27 मई, 2015
स्मृति
बाबा कहते हैं, हे
मीठे-मीठे लाडले, सिकीलधे रूहानी बच्चों। अभी तुम
बाप से महावाक्य सुनकर गुल-गुल बनते हो। अभी तुम
बच्चे जानते हो कि हमको कोई मनुष्य नहीं सुनाते
हैं। इस पर शिवबाबा विराजमान है, वह भी आत्मा ही
है, परन्तु उनको कहा जाता है परम आत्मा। वह है परम
पिता, परम बनाने बाला। परमपिता अक्षर बहुत मीठा
है।
मीठे बाबा, सारा
दिन मैं इस स्मृति की पुष्टि करता रहूँगा कि आप
मेरे बाबा हो। मैं यह उत्कृष्ट जागृति रखता हूँ कि
भगवान मेरे पिता हैं, मेरे बाबा हैं। परमपिता मैं
आपको अति स्नेह से याद करूंगा। आप बहुत मीठे हो।
प्यारे बाबा, आप मुझे पढ़ा कर सुन्दर फूल बनाते हो
और परम बनाकर विश्व राज्य अधिकार के लायक बनाते
हो।
स्मृर्थी
ऊपर की स्मर्ती से
प्राप्त होने वाली शक्ति से मैं स्वयं को निरंतर
सशक्त अनुभव कर रहा हूँ। मुझमें इस बात की जागृती
आ रही है कि मेरी स्मृर्ती से मेरा स्वमान बढ़ता जा
रहा है। मैं इस बात पर ध्यान देता हूँ कि मेरी
स्मृर्ती से मुझमें शक्ति आ रही है और इस
परिवर्तनशील संसार में मैं समभाव और धीरज से कार्य
करता हूँ।
मनोवृत्ति
बाबा आत्मा से:
यथार्थ वैराग्य वृत्ति का सहज अर्थ है – जितना
न्यारा उतना प्यारा।
वैराग्य वृत्ति
अपनाने का मेरा दृढ़ संकल्प है। मैं बहुत न्यारा और
बहुत प्यारा बनूंगा। मैं सभी लोगों को प्रेम करता
हूँ लेकिन कोई खास पंसदीदा नहीं हैं। मैं अपने
जीवन में लोगों की उपस्थिति का मान करता हूँ लेकिन
किसी में भी फंसता नहीं हूँ। यह हो सकता है कि
परिणाम जल्दी दिखाई नहीं दें लेकिन इस प्रकार का
न्यारा और प्यारापन वैराग्य वृत्ति उत्पन्न् करने
के लिए सहायक है।
दृष्टि
बाबा आत्मा से: तुम
समझते हो हम जाते हैं शिवबाबा के पास, ब्रहमा दादा
के पास; दोनों कम्बाईंड हैं। हम उससे मिलने जाते
हैं जो हमें विश्व का मालिक बनाते हैं। अन्दर में
कितनी बेहद खुशी होनी चाहिए। जैसे कन्या पति के
साथ मिलती है तो जेवर आदि पहनती है तो मुखड़ा खिल
जाता है। वह मुखड़ा खिलता है दुख पाने के लिए।
तुम्हारा मुखड़ा खिलता है सदा सुख पाने के लिए।
मैं अपने नैनों में
बाबा को बसाए रखूंगा। बाबा मुझे विश्व का मालिक बना
रहे हैं। बाबा को याद करने और वर्सा पाने के
संयुक्त परिणाम से मेरा चेहरा खिल उठा है। आज खिला
हुआ चेहरा और बापदादा मेरी दृष्टि में हैं।
लहर उत्पन्न करना
मुझे शाम 7-7:30 के
योग के दौरान पूरे ग्लोब पर पावन याद और वृत्ति की
सुंदर लहर उत्पन्न करने में भाग लेना है और मन्सा
सेवा करनी है। उपर की स्मृर्ति, मनो-वृत्ति और
दृष्टि का प्रयोग करके विनिम्रता से निमित् बनकर
मैं पूरे विश्व को सकाश दूँगा।