31-08-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते, आज मंगलवार अगस्त की 31 तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड –
जाग सजनियाँ जाग……
अभी गीत तो बहुत अच्छा है। इसका अर्थ भी सहज है । ठीक है ना । जबकि इसका अर्थ बुद्धि में आते हैं क्योंकि ये है चक्कर का अर्थ बुद्धि में, तो कोई जुबान से क्यों नहीं समझा सकते हैं । आज देखें, ये जो छोटी बच्ची है, तुम इसका अर्थ समझा सकती हो? यहाँ आओ, शुरू करो, देखें । तो बाबा समझाते रहेंगे कि तुम बच्चो को कैसे बुद्धि में रखना है और समझाना है, क्योंकि बहुत सहज ते सहज है ये गीत । तो तुम आकर समझाओ फिर मैं तुमको मदद करूँगा । जो समझते है हम समझा सकते है, जो समझदार है। बेसमझ तो नहीं समझा सकेंगे ना । समझदार ही सहज समझते है कि हम समझा सकते हैं सो गद्‌दी पर आवे । यह मुट्‌ठी नहीं जानती है । सब बेसमझ हैं । जो रात को बाबा ने बात निकाली कि कैसे समझना है, समझाना है । कोई गीत भी नहीं बजाना है । इनमे समझ ही है इस ड्रामा की । बाबा के पास आ करके थोड़ा ही समझाएँ तो मैं उनको मदद भी करूँगा और जो बेसमझ है, जो समझा नहीं सकती है, वो भी समझ जाएगी । बच्ची को हिम्मत तो है ना । वो जंगली तोता तो नहीं बनना है ना । नहीं तो ये तो बाप के दिल में असर पड़ जाएगा कि ये जंगली पैरेट है, द्दयुमन पैरेट है, ये कुछ समझता ही नहीं है । उसका नतीजा क्या होता है? भले बाप के तो बनते हैं, वर्सा तो पाएँगे, भले बाबा कहते है कि वर्सा भी पूरा पाएगे, क्योंकि पूरे सरेण्डर है । शिवबाबा को अपना पूरा वर्सा देते है, उसके बदली में वर्सा लेते है । बाबा ने समझाया ना, क्योकि यही बच्ची है फिर, जिससे कल ही पूंछा- संतान कितना है? तो बोले- आठ । तो उनकी ब्राह्मणी बोलने लगी- तुम तो भूलती हो, सात । उसने बोला- ना, आठ । अभी मैं तो समझ गया कि वो कहती है ये राइट कहती है, वो मूंझती है इनके बोलने से । तो बरोबर वारिस तो बनाना है ना, बलि तो चढ़ना है ना क्योंकि बाप बच्चे के ऊपर बलि चढ़ते हैं । देखो, ये है ईश्वरीय नॉलेज । ये यहाँ के जंगली जनावर नहीं समझते है । है मनुष्य, पर हैं जनावरों के मिसल । ये तो बच्ची समझ गई कि इनको वारिस बनाने से ये हमको इसका रिटर्न 21 जन्म का वर्सा दे सकते हैं, और तो कोई भी नहीं दे सकते है । भले मनुष्य जा करके बलि चढ़ते हैं या शरण पड़ते हैं । जैसे अरविन्द घोष आश्रम, एक आनन्दपुर । यहाँ ऐसे ऐसे हैं, जहाँ जा करके बैठ जाते हैं, वहाँ जा करके रहते हैं यानी सब कुछ ले जाकर वहाँ रहते हैं, पर रिटर्न तो कुछ भी नहीं, धूल भी नहीं, छाई भी नहीं । समझा ना! और यहाँ तो बाप है, क्योंकि गाया भी जाता है- तेरे ऊपर बलिहारी जाऊँगी, वारी जाऊँगी ।.