09-09-1965     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को चंद्रहास भाई की नमस्ते आज बुधवार सितम्बर की नौं तारीख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं

रिकॉर्ड :-
ओम नमःशिवाय
ओम शाति!
बच्चों ने... गीत सुना ये एक ही सहारा है दुःख से छूटने का, क्योंकि गायन तो है ना और पास्ट भी हुआ है । बरोबर सबका दुःख हर्ता और सुख कर्ता एक है और एक माना ही भगवान । तो जरूर एक ने आय करके ये दुःख हरा है सभी बच्चों का और सभी बच्चों को शांति और सुख का वर्सा दिया है जरूर । इसलिए है गायन और ये कहते भी आते हैं । अभी कल्प को बहुत लम्बा-चौड़ा बनाने के कारण शास्त्रों में कुछ भी खयालात में नहीं आता है । अभी तुम बच्चों को जब समझाया है कि कैसे बाप सुख का वर्सा देते हैं, फिर कैसे रावण दुःख का वर्सा देते हैं । देखो, ये दो अक्षर जो बाप बैठकर समझाते हैं और बच्चों की बुद्धि में बरोबर बैठता है कि सतयुग में सुख है, कलहयुग में दुःख है । अभी तो कलहयुग ही है । और कोई भी मनुष्य की बुद्धि में ये है ही नहीं कि दुःखहर्ता और सुखकर्ता कौन है । परमात्मा ही है, होगा, क्योंकि भारत सतयुग था । श्रीलक्ष्मी-नारायण का राज्य भी था और सुख जरूर था; परन्तु ये कहते हुए भी, शास्त्रों में जो सुना है कि वहाँ भी दुःख था, हिरण्यकश्यप था, हिरण्यकश्य, फलाना; इसलिए उस निश्चय में भी बिचारे खरे नहीं रहते हैं । अभी तुम बच्चे तो अच्छी तरह से जान गए कि ये तो एक खेल है कि बाप वर्सा देते हैं आधाकल्प के लिए और वो जो रावण है एनीमी नंबर वन... । देखो, ये लोग अभी एक-दो को कहते हैं ना कि पाकिस्तान एनीमी नंबर वन । ये हिन्दुस्तान कहते हैं एनीमी नंबर वन । ये क्यों कहते हैं? क्योंकि बरोबर ये मुसलमान पहले पहले एनीमी बने थे भारत के । .जब ये एनीमी बने थे तो वो भी कहते हैं ये भी पुराना एनीमी है । एक दो कहते हैं ना भारत का एनीमी नंबर वन ; क्योंकि मुसलमानों से हिन्दुस्तान की लड़ाई हुई थी । ये तो हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम बच्चे पढ़े हो, परन्तु नहीं, तुम इन बातों में नहीं जाते हो । वो वो(उस) एनीमी को याद करते हैं एक - दो को और उनके ऊपर मारामारी है, फलाना है । इन सबकी बुद्धि में वो और तुम बच्चों की बुद्धि मे क्या है! अरे, यह हमारा, फिर तुम कहेंगे-हमारा; क्योकि पहले तुम्हारा एनीमी बने हैं; क्योंकि तुम ही पहले सूर्यवंशी राजा-रानी राज्य करते थे और वो एनीमी नंबर वन तुम्हारा रावण ही बना, जिससे फिर वाम मार्ग में गए और तुम अपनी राजाई गुमाते गुमाते अभी सब राजाई गुमा दी । सिर्फ तुम ब्राह्मण बच्चो को इन बातों का राज का पता है ।.. .अभी दूसरे एनीमी की तरफ तुम्हारी अटेंशन नहीं गई । उन लोगों की सबकी उस तरफ में । धधे में, धोरियो मे मूँझ रहेंगे । बहुत ही हंगामें होंगे आगे चल करके । बहुत ही तकलीफें होंगी । तुम्हारा उन तकलीफों से जैसे कोई भी तालुक नहीं है । तुम्हारा है पुराना एनीमी कौन? किसका? बरोबर हम आदि सनातन देवी-देवता धर्मवाले थे, जो अब वाममार्ग मे एनीमी द्वारा बने हैं और इस समय में हम बिल्कुल ही कौडी जैसे बन गए हैं । तो देखो, तुम्हारी बुद्धि में जो एनीमी है, वो दूसरे कोई भी मनुष्य की बुद्धि में नहीं होगा; क्योंकि तुम अभी उस एनीमी के ऊपर जीत पहन रहे हो, जिस एनीमी के लिए बाप ने आ करके तुम बच्चों को समझाया है । यहाँ बाप कहते हैं- मैंने आकर तुम बच्चों को समझाया है कि तुम्हारा एनीमी जो है भारत का खास... तो एनीमी नंबर वन कौन है? ये रावण; क्योंकिरावण के भी चित्र यहाँ होते हैं और शिवबाबा का जन्म यहाँ दिखलाते हैं, जिसको अवतरण कहा जाता है और ये है भी बरोबर परमपिता परमात्मा शिव की जन्म भूमि । अभी देखो है तो सहज बुद्धि में समझने के लिए- बरोबर शिव जयन्ती गाई जाती है। शिव के लिए तो गाया है शिव परमात्माय नम: । अभी कृष्ण को तो परमात्माय नम: नहीं कह सकते हैं ना । तो बरोबर ये भारत... । देखो, ये पाई-पैसे की बात है समझने की । सो भी कोई भी पत्थर बुद्धि नहीं समझते हैं । समझते हुए कि शिवजयन्ती यहाँ मनाई जाती है । शिव ने क्या किया, वो उनको कुछ भी पता नहीं है; क्योंकि शिव के बदली में गीता में कृष्ण को रख दिया । तो बिल्कुल ही कुछ भी नहीं समझते हैं । तो अभी तुम जानते हो कि बाबा ने आ करके; क्योंकि भारत तो सबसे ऊँचा खण्ड है । ऊँचे ते ऊच खण्ड, पवित्र ते पवित्र, धनवान ते धनवान और निरोगी ते निरोगी, क्योंकि हेल्थ भी 100 परसेन्ट तो वेल्थ भी 100 परसेन्ट तो हैप्पीनेस भी 100 परसेन्ट । ऐसे 100 परसेन्ट हेल्थ वेल्थ, हैप्पीनेस और कोई भी नेशन की हो नहीं सकती है । अब ये बातें दूसरे कोई जानते तो नहीं है ना । देखो, सुनाते भी किसको हैं- अबलाएँ, कुब्जाएँ साधारण, गरीब निवाज कि गरीबों को बैठकर साहूकार बनाने के लिए। बाबा ने समझाया है ना कि वो तो बहुत ही साहूकार