02-09-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते, आज गुरूवार सितम्बर की 2 तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-

तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है........
ओम शाति!
मीठी बच्चियाँ इस गीत के अर्थ को तो अच्छी तरह से जान ही गई होंगी । फिर भी आज बाबा एक- एक लाइन का अर्थ करके बताते हैं, क्योंकि ये भी बहुत सहज है जो इन द्वारा भी मुख खुल सकता है । कोई-कोई गीत ऐसे हैं जिनका अर्थ कुछ डीप होता है, कोई-कोई का अर्थ बिल्कुल सिम्पल होता है । तो बाबा इस गीत का अर्थ लाइन बाई लाइन.. । लाइन बाई लाइन बजाने आती है? तो फिर इन बच्चों से क्लास सहज कराया जा सकेगा और उनको खुशी होगी आपे ही बैठकर अर्थ करने की और ऐसे ही जैसे बाबा बैठकर समझाते हैं एक-एक गीत की एक-एक लाइन की तैसे ही बैठ करके एक-एक अर्थ(लाइन) की और बहुत सिम्पल और सहज है । (रिकॉर्ड बजा:- तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है.....) अभी तुम्हीं बच्चे बाप के और तुम्हीं बाप को जानते हो । कौन तुम्हीं? ब्राह्मण, क्योंकि शिववंशी तो सारी दुनिया है और अब जबकि नई रचना रची जा रही है तो सम्मुख तुम ब्राह्मण हो और अभी जानते हो कि बाबा से, शिवबाबा से या बेहद के बाबा से ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण और ब्राह्मणियां ये सारे विश्व की बादशाही ले रहे हैं, पाय रहे हैं, क्योंकि आसमान तो क्या, कहते हैं हम सारी धरती, सारा.. तो उसके बीच में सागर और सभी नदियों भी आ गई । बोलते हैं- हे बाबा! अभी फिर से हम आपसे बेहद दुनिया की बादशाही ले रहे हैं । लिया नहीं है । बोलेंगे, पुरुषार्थ... ये है अंत का गीत । जानती हो कि बरोबर हम कल्प-कल्प बाप से बेहद का स्वर्ग का वर्सा लेते हैं । वहाँ भी बस यहाँ से जैसे राजाई बदलती जाती है- सूर्यवंशी से चंद्रवशी तो सूर्यवंशियों को मालूम नहीं है । सिर्फ ये समय है जबकि तुमको सारे इस सृष्टि-चक्र की पहचान है । पीछे ये सृष्टि-चक्र की पहचान, जो अब जब त्रिकालदर्शी बन गए हो, वो प्राय: गुम हो जाती है । पीछे अनायास ऐसे ही चलते आते हैं, नीचे चलते आते हैं । बस, पीछे वो फिरती जाती है । अभी तुम जानते हो बच्चे कि बेहद का बाबा आया हुआ है, जिसको ही गीता का भगवान कहा जाता है, क्योंकि पहले-पहले भक्तिमार्ग में सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि गीता ही बनती है । फिर जरूर भागवत भी तो महाभारत भी, जब भक्ति शुरू होती है, सो भी बहुत दिन के पीछे, कोई जल्दी से नहीं हो जाती है, न ही भक्ति शुरू होगी । तो कोई निकलेंगे, आस्ते-आस्ते मंदिर बनेंगे, शास्त्र बनेंगे, तो बहुत टाइम लगता है । वो सूर्यवशी ये नहीं जानते हैं कि हम क्षत्रिय वंश के बनेंगे । ये भी अभी तुमको मालूम है कि अभी हम ब्राह्मण बने हैं, फिर फलाना बनेंगे, फिर फलाना बनेंगे... क्योंकि अभी तुमको बाप सृष्टि का सारा चक्कर समझा रहे हैं । जैसे बाप इस सृष्टि के आदि मध्य अंत को जानते हैं । उसको कहा जाता है जानी-जाननहार । इसका अंग्रेजी अक्षर बड़ा अच्छा है- नॉलेजफुल यानी उनको फुल नॉलेज है । काहे की? ये कोई कुछ नहीं जानते हैं । सिर्फ नाम रख दिया है कि गॉड फादर इज नॉलेजफुल । जैसे हम कहते है परमपिता परमात्मा जानी-जाननहार है । अभी जानी-जाननहार वो समझते है कि सभी के दिलों को जानने वाला है । अभी ऐसे नहीं है कि वो सभी के दिलों को जानने वाला है । सृष्टि चक्र के आदि मध्य अंत को जानने वाला है । सभी वेदों, ग्रंथों, शास्त्रों इन सबको जानने वाला है । तो फर्क पड़ जाता है ना । तो अभी बच्चे ये लाइन का अर्थ समझ गए कि हम बेहद के बाबा से श्रीमत पर विश्व की बादशाही लेते हैं । बाबा कहते हैं, ये ज्ञान देते हैं कि मामेकम यानी मुझ अपने परमपिता परमात्मा को याद करो, जिसको तुम भक्तिमार्ग में आधाकल्प याद करते आए हो, क्योंकि ज्ञानमार्ग में सब याद नहीं किया जाता है । वहाँ ज्ञान मार्ग नहीं है, ज्ञान मिलता नहीं है । ये जो अभी इस समय में तुमको ज्ञान मिलता है कि भक्ति मुर्दाबाद होती है तो इनको छोड़ना