ओम शांति!
3 मित्र अपनी शिक्षा पूरी करते हैं और वापस चल पड़े। उसमें से एक जो है, वह
दार्शनिक है, philosopher। उसमें से दूसरा जो है वह linguist है,
भाषाशास्त्री। जिसे शब्दों का, भाषा का, व्याकरण का ज्ञान है, ध्वनि का
ज्ञान है। उसमें से तीसरा जो है, वह वनस्पति शास्त्री है, botanist। ऐसे
तीन मित्र अपनी शिक्षायें पूरी कर कर लौट रहे हैं घर। अंधेरी रात है, जंगल
से गुजरते, सुबह हो जाती है। तीनों को ही बहुत भूख लगती है। सब लोग मिलकर
सोचते हैं कुछ भोजन बनाया जाए। वनस्पति शास्त्री से वह दूसरे दोनों कहते है
की तुम जाकर सब्जी खरीद लाओ, क्योंकि तुम्हारे पास जितना वनस्पतियों का
ज्ञान है उतना और किसी के पास नहीं। दूसरा जो दार्शनिक हैं, उसे कहा जाता
है तुम जाकर घी लेकर आओ। क्योंकि सदियों से तुम इसी प्रश्न को सुलझाते रहे
हो कि पात्र घी को धारण किए हुए हैं या घी पात्र को धारण किए हुए हैं? यह
दर्शन का प्रश्न है। कौन किसको धारण किए हुए हैं? तुम देख भी लेना, समझ भी
लेना, अनुभव भी हो जाएगा। और तीसरा, जो कि भाषा शास्त्री है, उसे कहा जाता
है कि तुम चूल्हा जलाओ। लकड़ियां जलेगी और उसमें से कुछ आवाजें आएगी, ध्वनि
होगी और तुम से अधिक ध्वनि का ज्ञान और किसके पास है?
पहला मित्र
निकल पड़ता है। गांव में जाता है, पूरे बाजार में ढूंढता है परंतु हर सब्जी
में उसे कोई ना कोई दोष नजर आता है। किसी में वात, किसी में पित्त, किसी मे
कफ। और आखिर सारी जांच पड़ताल के बाद वह नीम की पत्तियां लेकर आता है।
क्योंकि नीम ही एकमात्र है जो दोष रहित है। जो दार्शनिक है, वह घी खरीदता
है, और घी को एक पात्र में लेकर आता है और आते-आते सोचता है कि सदियों से
यह प्रश्न रहा है कि घी पात्र को धारण किए हुए है या पात्र घी को? क्यों ना
आज जांच पड़ताल कर लूं? और वह घी को उलट देता है, घी नीचे गिर जाता है। तब
उसके मन को राहत मिलती है कि हां, बहुत बड़ा उत्तर मिल गया कि पात्र ही घी
को धारण करता है ना कि घी पात्र को। आज पता चला! सोचता है कब जाकर इस खोज
का सबको बताऊं और खाली पात्र लिए वह आता है। तीसरा, चूल्हा बनाता है, जंगल
की गीली लकड़ियां है। आग जलाता है, हांडी रखता है, पानी उबलने लगता है और
उन लकड़ियों से आवाज आने लगता है- बुत्त बुत्त। वह सोचता है यह कौन सा आवाज़
है? ऐसा आवाज तो किसी भी शास्त्र में लिखा ही नहीं गया है। यह तो अशब्द है
और अशब्द को लिखना निषिद्ध है। अशब्द सुनना ही नहीं चाहिए। शास्त्र कहते
हैं - ऐसे शब्दों को तुरंत बंद कर देना चाहिए। एक लकड़ी लेता है और जोर से
मारता है, हांडी पर। पानी गिरता है, आग बुझ जाती है। तब कहीं अशब्द शांत
होता है और उसे राहत मिलती है और वह खुश हो जाता है। तीनों मित्र मिलते
हैं। ना सब्जी है, ना घी है और नीम है। भूखे रह जाते हैं, रोने लगते हैं।
क्या उनके
पास ज्ञान की कमी थी? ज्ञान तो बहुत था। शास्त्रों का ज्ञान था, वनस्पति का
ज्ञान था, शब्द का ज्ञान था, ध्वनि का ज्ञान था, सारा ज्ञान था। दर्शन
शास्त्र का ज्ञान था। परन्तु उस ज्ञान ने उन्हें सफलता नहीं दिलाई। क्योंकि
वह ज्ञान केवल पांडित्य था। जब तक ज्ञान चेतना में ना समा जाए और जब तक
ज्ञान प्रकाश ना बन जाए, रोशनी ना बन जाए, तब तक हमारी भी हालत इन तीन
मित्रों जैसी ही है। कहीं हमने सुना है, पढ़ा है, मूल्यवान वाक्य है- ज्ञान
समय का परिणाम है! छोटा सा वाक्य है, परंतु चिंतन की आवश्यकता है। ज्ञान
आकस्मिक रूप से नहीं आता, ज्ञान क्रमबद्ध आता है। ज्ञान की क्या परिभाषा
है? ज्ञान किसे कहा जाएगा? इतिहास में अनेकानेक लोगों ने ज्ञान को परिभाषित
किया है। आदर्शवादी कहते हैं - जो आदर्श है वही ज्ञान है। यथार्थवादी कहते
हैं - जो वस्तु है, उस वस्तु का ज्ञान ही ज्ञान है। स्पेंसर कहता है - जो
वास्तविक है, जो दिखता है, जो साकार है वही ज्ञान है। आत्मा और परमात्मा एक
कोरी कल्पनाएं मात्र है। सुक्रात कहता है कहीं पर की ज्ञान सर्वोच्च सद्गुण
है। किसी लेखक ने कहीं लिखा है ज्ञान अर्थात वह जो मन को प्रकाशित करें।
ज्ञान साधन है। मुक्ति साध्य है।
इस संसार में
सभी दुखी है, अशांत है और सभी दुखों का कारण हम बताते हैं, क्या है? विकार।
और सभी विकारों का कारण क्या है? देहभान। और देहभान का कारण क्या है?
अविद्या। जब तक अज्ञान नहीं मिटता, तब तक दुख मिट नहीं सकता, इसलिए ज्ञानी
का सबसे बड़ा शत्रु कौन है? अज्ञान, अविद्या।
"अज्ञान
तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
॥"
"वह गुरु जो
मेरे अज्ञान का, मेरे तिमिर का नाश करता है, किससे? ज्ञान की शलाका से। ऐसे
गुरु को नमन।"
क्योंकि
ज्ञान ही है जो मुक्ति देगा। ज्ञान ही है जो हमें परिस्थिति और विघ्नों में
सुरक्षित रखेगा। आज की अव्यक्त वाणी, अव्यक्त महावाक्य बाबा के:- ज्ञान की
शक्ति से तुम विघ्न और परिस्थिति, ज्ञान की शक्ति के आगे विघ्न और परिस्थिति
ठहर नहीं सकते! ज्ञान बल है, ज्ञान पावर है। Francis Bacon ने कभी लिखा था
17वीं शताब्दी में - knowledge is power, ज्ञान शक्ति है! ज्ञान ऊर्जा है।
ज्ञान बल है। परंतु उस बल को हमने कितना धारण किया है? क्या वास्तव में हम
ज्ञानी हैं, या ज्ञान का भ्रम मात्र है? अगर ज्ञानी होते तो यह उलझन क्यों?
