08-09-1965     मधुबन आबू    प्रात मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुल भूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते, आज बुधवार की सितम्बर की आठ तारिख है। प्रातः क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-
धीरज धर मनुआ धीरज धर.....
ओम शाति!..
.माँ-बाप मिला तो धेर्य मिला । किसको? आत्मा को वा जीवात्मा को कहो या बच्चों को कहो । अभी ये तो बच्चे, बच्चे ही कहना पड़ता है । किसको कहते हैं? ये छोटी-सी बिन्दी जैसी आत्मा; क्योंकि बाप ने तो समझाया है, तुम समझ सकते हो बुद्धि से कि एक भी मनुष्य इस दुनिया में नहीं है जिनको कोई ये ध्यान में है या बुद्धि में है कि हम आत्मा ये बिन्दी हैं । देखो, ये थोडी-सी बात कि हम आत्मा तो एक स्टार हैं और उस आत्मा में... । पीछे भले तुम्हारी आत्मा में 84 जन्म का पार्ट है, 5000 बरस का पार्ट है । सृष्टि को तो बिल्कुल बड़ी आखों से देखी जाती है । वो इतनी छोटी-सी चीज है जिसमें फिर 84 या 80 या 50 या 20 या 10 कितना भी कहो, तो उसमें इतना पार्ट बजा हुआ है जो फिर अविनाशी है । ये देखो, कितना भारी वण्डर है! ये तुम बच्चों ने समझा है ना । यह भी वण्डरफुल समझ है ना, जो कब भी समझते हैं न हम जानते थे, न कोई जानता है । हमारे मे भी कोई जानते हुए भी फिर भूल जाते हैं; क्योकि ये याद रहना है और कोई को समझाने के लिए । तो ये भी फिर समझना है कि ये जो बाप है, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, अभी उनको भी तो करन करावंनहार कहा जाता है । कराने के लिए, सिखलाने के लिए, इसलिए उनको करन-करावनहार भी कहा जाता है और फिर निराकार को निरहंकारी भी कहा जाता है । अभी इनका भी अर्थ कोई नहीं समझ सके, क्योंकि ये सभी जो सिपते हैं उनमें, उनको ये बच्चो को साक्षात्कार कराने हैं, दिखलानी है, क्योंकि बच्चों को भी ऐसे निरहंकार बनाना है । तो देखो, बाप कहते भी है निराकार है, निरहंकार है, तो निरहंकारीपना भी आकर दिखलाना पड़े । ज्ञान का सागर है तो आ करके ज्ञान भी सुनाना पड़े । पतित-पावन है तो आ करके जरूर पतितों को कोई शिक्षा देंगे पावन बनाने की । जैसे सन्यासी हैं तो शिक्षा देते हैं, वैराग्य देते हैं- ये खराब है, ये ये है, स्त्री ये है, इसमें सुख कुछ भी नहीं । ये देखो, शिक्षा देते हैं ना । सन्यास कराने के लिए शिक्षा देते हैं । अच्छा, ये भी तो जरूर, जो पांच विकारो का सन्यास करना है, जो पतित बने हैं, पावन बनने हैं, तो पतित-पावन आकर जरूर शिक्षा देंगे । नहीं तो शिक्षा कैसे मिले जो हम पावन बनें? ''सो देवता ' सो देखो गाया हुआ है कि बरोबर आय करके मनुष्य से सो देवता बनाने के लिए कोई छू मन्त्र तो नहीं करेंगे- अरे भई, मनुष्य से देवता बन जाओ । ऐसी तो कोई बात नहीं है ना । जरूर सीखना पड़े। देखो, कितना सीखना पड़ता है । गाया भी जाता है कि जहाँ जीना है इस समय में तहाँ सीखना है यानी ये नॉलेज-पढ़ाई पढ़नी है । ऐसे तो नहीं है कि जो स्कूल में पढ़ते हैं उनको ये कहा जाता है कि जहाँ जीना है तहाँ पढ़ना है । नहीं । पढ़ने के लिए टाइम है । उस पढ़ाई का, पुरुषार्थ का फिर प्रालब्ध भोगना भी है । यहाँ है जिसके लिए कहा जाता है कि जहाँ जब तक जीना है, पढ़ना है । तो बच्चे समझ जाते हैं कि बरोबर ये तो जब तलक जीते