हैं । वो तो अपनी उस खुशी में, उनको तो अपने धंधे धोरी में बहुत माथा घुसा हुआ है और तुम गरीब निवाज । देखो, तुमको तो कुछ इतने हंगामें हैं नहीं । तो तुम बच्चों को बैठ करके समझाते हैं । नहीं तो ऊँचे ते ऊँची पढ़ाई, यहाँ तो बड़े-बड़े मनुष्यों को पढ़ना चाहिए; क्योंकि ऊँचे ते ऊँची पढ़ाई है, परन्तु नहीं, ये फिर पढ़ाई जो बिल्कुल ही गरीब निवाज, साधारण, उनको बैठ करके पढ़ाते हैं और उनको समझाते हैं । तो मेहनत लगती है ना । जैसे कि ये माताएँ तो कोई वेद शास्त्र ग्रंथ पढ़ी भी नहीं हैं, तो बहुत अच्छा है जो ये लोग न पढी हैं, क्योंकि अभी समझाया जाता है कि जो कुछ भी समझा है, सुना है, पढ़ा है, किया है, ये सब भूलो । जो हम नई बात समझाते हैं वो सुनो । तो नई बात हो गई ना; क्योंकि एनीमी नंबर वन । अभी दूसरा तो कोई भी नहीं समझते हैं कि एनीमी नंबर वन कोई रावण है और कब से हमारा एनीमी बना है । सन्यासी भी नहीं समझेंगे तो दूसरे कोई भी धर्म वाले नहीं समझेंगे सिवाय तुम ब्राह्मणो के, जो फिर एनीमी के ऊपर जीत पहनने के लिए... । तो देखो, ये राजयोग और ज्ञान प्राचीन भारत का । प्राचीन का अर्थ भी तो यहाँ है ना कि बरोबर 5000 बरस पहले का; क्योंकि जिसने राजयोग सिखलाया था, सतयुग में राजाई दी थी । तो बरोबर 5000 बरस हुआ ना । वो गाते भी हैं कि प्राचीन भारत का योग । तो देखो, अभी तुम बच्चों को बाप माया के ऊपर, रावण के ऊपर जीत पहनाने के लिए योग सिखला रहे हैं, जिस योग और ज्ञान बल से... । इन दोनों को बल कहा जाता है । योग भी बल। अभी योग तो कोई डिफीकल्ट बात तो नहीं हुआ ना । आत्मा को कहते हैं अभी मुझे याद करो । आगे तो देह अभिमानी थे । अभी तो तुम मुझे याद करो । तो देखो, अच्छी तरह से लिखा हुआ है ना- भगवानुवाच । अभी भगवान हुआ निराकार । तो निराकार को आना पड़े ना, नहीं तो ब्रह्मा में कैसे आवे? ब्रह्मा भी तो बुड्‌ढा है ना । वो बोल देते हैं ना- मैं इसके बहुत जन्म के अंत के... । देखो, कितने सीधे अक्षर अभी तुम लोगों के बुद्धि में आते हैं । कितने बड़े- बड़े गीता वाले ये चिन्मन्यानन्द फलाना, ढेर हैं । भारत में तो इन जैसे बिल्कुल ढेर हैं ।.. .अभी ये तो पुरानी गीता लेकर बहुतों को बच्चों को सुनाते हैं । ये तो कभी किसको कहेंगे ही नहीं कि तुमको अभी पाँच विकारों रूपी माया पर जीत पहनना हैं ।.. .जानते भी नहीं हैं कि ये कहने की... । मामेकम खुद के लिए कह भी नहीं सकेंगे । मामेकम तो चिन्मन्यानन्द को नहीं या शिवानन्द को नहीं । ये तो बाप आकर कहते हैं इस शरीर द्वारा- हे बच्चे! तो देखो, आत्मा से बात करते हैं । आत्माएँ समझती हैं कि बाबा हमारे से बात कर रहे हैं । अभी ऐसे तो कोई दूसरा सतसंग हो भी नहीं सकता है, जहाँ बच्चे भी आत्म अभिमानी बने हैं, बनते जाते हैं । जितना-जितना तुम आत्म अभिमानी बनेंगे इतना परमात्मा को याद करेगे । जितना याद करेगे इतना तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का है । ये बड़ी मूल पाइंट है अपने लिए; क्योंकि तुम सभी बच्चे जानते हो, जो अभी ब्राह्मण बनते हो हम सतोप्रधान थे । हम सो देवी-देवताएँ थे । अभी हम सो असुर बन गए हैं, क्योंकि 84 जन्म आ करके पूरा हुआ है । 84 जन्म का तो किसको पता नहीं है ना । न ड्रामा की आयु का पता है, न फिर जन्म का और फिर भी 84 जन्म किसको मिले ये भी तो बिचारे कोई नहीं जानते हैं, जो तुमने समझा है कि जरूर हम सो देवी-देवताएँ ही पूरा सतोप्रधान से तमोप्रधान में आ गए हैं । हमने बरोबर कैसे 84 जन्म लिए हैं ये तुमको मालूम हो गया है । तुम्हारे में भी नंबरवार जिनको खुटकता रहता है; क्योंकि ये है मूल बात बुद्धि में बैठने की- अभी 84 जन्म का अंत का भी अंत है । अभी ये मृत्युलोक खलास होता है । ये सब जो भी कुछ देखने में आती हैं पुरानी चीजें,.. ये सब देखो क्या है दुनिया में! ये राजाओं के पास, जो बड़े बड़े मालिक हैं खण्ड के रशियन-चीन । इनके पास कितनी-कितनी जवाहरात, कितने- कितने सोने, कितनी- कितनी चाँदी! अरे! गारो के गारे भरे रहते है; क्योंकि इनको सोना रखना होता है ना । अब जैसे भारत को भी सोना जरूर रखना होता है; क्योंकि नोट तो कागज के हैं, उनकी तो कोई वैल्यु नहीं है । तुम अखबारें नहीं पढ़ते हो । अरे, चीन आज इतना टन सोना खरीद करने के लिए अखबार में निकाल रहा है कि हम इतना सोना खरीद कर रहे हैं । तो चीन इतना सोना खरीद कर रहा है, अमेरिका देखो कितना सोना होगा । ये क्या होगा इन लोगों के पास! सोना कोई कम, टन्स के टन्स सोने! ये भी तो तुम जानते हो, तुमको साक्षात्कार कराया हुआ था कि तुम एरोप्लेन ले करके ये जवाहर, सोना और चाँदी कैसे ले आते हो मकान बनाने के लिए । तुमको ये साक्षात्कार शुरू मे कराया था। सो अब पिछाड़ी में तो तुम बहुत ही करेंगे । बहुत- बहुत साक्षात्कार करेंगे। वो है ना- जो तुमने देखा सो हमने न देखा । तो जो पहले हमने देखा