01-09-1965    मधुबन आबू     प्रात: मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते, आज बुधवार सितम्बर की पहली तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
महफिल में जल उठी शमा परवाने के लिए.......
ओम शाति ।
बेहद के सच्चे बाबा की बेहद की महफिल । देखो, अभी बेहद है ना । देखो, महफिल में कितने मनुष्य हैं! करोड़ों मनुष्य हैं ना! बाबा बहुत आहिस्ते करके समझाते हैं कि हमारी मीठी-मीठी लाडली मम्माएँ कुछ न कुछ अच्छी तरह से धारण करें जो कोई को समझाय सकें । अभी ये महफिल है साढे पाँच सौ करोड़ की और आते भी हैं बहुत बड़ी महफिल में । जब सतयुग में छोटी महफिल होती है तब तो बाबा आता नहीं है । जब पूरी महफिल बन जाती है, सभी आत्माएँ यहाँ आ चुकती हैं, भले थोडी-बहुत रही-खही हों तो भी सब आ जाएँगी, क्योंकि जब वापस जाएँगे तो फिर वो खाली रहेगी । माताएँ समझती हो ना? बाबा सहज समझाते हैं, बुद्धि से काम लेना है । बाबा के होते-होते... अभी पहले बाबा कौन है, ये तो बच्चों को समझाया गया है कि पहले-पहले हमेशा बाबा की महिमा- सच्चा बेहद का बाबा है, शिक्षा देने वाला सच्चा बेहद का टीचर भी है । देखो, ये याद रख दो, क्योंकि और कोई को भी नहीं कहा जाता है, एक को कहा जाता है। ये तो पक्का याद करना है । अपना नाम भी लो- शिवबाबा । फिर उनका नाम तो बहुत ही रख दिया है । रुद्र, सोमनाथ फलाना बहुत अनेक नाम रख दिए हैं, परन्तु सच्चा-सच्चा पक्का नाम शिव । मनुष्य जब गिनते हैं तब पुरी जब कहते हैं, तो ऐसे शिव पुरी लगाते हैं ना, ऐसे उसको शिव भी कहते हैं । शिव माना पुरी । तो ये पक्का ध्यान में रखो । तो सच्चा बेहद का बाबा शिव । तो देखो, हमारा बाबा भी है फिर वो हमारा बेहद का शिक्षक । क्या करते है? हमको इस सृष्टि के आदि मध्य अंत तीनों कालों की समझानी सिखलाते हैं । यह हुआ टीचरपना । हिस्ट्री और जॉग्राफी- ये अक्षर तो बच्चियाँ याद कर सकेंगी ना । आदि मध्य अंत की हिस्ट्री-जॉग्राफी यानी सतयुग में कौन राज्य करते थे, कितने इलाके में राज्य करते थे । अब बच्चे जानते हो कि सतयुग में देवी-देवताऐ राज्य करते थे, सारे विश्व पर राज्य करते थे । ये हिस्ट्री हुई ना- कौन राज्य करते थे, कहाँ राज्य करते थे, कितनी धरती पर राज्य करते थे । ये तो थोडे- थोडे पर, बडौदा वाला बडौदे पर राज्य करेगा और मैसूर वाला मैसूर । तो ये गाँव का टुकड़ा-टुकड़ा है । वहाँ ऐसे नहीं है । वहाँ भले वृन्दावन का, सारे विश्व का, क्योंकि दूसरा कोई राजा होता नहीं है, क्योंकि गाँव का टुकड़ा- टुकड़ा तो सबको मिलेगा ना, तो उनका बनेगा । उस समय में और कोई राजा नहीं होते हैं, और कोई धर्म नहीं होते है । बाकी राजाऐ क्यों नहीं होंगे? हर एक को अपना वर्सा मिलेगा । देखो, राधे का भी बाप राजा था, कृष्ण का भी बाप महाराजा था, वो भी महाराजा था । जब सगाई हुई तो दास-दासियाँ वगैरह, जैसे होता है ना, एक गाँव से दूसरे गाँव में जाना, वो बडी प्रजा और हाथियों पर बैठ करके, वो डोली में बिठा करके ये आते हैं न, दूसरे गाँव का दूसरे गाँव । तो फिर वहाँ आ करके इनकी शादी होती है । श्रीकृष्ण के घर में शादी होती है । वहाँ इतने लोग कोई कहें भई, श्रीकृष्ण गया राधे के पास उनको ले आने के लिए । तो वो जाएगा, शादी करेगा, फिर वो अपने साथ जेवर गाँव भी साथ में देते हैं । तो रिवाज है ना । ये तो समझती हो ना कुछ न कुछ ऐसी बातें होती हैं । पहले-पहले तो हम किसके पास पढ़ते हैं? ऊँचे ते ऊँचा शिवबाबा जो सच्चा बेहद का बाबा, सच्चा बेहद का शिक्षा देने वाला, क्योंकि वो पूछेंगे- बेहद की शिक्षा कौन दे रहे हैं बोलो, ये हमको सृष्टि के आदि मध्य अंत की नॉलेज-ज्ञान समझाए त्रिकालदर्शी बनाते हैं । अभी त्रिकालदर्शी दुनिया में कोई भी होता नहीं है । जो रचता और रचना के आदि मध्य अंत को जाने ऐसा कोई मनुष्य होता ही नहीं है । वो तो कह देते हैं- बेअन्त हैं, उसकी रचना भी बेअंत है, अपरम्पार है । बस, ऐसे कह देते हैं । उसको संस्कृत में नेती नेती कह देते हैं- हम नहीं जानते हैं, नहीं जानते हैं । फिर बेहद का सत्‌गुरू, फिर सबका सद्‌गति दाता, फिर सबको साथ में ले जाने वाला पण्डा इसलिए तुम्हारा नाम पाण्डव सेना पड़ा हुआ है । पण्डा अक्षर यही मशहूर है । वो जिस्मानी पण्डा, ये रूहानी पण्डा । गीत सुना ना- चारों धाम किए । एक जन्म में तो चार धाम नहीं किए ना । जन्म-जन्मांतर चार धाम चक्कर लगाए । तीर्थ जो बहुत करते हैं उनको बोलते हैं चारों धामो का चक्कर । चार ही तरफ में, क्योंकि तीर्थ कोई अमरनाथ में है, कोई बद्रीनाथ में है, कोई इस तरफ में है, द्वारका है, श्रीनाथ द्वारा है, रामेश्वरम् है । देखो, चारों तरफ हैं ना! तो बोला- चारों तरफ चक्कर लगाए, बाबा से न मिल सके, भगत भगवान से न मिल सके । भगवान कैसे मिलते हैं? देखो, अभी बाबा आते हैं, भगवान आते हैं । उसको ही कहा जाता है पतित-पावन यानी पतित सृष्टि को, जब कलहयुग हो जाती है, तो उनको सतयुग बनाने के लिए हमारा बाबा आता है । भारत में आता है, फिर भारतवासियों को फिर से सो हीरे जैसा स्वर्ग का मालिक बनाता है । ऐसे बाबा, जो स्वर्ग का मालिक बनाने वाला है, उनको न जानने के कारण ये जो भी साधु संत महात्मा हैं वो बोलते हैं- ठिक्कर में है, भित्तर में है, कुत्ते में है, बिल्ली में है, मच्छ अवतार है, कच्छ अवतार है, वाराह अवतार है । अब देखो, वो कितना गालियाँ देते हैं! तो बाबा आ करके फिर कहते भी हैं कि देखो, जब-जब ये मेरी बहुत ही ग्लानि करने लग पड़ते हैं, मुझको ऐसे- ऐसे कहते हैं, फिर कहते हैं शंकर पार्वती के ऊपर फिदा हुआ, ब्रह्मा अपनी बेटी सरस्वती के ऊपर, क्योंकि ब्रह्मा की बच्चियाँ होती हैं ना । ब्रह्मा की फिर स्त्री नहीं रहती है । जब ब्रह्मा बाप का बच्चा बनता है तो फिर स्त्री नहीं होती है, बच्चे होते हैं, क्योंकि वो होते हैं मुखवंशावली क्योंकि शिवबाबा की ब्रह्मा जैसे खुद स्त्री बन जाती है । ये थोडी गुह्य बातें हैं, परन्तु समझते तो हो ना । भले तुम बच्चों को समझाने में.. । तो फिर ब्रह्मा के मुख द्वारा हमको अपना बनाते हैं । सब ब्रह्माकुमारी और कुमार बन जाते हैं और हम जैसे कि ईश्वर के कुटुम्ब के हो जाते हैं । डाडा हुआ ना । बड़े डाडे का कुटुम्ब हुआ । तो तुम बच्चे हुए शिव के बच्चे । जब शरीर में हो तो बहन-भाई हो । तो ब्रह्मा द्वारा तुम बहन-भाई बनते हो, ब्रह्माकुमारी और कुमार और शिवबाबा के तुम संतान हो ही । उसको कहा जाता है अविनाशी संतान । आत्मा भी अविनाशी और परमपिता परमात्मा भी अविनाशी । शरीर तो फिर विनाशी होते हैं । पीछे शरीर तो एक छोड़ा दूसरा, दूसरा छोड़ा तीसरा । तो देखो, बरोबर 84 जन्म हम भारतवासी लेते हैं । जो देवी-देवता भारत में पहले आते है वही फिर आकर पिछाडी में दैवी वर्ण से निकल करके शूद्र वर्ण तक आ जाते हैं यानी सतोप्रधान से आत्मा तमोप्रधान में आ जाती है । अभी ये तो समझ गए ना हम सतोप्रधान आत्माएँ देवी-देवताएँ सो तमोप्रधान में आ जाते हैं । सतोप्रधान से सतो फिर रजो तमो तमोप्रधान में आ जाते हैं । क्या होता है? इसमें खाद पड़ जाती है, विकारों की खाद, तो तमोप्रधान बन जाते हैं । अभी तमोप्रधान जो आत्मा सच्चा सोना, सो फिर जो झूठा बन गई, सच्चा कैसे बनें? क्योंकि पहले आत्मा को पवित्र होना है ना । आत्मा पवित्र हो, सोना पवित्र हो, सच्चा हो, तो जेवर भी सच्चे बनें । वो साधु विद्वान लोग ऐसे समझाते हैं कि आत्मा निर्लेप है, परन्तु नहीं, आत्मा में ही खाद पड़ती है । पतित आत्मा, पावन आत्मा- ऐसे कहते हैं ना । पुण्य आत्मा, पवित्र आत्मा- ऐसे आत्मा के लिए कहते हैं । तो आत्मा निर्लेप कैसे रही? तो देखो, ये लोग झूठ बोलते हैं ना ।.. फिर उनको समझाना है । ये बहुत मीठी समझानी आहिस्ते-आराम से देंगे ना... । बोलो, हमारी सुनो । हमको कोई की सुननी नहीं है । हमको एक की सुननी है । और संग सबका छोड़ हम एक से सुनते हैं, क्योंकि वो कहते हैं कि अब दूसरे कोई का नहीं सुनो । तो हम एक की सुनते हैं । तुम्हारी हम सुनेंगे नहीं । तुम कुछ भी बोलेंगे, नहीं सुनेंगे, क्योंकि जो तुम बोलेंगे वो सभी वेद ग्रन्थ शास्त्र वगैरह की बातें सुनाएँगे, वो हमाने जन्म-जन्मान्तर सुनी हैं । बहुत सुनी हैं, बहुत चारों धाम चक्कर खाया है, धक्का खाया है, परन्तु भगवान को तो यहीं आना होता है । आकर हमको.. । किसको आना होता है? जिसके लिए हम कहती हैं, अभी जान गई हैं कि बाबा बेहद का बाबा है । तो उसने सुनाया ना, उसने समझाया ना और निश्चय करती हो ना कि हमारा शिवबाबा ऐसा है । अभी ऐसे बाबा को हम सुनेंगे या तुमको सुनेंगे! इसलिए तुम कुछ भी बोलेंगे, नहीं सुनेंगे । इसलिए कोई से वाद-विवाद नहीं होगा । चाहे सुनो, चाहे न सुनो, चले जाओ । बाकी हम सुनाने वाले हैं, सुनने वाले नहीं हैं । ब्रह्माकुमार और कुमारियाँ किसकी सुनने वाले नहीं हैं । तुम बोलेंगे वेद में ही ऐसा... । हम नहीं सुनना चाहते हैं, हम बंद करते हैं । हम बोल देते है सब झूठ है । सुनना है तो सुनो, नहीं तो चले जाओ । वो लोग फिर बहुत तंग करते हैं, गालियाँ देने में देरी नहीं करेंगी ।.. .