Murli Revision - Bk Dr. Sachin - 02-01-22


ओम शांति।

एक बहुत-बहुत पुराने गांव में एक बहुत-बहुत पुराना चर्च था। चर्च जराजीर्ण हो चुका था। खंडहर सा था। लोगों ने वहां आना जाना बंद कर दिया था। या कहो कि लोग उस चर्च से भयभीत थे, क्योंकि वह चर्च अब गिरा, तब गिरा। लोगों ने उस चर्च के इर्द-गिर्द घूमना भी बंद कर दिया था। ऐसी उस चर्च की हालत थी। हवाएं चलती थी तो लगता था चर्च अब गिर जाएगी, इतना जर्जर वह चर्च हो चुका था। यहां तक कि उस चर्च के जो पादरी थे, वह भी वहां नहीं रहते थे। परंतु फिर भी गांव-गांव वह लोग घूम घूम कर कहते थे कि चर्च में आओ, प्रभु के मंदिर में आओ। परंतु वह लोग खुद भी वहां नहीं रहते। वो चर्च फिर भी वह खड़ा था, जिंदा था। वास्तव में जो जर्जर हो गया उसे गिर जाना चाहिए। परंतु वह फिर भी खड़ा था। चर्च के जितने भी ट्रस्टी थे उन्होंने एक मीटिंग बुलाई और मीटिंग में कुछ प्रस्ताव पारित हुएं। पहला प्रस्ताव था - जो पुराना चर्च है, जो जर्जर हो गया है उसे गिरा दिया जाए। दूसरा प्रस्ताव था - एक नए चर्च का निर्माण किया जाए। तीसरा प्रस्ताव था - कि नए चर्च का निर्माण उसी स्थान पर होगा जहां पुराना चर्च है। नए चर्च में वही द्वार-दीवारें लगेंगे जो पुराने चर्च के हैं। नए चर्च में उन्हीं ईंटों का इस्तेमाल किया जाएगा जो पुराने चर्च में थीं। तीनों ही प्रस्ताव स्वीकार हुए, पहला - पुराने चर्च को नष्ट करना है, दूसरा - नए चर्च का निर्माण करना है, और तीसरा - पुरानी चर्च की सामग्री से ही नए चर्च की सामग्री लगानी है, बनानी है। परंतु एक चौथा प्रस्ताव भी पारित हो गया - और वो ये था कि जब तक नया चर्च नहीं बन जाता तब तक पुराना हम नहीं गिराएंगे। और वह चर्च आज भी वैसे ही खड़ा है! जबतक नया नहीं बन जाता तब तक पुराना हम नहीं गिराएंगे।

पुराने से आसक्ति, चेतना पुराने की आदि हो गई है। नया उसे समझ में आता है परंतु पुराने से लगाव है, पुराने से आसक्ति है। पुराना दुखदाई है, पुराना परेशान करता है, पुराना अशांत करता है, परंतु आत्मा को आदत अशांति की हो गई है। शांति वो चाहती है, परंतु अशांति छोड़ना नहीं चाहती। परेशानी से मुक्त होना चाहती है परंतु आज नहीं, कल। दुख कोई नहीं चाहता परंतु एडिक्शन दुख का ही है। दुख का ही व्यसन है। गहरे में हमें कामना है कि वो बना रहे, हां परंतु मीटिंग हम भी कर रहे हैं, हां परंतु ऊपर से हम भी यही दिखावा करते हैं, ऊपर से हम भी यही प्रण-संकल्प-रिज़ोल्यूशन करते हैं कि पुराना सब खत्म हो जाए, पुरानी सभी आदतें हमको उखाड़ कर फेंक देनी है, पुरानी आदतों को नष्ट करने का उमंग उत्साह बहुत ज्यादा है, परंतु उन आदतों को समझने का उत्साह कम है। और बिना उनको समझे उनको फेंका नहीं जा सकता। इस वाक्य को अपनी डायरी में नोट करके रखना है। जब तक पुरानी आदतों को नहीं समझते, केवल संकल्प करके उन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता। जितने उत्साहित हम आदतों को समाप्त करने के लिए है, उससे कई गुना ज्यादा उत्साह आवश्यक है उन आदतों को समझने के लिए। क्योंकि वह बहुत गहरी हैं।

न्यू ईयर, ईयर शब्द के दो अर्थ होते हैं या दो प्रकार के स्पेलिंग हैं, न्यू ईयर रिसोल्यूशन शब्द की किसी ने परिभाषा की है कि वह संकल्प जो पुराने से निकलता है, नए में प्रवेश करता है और निकल जाता है। जो old y(ear) से निकल कर new y(ear) से बाहर आता है। Year का एक अर्थ होता है 'ear'.. न्यू ईयर रेजोल्यूशन अर्थात जो एक ईयर से प्रवेश करता है और दूसरे ईयर से बाहर...

पुराने से आसक्ति, चाहे वो पुराना जीवन हो, चाहे पुराना शरीर हो, चाहे पुराने संकल्प, पुरानी चलन, पुराने संबंध-संपर्क, जो कुछ पुराना है उससे आसक्ति है। और एक स्वप्न जगत में हम जीते हैं, स्वप्न जगत को हम तोड़ना नहीं चाहते। तुम्हारा विशेष कर्तव्य क्या है - आज की मुरली में.. किसलिए इतना उमंग उत्साह है तुममें, किस लिए तुम इतना उड़ रहे हो? सबकुछ नया बनाने के लिए। प्रकृति नई हो जाएं, आत्माएं नई हो जाएं, सब कुछ नया.. नया.. नया! पुरानी अच्छी तो लगती है परंतु कहां रखने के लिए? संग्रहालय में अच्छी लगती हैं, यादगार के रूप में अच्छी लगती है, प्रयोग करने के लिए नहीं। अभी, now हैप्पी न्यू ईयर नहीं, हैप्पी now ईयर। Now अर्थात अभी, इस पल। This moment, अभी करना है।