सो दूसरे ने न देखा । फिर भी कितने चले गए हैं । हम जो देखेंगे फिर वो नहीं देखेगे। जैसे दोनों तुम देखेगे, जो जीते रहेंगे और योग में रहते रहेंगे । तो देखो, बाप बच्चों को सम्मुख बैठकर समझाते हैं । भूलो मत । कई तो ऐसे ही तवाई, बुद्धियोग कहा रहते हैं । वो नही समझते हैं कि बाबा हम आत्माओं को या बच्चों को समझा रहे है, किसलिए? कि जैसे मेरी आत्मा में... । बाबा भी ऐसे कहेंगे ना, जिसको तुम परमात्मा कहते हो । परमपिता परमआत्मा । आत्मा तो कहते हो ना। परम माना सुप्रीम फिर भी आत्मा तो कहते हो ना । तो बरोबर परमआत्मा ज्ञानसागर है, सुख का सागर है, शांति का सागर है, पवित्रता का सागर है, प्यार का सागर है । यह बरोबर उनकी महिमा है ना । तुम कृष्ण की ये महिमा नहीं कर सकते हो । तो बाप बैठ करके तुमको अभी इस समय में आप समान बनाते हैं । फिर इस समय में तुम ज्ञान सागर हो । ऐसे नहीं कहेंगे कि तुम कोई सतयुग में ज्ञान सागर होंगे । नहीं । ये ज्ञान तुम्हारे में कुछ भी नहीं होगा बिल्कुल ही, क्योंकि ज्ञान प्रायःलोप हो जाता है । ऐसे नहीं कहते हैं कि ये प्रेम, शांति और तुम्हारी ये नॉलेज लोप हो जाती है । लोप हो जाएगी जरूर, परन्तु ये प्यार और मर्तबा तो लोप नहीं होगा ना । बाकी ये ज्ञान लोप हो जाएगा पढ़ाई है । इसलिए बाबा कहते हैं कि बच्चे, मैंने कहा था कि ये ज्ञान प्राय:लोप हो जाएगा । आगे भी बच्चों को ऐसे ही कहा था । कोई में भी कोई भी किस्म का ज्ञान नहीं रहेगा और वो ऐसे भी नहीं कहेंगे कि हमको ये राज्य कोई परमपिता परमात्मा ने दिया है । ये भी नहीं कहेंगे । अरे, ये तो अज्ञान काल में मनुष्य कहते हैं कि सबकुछ ईश्वर ने दिया है; परन्तु उनको ये भी नहीं कहना है कि कोई ईश्वर ने दिया है । कुछ भी नहीं, वो अपनी प्रालब्ध भोगना शुरू कर देते हैं, बस । उन लोगों को ईश्वर का नाम याद भी नहीं रहता है । याद रहे तो पीछे उनको सिमरे ना कि बाबा, आपने तो हमको बहुत अच्छी बादशाही दी । अरे पर, दी कैसे वो कौन बतावे? ऐसे कह भी नहीं सकते । बस, ये जैसे तुम जब जीत पहनेंगे... मेरे पास जाकर जन्म लेंगे । जन्म लेंगे तो जैसे मनुष्य जन्म लेते हैं और पैसे होते हैं तो भले बाप मकान न बनावे, बच्चा बनाना शुरु कर देते हैं जो बालक होते हैं । यह बनाऊ यह बनाऊँ;, बाप के पैसे तो बहुत पड़े हैं । तो बस, वहाँ भी ऐसे ही पैसे बहुत पड़े हैं, अभी तो हम महल बनावे, ये करे । उस समय में वो ताकत आ जाती है बहुत ही; क्योंकि ये एरोप्लेन वगैरह ये तो सब होते ही है ना । एरोप्लेन, दूसरा क्या कहते हो? हेलीकॉप्टर्स । ये तो तुम बच्चों को सब साक्षात्कार कराए ही थे । स्कूल में भी तुम जाते हो इन हेलीकॉप्टर्स में । तुम्हारे लिए हेलीकाप्टर ऐसे ही है जैसे यहाँ मोटर में वहाँ जाना । इसको फुल प्रूफ कहा जाता है । तो अभी तुम बच्चों को क्या करना चाहिए? नम्बर वन तुम किस धुन में हो और ये दुनिया किस धुन में है! तुम इस धुन में हो कि हमारा एनीमी नंबर वन जो ये पांच विकार रूपी रावण है, हमको इनके ऊपर जीत पहननी है । कैसे जीत पहननी है? भई, इस ज्ञान-योग बल से । बाप ने अच्छी तरह से समझाया कि वो है बाहुबल और ये एक ही बार का है योगबल, जिससे तुम विश्व पर राजाई पाते हो । अभी वो जो योग सिखलाते हैं, इतने लाखों योगाश्रम बने हुए हैं, वहाँ ऐसी बातें थोड़े ही कोई सिखलाते हैं । क्यों? ये अनुभवी है ना । सभी प्रकार के गुरू भी किया है, सभी प्रकार के कुछ न कुछ हठयोग भी किया है ।
नहीं तो डिफीकल्ट भी तो बहुत हैं । ये डिफीकल्ट भले कोशिश कराई है; परन्तु वो नहीं की है । भई, प्राणायाम चढ़ाने की कोशिश की है, नहीं की है, परमनुष्य तो बहुत ही अनेक प्रकार का करते हैं ना । अभी ये अनुभवी तो हुआ ना । बाप भी समझाते हैं कि मैंने बहुत जन्म के अंत के जन्म के भी अंत वाले में प्रवेश किया है और प्रवेश भी उन्हीं में करना है जिनमें कल्प पहले किया था। उनका नाम भी रखना है जरूर- ब्रह्मा; इसलिए देखो, तुम सब बच्चों का नाम ऊपर से आ गया था । ये भी तो एक वण्डर है ना कि सबके लिए इकट्‌ठे कितने फर्स्ट क्लास नाम आए थे । कितने? मैं समझता हूँ अठाई सौ नए-नए नाम थे, जो बाबा को तो नाम भी याद नहीं पड़ सकते । कितने याद कर सकेंगे! अभी इन्हों का नाम याद करें जो यहाँ आते हैं, ये कहती है- बाबा, हमको याद करना, हमारा नाम फलाना है । बाबा, हमको भूल न जाना । अभी वहाँ नाम जो बाप ने रखे हैं वहाँ भूल गए तो और नाम कैसे याद रख सकेगे! तो अभी तुम बच्चों को कैसे एनीमी को जीतना है, कैसे अपना वर्सा लेना है । देखो, वो लोग तो हंगामा मचाते हैं बंदूक... । तुमको देखो, ऐसे बैठ जाना होता है । अभी बैठो यानी बाप कहते हैं फिर शांत में । उस एनीमी को जीतने के लिए तुमको कोई हंगामा नहीं करना है । बस, बैठ करके बाप को याद करना है । बिलवेड बाप, त्वमेव माताश्च पिता; क्योंकि माता-पिता से तो दुःख मिलता है ना । ये सब, सबसे । तुम्हारे जो भी फिर मात-पिता होंगे सब एक, दो को सुख देते रहेंगे । ये माता-पिता एक – दो को दुःख देते हैं । उसमें भी पहले नंबर का दुःख कौन-सा देते हैं? एक दो को काम-कटारी के ऊपर चढ़ा देते है । तो ये हुआ दुःख, क्योंकि बाप ने कहा है ना- काम महाशत्रु है । इस रावण राज्य में भी जो फिर ये उनके भूत हैं, उनमें भी जो ये शत्रु काम है वो तुम्हारा...