2022 वर्ष का प्लैनिंग - BK. Dr. Sachin Bhai - 02-01-22


ओम शांति।

सभी स्थिर..... मन एकाग्र..... संपूर्ण चेतना भृकुटी के मध्य। मन शांत, एकाग्र...... सभी आवाजों से परे अव्यक्त स्थिति। मन मौन में.. चेतना इस संसार से परे..... संपूर्ण स्थिरता। इसी स्थिर मन के साथ एक नई यात्रा की शुरूआत करेंगे। एक नए जीवन में प्रवेश... एक नई विचारधारा... नया युग... नए संकल्प...नए कर्म... नए बोल... नई दृष्टि... नई वृति...नए जन्म... नए संबंध... नए स्वप्न... नई कल्पनाएं.... नई यादें... चेतना शांत। एक नए जीवन की ओर प्रवेश.... ॐ शन्ति।

किसी वैज्ञानिक ने कभी एक बहुत सुंदर प्रयोग किया था - तीन चुहों के ऊपर। तीन चुहों को तीन अलग-अलग घरों में रखा, अलग-अलग बड़े कमरों में। पहला जो चुहा था और वो जो कमरा था, उसमें एक बटन था। उस बटन को चुंहा जैसे दबाता, भोजन नीचे से आता। निश्चिंत होकर उसका जीवन बीत रहा है। जब उसे भूख लगती है, बटन दबाता है, भोजन आ जाता है।

दूसरा जो घर है, दूसरा जो बड़ा कमरा है, और जहां दो नंबर का जो चुहा है, उसका जो बटन है वो थोड़ा खराब है। कभी भोजन आता है, कभी नहीं आता है। वो बटन दबाता है, नहीं आता है। दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार आ जाता है। पांचवी बार, छठवीं बार, सातवीं बार नहीं आता है, आठवीं बार आ जाता है। Random! कभी भी आ जाता है, कभी भी भोजन नहीं आता है। इसलिए वो निरंतर बटन दबाते रहता है।

तीसरा जो चुहा है और जो तीसरे घर में, तीसरे कमरे में है, वहां का बटन पूरे तरह से खराब है। वहां पर भोजन कभी आता ही नहीं। इसलिए उस चुहे को अभ्यास है कि अपने भोजन की व्यवस्था और-और जगह से और-और सोर्सेस से करता है।

लंबा समय तीनों चूहों को अपने-अपने स्थान पर रखा गया। कुछ समय बाद पहले चुहे को वहां से हटा दिया गया और दूसरे नंबर का जो चुहा था जो दूसरे कमरे में था, उसे पहले कमरे में रख दिया गया। पहले कमरे का बटन अच्छा है, जब भी दबाओ भोजन आ जाता है। परंतु ये जो दो नंबर का चुहा है और जो दूसरे कमरे में था, वो निरंतर बटन दबाते रहता है और हर बार भोजन आते रहता है। कुछ समय के बाद जो तीसरे कमरे का चुहा है, उसे भी रखा गया उसी कमरे में, और दो नंबर के चुहे को हटा लिया गया। अब ये जो चुहा है इसे अभ्यास है अपना भोजन यहां-वहां से ढूंढने की, तो वो बटन दबाता ही नहीं.. जबकि बटन है और बटन दबाने से भोजन आयेगा परंतु फिर भी ये तीसरे नंबर का चुहा बटन नहीं दबाता। तो ऐसा क्यों? ये दो नंबर के चुहे ने और तीन नंबर के चुहे ने ऐसा क्यों किया? आदत, अभ्यास। दो नंबर के चुहे को आदत है बार-बार बटन दबाने की। और तीन नंबर के चुहे को क्या आदत है - बटन ना दबाने की। इसलिए वो बटन है, भोजन है, फिर भी यहां-वहां भोजन ढूंढते रहता है।

अभ्यास, प्रैक्टिस, आदत, हमारे अवचेन मन का हिस्सा बन जाते है और वो ऑटोमेटिक अपने आप होते रहते हैं, होते रहते हैं, होते रहते हैं। एक है आदत, एक है स्वभाव या कहो संस्कार। दोनों ही गहरे हैं परंतु उस गहराई में भी, उस अवचेन मन में भी यदि आदत ऊपरी तल पर है तो संस्कार बहुत निचला, बहुत गहरा है। आदतें पकड़ी जा सकती है छोड़ी जा सकती है, संस्कारों को बदलना, छोड़ना, पकड़ना थोड़ा मुस्किल है, असंभव नहीं।

नए वर्ष की शुरुआत है। विश्व भर में लोग नए वर्ष के लिए प्रण, संकल्प, रेजोल्यूशन करते हैं "न्यु ईयर रेजोल्यूशन"। और न्यु ईयर रेजोल्यूशन की परिभाषा अंग्रेजी में ऐसी है - जो एक ईयर से आती है और दूसरे ईयर में जाती है। ईयर के दो स्पेलिंग है, पहला ईयर - वर्ष। और दूसरा कान। जो एक कान से संकल्प आता है वो दूसरे कान से निकल जाता है। संकल्प ढेर सारे किए जाते हैं - गोल, लक्ष्य, थीम। ऐसा कोई नहीं होगा जो 31st दिसंबर के दिन या एक जनवरी के दिन संकल्प नहीं करता, प्रण नहीं करता, रेजोल्यूशन नहीं करता। परंतु वो टिकता कितना दिन है? देखा गया है - एक ही दिन टिकता है, दो तारीख से जैसे थे।

एक प्वाइंट अपनी डायरी में नोट करके रखना है - "हम आदतों को बदलने को बहुत उत्साहित हैं, परंतु आदतों को समझने में हमारे पास इतना उत्साह नहीं है।" हर एक क्या सोचता है हमें ये आदत तोड़नी है या ये आदत बनानी है, सारा फॉकस इसी पर है। जितना उत्साह आदतें तोड़ने में है, उतना ही उत्साह आदतों को समझने में हो। और यदि आदतें तोड़ने में मेहनत है, तो वो आदत शायद तोड़ी नहीं जायेगी। यदि वो आदत सहजता से टूटती है, तो सहज तोड़ी जायेगी। ये बड़ा डीप साइकोलॉजिक प्वाइंट है - जिसके लिए हम बार-बार संकल्प कर रहे हैं, वो टूटती ही नहीं। कोई दूसरे मार्ग से जाना पड़ेगा, सामने वाले दरवाजे से नहीं, पीछे के दरवाजे से। नई आदतों का निर्माण ऐसे हो जाए जैसे सहज।

तो 2022 की शुरुआत, नए साल की शुरुआत! सुबह की अव्यक्त वाणी, क्या कहा बाबा ने - नवीनता लाओ, नवीनता अर्थात विशेषता। अंग्रेजी में शब्द है "catch-22".. कैच ट्वेंटी टू अर्थात एक मुहावरा है, एक phrase है जिसका अर्थ होता है- दुविधा की स्थिति। कैच ट्वेंटी टू अर्थात असमंजस। कैच ट्वेंटी टू अर्थात dilemma, पता नहीं चल रहा है करूं की ना करूं, धर्मसंकट की अवस्था को कैच ट्वेंटी टू कहा जाता है। तो 2022 में हमारी स्थिति कैच ट्वेंटी टू वाली ना हो, असमंजस, इंडिसीजन, अनिर्णय, करूं कि ना करूं, जाऊं कि ना जाऊं, होऊं कि नहीं होऊं, निरंतर एक कन्फ्यूजन, निरंतर एक इंडिसिजन। मधुबन में रहूं कि सेंटर पर रहूं, सेंटर पर रहूं कि घर पे रहूं, जॉब करूं, नहीं करूं, पार्ट टाइम करूं या फुल टाइम करूं, एक्सरसाइज करूं कि नहीं करूं, ज्यादा करूं या कम करूं, या जो चल रहा है वही चलने दूं। निरंतर अनिर्णय की अवस्था.. To be or not to be - Shakespear के Hamlet सी स्थिति। दुविधा अर्थात् कैच ट्वेंटी टू। तो इस "ट्वेंटी ट्वेंटी टू" में सबसे पहले तो ये संकल्प करना है कि कैच ट्वेंटी टू वाली अवस्था ना हो जाए। ये कन्फ्यूजन वाली, ये असमंजस वाली, ये उलझन वाली, ये दुविधा वाली अवस्था ना हो जाए। इधर या उधर, ऑप्शन ए या ऑप्शन बी। ऑप्शन बी यदि ले लिया तो अब भूल जाओ ऑप्शन ए भी था।

