108 Times - Main Satyugi Divya Atma Hoon


ओम शांति ।

आज हम 108 बार एक विशेष स्वमान का अभ्यास करेंगे। ये स्वमान है - मैं सतयुगी दिव्य आत्मा हूं। इस संकल्प का अभ्यास करते समय हमें फील करना है मैं देव कुल की महान आत्मा हूं, मैं सतयुग का प्रिंस हूं। हमें फील करना है हमारे सिर पर डबल ताज है- एक प्यूरिटी का ताज और दूसरा रत्नों जड़ित सोने का ताज। हमें फील करना है हम संपूर्ण सतोप्रधान हैं, दिव्य हैं, सोलह कला संपूर्ण हैं। हमारे संस्कार दिव्य हैं। हम महान आत्मा हैं।

एक मुरली में बाबा ने कहा है कि यदि कोई नेगेटिव या व्यर्थ संकल्प, या व्यर्थ संस्कार या विकारी संस्कार का प्रभाव हो जाए, तो उस फोर्स को समाप्त करने के लिए अपने अनादि व आदि स्वरूप को याद करो। अनादि अर्थात मैं ज्योति स्वरूप निरकारी आत्मा हूं.. और आदि अर्थात मैं सतयुगी दिव्य आत्मा हूं! इस संकल्प का अभ्यास करने से हमारे व्यर्थ, नेगेटिव या विकारी संकल्प स्वतः समाप्त हो जायेंगे। और हमारे दिव्य संस्कार, दिव्य गुण अर्थात प्रेम, शांति, रहम भाव, सबके प्रति शुभ भाव शीघ्र ही इमर्ज हो जायेंगे। हमारे द्वारा सभी आत्माओं को दिव्य गुणों की अनुभूति होगी। हम सदा संतुष्ट रहेंगे। तो यह संकल्प का अभ्यास 108 बार कैसे करना है, चलिए स्टार्ट करते हैं।

एकाग्र करेंगे मस्तक के बीच... मैं आत्मा एक प्वाइंट ऑफ लाइट ... संकल्प करें - मैं सतयुगी दिव्य आत्मा हूं.... -108 बार दोहराएं।

ओम शांति।