एनीमी तो रावण है, उनमें भी ये काम तुम्हारा बहुत शत्रु है । इसके ऊपर पहले जीत पाना पड़ता है । तभी तो बाप भी कहते हैं ना, तभी तो रखड़ी बंधन का भी जो यहाँ त्यौहार चलाते हैं, कोई राज तो है ना । अभी दुनिया तो इन राजो से कुछ भी नहीं जानती है । तुम जानते हो कि बरोबर ये जो हम बोलते हैं कि परम्परा से चले आते हैं । अभी परम्परा से कैसे चले आते हैं, ऐसे नहीं कि परम्परा से माना शुरू से लेकर अंत तक । तुम ये जानते हो कि अभी तुम रखडी बाँधते हो, पीछे ऐसे तो नहीं है कि इस का त्यौहार तुम सतयुग-त्रेता में मनाएँगे । वहाँ फिर लोप हो जाता है, क्योंकि वहाँ सुख है । फिर भक्तिमार्ग मे यह रखड़ी त्यौहार शुरू हो जाता है । नहीं तो है तो अभी ना । अभी रखड़ी कोई बाँधने की तो बात नहीं है ना । ये तो बाप आकर कहते हैं- बच्चे, काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो । कोई रखड़ी बाँधने की बात नहीं ठहरी । ये तो जो प्रतिज्ञा कोई करते हैं तो प्रतिज्ञा मुख से भी करते हैं, प्रतिज्ञा लिखत में भी करते हैं, जिसको एग्रीमेन्ट कहते हैं । तो ये भी ऐसे ही है । प्रतिज्ञा करनी है अपने से कि हमको तो पवित्र बनना है पवित्र दुनिया का मालिक बनने के लिए । इसमें रखड़ी क्या करेगी? कोई रखडी बाँधते हैं क्या? हम तो रखडी कभी कोई को भी बाँधा नहीं था । शुरुआत से लेकर कोई रखडी थोड़े ही बाँधा है; पर ये समझाया जाता है कि इस समय में बाप आकर प्रतिज्ञा कराते हैं कि बच्चे, अभी पावन बनो, मुझे याद करो तो योगाग्नि से तुम्हारा कचड़ा दगध होता जाएगा और फिर यहाँ तुमको सतोप्रधान बनना है । पीछे देखो ये होता है ना, कोई सतोप्रधान बन सकते हैं, कोई नापास हो करके सतो बनते हैं । देखो, श्रीरामचंद्र के लिए दिखलाते हैं ना कि क्षत्रिय है । अभी दुनिया को तो मालूम नहीं है कि क्षत्रिय को ये जो पड़ा हुआ है, ये क्षत्रिय किस प्रकार के? वो तो हिंसा का तीर-बाण लगा हुआ है । इसमें तो ये तीर-बाण की बात ही नहीं है । उन्होंने तो ऐसे ही ; क्योंकि सूर्यवंशी, क्षत्रिय....तुम भी क्षत्रिय हो इस समय में युद्ध के मैदान में माया पर जीत पहनने वाले; परन्तु माया पर जीत न पहनने के कारण वो दिखलाते हैं नापास हुआ । माया की जीत पहनने में नापास हुआ; इसलिए इनकी दो कला कम हो गई । यानी 25 परसेन्ट ये कम हो गया; क्योंकि 16 के बदली मे ये 14 कला में पास हो गया । तो ये जैसे इस्तहान ठहरा ना ।.. इसमें इम्तहान है जैसे; क्योंकि पाठशाला है । ये इम्तहान तुम्हारा । इम्तहान कौन-सा गुप्त वेश में? ये जो भी अच्छी तरह से याद में रह करके सतोप्रधान बन जाएगा तो वो सतोप्रधान ही बनेगा । कोई सतो पर ही आ गया तो सतो पर आ जाएगा । कोई रजो पर तो फिर रजो पर । .ये जो राजधानी बनेगी ऐसे ही तुम्हारा पद भी हो जाएगा । इसमें तो जो बच्चे हैं ब्रह्माकुमार-कुमारी कहलाते हैं, जो वारिस के अधिकारी बनते हैं । वारिस के जो अधिकारी बनने वाले हैं वो कोशिश करते रहेंगे, पुरुषार्थ खूब जोर से करते रहेंगे । फिर उनमें जितना जो पुरुषार्थ करेंगे, औरों को पुरुषार्थ कराएँगे; क्योंकि बच्चों को आप समान भी बनाना है । प्रजा भी तो बनानी है ना । तो जितना बड़ा खुद बनेगा उतनी बड़ी बादशाही तुम बना सकेंगे । प्रजा भी बनाएँगे । बहुतो को आप समान बनाने की कोशिश करेंगे । तो देखो, ये कितनी सर्विस हो गई! कोई को भी तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ अभी कोई सुना, न किया, न कोई शास्त्र में ऐसी बातें लिखी हुई हैं कि कोई परमपिता परमात्मा ऐसे आकर के योग सिखलाते हैं कि बच्चे, इस अंतिम जन्म में तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है । ये तुम्हारे लिए भट्‌ठी है । किसकी? रूहानी भट्‌ठी । वो जो भट्‌ठी कहा जाती है वो तो सबसे अलग हो करके, सात रोज जैसे भट्‌ठी कहा जाती है ना, वो तुम्हारी कराची की भट्‌ठी और थी । इस समय की जो फिर बाबा भट्‌ठी सिखलाते हैं योग की वो फिर और हो गई । वहाँ एक तरफ हो गए । कोई भी दूसरे से मिलन-मिलाप हुआ ही नहीं । पाकिस्तानियों से तुम्हारा धंधा नहीं । जैसे कि तुम अपनी ही भट्‌ठी मे थे, अपनी उस ब्राह्मणों की टुकड़ी राजधानी में । तो वो भट्‌ठी दूसरी । ये फिर है आत्माओं को बुद्धियोग बल की भट्‌ठी, जिसमें ये कचड़ा निकल जाना है । तो इसमें मेहनत करनी चाहिए ना । ये अपने ही लिए है । आत्मा को ये मिला । आत्मा तो चैतन्य है ना । समझती है । ये जो भी कुछ ज्ञान के