मरीज डॉक्टर से पूछता है - डॉक्टर साहब मैं क्या करूं? स्वप्न में बंदर दिखते हैं और वह रोज़ फुटबॉल खेलते हैं, कोई दवा दो.. बहुत परेशान होता हूं। डॉक्टर साहब कहते हैं यह दवा लो, रात को सोने के समय खा लेना, समस्या समाप्त हो जाएगी। मरीज कहता है आज नहीं, कल से खाऊंगा.. आज फाइनल (finale) है। कहां पर फाइनल है? स्वप्न में। स्वप्न इतना सुंदर है, हमारा स्व-निर्मित है, हम उसे तोड़ना नहीं चाहते। और भगवान आएं हैं हम सबके वो पुराने जो सपने हैं, वह जो भ्रम जाल है, वह जो मकड़ी का जाल है, उन सभी सपनों को, सभी भ्रमों को, उन सभी अज्ञान के निद्रा को, विस्मृति को तोड़ने। और जब हमें कोई नींद से उठाए तो अच्छा लगता है क्या? किस को अच्छा लगता है कोई नींद से जबरदस्ती उठा दे, और जब हमें अच्छी नींद आ रही है.. हम सपने देखे जा रहे हैं...

आज सुबह की अव्यक्त वाणी - भगवान कौन है? विश्व नव निर्माता और विश्व का बाप! और हम कौन हैं? हम सब कौन हैं - समीप के साथी! सहयोगी तो वह भी है - प्रकृति भी सहयोगी है, वैज्ञानिक भी सहयोगी है, परंतु तुम समीप के साथी हो। किस कार्य में सहयोगी हो? भगवान आया है इस विश्व का परिवर्तन करने, इस विश्व को बदलने। संसार की ये इमारत जर्जर हो चुकी है। बिना मृत्यु के नया जन्म नहीं हो सकता। नए जन्म से पहले क्या चाहिए - मृत्यु। कौन मरना चाहता है, कोई नहीं। परंतु बिना death के rebirth हो ही नहीं सकता। और ब्राह्मण जीवन अर्थात द्विज, नव-जीवन, नव-संकल्प, नई घड़ी, नया सेकंड, नए बोल नई मनसा, नई वाचा, नई स्मृति, नई दृष्टि, नई वृत्ति, नए स्वप्न, नई यादें, नई कल्पनाएं, नया भोजन, नया देखना, नया लिखना, नया खाना, नया सुनना, नया चलन, नया संबंध, नया संपर्क, नया शरीर, नए संस्कार, नई बुद्धि... सबकुछ हैप्पी न्यू ईयर... Happy new eyes, happy new tongue, happy new writing, happy new food... सबकुछ नया!!

नवीनता के तीन अर्थ हैं, newness के तीन प्रकार की परिभाषा है - पहली बीती सो बीती, पहली - पुराने को नष्ट कर देना, पहली - पुराने को भूल जाना। दूसरा - नवीनता अर्थात रचनात्मकता, creativity, सृजनात्मकता। तीसरा - नवीनता अर्थात परिवर्तन। और आज की मुरली में नवीनता की परिभाषा - नवीनता अर्थात विशेषता। नवीनता लाना अर्थात पुराना जो कुछ है उसे खत्म करना, किताब बंद, हिसाब खत्म। लोग क्या करते हैं? जला देते हैं। होशियार और कम होशियार - दो प्रकार के बच्चे हैं। जो कम होशियार हैं, उनके साथ क्या होता है? उधार और कर्ज। कर्ज में अटके रहते हैं, उधार में फंसे रहते हैं। कर्ज में अटक जाते हैं, उधार में फंस जाते हैं। तो पुरानी सारी चौपड़ी, पुरानी सारी किताबें, पुराने सारे रजिस्टर खत्म। संकल्प करना है नव जीवन का। आज तक जो भी हुआ सब एक तरफ.. I begin now! मैं अब शुरुआत करता हूं! अतीत दर्दनाक है, dramatic है, कलाकारी है, वेदना से भरा है, जो भी है... जो बीत चुका है वह अब मुझे भयभीत नहीं कर सकता.. क्योंकि वह अतीत है, क्योंकि वह dead है, क्योंकि वह past है। केवल वर्तमान ही सत्य है। अतीत और भविष्य sudo time है, झूठा है, समय है ही नहीं वो.. झूठा है! सत्य केवल ये पल है। इस पल में सदी छुपी हुई है। Past केवल memory है, future केवल कल्पना है, imagination है। सत्य क्या है? अब। अभी सभी यहां बैठे हैं, बस यह पल ही सत्य है। कल क्या होगा, रात क्या होगा, आज क्या हुआ, बुद्धि से सब हटा देना है। केवल इस पल को सफल करो। इस पल को नया बना दो, that's it.

तो क्या देखा बाबा ने?

सबसे पहले तुम कौन हो। तो हम कौन हैं? समीप साथी!

दूसरा - तुम्हारा कर्तव्य क्या है? नवीनता। तुम्हारा कर्तव्य क्या है? संसार को नया बनाना।

तीसरा - प्लानिंग तुम्हारी किस किस चीज के लिए है? पांच चीजों के लिए - पहला - स्वयं के लिए, दुसरा - समीप की आत्माओं के लिए, तीसरा - परिवार में जो दूर हैं उनके लिए, चौथा - विश्व की सेवा के लिए और पांचवा - प्रकृति के लिए। नव वर्ष है प्लानिंग बनाओ। किसके लिए प्लानिंग बनाएंगे?
• सबसे पहली प्लानिंग स्वयं के लिए। अपना एक नया वर्शन तैयार करना है। स्वयं के लिए प्लानिंग।
• समीप की जो आत्मा है उनके लिए प्लानिंग।
• थोड़ी दूर की जो आत्मा है उनके लिए प्लानिंग।
• विश्व सेवा के लिए प्लानिंग,
• इस प्रकृति के लिए प्लानिंग।
प्रकृति को भी पावन करना है। तो यह 5 पॉइंट प्लानिंग इस नए वर्ष के लिए। खुद के लिए, समीप की आत्माएं, दूर की आत्माएं विश्व और प्रकृति।