अगर ज्ञानी होते तो यह प्रश्न क्यों? अगर ज्ञान को संपूर्ण रीति से वैसे ही
धारण किया होता, जैसे ज्ञानदाता ने सुनाया है, तो हम भी सभी प्रश्नों से
पार होते। पर चेतना में अभी भी प्रश्न गड़े हुए हैं। क्यों? शायद ज्ञान को
वैसे नहीं समझा है जैसे समझना चाहिए था। ज्ञान जैसे एक कारोबार, एक तोतारटन
सा हो गया है। यह आत्मा, यह परमात्मा, यह संगम युग, यह युग, यह इतना समय,
यह चक्र, यह ब्रह्मा, यह अवतरण, बस ऐसे ही रह गया है। ऐसे तो नहीं। अव्यक्त
महावाक्य आज की मुरली में :- ज्ञान तुम्हारे हर संकल्प में समा जाए। ज्ञान
तुम्हारे जीवन में समा जाए। ज्ञान को रटने की आवश्यकता ही ना पड़े। ज्ञानमयी
जीवन हो जाए, जीवन अर्थात ज्ञान। जीवन अर्थात ज्ञान का अवतरण हो जाए। क्या
ऐसा है? निरंतर यह खोज चालू रहे की मुझे ज्ञान प्राप्त करना है। अब तक जो
पाया है, वह कुछ भी नहीं है। अब तक जो समझा है वह सूचनाएं मात्र है। ज्ञान
कहां है? ज्ञान की पिपासा, ज्ञान की खोज। मुरली में दो शब्द है -
स्पष्टीकरण और विस्तार। ज्ञान को कैसे पाएं? कैसे ज्ञान की गहराई तक पहुंचे?
जिनकी पेट की आवश्यकता ही पूरी नहीं हुई, वह ज्ञान की गहराई को कैसे जान
पाएंगे? सिर पर ज्ञान का कलश लिए झूम रहे और नाच रहे। परंतु गर्दन तक शरीर
तो देहभान में धसा है। ज्ञान के उस राज़ो को कैसे जानेंगे? मुरली के
महावाक्य है - राज़ के रस को अपने अंदर समा लो। राज़ के रसों को क्या समाया
है? अगर उत्तर हां है, तो वह झूठ है। अगर वह उत्तर नहीं है, तो संभावना है
ज्ञान के प्रकाश के आने की। पहले तो यह स्वीकार किया जाए कि अब तक जो जाना
है वह कुछ भी नहीं है, बहुत जानना बाकी है। बहुत समझना बाकी है। बुद्धि
प्रकाशित कहां हुई है अब तक? ज्ञान क्या है? क्या शब्दों का संग्रह है?
ज्ञान क्या है? ज्ञान की यात्रा है, ज्ञान का यज्ञ है, ज्ञान एक साधना है।
क्योंकि सभी दुखों का कारण अज्ञान ही है। ज्ञानी तो हम 10 साल पहले भी थे,
पर आज लगता है वह ज्ञान नहीं था वह अज्ञान था। क्योंकि अनुभव से पता चला कि
जिसे ज्ञान समझा जा रहा था, वो ज्ञान था ही नहीं, आज पता चल रहा है कि वह
अज्ञान था और आज जिसे हम ज्ञान कह रहे हैं, शायद पता चले 10 साल के बाद कि
वह भी अज्ञान ही था। क्योंकि यदि यह ज्ञान है, जो इस समय है, तो जीवन में आ
रही परिस्थिति क्यों हिला देती है? यदि यह ज्ञान है जिसे हम ज्ञान समझ रहे
हैं, तो उसकी याद इतनी मुश्किल क्यों? अव्यक्त महावाक्य मुरली के आज के:-
ज्ञान का सुमिरन, ज्ञानदाता की याद स्वत: दिलाएगा। तो ज्ञान का सुमिरन तो
हो ही नहीं रहा है शायद। जो हो रहा है, वह लिखना हो रहा है। जो हो रहा है
वह सुनना सुनाना हो रहा है। है तो हम भी कुंभकरण ही। ब्राह्मण के पीछे छिपा
कुंभकरण। कहने मात्र उड़ता पंछी, पर है तो हमारा भी चींटी मात्र का ही
पुरुषार्थ। क्या करें जो बुद्धि को ज्ञान प्रकाशित कर दे? क्या करें जो ऐसी
चेतना जागे, ऐसी क्रांति हो जाए भीतर, कि जागृति स्वतः रहे, कि जागृति
स्वभाव बन जाए। सोते, उठते, जागते, हर समय निरंतर ज्ञान की लौ, निरंतर
ज्ञान शिखा धधकती रहे। क्या ऐसा हो सकता है? क्यों ऐसा होता है कभी स्मृति,
कभी विस्मृति, कभी जीत, कभी हार? इस स्थिति को बाबा ने कुंभकरण कहा है आज।
और बाबा अज्ञानियों से बात नहीं कर रहे हैं, ज्ञानियों से बात कर रहे हैं-
point to be noted! कुंभकरण की परिभाषा, कुंभकरण की संज्ञा, उनको नहीं दी
जा रही है जो इस ज्ञान को नहीं जानते, यह उनको दी जा रही है, जिनको समय पर
ज्ञान की विस्मृति हो जाती है। कभी व्यर्थ, कभी समर्थ, कभी हार, कभी जीत!
अर्थात जो कभी जीतते भी है, जो कभी समर्थ भी है, पर समय पर ज्ञान विस्मृत
हो जाता है। समय पर ज्ञान याद आ जाना ही तीव्र पुरुषार्थ है।
इस यज्ञ की
सबसे पहली अव्यक्त मुरली, 21 जनवरी 1969, तीव्र पुरुषार्थ की परिभाषा..
ज्ञान शब्द नहीं, ज्ञान शब्दों का अर्थ नही, ज्ञान पांडित्य नहीं, ज्ञान
शब्दों का संग्रह नहीं, ज्ञान केवल समझ भी नहीं, ज्ञान केवल अनुभव भी नहीं,
ज्ञान शायद वह है, जो समझाया नहीं जा सके। Knowledge is unfathomable,
inexplicable.. ज्ञान स्वरूप है, ज्ञान को समझाया नहीं जा सकता, इसलिए
ज्ञानी पुरुष क्या हो जाते हैं? मौन हो जाते हैं! कैसे समझाए और किसको? कोई
पात्र है ही नहीं। और जो पात्र हैं, उसे समझाने की आवश्यकता ही नहीं!
"तद्विद्धि
प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं
ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः। ।"
गीता कहती है
कि - "ऐसे जाओ ज्ञानी व्यक्ति के सामने, जैसे तुम अज्ञानी हो। जैसे तुम कुछ
जानते ही नहीं हो! ऐसे नहीं जाओ की उसकी परीक्षा लेने, कि वह जानता है कि
नहीं। इस भाव से नहीं जाओ। जब ऐसी विनम्रता से जाओगे, जब ऐसा विनम्रता का
भाव चेतना में धारण होगा, कि मुझे तो कुछ भी पता नहीं है। ऐसा नीरागस बालक
कि मुझे अब आप ज्ञान दो, अब आप ज्ञान सुनाओ बाबा। मुझे कुछ नहीं पता, बुद्धि
की झोली में ज्ञान भर दो। "तद्विद्धि प्रणिपातेन" उस समय तुम्हें ज्ञान दिया
जाएगा। "परीप्रश्नेन" प्रश्न के हिसाब से नहीं।"उपदेक्ष्यन्ति" तब वह उपदेश
देगा उस ज्ञान का, उस तत्व का, जो तुम्हें तुम्हारे सभी दुखों से मुक्त कर
देगा।"
ज्ञान ही
एकमात्र साधन है जो सभी दुखों से हमें मुक्त करता है। इसीलिए निरंतर अज्ञान
को अपना शत्रु समझना है। विकारों को शत्रु समझा, देहभान को शत्रु समझा पर
विकार और देहभान भी क्यों उत्पन्न हो रहे हैं? अज्ञान की वजह से। क्यों काम
विकार में डूबी चेतना? क्यूंकि अज्ञान था, पता ही नहीं था कि काम तो जहर
है। जब पता चला कि यह मैं क्या सेवन कर रहा हूं? तब तो जाकर चेतना जागी!