वर्शन्स हैं सो आत्मा सुनती रहती है ये ऑरगन्स द्वारा । तो जरूर ये ज्ञान, समझो कि कोई आज मरता है, शरीर छोड़ता है तो ये ज्ञान के संस्कार तो साथ में ले गया ना । शरीर छोड़ दिया जाकर जन्म लिया । जब फिगर थोडा बड़ा होगा तब फिर वो संस्कार ले करके आएगा । जैसे बाप ने समझाया ना- हर एक संस्कार ले करके फिर उसी धुन में आ जाते हैं । जैसे बाबा ने समझाया- ये जो लड़ाई वाले होते हैं, जो लड़ाई करते हैं, उनके संस्कार लड़ाई के । देखो, शरीर छोडेंगे लड़ाई के मैदान में, फिर आ करके जन्म तो ले लेंगे । फिर वो जो संस्कार ले आते हैं उन संस्कार अनुसार फिर लड़ाई मे भर्ती हो जाते हैं । ये भी ऐसे ही है । जो माया की युद्ध करने वाले संस्कार ले जाते हैं, कहाँ भी जन्म लेगा तो जब थोड़ा भी बड़ा होगा तो बस वहाँ संस्कार वाला होगा । छोटेपन से भी उनको कोई समझाएगा और समझाएगा भी जरूर । संग में भी जरूर आएंगे । जैसे सिपाही फिर बड़े हो करके संस्कार अनुसार सिपाहियों के संग में आ जाते हैं, वैसे ये भी जो संस्कार ले जाते हैं, अगर शरीर छूट भी जाता है, फिर आ जाएगा; पर दिन-प्रतिदिन टाइम तो थोड़ा होता जाता है । अभी कितना 25 बरस तो हुआ । 25 बरस में बहुत ही मरे होंगे । यहाँ आ करके संस्कार ले करके कोई न कोई के शरीर में होंगे और वो बैठ करके संस्कार अनुसार ज्ञान फिर से अपना लेते होंगे । फिर भी इस रूहानी मिलिट्री मे आ गए होंगे । जैसे वो जिस्मानी मिलिट्री में चले जाते हैं, तुम फिर इस रूहानी मिलिट्री में आ जाते हो । फिर कहीं न कहाँ से, किस न किस रूप में जरूर जाते हैं, कोई न कोई से अपना कर्म का हिसाब-किताब चुक्तु करने के लिए । फिर भी उनकी बुद्धि में यहाँ... । वो आकर के फिर यहाँ । ऐसे बहुत बच्चे होंगे जो इसमें आए होंगे । अभी एक- एक के लिए बैठ करके कोई बाप से थोड़े ही पूंछना है- बाबा, फलाना कहाँ जन्म लिया है? या कहाँ आया हुआ है? इतना तो हम कोई के लिए भी नही पूंछ सकते हैं । बाप तो कहेंगे ये पूछने से तुम्हारा क्या फायदा! तुम अपनी धुन में रहो ना । इन बातों में तो तुम्हारा कोई फायदा ही नहीं है । तुम अपने जो जन्म-जन्मांतर के पाप हैं, उनको भस्म करने के लिए तुम अपना धंधा करो, अपना पुरुषार्थ करो और बाकी इन सब बातों में क्यो जाते हो? तो बाबा समझाते हैं ना । तो तुम बच्चों को अपनी धुन में रहना है। भले ये भोग लगता है, फलाना लगता है, ये तो जो कुछ भी होता है सेकेण्ड बाई सेकेण्ड... देखो, बाबा अभी सेकेण्ड बाई सेकेण्ड ऐसे बात करते हैं ना । बस, ये ड्रामा जैसे कि नया शूट होता जाता है । फिर भी कल्प के बाद ऐसे ही बैठ करके तुमको समझाएंगे । तो जिस समय मे जो चीज होती है वो रिपीट होती जाएगी । देखो, ये साक्षात्कार जो होते हैं, जो कुछ भी होता है, ये कल्प पहले भी हुआ था और ड्रामा अनुसार जैसे कि ड्रामा हमको अमल में ले आते हैं । तो इसलिए कोई भी इनमें मूँझने की दरकार नहीं है; क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है, अभी पाकिस्तान का ये सभी इतना हो रहा है, नथिंग न्यू । सेकेण्ड बाए सेकेण्ड ऐसे ही समझो कि एक मूवी है । वो बाइसकोप होती है ना, वो फिरती ही रहती है । मशीन फिरती रहती है, वो ढहते जाते हैं । जैसे ये ड्रामा है ना, अभी इनमें कुछ भी भरो पुराने में, नए में, तो वो ढहता जाएगा, नया भरता जाएगा । ऐसे ये ड्रामा, इसका भी जो व्हील या प्लेट है, इसको क्या कहें? टेप, तो ये बेहद का बड़ा टेप है एकदम । ये भी ऐसा ही है । हम पार्ट बजाते, मिट भी जाता है, हमारा जैसे कि नया भरता जाता है । फिर हमको वो रिपीट करने का है । तो ये पार्ट बजाते तो हैं ना जरूर । पार्ट बजाते जाते हैं, वहाँ पार्ट फिर जैसे कि शूट होता जाता है, जो फिर हमको करना है । तो ये कितनी महीन बातें हैं । ये बातें कोई शास्त्रो में थोड़े ही होती हैं । ये तो बिल्कुल ही झूठे, अगर झूठे शास्त्र न होते तो क्यों ये कहा जाता कि झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार? और बाप ने आ करके शास्त्रों के लिए सिद्ध करके बताया कि बच्चे देखो, अभी पढते आए हो । देखो, गीता व्यास भगवान ने... । अभी देखो, क्या बैठ करके बताया है । जैसे ये लोग झूठे नाटक बनाते हैं, उन्होंने बैठ करके भक्तिमार्ग के लिए ये शास्त्र बनाए हैं । इनमें सभी कनरस है, फलाना है । सीता चुराई गई, बैठ करके रोते हैं, फलाना करते हैं । कृष्ण के लिए भी ऐसे ही- कंस ले गया उनको, टोकरी में बिठाकर । टोकरी में और ये कहाँ से आया, देखो कितनी लम्बी-चौड़ी वाहयात बातें! अब भक्तिमार्ग वालों को कुछ भी थोडा कहते हो, वो फिर जाएँगे । बोलेंगे, भक्ति से ही तो सद्‌गति मिलती है ना । अरे पर, भक्ति से दुर्गति होती है तब तो सद्‌गति मिलती है ना, ये बुद्धि में नहीं बैठता है । कहते भी हैं बरोबर कि सद्‌गति भक्ति से मिलती है । अच्छा, भक्ति से मिलती है ना, तो जरूर भक्ति बहुत