16. Murli Revision - Bk Dr. Sachin - 16-01-22


ओम शांति।

अंग्रेजी के महान साहित्यकार ओ हेनरी. का लिखा एक वृतांत है - 'The Gift of Magi'. 1905 में लिखी ये कहानी। एक युगल है - जिम और डैला। और दोनो को आपस में बहुत स्नेह है। वे गरीब हैं। क्रिसमस अभी आने वाला है, बस एक ही दिन बाकी है। और दोनो चाहते हैं कि एक दूसरे को कोई ना कोई सौगात दें। परंतु आर्थिक परिस्थिति गंभीर है। वो जो डैला होती है, सोचती है मैं इसे क्या दूं? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है! पैसे ही नहीं है! और उसके बाल बहुत लंबे होते हैं और बहुत खूबसूरत.. तो वो जाती है hair dresser के पास, और अपने बालों को बेचती है बीस डॉलर में। और उसका जो पति है, उसके लिए उसकी जो घड़ी है, वो घड़ी की चैन या कवर जो उस जमाने में यहां कमर में लटकाई जाती थी, तो वो 21 डॉलर की वो वॉच चैन खरीदती है। और उसका जो पति है वो भी उसके लिए गिफ्ट लेता है। उसके पास भी कुछ नहीं है। तो वो अपनी घड़ी बेच देता है और अपने पत्नी के बालों के लिए एक बहुत अच्छी कंघी सजावट वाली लेता है। वो उसके लिए गोल्डन चैन लेती है और वो उसके लिए एक ऐसी डेकोरेटेड कंघी! और दोनों एक दूसरे के सामने आते हैं क्रिसमस डे में। वो उसे अपना गिफ्ट दिखाती है, वो उसे अपना गिफ्ट दिखाता है। उसने कंघी लाई है पर उसके पास बाल ही नहीं है। वो घड़ी के लिए चेन लाई है पर वो घड़ी उसने बेच दी है। लेखक लिखता है उनकी ये सौगात दर्शाती है कि वो प्रेम में किस हद तक जा सकते हैं। उनकी ये सौगात जैसे कि इस समय एक दूसरे के लिए व्यर्थ है। पर दिखाया है दोनों ही बैठते हैं और रोते हैं। उनकी आंखों से प्रेम के अश्रु बहने लगते हैं। लेखक लिखता है इनकी ये जो सौगात थी वो उस मजाय की तरह थी। मजाय उसे कहते हैं - जीसस क्राइस्ट का जब जन्म हुआ तो कहते हैं तीन बुद्धिमान लोग तीन दिशाओं से mostly east से ढूंढते-ढूंढते, आकाश में एक सितारा ढूंढते हुए उस बेथलहम में पहुंचे, जहां जीसस क्राइस्ट ने जन्म लिया था। कि एक सितारा आया है, परमात्म-पुत्र जन्म ले रहा है। उसका पीछा करते करते वो वहां रुकते हैं। वो जो तीन लोग होते हैं, उन्हें magician कहो या फिर बहुत बुद्धिमान लोग कहो, उन्हें magi कहा जाता है। और वो वहां पहुंचते हैं और देखते हैं कि कहां जन्म लिया है इस बालक ने! किन्हीं महलों में नहीं, परंतु अस्तबल में। और वहां वो तीनों उसे बहुत सारी गिफ्ट देते हैं। तो लेखक ने लिखा है ये जो डैला और जिम है, इन्होंने एक दूसरे के लिए जो गिफ्ट लाई, वो भले इस समय उनके लिए व्यर्थ है परंतु उनका प्रेम दर्शाती है। तो हर क्रिसमस में लोग क्या करते हैं एक दूसरे को? गिफ्ट देते हैं।

मुरली है क्रिसमस की। बाप भी तुम्हें गिफ्ट देते हैं, कौन सी? तीन गिफ्ट देते हैं। कौन-कौन सी तीन? मुरली, टोली, और मधुबन - ये आज की मुरली का नहीं है। आज क्या गिफ्ट देते हैं वो बताओ, साल भर की प्वाइंट नहीं सुनानी है।

तीन गिफ्ट -पहला - हथेली पर बहिश्त,
दूसरी गिफ्ट - बेफिक्र बादशाही,
और तीसरी गिफ्ट - दिलतख्त!


तेरे प्यार के आगे वो ताज क्या है? वो ताज फीका, वो तख्त फीका.. उसके प्रेम के आगे संसार के जो भी ताज हैं, जो भी तख्त हैं, सब फीके हैं! ऐसी ये तीन गिफ्ट, तीन सौगातें भगवान आया है देने के लिए। एक तो भविष्य में मिलेगी, परंतु जो दूसरी दो है वह यहां अभी मिलेगी, इसी वक्त। दिलासे का सौदा नहीं है। सौदा कैसा है? झटपट का है। दिलासे का नहीं है, अभी का है। भक्त कहते हैं कभी, बाप कहते हैं अभी। लास्ट सन्डे - अंत मति सो गति। अभी-अभी श्रेष्ठ मत पर चलो, तो क्या-क्या हो जाएगा? गति मिलेगी, सद्गति मिलेगी। और वह तो छोड़ो, संगमयुग पर अब भी गति मिलेगी! कौन सी गति मिलेगी? श्रेष्ठ गति अर्थात सफलता.. अब। त्रिदेव बाप त्रिदेव रचयिता है, रचीयता को बहुत प्रेम है रचना से। क्या कहता है रचयिता रचना को देखकर? वाह रचना वाह! और रचना क्या कहती है रचयिता को देखकर? वाह रचयिता वाह! जिसको जिससे प्रेम होता है, वह उसकी कमी देख नहीं सकता! बाप बच्चों की कमी देख नहीं सकते! बच्चों की मेहनत बाप को अच्छी नहीं लगती! कमी देख नहीं सकते और मेहनत अच्छी नहीं लगती! फिर भी मेहनत करते रहते हैं कारण? कारण?

दो बातें - फेल हो जाते हैं माया से, या तो फील। फ्लू की बीमारी के पांच symptoms है -
सबसे
पहले - shivering, shaking. वहां ठंड लगती है, वहां शरीर डोलता है, यहां मन डोलता है।
सेकंड - bitter taste. मुख कड़वी बातें बोलता है।
तीसरा - fever. सर्दी गर्मी चढ़ जाती है, इसने ऐसा क्यों किया, इसने ऐसा क्यों कहा.. जोश!
चौथा - loss of appetite. कोई ज्ञान सुनाए तो बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है।
और
पांचवा - weakness. कमज़ोरी।

फील फेल से मुक्त होना है, तो शुद्ध फीलिंग में रहो। "मैं कोटों में कोई.. मैं श्रेष्ठ आत्मा हूं.. विशेष पार्टधारी आत्मा हूं.. ब्राह्मण आत्मा हूं.." Higher consciousness! तो फील नहीं, फेल नहीं, मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं, कमी नहीं!

