20-Apr-2015
निश्चय और कड़ा प्रेम!
लोगों में विश्वास रखने की
दादी में अदभुत क्षमता है – मुझे याद है कि मेरे
जीवन में कुछ घटना घटी थी जो कि श्रीमत के विरूदध्
थी और मुझे लगा कि मेरे साथ दादी बहुत कठोर हो
जाऐगी लेकिन उन्होंने मुझे निरंतर उत्साह देकर और
बड़ी बात को छोटी बात बनाकर आश्चर्य में डाल दिया ।
वह वास्तव में कुल के और प्रत्येक के गौरव की रक्षा
करती है – वह माफ कर देती है और भूल जाती है और उस
भूल को मन मे रख ऐसी दोषी दष्टि से आपको कभी नहीं
देखती, इससे आत्मा आगे बढ़ती रहती है और उसका हृदय
कभी नहीं टूटता ! एक बार मुझे याद है एक कार्यक्रम
बना लेकिन दादी उस पर सवालिया निशान लगा रही थी और
मुझे बहुत दुत्कारा हुआ महसूस हुआ और मैं यह कहते
हुए रो रही थी कि दादी मुझे बिल्कुल प्रेम नहीं
करती । दादी बहुत स्थिरता से समझा रही थी कि उसका
निश्चय और मेरा सहारा प्रेम ही है और मुझे सच्चे
प्रेम को समझने की आवश्यकता है ! मैंने इस बात को
हमेशा सराहा है कि किस प्रकार हम दादी के साथ एक
सच्चा सम्बन्ध्ा रख सकते हैं- वह दूर नहीं है और
पूरे हृदय से हमारा साथ देती है परन्तु स्वयं से
मोह रखने नहीं देती ।
ज्ञान के मोती
स्वयं की तुलना कभी नहीं करें
क्योंकि कभी भी आप दुसरों जैसा पुरूषार्थ नहीं कर
पाऐंगे । मुझे वह नहीं करना जो दुसरे करते हैं
लेकिन यह भाव रखना है कि मुझमें भी समान बनने की
शक्ति है । मुझे ज्ञानयुक्त, युक्तियुक्त और
योगयुक्त बनने का पुरूषार्थ् करना है ।
मम्मा को सभी की गल्तियों
और कमियों का मालूम था । लेकिन पहले वह आत्मा की
विशेषताओं का वर्णन करके उसे सहारा देती थी उसके
पश्चात ही वह सुधरने के लिए कहती थी । इस रीती से
हमें लगता था कि वह शिक्षाओं की अपेक्षा प्रेम दे
रही है । बहुत से लोग विशेषताओं को न देखकर सिर्फ
कमी-कमज़ोरियों को देखते हैं । याद रखें कि बाबा ने
प्रत्येक आत्मा का चुनाव किया है और निश्चित रूप
से हरेक में कोई न कोई विशेषता अवश्य है । उन
विशेषताओं को देखना सीखें नहीं तो आप सदा व्यर्थ्
में ही उलझे रहेंगे और कभी भी आत्म-अभिमानी नहीं
बन पाऐंगे । दुसरों को देखने की अपेक्षा स्वयं का
अवलोकन करने के लिए और परिवर्तन करने के लिए कुछ
समय एकांत में बिताऐं ।
बाबा को अपना साथी बनाकर इस
ड्रामा को साक्षी होकर देखें । बाबा और ड्रामा के
बीच में मैं कहाँ खड़ी हूँ
? यह इतना अद्भुत ड्रामा है और मुझे महसूस होता है
कि पिछले कल्प भी मैं बाबा के साथ थी और अब भी मैं
बाबा के साथ हूँ । बाबा ने
मुझे अपना बना लिया है; वह हमेंशा साक्षी भी और
साथी भी दोनों ही है । करोड़ों आत्माओं में से बाबा
ने मुझे यह कहकर चुना है कि: तुम नम्बर वन आत्मा
हो और पास विद ऑनर होने वाली हो । इस प्रकार
प्रोत्साहित करके बाबा हमें लायक बना रहे हैं ।
दृष्टि पॉईंट
बाबा की तरह ही दादी भी
हरेक में केवल अच्छाईयां ही देखती है और
कमी-कमज़ोरियों को भुला देती है । आज मुझे भी
प्रत्येक आत्मा को इसी दृष्टि से देखना है । मैं
केवल सर्वोच्च सामर्थ्य ही देखूं और प्रत्येक को
शक्ति और प्रोत्साहन ही दूँ
।
कर्म-योग का अभ्यास
परमात्मा की प्यारी साथी बन
कर मैं संसार की सेवा करती हूँ
।