पड़े और ज्ञान माना दिन, जिन्दाबाद होता है तो फिर उनको याद करना पड़े । दिन क्या है? सतयुग । रात क्या है? कलियुग । अच्छा, अभी हमको कलियुग के पिछाडी टॉगे और मुख सतयुग के पिछाडी लगाना पड़ता है ये जानते हैं कि हम आएँगे फिर भी यहीं, परन्तु पियर घर से होकर फिर ससुर घर आएँगे । यहाँ पिया आते हैं, बाबा आते हैं श्रृंगार कराने के लिए । कोई पियर घर जाकर कोई श्रृंगार नहीं करना है । पिऊ आते है, पिया आते हैं, शिवबाबा आते हैं । आ करके यहाँ तुमको श्रृंगार कराते हैं, क्योंकि शृंगार बिगड़ा हुआ है । पतित बना तो शृंगार सब बिगड़ा ना । ये जो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिसा परमोधर्म- ये महिमा है ना, ये शृंगार हैं, ये गुण हैं । वो श्रृंगार बिगड़ा हुआ है । अभी तो पतित हैं, नीच है, पापी-कपटी, मैं निर्गुण हारे में कोउ गुण नाहीं । अभी तुम ऐसे नहीं कहते हो, क्योंकि अभी तुम बदल रहे हो, मनुष्य से देवता बन रहे हो, बेगुणों से गुणवान बन रहे हो । तो है पाँच विकारों का दान । तो तुम बच्चे जानते हो कि एक तो देह का अभिमान, जो सबसे कड़ा है, ये छोड़ना । बाबा ने रात को भी समझाया था ना ये देह का अभिमान बड़ा खराब है एकदम । ये घड़ी-घड़ी देहों में ममत्व पड़ जाता है । बाबा कहे कि बच्चे, देह सहित अपनी देह के ममत्व छोड़ो तो बाकी आत्मा बन जाओ तो सारी दुनिया मर जावे, परन्तु अपनी देह का ममत्व नहीं छूटता है तो फिर और देहों से ममत्व लग जाता है । बाबा ने कहा ना कि बच्चे ये जो शरीर का नाम-रूप है इनसे हट जाओ । इनमें फॅसो मत । एक में फँसो । इसमें बड़ी मंजिल है, क्योंकि बहुत बच्चे जानते हैं कि कोई भी के प्यार में, कोई बच्चे के प्यार में, कोई न कोई में देहअभिमानी उनमें हट जाते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं- हे बाबा । अभी किसने प्रतिज्ञा की? आत्मा ने प्रतिज्ञा की । बाबा ये डिटेल में कहते हैं । इसकी समझाने की कोई इतनी दरकार नहीं है । ये तो हुआ जो सेंटर चलाती है, तीखी है वो । बाकी जो पहली है उनके लिए पहले थोडा कि हम बेहद के बाबा से फिर से ये भारत में स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं । बाबा बिगर बेहद की बादशाही कोई नहीं दे सकते हैं । उस बादशाही को कोई भी हमारे से छीन नहीं सकते हैं, क्योंकि छीनने वाले कोई हैं नहीं । देखो, एक-दो से छीनते हैं ना । जैसे बादशाही मुस्‌लमान छीन गए, फिर अंग्रेज छीन गए । वहाँ कोई है नहीं तो छीनेंगे कैसे? तो तुम्हारी वहाँ... । अभी पुरुषार्थ कर रहे हो । ऐसे कहो कि हम पुरुषार्थ कर रहे हैं । फिर जितना जो जैसे पुरुषार्थ करेगा, श्रीमत पर चलेंगे । श्रीमत पर चलना है । श्रीमत पर न चलने से याद रख देना कि कभी भी कोई ऊँचा पद पा ही नहीं सकेंगे । अभी श्रीमत जरूर साकार द्वारा लेनी पड़े । समझा ना । श्रीमत कोई ऐसे बैठे बैठे प्रेरणा से कभी नहीं मिलती है । ये घमण्ड आ जाता है कई बच्चों को कि हम शिवबाबा की प्रेरणा से चलते हैं । नहीं । अगर शिवबाबा की प्रेरणा से, तो फिर भक्ति में भी तो ये भगवान भी आकर प्रेरणा क्यों नहीं देते थे कि मनमनाभव, मद्याजीभव? नहीं । यहीं आ करके बाबा को इनसे कहना पड़ता है कि साकार बिगर हम कैसे तुमको मत दे सकते हैं? बहुत ऐसे हैं जो कभी बाबा से रूठते हैं तो बोलते हैं हम तो शिवबाबा के हैं ना, हम तो शिवबाबा से राय लेंगे, परन्तु कुछ भी नहीं मिलेगी । खोखले के खोखले रह जाएँगे फिर । मत जरूर बाबा देगा । मुरली बजाएगा तो इनसे बजाएगा ना । नहीं तो प्रेरणा से क्या कभी मुरली बजती है? नहीं । यहाँ से बैठ करके समझाते हैं और बच्चे अभी सुन-सुनकर समझ गए हैं कि बरोबर शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको ब्राह्मण बनाय... । पहले तो ब्रहमा बाबा के बच्चे बनते हैं, फिर उनको समझ मिलती है कि हमको डाडे से वर्सा मिल रहा है । ये डाडा ही हमको आ करके ब्रह्मा द्वारा अपना बनाते है और फिर ब्रह्मा द्वारा ये बैठ करके हमको शिक्षा देते हैं । हाँ, दूसरी लाइन करो । (रिकॉर्ड बजा- मिटा ना सकेगी जिसे अब खिजा भी, जला ना सकेंगी