ये बहकाए हुए हैं, जादू लगा हुआ है, ये है, ये घरबार फिटाते हैं, भाई-बहन बनाते हैं । भई, भाई-बहन होंगे तो जरूर बेहद के बच्चे होंगे तब तो भाई-बहन होंगे ना । सो भी इतने भाई-बहन है ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ तो जरूर कोई बाप भी तो होगा ना । उनसे वर्सा तो मिलता होगा ना । तो देखो, ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ब्रह्मा द्वारा । डाडे का वर्सा बीच में बाप न हो तो मिलेगा? हो ही नहीं सकता है । बच्चे कहाँ से आएँगे जो डाडे का वर्सा लेंगे! कभी- कभी बहुत कहते हैं कि नहीं, हम तो सीधे डाडा से वर्सा लेंगे । अभी सीधे डाडा से वर्सा मिलेगा कैसे? यानी बीच में बाप ठहरा ही नहीं, ब्रह्माकुमार-कुमारी ठहरे ही नहीं, डाडे से वर्सा कैसे ले सकेंगे? ये तो कोई कायदा ही नहीं है । कभी हो सकता है! डाडा होवे, अच्छा, डाडे से वर्सा किसको मिलेगा? पौत्र को मिलेगा, पुत्र को मिलेगा । जरूर पुत्र होगा, उससे पौत्र मिलेंगे तो पौत्रों को भी हक मिलेगा, तो पुत्र को भी हक मिलेगा । नहीं तो डाडा.. कहाँ से बच्चा पैदा करेगा? अभी तुम बच्चों ने ये समझ गए कि पहले महिमा बाबा की, क्योंकि कोई नहीं जानते हैं । अरे, वो है गीता का भगवान । भगवान उनको कहा जाता है । भगवान का परिचय तो पहले देने के लिए समझा दिया हुआ है, फिर भी ये दूसरा परिचय कि वो सच्चा बेहद का बाप है, सच्चा बेहद का शिक्षा देने वाला है, क्योंकि वो हमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं । देखो, त्रिकाल अक्षर इनको पक्का कराय दो यानी तीनों कालों आदि मध्य अंत । आदि मध्य अंत किसको कहा जाता है? आदि हुई सतयुग.. फिर मध्य का संगम चाहिए ना, तो बरोबर त्रेता और द्वापर का मध्य हुआ । दो कल्प पूरा हुआ ना, पीछे है दो कल्प, तो मध्य हुआ ना, आधा । ये भी अच्छी तरह से याद करो । बच्ची नोट करती जाओ, ये फिर इन बच्चियों को समझाना । आदि मध्य फिर अंत- यहाँ तक तुम जानती हो. .क्या होने का है । मुख्य पाइंट है ही अंत की, संगम की, जो बाप बैठ करके पतितों को, पतित दुनिया को फिर पावन दुनिया बनाते हैं । पतित दुनिया को नर्क कहते हैं, सो भी कुम्भीपाक नर्क । बच्चियाँ! कोई ने गरूड़ पुराण सुना है? हाँथ उठाओ, जिसने गरुड़ पुराण सुना हो । तो गरूड़ पुराण में उसको कुम्भीपाक नर्क कहते हैं । जो दिखलाते हैं नदियों में मनुष्य जनावर बिच्छू फलाने एक- दो को खाते हैं । वो नदी तो नहीं है ना । नदी में थोड़े ही मनुष्य भी होंगे, शेर भी होंगे, बकरी भी होगी । कोई ऐसे कभी देखा? कभी कोई नदी में नहीं । तो ये सारी दुनिया विषय वैतरणी नदी है । उसमें देखो, ये सभी एक-दो को खाते हैं, मारते है, पीटते हैं । अच्छा है जो गरुड़ पुराण भी सुना है । बाबा तो सुना हुआ है तब तो पूंछते हैं और बताते हैं ना । पढ़ा हुआ है, सुना हुआ है । तो कोई नदी नहीं है । वो तो नदी दिखला देते हैं, पर ये सारी बड़ी विषय वैतरणी नदी है । इसको विषय सागर भी कहा जाता है, क्योंकि विषय सागर से, वो जो पाँच विकार रूपी रावण, उसको विषय सागर कहो । वो ज्ञान सागर तो वो विषय सागर । उनमें से फिर देखो विषय की नदी, विकारों की नदियाँ हैं । तो इस समय में सभी जो भी है रावण सम्प्रदाय, आसुरी सम्प्रदाय, वो विषय सागर में गोता खा रही है । दुःख ही दुःख है । भले कोई समझे कि हमारे पास खुशी में हैं । सब तो नहीं सुनेंगे ना । देखो, कोटन में कोऊ कोऊ में कोऊ । ये भी तुम अच्छी तरह से समझते हो कि बहुत अच्छे बच्चे बन करके फिर भी, आगे भी लिखा हुआ है कि आश्चर्यवत् बाबा का बनन्ति सुनन्ति औरों को सुनावन्ति और ये कहन्ति कि हम अभी स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं, फिर भागन्ति । अहो माया! तुम कितनी दुस्तर हो, इन बच्चों को जीत लेती हो । तो यह बीच में युद्ध हुआ ना । बच्चों का और माया का हुआ युद्ध । युद्ध के मैदान में सभी जीतते तो नहीं हैं ना । कभी सभी की जीत नहीं होती है । देखो, अभी मुसलमान-हिन्दू की लड़ाई लगती है । तुम सुनती हो- भई, हमने इतने मुसलमान मारे, वो कहेंगे- हमने इतने हिन्दू मारे । तो ऐसे नहीं होता है कि सिर्फ एक दफे मारकर.. भले कितना भी कोई हो, मरेंगे दोनों के । हाँ, जो पहलवान होगा उनके थोडे मरेंगे । जो कम पहलवान होंगे उसके बहुत मरेंगे । अभी लड़ाइयाँ लग रही है ना फिर भी । देखो, वहाँ के तरफ में लड़ाइयाँ लग रही है । तो फिर जो कमजोर हैं वो जास्ती मरते है और जो बहादुर हैं वो थोडा कम । यहाँ भी ऐसे ही है । जो कमजोर हैं वो थोड़ा जास्ती मरते भी हैं झट, बहादुर कुछ ठहर सकते है अच्छी तरह से । तो ये तुम्हारी है इस रावण से लड़ाई । उसमें क्या हुआ? अच्छा, काम से हारा । चलो बड़ी-बड़ी हार खाई, बड़ी चोट लगी । उसको कहा जाता है बॉक्सिंग की । तुम बच्चों ने जिसने बॉक्सिंग का युद्ध हुआ देखा है वो हाथ उठाओ । देखो, ये 1,2,3,4,5 ने देखा है । बाबा ने तो देखी है । तुम बच्चों ने तो कुछ देखा नहीं है ना । वो बहुत पहलवान होते हैं । वो उनको लगाएँगे । कोई वक्त में .