रकार की महिमा, ढेर के ढेर हैं और सभी भाषाओं में और उसका कोई अर्थ है नहीं बिल्कुल ही, क्योंकि भक्तिमार्ग में अनेक कविताएँ, भागवत, रामायण देखो कितना है! कितनी पूजा, कितनी यात्रा..! यहाँ देखो, शांत । बाबा बोलते हैं समझा करके, क्योंकि ज्ञान तो सागर है ना, परन्तु बोलते हैं है सेकण्ड का काम कि मुझे याद करो, बाप को याद करो, वर्सा तुम्हारा है ही है । बाप है ही स्वर्ग का रचता । वर्सा तुम्हारा है ही है । मन्मनाभव मद्याजीभव बस अक्षर हैं दो खास । बाकी फिर है सभी समझानी । ये कितने समय से समझानी देते रहते हैं ना । अभी ये देखो कितनी कॉन्क्रेन्स बनाते है । रिलीजियस कॉन्क्रेन्स योग की कॉन्क्रेन्स फलानी कॉन्क्रेन्स आपस में, परन्तु ये सभी फालतू । देखो हम कहते है सब फालतू । दिल होती है तो उनको जाकर कहें- अरे भाई! सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, तो देने वाला कौन? बस उनकी ही आत्माओं और परमात्मा की जब कॉकेन्स होती है तब फिर आत्माओं को परमात्मा से मत मिलती है ।.. .सबसे उत्तम कॉन्क्रेन्स आत्माओं और परमात्मा की है । गाया भी जाता है आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल फिर सुन्दर मेला कर दिया जब वो सद्‌गुरू मिले दलाल । तो बरोबर जानते हो कि जब बाप आते हैं तो नई दुनिया रचते हैं । नई दुनिया के लिए लायक बना रहे हैं । तो इसको कॉन्क्रेन्स कहा जाता है । फिर तुम ये बात सुनकर उनको लिखते हो कि तुम फालतू योग की कॉन्क्रेन्स रिलीजियस की कॉन्क्रेन्स करते हो । सबसे फर्स्ट क्लास नंबर वन कॉन्क्रेन्स एक है, क्योंकि तुम इस कॉन्क्रेन्स को जानते हो । कॉकेन्स गाई जाती है जिसको कहा ही जाता है कुम्भ का मेला । इसको ऐसे कहते हैं ना संगम । कुम्भ संगम को कहा जाता है वास्तव में ।.. .कल्प के संगम या कुम्भ का मेला । यह है सबसे फर्स्टक्लास कॉन्क्रेन्स जबकि आत्माओं के साथ बाप आ करके मिलता है और वो आ करके एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देते हैं । बस, फिर उसके बाद यह सभी जो कुछ कॉन्क्रेन्स यज्ञ, तप, दान, हवन होता है वो सभी बंद हो जाता है । तो तुम्हारी कॉन्क्रेन्स देखो कैसी नंबर वन है । किसकी कॉन्क्रेन्स है? जीवआत्माओं की और परमात्मा की । परमात्मा निराकार है, वो तो जीव आत्माएँ हैं । वो निराकार है, वो भी आकर जीवात्मा बनता है । देखो, जीव में प्रवेश करते हैं । वो कहते भी हैं पराए जीव में प्रवेश करता हूँ नहीं तो मैं कैसे बैठ करके इनको अपना परिचय दूँ और सारी रचना के आदि, मध्य, अंत का राज सुनाऊँ, त्रिकालदर्शी बनाऊँ, स्वदर्शन चक्रधारी बनाऊँ? देखो, तुम जानते हो कि अभी हम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं । दुनिया की बुद्धि में बैठे ही नहीं कि ये क्या ब्राहमण..... मनुष्य थोड़े ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं । स्वर्शन चक्रधारी तो विष्णु बनते हैं । विष्णु के साथ कृष्ण को भी चक्र दे देते हैं, क्योंकि गीता में उनका नाम लिखाय दिया है ना । नहीं तो चक्र की भी कोई बात है नहीं । तुमको ही बैठ करके मैं सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का या सृष्टि चक्र राज समझाता हूँ । यह कॉन्क्रेन्स देखो कितनी फर्स्टक्लास है । उनको लिख देना कि भई, यह तुम्हारी जो भी कॉन्क्रेन्स है वो सभी वर्थ नॉट ए पेनी है । वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी, वेस्ट ऑफ मनी । अरे, आत्माओं और परमात्मा की यानी जीवात्माओं और परमात्मा की........ .वो परमात्मा खुद याद करते, जीवात्माएँ याद करती है परमात्मा को । वो आएगा सो भी तो जरूर जीव में आएगा, नहीं तो बोल कैसे सकेंगे! तो कॉन्क्रेन्स सबसे अच्छी ये जो परमपिता परमात्मा आ करके सर्व को सद्‌गति देते हैं । तो जरूर कॉन्क्रेन्स होती होगी ना ।....... .पतित-पावन की पतितों के साथ कॉन्क्रेन्स होगी ना । तब तो पतितों को पावन बनाएँगे । अभी कितनी सहज-सहज बातें हैं समझने की, समझाने की । योग तो सबसे उत्तम में उत्तम है आत्माओं का परमात्मा से । सो भी आ करके खुद परमात्मा सिखलाते है कि मामेकम को याद करो । देखो, है ना । यहाँ आ करके कहा है ना कि हे बच्चो, हे जीव की आत्माओ मैं कहता हूँ कि मुझ अपने परलौकिक परमपिता परमात्मा के साथ योग रखो तो विकर्म तुम्हारा विनाश हो जाए यानी जबकि आत्माएँ सभी परमात्मा से मिलती है तो जरूर परमात्मा जब आते हैं तो आत्माओं को इनहेरिटेन्स देंगे । तो बरोबर इनहेरिटेन्स सर्व का सद्‌गति दाता, सर्व को सद्‌गति या जीवनमुक्ति या मुक्ति देने वाला । जब तुम ये बातें सुनाएँगे तो समझेंगे तो सही ना कि ये जो कहती हैं, जरूर उनको वही समझाते हैं, और कौन समझेगा! और तो कोई किसको ये बातें समझाते ही नहीं हैं । तुम कहीं भी जाकर ऐसी बातें बोलेंगे तो समझेंगे कि ये और तो कोई भी नहीं... .और तो कोई से ऐसी बातें सुनी नहीं, क्योंकि तुम तो बहुत अच्छा समझाते हो । बाप आ करके सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । वो क्या लिखेंगे? शास्त्रों में लिखा है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । बस, और तो कोई बात लिखने की दरकार ही नहीं है । सेकेण्ड की जीवनमुक्ति फिर बाकी तिक तिक तिक शास्त्रों में होने की दरकार ही क्या है! बाप आते हैं, कालों का काल है, महाकाल है । जानते हैं कि बरोबर सबको वापस ले जाते हैं । तो जब वो आएँगे यहाँ तब तो सबको वापस ले जाएँगे ना । सबको वापस ले जाएँगे तो जरूर पावन बनाकर ले जाएँगे ना । देखो, तुमको पावन बना रहे है ना । वो है ही पतित-पावन । बरोबर जरूर कलहयुग के अंत में सभी पतित हैं, सतयुग के आदि में सभी पावन है । तो जरूर संगम में तो आता होगा ना । वो जो दिखलाते है ना युगे-युगे । युगे- युगे आते हैं । एक युग पूरा हो दूसरा युग आया । यह संगमयुग है और बाप आया हुआ है और हमारा कम्यूनिकेशन अपने साथ लगाते हैं कि बच्चे, मुझे याद करो । खुद आ करके सिखलाते हैं, और नहीं तो भला सिखलावे कौन? अपने साथ ये याद सिखलावे कौन? बाप कहते हैं मैं आता हूँ साधारण तन में और फिर ब्राह्मणों के तन में । ब्राह्मण का तन कोई रखा हुआ नहीं है । यह कोई ब्राह्मण नहीं था । भले असुल बड़े ब्राह्मण थे, परन्तु उनकी बात तो गई ना । ब्राह्मणपना तो छोड़ दिया ना । हम तो शूद्रपने में आ गए ना । तो आ करके जरूर ब्रह्मा द्वारा रचना रचनी है । तो ब्रह्मा उनको चाहिए जरूर । अब ब्रहमा कोई ऊपर.. वाले को तो नहीं ना । ये ब्रह्मा कहाँ से आया- प्रजापिता? तो जरूर वही होगा, क्योंकि फरिश्ते बनते हैं, पावन बनते हैं, तो इसको वो खुद कहते है कि मुझ पतित ब्रह्मा के तन में पधारते हैं, क्योंकि इसको ही कहा जाता है नंबरवन पावन, नंबरवन पतित । 