आज सुबह की मुरली- इस दुनिया में आ गए हो, पुराने दुनिया की तरफ बुद्धि तो नहीं जाती, वहां है क्या? उसका भी तो अनुभव ले लिया - दुःख-दर्द, अशांति, परेशानी, इसके अतिरित और वहां क्या है। तुम इस दुनिया में रहते हुए भी इस दुनिया में नहीं, नई दुनिया में रहते हो क्योंकि तुम्हारी दुनिया ही बदल गई, क्योंकि तुम्हारा युग ही बदल गया है। तुम नव विश्व रचाईता, बाप के समीप के साथी हो। साथी तो वो भी है नव विश्व निर्माण के, वो प्रकृति भी, वो वैज्ञानिक भी, परन्तु तुम समीप के साथी हो। तुम्हारी बुद्धि उस संसार में नहीं जा सकती, तुम्हारे जीवन का लक्ष्य क्या है, उड़ती कला किसलिए है तुम्हारी, क्यों उछल रहे हो, क्यों इतना उमंग है? एक ही लक्ष्य है, एक ही उमंग है कि ये संसार नया बन जाए। हर घड़ी नई बन जाए, हर संकल्प नया बन जाए, प्रकृति नई बन जाए, वस्तु नई बन जाए, हर कर्म नया बन जाए। नवीनता लक्ष्य रखना है। अबतक जो कुछ हुआ, अबतक जो कुछ किया 'फुल स्टॉप'! मधुबन की भूमि में आए हैं..सुबह की मुरली - मधुबन अर्थात तुम्हारा क्या है, क्या है, क्या है तुम्हारा? परमानेंट अड्रेस। क्या है तुम्हारा? जन्मभूमि। इस भूमि पर आए हो, खाली हाथ लौटकर नहीं जाना, इस भूमि पर आए हैं केवल अपने इस डायरी में कुछ शब्दों को नोट करके, कुछ शब्दों का संग्रह करके, कुछ प्वाइंट्स को लेके नहीं जाना। इस भूमि में आए हो - श्रेष्ठ प्रकंपनों का भण्डार ले जाना, वाइब्रेशंस! इस भूमि में आए हो - ऊर्जा ले जाना यहां से, डिवाइन एनर्जी। शब्द बहुत मिल जायेंगे, क्लासेज बहुत मिल जायेंगी, ऑडियो यहां-वहां है सर्वत्र। ऊर्जा नहीं, अनुभूति नहीं। सोशल मीडिया पर सबकुछ मिल सकता है अनुभूति छोड़कर, वो इतनी सस्ती नहीं। मुरलियां बहुत लिख ली, प्वाइंट्स बहुत लिख लिए, क्लासेज़ भी बहुत सुन ली, मुरलियां बहुत सुन ली, सेवायें बहुत कर ली। अब एक चीज़ बाकी है - अनुभव। वो भी किया है, परंतु गहरा अनुभव।

क्या प्लैनिंग बनाया है - सुबह की अव्यक्त वाणी- स्वयं के लिए, समीप के आत्माओं के लिए, दूर के परिवार के लिए, विश्व की आत्माओं के लिए, विश्व की सेवा का और प्रकृति के लिए। पांच प्लैनिंग की चर्चा सुबह बाबा ने की। क्या किया है? सेवाएं तो बहुत कर रहे हो, नेशनल-इंटरनेशनल वर्गीकरण, मनसा का क्या किया? सम्मिलित सेवा करो, डबल सेवा करो, विहंग मार्ग के सेवाधारा हो। जादूमंत्र कौन-सा है? कौन-सा जादूमंत्र है? जादूमंत्र कौन-सा है? वो जादूमंत्र यदि सिद्ध हो जाए, वो जादूमंत्र यदि प्राप्त हो जाए तो सेवाओं में सफलता होगी। तो, बड़ी चीजें छोटी हो जायेगी। तो मेहनत नहीं लगेंगी। तो, संगठन में बहुत सहजता से चल सकोगे। तो, निर्माण का कार्य, नवीनता का कार्य सहज होगा। कौन-सा जादूमंत्र है वो - शुभ-भावना, शुभ-कामना, शुभ-दुआएं। याद-प्यार में कहा है - परमात्मा समान, परमात्मा दुआएं देने वाले मास्टर सद्गुरु आत्माओं को। इस संगठन में चलना मुश्किल है बाबा से कह रहे हैं आत्माएं, बच्चे। बाकी आप चाहिए थे - "बाप और मैं".. संगठन बीच में कहां से आया? परंतु एक-एक आत्मा के प्रति यदि शुभ-भाव है, तो जो विरोध करने वाली आत्माएं भी है उनके मन के संस्कार दब जाएंगे और वो तुम्हारा सामना नहीं करेगी। कितनी बड़ी बात बोल दी। वास्तव में शिव-मंत्र है ये, जादू का मंत्र है। एक-एक आत्मा को अमृतवेले इमर्ज करो, जिसके प्रति मन में सम्मान कम है, जिसके प्रति नफरत है, घृणा है, ज़रा भी द्वेष है, ईर्ष्या है, वासना का भाव है। ये जादूमंत्र है! कुछ तो होगा इससे।

तो नए वर्ष की शुरुआत हो गई है, आज है दो तारीख। सभी ने बहुत सारे संकल्प किए होंगे, परंतु उन संकल्पों को प्रैक्टिकल में कैसे लाया जाए उसकी क्या विधि है? उसकी चर्चा हम इस क्लास में करेंगे। वो संकल्प कौन-कौन से करने हैं, वो कौन-कौन सी नवीनता लानी है, वो हर एक ने लाई होगी, समझा होगा, संकल्प किया होगा, कुछ प्लैनिंग तो की होगी परंतु उस प्लैन को प्रैक्टिकल में कैसे लाए? वो प्लैनिंग प्रैक्टिकल कैसे बन जाए? वो जो गैप है उसको कैसे ब्रिच करें, कौन-सा पुल बांधे? उसकी चर्चा आज हम करेंगे। हैबिट्स, संस्कार कैसे बना है? कौन से सिद्धांत है सूक्ष्म, जिससे एक आदत का निर्माण होता है। नए संस्कार, नए युग अर्थात् नए संस्कार। नए संस्कार अर्थात् नवीन आदतें, न्यू हैबिट्स। नई आदतें बनानी हैं और उन नई आदतों के लिए कुछ करना होगा। तो नया वर्ष है 2022। तो उन आदतों के निर्माण के लिए, वो आदत कुछ भी हो सकती है - अमृतवेला स्थिर, अमृतवेला एकाग्रता, अमृतवेला फिक्स टाइम। वो आदत मुरली चिंतन की हो जाए है, वो आदत सारे दिन भर संबंध-संपर्क की हो सकती है, वो आदत ब्रह्मचर्य की हो सकती है। कुछ कर लिया उसके बाद भी बार-बार-बार ब्रह्मचर्य खंडित होते रहता है। सबकुछ कर लिया, उसके बाद में भी नुमाशाम के योग का कोई ठिकाना नहीं। सबकुछ कर लिया परन्तु मन में उद्वेग है, हलचल है, आवेश है, विकारों के अंश है। मधुबन में आना भट्ठी करना इसका असर तीन दिन.. चार दिन... दस दिन रहता है, फिर से जैसे थे! क्या करें? संकल्प तो हमारे बहुत ऊंचे-ऊंचे हैं, बहुत बड़े-बड़े हैं, परन्तु वो हो क्यों नहीं रहें? क्या किया जाए? तो नए रेजोल्यूशन, नई प्रतिज्ञाएं, नए प्रण, नए संकल्प, नई आदतें, नए संस्कार निर्माण करने हैं। उसकी हम आज की इस क्लास में बाईस बातें देखेंगे -

1) सबसे पहला - कुछ भी करना हो, तो उस फील्ड में जो व्यक्ति परफेक्ट है, उसको अपना रोल मॉडल बना के उसको अपने सामने रखना। किसी को एक्सरसाइज करनी है तो ऐसे लोगों के साथ जुड़े जो डेली एक्सरसाइज करते हैं। स्थूल उधारण - साइंस का कहना है- कि एक व्यक्ति है जिसे अपना वजन घटाना है, परन्तु उसके सारे दोस्त मोटे हैं, तो संभावना कम है कि उसका वजन कम होगा। जो लक्ष्य रखा है - अमृतवेला हो नहीं रहा है, सारा पुरुषार्थ कर लिया, कभी तीन, कभी साढ़े तीन, कभी साढ़े चार, कभी चार, कभी पांच, कभी छः, कभी सात, तो कभी दो, कोई ठिकाना ही नहीं है, कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऐसा अमृतवेला है! बड़ा ही चलायेमान। अस्थिर अमृतवेला। ऐसे लोगों से दोस्ती करो, ऐसे लोगों को रोल मॉडल बनाओ कि जो उसमें मास्टर हैं। ये सबसे पहला प्वाइंट। किनके साथ एसोसिएशन करना है, किनके साथ मिलना है, किनका संग करना है जो हमारे रोल मॉडल हैं। सबसे बड़ा रोल मॉडल ब्रह्मा, उसके बाद दादियां, उसके बाद वरिष्ठ भाई-बहनें और उसके हमारे ही इर्द-गिर्द हमारे रोल मॉडल हैं। जो धारणा मुझमें नहीं है वो उसमें है, जिनता मैं हेल्थ कॉन्सियस नहीं हूं, उतना हेल्थ कॉन्सियस वो है। उसको हमने देखा है आज तक कभी कोई बीमारी नहीं, ऐसा वो क्या करता है कि वो कभी बीमार ही नहीं पड़ता है और हम बार-बार क्यों बीमार पड़ते रहते हैं? जरूर कोई तो सूक्ष्म धारणा है जो वो कर रहा है जिसके वजह से कभी भी कोई बीमारी उसके पास नहीं आती है। कितना संयम भोजन में, ये उदाहरण है हमारे सामने, ये रोल मॉडल हैं। और हम खाते रहते हैं...खाते रहते हैं.... खाते रहते हैं... कोई संयम ही नहीं। टॉप मोस्ट जो संकल्प किया जाता है ऑल ओवर वर्ल्ड न्यू ईयर में, वो कौन सा है- वेट डिडिक्शन, वजन कम करना। सबसे बड़ा गोल है गोल ना होना। सबसे बड़ा गोल क्या रखते हैं लोग - गोल ना बनने का। पर हो पाते हैं? कोई नहीं होता।

कोई भी गोल, कोई भी लक्ष्य, कोई भी हैबिट बनानी है, चाहे वो एक्सरसाइज हो, चाहे वो फिट रहने की हो, चाहे ऊर्जावान रहने की हो, tireless रहने की हो, अथक। देखा होगा कई भाई-बहनों को दिन-रात सेवाएं करते हैं, देखा होगा कई भाइयों को कभी भी आज तक इतने सालों से उसको हम देख रहे हैं एक बार भी अमृतवेला झपकी नहीं, एक दम स्थिर, ज्वालामुखी जैसा बैठा हुआ। और कोई-कोई हैं- आए बराबर डोलना चालू। तो कोई भी नई आदत बनाने के लिए, नया संकल्प, नया प्रण, फर्स्ट- रोल मॉडल को सामने रखो, रोल मॉडल के साथ रहो। ऐसे लोगों से दोस्ती करनी है जो उस आर्ट में परफेक्ट हैं। वो कोई भी आदत हो सकती है - फिटनेस की, अमृतवेला की, ब्रह्मचार्य की, प्यूरिटी की। हम संकल्प बड़े-बड़े करते हैं पर उसके साथ जो काम करना चाहिए वो नहीं करते। इसके लिए पहली प्वाइंट- associate with role model.