क्या मिला? ज्ञान! इसलिए ज्ञान की खोज निरंतर हो। नित्त निरंतर केवल ज्ञान
और ज्ञान और ज्ञान। आज तो बाबा ने कहा - कितना भी व्यस्त हो, परंतु ज्ञान
चिंतन चलता रहे। एकांत मिल जाए तो बहुत अच्छा, मौन मिल जाए तो बहुत अच्छा,
पर जरूरी नहीं मिलेगा। तो क्या ज्ञान चिंतन रोक दिया जाए? क्या इंतजार किया
जाए उस घड़ी का जब मौन मिल जाए, एकांत मिल जाए?
बाबा ने आज
वादा पूरा किया। किया ना? 2-3 हफ्ते पहले कहा था कि मनन के बारे में बताएंगे
और आज बाबा ने याद भी दिलाया और कहा भी मैंने कहा था और मैं अपना वादा पूरा
करता हूं। अब तुम्हारी बारी है। तुमको जो जो चाहिए था, दिया।
एक व्यक्ति
रेगिस्तान से जा रहा है, इतनी तपती धूप है, तपती रेत है। परेशान है, दुखी
है, दूर-दूर तक देखता है। निर्जन स्थान में कहीं पानी का एक कतरा, एक बूंद
नहीं है। ऊपर नजर घुमाता है ए खुदा! अगर यहां पानी होता तो यह सारी जमीन
कितनी हरी-भरी हो जाती। अगर यहां पानी होता, तो हरियाली कर देता यहां पर।
और अचानक देखता है कि सामने कुआं है, ये कुआं के बारे में उसने कभी सुना नहीं
था। उसे तो आश्चर्य होता है यह कुआं यहां कहां से आ गया? और देखता है यह
कुएं में तो पानी लबालब भरा हुआ है। परंतु फिर भी ऊपर नजर करता है, पानी तो
दे दिया पर निकालूं कैसे? अचानक नजर जाती है एक रस्सी और एक बाल्टी रखी हुई
है। देखी नहीं थी अब तक। आश्चर्य होता है यह तो यहां थी नहीं, कैसे आ गई?
लेता है फिर शिकायत, कहता है पानी मिल गया, बाल्टी मिल गई, प्यास तो बुझा
लूंगा पर ढोने के लिए कुछ तो चाहिए। अचानक देखता है कोई उसका कमीज़ चाट रहा
है, देखता है तो ऊंठ, यह ऊंठ कहां से आया? अब तो घबरा जाता है और भागने लगता
है। कहीं सही में यहां हरियाली बनानी तो नहीं पड़ेगी और भागता है, भागता
है, भागता है। एक कागज का टुकड़ा उड़ के आता है उसकी कमीज से चिपक जाता है।
वह देखता है उसपे लिखा है - "तुमने पानी मांगा, मैंने दिया। तुमने रस्सी
बाल्टी मांगी, मैंने दिया। तुमने ढोने का साधन मांगा, मैंने दिया। अब
हरियाली उपन्न करो, लगाओ खेत खलिहान।" इतना घबरा जाता है और भागने लगता है
फिर कभी मुड़ कर भी नहीं देखता है। सब तो दे दिया फिर भय है, कि कहीं
वास्तव में करना ना पड़े। जब तक वह अपना वादा भूला हुआ है, तब तक सब ठीक
है। पर उसने कर दिया अब मुश्किल खड़ी हो गई। अब करना पड़ेगा!
तो आज की
अव्यक्त वाणी, पहले आप बताएंगे क्या कहा। फिर हम बताएंगे। तो क्या था आज?
क्या था? मनन शक्ति का अभ्यास और क्या था? धारण करना, समाना, मनन करना और?
भोजन हजम करना। शस्त्र को यूज करना, बम को सही जगह पर फेंकना और खजाने को
यूज करना। 4 उदाहरण दिए - खज़ाना, भोजन, बम और चक्र। और क्या कहा? बुद्धि
को दौड़ाओ। क्या कहा मुरली में? दौड़ाओ मनन शक्ति को तो अभी अभी दौड़ाओ।
देखो मुरली को, पहले पेज पर क्या था? दूसरे पर क्या था? तीसरे पर क्या
था?और चौथे पर क्या था? किसको तोड़ना है और किसको जोड़ना है और किसको मोड़ना
है? किस को क्लीन करना है और किस को क्या करना है? नजर को दौड़ाना है।
वाक्य वाक्य पर, अनुच्छेद अनुच्छेद पर, parah parah पर, शब्द शब्द पर। मुरली
सुबह बैठे थे, कहां बैठकर सुन रहे थे? बाजू में कौन बैठा था? समय कौन सा
था? Law of association! जोड़ देना है चीजों को, तो याद अच्छी हो जाए।
भारत में
प्रसिद्ध है सिंहासन बत्तीसी। राजा भोज था कभी। सुनता है कि एक चरवाहा है
और वह ऐसी ऐसी मुश्किल समस्याओं का समाधान कर देता है कि लोग आश्चर्यचकित
हैं। जो मैं भी नहीं कर पाता, लोग उसके पास जाते हैं और समाधान उनको
प्राप्त हो जाता है। यह कौन व्यक्ति है? राजा खुद जाता है। खुद भेश बदल कर
उसकी सभा में बैठ जाता है और एक जटिल समस्या आती है और वह चरवाहा, एक टिले
पर जाकर बैठ जाता है और वहां समस्या का समाधान कर देता है। राजा भोज को
आश्चर्य होता है,यह है क्या? वह चरवाह से मिलता है और कहता है - तुम हो कौन?
चंद्रभान उसका नाम है। और पता चलता है यह तो मेरे ही पूर्वजों, मेरे ही
राज्य के जो चरवाहे थे, जो हमारी गायों को, बकरियों को ढोते थे, उन्हीं के
वंशज का है। इसमें कहां से इतनी योग्यता आ गई? वह उस चरवाहे से पूछते हैं,
वह कहते हैं - मुझमें कोई भी शक्ति नहीं है, पर जैसे ही मैं उस टीले पर
जाकर बैठता हूं, पता नहीं एक अद्भुत सी शक्ति आ जाती है। राजा को आश्चर्य
लगता है। वह कहता है खुदवाओ इसको। उस टिले को, उस पहाड़ी को खुदवाते हैं।
अंदर एक सिंहासन निकल कर आता है। सिंहासन इतना अप्रतिम् है, इतना रूपवान
है। सफाई होती है, राज्य में लाया जाता है। तारीख निश्चित होती है राज्य
अभिषेक की और राजा भोज चढ़ने जाते हैं। परंतु बत्तीस पुतलीयों वाला यह
सिंहासन, 1-1 पुतली आती है, जीवंत हो जाती है। कहती है रुको, कहां जा रहे
हो? पता है यह किसका सिंहासन है? यह विक्रमादित्य का सिंहासन है। मैं तुमको
एक कहानी सुनाती हूं और वह पुतली उसको एक कहानी सुनाती है। अब बताओ क्या
तुममें यह योग्यता है, जो विक्रमादित्य में थी? राजा भोज कहता है - ना,
मुझमें यह योग्यता तो है ही नहीं। 32 पुतलियां 32 कहानियां सुनाती है।
अंतिम पुतली कहानी सुनाती है और फिर पूछती है बताओ राजा भोज, क्या
विक्रमादित्य जैसे गुण तुममें है? वो कहता है - यह गुण भी मुझमें नहीं है।
परंतु वह पुतली खुश हो जाती है कि तुमने कितनी नम्रता है। इसलिए तुम योग्य
हो। इसलिए तुम अधिकारी हूं। बत्तीस पुतलीयां थी, 32 कहानीयां थी। आज हम
देखेंगे 32 बातें आज की मुरली में से, तब उस सिंहासन पर, सिंहासन किसका है?