84 जन्म पूरा हुआ तो जरूर पतन में आएँगे, जो फिर फरिश्ता बनते हैं । तत् त्वम् । तुम भी ऐसे ही बनते हो ब्राह्मण सो देवता । बरोबर देखते हो कि पुरुषार्थ जो इनका जास्ती जाता है वो ऊँचा पद जाकर लेते हैं, क्योंकि पढाई है । तुम बच्चे समझते हो कि बरोबर जितना हम जिसको समझाएँगे जिसका हम कल्याण करेंगे, क्योंकि तुम सभी कल्याणकारी भये ना । वो एक बाबा थोड़े ही कल्याणकारी है । एक बाबा थोडे ही सर्व की सद्‌गति करते हैं । मददगार चाहिए ना । खुदाई खिदमतगार भी तो चाहिए ना । तो देखो, बाप के तुम खिजमत में हाजिर हो । ऑन गॉड फादरली सर्विस । सो भी गॉड कौन-सा? ऑन हैविनली गॉड फादरली सर्विस । अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है । अभी उसमें उस सतयुग स्थापन करने वाले भगवान की सर्विस में ये जरा डिफीकल्ट होता है अक्षर लिखना । उनके अक्षर बड़े अच्छे है । भले वो हैविन में जाते नहीं हैं, तो भी गाते तो हैं ना कि हैविन स्थापन करने वाला तो गॉड फादर है । भले नहीं रहते हैं, परन्तु यह तो समझ है ना कि हैविन या बहिश्त... । अच्छा, बहिश्त में कोई मुसलमान थोड़े ही जाते हैं । पैराडाइज में कोई जाते थोड़े ही हैं । यह तो बुद्धि की बात है कि स्वर्ग यह भारत था सतयुग... । पैराडाइज हैविन था, अभी हेल है । हैविन की स्थापना करने वाला सिवाय बाप के कोई हो नहीं सकता है । तो हैविन और हेल, हेल और हैविन । तो जरूर जब ये हेल का अंत आए और हैविन की स्थापना हो तब तो बाप आए ना । तो बरोबर तुम अभी जानते हो, समझाय सकते हो अच्छी तरह से कि यह तो अभी पूरी हेल हो गई है एकदम । तो जरूर हैविन स्थापन करने वाला भी यहीं होना होगा, क्योंकि हेल में उनको आना पडता है, जो यहीं बैठ करके हैविन के लायक बनावे । तो जरूर दोजख में तुम बैठे हुए हो । दोजख और बहिश्त के बीच में तुम बैठे हो, सीख रहे हो । तुम दोजख और बहिश्त के बीच में हो । दूसरी दुनिया तो है ही दोजख में । उनको मालूम ही नहीं होता है कि कोई ऐसा कॉनफ़लुअन्स है, यह कोई युग है और बदलने वाला अगर ये समझे कि कलहयुग पूरा होता है तब तो फिर समझ जावे कि सतयुग आना है । यह वही कॉनपलुअन्स कल्याणकारी युग है, पर सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो । और तो कोई जानते ही नहीं हैं । तुम्हारे में भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार घड़ी घड़ी भूल जाते हैं, नहीं तो खुशी होनी चाहिए । अभी हम तो खग्गियॉ मारते हैं । अभी गए हम । बाबा आया हुआ है । हमारा बिलवेड मोस्ट बाबा, जिनको हम आधाकल्प याद करते आए हुए हैं । याद करते हैं तो याद से भी उसका फल तो मिलेगा ना । गाते हैं कि भक्तों को भक्ति का फल देने के लिए भगवान को आना ही पड़ता है । अभी किस रूप में आते हैं वो उनमें मुझते हैं । वो समझते हैं कृष्ण के रूप में । कृष्ण के रूप में तो साधारण हुआ ही नहीं । कृष्ण तो बड़ा असाधारण, वो तो तेजोमय बालक है । यहाँ सब काले लोग, आयरन एजेड । यहाँ गोल्डन एजेड आऐ कहाँ से! बाप आकर समझाते है- बच्चे, मुझे आना ही होता है आयरन एज में या पतित दुनिया में पावन बनाने के लिए । तो भी तुम बच्चे जानते हो । अभी तुम महिमा नहीं करते हो, तुम जानते हो कि बरोबर बाबा द्वारा मम्मा-बाबा भी ज्ञान उठाते हैं । उन द्वारा हम भी उठाते हैं । हम औरों को बैठ करके सिखलाते है । बस, महिमा है नहीं कुछ । कोई की महिमा नहीं है । महिमा...