07-09-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते, आज मंगलवार की सितम्बर की सात तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
यही बहार है दुनिया को भूल जाने की............
ओम शांति!
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं इस समय में महाभारत की लड़ाई चल रही है । ऐसे कहेंगे ना । अभी बाबा ने समझाया है कि जैसे आटे में नून होता है तैसे इन शास्त्रों में कुछ न कुछ सच के लिए जैसे कि आटे में नून है । बाकी तो सब झूठ, प्राय: झूठ । जैसे कहा जाता है ना- ये ज्ञान प्राय:लोप तो माना जैसे कि लोप ही है, बाकी उसमें थोड़ा-सा बचा हुआ है । तो अभी देखो, ये महाभारत की लड़ाई में विनाश तो दिखलाते हैं । यूरोप को भी दिखलाते हैं कि मूसल या मिसाइल्स वहाँ से इन्वेण्ट हुए । ये भी बच्चे जानते हैं । दुनिया में ऐसा कोई भी दूसरा मनुष्य नहीं है सिवाय तुम्हारे । ये महाभारत का एपिसोड चल रहा है । एपिसोड कहा जाता है युग को, जबकि एक धर्म की स्थापना होती है, क्योंकि पाण्डवों की विजय होती है और है भी राजयोग । वो दिखलाते हैं कि कृष्ण रथ में बैठ अर्जुन को ज्ञान देते हैं । है ना बरोबर । अभी ये भी तो बच्चे समझते हैं कि जब राजयोग का ज्ञान दिया है तो महाभारत के पिछाड़ी में जरूर राजयोग से राजाई स्थापन हुई होगी, क्योंकि इस समय में कोई भी राजाई नहीं है । तो फिर से राजाई स्थापन हुई होगी, परन्तु वहाँ तो कोई ये बातें दिखलाते नहीं हैं । होना चाहिए । अभी क्या करना चाहिए! क्योंकि महाभारत का ये नाटक भी बनता है । देखो, एडवर्टाइजमेंट निकल रही है कि महाभारत का ये नाटक बनाया है । ये बाइस्कोप आ करके देखो । अभी तुम बच्चों को तो सब अच्छी तरह से मालूम है और उसमें तो सभी झूठ होगी । अभी विचार आना चाहिए, क्योंकि.. जो झूठ है उनको सच समझाने वाले आए हो । दुनिया में सभी झूठ बोलते हैं । बाप आ करके तुमको सब सच बताते हैं, क्योंकि जो भी ये ड्रामा वा नाटक बनाते हैं, सब झूठे होते हैं । जैसे रामलीला ये सारी झूठी बताएंगे । ये विष्णु अवतार-अवतरण, ये सब झूठे बताएँगे । जो भी बताएँगे देवताओं की, सब झूठे, तो महाभारत भी झूठा । अभी तुम सच्चे तो बैठे हो, जानते हो । तो क्या होना चाहिए? अच्छा, वो महाभारत देखना चाहिए । इस हिसाब से बाबा मना तो नहीं करेंगे । जाएंगे देखने के लिए कि ये क्या बनाते हैं और फिर क्या करें । सर्विस तो करनी है ना । तो सर्विस के लिए बुद्धि को फिराना होता है, विचार सागर मंथन करना होता है । अभी बच्चों की इतनी विशाल बुद्धि नहीं है । ये आता नहीं है । तो देखो, बाप डायरेक्संस देते हैं कि सर्विस कैसे कर सकते हो । देख करके फिर जिन्होंने बनाया है उनको जा करके समझाना है वट इज राइट, वट इज रॉंग? यानी सच क्या है, इस समय में चल रहा है । तुम लोगों ने ये जो महाभारत की लड़ाई दिखलाई है, लड़ाई की हमेशा तिथि-तारीख चाहिए कि कब लगी हुई थी । तो अभी किसको पकड़े? जिन्होंने बनाया है । उनको जा करके समझाना चाहिए कि देखो, तुमने जो कुछ किया है, झूठ तो मिरई झूठ है, सच की इसमें सिर्फ रत्ती है, क्योंकि बनाने वाले का नाम, गायन वाले का नाम- सब कुछ देते हैं । देखने के लिए जाना भी चाहिए । जैसे कण-कण में भगवान ' बनाया है, अभी जाकर देखना चाहिए कि क्या ये करते हैं, जिन्होने बनाया है । फिर उनको देखना चाहिए । तो देखो, मेहनत करनी पड़े ना । इसमें विशाल बुद्धि चाहिए, दूरंदेशी बुद्धि चाहिए । वो तो हद की बुद्धि है । कोई की भी दूरंदेशी बुद्धि तो है नहीं, जो बैठ करके उन लोगों को ऐसे समझावे । कैसा करना चाहिए, बैठ करके शार्ट में- ये सच क्या है और तुम लोग झूठ क्या देखते हो । पत्र भी छपाना चाहिए । सर्विस करनी है ना । तो वो आपे ही पत्र पढ़ेंगे कि सच क्या है, झूठ क्या है । ये सच है जो अभी चल रहा है, नाटक जो बनाते हो वो झूठ है । आय करके समझो । ये बात भी समझने से कि सच क्या है, झूठ क्या है, तुम सचखण्ड के मालिक बन जाएँगे । वहाँ नीचे लिख देना है जैसे हम सबके नीचे लिखते हैं- ये जानने से तुम स्वर्ग का मालिक बन सकते हो वा लिखते हैं फिर सूर्यवशी दैवी घराने का मालिक बन सकते हो वा लिखते हैं कि ईश्वर से अपना वर्सा ले सकते हो । तो इसको कहा जाता है विशाल बुद्धि बनना कि यहाँ सर्विस करें, ऐसी सर्विस करें, ऐसे सर्विस करें । देखो, बाबा डायरेक्संस देते हैं ना कि ऐसे जाओ । अच्छा भला, कोई गए । चलो, कोई ने लिखा कि हम जा करके उन सर्वोत्तम लीडर भावे से मिले । अभी मिलते तो हैं, परन्तु मिलने वाला तो विशाल बुद्धि चाहिए ना । उनको यही जाकर समझाना चाहिए कि देखो, सर्वोदया लीडर, अभी सर्व माना सारी सृष्टि के ऊपर, वो तो ब्लिसफुल भगवान है । सर्व के ऊपर तो वही दया करते हैं और ये देखो, भारत पर भी वो दया करते हैं, क्योंकि ये भारत आज से 5000 वर्ष पहले हैविन था, पैराडाइज था, स्वर्ग था । ये देवताओं का राज्य था । तो जरूर सतयुग की आदि में था । अभी कलहयुग के अंत में तो देख रहे हो कि क्या है, भ्रष्टाचार वगैरह । तो अभी सारी दुनिया के ऊपर दया करना, ये तो बाप का काम है और वही तो करते हैं ना, क्योंकि जरूर कल्प-कल्प वो आते हैं, क्योंकि सतयुग में तो सब सुखी- सुखी होते हैं । बाबा ने कल-परसों भी बताया कि सुखी होते हैं । अभी ये सर्वोत्तम दया किसने की? अभी मैं जानता हूँ तब आपको समझाता हूँ । वो सर्वोत्तम सर्वोदया करने वाला सारी