ओम शांति।
रामायण में रोचक कथा का वर्णन है। हनुमान जी अशोक वाटिका में पहुंचे।
उन्होंने देखा कि एक वृक्ष के नीचे सीता माता बैठी हुई है। और वो खुद किसी
दूसरे जगह से छिप कर देख रहे हैं। और अचानक देखा रावण और सीता के बीच
वार्तालाप हो रहा है, और अचानक रावण को किसी बात पर बहुत क्रोध आ गया और
क्रोध इतना ज्यादा था कि उसने अपनी तलवार निकाल ली और दौड़ पड़े सीता को
मारने के लिए। हनुमान को लगा कि मैं कुछ करूं, मैं कैसे चुप रह सकता हूं!
बस अभी जाने ही वाले थे तो देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। हनुमान
को बहुत खुशी हुई, गदगद हुआ। सोचने लगा अगर मैं जाकर पकड़ लेता रावण का हाथ,
तो मुझमें अहंकार आता कि मैं ना होता तो सीता को कौन बचाता? इसलिए अच्छा ही
ये हुआ। और मैं कौन हूं कुछ करने वाला? और इन विचारों में हनुमान मग्न हो
गया। ध्यान मग्न अवस्था में हनुमान बैठे हुए... प्रसंग आगे बढ़ा और थोड़ी
ही देर के बाद रावण के सिपाही आ गए हनुमान को पकड़ने के लिए। हनुमान ने सोचा
कि मैं क्यों कुछ करूं जब सबकुछ राम पर ही छोड़ दिया है, जब राम ही सबकुछ
कर रहा है, जब राम ही किसी को निमित्त बनाता है, रक्षक है तो क्यों कुछ करूं!
और थोड़ी देर में पाता है विभीषण बीच में आ गया , कहा दूत को पकड़ना अनीति
है। हनुमान फिर मग्न हो जाता है राम की याद में की कैसे भगवान किसी न किसी
को निमित्त बना देता है हमारी अपनी रक्षा के लिए। उसी शोक वाटिका में
हनुमान सुनता है त्रिजटा को, वो त्रिजटा कह रही है सीता से कि मैंने स्वप्न
देखा है कि एक वानर आया है और लंका को जला रहा है। हनुमान सोचता है कि ये
कैसा स्वप्न है! क्योंकि राम जी ने तो मुझे कहा ही नहीं है लंका को जलाने
के लिए। और थोड़ी ही देर में हनुमान पकड़ा जाता है और दूत अवध्य है। और सबसे
ज्यादा प्रिय क्या होती है वानर को? पूंछ! आदेश दिया जाता है इसकी पूछ को
आग लगा दो हनुमान ध्यान में मग्न... सोचता है मैं तो सोच ही रहा था कि इतनी
बड़ी लंका को आग लगाना है स्वप्न तो देख लिया है किसी ने पर सामग्री कहां
से एकत्र करूंगा घी कपड़ा.... बना ही देता है.. रावण तक को निमित्त बना देता
है! मैं ना होता तो क्या होता इसलिए विचार नहीं आ सकता। हनुमान प्रतीक है
निष्कपट भक्ति का, निश्छल प्रेम का, निमित्त भाव का, समर्पण बुद्धि का।
मग्न है यादों में... और सारे कार्य स्वतः हो रहे हैं।
चित्त की ये ऐसी मग्न अवस्था सर्वोच्च अवस्था है पर इस अवस्था तक पहुंचने
की आज बहुत सारी सीढियां बताई हैं। कि कैसे उस मग्न अवस्था तक पहुंचा जाए।
और जब आत्मा उस अवस्था तक पहुंच जाती है तब क्या क्या हो जाता है?
निर्विघ्न हो जाती है चेतना। केवल निर्विघ्न नहीं, विघ्न विनाशक। स्वयं के
विघ्न भी विनाश तो औरों के विघ्न भी विनाश। और क्या हो जाता है? अंतरमुखता
आ जाती है। अंतरमुखता से भी आगे की अवस्था? ये तो मनन करने वाला भी हो जाता
है। मायाजीत हो जाती है आत्मा। बेहद वैराग उत्पन्न हो जाता है। कर्मतीत
अवस्था के जैसी है ये मग्न अवस्था। तो इस अवस्था तक पहुंचने की तीन सीढियां
है। कौन कौन सी?
पहला सुनना। दूसरा सुनाना, वर्णन करना और तीसरी मनन करना। जब तक तीन
अवस्थाओं से नहीं गुजरेंगे तक तक चौथी तक नहीं पहुंचा जा सकता। पहले तो
सुनना होगा। सुनना भी एक कला है। तो आज कि मुरली में बाबा ने भिन्न भिन्न
अवस्थाओं का वर्णन किया है। अंग्रेजी में एक शब्द का वर्णन किया जाता है
जिसको कहते हैं power of suggestions, power of auto suggestions
affirmations आत्म सुझाव की शक्ति। जिससे self hypnosis, आत्म सम्मोहन किया
जाता है। कोई एक विचार, कोई एक संकल्प ले लिया जाए और उसी को दोहराया जाए,
उसपर चिंतन किया जाए, उसमे खो जाए तो वो धीरे धीरे स्वरूप हो जाता है। कुछ
भी वो हो सकता है। जैसे आज की मुरली से ले तो- मैं अवतार हूं। बार बार
रिपीट करना.. देखना! जैसे पिछले बार कहा था visualisation, मन की आंखों से
देखना, वर्तमान में देखना.. परिणाम को देख लेना.. फील करना.. उसमे शक्ति
भरना.. चित्र बना देना उसका.. visualisation की पांच अवस्था है, पिछले बार
बताई थी उसमें सबसे महत्वपूर्ण दो ही है- मन की आंखों के सामने चित्र बनाना
और रोज उसमें ऊर्जा भरना, शक्तियां भरना। कुछ भी हो सकता है वो, कुछ भी। वो
मन के खेल की बात है। मन को कुछ भी convince किया जा सकता है, कुछ भी। और
वो अपने आप सबकुछ होने लगेगा।
"मुझे सबकुछ इस particular भोजन से मिल रहा है" अगर कोई अपने आप को इतना
convince कर ले तो उसे अपने आप सबकुछ मिलने लगेगा। विदेश में एक लेखक थे कभी
- H. G. Wells, इंग्लिश ऑथर, उन्होंने अपना एक संस्मरण लिखा है, मैं एक बार
ट्रेन में सफर कर रहा था। देखा कि सामने जो व्यक्ति है वह बहुत उदास है।
मैंने पूछा क्या कारण है क्यों इतना उदास? उसने कहा पूछो मत। फिर भी बताओ
तो क्या कारण है? उसने कहा क्या कहूं मेरी पत्नी को एक ऐसे रोग ने पकड़ लिया