कोई ने जोर से लगाया, ऐसे गिर जाएगा, बेहोश हो जाएगा । पीछे वो लोग आठ आवाज करते हैं । आठ आवाज में न उठा तो हराया । अगर उठ गया तो उठ करके फिर लड़ते हैं । यहाँ भी हूबहू ऐसे ही है । एकदम काम की चोट खाई, खाया पादरपना जोर से । फिर बाबा भी कहते हैं- मुटठा, तुम्हारा काला मुँह हो गया । वो विकार में जाएगा तो बोलेंगे, मुटठा काला मुँह हो गया । क्रोध में इतना नहीं कहेंगे, और दूसरी बात में इतना नहीं कहेंगे, काम के लिए फट कहेंगे, क्योंकि बाप भी कहते हैं- बच्चे, ये काम रूपी जो तुम्हारा शत्रु है, ये है तुम्हारा बड़ा दुश्मन । ये तुमको बहुत दुःख देने वाला है, क्योंकि काम-कटारी से तुम दुःखी होते हो । ये कड़ा विकार है, क्योंकि पतित बनाते हैं ना । ऐसे कभी नहीं सुनना कि कोई क्रोध करते हैं तो पतित बनते हैं । पतित बनते ही हैं जबकि ये भार खाते हैं । भार कहो, मूत पियो और जो कहो, इसको बहुत ही गंदे लब्ज कहते हैं । देखो, गंदे लब्ज नानक ने भी कहा है ना । ग्रंथ तो बहुतों ने सुना होगा । ग्रंथ तो बहुत सुनती है । उसमें नानक भी कहते हैं- मूत पलीती कपड़ धोये यानी ये जो मूत पलीती है, मूत से पैदा हुए कपड़े हैं, तन मूत से पैदा होते हैं ना । ये बाप ने आ करके धोए थे ।.. .अभी धोते कैसे हैं सो बाप ने समझाया है तुम्हारा कपड़ा कैसे धोएगा- हे आत्मा, तुम भी धुप(झुक) जाएंगी और फिर तुमको कपड़ा मिलेगा । अभी तुम धुप दब जाएंगी, जब तुम इस पुराने शरीर में रहते-रहते पावन बन जाएंगी, फिर ये तुम्हारा पुराना वस्त्र यहीं उतर पड़ेगा, छोड़ देंगे, सब जल जाएँगे, खतम हो जाएँगे । फिर तुम्हारा सोना पक्का हुआ फिर चले जाएँगे । वहाँ कोई भी पतित आत्मा थोड़े ही जा सकती है । देखो, कितनी बड़ी आग लगती है, उसमें सब जल पड़ते हैं । फिर वहाँ कि वहाँ सजाएँ भी खाते रहते हैं और पवित्र भी हो जाते हैं, परन्तु ये तुम बच्चे समझते हैं सब आत्माओं को पार्ट मिला हुआ है, एक न मिले दूसरे से और ड्रामा है ना, कोई भी दिन एक समान नहीं होता है । ये गीत गाते हैं ना- सब दिन होत न एक समान । सब दिन कितने? 5000 बरस । 5000 बरस में कितने दिन होते हैं? वर्ष में कितने होते हैं दिन? 365 । देखो, ये हिसाब हुआ ना । मैथमेटिक हिसाब करना हुआ । इसमें जरब करो कि इतने दिन होते हैं 5000 बरस में, एक दिन भी एक जैसा नहीं होता है, क्योंकि ड्रामा बना हुआ है । ये देखो, बस फिर ये गुजरा, ये ड्रामा में शूट हो गया । फिर 5000 बरस के बाद ऐसा होगा । ये भी गाते हैं ना- सब दिन होत न एक समान । अभी दुनिया तो जानती नहीं है । कलहयुग है लाख बरस का कौन बैठकर गिने? अरब-खरब हो जाएँगे । उनका कोई कैसे हिसाब सम्भाल सकेंगे! तुम लोगों की बुद्धि में बैठता है कि बरोबर 5000 बरस के इतने दिन होते हैं । वो सब दिन कभी भी एक समान नहीं होते हैं, क्योंकि पार्ट बजता जाता है । सेकेण्ड बाए सेकेण्ड पार्ट बजता जाता है । वो पार्ट जो बजता जाता है वो फिर 5-5 हजार वर्ष बाद फिर से रिपीट होगा । देखो, एक दिन में भी, 24 घण्टे में सब अपना- अपना पार्ट अलग बजाते है । इसको कहा जाता है सभी दिन... । अभी सभी दिन तो गा लिया, कितने दिन कोई भी नहीं जानते है । तुम बच्चे ये भी जानते हो कि कितने दिन होत न एक समान । कहाँ देखो सतयुग, कहाँ ये कलहयुग! उसमें क्या होता है, उसमें क्या होता है! तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते है कि ये सभी तुम बच्चों को रोशनी मिली कि जो दिन सतयुग के है, बड़े अच्छे है, वहाँ खुशी होती है, 16 कला । यहाँ से तुम सभी चढ़ती कला यानी 16 कला में चले जाते हो । विकार से काले हो गए हो ना । तो बाबा कहते हैं- बच्चे, अभी दे दान पाँच विकारों का तो तुम्हारा यह ग्रहण छूट जाएगा । ये तो ठीक है, सीधी- सीधी बातें । तो बाबा तुम्हारा ये पुराना विकार भी लेते हैं.. .बाकी तुम्हारे पास क्या है और बाप को कहते हैं सौदागर, रत्नागर । ये सौदा करते हैं । क्या चीज देते हैं उसके बदली में? बोलते हैं- वाह! तुम दो कौडिया दे देते हो, मैं तुमको ज्ञान के रतन देता हूँ । वो एक- एक रतन लाख- लाख रुपये के हैं । तो बाबा के लिए बाबा ने समझाया कि बाप रूप भी है आत्मा का, देखो कितना छोटा-सा रूप है और बसन्त भी है, वो ज्ञान का सागर है । देखो, विचार तो करो आत्मा में अंदर कितनी ताकत है । एक छोटी-सी में कितना ज्ञान है! कितना ज्ञान समझाते आते रहते हैं, समझाते आते रहते हैं, तो ये आत्मा में ज्ञान की नूंध है ना । देखो, अभी आत्मा कितनी थोड़ी है, फिर जो नूंध है यह ज्ञान देने की, वो भी फिर अविनाशी है । फिर कल्प के बाद फिर आ करके तुमको वही ज्ञान देंगे जो अभी दे रहे हैं । एक छोटी-सी और सो भी अविनाशी, कभी विनाश होने वाला नहीं । देखो, ये भी वण्डर है ना! ये भी कुदरत है ना! छोटी-सी बिन्दी और छोटी-सी बिन्दी आत्मा भी धारण करती है । अगर बाबा की बिन्दी में इतना ज्ञान धारण है तो तुम बच्चे भी आत्मा में यह ज्ञान धारण करते हो, क्योंकि आत्मा में ये 84 जन्म का, जो