दुनिया को, क्योंकि क्वेश्चन होता ही है सारी दुनिया का और अपन को सारी दुनिया का सर्वोत्तम लीडर कहलाते हो, यह रॉंग है । ये थोडी-सी सेवा करके अपन को जैसेकि ईश्वरीय टाइटल देते हो कि हम सर्वोत्तम लीडर हैं, सर्व पर दया करने वाला । तो तभी भगवान नहीं है? अभी भगवान कैसे सर्व को करते हैं, ये तो समझो ना कि अब कलहयुग है, सतयुग है । यह देखते हो महाभारत की लड़ाई हो रही है । जरूर कोई है जो ये पतित दुनिया को पावन बनाते हैं । उसका नाम पतित-पावन है । तो जो पतित-पावन है उसको ही कहेंगे ना- सब पतित को पावन बनाने वाला । सर्वोत्तम ब्लिसफुल वो है ना । तो अभी ज्ञान की बुद्धि है ना । कोई भी हद की बुद्धि वाले ने कुछ भी जाकर समझाया, उनकी बुद्धि में कुछ बैठा ही नहीं, क्योंकि समाचार तो आते रहते हैं ना । तो बाबा समझ जाते हैं । वो तो बिचारा कहते हैं मैं जा करके बहुत हिम्मत किया, सर्वोत्तम लीडर से मिला, क्योंकि ऐसे ऐसे मनुष्यों से मिलना थोड़ा मुश्किल होता है । बाकी मिलते बहुत हैं, ढेर के ढेर मिलते हैं, परन्तु मिलने वाला कोई विशाल बुद्धि वाला चाहिए । वो तो खुश हो गया कि मैं सर्वोदया लीडर से मिला, उनसे भी हम बात किया । 20 मिनट की,30 मिनट की, 40 मिनट की, कुछ लिखा हुआ था, तुमने पत्र सुना होगा । नहीं सुना होगा । सुनाया था? कहाँ? कौन थे? (किसी ने कहा- जबलपुर)... चलो अच्छा, वो ओमप्रकाश या फलानी या कोई माई गई होगी । अभी इतनी तो विशाल बुद्धि है नहीं, क्योंकि जब जिससे मिलना होता है तो प्रोग्राम बड़ा युक्ति से बनाना होता है । तो देखो, बाप सुनते हैं कि गया, उनके साथ मिला । जो कुछ बात किया वो कोई विशाल बुद्धि नहीं । उसको हद की बुद्धि कहा जाता है । विशाल बुद्धि हो तो उनको पहले-पहले बता देना चाहिए कि इस सारी दुनिया मे अशांति है । ये जो दुःखी मनुष्य हैं, जिनके ऊपर तुम दया करना चाहते हो, इस समय में दुःखी तो सारी दुनिया है । ये है ही दुःखधाम । सुखधाम, दुःखधाम और शांतिधाम- बस, ये तीन अक्षर उनको कान में सुना भी दे परन्तु क्या होता है, उस समय मे सब भूल जाते हैं । भारत की महिमा बड़ी करनी चाहिए कि भारत क्या था और भारत को बनाने वाला ऐसे कौन, जो पवित्रता भी हो, शांति भी हो, सुख हो? अभी इसमे पूरी चाहिए पवित्रता की बात । बाकी इससे कोई की जमीन ले करके गरीबों को देना, इसको देना, ये सर्व तो नहीं हुआ ना । सर्व को तो तुम दया कर नहीं सकते हो । सर्व पर दया करने वाला तो ईश्वर है, जिसको आप भूले हो । पहले तो उनको जानो । वो खुद ये काम कर रहे हैं । ही, ये अच्छा है कि अच्छा करते हो, उनसे ले करके दुखियों को देते हो, परन्तु अभी वो समय कहीं है जो बैठ करके वो तुम्हारी जमींदारी करेंगे, ये करेंगे । उनको मिलना भी एकान्त में है, क्योंकि समझानी एकान्त मे मिली जाती है । नहीं तो कोई न कोई कौए बैठे रहते हैं, बीच में भी कुछ न कुछ उल्टी-सुल्टी बकवाद करते रहते हैं । ये भी बाबा कहते हैं कि जिन्होंने यह महाभारत बनाया है उसके एवज में अपना बना करके और पत्र बाँटना चाहिए । यह आ करके ये सच्ची महाभारत, जिससे ये महाभारत के बाद ये भारत कैसे हीरे जैसा बनता है या ये 100 परसेन्ट कैसे होता है- आकर समझो और बाप से वर्सा लो, क्योंकि जब ये महाभारत की लड़ाई है तभी तो यह बाप है ना । उनसे ही तो वर्सा ले रहे हो ना बरोबर । तो बाप है वो अपना शिवबाबा और वो रख दिया है कृष्ण । अभी कृष्ण को बाप भी नहीं कहा जा सके बिल्कुल ही । मनुष्य जबकि गॉड फादर... पुकारते हैं तो निराकार को याद करते हैं । भगवान कृष्ण को भी कहा नहीं जा सकता है और न कोई वो सुना ही है कुछ । देखो, 100 परसेन्ट ये लोग सब झूठ बताएँगे । तो उनको सावधान कैसे करें? तो देखो, सुनते तो रोज हैं रेडिओ में । एडवर्टाइज करते हैं आकर महाभारत देखो । वो महिमा दिखलाते हैं, होशियारी करते हैं, पर अंदर सब झूठ है । झूठ से पैसा कमाना और परमपिता परमात्मा से.... ये एक झूठी स्टोरी बताना । स्टोरी को झूठी कहा जाता है । तो उनमे से बहुत निकल सकते हैं, क्योंकि प्रदर्शनी करते हैं तो भी ये हिसाब किया तो क्या दो चार पाँच आठ.., कोई.. से एक भी नहीं निकलता है । इतना हजार खर्चा करना ये सब पत्र छपाने हैं । ये क्या है, तो इनमें थोडी बुद्धि चाहिए कि कैसे पत्र मे थोड़ा चित्र भी देवे और बतावे कि ये महाभारत की लड़ाई प्रैक्टिकल में अब चल रही है । तुम लोग तो पुरानी बातें लिखो, पर वो बात इस समय में चल रही है । देखो, यादव भी हैं, कौरव भी हैं, पाण्डव भी हैं । उनको अच्छी तरह से लिख देना । डरने की बात नहीं है । कांग्रेस को कोई कौरव कहा तो ये कोई इनसल्ट नहीं है । वो अर्थ को समझते ही नहीं हैं और यहाँ तो राइट अक्षर दिया जाता है ना । तो डरते हैं कि कांग्रेस को देखो... । यहाँ भी हैं ना । तो बोलते हैं तुम लोग जो कांग्रेस को कौरव कहते हो, भला ये बहुत खराब है । ऐसे कहते हैं । अरे पर, कौरव का अर्थ ही है कांग्रेस । ये पंचायती राज्य को ही तो कांग्रेस कहा जाता है ना । तो कुरू जो थे वो पंचायती राज्य थे । वहाँ कोई पाण्डव और कौरव को ताज वा तख्ता तो थे ही नहीं । देखो, अभी-- जब लड़ाई शुरू होती थी तो वो लोगों ने निकाला था कि स्टार्ट से ऐसे हुआ है । हूबहू वही 5000 बरस पहले वाली महाभारत की लड़ाई फिर शुरू हो रही है । ऐसे ऐसे लिखा था । तो बच्चों को सारे दिन में यही ख्याल रहना होता है कि हम कैसे सर्विस करें, कैसे किसको हम बैठ करके बाप से वर्सा दिलावे कैसे हम बैठ करके बाप का परिचय दें । तो विचार-सागर-मंथन करना चाहिए ना, जिन जिन से हो सके । ये तो बाप समझ जाते हैं । पुरुषार्थ तो कराएँगे ही जरूर । जो न उठेंगे, जगेंगे.... .