जिसे बिजलियों भी, मोहब्बत का वो आशियाँ पा लिया है.........) बाप से मोहब्बत रखने से ये सभी आशाएँ हमारी अब पूरी हो रही हैं । अब शिवबाबा से अच्छी मोहब्बत चाहिए । ये जो आत्मा की है उसकी मोहब्बत.. । बाबा ने कहा ना अभी आशिक बनीं सब आत्माएँ तुम्हारी । तुम बच्चे आशिक बने बाप के, क्योंकि छोटेपन में भी बच्चे आशिक बनते हैं बाप के, क्योंकि बाप को ही याद करेंगे तभी तो वर्सा मिलेगा । तो जैसे कि बच्चे भी लौकिक बाप को याद करते है तो गोया जैसे आशिक बने । बाबा से हमको वर्सा मिलना है । बच्चा पैदा होगा, जितना बड़ा होता जाएगा, बच्चे को समझ में आता जाएगा । बच्ची को नहीं, बच्चे को । बाबा भी यही कहते हैं ना कि हमारे तुम सब बच्चे हो । भले किसी भी वेश में हो, स्त्री के, कन्या के किसमें भी, परन्तु तुम आत्माएं हमारे बच्चे हो । तो तुम आत्माएं बाप से वर्सा ले रहे हो । तो जरूर अपन को आत्मा समझना पड़े और परमपिता परमात्मा को याद करना पड़े । तो दोनों का देहभान छूट जावे- स्त्रीपने का भी तो पुरुषपने का भी यानी देह का अभिमान छूट जाना चाहिए । जब आशिक बनेंगे तो जानते हो कि तुम्हारी सब आशाएँ पूर्ण हो जानी हैं । जरूर आशिक और माशूक । जरूर आशिक माशूक को याद करते हैं कोई आशा रख करके । अब बाबा ने समझाया ना- बच्चा भी आशिक बनता है बाप के पास कि बाप से हमको वर्सा मिलना है । बाप तो याद ही रहता है और प्रापर्टी भी याद रहती है बच्चों को । तो अभी ये भी ऐसे ही है । अभी वो है बच्चों के लिए आशिक बनने के बाप के हद की प्रापर्टी और अब आत्माओं को आशिक बनना है बाप का, जो सबका माशूक है । बच्चे हैं ना । देखो, बाबा कितना सहज करके समझाते हैं । जैसे लौकिक तैसे परलौकिक । परलौकिक का बेहद का वर्सा, सो भी जानते हो कि बाबा से हम विश्व की बादशाही लेते हैं । उसमें सब कुछ आ जाता है । पार्टीशन कोई नहीं होती है । हिस्सा कोई का नहीं होता है । न वहाँ कोई आग लगती है । सतयुग-त्रेता में कभी भी कोई उपद्रव नहीं होते हैं । जब वाममार्ग में जाते हैं तब बड़े जोर से उपद्रव आते हैं, फट से एकदम । तो कोई भी उपद्रव नहीं होते हैं । तुम्हारे पास दुःख का नाम-निशान नहीं । अच्छा, दुःख का नाम-निशान नहीं तो जरूर ऐसी दुनिया के मालिक बनना चाहिए । देखो, यह दुःख की दुनिया है । तो हरेक पुरुषार्थ करते हैं ऊच पद पाने के लिए । इसमें राजी न हो जाना है कि हम स्वर्ग में जाते है, परन्तु स्वर्ग में भी जैसे मम्मा-बाबा उनको फॉलो करना चाहिए । अब जबकि मम्मा-बाबा हैं और वो बरोबर मालिक बनते हैं तो हम क्यों नहीं गद्‌दी के वारिस बनें! इतना पुरुषार्थ करना चाहिए । उसको कहा जाता है फॉलो मदर एण्ड फादर, क्योंकि ये जो गाँव है भारत, इसको मदर एण्ड फादर कण्ट्री कहा जाता है । बाहर वाले लोग, क्रिश्चियन लोग, जापान लोग फादर कण्ट्री कहेंगे, क्योंकि वो मुक्ति लेने वाले हैं ना । नहीं तो कहते हैं भारत माता, परन्तु पिता भी तो चाहिए ना । भारत माता कोई धरती को तो नहीं कहा जाता है ना । अभी तुम समझे ना- त्वमेव माताश्च पिता । तो दोनों माता-पिता चाहिए । ये जो आजकल वन्दे मातरम् कहते हैं, तो भारतमाता को कह देते हैं । भारतमाता को वन्दे मारतम क्यों कहते हैं? क्योंकि भारत अविनाशी खण्ड है । इसमें परमपिता परमात्मा का जन्म होता है । तो ये धरनी ऊँच हुई ना । जहाँ भी कोई अवतार लेते हैं तो उसको तीर्थ समझते है । तो ये भी तीर्थ है । इस भारत को की सभी को वंदना करनी चाहिए, क्योंकि शिवबाबा का यहाँ अवतरण होता है, परन्तु ये ज्ञान तो पूरा अच्छी तरह से कोई में है नहीं । तो ये लोग वन्दे मातरम् भारत माता को कह देते हैं । उनको वन्दे मातरम् नहीं कह सकेंगे, क्योंकि वन्दना की जाती है पवित्रता को । अपवित्र वन्दना करते हैं पवित्रों को । तो ऐसे नहीं समझना कि वो लोग वन्दे मातरम् कोई माताओं के लिए कहते हैं । ये बाबा कहते हैं फिर वन्दे मातरम् क्योंकि ये पवित्र बन रही है । तो पिछाडी में तुम सभी पवित्र बन जाएँगी ना तो फिर वन्दे मातरम् शिवंशक्ति भारत माता, जिन्होंने ये स्वर्ग बनाया है । धरती ने नहीं बनाया । धरती पर बाप आया, इसलिए ये धरती सबसे ऊँच है । हरेक को अपनी धरनी अच्छी लगती है ना । कहीं भी मरते हैं तो लाश को वहाँ जाकर दफन करते हैं कि अपनी जन्मभूमि पर इनका कब्रिस्तान हो । तो अभी वास्तव में सबसे ऊँच ते ऊँच भूमि ये है, क्योंकि बाप आ करके सबको पावन बनाते है ।.. .