रहेंगे; क्योंकि पढ़ाई हमको करनी है, कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है अथवा गोल्डन एण्ड तक आत्मा को योग से प्योर बनाना है । ये समझ की अच्छी- अच्छी बाते हैं ना । तो जरूर जहाँ तक जीते रहेंगे, याद में रहते रहेंगे ताकि कि ये हमारी आत्मा गोल्डन एज में आ जाए । आत्मा गोल्डन एज में आ जाएगी तो आयरन एज में फिर न आत्मा को रहना है, न शरीर को रहना है । दोनों को जाना है जरूर । ये जानते हैं कि हम पढ़ते ही हैं फिर पवित्र दुनिया में आने के लिए, पावन दुनिया में आने के लिए । अभी देखो, ये कैसी- कैसी बातें हैं जो कभी कोई समझा भी नही सकते हैं । और तो मनुष्य सब कुछ करते हैं । देखो, साइंस घमण्डी क्या बनाते हैं, क्या करते हैं! देखो, कैसी- कैसी चीजें बनाते हैं! लड़ाइयाँ कैसे करते हैं! कितने ऊपर में चले जाते हैं! बोलते हैं कि हम स्टार के भी ऊपर मे जाएंगे, मून के भी ऊपर मे जाएंगे । देखो, बुद्धि कितनी काम करती है! परन्तु ये बच्चे समझते हैं कि इन सबसे जीवनमुक्ति-मुक्ति नहीं मिलती है । ये तो जरूर है कि कोई मुक्ति वा जीवनमुक्ति के लिए पुरुषार्थ नहीं कराते हैं । पुरुषार्थ के लिए तो गुरू होते हैं मुक्ति--जीवनमुक्ति के लिए । इन बातों से कोई जीपनमुक्ति-मुक्ति तो नहीं मिलती है । इन बातों से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख-दुःख... । देखो, एरोप्लेन से सुख भी मिलता है तो दुःख भी मिलता है । आज एरोप्लेन में घूमने जाओ, कल एक्सीडेंट हुआ, 7 नीचे । समझा ना । फिर होप भी नहीं रहती है । हर एक बात में ऐसे ही रहता है । स्टीमर में जाओ, कोई वक्त में तूफान लगा, स्टीमर डूब गया, बड़ी डूब गई । रेलवे का एक्सीडेंट हो गया । दुःख तो जैसे कि इकठ्ठा इकठ्ठा चलता ही रहता है । कोई न कोई वक्त में बैठे बैठे, ये बैठे बात करते हैं असेम्बली में, वहाँ हार्टफेल हुआ... । देखो, क्या हालत है दुनिया की! इसलिए इसको दुःखधाम ही कहेंगे, क्योंकि सुखधाम और चीज का नाम है । इसलिए इसको ऐसे नही कहेगे कि ये सुख-दुःख का नामधाम है । नहीं । सुख का धाम अलग है, दुःख का धाम अलग है । उसमें सुख ही सुख है, उनमें अल्पकाल क्षणभंगुर, जिसे कहते हैं कागविष्ठा समान सुख है । ये जो कहते हैं ना, वो क्यों? कि बरोबर रोज बैठ करके विष्ठा खाते हैं । एक -दो के ऊपर काम-कटारी चलाते हैं । ये तो एक -दो को दुःख देते हैं ना; क्योंकि एक दो को पापात्मा बनाते हैं, पतित बनाते हैं । तो तुम बच्चों को पहले-पहले नंबरवार अच्छे ते अच्छी जो बुद्धि मिली है कि मैं आत्मा क्या हूँ और मेरा बाप परमात्मा क्या है । वो क्या पार्ट बजाते हैं, हमारा क्या पार्ट है । हर एक को ऐसे ही कहेंगे ना । बाबा कहते ही हैं- बाप तो मिला ही उन्हीं से है जिनको 84 जन्म भोगना होता ही है । तुम्हारे लिए भी कोई पूरा 84 जन्म हम नहीं कहेंगे; क्योकि यहाँ भी तो सभी थोडे ही सतयुग में आ जाते हैं । तुम सब भी ये भी जानते हो बुद्धि में कि बरोबर है कि हम सभी 84 जन्म नहीं भोगेंगे क्योंकि हम जानते हैं कि सभी थोडे ही इकट्‌ठे आएँगे । इतना सूर्यवंशी घराना, इतना चद्रवशी घराना, ऐसे कह कैसे सकेंगे! वो तो पिछाड़ी में चंद्रवंशी घराने में भी तो आएँगे ना, वृद्धि होगी ना । वृद्धि होती जाती है, वृद्धि होती जाती है, वृद्धि होती जाती है, तो