है ही जगाने की बात, तो बच्चों को भी है जगाने की बात । तो जगाने के लिए ही बाप भी सबके लिए कहते हैं, कोई सिर्फ तुम दो, पाँच के लिए नहीं कहते हैं । दो पाँच को तो जानते हैं, परन्तु नहीं, औरों को कैसे जगाना चाहिए ये मेहनत चाहिए, क्योंकि अंधों की लाठी तो बनना है ना वा काँटों को फूल बनाने का भी तुमको बनाना तो है ना । मनुष्य जो बिचारे दुःखधाम में हैं, उनको मालूम ही नहीं है कि सुखधाम किसको कहते हैं ।.. सुखधाम को ही वैकुण्ठ कहा जाता है जिसके लिए कहते हैं कि भई, ये मरा, ये वैकुण्ठ में गया । तो ये सभी बातें थोडी-बहुत गई, शमशाम में भी गई, परन्तु थक पड़ी । जाकर देखते हैं, कोई भी नहीं सुनते हैं । अरे, सुनेगा कैसे?... जब बाबा कहते हैं कि 20 बरस सुरदा बजाओ, तो फिर बाबा मिसाल देते हैं- भेंड़ क्या समझे राज से जिसकी बोली बे । रीढ को बैठकर तुम ज्ञान का सुरदा बजाओ वो सुनेगी कुछ? बाबा यहाँ कहते हैं ना- देखो, कोई है, कोई बकरी है यानी जनावर के मिसल हैं । ये इतना उनके लिए ज्ञान का बाजा बजता है, वो पीछे बे समझते ही नहीं हैं कुछ भी । बुद्धि में नहीं बैठता है । तो उनको जनावर की सूरत भी बताते हैं ना । ये देखो, इतना सहज ज्ञान है बिल्कुल ही जो देखने से बाबा कहते हैं एक दफा किसको समझाओ, तक बुद्धि में आ जाएगा कि ऊँचे ते ऊँचा भगवत, फिर ब्रह्माविष्णु देवता, पीछे ये हिस्ट्री है नीचे में । उसमें पहले-पहले हैं सृष्टि पर ब्राह्मण चोटी । ये वर्ण । ये तो बिल्कुल सहज है ना ।.. .चोटी है ऊँचे ते ऊँची । पीछे देखो, चोटी से हमारा पद कम होता है । ये कितनी गुप्त बात है! इस समय में जो तुम्हारी महिमा है सो जब कोई देवता बनते हो तब थोड़े ही तुम्हारी महिमा होती है । यही तो देखो तुम शक्तियाँ बनती हो । शक्तियों की पूजा होती है, मेला-मलाखडा लगता है । कैसे लगते हैं! तुम कभी भी नहीं सुनेंगी कि लक्ष्मी का कोई मेला लगता है । लक्ष्मी, महालक्ष्मी, जिसकी पूजा करते हैं, वो तो बस आई एक दीपमाला और उनका आवाहन करने के लिए कि हमको थोड़ा धन दो, परन्तु उनके मेले नहीं लगते हैं। यह जगंदम्बा के ढेर के ढेर मेले यहाँ तो बहुत लगते हैं । कोई न कोई प्रकार से कोई न कोई दिन मुकर्रर रख मेला भी लगा देते हैं अम्बा के ऊपर । तो अभी ये सब बात तुम जानते हो कि मम्मा कौन है, लक्ष्मी कौन है । नहीं तो ऐसे कोई की बुद्धि में थोड़े ही... आगे तुम लोगों की बुद्धि में ये थोड़े ही था कि अम्बा कौन है, इनकी पोजीशन क्या है, इसकी पूजा क्यों होती है, लक्ष्मी की पूजा क्यों होती है । जानते तो हैं बरोबर श्री लक्ष्मी-नारायण, फिर उनकी भला ये पूजा क्यों होती है? अभी कहीं है वो लक्ष्मी, जिसका पूजन करते हैं? धन कौन देंगे? देखो, आता है कोई बुद्धि मे? अभी देखो दीपमाला होगी, लक्ष्मी को पूजन करेंगे । लक्ष्मी हो गई सतयुग में । अब वो लक्ष्मी है कहीं? ये तो किसको मालूम नहीं है इसकी आत्मा कहीं है । शरीर तो है नहीं । शरीर जरूर था । पीछे कहीं गया? तुम बच्चों को तो बुद्धि में है कि श्री लक्ष्मी, अरे वो तो अभी जन्म भोगते-?, अभी तुमको मालूम है । इसके आगे कुछ नहीं मालूम था । अभी मालूम पड़ा कि 84 जन्म भोग करके फिर जा करके अंतिम जन्म में ये जगंदम्बा बनती है । वो लक्ष्मी एडॉप्ट की जाती है । उनका भी तो दूसरा नाम होगा ना, जो फिर उनका नाम बदलाया जाता है, क्योंकि जब एडॉप्ट किया जाता है तो उनका नाम बदलाया जाता है । बहुत बच्चे कहते हैं- बाबा, हमको जो एडॉप्ट किया, हम ब्राहमण बने हैं, हमारा नाम क्यो? बोलते हैं- क्यो? क्या करें? माला का नाम तो देवे परन्तु वो नाम को वटटा लगा देते हैं, तो किसका नाम देवे किसका न देवे? अभी नाम देवे और न देवे तो भी हार्टफेल हो जाएगा । इसलिए बाबा कहते हैं अभी देख लिया ना कि नाम कितने का दिया, फिर वो कहा है? वो तो नाम को वटटा लगा दिया यानी नाम भी फर्स्टक्लास मिले थे, फिर उनको वटटा लगा, फिर उनका दूसरा नाम पड़ गया । फिर दूसरे नाम से उसको बुलाया जा... । तुम तो सभी.. .प्रजापिता ब्रह्माकुमार कहलाएँगे ना सब जगह में । भले शरीर निर्वाह के लिए वो जो तुम्हारा धंधा है उसमें अपना वो सच्चे नाम देंगे, परन्तु यहाँ से कोई तुम्हारा पूछेंगे तो उनको बोलेंगे हमारा नाम वो थे, अभी ये नाम है । जैसे सन्यासियों का बदला जाता है । हमारा असल नाम वो था, अभी हमारा ये नाम है, क्योंकि हम एडॉप्ट किए हुए हैं । अगर तुम ये नया नाम भी दो तो भी तो चल नहीं सकते हैं ना । एड्रेस तो फिर भी सभी घर की देते हैं । इसलिए ऑफिस में भी ये नाम नहीं दे सकते हैं । ये तो बुद्धि मे रहता है कि बरोबर अभी हम ब्रह्माकुमार हैं । बाबा ने समझाया ना, यहाँ बैठे हो तो तुमको पक्का है कि हम ब्रह्माकुमार हैं, क्योंकि सामने ब्रह्मा भी बैठा है, शिवबाबा भी बैठा है । जब घर में जाते हो और ऑफिस में जाते हो, अपना नाम सारा दिन बताते हो कि हमारा..., चिट्‌ठी लिखते हो तो अपने बाप के नाम पर लिखते हो । नाम लिखेंगे तो अपना सरनेम तो लिखें ना । सही करेंगे तो भी नाम तो लिखेंगे ना कि फलाना । जैसे भई, विश्वकिशोर ऐसे थोड़े ही लिखेंगे- प्रजापिता ब्रह्माकुमार विश्व किशोर । नहीं । देखो, जब