कुछ भी तुमको पार्ट है, छोटी-सी बिंदी में अविनाशी भरा हुआ है, रिकॉर्ड । देखो, ये बहुत गुहय बातें हैं! शायद बच्चों की बुद्धि में इतना न भी बैठे, परन्तु पहली बात जो बताई 'बाबा का परिचय' कि बाबा हमारा बाबा भी है, टीचर भी है, सच्चा-सच्चा-सच्चा गुरू भी है । उनका फिर दूसरा कोई बाप टीचर गुरू नहीं है । मनुष्य जो भी होते हैं उनका बाप टीचर गुरू जरूर होते हैं । इनका कोई भी नहीं होता है । अभी ये तो पक्की बात हुई समझाने की । तो उनको परमात्मा कहा जाता है कि सर्व परमात्मा? मनुष्य समझते हैं मैं भी परमात्मा का रूप हूँ मैं भी फलाने का रूप हूँ । रूप तो सबका अपना-अपना है ना । बाबा को कहा जाता है रूप भी है, बसन्त भी है । देखो, आत्मा में ज्ञान है । अच्छा, आत्मा ज्ञान कैसे सुनाएगी, मुख से सुनाएगी । तुम्हारी भी आत्मा बैठी है भृकुटी के बीच में, मुख से ज्ञान सुनाएगी । कानों से सुनेगी, मुख से सुनाएगी । तो बाबा को भी जरूर, ज्ञान का सागर जो कहा जाता है, कैसे आकर सुनावे? अच्छा, ब्रह्मा के मुख से सुनानी पड़े, क्योंकि विष्णु तो है सतयुग का पालन करने वाला । ब्रह्मा फिर विष्णु बन जाते हैं । शंकर को तो ज्ञान देना ही नहीं है । बोलते हैं कि वो तो आँख खोलते हैं तो विनाश हो जाता है । उसको ज्ञान का सागर कहा नहीं जाता है । विष्णु को ज्ञान का सागर कहा ही नहीं जाता है । ब्रह्मा को ज्ञान का सागर कहा नहीं जाता है । ज्ञान का सागर कहा ही जाता है एक को । हाँ, ये जरूर है फिर वो आ करके ब्रह्मा द्वारा ज्ञान देते है । तुम अभी ज्ञान की गंगा बन जाती हो, क्योंकि बहुत हो ना इसलिए गंगाएँ, पर सागर तो एक है ना । तुम बच्चों को मालूम है कि सागर एक है, फिर वो बांटा गया है । कोई ने अपना नाम रख दिया है, कोई ने अपना नाम रख दिया है, कोई क्या रख दिया है । कोई हिन्दुस्तान का सागर, कोई विलायत का सागर । इनके ऊपर किस्म-किस्म के बहुत नाम रखे हुए हैं । जो अंग्रेजी पढ़े हुए होंगे, वो नाम मालूम होगा । अरेबियन सी अरेबिया का, मेडिटेरियन सी विलायत का, इण्डियन सी इण्डिया का, ये अटलांटिक सी अमेरिका का । पढ़ी हो कुछ? शायद तुम बच्चियाँ अंग्रेजी नहीं पढ़ी हो । अभी ये नाम तो इन बिचारियों को आएगा नहीं, इसलिए बच्चों को इतना दूर नहीं ले जाते हैं । फिर बुडिढयो को जब समझाओ. आज वो पट्‌टी तुम पढ़ाते आओ जो अभी पढ़ रही हैं । फिर इनको बड़ा मजबूत करो कि हमारा शिवबाबा बाबा भी है और शिक्षक भी है । वो समझाओ कि हमको सारे सृष्टि के आदि मध्य अंत का नॉलेज सुनाते हैं । ड्रामा कहो, सृष्टि कहो । अभी देखो हम बताते है ना, सतयुग में सूर्यवंशी राजाएँ 8 बादशाही चली, ये तो अभी समझाते भी हैं, फिर चंद्रवंशी की बात । वही सूर्यवंशी सो चंद्रवंशी बनते हैं, वही चंद्रवंशी सो वैश्यवंशी बनते हैं, वही वैश्यवंशी सो शूद्रवंशी बनते है, वही शूद्रवंशी सो ब्राह्मण बनते हैं । तो जो सूर्यवंशी बनते हैं वही चंद्रवंशी बनेंगे, वही वैश्यवंशी बनेंगे, वही शूद्रवंशी बनेंगे, वही फिर जा करके ब्राह्मण वंशी बनेंगे । यह पार्ट उनका है, क्योंकि अभी तो एक भी ब्राह्मण नहीं था । वो ब्राह्मण तो विकारी । वो कुखवंशावली, तुम हो मुखवंशावली । मुखवंशावली तो तुम्हीं बनेंगे ब्रह्मा के मुख प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा । उन सबका तो बाप अनेक हैं ना । तुम्हारा तो अभी एक हो गया । यह भी तो फर्क समझती हो ना कि वो ब्राहमण, हम ब्राहमण । सिर्फ ये तुम्हारी बुद्धि में बैठे कि वो ब्राह्मण कुखवंशावली, हम मुखवंशावली । वो जिस्मानी यात्रा, हम एक ही रूहानी यात्रा। वो अनेक जिस्मानी यात्रा, चारों धामों की यात्रा, ये एक ही धाम की यात्रा । वो यात्रा करके फिर भी घर आ जाते हैं, फिर दूसरे जन्म में एक यात्रा, दो यात्रा, तीन यात्रा । ये तो बहुत बच्चियाँ होंगी जिनको यात्रा का भी शौक होता है । दो-दो, तीन-तीन, चार-चार दफा भी यात्राएँ करती हैं । ये एक ही यात्रा है, बस । ये कहाँ की यात्रा है? अमरलोक की । वो मृत्युलोक में यात्रा करते रहते है । तुमको बाबा अमरलोक की यात्रा कराते हैं, जहाँ से मृत्युलोक में नहीं आएँगे, फिर अमरलोक में रहेंगे । अमरलोक स्वर्ग को कहा जाता है । स्वर्ग कि स्वर्ग में रहेंगे । वहाँ तो कोई यात्रा होती नहीं है । वहाँ भक्तिमार्ग ही नहीं है । वहाँ यात्राएँ की दरकार ही नहीं है । भक्तिमार्ग नहीं है । वो कहीं धक्का नहीं खाते हैं । यह धक्का रात को खाता. । ये ब्रह्मा की रात है । इसमें इतना भक्तिमार्ग का धक्का है । इन धक्के से तुम अभी छूट जाती हो । चारों तरफ फेरा लगाने का अभी छूट जाती हो और फिर भी फेरा लगाया और हर वक्त दूर रही । तुमने गीत का अक्षर सुना ना- चारों तरफ लगाए फेरे, हरदम दूर रहे । हमको बेहद का बाप, जो स्वर्ग यानी