2) दूसरा - एक आदत को साकार करना है, तो बेबी स्टेप्स। क्या करना पड़ेगा? छोटे-छोटे कदम। सीधा ये संकल्प नहीं करना कि कल से अमृतवेला दो बजे। ऐसा संकल्प गलती से भी मत करना। छोटे-छोटे कदम। अभी साढ़े तीन बजे उठ रहे हैं, पांच मिनट पीछे जाओ बस, छोटे-छोटे कदम। और पांच मिनट पीछे, स्थिर हो जाओ। अभी दिन में पांच बार खा रहे हो, चार बार करो... तीन बार करो, धीरे- धीरे-धीरे। कोई भी आदत यदि साकार करनी है तो क्या चाहिए? बेबी स्टेप्स। सभी फिर से स्थिर बैठ जायेंगे। जो आदत हमें साकार में लानी है उसको आंखों के सामने देखेंगे।

तो दूसरी बात छोटे-छोटे कदम। ओवर मोटिवेटेड नहीं हो जाना है। क्या नहीं होना है- ओवर मोटिवेटेड। क्या करूं और क्या नहीं, सबको हिला के रख दूंगा। खुद ही हिल जाओगे। एक दिन में कोई डांसर नहीं बन जाता है, एक दिन में कोई सिंगर नहीं बन जाता है, एक दिन में कोई रनर नहीं बन जाता है, एक दिन में कोई बॉडी बिल्डर नहीं बन जाता है। यदि स्थूल चीजों में समय लगता है तो ये तो मन की और बड़ी सुक्ष्म चीज़ें है। और मन की आदतें बहुत गहरी है। इसलिए बेबी स्टेप्स, छोटे-छोटे कदम। कुछ भी करना हो, अपनी दिनचर्या में कुछ तो नवीनता लानी है। भगवान कह रहा है - नवीनता...नवीनता....नवीनता। हर बात में नवीनता लाओ, मन में, संकल्पों में, मनसा में, वाचा में, दृष्टि में, कृति में, चलन में, स्वप्न में, विचारों में, कल्पनाओं में, स्मृतियों में, शरीर में, भोजन में, सुनने में, पढ़ने में, लिखने में, ज्ञान में, बुद्धि में, संस्कारों में, हर बात में नवीनता। और नवीनता एक दिन में नहीं आयेगी, समय.. टाइम..। तो सबसे पहला प्रिंसिपल- रोल मॉडल को अपने सामने रखना, उसके साथ रहना, उनके संग रहना, ऐसे लोगों से दोस्ती करो जो उस बात में परफेक्ट हैं जिसमें हम परफेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरा- छोटे-छोटे कदम।

3) और तीसरा- बड़ा कार्य है, उसे टुकड़े-टुकड़ों में विभाजित कर दो। जैसे - कहा गया है एक घंटा एक्सरसाइज करो, नहीं होती है। तो आधा-आधा घंटा में डिवाइड कर दो, सुबह आधा घंटा, शाम को आधा घंटा। कहा गया है- चालीस मिनट वॉकिंग करो, नहीं होता है समय नहीं है, सेवाएं हैं, टुकड़ों में विभाजित कर दो, सुबह और शाम। टुकड़े-टुकड़े कर देना है कोई भी बड़ा काम हो। अमृतवेला- योग का चार्ट ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, नहीं हो पाता है, टुकड़े-टुकड़े में विभाजित करो, दस मिनट यहां बैठना, बीस मिनट वहां बैठना, नहीं तो नींद आती है। अमृतवेला को भी टुकड़े-टुकड़े में विभाजित करना, आधा घंटा इधर बैठना, आधा घंटा चलता-फिरता करेंगे, आधा घंटा वहां बैठेंगे, कुछ समय बाबा से बात करेंगे, कुछ प्लैनिंग करेंगे, कुछ परमधाम का अनुभव, कुछ सुक्ष्म वतन का, कुछ सृष्टि का चक्र, कुछ सकाश का। बिना प्लैनिंग के अगर गए तो हाथ में कुछ नहीं आयेगा, परंतु हमारी प्लैनिंग ही गलत है। प्लैनिंग करने में उत्साह है हमारा, पर कैसे की जाए इसमें उत्साह नहीं है। आदतों को तोड़ने में बहुत उत्साह है, नए संकल्प करने में, रिजॉल्यूशन करने में कितना उत्साह है, परन्तु उसको समझने में उत्साह कम है। कोई भी नया परिवर्तन करना है - it starts with understanding. वो समझ आ गई कि फिर सारी यात्रा सहज हो जायेगी, नहीं तो मुश्किल ही मुश्किल। तो तीसरा सिद्धांत क्या है आदतों को साकार करने का, संकल्प को साकार करने का, प्रतिज्ञा को साकार करने का - जो संकल्प किया है जिस आदत का उसे टुकड़े-टुकड़ों में विभाजित कर देना।

4) चौथा - जो भी आदत हमें डालनी है उसको रिपीट करते रहना है, डेली करते रहना है। ऐसा नहीं अगर किसी ने एक्सरसाइज करने का संकल्प लिया है कि मुझे फिट रहना है, वो एक्सरसाइज फिर डेली हो "Sun has no Sunday" सूरज को कोई सन्डे नहीं है, तुमको क्यों है फिर? वो आदत हर दिन रिपीट होती रहे, रिपीट... दोहराओ...दोहराओ... दोहराओ... दोहराओ... दोहराओ... दोहराते रहो उसको बार-बार, बार-बार। जिस दिन इच्छा नहीं है उस दिन भी दोहराते रहना है, पर छोड़ना नहीं है एकदम, तो ही वो सब-कॉन्सियस माइंड में brain rewiring होगा, नहीं तो थोड़े देर चलेगा और छूट जायेगा।

5) पाचवां - जो नई आदत हमको बनानी है वो बहुत आसान हो, सहज हो, ईजी हो। ऐसी-वैसी आदत ले ली जो पहले दिन से कठिन लगे, वो हम ज्यादा समय नहीं कर सकते। कोई सोचे कि मैं अभी मेराथॉन ही दौड़ता हूं, सीधा चालू कर दे, पैर टूट जायेगा, पैर फ्रैक्चर हो जायेगा, इंजरी हो जायेगी और उसके बाद में संकल्प करेगा आज के बाद कभी नहीं दौडूंगा। कोई भी चीज एक्स्ट्रा ओवर मोटिवेशन से की तो वो सफल नहीं होती है। आसान हो! जैसी हमारी दिनचर्या उस अनुसार हो, चलो पांच ही मिनट करो पर करो। जैसे चिंतन, सबको लगता है ये चिंतन बहुत ही कठिन है हमसे नहीं होता है चिंतन। कितना होता है दस मिनट, दस मिनट तो करो। रोज की मुरली से एक टॉपिक निकालो और चिंतन करो उसका। जैसे आज बोला बाबा ने - मधुबन। चिंतन करो मधुबन पर, तुम्हारी परमानेंट अड्रेस है, तुम्हारी जन्मभूमि है ये। मनसा सेवा, जादूमंत्र, क्या होता है इस जादुमंत्र से? लिखो, पढ़ ली मुरली, अब लिखो क्या हो सकता है। चाहे चिंतन की आदत हो, चाहे ब्रह्मचर्य की आदत हो, चाहे योग की आदत हो, चाहे अशरीरीपन की आदत हो, चाहे अपने आप को बहुत ऊंची अवस्था में रखने की आदत हो, डबल लाइट। वरदान में कहा है - नीचे आना ही नहीं। तो कोई भी आदत। और अभी भी मुरली चली शांतिवन में, सुनी ना- ट्वेंटी फोर टाइम्स। कितना कर सकते हो? दस मिनट, अच्छा चलो ठीक नौ नहीं कर सकते तो, आठ...पांच... सात... और वापस बढ़ा दिया लास्ट में। बढ़ाते जाओ, धीरे-धीरे बढ़ाओ, परंतु रोज़, डेली! आदत यदि बनानी है तो वो कैसी होनी चाहिए - हर दिन उसका अभ्यास होना चाहिए नहीं तो वो आदत नहीं बनेगी। बुरी आदतें कैसी बनी - डेली के अभ्यास से, मन की आदतें कैसी बनी पैटर्न- डेली अभ्यास के वजह से। वैसे ही नई यदि बनानी है तो वो अत्यंत सहज हो।

जैसे - एक व्यक्ति ने संकल्प किया था कि मुझे साठ पुशअप करने हैं एक्सरसाइज। क्या किया उसने? स्नान करने जाने से पहले दस कर लेते हैं, स्नान के पहले जाने का समय उस ऐक्टिविटी से जोड़ दिया। स्नान करने के बाद वापस दस करने हैं, ऑफिस जाने से पहले वापस दस करने हैं, ऑफिस से आने के बाद वापस दस करने हैं, ऐसे करते-करते उसने साठ कर दिये हर दिन की। पर डेली। और सहज हो वो, एकदम से करने जाओगे तो धड़ाम से नीचे गिर जाओगे, फिर नहीं होगा। कोई कहे कि मैं साइकिलिंग करता हूं इतना साइकिलिंग करता हूं एक ही में इतना, नहीं होगा। टुकड़े-टुकड़ों में विभाजन और हर दिन और सहज हो वो, जो भी हमें आदत बनानी है वो कैसी हो? बहुत ईज़ी, सिंपल हो। जितनी सिंपल होगी उसकी चांसेज है कि हम continue करेंगे। पहले दिन ही गए और इतना भयानक अनुभव हुआ, छोड़ो-छोड़ो ये हमसे नहीं होगा जिसको करना है वो करे।