चिट्‌ठी लिखते हैं, बीकेकृपलानी । पर उनको ये मालूम है कि हमको ये नाम देना ही पड़ता है । नहीं तो वो समझ नहीं सकेंगे । तो वो नाम देना पड़ता है और तुम्हारा गुप्त नाम फिर दूसरा है । तो देखो, ये भी तो आलो आते हैं ना, क्योंकि वहाँ जाएँगे, तुमको बाप याद आएगा, वो माँ याद आएगी । सारा दिन, जो लौकिक संबंधी हैं, उनसे व्यवहार में चलते हो तो भूल जाते हैं । तो गृहस्थ व्यवहार में रह करके अपन को शिववंशी और ब्रह्माकुमार निश्चय कर और फिर याद में रहना पड़े, ये तो मेहनत है ना । भले घर में बैठे रहें, फिर वो तो याद करना पड़ता है ना । तो सारा दिन याद न हो सकती है, जास्ती समय याद न हो सकती है, तब बाबा कहते हैं चार्ट लिखो । ये इतनी इतनी तकलीफें तुमको आती होंगी जरूर । ऑफिस में जाएँगे, वहाँ जाएँगे, मकान बनाएँगे नाम देंगे, अपना जो नाम देंगे उस लौकिक व्यवहार का, जात-पात सभी अपने देंगे । भई, अग्रवाल है, कृपलानी है, फलाना मेरा बाप है.... सब पूंछना पड़ता है । देखो, एक तरफ में तुम हो उनका और याद तुमको वो करना होता है । तो बाबा कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह करके... । व्यवहार में भी रहो । व्यवहार में तो तुमको ये सभी अपना लौकिक नाम देना ही है, परन्तु लौकिक के होते हुए क्लास परलौकिक को याद करना है । ये देखो मेहनत है । देखो, अभी ये बातें नई हैं समझने की । तो बिचारे मूंझते हैं । ऐसे तो कभी कोई समझा नहीं सकते हैं । अभी ये जो महाभारत का भी नाटक है उनमें कृष्ण का रथ जरूर दिखाएँगे और अर्जुन को भी दिखलाएँगे कि ऐसे ज्ञान दे रहे थे । फिर वहाँ वो संस्कृत में श्लोक भी जरूर बोलेंगे । तो जाकर देखना चाहिए कि ये लोग क्या बनाते हैं और वो जो बनाते हैं, देख करके फिर उनके अगेंस्ट बैठ करके लिखना है कि भला ये क्या हुआ, इस गीता की रिजल्ट क्या हुई? कोई रिजल्ट है नहीं । पीछे भी वो उसमें बताएगा जरूर कि ये पाँच पाण्डव कुत्ता ले करके और पहाड़ी पर दिखलाएँगे जाकर गलते हैं, और क्या दिखलाएँगे उनमें! तो देखने में कोई हर्जा तो नहीं है ना, क्योंकि हम देखते हैं तो कोई शौक से तो नहीं देखते हैं । वहीं जा करके देखते हैं कि औरों को शिक्षा कैसे देवें । तो जो आने वाले हैं, जो अच्छा रॉयल रॉयल देखें या जो भी देखें थोड़े क्योंकि महाभारत की लड़ाई तो बहुत देखने जाते हैं । पण्डित भी जाएँगे, फलाने भी जाएँगे, ये भी जाएँगे । तो सर्विस का ख्याल करना चाहिए ना । ये भी कितनी सर्विस है! कितने मनुष्य देखते हैं! कितने हजारों देखते हैं । अभी इतना ही हजारों पत्र भी छपाना पड़े । देखें रिजल्ट कि क्या आते हैं? इनमें से समझने के लिए कोई आते हैं? तो उसमें एक तरफ अपना परिचय भी लिखना है, जो समझाया जाता है । भई, ये लिखने से तुमको सच्ची महाभारत की लड़ाई का ज्ञान प्रैक्टिकल में मिल जाएगा, जो इस समय में महाभारत की लड़ाई चल रही है । ये चालू है । थोडी- थोडी करके पिछाड़ी में आ करके लड़ाई लगनी ही है एकदम । मूसल तो हैं ना । तो इसको कहा जाता है विशाल बुद्धि । घर बैठे भी बाबा को क्यों, कहाँ से खयालात आया? वो रेडिओ से सुनते हैं ना । ये सब जगह जाएँगे । कलकत्ते जाते हैं, बाम्बे में जाते हैं, दिल्ली में जाते हैं । ये है भी अपनी सब झूठी बातें । इसमें गीता.... बंद हो जाती है । तो ये जो हैं, ये सब कोई स्वर्ग में तो आने वाले हैं नहीं । हाँ, जो कनवर्ट हो गए हैं, उनमें से कोई न कोई जरूर निकल आएँगे, क्योंकि देवी-देवताऐ सब कनवर्ट हो गए । कोई हिन्दू बना, कोई क्षत्रिय बना, कोई फलाना बना । कोई कोई क्या क्या बन गए सब दूसरे दूसरे धर्म के । वो तो नहीं आ सकेंगे ना । उनमें जो कनवर्ट हो गए हैं वही आएँगे, जिन्होंने कल्प पहले भी राज्य लिया । पीछे जितना तकदीर में होगा इतना वो लेंगे, क्योंकि जब ज्ञान लेंगे तो औरों को भी तो समझाएंगे । अगर औरों को न समझाया तो अपन समझेंगे कि हाँ, देवी-देवता धर्म में आएंगे तो सही, पर बहुतों को नहीं समझाया, प्रजा भी नहीं बनाई, बहुतों का कल्याण नहीं किया तो थोड़ा वर्सा मिलेगा । आएंगे, स्वर्ग में आएंगे । बस । देखो, ये भी तो बहुत अच्छा हुआ ना कि स्वर्ग में आने के लायक बन जाते हैं । जैसे अहमदाबाद से वो माई आई । पहले देखो कितनी बुद्ध थी । फिर जब आस्ते आस्ते थोड़ा बुद्धि में बैठा तो खुश होने लगी- ये है तो बहुत ही अच्छा । देखो, तीन-चार बच्चियां भी थीं । एक बच्ची को कुछ थोड़ा लगने लगा, क्योंकि फिर समझ में आता है कि इनका कुछ देखने में आता है, जो इनको ज्ञान अच्छा लगता है । और कोई जैसे सुनता है ना, तुम यहाँ बैठ करके देखेंगे, जब नया कोई आता है तो सामने बाबा तो देखते रहते हैं सब तरफ में कि वो अटेंशन देते हैं, उसका कांध कुछ हिलता है, समझते हैं ये तो ठीक बात है । किस- किस का कंध ऐसे चलता है । उनका बहुत करके तो ये है ही ऐसे । जब ये ज्ञान सुनने को होते हैं तो राइट समझते हैं कि ये तो राइट है, ये तो दिल से लगता है और न दिल से लगेगा तो उनका माथा हिलेगा नहीं या कोई बिल्कुल ही बुद्ध होगा तो यही देखेगा, यहाँ देखेगा, झट मालूम पड़ जाएगा । जो बाहर वाले आते हैं, झुण्ड है, एक है, दो हैं, बाबा उनको सबको नजर जरूर रखते हैं । कोई ऐसे न समझे कि उनको देखता नहीं । बाबा देखते रहेंगे, जाँच करते रहेंगे- ये नया जो आया है, लायक है या नालायक है । बेहद का बाप है ना । वो तो समझेगा जब बाप नहीं, दादा भी समझते तो हैं ना, कोई भुटटू तो नहीं है ना । अच्छा, भले समझा देते हैं भई, इसको भुटटू ही समझो तो तुम्हारा अटेंशन शिवबाबा में रहे । बाबा जब कहते हैं ना कि ऐसे ही समझो तो सचमुच कई बच्चे ऐसे ही समझ भी लेते हैं । वो ख्याल नहीं रखते हैं कि फिर भी ये तो सबसे तीखे होंगे ही जरूर जो पहले नंबर में जाता है । वो भूल जाते हैं, पीछे उनको कुछ कहो भी कि भई देखो,.. .