23
मई,
2015
स्मृति
मीठे बच्चे: त्रि-स्मृति स्वरूप का तिलक धारण करने
वाले सम्पूर्ण विजयी भव।
मीठे बाबा, मुझे ज्ञात है कि सारे ज्ञान का
विस्तार तीन बातों की स्मृति से होता है: स्वयं
की, बाप की और ड्रामा की। नॉलेज के वृक्ष की यह
तीन स्मृतियां हैं। जैसे वृक्ष का पहले बीज होता
है, उस बीज द्वारा दो पत्ते निकलते हैं फिर वृक्ष
का विस्तार होता है।
ऐसे मुख्य है बीज बाप की स्मृति फिर आत्मा और
ड्रामा की सारी नॉलेज।
स्मृर्थी
ऊपर की स्मर्ती से प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं
स्वयं को निरंतर सशक्त अनुभव कर रहा हूँ। मुझमें
इस बात की जागृती आ रही है कि मेरी स्मृर्ती से
मेरा स्वमान बढ़ता जा रहा है। मैं इस बात पर ध्यान
देता हूँ कि मेरी स्मृर्ती से मुझमें शक्ति आ रही
है और इस परिवर्तनशील संसार में मैं समभाव और धीरज
से कार्य करता
हूँ।
मनो-वृत्ति
बाबा आत्मा से: पवित्र रहना तो अच्छा है। संग में
आकर लूज़ नहीं होना चाहिए। हम भाई-बहन हैं फिर
नाम-रूप में क्यों फंसे ?
मैं सावधानी की वृत्ति रखता
हूँ। मैं अपने मन के
संकल्पों के प्रति सावधान रहता हूँ। क्या मैं
अपने मन को अच्छा संग दे रहा
हूँ ? मुझे मालूम है
कि हार पहले मन में होती है। मैं अपने मन और हृदय
की पवित्र और शक्तिशाली वृत्ति से सम्भाल करता
हूँ।
दृष्टि
बाबा आत्मा से: वह एक्टर्स कपड़े बदली कर
भिन्न्-भिन्न् पार्ट बजाते हैं। तुम फिर शरीर
बदलते हो। वो कोई मेल वा फीमेल की ड्रेस पहनेंगे
अल्पकाल के लिए।
यहाँ मेल का चोला लिया तो सारी आयु मेल ही रहेंगे।
मैं सभी आत्माओं के प्रति भाईचारे की दृष्टि
अपनाता हूँ।
मैं स्वयं को और दूसरों को ना मेल या ना फीमेल के
रूप में देखता हूँ।
लहर उत्पन्न करना
मुझे शाम 7-7:30 के योग के दौरान पूरे ग्लोब पर
पावन याद और वृत्ति की सुंदर लहर उत्पन्न करने में
भाग लेना है और मन्सा सेवा करनी है। उपर की
स्मृर्ति, मनो-वृत्ति और दृष्टि का प्रयोग करके
विनिम्रता से निमित् बनकर मैं पूरे विश्व को सकाश
दूँगा।