30-08-1965     मधुबन आबू     रात्रि मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग, यह 30 अगस्त का रात्रि क्लास है

यह 21 जन्म का वर्सा है बाप द्वारा । उनको कोई ऐसा वर्सा तो नहीं मिल सकता है । धर्म है वो, .सन्यासियों का धर्म है । भले ये देवी-देवताओं का धर्म है, परन्तु इन देवी-देवताओं को वर्सा मिलता है बाप से । ये तो समझ सकते है ना कि सतयुग में सतयुग स्थापन करने वाला बाप, तो जरूर जो सतयुग मे देवी-देवताएँ राज्य करते हैं, जरूर कोई बेहद के बाप से वर्सा मिलता होगा । ये तुम जानते हो । दुनिया में इन बातों का कोई प्रचार नहीं, कोई बात नहीं। नहीं तो इसके पहले, आगे, लक्ष्मी-नारायण के मंदिर मे जाने से ये थोडे ही समझते थे कि इनको भगवान ने राज्य दिया । अगर ये समझ में आए कि उनको भगवान ने राज्य दिया, भला दिया कब? यह भी कोई नहीं समझे, क्योंकि सतयुग को लाखों वर्ष आगे लगा दिया है । इसलिए ये भी कुछ समझ में नहीं आए । तो सतयुग को लाखों वर्ष, कोई लाखों बरस पुराने का तो ये हो नहीं सकता है । अगर ये सतयुगी वाले लाखों वर्ष पुराने हों तो यहाँ तो करोडों की करोड़ों, अरबों की अरबों मनुष्य हो जावे, अनगिनत मनुष्य हो जाएँ । बुद्धि ऐसी कोई चट खाते में हो जाती है, कोई विचार नहीं चलता है कि जबकि ये देवी-देवताएँ भारत में राज्य करते थे । अगर ये लाखों वर्ष के हुए.... । इनको तो हुआ ही अढाई हजार और सवा दो, दो हजार । बाकी जो लाखों वर्ष में ये आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले, और तो कोई का चित्र है नहीं, तो ये तो बहुत ही हो जावे, अनगिनत हो जावे । यह भी कोई के बुद्धि मे नहीं बैठता है । क्यों? कौन बिठावे? अभी तो बच्चों की बुद्धि में ये सारा स्वदर्शन चक्र ही है गवर्मेन्ट का भी । यह है गवर्मेन्ट का चक्र । उन्होंने लिखाय दिया है.. चरखा । चरखा फिरता है ना, ये भी फिरता है । तो उन्होंने इस वर्ल्ड चक्र को न जानने कारण वो चरखा दे दिया है । देखो, तुम बैठे रहते हो ना । अभी बाबा कहेगे- बच्चे, तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो ना, तो झट तुम्हारी बुद्धि में यह चक्र फिरेगा । वर्ण भी फिरेगा । सत, त्रेता द्वापर, कलहयुग फिर संगमयुग... । वर्ण भी तुम्हारी बुद्धि में आएँगे- देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ब्राह्यण । यह जो विराट स्वरूप दिखलाते है उनमें ब्राह्यणों का वर्ण नहीं दिखलाते हैं । तो ब्राह्यणों का वर्ण न होने के कारण शिवबाबा भी कहाँ आवे, ब्रह्मा कहाँ आवे? आज बाबा को ख्याल आया कि इनको वाणी नहीं खुलती है, हाथ उठावें । मैं अभी पूंछता हूँ । जो कहती है ना कि हम समझा नहीं सकती हैं, वो हाथ उठाओ । जिन्होंने हाथ उठाया है, इन बच्चों को आकर इसको ऊपर खड़ा करो, इनको टाइम दे करके बिठाओ । पहले-पहले बुद्धि मे बिठाओ । तो कहो कि ऊँचे ते ऊँचा