सभी शिवबाबा ही बजाते हैं, मैं भी सुनता रहता हूँ । ये पक्का समझो कि जो भी मुरली रोज चलती है, शिवबाबा ही चलाते हैं ।.. .हम खाली सुनते हैं, चलाते नहीं हैं । तो बच्चे समझते हैं कि हाँ भई, ये भी तो ऐसे ही है ना, हमारे मुआफिक ही है जैसे । उनमे अपना थोड़ा आ जाता है, क्योंकि वो समझते हैं हम तो सेवा करते हैं ना, ये तो सुनते रहते हैं ना, तो हम इनसे तीखे हो गए और सचमुच ऐसे मान भी लेते हैं । वो फिर दूरंदेशी नहीं होते हैं । ये तो बच्चों को समझा देते हैं, युक्ति बताते हैं कि बच्चे, ऐसे ही समझो तो शिवबाबा को याद करते रहने से विकर्म विनाश होता है । वो युक्तियाँ निकालकर बताते रहते हैं । इसमें कोई देहअभिमान की तो बात ही नहीं है । वो तो अपना जो जो देही-अभिमानी रहते हैं, बाप की याद में रहते हैं, वो जरूर कुछ न कुछ काम करता होगा । ऐसे तो नहीं है कि कुछ चुप करके बैठने वाला होगा । तो देखो, बाप राय देते हैं ना अच्छा, ये भी यही समझो, चलो शिवबाबा ने पढ़ा, सुना और वही बाबा बैठ करके तुम बच्चों को डायरेक्शन देते हैं । ठीक है ना । तो भले फिर भी याद तो करो ना कि शिवबाबा ने ही रेडिओ में सुना और शिवबाबा ही इन द्वारा बैठ करके डायरेक्शन देते हैं कि ऐसे करो, ऐसे सर्विस करो, ऐसे दूरंदेशी बनो, ऐसे विचार-सागर-मंथन करो । तो फिर सबकी बुद्धि में आता है, फिर वो 2-4 आपस में मिलते हैं कि भई ऐसा करना चाहिए, ऐसे पत्र छपाना चाहिए । अच्छा, तो जरूर कोई दो जाकर जो समझ होवे... । हमेशा दो जाते हैं । देखो, प्रवृत्तिमार्ग है ना तो हमेशा प्रवृत्तिमार्ग की ही राय देते रहते हैं । वो सन्यासी तो निवृत्तिमार्ग हैं । झाड़ के ऊपर भी समझाना चाहिए । देखो, ये स्वर्ग में आने वाले ही नहीं हैं तो किसको स्वर्ग के राजयोग सिखला कैसे सकते हैं, जबकि ड्रामा दिखलाता है । तो ये आते ही हैं जब सृष्टि रजोगुणी है । ये कोई स्वर्ग मे तो आते ही नहीं हैं । हाँ, ये हम समझते हैं इनमें बहुत ही कनवर्ट हो गए हैं । धर्म वाले भी हैं और उनमें कोई कोई हमारे देवी-देवता धर्म वाला भी गया हुआ है । हाँ, आगे चलकर फिर उनका नाम भी बताते हैं कि बरोबर ये लोग पिछाडी में आएँगे, जब इनका कुछ न कुछ देखेंगे कि बरोबर अब तो ये बातें बिल्कुल ही ठीक समझते हैं । भगवान सर्वव्यापी नहीं है- ये तो बिल्कुल अच्छी तरह से समझाते हैं, साथ साथ मे ये भी सिद्ध करते हैं कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं है । नहीं तो गीता सारी खण्डन हो जाती है बिल्कुल ही । एकदम खण्डन हो जाती है । तो अभी देखो, है भी सहज, परन्तु थोड़े-बहुत समझते हैं और समझाय सकते हैं । आगे चलकर बहुत ही निकलेंगे जरूर, क्योंकि काँटे से फूल बहुत बनने के हैं ना । अरे, बड़ी राजधानी स्थापन होने की है । आगे जब चलेंगे तो वो भी सुनेंगे कि ये राइट है । इनको पढाने वाला, ये ज्ञान बेशक परमपिता परमात्मा है, न कि कृष्ण । कृष्ण हो ही नहीं सकता है वो पीछे सिद्ध कर देंगे । जैसे तुम बच्चे भी तो सेन्सीबुल हो, बुद्ध तो नहीं हो ना । यह तो समझाया ही जाता है कि राइट क्या है, राँग क्या है? सुख राइट है, दुःख राँग है । दुख रॉंग में कौन ले जाते हैं, राइट में कौन ले जाते हैं, सच कौन बताते हैं, झूठ कौन बताते हैं- ये समझाने के लिए तो बहुत सहज है ना, परन्तु आगे रावण के उस पर जाते थे, ये थोड़े ही समझते थे रावण क्या है, कब है, इसका क्या? क्यों ये सीता ही बस चुराए गए थे इसलिए इनको दस शीश दिया था? बस, राम राज्य मे यही विघ्न आकर पड़ा था? ये आए थे रामराज्य में? इनको तो ये थोड़े ही मालूम है कि हाँ बरोबर ये द्वापर से शुरू हुआ है । ये रामराज्य में था ही नहीं । ये द्वापर में शुरू हुआ है, ऐसे ही चला आ रहा है । अभी रावण को ऐसे कोई थोड़े ही समझेंगे । इन बातों को सिवाय तुम्हारे कोई एक भी नहीं समझ सकते हैं । सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार यथार्थ रीति से बैठकर किसको समझायें, वो तो फिर पढ़ाई के ऊपर सब नंबरवार है । कोई तो बहुत रसीली अच्छी तरह से समझाते जाएंगे । अभी फिर भी तो आते हैं । फिर भी तो चित्र निकालने ही होते हैं- रावण के, उनके । उनमें अभी अच्छी तरह से नॉलेज देनी है । यह दुश्मन कब से आया हुआ है, तिथि-तारीख डालनी चाहिए । ये रावण का राज्य कब से शुरू होता है? कैसे ये पुराना दुश्मन है? वो तो थोड़े दुश्मन हैं, ये तो पुराना है । इन पर जीत पहननी है । इस रावण पर जीत पहनने से जगतजीत बन सकते हैं । जगतजीत बनाने वाला फिर भी तो भगवानुवाच्य । तो ये सभी बातें सुनकर एक कान से निकाल करके दूसरे कान से चला जावे वो तो कुछ काम का नहीं रहा । फिर सर्विस करनी चाहिए । बाबा तो अनेक प्रकार की युक्तियाँ बताते हैं । अभी ये नाटक में कितने आएँगे! कितनी सर्विस हो सकती है! देश-देशान्तर अभी कितने पत्र छपाने चाहिए! पत्र भी एक दफा छपा करके, फिर एक दफा नहीं, फिर आगे चलकर विचार-सागर-मंथन करके फिर और कुछ नए नमूने से पत्र छपावे, क्योंकि हमको ज्ञान मिलता