06 जून, 2015
स्मृति
मीठे बच्चे, तुम
बच्चे जानते हो अभी हम मनुष्य, भविष्य के लिए देवता
बन रहे हैं। यहाँ बैठो, चाहे कहीं भी बैठो तुम
ट्रांयफर होते-होते मनुष्य से देवता बनते जाते हो।
कुछ भी काम-काज करो, रोटी पकाओ, बुद्धि में सिर्फ
बाप को याद करो। बाप की याद से वर्सा भी याद आता
है, 84 का चक्र भी याद आता है। कोई पर क्रोध नहीं
करना, किसको दु:ख नहीं देना, कोई भी फालतू बातें
कान से सुननी नहीं हैं। सिर्फ बाप को याद करो।
मीठे बाबा, कर्म
करते हुए मैं योग में रहूँगा। मैं यह याद करूंगा
कि मैं देवता बनने जा रहा हूँ। आज मैं जब अपने
कर्म करूँगा तो आपको और आपके वर्से को याद रखूँगा।
मैं 84 जन्मों के चक्र को अपनी स्मृति में रखूँगा
और अपने मन को शीतल रखूँगा और जिससे भी मिलूँगा उसे
खुशी दूँगा।
स्मृर्थी
ऊपर की स्मर्ती से
प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं स्वयं को निरंतर
सशक्त अनुभव कर रहा हूँ। मुझमें इस बात की जागृती
आ रही है कि मेरी स्मृर्ती से मेरा स्वमान बढ़ता जा
रहा है। मैं इस बात पर ध्यान देता हूँ कि मेरी
स्मृर्ती से मुझमें शक्ति आ रही है और इस
परिवर्तनशील संसार में मैं समभाव और धीरज से कार्य
करता हूँ।
मनो-वृत्ति
बाबा आत्मा से: तुम
बहुत सौभाग्यशाली हो जो खिवैया ने हाथ पकड़ा है।
तुम ही कल्प-कल्प निमित्त् बनते हो।
निमित्त्पने की
वृत्ति अपनाने का मेरा दृढ़ संकल्प है। मीठे बाबा
ना केवल मेरा हाथ पकड़ते हैं और मुझे सुरक्षा
प्रदान करते हैं बल्कि वह मेरा हर कार्य करते हैं
और श्रेय भी मुझे ही देते हैं। मैं बाबा का कार्य
करते स्वयं को निमित्त समझता हूँ। मैं स्वयं को
बहुत भाग्यशाली समझता हूँ कि बाबा ने अपने कार्य
के लिए मेरा चयन किया। इन विचारों से मुझे
निमित्त्पने की वृत्ति अपनाने में सहायता मिलती
है।
दृष्टि
बाबा आत्मा से:
विश्व परिवर्तक वही है जो किसी भी निगेटिव को
पॉजिटिव में बदल दे।
मैं आत्माओं के
प्रति अपनी दृष्टि को परिवर्तन करता हूँ। मेरी
दृष्टि बुद्धिमानी से पूर्ण है इसलिए जिससे भी
मिलता हूँ उसके निगेटिव को भी पॉजिटिव में बदल देता
हूँ। जब भी मैं किसी की कमज़ोरी को देखता हूँ उसे
उसकी शक्ति के रूप में बदल देता हूँ। जब मैं अपनी
दृष्टि को परिवर्तन करता हूँ तो मैं विश्व
परिवर्तक बन जाता हूँ।
लहर उत्पन्न करना
मुझे शाम 7-7:30 के
योग के दौरान पूरे ग्लोब पर पावन याद और वृत्ति की
सुंदर लहर उत्पन्न करने में भाग लेना है और मन्सा
सेवा करनी है। उपर की स्मृर्ति, मनो-वृत्ति और
दृष्टि का प्रयोग करके विनिम्रता से निमित् बनकर
मैं पूरे विश्व को सकाश दूँगा।