करना बंद । हम बैठे हैं, देखते है, हमको सिखला रहे हैं, फिर हम महिमा क्या करें! महिमा भगत करते है ना, हम भगत तो ठहरे नहीं । जो कभी कोई किसको गुस्सा करते हैं ना तो बाबा कहते हैं तुम तो भगत हो । जैसे कि तुम तो दुर्गति को पाए हुए हो ।.... समझा देते हैं देखो, मैंने तुमको गाली दी, क्योंकि तुमने ये अच्छा काम नहीं किया, छी- छी काम.. किया । तुम तो भगत हो । भगत तो छी- छी काम करते ही है । तुम बच्चों को, जो ईश्वरीय संतान हो तुमको तो कोई छी- छी काम करना नहीं है, परन्तु.. .माया बहुत कराती है, बात मत पूछो । माया ऐसा मत्था मूड देती है, माया चूहा अच्छे- अच्छे बच्चों से चोरी कराती है, अच्छे- अच्छे बच्चों से गंदा काम कराती है ।... माया तो बहुत कराती है गिराने के लिए, उनको समझ मे नहीं आती है । भावी । उनके भाग्य में नहीं है ।.. भगवान नहीं समझता होगा! बाबा कहते हैं- बाबा तो अंतर्यामी है, ये बाहरयामी है, पर मैं खुद भी समझ सकता हूँ कि क्यों इनकी अवस्था ऐसी है । ये मैं जानता हूँ कि ये बुरे कर्म बहुत करते रहते हैं । मैं नाम नहीं लेता हूँ । नहीं तो मैं बोलता हूँ अभी भी अच्छे- अच्छे महारथी, जो बाबा उनकी महिमा करते हैं, वो भी गुप्त छिप करके बुरे कर्म करते रहते हैं । खराब । खराब कर्म उसको कहा जाता है । स्त्री होगी, पुरुष होंगे उनको भाकी पहनेंगे, यह करेंगे, प्यार करेंगे, छिप छिप करके ताकि कोई देखे नहीं । ऐसे भी काम करते रहते हैं अच्छे- अच्छे । बाबा नाम नहीं लेते है, बहुत है । कोई छिप-छिपकर चोरी करते हैं, कोई बुरा कर्म करते है । बहुत करते है छिप-छिप । तो फिर उनकी अवस्था भी कुछ ऐसी ही रहती है ।... माया कराती तो रहेगी ना जरूर । यह भी कोई वण्डरफुल बात नहीं है । यह तो समझते हो कि माया जरूर कुछ न कुछ काम कराती है । देखो, कितने आश्चर्यवत् सुनन्ति कथन्ति । अभी बाबा को वो मालूम पड़ता है, बाबा इसमें प्रवेश हो करके आकर किसको गुस्सा करते हैं । गुस्सा करने से वो एकदम छूट जाते है । गुस्सा क्या! यानी उनको कहते हैं तुम बड़े नालायक हो । तुमको इतना सयाना समझा, तुम ये गंदे काम करते हो, क्योंकि वो मेरे सामने प्राईवेट आते हैं ना, हम तो उनको कहता हूँ ना । यानी बाबा उनको सामने इन द्वारा कहते तो है ना कि तुम बुरा काम करते हो । तुमने यह किया, यह किया । तुमको शर्म आना चाहिए । तो वो बाप को न समझ इनको समझ कि यह हमको ऐसा कहता है, इनसल्ट करता है, भाग जाते है । यहाँ ब्रह्माकुमारियाँ ही कोई किसको कुछ न कुछ कह देती है, देखो रूठ जाते है, आश्चर्यवत् भागन्ति हो जाते हैं । इतनी बुद्धि नहीं कि क्या इनसे हम रूठे! अच्छा, उनसे तो न रूठे ना । और सबसे रूठे, मम्मा-बाबा से रूठे, परन्तु बाप से तो न रूके ना । तो रूठ जाते हैं । ब्रह्माकुमारियों से तो बहुत रूठते हैं, पढ़ाई छोड देते हैं । अच्छा, तुम पढ़ाई क्यों छोड़ते हो? ... तुमको बाप को याद करना है । उनसे रूठा तो तुम बाप को भी नहीं