करेंगे तब ना! तो भक्ति ही तुम शुरू से करते हो । पहले अव्यभिचारी भक्ति करते हो । भला वो अव्यभिचारी भक्ति से तुम्हारा कोई कल्याण हुआ क्या? नहीं, उस अव्यभिचारी भक्ति से फिर व्यभिचारी भक्ति में आते हो । फिर व्यभिचारी भक्ति में देवताओं से फिर और नीचे चले आते हो, तहाँ कि आ करके ये तत्वों की भी पूजा करने लग पड़ते हो । अच्छा, भक्ति से क्या हुआ? भक्ति से तो उतरती कला हो गई ना । भक्ति से दुर्गति हो गई । अभी ये समझावे कौन? हम भी तो भक्ति अच्छी, बड़े धुन से बैठते थे, कृष्ण के पिछाड़ी डांस करते थे, ये करते थे । बहुत कुछ करते थे । सो भी एक जन्म की बात है; परन्तु जन्म-जन्मांतर तो हमने भक्ति बहुत की, ये अभी बुद्धि में बैठा कि हमने जन्म-जन्मांतर क्या न किया होगा! शिव की भक्ति में भी कितना मत्था, सारी आयु लगाई होगी; क्योंकि भक्ति तो सदैव की जाती है ना, पूजा-पूजा जो अभी खयाल पड़ता है भक्ति कितनी की होगी! आधाकल्प पूरी सतोप्रधान से लेकर तमोप्रधान तक भक्ति की है । जब तमोप्रधान भक्ति पहुँच गई है तब फिर बाबा आया है हमको सतोप्रधान ज्ञान में ले करके और देखो देते हैं । अभी ये तो बुद्धि में किसके मुश्किल बैठता है जो बैठ करके बुद्धि में समझे और समझावे, परन्तु बाबा ऐसे नहीं कहेंगे कि पहले बैठ करके ये बाते समझाओ । पहले शुरुआत में परिचय तो दो । जब परिचय होवे, जब तुम एक बात में राइट हो जाओ कि बरोबर परमपिता परमात्मा बाप है, सर्वव्यापी नहीं है, उनसे इनहेरीटेन्स मिलना है जरूर, क्योंकि बाप सतयुग की स्थापना करने वाला है । जरूर बेहद के बाप से इनहेरीटेन्स चाहिए । तो क्या इनहेरीटेन्स कभी मिली थी? तो तुम समझा सकते हो कि हाँ बरोबर, ये भारत था 5000 वर्ष पहले इनहेरीटेन्स मिली थी स्वर्ग की बादशाही सतयुग की । कौन कहते हैं नहीं मिली थी? बस, ये तो बुद्धि में आ जाएगा । फिर वो कैसे हमने गंवाई, फिर उनको बैठकर समझाना पड़े ना भई, आधाकल्प के बाद फिर रावण राज्य शुरू होता है फिर वो राजाई । तो गोया है ही, गाया भी जाता है- हार-जीत का खेल । उसमें भी कहते हैं कि माया ते हारे... । मन ते हारे हार नहीं । माया ते हारे हार है, माया पर जीते जीत । अभी माया को कोई जानते नही हैं । माया तो धन को भी कह देते हैं कि इनके पास बहुत माया है और हम कहें कि ये तो इनको गाली देता है । इनके पास बहुत भूत हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह । नहीं तो माया को तो पाँच विकार, उनको सम्पत्ति कहा जाता है। ये भी मनुष्यो को बुद्धि में नहीं है कि माया को तो पांच विकार रूपी रावण कहा, उसको सम्पत्ति कहा जाता है, धन कहा जाता है, वेल्थ कही जाती है । सम्पत्ति कही जाती है, माया नहीं । तो कोई के पास धन बहुत होगा, कहेंगे- देखो, इनके पास माया है ना; इसलिए बड़े घमण्ड में रहते हैं । तो ये भी कोई को पता नहीं है कि उसको सम्पत्ति कहा जाता है । ये जो पॉच.तत्व जिससे शरीर बनता है उनको प्रकृति कहा जाता है । सम्पत्ति कहो, प्रकृति कहो और वो माया कहो, देखो! सबके अर्थ ही अलग अलग हैं । तो बाप बैठ करके एक बात को अच्छी तरह से समझाते हुए अभी... तुम डाल तो सकते हो ना । जैसे मैग्जीन निकलती है, तो ऐसे समझाना चाहिए कि ये जो तुम लिखते हो कि तुम्हारा एनीमी नंबर वन, परन्तु भारतवासियों , तुम भूले हो । ये देखो, मैग्जीन भी तो निकलती हैं ना, उनमें तो ऐसी ऐसी प्याइंटस जानी चाहिए ना । फट जब वो कहते हैं एनीमी नंबर वन तो फट उसमें लिख देना चाहिए कि हमारा एनीमी नंबर वन भारत का वास्तव में ये पांच विकार रूपी रावण है । आधाकल्प का एनीमी है, जिस एनीमी ने हमको दुर्गति को पहुँचाया है और उस एनीमी का जब राज्य होता है तभी भक्ति शुरू होती है । ज्ञान तो आधाकल्प दिन हो गया । अरे, भक्ति रात। कहा भी जाता है ब्रह्मा की रात भक्ति है । तो रात माना दुर्गति है ना । रात में कोई सुख मिलता है क्या? ठाबा खाना पड़ता है । तो देखो, भक्ति में ठाबा ही खाना पड़ता है, धक्का खाना पड़ता है । ये तो समझना चाहिए ना कि ब्रह्मा का दिन चढ़ती कला, फिर ब्रह्मा की रात जब आधा से शुरू होती है, उतरती कला है । तो उतरती कला माना नीचे दुर्गति को पाना है ना । तो फिर भक्ति को अच्छा कैसे कह सकें? नहीं, ये तो ड्रामा को समझाया जाता है कि फिर रावण का राज्य, तो फिर उनके साथ ये भक्ति भी शुरू हो जाती है; परन्तु ये भी जब कोई अच्छी तरह से बैठकर समझे और खूब पुरुषार्थ करे कि हमको पाँच विकार रूपी रावण को कैसे जीतना है । हम आत्मा को बाबा कहते हैं, राय देते हैं, श्रीमत देते हैं श्रेष्ठ बनने के लिए- हे मेरे लाडले बच्चों! मुझ अपने श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, ऊँचे ते ऊँचे बाप को याद करो; क्योंकि वो सर्वशक्तिवान है और उनको याद करने से तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । विकर्माजीत बनने का और कोई भी दूसरा