है कि मैं बहुत परेशान हूं! H.G. Wells पूछते हैं कि कौन सा रोग? वह व्यक्ति
कहता है कि मेरी पत्नी सोचती है कि वह एक मुर्गी है और दिन-रात कुकुरुकू
कुकुरुकू करते रहती है। उसके उस आवाज ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है.. मैं
क्या करूं! उसके लिए वह ध्यान है... सुबह से लेकर कुकुरुकू कुकुरुकू चालू
हो जाता है! H.G.Wells कहते हैं कि इसमें इतनी परेशानी की क्या बात है? इस
देश में कितने बड़े-बड़े मनोचिकित्सक हैं, मनोविश्लेषज्ञ हैं, उनके पास उसे
ले जाओ। इससे भी बड़ी बड़ी बीमारी वह ठीक करते हैं। तो वो व्यक्ति कहता है
वह तो ठीक है, वह ठीक तो हो जाएगी, पर हमें अंडे की भी तो जरूरत है।
तो बताओ बीमार कौन है? पागल कौन है? जिसने अपने आप को जैसा convince कर दिया,
वैसी वैसी चीजें घटित होने लगती है। इस ज्ञान में भी इस शक्ति का प्रयोग
किया जा सकता है। Auto suggestion, Power of suggestion... Power of
affirmations... कोई भी एक पावरफुल संकल्प लिया जाए और उसको दोहराया जाए कई
बार, इस चेतन मन को शांत कर दिया जाए, और अवचेतन में वह प्रवेश करने लगे तो
वह धीरे धीरे प्रकट होने लगेगा। और हमारा जो ज्ञान है, वह कोई काल्पनिक
ज्ञान नहीं है। हमारा जो ज्ञान है, वह मनगढ़ंत कहानियां नहीं है। वह तो
वास्तव में सत्य है।
जैसे - एक चोर है, एक पतली सी दीवार है और दीवार के उस पार सोना है, बहुत
सारा सोना। परंतु इस चोर को यह पता नहीं है कि वहां वो है। कोई आकर उस चोर
से कहता है कि सोचो कि इस दीवार के उस पार सोना है तो तुम क्या करोगे रात
भर? वह कहता है रात भर मैं योजनाएं बनाऊंगा। मुझे नींद ही नहीं आएगी फिर
तो। फिर तो इतनी excitement आ जाएगी, यह उदासी भाग जाएगी और मैं तो प्रयत्न
करूंगा कि कैसे वहां तक पहुंचू। अब जिस व्यक्ति ने उसे बताया उसे भी नहीं
पता कि उधर सोना है। उस व्यक्ति के लिए भी कल्पना है, इसके लिए भी कल्पना
है। परंतु कल्पना का प्रभाव कितना है कि रात भर वह जागता है, सो नहीं पाता
है। यही सोच कर कि दीवार के उस पार सोना है। परंतु अगर यह कल्पना में ही हो
रहा है.. परंतु यह कल्पना नहीं वास्तव में सोना है।
उसी तरह जब भगवान कह रहा है.. अगर कोई मान ले कि चलो यह कल्पना ही है, तो
भी उसका प्रभाव होगा। परंतु यह कल्पना नहीं है, वास्तव में है। तो कितना
प्रभाव होगा? मुरली की शुरुआत ही ले लो- तुम डबल ताजधारी हो, बस एक छोटा सा
संकल्प और ध्यान मग्न अवस्था में बैठ जाएं। डबल ताज है मुझे, एक purity का
ताज। ब्राह्मण शुद्र नहीं हो सकते, दो नाव में पैर नहीं, चिर जाओगे।
ब्रह्माण अर्थात पवित्र, पवित्रता का ताज है। वास्तव में ताज है। एक संकल्प
- इसको देखा, visualisation, चित्र बनाया। स्पष्ट रूप से देखा और रोज उसमें
उर्जा भरी, वह सही होने लगेगा। Purity के लिए लड़ाई की आवश्यकता नहीं है,
काम से लड़ाई की आवश्यकता नहीं है, स्वत: हो रहा है। क्योंकि अब यह सत्य हो
गया। मुरली में है, डबल विदेशियों से मुलाकात कर रहे हैं बाबा, डबल ताजधारी,
डबल राज्य अधिकारी हो, स्नेही हो, सहियोगी हो, स्नेह और सेवा से आगे बढ़ रहे
हो। उत्साह है, उमंग है तुम्हें। कौन सा? बाप के प्रत्यक्षता का झंडा लहराने
का! तुम्हारा जीवन ही उत्साह का है, उमंग का है! अगर इसको ऑटो सजेशन के रूप
में लिया जाए, आत्म सुझाव के रूप में लिया जाए कि मेरा जीवन उत्साह भरा
जीवन है। उत्साह से भरा हुआ है, उत्सव है। तो क्या होगा? उत्सव की जो सारे
साकार की बातें याद आती हैं, वह सारी याद आएगी, खाना-पीना, नाचना- गाना,
बजाना, झूमना, सब कुछ। ये जीवन ही उत्सव है, फेस्टिवल है। festivity है।
उदासी कैसी? दुख कैसा? और जितने भक्ति मार्ग की कहानियां है ,सब तुम्हारा
यादगार है। जो याद में है, उनका यादगार बनेगा। किस उत्सव को याद किया बाबा
ने? Christmas। इसको भी visualise कर सकते हैं। Christmas tree है, चमकता
हुआ सितारा मैं हूं उसके ऊपर, सृष्टि का यह कल्पवृक्ष है, यही क्रिसमस ट्री
है। Light might स्वरूप धरती का सितारा मैं हूं। गिफ्ट देकर आ रहा है, कितने
जन्मों के? क्या बनाने वाला है? मीठा। किशमिश भी देख लो उसके हाथ में, वो
उधर से आ रहा है, लेकर आ रहा है और सितारों को मानते वह सितारा मैं ही हूं।
मुरली के शब्दों को शब्द ना रख कर चित्र में परिवर्तित कर दें। मुरली शब्द
ना रहे, क्योंकि हमारे अवचेतन मन को शब्द नहीं समझ में आते, भावनाएं समझ
में आती है, emotion समझ में आता, logic नहीं समझ में आता। गिफ्ट लेना है
उससे, यह गिफ्ट दिया उसने। एक-एक स्वमान जैसे गिफ्ट है। खुशी हो रही है,
पिता को खुशी होती है बहुत! क्यों? आज बापदादा बहुत हर्षित है विदेशियों को
देखकर। क्यों हर्षित है? कौन से तीर मारे है इन्होंने? क्यों खुशी हो रही
है बाबा को? कोई चीज खो जाती है और मिल जाए तो क्या होता है? बहुत खुशी होती
है। क्यों? जरूरी नहीं कि चीज बहुत कीमती हो, कोई भी चीज!