बहुत बच्चियाँ यहाँ अर्थ समझती नहीं हैं । अरे, हमारी ब्राह्मणी भी नहीं जानती हैं बहुत कोई कोई, जो बुद्धू है, वो भी इतना नहीं जानती है, क्योंकि फिर समझाना होता है, जैसे बाप बच्चे के ऊपर बलि चढ़ते है तो वैसे फिर यहाँ क्या है, बच्चे बाप के ऊपर पहले बलि चढ़ते हैं, क्योकि यहाँ नई बात है । तब बाप वर्सा देते हैं, क्योंकि हिसाब ही ऐसा है कि इसी जन्म में तुम बलि चढ़ो फिर 21 जन्म के लिए बाप बलि चढ़ता है, क्योंकि ऐसे तो कोई होता ही नहीं है, न कोई बलि चढ़ते हैं, न कोई 21 जन्म का वर्सा दे सकते है । तो बच्चा कभी कोई बाप के ऊपर बलि चढ़ता भी नहीं है । बाप बलि चढ़ते हैं, बच्चे चढ़ नहीं सकते हैं यानी वो कायदा है ही एक ईश्वर का कायदा । गाते भी ऐसे ही हैं तेरे ऊपर वारी जाऊँगी, बलिहारी जाऊँगी । मेरे तो आप, दूसरा न फिर कोई । तो देखो, बलि कैसे चढ़ते हैं! बस, दूसरा कोई नहीं एकदम, न मामा, न काका, न चाचा, न बाबा, न कुछ जो मेरा है । तो ये मेरा हुआ ना- मेरा शरीर, मेरी माता, मेरा पिता, काका, चाचा, मामा, गुरू-गोसाई शरीर को हुआ ना । बोलते हैं हम सबको छोड़ एक निराकार के ऊपर बलि चढ़ते हैं, क्योंकि वो बाप है । तो बरोबर वो तो जरूर सतयुग का 21 जन्म का वर्सा देंगे । अभी जो पूरा बलि चढ़ेंगे वो अपने दिल रूपी दर्पण में खोल-खोल करके देखना है कि हम पूरे बलि चढ़े हुए हैं, अभी ये हुई दिल से बलि चढ़ने की बात । गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए फिर देखो, वण्डर कैसा अच्छा है! गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए, अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए तुमको बलि चढ़ना है । देखो, अभी गुह्य बात हो गई ना । तो प्रश्न उठे ये कैसे? वो बोलते है कि व्यवहार में भी रहो, गृहस्थ में भी रहो, पर कमल फूल के समान पवित्र रहो । रहते हुए बुद्धि में ये सम्भाल, अभी 84 जन्म पूरा होता है, यह तो शरीर भी छोड़ना है, उसके साथ सब कुछ छोड़ना है । हम तो बाबा के हो गए । उनके हो गए । ये सभी जो भी हैं- मामा काका बाबा चाचा हैं जरूर, मैं उनकी सम्भाल कर रहा हूँ बच्चों वगैरह सबकी, परन्तु ये सभी कब्रदाखिल होने वाले हैं ।.. नाटक पूरा होता है । हम तो जाएँगे बाबा के पास. वर्सा पाने के लिए, जिसके लिए हम पुरुषार्थ करते हैं । कौन-सा? उनको याद करते हैं जिसके ऊपर बलि चढ़े हैं और जो बलि चढ़े हैं, जिसका एवजा हमको मिलना है सतयुग का, वो हमको याद रखना है । वो तो साफ कह देते हैं कि यह अंतिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहना है, परन्तु वहाँ रहते हुए तुम बलि चढ़ो कि बाबा, सब कुछ आपने ही दिया हुआ है सो सब कुछ आपका है । तो जैसे बाप ने सब कुछ दिया हुआ है और वो सम्भाल रहे हैं ट्रस्टी हो करके, परन्तु वो सच्ची बात तो नहीं है ना । वो कहने मात्र है । जो अगर कोई ले लेवे या अनायास ही दिवाला निकले या बच्चा मरे तो रोने लग पड़ते है । यहाँ कभी भी किसका गृहस्थी वगैरह में कोई भी मरे तो उनको रोना नहीं है, क्योंकि वो तो दे दिया, वो तो पराई चीज हो गई, जिसकी थी उनकी हो गई, फिर रोने की क्या दरकार! रोया तो खोया, यानी फेल हुआ, क्योंकि दे दी । ट्रस्टी है । चीज उनकी है जिसने दी थी, उनको ही दे दिया । हम उनके डायरेक्शन