तो आज कौन सा दिन है? बड़ा दिन है। कौन सा दिन है? बड़ा दिन। क्रिसमस क्या वास्तव में बड़ा दिन है? Big day है? Longest day नहीं है, big day है। बड़ा दिन। भारत में बड़ा दिन माना जाता है। तो कौन से दिन की मुरली है यह - 25th दिसंबर। 25th दिसंबर को क्या होता है? क्रिसमस। और क्रिसमस क्यों मनाई जाती है? जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन। परंतु कहीं पर भी बाईबल में 25th दिसंबर का वर्णन नहीं है! ना तो दिन का वर्णन है, ना तो टाइम का वर्णन है। यह तो बहुत बाद में किसने बनाया, पता नहीं। शायद पोप, पादरी या बाद में आने वाली सभ्यता... और जब भारत में क्रिश्चियनिटी फैली, रोमन फेस्टिवल कहा जाता था उसे। और तब से उसके साथ दूसरा शब्द जोड़ा गया - बड़ा दिन। सैंटा क्लॉज़ तो बहुत ही बाद में आया - चौथी शताब्दी में।

तो क्रिसमस का दिन है। तो बाबा क्या कह रहे हैं? उनका है बड़ा दिन और तुम्हारा क्या है बड़ा? बड़े ते बड़ा बाप! बड़े ते बड़े बच्चे, बड़े ते बड़े दिलवाले बच्चे! बड़े ते बड़ा युग! है आयु में छोटा परंतु प्राप्तियों में और विशेषताओं में बड़ा! तो यह बड़ा युग है। तुम बड़े ते बड़े क्या बन रहे हो? पुरुषोत्तम! तो बड़े ते बड़ा दिन है। एनर्जी ज़्यादा है.. बच्चों में एनर्जी बहुत होती है। बड़े ते बड़ा दिन है, बड़े ते बड़ा बाप है, बड़े ते बड़े बच्चे हैं, बड़े ते बड़े दिलवाले बच्चे हैं, बड़े ते बड़ी घड़ी है, बड़ी ते बड़ी यह युग! कैसा है? दिव्य युग है! यह कैसा है? अलौकिक युग है! आयु छोटी है परंतु इसमें सारी प्राप्तियां बड़ी है, इसमें सारी विशेषताएं बड़ी है। और तुम्हारे लिए हर दिन बड़ा है। हर दिन मौजों का दिन है। तो बाबा ने comparison किया है - उधर क्या होता है और यहां क्या होता है। उधर क्या करते हैं? मनाते हैं। कैसे मनाते हैं? नाचते हैं और गाते हैं। तुम भी नाचते हो और तुम भी गाते हो। तुम्हारा कौन सा गीत है? जो ब्रह्मा का गीत था, कौन सा? पाना था सो पा लिया! तो तुम भी गाते हो, तुम भी नाचते हो। उनका नाचना और गाना एक रात। वह भी मिठाईयां खाते हैं, खिलाते हैं। तुम कौन सी मिठाई खाते हो? खुशी की मिठाई खाते हो। अतींद्रिय सुख की मिठाई खाते हो, कब? अमृतवेला। वह लोग कार्ड्स देते हैं, वह भी कब तक चलेंगे! तुम्हें बाप मुबारक देते हैं और बाप की मुबारक तुम्हारे लिए वरदान है। मोहब्बत की मुबारक - याद-प्यार में है। बाप क्या देते हैं तुम्हें? ऐसे मोहब्बत की मुबारक.. बच्चों को! तो तुम्हारी मुबारक अविनाशी है, बाप दे रहे हैं। और तुम्हारी मुबारक तुम्हारे लिए क्या बन जाती है? वरदान बन जाती है। तो उधर भी गीत गाना, इधर भी गीत गाना। उधर भी नाचना, इधर भी नाचना। इधर भी सौगात, उधर भी सौगात। तुम्हारे यादगार में धर्मों में क्या दिखाया है? शाखाएं। क्रिसमस ट्री, स्टार्स, कौन हैं वो स्टार्स? हम। और कौन है? वो सारे धर्म स्थापक भी, क्योंकि वो भी सतोप्रधान हैं। और ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर बेहद के बाप के तुम बेहद के बच्चे हो। इसलिए फील नहीं कर सकते, शुद्ध फीलिंग में रहने वाले हो। Powerful हो। और क्या था मुरली में? आदि पिता के तुम बच्चे हो। और क्या था?

तो मुख्य चर्चा जो आज हम करेंगे, वो है सेकंड गिफ्ट पर - बेफिक्र बादशाही। पूरी मुरली इस एक प्वाइंट पर घूम रही है कहीं न कहीं। बेफिक्र अर्थात कोई फिक्र नहीं, बेफिक्र अर्थात निश्चिंत, बेफिक्र अर्थात कोई चिंता नहीं, कोई worry नहीं।