नवीनता किस में लाने के लिए कहा बाबा ने आज? स्वयं में तो है, पर कौन सी? जादूमंत्र। कौन सा जादू मंत्र? जादू हो गया.. जादू अर्थात मिरैकल.. ऐसा अनुभव हो जाए कि यह तो जादू हो गया। जादू हो जाता है तो खुशी होती है ना। अचानक जो चाहते थे और नहीं मिल रहा था और अचानक वो मिल जाए! जादू! जादू मंत्र। लोग मंत्रों के पीछे कितना भागते हैं। किसलिए? किसलिए? शॉर्टकट है। मंत्र मिल जाए कोई एक बस! वशीकरण मंत्र... पति को वश में कैसे करें - वशीकरण मंत्र। मंत्र है संसार में। मेडिकल में कहते हैं कि 70% बीमारी जो है, कहीं न कहीं वह झूठी है। और झूठे बीमारियों के लिए झूठे इलाज की जरूरत होती है। संसार में पता नहीं कितने मंत्र हैं, तंत्र हैं, ताबीज है, क्या कुछ नहीं है! वह सब किस सिद्धांत के इर्द-गिर्द घूमते हैं? अगर बीमारी सत्य है, बीमारी सही है, तो बिना दवाई के इलाज कभी भी नहीं हो सकता। हां अगर बिना दवाई के इलाज हो गया है तो शायद बीमारी झूठी थी! इसीलिए संसार में क्या कुछ नहीं है ताबीज, मंत्र तंत्र, भभूति, नींबू, क्या कुछ नहीं है।

किसी व्यक्ति को यह भ्रम हो गया कि वह जब सो रहा था मुंह खोल कर, तो एक सांप उसके मुंह के अंदर चला गया। और उसका यह वहम इतना गहरा था, इतना गहरा कि उसने क्या कुछ इलाज नहीं कराया। डॉक्टरों ने उसकी एक्स-रे निकाले, एम.आर.आई., सीटी स्कैन उसे दिखाया कि कुछ भी नहीं है पर वह मानने को ही तैयार नहीं था। क्योंकि उससे वह उस सांप की आवाज पेट से आती थी जब सांप चलता था। सांप की फुंकार.. और उसका यह निश्चय था, यह विश्वास था कि मेरे पेट में सांप है। और बहुत दुखी था और मुझे इलाज कराना है.. किसके पास जाऊं? संसार के सब डॉक्टर फेल। एक मदारी को पता चला। उसने कहा मैं ठीक करता हूं तुम्हारी बीमारी। कौन कहता है सांप नहीं है? सांप है। लेट जाओ, अभी इलाज किए देता हूं। चादर ओढ़ा दी, मदारी ने अपना ही सांप नीचे डाल दिया। चादर से निकलता हुआ सांप उस आदमी ने देखा और उससे विश्वास हो गया कि जो सांप उसके पेट में था, वह निकल गया। और उस मदारी ने कहा - यह है वह सांप! कहां है वह सारे मूर्ख डॉक्टर जो कहते हैं कुछ नहीं है, कुछ नहीं है, कुछ नहीं है? उसका ये विश्वास हो गया और खाली-खाली लगने लगा उसे। प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया।

बीमारी झूठी थी तो इलाज भी झूठा ही होना चाहिए। और हमारी आधे से ज्यादा बीमारियां झूठे ही हैं इसलिए इलाज काम नहीं करते। इसीलिए सभी डॉक्टर मूर्ख है, किसी को कुछ समझ नहीं आता है। अभी भी अच्छे डॉक्टर की तलाश जारी है। जैसे ही पता चलता है तो उसके पास हम पहुंच जाते हैं अपनी सारी फाइलों को लेकर। मंत्र संसार में बहुत है, जाते हैं लोग मंत्र लेते हैं और जाप करते रहते हैं और ठीक भी हो जाते हैं। ताबीज़ पहनते हैं और ठीक भी हो जाते हैं। जो बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाए वो झाड़ फूक वाले कर देते हैं। जितना इलाज रहस्यमई हो, जितना इलाज कहीं दूर हो, जितना इलाज करने की जो यात्रा है, उस व्यक्ति तक पहुंचने की जो यात्रा है वो कठिन हो, उतना जल्दी मरीज़ ठीक होता है। उसको पता है वहां दूर पहाड़ी पर... काली घाटी के पीछे वो व्यक्ति है... वो किसी के पास जाता नहीं, तुमको जाना पड़ेगा उसके पास! वो पैसे भी नहीं लेता.. और विश्वास बढ़ता है... ज्यादा ठीक होता है व्यक्ति क्योंकि बीमारी झूठी है तो इलाज भी झूठा होना चाहिए!

परंतु भगवान एक ऐसा मंत्र देते हैं, एक ऐसा मंत्र, एक ऐसा मंत्र जो आज तक किसी ने नहीं दिया! उसका प्रयोग अज्ञात रूप से कईयों ने किया अपने जीवन में और जब-जब किया द्वापरयुग से, उन्हों को फायदा हुआ। पर भगवान ने आज उसे मंत्र के रूप में कहा है और वो मंत्र है - शुभ भावना, शुभ कामना और शुभ दुआएं!