उनका जन्म थोड़ा होता जाएगा । अब ये थोड़ी विस्तार से बातें हैं जिनके लिए बाबा नही कहेंगे कि बुड्‌ढियों- बुड्‌ढियों को ये बैठकर सिखलाओ । ये नहीं । पहले उनको अलफ-बे । पहले हमेशा अलफ-बे । इसमें है ही पहले-पहले अलफ-बे पक्की करनी । अलफ माना अब्बा, बे माना बादशाही । अब्बा बाबा से बादशाही । ये तो बिल्कुल राइट बात है कि ये जो स्वर्ग की बादशाही है...; क्योंकि ये भारत स्वर्ग का बादशाह था ना । ये मालिक था ना । बादशाह को मालिक भी कहा जाता है । भारत इस सारे विश्व का मालिक था और राजाई करते थे । उनके बिगर और कोई राजा नहीं थे । अगर राजाएं थे तो उनकी वंशावली थी, डिनायस्टी थी; क्योंकि दूसरे भी तो राजे होते हैं ना, एक श्री लक्ष्मी-नारायण देवता थोड़े ही होते हैं । ये तो किसको पूरा मालूम नहीं है कि बरोबर श्री लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी होगी । वो डिनायस्टी कितना समय चली होगी, ये तो किसको मालूम नहीं है । हाँ, इतना लिख देते हैं- भई, माला में आठ दाने हैं । जो 8 दाने रुद्रमाला के तो वही विष्णु माला के भी दाने बन जाते हैं । नंबरवार हुआ ना । अभी ये ज्ञान तो तुम बच्चों को अच्छी तरह से मिलता है; क्योंकि मिलना भी जरूर है कि पतित-पावन आएँगे तो जरूर सभी पाप आत्माएँ ही नंबरवार । सो भी नंबरवार सब पाप आत्माएँ हैं । वो नंबरवार पुरुषार्थ कर-करके फिर नंबरवार जा करके रुद्रमाला बननी है । अब ये सद्रमाला का तो शुरुआत बताएँगे ना । है तो बहुत बड़ी माला । यह तो तुम जान गए हो कि रुद्र की माला तो बहुत बड़ी है । ये सारी माला है । साढे पाँच सौ करोड ये उन आत्माओं की देखो कितनी माला है! वहाँ सूक्ष्मवतन में भी तो इतनी माला बनी हुई होगी ना । अब तो भले इसमें भी थोडा बड़ा-बड़ा देते हैं । नहीं तो माला का क्या बनाना? माला का ऐसे दाना बनाना पड़े, अगर रियल माला का दाना बनावे तो । वास्तव में रुद्र की माला बनाते हैं । खाली रुद्र का मुँह छोटा देते हैं, इतना छोटा, उसमे ये, वो-वो सब दे देते हैं । बहुत छोटा खाली मुँह देते हैं, उसको कहा जाता है रुद्रमाला वास्तव में । तो फिर वो तो सिमरी नहीं जा सके ना, अगर वो बनावे तो । तुम लोगों ने देखा नहीं है, परन्तु वो दिखलाते हैं, छोटा मुँह, उसमें...थोडा डाल करके ऐसा बनाते हैं रुद्रमाला को, परन्तु वो फेर नहीं सकते हैं; इसलिए दाने बनाय देते हैं । नहीं तो रुद्राक्ष भी झाड़ का एक नाम डाल दिया है, जिसका वो दाना होता है । नही तो रुद्राक्ष की माला तो ये है ना, हम आत्माएँ बनती हैं । उसके बदली में या तो मुँह भी बताय दिया या तो कसती भी बनाते हैं । बीड की भी बनाते हैं तो झाड़ की भी गोल गोल बीड बनाकर मणियों की भी बनाते हैं । बहुत किस्म के पत्थर होते हैं उनकी भी बनाते हैं । नहीं तो वास्तव में तुम बच्चे जानते हो कि ये तो रुद्र की माला या फिर विष्णु की माला बननी है । तुम जानते हो कि विष्णु की माला बड़ी बनती है । रुद्रमाला बहुत छोटी बनाना पड़े दिखलाने के लिए कि ये आत्माएँ फिर भी मनुष्य बनते हैं । उनमें ये सभी होते हैं तो समझाने के लिए छोटे बना देते हैं । अभी तुम बच्चों को तो यह बहुत अच्छी तरह से बुद्धि में जरूर सदैव बैठना होता है, ये जो कहते हैं आत्माएँ-परमात्मा अलग मिले... । अभी आत्मा क्या है? परमात्मा क्या