विक्रमादित्य का। बाप सामान।
1) सबसे पहली
बात है ज्ञान की - ज्ञान को पढ़ो। क्या करना है ज्ञान की? पढ़ाई, अर्थात
पढ़ना, अर्थात reading.. कई लोग ऐसे हो गए कि केवल सुनते हैं बस, पढ़ना तो
छुट ही गया। किताबे जब शुरुआत में आए थे, तब नई नई किताबें पढ़ी थी बस
ज्ञान की। शिव संदेश पढ़ा था, शिवरात्रि की किताब पढ़ी थी और course की
किताब पढ़ी थी। बाद में महाज्ञान इतना भर गया कि अब पढ़ने की आवश्यकता ही
नहीं सुनाते सुनाते। पढ़ना, पढ़ने की आदत को कायम रखना है। पढ़ना बंद नहीं
करना है। हर दिन कम से कम कितने pages पढ़नी चाहिए? 10? 10 पढ़े तो
अहोभाग्य, बहुत अच्छी बात है। नई बातें पढ़नी है रोज। ढेर सारा साहित्य है
यह किताब। ढेर सारी किताबें हैं spark की, ढेर सारी अव्यक्त वाणिया है,
साकार मुरलियां हैं। कितनी सारी बातें है पढ़ने के लिए। पढ़ने से चिंतन
शुद्ध होता है, पढ़ने से शब्दों का ज्ञान होता है और शब्दों के ज्ञान से
चिंतन में प्रखरता आती है। तो सबसे पहली पुतली कहती है - पढ़ो। पढ़ना बंद
नहीं करो। साकार मुरलियां है, अव्यक्त मुरलियां है, मम्मा बाबा की जीवन की
कहानियों के अनुभव हैं, दादियों के जीवन की कहानियां हैं, अनुभव है, यज्ञ
इतिहास की कहानियां हैं, ज्ञान की बातें हैं, लिटरेचर हैं। ढेर किताबें है,
हर दिन किताबें पढ़ते रहना है। My never failing friends are they with
whom I converse day by day! कवि लिखता है My days among the dead are
past.. मैं उनके साथ बैठकर मेरी दोस्ती है, वह जा चुके हैं अभी, वह लेखक अभी
है नहीं। But my never failing friends are they.. कवि लिखता है लाइब्रेरी
के अंदर प्रवेश करता हूं, तो ऐसा हो जाता है क्या खाऊं और क्या नहीं? इतना
सारा भोजन। इतनी किताबें। क्या खाऊं और क्या नहीं खाऊं? The vast repast in
front of me, what to eat and what not!
अच्छा हो कि
कोई किताब पढ़ते रहे, बजाय इसके कि मोबाइल पर अपना समय व्यर्थ किया जाए।
इससे उससे बात करने में समय जा रहा है। यह बात, वह बात, इधर की बात, उधर की
बात, यहां क्या हो रहा है? वहां क्या हो रहा है? वहां क्या बना? यहां क्या
बना है? यहां वह दिखा, वहां वह दिखा। व्यर्थ। मुरली में कहा है - मनन करते
रहो, तो व्यर्थ से मुक्त हो जाएंगे। और जब तक व्यर्थ है, तब तक समर्थ स्थिति
बन ही नहीं सकती। समर्थ स्थिति कहां तक रही? समर्थ शक्तिशाली स्थिति कहां
तक रही? व्यर्थ नहीं चला, पाप नहीं किए, कोई विकर्म नहीं किया पर समर्थ
स्थिति रही? कहां से रहेगी? जब की अध्ययन ही नहीं हो रहा है, सारा दिन
व्यर्थ में जा रहा है। क्या केवल क्लास सुनते रह रहे हैं। सुनने से कुछ नहीं
होगा, पढ़ना होगा। शब्द शब्द पर आंखें स्थिर हो जाए। आंखों को स्थिर होने
दो उन शब्दों में। उन शब्दों में ईश्वरीय ताकत है। उन शब्दों में ईश्वरीय
वाइब्रेशन है, उन शब्दों में अव्यक्त प्रवाह बह रहा है, क्योंकि वह शब्द बहे
हैं अव्यक्त मुखारविंद से, अव्यक्त वतन से, अव्यक्त मौन उनमें समाया है। वह
साधारण शब्द नहीं है। वह परमात्म महावाक्य हैं! किसी देहधारी के नहीं, किसी
संत के नहीं, किसी महात्मा के नहीं, किसी दिव्य पुरुष के नहीं, किसी
तीर्थंकर के नहीं, किसी बुद्धपुरुष के नहीं, किसी अवतार के नहीं, किसी
ईश्वर पुत्र के नहीं, किसी धर्मस्थापक के नहीं, किसी धर्मावलंबी के नहीं,
किसी भक्त के नहीं, किसी भक्त शिरोमणि के नहीं, किसी ज्ञान की सीखा पर
ज्ञान की चेतना के ऊपर बैठे हुए व्यक्ति के नहीं, किसी वेद के नहीं,
अवपुरूस के नहीं, वह डायरेक्ट परमात्म महावाक्य हैं। उसमें ईश्वरीय प्रवाह
है, ईश्वरीय प्रभुत्व है, ईश्वरीय authority है! उनको साधारण न समझना!
एक एक ज्ञान का वाक्य मूल्यवान है, मुरली में आया है आज। अमूल्य है। ऐसे ही
बुद्धि में रख दिया बस। उनके महत्व को जाना है क्या? शक्ति प्रस्फूटित है
एक-एक वाक्य से। पढ़ते पढ़ते ही आंखों द्वारा उनको ग्रहण कर लो। जो
वाइब्रेशन उसमें से निकल रहे हैं, आंखें उनको कैच कर लें। ज्ञान ही भोजन
है। ज्ञान ही शक्ति है, रोशनी है। तो सबसे पहला - पढ़ो।
2) दूसरा -
लिखना, writing। रोज एक नई टॉपिक पर लिखना है। मोड़ना अर्थात क्या? जोड़ना
अर्थात क्या? तोड़ना अर्थात क्या? एक योगी की क्या परिभाषा है? लिंक अर्थात
क्या? लीकेज अर्थात क्या? लिखो। एक टॉपिक लो और लिखो। लिखना नहीं आता है,
तो पॉइंट्स लिखो। पॉइंट्स लिखना नहीं आता तो छोटे बच्चे जैसा निबंध लिखते
हैं ,वैसा लिखो। मेरा घर, मेरा खिलौना, यह मेरा खिलौना है। इसका नाम क्या
है? पिंटू है। इसका रंग काला है, इसका रंग नीला है। यह मुझे बहुत प्रिय है।
छोटे-छोटे वाक्य लिखो। बड़े-बड़े वाक्य नहीं लिख सकते, ना बोल सकते हैं, तो
छोटे तो लिख ही सकते हैं। लिखने की आदत डालो। अभ्यास करेंगे चलते हुए, मैं
पांडव भवन में हूं। यह बाबा की कुटिया है। इसका रंग ऐसा है। इसमें एक सोफा
है। इसमें एक translight है। इतना तो लिख सकते हैं ना? छोटे-छोटे वाक्य तो
लिख ही सकते हैं। यहां पर हरियाली है। यह शांति स्तंभ है। यह हिस्टरी हॉल
है। इतना तो लिख ही सकते हैं। छोटे-छोटे वाक्यों की रचना मन में करनी है।
यह बाबा का भंडारा है। यह ब्रह्मा भोजन है। दुख भंजक भोजन है। एक-एक कणा
मोहर के समान है। यह बाबा के महावाक्य हैं। इतना तो लिख ही सकते हैं। लिख
नहीं सकते तो मन में सारे दिन भर छोटे-छोटे वाक्यों की रचना करना है। यह
बाबा का महावाक्य है। यह बाबा का बैज है। बैज का महत्व, इस पर लिखो। मधुबन
का महत्व, इस पर लिखो। यह बाबा का आंगन है, मधुबन का। इस पर लिखो। किसी पर
भी लिखो, पर लिखो! कुछ भी लिखो, पर लिखो। और बड़े बड़े वाक्य नहीं लिखना।
यह नहीं समझना कि यह लेख किसी मैगजीन में पब्लिश होने वाला है, छोड़ दो,
लिखना ही बंद हो जाएगा टेंशन के मारे। भगवान यह नहीं देखेगा कि इसके वाक्य
बड़ा व्याकरण युक्त है, भगवान भावना को देखता है। लिखना, दूसरा काम।
3) तीसरा काम
- बिजी रहना। ज्ञान में बिजी रहो, सारे दिन भर ज्ञान में बिजी रहना। कुछ भी
हो पर वह ज्ञान से संबंधित हो। आपस में चर्चा हो रही है, ज्ञान की चर्चा
हो। ज्ञान युक्त चर्चा हो। ज्ञान चिट चैट, व्हाट्सएप पर चिट चैट हो रही है
वह भी ज्ञान युक्त हो। ना कि व्यर्थ की! आज भालू दिखा, आज नहीं दिखा। आज
बारिश आई, कल नहीं आई। आज इधर यह बना, उधर क्या बना? आज यह गया, उधर कौन गया?