जैसे वाणी की सेवा कर रहे हो, जैसे वाणी की सेवा के लिए उमंग उत्साह है, जैसे वाणी की सेवा के लिए भाग दौड़ करते हो, जैसे वाणी की सेवा नेशनल इंटरनेशनल वर्गीकरण सबकुछ कर रहे हो, उसी तरह अब उस वाणी के साथ मन को जोड़ दो। इसका मेल, इसका बैलेंस, इसको मिश्रित कर दो, इसको जोड़ दो। इस जोड़ से जो निर्माण होगा, वो होगा मंत्र.. जादू का मंत्र! और इस जादू के मंत्र से दस बातें होंगी। जिसकी हम अभी चर्चा करेंगे। क्या कर दो? ऐसा मंत्र, मंत्र के फायदे भी तो चाहिए.. मंत्र अगर दे दे कोई और फायदा कुछ भी ना हो, हम वैसे ही जाप करते रहें, तो कौन मानेगा कि ये पावरफुल, शक्तिशाली मंत्र है? मंत्र बीज की तरह होता है, साधक को गुरु के द्वारा मिलता है और फिर मंत्र की वो साधना करता है और साधना करते-करते, करते-करते वो मंत्र सिद्ध हो जाता है और आत्माएं सिद्धि को प्राप्त करती हैं। तो बाबा ने आज ये जो मंत्र दिया कि हर एक आत्मा के प्रति क्या हो मन में? शुभ भाव! ये बहुत पावरफुल अभ्यास है, रोज अमृतवेला सारी आत्माओं को इमर्ज करना है जिनको हम जानते हैं, जो हमारी चित परिचित हैं, एक-एक को एनालाइज करना, एक एक को देखना.. ये.. क्या इसके प्रति मन में शुभ भाव है? क्या इसके प्रति शुभ कामना है? क्या इसके प्रति शुभ दुआएं हैं? याद-प्यार में कहा - ऐसी शुभ दुआएं देने वाली मास्टर सदगुरु आत्माओं को परमात्म दुआएं.. क्या ये तीनों ही चीजें हैं? हमारा उत्तर, हमारा एनालिसिस हमें बताएगा कि नहीं है! हमारा स्टॉक कम है! मन में किसी न किसी के प्रति घृणा और नफरत भरी हुई है.. सम्मान कम है..!

किसी चर्च में एक पादरी आया और उस हजारों लोगों की सभा थी और सभा में उसने कहा कि तुममें से कोई है जिसके मन में ज़रा भी, एक परसेंट भी घृणा नहीं है, नफरत नहीं है, dislike hatred नहीं है, किसी के प्रति ज़रा भी grudge नहीं है? किसी ने हाथ खड़ा नही किया। बड़ा दुखी हुआ.. फिर देखा पीछे एक व्यक्ति हाथ खड़ा कर रहा है.. और उसे देखते ही पादरी को इतनी खुशी हुई, कम से कम एक तो है पूरे चर्च में! अगर एक भी ऐसा व्यक्ति इस चर्च में हो, तो हम सबका उद्धार हो सकता है! एक आत्मा इतनी निर्मल, इतनी शुद्ध कि जिसके मन में ज़रा भी घृणा का भाव नहीं है! देखता है कौन ऐसा व्यक्ति है जिसने हाथ खड़ा किया है.. देखता है बूढ़ा है 104 वर्ष का व्यक्ति है। उसको खड़े करते हैं.. सारी सभा को कहते हैं - देखो, उसको दर्शन करो उसका। सारी सभा मुड़-मुड़ कर उसको देखती है। उसे सामने बुलाया जाता है.. कहते हैं कि आप अपना अनुभव सुनाओ कि कैसे आपने इस घृणा के प्रति इतना उससे ऊपर उठ गए और विजय प्राप्त कर ली घृणा पर? जबकि हममें से हरेक व्यक्ति में किसी ना किसी के प्रति नफरत, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष कुछ ना कुछ तो भरा है। वो कहता है - वो सारे लोग जिनसे मैं घृणा करता था, सब के सब मर गए। अगर एक भी आज होता तो मैं उन्हें छोड़ता नहीं। वह सारे के सारे मर चुके हैं, अब किससे घृणा करूं?

हमारा घृणारहित होना भी दूसरों के जिंदा रहने और मरने पर निर्भर है। यह घृणा, यह प्रेम, यह शुभ भावना, सच्ची शुभ भावना नहीं है। ये एक आंतरिक अभ्यास है, जो रोज करना है। एक-एक आत्मा को देखो.. क्यों उसके प्रति देखते ही घृणा आती है? देखते ही नफरत आती है.. देखते ही लगता है कि यहां से हट जाए.. "बाबा इसका ट्रांसफर कर दो, बाबा यह कभी छुट्टी पर क्यों नहीं जाता? बाकी सब छुट्टी पर जाते हैं! इनको भी छुट्टी दो। इनके भी घर में कुछ हो जाए, कभी कुछ होता ही नहीं! लगे रहते हैं इधर! खुद भी परेशान और हमको भी परेशान!"

1) सबसे पहली चीज़ जो इस मंत्र से होती है.. मंत्र है - शुभ भावना, शुभकामना, शुभ दुआएं। स्वयं और दूसरों को शुद्ध वाइब्रेशन का अनुभव.. क्या कहा बाबा ने जो पहली चीज होगी इससे? खुद को भी अनुभव होगी शुद्ध वाइब्रेशंस का और दूसरों को भी अनुभव होगा कि ये आत्मा घृणा रहित है.. घृणातीत, नष्टोघृणा, नष्टो-नफरत... ये बहुत लंबा और सूक्ष्म अभ्यास है। क्योंकि मन के layers, मन के परतों में छिपी है घृणा! दूसरे आगे जाते हैं तो अचानक कुछ होने लगता है.. हमसे आगे नहीं जाना चाहिए.. कोई कान में आकर कह दे कि वह दूसरा भाई तुमसे अधिक नम्र है.. मेरे से अधिक?! कोई कान में आकर कह दे उसका ज्ञान योग तुमसे अच्छा है.. कोई कान में आकर कह दे वह अच्छा बोलता है, उसका चिंतन तुमसे ज्यादा अच्छा है, उसका योग तुमसे ज्यादा अच्छा है! ओह.... पर दिखाए कैसे! अगर हम दिखाएंगे तो हम कम योगी ठहरे.. इसलिए हम भी तारीफ करेंगे कि हां वह तो बहुत अच्छा है.. पर एक-एक शब्द बोलते हुए अंदर जो दर्द, जो पीड़ा, जो टीस उठ रही है, वह परमधाम तक बाबा को छोड़कर और किसी को नहीं पता। किसी की स्तुति, तारीफ, महिमा बाकी किसी में कोई skill है, उसको discuss करने के लिए तो.... और जो मरे हुए हैं उनकी तारीफ करने में तो जरा भी कुछ नहीं जाता है। और जो बहुत दूर हैं, जिनसे हमारा कोई संपर्क नहीं है, उनकी तारीफ आराम से की जा सकती है। पर जो हमारे साथ-साथ ही निकले और हम साथ-साथ ही थे, वह आगे चला गया और हम पीछे रह गए, और लोग उसकी महिमा कर रहे हैं, तब मुश्किल है! और कोई यह भी कह दे तुम आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हो उसके जैसा? हम्म.. आग!!! मैं सहनशीलता का अवतार हूं... दूसरों की स्तुति सहन करने के लिए स्वमान का अभ्यास! क्या अभ्यास? कि मैं सहनशीलता का अवतार हूं! और तुमसे बड़ा योगी हूं और महान योगी हूं.. सहनशील हूं.. सब सहन कर लूंगा! अच्छा है अभ्यास?!