परन्तु ये ज्ञान तो कोई में है नहीं । नहीं तो ये पतितों को पावन करने वाला बाप है । वो आ करके सबको पावन करते हैं । कोई वो धरनी कुछ नहीं कर सकती है या वो कुछ नहीं करते है, जहाँ धरनी पर ये मेसेंजर आते हैं धर्म स्थापना करने के लिए । नहीं । वो लोग एक-एक अपनी उस उस धरनी को पूजते हैं, परन्तु उन सबको पावन बनाने वाला फिर यही । तो बाप बैठकर महिमा करते हैं । इस भारत की महिमा बहुत भारी है, अविनाशी खण्ड है । अविनाशी जो बाप है उनका अवतरण यही होता है । यहाँ आकर सर्व की सद्‌गति करते हैं, इसलिए भारत भी अविनाशी । ये कभी भी विनाश नहीं होता है, क्योंकि यह बाप की जैसे कि धरनी है जहाँ आते हैं, अवतरण । जैसे कि ईश्वर भारत में अवतार लेते हैं, आते हैं । आते हैं तो शरीर तो नहीं धारण करते हैं उनको अपना तो नहीं है ना । तो ये शरीर में आकर प्रवेश करते हैं जिसको तुम लोग नन्दीगण भी कहते हो । ब्राह्मण के तन में । तो ब्राह्मण कोई जटा नहीं रखाते है । वास्तव में सच्ची-सच्ची जटाएँ तो तुमको हैं । राजऋषि तो तुम हो । देखो, तुमको सब जटाऐ हैं। तुम अभी जानते हो कि हम राजऋषि हैं । ऋषि हमेशा पवित्र होते हैं । अब ये ऋषि जब छोड़ जाते हैं ना, तो चीज है नहीं, तो किससे पतित बनें? तुम हो राजऋषि । तुमको घर में बैठना है, छोड़ना नहीं है । तो जरूर धीरे- धीरे, धीरे- धीरे पवित्र बनेंगे । वो फट बनते हैं, क्योंकि घरबार छोड़ करके जंगल में रहते हैं । तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहकर पाँच विकारों को छोडना है, पवित्र बनना है । तो फर्क हो गया ना । वो हुए घरबार छोड़ने वाले । तुम घर में रहते हुए तुम जानते हो कि अभी इस पुरानी दुनिया से हम नई दुनिया का राज्य ले रहे हैं । इसलिए पुरानी दुनिया में ही, इस संगम पर हमको पवित्र बनना है, तब नई दुनिया में जाएँगे. । तो बाबा बच्चों को समझाते हैं ना कि मीठे बच्चे, ये तुम्हारी पढाई कोई इस मृत्युलोक के लिए नहीं है, इस जन्म के लिए नहीं है । कभी भी कोई टीचर अपने शागिर्दो को, स्टूडेण्टस को ऐसे नहीं कहेंगे कि ये तुम्हारी पढाई कोई इस समय के लिए नहीं है, भविष्य के लिए है । तुम भविष्य में देवता बनेंगे । ऐसे सन्यासी कभी किसको थोड़े ही कहते हैं । वो ऐसे कहते ही नहीं हैं कि दूसरे जन्म के लिए । तो उनको क्या मिलेगा? दूसरे जन्म में यही फिर सन्यास ही मिलेगा और क्या मिलेगा! तुम जानते हो कि दूसरे जन्म में हम बदल करके पवित्र देवता बन जाएँगे और नई दुनिया पर आएगे । ये तो नहीं किसको कह सकते हैं कि तुम नई दुनिया पर आएँगे, देवता बनकर आएँगे । ये तो समझ की बात है कि भले सन्यास करते हैं, फिर भी इसी मृत्युलोक पर सन्यास धर्म में भर्ती होंगे । तुम फिर यहाँ भर्ती नहीं होंगे । तुम नई दुनियां में भर्ती होंगे, पुरानी दुनिया में नहीं । तो ये है ही नई दुनिया की बादशाही के लिए । तुम बच्चे देखो, पुरुषार्थ करते हो । कितना अच्छा पुरुषार्थ करना चाहिए! कितना बाप को याद करना चाहिए! (रिकॉर्ड बजा- जमाने के गम प्यार में ढल गए हैं......) देखो, अभी तुम बच्चे जान गए कि आधा कल्प हमने दुःख सहन किया । बाबा आए हैं तो वो आधा कल्प के जो गम हैं उनका ज्ञान मिला कि ड्रामा अनुसार गम सहन करने के हैं । अभी वो गम बुद्धि से निकल जाते हैं । अब खुशी का पारा चढ़ जाता है । जितना हमने गम देखा, थोड़ा- थोड़ा । सदैव गम नहीं देखा । तुम गम बहुत नीचे जब तमो में आते हो, रजो में भी इतना नहीं, क्योंकि फिर भी 9 कैरेट तो हैं ना । जब तमो में आते हो तो बाकी जाकर 2 कैरेट, 3 कैरेट सोना बनता है । जब तमोप्रधान बनते हो, तुम्हारे. लिए कहते हैं, तुम जो सारे गुणों में चक्कर लगाते हो उनके लिए है । अभी तुम जान गए कि आधाकल्प के जमाने के दुःख अभी उतर जाते हैं । तुमको खुशी