भगवत, भगवान, बाबा, क्योंकि रचता है । फिर बोलो, जैसे स्कूल में बच्चों को पढ़ाया जाता है- हाँथी कहो, घोडा कहो, ये फलाना कहो । अच्छा, वो तो हुआ सबका बाबा । अभी वर्सा मिलना चाहिए । तो जरूर यहाँ वर्सा चाहिए । अभी आत्माओं को वर्सा चाहिए । आत्माओं को तो वर्सा वहाँ है, पर यहाँ वर्सा चाहिए मनुष्य को । मेल और फिमेल को बाबा का स्वर्ग का वर्सा चाहिए । वो कैसे देवे? बाबा को यहाँ आना पड़े । यहाँ बाबा को आना पड़ता ही है पतित दुनिया में, क्योंकि कलहयुग है । तो जरूर जब ये कलहयुग-सतयुग के बीच में आवे तभी आ करके फिर हमको पवित्र बनावे और स्वर्ग का वर्सा देवे । तो ये फिर उनको बताओ, फिर एक-एक को बोलो- ये कहो । लिखकर जाने तो बोलो लिखो । फिर थोडा ऊपर में समझा करके कि देखो.. .यह मम्मा-बाबा वहाँ सतयुग के ऊपर में तपस्या में बैठे है । देखो, बाबा-मम्मा बैठकर तपस्या करते है । ऊपर में दोनों है ना । तो देखो, ये ब्रह्या-सरस्वती तपस्या करते है तो उनके बच्चे भी तो होगे ना । तो देखो, ये सतयुग की स्थापना हो रही है ब्रहमा द्वारा । हम ब्राह्मा द्वारा ब्राह्यण है । सतयुग का वर्सा हमको मिलना है शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा । सतयुग का वर्सा मिलेगा तो कलहयुग का खलास होने का है । तो गोल चक्कर पर ले आना । देखो, ये सतयुग और त्रेता, यह द्वापर-कलहयुग, यह रावण राज्य... । 5-7-8-10 दफा उनको घड़ी- घड़ी कहलाते रहें तो सिर्फ उनके बुद्धि में बैठे.. बरोबर आधाकल्प सतयुग-त्रेता फिर आधाकल्प द्वापर-कलहयुग, फिर ये हो गया संगम । ये देखो स्वर्ग, ये देखो नर्क हो गया । सतयुग-त्रेता स्वर्ग, द्वापर-कलहयुग नर्क । नर्क कौन स्थापन करते है? रावण । रावण को तो जानती हो, जिसने हाथ उठाया? रावण देखा है? दस शीश वाला रावण नहीं है! देखो, पाँच विकार स्त्री में, पाँच विकार पुरुष में । तो हो गया रावण का राज्य । इसको कहा जाता है रावण का राज्य यानी पाँच विकार रूपी रावण का राज्य । पाँच विकार स्त्री मे, पाँच विकार पुरुष में । दोनों में । जब राम राज्य है तो दोनों में विकार नहीं है । तो देखो, विष्णु की चार भुजाएँ है । दो भुजाएँ स्त्री कीं, दो भुजाएँ पुरुष की । वो हो गए पाँच विकार, वो फिर हो गया दो भुजा स्त्री की, दो भुजा उनको देवता । तो ऐसे-ऐसे उनको ये बुद्धि मे बिठाए, जो न बात करे, मुख से बोले । इनको भी बिठाना पहले पहले एकदम । तो यहाँ से ऐसे होशियार हो जावे । बाबा क्या कहे, इनको कोई सिखलावे तो मैं सौगात दूं । अगर कोई इनको सिखलाकर दे मैं चाँदी का ग्लास दूध पीने के लिए इनाम दूँगा । (किसी ने कहा- मैं सिखलाऊँगी ।) तुम सिखलाओ इनको, जो ये समझे, समझ जावे और वो गद्‌दी पर बैठकर एकदम अच्छी तरह से समझाए । तो मैं तुमको चाँदी का ग्लास इनाम दूँगा । चलो कोई भी किसको भी समझावे, मैं उनको इनाम जरूर दूँगा और चाँदी की भी । तुम बच्चियाँ मे से कोई भी बैठे जिन्होंने हाथ उठाया है । उनको हमको होशियार करके दो, जितना दिन हो । अभी तीन- चार रोज तो हो ना । दिन में पढ़ाने से समझ जाएँगे, दूसरे दिन बोलने लग पड़ेंगे । तो बाबा उनको इनाम जरूर देंगे । उसमें भी जो सहज हो, अभी ये तो सहज है, इनको तो बरस हो गया है, बहुत पुरानी है । इनका मुख तुमने खोल दिया तो मैं गिलास के साथ और भी कुछ दे दूँगा । समझाती हो ना । डेली समझा देती हो । बाकी इनको समझा दो ।. .कर सकेगी बच्ची । (किसी बहन ने पूछा- कौन है ये?) ये क्वीन है । अगर ये अभी जा करके थोड़ा अच्छी तरह से समझाने लग जावे तो ये बहुतों का कल्याण कर सकती है, क्योंकि बुजुर्ग है और बड़े घर की बड़ी है । (किसी ने पूछा- कितने रोज में तैयार करना है?) अभी अगर तुम उठाती हो, जितना रोज रहो । दो- तीन दिन यहाँ रहाय सकता हूँ नहीं तो रवाना कर दूँगा! बाबा ठीक बोलते हैं ना कि अगर इसने बडे- बडे को आप समान किया तो बड़े आदमी, ये तो है लखपति लोग, करोडपति लोग, इनके पास तो पाई के मुआफिक पैसा रहता है । तो बड़े- बड़े आदमियों से कनेक्शन है ना, बड़ी बड़ी माताओं से कनेक्शन है, बड़े- बड़े मनुष्यों से, मित्र-संबंधियों से कनेक्शन है । अगर इस बारी जा करके ये टुकलू- टुकलू करने लग पड़ी तो तुमको तो हम बहुत कुछ दे सकते हैं और जो पार्टियों है वो फिर उनको उठाओ । तो एक- एक जो उठाएँगी, जो उनको कहेंगी कि ही, हमने अभी समझा है, हम समझाय सकती है, मैं उनको इनाम जरूर दूँगा और दूँगा जरूर चाँदी की । (किसी ने कहा- आपके आगे ही समझावेगे) । तभी क्या! तैयार हैं, चलो दीदी के आगे । (किसी ने कहा- हाँ, दीदी के आगे ।) मेहनत करो इनके ऊपर । इनको शौक होना चाहिए । नहीं तो ये बोलते है कि जाकर क्या करती है, यह कुछ मुख से ही नहीं बोलती है । ये तो जैसे जंगली तोता ठहरा । गले में माला ही नहीं पड़ती है । एक तोते होते हैं, उनमें कंठमाला पड़ती है और दूसरे होते हैं जिसमे कंठमाला नहीं होती है । बच्चों को बाबा तो याद पडता है ना । स्वर्ग का वर्सा देते हैं । ये बाबा ठहरा ना । स्वर्ग की स्थापना तो बाबा करते है ना । अभी था, परन्तु फिर भी तो 84 जन्म लेना पडे ना । जो भी आवे, मनुष्य तो है ना । तो देखो, 84 जन्म ले करके अभी ये नर्क बन गया है । 84 जन्म के अंत के जन्म में नर्क बन गया । सतोप्रधान से सतो रजो तमो ये थोड़ा थोड़ा अक्षर और फिर भी तो बाबा आया हुआ है । के आता ही है यानी आना ही पड़े । सतयुग और कलहयुग । कलहयुग के अंत में, सतयुग के आदि में आना ही पडे । 