जैसे हमारा ही अभी कुछ दिनों पहले का अनुभव है, आज तक तो कभी घड़ी पहनी नहीं,
अभी अभी पहननी चालू की है, कुछ दिनों पहले यह घड़ी गुम हो गई थी। जब रूम से
निकले तब थी, पर यहां नहीं पहनी थी जेब में डाल दी थी। जब मधुबन आए तब भी
थी और जब मधुबन से निकल गए और बाहर जाकर देखा घड़ी नहीं थी। खो गई। हमने
सोचा छोड़ो गई तो गई क्या करना है? किसको बताये और क्या बताएं? चीजें हैं,
गुम तो हो जाती है। फिर भी थोड़ा सा दुख तो है कि लापरवाही हुई है, घड़ी
गुम हो गई। किसको बताएंगे तो सोचेंगे देखो अभी तक मोह नहीं गया। और फिर भूल
भी गए उसको। वो तो शाम को याद आया कि कुछ खाली खाली सा है, कुछ तो खो गया
है। पहला दिन बीत गया, दूसरे दिन तो चिंता भी छोड़ दी। गई तो गई, जिसको
मिलेगी उसका कल्याण। दूसरा दिन बीत गया। तीसरा दिन भी बीत गया। फिर तो ये
सोचना भी बंद कर दिया कहां गई है? पर इतना जरूर था कि मधुबन में ही कहीं गई
है। पर कहां? कहां ढूंढे इतनी बड़ी मधुबन में ? चौथे दिन, बाबा के कमरे में
बैठे थे, just अचानक विचार आया कि बाबा वो घड़ी। सोफा पर बैठे थे, चौथे दिन,
3 दिन बीत चुके हैं। यह चौथा दिन है और चौथे दिन अचानक सोफा के नीचे हाथ गया,
घड़ी वहां पड़ी थी। हजारों लोग आए और चले गए। कितने लोग बैठे होंगे उस सोफा
पर। पर घड़ी सोफा के नीचे पड़ी हुई थी। मिल गई! आश्चर्य लगा कि किसी को मिली
नहीं, किसी ने देखा भी नहीं उसको 3 दिन तक। डेढ़ महीने पहले की बात है कितने
लोग आए और कितने चले गए।
तो जब खोई हुई वस्तु मिल जाती है, तो खुशी होती है। जब खोए हुए बच्चे बाप
को मिल जाए, तो कितनी खुशी होगी? मिलने की खुशी होती है। बाबा को ज्यादा
खुशी होती है, बाप को ज्यादा खुशी होती है। एक बच्चा हॉस्पिटल में एडमिट है
covid पॉजिटिव, वीडियो कॉल तो चल ही रहा है। क्योंकि अंदर जाना अलाउड नहीं
है, फिर भी पिताजी कहते हैं कि उसको दुख हो रहा है, एक बार अंदर जाकर मिलने
की परमिशन दे दो। बस एक बार मिलना है उसको। जवान बच्चा है, पिता को ये रहता
है कि जाकर मिलूं। पिता की फीलिंग इमर्ज हो रही है। तो बाबा भी बाप तो है
ही ना, तो यहां कह रहा है विदेशियों को देखकर हर्षित है, क्यूं? खो गए थे
मिल गए। सिकीलधे- Long lost and now found! दूसरा कारण खुश होने का? धर्म
की दीवार लांघ कर आए हैं, रीति रस्म की दीवार क्रॉस करके आए हैं यहां पर।
किस देश में जन्म लिया उन लोगों ने? कैसी संस्कृति. कैसा कल्चर? ना मंदिर,
ना कुछ और यह ज्ञान जिसमें लक्ष्मी नारायण, हनुमान, गरुड़ पुराण ऐसी बातें
आती है जो उन्होंने कभी सुनी ही नहीं थी! धुंधुकारी.. उन्होंने इस ज्ञान को
स्वीकार कर लिया मान लिया समर्पण कर दिया! कितनी बड़ी बात है! कमाल है उनकी
भी! हम तो इसी भारत में जन्म लिए, हमारे लिए तो सामान्य थी, बचपन से सुनते
आ रहे हैं आत्मा, परमात्मा, लक्ष्मी नारायण, सब कुछ सुन रखा है। उन्होंने
तो कुछ नहीं सुना है, फिर भी इस ज्ञान को स्वीकार कर लिया! उस बाप को पहचान
लिया! यह देखकर बाबा को हर्ष हो रहा है। तो auto suggestions, power of
suggestion वो इमर्ज करना। एक पिता तड़प रहा है बच्चे से मिलने के लिए,
इमर्ज करना है देखना है। बाबा ने कहा यह दो चीजें - एक मिलन और दूसरा सेवा,
मिलन और सेवा। इसका क्या- उत्साह है तुम्हें। इन दो चीजों का, सेवा से
प्राप्तियों का उत्साह। तो ब्राह्मण जीवन अर्थात उत्सव, फेस्टिवल, ब्राह्मण
जीवन अर्थात नाचना, गाना झूमना, दुख नहीं, उदासी नहीं, दर्द नहीं, पीड़ा नहीं,
कंप्लेंट नहीं, पर अंदर खुशी है। ऐसा नहीं कि बाहर स्थूल में सब कुछ
प्राप्त है परंतु स्थूल प्राप्तियों से सूक्ष्म प्राप्तियां इतनी अधिक है
कि वो स्थूल उस सुक्ष्म के आगे व्यर्थ है, इसलिए खुशी है।
तो आज चार अवस्थाएं बताई। पहली बताई- सुनना।
जब तक सुनेगे नहीं, तब तक बुद्धि के कपाट भी नहीं खुलेंगे। सुनना आवश्यक
है। दादियों को सुनो, पहली classes को सुनो, यज्ञ के इतिहास को सुनो, मुरली
को सुनो, वरिष्ट भाई-बहनों की classes को सुनो। परन्तु केवल सुनते ही नहीं