होती है- अभी सुख के दिन आए । बाबा कहते हैं ना- ताली बजाओ, खग्गियाँ मारो कि हमारे अभी दुःख के दिन जा रहे हैं । अभी सुख के दिन आ रहे हैं । अभी सुखधाम के लिए हमको क्या वर्सा लेना है? ये तो ठीक है, यथा राजा-रानी तथा प्रजा । सभी जैसे मालिक बनते हैं । राजा का राज्य नहीं छीनता है तो प्रजा को भी सुख नहीं छीनता है, परन्तु पद के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए । हरेक मनुष्य पद के लिए पुरुषार्थ करते हैं । देखो, पद के लिए पढ़ते हैं । कोई मैट्रिक पढ़ते हैं, कोई फलाना पढ़ते हैं, कोई क्या पढ़ते हैं । देखो, कितना ऊँचा पढ़ जाते हैं! क्यों? पढते किसलिए हैं? एम-ऑब्जेक्ट है सुख के लिए । ये भी तुमको मालूम है कि हम विश्व के मालिक बनते हैं । सन्यासियों के पास जो रहते हैं वो तो बिचारों को ये खुशी नहीं रहती है । ये ज्ञान भी नहीं रहता है । वो जो दुःख के हैं, वो सुख में वो गम मिट जावे, ऐसे तो हो भी नहीं सकता है । ये जान गई हो कि अभी हम बाप से बेहद का वर्सा पुरुषार्थ करके पूरा लेते हैं और कहते भी हैं, चिट्‌ठियों में भी लिखते हैं- बाबा, हम आपसे पूरा वर्सा ले लेंगे । पूरे वर्से का अर्थ ही है कि हम सूर्यवंशी राजाई पर अपना पैर धरेंगे । जान गए हैं कि जब दीया बुझने लगता है तो देखो दुःख ही दुःख । दीये उझते उड़ाते रहते हैं, उड़ाते रहते हैं, तह कि बुझ जाता है । अभी ये तुमको ज्ञान है । दुनिया को कोई ये ज्ञान नहीं है । वो तो जैसे हूबहू जनावर से भी बदतर हैं । जैसे तुम बच्चे थे जनावरों से भी बदतर । बाबा तो सब मनुष्यों के लिए कहते हैं ना, उसमें ये भी आ गया ना, क्योंकि यहाँ भगवानुवाच है । ये नहीं कहते हैं, ये कहते हैं कि अभी तुम्हारा जो दुःख है वो सभी मिट जाने वाला है । तो तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए कि अभी हम सारे ड्रामा को जान गए कि दुःख के दिन गए, अभी सुख के दिन आ रहे हैं । सिर्फ हमारा अभी काम है पुरुषार्थ करके बाप से पूरा वर्सा लेवें और हम समझ सकते हैं कि जितना अभी वर्सा लेंगे इतना हम ऐसे ही समझेंगे कि हम कल्प-कल्प यही वर्सा पाने के अधिकारी बनते हैं । अभी तो रेस है । अभी रेस करते हैं । मालूम पड़ता है । समझा ना । ये रेस बहुत है ना । देखो, तुम कितने हो जाएँगे! लाखों हो जाएँगे । तो हरेक को अपना- अपना मालूम पड़ेगा, क्योंकि सर्विस भी करेंगे, औरों को सुख भी देंगे । तो समझते जाएँगे कि हम बहुतों को रास्ता बताते हैं, इसलिए मेरा पुण्य जास्ती होगा । इसलिए बाबा कहते हैं कि पुण्यात्माएँ एकदम नंबर वन में बनना है सूर्यवंशियों में । वो तो समझते हो कि सूर्यवंशी 16 कला पुण्य आत्माएँ बने, फिर चद्रवंशी पोल हो गए, 2 कलाएँ कम हो गई थीं, इसलिए पीछे में आए । तो कोशिश करके एक तो बाप से योग और दूसरे, सबकी लाठी । लाठी बनाने के लिए बाबा बहुत रास्ता बताते हैं वो छपाने के लिए । घर में छपाय दो । बाबा ये बना भी रहे है । सब कुछ बाबा सप्लाई तो करेंगे ना । नई चीजें बना रहे हैं । तुम सब अपने घर में लगाना है कि बाप से परिचय है । प्रजापिता ब्रह्मा से परिचय है । बाप हो गया एक । एक को सिद्ध करना है कि सबका बाप है । हम बच्चे सब ब्रदर्स है । ब्रदरहुड है ना । तो हम सब भाई हैं । हम ब्रदर हैं यानी सभी आत्माएँ भाई- भाई हैं और फिर बहन और भाई कब बनते हैं? जब आदम और बीबी यानी प्रजापिता ब्रह्मा और तब । सो भी कब? जब भगवान नई दुनिया स्थापन, पतितों को पावन करने आते हैं । तो देखो, पतितों को पावन करने आए हैं तो ब्राह्मण हुए हैं ब्रह्मा द्वारा । तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही रचते हैं तब तो तुम ब्राह्मण हुए ना । ब्राह्मण से फिर तुम देवता बनेंगे, क्योंकि वो भी तो समझाया गया है ना- ये शूद्र, ये चोटी ब्राह्मण, पीछे देवता । तो देखो, ये उतरती कला पूरी हो गई । अभी चढ़ती कला, बिल्कुल चढ़ती कला ब्राह्मण, क्योंकि ब्राह्मण-ब्रहमणियाँ ही बैठकर भारत को देवता बनाते है । ये शूद्र नहीं बनाएँगे, ये संगमयुगी । तो इनका और चोटी को कहेंगे संगम और पूरा । देखो, बाजोली खेलेंगी