कृष्णपुरी का मालिक बनाने वाला है वो न मिले । वो बोलता है, वो तो मुझे आना पड़े । तुम मुझे पुकारती हो- हे पतित-पावन, आओ । जब कहते हो- हे पतित-पावन आओ, आकर हम लोगों को पावन बनाओ, फिर तुम यहाँ गगा और ये-ये भला क्यों करते हो? सवाल उठता है ना । जब तुम याद करते हो पतित-पावन को कि हे पतित-पावन आ करके हमको पावन बनाओ, तो फिर गंगा तुमको कैसे पावन बनाएगी, ये बताओ । तुमको अच्छी बुद्धि है तो सही ना कि वो पतित-पावन को बुलाते हो, तो अगर गंगा में तुम पावन बन सकते हो तो पतित-पावन को क्यों बुलाते हो? सो भी कितने बुलाते हैं! सभी जाते है गंगा में स्नान करने । देखो, अभी कुम्भ का मेला लगेगा, लाखों जाएँगे । बीस-बीस लाख, दस-दस लाख, पता नहीं कितनी-कितनी भीड़ होती है! फिर कितने मरते हैं.. .गंदे होते हैं । तो तुम्हारे दिल में ये तो सवाल उठता है ना जबकि पतित-पावन एक है, जो सर्व का सद्‌गति दाता वाला एक है, तो फिर ये क्या करते हैं! इसको कहा जाता है भक्तिमार्ग के धक्के, तीर्थ यात्रा जप तप नेम ये सभी । ये तो सहज बात है ना किससे पूंछना, क्योंकि ये अक्षर भी जब तुम पूंछेंगी तो कहेंगे- यह बड़ी समझदार है, ये बड़ी विद्वान देखने में आती है जो अक्षर बड़े कायदे से पूंछती है कि जब पतित-पावन बाप को बुलाते हो, फिर तुम यहाँ कहाँ जाते हो गगा जल में? क्यों ये गुरू लोग तुमको सभी को धक्का खिलाते हैं? सतगुरू तो वो है ना । जो सर्व का सद्‌गति दाता, सद्‌गुरू सर्व का । फिर ये देखो, ये कोई सर्व के सब थोड़े ही हैं । एक-एक के पास, कोई के पास 100 चेले किसके पास 500 चेले किसके 5000 चेले किसके पास 5 लाख चेले किसके पास 5 करोड़ चेले । देखो, जैसे आगाखाँ है । देखो, इनको कितने मुसलमान लोग हैं! करोड़ों नहीं होंगे, लाखों होंगे । फिर देखो, वो क्या करते हैं? शराब पीते हैं और रेस खेलते हैं । अभी ऐसे गुरू लोग करते हैं क्या? वैसे यहाँ भी बहुत ही ऐसे गंदे लोग हैं । अभी ये तो है ही निराकार । इनको अपना शरीर ही नहीं है, गद काहे से करेंगे! शरीर वाले गंद करते हैं । शरीर वाले ही पवित्र भी रहते हैं, फिर गंदे भी होते हैं । बाबा बोलते हैं मुझे तो शरीर ही नहीं है । मैं आता हूँ तुम बच्चों को पावन बनाने के लिए और फिर स्वर्ग का मालिक बनाकर । तो तुमको खुशी होनी चाहिए ना । खुशी यहाँ इस अल्पकाल के लिए थोड़े ही होनी चाहिए । पतित-पावन बाबा हमको पावन बनाय अपना स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं । बरोबर बुद्धि में बैठता है कि श्री लक्ष्मी और नारायण स्वर्ग के मालिक, इनको बाप से ही वर्सा मिला होगा, जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं । कैसे मिला, ये अभी तुम जानते हो । दुनिया में दूसरा कोई नहीं जानेगा । तुम पूंछ सकती हो- भला एक बात तो बताओ, श्री लक्ष्मी और नारायण हैं, ये तो स्वर्ग के मालिक है । बरोबर महाराजा-महारानी, प्रजा भी तो जरूर होगी, नहीं तो महाराजा भी काहे का होगा! बरोबर ये भारत में सतयुग कहा जाता है । और कोई दूसरा धर्म होता ही नहीं है बिल्कुल ही । सिर्फ ये श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य रहता है और सतयुग की आदि से । अभी सतयुग की आदि में और कलहयुग के अंत में, कलहयुग का अंत देखती हो ना कि क्या है और सतयुग की आदि में क्या है । ये तो अभी देखते हो ना, तुम संगम पर बैठे हो ना । बोलो, भला ये तो बताओ, यहाँ तो राजा भी नहीं है, ये तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है और ये विनाश सामने खड़े हैं । भला इन्होंने कहाँ से ये वर्सा लिया या क्या पुरुषार्थ किया, क्या कर्म किया जो ये इतना बना? तो तुम मीठी बच्चियाँ समझा सकती हो कि संगमयुग में, कल्प- कल्प के संगमयुग बाप आते है । बाप ही आएँगे ना । कृष्ण तो फिर भी मनुष्य है ना । तो बाप आते हैं, वो आ करके बच्चों को वर्सा देते हैं । जब ये राज्य करते हैं तो कलहयुग में जो इतनी आत्माएं हैं वो सभी मुक्तिधाम में चली जाती हैं । ये जीवनमुक्ति में आ जाते हैं । वो शांतिधाम में चले जाते हैं । ये सुखधाम में आ जाते है । तो देखो, सतयुग में सुखधाम और वहाँ ऊपर में शांतिधाम । दुःखधाम का नाम-निशान नहीं । तो देखो, भारत ऐसा था ना । अभी दुःखधाम भी है और देखो, कितने धर्म हैं और ये देवी-देवता धर्म गुम हो गया है । तो जो चीज गुम हो गई है, फिर से स्थापना होगी । देखो, अभी है कोई लक्ष्मी-नारायण का राज्य? कहाँ है? लक्ष्मी-नारायण कहाँ है? पीछे देखो तुम पढ़ाई से बन रहे हो । राजयोग की शिक्षा से तुम बच्चे अभी अपना राज्य ले रहे हो अर्थात् राजाई यहाँ स्थापन हो रही है । अभी तुम काँटों से फूल बन रहे हो । वो फूलो का बगीचा, ये कांटों का । इसको फॉरेस्ट यानी जंगल कहा जाता है । काँटे लगते रहते है । सो भी काँटों का एकदम । हर एक काँटा है । एक -दो को काँटा लगाते ही रहते है । वहाँ तो एक- दो को काँटा नहीं लगाते हैं ना । काँटा माना काम-कटारी । तो ये बुद्धि में बैठना चाहिए, खुशी भी करनी चाहिए और श्रीमत पर भी चलना चाहिए । पवित्र भी जरूर बनना है । ये काँटा लगाना छोड़ देना है । भले काँटे लगाने के लिए तुम्हारे से लड़ेंगे-झगड़ेंगे परन्तु बाबा ने समझा दिया है कि लड़ना-झगड़ना जरूर है । अभी तुम बच्चों को हिम्मत नहीं है ना । जिसमे हिम्मत मजबूत आ जाती है, वो खड़े हो जाते हैं । फिर जिसमें हिम्मत होती है, खड़ी हो जाती है तो बाबा भी समझते है ये हिम्मत वाली है, ये फिर कभी भी लटकेगी-सटकेगी नहीं, गिरेगी नहीं । तो ऐसी हिम्मत वाली को बाप शरण दे सकते हैं । ऐसे नहीं कि उस समय में हिम्मत दिखलावे जबकि शरण देवे । फिर उनको स्त्री या बाप, पति याद पड़े, बच्चियाँ याद पड़े, बच्चा याद पड़े और रोती रहे कुण्ड में । वो तो आ करके और ही नुकसान कर देवे । ऐसे तो नहीं चाहिए ना । बाबा जब देखते हैं कि कोई बहुत हिम्मत वाली है, समझते है ये मार-मार खाकर एकदम पक्की हुई है, एकदम घृणा आई है, तब देखेंगे कि हाँ, अभी इनको रखने में हर्जा नहीं है, नष्टोमोहा हुई है । तो भी, देखो, बाबा को अनुभव है, ऐसी-ऐसी बच्चियाँ आती है, अभी भी हमारे पास हैं, बस मोह के कीड़े है क्योंकि कुटुम्ब सहित आई । पति मर गया, कोई बच्चा चला गया, कोई क्या हुआ, बाकी उनमें मोह पड़ जाता है । फिर जैसे बंदरी । ऐसे भी हमारे पास है अभी तलक ।. ..वो तो हुआ शुरुआत । भट्‌ठी थी ना । तो कायदा है कि भट्‌ठी में सभी ईंट नहीं पकती हैं । सभी ईट पकती है, कहीं भट्‌ठी देखी है? जिसने ईट की भट्‌ठी देखी है, हाँथ उठाओ । जब भट्‌ठी पकती है तो सब थोड़े ही पकती है । कोई कच्ची, कोई टुकड़ा- टुकड़ा हो जाती है, क्या होती है । तो बाबा के पास भी ऐसे हो गया । कोई अच्छी तरह से नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार पक्की । अभी ईंट तो नहीं हैं ना, मनुष्य है । तो जो न पकी, अब भला कच्ची होकर मत्था खपा कर गई । अच्छा, अभी टाइम तो हो गया है । ऐसे-ऐसे नाफरमानबरदार भी आकर बाबा को मिले थे । बाबा के पास बहुत नाफरमानबरदार भी हैं । बाबा एक कहेंगे, मानेंगे नहीं, रूठ भी जाएँगे । अभी बाबा से रूठेंगे तो उनका हाल क्या होगा, ये बताओ । तकदीर से रूठे फिर तकदीर उनकी चढ़ती ही नहीं हैं । ऐसे भी बहुत होते हैं, ढेर के ढेर है, कम नहीं है । कोई लोभ में पड़ जाते है, कोई क्रोध में पड़ जाते रहते है और सभी पड़ते हैं देहअभिमान के कारण । फिर देहअभिमानी को शिवबाबा कितना भी समझावे, पर समझे नहीं । अपनी मत पर चले । तो सब समझने की बातें हैं ना । बाप बैठकर सब अच्छी तरह से समझाते हैं । श्रीमत पर तो कदम-कदम पर चलना चाहिए । अभी श्रीमत देते ही हैं ब्रह्मा द्वारा । कोई कहे मुझे प्रेरणा द्वारा देता है, हाँ मुट्‌ठी या मुटठा गपोड़े मारते हैं कि प्रेरणा से मत देते हैं । प्रेरणा से मत देता होता तो फिर इसमें प्रवेश करने की, ब्रह्मा द्वारा इतने सब बच्चे पैदा करने की कहाँ से रही! बाबा के पास ऐसे भी बहुत गपोड़े है । अच्छे-अच्छे पुराने-पुराने बच्चे और बच्चियाँ, हाँ कुछ दो बार बाबा कोई बात के ऊपर समझाते हैं तो वो फिर कहते हैं- हाँ, हम तो शिवबाबा के हैं ना, हम शिवबाबा से सीधे ही लेंगे । चलो, सीधे ही लो । सीधे ही लो तो यहाँ भी नहीं आ सकें । यहाँ आते हैं बापदादा के पास । हम बोले- जाओ, सीधा वहाँ से लेना हो तो, सीधा तुमको देंगे, जाओ । बहुत समझने की बात है ना । किसमें देहअभिमान हो जाता है तो बहुत ही बकना शुरू कर देते है । अच्छा, अभी आज इन बुडिढयों को क्या समझाएँगे! ये पक्का कराओ एकदम कि वो हमारा बाबा है सच्चा, सच्चा शिक्षक है । साधु संत महात्मा कोई भी नहीं है जो हमको ये सृष्टि की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनावे, क्योंकि बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुननी पड़े ना । हम नाटक के एक्टर्स ठहरे । अभी बेहद के नाटक का पता न पड़े तो हम एक्टर्स अंधे हुए ना । बुद्धिहीन और अंधे ठहरे । फिर बाबा सबका सद्‌गति दाता है । ये कोई भी गुरू लोग तो खुद की भी गति नहीं करते है तो दूसरे की भी नहीं कर सकते । तो ये गुरू है भक्तिमार्ग मे धक्का खिलाने वाले, समझ लो । वो है धक्का छुड़ाने वाला, वो है धक्का खिलाने वाला । अभी तो समझा ना! तो धक्का खिलाने वाला अनेक और फिर सबसे धक्के छुड़ाने वाला एक । अच्छा, चलो भई, टोली ले आओ । है कोई बच्ची? आज वो भी समझाती रहो अभी तलक । सबका मुख तो जरूर खुले । अच्छा, सबको ये मुख खोलना तो सहज है ना- हमारा बाबा बेहद का, सच्चा बाबा बेहद का, बेहद का वर्सा देने वाला । बेहद का वर्सा माना ही