6) अगला - एक ऐसा दोस्त बना लो इसी ब्राह्मण परिवार में ही कि जो हमें मदद करे उस आदत में। एक तो बताया रोल मॉडल जो परफेक्ट है। अभी बता रहे हैं ऐसा फ्रेंड जो परफेक्ट नहीं है, परन्तु यदि कभी हम दिलसिकस्त हो गए तो वो थोड़ा उत्साह भरे हम में। कई लोगों ने कहा है कि हमने सब कुछ कर लिया अमृतवेला, फिर भी मेरा होता ही नहीं। किसी को बोलो, किसी आत्मा को कि वो आपको कॉल करे, उठाए, मदद लो किसी की। सब कुछ कर लिया चिंतन होता ही नहीं, मदद लो किसी की। सब कुछ कर लिया ब्रह्मचार्य पालन होता ही नहीं, टूट ही जाता है, ऐसा कुछ तो हो जाता है कि वो टूट जाता है और इतना सुक्ष्म रीति से टूटता है कि पता ही नहीं चलता। किसी की मदद लो, दोस्त बनाओ किसी को।

7) अगला - जो नई आदत हमको बनानी है, उसके फायदे लिखो क्या-क्या होते हैं? क्या करना है उसके फायदे लिखने हैं। जैसे - संबंध-संपर्क में झगड़े ही झगड़े है, क्या करें? किसी के भी संपर्क में जाते हैं तो द्वंद होता है, conflicts. उसके लिए आज ही बाबा ने कहा - दुआएं, शुभ-भावना, शुभ-कामना, ये जादुमंत्र हैं। उस आत्मा के संस्कार दब जायेंगे, वो तुम्हारा सामना नहीं करेगा। सुक्ष्म में अमृतवेला। सभी आत्माओं को इमर्ज करना है। एक संकल्प सभी को दे रहे हैं - इस सृष्टि का मैं केंद्र हूं। कितना अच्छा संकल्प है - इस सम्पूर्ण सृष्टि का मैं केंद्र बिंदु हूं, बीच में हूं, और मुझसे किरणें जा रही है। परमधाम में जाना और संकल्प करना परमधाम के सम्पूर्ण वाइब्रेशंस सारे के सारे मुझमें समां रहे हैं और मैं आत्मा इस धरा पर आयी, सभी को प्रकंपन जा रही है। पावरफुल संकल्प, नए संकल्प, क्रिएटिविटी लानी है संकल्पों में, वही-वही संकल्प नहीं। मैं ही सुक्ष्म वतन हूं, मुझमें सुक्ष्म वतन समाया हुआ है। आज बाबा ने कहा ना - मनसा की सेवा को बढ़ाओ। वाणी तो तुम बहुत कर रहे हो, मनसा बढ़ाओगे तो वाणी में भी सफलता मिलेगी। मनसा बढ़ाओगे तो एनर्जी बचेगी। मनसा बढ़ाओगे तो मन की हलचल नहीं होगी। मनसा बढ़ाओगे तो बड़ी बातें भी छोटी हो जायेगी। फायदे.. क्या-क्या फायदे है?

अमृतवेला नहीं हो रहा है। सोचो, लिखो कि यदि दो-से-पांच अमृतवेला रोज हो जाए तो मेरे जीवन में क्या हो जायेगा? इतना ये जो अस्थिरता है उठने में, क्या करूं इसको, क्या करूं कि अपने-आप आंख खुल जाए? आंख खोलो, देखो खुशी होगी। अभी तो डेढ़ बजा है, तैयार हो जाओ "2 o' clock till 5 o' clock" रोज.. रोज.. रोज.. तबतक जबकि ये सहज हो जाए। पर जैसे कहा - एक दिन में नहीं होगा। धीरे-धीरे.. बेबी स्टेप्स.. टुकड़े-टुकड़े में विभाजन.. इज़ी हो वो अभ्यास। और कोई भी अभ्यास नया लाने के बाद उसको रुको थोड़ा वहां पर। एकदम आगे नहीं बढ़ाना उसको, एक हफ्ता रुक जाओ, दो हफ्ता रुक जाओ, तीन हफ्ता रुक जाओ और फिर उसको और आगे बढ़ाओ। तो फायदे हैं - इक्कीस दिन के अभ्यास, ये साल है "बाईस", एक दिन तैयारी और इकिस दिन भट्ठी। ऐसी अपनी भट्ठीयों को ऑर्गनाइज करना है.. मनसा भट्ठी। एक दिन तैयारी का और फिर उसके अगले दिन भट्ठी चालु करनी है। कौन-सी भट्ठी करेंगे? अपनी व्यक्तिगत भट्ठी।

जिसका टॉपिक हम किसी को नहीं बताएंगे, चुपचाप अपने अंदर रखना है वो। और मौन भट्ठी करनी है उसके ऊपर। Twenty one days... Twenty one days... हर मास में twenty one days की एक-एक भट्ठी, every month. पहला दिन तैयारी और बाकि इक्कीस दिन करते जाना है और बहुत सुक्ष्म भट्ठी होगी वो। और उसमें ये सारे प्वाइंट्स जो अभी बता रहे हैं एक-एक, एक-एक डालती जानी है। तो फायदे क्या-क्या है? ब्रह्मचर्य टूट रहा है, छोड़ दो, सब कुछ छोड़के केवल एक मास तक वो इकिस दिन ब्रह्मचर्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं पढ़ना। अमृतवेला ठीक नहीं हो रहा है, अमृत वेले की किताब मिलती है, देखी है ना सब ने लिट्रेचर में, तबतक पढ़ो कि एक-एक शब्द याद ना हो जाए। हजारों बार पढ़ लो उस किताब को। तो फायदे - जो आदत मुझे आत्मसात करनी है, अंगीकार करनी है उसके फायदे क्या-क्या है?

8) नेक्स्ट प्वाइंट- जो आदतें मुझे नहीं करनी है, ऐसी परिस्थितियां निर्माण करो कि वो करना ही कठिन हो जाए। जिस आदत को छोड़ना है ऐसी परिस्थितियां निर्माण करो कि वो आदत को लाना ही मुश्किल हो जाए। जैसे - एक व्यक्ति को एडिक्शन था डिजिटल मोबाइल का, ईमेल चेक करने का, व्हाट्सएप, ये वो, बार-बार, बार-बार चेक करने का। उसने क्या किया - बहुत सारी विधियां हैं। वो आई-कॉन को ही हटा दिया वहां से, एक। सेटिंग में जाके डिसेबल कर लिया, जब ढूंढना रहा तो वापस सेटिंग में जाओ, वापस उसको एबल करो और फिर देखो, कठिन बना दिया प्रॉसेस को। या संसार में लोग क्या करते हैं- बीड़ी, सिगरेट ये सब पीने की जिनको आदत होती है, वो ऐसे सामने वो रखे ही ना उन चीजों को, इतना दूर रख दें कि वहां तक पहुंचना ही मुश्किल हो जाए। जिस आदत को हमको छोड़ना है उस आदत के लिए ऐसी व्यवस्था करो कि वो आदत के वशीभूत होना ही मुश्किल हो जाए। जैसे- एक स्टूडेंट है, वो सुबह पढ़ाई करता है। पढ़ाई करने के लिए उसको उठना है पर जैसे ही उठता है इतना आलस्य आता है, उसको लगता है और दस मिनट सो जाऊं, दस मिनट होते-होते आठ बज जाते हैं। उसने क्या किया- जब पांच बजे उसकी आंख खुलती है तो सबसे पहले वो बिस्तर है उसको बांध देता है। उसको एक तरफ एक कमरे में बिस्तर, वो खटिया है उसको खड़ा करके खटिया को उठा करके दूसरे कमरे में, अब कौन फिर से लगाएगा उसको। डिसेबल, डिसमेंटल कर दो सारी चीजें को, ताकि उसके वशीभूत होना ही मुश्किल हो जाए, कठिन हो जाए।

मनमोहनी दीदी कहती थी कि जब अमृतवेला उठो उसके बाद में, बिस्तर से उठो गए और अमृतवेला हो गया तो ऐसे देखो जैसे बिस्तर में नाग बैठा हुआ है कोबरा, अब वापस उसमें जाना नहीं है, अब काम हो गया उसका। अमृतवेला हुआ उसके बाद में सोना अर्थात् की कमाई चट। वो समय है- एक्सरसाइज का। वो समय है- चिंतन का। वो समय है- वॉक का। वो समय है- प्राणायाम का। वो समय है- खुद को फिट रखने का। वो समय है- वापस स्नान करने का अगर करते हैं तो, फिर से फ्रेश होने का, पर सोना नहीं बस। तो ऐसी व्यवस्था करो जिस आदत को हमें छोड़ना है कि वो होना ही मुश्किल हो जाए। जैसे कि किसी ने अपनी जीवन कहानी पांच अध्याय में लिखी है-

चैप्टर वन- मैं रास्ते से जा रहा था, एक गड्ढा था मैं गड्ढे में गिर गया, मैंने चिल्लाया मेरी गलती नहीं है। मैं गड्ढे से बाहर कभी निकला ही नहीं।
चैप्टर टू- मैं रास्ते से जा रहा था, मुझे पता था गड्ढा था पर मैंने ऐसा दिखाया कि गड्ढा है ही नहीं और मैं गड्ढे में गिर गया। मैंने कहा मेरी गलती नहीं है, मैं गड्ढे से बाहर कभी निकला ही नहीं।
चैप्टर थ्री- मैं रास्ते से जा रहा था, मुझे पता था वहां गड्ढा है पर मैं गिर गया क्योंकि आदत थी। और मैंने कहा गलती मेरी है और मैं तुरंत बाहर आ गया।
चैप्टर फोर- मैं रास्ते से जा रहा था, मैंने देखा गड्ढा है, मैं गड्ढे के बाजु से चला गया। मैं नहीं गिरा।
चैप्टर फाइव- मैंने रास्ता ही बदल दिया।

