01-09-1965    मधुबन आबू     रात्रि मुरली     साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन


हेलो गुड इवनिंग ये पहली सेप्टेम्बर का रात्री क्लास है

सुनकर के चले जाएँगे, सुनकर के चली जाएँगी उससे कोई फायदा नहीं होता है, क्योंकि ब्राह्मण वो जो सच्ची गीता सुनावे, समझा । और तो सभी झूठी और सच्ची की भी बाबा ने समझा दिया है कि जब एक परमपिता परमात्मा को निश्चय कर देंगे तो... । बाप एक ही होता है, बाकी सब बच्चे हैं । बच्चों का सारा विचार इसी पाइंट पर कि हम सिद्ध करके बतावे कि गीता भगवान ने गाई है, न कि मनुष्य या दैवी गुणों वाले कृष्ण ने । तो देखो, फिर सारी दुनिया के जो भी विद्वान हैं, झूठे पड़ जाएँगे । एक ही बात में । तो रोज यही खयालात, विचार-सागर-मंथन कि हम इनको यह बात पहले ही समझावे । फिर दूसरी बात बाबा समझाते हैं, क्योंकि ये बुद्धि में रखने की है जिससे बच्चों को खुशी रहेगी । पतित-पावन, जो आते हैं पावन बनाने तो सम्मुख आते हैं । सम्मुख आएँगे तो कोई के तो सम्मुख होंगे ना । सारी दुनिया के तो सम्मुख नहीं होंगे । तो देखो, बाप आते हैं, किनके सम्मुख होते हैं? जो पावन थे और पतित बने हैं, जिनको पहले पावन बनाना है । सन्मुख भी जिनको पहले पावन बनाना होना है, जो पहले पतित बने है । पहले पतित और पहले पावन, ये तो बच्चों के समझ की बात है ना । पहले पावन ये सूर्यवंशी राजधानी, ऐसे कहेंगे । श्री लक्ष्मी-नारायण नहीं, सूर्यवंशी राजधानी । तो जरूर पहले जब आएँगे तो पहले-पहले सूर्यवंशी राजधानियों को पावन बनाएँगे । ये पाइंट बहुत समझने की है । ये जो पहले पावन हैं सो आ करके पिछाड़ी में पड़ते हैं । फिर पिछाड़ी वाले पहले पावन होकर जाएँगे । तो जैसे कि सब नंबरवार पावन होना पड़ेगा ना । फिर तुम नंबरवार पावन हो रहे हो । सब एक जैसे नहीं हैं, सब पुरुषार्थी है- कोई कम, कोई जास्ती । कोई पावन बनते हैं, फिर पतित बन जाते हैं । कोई पावन बनने से पतित-पावन को फारकती दे देते हैं । तुम फारकती कभी नहीं देना, डायवोर्स नहीं देना । अब बच्चों को फारकती नहीं देनी है । भले बैठे-बैठे चलो । भगवान को घुटका आता है । चलो वो बोलता है- नहीं, हमको पैसा दो, हम धंधा करेगा, शादी करेगा, फलाना करेगा । गया, मरा । तो कोई नेम थोड़े ही है । कोई का भी नेम नहीं है । कोई भी वक्त में माया नाक से... क्योंकि चलते- चलते उनकी चलन को बाबा झट समझ जाते है कि ये बाप से कैसे चलन चलते हैं । ये बाप से वर्सा ले लेंगे, बाप के दिल पर चढ़ता जाता है या कोई न कोई कुछ न कुछ ऐसी चलन चलते हैं जो बाप समझ जाते है कि ये दिल पर न चढ़ सकेगा । तो बच्चों की चाल ऐसी चाहिए । सो भी तुम बच्चों को कहा है ना । देखो, सबको ब्राह्मण बनाते हैं । बच्ची, ये थोड़े अक्षर, कोई बहुत थोड़े ही कहते है । बाप का परिचय दिया तो भी सच्ची ब्राह्मणी । मूल बात है भगवान कौन? बस, भगवान कौन तो फिर बाकी तो सहज है ना । सत त्रेता द्वापर और कलहयुग- ये चक्कर को याद करना कोई बड़ी बात थोड़े ही है । बाप को याद करना कोई बड़ी बात थोड़े ही है । बाप को याद करना है, पवित्र बनना है, चक्कर को समझना है । बाबा ने जैसे समझाया, त्रिकालदर्शी और चक्रवर्ती राजा बनना है और बनना फिर उन्हीं को है जो पहले थे । ये तो किसको मालूम नहीं है ना, बुद्धि में किसके थोड़े ही बैठता है । पतित-पावन आएगा तो जरूर, परन्तु ये कोई थोड़े ही समझते हैं कि पतित-पावन आएँगे तो भारतवासी जो पहले पावन सूर्यवंशी थे, वही तो स्थापन