है? उनका रूप कैसा है? रूप के साथ उनका साइज कैसा है? वो भी तो कहेंगे ना । तो अभी तुम्हारी बुद्धि में ये जरूर है कि ये बड़ी मुश्किल । ये बातें एक भी नहीं जानता होगा जो बाबा हमको सिखलाते हैं । इतनी आत्मा छोटी, फिर परमात्मा । उनमे भी देखो ऐसे ही कि उनको भक्तिमार्ग में ये कितनी मेहनत करनी पड़ती है । हाँ, उनका भी पार्ट द्वापर से लेकर कलहयुग के अंत तक या संगम के अंत तक भी कहे, चलता है । कौन-सा पार्ट उनका भी चलता है, ये भी तुम जानती जाती हो । क्या होता है पिछाड़ी में हो करके, वो भी तुम जान जाएँगे ना । तो शुरुआत से लेकर अंत तक बाकी जो कुछ भी होने का है वो तुम्हारी बुद्धि में हो जाएगा कि ये सभी कल्प पहले भी हुए थे । तभी बाबा ने कहा था उस दिन कि ऐसे डालना चाहिए कि ये बातें आज से 5000 वर्ष पहले भी हुई थीं । वो रोज डालते हैं एक अखबार में कि 100 बरस आगे क्या हुआ? अभी वो तो बिल्कुल सहज है । फिर 100 बरस आगे क्या हुआ? 100 बरस की तो इनके पास सब कुछ रहती है । ये अखबारें भी रहती हैं ना । तो अखबारें निकाल करके देख करके बता देंगे 100 बरस ये हुआ था । उसमें अंग्रेजी में लिखते हैं- वट हैप्पन 100 ईयर्स एगो? पढ़ा है तुमने? (किसी ने कहा- टाइम्स ऑफ इण्डिया में) टाइम्स ऑफ इण्डिया में पड़ता है । ...तुम्हारी अखबारें हैं टाइम्स ऑफ वर्ल्ड एकदम । वास्तव में ये अक्षर बड़ा अच्छा है- 'टाइम्स ऑफ वर्ल्ड' । उन टाइम्स ऑफ वर्ल्ड में तुम जो रोज लिखेंगे ना कि आज से 5000 बरस पहले क्या हुआ, तो जैसे बिल्कुल राइट हो गया । ये टाइम्स ऑफ वर्ल्ड बरोबर कहती है । ये बोलती है आज से 5000 बरस पहले जो हुआ सो ही अब हुआ । तो मनुष्यो को ड्रामा का तो पता पड़ जावे कि ये ड्रामा है, ये 5000 बरस चलता है । इससे ड्रामा सिद्ध होता है और 5000 भी सिद्ध होता है । तो ये भी तो अखबार में... । वो अखबार में रोज डालते हैं । क्यों? ये अखबार में हर महीने- महीने नहीं डाल सकते हैं क्या? ये भी तो डाल सकते हैं । पता नही यहाँ बुद्धि में है या नहीं है कि हम कोई न कोई आर्टीकल जिस समय में हुआ होगा उस समय में उसी दिन, कुछ न कुछ होता ही रहता है । पीछे 2-7-5 रोज, 10 रोज आगे-पीछे हुआ तो कोई हर्जा नहीं है । हम तो 5000 की बात करते हैं । अभी तुम बच्चों को बुद्धि में बैठ गया ये पहली- पहली नंबरवार बहुत-बहुत महीन बात कि आत्मा का ज्ञान और परमात्मा का ज्ञान कोई भी मनुष्य में है नहीं । अब जबकि आत्मा का ज्ञान, परमात्मा का भी ज्ञान मनुष्य में नहीं हो तो वो मनुष्य क्या काम का! वो तो जनावरों में भी कुछ नहीं होता है । वो तो जनावरों मिसल ही बना, बंदरों मिसल । ये भला बंदरों मिसल क्यों? बंदर बंदर क्यों कहते हैं? श्री रामचन्द्र ने भी बंदर की सेना ली । तो बंदर की शिकल मनुष्य जैसी होती है । ......बाकी बॉडी तो जनावरों जैसी है; पर शिकल उनकी मनुष्य से...... तो देखो, अभी मनुष्य बंदर के लिए क्या- क्या कहते हैं कि भई, बंदरों की सेना, फिर उनमें उनके काके बाबे चाचे, हनुमान, फिर उनका बाली, फिर उनका सुग्रीव । ये दिखलाया है ना- भाई है या फलाना है । भाई भी तो बहन भी, सभी उसमे दिखला देंगे । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि शिकल बरोबर इस समय में मनुष्य की है, पर सीरत यानी समझ बंदरों जैसी है और अभी तुम बच्चों को देखो कैसी समझ देते हैं । ऐसे तो कोई नही कहेंगे कि श्री लक्ष्मी और नारायण की सूरत तो देवता जैसी है और करतूत बंदरों जैसी है । कोई कहेंगे? ऐसे यहाँ भारत में ही है ना । ये भारत ही एक है जिसमें ये देवताऐ हैं और जो देवताए फिर जा करके बंदर बनते हैं । बंदर की करतूत । हैं मनुष्य, बंदर थोड़े ही । मनुष्य तो 84 जन्म लेंगे तो मनुष्य के 84 की हिस्ट्री-जॉग्राफी चाहिए ना । तो देखो, तुम बच्चों को ये भी समझाया । समझते भी हैं कि बरोबर पहले ब्राह्मण वर्ण, देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण, वैश्य वर्ण, शूद्र वर्ण । ये वर्ण मनुष्य के हैं, कोई जनावर के नहीं हैं । तुम बच्चों को बुद्धि में ये भी अच्छी तरह से बैठा कि बरोबर हम वर्णो में भी आते हैं । हम समझा सकते हैं कि ब्राह्मण वर्ण के ऊपर परमपिता परमात्मा; क्योंकि यहाँ ही वर्ण हैं । सुक्ष्मवतन में कोई वर्ण की बात नहीं है । उनका तो तुम बच्चों को अच्छी तरह से समझाया कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर । अच्छा, प्रजापिता ब्रह्मा । ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहते हैं । विष्णु को प्रजापिता नही कहेंगे; क्योंकि इनसे तो एडॉप्ट किया जाता है ना । विष्णु से तो दो लक्ष्मी-नारायण, उनसे तो बच्चे पैदा होते है जो तख्त पर बैठते हैं । तो प्रजापिता, शंकर को तो कभी प्रजापिता कह भी नहीं सकते हैं । उनका तो पार्ट ही महादेव । देव-देव वो महादेव । वो जन्म-मरण में आते हैं, वो एकदम जन्म-मरण में नहीं आते हैं । ये एक दफा ये शंकर का रूप देखने में आता है । बस । सो भी तुम बच्चे अच्छी तरह से देख करके आते हो, साक्षात्कार होते हैं । फिर जैसी-जैसी जिसकी भावना है ऐसा उनको साक्षात्कार होता है । बाकी नहीं तो सर्प वहाँ कहाँ से आया? वास्तव में कोई हिसाब करे, सर्प कहाँ से आए, जो शंकर के गले में डाल दिया है । हो नहीं सकता है । बैल भी हो नहीं सकता है जो उनके ऊपर सवारी होगा । वहाँ ये जीव-जन्तु कहा से आवे! वहाँ तो हैं ही बस ये देवताएँ । और कोई भी चीज जनावर या फलाना, कुछ भी हो नहीं सकता है । अच्छा, तुम सूक्ष्मवतन में जाती हो? तुम नहीं जाती हो । कौन जाती है सुक्ष्मवतन मे? तुम जाती हो? किसी ने कहा- जी) बाबा पूंछते हैं उस सूक्ष्मवतन में बगीचा है? (किसी ने कहा- जी बाबा) बगीचा है । वो होगा । वो क्या है बगीचा? जैसे ये बगीचे हैं तैसे बगीचे हैं? (बहन ने कहा- वहाँ तो सब इमर्ज..) हाँ, तो जैसे कि बाबा साक्षात्कार कराते हैं । है नहीं; क्योंकि विवेक कहता है, बुद्धि कहती है कि ये जो आ करके कहते हैं- हम सूक्ष्मवतन में गए, वहाँ माली था । वो बगीचे में ले गए, हमको फल निकाल कर दे दिए । अभी बुद्धि कहती है कि सूक्ष्मवतन मे ये झाड़-वाड़ तो हो भी नहीं सकते हैं । ये साक्षात्कार बताते हैं । अभी साक्षात्कार भी तो यहीं धरती के बताएँगे ना । ये कहाँ का साक्षात्कार होना चाहिए, देखो बुद्धि लड़ानी चाहिए । भई साक्षात्कार, ये जो झाड़ है, जो हमको फल मिला, ये कहाँ होना चाहिए! इतना बड़ा-बड़ा चीज, ये तो जरूर धरनी पर होना चाहिए । तो जरूर स्वर्ग का साक्षात्कार कराकर और उनको फल वगैरह बैठकर खिलाते हैं । नहीं तो बुद्धि से काम लेना कि सूक्ष्मवतन में धरनी कहाँ है, जहाँ बैठकर वो झाड़ और ये सभी सूबीरस पिलाएगा, फलाना करेगा । तो ये सभी देखो साक्षात्कार । अभी ये जो साक्षात्कार होते हैं, उनमें तो कुछ रखा नहीं है । वो तो जैसे खेल-पाल हो गया । इनको फिर जादूगरी कह देते हैं । जादूगरी कोई ज्ञान तो नहीं है ना । ज्ञान तो कोई जादूगर नहीं कहेंगे । ऐसे तो जैसे मनुष्य हैं, वो भी मनुष्य को बैरिस्टर बनाते हैं, तो उसको भी फिर जादूगर कहें कि भई देखो मनुष्य को बैरिस्टर बनाकर दिखलाया, मनुष्य को इंजीनियर बनाकर । नहीं, वो तो मनुष्य का मनुष्य ही है, सिर्फ उनमें विद्या पड़ती है । इनको जादूगर क्यों कहते हैं? ये बैठ करके ये आत्मा और इनको प्योर करके मनुष्य से एकदम देवता बना देते हैं नई दुनिया के लिए बिल्कुल ही । इसलिए इनको जादूगर. कहा जाता है । तो ये उनका साक्षात्कार का काम भी तो जादूगरी का है । ये तो भक्तिमार्ग में भी जादूगरी का साक्षात्कार कराते हैं । यहाँ भी कराते हैं । बच्चों को सुक्ष्मवतन में भी बहलाते हैं । तो ये सभी जादूगरी, दिव्य दृष्टि की जादूगरी । दिव्य दृष्टि की चाबी ही बाबा के पास होने के कारण उनको जादूगर कहते हैं । ये जादूगरी को कोई जानते नहीं हैं कि भक्तिमार्ग में भी वही... । वो समझते हैं कि कोई गुरू की कृपा है या कहेंगे- ये चित्र में से बाबा ने अपना साक्षात्कार कराया है । अभी वो चित्र देखा या साक्षात्कार किया, उनमें से कोई फायदा तो नहीं । वो तो देखा और हुप्प हो गया । यहाँ तो जिस कृष्ण के लिए मेहनत करके साक्षात्कार करते थे और वो अभी इस समय में तुम स्वयं बन रहे हो । बाबा तुमको बता भी रहे हैं कि तुम अभी ऐसे देवता बन रहे हो, शहजादे बन रहे हो या लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो वा सीता-राम बन रहे हो । ये अभी तुम बच्चे जानते हो कि हम यहाँ आए हुए हैं सूर्यवंशी-चंद्रवंशी डिनायस्टी के राजे-रजवाड़े बनने के लिए । उसमें भी मुख्य बात, बिल्कुल महीन, बाबा कहते हैं ना कि ये महीन कोई नए को समझाओ । उनको तो जैसे बाबा कहते हैं कि परमपिता परमात्मा का परिचय है । बाबा तो है ना जरूर । पीछे भले उसकी बुद्धि में यह हो कि लिंग है और वो भी तो लिंग हो गया । फिर ब्रह्म नहीं कहेंगे । ब्रह्म तो महतत्व है ना । ऐसे तो नहीं है ना ये चित्र कोई साथ में ले जाएगा कहाँ अपने मायटो(संबंधियो) के पास जो बैठ करके समझाएंगे । नहीं, वो वहाँ से इसके ऊपर आ गया । इसके ऊपर मुख से वर्णन होगा । बहुत सहज बात है, सीधी बात और फिर समझाओ भी ऐसे ही । ऐसे चित्र तो रखते ही रहते हैं- 6 बाए 4 नहीं हैं, तो 4 बड़े, ये छोटे हैं । उनके ऊपर भी ऐसे ही समझाओ । इस चित्र के ऊपर बैठो और ये वर्णन करो । इनको दिल पर उतारो । वहाँ से यहाँ उतारो, अपने दिल पर कॉपी करो । अरे, मैं तो समझता हूँ घर में अपने माँ, बहन, भाई सबको बैठ करके समझाने से बहुत सहज है । तुम्हारा विवेक क्या कहता है? बुद्धि क्या कहती है? बहुत सहज है । जिस-जिस को भी, ये सभी राज अंदर के ऊपर उतार कर ले आना है । है तो सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी ना । त्रिकालदर्शी बनना यही तो है ना । तो त्रिकालदर्शी बनना कितना सहज है बिल्कुल ही । त्रिकालदर्शी का अर्थ ही है रचता और रचना के आदि मध्य अंत को जानना । तो ये बिल्कुल क्लीयर गोला बना हुआ है बहुत अच्छी तरह से । मैं तो समझता हूँ बहुत अच्छा है सहज । ये सभी सेन्टर में अगर नया जो आवे उनको ऐसे बैठ करके चित्र रखकर समझावे । अभी ये चित्र बनने में तो देरी नहीं है और फिर इसके साथ झाड़ है । अच्छा चलो इसको भी.. .