रह जाना है। उस सुनने से अपने आप को तैयार करना है, वो raw material है और
ये भी नहीं कि जो कुछ सुन रहे हो सबकुछ मान लो, सबकुछ स्वीकार कर लो। तर्क
की कसौटी पर उसको उतारो। नया चिंतन मिल रहा है, नया raw material है, नई
ideas, experience सुनना ये बहुत अच्छी बात है। किसी को classes सुनना पसंद
नहीं है, मत सुनो, लगता है यह वक्ता बड़ा अहंकारी है, मत सुनो। पर अनुभव,
अनुभव में कैसा अहंकार? क्या कुछ सहन करके बाबा के बने, क्या कुछ सहन कर के
इस ज्ञान मार्ग में चल रहे हैं, क्या कुछ सहन करके तीव्र पुरुषार्थी बने
हैं। वह गाथाएं सुनना। यज्ञ इतिहास की बातें... वर्तमान समय आत्माओं के
अनुभव.. अनुभव सीधा अंदर जाता है, सीधा अंदर! तो सुनना बहुत आवश्यक है। पर
जब सुनो तो ऐसे सुनो कि जैसे एकाग्र चित्त, बस उस पल में प्रेजेंट रहते हुए।
बाकी सब भूल के future, past विलीन... खो जाओ.. जो बोल रहा है वक्ता, उसके
शब्द अंदर भीतर में समा जाए। समाने दो! तो कुछ परिवर्तन होगा... तरंगों को
अंदर समाने दो। तो पहली अवस्था है- सुनना।
सुनने के बाद सुनाना, वर्णन करना। वर्णन करना भी कोई छोटी अवस्था नहीं है,
बड़ी अवस्था है। इच्छा है, उमंग है कि परमात्म ज्ञान है.. सबको सुनाओ, बांटू...
भगवान खुद बांट रहा है, मैं भी बांटू, मैं भी सहयोगी हो जाऊं। आज कहा ना
वर्णन करना.. खुशी होती है, शक्ति मिलती है। भले ही सदा काल के लिए नहीं,
स्वरूप नहीं बनते, पर उस समय तो खुशी और शक्ति तो मिलती है। सुनाते समय। और
क्यों ना मिले क्योंकि direct परमात्म ज्ञान है, भगवानूवाच है! इसलिए,
भगवान के शब्दों में एक अलौकिक शक्ति है, प्रकंपन है उसमें प्योरिटी के!
क्योंकि जिस तल से, जिस स्रोत से वे निकले हैं वो परमधाम से निकले हैं! जहां
परमात्मा रहता है! वो इस धरती पर पड़े हैं, गिरे हैं वहां से। वो अव्यक्त
शक्तियां उन शब्दों में है, भगवान के जैसे महावाक्य हैं उन सब में, अगर कोई
वैसे के वैसे सुनाता है, उसको अपने आप को उस लेवल तक स्थित करना होता है।
कितने घंटे बीताने पड़ते हैं बोलने के लिए। एक मिनट शक्तिशाली बोलने के लिए
एक घंटे का चिंतन आवश्यक है। तो सबसे पहले सुना, फिर बोला। पर वो बोलना
केवल वर्णन करने जैसा ना हो, अनुभव युक्त बोल हो, पावर हो शब्दों में,
प्यूरिटी हो। पर वो बोल केवल वर्णन करना ना रह जाए, वर्णन करना अर्थात
रिपीट कर रहे हैं बस।
दो मंदिर हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी से शत्रुताएं हैं दोनों में। दोनों मंदिर समझते
हैं सामने वाला जो मंदिर है वह हमारा दुश्मन है, क्यों दुश्मन है वो नहीं
पता पर हमारे पूर्वज दुश्मन थे इसलिए दुश्मन है। दोनों मंदिरों में छोटा सा
बच्चा है। एक इधर बच्चा है एक उधर बच्चा है, जो छोटे-मोटे काम करता है।
बाजार जाता है। सेवाधारी हमारी भाषा में। एक सेवाधारी इधर है एक सेवाधारी
उधर है। दोनों बच्चों को समझाया गया, सिखाया गया कि उस मंदिर की ओर देखना
भी नहीं है। वह हमारे दुश्मन हैं। पर बच्चे तो बच्चे हैं। एक बार दोनों
बच्चे कहीं जा रहे हैं। एक बच्चा दूसरे बच्चे से पूछ लेता है कहां जा रहे
हो। दूसरा बच्चा कहता है- जहां हवाएं ले जाए। यह तो बिल्कुल पराजय हो गई
जैसे, वो आकर अपने पुजारी को सुनाता है, वो पुजारी कहता है- आखिर तुमने
हमारी नाक कटवा दी, यह हमारी हार हो गई तुमने उत्तर क्या दिया। वो कहता है
क्या उत्तर दूं जब उसने ऐसा कहा- जहां हवाएं ले जा रही हैं। वो कहता है यह
हमारी सैद्धांतिक रूप से हार हुई है, हमारा मंदिर तो हमेशा विजयी रहा है।
और ये हमारे दुश्मन है, यह बहुत चालबाज लोग हैं। ऐसे ही उत्तर दिए है हमेशा
से इन लोगों ने, कभी सीधे मुंह बात नहीं करते। उल्टे-सीधे उत्तर देते हैं
ये लोग। पर तू घबरा मत अब। कल फिर तुम उससे पूछना, पहले तो तुमको बात ही नहीं
करनी चाहिए थी। इतना तो सिखाया था कि बात मत करना उनसे, वो खराब लोग हैं।
पर अब कर ली। अब हार तो हम स्वीकार नहीं करेंगे कल तुम फिर जाना फिर उससे