एक यहूदी स्टोरी है। Jewish story. जिसमें एक यहूदी फकीर है बालशेम नाम का। उसे रबाए कहा जाता है यहूदी भाषा में। जो गुरु होते हैं उन्हें रबाए कहा जाता है। जब भी गांव में कोई संकट आता है या महामारी फैलती है, कोई प्राकृतिक आपदा होती है, सारे गांव वाले उस फकीर के पास जाते हैं। कहते हैं कुछ करो, आप भगवान के निकट हो, आप उसके चुने हुए हो, भगवान से बातें करते हो, हमारे संकट दूर करो। वह यहूदी फकीर बालशेम जंगल में जाता है, एक विशिष्ट स्थान पर बैठता है जंगल के पास, यज्ञ करता है, कुछ आहुतियां डालता है, फिर प्रार्थना करता है। और हर बार गांव पर जो संकट आया हुआ है, वह चला जाता है। यह पहला रबाए था। इस रबाये की मृत्यु हो जाती है इसके स्थान पर दूसरा रबाय आ जाता है। फिर गांव पर कोई संकट आता है, सारे गांव वाले फिर इसके पास जाते हैं, कहते हैं कुछ करो। आपके पहले वाले जो गुरु थे, वह तो हमेशा कुछ करते थे। वह कहता है ठीक है। वह भी जंगल जाता है, परंतु उसे यह पता नहीं कि वह स्थान कौन सा है जहां पर मेरे गुरु उस स्थान पर बैठकर प्रार्थना करते थे। बाकी तो सब मैं कर लूंगा पर स्थान का मुझे पता नहीं है। वह जाता है, कोई भी एक स्थान ले लेता है और वहां पर यज्ञ करता है, प्रार्थना करता है। "हे प्रभु, मुझे तो वह स्थान पता नहीं, पर तुझे तो पता है ना। गांव वालों पर आए हुए संकट को दूर कर।" और संकट दूर हो जाता है! इस रबाए की भी मृत्यु हो जाती है और उसके स्थान पर तीसरा रबाए आ जाता है। फिर गांव वालों पर मुसीबत आती है और वह लोग इसके पास जाते हैं। कहते हैं कुछ करो। वह कहता है मुझे ना तो जंगल में उस स्थान का पता है, ना तो यज्ञ कैसे करना है उसकी विधि मुझे पता है। पर प्रार्थना मैं कर सकता हूं। तो वह जाता है जंगल में, कहीं पर भी बैठ जाता है और प्रार्थना करता है - "हे प्रभु, हे ईश्वर, संकट दूर कर।" और संकट दूर हो जाता है। उसकी भी मृत्यु हो जाती है फिर चौथा रबाए आता है। वह अपनी आराम कुर्सी पर बैठे हुए झूला झूल रहा है। गांव पर फिर संकट आता है, गांव वाले फिर आते हैं, कहते हैं कुछ करो। आपके पहले वाले जितने थे, वो हमेशा करते थे। वह कहता है - ना तो मुझे जंगल का पता है, ना वो जगह पता है, ना मैं प्रार्थना जानता हूं, ना मैं यज्ञ जानता हूं, मैं क्या करूं! मैं हां इतना कर सकता हूं, ईश्वर से प्रार्थना करके अभी तक जितने रबाए हुए हैं, उनकी कहानियां उसे सुना सकता हूं। और भगवान को कहानियां बहुत पसंद हैं। शायद हो सकता है कि वह कहानियों को सुनकर ही संकट दूर कर दे। और वह अत्यंत भोले भाव से भगवान से प्रार्थना करता है। बस इतना ही कहता है - "इनका संकट दूर कर दे, तू सर्वशक्तिमान है! और तुझे मैं क्या दूं? मेरे पास कुछ भी नहीं है!" समग्र समर्पण! और इस बार भी उनकी चिंता दूर हो जाती है। सारे गांव वाले फिर खुश हो जाते हैं।

चिंता से मुक्ति का एक मार्ग क्या है? समर्पण। दे दो। तो आज की अव्यक्त वाणी पर आते हैं। 8 विधियां बताई हैं बाबा ने इस मुरली में चिंता से मुक्ति की, बेफिक्र बादशाही की, फिक्र से मुक्त होने की।

1) सबसे पहली विधि - करनकरावनहार। सबसे पहली विधि क्या है? करन-करावनहार! वह मेरे द्वारा कर रहा है। अगर मैं सोचूं कि मैं करता हूं, तो आत्मा की शक्ति अनुसार कर्म का फल मिलेगा। परंतु यदि मैं उसके साथ कंबाइंड हूं, यदि वह करा रहा है मेरे द्वारा, तो वह कैसा है? सर्वशक्तिमान! निरंतर इस एक भाव का अभ्यास करना है.. कि मैं एक कठपुतली हूं, डोर किसके हाथ में है? ऊपर। वह मेरे द्वारा करा रहा है! इसलिए असंभव कुछ भी नहीं, इसलिए नामुमकिन कुछ भी नहीं, इसलिए कठिन कुछ भी नहीं! वह कह रहा है कि हो सकता है! वह कह रहा है कि मैं कर रहा हूं। तो सबसे पहले कौन सा भाव अपने अंदर दृढ़ करेंगे? करनकरावनहार! वह मेरे द्वारा यह सब करा रहा है। मैं नहीं कर रहा हूं। मेरा कुछ है ही नहीं। वो चाहे तो जिन शक्तियों का मुझे घमंड है, जिन विशेषताओं का मुझे घमंड है, वो सारा ज्ञान, वो सारी विशेषता वो वापस withdraw कर सकता है। इसलिए राज़ी तेरी रज़ा में! तू करा रहा है! तेरे द्वारा हो रहा है, मैं कुछ भी नहीं! सारी सेवाएं वो करा रहा है।

सेवा करते समय सबसे महत्वपूर्ण चीज कौन सी है जो भूल जाती है? या यह कहो कि सेवा में वो कौन सी एक बात है जो होनी चाहिए? ट्रस्टी, निमित्त, वह करा रहा है - यह सब तो है ही। दूसरों की सेवा करते करते, बाहर की बड़ी-बड़ी सेवा करते करते, बड़े-बड़े लोगों की सेवा करते करते, दूसरी आत्माओं की महान सेवा करते करते स्वयं की सेवा भूलनी नहीं है! अगर खुद की सेवा भूल जाती है, तो फिर दूसरों की सेवा जो की जा रही है, वह भी वास्तव में सेवा नहीं है। नए-नए सेवाधारी आए हैं, उनसे कोई भूल हो जाए और हमने उनको डांट दिया! पूरे हॉल में कैसे प्रकंपन फैला दिए? क्रोध के। वह तो अबोध हैं, वह तो शिशु हैं, वह तो नन्हे हैं, इसलिए तो मधुबन आए हैं, इसलिए तो सेवा में आए हैं.. अभी पक्के नहीं हुए हैं, अभी परिपक्व नहीं हुए हैं, इसलिए तो गलती हुई। कोई माता है, चप्पल पहन कर सीधा शांति स्तंभ में! और हमने सोचा हम उसको श्रीमत सिखाएंगे। दूसरों को गलती करते हुए देख हमारे भीतर क्या जागृत हो? करुणा। ब्रह्मविहार.. ब्रह्मा के नाम से शब्द है - ब्रह्मविहार। अर्थात ब्रह्मा वह व्यक्ति है संसार का, highest human being, जिसमें अत्यंत करुणा थी, अनंत मुदिता, अनंत मैत्री, अनंत ओपेक्षा, समता.. सबके लिए समान। तो सेवाओं में स्वयं को उस करूणा से भरना है। क्योंकि जो द्वेष, जो जोश हमने दूसरों को सिखाने के लिए प्रगट किया, वह वायुमंडल को दूषित कर रहा है। इसीलिए दूसरों को गलती करते हुए देख.. ऐसा नहीं है कि अनुशासन नहीं हो, परंतु प्रेम युक्त अनुशासन हो। दूसरों की सेवा करते हुए स्वयं की सेवा भूल ना जाए। और सबसे बड़ी सेवा है स्वयं को स्थिर रखना, समता में रखना।

चार प्रकार के लोग हैं संसार में - पहले जो अंधकार से अंधकार की ओर जा रहे हैं। दूसरे जो प्रकाश से अंधकार की ओर जा रहे हैं। तीसरे जो अंधकार से प्रकाश की ओर जा रहे हैं। और चौथे जो प्रकाश से प्रकाश की ओर जा रहे हैं।