आज इसका भोग लगा यहां, वहां किसका लगा? अच्छा यह पॉजिटिव यह नेगेटिव। बुद्धि
में क्या चल रहा है? बिजी रहे बुद्धि। अगर बिजी रहे बुद्धि मनन में, तो
मायाजीत और विघ्न जीत स्वत: बनेगी।
4) चौथा -
ज्ञान को बढ़ाओ। ज्ञान को बढ़ाओ। कैसे बढ़ेगा? देने से, विस्तार से, ज्ञान
को बढ़ाते जाना है। यह समझना है अब तक जो जाना है, बहुत कम है। अभी तो बहुत
जानना बाकी है। सितारों के आगे जहां और भी है। अभी तो बहुत कुछ जानना बाकी
है। जो अब तक जाना है, वह कुछ भी नहीं है। ज्ञान की प्यास जग जाए। जानूं..
जानूं.. जानूं..। इतनी सारी मुरलियां है, हो गई क्या सब पढ़ के, कि आराम से
बैठे हो! अरे एक ही मुरली पढ़ के हो जाए, तो बहुत बड़ी बात है। एक अव्यक्त
वाणी पढ़ लिया, और उसके स्वरूप बन जाएं तो कितनी बड़ी बात है। तो बढ़ाओ।
5) अगला, मनन
करना। 4 विधि बताई आज की मुरली में मनन की, कौन सी? सीक्रेट, टाइम, मेथड,
सेवा। रहस्य क्या है? कौन से समय में प्रयोग किया जाए? किस विधि से और दूसरों
की सेवा में उस महावाक्य को कैसे लगाया जाए। 4 methods! सारे दिन भर जो कुछ
सुनते हो, तोड़ना, मोड़ना, जोड़ना। बाबा ने कहा तोड़ दो। किसको तोड़ो?
कर्मबंधन को। कैसे? अब चिंतन करना है। चिंतन करो, इमेजिन करो, देखो अमृतवेला
पूरी रस्सियां ही रस्सियां हैं, और मैं बंधा हुए हूं और फिर बाबा कह रहे
हैं यह लो बच्चे कैंची। फिर लो, फिर काटना चालू करो। पौने पांच तक सारे
बंधन खत्म। विजुलाइज करना है उसको, देखना है उसको। जो चीज देख ली जाती है,
वह होने लगती है। विजुलाइजेशन, उसको पिक्चर में कन्वर्ट कर देना है। शब्दों
को पिक्चर का रूप दे देना है। कि मैं कर्म बंधन में फंसा हूं। इस आत्मा से
मैं बंधा हुआ हूं। विदेश में एक प्रयोग किया जाता है, योगिजन प्रयोग करते
हैं कि जिस आत्मा से बहुत ज्यादा आसक्ति हैं, देखो सिल्वर ट्यूब्स हैं, जो
मुझे और उसको जोड़े हुए हैं और वैराग्य की तलवार लेते हैं और योग में काट
देते हैं उस सिल्वर ट्यूब को। अब खत्म। तुम उधर गिर गए हम इधर। अब कैसी
आसक्ति, अब कैसा बंधन? ढेर सारी प्रयोग करते हैं, ढेर सारे। अभी अभी आपने
एक वीडियो देखा होगा, बहुत वायरल हुआ व्हाट्सएप में, योगी ज्ञान ज्योति।
देखा होगा आपने? Buddhist उठ के आ रहा है, लेट जाता है, अपनी इच्छा से शरीर
छोड़ देता है। बाकी सब लोग हाथ जोड़े खड़े हुए हैं और थोड़ी देर के बाद उसका
हाथ ऐसा है, गिर जाता है। उठा कर कॉफिन में डाल कर ले जाते हैं। अपनी इच्छा
से शरीर छोड़ दी। यह भी सिद्धि है। क्या यह पॉसिबल है? हम सोचे, मैं शरीर
छोड़ता हूं, छूटता ही नहीं! यह सब क्या है? यह सिद्धियां है योगियों के पास।
बहुत प्रयोग किए हैं योगियों ने द्वापर से। उठ के आ रहा है, लेट गया, हाथ
को ऐसे एडजस्ट भी किया और आंखें बंद, थोड़ी देर में हाथ गिर गया। बाकी लोग
उठाकर, ना रोना, ना धोना, ना कोई भोग, ना कुछ। सीधा... तो सिद्धियां। योगी
अर्थात आसक्ति मुक्त! किससे आसक्ति और कैसी आसक्ति? किससे बात करूं और क्या
बात करूं? किसी से बात करने के लिए कुछ है ही नहीं। फोन आया तो उठाओ बस हां
और ना। Yogi doesn't have a private life, Yogi means public life। छिपाने
का उसमें कुछ है ही नहीं, Transparent! तो मनन।
6 & 7) अगला
- स्पष्टीकरण और विस्तार। क्या करना है ज्ञान का? स्पष्टीकरण करना है और
विस्तार करना है। मुरली में यह दो शब्द आया है। क्या है इसका स्पष्टीकरण?
नहीं समझ में आता है तो पूछो। किसी से पूछो जो ज्ञानी है। विस्तार करो
ज्ञान का, मन ही मन विस्तार करो। एक पॉइंट है उसका इतना विस्तार कर दो, 1
घंटे का।
8) अगला -
discussion.. रोज ज्ञान की चर्चा होनी चाहिए। नहीं हमारे पास तो ज्ञान है,
अंदर ही समा के रखा है। समा के रखो नहीं, निकालो उसको बाहर। चर्चा करो उसकी,
दो लोग मिले और डिस्कशन के लिए दो लोगों की आवश्यकता है बस। पूछो एक दूसरे
को, यह जो तोड़ने का कहा है, कर्म बंधन को कैसे तोड़े? यह को जोड़ना कहा
है, किसको जोड़े? यह जो मोड़ना है स्वभाव संस्कार को, कैसे मोड़ें? पूछो,
डिस्कस करो।
9) उसके बाद
अगला - ज्ञान डांस, क्या करनी है? - ज्ञान की डांस करनी है। कैसे करेंगे?