तो ये आ करके यही से लगेंगे । तो कितना अच्छी तरह से बाप समझाते है बच्चों को । धारणा चाहिए ना और खुशी भी चाहिए । बच्चों को अतीन्द्रिय सुख । तो अतीन्द्रिय सुख की भी बात हो गई पिछाड़ी में जबकि तुम्हारी फाइनल हो जाती है कि बरोबर अभी हम अपनी राजाई अभी ये विनाश होना बाकी है । बस, विनाश हुआ तो समझेंगे हमारी बादशाही स्थापन हो रही है। फिर ज्ञान भी बंद हो जाएगा । फिर तुम्हारा क्लास पूरा होगा, क्योंकि फिर तुम शरीर छोड़ करके नई दुनिया में आएँगे, अमरलोक में आएँगे । ये मृत्युलोक है । ये पतित को मृत्युलोक कहा जाता है और उस पावन को अमरलोक कहा जाता है । चलो बच्ची, तुम दीदी ये अर्थ करते रहना । बाबा थोड़ा विस्तार में जाते है । तुम थोड़ा अर्थ में जिसमें हर एक को गीत सुनाने में 5 7 मिनट, बस । तो उनका मुख खुले । (रिकॉर्ड बजा- जहाँ से मोहब्बत की राहे मिली है, वहीं से मेरी गर्दिश थम गई है । न बिछड़ेंगे हम, कारवाँ पा लिया है. .. ...... ) अभी किसकी तो 20 वर्ष से मोहब्बत मिली है, किसकी 10 वर्ष से, किसकी 5 वर्ष से । आगे चलकर किसकी बहुत मिलती रहेंगी । इसमें ऐसा नहीं है कि जो पुरानी मोहब्बत वाले है, कुछ ऊँचा पद पाएगे और जो नए मोहब्बत वाले हैं, कम पद पाएँगे । ये भी नहीं । ये सारा पुरुषार्थ के ऊपर है । देखा जा रहा है कि जो नए- नए आते हैं वो पुराने से अच्छे तीखे जा रहे है, बहुत तीखे । तो जो नए आएँगे वो और तीखे । क्यों? समय देखेंगे कि थोड़ा नाजुक बचा है, पुरुषार्थ खूब करेंगे, ऐसे जैसे स्कूल के बच्चे कोई डल होते है ना, पिछाडी में बड़ी मेहनत करते है । वो मेहनत करते-करते जो उनको उम्मीद थी कि हम शायद नापास हो जाएँगे, वो अच्छे मार्क्स से पास हो जाते हैं । तुमने देखा होगा जब इम्तहान के दिन होते हैं तो बगीचों मे. यहाँ-वहाँ बड़ा पढ़ते है अच्छी तरह से । यहाँ भी स्कूल में कभी उनको कहो बच्ची को छुट्‌टी. ... नहीं, अभी इम्तहान का दिन है, अभी इनको खूब पढ़ना है । अभी हम छुट्‌टी नहीं देंगे, क्योकि उनको पुरुषार्थ करना है । तो जो पीछे आते जाएँगे वो जास्ती पुरुषार्थ और उनको प्वाइंट्स भी सहज मिलती जाएँगी । झट देखो सहज कितनी प्वाइंट मिलती रहती है । हम तो समझते हैं अभी इनको बात सुनाओ, अरे बाप का परिचय कितना सहज देते है । अभी बताओ कि बाप कौन है? फादर कौन है- कृष्ण या वो? वहाँ तो लिखा हुआ है- रचता है, ये रचना है । अरे, भगवान रचता को कहेंगे । रचना को थोड़े ही कोई भगवान कहते हैं । सतयुग के बाद 2 कला कम त्रेता, त्रेता के बाद द्वापर, तो ये जरूर उतरती कला हुई ना । तो फिर ये सब चढ़ती कला कौन करेगा? चढ़ती कला करने वाला फिर बाप, जो फिर. सद्‌गति देंगे, स्वर्ग का मालिक बनाएँगे या गति देंगे । तो सद्‌गति और गति । तो फिर गति को भी सद्‌गति कहेंगे । सर्व का सद्‌गति दाता राम । क्यों कहते हैं सर्व का गति-सद्‌गति? क्योंकि सद्‌गति में आना ही है वाया गति । पहले घर जाएँगे जरूर । पीछे, पहले आएँगे, पीछे आएँगे, कभी भी आएँगे, तो पहले है वो सतोप्रधान दुख से मुक्त सुख, पीछे दुःख में आना है । तो बच्चों को ये समझानी देनी पड़े । समझते हो?.. तुमने थोडा- थोडा जास्ती एड कर दिया, परन्तु नहीं, इनको बिल्कुल सिम्पल रीति से तो इनको खुशी चढ़ेगी कि बाबा अभी आ करके हमको फिर से विश्व की बादशाही देते हैं । भारत था ना, कोई दूसरा नहीं था । अभी देखो कितनी आत्माएँ है, कितने मनुष्य हैं, भारत में कितना झगड़ा है । फिर बाबा आकर हमको. । देखो, भारत अकेला था, आसमान-जमीन सब भारत की थी । अभी देखो, आपस में भारत ही पानी-वानी के लिए लड़ते रहते हैं । तुमको तो बहुत हल्का.. । जब ये देह का भान छूटेगा तो तुम हल्के हो जाएँगे ना । बाबा कहते हैं ना- तुम कभी भी घूमने जाओ देहअभिमान छोड़ करके, अपने को देही समझ बाप की याद मे रहकर तुम चलो ना, कभी नहीं थकेंगे, हल्के हो जाएँगे । तुम्हारी विख जाती रहेगी बाबा की याद में । खुशी में जाते रहेंगे । कितना भी पैदल चले जाओ, तुम थकेंगे नहीं । ये भी बाबा युक्तियाँ बताते हैं । हल्के हो जाएँगे । शरीर का भान छूट जाएगा । हवा जैसे उड़ते रहेंगे तकड्रे- तकड्रे । बुडिढयॉ होगी तो भी ऐसे हो जाएगी । ज्ञान तो कोई के पास न रहा ना । समझा बच्ची! गाया जाता है जबकि ज्ञान अंजन सदगुरू दिया । अभी सदगुरू तो वहाँ का कहेंगे ना । उसको सच्चा गुरू, पहले सच्चा बाबा, पीछे सच्चा टीचर, पीछे गुरू । तो बाबा के बनते हो, पढ़ते हो, साथ में ले जाएगा । उसको कहते हैं सच्चा बाबा । तो तुम बच्चों को पहले बाबा का परिचय देना पड़े ना । वो हमारा बाबा भी है, शिक्षक भी है और सदगुरू भी है । उनका फिर कोई बाप टीचर सदगुरू नहीं हैं, .....