क्या कर देना है? रास्ता ही बदल दो। आज सुबह की अव्यक्त वाणी - किताब को जला दो, हिसाब-किताब खत्म। बंद। आज कहा ना मुरली के एंड में। रास्ता ही बदल दो। वो रास्ते से जाने से ये होता ना, उसका फोन आने के बाद, उसको फोन करने के बाद ये-ये भाव उत्पन्न होते हैं, स्विच ऑफ, ब्लॉक, हटा दो, डिलीट। माया ही नहीं।

9) नेक्स्ट प्वाइंट - जो आदत मैं डाल रहा हूं, अपने आप से संकल्प करो ये मैं अपने लिए कर रहा हूं, इससे मेरी उन्नति होगी। "I do it for myself" किसी और के लिए नहीं कर रहा हूं ये। मैं अपने लिए कर रहा हूं ये। कुछ नई कला, कुछ स्किल्स सीखनी है, मैं अपने लिए सीख रहा हूं। मेरे लिए, अपने लिए। ये बार-बार संकल्प लाना है। ये आदत मैं क्यों डाल रहा हूं अपने अंदर? मैं अपने लिए। चिंतन की आदत ही नहीं है, एकांत की आदत ही नहीं है, मौन की आदत ही नहीं है। बीच-बीच में मौन हो जाना। अपनी सेवाएं पूरी हुई, स्टॉप, निकल जाओ.. अपने अंदर भीतर की यात्रा। तो ये आदत है एक। और आदत के ये सारी बातें लानी पड़ेगी। मैं ये किस लिए कर रहा हूं? अपने लिए, मेरी उन्नति के लिए।

10) उसके बाद में लिखना। एक है संकल्प लिखा हुआ है, उससे कुछ नहीं फायदा। पर अपना संकल्प खुद लिखना - आज सारा दिन भर में मैं ज़रा भी टाइम वेस्ट नहीं करूंगा, ये लिखना अपनी हाथों से। लिखने में बहुत पॉवर है। अपने संकल्पों को अपने हाथ से लिखना और विस्तार से लिखना कि मैं अपना टाईम वेस्ट नहीं करूंगा। मैं ये चीज, मेरे लिए हानिकारक है मैं इस चीज को हाथ नहीं लगाऊंगा, देखूंगा भी नहीं, ये मैं अपने शरीर के अंदर नहीं डाल सकता, ये मेरा भोजन नहीं है, इससे मुझे नुकसान होता है। और जब शरीर बीमार पड़ता है तो सबकुछ खत्म हो जाता है। ना पुरुषार्थ होता है, ना अमृतवेला होता है, बीमारियां, दवाइयां, कमज़ोरी। जब स्वस्थ है तभी अशरीरी होना इतना मुश्किल है, तो जब बीमार हो जाते है तो शरीर से आकर्षण और बढ़ जाता है, फिर तो और कुछ-कुछ खाने की इच्छा होती है या तो इच्छा ही नहीं होती है, दोनों ही चीज़ है। बिना स्वस्थ शरीर के अध्यात्म असफल है, इसलिए लिखना।

जिन्होंने डायरी लिखना चालू नहीं किया है वो आज से लिखना चालू करेंगे, लिखना कल से ही चाहिए था, पर आज से चालू करेंगे। हर दिन की अपनी दिनचर्या लिखना, चार्ट भी उसमें ही लिख देना और जो करना है उस संकल्प को उसमें लिखते जाना। अपने-आप से बातें करना कि मुझे कैसे भी करके, ये मेरा स्वभाव बन जाए। अभी जो नीचे शांतिवन में मुरली सुनी, देही अभिमानी नैचुरल... ब्रह्मा का उदहारण.. उसके लिए कोई अभ्यास किया तुमने, देहभाम के लिए? नहीं, वो अपने आप नैचुरल हो गया। वैसे ही ये सारे प्रॉसेस एकदम नैचुरल हो जाए। और ये एक दिन में नहीं होगा, टाईम लगता है। धीरे-धीरे... धीरे-धीरे.. धीरे-धीरे होगा। एक दिन में कोई कुछ नहीं जीतता है।

हमें याद है सबसे पहले हमने दौड़ चालू की थी पोलो गराउंड, पहला ही चक्कर लगाया इतना थक गए, एक ही राउंड में। वो पहले तो आधा, फिर एक, फिर धीर-धीरे सोचा नहीं अभी हो सकता है, फिर वहां से नक्की पर आए। नक्की को कई बार.. और फिर एक दिन ऊपर से नीचे तक आबू रोड, हॉफ मैराथन। ऐसे कई बार। तब सोचते थे अच्छा ऐसा भी हो सकता है जो मुरली में आता है - "ऊपर से नीचे तक पैदल ही चले जाओ अशरीर होकर, तुमको पता ही नहीं चलेगा!" इसका क्या अनुभव है, ये अनुभव हमको करना था। इसलिए सोचा कि ये हमें करना है पर चालू बेबी स्टेप्स। 200 मीटर... 400 मीटर... 5 किलोमीटर.. फिर per day 5 किलोमीटर रनिंग। फिर धीर-धीरे 7 किलोमीटर, तो कभी 10 किलोमीटर, कभी 15 कि.मी., कभी नक्की के ग्यारह राउंड.. हाफ मैराथन। कभी ज्ञान सरोवर तक रनिंग, उधर से इधर, कभी इधर से उधर रनिंग और फिर सीधा नीचे तक कई बार... कई बार... और टाईम फिर धीर-धीरे धीरे-धीरे कम करना है। अपने ही खुद के रिकॉर्ड तोड़ने हैं, किसी और के नहीं तोड़ने है, ये कॉम्पिटिशन किसी और से नहीं है। ये स्वयं की यात्रा है, solo journey है। तो कोई भी नई आदत चाहे वो शरीर की हो या मन की हो धीर... धीरे... धीरे... तो लिखना है।

11) नेक्स्ट स्टेप- लिंक। लिंक करो, क्या कहेंगे? लिंक करना अर्थात् जो पहले से कर रहे हैं उन्हीं आदतों के साथ ये नई आदत जोड़ देना है। जैसे उस भाई का उदहारण दिया - वो एक्सरसाइज कब करता था, पुशअप? बाथरूम स्नान करने जाने से पहले, उसने स्वयं को उस एक्सरसाइज के साथ जोड़ दिया तो वो सहज हो गया। उसी तरह मन की जो ड्रिल हैं बहुत सारी, हम उसको अलग-अलग चीजों के साथ लिंक कर देंगे तो वो सहज होगी, नहीं तो एक दिन होगा और बाद में हम भूल जायेंगे, वो होती नहीं है। लिंक करना है नई आदतों को, जो रूटीन एक्टिविटी है उसके साथ और थोड़ी-थोड़ी, बहुत नहीं, थोड़ा सा जोड़ देना है बस।

जैसे संकल्प करेंगे कि जैसे ही मैं भोजन करने बैठूंगा तो मैं ये संकल्प करूंगा कि मैं ये सृष्टि चक्र के कल्प-वृक्ष के नीचे हूं, वहां बैठ के भोजन कर रहा हूं और मुझे मौन में भोजन करना है। केवल ये संकल्प करूंगा कि मौन में करना है तो नहीं हो पायेगा परन्तु मन को बिजी कर दिया, मन में नए-नए विचार लाए कि मैं कल्प-वृक्ष के नीचे बैठ के भोजन कर रहा हूं, एक-एक निवाला मेरे शरीर में जा रहा है, वो एक-एक उसकी शक्ति विश्व की सारी आत्माओं तक पहुंच रही है। आज की मुरली - तुम्हें प्रकृति को पावन करना है, आत्माओं को पावन करना है, ये विश्व नया करना है, सारी आत्माएं नई हो जाए ये तुम्हारा काम है इसके लिए तुम्हारा उमंग उत्साह है। माइंड को बिज़ी कर देना, पहले शरीर पर काम करना है फिर मन पर। पहले स्थूल आदतों पर काम करना है, शरीर की आदतों पर काम हो गया फिर वही प्रिंसिपल मन की आदतों पर लगाना है। आपने आप होगा धीरे-धीरे। अभी एक आदत है अमृतवेला हो गया कि सीधा गए बिस्तर पर सोने के लिए। सोने के लिए नहीं जाना है, सीधा वॉकिंग के लिए निकल जाओ, लॉन्ग वॉक। सन्डे फ्री है, वेस्ट चला जाता है घर पे, उसी दिन प्लैन करना है कि मुझे इसको वेस्ट नहीं करना है, कुछ तो क्रिएटिव करना है। बुक ले लो और बाहर चले जाओ गार्डेन में, जबतक वो किताब पढ़ के नहीं हो जाती है या particular pages, 400 pages पढ़कर ही वापस आएंगे। सुबह निकल गए बारह-एक बजे वापस। New habit patters. हमें नई पैटर्न्स क्रिएट करने हैं और एक दिन में नहीं होगा। एक दिन में कोई साइकिल चलाना नहीं सीखता, एक दिन में गाड़ी नहीं सीखता है, एक दिन में म्यूज़िक नहीं सीखता है। जो ग्रुप डांस होते हैं एक दिन में सीखते हैं क्या वो लोग? कितनी प्रैक्टिस करते हैं दिन-रात तब होता है, sync होना चाहिए। एक की मूवमेंट दूसरे की मूवमेंट के साथ sync हो।