हम कौन हैं चारों में से? पहले दो तो नहीं है। पर कोई कोई हैं जो पहले ही कैटेगरी में हैं। जो अंधकार में ही हैं, और अंधकार की ओर जा रहे हैं। ज्यादा ही अंधकार की ओर जा रहे हैं। पहले ही अंदर में चिंताओं से भरे हैं। भगवान मिल गया, भगवान मिलते भी वो अनमिला सा ही है, क्योंकि हमारे और उसके बीच में बहुत दूरी है। केवल मुख में उसका नाम है पर ह्रदय उससे बहुत दूर है। अव्यक्त महावाक्य हैं बाबा के, 1970 की मुरली है - "अमृतवेला अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है.." या फिर "अमृतवेला अव्यक्त स्थिति का अनुभव वही बच्चे कर सकते हैं, जो सारे दिनभर अव्यक्त और अंतर्मुखी हैं।" सेवाएं तो रही हैं, परंतु सारी सेवाएं करते समय बाह्यमुखी है चेतना। बाह्यमुक्ता की यात्रा अंधकार की यात्रा है। अंतरमुखता की यात्रा प्रकाश की यात्रा है। तो फर्स्ट कैटेगरी वह लोग हैं जो सेवाओं में खो गए हैं, मौन है ही नहीं। उसमें नहीं जाना है.. चिंताएं हैं, दुख है, पीड़ा है, दर्द है, वेदना है.. ऊपर से सारी प्राप्तियां हैं, फिर भी खुद को और दूसरों को दुखी करते जा रहे हैं। दूसरों को सिखा रहे हैं और सिखाने में क्रोध है। उसमें सूक्ष्म हिंसा छिपी हुई है। तो यात्रा कौन सी है? अंधकार से अंधकार की।

दूसरी यात्रा कौन सी है? प्रकाश से अंधकार की। ज्ञान योग में बहुत आगे बढ़ गए हैं, परंतु विकारों का खात्मा केवल ऊपर-ऊपर से किया है। सबकॉन्शियस माइंड में, अंतर्मन में सारे विकार वैसे ही पड़े हुए हैं। और वहां तक हम पहुंच ही नहीं पाते। हमारी सारी भट्ठियां, सारे ज्ञान योग, सारी क्लासेस, सारा योग, सब कुछ कॉन्शियस लेवल पे ऑपरेट कर रहा है। ऊपर-ऊपर के मन में ऊपर-ऊपर थोड़ा-सा बदलाव हो रहा है। हमारा सारा चिंतन मनन सब, टोटल of चिंतन, मनन, अध्ययन से कभी भी अंदर के विकार नहीं जा सकते। उससे थोड़ी बहुत ऊपर-ऊपर की सफाई होगी, परंतु सब-कॉन्शियस/अंतर्मन के जो विकार छिपे हुए हैं, जो भोग की लालसा है, जो काम की लालसा है, जो इन्द्रिय सुखों की लालसा है, वो जन्म जन्म की है। वो अमृतवेले उठ गए और मुरली दस बार सुन ली और दस बार पढ़ ली और क्लासेज सुन लिए और भट्ठियां कर लिए, उससे तो स्पर्श भी नहीं होता है वो.. untouched है.. क्योंकि बीच में मोटी-मोटी दीवारें हैं। इन दीवारों को तोड़ कर चेतना की गहराई में जाना और वहां से एक-एक विकार को बाहर निकालना - ये वास्तव में बहुत बहुत-बहुत बड़ा पुरुषार्थ है! हम जो भी पुरूषार्थ कर रहे हैं, वो केवल चेतन मन पर ऑपरेट कर रहा है। मैं ये आत्मा हूं, मैं वो आत्मा हूं.. और जब वास्तव में परिस्थिति आती है, सारा ज्ञान योग खत्म। मैं मास्टर ये हूं.. मैं मास्टर वो हूं.. मैं स्वराज्य अधिकारी हूं.. और भोजन देखा - सारे इंद्रियों में से कुछ कुछ होने लगा! स्वराज्य अधिकारी थोड़े देर के बाद.. after one hour postpone! एक बार भर पेट ले लिया, अब मैं मास्टर.. अब मैं स्वराज्य अधिकारी हूं.. कर्मेंद्रीय-जीत हूं.. महा ज्वालामुखी योगी हूं. लास्ट सन्डे की मुरली - निर्भय.. पवित्रता की शक्ति, एक सेकंड की शक्ति भी सारे विश्व के किचरे को भस्म कर सकती है! ऐसी ज्वाला, ऐसी पवित्रता की पावर, ऐसी योग की पावर - वो मैं हूं! पर पहले ये ले लूं, उसके बाद! ब्रेक के बाद! थोड़ा सा postponing of स्वमान! कहीं जा तो नहीं रहा है ना भाग के, फिर?!

विकार इतने आसान नहीं है, क्योंकि सारे विकार अंतर्मन में छुपे हुए हैं। और हम जो सफाई कर रहे हैं, वो ऊपर-ऊपर की कर रहे हैं। नोट्स लिख रहे हैं, चिंतन कर रहें है, ज्ञान का डिस्कशन कर रहें है, मनन कर रहे हैं, क्लासेज करा रहे हैं, सुन रहे हैं.. सबकुछ.. sumtotal. सेवाएं कर रहे हैं... क्योंकि उन सभी सेवाओं में बाह्यमुखता है। उन सभी सेवाओं में मौन खो गया है। इन सभी तपस्याओं में अंदर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं! जैसे कुआं है एक, कुछ गिर गया है गड्ढे में, हमें उठाना है पर हाथ पहुंच नहीं रहा है। तो यात्रा हो रही है प्रकाश से अंधकार की ओर। प्रकाश में हैं परंतु जा रहे हैं अंधकार की ओर....

तीसरे प्रकार की आत्मा है - ये थोड़े ठीक हैं। वो अंधकार से प्रकाश की ओर जा रहे हैं। उन्हें पता है अपने अंदर क्या कमियां हैं। कि मेरी ये सबसे बड़ी कमी है, the greatest weakness. Your last mistake is your greatest teacher. ये मेरे में कमियां हैं, ये गलतियां मुझसे हो रही हैं, ये मेरा सारा ज्ञान योग ऊपर का है, बस दिखावा मात्र! अंदर से मैं और संसार का वो गृहस्थी - कोई ज्यादा अंतर नहीं है! वही इच्छा है, वही कामना है! सब इधर और उधर same है - ये realisation and then start the journey कि अभी मुझे प्रकाश की ओर जाना है।