रहता है और डायरेक्संस मिलते रहते हैं- पत्र में ये लिखना चाहिए । अभी ये जो दूसरे पत्र छपाओ उसमें ये लिखो । सब नहीं छपाय लो । वो पूरा होवे तो, अभी इतना नहीं । वो तो तीर लगता है तो और कुछ प्वाइंट मिलेगी तीर लगाने की । जाते बहुत हैं । समझा ना । जब ऐसा कोई रिलीजियस खेल होता है तो रिलीजियस वाले बहुत जाते हैं और जो वो स्टोरी होती है प्यार की और गंद की, इसमें कोई गंद की बात नहीं होती है । तो ऐसे गंदे पुरुष बहुत जाते हैं । आजकल जाते तो सभी हैं । गंदगी तो लगी हुई है बरोबर । यानी पतित कहना तो गंदगी कहेंगे ना । हे पतित-पावन! सभी पतित । तो सभी गंदे ठहरे ना । मनुष्य अपन को ऐसे गंदे थोड़े ही समझते हैं । कोई भी अभी पवित्र रहकर अगर फिर पतित बनते हैं, देखो, मुआ काला मुँह कर दिया । फिर मुआ गंदे का गंदा बन गया, डर्टी किलर । अभी बहुत चिट्‌ठियाँ आती हैं, जिनका मैगजीन में देते हैं, जो मंथली निकलती है । उनमें देखा ना कि फलाने के प्रश्न का उत्तर दिया । फलाने का प्रश्न और ये उत्तर । अरे ये देखो, प्रश्न डालते हैं । कल चिट्‌ठी आई । अखबार में प्रश्न पड़ा है और कल शादी कर रहा है । किसने पढ़ा है? अखबार में उनका प्रश्न पड़ा हुआ है । उसने बनाकर डाला है और कल वो शादी कर रहा है । वो माया ने नाक से पकड़ दिया । ऐसे तो बहुत होते हैं । यह बाबा के पास बहुत यंगस्टर्स आते हैं और हम समझ जाते हैं इनकी क्या ताकत है जो माया को जीत सके । उनकी शिकल ही कहाँ है! ये आगे चलकर फिर जब वो बोलेंगे- बाबा, हमको मम्मा-बाबा शादी के लिए बहुत तंग करते हैं । बस, बाबा को विचार... तो उनको लिख दो कि अभी शादी कर दो एकदम, दूसरा दिन नहीं डालो, परन्तु बाबा कह नहीं सकते हैं । समझ जाते हैं कि ये मुआ कि मुआ । ये पूछते हैं ना, ये मुआ । ये पूंछने की तो दरकार ही नहीं है कि मैं शादी करूँ या मुझे ये जोर देते हैं या कन्या कहती है कि बाबा, मुझे ये शादी कराते हैं । अरे, तुमको शादी करना है या न करना है, ये तो तुम हो मालिक । चाहे जहन्नुम में जाओ, विषय वैतरणी में गोता खाओ, चाहो अपने क्षीर सागर में चलो- ये तुम्हारे ऊपर है । पूंछते हो माना तुम्हारी दिल है शादी करने की । ऐसे तो बहुत ही यंगस्टर्स यहाँ आते हैं और फिर 6 महीने, 8 महीने, न 2 महीने, दो वर्ष के पीछे देखो तो वो शादी कर लेते हैं । बाबा ने दृष्टान्त बताया ना । ऐसे बहुत हैं, शादी कर लेते हैं । तो ये मंजिल है बड़ी जबकि चलते चले-चलते चले-चलते चले । ऐसे थोड़े ही है कोई एकदम विश्वास किया जाता है कि ये तो जरूर रहेंगे । हाँ, बहुत अच्छा, शादी करते रहना, पत्र लिखते रहो, उनका जवाब मिलता रहेगा । बाकी ये समझा जाता है कि ये जरा मंजिल है । काम कोई कम नहीं है । ये तो जैसे हलवा है मनुष्य के लिए । बुद्धि भी ऐसे ही कहती है- बरोबर ये ज्ञान मिला है, नहीं तो ऐसे बहुत मुश्किल है । ये सन्यासी भी घरबार छोड़ते हैं । जब चले जाते हैं तो फिर क्या करेगा, होगा ही नहीं । जंगल में उनको क्या मिलेगा? रहकर तो देखें । तो ये तुम बच्चों को गृहस्थ व्यवहार में रह करके, बाप से योग रखकर और पवित्र रह करके बाप से वर्सा । अभी तुम बच्चों को मेहनत जरूर करनी पड़े, क्योंकि कुछ इनहेरिटेन्स मिलता है । उनको तो कुछ भी नहीं मिलता है । हाँ, महिमा होती है । देखो, कितनी बड़ी- बड़ी कमाई हुई है, बड़े बड़े फ्लैट्स बनाकर बैठे हैं! बड़े-बड़े घमण्ड से उनका आसन बने हुए हैं । बहुत ही बड़े-बड़े आदमी, राधाकृष्णन जैसे प्रेसिडेंट उनको जा करके मत्था टेकते हैं । तो देखो, पवित्रता के ऊपर ये अपवित्र मत्था तो टेकते हैं ना । नहीं तो इनका पोजीशन तो ये है ना- भारत का किंग । वास्तव मे ऐसे कहेंगे भारत का किंग और वो सन्यासियों के पास जा करके मत्था टेकते हैं । क्यों? कारण? पतित हैं । वो पावन हैं । उनका सन्यास किया हुआ है । फर्क देखो! बड़े-बड़े राजा लोग भी सन्यासियों के पास जाते हैं । देखो, ग्वालियर की महारानी साधु के पिछाड़ी में मत्था टेकती है । क्यों? क्योंकि वो पावन हैं । अरे, सन्यास किया हुआ है । बाकी अगर हिस्ट्री समझी जाए तो समझें ये तो दुःख देकर अपने घर को एकदम खतम कर दिया । ये तो सिर्फ नारी पवित्र बनती है तो भी देखो कितनी रड़ियाँ मारते हैं कि बच्चा घर कौन संभालेंगे? ये करते हैं, हमको घर से, ये इनको फूट डालते हैं और वो जो फूट डालकर चले जाते हैं फिर उनको तो कोई पूंछता भी नहीं है । तो ये सभी बातें समझने की होती हैं । इसमें बड़ी विशाल बुद्धि । देखो, मनुष्य एक दो पाठ और ये मैट्रिक पढ़कर ठण्डे हो जाते हैं । कोई तो पढ़ते पढ़ते देखो कितना बड़ा इम्तहान पास कर लेते हैं । ये भी तो विशाल बुद्धि की बात हुई ना । पढ़ाई के लिए कोई कहे हम पढ़ नहीं सकते, पैसे नहीं हैं । वाह! तुमने सुना है कि जो क्वीन विक्टोरिया थी, उनका एक प्राइम मिनिस्टर वाल्डवीन था । वो घर में बल्ली जला करके पढ़ता था । बहुत गरीब का बच्चा था, एकदम गरीब का बच्चा था और पढ़ नहीं सकता था, क्योंकि फी नहीं दे सकता था । तो गरीब का बच्चा बल्ली भी जलाकर पढ़ते- पढ़ते, प्राइम मिनिस्टर जाकर बना । इस समय भी ऐसे मेहतरों के औलाद पढ़ते पढ़ते, पढ़ते पढ़ते एमपी बन जाते हैं । पुरुषार्थ से तो सब होता है ना । तो है ही पुरुषार्थ । पुरुषार्थ बड़ा कि प्रालब्ध बड़ी? अरे भई, पुरुषार्थ ही बड़ा है ना । ऐसे कभी पूंछते हैं तो कहते हैं- नहीं, प्रालब्ध में होगा तो पढेगा