अनुसार अपने गृहस्थ व्यवहार को पवित्र रहते हुए सम्भाल रहे है । कोई भी अटक होती है तो हम श्रीमत लेते हैं, पूंछते है । तो देखो, सहज समझाते है ना । ऐसे तो नहीं कहते हैं- ले आओ तुम्हारी जमीन, मकान, अगड़, बगड़, सगड़, तगड़ यहाँ लाकर के रखो । वो नहीं कहते हैं । जैसे अरविन्द घोष में जाते हैं तो घरबार ले करके वहाँ जाकर रहते हैं । बाबा ऐसे थोडे ही कहते हैं । वो भी तो एक किस्म का सन्यास हुआ- यहाँ से उठ करके वहाँ जा करके बैठे । तुमको वो तो नहीं करना है । तुमको तो इस दुनिया से ही नई दुनिया में जाना है । वो लोग कोई भी यह नहीं जानते है कि हमको कोई नई दुनिया में जाना है । ये तो सिर्फ तुम यहाँ जानते हो कि बरोबर अभी हम नई दुनिया में जाने हैं, रहते हुए, क्योंकि समझ की बात है ना । यहाँ बाप के पास कहाँ आ करके सब बैठेंगे! यहाँ बैठने की कोई बात नहीं है । बैठने की बात होती है पिछाड़ी मे । जब विनाश होता है तो फिर भागते हैं, यहाँ बाप के पास आ करके रहते हैं । जो-जो रहने वाले होंगे, आ करके रहेंगे तो जरूर । तो पिछाड़ी में यहीं आ करके रहते हैं सेफ्टी के लिए, क्योंकि वहाँ तो मारामारी, पता नहीं क्या हो जाता है । वो तो जब समय आएगा झट दिखाई पड़ेगा कि ये... मौत का समय है और तुम बच्चों को ही मालूम है कि ये विनाश होने का है । दूसरे बच्चों को मालूम नहीं है कि ये कोई पूरा विनाश होने का है । वो तो समझो लड़ाई फिर लगेगी तो भी वो अपना हाय-हाय करते रहेंगे, भागते रहेंगे । तुम बच्चों को मालूम है कि वो समय आ गया, उनके कुछ पहले ही तुम यहाँ भाग करके आ जाएँगे, क्योंकि बाबा ने समझाया पिछाड़ी में तुम बच्चों को बड़ी खुशी, बड़ा नजदीक साक्षात्कार होता रहेगा, ये होता रहेगा, ये होता रहेगा, तो तुम यहीं आ करके रहेंगे । शुरुआत की बात और ही पिछाड़ी में भी कुछ होती है । वो कहते है ना जो तुमने देखा सो हम न देखा । तो जो बच्चों ने वो देखा वो नयों ने नहीं देखा । फिर जो भागन्ति हो गए है, वो जो नयों ने देखा सो भागन्ति वालों ने न देखा । ये तो होगा ना । तो ये ज्ञान की बाते हैं समझने की । बाबा भी समझते हैं कि ये अर्थ तो बड़ा सहज था बिल्कुल ही । तो बच्ची को कहते है कि गीत बजाती रहो.. और ये अर्थ करते रहेंगे । पीछे चाहे तो भले सारे गीत का अर्थ कर देवे । जैसे एक लाइन निकलती है, फिर बाबा अर्थ करने लग पड़ते है, क्योंकि लज्जा तो नहीं करनी चाहिए ना । ये जो सन्यासी लोग है, जब अपने फॉलोअर्स को बैठ करके शास्त्रों की वाणी चलाते है तो मुख से चलाते हैं, क्योंकि याद तो करते है, पढ़ते तो हैं ही- वेद में ये लिखा हुआ है, फलाने शास्त्र में लिखा हुआ है । भाषण करते समय कोई गीता नहीं पढ़ते हैं । कुछ भी नहीं पढ़ते हैं । जैसे देखो वहां चिन्मयानन्द आते हैं तो कोई गीता लेकर नहीं बैठते हैं । उनको याद है कि फलाने अध्याय का आज हम भाषण करते हैं या फलाने श्लोक का हम ये करते हैं । तो कोई शास्त्र नहीं लेते हैं । वैसे तुमको यहाँ तो और ही सहज