करके दिखाओ। ज्ञान डांस अर्थात ज्ञान के संकल्पों में रमन करना, अंदर ही
अंदर। उसके लिए कुछ कुछ वाक्य याद करने पड़ेंगे, जैसे आज की मुरली का वाक्य
याद करके रखो। "ज्ञान की शक्ति के आगे कोई भी परिस्थिति और विघ्न ठहर नहीं
सकते।" याद कर लो इसको, जैसे एक छोटा बच्चा याद करता है ना। मछली जल की रानी
है, जीवन उसका पानी है। याद कर लो जैसे छोटा बच्चा करता है। वैसे ही इस
वाक्य को याद करो। और अमृतवेला इमर्ज करो और देखो आसमान में आग के अक्षरों
से लिखा है वह वाक्य। ज्ञान की शक्ति के आगे कोई भी विघ्न और परिस्थिति ठहर
नहीं सकती। ज्ञान के सुमिरन से, ज्ञानदाता की याद स्वत: आएगी। अग्नि के
शब्दों में देखो, लिखे हुए हैं। समाने दो उनको अंदर ही अंदर,भीतर।
10) अगला -
ज्ञान का अनुभव। केवल ज्ञान पढ़ना नहीं है, अनुभव करना है। पढ़ते पढ़ते ही
अनुभव हो।
11) अगला -
ज्ञान का स्वरूप। स्वरूप बन जाना है। कौन सुन रहा है मुरली? किसके महावाक्य
सुनाई जा रही है? स्वरूप हूं मैं, उधर सतगुरु, तो मैं फॉलो करने वाला! उधर
शिक्षक तो मैं स्टूडेंट। The best student in the world, बेस्ट स्टूडेंट
अर्थात जो पूरा ग्रह पाठ करता है, जिसको पूरा पाठ याद है। अच्छा विद्यार्थी
अर्थात जिसकी कुशाग्र बुद्धि है। टीचर ने जो जो सिखाया, उसको वैसे के वैसे
by heart है। एक वाक्य भी इधर-उधर नहीं करता है। कौन सी लाइन किस पेज पर,
किस नंबर पर है सब याद है। ऐसे विद्यार्थी को टीचर बहुत पसंद करते हैं। और
जिस विद्यार्थी को टीचर पूछे - बताओ कल क्या था, उसे कुछ भी याद नहीं। वह
टीचर को पसंद आएंगे? जो बहाने दे लाइट ही चली गई थी क्या करूं? पढ़ने को
टाइम ही नहीं मिला। पेट में दर्द हो गया था क्या करूं? सेवा में बिजी हो गए
थे.... आज की मुरली में बाबा ने कहा - सेवा कर्ता नहीं, कर्म कर्ता नहीं,
कर्म योगी बनो। अगर कर्म कर रहे हैं, परंतु याद नहीं है, और मनन की शक्ति
नहीं है, तो केवल वह कर्म मात्र है बस। और कर्म बंधन को निर्माण करेगा। और
कर्मयोगी की वह अवस्था ही नहीं है, हम बहुत busy थे... चाहे कहीं भी बिजी
हो- सेवाकेंद्र में बिजी हो, दफ्तर में बिजी हो, घर में बिजी हो, ऑफिस में
बिजी हो, मनन चलता रहे!
12) उसके बाद
में - निश्चय, ज्ञान में निश्चय, संपूर्ण निश्चय हो कि यह महावाक्य साधारण
नहीं है। यह वह महावाक्य है, जो मेरे जीवन का कायापलट कर देंगे। इस भाव से
उसको पढ़ना है। किस भाव से, किस निश्चिय से उसे पढ़ा जा रहा है? मुरली ऐसे
पढ़ना है कि यह मुरली पढ़ने के बाद अब मैं वह नहीं रहूंगा जो मैं हूं। अगर
हूं और रहता हूं अर्थात मुरली को समझा ही नहीं है। पढ़ा ही नहीं है, अनपढ़ी
सी रह गई है। क्या मुरली इतनी सामर्थ्यहीन है कि बदल ही ना सके सभा को?
निश्चय की कमी है।
13) अगला -
फिल करना है मुरली को। क्या करना है? शब्दों को फील करना है, अंदर, भीतर।
14) अगला -
गुहृता में जाना है।
15) अगला -
गहनता को समझना है। एक है उसकी गहराई। गहराई में जाना है। और गहराई.. और
गहराई.. और गहराई.. A- B यह महावाक्य नहीं, A से A1, A1 से A2, A2 से A3,
A3 से A4, जाते जाना है, जाते जाना है। उसका कोई अंत नहीं है। कहीं ज्ञान
की कोई सीमाएं निश्चित नहीं है। ज्ञान असीम है। ज्ञान की सीमाएं निश्चित नहीं
है। जहां पर बाबा ने छोड़ा, वहां से चिंतन आगे बढ़ाना है, बाबा के महावाक्य।
Thesis के महावाक्य, PHD में thesis होता है, एक वाक्य दिया जाता है। उस पर
thesis तो हमको करना होता है 400 पेजेस का, 500 पेजेस का। वह हमारा काम है।
वह यह सब थोड़ी ना करता रहेगा। चिंतन करना तुम्हारा काम है। बाप थोड़ी ना
मनन करेगा बैठ कर। उसने थोड़ी ना शास्त्र पढ़े हैं। वह काम तुम्हारा है
चिंतन करना। मैं कोई चिंतन करके आता हूं? क्या बाबा चिंतन करके आते हैं
अव्यक्त मुरली सुनाने से पहले शांतिवन में? फटाफट last minute revision,
अच्छा आज कौन है उधर? अच्छा यह वाला ग्रुप है। उनको क्या बोलना है? Doctors
को क्या बोलना है? Engineers को क्या बोलना है? अच्छा अचानक कोई बीच में आ
गया तो क्या बोलना है? कोई इमरजेंसी स्पीच भी रेडी रहना चाहिए। ऐसा कुछ करके
आता है क्या वह? अच्छा बंगाल वाले आए हैं, महाराष्ट्र वालों को महा महा महा,
अच्छा गुजरात मतलब समीप, यह याद करके आता है क्या? कर्नाटक वाले नाटक नाटक
नाटक ,ऐसा कुछ तैयारी करके आता है क्या वह? वह तो direct spoken literature
है। क्या भगवान ने बैठकर महावाक्य लिखे कोई? वह तो हम लोगों ने लिखे। उसका
तो स्पोकन लिटरेचर है, डायरेक्ट। ना उसमें कॉमा है, ना फुलस्टॉप है, वह
तुम्हारा काम है। हां, मेरे महावाक्य यदि तुम्हारे grammar से मैच नहीं करते
तो तुम्हारी समस्या है, मैं क्या करूं? परमात्म ग्रामर। कई बार मुरली में
ऐसे महावाक्य आते हैं कि जिसका कहीं कोई हिंदी व्याकरण से कोई संबंध ही नहीं
है। तो क्या हिंदी व्याकरण के लिए वह अपनी शैली थोड़ी ना बदलेगा। बदलता है?
उसको कोई मतलब नहीं है तुम्हारे व्याकरण से, नहीं मिलता है तो तुम अपना
व्याकरण बदल दो।
वह तो स्वयं साहित्य सम्राट है, भाषाओं का जन्मदाता है!
16) उसके बाद
में धारण करना। अगली पॉइंट - ज्ञान को धारण करना।
17) उसके बाद
अगली पॉइंट - ज्ञान के महत्व को समझना, importance। क्या महत्व है इस ज्ञान
का? क्या हमने उतना समझा है जैसा वह समझाना चाहता है? अव्यक्त महावाक्य है-
"बाबा की अव्यक्त वाणी ऐसी है जैसे तुम्हारी बुद्धि में छपाई हो जानी चाहिए।"
याद है यह वाक्य? "मुरली, मुरली, मुरली!" याद है यह वाक्य? कभी अव्यक्त वाणी
में चली थी। मनन मनन मनन।
18) उसके बाद
में जीवन में लाना। अगली पॉइंट - ज्ञान को जीवन में लाना।
19) अगली
पॉइंट - जिज्ञासा, ज्ञान के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो। क्या है? क्या है?
क्या है? अंदर inquisitiveness, प्यास उत्पन्न हो जाए ज्ञान की, ऐसी पिपासा
जागे। ऐसा पंछी बनूं कि हप कर जाऊं सागर को। ऐसी पिपासा कहां है अभी तक? ऐसी
thirst, ऐसी प्यास है ही नहीं। ज्ञान की प्यास नहीं है। कुछ और और चीजों
में प्यास है। वहां क्या हो रहा है? यहां क्या हो रहा है?इसकी प्यास है।
ज्ञान की प्यास हो।
20) उसके बाद
में कीर्तन, अर्थात दूसरों को सुनाना, वर्णन करना ज्ञान का। रोज कुछ ना कुछ..