1) पहली चीज़ जो यह जादू मंत्र करती है, क्या? शुद्ध प्रकंपन! यह संसार प्रकंपन से भरा है.. ocean of energy.. कंपन का अनुभव खुद को भी और उसे भी - ये पहला।

2) दूसर - energy economy. बोलने में जो ऊर्जा नष्ट होती है वह बच जाएगी। मनसा सेवा से ज़्यादा वाचा सेवा में ऊर्जा जाती है। मनसा से ऊर्जा संग्रहित होती है.. conservation of energy, energy cultivation, energy economy. तो मनसा सेवा को बढ़ाना है। जैसे उसमें बिजी रहते हैं, वैसे अब इसमें बिजी रहो। जैसे वाणी की सेवा के लिए तीन शब्द कहें - वो निरंतर हो गई है, वो नेचुरल हो गई है और साथ-साथ हो.. ये तीन शब्द कहे बाबा ने। मनसा सेवा कैसी हो? निरंतर, नेचरल हो जाए और साथ-साथ हो। और स्वाभाविक। जैसे वो सेवा करते हो, उस सेवा के बिना खाली-खाली लगता है, कुछ करूं.. कुछ करूं.. उसी तरह मन से एक-एक आत्मा को शुभकामना, शुभकामना... क्यों उसके प्रति नफरत है? उसने कुछ भी किया हो - परमात्म-आदेश है, परमात्मा आर्डर है सभी के लिए! यही जादू मंत्र है!

3) तीसरा - सफलता सहज होगी। जब मनसा सेवा को वाणी के साथ जोड़ दोगे तो सफलता सहज होगी। केवल वाणी से तो सेवा करने वाले बहुत हैं संसार में, मोटिवेशनल स्पीकर्स की कमी नहीं है, बहुत हैं। पर हमारी वाणी के साथ-साथ मनसा है। श्रेष्ठ मनसा, शुभ संकल्प है उनके लिए, निस्वार्थ है!

4) चौथा - समय बच जाएगा। यह जादू मंत्र क्या कर देगा? समय को बचा देगा। और time is energy, time is currency! समय ही तो है जो हमारे हाथ से निकला जाता है प्रति पल। तो वह हर चीज करनी है जो हमारे समय को बचा दे।

5) पांचवा - मेहनत कम। केवल वाणी से सेवा कर रहे हैं, केवल कर्मों से सेवा कर रहे हैं, उसमें मेहनत है। पर मन की जो सेवा है वह बहुत सहज है। सहज शुरुआत में तो नहीं होगी पर धीरे-धीरे रोज के अभ्यास से.. रोज अभ्यास! अमृतवेला बार-बार आत्माओं को देखो, आत्माओं को इमर्ज करो। आत्माओं का आह्वान करना, आत्माओं से बातें करना, आत्माओं में शक्ति भरना, आत्माओं से माफी मांगना, आत्माओं को माफ कर देना, आत्माओं को धन्यवाद देना! क्योंकि हमारे एक दूसरे के साथ कई जन्मों के कड़े हिसाब किताब हैं, हमें पता नहीं है कि किस जन्म में हम क्या थे किसके साथ। पुराने एक्टर्स नए रंगमंच पर नए रूप में, नए वेश में आ गए... वही पुराने किरदार हैं, पुराने पात्र मंच पर आ गए.. किस लिए? हिसाब चुक्तु करने। किसी ने बदला का संकल्प लेकर ही शरीर छोड़ा था। इसीलिए बचपन से ही क्या इच्छा है - बदला। बचपन से एक ही संकल्प है - बदला। क्योंकि किसी जन्म में उसी संकल्प के साथ शरीर छोड़ा था। और हम निमित्त थे उसके शरीर छोड़ने में। इसीलिए उसकी निगाहें हमें ढूंढ रही हैं। और जिस दिन हमें उन्हें मिल जाएंगे, वह हमें छोड़ेगा नहीं। कुछ तो मिल चुके हैं। कुछ अभी बाकी है। एक उन आत्माओं को भी देखो जिनके साथ कोई हिसाब नहीं है पर होने वाला है। उनको भी किरणें डालते जाओ। इसके लिए अमृतवेला उन आत्माओं को इमर्ज करो जो सारे दिन में नए हिसाब आने वाले हैं। नयी आत्माएं आने वाली हैं। अभी तक जो चालू ही नहीं हुए हैं। हमें उनके बारे में कुछ पता नहीं, पर वो हैं। हर दिन नया है। नई आत्माएं आएंगी। उनको पहले से ही क्या कर देना? उनसे पहले ही माफी मांग लो। माफी मांगना, माफ करना - यह काम रोज़ चालू रहे अमृतवेले। माफ करने से भी ज्यादा माफी मांगना। पता नहीं किस-किस को हमने कैसे-कैसे शब्द बोले हैं। पता नहीं किस-किस को हमने कैसे-कैसे सताया है। बहुत कुछ कर रखा है पूर्व जन्मों में। इसके लिए इस जन्म में अज्ञात-सी बातें होती रहती हैं। समझ ही नहीं आती हैं, कन्फ्यूजिंग! अचानक कोई आ जाता है, अचानक हिसाब.. ना लेन, ना देन, ना किसी से कोई मतलब.. फिर भी 4 दिनों के लिए कोई आत्मा आ जाती है.. 4 दिन हो ऊपर नीचे हो जाती है पूरी स्थिति और वह चली जाती है। और अब सोचते बैठे हैं ऐसा क्यों हुआ? बाबा को खत लिखते हैं यह नहीं होना चाहिए था। तो पांचवा मेहनत कम।

6) छठवां - बड़ी बातें भी छोटी हो जाएंगी। बड़ी-बड़ी बातें आएंगी परंतु यदि शुभ भाव है, शुभ भावना है, दुआएं निकल रही हैं आत्माओं के प्रति, चाहे वह कुछ भी करे.. हमारे मन से एक ही संकल्प - इसका कल्याण हो जाए! सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।। बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।। सबको सुख मिल जाए.. सबका हित हो जाए.. सबको परमात्म प्रेम का अनुभव हो जाए.. सभी उसके प्रेम में लीन हो जाएं.. सब खुश हो जाएं.. मुझसे अधिक खुश हो जाएं.. और सबसे अधिक खुश हो जाएं.. कितना अच्छा संकल्प है! किसी आत्मा के लिए संकल्प करो कि तुम खुश रहो, दूसरा मुझसे ज्यादा खुश रहो और तीसरा सबसे ज्यादा खुश रहो। अब इससे बड़ा और क्या संकल्प है? तुम कैसे रहो? खुश। किससे ज्यादा खुश? मुझसे ज्यादा। और सबसे ज्यादा। और अपने लिए संकल्प? आज तक ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ है जो मेरी खुशी छीन ले! अभी तक ऐसा कोई सूरमा आया नहीं है संसार में जो आए और मेरी खुशी नष्ट कर दे! कोई नहीं छीन सकता, कोई भी नहीं! अपनी खुशी पर ऐसी कुंडली मारकर बैठ जाना है!

7) सातवां - मन की हलचल समाप्त। शुभभावना, शुभकामना और दुआओं से क्या होगा? जो मन की हलचल होती रहती है, डिस्टरबेंस होती रहती है बार-बार, वह अपने आप शांत हो जाएंगी, समाप्त हो जाएगी।

8) आठवां - पुरुषार्थ में जो दिलशिकस्त हो जाते हैं, दुखी हो जाते हैं, वह नहीं होंगे। क्योंकि मंजिल से बहुत ऊंची है, बहुत ऊंची। पहले तो इस निष्कर्ष तक पहुंचना है कि हम अभी मंजिल से बहुत दूर हैं। वह वहां मंजिल और हम कहां?! अभी तक हलचल चालू है। इस मुरली में बाबा ने एक और चीज कही है - पुरानी दुनिया में बुद्धि तो नहीं जाती? दुख, दर्द, उदासी, परेशानी वाली वो दुनिया का अनुभव अब तो नहीं होता? इस पुरानी दुनिया में रहते हुए भी तुम नयी दुनिया में हो, तुम नए युग पर हो, तुम संगमयुग पर हो। तुम इस दुनिया में नहीं हो। उस दुनिया में रहते हुए भी तुम नयी दुनिया में हो। इसके लिए पुरानी दुनिया की बातें - दुख, अशांति और परेशानी अब तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकती! वरदान आज का - डबल लाइट.. प्रभाव से रहित, ऊंची स्थिति में रहने वाले, एक संकल्प में रहने वाले.. सार - मैं बाबा का बाबा मेरा - इस एक संकल्प में समा जाओ। तो आठवां - डिप्रेशन नहीं। आठवां - उदासी नहीं। आठवां - किसी भी प्रकार का फ्रस्ट्रेशन नहीं। किसी भी प्रकार से दिलशिकस्त, disheartened नहीं।

9) नौवां - और सबसे महत्वपूर्ण संगठन में चलना आसान हो जाएगा। यह सबसे बड़ा पेपर है क्योंकि बाबा से हमने कभी संगठन मांगा ही नहीं था। क्या कहा था भक्ति मार्ग में? तुम आ जाओ! वह आ गया! तुम चाहिए.. वह मिल गया! तुमसे सबसे अधिक प्यार है.. तुमपे बलिहा!! किसी ने ऐसा मांगा था कि जब आओ तो फौज लेकर आना? एक ऐसी gang जो हमें तिल-तिल तड़पाए और हिसाब चुक्तु कराएं हमसे! यह कहां से आ गया, यह तो मांगा ही नहीं था। तुम चाहिए बस, मैं और मेरा बाबा। यह सब हटाओ। क्या करूं इनका? इन निर्गुण हारों में कोई गुण नहीं है बाबा। एक भी गुण दिखाई नहीं देता, पता नहीं तुमने कैसे चुन लिया इसको! क्या देख लिया इसमें? मुझे तो एक भी नहीं दिखता है! अमृतवेले इतने उसका चिंतन करता हूं, पर अवगुणों के सिवा कभी कुछ नहीं दिखता। पता नहीं कैसे बाबा ने इसे चुना! और पता नहीं बाबा इससे क्या कराना चाहता है? मुझे तो लक्षण कुछ भी अब तक दिखाई नहीं दे रहे सेवाओं के.. कि इसके द्वारा कोई बड़ी सेवा हो रही है! ऐसा तो कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है!