है, क्योंकि उनको तो शास्त्र याद पड़ते हैं, तुमको बाप याद पड़ता है कि बाबा ने हमको ये समझाया । शिवबाबा के हैं, क्योंकि ये तो तुम लोग समझ गए कि हम शिववंशी तो हैं । परमपिता परमात्मा शिववंशी तो सब हैं । अभी हम चेंज कर रहे हैं फर्मों को । आज सुबह को बैठे थे ना । हम शिववंशी हैं ये भी तो सबको मालूम होना चाहिए ना । तो वहाँ ऊपर मे लिखना ही होता है परमपिता परमात्मा शिववंशी पीछे प्रजापिता ब्रम्हाकुमार-कुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय । तो देखो, ईश्वरीय (यानी) ईश्वर तो हो गया परमपिता परमात्मा । वही पढ़ाते हैं ब्रह्मा द्वारा । ये सीधी बात हो जाएगी । इसलिए चेंज कर रहे हैं, क्योंकि दिन-प्रतिदिन जो कुछ अपना लेटर फर्म भी बनाते है उनको भी चेज कर सकते हैं । ये तो ... मालिक है, जो फरमान होती जाएगी, करते रहेंगे, क्योंकि नीचे भी जब हम लोग लिखते हैं- ये है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ । अभी सिर्फ ज्ञान यज्ञ नहीं लिखना होता है । अभी वो भी लिखते हैं राजस्व अश्वमेध अविनाशी रुद्र ज्ञान यज्ञ । फिर वहाँ तो नीचे लिखते है कि ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार दैवी स्वराज्य पाने । ये हुआ एम-ऑब्जेक्ट या उद्‌देश्य । हिन्दी में ऐसे कहते हैं ना । उद्‌देश्य क्या है? अपने बाप से सतयुगी स्वराज्य का जन्म सिद्ध अधिकार लेने । तो जरा क्लीयर हो जावे अच्छी तरह से और ये यज्ञ भी 5000 वर्ष पहले मुआफिक स्थापना किया हुआ है । वो भी तो लिख सकते हैं और कोई- कोई लिखा हुआ है और बनना भी हिन्दी में है । अभी इंगलिश को कम करते हैं । लेटर फॉर्म्स भी हिन्दी में । तो वो और ही खुश होंगे । वहाँ भाषण भी हिन्दी में समझाते है, कोई इंगलिश में तो समझाते नहीं हैं । अच्छा, तुम भी हिन्दी में समझाएँगी । कोई हिन्दी नहीं जानते है तो उनको इंगलिश में समझाया जाता है । हाँ, अभी तुम बीच की लाइन बजाओ । (गीत:-जाग सजनियाँ जाग, नवजुग आया.... बीत गई सब बात पुरानी. ..) क्या पुरानी बात बीत गई? देखो, मैं इशारा भी देता जाता हूँ । (किसी ने कहा- बाबा आकर हम सब आत्माओं से कहते हैं कि हे आत्माओं! अब नवयुग आया है और तुम घोर अंधियारे में सो रही थीं । अब जागो! अब कलियुग तो खतम होने वाला है और सतयुग आने वाला है । अब तुम जागो.) पुरानी दुनिया, अक्षर पूरा करती रहो । कलहयुगी पुरानी दुनिया खतम हो रही है । सतयुगी नई दुनिया आ रही है । कौन-सी पुरानी बातें बीत गई? (किसी ने कहा- कलियुग में तुम रामराज्य में चलते थे...) रामराज्य नहीं । ये सतयुगी सूर्यवंशी, ये चंद्रवंशी, ये वैश्यवशी ये शूद्रवशी ये बताओ ना बच्ची! क्या बीत गया? (किसी ने कहा- देह के जो सब संबंधी है और सारी दुनिया.. .