हटाया, फिर कल यहाँ ये झाड़ रख दो । फिर झाड़ में देखो, भई हम नीचे पहले-पहले तपस्या कर रहे हैं । अभी हम तपस्या कर रहे हैं । हम ऐसा कर रहे हैं मनुष्य से देवता बनने के लिए । देखो, सूर्यवंशी, फिर चंद्रवंशी, फिर हम जाते हैं भक्तिमार्ग में । देखो, ये भक्तिमार्ग लगा हुआ है । इसमें तो भक्तिमार्ग नहीं दिखलाया है ना । उसमें भक्तिमार्ग दिखलाया हुआ है । देखो, पहले वो बैठकर अव्यमिचारी भक्ति(भक्त) बनते हैं, पीछे व्यभिचार में आते आते, ये पास करके देखो पिछाड़ी सब काले हो जाते हैं । पीछे ही बैठते हैं । तो फिर ये समझाना कि देखो, जो झाड़ में नीचे देवी-देवता हैं, वही तो आएंगे । फिर देखो, क्रिश्चियन, बौद्धियों का है या इस्लामियों का है । वो इस्लामी इस्लामी में ही आएँगे फिर, बौद्धी बौद्धी में ही आएँगे, वो उनमें आएँगे और ये जो भी छोटे छोटे पल्ले हैं, उनमें सभी ये दूसरे धर्म वाले आएँगे । ऐसे ही फिर जब ये विनाश होगा तो फिर नंबरवार ऐसे ही, बाबा आकर तपस्या करेंगे ।.. .अभी झाड़ों के ऊपर समझाते तो हैं । पर शायद नए नमूने में बाबा समझाते हैं, वो उतारना है । नए आवे, उनको ऐसे बैठकर समझाएँ । मैं तो समझता हूँ जल्दी समझ जाएँगे । उसको बोलो, अब और कुछ बोलो नहीं जो कुछ पढ़े-लिखे,.. । यहाँ बैठकर ये समझो और इसको दिल पर उतारो । जो भी आवे सेन्टर पर... । सबके पास छोटे झाड़ वो तो हैं नहीं । दोनों ही हैं । दोनों ही सामने रख करके उनको बैठ करके समझावे । तो बहुत सहज समझ जाएगा और फिर उनको समझानी भी- परमात्मा क्या है, आत्मा क्या है, वो तो समझाना ही होता है कि भई, ये अनादि पार्ट इनमें ऐसे नूँधा हुआ है । देखो, इस समय में हम आ करके ये सारा ज्ञान ले लेते हैं । पीछे हमारी आत्मा से ये ज्ञान सारा गुम हो जाता है । पीछे जो पार्ट हमने बजाया है सतयुग में वही राजाई का बजाएँगे सुख का । पीछे फिर रावण के चंबे में फिर दुःख का पार्ट आएगा ।.. .जन्म लेंगे । देखो, समझाना तो बिल्कुल ही सहज है । तुम्हारे पास जिसका भी अभी तलक मुख नही खुलता है, तुमको ऐसे छुट्‌टी कैसे देंगे? तुमने ये कॉन्ट्रैक्ट उठाया है ना कि बाबा, हम सबका मुख खुलवाऐगी । अभी खोलेंगे तो सभी, जो कुछ भी इनके ऊपर जो-जो मेहनत करते हैं । अभी तुम तो होती नहीं हो तो जमुना बैठी है, वो समझाती है । तो देखो, ये कितना पुण्य का काम है । सारा दिन ये धंधा कोई करता रहे, अहो सौभाग्य! और कहीं भी कर सकते हो । शमशान में दोनों चित्र ले जाओ और बैठ करके उनको समझाओ । ये दिल पर उतारो । देखो, कितने ढेर हो जाते हैं । जब वो मुर्दा जले और वापस जाएँ तब तलक वहाँ शांत करके सतसंग करते हैं । शमशान में सतसंग करते हैं... । तो तुम वहाँ बैठ कर उनको समझाओ । तुमको इस बात के लिए कोई रोकेगा नहीं । बाबा भी नहीं रोकेगा, वो भी नहीं रोकेंगे । तुम बोलो- आओ, हम तुमको ये सृष्टि का चक्कर कैसे चलता है... । ये मुर्दा मरकर कहाँ गया, हम तुमको बतावें । ये शरीर छोड्‌कर कहाँ गया, ये कितने दफा शरीर लेता है, हम तुमको सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी बताते