Roz Subah Suno Pura DIn Khush Rahengein - Morning Motivation for Happiness
ओम शांति।
जितना समय नाजुक आएगा, उतनी बीमारियां भी तो बढ़ेंगी ना। दवाई खाएंगे तो बीमारी हटेगी। दवाई बंद तो बीमारी फिर से आ जाती है। तो ऐसी दवाई दो, जो बीमारी का नाम निशान नहीं हो। वह है - मेडिटेशन।
परमात्मा की याद में रहने से शरीर के रोग, जो तंग करते हैं, वह भी ऑटोमेटिकली ठंडे हो जाते हैं।
कितनी भी बीमारी हो लेकिन परमात्म बाप याद है, तो बीमारी कम हो जाती है।
जितनी कोशिश करके परमात्मा की याद में रहते हैं, तो बीमारी आधी हो जाती है। जैसे वह दवाई है, तो पहली दवाई यह परमात्म याद की है।
परमात्म साथ का अनुभव करो, तो सब कुछ सहज अनुभव करते हुए सेफ रहेंगे।
भगवान से मदद मिलने का रास्ता है - हिम्मत। हिम्मत रखो तो मदद लाख गुना मिलेगी।
सदैव एक मंत्र याद रखो - परमात्मा बाप को दिल का साथी बनाकर रखेंगे, तो सदा अनुभव करेंगे खुशियों की खान मेरे साथ हैं।
खुशी जैसी खुराक नहीं। तुम खुशी में चलते फिरते, पैदल करते परमात्मा बाप को याद करो तो पावन बन जाएंगे।
परमात्मा कहते हैं बच्चे मुझे याद करो, इस अभ्यास से तुम सदा सुखी रहोगे।
भगवान साथ है, भगवान का कार्य है, भगवान करा रहा है तो बोझ नहीं होगा, हल्के हो नाचते रहेंगे।
जहां साहस और परमात्म साथ है, वहां कठिनाइयां और समस्याएं, स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
कोई भी बात आए, बात परमात्मा बाप को दे दो और आप मुस्कुराते रहो।
जो दिल से बाबा कहते हैं, उनको बाबा द्वारा दिल में सहज खुशी और शक्ति की प्राप्ति होती है।
परमात्मा बाप मेरे साथ है, इसलिए बाप के आगे अक्षोणी सेना भी कुछ नहीं।
परमात्मा बाप से कनेक्शन ठीक रखो, तो सर्व शक्तियों की करंट आती रहेगी।
बापदादा सदा अमृतवेले हर बच्चे की संभाल करने के लिए, देखने के लिए विश्व भ्रमण करते हैं!
सारा बोझ परमात्मा बाप को दे दो और तुम सदा हल्के रहो।
जहां कोई मुश्किल कार्य आए, तो वह मुझे अर्पण कर दो, तो मुश्किल सहज हो जावेगी।
न व्यर्थ बोल, ना व्यर्थ कर्म, ना व्यर्थ संग, व्यर्थ संग भी समय और शक्ति खत्म कर देता है।
भगवान की महिमा तो आत्माएं गाती हैं, लेकिन आप बच्चों की महिमा स्वयं भगवान बाप करते हैं।
दुनिया वाले कहते हैं हाथ खाली आए, हाथ खाली जाएंगे। लेकिन आप कहते हो हम भाग्य विधाता के बच्चे भर कर जाएंगे, खाली नहीं जाएंगे।
एक परमात्मा बाप के प्यार में मगन होना ही संपूर्ण ज्ञान है।
जितना निराकारी स्थिति में स्थित होंगे, उतना ही नेगेटिव भावना समाप्त होती जाएगी।
जो स्वयं समर्पित स्थिति में रहते हैं, सर्व का सहयोग भी उनके आगे समर्पित हो जाता है।
सदा एक शब्द याद रखना कि मैं निमित्त हूं, ऐसे निमित्त बनने से ही निराकारी, निरहंकारी और नम्रचित्त, निःसंकल्प अवस्था में रह सकेंगे।
सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना रखना ही यथार्थ सेवा है।
याद में रहो और जो प्राप्त हुआ है, उससे औरों की सेवा करो, जितनी सेवा करेंगे, उतनी दुआएं मिलेंगी और वह दुआएं आप को आगे बढ़ाती रहेंगी।
ओम शांति।