ना । हम कहते हैं नहीं, पुरुषार्थ करेगा तो प्रालब्ध मिलेगी ना । ये बहुत आपस मे लड़ते हैं- प्रालब्ध बड़ी कि पुरुषार्थ बड़ा? बोलते हैं प्रालब्ध में होगा तब तो पुरुषार्थ करेंगे ना । अगर ऐसे कहेंगे कि प्रालब्ध में होगा तो पुरुषार्थ करेगा तो वो पहले ही फेल हो जाएँगे । जैसे यहाँ मनुष्यों को समझाया कि ड्रामा के आधार ड्रामा को समझना है । जो सतयुग पहले था सो फिर होगा । तो पुरुषार्थ भी हमें फिर जरूर करना पड़ेगा । जबकि श्रीमत मिलती रहती है । तो अगर ड्रामा मे जब है कि हम देवता बनेंगे तब तो हमारा पुरुषार्थ जरूर होगा । हमको ड्रामा जरूर पुरुषार्थ कराएगा । बस, हम चुप करके बैठ जाते हैं, ड्रामा जरूर कराएगा । पीछे देखो गिर पड़ते हैं । तो प्रालब्ध और पुरुषार्थ के लिए भी ऐसे ही एक , दो में कहते हैं । यह ड्रामा की बात कहेगे तो बहुत ही गिर पड़ते हैं । समझ नहीं है । मुख्य बात बाबा कहते हैं कि बाप का परिचय दो तो भगवान तो एक हो जाए । उन एक भगवान से फिर सिद्ध भी तो हो जाए कि गीता का भगवान भी एक भगवान है, न कि साकार, निराकार । समझा ना । बस, निराकार है तो फिर कृष्ण की जो भी कुछ महिमा है, वो झूठी हो गई । भागवत झूठा हो गया, गीता झूठी हो गई, फिर उनके बाल-बच्चे भी झूठे हो गए । तो एक चीज समझाने से, अब वो जब तलक न समझे तब तलक उनके साथ जास्ती ट्राएं-ट्राएं करना वेस्ट ऑफ टाइम हो जाता है । इसलिए हमेशा ही पहले वो परिचय । सो भी बाबा कहते हैं कि उनसे पढ़े लिखो, फिर उसमें लिखो कि गीता का भगवान, भगवान हो सकता है, फिर इनमें लिखो कि इस हिसाब से तो गीता झूठी हो गई । अब गीता जब माई-बाप है तो उनके जो भी हैं वो भी तो लिखो । वो इतना समझाने की युक्ति होवे । नहीं तो मत्था मारने से क्या फायदा है! बाप को जिसने न समझा, कब भी कुछ भी नहीं समझेगा । पीछे उनके साथ जास्ती तिक-तिक करना वेस्ट ऑफ टाइम हो जाता है । इसलिए बाबा ने शार्ट में युक्ति बताई है बच्चों का टाइम वेस्ट भी न हो और आ करके उनको समझा भी सके । कोई से भी तुम बात कर सकते हो, भले सन्यासी भी हो जावे । पहले-पहले ये बात । नहीं मानते हो, अच्छा अपना रास्ता लो । खलास । जास्ती बात करने की कोई दरकार नहीं । कोई पूंछे... । बोलो- कोई भी प्रश्न नहीं पूंछो कि ये क्या है, ये क्या है । ये कुछ भी नहीं समझ सकेंगे बिल्कुल । पहले ये समझो कि तुम्हारा बाप है या नहीं? सब बच्चे हैं, वो बाप है या नहीं? देखो, तुम कहते हो ना, बरोबर वो पिता है । सबका पिता है । लिखो, पिता है और एक भगवान है । बाकी सभी रचना हैं । सभी क्रियेशन हैं । क्रियेटर एक है । बाप एक है । तो अभी बताओ, गीता का भगवान कौन है? बुद्धि में बड़ा मुश्किल समझेगा कि ये तो निराकार है । हम कैसे कहेंगे ये भगवान है? इसने कैसे आ करके ये गीता सुनाई? फिर वो तो बता दिया ना कि प्रजापिता क्या लगता है? प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बरोबर ये मनुष्य सृष्टि पैदा होती है । कौन-सी? ब्राह्मण । सृष्टि को नहीं होती है, एडॉप्ट करते हैं । शूद्र से एडॉप्ट करते हैं ब्राह्मण बनते हैं, फिर ब्राह्मण बन करके देवता बनते हैं । पहले-पहले वो बाप की । वो लिखाकर लेना चाहिए, परन्तु बाबा सुनाते हैं, कोई करते थोड़े ही हैं । कोई फिर ऐसा मानते भी नहीं हैं । कोई आकर समझाते हैं, बताते भी नहीं हैं कि बरोबर मैंने लिखा लिया है । बस, आए-गए खेल खलास हो गया । जो बाबा भी समझे कि इसने राइटियस वे मे समझाया है । नहीं तो दो-दो घंटा, तीन- तीन घण्टा समझाने की जरूरत नहीं चाहिए, क्योंकि दो-तीन घण्टा भी समझाया ना, वो भी न समझा, तो समझा जाएगा ना, फिर भूल जाएगा, क्योंकि उसने पहली बात न समझी, लिखकर भी न दिया हुआ है । जो उनका नाम-एड्रेस होवे, फिर उनको लिखकर पूछे- अरे, बाप से वर्सा लेने का कुछ पुरुषार्थ भी करते हो? ऐसे इतनी मेहनत करनी चाहिए जो आने वाले हैं । उनकी एड्रेस भी ली जाती है । समझा भी जाता है । जब देखते हैं कि हाँ, ये समझते हैं बाप को और ये तो उनको खुशी में ले आना चाहिए ना कि बाप से बेहद का वर्सा मिलेगा । सुखधाम में चलना है । ये दुखधाम है । लिखो, ये दुःखधाम है । ये बाप अभी यहाँ सुखधाम का रास्ता बताते हैं । ब्रह्माकुमारियॉ सुखधाम का रास्ता बताती हैं, शांतिधाम का रास्ता बताती हैं । ये सभी लिखा कर लेना चाहिए जो फिर मार्जिन रहे, फिर उनको चिट्‌ठी भी लिख सकें । तो युक्ति से बैठ करके इतना समझाना चाहिए । देखो, दो दो घटा मत्था मारते हैं ना । खलास । फिर नशा ही गुम । तो एड्रेस चाहिए, जो समझाते हैं उनको फिर चिट्‌ठी लिख देना चाहिए कि तुमको इतना समझाया । तुम बोला- सेन्टर खोलो ये करो, ये करो । तुम्हारा यहाँ से गया, वहाँ की वही रही । ऐसे ही जैसे बच्चा बाहर आता है और फिर उनकी बाहर की चाटी लगती है, फिर पाप करने लग पड़ते हैं । तुम्हारी भी ये आदत हुई । देखो, इतनी मेहनत जब हो यहाँ भी या कहीं भी, तब सर्विस कहें । नहीं तो जैसे-तैसे पूरा करना है । कोई आना है, अटैण्ड करना है । बहुत ऐसे हैं जो समझाते रहते हैं, कोई एक नहीं है । बहुत समझाते हैं, परन्तु समझाते ऐसे ही हैं और बहुत करके टाइम वेस्ट । नहीं तो उनको ये ख्याल करना चाहिए कि अच्छा, 15 रोज के पीछे चलो उनको एक चिट्‌ठी भी लिख देवे । यहाँ तक जब सर्विस चले तब । बाबा तो एक बार समझा देते हैं ना । दस दफा, बीस दफा कितना समझाएँगे! करने वाले का काम है कर्तव्य करना, औरों का कल्याण करना । तो औरों का कल्याण करने के लिए फिर नींद फिट जानी चाहिए । देखो, बाबा की भी तो नीद फिटी ना वहाँ कि ये सभी दुखी हो पड़े हैं । तो बाबा की भी नींद फिटाय दी ना- रडियाँ मार-मारकर, त्राहि-त्राहि करके । तो देखो, फिर वो भी आ गए । वो नींद क्या करते हैं, वहाँ तो शांत है ना । तुम बच्चों को भी इतनी मेहनत करनी चाहिए । अच्छा बच्चे, टोली ले आओ । वा प्रोजेक्ट पर पहले-पहले ये समझानी, जो ये लिखवा रहे हैं । पहले- पहले वो लिखत का चित्र आना चाहिए ।.. .