5-5 हजार वर्ष बाद बाबा को आना ही पड़े पतित दुनिया को पावन करने । अभी तो आता ही है । देखो, विनाश सामने खड़ा है । तो कलहयुग के अंत मे आया है ना । तो बाप फिर क्या कहते है, निशानी क्या है बाप की कि बच्चे, मुझे याद करो तो तुम्हारे जो विकर्म है, यह खाद पड़ी हुई है, के गल जाएगी, निकल जाएगी और पक्के सोने बन जाएँगे और फिर हमारे पास.. आत्माएँ वहाँ तो पक्का सोना ही रहती है, पवित्र ही रहती है । उसको मुक्ति कहा जाता है । फिर ये चक्कर सतयुग त्रेता द्वापर कलहयुग- यह कैसे फिरता है । बस वो स्वदर्शन चक्रधारी बना दो । बैठकर समझावे, जो फिर चक्रवर्ती राजा बनता है । बस, ऐसे करके इनको अच्छी तरह से बोलती रहो, बुलाती रहो । बोलने की हेर पड जाएगी ना तो बोलती रहेंगी । फिर तुम सुनाओ, उनके ऊपर आगे बोलो, फिर ये इनके आगे बोले, तुम्हारे आगे बोले । तो ये बहुत काम करेंगी और इनको सच्चा-सच्चा खुशी का पारा तब चढ़ेगा क्योंकि. .कल्याण करेगी ना तो फिर पारा बड़ा अच्छा चढेगा और फिर इसके कारण बाबा को इनके बड़ों से आफरीन मिलेगी कि इसने कमाल की है, इनको इतना होशियार किया है जो ये हमको समझा भी सकती है । फिर भले कहे कि मैं इतना ही इशारे में समझाती हूँ किन्तु है तो एक सेकेण्ड का जीवनमुक्ति । बाप को याद करना है, वर्से को याद करना है । बाकी बहुत् समझाना, वो तो फिर एक- दो से होशियार तो होती ही हैं । फिर तुम चलो सेन्टर में, वहाँ तुमको समझाएँगे और स्वदर्शन चक्रधारी जरूर बनाकर दिखलाएंगे । बच्चों को सीखने का हिर्स होना चाहिए । किसको भी पकड़ना चाहिए जो समझा सकती है । देखो, ये समझा सकती है, ये समझा सकती है, ये बच्चियों भी समझा सकती हैं, ये बच्ची भी समझा सकती है । जो समझा सकती है उनको पकड़ो । यहाँ आए हो, घर में तो कुछ कर नहीं सकेंगी । वहाँ तुम लोगों को फुर्सत कहाँ! वहाँ का वायुमण्डल ही तुमको समझाने नहीं देगा । वायुमण्डल ही खराब । यहाँ फिर भी वायुमण्डल अच्छा है, धारणा होगी । पीछे घड़ी- घड़ी आपे ही आकर, इनके सामने खड़ी रहकर दौड़ी करेगी कि हम ये समझावे । अपने आप से बात करेंगे ।.. हर एक ब्राह्मण को स्वदर्शनचक्रधारी जरूर बनना है । चक्रवर्ती राजा बनना है ना । अब नाम ही चक्रवर्ती पड़ा है । चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा । चक्कर काहे का? सृष्टि का चक्र और क्या! ..इनाम कौन लेते है!. ..मिलेगा, नाम भी होगा, फिर बाबा गाता रहेगा । ये टेप में भी नाम देते रहेंगे कि इसने इसको आफरीन दिया कि इसने इनको आ करके समझाया । हूबहू जैसे परमपिता परमात्मा के साथ बैठी हो । बाबा, दादा और बच्चे सन्मुख बैठे है । देखो, कितना ऊंचा कुटुम्ब ! यहाँ तुमको जो निश्चय और मजा आएगा, इतना मजा घर में नहीं आएगा । भले सेन्टर में जाएँगे तो भी इतना मजा नहीं आएगा जितना यहाँ क्योंकि सम्मुख बैठे हो । सभी बच्चे बाबा और मम्मा के सन्मुख बैठे हो । जानते हो कि बाबा और मम्मा से हमको स्वर्ग का वर्सा मिलने का है । जैसे कि यहाँ बाबा-मम्मा के साथ घर बैठे हो । बाबा भी आया हुआ है, जिसको त्वमेव माताश्च पिता कहते है और जैसे ईश्वरीय घर में बैठे हो । पीछे भिन्न नाम-रूप से फिर तुम वहाँ दरबार में आपस मे मिलेगे । जो रजवाड़ा बनेंगे वो फिर .. । ये तो समझ सकते हो ना कि वहाँ फिर दरबार होगी । फिर तुम्हारा नाता ही होगा रजवाड़ों का रजवाडों के साथ यानी राजाओं का राजाओं के साथ, प्रजा का प्रजा के साथ । इसलिए राजा बनना अच्छा है, रानी बनना अच्छा है बहुत और है भी नर से नारायण बनने का ज्ञान, राजयोग । प्रजायोग नहीं है, राजयोग है, परन्तु राजा के पीछे प्रजा तो जरूर बनेगी । अच्छा! (म्युजिक बजा) बच्चे, भक्तिमार्ग में गीत कविताएँ डायलाग ये-वो बहुत ही खिटपिट है । बाबा इन बातों को नहीं अच्छा. .. । यह पढ़ाई है ना । पढ़ाई में गीत-कविताएं की तो कोई दरकार ही नहीं होती है । इसमे तो है ही चुप । हाँ, समझाने के लिए जरूर समझाना पडे । चुप कैसे रह करके वर्सा पा सकते हो! है तो चुप के लिए ना । बुद्धि में सारा ज्ञान बैठ जाता है । चुप करके बैठना होता है और वो ज्ञान भी सुनाना पडता है और कोई झाँझ वगैरह की कोई बात.. । तो स्कूलो में कोई झाँझ नहीं बजती है, ये तो मंदिरों में बजती है ।. .पढ़ाई एक घण्टा भी बहुत काफी है । फिर घर में बैठ करके उनको उगारना चाहिए । जैसे गइयाँ होती हैं ना, घास खाती हैं तो उगारती रहती है । तैसे ही ये ज्ञान ऐसा है जो अंदर में, सुबह-दिन जब भी फुर्सत मिले ये ज्ञान का चक्कर अंदर फिरता रहे, फिरता रहे, तब खुशी का अच्छा पारा चढ़ेगा क्योंकि समझाते भी रहेंगे, चक्कर भी फिरता रहेगा । सो भी समझाना बहुत सहज है- शांतिधाम, सुखधाम, ये दुःखधाम । अभी शांतिधाम चलना है, सुखधाम में आना है । दुःखधाम खतम होने का है । अभी किसको भी समझाने मे कितना सहज है । ऐसे- ऐसे इनको भी ये समझाते रहना, टोटके भी । अभी देखेंगे, कैसे इनाम पाकर जाती हो और तुम्हारा नाम बहुत बाला होगा । बाबा फिर... करने लग पड़ते हैं ना । ये घड़ी- घड़ी याद आएगा, झट जिसका नाम निकलेगा एकदम । जो- जो कुछ भी करेंगे । अच्छा, मीठे- मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति, जमुना! तुमको भी कह दिया है कि कोई न कोई का कल्याण कर देवे तो वो और को कल्याण करने लग पड़ेगी । ये मुख खुलना जरूर चाहिए । मुख नहीं खुलते हैं । गूंगे का भी कुछ इशारा चलता है । मुख क्यों नहीं खुलना चाहिए! बेबियाँ है, उनका भी मुख खोलते हैं । बाबा- बाबा कहो तो बाबा- बाबा कहने लगती है, जो सिखलाओ सीखने पड़ती है । ये सहज बात नहीं समझा सकते? शांतिधाम, सुखधाम, ये दुःखधाम है । पावन दुनिया है, ये पतित दुनिया है । ये इतना आधाकल्प ये इतना आधाकल्प । वो राम राज्य, यह रावण राज्य । ऐसे- ऐसे टोटका इनके ऊपर युक्ति से समझा दो तो फिर ये बैठकर समझाएँगी । फिर दीदी पास करेंगी । दीदी का भी नाम होगा, क्योंकि...दीदी अभी यहाँ है ना । तुम्हारा भी नाम होगा और शौक रखना चाहिए समझने का, नहीं तो बाप का नाम नहीं निकाल सके । अच्छा! मीठे- मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।