परिवार में चलना - दो बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं, बाबा ने कही हैं यहां पर। अगर इस परिवार के हर एक आत्मा के प्रति शुभभावना, शुभकामना और शुभ दुआएं देते रहोगे तो उसके मन के अंदर जो संस्कार है, वह दब जाएंगे और खत्म हो जाएंगे। दूसरा वह हमारा सामना नहीं करेगी। वो आत्मा हमारा सामना नहीं करेगी। यदि आत्माओं के द्वारा बार-बार पेपर आ रहे हैं, आत्माओं के द्वारा बार-बार सामना करना पड़ता है, तो जरूर हमारे भी मन में उनके प्रति सूक्ष्म में घृणा, नफरत, कुछ तो है! उसका ही वह प्रतिफलन है। हमारे सूक्ष्म संकल्प उन तक पहुंच रहे हैं। हमें वह अहंकारी दिखते हैं, इसका अर्थ है हममें उनसे भी ज़्यादा अहंकार है। हमें उनमें अवगुण दिखाई देते हैं, अर्थात हमारे अंदर वह है। हम दूसरों के अवगुण डिटेक्ट कर सकते हैं इसका अर्थ हम उसमें एक्सपर्ट हैं। किसमें? अवगुणों में। अवगुणों में हमारी PHD इतनी पक्की है कि हमें दिखाई देता है कि यह झूठ बोल रहा है। एकदम डिटेक्ट कर लिया किसी का झूठ, अर्थात तुम भी झूठ में कोई कम एक्सपर्ट नहीं हो। नहीं तो कोई साधारण सा व्यक्ति आता है गांव का, उसे जो बताओ वह बेचारा मान लेता है। क्योंकि उसे झूठ का कोई अनुभव नहीं है। पर एक्सपर्ट हैं हम, इसीलिए डिटेक्ट करते हैं!

तो उस परिवार की आत्माओं को रोज़-रोज़ इमर्ज करना है, डिपार्टमेंट की आत्माओं को रोज़-रोज़ इमर्ज करो, अपने घर की आत्माओं को, सेवा केंद्र की आत्माओं को, इंचार्ज, साथी, जूनियर, स्टूडेंट, बाहर वाले, लौकिक वाले, मधुबन, सारी आत्माओं को बार-बार देखना है। ब्राह्मणों का हिसाब किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तु होंगे। वो हिसाब किताब बड़े हल्के हैं, यह कड़े हैं। क्या कहा दो बातें? उनके मन के जो संस्कार हैं, वह दब जाएंगे और नष्ट हो जाएंगे और दूसरा - वह सामना नहीं करेगी। जादू जैसा हो जाएगा। यह है जादू मंत्र। जो रोज़ हमारा सामना करती है, रोज हमसे नफरत करती है, रोज़ हमारे मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करती है, अचानक एक दिन वह शांत हो जाएगी, हट जाएगी, चुप हो जाएगी बिना हमारे कुछ कहे। नहीं तो उसे कितना भी समझाओ, कितना भी उनके साथ बैठकर डिस्कशन करो, पूछो, कोई बताता है? हम किसी से जाकर पूछे तुमने मेरा अपमान क्यों किया तो क्या वह बता देगा वो? कभी नहीं बताएगा। विधि ही गलत है। विधि है सूक्ष्म, विधि है मनसा वाइब्रेशंस। आत्माओं के संकल्पों को अपने मन के सूक्ष्म वाइब्रेशन से बदलना है। तो यह था नवां। दसवां आप बताएंगे।

10) दसवां - विहंग मार्ग की सेवा। क्या हो जाएगा? विहंग मार्ग‌ की सेवा। बाबा ने कहा क्वांटिटी और क्वालिटी। क्वालिटी वाली आत्माओं को निकालना है। प्रजा भी कैसी हो? नंबर वन प्रजा। प्रजा किसकी है? ब्रह्मा की प्रजा! प्रजा किसकी है? विश्व महाराजन की प्रजा है! दो प्रकार - एक सहयोगी और दूसरे स्नेही। कम से कम फर्स्ट नंबर की प्रजा वह हो जो परमात्म स्नेही हो, जिन्होंने परमात्म स्नेह का अनुभव करा है। तो सुबह-सुबह अमृतवेले आत्माओं को इमर्ज करो और उनके अंदर डिवाइन लाइट, डिवाइन माइट और डिवाइन लव भर दो। डिवाइन लाइट, डिवाइन माइट और डिवाइन लव। डिवाइन लाइट अर्थात ज्ञान, डिवाइन माइट अर्थात शक्ति, डिवाइन लव अर्थात प्रभु-प्रेम! लोग पूछते हैं हम दूसरों को क्या दें सकाश‌ में। यह तीन चीजें दो। यह नहीं कहो इसका यह ठीक कर दो, वह ठीक कर दो। यह नहीं कहो ये ज्ञान में आ जाए, सेंटर में आ जाए, इसका ऐसा कर दो, इसका वो सहयोगी बन जाए, कुछ नहीं। दिव्य सकाश उसमें भर जाए, दिव्य शक्तियां उसमें भर जाए, प्रभु प्रेम उसमें भर जाए बस.. अपने आप वो आ जाएगा। पहला कदम - सहयोगी। दूसरा कदम - स्नेही। तीसरा कदम - समर्पण। समर्पण ना भी हो परंतु कम से कम स्नेह तक तो पहुंचे। सब वन-वन-वन प्रजा। विहंग मार्ग की सेवा। क्वालिटी वाली सेवा।

रूहानी खेती का वर्णन किया है यहां बाबा ने। एक है धरा, एक है हल, एक है बीज, एक है पानी और एक है फल। वाचा सेवा क्या है? हल चलाना। धरनी है, उसे सीधा करने के लिए हल चलाया जाता है। फिर बीज डाला जाता है। फिर प्राप्तियों का पानी और फिर है फल। तो मनसा सेवा, शुभ भावना, शुभ कामना - ये बीज है। रूहानी खेती - कितना अच्छा टॉपिक है, ये चिंतन करो इसपर कल। रूहानी किसान हैं हम, रूहानी खेती करने वाले। तो खेत में जिन जिन औजारों का उपयोग किया जाता है, उनका यहां क्या महत्व है? खेती में जो-जो चीजें की जाती है, वो रूहानी उनका क्या अर्थ है? कटाई, बुनाई, वह जो-जो होता है उसमें - harvesting, खाद, पानी, वो सबका spiritual farming.. उसके सारे शब्द इधर, अलौकिक में उसके क्या अर्थ है - यह चिंतन का टॉपिक है। तो क्या करो बाबा ने कहा? हल चलाओ मन की भूमि पर। विहंग मार्ग की सेवा!