फिर बोलना- जज करो क्या है, कौन है । इतना तो समझाना चाहिए ना । भले टाइम लगता है, पर सर्विस तो करना है ना । शरीर निर्वाह के अर्थ धंधा करके ऑफिस में या धंधे में, फिर उनमें काज गया, फिर बाकी टाइम मिले, फिर अपना ईश्वरीय धंधा । बाप कहते हैं ना- शरीर निर्वाह अर्थ अपना सब कुछ करो, फिर इस धंधे को भी लगो क्योंकि इसमें फिर फायदा बहुत है । उसमें क्या कमाकर आएगा? 5-700 रोज, अच्छा 500 रोज, 1000 रोज, बस, फिर बाकी जो लगेगा ये सर्विस में, बहुत बडी कमाई होती है । वो 21 जन्म की कमाई हो जाती है, जबरदस्त कमाई है । तभी बाबा कहते हैं वो भी करो । बाकी टाइम तो बहुत है ना । आराम भी करो । सब कुछ करो । टाइम तो बहुत है । दिन में 24 घण्टे कुछ कम थोड़े ही है । अभी बहुत बच्चे सतसंग में जायें, ऐसे बहुत गीत गाते हैं जो बात नहीं । अच्छा, और बाबा राय देते हैं जो सेन्सीबुल बच्चे हैं, समझू बच्चे हैं, ये जब छुट्‌टी ले करके, छुट्‌टी तो लेते ही हैं, फिर क्या करना चाहिए? आश्रमों पर जाना चाहिए । जाओ भाई, आज अरविन्द घोष के आश्रम मे जाओ । सुने तो ढेर हैं । वहाँ जा करके सुनें कि ये क्या समझाते हैं, क्या करते हैं । फिर वहाँ युक्ति से... । क्योंकि वो तो कोई को मालूम नहीं पड़ेगा ये कौन है । पूछें उनसे । ठीक है या नहीं? वो राय ले लिया, जो आया सो कर लिया, बाबा को क्या मालूम । सुना । (भाई ने कहा- बाबा, जगदीश भाई से होती है) यहाँ जगदीश भाई की बात नहीं है । यहाँ तो बाबा की बात होती है ना । अभी देखो, बोलते रहते हैं ना । क्यों? तुम अरविन्द घोष के आश्रम में जाओ । वहाँ जा करके कहो हम यही समझने आए हैं कि यहाँ क्या शिक्षा मिलती है । हम रोज सुबह को जायें, भले वो यहाँ न रहे, कहीं भी रहे, रोज जावे, एक-एक से अनुभव पूछें कि क्या हुआ? क्या प्राप्ति होती है? पीछे कोई--कोई देखें कि नहीं, इनको तीर लगावें । तो थोड़ा तीर भी लगाया जाए, क्योंकि गीता बहुत करके बहुत जगह में ऐसे । जहाँ-जहां गया जाँच करने के लिए, पीछे कोई से थोड़ा बैठ गया । एक से बैठ गया तो वो समझेगा कि इनको तो शिक्षा बहुत अच्छी मिलती है । दूसरे की जांच करनी होती है ना । एक-एक को देख करके जाँच करनी होती है । पूछना तो बहुतों से होता है ना । तो ऐसे भी सर्विस बहुत हो सकती है । कोई मना तो है नहीं । मना नहीं करेगा कि यह क्यों आए हो । हमारा धर्म है पूछना कि यहाँ क्या शिक्षा मिलती है? फायदा क्या है? एम-ऑब्जेक्ट क्या है? देखो, यहाँ भी आते हैं ना- उद्‌देश्य क्या है? तो वहाँ भी जाकर उद्‌देश्य पूंछो, क्योंकि तुमको तो सब कुछ मालूम है । तुम तो जानी-जाननहार हो गए हो । सो भी ऐसा जाना चाहिए ना- फुर्त सेन्सीबुल शुरूड । जैसे ये कहते हैं कि मैं मंदिरों में गया । अच्छा किया, परन्तु इनकी रिजल्ट फिर रोज आनी चाहिए- हम आज इस मदिर में गए । तो बाबा समझे कि नहीं, इनको कुछ और रास्ता बतावे । पूंछा किससे, क्या बोला । उनके साथ उनका ताल्लुक है फिर गीता का भगवान कौन है? उनसे सिर्फ उनका तालुक नहीं है, क्योंकि मूल बात होती है गीता का भगवान की, जिससे सर्वव्यापी की बात निकल जावे । वो भी ठीक है, क्या लगता है? बाप है, ये है । साथ साथ में वो भी जरूर चाहिए । तो देखो, कभी बच्चे लिखते हैं- बाबा, ये पहली दो पहेलियाँ तो हमने छपाय लिया । अच्छा, छपा लिया ना, चलो वो दूसरा छपाओ । ये तो जरूर नया-नया मिलता रहेगा । ये वो रामायण तो नहीं है बस, एक दफा छपा, छपा । भागवत एक दफा छपा, छपा । यहाँ तो दिन-प्रतिदिन गुह्य बातें निकलती रहेंगी । थोड़ा छपाओ । फिर ये जो अच्छा लगे, छपाओ उनको फाड़ कर फेंक दो, किसको नहीं दो या दो तो भी उनमें कुछ न कुछ अच्छा ही है । ये तो रोज नई- नई बातें निकलती रहेंगी । आज छपेगी, कल बोलेंगे- इसमे ये करेक्शन चाहिए । ये तो होता ही रहता है । पीछे जब भी वो समाचार लिखे कि हम ऐसे किया, ऐसे किया, एक दो को किया । कोई सबूत आया? कोई एक- दो आया? निकला? वो तो जब बतावे तब बाबा समझे ना । जो-जो चिट्‌ठी लिखते हैं, बाबा समझाते हैं कि फलाने-फलाने के पास गए, उन्होंने ये-ये किया और उनको ये सब बाते ऐसे सुनानी चाहिए । किसको लिटरेचर दे दिया, बिल्कुल कुछ भी नहीं समझेगा । लिट्‌रेचर ले गया, ऐसे-ऐसे मनुष्य डाल देते हैं कोने में, याद भी नहीं होता है । क्या वो बैठकर कोई पढ़ेगा? कौन सुनाएगा उनको? अच्छा! मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग । हम बच्चों से कह ही देते हैं कि बहुतों का कल्याण करें । बिचारे बहुत दुःखी हैं । बेहद के बाप को कोई नहीं जानते । सर्वव्यापी के ज्ञान से सारी बुद्धि ही खतम हो गई है । फिर जरूर बाप जैसा रहमदिल बनना चाहिए । नॉलेजफुल ब्लिसफुल..... तो तुमको भी तो आप समान बनाते हैं ना- नॉलेजफुल फिर ब्लिसफुल । बस, यही नॉलेज कि सृष्टि का चक्र कैसे चक्कर लगाते हैं । अच्छा! बच्चों से विदाई ।