उसको भूल जाओ और आत्मिक स्थिति में होकर अपने शांतिधाम और सुखधाम को याद करो) अच्छा चलो, ये भी बहुत अच्छा । चलो बैठो ।.... गीत भी सुना और फिर और कोई समझाना चाहे तो आकर समझावे । देखो, बच्चों को युक्ति बताते हैं इनको हिराने की । अभी एक ही के ऊपर है । एक एक आवे, सारा दिन इस एक क्लास के ऊपर । समझाने का सारा राज इसमें आ जाता है । अभी गीत तो नहीं बजाना है, पर समझ करके समझाना है कि ये पुरानी दुनिया है, ये विनाश होने का है । नई दुनिया में क्या था, वो बताना है । सतयुगी सूर्यवंशी था, 8 जन्म हुआ, क्योंकि जन्म तो जाना है 84 का चक्कर पूरा करके । (किसी ने कहा- नवयुग आया । हम सब आत्माएँ हैं । हम आत्माएँ सब सजनियाँ है उस साजन की । कौन-सा साजन? जो शिवबाबा ब्रह्मा के तन में अर्थात् हमारे पिता जो है उनके तन में आ करके हमको ज्ञान की धारणा करा रहे है अर्थात् आदि मध्य अंत का राज सारा ही बता रहे है) बनना है तो जरूर बाप जो पतित-पावन है उनको याद करना है । तो याद करने से क्या होगा? ये जो हमारे में खाद पड़ गई है वो निकल करके फिर हम सच्चा सोना बन जाएँगे । फिर हम अपने शांतिधाम मे चले जाएँगे, फिर बाबा हमको सुखधाम में भेज देंगे । अब ये तो सहज बात है । हाँ, अच्छा चलो, तुम्हारी रफ्तार भी समझी । अच्छा आओ, ये करते- करते, जिनकी बुद्धि नहीं खुलती है वो भी जग जावे ।. कलहयुग पूरा होता है ।. कलहयुग तो है ही । कलियुग के बाद सतयुग पूरा होगा । तो क्या होता है, ये बैठकर चक्कर का राज समझाएंगी । बाप का तो परिचय जरूर देगी । बाबा ने परिचय पहले ही समझाया है कि हम फॉर्म में क्या लिख रहे हैं । (किसी ने कहा- परमपिता परमात्मा शिवबाबा आकर हम सभी बच्चों को, जो बच्चे अज्ञान अंधेरे में हैं, अज्ञान की निद्रा में सोए हुए है, उस अज्ञान की निद्रा से हमें जगाते हैं कि हे सजनियाँ या हे भक्तियों! तुम जागो! अब नवयुग आने वाला है । नवयुग कौन-सा? जिसे कहते हैं कि यही भारत था, जो स्वर्ग था, सोने की चिड़िया थी, वही नवयुग था । उस नवयुग को हम कैसे भूल गए! क्योकि हम ही जो सो देवता थे । अब कैसे हम शूद्र बन गए है? उस देवी-देवता घराने में हम कैसे सूर्यवंशी थे? .. .तो हे भारतवासियों! अब पवित्र बनो और योगी बनो । पवित्र बनने की रखड़ी बाँधो जिससे कि शिवबाबा से प्रतिज्ञा पक्की हो जाए कि हे बाबा! हम प्रतिज्ञा करते है कि अब. ..) उनसे योग लगाओ तो योगाग्नि से ये पाप खतम हो जाएँगे ।.. जो चीधे अक्षर हैं वो भी लगाओ । अच्छा शाबास! तुम बहुत अच्छी हो । बुलन्द. .. । तो होता क्या है कि ये बोलती रहेगी करेक्ट करते जाएँगे, बोलती जाएगी करेक्ट करते जाएँगे । अभी ऐसे नहीं कि मैं इनको छोड़ता । फिर हम बोलते हैं कि फिर शुरू करो । शुरू करके फिर इनको हम करेक्ट करते जाएँगे । फिर बोलेंगे, फिर शुरू मै प्रात: क्लास करो । मैं इसको छोड़ता नहीं था । मैं इनको 6 दफा जरूर वो कराता । तो इनको जो-जो भी प्याइटस भूलती है.. ..... .