पूछना और अगर वो कहे कि हवाई जहां ले जा रही हैं, तो कहना अगर हवाएं जहां
रुक जाए तो फिर कहां जाओगे, यह कहना। अब याद करो यह उत्तर को। वह छोटा बच्चा
रात भर में रटता रहता है कि मुझे कल सुबह ये कहना है..ये कहना है..य़े कहना
है। दूसरे दिन सुबह ये बच्चा उस बच्चे से फिर पूछता है कहां जा रहे हो? तो
उत्तर तो पहले से रटा हुआ है वह कहेगा हवाई जहां ले जा रही हैं, तो मैं
पूछूंगा अगर हवाएं रुक जाए तो। वह पूछता है कहां जा रहे हो, तो वह कहता है
जहां पैर ले जा रही है, कंफ्यूज हो गया अब क्या कहे क्योंकि इसका उत्तर तो
है ही नहीं क्योंकि जो रटा हुआ उत्तर था वह तो फेल हो गया। वह फिर आता है
वो फिर अपने पुजारी को कहता है, पुजारी कहता है मुझे पहले से पता था ये लोग
बहुत चालबाज है पहले तो इनसे बात ही नहीं करनी चाहिए थी पर अब हम हार नहीं
मानेंगे। अब अगर कल वह तुमसे कहे कि जहां पैर ले जा रहे हैं, तुम कहना अगर
तुम लंगड़े हो जाओ तो, पैर ही नहीं रहे तो क्या करोगे? बच्चा रात भर रटते
रहता है उत्तर। दूसरे दिन जाता है फिर पूछता है कहां जा रहे हो, लड़का कहता
है- मार्केट, बाजार जा रहा हूं। फिर फेल। रटे रटाए उत्तर काम नहीं आते। उधर
से रट लिया इधर वर्णन करके सुना दिया- यह आत्मा है, यह परमात्मा है यह
परमधाम है। सामने वाला पूछें- परमधाम के ऊपर क्या है तो कन्फ्यूज्ड! क्योंकि
हमें तो इतना ही सिखाया गया है ये आत्मा, ये धरती तीन तप के। अभी मुरली में
एक शब्द था 3 दिन पहले- स्थूल वतन, सुक्ष्म वतन, परमधाम, कोई पूछे उसके ऊपर
क्या है तो? क्योंकि हमें तो इतना ही सिखाया गया।
वर्णन नहीं करना है वर्णन की आगे की कौन सी अवस्था है- चिंतन मनन, मनन करना
है।
तो तीसरी अवस्था कौन सी है? चिंतन। तो कैसे करें चिंतन? बाबा ने कहा है मनन
शक्ति को बढ़ाओ। कैसे बढ़ाएं? अच्छा, मनन करने वाली आत्माओं के क्या-क्या
फायदे होते हैं ये आप सुनाओ। जो मुरली में आया है, बुद्धि में आया है, क्या
बन जाती है ऐसी आत्मा? शक्तिशाली और अंतर्मुखी, परचिंतन से मुक्त, माया से
मुक्त और विघ्न विनाशक। और चिंतन करने से क्या होता है- बुद्धि बिजी रहती
है, टाइम बच जाता है, वेस्ट नहीं होता है, परचिंतन नहीं होता है, व्यर्थ का
वर्णन नहीं होता है, मायाजीत स्वतः बन जाती है, माया से मुक्ति हो जाती है,
माया देखती है ये बिजी है किनारा कर लेती है, एग्जांपल बन जाते हैं जो
कमजोर आत्माएं हैं उनके लिए।
ज्ञान शक्तिशाली कम बनाता है, ज्ञान का चिंतन शक्तिशाली ज्यादा बनाता है!
मुरली तो सभी ने सुनी है। ऐसा कौन ब्राह्मण होगा कि जिसने मुरली नहीं सुनी,
संडे की अव्यक्त वाणी सभी सुनते हैं। चाव से सुनते हैं, पढ़ते भी हैं नोट्स
बनाते हैं, लिखते हैं, कलर करते हैं, कोई कोई मुरली को ही पूरा कलर कर देते
हैं- लाल पीला नीला, कोई नोट्स बना कर बहुत मेहनत करते हैं... बहुत अच्छी
बात है। कोई चित्र बनाते हैं कोई कुछ करते हैं कोई डिस्कस करते हैं, कोई
अपना ही क्लास रिकॉर्ड करते हैं भेजते हैं बहुत कुछ करते हैं, बहुत मेहनत
करते हैं अव्यक्त मुरली पर और करनी भी चाहिए। परंतु चिंतन को गहरा करना है।
चिंतन की गहराई में जाना है, वो चिंतन अनुभव बन जाए। वो चिंतन करते करते
चेतना मग्न हो जाए और चिंतन के लिए चाहिए मौन। चिंतन के लिए चाहिए एकाग्रता,
चिंतन के लिए चाहिए अंतरमुखता, एकांत। और संडे की मुरली हमें लगता है
सोमवार से चिंतन करना चालू करना है, थोड़ा-थोड़ा एक एक पैराग्राफ, थोड़ा पढ़
लिया छोड़ दिया, फिर पढ़ा फिर छोड़ दिया, फिर दूसरे दिन फिर तीसरे दिन, फिर
चौथे दिन पांचवे दिन, छठवें दिन, फिर शनिवार.. रविवार आने तक कम से कम 10
से 20 बार पढ़कर हो जाए तो लगेगा कि यह अपना है कुछ, यह ज्ञान अपना है।
बिल्कुल मग्न हो जाना... मग्न के पहले है मनन, मनन की अवस्था से गुजरना होगा।
कर्मातीत अवस्था यात्रा है। संपूर्ण अवस्था धक से नहीं आ सकती। अगर किसी को
धक से आ गई तो शौक होगा बॉडी के लिए, मन के लिए भी। वह यात्रा ही हो...