और चौथे कौन हैं? ये बड़े अच्छे हैं जो प्रकाश से प्रकाश की ओर जा रहे हैं। हैं ही प्रकाश में, परंतु यात्रा और प्रकाश की ओर जा रही है। और प्रकाश.. और प्रकाश.. क्योंकि जितना-जितना गहराई में जाते जाओगे, एक स्थिति चेतना की ऐसी आती है जो सम्पूर्ण निर्विकारिता आ जाती है। जो बुद्ध को कभी उस बोधि वृक्ष के नीचे प्राप्त हुई। एक-एक निकल गया जैसे उसमें से, एक-एक विकार हट गया जैसे, ऐसी स्थिति में चेतना को उसके सारे पूर्व जन्म याद आ जाते हैं कि वो क्या क्या थी।

तो हम कहां थे? करनकरावनहार पर। तो चिंता से मुक्त, निश्चिंत जीवन, बेफिक्र जीवन, जिस जीवन में कोई worry ना हो, stress ना हो, टेंशन ना हो। क्या करना है? कि मुझे चलाने वाला है कौन है? वो। और इसकी प्रैक्टिस कैसे करनी है? चलते फिरते। मैं नहीं खा रहा हूं, वह मुझे खिला रहा है। वह मुझे स्नान करा रहा है। मैं नहीं चल रहा हूं, वह मुझे चला रहा है। मैं सेवा नहीं कर रहा हूं, वह करा रहा है।

दो प्रकार की सेवा है ब्राह्मणों की - एक डायरेक्ट सेवा, जिसमें हम डायरेक्ट आत्माओं के संपर्क में आते हैं। कोर्स करा दिया, क्लास करा दी। एक दूसरी सेवा है जो सूक्ष्म है - जो पेड़ पौधे हैं उनको पानी दे रहा है, बर्तन साफ कर रहा है, किचन में कोई सेवा कर रहा है, स्थूल सेवा है। एक है जिसमें आत्माओं से डायरेक्ट कॉन्टैक्ट.. ये जो दूसरी सेवा है, उसमें आत्माओं से डायरेक्ट कांटेक्ट नहीं है। परंतु यहां किस भाव से सेवा करनी है? कि पेड़ पौधों में पानी डाल रहा हूं.. मधुबन के जो नए लोग यहां आएंगे, वो इसे देखकर खुश हो जाएंगे! साफ सफाई की सेवा कर रहा हूं, यहां जो नए ब्राह्मण आएंगे, नए लोग आएंगे, जो घूमने फिरने वाले आएंगे, यहां की साफ-सफाई देखकर उनके अंदर कैसे भाव प्रकट होंगे! उस भाव से सेवा करनी है। रोटी बना रहे हैं, परंतु किस भाव से? कि जो इसे खाएगा उसका ह्रदय शुद्ध हो जाएगा। इस भाव से। स्थूल सेवा कर रहे हैं, ऑफिस में बैठे हुए हैं, लिखने की सेवा कर रहे हैं, कुछ टाइप करने की सेवा कर रहे हैं, परंतु इस भाव से, इस फीलिंग से कि मेरा लिखा हुआ एक-एक शब्द आत्म-क्रांति लाएगा, आत्म जागृति लाएगा। सोई हुई आत्माएं.. संसार में बहुत दुखी हैं लोग। इतने दुखी हैं, इतने दुखी हैं, क्या बताएं! घर-घर में दुख के सिवा कुछ भी नहीं है। चिंताएं हैं। ऐसी आत्माएं, ऐसी तड़पती बिलखती आत्माएं, ऐसी दुखी आत्माएं एक पल के लिए मधुबन के इस द्वार में प्रवेश करें और देखें यहां की कोई एक बात.. और उनके हृदय में कैसे भाव जागृत हो जाए, ये सेवा! छोटे से छोटा कर्म.. आज ही कहा है ना बाबा ने - कर्म साधारण किंतु स्मृति अलौकिक.. महान! उस स्मृति के साथ। तो पहली विधि - वह करा रहा है। मैं कुछ नहीं कर रहा हूं, मेरे द्वारा यह सेवा हो रही है।

2) दूसरा - निश्चय। चिंता से मुक्ति का दूसरा मार्ग - निश्चय। श्रेष्ठ कर्म हुआ ही पड़ा है - यह निश्चय। Faith कि जो कुछ होगा, अच्छा ही होगा। और सफलता मेरी होनी ही है। मेरी नहीं होगी तो किसकी होगी? हम चुनी हुई आत्माएं.. इस मुरली की सबसे लास्ट लाइन क्या है? "मुझे बाप ने अपना बना लिया बस इसी खुशी में रहो।" मुरली की लास्ट लाइन क्या है - बाप ने मुझे अपना बना लिया है, इस खुशी में रहो! निश्चय! और निश्चय के पेपर आएंगे.. बहुत सारे आएंगे.. जो निश्चय को हीलाएंगे, डवाडोल करेंगे! और वही समय होगा कि हमें आगे बढ़ते रहना है, झुकना नहीं बस। यह मार्ग बहुत, बहुत, बहुत कठिन है! परंतु यदि भगवान साथ है, तो सब सहज है। परंतु उससे मनसा में दूरी जब हो जाती है, तो फिर कठिन ही कठिन है।

ब्रह्मा बाबा से कभी किसी ने पूछा था - आपका यह यज्ञ कैसे चलता है? पैसे कहां से आते हैं? बाबा ने कहा था - हमारे पास कुआं है एक। कौन सा कुआं? बाबा ने कहा - कुआं जिसमें सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात सबकुछ है। सब ने पूछा यह कुआं है कहां? बाबा ने कहा - जब भी चाहिए, जो भी कोई संकट आता है, कुछ भी आता है, कुएं से पैसे निकाल लेते हैं हम तो। बाबा वह कुआं कहां है? बाबा ने कहा - शिवबाबा ही वह कुआं है! और क्या! तो जब भी कुछ चाहिए कुएं में हाथ डालो और निकाल लेना। निश्चय!

3) तीसरा - खेल। तीसरा क्या? सेवा किस लिए दी गई है? खेल है। तुमको बिजी रखने के लिए दिया गया है। यह खेल चल रहा है। ताकि तुम्हें अधिकार मिले तुम्हारी सेवाओं के कारण। बाकी काम बाप का है, और नाम बच्चों का हो रहा है। तो केवल यही नहीं, सारा संसार ही खेल है। इस संसार में opposites का खेल चलता है - जय पराजय, हानि लाभ, निंदा स्तुति, सुख दुख, ठंडी गर्मी। पवित्रता की सर्वोच्च परिभाषा है - समता ही पवित्रता है। Equanimity is purity. जो स्थिर रहे, सबको अनित्य माने.. स्तुति हो रही है - ये भी अनित्य है। निंदा हो रही है - ये भी बीत जाएगा। मान मिल रहा है, अपमान हो रहा है, अभी अभी बहुत फायदा हुआ, फिर नुकसान भी होगा। अभी अभी स्थिति बहुत अच्छी है, वो भी अनित्य है। अभी फिर नीचे चली जाएगी। पर जो नीचे जाएगी, वो भी रुकने वाली नहीं है। वो भी मरणधर्मा है। जो निरंतर इस बात का अभ्यास करते रहते हैं.. निरंतर जो कुछ हो रहा है - uncertain!