उपाय है नहीं । ये जो है ये सब भक्ति । ये गंगा स्नान फलाना, देखो कितनी तकलीफ है, कितने धक्के हैं! मेहनत है ना । तो धक्के खाते- खाते आधाकल्प लग जाता है । उसमें भी नंबरवार- पहले सतोप्रधान धक्के, पीछे सतो फिर रजो फिर तमो धक्का । अभी तो बिल्कुल ही, देखो क्या जाते हैं कुम्भ के मेले के ऊपर! ठण्डी मे कितने दुर्गति को पाते हैं! तो बाप आ करके अभी कहते हैं कि देखो, तुम बच्चों को अब ये धक्कों से छूटना है । ये रात पूरी होती है । अभी कहते भी हैं कि बरोबर ब्रह्मा की रात आधाकल्प ब्रह्मा का दिन आधाकल्प । अभी ये भी तो समझने की बात हुई ना- आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात । तो ब्रह्मा का दिन क्यों? राज्य करते हैं ना । फिर वहाँ ब्रह्मा जो राज्य करते हैं, जोले रहे हैं, अभी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ राज्य ले रहे हैं ना, राज्य करेंगे। अच्छा, भई दिन होगा ना । तो तुम्हारी बुद्धि में अभी बैठता है ना बरोबर ।और तो कोई मनुष्य के लिए ऐसी बातें नहीं हैं । तुम्हारी बुद्धि में बैठा है कि बरोबर हम ब्राह्मणों का ये अभी दिन हो रहा है और हम ब्राह्मणों की जो अभी आधी रात है, ये जो चल रही है, ये चलकर जैसे कि प्रभात होती जाती है । जैसे वो रात होती है, फिर प्रभात । ये बेहद की रात फिर प्रभात होती है । तो तुम बच्चों को ये खुशी होती है, अभी हमारा दिन माना सुख, रात माना दुःख । तो दुःख और सुख का ये खेल कैसे बना ? अभी कहना तो बहुत सहज है दुःख-सुख का खेल बना है, हार-जीत का खेल बना है, पर कैसे? ये तो कोई नहीं जानते हैं । तो देखो, बाप आ करके तुम बच्चों को ये सारा राज बताते हैं । त्रिकालदर्शी भी बनाते हैं । पुरुषार्थ भी करते हैं । अभी जितना जो पुरुषार्थ करेंगे... अभी योग की बात मुख्य हो गई ना । ज्ञान तो सहज है- बीज और झाड़ । ये बुद्धि में बीज और झाड़ सारा ज्ञान आ जाता है । बीज ऐसा बोया जाता है, उसमें दो पल्ले निकलते हैं, चार निकलते हैं, फिर बड़े होते होते देखो कितना बड़ा झाड़ हो जाताहै! फिर विनाश तो होना ही है; परन्तु फिर भी बीज से ही झाड़ निकलता है और झाड़ को विनाश होना है । ये तो एक ही है बीज और एक ही है झाड़ । वो तो अनेक झाड़ हैं ढेर के ढेर, ढेर के ढेर बीज हैं; पर इस मनुष्य सृष्टि का तो कहा जाता है कि ये जो अनेक धर्मो का उल्टा झाड़ है, उनका बीज एक है । वो तो बीज से बीज होता है ना । अभी बच्चों को तो बुद्धि मे बैठा कि बरोबर ये उल्टा झाड़ है । सुल्टे यहाँ बोते हैं और वो वहाँ बोते हैं । ये धरनी में बोते हैं, वो महतत्व में है बीज । वहाँ से आते हैं यहाँ तो इसको उल्टा झाड़ दिखलाते हैं । बरोबर है भी जैसे कि उल्टा झाड़ । तो इन सब बातो को अच्छी तरहसे समझना चाहिए, उसमें भी अभी मुख्य बात यह रही कि टाइम तो बहुत थोड़ा है । बहुत गई थोडी रही, अभी थोडी की भी थोडी समय रही । तभी.. .गाया भी जाता है-एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी की पुन आध । तुम बाप को तो याद करने लग पड़ो पीछे बढाते रहो । पहले पहले तो थोड़ा याद आता है ना, पीछे उनको बढाया जाता है, चार्ट रखना पड़ता है कि हम बाबा को बाबा की श्रीमत पर कितना याद करते हैं । हम समझ जाएंगे जितना हम याद करते हैं इतना हम तमोप्रधान से तमो मे चढ़ेंगे फिर रजोमें चढ़ेंगे, ऐसे ही चढ़ते जाएँगे । ये तो अपने से...आत्मा अभी अपन को समझ गई ना कि हम आत्माएँ, हर एक को अपनी धुन लगी पड़े । इनको अपनी धुन, तुमको अपनी धुन, बाबा सिखलाने वाला । वो तो कोई पुरुषार्थी नहीं है ना । वो तो सिखलाने वाला हो गया । समझा ना । पुरुषार्थ हमको करना है । वो पुरुषार्थ सिखलाते हैं । तो ऊँचे ते ऊँचा पुरुषार्थ सिखलाने वाला ये- मनुष्य से एकदम देवता । पुरुषार्थ तो सभी कराते हैं ना । माता, पिता, टीचर, गुरू सब पुरुषार्थ कराते हैं । ये फिर बाबा भी, टीचर भी, गुरू भी । ये बच्चों को हर प्रकार का पुरुषार्थ कराता है । बाप का तो लव है ही । प्यार तो करते हैं, सारा दिन बच्चे-बच्चे करते रहते हैं और क्या करते हैं! क्योंकि उनकी बुद्धि में तो सब बच्चे- बच्चे ठहरे ना । ये बाबा समझते हैं ना कि बाबा सबको बच्चे समझते हैं, मैं सबको बच्चे-बच्च्री समझता हूँ क्योंकि बहनें और भाई हैं । ये ब्रह्माकुमार-कुमारियॉ हैं । तो ब्रह्मा द्वारा ही कुमार-कुमारियाँ बनीं और शिव द्वारा तो सब बच्चे बने । वो बहन-भाई मे आ गए, शरीर में आ गए ब्रह्मा द्वारा । नहीं तो तुम सभी आपस में भाई- भाई हो । तो देखो, यहाँ भाई- भाई, पहले- पहले बहन- बहन । तो सभी बहन- बहन और इतने सभी वर्सा किससे लेते हैं? ये डाडे से । देखो, कितना अच्छा ये कुटुम्ब है! अभी इसको ही कहा जाता है ईश्वरीय औलाद ब्रह्मा द्वारा, क्योंकि ईश्वर तो निराकार है ना । तो ब्रहूमा द्वारा ये प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा तुम