धीरे-धीरे.. धीरे-धीरे.. अंडरस्टैंडिंग बढ़ती जाए।
महर्षि अरविंद ने कहीं लिखा है- कि जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं, अब तक
जिसको प्रकाश समझते थे, बाद में पता चलता है वह तो अंधकार था, अब तक जिसको
जीवन समझते थे, वो तो वास्तव में वह तो मृत्यु थी। जैसे-जैसे हर दिन का
अनुभव बढ़ता जाए कि आज तक जिसे मैं ज्ञान समझता था वह ज्ञान था ही नहीं! वह
तो अंधकार था, वो तो अज्ञान था। ज्ञान तो अब मिला है ज्ञान तो अब समझ में
आया है। कितने समय से यह वाक्य सुनते आए हैं कि काम महाशत्रु है, आदि मध्य
अंत दुख देता है पर क्या वास्तव में समझा है इसे? तुम देवता थे! क्या
वास्तव में समझा है इसे? शायद नहीं! शब्द वही रहेंगे, अर्थ बदल जाएंगे तब
समझना अब आगे बढ़ रहे हैं। नए आयाम समझ में आए, मुरली वही, शब्द वही, सब
कुछ वही परंतु आज कुछ और ही समझ में आया। और उन शब्दों के नीचे कुछ और ही
दिखाई पड़ गया, बुद्धि के जैसे कपाट ही खुल गए आज तो, क्योंकि आज जब उसको
पढ़ा तो मग्न अवस्था में पढ़ा, ध्यान की अवस्था में पढ़ा, गहराई से पढ़ा, कोई
जल्दी नहीं थी। इसीलिए कहा कि सोमवार, संडे की मुरली सोमवार से ही
थोड़ा-थोड़ा पढ़ना चालू करनी है थोड़ा-थोड़ा सीप-सीप, एक दो लाइन पढ़ लिए
छोड़ दिए, विजुलाइज करना है 7 दिन तक उसको।
मैं अवतार हूं! देखना है मैं अवतरित होकर आया हूं.. मैं ट्रस्टी हूं,
सरेंडर हूं..समर्पित हूं..मैं-पन नहीं। ये शब्द है स्वदेश स्व स्वरूप... यह
अजनबीयों का देश है मेरा देश नहीं है..। सात दिन तक ये अभ्यास करना है,
मंडे से लेकर के अगले सैटरडे तक। यह अजनबीयों का देश है, मैं अवतार हूं..
मैं alien हूं..मैं ऊपर से आया हूं, गेस्ट हूं..यह मेरा देश नहीं है, यह
मेरा घर नहीं है, मैं मेहमान हूं। बस मेहमान की तरह 6 दिन रह कर देखो क्या
होता है। जैसे किसी के घर गए हैं और 6 दिन हम रह रहे हैं। और पता है कि 6
दिन के बाद यहां से जाना है। टिकट बुकिंग हो चुकी है, बस 6 दिन का सवाल है
मंडे टू सैटरडे। कल से चालू करना- कि ये मेरा घर नहीं है, यह मेरे लोग नहीं
है। मैं यहां कुछ समय के लिए आया हूं, कौन भाई, कौन बहन, कौन मां, कौन बाप,
कौन किसका?
और वर्तमान तो ऐसा समय चालू है- मौत का तांडव नृत्य हो रहा है! गवर्नमेंट
अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस खड़ी है 50-50 60-60, ट्राइज हो रहा है कौन
ज्यादा सीरियस वो अंदर, बाकी सब बाहर ही, कुछ-कुछ एंबुलेंस में ही ओम
शांति! Death हो रही है पर अभी तक declare नहीं कर रहे। क्योंकि 10-10
death अभी declare करना बाकी है, अंदर हो चुकी है हॉस्पिटल में, रिश्तेदार
बाहर है सारे, बाकी है डेथ-सर्टिफिकेट! उसके बाद में 1-1 को डिक्लेअर
करेंगे.. तब तक रुके रहो.. अंदर चालू है इलाज। मृत्यु का तांडव नृत्य, मौत
का बाजार गर्म होगा, हो चुका है।
मनन, शक्तिशाली बनेंगे मनन से। शक्ति आएगी आत्मा में, शक्ति से मुक्ति होगी
माया की। और एक चीज- अभी तक वो क्लास था, वो था किसी और का चिंतन, ये अच्छा
है, वो अच्छा है इसका अच्छा, उसका अच्छा, अंदर नहीं गया था। रक्त में शक्ति
नहीं बना था वो, जब तक भोजन हजम नहीं होगा तब तक वह रक्त में नहीं घुसेगा,
शक्ति नहीं बनेगी। इसलिए रोज की मुरली का चिंतन, मनन उसके लिए एकांत, उसके
लिए कब मनन करना है, कहां मनन करना है, कैसे मनन करना है, किस तरह मनन करना
है, अकेले करना है या किसी के साथ करना है, इस पर चिंतन करना है इस पर
सोचना है। मनन के लिए एक स्थान चाहिए, मनन के लिए जगह चाहिए, समय चाहिए।
अपनी सेवाओं के अनुसार टाइम निकालना है, पर करना जरूर है। लिख बहुत लिया है
बहुत अच्छी बात है पर अब सोचना ज्यादा है। एकांत में बैठ जाओ छत पर, किसी
झाड़ के पास, अपने कमरे में, बाबा के कमरे में दोपहर में और मनन करो- क्या
कहा आज, क्यों कहा ऐसा, क्या उदाहरण था, क्या था अव्यक्त वाणी में, क्या था
महावाक्य, क्रिसमस का क्या उदाहरण था, भक्ति का क्या उदाहरण था, ज्ञान का
क्या उदाहरण था, क्या था? सोचना है। और मनन करने की जिसको आदत हो जाती है
उसको addiction जैसा हो जाता है फिर, बहुत अच्छा लगता है! खुशी होने लगती
है, फिर नए-नए पॉइंट निकलने लगते हैं, हर दिन नई नई बातें पता चलती हैं,
नई-नई कल्पनाएं, नई-नई इमैजिनेशन, जो अबतक नहीं था एकदम से ख्याल आता है
अरे! ये भी है, ये भी है..ये भी है.. क्रिएटिविटी बढ़ जाती है मनन से! पावर
बढ़ जाती है।
बाबा ने कहा- परिस्थितियों में स्वः स्थिति श्रेष्ठ हो जाती है क्योंकि
परिस्थितियां इतनी सारी है पर स्थिति बहुत महान है, इसके लिए प्रभावित कुछ
भी नहीं कर रही है। हलचल की अवस्था है, इतनी हलचल इतनी हलचल.. हम देखते हैं
अस्पताल में इतनी हलचल वर्तमान में 62 पेशेंट हैं कोविड के, उसमें से 50%
extremely critical, serious..और वो रिश्तेदार एक एक मरीज के साथ 4-4
रिश्तेदार... क्या हो रहा है, क्या हो रहा है, इतनी बेचैनी अंदर, इतनी
घबराहट है! इतना डर है! सारी परिस्थितियों के बीच हम अचल खड़े रहे, जैसे
उर्जा का एक कवच है, बाहर की कोई हलचल अंदर नहीं है, ऐसी स्थिति हर एक को
बनानी है क्योंकि संसार में हलचल तो बढ़ेगी और यह तो कुछ भी नहीं है,
तुम्हारे अब के विघ्न तो क्या हैं? यह चींटी भी नहीं है! दुखों के तो पहाड़
गिरने हैं, फिर सुखों के पहाड़ खड़े होने हैं, क्या यह दुख के पहाड़ है?