ऊपर मे कोई चीज है क्या? अभी सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है । जिसमें जो कोई भी अवगुण है उसके लिए बाप इशारे करते रहते हैं । एक तो नहीं है ना । बाबा कहते हैं अनेक हैं । ब्राह्मणियाँ भी बहुत हैं । तो जो जिज्ञासु है वो भी हैं । कोई सम्पूर्ण तो बना नहीं है । बनते जा रहे है । तो बाप फिर सबके लिए... । जबान से यह अक्षर नहीं निकलेगा हमको इसमे मोह बहुत है । वाह! तुम बोलते थे- मैं और संग बुद्धि का योग, मोह माना बुद्धि का योग, किसमें जाता है? देह में, छोड तुम जो विदेही हो, विचित्र हो, उनमें लगाएंगे अपन को आत्मा समझ करके ।. देह का अभिमान होने से फिर देहधारियों की तरफ बुद्धि जाती है, वो तोड़नी होती है । तभी बाबा कहते है गृहस्थ व्यवहार में रहते हो, सभी देखते हुए, यह तो देखते हैं ना, देखते ही रहेंगे जब तलक विनाश हो, बुद्धि का योग वही यात्रा पर लगाते जाओ । वो यात्रा का चार्ट रखो कि हम एवरेज हफ्ते में.. । स्कूल का रजिस्टर हफ्ते का होता है ना, हम हफ्ते में सारे दिन में यथार्थ रीति से खाने पर बैठे और बाबा की याद में बैठा, कितना देरी बैठा, कितना देरी फिर चलायमान हो गया । ठगी नहीं चाहिए । फिर याद किया, कितना देरी बैठा, कितना फिर चलायमान... । झट-झट घड़ी- घड़ी याद करते-करते यह गई कहीं न कहीं बुद्धि, याद करते-करते ये कही गई इनकी बुद्धि! बाबा अपना अनुभव बताते है तुम बच्चों को, क्योंकि बाबा सब अनुभव करते है, क्योंकि बाबा के पास सब तूफान आते हैं, क्योंकि फर्स्ट में हैं । बहुत सपने, बहुत तूफान, बहुत- बहुत । तो बाबा अनुभवी हो जाते हैं । जब कोई आकर पूंछते हैं, बोलते हैं- हाँ, ये तो जरूर होगा । ये तो दिन-प्रतिदिन जितना रूस्तम बनेगा इतना तुमको तूफान जास्ती आएगा । रूस्तम से रूस्तम होकर मिलेगी अंत तक । लड़ाई अंत तक होती है ना । आत्मा कहेगी- मैंने आज स्नान किया है, किसको स्नान कराया है । देखो, प्रश्न अलग हो जाता है । मैं आत्मा ने शरीर को स्नान कराया है । मैं कभी-कभी, हँसी से बाबा को कहता हूँ- आप आते हो, कभी मेरी खातिरी करते हो । आप ही मेरे को स्नान कराते हो, आप ही बैठकर मुझे खिलाते हो । तो किसलिए ये कहता हूँ? मुझे बाप याद पड़े । युक्तियाँ रचता रहता हूँ । जब मेरी आत्मा हमको स्नान कराती है, बाबा भी आकर बैठते हैं तो फिर बाबा भी क्यों नहीं मुझे स्नान कराते है! अपने रथ को क्यों नहीं शृंगारते हैं! तो मैं अपने से ही अपने में कहता हूँ । ..तो भी ऐसे ही जैसे कि मेरी आत्मा क्यों, बाबा क्या आप नहीं चल सकते हो हमारे शरीर में बैठ करके? जैसे कि सूक्ष्मवतन को याद करते हैं, वहाँ भोग लगा रहे हैं, ये लगा रहे हैं, वो लगा रहे हैं । ऐसे तो जाते हैं ना । इस समय में भले तुम भूल करके सुक्ष्मवतन को याद करो, कोई हर्जा नहीं है । टाइम तो बहुत है ना परन्तु जब बाप की याद में बैठते हो तो उसके लिए फिर पुरुषार्थ । यहाँ अभी तुम सुक्ष्मवतन को याद किया तो कोई हर्जा नहीं है, क्योंकि वहाँ भी जब हम फरिश्ते बनेंगे तो पहले वहीं जाएँगे । वहीं के तो बनते हैं, क्योंकि वहाँ रहने की जगह अलग है ना, अव्यक्त मम्मा की अलग, बाबा की अलग, व्यक्त उस मम्मा की अलग । तो जब ये जाएँगे निमंत्रण देने तब कोई मम्मा नहीं देखेंगे । जब भोग लगाने जाएँगे तो फिर बाबा बुलाएँगे । मैंने इनसे पूंछा कि गई? कौन बैठे थे? बोला- अव्यक्त बाबा । यानी ये व्यक्त बाबा । फिर अव्यक्त मम्मा थी? हाँ, वो भी थी । पूंछा, व्यक्त मम्मा थी? बोला, नहीं थी । तो तुम बच्चों