12) नेक्स्ट- वो आदत ना लाने के क्या-क्या नुकसान है? उसकी लिस्ट निकालो। अमृतवेला रोज़ मिस हो रहा है, क्या नुकसान है? ब्रह्मचर्य रोज़ खंडित हो रहा है, क्या नुकसान है? ना चाहते हुए भी मन बार-बार फिल्म, टी.वी, सीरियल्स, सोशल मीडिया, इसी में सारा टाईम जा रहा है। चिंतन कब करेंगे, मनन कब करेंगे? मुरलियाँ इतनी सारी पड़ी हुई है, क्या पढ़ी हमने? पढ़ी ही नहीं है। कितना सारा काम बाकी है। टेंशन चाहिए पुरुषार्थ के लिए थोड़ा सा। लेकिन हल्का सा, ज्यादा नहीं, पर चाहिए निरंतर। नुकसान क्या-क्या है आदत ना होने का? सारे लोग एक्सरसाइज का संकल्प करते हैं। पहले दिन करते हैं, दूसरे दिन बैठ गए। मेडिटेशन की बाबा ने आज की मुरली में कहा है- क्वालिटी। क्वालिटी पर काम करो। मनसा की क्वालिटी बढ़ाओ तो आपने आप क्वालिटी सेवा की बढ़ेगी। क्वालिटी पर काम करना है।

13) नेक्स्ट प्वाइंट- आदतों को साकार करने के लिए अगर कोई संकल्प लिया, हर एक अपनी इक्किस दिन की भट्ठी करेगा। और उस भट्ठी में यदि एक दिन मिस हो गया तो एकदम दिलशिकस्त भी नहीं हो जाना है, फिर से चालु करो। एकदम उदास भी नहीं हो जाना है। अगर कभी गिर गए फिर से उठो। खुद को खुद ही सांत्वना दो, इसको इंग्लिश में कहते हैं cheer leader. Cheer leader खुद के खुद ही बनो। चीयर लीडर होते है ना, come on.. come on.. come on.. करते रहते हैं वो। ऑडियंस में होते हैं ना, देख रहे हैं कि सामने वाला दु:खी हो रहा है, डर लग रहा है उसको, उसको थोड़ा सा सांत्वना, चीयर-अप करते हैं। अपने चीयर लीडर खुद ही बनना है, गिर गए फिर से उठो। एक आदत है - हमने सोचा कि ये आदत दस मिनट रोज ये करना है। एक दिन नहीं हुआ, आलस्य आ गया, कैसे भी कर के और फिर सोओ। एक ड्रिल है मधुबन का चक्कर लगाना मन से, रोज़ करना है- ये संकल्प दे दिया हमने माइंड को। कब करना है? जैसे ही कार में बैठते हैं कार चालु तो मन में, मन इधर लेके आओ। कार ड्राइविंग को उस ड्रिल के साथ जोड़ दिया कि हर बार ये करेंगे तो वो आयेगा। ऐसी ही चीजों को एक-दूसरे के साथ जोड़ देना है ताकि सहज होते रहे। और अगर कभी मिस हो गया तो क्या कहा- दिलशिकस्त, उदास नहीं होना है फिर से खड़े हो जाना है।

14) नेक्स्ट मैथड- इसको इंग्लिश में कहते हैं- Swish.
एक टेक्निक होती है जिसको कहा जाता है न्यूरो लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग, N.L.P. कितनों ने सुना है पता नहीं पर इसमें एक बहुत अच्छी एक टेक्निक है। कोई भी आदत, आदतों के ऊपर जो काम कर रहे हैं खास कर उनको ये सिखाई जाती है इसमें दो-तीन स्टेप्स है:-

A) पहली स्टेप- जैसे कोई व्यक्ति है जो सिगरेट पीता है, उसे सिगरेट से छूटना है तो वो क्या इमैजिन करेगा? मन में एक संकल्पना करेगा, एक visualisation - मैं एक सिगरेट पी रहा हूं। वो अपने आप को पीते हुए देखेगा, ये फर्स्ट स्टेप। जो आदत हमें छोड़नी है और जो हम कर रहे हैं उस आदत को करते हुए पहले देखना- ये एक।

B) फिर नेक्स्ट- फिर वो अपनी सिगरेट लेगा। फिर नीचे फेकेगा, पैरों के नीचे उसको कुचल देगा, ये भी देखना है मन में, वो ये देखेगा।

C) थर्ड- वो ये देख रहा है कि वो प्राणायाम कर रहा है। उसके स्वांस बहुत freely और बहुत अच्छे से हो रहा है। ये तीन स्टेप्स उसने देखें।

इस प्रोग्रामिंग में क्या देखना है- एक आदत है। जैसे आदत है - चिंतन ना करने की। तो उसमें देखो अपने आप को हम चिंतन नहीं कर रहे हैं, व्यर्थ में ही बुद्धि भटक रही है। कोई इंटरनेट पे बैठ गया तो वो एक घंटा बैठा ही रहता है, surfing, waste! अब पहले first step visualisation में- जो गलत है वो गलत करते हुए खुद को देखना। फिर उस गलत से सेकंड स्टेप में आना कि ये मेरे लिए घातक है, मैं इसे बंद कर रहा हूं, उसे बंद करते हुए देखना। और तीसरा स्टेप है- जो मुझे करना है, वो करते हुए मैं देख रहा हूं। जैसे अमृतवेला नहीं उठ पा रहे हैं तो अपने आप को देखो- चार बज गया मैं सो रहा हूं। आंख खुली देखा दस मिनट बाकी है, अभी मैं और सोऊंगा। यहां देखा.. थोड़ी देर रूको उस visualisation में। अब नेक्स्ट स्टेप - नहीं, अब मुझे उठना है.. रजाई को फेंकते हुए देखो, स्नान करते हुए देखो। एंड थर्ड स्टेप- मैं बाबा के प्यार में मग्न हूं। आज की मुरली में जो पुरुषार्थ है- लवलीन। "मैं और मेरा बाबा" इस एक ही संकल्प में खो गया हूं। थ्री स्टेप्स, इसको कहते हैं- स्विस टेक्निक, एन.एल.पी. न्यूरो लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग। माइंड की कोई भी प्रोग्रामिंग करनी हो, कोई भी आदत.. ये सिर्फ बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू वाली आदत नहीं है जिनको इससे छूटना है। किसी भी आदत से यदि छूटना है तो इस टेक्निक को लाना है। जो हम कर रहे हैं पहले- उसको देखना। चाहे वो कुछ भी हो, कोई भी आदत हो।

15) उसके बाद में नेक्स्ट- जो आदत हम संकल्प करेंगे वो दूसरों को बता दो। दूसरों को बता दो कल से मेरा तीन बजे अमृतवेला है। अब थोड़ा-सा स्टेट्स की बात आ गई। और किनको बताना है जो ऑलरेडी बैठते हैं तीन बजे, वो देखेंगे दुसरे दिन, तुम कहां थे पूछेंगे, आप क्या जवाब देंगे? इसलिए थोड़ा-सा जो भी संकल्प करो, जो भी रिजॉल्यूशन करो, जो भी आदत डालो, क्या करनी है उसको? दो-तीन लोगों को बता देना है जो अपने मित्र-संबंधी हैं। ये बहुत अच्छी चीज है, हर बुक में बताई जाती है ये टेक्निक। अनाउंस करदो उसको पब्लिकली। टेंशन रहेगा इससे, अपने आप वो आदत पड़ जायेगी।

16) नई आदत अर्थात् एक एक्सपेरिमेंट है- प्रयोग। और प्रयोग फेल भी होते हैं, जरूरी नहीं है हर प्रयोग सफल ही होगा। हम प्रयोग तो करके देखें - ये हम भोजन खा रहे हैं, let me change, मैं ये खा के देखता हूं, क्या होता है? तीन बार खा रहा हूं, एक बार खा के देखता हूं क्या होता है? ये खा रहा हूं, ये छोड़ के ये खा के देखता हूं क्या होता है? शरीर पर प्रभाव। रोज लेट भोजन करता हूं। छे बजे करलो, देखो अमृतवेले पर क्या प्रभाव है? कभी छोड़ ही दो रात का, देखो अमृतवेले पर क्या प्रभाव है? अमृतवेला शक्तिशाली अर्थात् दो चीजें तो must है- रात्रि भोजन त्याग और जल्दी सोना। जो जितना जल्दी सो जायेगा उतना जल्दी अच्छे से उठ पायेगा। ये दो चीजें हम छोड़ देते हैं और बाकी सबकुछ करते रहते हैं। संकल्प करते हैं परन्तु संकल्प साकार नहीं होते, संकल्प साकार होने के लिए प्रैक्टिकल प्लैनिंग चाहिए, उसके सिवा नहीं होगा। पेट खाली चाहिए पूरा। शक्तिशाली आत्मा शक्तिशाली बने और शरीर से बाहर निकल जाए। ये बहुत हल्का भोजन रात का, ना करें तो बहुत ही अच्छा। परन्तु फिर कहा कि एक दिन में कुछ भी नहीं होगा.. धीरे-धीरे...धीरे-धीरे....धीरे-धीरे.. बेबी स्टेप्स। जो नौ बजे खाते हैं पुरुषार्थ करें आठ बजे पूरा करें, जो आठ बजे खाते हैं पुरुषार्थ करें साढ़े सात बजे पूरा कर लें। जो साढ़े सात बजे हैं वो पुरुषार्थ करें छे-पांच। और छे-पांच सूर्यास्त से पहले ही योगियों का भोजन हो जाए, उसके बाद में कुछ नहीं, खाना ना पीना। जैन धर्म में सिद्धांत है उनके, प्रिंसिपल है- अनुव्रत। पानी को भी नहीं देखना है, भोजन को भी नहीं देखना, मुख बंद। उधर सूर्य अस्त हुआ, इधर मुंह बंद हुआ। कुछ भी नहीं। और फिर योग की अवस्था देखो अमृतवेला बैठे और अशरीरी, ना कोई नींद, ना कोई झपकी, कुछ नहीं! जैसे ज्वालामुखी, जैसे ये हीटर। हीटर भव!