नहीं ये पहाड़ अभी नहीं है। यह कंकर पत्थर गिर रहे हैं थोड़े थोड़े, कोई
इधर गिरता है, कोई उधर गिरता है अभी तो पहाड़ गिरने हैं, दुखों की आग लगनी
है। कैसी पीड़ा होती है कल तक जिससे बात कर रहे थे, कल तक जो अपना था, कल
तक जिसके मैसेज आते थे आज वह है नहीं। जवान-जवान, अपने, कोई नहीं था उसके
सिवा, एक ही बेटा था, गया! बहुत पीड़ा होती है, हिल जाती है चेतना। कितनी
नष्टोमोहा स्थिति चाहिए भीतर।
तीसरी अवस्था है मग्न- मग्न अर्थात खो जाना। जैसे हनुमान जी खो गए.. अब मैं
कुछ क्यों करूं अब। मंदोदरी आ गई, विभीषण आ गया, अब आग लगानी है तो लगाओ,
पूंछ को, मैं क्यों कुछ करूं! मग्न है यादों में, मग्न हो जाना प्रभु प्रेम
में, परमात्म यादों में और सबसे अच्छी विधि है मग्न होने की चिंतन। ज्ञान
की कोई एक पॉइंट ले लो चार-पांच बार उसको पढ़ लो फिर छोड़ दो उसको, फिर
थोड़ा सा घूम के आ जाओ, थोड़ी सेवा कर लो, सेवा में याद करने की कोशिश करो
थोड़ा बहुत, फिर छोड़ दो और फिर बैठ जाओ आंख बंद करके, आधा घंटा अलार्म लगा
कर, कि अब मुझे केवल जब तक उस पॉइंट को देखना है, जैसे आंख के अक्षरों में
वो लिखा है वाक्य आसमान पर और मैं उसे देखता जा रहा हूं-
तुम अवतार हो...तुम अवतार हो। अवतार अर्थात रात को दिन बनाने वाले, दुख को
सुख, नर्क को स्वर्ग, परिवर्तन करने वाले, मैं परिवर्तन करने वाला हूं।
सबसे बड़ा परिवर्तन मुझे अपने अंदर करना है, अपनी दिनचर्या में करना है,
अपने उठने के समय में करना है, अपनी अमृतवेले की विधि में करना है, अपने
रोज की मुरली के चिंतन की विधि में करना है, रोज की जो दिनभर की अवस्था है
उसमें करना है, दिनचर्या में परिवर्तन लाना है, भोजन में परिवर्तन लाना है,
ब्रह्मचर्य में कुछ करना है। दुनिया वाले आजकल एक ही चर्चा करते हैं-
ईम्यूनिटी बढ़ानी है.. इम्यूनिटी बढ़ानी है..। इम्यूनिटी बढ़ाने का सबसे
श्रेष्ठ साधन है - ब्रह्मचर्य। जिसका ब्रह्मचर्य अचल है, स्थिर है, अखंड
है, संसार का कोई रोग उसे स्पर्श नहीं कर सकता, ब्रह्मचर्य में वो पॉवर है,
वो इम्यूनिटी पॉवर है प्यूरिटी में। दवाइयां खाने में लगे हैं, इससे
इम्यूनिटी बढ़ेगी, उससे इम्यूनिटी बढ़ेगी, यह खाओ वह खाओ, यह खाओ वह खाओ।
खाने से नहीं, ना खाने से इम्युनिटी बढ़ती है।
तो सुनना, सुनाना, वर्णन करना, वर्णन करने के लिए भी मनन चाहिए नहीं तो वो
तोता रटन हो जाएगा।
एक व्यक्ति, कवि, राज दरबार में आता है और राजा की इतनी तारीफ करता है,
इतनी तारीफ करता है, इतनी तारीफ करता है कविताएं लिखता है, आप वो हो, वो
हो, आप तो धरती पर अवतार हो। राजा भी सुन कर आश्चर्यचकित होता है मैं ये
हूं! बहुत तारीफ करता है। राजा बहुत खुश होता है कहता है- तुम्हें 10,000
स्वर्ण अशरफिया दूंगा। कल आ जाना सुबह। वह तो कभी सोचा नहीं था उसने, मेरी
कविताएं! रात भर सोता नहीं सुबह जल्दी पहुंचता है 6:00 बजे राजा के महल
में। राजा कहता है कैसे आना हुआ, वो कहता हैं कैसे? आप ही ने तो कहा था-
10,000 स्वर्ण अशरफिया। राजा कहते हैं- अच्छा! तुमने मुझे खुश कर दिया था
मेरी तारीफ करके, मैंने तुमको खुश कर दिया था, हिसाब पूरा हुआ। अब कौन सा
बक्शीश? क्या था वह केवल वर्णन था, केवल वर्णन! उसमें पावर नहीं है। तो
सुनना, ध्यान से सुनना, एकाग्रता से सुनना, सुनना भी एक कला है सुनना भी एक
साधना है। जब सुनो एक अभ्यास कर सकते हैं- जिस स्थिति में बैठो मुरली
सुनने, लक्ष्य रखो कि ये एक साधना बता रहे हैं, हाथ ना हिले, ना पैर हिले,
लिखना है तो लिखो भले पर एक ही अवस्था में बैठना यह भी एक साधना है इसको
करके देखो क्या होता है। पैर जहां रख दिया रख दिया, ऊपर रखे नीचे रखे, जहां
पर भी रखा हिलना नहीं बस फिर देखो क्या होता है, कुछ तो नया होगा अंदर।
तो पहला सुनना। दूसरा सुनाना, सुनाना भी कैसा हो चिंतन सहित, मनन किया हुआ
हो एकांत में। तीसरा है मनन करना, उसके लिए एकांत निकालना होगा। रोज कम से
कम एक घंटा एकांत का हो जहां हमारे अतिरिक्त कोई भी ना हो इर्द गिर्द।
आसपास केवल प्रकृति और प्रकृति की आवाज है बस, नो इलेक्ट्रॉनिक्स। ऐसी
अवस्था में मनन करना और ये करते-करते क्या हो जाएगा, मग्न अवस्था आ जाएगी।
तो आज की मुरली थी- वारिस, समर्पित, कितने शब्द हैं.. निश्चय बुद्धि.. पूरे
के पूरे वाक्य याद करने की आवश्यकता नहीं, शब्दों को उठा लो बस। आंख बंद
करके बैठ जाओ और सोचो- क्या कह दिया ये उसने, क्यों कहा ये उसने, क्या अर्थ
है इसका, और खो जाओ और चिंतन करते करते ही ऐसी अवस्था आ जाएगी- अशरीरी, पता
ही नहीं चलेगा कि शरीर है कि नहीं है। जो अवस्था योग से आती है, वह ज्ञान
की चिंतन से भी आती है, same विदेही अवस्था, अशरीरी अवस्था, ये अनुभव की
अवस्था है। और master almighty authority हो, बाबा ने कहा। क्योंकि हमने जो
अनुभव में जान लिया अब हमें किसी के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। कोई कितना
भी कहे कि यह गलत है, कोई प्रभाव नहीं। हमने अनुभव से जाना है ये, अपना
अनुभव है, यह मेरा निजी अनुभव है। कोई खंडित नहीं कर सकता इस अनुभव को।
मैंने जाना है कि अशरीरी होने के बाद कितनी अतीन्द्रीय सुख की अनुभूति होती
है! शरीर का जो आकर्षण है जैसे खत्म हो गया है, कुछ भी नहीं खींच रहा है।
हां, सारे दिन भर आकर्षण रहता है पर उस अशरीरी अवस्था में मेरी अनुभूति ये
रही, कि ये सबसे श्रेष्ठ अवस्था है!
ऐसे.. कैसे? सुनने से वर्णन तक, वर्णन से मनन तक, मनन से मग्न तक। आने
वाले, यात्रा करने वाले आत्माओं को, ऐसे मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी आत्माओं
को, ऐसे अवतार आत्माओं को, ऐसे यादगार, भक्ति में जिनका याद से यादगार
स्वरूप बनाने वाली आत्माओं को, ऐसे औरों की विघ्न विनाश करने वाली आत्माओं
को, ऐसे निर्विघ्नं आत्माओं को, ऐसे मास्टर डबल ताजधारी आत्माओं को, डबल
राज्य अधिकारी आत्माओं को, स्नेही आत्माओं को, सहयोगी आत्माओं को, ऐसे
स्नेह और सेवा में आगे बढ़ने वाली आत्माओं को, ऐसे धरती के सितारों को, ऐसे
खुशी की खुराक खाने वाली आत्माओं को, ऐसे नाचने वाली आत्माओं को गाने वाली
आत्माओं को, झूमने वाली आत्माओं को, हर दिन उत्साह हर दिन उत्सव.. ऐसे
आत्माओं को, ऐसे एग्जांपल दूसरों के सामने बनने वाली आत्माओं को, ऐसे ज्ञान
को हजम करने वाली....
इस समय spiritual indigestion बहुत हो रहा है, इतने सारे चैनल और इतना
ज्ञान है और ज्ञान की बाढ़ आई है, अपच हो रहा है ज्ञान का। सुनते ही रहते
हैं.. इसको भी सुनेंगे उसको भी सुनेंगे.. इतना सुना, इतना सुना, इतना सुना
कि योग में डकारे आती रहती हैं फिर और कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा
है, उन्होंने ऐसा कहा उन्होंने ऐसा कहा, इस क्लास में ये था उस क्लास में
वो था.. इधर क्लास उधर क्लास.. क्लासेस ही क्लासेस..शिव बाबा कहां है? गुम।
सुनो, एक ही सुनो, पहली बार सुना.. फिर दूसरी बार सुनो, फिर दूसरी बार सुनो
और वक्ता ने जहां छोड़ा है उसके आगे अपने चिंतन को बढ़ाओ, उसने 5 पॉइंट
बताई नए 5 तुम निर्माण करो।
ऐसे गिफ्ट लेने वाली, अविनाशी गिफ्ट लेने वाली आत्माओं को, ऐसे क्रिसमस
ट्री, सृष्टि चक्र रूपी ट्री में सितार रूपी आत्माओं को, ऐसे किसमिस जैसा
मीठा बनने वाली आत्माओं को, ऐसे ढेर सारे स्वमान वाली आत्माओं को बापदादा
का याद, प्यार गुड नाइट और नमस्ते। रूहानी बच्चों की रूहानी बाप दादा को
याद प्यार गुड नाइट और नमस्ते! ओम शांति।