करने आएँगे ना । तभी तो कहते है मैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ । सनातन देवी-देवता धर्म वाले पावन थे, वही 84 जन्म पाय करके पतित बन गए हैं । फिर बोलते हैं मैं उनका धर्म स्थापन कर रहा हूँ । तो पहले उनको पावन करना पड़े ना और वही आएँगे पावन बनने के लिए, समझने के लिए । तो ऐसी-एसी जो मुख्य पाइंट हैं, धारणा होनी है । न होगा कोई की तकदीर में तो धारणा नहीं होगी, न फिर कोई को धारणा कराय सकेंगे । यह भी तो तकदीर हुई ना । फिर ये सारे का अपना कर्म का हिसाब । जैसे स्कूल में बच्चे पढ़ते है तो भी कर्म का हिसाब हुआ ना । कोई 100 मार्क्स से पास होते हैं, कोई 50 से, कोई 40 से, कोई 10 से, कोई नापास । ये क्या कहेंगे! वो भी कब? न है इनके भाग्य में । ये चाहते तो सब कोई है, परन्तु नहीं पास हो सकते है, नहीं पढ़ सकते हैं । चाहती क्यों नहीं हैं! सभी बिचारी चाहती हैं कि हम बाबा-मम्मा जैसा होशियार हो जावे, नहीं होते हैं, क्योंकि इसमें मेहनत बहुत चाहिए । हर एक बात में मेहनत चाहिए । एक तो देहअभिमान बहुत छोड़ना पड़ता है । देहअभिमान छोड़ करके आत्मअभिमानी बनना है । देहअभिमान होने से देहों से लागत लगेगी । देहअभिमानी की देहों से लागत लगती रहेगी । इनसे लगी, इनसे लगी, इनसे लगी । देहअभिमानियों का देहअभिमानियों से भी प्यार होता है ना । हे बच्चे! अशरीरी भव यानी अपन को आत्मा निश्चय करो । अपनी देह और कोई की देह के साथ प्यार नहीं करो । प्यार सिर्फ.. .आत्मा कहती है- बाबा, आप आएँगे तो मैं आपसे ही प्यार करूँगी, और कोई से न करूँगी । अगर कोई दूसरे से करूँगी तो पद भ्रष्ट होऊँगी ऐसे समझो । तो मेहनत है ना । अभी ये अवस्था, जो और कोई को भी न याद रहे और बस पिछाड़ी में अंत मते सो गत, ऐसी मेहनत करे तब विजय माला में पहन सकते हैं । इतनी मेहनत चाहिए । तुम समझती हो विश्व का मालिक बनना, तो ये मेहनत है । देहअभिमान छोड़ करके देहीअभिमानी बनना और देही के बाप को याद करना, उसमें बड़ी मेहनत है । फिर सब तो एक जैसे नहीं होते हैं ना । कई तो बिल्कुल कोई के भी देहअभिमान में फँसते नहीं हैं भले । बस, मेरा तो एक शिवबाबा हम दूसरे में क्यों फँसे! उसको कहा जाता है ज्ञान । गीता सुनाने वाले भी कहाँ में फँसा हुआ होगा ना, तो इतनी सर्विस नहीं कर सकेगी । ऐसे हमारे पास बहुत अच्छी- अच्छी, बड़े बड़े महारथी हैं । वो सुनते रहते हैं कि बाबा किसके लिए कहते हैं । फिर जिन- जिन के लिए कहते हैं, कोई एक तो नहीं हैं ना । आज बाबा ने हमारे लिए मुरली चलाई है ।... 10-20-50 ऐसे ही कहते रहेंगे । आज बाबा ने हमारे लिए मुरली चलाई है । आज बाबा हमारे को हण्टर लगाते है । तो एक नहीं, 50-,60 होंगी । जिन- जिन की यह आदत होगी वो समझेंगे हमारे लिए मुरली चली है । अभी बच्चे सीखते तो रहते हैं थोड़ा-थोड़ा बहुत कुछ बोलना । कुछ तो कण्ठी पड़े । कोई की बहुत चिटटी कण्ठी पड़ जाती है, कोई की ठंडी कण्ठी पड़ जाती है, कोई का निशान होता है । कण्ठी पड़नी चाहिए । उसमें भी कम से कम बाप का परिचय दो और कहो कि भगवान गीता का भगवान बाप है, जो बैठ करके राजाओं का राजा यानी विश्व का मालिक बना सकते है । विश्व है ना । यह सारी विश्व, तुम उनके मालिक बनने के लिए यहाँ आते हो, क्योंकि वो बाप विश्व का मालिक... । ये विश्व, सृष्टि इसको कहा जाता है । बाप सृष्टि का मालिक नहीं बनता है । बच्चों को सृष्टि का मालिक बनाते है । तो सृष्टि का मालिक तो सिर्फ देवताएँ होते है, और तो कोई