मैं इनको कम से कम 6-7 दफा जरूर बैठाता था और करेक्शन करते जाते, करते जाते, ताकि वो देखें कि अभी इनमें सभी आता है, अभी ठीक है, क्योंकि मुख्य बात तो ये समझाने की है ना । फिर उनको बता देते थे जो देवता बने थे बहुत काल से बिछुडे हुए वही फिर देवता बनेंगे । जो- जो दूसरे धर्म वाले हैं- सन्यास धर्म वाले, इस्लामी धर्म वाले, वो थोडे ही कोई फिर स्वर्ग में आएँगे या सिक्ख हैं, वो भी न हों, पर हाँ, उनमें से जो कनवर्ट हो गए हैं, फिर हम ये पाइंट देते, उनमे जो हिन्दु कह दिए हैं । हिन्दू तो धर्म है नहीं । ये तो है ही आदि सनातन देवी-देवता परन्तु पतित होने कारण अपन को देवता नहीं कहते है । नाम फिरा है हिन्दू । तो जैसे कि धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो पड़े हैं । हे भारतवासियों! तुम धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गए । जैसे कि देखो, ये भगवान से सीखी हुई, ये बताती है- हे भारतवासियों! हे भारतवासियों, क्योंकि ये भाषण है ना । ये भाषण की बातें बाबा समझा रहे हैं । तो घड़ी- घड़ी करेक्ट कर-करके वो अक्षर उसमें डालते जाने है कि तुम कितने थे! अभी देखो, पूज्य से सो पुजारी हो गए हो । भारत जो इतना पूज्य था, सोने की झिड़की थी, अभी देखो पुजारी, ठिक्कर की, भित्तर की, गुड़ियों की पूजा और वेस्ट ऑफ मनी यानी बेस्ट ऑफ एनर्जी । हिन्दी में फिर, धन दौलत समय बरबाद करते । दशा उतरती आती है । बाबा आ करके ऐसा चढाते हैं, क्या कहते हैं इसको? चढ़ती कला । फिर देखो, चढ़ती कला आधाकल्प चलती है, फिर आधाकल्प में बिल्कुल ही कलाएं निकल करके तमोप्रधान बन काले हो जाते है । ... बोलते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण यानी फिर पवित्र बनो । पीछे पवित्र भी बनो, मेरे को याद करो । .. .ये भी तुम एड करो । करेक्ट करना है यानी वो ब्राह्मणी भी तीखी चाहिए जिसमें बुद्धि हो । तो उनको करेक्ट भी कराती जावे और समझाती भी जावे । (किसी ने कहा- बाप बैठ हम बच्चो को समझाते है ब्रह्मा के तन द्वारा कि मीठे बच्चे, सिकीलधे बच्चे, लाडले बच्चे, अब नवयुग आया कि आया अर्थात् इस समय मैं इस पुरानी सृष्टि का विनाश करने के लिए आ चुका हूँ । नवयुग कहा जाता है सतयुग को) बड़ी बनो, छोटी बच्ची नहीं बनो । बड़ी बनो समझाने वाली ।. .. .थोड़ा भी तो चला सकते हैं ना । तुम बोलो, परमपिता परमात्मा शिव, उनकी तो सभी आत्माएँ संतान हैं । सभी शिववंशी हैं और फिर शिव के पीछे आते हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर । फिर ब्रह्मा द्वारा बाप बैठ करके हम लोगों को ये नॉलेज देते है, ज्ञान समझाते हैं, जो मैं समझा रही हूँ । (किसी ने कहा-. निराकार शिव हम सभी आत्माओं अथवा सभी भारतवासी बच्चों को समझाते है कि हे आत्माओं, हे सजनियों हे सीताओं! अब...) है तो यही सारा ज्ञान, इसमें सब कुछ आ जाता है । सिर्फ उनमें थोडी-थोड़ी, चीदी- चीदी बातें एड करनी होती है । तो आज सारा दिन तुम एक ब्राह्मणी, जब इनको फुर्सत मिले तो जो-जो भी है, छोड़ो एक को भी नहीं । तुम बताओ अभी, तुम बताओ अभी । फिर उनको थोड़ा बताओ, फिर उनको मदद करो, अच्छा चलो आगे, फिर मदद करो, आगे । तो उनको मुख.. । अगर ये ऐसे धंधे... । बस, ये एक ही गीत बस है । और कोई गीत की दरकार नहीं है । ये गीत के ऊपर आज दो , तीन रोज जो भी हो, बस प्रभु के सिमरण इस गीत के ऊपर सबको समझाओ । सब यहाँ आकर मुरली चलावें और वो जमुना है ना, क्योंकि क्लास तो वही कराती है । वो भी बैठे । तुम भी जब-जब बैठो तभी-तभी ये क्लास करो । दिन में नींद भी भले करें, परन्तु एक-एक घण्टा उसमें 5 - 6 हो जाएंगी, फिर दूसरा घण्टा 5-6 हो जाएंगी । अभी दो - तीन रोज जो ये है यही तब तलक इसी गीत के ऊपर सबको खोलो ।.. .. फिर ये बोलेंगी । जितना भी बोले, पर बोलती रहे । बाबा के आगे थोड़ा लज्जा आएंगी । इनके आगे भी वो लजाएंगी । देखो, इनको लज्जा आ गई । पीछे लज्जा उतर (जाएगी) पुरुषार्थ किया तो । तो ऐसे करने से इनकी वाणी खुलेगी । ये बिल्कुल सहज गीत है । इनमें सारा ज्ञान आ जाता है । एक भी गीत मे ज्ञान सारा आ जाता है । तो इनकी बुद्धि में चक्कर बैठेगा ना कि भारतवासी ऐसे थे । पीछे हम भारतवासी कहे. .हम भारतवासी ऐसे थे, ऐसे थे, फिर ऐसे बने ।. .अभी बाबा बैठ करके फिर हमको सिखलाते हैं कि नया युग आया । न कोई वो गपोड़े हैं । गीता का भगवान भी परमपिता परमात्मा है । ज्ञान का सागर वो है । पतित-पावन वो है । वो कृष्ण को कोई पतित-पावन या ज्ञान का सागर थोडे ही कहेंगे । तो वो पाइंट भी पक्की करनी है कि गीता का भगवान शिवबाबा है । हम सभी शिववंशी हैं, जिसको परमात्मा कहते हैं । फिर ब्रह्मा द्वारा पहले ब्राह्मण चोटी रचा जाता है । उनको बैठ करके ज्ञान ऐसे देते हैं । ऐसे-ऐसे इनको थोड़ा समझाते । याद रखो, मेहनत करेंगी तो जिनका मुख नहीं खुलता है उनका खुल जाएगा । उसमे .बाबा ने तो बता दिया है कि जो-जो जिसका मुख अच्छा खोलेंगे, उसमें भी नंबर वन ये बैठी है, हम इनाम देते रहेंगे । हम तीन रोज के पीछे ये रिजल्ट पूछेंगे ये हम बता देते हैं । अच्छा, चलो बच्ची, टोली ले आओ । मुख न खुलेगा तो किसको क्या समझाएँगी! तो ऐसे कर-करके खुलता जाएगा खुलता जाएगा । इसमे सब ज्ञान आ जाएगा । इस एक गीत में सारा ज्ञान आ जाएगा फिर । जो मुख्य बातें हैं समझने की । छोड़ना नहीं है । पकड करके बिठाना है । जो तुमको आता है सो बोलो । बोलो जरूर । अभी तीन रोज देखो इस गीत के लिए। हम कल जो मुरली बताएँगे वो भले रिपीट कराओ, परन्तु फिर भी इस गीत के ऊपर । बात एक ही रहेगी । वो मुरली रिपीट कराओ या ये गीत रिपीट कराओ, बात फिर भी एक रहेगी । हाँ, उठो बच्ची । इनका बहुत फल है । कोई को स्वर्ग में अच्छा पद पाने का लायक बनाना यह कोई थोड़ी सर्विस थोड़े ही है । वो सब है टेप में । वो सभी ऐसे ही वहाँ शुरू करेंगे सिखलाने के लिए इस गीत के ऊपर । इसलिए तो ये टेप्स है ना । ऐसे नहीं कि टेप सुन करके सो जाना चाहिए । ना-ना । फिर जैसे यहाँ बाबा कहते है तैसे हर एक सेन्टर में ऐसे हो जावे । यहाँ तो यह घर में बैठी है । वहाँ बिचारी को थोडी मुश्किलात होती है, परन्तु फिर भी अगर रात को क्लास होती है तो फिर यह एक ही बात के ऊपर मुरली, वो मुख खोले किसका भी । मुख न खुलेगा तो क्या करेंगे, कंठी कैसे पड़ेगी? यानी