याद..... । पढ़ते भी नहीं हो । तो प्याइटस न पढ़ने से किसको समझाना बड़ा मुश्किल होता है । फिर भी बाबा कह देते हैं कुछ भी हो, भला ये तो समझाओ कि बाबा ने 5000 वर्ष पहले ऐसे ही कहा था कि मामेकम याद करो, देह का भान छोडो और आत्मा को कहा कि एक मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊँगा । अभी स्वर्ग के मालिक में तो फर्क हो गया ना । स्वर्ग में तो सभी जाते है । प्रजा भी कहेगी मैं स्वर्ग का मालिक हूँ । यहाँ प्रजा कहती है मैं नर्क की मालिक हूँ । नर्क नहीं कहते है, भला भारत की मालिक हूँ । भारत भी तो अभी नर्क है ना । अभी हम सब नर्कवासी है यह कोई भी नहीं जानते हैं । ऐसे दिल में नहीं आता है । कहते है हम पतित है । तो पतित माना नर्क ना । तो किसको भी तुम कह दो नर्कवासी हो । देखो, मरते हैं तो कहते है. .. भई, वैकुण्ठवासी हुआ । तो नर्कवासी था ना । अभी ऐसे अगर कहें तो बिगड़ पड़ते है । बड़े आदमी सभी इस समय में हैं तो नर्क में ना । स्वर्ग में तो देवताओ का राज्य है ना । तो सब नर्कवासी है ना । जो भी है यहाँ साधु, संत, महात्मा, ऋषि-मुनि, राजा, रानियाँ, कहाँ है अभी? नर्क में है ना । राक्षस राज्य मे हैं ना । रावण राज्य में हैं ना । पतित भी हैं इसलिए । तो कोई.. किसको कहो तो सही पतित तो लड़ पड़े, घूसा मार देवे । तो ये है सभी समझ की बात । बाबा तो जरूर कहेंगे ना क्योंकि हम तो समझदार और बेसमझ बनते है । बाबा को तो नहीं कहेंगे ना । बाबा तो सदैव समझदार है । हम बेसमझों को समझ.... ... खुद आकर कहते है तुम कितने बेसमझ बन गए हो । ऐसे बाप ही कहेंगे ना । देखो, माया ने तुमको कितना बेसमझ बना दिया है । बाप बिगर ये अक्षर कोई कह न सके । देखो, तुम स्वर्ग के मालिक थे । 'अरे भारतवासियों चलो सबको लगाय दो । अरे भारतवासियो! तुम स्वर्ग के मालिक थे । अरे, कितने पदमपति! अभी कितने बेसमझ बन गए हो एकदम । तुम्हारी बुद्धि पत्थर बुद्धि हो गई है । कौडी मिसल हो गए हो । तो कौड़ी से हीरा, वो तो गाया जाता है ना- हीरे जैसा जन्म अमोलक सो हो गया कौड़ी जैसे । अभी बाप आ करके कौड़ी जैसे ये जन्म से फिर अमोलक हीरे जैसा बना रहे है । गायन भी तो यहाँ के लिए है ना । समझते भी हो बरोबर कि हम क्या है और क्या बनेंगे! बस, बाबा आ करके हमको याद से.. .इतना मालिक बना देते है । हम कल स्वर्ग के मालिक होंगे ये तो खुशी होती है ना । एक-दो को कह सकते हो ना कि देखो, हम मिल करके अभी स्वर्ग की स्थापना कर रहे है श्रीमत पर । ऐसे कहेंगे ना कि श्रीमत पर । तो स्वर्ग का स्थापन करने वाला मालिक भी तो जरूर मत तो देगा ना, लायक तो बनाएगा ना । तो तुम जानते हो कि हम श्रीमत पर अभी स्वर्ग की स्थापना कर रहे है । हम फिर स्वर्ग का मालिक बनेंगे, जहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं रहेगा । हम 21 जन्म दु ख से छूट जाते हैं और सुखधाम में जाते हैं । सुखधाम में जाते हैं, तो हर एक को पुरुषार्थ करना चाहिए सुखधाम में जाने के लिए । अरे भाई, सुखधाम को याद किया क्या? भाई, दुःखधाम को भूलते जाओ । तो जाऐगे सुखधाम में वाया शांतिधाम में अपने स्वीट होम से । बाप के घर से हो करके फिर ससुर घर जाएँगे । ऐसी ऐसी बातें एक- दो से करने से खुशी का पारा चढता ही रहेगा ।