हैं । बैठे हो, आए हो तो बैठकर कुछ तो सुनो । हम तुमको सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी चक्कर कैसे लगाते हैं, मैं समझाऊँ । आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है । हम कहती है कि कोई भी नहीं जानते है । बैठो, हम तुमको समझाएँ बहुत अच्छी तरह । तुम बड़े खुश होंगे । तुम हमारे ऊपर न्यौछावर हो जाएंगे, मैं ऐसी-ऐसी बातें बताऊंगी । उसमें भी फिर फिमेल और बात करने वाली भी अच्छी, सयानी, चटकीली । जैसे ये है, ये भी कोई कम थोड़े ही है । करे तो । जैसे वहाँ मथुरा में वो काली है ना, तो देखो जाती है, नदी के किनारे में जा करके कोई न कोई को कुछ सुनाकर ले आती है । तो तुम लोग भी तो जा करके, कही भी जा करके काम कर सकते हो । बाबा समझाते तो बहुत अच्छी तरह से है, फिर मेहनत करना तुम बच्चों का काम है । कच्छ में तुम्हारे सच तो है ही ये । वो मनुष्य के कच्छ में तो झूठी गीता है । तुम्हारे कच्छ में तो सारा वो नक्शा है हिस्ट्री-जॉग्राफी । ले जाकर और समझाना चाहिए । भले अभी तो लक्ष्मी-नारायण का दूसरा नक्शा भी निकला है । कृष्ण का भी है । तीनों ही ले जाएगा... आओ, हम तुमको श्रीकृष्ण का और फर्स्टक्लास बात सुनाएँ कि क्यों उनको श्याम-सुन्दर कहते है । उनका नाम श्याम और सुन्दर क्यों रखा है? श्याम माना सांवरा और बरोबर चित्र में रखते भी हो कि भई ये देखो, सांवरा हो गया है । गोरा भी कहते हो, श्याम भी कहते हो । क्यों गोरा-श्याम कहते हो? आओ सुनो तो मैं तुमको कृष्ण के ये श्याम और सुन्दर की कहानी सुनाऊँ । बड़े खुश हो जाएँगे । बोलो- देखो, ये भारत है, सारा आयरन एज है । ये भारत गोल्डन एज था । तो कौन राज्य करते थे? गोरा कृष्ण का राज्य था ना । लक्ष्मी-नारायण का । तो अभी देखो सांवरा हो गया, इनको आयरन एज कहा जाता है; क्योंकि काम चिता पर चढ़ने से काला मुँह होता जाता है, होता जाता है, होता जाता है । पहले काम चिक्षा पर चढ़ने से इतना नहीं, पीछे होते-होते तहाँ कि काला मुँह हो जाता है तो उसको श्याम कह देते है । मैं कृष्ण की तुमको 84 जन्म की कहानी... फर्स्ट और लास्ट हम तुमको उसकी कहानी सुनाएँ । अरे, ऐसे बैठकर तुम कमाल करके दिखलाओ, बहुत ही सर्विस करके दिखलाओ । क्या समझते हो? ये हमारे प्यारेलाल जी, क्या इसमें कोई तकलीफ है? (भाई ने कहा- कोई तकलीफ नहीं) पीछे तीनों चित्र हैं । बाबा का भी अटेण्डेन्स है या बनाते भी तीनों चित्र हैं । ये, जोडी वो और ये लक्ष्मी-नारायण का वो है, तीनों होवे । एक बात सुनाकर फिर दूसरी बात... तो उनका टाइम हो जाएगा । (भाई ने कहा- ये सहज बात है, बाबा) अरे! बहुत सहज है, सिर्फ पुरुषार्थ की बात है । तो क्या करें!... कहो तो पाट भड़क उठते है ।... अच्छा! जो करेगा सो पाएगा । भला करेगा तो भला पाएगा । न करेगा तो न पाएगा; क्योंकि है कल्प-ल्कल्प की बाजी । केयर टेकर्स हमको बहुत अच्छे मिले हैं यानी यहां-वही सम्भाल... । ये दो भी जैसे कि काफी है ।... ऐसे जो बच्चे होवें तो दिल खुश होती है । मीठे-मीठे, सर्विसेबुल, हर बात की सर्विस होती है ना । सर्विस करनी चाहिए उसको सर्विस कहा जाता है । कोई उल्टी सर्विस करे तो उनको डिससर्विस कहा जाता है । अच्छा! मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता का यादप्यार गुडमॉर्निग ।