दूसरों को सुनाना बहुत महत्वपूर्ण काम है। बाबा ने कहा है दूसरों को सुनाओ,
समझाओ इस ज्ञान को। कोई कहते हैं हमको समझ में तो आया पर हम समझा नहीं सकते,
अर्थात नहीं समझा है! कुछ बातें और है, traffic control के बाद देखेंगे। सभी
अलर्ट होकर बैठेंगे। इस संकल्प के साथ कि मेरे सामने ज्ञान सूर्य है। सारा
ज्ञान किरणों के रूप में मुझ आत्मा में समा रहा है। शब्दों के रूप में नहीं,
किरणों के रूप में। और बुद्धि में जाते ही एनर्जी है। Energy can
transform, फिर वह अपने आप शब्दों में transform हो जाएगी। पर लेना किस रूप
में है? किरणों के रूप में संपूर्ण ज्ञान, आधा नहीं, पूर्ण ज्ञान मुझ चेतना
में समा रहा है और बुद्धि में जो छोटे-छोटे छिद्र है, जहां पर अंधकार है,
nooks and crevices and corners of the intellect of the subconscious,
अवचेतन में जो अंधकारमयी जहां विकार छिपे है, वह भी प्रकाशित हो रहे हैं,
उस ज्ञान से। इस संकल्प में स्थित होकर बैठना है।
21) अगला -
सुनना। ज्ञान को सुनना। रोज एक क्लास सुननी है, आप सब को एक काम दे रहे
हैं, जानकी दादी, प्रकाशमणि दादी, गुलजार दादी। 3 दादियां, एक क्लास तीनों
में से किसी भी एक दादी का रोज सुनना है। तब तक जबकी सारी क्लासेस पूरी ना
हो जाए, जितनी available है। दादीयों की क्लासेस में, दादियों के शब्दों
में, प्योरिटी के प्रकंपन है। वो केवल क्लास नहीं, साथ में उन प्रकंपनो को
धारण करना है, वह प्रकंपन ही अंदर जाएंगे। शब्द अंदर नहीं जाते, वह प्रकंपन
अंदर जाएंगे, वाइब्रेशन और वह वाइब्रेशन विकारों की जो गाठे हैं, उन विकारों
की गाठों को खोलेंगें, अवचेतन से! और जब अवचेतन में विकारों की गाठें खुलेगी,
तो चेतन में कर्मबंधन के नए हिसाब नहीं उत्पन्न होंगे। क्योंकि जो विकारों
की चोट होती है, वह अवचेतन पर होती है और वहां जो गाठें है, और उसकी
अभिव्यक्ति चेतन में होती है। काम subconscious mind पर करना है और वहां तक
शब्द तो जाते नहीं, प्रकंपन जाते हैं। इसलिए क्लास सुनते सुनते अनुभव करना
है। इस आवाज के प्रकंपन मुझमें प्रवेश कर रहे हैं। अव्यक्त बाबा की audios
है उस आवाज के साथ प्रकंपन मुझमें प्रवेश कर रहा है। सुनना- यह बहुत
महत्वपूर्ण काम है।
22) अगला -
प्रेम। ज्ञान से प्यार करना है। किसके प्यार में पड़ना है? ज्ञान के। बहुत
प्यार करना है ज्ञान से। योग से तो बहुत प्यार है, सेवा से तो कई गुना अधिक
है। पर ज्ञान से थोड़ा कम है। और जो प्यार है उसको हमने समझ रखा है आत्मा
परमात्मा, यह वह, सारा ज्ञान। ' ज्ञान ' कुछ और है। ज्ञान तो वह है जो
दिखाई नहीं देता, जिसे स्पर्श भी नहीं किया जा सकता, जो चेतना के कपाट खोल
दे वह है ज्ञान। यहां तक शायद हमने जाना ही नहीं ज्ञान क्या है। तो ज्ञान
से प्यार।
23) उसके बाद
में नवीनता, ज्ञान में नवीनता लानी है। बाबा ने कहा - वही रिपीट करते रहेंगे
ना तो बोर हो जाएंगे। अब मैं सतयुग में हूं, त्रेता में, द्वापर में, कलयुग
में, संगमयुग में हूं, बाप सामने है। तुम बाप, टीचर, सतगुरु हो। फिर यह
हॉस्पिटल गए, वह हॉस्पिटल, इसको सकाश और उसको सकाश और यह ठीक हो जाए, वह
ठीक हो जाए। इसकी बीमारी ठीक, उसकी बीमारी ठीक। यहां पर आपदा आई, वहां के
सारे लोगों को सकाश, पांच तत्वों को सकाश। काम पूरा हुआ, चलो। यह
repeatation, इसमें नवीनता नहीं है, इसमें नवीनता लानी है। ज्ञान में नवीनता।
24) अगली
पॉइंट - ज्ञान में नशा। बाबा ने कहा - पहले नशे में स्थित हो जाओ, फिर मुरली
को पढ़ो। वाक्य पढ़ने से पहले नशे में स्थित हो जाओ। फिर मुरली को पढ़ो।
उसके बाद में ज्ञान को organize करना है माइंड में। ज्ञान को organize कैसे
करेंगे? यह पॉइंट ज्ञान की है, यह योग की है, यह सेवा की है, यह धारणा की
है। अलग अलग कर देना, sections कर देना उसके। जो भी पढ़ रहे हैं जो भी
महावाक्य दिखा, "संतुष्टता सभी गुणों की खान है, प्रसन्नता उसकी पहचान है।"
संतुष्टता क्या है? गुण, अर्थात सब्जेक्ट कौन सा चल रहा है? 3rd सब्जेक्ट
की, यह जो महावाक्य है, यह 3rd सब्जेक्ट का महावाक्य है- धारणा। प्रसन्नता,
दिव्य गुण - थर्ड सब्जेक्ट। कहीं और कुछ लिखा हुआ है, वहां क्या है? यहां
क्या है? यह जो वाक्य लिखा है - कर्म का आधार वृत्ति है। वहां लिखा हुआ है।
यह कौन सा सब्जेक्ट है? अपने आप से पूछना है। Subject में डिवाइड करना है
ज्ञान को, organize करना है।
25) अगला -
विघ्न जीत, ज्ञान की पॉइंट्स से आज मैं सारे दिन विघ्नजीत और मायाजीत कितना
रहा? आज इन्द्रियों का सयंम कितना रहा? या इन्द्रियों का संयम टूट गया,
सामने कोई ऐसी वस्तु आ गई खाने की, कि जितनी खानी थी उससे डबल ही खा लिया
और उसका प्रभाव सूक्ष्म अमृतवेले पर पड़ा। उठे तो उतने ही बजे, परंतु हल्की
सी नींद का नशा था। वह केवल हमें ही पता था वह नशा आया कहां से। और कोई तो
कहेगा भी नहीं, ना आ कर बोलेगा। क्योंकि किसी ने थोड़ी ना देखा, तुमने कितना
खाया और कितना नहीं खाया। बड़ा सूक्ष्म प्रभाव है भोजन का मन की अवस्था पर।
मन की, अशरीरी अवस्था पर बहुत सूक्ष्म प्रभाव। कुछ भी हो रहा है योग में,
वह कहीं ना कहीं भोजन से जुड़ा हुआ है।
26) अगला -
ज्ञान को व्यक्तिगत बना देना है, पर्सनल। अपना बना देना है। बाबा ने आज कहा
ना- भोजन को अपना नहीं बनाया है, हजम नहीं किया है, अपना नहीं बनाया है। वह
महावाक्य किसी और का है। क्लास सुनी बहुत अच्छी क्लास थी, वाह! वाह! वाह!