तो कितनी बातें हो गई? 10.. मधुबन को भी याद किया है बाबा ने। जो चुल पर वह दिल पर। बेहद के भंडारे से ब्रह्मा भोजन खाने वाले। घर क्या है तुम्हारा? परमानेंट एड्रेस? वह है सेवा स्थान। एक बहुत शक्तिशाली पॉइंट इस मुरली में है - बाप के संकल्प ने तुम्हें वहां रखा है जहां अभी हो! बुद्धि की टचिंग से उस सेवा स्थान पर हो। बाप के संकल्प ने तुम्हें वहां रखा है। इसीलिए यह नहीं कहो हमें मधुबन ही जाना है, हम वहीं रहेंगे मधुबन में जाके। बाप के संकल्प ने तुम्हें उस सेवा स्थान पर रखा है, टाइम होगा तो आ जाओगे। अगर उसके संकल्प ने वहां रखा, तो उसका संकल्प ही यहां भी ले आएगा! वो सेवा स्थान, मधुबन परमानेंट एड्रेस! मधुबन के लिए दूसरा शब्द क्या कहा? मधुबन है तुम्हारी जन्मभूमि। वह है सेवा स्थान, यह है जन्म भूमि। जो चुल, पर वह दिल पर। तो मधुबन को याद किया!

तो 10 बातों में

सबसे पहली बात - प्रकंपन, वाइब्रेशंस। शुद्ध वाइब्रेशंस का, प्योर वाइब्रेशंस का तुमको भी अनुभव होगा और दूसरों को भी। दूसरों को ना भी हो, खुद को तो हो रहा है, उन तक पहुंच जाएगा धीरे-धीरे।

दूसरा - एनर्जी इकोनामी। एनर्जी बच जाएगी। मन की सेवा को बढाओगे तो बिज़ी हो जाओगे उसमें।

तीसरा - सफलता। सेवाओं में सफलता बढ़ जाएगी। अभी जितनी हो रही है, अभी तो हो रही है और बढ़ जाएगी।

चौथा - समय बच जाएगा।

पांचवा - मेहनत कम। मेहनत तो इसमें भी है, बिना मेहनत के तो कुछ भी नहीं है।

अगला - बड़ी बातें जो हैं, वह छोटी हो जाएंगी। और जो बड़ी बातें होती है उसको सीरियसली नहीं लेना है। जीवन को थोड़ा कॉमेडी के रूप में लेना है। जो एकदम सीरियस लेते हैं, वह थोड़ा दुखी ज्यादा रहते हैं। यमराज पूछता है हे प्राणी बता तुझे कहां जाना है - स्वर्ग में या नर्क में? प्राणी कहता है प्रभु जी धरती से मेरा मोबाइल और चार्जर दे दो, मैं किधर भी रह लूंगा। किधर भी रह लूंगा, जहां भेजना है भेज दो।

अगला - मन की हलचल समाप्त हो जाएगी, fluctuations of the mind.

अगला - पुरुषार्थ में दुखी नहीं, उदास नहीं, दिलशिकश्त नहीं। एक दिन गिर गए, फिर से खड़े हो जाओ। ऐसा नहीं कि कोई भी नहीं गिरा। ये गिरने और संभलने का मार्ग है। गिरे, फिर से उठो। फिर से उत्साह, फिर से नया उमंग। चोर कभी दुखी हो जाता है क्या? रोज़ चोरी करने जाता है रात को, खाली हाथ लौट कर आता है सुबह, पर दूसरी रात को फिर तैयार हो जाता है कि आज रात को अच्छा हाथ मारकर ही आऊंगा। कभी उदास नहीं होता है, कभी निराशा नहीं आती है। और हम उदास हो जाते हैं! माया कभी उदास होती है? माया कभी थकती है? बिलकुल नहीं। अथक है वो।

अगला - संगठन में चलना आसान। दूसरे आत्माओं के संकल्प, संस्कार दब जाएंगे। सामना नहीं करेंगे। पर तब तक उनके प्रति किरणें देते रहना है रोज़।

अगला - विहंग मार्ग की सेवा। विहंग अर्थात पक्षी। पक्षी मार्ग की सेवा। ऊंचाई, फास्ट सेवा होगी।


ऐसे विहंग मार्ग की सेवा करने वाले, ऐसे डबल लाइट रहने वाले, ऐसे दुखधाम से किनारा करने वाली आत्माओं को, ऐसे मैं बाबा का बाबा मेरा - इस संकल्प में दृढ़ रहने वाली या समा जाने वाली आत्माओं को, ऐसे मास्टर सदगुरु आत्माओं को, ऐसे विश्व परिवर्तक आत्माओं को, ऐसे डबल सेवा करने वाली आत्माओं को, ऐसे मनसा और वाचा का मेल, मनसा और वाचा का बैलेंस, ऐसे जादू मंत्र का अभ्यास करने वाली आत्माओं को, ऐसे नया विश्व निर्माण करने वाली आत्माओं को.. नवीनता अर्थात विशेषता लाने वाली आत्माओं को, ऐसे उड़ती कला वाली आत्माओं को, ऐसे सहयोगी आत्माओं को, स्नेही आत्माओं को, समीप की साथी आत्माओं को, ऐसे सर्व की दुआएं प्राप्त करने वाली आत्माओं को, ऐसे हिम्मतवान आत्माओं को, ऐसे जन्म भूमि को याद रखने वाली आत्माओं को - मधुबन, ऐसे बेहद के भंडारे से.. तुम बेहद के भंडारे में रहते हो, दो प्रकार की प्राप्तियां भी बताई - एक यहां की, एक वहां की.. बाप की गारंटी कभी बदल नहीं सकती- कितना अच्छा वाक्य है.. अगला ऐसे दिल पर सो चुल पर, ऐसे परमात्म दुआएं प्राप्त करने वाली आत्माओं को, ऐसे नवीनता लाने वाली आत्माओं को, ऐसे संगम पर रहने वाली आत्माओं को, पुराने दुनिया में रहते हुए भी नए दुनिया में रहने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, गुड नाईट और नमस्ते। हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद-प्यार गुड नाईट और नमस्ते।

ओम शान्ति।