Har Din Yah Do Energy Ki Bachat Karein - Ekagrata Badhegi, Yog Sahaj Lagega


ओम शांति ।

एक बार अव्यक्त बापदादा से दादियों ने एक प्रश्न पूछा कि "बाबा अपने दादी गुलज़ार को ही अपना रथ क्यों चुना?" तो बाबा ने एक विशेष राज़ बताया। बाबा ने कहा, "दादी ने अपनी एनर्जी की बचत की है।" बाबा ने कहा, "दादी ने अपने संकल्पों की एनर्जी और बोल की एनर्जी की बचत की है। वही आत्मिक शक्ति बाबा ने सेवा में लगाया और उनको इतने महान कार्य के निमित्त बनाया। दादी स्वयं भगवान का रथ बन गए।"

दादी का पूरा जीवन योग पे बहुत ध्यान रहता था। वे अपने संकल्पों को सदा समर्थ रखते थे और बहुत कम बोलते थे। एनर्जी मुख्य रूप से इन दो चीजों से ही लीक होती है। तो हमें अगर अच्छा मेडिटेशन करना है, यदि हम भगवान की सेवाओं में मददगार बनना चाहते हैं व विश्व सेवा करना चाहते हैं, तो हमें भी यह दो एनर्जी - संकल्प की एनर्जी और बोल की एनर्जी की बचत करनी है। जितना हम इन दो एनर्जी की बचत करेंगे, उतना हमारा मेडिटेशन पावरफुल बनता जायेगा, और हम शक्तिशाली बनते जायेंगे और स्वतः ही कोई न कोई कार्य में, कोई न कोई सेवा में बाबा हमें निमित्त बनायेंगे।

अव्यक्त मुरली 17 दिसंबर,1984 में बाबा कहते हैं - "व्यर्थ संकल्प एनर्जी अर्थात् आत्मिक शक्ति और समय गंवाने के निमित्त बनता है। हर समय एक एक महावाक्य मनन करते रहें तो समर्थ बुद्धि में व्यर्थ आ नहीं सकता है। खाली बुद्धि रह जाती है इसलिए खाली स्थान होने के कारण व्यर्थ आ जाता है। बुद्धि को समर्थ संकल्पों से सदा भरपूर रखो। उसका आधार है रोज़ की मुरली सुनना, समाना और स्वरूप बनना।"

इसी प्रकार बोल के लिए बाबा कहते हैं हमारे बोल सदा समर्थ हों, आशीर्वाद देने वाले बोल हों, वरदान देने वाले बोल हों! हमें अटेन्शन रखना है कि हमारे बोल द्वारा सभी को सुख मिलना चाहिए, आशीर्वाद, वरदान मिलना चाहिए, परमात्मा का ज्ञान मिलना चाहिए! और हमें हमेशा यह अटेन्शन रखना है कि हमारे बोल कम से कम हो, सार युक्त हो। क्योंकि जितना हम सार युक्त बोलेंगे, उतना हमारे बोल शक्तिशाली रहेंगे, और जितना हम विस्तार में जायेंगे, उतना हमारी एनर्जी खर्च होगी। एक मुरली में बाबा ने कहा है- जो सार में रहता है वह सदा शक्तिशाली रहता है, उड़ते रहता है और जो विस्तार में रहता है वह खाली रहता है और उछलते रहता है।

स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने बुक Rajyoga Meditation में लिखा है- व्यक्ति की जितनी एनर्जी काम विकार में खर्च होती है, उतनी ही एनर्जी जब वह वाणी में आता है तो खर्च होती है। तो आज से हमें इस बात का विशेष अटेन्शन रखना है और हमारी बोल की एनर्जी और संकल्प की एनर्जी की बचत करनी है। इस एनर्जी को बचत करने से हम शक्तिशाली बनेंगे। हम सम्पूर्ण फरिश्ता बनेंगे और परमात्मा हमें विश्व कल्याण के कार्य में निमित्त बनायेंगे।

ओम शांति।