हमको बेहद का नर से नारायण बनाने वाला यानी मनुष्य से देवता बनाने वाला । देवताओं को बेहद का सुख है । यहाँ हद का पाई-पैसे का भी सुख मुश्किल है । वहाँ हेल्थ भी है यानी निरोगी काया भी है, धन भी है । तो बाबा ने समझाया ना- जब निरोगी काया भी है और धन है तो पीछे तो खुशी। अगर बहुत धन है । बाबा ने बहुत राजाऐ देखे हैं । देखो, उदयपुर का राजा था, उनकी ये जो टांग थी ना, आधा अंग था, पतली-पतली एकदम । तो उनको कूल्हे पर चढ़ाते थे, पालकी पर बैठाते थे । अभी राजा! अभी उन बिचारे को कितना दुःख! पीछे पैसा क्या करेंगे, क्योकि काया रोगी । सतयुग में कोई भी रोगी काया होती ही नहीं है, कभी बीमारी होती ही नहीं है । तो हो गया जैसे कि निरोगी काया । उसको कहा जाता है अंग्रेजी में हेल्थ । एवर हेल्दी उसको कहा जाता है । पीछे एवर वेल्दी । यहाँ तो आज गरीब है, कल साहूकार भी हो सकते है । सट्‌टा लगते है, धंधा मट्‌ठा हो गया । आज लाख कमाते है, कल कखपति पड़ जाते हैं, देवाला मार देते हैं, ये होता है, ये होता है । ऐसे होता है ना! बहुत झगड़ा हो जाता है बच्चों का, इनका-इनका और यहाँ इनको बच्चा न पैदा करे तो दूसरे का लेना पड़े । वहाँ ऐसे भी नहीं होता । बच्चा जरूर होगा, जो दूसरे का लेना न पड़े । तो बाबा की महिमा करो । दूसरा कोई महिमा को जानते नहीं हैं । बाबा, सच्चा बाबा, उनको अंग्रेजी में ट्रुथ कहते हैं, सत्य कहते हैं । वो सत्य बाबा है, सत्य शिक्षक है, क्योकि ये जो बेहद की दुनिया के हैं, सतयुग के, मूलवतन सूक्ष्मवतन स्थूलवतन के ये जो सृष्टि है, उसके आदि मध्य अंत का राज समझाते है । वहाँ जा करके देखो चक्कर कैसे फिरता है और फिर सबकी सद्‌गति करता है, क्योंकि जब इनका राज्य है तो सुखधाम है । बाकी इतनी आत्माएँ, जो दुःखधाम में थीं, कहाँ गई? ये दुःखधाम है ना । इतनी आत्माएँ कहाँ गई? वो शांतिधाम में गई । अभी याद पड़ा ना । शांतिधाम, हम आत्माओं का रहने का स्थान । सुखधाम, हमारे सुख जो बाबा वर्सा देते हैं । पीछे रावण से श्राप मिलता है, दुःखधाम । भला ये तो समझ सकते है ना । ये सभी जो मुख्य-मुख्य बातें हैं, इनको आज थोडा-थोडा ये भी बुद्धि में डालो, परन्तु ऐसे नहीं कि फिर एक डालो, दूसरी पिछाड़ी में भूल जावे । इसमें से भी थोड़ा मुख्य उठाओ, उसमें से भी थोडा मुख्य उठाओ । जो दो-तीन बातें समझ गई ना, फिर देखो ये नाम बहुत बाला करेंगी । उसमें भी सबसे नाम बाला तो हमारी यह क्वीन करेगी । देखो, वो कहा जाता है ना- अंधी के तो सीखे नु । अरे भाई, तुमने ये पहाका सुना है? ये पंजाबी मे क्या बताते हैं । धी को थोडा समझाओ तो जो पीछे आने वाली है वो भी समझ जाएगी । वो नहीं आती है । तो उनको शिक्षा देने से वो भी मुट्‌ठी समझ जाएगी, शिक्षा पा लेगी । इसको कहा जाता है- अन्द्धि के तो सीखे नूँ । तो सुनना पड़ेगा । अक्सर करके बुडिढयॉ बहुत है । पंजाबी में क्या कहते हैं? बड़ा । ये क्या कहती है? तो ये जो मीठे की चीजें बनाते हैं जैसे तिरकी बनाते है और काजू की, बहुत चीज की बनाते हैं ना यहाँ फिर मुख मीठा किया जाता है, कान भी मीठा किया जाता है, क्योंकि अमृत ज्ञान तो कान से सुना जाता है ना, तो फिर मुख भी मीठा कहा जाता है । आत्मा कान से अविनाशी ज्ञान धन सुनती है और फिर आत्मा मुख से खाती है तो उनको स्वाद आता है । बहुत मीठा है, किसने कहा? आत्मा ने कहा । (किसी ने कहा- नैनो ने देखा) तो आत्मा के नैनो ने देखा, ऐसे । तो अभी आत्म-अभिमानी बहुत बनना पड़ता है । फिर कभी कुब्जा नहीं बनेंगी ।. बड़े-बड़े पहलवान होते है जबकि आसन पर बैठ करके शरीर छोडकर ऐसे ही चले जाते है । जैसे देखो सर्प ने खल छोड़ी थी ना, परन्तु इसकी खराब हो गई थी । ये खल सीधी-सीधी छोड़ते । इनको थोड़ा धक-वक भी लग गया था । अच्छा, मीठे-मीठे 5000 वर्ष के बाद मिले हुए, फिर अभी इनको ज्ञान सितारे कहेंगे । वो तो वो रोशनी देते हैं, ये ज्ञान की रोशनी देते है, जिससे घोर अंधियारा... । कुछ भी नहीं जानते हैं, न बाप को जानना यानी एक्टर हो करके, बाप का बच्चा हो करके, ज्ञान सागर के बच्चे हो करके और फिर कुछ भी नहीं जानना । यहाँ तो ये साधु लोग कह देवे कि ये संसार बना ही नहीं है । यह कल्पना का संसार है । जैसे- जैसे जो कल्पना है उनको वही भासता है । ऐसे-ऐसे अनेक प्रकार की मत । बाबा तो बिल्कुल सब कुछ बैठ करके समझाते हैं कि तुम कैसे जन्म लेते हो, कौन कितने जन्म लेते हैं । ये कोई थोडे ही जानते है । ये जो कहते हैं ये संसार बना ही नहीं है, वो क्या ये सब बातें जानें! तो तुम हो गए ज्ञान सितारे मनुष्य को रोशनी देने, घोर अँधियारे से घोर सोझरा देने । वो माण्डवे के, तुम मनुष्य को अंदर का सोझरा देने वाले । ऐसे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार गुडमॉर्निग ।