कंठी का विजयमाला का ऊँच दाना कैसे बनेगा? दाना भले बनेंगे, परन्तु वो तो पिछाड़ी में आकर बनेंगे ना । बनना चाहिए पहले । वो तो ज्ञानी तू आत्मा चाहिए । बाबा थोडे ही कहते हैं कि बच्चों को राजाई नहीं मिलेगी, परन्तु फिर नंबरवार जो है । सिकीलधे ज्ञान सितारों, देखो मैं ज्ञान सितारे कहूंगा तो ज्ञान भी तो होना चाहिए ना । छोटे बच्चों को भी ये सिखलाना है । ये सीख जाएँगे तो बुद्धि में सारा राज बैठ जाएगा । शिवबाबा बैठ जाएगा । ब्रह्मा विष्णु शंकर भी बुद्धि में बैठ जाएगा । फिर ब्राह्मण घराना, ये ब्राहमण धर्म भी बैठ जाएगा । फिर ये 8 डिनायस्टी भी ख्याल में आएगी न्। 12 जन्म, 84 जन्म भी पूरा करें । ये जो मुख्य बातें हैं, भारतवासी ऐसे चक्कर में आते हैं । दूसरा कोई नहीं आते हैं, क्योंकि वो बहुत काल से बिछुड़े हुए होते है । तो जो पहले आते हैं सो पहले जाएँगे, फिर पहले आएँगे । तो वो बहुत जन्म लेते हैं, पीछे वाले थोडे जन्म लेते हैं । यही चक्कर, सब इसमें आ जाता है । देखो, मैं सभी सेन्टर्स को बोलता हूँ ऐसे इन लोगों को सिखलाओ फिर गद्‌दी पर बैठाओ, सिखलाओ गद्‌दी पर बैठाओ । यहाँ सहज होता है, क्योंकि रहती भी हो यहाँ, यहाँ तो सारा दिन बिजी हो । वहाँ तो फिर घरबार में चले जाते हैं । जरा मुश्किल होता है । तो भी कोई न कोई दिन, दिन में तो मइयॉ को मँगाय सकते हैं । वो लोग तो ऑफिस में चले जाते है । दिन में फिर ये क्लासेज । तो उनकी मुरली चले, बुद्धि में बैठे । बुद्धि में बैठेगा तो नशा चढ़ेगा, सोझरे में रहेंगी कि हमारी बुद्धि में है ऊपर से ले करके । अभी जैसे कि ऊपर चढ़ती कला मे से उतरते हो, फिर कैसे उतरती कला होती है, फिर कैसे चढ़ती कला में जाते हो- तुमको सब बुद्धि में बड़ा अच्छा बैठ जाएगा । तुम पूरा स्वदर्शन चक्रधारी बनोगे । किसको भी समझाऐगे कि हम भारतवासी ऐसे थे, ऐसे थे, अभी क्या भ्रष्टाचारी बन गए है, फिर कैसे बाप आ करके श्रेष्ठाचारी बनाते है । सब भ्रष्टाचारी हैं एकदम । कोई एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं, कोई एक भी पावन नहीं, क्योंकि सभी साधु संत महात्माएँ ये सभी जाते है गंगा में पाप धोने के लिए । पाप तो ऐसे नहीं धोए जाते है ना । पतित-पावन कैसे पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाते हैं? बोलते है मेरे साथ योग रखो । ये है भारत का प्राचीन योग । योग रखो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । योगाग्नि से तुम्हारी वो खाद निकल जाएगी । फिर सतोप्रधान बन जाएँगे । ऐसे-ऐसे इनको पक्का करो तो बुद्धि में बैठे बरोबर हमारे खाद पड़ी है । सिवाय बाबा की याद करके खाद कभी नहीं निकलेगी, कभी नहीं निकलेगी, न निकलेगी, सजा पाएँगे और पद भी भ्रष्ट होगा । ये तो सीधी बात है ना । अच्छा! गुडमॉर्निग । 5000 वर्ष के बाद फिर से आय मिले हुए बच्चे, जो अपने बाप से फिर से अपना सुखधाम का वर्सा ले रहे हैं, ऐसे मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग ।