ओम शांति!
किसी जंगल में एक गाय चलते-चलते बहुत दूर निकल आई। शाम ढलने को थी और अचानक
उस गाय ने देखा एक बाघ दबे पांव से उसका पीछा कर रहा है। गाय घबराइ और जहां
उसको रास्ता मिले वह गाय भागने लगी, वह बाघ भी उसके पीछे भागने लगा तेजी
से, भागते भागते उस गाय ने देखा सामने एक तालाब है और वह गाय उस तालाब में
उतर गई, वह भी उसके पीछे-पीछे उस तलाब में उतर गया, परंतु वह तलाब, तलाब
जैसा था परंतु कीचड़ था। पानी कम था और वो गाय उस कीचड़ के मध्य में और वह
बाघ भी उसके पीछे पीछे, दोनों में कुछ अंतर, कुछ दूरी थी। परंतु अब क्या वह
गाय तो धीरे-धीरे उस कीचड़ में धसने लगी और वो शेर एकदम करीब था। परंतु गाय
तक पहुंच नहीं पा रहा था क्योंकि वह भी फंस गया था। और वह भी उस कीचड़ में
धसने लगा, धीरे-धीरे दोनों ही अंदर अंदर जाने लगे, जैसे अब दोनों का ही
अंतिम समय है। वह गाय उस बाघ से बोली क्या तुम्हारा कोई मालिक है, वह बाघ
कहता है- मेरा? और मालिक? मैं तो खुद ही जंगल का मालिक हूं! जंगल का राजा
हूं! मेरा कौन मालिक? वह गाय पूछती है पर क्या यह सब बातें अब तुम्हारे काम
आएगी? क्योंकि तुम तो अब मरने वाले हो। वह बाघ पूछता है तुम भी तो अब मरने
वाली हो। वो गाय कहती है- नहीं। मेरा मालिक है और जैसे ही वह देखेगा कि शाम
हो गई है और मैं नहीं आई तो वह ढूंढते ढूंढते यहां जरूर आएगा। और वाकई में
थोड़ी देर के बाद एक आदमी वहां आ जाता है, बड़ी मुश्किल से वह गाय को बाहर
निकालता है। वो उसका मालिक है। दोनों गाय और मालिक एक दूसरे की ओर प्रसन्नता
से देखते हैं। चाहते हुए भी शेर को नहीं निकाल पाते, क्योंकि खतरा है। वो
गाय बाहर निकल जाती है। वह गाय प्रतीक है- आत्मा का। वो बाघ प्रतीक है-
अहंकारी मन का। वह कीचड़ प्रतीक है- संसार का। वह लड़ाई प्रतीक है -
अस्तित्व की, जो लड़ाई है, जो संघर्ष है उसका। इस संसार के कीचड़ में हम भी
ऐसे ही फंसे हैं, गाय की तरह, परंतु जिन्हें पता है कि हमारा मालिक आएगा,
जिन्हें विश्वास है, faith है, trust है, निश्चय है कि मेरा रक्षक वो है और
वो एकमात्र वो ही मेरा हितेषी है इस संसार में, उसके अतिरिक्त मेरा इस
संसार में और कोई नहीं- यह निश्चय ही चेतना के भय को दूर करता है, कि वह
है! उसकी छत्रछाया है! उसका प्यार है!
उसी तरह किसी बगीचे में एक पिता और उसका बेटा जाते हैं। खेल खेल में बेटा
एक बड़ा सा पत्थर है उसको ढकेलने लगता है बहुत कोशिश करता है, नहीं ढकेल
पाता है। पिता कहते हैं यह क्या कर रहे हो, वो कहता है धकेल रहा हूं। पिता
कहते हैं पूरी ताकत क्यों नहीं लगाते? बेटा कहता है पूरी ताकत ही तो लगा रहा
हूं यह हिलता तक नहीं। पिता कहते हैं नहीं, तुम अपनी पूरी ताकत नहीं लगा रहे
हो, तुमने मुझे तो कहा ही नहीं क्योंकि मेरी ताकत भी तुम्हारी ही ताकत है,
मेरी उर्जा मेरी शक्ति मेरी एनर्जी भी तुम्हारी ही एनर्जी है, तुम मुझसे
क्यों नहीं कहते? पिता बैठा है, उसकी शक्तियां भी मेरी ही शक्तियां हैं। यदि
सब कुछ करने के बाद भी जीवन का कोई विघ्न हटता नहीं, मिटता नहीं, कोई
संस्कार, कोई माया, कोई बाधा, कोई विघ्न, सब कुछ करने के बाद भी नहीं हट रहा
है तो उसका आह्वान करें क्योंकि उसकी शक्तियां भी मेरी शक्तियां है। यह
विश्वास, यह faith, यह निश्चय, ये ईमान आत्मा को उड़ा देता है, बल भर देता
है।
तो आज की अव्यक्त वाणी! क्या कहा बाबा ने- निश्चय, बुद्धि में निश्चय। क्या
निशानियां होगी ऐसी आत्माओं की! जिन्हें संपूर्ण निश्चय है, जिनका निश्चय
किसी भी तूफान में डगमगाता नहीं। हिलता नहीं। निश्चय हिलना अर्थात जन्म
जन्म का प्रालब्ध हिलना।
दिखाया है- Jesus Christ अपने शिष्यों के साथ किसी झील में नाव में बैठा
है, सोया पड़ा है, सारे शिष्य जागे हुए हैं। अचानक तूफान आता है, सारे
शिष्य हिल जाते हैं, घबरा जाते हैं क्योंकि पानी नाव के अंदर आने लगा है।
और उनका जो मालिक है वह तो सोया पड़ा है, बहुत घबराते हैं, बहुत घबराते
हैं। कहते हैं मालिक- मालिक, मास्टर मास्टर, जागो, देखो क्या हो रहा है हम
सब मर रहे हैं, नाव तो डूब रही है। उठो। आगे दिखाया है जीसस क्राइस्ट उठता
है हाथ करता है Peace, be still.. शांत! और तूफान उसकी आज्ञा का पालन करता
है और तूफान शांत हो जाता है। बाइबल में वाक्य है, जीसस क्राइस्ट अपने
शिष्यों से कहता है- Oh! You of little faith! ओ कम ईमान वालों! क्या इतना
भी विश्वास नहीं कि जिस नाव में मैं बैठा हूं क्या वो नाव डूबेगी? क्या
तुम्हें पता नहीं मैं कौन हूं? जिस नाव पर तुम सवार हो उसका खेवईया मैं
हूं! तो नाव डूब नहीं सकती!
ऐसा ईमान, trust, faith विश्वास, निश्चय.. भगवान पर। मन ही मन इस बात को
स्वीकार कर लेना कि मेरा इस संसार में उससे बड़ा कोई हितेषी नहीं, मेरा उससे
बड़ा कोई दोस्त नहीं, मेरा उससे बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं! तो आज की मुरली
में क्या कहा बाबा ने- निश्चय बुद्धि वाली आत्माएं कैसी होती है? निर्मान,
निर्माण, विजयी, सर्वंस्व त्यागी, समर्पित, बेफिक्र बादशाह! थोड़ा ज्यादा
ही बेफिक्र कभी-कभी। और निश्चिन्त, निश्चित, दूसरों को नशे में लाने वाली,
और? तूफान की परख.. तूफान में चेकिंग करने वाले। और क्या निशानी है? ज्ञान,
गुण शक्तियों में सम्पन्न, समीप रत्न! और? संतुष्टता, उदारता, सर्व के
कल्याण के लिए बोलने वाली, जानने वाली, समझने वाली। और?
ज्ञान के पॉइंट्स को याद करना एक विधि है मन को एकाग्र करने की। पहले मुरली
सुन लेना, मुरली पढ़ लेना और फिर एकांत में बैठकर याद करना कि क्या क्या
था। तब अपने आप मन एकाग्र हो जाता है, एकाग्र मन बहुत ही शक्तिशाली होता है
और concentrated mind में बहुत पावर होता है, अचानक से नए संकल्प उत्पन्न
होते हैं। अचानक से नई समझ, नई understanding आ जाती है। जिस चीज के बारे
में हम लंबे समय से सोच रहे हैं, समझ नहीं आ रही है, उसका वर्तमान मुरली से
कोई संबंध नहीं है, परंतु इस मुरली के अध्ययन से जो एकाग्रता प्राप्त हुई,
वही एकाग्रता की शक्ति जीवन की किसी और परिस्थिति का हल प्राप्त करा देगी।
एकाग्रता में वह शक्ति है, वह पावर है। इसलिए पढ़ा बहुत है, सुना बहुत है,
अब क्या करना है? पिछले संडे क्या कहा था क्या करना है- चिंतन, मनन और मगन
हो जाओ। वर्णन तो बहुत किया। आज भी कहा, भाषण तो कर सकते हैं। अगर किसी को
पूछा जाए निश्चय बुद्धि है, बहुत अच्छा भाषण हो सकता है। परंतु एकाग्र हो
जाना, मन को स्थिर कर देना। बाकी सब विचार अपने आप विलीन हो जाए। सहज
एकाग्रता लाने की विधि है- जो मुरली सुनी है ऊपर से नीचे तक, उसे याद करना
कि क्या क्या था, जितना याद आता है। वह करते करते ही मन एकाग्रता के शिखर
तक पहुंच जाता है।
तो आज की मुरली में क्या सुनाया बाबा ने? जो बच्चे निश्चय वाले हैं,
संपूर्ण faith, trust, निश्चय है जिनको, उनकी क्या निशानी होगी? जैसे वह
गाय, कितना उसे निश्चय था! डूब रही है, धंस रही है कीचड़ में, गले तक आ गई
है लेकिन फिर भी उसे निश्चय है कि मेरा मालिक आएगा, तो ये निश्चय! तो हम
मुरली से निश्चय बुद्धि आत्माओं की ऐसी 12 बातें देखेंगे। सबसे पहली निशानी,
क्या निशानी है सबसे पहली-
1. नशा - पहली निशानी नशा! कर्म में, वाणी में, चेहरे में, रूहानी नशा का
अनुभव! तो निश्चय है तब नशा दिखेगा। और वो नशा वाणी से छलकेगा, कर्म में
आएगा, वो नशा चेहरे से दिखाई देगा, ये पहली निशानी है।
2. विजय- जिन्हें निश्चय है उनके लिए विजय सहज है विजय प्रत्यक्ष फल है।
विजय क्या है? सक्सेस क्या है? विक्ट्री क्या है? प्रत्यक्ष फल। सहज
प्राप्त होती है। कुछ भी करो, कुछ भी, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी
डिपार्टमेंट में किसी भी सेवा में मन को लगाओ, वहां स्वतः ही विजयी होगी।
क्योंकि law of faith काम कर रहा है। प्रकृति के ढेर सारे नियम है। उसमें
से एक नियम है law of faith, विश्वास का नियम। Law of attraction, law of
vital adjustment, law of belief, ऐसे ढेर सारे नियम है। वह नियम हमेशा वैसे
ही काम करते हैं, जैसे सदियों पहले करते थे। आज भी उसी निश्चय से, उसी
विश्वास से उन नियमों का पालन किया जाए तो परिणाम वही होगा जो किसी अन्य
कालखंड में था। तो law of Faith कहता है- जहां faith होगा, वहां विजयी होगी।
जहां निश्चय होगा वहां विजयी होगी। बस निश्चय कितना है, उसपर है। हमने देखा
है कोई कोई मरीज इतनी सीरियस होते हैं, इतने सीरियस होते हैं पर उन्हें इतना
निश्चय होता है कि मुझे कुछ नहीं होगा, मैं ठीक हो जाऊंगा और वो जल्दी ठीक
होते हैं, ढेर सारी बीमारियों से गुजर कर भी। अभी अभी वेंटिलेटर, अभी अभी
ये, अभी अभी डायलिसिस, इतनी सारी चीजें हुई फिर भी निकलकर बाहर आ जाते हैं।
कुछ दिन पहले एक मरीज आया OPD में, दर्द हो रहा है छाती में हमने कहा
ई.सी.जी करवा के आओ। ई.सी.जी किया और OPD के बाहर गिर गया collapse! ICU
लेके गए, स्ट्रेट लाइन कुछ भी नहीं, zero, heart बंद हो चुका था। एक डेढ़
घंटा तक सब कुछ चला वेंटिलेटर, ये, वो और रिदम आ गया! फिर ई.सी.जी किया,
हार्ट अटैक, फिर उसका treatment चला और धीरे-धीरे वेंटिलेटर से बाहर आ गया।
कल उसकी एंजियोग्राफी हुई - वह भी नॉर्मल।
जिनमें बहुत निश्चय होता है, faith होती है, इच्छा होती है जीने की, उन्हें
कुछ भी नहीं होता है। इम्यूनिटी का संबंध इमोशन से है। जिन्होंने पहले ही
स्वीकार कर लिया मैं बीमार हूं, जिनके मन में भय बैठ गया है, वो फटाफट
संक्रमित होते हैं। निश्चय! तो पहली निशानी नशा, दूसरी निशानी विजय, तीसरी
निशानी no doubt।
3) No doubt. एक परसेंट भी doubt नहीं, संशय ही नहीं है। इतना faith है
अंदर। क्या ऐसा हमारा निश्चय है उस पर? कि जीवन में कुछ भी हो जाए, वह मुझे
छोड़ेगा नहीं, मैं कितनी भी अंदर अंधकारमय जीवन की परिस्थिति में चला जाऊं
परंतु वह फिर भी मुझे निकाल कर बाहर लाएगा। ऐसा निश्चय, एक परसेंट भी doubt
नहीं। और जिनको doubt होता है, वह पूछते रहते हैं, जिनको doubt है ही नहीं
उन्हें किसी को कुछ भी पूछने की आवश्यकता नहीं। मधुबनी निवासी बन जाए क्या-
पूछते रहते हैं! वहां चले जाएं क्या- डाउट है, जिन्हें doubt ही नहीं उन्हें
किसी को कुछ भी पूछने की आवश्यकता नहीं, तो तीसरी निशानी नो doubt।
4. चौथी निशानी - no question. कोई क्वेश्चन ही नहीं है, fullstop। कोई
प्रश्न नहीं। ऐसा क्यों, वैसा क्यों, ये क्यों, वो क्यों, ये ऐसा क्यों करते
हैं, मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है ऐसा हमेशा ही क्यों होता है? प्रश्न
आएंगे, ऐसा नहीं कि बिल्कुल भी प्रश्न नहीं आएंगे परंतु दिन भर के प्रश्न
अचानक नुमाशाम के योग में विलीन हो जाएंगे, उससे भी अच्छी स्थिति है कि
प्रश्न ही ना आए। परंतु प्रश्न फिर भी आते हैं क्योंकि हर दिन नई नई
परिस्थितियां हैं, हर दिन नई नई समस्याएं हैं, हर दिन नए-नए व्यक्तियों से
संपर्क है, हर दिन व्यक्तियों का स्वभाव संस्कार बदल रहा है। जो अब तक जिस
तरीके से बात करता था अभी वह एकदम बदल गया। चाणक्य ने कहा है यदि किसी
व्यक्ति का behavior अचानक बदल जाए तो समझ जाना दाल में कुछ काला है, अभी
तक सब कुछ ठीक था अचानक बदल गया इसका मतलब कुछ तो है। तो यह सब तो होता
रहेगा, खेल है अनित्य खेल है। तो ये चार निशानियां है- नशा, विजय, नो डाउट,
नो क्वेश्चन।
5. पांचवा है - बेफिक्र बादशाह- जैसे कितना अच्छा उदाहरण दिया है - संसार
में परिस्थितियां आती हैं, दुख आता है, सुख आता है, चित्कार उठती है दुख
की! सारा संसार कितना दुखी है। वो स्वजन जिसके साथ अब तक बात करते थे, खेलते
थे, सब कुछ करते थे आज वह है ही नहीं। गया। दुख की अनुभूति होती है। व्यक्ति
कह भी नहीं पाता कि मैं दुखी हूं। चुप। सदमा इतना गहरा। कई सारे हॉस्पिटल
है इस समय भारत में। जहां आने वाले कल एक डॉक्टर बता रहे थे, उधर कर्नाटक
में, कि हर दो पेशेंट के बाद एक पेशेंट जो आ रहा है वह जा चुका है। तो गहरा
दुख होता है, सहन नहीं कर पाती है चुप हो जाती है चेतना, नम हो जाती है। तो
बाबा ने कहा जब ऐसा दुख होता है तब व्यक्ति बोलता भी नहीं कि मैं दुखी हूं,
वह स्वतः ही स्थिति हो जाती है, परिस्थिति अनुसार स्थिति।
तुम्हारी बेफिक्र बादशाह की स्थिति कैसी है? किस पर आधारित है, परिस्थितियों
पर नहीं परंतु किसी और बात पर। कौन सी बात पर? ज्ञान पर! ज्ञान की लाइट पर,
माइक पर, योग की शक्तियों पर, बाप द्वारा जो वर्षा मिला है उस पर, सद्गुरु
द्वारा जो वरदान मिला है उस पर, भाग्य विधाता द्वारा जो भाग्य मिला है उस
पर, इसपर तुम्हारी स्थिति आधारित है। और स्थिति क्या है- बेफिक्र बादशाह,
निश्चिंत स्थिति है। कोई फिक्र नहीं, बाहर की परिस्थितियां अनुसार स्थिति
नहीं है, परिस्थितियां शक्तिशाली हम कमजोर- यह नहीं, परिस्थितियां हिला रही
है, हम भी हिल रहे हैं- यह नहीं। हमारी स्थिति का आधार बाहर की कोई भी चीजें
नहीं है। इसलिए धीरे-धीरे सारे आधार कम करते जाने हैं। जितनी हमारी
आवश्यकताएं कम होगी उतने हम अधिक शक्तिशाली होंगे। The lesser the wants,
the powerful we are. जितनी आवश्यकताएं कम, उतनी हम शक्तिशाली, जितनी
आवश्यकताओं का विस्तार है यह भी चाहिए, वह भी चाहिए, उतनी ही कम शक्ति। तो
बेफिक्र बादशाह! परंतु इसका मतलब यह भी नहीं है कि careless। ये वाला नहीं।
जैसे किसी ने अभी अभी भेजा-
• बुखार का पहला दिन- यह बुखार है, ठीक हो जाएगा। मुझे पता है मुझे कोविड
तो हो ही नहीं सकता क्योंकि यह बीमारी ही नहीं होती कुछ। यह षड्यंत्र है।
• बुखार का दूसरा दिन- हर बुखार कोविड थोड़े ही होता है, लेकिन फिर भी
पेरासिटामोल खा लेता हूं।
• बुखार का तीसरा दिन- RT PCR कोविड टेस्ट करवाने से क्या होगा सीधे सिटी
स्कैन करवा लेता हूं। फिर दो-तीन दिन में सिटी स्कैन में कुछ खास नहीं आया
तो कोविड। इडियट कहेगा कि कोरोना नहीं है।
• बुखार का चौथा दिन- यह बुखार तो पीछे ही पड़ गया है चलो ब्लड टेस्ट करवा
लेते हैं डॉक्टर को पैसे क्यों देना है, यह तो बैठी ही है लूटने के लिए,
टेस्ट में टाइफाइड पॉजिटिव आएगा क्योंकि शायद टाइफाइड आएगा।
• बुखार का पांचवा दिन- मैंने पहले ही कहा था यह टाइफड है अब डॉक्टर को
₹300 क्या देना कुछ एंटीबायोटिक खरीद कर खा लेता हूं।
• बुखार का छठा दिन- अभी कल ही तो एंटीबायोटिक शुरू किया थोड़ा समय तो लगेगा।
• बुखार का सातवां दिन- यह बुखार तो पीछे ही पड़ गया है, एक फ्रेंड डॉक्टर
है उससे पूछते हैं, कुछ देर बाद ये डॉक्टर सबका लैब में कमीशन होता है देखो
RT PCR test के लिए बोल रहा है उसकी रिपोर्ट में भी दो-तीन दिन लगेंगे।
• बुखार का आठवां दिन- अरे मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही है, कोई
अस्पताल ले चलो। लेकिन कोविड रिपोर्ट अभी आया नहीं है।
• बुखार का नवा दिन- ऑक्सीजन लेवल 90 से नीचे जा रहा है लेकिन कहीं बेड नहीं
मिल रहा है यह सरकार एकदम ही बेकार है।
• बुखार का दसवां दिन- ऑक्सीजन लेवल 80 परसेंट से नीचे है, बहुत मुश्किल से
एक बेड मिला है लेकिन राहत नहीं है यहां ये अस्पताल एकदम बेकार है।
• बुखार का 11 वा दिन- वेंटिलेटर पर गया। अब परिवार वाले डॉक्टरों को दोष
दे रहे हैं।
• बुखार का 12 दिन- संक्रमण इतना बढ़ गया कि मरीज की मौत हो गई। बाकी के
लोग डॉक्टरों से लड़ रहे हैं कि आप लोगों को कुछ नहीं आता है 2 हफ्ते पहले
स्वस्थ था आदमी की जान गई, अस्पताल की स्थिति अच्छी नहीं है बेड के लिए इतनी
मारामारी वहां भी लापरवाही हो रही है।
बेफिक्र बादशाह! ऐसा भी बेफिक्र बादशाह नहीं बनना है। सतर्क सजग रहना है।
इम्यूनिटी बढ़ाने का सबसे अच्छा साधन पता है कौन सा है- ब्रह्मचर्य।
ब्रह्मचारी, सबसे पावरफुलि योगी जो है, उनके शरीर में एक अद्भुत सी ऊर्जा
प्रगट होती है ब्रह्मचर्य की, उससे बड़ी और कोई भी इम्यूनिटी इस संसार में
नहीं है। वह ब्रह्मचर्य नष्ट होना अर्थात शरीर से प्राण ऊर्जा बाहर निकलना।
जहां शरीर में प्राण ऊर्जा दौड़ रही है वहां ब्रह्मचर्य का तेज है। वह शरीर
से बाहर निकलती है चाहे किसी भी कारण से, किसी भी उत्तेजना से या कल्पना
से, तो प्राण ऊर्जा का ह्रास होता है और इम्यूनिटी कम होती है। इसलिए तो
इतनी मुरलियां है प्योरिटी पर। प्यूरिटी ही इम्यूनिटी है। पांचवा बेफिक्र
बादशाह।
6. छठवां - समर्पित.. बलिहार.. सर्वंस्व त्यागी! किन चीजों का त्याग? किन
चीजों में समर्पित? अंश भी न हो। किसका अंश? विकार का अंश जो देहभान को
जन्म देता है। देह के प्रदार्थ के, देह के संबंध, यह तीनों ही अंश किसी भी
प्रकार अगर मन में बसे हैं तो क्या होगा इससे, वंश का जन्म होगा। सूक्ष्म
अति सूक्ष्म विकार यदि मन में है, तो जैसे ही एकांत में या जीवन की
परिस्थितियों में यदि उसे चिंगारी मिलेगी वह भड़क जाएगा, बाहर निकल कर आएगा।
जो ऊपर में कुछ भी दिखाई नहीं देता, इतना सूक्ष्म है इतना सुक्ष्म है कि
जीवन में कुछ परिस्थितियों में ही वह बाहर आ जाता है। और वह परिस्थितियां
अभी है ही नहीं, पर वह परिस्थितियां कभी भी आ सकती हैं। जब वह बाहर आता है
तो बाकी ज्ञान और योग सब कुछ नष्ट हो जाता है। Logic, तर्क, बुद्धि, विवेक,
ज्ञान, योग... सब, सब बह जाता है क्योंकि उसमें इतनी ज्यादा पावर है। इसलिए
ढूंढो, खोज करो, मन में अपने अंदर। मेरे अंदर ऐसी वो कौन सी बात है, कौन सा
वह सबसे गहरा भय बैठा है? स्वजनों की मृत्यु का? कौन सा भय- बीमारी का? कौन
सा भय है? या कोई संस्कार या कोई विकार। जिसको जिस चीज में ज्यादा तकलीफ
होती है, उसको उसके ऊपर ज्यादा काम करना है। बाकी चीजों में काम करने की
आवश्यकता कम है। अमृतवेला हो ही रहा है। मुरली चिंतन कर ही रहे हैं। पर
विकार का वह अंश जो बीच बीच में है, उसको निकालना है। उस पर एक्स्ट्रा काम
करना पड़ेगा, एक्स्ट्रा टाइम देकर। तो छठवां बलिहार, समर्पण। समर्पण अर्थात
ये नहीं कि मधुबन या केंद्र में आ जाओ। समर्पण स्थिति का नाम है, निरंतर की
जो स्थिति है उसका नाम है! वह सारी भी सीढ़ियां है.. पर मंजिल तो यह है-
सर्वंश त्याग। पदार्थ शरीर का कोई भी आकर्षित ना करे, कुछ भी इस संसार का,
कोई भी पदार्थ, कोई भी संबंध। लौकिक तो छोड़ दिया पर अलौकिक में नए-नए
संबंध बनाकर रखें हैं, किसी को दोस्त बना दिया, उसके सिवा होता नहीं। वही
चाहिए घूमने के लिए खाने के लिए, बनाने के लिए कुछ भी करने के लिए, वह भी
बाधा है। तो छठवां बलिहार, समर्पण।
7. सातवां निश्चय, निश्चित, निश्चिंत। निश्चित अर्थात फिक्स्ड है, जो कुछ
हो रहा है निश्चित हो रहा है.. ड्रामा का राज। निश्चिंत अर्थात carefree..
हम निश्चिंत हैं, वह बैठा है ऊपर, वह देखेगा क्या करना है, क्या नहीं करना
है। अंदर ही अंदर समर्पण! बार-बार समर्पण! समर्पण एक ड्रिल है, एक अभ्यास
है, एक प्रैक्टिस, एक एक्सरसाइज है, तो बीच-बीच में समर्पण कर देना। गीता
में लिखा है- मेरी यह जो माया है अर्जुन, यह बहुत दूस्तूर है.. बहुत कठिन
है, सतो, रजो, तमो से जो बनी है। इसको तुम वैसे नहीं पार कर पाओगे! तुम्हें
मेरी शरण में आना पड़ेगा, तो ही हो सकता है! नहीं तो नहीं। तुम्हारे पास
कितनी भी technique होगी वह काम नहीं आएगी। तुमको इधर ही आना पड़ेगा।
तो बलिहार समर्पण और निश्चिंत, निश्चित और निश्चय यह तीन बातें हैं।
8. आठवां - स्वयं भी नशे में होगा तो दूसरों को भी नशा दिलाएगा। जो स्वयं
ही नशे में नहीं है, उदास है, दुखी है उसको देखकर क्या लगता है? उदासी भी
contagious है, संक्रमक है। एक व्यक्ति अगर उदास है तो उसको देखकर दूसरों
को भी उदासी छा जाती है, वह कहता है मेरे साथ ऐसा हो गया वैसा हो गया उसको
देख कर उसे भी लगता है मेरे साथ भी ऐसा ही होगा। दुख संक्रमक है, जैसे खुशी
संक्रमक है वैसे दुख भी फैलता है। इसलिए बाबा ने कहा जो स्वयं नशे में है
वो दूसरों को भी याद का नशा दिलाएगा। और नशे में आने की सर्वोच्च विधि है
ज्ञान चिंतन। जरूरी नहीं है कि पूरी की पूरी मुरली पर चिंतन किया जाए पर
कुछ एक शब्द वहां से निकाल लिया जाए और हर दिन बड़ी गहराई से उस पर चिंतन
किया जाए। जैसे कहा चिंतन करते करते मन एकाग्र हो जाता है और एकाग्र होते
ही जीवन का कोई ना कोई दूसरे प्रश्न का उत्तर वहां पर मिल जाता है क्योंकि
एक एकाग्र मन में बहुत पावर होती है। इसलिए अमृतवेले का समय केवल उठकर योग
करने का ही नहीं है, मनन चिंतन का भी है। क्योंकि जितनी एकाग्रता अमृतवेले
में है, उतनी दिन भर में नहीं है। वाइब्रेशन strong अमृतवेला में है। सीधे
उठे और सीधा बाबा के कमरे में और योग किया, खत्म और बाकी दिनचर्या चालू,
ज्ञान चिंतन कहां किया? इसके लिए टाइम बढ़ाना पड़ेगा, योग तो जैसा चल रहा
है 4:00 बजे वह तो है ही, उसके पहले कुछ ज्ञान का चिंतन ताकि मन activate
हो जाए। किसी भी पॉइंट, वह पॉइंट को सोच के रात में सोते समय ही रख लेना।
फिर उठते ही उस पर चिंतन करना, चाहे बैठकर करो, चलते फिरते करो, घूमते हुए
करो फिर योग चालू। क्योंकि बिना चिंतन के नशा नहीं चढ़ता। आज कहा ना क्लासेस
सुनते हुए भी क्या हो गया थक गए बोर हो गए, वही वही चीज है, बाप को याद करो,
बाप समान बनो, दिव्य गुण धारण करो, काम महाशत्रु है, सेवा तुमको बहुत करनी
है, मौत सामने खड़ा है, अब घर जाना है, कुछ भी असर ही नहीं है इन शब्दों का!
कितनी बार सुने हैं। मनन चिंतन से ज्ञान तो वही रहेगा, परंतु देखने का
दृष्टिकोण बदल जाएगा। तो अपने आप कुछ तो नया होगा। तो आठवीं खुद नशा और
दूसरों को भी नशा चढ़ाने वाले।
9. नौवीं निशानी निश्चय बुद्धि आत्माओं की- निमित्त, निर्मान, निर्माण।
निमित्त जो समझता है मैं निमित्त हूं वह कैसा होगा निर्मान, उसे मान की
कामना नहीं है और जिसे मान की कामना नहीं है वह क्या करेगा निर्माण, अर्थात
कंस्ट्रक्शन, कुछ तो क्रिएटिव करेगा। निर्मान अर्थात विनम्र, और निर्माण
अर्थात construction.. तो जो निश्चय बुद्धि होगा उसे अभिमान नहीं होगा वह
मौन होगा, यह है नौवीं निशानी।
10. दसवीं निशानी निश्चय बुद्धि आत्माओं की, भाषा- कौन सी भाषा होगी? मीठा
तो होगा ही परंतु भाषा कौन सी होगी? संतुष्टता की, उदारता की, हर एक के
कल्याण की भाषा- पहले आप। दूसरों को सिखाना है। अगर हमें कोई स्किल, कोई
आर्ट आती है तो हमें अपने आर्ट को अपने तक ही नहीं रखना है। कई लोग अपनी
skill अपने तक ही रखते हैं क्यों, डर। अगर दूसरे ने सीख लिया तो यह मेरे से
आगे निकल जाएगा फिर हमारी वैल्यू कम हो जाएगी, लोग हमको कम पूछेंगे और हो
सकता है जिसको सिखाऊं वह मेरे से भी आगे चला जाए, तो फिर खतरा है ना। उदारता
का उदाहरण दिया ब्राह्मा का बाबा ने- क्या किया ब्रह्मा बाबा ने? मम्मा को
आगे रखा, बच्चों को आगे रखा! तुम्हें भी अपने से आगे दूसरों को बढ़ाना है।
ये बहुत बहुत हाई स्टेज है, बहुत ऊंची भावना है! कितना निस्वार्थ भाव है
इसमें! दे देना।
दिखाया है कहानी में- अर्जुन कृष्ण से पूछता है कि मैं भी तो बहुत बड़ा दानी
हूं, लोग ये कर्ण को ही क्यों बड़ा दानी मानते हैं? ऐसा मुझमें क्या कमी
है? मैं भी बहुत कुछ बांटता हूं लोगों को। कृष्ण कहते हैं- चलो देखते हैं।
दो पहाड़ियां हैं कृष्ण उनको सोने की पहाड़ियों में तब्दील कर देते हैं और
कहते हैं जाओ जितना सोना है गांव वालों को बांट दो। अर्जुन भाग भाग के जाता
है और 2 दिन दो रात बिना सोए सोना बांटते जाता है.. बांटते जाता है.. परंतु
वो कम नहीं होता है। फिर कहता है अब मैं थक गया, बस हो गया। कृष्ण कहता है
ठीक है बैठो। कर्ण को बुलाते हैं। और बीच में थोड़ा अर्जुन को अभिमान भी आता
है, उसकी जयजयकार भी होती है लोग महिमा गाते हैं कि अहा-हा कितना दानी है।
कर्ण को बुलाते हैं कर्ण को भी वही काम कहा जाता है- सोना बांट दो गांव वालों
को। कर्ण जाता है गांव वालों से कहता है जिसको जो चाहिए ले लो और वहां से
निकल जाता है। सारा झंझट खत्म। ना तो मुझे जयजयकार सुननी है और ना तो पीठ
पीछे लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं उसमे रुचि हैं, जिसको जो चाहिए वह
ले ले। यह है निस्वार्थ भाव! ऐसा भाव, उदारता। तो निश्चय बुद्धि अर्थात
उदार। जमा करके नहीं रखना है चीज़ों को। बांट देना। आम मिले हैं, सड़ रहे
हैं, ना खुद खा रहे हैं ना दूसरों को दे रहे हैं, फल मिले हैं, रखे हैं,
सोचे हैं कल खाऊंगा, कल खाऊंगा और जब आया तो देखा सब गए, सड़ गए! यह काम
सबसे अच्छा है- कमरे में ढूंढो क्या क्या है एक्स्ट्रा, घर में ढूंढो अपने
और जिसको जरूरत है उसको दे दो, कल्याण होगा।
एक बच्चा निकल पड़ता है- हर एक दुकान में जाता है और कहता है यहां भगवान
मिलते हैं क्या? वो कहते हैं भगवान? भाग यहां से। कोई और दुकान में जाता है
कहता है भगवान मिलते हैं क्या? कोई कहता है कितने पैसे की, वो कहता है ₹1,
वो कहते हैं भाग यहां से। वो इतने दुकान घूमता है, इतने दुकान घुमता है 40
दुकान हो जाते हैं। एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचता है, वह पूछता है तुम्हें
भगवान क्यों चाहिए क्यों खरीदना चाहते हो? वो कहता है- मेरी मां अस्पताल
में है। डॉक्टर कहते हैं इसको केवल भगवान ही बचा सकता है इसलिए ढूंढ रहा
हूं, आपके पास है? वो कहता है हां, कितने पैसे हैं तुम्हारे पास? वो कहता
है ₹1.. वो कहता है दे दो, मैं भगवान को पहुंचा दूंगा, जाओ तुम। उधर उसकी
मां का ऑपरेशन होता है, सब कुछ होता है, वह ठीक होती है और last में
हॉस्पिटल का बिल डेढ़ लाख! तो अचानक पता चलता है किसी एक बूढ़े व्यक्ति ने
वो बिल चुक्तू कर दिया है और वहां पर एक खत छोड़ा हुआ है, उसमें लिखा है-
तुम्हारा ये जो बेटा है ना, उसका निश्चय था कि यदि उसे भगवान मिल गया तो
तुम बच जाओगी, मैं तो एकमात्र जरिया हूं तुमको उसी ने बचाया है।
बेटा! आज मदर्स डे है ना? बेटा लेट घर आता है बारिश में, पिताजी डांटते हैं
पहले निकलना था ना, आने की क्या जरूरत थी बारिश में, बहन कहती है छाता नहीं
ले सकते थे, दादा जी कहते हैं बारिश रुक जानी थी फिर आना चाहिए था, मां कहती
है- यह बारिश भी कितना मूर्ख है! उसको इतना भी नहीं पता कि मेरा बेटा आ रहा
है। उसको रुकना तो चाहिए ना! इसे कहते हैं मां। वो क्या सोचती हैं दोष किसको
देती है? बारिश को। बारिश को ही समझ में नहीं आता है! उसको रुकना चाहिए था!
और बाकी लोग... इसलिए मां बहुत ऊंची अवस्था है! और उससे भी ऊंची अवस्था है
मातृत्व, motherhood. मां तो कोई भी बन सकता है। पर motherhood को पा लेना,
इसका मां बनने से कोई संबंध नहीं है। शरीर से शरीर को जन्म देना कोई बड़ी
बात नहीं है, पर मातृत्व को प्राप्त कर लेना... जैसे मम्मा, वह ऊंची अवस्था
है। उसका स्त्री पुरुष होने से भी कोई संबंध नहीं। ब्रह्मा मां है। मां
अर्थात पालना। तो कहां थे हम? 10वीं निशानी क्या है? भाषा!
11. 11वीं निशानी "तूफान की परख"- त्रिनेत्री बनकर तूफान को परखो, उस समय
जैसे वो तूफान है वायु का, समुद्र का, वैसे यहां भी तूफान आते हैं। कौन-कौन
से? ब्राह्मण जीवन के तूफान कौन से हैं- व्यर्थ संकल्प, नाम, मान और? हम
जैसा चाहते हैं कुछ हो नहीं रहा है, इच्छा अनुसार नहीं हो रहा है, ये तीन
तूफान। हम चाहते हैं ऐसा होना चाहिए पर वैसा नहीं हो रहा है, हम चाहते हैं
इसको ऐसा behave करना चाहिए, इस डिपार्टमेंट में ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए,
यह टाइमिंग चेंज हो जाना चाहिए दूसरा टाइमिंग होना चाहिए, बहुत कोशिश की
हमने पर वैसा होता नहीं है, इसको बदलना है उसको बदलना है, बदलता कुछ नहीं
है। दुखी हो रहे हैं! यही तूफान है! यही निश्चय की परीक्षा है। बाबा ने कहा
है- यही पेपर है। यह पेपर में क्या चाहिए तुमको? सर्टिफिकेट। लोक पसंद, बाप
पसंद, मनपसंद! कोई कहे कि पेपर दे ही ना तो पास विद ऑनर का सर्टिफिकेट कैसे
मिले! तो तूफान आएंगे। ढेर सारे तूफान आएंगे। ब्राह्मण बनना ही अर्थात
तूफान चालू, जब तक ब्राह्मण नहीं थे तबतक शांति से जीवन चल रहा था।
ब्राह्मण बन गए मुसीबतों का युग चालू! परंतु वो खेल है! वह हमें डिस्टर्ब
ना करें, मैं समर्थ आत्मा हूं फिर व्यर्थ कैसे आ सकता है? व्यर्थ की जीत
कैसे हो सकती है? समर्थ बाप की समर्थ संतान हूं! स्वमान केवल यह नहीं कि
आत्मा हूं। निश्चय, कि कौन सी आत्मा हूं! मैं समर्थ आत्मा हूं! इसको
सबकॉन्शियस माइंड में जाने देना है। अभी तक गया नहीं है, ऊपर ऊपर है। बहुत
टाइम लगता है कि कोई भी बात अंतर्मन स्वीकार कर ले। इतना जल्दी स्वीकार नहीं
करता। हम उसको स्वमान देते हैं मैं महान आत्मा हूं, वो क्या करता है? एक
किक मारता है उसको, दूर फेंक देता है। मैं, और महान!? ऊपर से तो कहता भी
हूं, लिखता भी हूं पर अंदर से पता है नहीं हूं, बिल्कुल नहीं हूं। क्योंकि
इतनी सारी गलतियां कर रखीं हैं। ब्राह्मण बनने के बाद बहुत सारी भूले हुई
हैं। किसी को बता नहीं सकते ऐसी भूले हुई हैं। और कैसे कहूं महान आत्मा
हूं? इतना रिस्पांसिबल हूं पर फिर भी भूलें तो हो रही है, इतना अच्छा सब
कुछ है पर फिर भी कोई कोई गंदी, nasty habits अंदर है, क्या करें? किसको
बताए? बता भी नहीं सकते और स्वमान है मैं महान आत्मा हूं! अंतर्मन को
स्वीकार करा लेना पुरुषार्थ है, बहुत एकांत चाहिए, बहुत मौन चाहिए, बहुत
चिंतन चाहिए तो वो अंदर जाएगा नहीं तो नहीं जाता है। तो 11वां - तूफान।
12. 12वां - समीप रत्न। क्या निशानी बताई समीप रत्न की? डबल विदेशों से
मुलाकात। निश्चय बुद्धि अर्थात जो समीप है, समीप है अर्थात सहज, स्वतः।
मेहनत नहीं। मेहनत बहुत कर ली, क्या-क्या मेहनत की- भक्ति में मेहनत की,
ढूंढने में मेहनत की, नौकरी में मेहनत की, सब मेहनत ही मेहनत, मेहनत ही
मेहनत। अब मेहनत से मुक्त हो जाओ,बाप हमें मुक्ति दिलाने आए हैं। हर चीज से
स्वयं को मुक्त करना है। और जो पुरुषार्थ जो चीज बिना मेहनत के सहज होती है
वही लंबा समय चलती है। जो जबरदस्ती कर रहे हैं वह लंबे समय तक नहीं चलेगी।
अब सहज बनाना है कुछ चीज को तो उस पर अलग से काम करना पड़ेगा। रोज़ उस विषय
में पढ़ना पड़ेगा, चिंतन करना पड़ेगा, discuss करना पड़ेगा जब तक वो सहज ना
हो जाए तबतक। जब पहले गाड़ी चलाना सीखते हैं तो कितनी मुश्किल लगती है, फिर
धीरे-धीरे सहज हो जाता है, हाथ भी छोड़ देते हैं। पहले दिन मेडिकल कॉलेज
में जाते हैं, ऑपरेशन थिएटर में घुसता है कोई नया, वह देखकर ही चक्कर खाके
1-2 तो गिर जाते हैं, पकड़ने का काम है, बस असिस्टेंट हैं, करना नहीं है
पकड़ना है, देखते देखते ही थोड़ी देर में सिर घूमने लगता है। सब तरफ खून ही
खून, खून ही खून, चक्कर आने लगता है। और धीरे-धीरे कुछ कम, कुछ असर ही नहीं
होता, हैबिट। जो एक बार शरीर ट्यून हो गया फिर अपने आप काम करने लगता है,
माइंड एक बार ट्यून हो गया फिर अपने आप काम करने लगता है फिर कुछ नहीं करना
पड़ता। एक बार प्रोग्राम बन गया, प्रोग्राम बन गया है कि 2:00 बजे उठना है
फिर चाहे कितनी भी बजे भी सो, अपने आप ही वो उठेगा। क्योंकि प्रोग्रामिंग
की है। पर वो प्रोग्रामिंग जो है उसके लिए टाइम लगता है। तो वो सहज हो जाए।
तो 12वीं पॉइंट - सहज, इसमें माया को भी बताया है, इसमें माया भी आ जाए तो
क्या समझो? कि खेल है। माया.. सहज.. खेल हो रहा है। मैं मास्टर
सर्वशक्तिमान हूं! खेल चालू है, तो ऐसी कितनी निशानी बताइ बाबा ने आज? 12..
1. नशा।
2. विजय।
3. No doubt.
4. No question.
5. बेफिक्र बादशाह।
6. बलिहार।
7. निश्चित, निश्चिन्त, निश्चय।
8. मैं नशे में तो, दूसरे भी नशे में।
9. निमित्त, निर्मान, निर्माण।
10. "भाषा", निश्चय बुद्धि आत्माओं की भाषा, उदारता की भाषा।
11. "तूफान में स्वयं को चेक करना" तूफान आए तब फाउंडेशन हिलता है। झाड़
उखड़ता नहीं हिलता है। यहां भी उखड़ते नहीं, हिलते हैं। हिलना अर्थात का
प्रालब्ध हिलना जन्म जन्म की।
12. सहज, स्वतः समीप रतन।
ऐसे समीप रत्न आत्माओं को, ऐसे निश्चय बुद्धि आत्माओं को, ऐसे बड़े ठेकेदारों
को, छोटे-मोटे ठेकेदारो को नहीं बड़े-बड़े ठेकेदारों को, ऐसे गृहस्थ में
पवित्रता का व्रत धारण करने वाली आत्माओं को, ऐसे व्यर्थ से मुक्त आत्माओं
को, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिमान आत्माओं को, ऐसे समर्थ आत्माओं को, ऐसे अपनी
रूहानी नशे से दूसरों को नशे में लाने वाली आत्माओं को, ऐसे सदा विजयी
आत्माओं को, ऐसे क्वेश्चन मार्क मुक्त, ऐसे doubt मुक्त आत्माओं को, ऐसे सदा
समर्थ बाप की सदा समर्थ आत्माओं को, ऐसे सर्वंस्व त्यागी आत्माओं को, ऐसे
चैलेंज करने वाली आत्माओं को, ऐसे माया के तूफान को खेल समझने वाली आत्माओं
को, ऐसे बेफिक्र बादशाहों को, ऐसे निश्चिंत, विजयी आत्माओं को, ऐसे
उदारचित्त आत्माओं को, ऐसे कल्याण की भाषा समझने वाली आत्माओं को, संतुष्टता
की भाषा जानने वाले आत्माओं को, ऐसे अचल-अडोल आत्माओं को, leakage को stop
करने वाली आत्माओं को, ऐसे एकरस स्थिति वाली आत्माओं को, ऐसे निश्चय बुद्धि
विजयी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार, गुड नाइट और नमस्ते! हम रूहानी
बच्चों की रूहानी बापदादा को याद प्यार, गुड नाइट और नमस्ते। ओम शांति।