ब्राह्मण बने हुए हो और ये फिर जानते हो कि हम फिर सो देवता बनेंगे । अभी वर्ण तो बिल्कुल क्लीयर है ना । ये चोटी ब्राह्मण, ये देवता क्षत्रिय वैश्य शूद्र और उन्होंने मिस्टेक की है, विराट स्वरूप निकाला है; पर न चोटी है, न उनको शिवबाबा का है । तो हम तुमको शिवबाबा कैसे दिखलावे? ब्राह्मणों की चोटी तो ठीक है; पर शिवबाबा तो समझाएँगे ना कि भई ब्राह्मणों के ऊपर में है शिव । देखो, ब्रह्माकुमार-कुमारी हो और बरोबर आत्मा तो है ही निराकार, वो कैसे देखने में आएगी? ब्राह्मण तो देखने में आते हैं ना । अभी.. शिवबाबा कैसे देखने में आते हैं, समझने के हैं । आत्मा खुद समझती है कि बरोबर वो हमारा बाबा है। अभी मालूम पड़ा कि मैं भी स्टार हूँ तो हमारा बाबा और क्या होगा! वो तो ऐसे ही होगा; क्योंकि आत्मा कोई छोटी-बड़ी तो किसकी होती नहीं है । तो इसलिए बाबा भी हमारा ऐसे ही होगा जरूर । तो अभी तुम बच्चों को मालूम पड़ा कि हम आत्माभी स्टार हैं तो वो भी स्टार रूप है, परन्तु वो सुप्रीम है, हम उनके बच्चे हैं, क्योंकि उनको हम फादर कहते हैं । आत्मा बाप को फादर कहती है । अभी बड़ी क्या हो सकेगी! जबकि तुम्हारी इतनी छोटी में ही सारा ज्ञान,.. तो उनकी भी तो उस छोटी आत्मा में ही ये ज्ञान भरा हुआ है ना, जो सारा तुम्हारे में पलट जाता है । सिर्फ उनमें क्या बाकी रहता है । और तो कोई नहीं, शिव... में कोई दूसरी ताकत नहीं है कि दीवाल को उड़ाकर ये करे या आदमी मरे तो उनको जिलावे । बाबा ऐसे कोई धंधा नहीं करते हैं । वो तो साफ कहते हैं कि मैं आता हूँ तुम बच्चो को फिर से ये राजयोग सिखलाने के लिए । देखो, कितना अच्छा बोलते हैं कि हम हर बात में... क्योंकि बाप बच्चों का ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट है । ये तो सब कोई समझेंगे । जबकि बाप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट है, फिर भी, क्योंकि वो बाप बच्चे के ऊपर बलि चढ़ता है ना । तो फिर बड़ा कौन हुआ? बच्चा बड़ा हुआ या बाप बड़ा हुआ; परन्तु नहीं, वो बाप है जो उनको देते हैं, इसलिए छोटा है, अदब रखना पड़ता है । नहीं तो ये तो किसके बुद्धि में नहीं है ना । बाप बिठाते हैं- अरे भई, तुम बड़ा या तुम्हारा बच्चा बड़ा? तुम बच्चे के ऊपर बलि चढ़ते हो ना । धन-दौलत सब कमाय करके तुम सारा उनको वर्सा दे देते हो तो बरोबर बलि चढ़े ना। अभी बड़ा कौन हुआ? बड़ा तो बच्चा होता है ना; परन्तु नहीं, ऐसे बच्चे को फिर बाप के आगे नमन करना पड़ता है । बाबा है, उसका रिगार्ड रखना पड़ता है; परन्तु गुप्त रीति में जैसे कि वो तो मालिक है । वो तो बाप बलि चढ़ते हैं । यहाँ भी ऐसे ही है, बाप के आगे बच्चों को बलि चढ़ना है । तब बाबा फिर 21 बार बलि चढ़ते हैं । यहाँ फिर बाबा... बलि तो जरूर चढ़ना है । जो बलि न चढेगा, वो उनके ऊपर बलि क्यों चढ़ेगा? तो कुछ न कुछ बलि जरूर चढ़ते हैं । अच्छा, बलि चढ़ते ही रहते हैं । भक्ति मार्ग में भी ये जो भी भगत हैं वो ईश्वर अर्थ देते हैं, देखो बलि चढ़ते हैं । कितना अच्छी तरह बाप बैठ करके समझाते हैं और खुद तो कहते हैं ना- आई एम योर मोस्ट ओबीडियेन्ट फादर, टीचर एण्ड प्रीसेप्टर । बाप, टीचर और गुरू । ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट हुआ ना । (रिकॉर्ड बजा:- धरती को आकाश पुकारे......) सतगुरूवार तो रोज ही है । बाप, दादा, टीचर से त्रिमूर्ति शिव भी कहलाते हैं और यूँ भी त्रिमूर्ति है बाप, दादा, टीचर । देखो, तीनों ही सर्विस करते हैं ।..... हैलो! सभी सेन्टर्स के ब्रह्मा मुखवंशावली, ब्राह्मण कुलभूषण, स्वदर्शन चक्रधारी, मीठे-मीठे, सिकीलधे बच्चों प्रति मधुबन से बापदादा और सभी ब्राह्मण कुलभूषण ज्ञान सितारों का सभी बच्चों प्रति आज गुरूवार के दिन यादप्यार और गुडमॉर्निग । मीठे-मीठे, सिकीलधे सर्विसेबुल बच्चों प्रति मात-पिता, बापदादा का आज गुरूवार के दिन यादप्यार। आज है लकीवार । इसको बंगाल में लकीवार कहते हैं और लक भी कौन-सा लक है? बृहस्पत की दशा । अविनाशी वृक्षपति । ये वृहस्पत नाम ही निकला है वृक्षपति से । बृहस्पत की अविनाशी दशा । उस अविनाशी दशा में भी फिर दशाएँ हैं । कोई सूर्यवंशी बनेंगे, कोई चंद्रवंशी, कोई दास-दासियाँ, कोई साहूकार प्रजा और जैसी दशा चाहिए हर एक को इतनी प्राप्त कर सकते हैं । किससे? वृक्षपति से, बेहद के बाप से । पुरुषार्थ से जो चाहे सो पाय सकते हो अपने । आशीर्वाद वा कृपा की बात नहीं है । ये जितना जो याद में रहेंगे, धारणा करेंगे, औरों को आप समान बनाएँगे, ये बहुत ऊँच पद पाएँगे । फिर उनके ऊपर बृहस्पत की दशा । फिर कोई के ऊपर बृहस्पत की दशा, कोई के ऊपर शुक्र की, कोई के ऊपर बुध की, कोई के ऊपर मंगल की, कोई के ऊपर राहू की । ये कायदा है । स्कूल में भी ऐसे ही- ये नंबर वन वृहस्पत की दशा, फिर वहाँ देखो शुक्र की दशा, फिर वहाँ देखो शनिचर की दशा । ऐसे होता है ना!