भोगता भाव से भोजन स्वीकार नहीं करेंगे, भोगता भाव से संसार में विचरण नहीं करेंगे, भोगता भाव से सारी चीज़ें नहीं करेंगे। दृष्टा भाव से करेंगे, साक्षी भाव से करेंगे, समता भाव से करेंगे। बस ये तीन शब्द याद रखना है - दृष्टा, समता, साक्षी। समता ही पवित्रता है। जो जितना समता में स्थित है, स्थिर है, समता अर्थन समान है हर चीजों में.. equanimous mind.. equipoise.. वही pure है, वही purity है। सिर्फ मैं pure आत्मा हूं, परम पवित्र आत्मा हूं - कहने से पवित्र नहीं होंगें। हर परिस्थिति में.. अच्छी, बुरी, पॉजिटिव, नेगेटिव - हर परिस्थिति से detached! ये आया है, ये भी नहीं रहेगा! वो आया है, वो भी नहीं रहेगा! बार-बार मन को ये समझाना.. क्योंकि मन का स्वभाव है चिपकने का। जो अच्छा लगता है उससे चिपकता है, जो अच्छा नहीं लगता है उससे द्वेष करता है। बस यही स्वभाव। यही दो ही विकार है वास्तव में - राग और द्वेष। दूसरे और कोई विकार ही नहीं है! मन को राग द्वेष से मुक्त रखना है। जो अच्छा लग रहा है उससे राग.. ठंडी बहुत ज्यादा है, बहुत ज्यादा ठंडी है - द्वेष हो गया। फिर गर्मी.. अरे बहुत ज्यादा गर्मी है.. वहां द्वेष हो गया। हां अभी मौसम बहुत अच्छा है - ये राग है। मन डोलते रहता है! न राग, न द्वेष! काम बस इन्हीं दो विकारों पर करना है। कहीं पर भी राग न हो, कहीं पर भी द्वेष ना हो। जब भी राग उत्पन्न हो तो मन में संकल्प करो - यह बीत जाएगा, यह खत्म हो जाएगा, यह नश्वर है, यह क्षणभंगुर है, मरणधर्मा है, transitory है। "The law of impermanence!" इस संसार की सभी चीजें नश्वर हैं। कुछ भी यहां वैसा नहीं है जो है, टिकेगा कुछ भी नहीं। आज बहुत फायदा हुआ, कल बहुत नुकसान होगा। आज स्थिति बहुत अच्छी है, शाम तक देखना क्या होता है। वो अच्छी स्थिति भी, बहुत ऊंची स्थिति वह भी - उससे भी राग नहीं.. उससे भी राग नहीं! पॉजिटिव से भी राग नहीं, नेगेटिव से भी राग नहीं। राग और द्वेष जहां आ जाएगा, वहां दुख होगा। जितना गहरा राग उतना गहरा द्वेष, जितना गहरा द्वेष उतना गहरा क्लेश, क्लेश अर्थात दुख। जहां पर भी राग उत्पन्न किया - ये लैपटॉप बहुत अच्छा है.. अगला क्षण दुख होगा - ये लैपटॉप बिल्कुल अच्छा नहीं है.. अगला क्षण दुख का होगा। जहां राग होगा वहां द्वेष होगा। एक तरफ attachment और दूसरी तरफ repulsion. ये दोनों ही अंततोगत्वा दुख की तरफ ले जाएंगे। और इस संसार में दुख तो दुख है ही, जो सुख है वह भी दुख ही है, सुख को भी दुख ही देखना।

समता ही पवित्रता है - purity is equanimity, equanimity is purity, एक सा। तो इस संसार को कैसे देखना है? खेल चल रहा है! सेवाओं का भी खेल चल रहा है। क्या उसे हमारी सेवाओं की जरूरत है? वो चाहे तो कुछ भी कर सकता है, सांवलशाह है वो, उसे कुछ भी नहीं चाहिए। परंतु परमात्म-तालाब गरीबों की पाई पाई से भरेगा। वो हम अपना भाग्य बना रहे हैं यहां सेवा करके, इसलिए सेवाओं का बड़ा महत्व है, स्थूल सेवा का भी और धन की सेवा का भी। बाकी सब करते हैं, धन का जब प्रश्न आता है तो लोग कैलकुलेशन करने लगते हैं - मधुबनमें 5 दिन रहे.. कितना दूं अभी... उस हिसाब से देंगे न! तो खेल चल रहा है, ये तीसरा।

4) चौथा- चौथी विधि बेफिक्र बनने की - असोच। क्या हो जाओ? बाबा सेवा कैसे बढ़ेगी? सोचने से सेवा नहीं बढ़ेगी! प्रिंसिपल ही उल्टा बताया है पूरा, और वही सही है। जितना ज़्यादा सोचोगे, उतना बुद्धि और मन बिज़ी रहेगा। बुद्धि और मन को फ्री कर दो तब बाप की टचिंग और बाप की शक्ति मदद के रूप में अनुभव होगी, समर्पण कर दो। सब कुछ तुम ही करोगे क्या? मैं ये करूंगा, मैं वो करूंगा, मैं ऐसा करूंगा, मैं वैसा करूंगा। और आज तक जो कुछ सोचा कुछ हुआ क्या? Man proposes, God disposes! हुआ कुछ और ही, जो मंजूरे खुदा है। इसलिए मैं ऐसा करूंगा, मैं वैसा करूंगा, ये भी राग है एक रीति से, इसमें भी राग है। और जहां भी राग है, जहां भी अटैचमेंट है, वहां दुख होगा ही। मार्ग ऐसे चलना है कि बस ये मार्ग वहां तक पहुंचता है, चलते जाओ... कठिन है, परंतु सही दिशा में चलते जाओगे तो पहुंच जाओगे। बस इतना ही। ये यात्रा प्रकाश से प्रकाश की ओर है। और परमात्मा प्रकाश का सागर है, उस तक पहुंचना है। तो असोच बन जाओ। असोच बन जाओ मतलब - सोचना नहीं है। अब ये कैसे करें? No mind stage! मनोनाश। समता - फिर से वही पॉइंट है, क्योंकि विचार आते रहते हैं, जाते रहते हैं, आते रहते हैं, जाते रहते हैं.. जब भी कोई विचार आए... पहला परिस्थितियों पर काम किया, अभी विचारों पर काम करना है.. ये विचार भी अनित्य हैं! थोड़ी देर रहेगा, चला जाएगा.. अब दूसरा आएगा। और हमारे जितने विचार हैं, सभी "मैं" के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। मैं और मेरे स्वप्न बस, इसके सिवा हमें और कुछ नहीं चाहिए। हम जो कह रहें हैं.. कि मैं सेवा करता हूं इस सेवा से उनका फायदा हुआ...

प्रश्नजीत नाम का एक योगी था, उसकी पत्नी थी मल्लिका। दोनों ही योगी थें, दोनों ही तपस्वी थें, दोनों ही महात्मा बुद्ध के शिष्य बने। और दोनों ही एक साथ ध्यान करते थे बैठकर। और दोनों को ही एक ही संकल्प आया एक दिन शाम को ध्यान करते समय.. मल्लिका ने कहा - मुझे आज एक प्रश्न आया कि इस संसार में मैं सबसे ज़्यादा प्यार किससे करती हूं? और फिर मेरे ही मन ने उत्तर दिया - मैं आपसे अपने आप से करती हूं। राजा ने क्या कहा - वो सुन के shock नहीं हुआ, उसने कहा - अरे ऐसे ही विचार मेरे भी मन में आया, कि संसार में मैं सबसे ज्यादा किससे प्यार करता हूं? तो इसका उत्तर यह नहीं है कि मैं तुमसे करता हूं मतलब अपनी पत्नी से। मैं इस संसार में सबसे ज्यादा प्यार अपने आपसे करता हूं! बस मैं और मेरे स्वप्न। वो दोनों ही बुद्ध के पास जाते हैं। बुद्ध को अपनी कहानी सुनाते हैं कि हमने ऐसा देखा, बुद्ध कहते हैं - साधो... साधो... साधो। This is realisation.. ये यात्रा है प्रकाश से प्रकाश की ओर। अब तुम्हें समझ में आया कि संसार में हम किसी से प्रेम नहीं करते हैं, हम अपने आप से करते हैं! हमारी सारी चेष्टाएं 'मैं' केंद्रित हैं। इसलिए जिसे हम सेवाएं कह रहे हैं, वह भी वास्तव में 'मैं' का ही विस्तार या सजावट है, 'मैं' की सजावट..... तो असोच।

5) पांचवा- शुभ चिंतन जहां होगा, वहां पर चिंता नहीं होगी। तो क्या करना है - शुभ चिंतन। शुभ चिंतन की प्वाइंट्स निकालनी है रोज़ मुरली से। शुभ चिंतन, श्रेष्ठ चिंतन, higher consciousness का चिंतन। एक ही पॉइंट लो और बस उसके चिंतन में मन को बिज़ी कर दो। एक होता है योग के लिए बैठना, एक होता है चिंतन के लिए बैठ के चिंतन करना। एक चिंतन है चलते-फिरते प्रकृति के सानिध्य में। दूसरा चिंतन है एक जगह बैठ जाओ, अभी हिलना ही नहीं है, आंखें बंद। एक टॉपिक दे दो स्वयं को - सारा विश्व, सारी सृष्टि, सारी प्रकृति अंदर इस देह में समाई हुई है, सब कुछ इधर ही है यहीं पर। इसी मन में सब कुछ है, इसी आत्मा में सब कुछ है। वह सारी ड्रिल भी बहुत बेसिक है - कि मैं आत्मा हूं, मैं परमधाम में जा रही हूं, मैं सूक्ष्मवतन में जा रही हूं। एक समय ये आएगा ना तो यह सोचने की जरुरत कि मैं एक आत्मा हूं, न तो सूक्ष्मवतन वहां है। वहीं सब कुछ है, आत्मा भी वहीं और परमात्मा भी वहीं.. सूक्ष्मवतन भी यही मर्ज। वो जो ड्रिल है मैं वहां जा रही हूं, फिर वो उसे छोड़ा, फिर उधर जा रही हूं, फिर इधर जा रही हूं, फिर इधर फिर उधर। जितना मन सूक्ष्म होते जाएगा, एक अनुभूति होगी कि कहीं पर भी, कहीं जाने की आवश्कता नहीं है। बस संकल्प यह करना है कि मैं शांत स्वरूप हूं, जब हूं तो बोलने की भी क्या आवश्यकता है? बोल रहे हैं, ये lower stage है, higher stages में केवल अनुभूति है, केवल स्वरूप है! तो शुभचिंतन। पांचवी विधि - शुभचिंतन। शुभ चिंतन कहां से निकालेंगे- मुरलियों से। प्वाइंट्स निकालनी है.. extract points. पकड़ना है उनको, फोकस करना है, concentrate कर देना है उनके ऊपर, एक ही पॉइंट के ऊपर.. और फिर सोचना है। लास्ट सन्डे की मुरली - ज्वालामुखी योगी हूं। फॉक्स कर दो, आग...आग... यहां आग उत्पन्न हो जाए। सारा कचड़ा भस्म, केवल मेरा ही नहीं, बल्कि विश्व का। अभी तो तुम्हें बहुत बड़ा काम करना है! स्पीड बहुत कम है, स्पीड बढ़ानी पड़ेगी.. सारे विश्व का और प्रकृति का तमोगुण नष्ट करना है.. और यह बहुत बड़ा काम है - लास्ट संडे की मुरली। ये काम बहुत बड़ा है, स्पीड बढ़ानी पड़ेगी। अभी तुम्हारी कौन सी चाल है, मुरलियोंं में क्या आता है? साकार मुरली - मुख, केकड़ा, चींटी... पर विहंग मार्ग की सेवा। नेगेटिव को पॉजिटिव कर देना - यही मनसा सेवा है, साइलेंस की पावर है! आज के स्लोगन - नेगेटिव पॉजिटिव हो जाए। तो कितने हो गए?

6) छठवां- छठवां है - नशा। नशा होगा तो नाचते रहोगे, निश्चय होगा तो विजयी होंगे। नशा हो, नशे में क्या- रूहानी फकुर। फिकर जो भी है वो बाप को दे दो, और उससे क्या ले लो एक्सचेंज में - फखुर। तो कल सुबह क्या करना, अपनी जो भी फिकर है - कुमारों को भोजन की, कुमारियों को नौकरी की, गृहस्थियों को बाल बच्चों की - बोला न मुरली में। और टीचर बहनों को- सेवा कैसे बढ़ेगी? तो क्या कर दो फिक्र को? दे दो! और उधर से फकुर, नशा, रुहाब ले लो। इससे चिंता से मुक्त होंगे।

7) अगला - अमृतवेला दिलखुश मिठाई खाओ, दूसरों को भी खिलाओ। दिल खुश मिठाई अर्थात अतींद्रिय सुख का अनुभव! अर्थात शरीर है ही नहीं, देहभान की विस्मृति! देह की ही विस्मृति, कहां बैठे हैं, पैर किधर है, हाथ किधर है, ऐसी विस्मृति! चेतना उड़ने लगे आकाश में.. ऊपर... ऊपर.. ऊपर... ऊपर.. ऊपर.. ऊपर.. ऊपर.. विस्मृति हो जाए इस संसार की। ऐसे स्ट्रांग शक्तिशाली अनुभव हो - यह है दिलखुश मिठाई। अमृतवेला खुद भी खाओ और दूसरों को भी खिलाओ। माताओं से बाबा ने बात की - ज्ञान का विरोध करते हैं लोग, परंतु तुम्हारी चलन कैसी हो - तुम्हारी सूरत ज्ञान के सीरत को डायरेक्ट प्रत्यक्ष करें। आज गालियां दे रहे हैं, गालियां देने वाले भी झुकेंगे "ओहो प्रभु"! तो अमृतवेला क्या करो - ये दिल खुश मिठाई खाओ। और जो खाता है वो दूसरों को खिलाए बिना रहता नहीं है, खुद भी खाओ और दूसरों को भी खिलाओ। खुशनुमा चेहरा। अशांत चेहरा, घबराया हुआ चेहरा पसंद नहीं आता है! तो तुम्हारा चेहरा ही क्या करे? सेवा करे! परंतु इसका मतलब ये नहीं - हा... हा... हा.. हा करते रहो। तुम्हारी खुशियां आंतरिक है! तुमने कुछ पा लिया है, उन्हें लगे कि ये कुछ है इसके अंदर, कुछ है.. इनको कुछ मिला है - ऐसा लगे.. ये अलग लोग हैं। ये ऐसे नहीं है जैसा संसार के लोग होते हैं, कुछ तो इनमें अलग है! पर अभिमान से कहते नहीं है परंतु उनको पता है ये अलग हैं। तो ये एक पॉइंट।

8) आंठवा - लास्ट पॉइंट - अलौकिक स्मृति। कौन-सी स्मृति? तीन बातें उसमें बताई, एक तो ये हीरेतुल्य जीवन है वह सब तो है ही, सबसे पहली स्मृति - एक बाप दूसरा ना कोई। स्मृति शक्तिशाली होगी तो स्थिति शक्तिशाली होगी। दूसरी स्मृति - मेरे को तेरा। और तीसरी स्मृति - मेरा बाबा। जब भी मेरा कहो तो बाबा जोड़ दो। तो ये तीन स्मृतियां हैं अलौकिक स्मृतियां, श्रेष्ठ स्मृति! छोटे से छोटा कर्म हो, परंतु स्मृति बहुत महान हो - मैं कहां हूं? विश्व के केंद्र में हूं - मधुबन में हूं। किसकी भूमि है ये- महान तपस्वियों की भूमि है ये! इस तपस्वी भूमि में तपस्वी वाइब्रेशन हैं सब जगह, कण कण में प्रकंपन हैं पवित्रता के। योग करना है, भले कुटिया में बैठे नहीं है परंतु कहीं बाहर बैठे हैं.. संकल्प करो कि बाबा के कुटिया के समस्त वाइब्रेशंस मुझ आत्मा में समा रहे हैं। शांति स्तंभ पर है नहीं फिज़िकली, संकल्प करो कि वहां के सारे वाइब्रेशंस मुझ आत्मा में आ रहे हैं। हिस्ट्री कॉल की जितनी दादियां दिखाई दे रही हैं, सबके वाइब्रेशंस, सबकी शक्ति, सबकी प्योरिटी मुझ आत्मा में समा रही हैं, ऐसा अखंड ब्रह्मचर्य, ऐसी अखंड पवित्रता मुझमें समा रही है।

तो कितनी बातें हो गई? आठ।
• सबसे पहली - करनकरावनहार।
• दूसरा - निश्चय।
• तीसरा - खेल।
• चौथा - असोच।
• पांचवा - शुभ चिंतन।
• छठवां - नशा।
• सातवां - अमृतवेला दिलखुश मिठाई।
• आठवां - अलौकिक स्मृति।

ऐसे अलौकिक स्मृति वाली आत्माओं को, ऐसे नशे में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे गुणमूर्त बन दूसरों को भी गुणमूर्त बनाने का संकल्प करने वाली आत्माओं को, ऐसे साइलेंस की पावर में नेगेटिव को पॉजिटिव में कन्वर्ट करने वाली आत्माओं को, ऐसे सदा ही परमात्म-प्रेम के झूले में झूलने वाली सुखदाई, सुख का अनुभव करने वाली आत्माओं को, ऐसे आलौकिक संगमयुग में रहने वाली आत्माओं को, बड़े ते बड़े बाप की बड़े ते बड़ी संतान, बड़े ते बड़े बच्चे, बड़े ते बड़े दिलवाले बच्चों को, बड़े ते बड़े पुरुषोत्तम आत्माओं को, ऐसे प्रकाश की ओर जाने वाली आत्माओं को, ऐसे सर्वगुण संपन्न, ऐसे जैसे ज्ञान को ईमर्ज किया अब गुणों को ईमर्ज करो ऐसी आत्माओं को, ऐसे दिलखुश मिठाई खाने और खिलाने वाली आत्माओं को, ऐसे नाचने, गाने वाली, झूमने वाली, उड़ने वाली, नशे में रहने वाली आत्माओं को, ऐसे असोच आत्माओं को, ऐसे सदा हर्षित भव का वरदान बाप से लेने वाली आत्माओं को, ऐसे साकारी और आकारी आत्माओं को, ऐसे मेरा बाबा.. तेरा बाबा? मेरा बाबा, तेरा बाबा, सबका बाबा.. तब तक नहीं रुकूंगा जबतक एक-एक छाती में प्रभु प्रेम का ध्वज न गाड़ दूं, ऐसा संकल्प करने वाली, एक-एक आत्मा को परमात्म-प्रेम में डूबो देने वाली आत्माओं को, ऐसे बेफिक्र बादशाह आत्माओं को, ऐसे भगवान की दिलतख्त पर बैठने वाली आत्माओं को, ऐसे हथेली में बहिश्त रूपी सौगात, बड़े ते बड़ी सौगात लेने वाली आत्माओं को, (उधर का फॉरेन का राजा रानी तुमको तख्त देगा तुम लोगे? नहीं लोगे।) बड़े बाप के बड़े बच्चे, बड़ी दिलवाली आत्माओं को, बेहद बाप के बेहद बच्चों को, ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर की आदि नाथ, आदि देव, आदि देव की आदि आत्माओं को, क्रिसमस ट्री पर चमकते हुए बल्ब सितारें को, सदा खुशमिजाज़ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, गुड नाइट और नमस्ते। हम रूहानी बच्चों की रूहानी बापदादा को याद-प्यार, गुड नाइट और नमस्ते। ओम शांति।