17) सारे temptations को हटा देना है। जैसे किसी को चॉकलेट खाने का टेंपटेशंस है, अपने कमरे से चॉकलेट ही हटा दो, डिब्बा ही हटा दो, वो सबसे बेस्ट मैथड है। जो-जो टेंपटेशंस रखे हुए हैं उसको हटाने पड़ेंगे। नहीं तो वो टेंपटेशंस सामने आते ही खाने की इच्छा होगी या करने की इच्छा होगी। जैसे उस भाई का बताया- उस बेड को ही हटा दिया। टेंपटेशंस जितने हैं वो सारे हटाने पड़ेंगे। अगर उस आदत में वो टेंपटेशंस बाधा है तो। कोई व्यक्ति ही बाधा है, उसका नंबर हटा दो, ब्लॉक। कोई संबंध ही बाधा है, वो संबंध जीरो कम्युनिकेशन, बाय-बाय। टेंपटेशंस सारे हटा दो। प्रलोभन। क्योंकि वो आते ही.. इच्छा नहीं है परन्तु फिर भी वो दिख गया.. out of sight is out of mind. एक इंग्लिश में कहावत है- आउट ऑफ साईट- जो सामने नहीं है वो मन में नहीं है फिर, आंखों के सामने से सारे टेंपटेशंस हटा दो। बच्चा मां से कहता है- मां मैं टी.वी देखूं? मां कहती है - हां, देखना पर टी.वी ऑन मत करना।

18) नेक्स्ट- अपने आप को रिवॉर्ड देना। सफल हो गए सात दिन, तीन दिन भी कर लिया कोई चीज़, अब अपने आप को रिवॉर्ड दो - बहुत अच्छा... बहुत बढ़िया... बहुत अच्छा काम किया तुमने। फिर अब आगे और चार दिन करेंगे, सात दिन हो गए फिर रिवॉर्ड दो- वेरी गुड। एक दिन भी अमृतवेला मिस नहीं, वेरी गुड। रोज़ की मुरली का रोज चिंतन किया, केवल चिंतन नहीं किया, याद भी रखा उसको जैसे की वैसे। एक शब्द इधर-उधर नहीं हुआ, अमृत है वो। अपने आपको को pat on your back. बहुत अच्छा... बहुत अच्छा। एक्सरसाइज एक दिन भी मिस नहीं की, बहुत अच्छा। वॉकिंग एक दिन भी मिस नहीं की, बहुत अच्छा। नुमाशाम का योग एक दिन भी मिस नहीं किया, नुमाशाम के योग की तैयारी सुबह छे बजे से ही चालु कर दी, consciousness है कि मुझे मिस नहीं करना है। ये चीज नहीं खानी है, तीन दिन से बिलकुल हाथ ही नहीं लगाया है वो चीज को, सफल। सफल होकर ही उठना है तपस्या से। ये सारी तपस्याएं हैं, छोटी-छोटी तपस्या। बड़ी लड़ाइयां छोटी-छोटी लड़ाइयां जीतकर जीती जाती है। और हमारी लड़ाई अपने आप से है। पुरूषार्थ अर्थात् विद्रोह खुद के संस्कारों से। परन्तु धीर-धीरे..धीरे-धीरे। तो रिवॉर्ड करना है, अपने आप को रिवॉर्ड देना है। पर वो उल्टा नहीं करना है इसे।

जैसे एक व्यक्ति है, उसे रोज दारू पीने की आदत है और वो रोज़ संकल्प करता है आज नहीं पिऊंगा, दिन भर संकल्प करता है। पर जैसे ही शाम आती है सारे संकल्प खो जाते हैं, बस मधुशाला। दिन भर तो बहुत संकल्प करते हैं बिलकुल नहीं...बिलकुल नहीं....बिलकुल नहीं.... पर पता नहीं शाम आते ही क्या हो जाता है कि कदम अपने आप बढ़ने लगते हैं। एक बार सोचता है कि ये यहां बाहर है मैं इसके सामने से गुजर जाऊंगा पर उधर देखूंगा नहीं, बिलकुल नहीं। आज कुछ भी हो जाए मर जाऊंगा... जाता है... जाता है... जाता है... और क्रॉस कर जाता है और अपने आप को कहता है- वाह! आज मैं जीत गया। और इसी खुशी में आज हो जाए! Reward yourself. पर ये उल्टा नहीं करना है। जैसे एक व्यक्ति लेता है ना दारू की बोतल, कहता है- तुम्हारी वजह से एक-एक बोतल लेता है घर की, कहता है- तुम्हारी वजह से मेरी पत्नी मुझसे नाराज है, फोड़ दिया। दूसरी बोतल लेता है, कहता है तुम्हारे वजह से मेरे बेटे मेरे से बात नहीं करते मेरे बच्चे, फोड़ दिया बोतल को। तीसरी बोतल लिया तुम्हारी वजह से मुझे जॉब से निकाल दिया गया, उसको भी फोड़ देता है। चौथी बोतल लेता है, वह भरी हुई है, कहता है- तुम निर्दोष हो, उसको रख देता है। मन बहुत चालबाज़ है, बहुत cunning है। इसके लिए मन के साथ जबरजस्ती किया, सीधा उसको कहा एक संकल्प दे दिया, तो वो धड़ाम से गिरा देता है। बहुत चुपके से, बहुत धीरे से, पीछे दरवाजे से, धीरे से उसके ऊपर आक्रमण करना है समझते हुए।

19) नेक्स्ट- स्मरण। अपनी प्रतिज्ञा, अपना रिसॉल्यूशन, अपना प्रण, रोज-रोज अमृतवेला क्या करना है? स्मरण करना है। याद दिलाओ अपने आपको कि मेरा जीवन ही योगी जीवन है, तपस्वी जीवन है, ब्रह्मचारी जीवन है, संयम वाला जीवन है, स्वराज्य अधिकारी वाला जीवन है, इंद्रीयजीत हूं मैं, मेरी इंद्रियां चलायमान नहीं हो सकती। स्वयं को जो संकल्प लिया है उसका क्या करना है- स्मरण।

20) नेक्स्ट- tracker। एक ट्रैकर बनाओ। ट्रैकर अर्थात हैबिट ट्रैकर इसे कहा जाता है। एक हफ्ते के बाद अपने आप को review करो कि कितना दिन तक ये रहा ठीक। लॉक बनाना है, ट्रैक चार्ट जिसको कहेंगे। पोतामेल.. जैसे व्यापारी लोग देखते हैं एक हफ्ते में क्या रहा? मंडे.. ट्यूजडे... वेनस्डे.... थर्सडे... फ्राइडे...। मंडे को क्या रहा, ट्यूजडे को क्या रहा, थर्सडे को? और इस दिन नहीं हो पाय। जैसे किसी ने संकल्प किया चाहे मुझे कुछ भी हो जाए रोना ही नहीं है। ये रोने की आदत है भयंकर। चाहे कुछ भी हो जाए यह आंसू चालू हो जाते हैं। किसी ने कुछ कहा बुरा लगना, रुसना, रूठना, नाराज होना। यह मन में होता है और बाहर शरीर की बीमारी है सांस फूलने लगता है। यह सब करते हैं ना attention seeking behaviour. आते रहते हैं हॉस्पिटल में। हर हफ्ते में तो 1-2 तो आते ही रहते हैं जिसके साथ तीन चार लोग रहते हैं। वो उसके तरफ ध्यान नहीं देते हैं इसलिए वह सब चालू रहता है। और उसकी वजह से सबका ध्यान जाता है। हर 15-20 दिन में एक दो पर्सेंट आता है जो poisoning, पर वह डुप्लीकेट poisoning होता होगा, कुछ नहीं होता है उसको। पर उसकी वजह से वह सारे मां-बाप, बहन-भाई सारे आ जाते हैं उसको देखने के लिए क्योंकि उनकी तरह कोई अटेंशन से नहीं दे रहा है इसलिए ये टेक्निक करते हैं सारे। और खाते भी बड़ी हिसाब से है - जहर भी, पुरा नहीं थोड़ा सा, ताकि काम भी हो जाए और वह अटेंशन सीकिंग भी हो जाए।

तो स्मरण और ट्रेक, रिकॉर्ड रखना है अपने आदतों का। जैसे एक भाई ने हमें एक रिकॉर्ड दिखाया था उसमें उसने कहा था यह मेरा ब्रह्मचर्य का चार्ट है। यह पूरा स्वप्न है मेरे, इतनी बार स्वप्न में ब्रह्मचर्य भंग हुआ, आगे क्या करूं? कितना sincerely चार्ट रखा था उसने। एक कुमार ने। बहुत तीव्र पुरुषार्थी कुमार, उसके बाद में भी यह चार्ट रखा और ऐसे-ऐसे बताया। एक-एक दिन क्या क्या स्वप्न में देखा वह भी बताया। कितनी सजग है आत्माएं कुछ-कुछ स्वयं के प्रति। तो ट्रैक रखना है।

21) नेक्स्ट- 'बट' शब्द का प्रयोग। 'परंतु' - यह क्या होता है? यह साइकोलॉजी में कहा जाता है कि हम कुछ करना चाहते हैं- यह मैं नहीं कर सकता, परंतु मैं कर भी तो सकता हूं। यह शब्द लाना है। क्या वाक्य लाना है- ये है बहुत कठिन पर मैं कोशिश तो कर सकता हूं। 'बट'.. परंतु.. किसी से नहीं हुआ बट मुझसे हो सकता है शायद, मुझे ऐसा लग रहा है। 'बट', 'बट' शब्दों को लाना है आदत में। शायद मैं इसे करूंगा। माना है मुश्किल, माना मुश्किल है आज तक नहीं हुआ but I can do it. But somebody has done it. किसी ने तो करा, मैं भी तो कर सकता हूं। बट।

22) वरदान। जो आदत हम चाहते हैं मेरा जीवन बन जाए, जो स्वाभाव, जो संस्कार मैं अपना बनाना चाहता हूं, बाबा से सुबह-सुबह वरदान ले लो उस बात के लिए। जैसे किसी के स्वभाव में अहंकार बहुत भरा हुआ है और उसे खुद भी ये realise हो गया है कि मेरे में अहंकार बहुत है, यह बहुत बड़ी प्राप्ति है वास्तव में। वो भगवान से ये वरदान ले ले - निरहंकारी भव। बाल ब्रह्मचारी भव। नेस्टिक ब्रह्माचारी भवा, नेस्टिक अर्थात जब से आंख खुली - आंख बंद होने तक, जन्म से बंद होने तक जो ब्रह्मचारी होते हैं, उन्हें नेस्टिक ब्रह्मचारी कहा जाता है। उनमें अद्भुत सा पावर होता है, शक्ति होती है, बोल साधारण, दिखने में साधारण है लेकिन शब्द-शब्द भेदी है, ह्रदय भेदी, ना चाहते हुए भी सुनने वालों के ह्रदय को भेद देते हैं, ऐसी पावर उनमें होती है क्योंकि उनमें प्योरिटी के प्रकंपन होते हैं। तो बाबा से अमृतवेला जो आदत हम बनाना चाहते हैं इस नए युग में, इस नए साल में, जो आदत, जो संस्कार, जो स्वभाव, जो हैबिट, पैटर्न, उसके लिए वरदान ले लेना है।

तो ऐसी ये टोटल कितनी बातें हुई? बाईस। एक बार फिर से रिवाइज करते हैं - आदत और प्रैक्टिकल जीवन- संकल्प और कर्म को लाने का ये एक ब्रिज है।

1) जो रोल मॉडल है उसका संग करना, ऐसे लोग जो परफेक्ट है उसमें, उन्हीं का साथ करना।

2) छोटे छोटे कदम। थोड़ा-थोड़ा करो, थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ो। योग का चार्ट एकदम से 4 घंटा नहीं हो जाएगा। धीरे-धीरे, आधा घंटा.. 40 मिनट.. एक घंटा। हम बैठके योग की बात कर रहे हैं। चलता-फिरता योग नहीं। योगी अर्थात्.. तीव्र पुरुषार्थी की एक परिभाषा है- बैठ के कम से कम 4 घंटा योग हर दिन, बहुत बड़ी बात है ये। इतनी सिंलप नहीं है और उसमें बहुत सारी सेवाएं चल रही है, उसमें इतनी सारी व्यस्तता है, इतने सारे लोगों के साथ कॉन्टैक्ट हो रहा है, उसके बावजूद भी 4 घंटा बैठ के।

3) टुकड़े-टुकड़े कर देना है। एकदम बड़ा नहीं करना है, 40 मिनट का है तो उसको डिवाइड कर दो टुकड़े- टुकड़े में विभाजित कर दो, सुबह थोड़ा सा, पर करना पूरा है।

4) डेली करना है उस चीज को। क्या करना है? हर दिन करना है। Consistency is the key. छोड़ना नहीं है उसको। करते जाना है.... करते जाना है....करते जाना है, भले आज करने का आलस आ रहा है पर 5 मिनट करो, पर करो ब्रेक नहीं होना चाहिए। प्रैक्टिस में ब्रेक नहीं होना चाहिए। हर दिन प्रैक्टिस करते रहो।

5) आसान होना चाहिए। वो एकदम कठिन वाला काम मन को नहीं देना है, मन तुरंत रिजेक्ट कर देता है। एकदम आसान, जो सिंपल है वहां से चालू करो। डांस होता है ना, पहले पहले सिंपल स्टेप सिखाई जाती है। एकदम ही उनको कठिन स्टेप सिखा देंगे तो पहले दिन ही वो छोड़ देगा। एक ही डांस में कम से कम 100 स्टेप्स होती है। और यहां किसी को कुछ भी नहीं आता है, अरे पहले एक स्टेप तो सीखो। तब कहीं उस डांस पर परफॉम करना। छोटी-छोटी स्टेप्स, जैसे डांस है वैसे ये है। पुरुषार्थ भी एक डांस ही है।

6) एक ऐसा दोस्त जो हमारी मदद करें, एक ऐसा दोस्त जो हमारे साथ साथ चलें, एक ऐसा दोस्त जो हम गिर गए तो हमें फिर से उठाए।

7) उसके बाद में फायदे क्या-क्या है, ये जो आदत हैं इसके क्या-क्या फायदे हैं?

8) ऐसी परिस्थिति बनाओ कि जिसमें जो छोड़ना है वो बिल्कुल जो नहीं करना है वह करना ही असंभव हो जाए। वो रास्ते से जाओ ही नहीं, जैसे वहां गए ही नहीं, अपने आप ही वो छूट गया गड्ढे में गिरना। पता है, उसको फोन करो तो ये इस तरह की बातें होती है और उस तरह की बातों से मेरा मन irritate हो जाता है। फोन ही बंद, no contact, zero communication.

9) यह मैं अपने लिए कर रहा हूं, किसी और के लिए नहीं।

10) लिखना। क्या करना है? लिखना, उसको लिखना है अपने हाथों से लिखना, रेडिमेड वाला नहीं, अपने हाथों से लिखना है।

11) लिंक करना है, कोई चीज़ से उसको जोड़ दो, तो वो आसान हो जाएगा, नहीं तो वो बस थ्योरी रह जाएगी।

12) उसे ना करने से होने वाले नुकसान।

13) अगर वह मिस भी हो गया कभी, तो भी ठीक है। अपने आप को कभी-कभी माफ करना होता है। उठ जाओ फिर चालू करो।

14) एक टेक्निक बताई 3 स्टेप की - एन.एल.पी. टेक्निक। क्या बताया उसमें- पहले वो करते हुए देखो, ठीक है फिर उसको वहां से ही स्विच करो मन में विश्वलाइजेशन, कि अब ये मैं नहीं करूंगा। उसको फेंकते हुए देखो, खत्म करते हुए नष्ट करते हुए देखो। और फिर जो करना है, वो करते हुए देखो। विज़्वलाइज करना है अपने मन के सामने ये चित्र।

15) दूसरों को बताओ। दूसरों को बता दो कि भाई मैं.. कल से मेरा यह है। दूसरों को बता दो, कल आपने मुझे अगर सोते हुए देखा ना पानी फेंक देना चेहरे पर।

इमैनुएल कैंट था, उसकी आदत थी 3:00 बजे उठने की, जर्मन philosopher. उसने अपने नौकर से बोला था कि 3:00 बजे के 1 मिनट भी ज्यादा सोया ना, सीधा bucket लाके मेरे मुंह में डाल देना पानी की। तो एक बार उसने किया, गुस्सा आया.. उसको इतना गुस्सा आया... इतना गुस्सा आया कि तुम कौन हो मुझे उठाने वाले, तुम नौकर हो। उसने कहा- आपने ही तो कहा था। तो माफ।

16) Experiment. प्रयोग करके देखें।

17) Temptation. जो भी है वो हटा दो कमरे से। वह चीज़ खाने की चीज है, हमने ये सोची है कि हम ये नहीं खायेंगे और वोही कमरे में रखी हुई है, या हमने ही छुपा कर रखी है कहीं पे, और मुझे पता है वो कहां है।

18) Reward. खुद को रिवॉर्ड दो। वैसा वाला रिकॉर्ड नहीं जैसा उसने किया। खुद ही कोई क्या रिवॉर्ड देंगे- थोड़ा सा आज रिलैक्स हो जाते हैं, चलो आज थोड़ा दो घंटा दोपहर में अच्छे से सो जाएंगे। थोड़ा सा अपने आपको रिवॉर्ड दे दिया।

19) अमृतवेला स्मरण कराना अपनी आदत को। स्वयं को ही याद दिलाओ कि तुम बहुत ही शक्तिशाली हो, तुम ये कर सकते हो। अपनी ये आदत तुमने ये प्रतिज्ञा की थी तुम कैसे भूल गए।

20) नेक्स्ट क्या करना है? रिकार्ड रखना है। ट्रैक रिकार्ड रखना है। Apps भी आते हैं बहुत सारे habit trackers के।

21) "But" किसी से नहीं हुआ पर मैं कर सकता हूं। परंतु मुझसे शायद हो जाएगा। आज की मुरली में है ना उन्हें क्या पता वह कहते हैं भगवान ने तुमको आशीर्वाद मिला हैं। अरे परमात्मा के आशीर्वाद से हम पल रहे हैं तुमको क्या पता, तुम को तो पता ही नहीं है हम कौन हैं? हम परमात्मा आशिर्वादों से हम पल रहे हैं। तुम्हें क्या पता हम कौन है इसीलिए जब परमात्मा शक्तियां मेरे साथ चल रही है तो नथिंग इस इंपॉसिबल। दादी जानकी जी पर किताब लिखी एक विदेश के महिला ने - Service of century. उसके प्रस्तावना में लिखा है कि यह एक महिला, एक अनपढ़ महिला जिसको पढ़ना नहीं आता है अगर लंदन में अपना घर बना सकती है तो 'वेल नथिंग इस इंपॉसिबल। जब भारत की एक महिला जिसको पढ़ना लिखना नहीं आता है वह लंदन में घर बना सकती है परमानेंट तो असंभव क्या है इस संसार में।

22) बाबा से अमृतवेला आशीर्वाद लेना है, देखना है कि मैंने वह कर दिखाया।

तो सारी यह कितनी बातें थी - 22। तो जो भी संकल्प करो, संकल्प करने में उत्साह बहुत है, पर संकल्प को समझने में भी उत्साह हो। आदतों को तोड़ने में उत्साह बहुत है पर आदतों को समझना है। समझ के साथ वह अपने आप टूट जाएगी, वो अपने आप हमारा जीवन बन जायेगी। तो सभी स्थिर.... ओम शांति। एक मिनट अपने ही मन में ये सारे प्वाइंट्स रिवाइज़ कर लेंगे....

ओम शांति।