को फिर समझा देते हैं हर एक की जगह अपनी-अपनी होती है और फिर बाबा साक्षात्कार कराते जाते हैं । वहाँ जाएँगे तो फिर साक्षात्कार । हैं तो सभी साक्षात्कार ना । फिर कभी कोई साक्षात्कार में दोनों को देख लेंगे, कभी बाबा को देखेंगे । पीछे उनकी चाह होगी मम्मा को देखें तो मम्मा का साक्षात्कार होगा । समझा ना । ऐसे होता है । फिर वहाँ कहेंगे- अच्छा, व्यक्त मम्मा से भी तो देखें । तो चलो उनको होगा तो बोलेंगे अच्छा । बोलेंगे, अच्छा पीछे आएगी ना, पीछे आएगी तो फिर बताएगी । ऐसे भी कह देते । तो ये है सब साक्षात्कार । (रिकॉर्ड- ओम नम शिवाय.......) विषय सागर में गोते खाते हैं । कोई भी और नहीं है जो इनको विषय सागर से निकाल क्षीर सागर में ले जावे । तो इसलिए गायन है, महिमा है । सतगुरूवार । इसको सत्‌गुरू सोमनाथवार भी कह सकते हैं, क्योंकि पढ़ाई पढ़ते हो ना । शिव का दिन है सोमवार । पढ़ाई का दिन है फिर ये । बैठते है स्कूल में । बच्चे बनते हैं सोमवार के दिन । पढ़ाई शुरू होती है गुरूवार के दिन । तो मीठे-मीठे, सिकीलधे ज्ञान सितारों प्रति मात-पिता, बापदादा का दिल व जान, सिक और प्रेम से यादप्यार और गुडमॉर्निग और नमस्ते । (किसी ने कहा- बाबा, ये टेप बम्बई जा रहा है) अच्छा, हैलो बॉम्बे! मधुबन से बापदादा सबको याद दे रहे हैं । जो भी सेंटर में सर्विसेबुल बच्चे हैं- कुमारका, गुड्‌डू रमेश, शान्ता ऊषा आनन्द किशोर, निर्वैर, शील, रामी. वगैरह जो-जो भी हैं सबको बाबा यादप्यार दे रहे हैं और बाबा कहते हैं कि कुछ समय के लिए शायद बाबा न दिल्ली जाएँगे, न बॉम्बे जाएँगे । आज की प्रेरणा इस समय में ऐसी है । नई खबर कि बाबा का इस समय में ऐसा विचार नहीं है कहीं भी जाने का । विचार है कि जब जास्ती ठण्डी होगी नवम्बर-दिसम्बर तब शायद विचार करेंगे आ करके दाँतों की प्लेट लगाने के लिए । ऐसा इस समय में प्रेरणा आ रही है । समझा! पीछे आगे जो ड्रामा । अभी बताओ, शिवबाबा सर्वशक्तिवान है या ड्रामा सर्वशक्तिवान है? तुम बताओ बच्चियाँ । शिवबाबा जिसको ही कहा जाता है सर्वशक्तिवान, वो सर्वशक्तिवान है या ड्रामा सर्वशक्तिवान है? मैं पूछता हूँ जो समझते हैं कि बाबा सर्वशक्तिवान है वो हाँथ उठाओ । जो समझते है कि नहीं ड्रामा सर्वशक्तिवान है सो हाथ उठाओ । स्वयं बाप भी कहते है मैं ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ । ड्रामा कुछ ऐसे नहीं कहता है । अच्छा, ड्रामा भी कहता है कि तुम मेरे ड्रामा के बंधन में बाँधे हुए हो । अभी कौन बड़ा? शिवबाबा भी कहते है मैं ड्रामा में बंधन में बाँधा हूँ फिर ड्रामा कहता है कि तुम सभी मेरे ड्रामा के बंधन में बाँधे हुए हो । अभी बताओ, कौन बड़ा? (बहन ने कहा- आपे ही शिवबाबा करने पर तो सब कुछ कर सकता है) .. ये ज्ञान सीखी है दादी! ये बुद्धू ज्ञान सीखी है । शिवबाबा अगर आवे करने पर, तुम्हारी माँ को क्यों छोड़ देते थे, उनको भी साथ डाल देते थे । यही बात नहीं सकती है, तो बाकी क्या कर सकेंगी! हो गया तैयार? (किसी ने कहा- बाबा, ये टेप दिल्ली में जाएगी) हैलो दिल्ली! ये टेप शायद दिल्ली में, क्या सभी जगह फिरता है? (किसी ने कहा- हाँ सभी सेटर्स में फिरता है? (किसी ने कहा- सभी जगह एक ही जाती है) वहाँ एक ही टेप है । अच्छा, हैलो दिल्ली! मधुबन से बापदादा दिल्ली के सभी सेंटर्स के सर्विसेबुल बच्चों प्रति यादप्यार दे रहे है और बच्चों के टेलीग्राम भी पाई, निमंत्रण भी पाए । बाबा कहते है कि आज मास-दो तो विचार नहीं है कहीं भी निकलने के लिए, क्योंकि फिर यहाँ बच्चे आते रहते है और फिर भी मधुबन, मधुबन है, ये समझते हो । वहाँ आएँगे तो कहाँ का कहाँ रहेंगे । फिर बच्चों को कहाँ से कहाँ आना पड़ेगा । ये बसेज आती रहेंगी और कोई भी ऐसा प्रबंध नहीं है जहाँ सभी बच्चे समाय सकें । ऐसा कोई प्रबंध है नहीं । वो जो रजौरी का दूसरा मकान, जिसमें पहले रहते थे, अरे वो तो बहुत छोटा है । उसमे तो भाषण हो भी नहीं सकेगा । फिर आगे चलकर देखेंगे जब कोई ऐसी टेम्पटेशन कहाँ से आएगी बॉम्बे या दिल्ली से ।. ..प्रेम में नेम नहीं है । अच्छा! विदाई ।