कितनी अच्छी पॉइंट थी, पर वह सुनाने वाले की पॉइंट थी, ये उसका चिंतन था।
हमारा थोड़ी था! उसने जहां छोड़ा, वहां से अपने चिंतन चालू करो तब वह अपनी
बनेगी। तब तक वह मेरी नहीं है, वह किसी और का उधार का चिंतन है। कब तक उधार
का जीवन बिताएंगे? उधार पर जिंदगी कट रही है।
27) अगला -
कमाई। कमाई करनी है ज्ञान की। हर दिन अनुभव हो की मेरी कमाई बढ़ रही है।
28) अगला -
खोज। ज्ञान की खोज करनी है। नए नए ज्ञान की खोज करनी है। जो काम हम करते
हैं, जो सेवा हम करते हैं, सोचो क्या इसको करने की.. जैसे रोटी कोई बना रहा
है, क्या इस रोटी को बनाने की और भी कोई विधि है? खोज, हर चीज खोज है। जीवन
में वह खोज रहनी चाहिए हमेशा। हर चीज, चाहे भोजन हो, कुछ भी हो, कुछ भी।
कोई टेक्नोलॉजी की बात हो, इसको और अच्छा बनाने की क्या विधि है? कुछ तो
होगी ही जो मुझे पता नहीं। "We progress from lesser knowledge to higher
knowledge, we progress from lesser light to higher light not from
darkness to light" विवेकानंद ने कहा है - "हम अंधकार से प्रकाश की ओर नहीं
, हम कम प्रकाश से ज्यादा प्रकाश की ओर जाते हैं, कम ज्ञान से ज्यादा ज्ञान
की ओर जाते हैं।" कितने हो गए? 28..
29) अगला -
प्रश्न। प्रश्न उठाने हैं मन में। संशय नहीं, संदेह उत्पन्न करने हैं। बाबा
ने कहा - प्रश्न पूछो, जज करो मैं राइट हूं या ये लोग राईट है, शास्त्र वाले
राइट है? बाबा ने यह कभी कहा ही नहीं अंधश्रद्धा का ज्ञान नहीं है, कि जो
सुनाया सतवचन महाराज! यह ठीक है, निश्चय की अवस्था तो क्रॉस कर ली है हमने।
अब तो ज्ञान को समझने के लिए प्रश्न उत्पन्न होने चाहिए मन में, ढेर सारे
प्रश्न। ऐसा क्यों? वैसा क्यों? यह क्यों? वह क्यों? ऐसा क्यों कहा? खोज करो।
और प्रश्न उठाओ मन में हर चीज का, हर चीज के बारे में। योगी अर्थात क्लीन
और क्लियर, क्यों? माने क्यों हम? हम क्यों माने? प्रश्न करो।
30) अगला -
ज्ञान को याद करना है। सुमिरन करना है। अर्थात कुछ कुछ वाक्य तो by heart
कर लेने हैं, रोज के मुरली के। जो एकदम शक्तिशाली वाक्य होते हैं, उनको वहां
से उठाओ और वाक्य को याद कर लो। "जब भाग्य विधाता भाग्य दे रहा है, जब
भाग्य विधाता भाग्य का निर्माण कर रहा है, किसी भी आत्मा की शक्ति नहीं...
क्या? यह कि किसी भी आत्मा की शक्ति नहीं कि तुम्हारे भाग्य को हिला सके!"
ऐसे महावाक्य तो बहुत आते हैं मुरली में, याद कर लेना पूरे, by heart
क्योंकि परिस्थितियों में ज्ञान याद नहीं आता है, वह याद किया हुआ वाक्य
याद आएगा बस।
हमें याद है
हमने बचपन में, बहुत बचपन में एक वाक्य सुना था। "सत्य का कभी विनाश नहीं
होता और असत्य की निरंतर हार होती है।" बस एक इतना सा वाक्य सुना था। हमने
MBBS में एडमिशन ली, उसके बाद में कहीं कहीं देखा कुछ कुछ करप्शन चल रहा
है, एकदम से इस वाक्य ने शक्ति भर दी थी हममें। हमको याद है कि सत्य का कभी
भी विनाश नहीं होता। यह वाक्य सुना था बचपन में, और उसका पावर एकदम से
अनुभव किया कि सत्य का कभी भी विनाश नहीं होता है, असत्य का चिरस्थाई
स्वरूप नहीं है। बस इन दो वाक्यों ने इतनी पावर भर दी थी, इतनी पावर भर दी
थी कि ऐसे लगा कि हम इससे प्रभावित नहीं होंगे, इस असत्य से। हम देख रहे थे
मेडिकल प्रोफेशन में, लोग गवर्नमेंट में जॉब कर रहे हैं, साथ में प्राइवेट
में पैसा कमा रहे है, उसमें करप्शन कर रहे हैं। पेशेंट्स को लूट रहे हैं।
इस वाक्य ने काम किया था।
31) अगला -
reprogramming। रिप्रोग्रामिंग, ज्ञान की प्रोग्रामिंग करनी है माइंड में।
एक नया प्रोग्राम क्रिएट करना है, एक नई आदत, इसको हम यह भी कह सकते हैं -
ज्ञान की आदत निर्माण करनी है। ज्ञान के नए संस्कार भरने है अपने मन में।
ज्ञान के नए संस्कार भरने है मन में। वह कैसे होंगे? यह सब करते रहो तो अपने
आप ज्ञान के संस्कार तैयार होंगे। बोलते रहो, जो मुरली चली है उसके वाक्य
एक बार हमारे मुंह से निकलने चाहिए, तो ज्ञान के संस्कार प्रकट होंगे,
निर्माण होंगे, क्रिएट होंगे।
32) उसके बाद
में अगला - मौन और एकांत। बाबा ने आज की मुरली में कहा - मौन में जाओ,
एकांत में जाओ, गुहृता में जाओ। जब तक मौन नहीं, जब तक एकांत नहीं, ज्ञान
का चिंतन नहीं हो सकता। भीड़ भाड़ में, वह करो, वह बाद की स्टेज है, जिसको
एकांत में हो अभ्यास हो गया, वह उधर भी कर सकता है। जिसको एकांत में ही
अनुभव नहीं है, वह सीधा भीड़ भाड़ में तो टोटल कर्म consious हो जाता है।
केवल भोजन बना रहे, केवल भोजन की ही स्मृति रहती है, भोजन किस लिए बना रहे
है, वह भी भूल जातें है। और एक चीज भोजन के विषय में, जो भी हमारे मुंह के
अंदर प्रवेश करें, चाहे वह पानी की एक बूंद ही क्यों ना हो, वह भगवान को
भोग लगाने के सिवाय प्रवेश न करें। यह नियम बना लो अपना। मेरे मुंख के अंदर,
किसने टोली दी और तुरंत खा ली। ना। रखो उसको, कमरे में जाओ बाबा के सामने
रखो उसको, दृष्टि दो, let him give the vision, let him give the दृष्टि।
उसके बाद ही उसको स्वीकार करना है। यह बहुत शक्तिशाली और पावरफुल नियम है।
हमने एक आश्रम पर एक हफ्ता बिताया था, भक्ति काल में। उस आश्रम में देखा जो
भी योगी थे, सन्यासी थे और ब्रह्मचारी थे, वह भोजन का जो डाइनिंग हॉल था,
दीवार को लग कर एक ऐसा था प्लेट, मतलब एक चेयर दीवार को लग कर थी। एक एक
योगी, जो ब्रह्मचारी था वह दीवार को देखते हुए भोजन करते थे। बीच की जगह
खाली थी। बस chairs ही ऐसे arrange थी कि किसी से बात करने का सवाल ही नहीं,
मौन। चुप चाप जाओ, भोजन लो और दीवार को देखते-देखते भोजन करो। कोई बात करने
का तो कोई सवाल ही नहीं, वह डाइनिंग में जाना अर्थात pin drop silence।
भोजन बनाते समय पिन ड्रॉप साइलेंस, बात करने का कोई काम नहीं है। फिर वह
योग की अवस्था ही कहां रही? कितने हो गए? हो गए 32? की और बढ़ाएं इसको?
कितने भी बढ़ सकते हैं, रात गुजर जाएगी।
लास्ट एक -
अभ्यास करते करते मगन हो जाए। लास्ट स्टेज, यह सब कुछ करते-करते ज्ञान में
मगन हो जाना। तो यह आज की मुरली की कुछ बातें थी, इसको फिर से पढ़ना है।
फिर से रिवाइज करनी है।
ओम शान्ति।