होते ही नहीं हैं, हो भी नहीं सकते हैं । दूसरे कोई भी धर्म वाले नहीं हो सकते हैं । तो वही पावन, वही पिछाड़ी में पतित । फिर वही बहुत करके आ करके लेंगे । सारी दुनिया थोड़े ही आएगी । सारी दुनिया फिर खाक, उसमें जल मरेगी । उसमें वो धागा शुद्ध हो जाएगा । हिसाब-किताब भी चुक्तू होगा, फिर पवित्र । हर एक आत्मा को एक जैसा पार्ट नहीं है । जैसे तुम हो ना, तुम सर्वशक्तिवान पार्ट वाली हो, क्योंकि 84 जन्म का पार्ट। जो पिछाड़ी में आते हैं 2-4-5 जन्म, उनमें क्या होगा! भले आत्मा पवित्र है, परन्तु उनका थोड़ा-बहुत पार्ट । बस, एक जन्म सुखी, एक जन्म दुःखी या एक जन्म में सुख भी, दुःख भी, तो पूरा हो जाता है । तो मच्छरों के माफिक । उसको हम लोग मच्छर कहते है- जो जन्म लिया, बस आया और रात को मरा । मच्छर ऐसे होते हैं ना । दीपमाला आएगी तो मच्छर होते हैं । सुबह को तुम देखेंगे ना, रात को इतने ढेर के ढेर उनके ऊपर, सुबह को तो सब मरे पड़े हैं । पीछे इतने- इतने ढेर हो जाते है । फिर उनका जन्म भी बस, जन्मा और मरा । तो उन मनुष्यों के लिए, जो पिछाड़ी में आते है, हम उनके लिए, जैसे मच्छर है, जन्मा और मरा, उनमें क्या रखा हुआ है! वो पाई-पैसे के एक्टर्स । जैसे ड्रामा होता है, देखो उसके अंदर लाख कमाने वाले भी होते हैं और 50-60, 100 रूपये पगार वाले भी होते हैं । वो ड्रामा तो है ना । ये भी ऐसे ही है । जानती हो कि बरोबर महाराजा, राजा और फिर प्रजा साहूकार गरीब देखो सब फर्क रहता है ना । तो सभी फर्क की बादशाही यहाँ स्थापन हो रही है । बापदादा अच्छी तरह से समझ जाते हैं सर्विस के खयालात से, चलन की खयालात से कि ये कैसे चल रहे हैं । पुरुषार्थ तो हर एक को अपना ऊँचा करना चाहिए ना । उसमें भी ऊँचा कौन-सा? कोशिश करके अपने बाप को याद करें तो हम पहले- पहले पावन बन गले की माला में बन जायें, पिरोए जावे । इतना बच्चों को पुरुषार्थ करना है । न तो कोई को समझा सकेंगे कि भारत ही पावन, भारत ही सबसे पतित । अब देखते हो कि भारत सबसे पतित है, सबसे कंगाल है । अंदर आपस में ये मारामारी, ये सब यहाँ भारत के... एकदम । भक्तिमार्ग ये सब तमोप्रधान क्योंकि सब कोई को उतरना जरूर है । सतोप्रधान से तमोप्रधान में सबको आना है । देखो, दुनिया को आना है ना । दुनिया पुरानी होनी है तो देवताएँ भी देखो पुराने हो जाते है, पूज्य से पुजारी, सतोप्रधान से.. । अभी तुमको मेहनत करनी पड़ती है । तुम्हारी आत्मा पवित्र कैसे बने जब तलक बाप से योग न लगाओ । जब तलक फिर सच्चा सोना बने ही नहीं । पानी में घुटका मारने से कोई सच्चा सोना थोड़े ही चाहिए । अच्छा, बाजा बजाओ । (म्युजिक बजा) ये तो अखबारें है यहाँ की । अखबारें ढेर होती है । इतनी अखबारें कोई पढ़ न सके । तो हर एक अखबारों में, उन देशों में और उनमें किस्म किस्म के ये साधु संत महात्मा रहते हैं । लाखों-करोड़ों हैं जो सब ठगते रहते है और सबको दुर्गति को पहुँचाते रहते हैं । (म्युजिक बजा) माशूक की कहानियाँ सुनी हैं बच्चियाँ? हीर-रांझा..... । तो ये आशिक-माशूक होते हैं ना । स्त्री और पुरुष तो भी आशिक-माशूक । तो ये देहअभिमान है । यहाँ सभी आत्माओं को एक माशूक का आशिक बनना है । यहाँ आत्माओं का, आशिकों का एक माशूक । तो जब ये एक हुआ तो फिर एक को याद करना पड़े । तो देखो, एक माशूक को याद करने से जो जन्म-जन्मातर के पाप है वो भस्म होना है । ये याद रख देना है । अच्छा! मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडनाइट ।